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मैं जिस लड़के से शादी करना चाहती हूं वो कभी भी पिता नहीं बन सकता, अब आप बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. एक लड़के से प्यार करती हूं और उस से शादी करना चाहती हूं. लेकिन मेरे घर वाले इस रिश्ते के सख्त खिलाफ हैं. कारण, मेरा प्रेमी कभी पिता नहीं बन सकता. उस की सचाई जान कर कोई भी लड़की उस से शादी करने को तैयार नहीं होती, लेकिन मैं उसे इस हाल में नहीं छोड़ सकती. मैं ने निश्चय कर लिया है कि शादी करूंगी तो सिर्फ उसी से.

जवाब

आप को यह कैसे मालूम कि होने वाला पति पिता नहीं बन सकता? क्या उस ने जांच कराई थी? वैसे मातापिता अपने बच्चों का भला ही चाहते हैं. आप के मातापिता अनुभवी हैं, उन्हें दुनिया का आप से ज्यादा तजरबा है. यदि वे आप को इस शादी के लिए रोक रहे हैं, तो आप को भी ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए. आप भावावेश में आ कर कोई कदम न उठाएं.

सिर्फ इसलिए इस शादी को अंजाम देने में जल्दबाजी न करें कि कोई दूसरी लड़की उक्त लड़के से विवाह को तैयार नहीं है. सोच कर देखें कि कहीं आप तरस खा कर तो ऐसा नहीं कर रही हैं. शादी जीवन का एक अहम फैसला है. बेहतर होगा कि इस रिश्ते को थोड़ा और समय दें. तब तक आप भी थोड़ी मैच्योर हो जाएंगी और यदि तब भी आप का निश्चय नहीं बदला तो आप विवाह कर सकती हैं.

एनीमिया : इलाज से बेहतर है परहेज

गर्मियों में थोड़ी से लापरवाही आपको बीमार कर सकती है. आप कई बीमारियों से घिर सकते हैं, उन्ही बीमारियों में एक है एनीमिया. जो शरीर में आयरन की कमी होने से होने से होती है. शरीर में आयरन की कमी होने से हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है जिसे एनीमिया जाता है.

हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं में पाया जाने वाला ऐसा प्रोटीन है, जो पूरे शरीर ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है और हीमोग्लोबीन की कमी से शरीर की कोशिकाओं में ऑक्सीजन की कमीहोने लगती है और इसी कमी की वजह से व्यक्ति में एनीमिया के लक्षण दिखाई देने लगते हैं. शरीर को पर्याप्त पोषण नहीं मिलने पर या हरे पत्तेदार सब्जियां का सेवन नहीं करने पर रक्त में आयरन की कमी हो जाती है.

एनीमिया के प्रमुख लक्षण

* अत्यधिक थकान.

*  जीभ का रंग सफेद होना.

* चेहरा सफेद या पीला पड़ना.

* जल्दी-जल्दी बीमार पड़ना.

* हाथ-पैरों में झनझनाहट.

* सिरदर्द रहना.

* कभी-कभी चक्कर आना और आंखों के आगे अंधेरा छा जाना .

* हृदय गति असामान्य होना.

* खाने खाने का मन नहीं करना.

* नाखूनों की रंगत सफेद पडना

* आंखों के नीचे काले घेरे होना.

एनीमिया का निदान :-

रोगी की रक्‍त जांच के जरिए डॉक्टर आसानी से एनीमिया के पहचान कर लेते हैं. इसके अलावा वे रोगी की अन्य जांच भी करवाते हैं जिससे एनीमिया की मुख्य वजह का पता लगाया जा सके. एनीमिया का इलाज पूरी तरह से संभव है. रोगी की शरीर की जांच व चिकित्सीय इतिहास का इसमें अहम रोल होता है. कई बार रोगी के परिवारिक इतिहास में एनीमिया की समस्या होती है जिससे वो इसका शिकार हो जाता है. इसके अलावा कोई अन्य गंभीर बीमारी होने पर भी इसके लक्षण दिखाई देते हैं. एनीमिया किसी बीमारी का लक्षण मात्र है और डॉक्टर रोगी की जांच के जरिए इस बीमारी के बारे में पता लगाने की कोशिश करते हैं. एनीमिया के निदान के लिए निम्न जांच की जाती हैं.

इलाज से बेहतर है परहेज :-

इलाज से बेहतर है परहेज, इसलिए शरीर में खून की कमी न होने पाए, इसके लिए पौष्टिकता पर विशेष ध्यान देना बहुत जरूरी है. ऐसे में भोज्य पदार्थों यथा मूंगफली, गुड़, चना, हरी पत्तेदार सब्जियां आदि का सेवन नियमित रूप से करते रहना चाहिए. चूंकि हमारे रक्त का एक मुख्य घटक प्रोटीन भी है, इसलिए हमें प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे अंकुरित दालें, दूध, दही, पनीर तथा दूध से बने अन्य उत्पाद, सूखे मेवे, सोयाबीन आदि का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए लेकिन यह ध्यान रखें कि जंकफूड न खाएं, सिंथेटिक एवं फ्लेवर्ड शीतल पेयों से भी परहेज रखें.

* ‘मैगलोब्लास्टिक एनीमिया’  :-

शरीर में रक्त की कमी होने के अनेक कारण हो सकते हैं. एनीमिया रोग मुख्यत: आयरन की कमी से होता है परन्तु कई बार शरीर में फोलिकएसिड और विटामिनबी-12 की कमी होने से भी एनीमिया हो जाता है. हालांकि ऐसा बहुत कम मामलों में होता है. इसे ‘मैगलोब्लास्टिक एनीमिया’ कहते हैं. साधारण एनीमिया का पता रक्त में हीमोग्लोबिन की मात्रा जांचने से चल जाता है जबकि मैग्लोब्लास्टिक एनीमिया का पता पेटीफलस्वीयरटेस्ट द्वारा ही चल पता है.

महिलाओं में प्रत्येक मासिक स्राव एवं प्रसव के समय अत्यधिक मात्रा में स्राव होने से भी शरीर में खून की कमी हो जाती है. कभी-कभी शरीर में खून की कमी के कारण माइनर थैलेसीमिया रोग भी हो सकता है. इस प्रकार के एनीमिया का इलाज आयरन की गोलियां से नहीं होता बल्कि इसका इलाज विशेष रूप से करवाना पड़ता है. पेट में कीड़े होने और थायराइड ग्रंथि के अधिक सक्रिय होने के कारण भी एनीमिया हो सकता है.

इनको ना कहे :-

पेप्सी और कोक को ना करे साथ ही नींद के गोलियों के सेवन से दूर रहे. साथ ही जंकफूड न खाएं, क्यों कि इनका सेवन अत्यधिक हानिकारक हो सकता है.

इन्हें हां कहे :-

प्रोटीनयुक्त भोजन जैसे अंकुरित दालें, दूध, दही, पनीर तथा दूध से बने अन्य उत्पाद, सूखे मेवे, सोयाबीन आदि का सेवन अधिक मात्रा में करना लाभदायक हो सकता है.

अपराधबोध : उस दिन क्या हुआ था अंजु के साथ ?

अपने मकान के दूसरे हिस्से में भारी हलचल देख कर अंजु हैरानी में पड़ गई थी कि इतने लोगों का आनाजाना क्यों हो रहा है. जेठजी कहीं बीमार तो नहीं पड़ गए या फिर जेठानी गुसलखाने में फिसल कर गिर तो नहीं गईं.

जेठानी की नौकरानी जैसे ही दरवाजे से बाहर निकली, अंजु ने इशारे से उसे अपनी तरफ बुला लिया.

चूंकि देवरानी और जेठानी में मनमुटाव चल रहा था इसलिए जेठानी के नौकर इस ओर आते हुए डरते थे.

अंजु ने चाय का गिलास नौकरानी को पकड़ाते हुए कहा, ‘‘थोड़ी देर बैठ कर कमर सीधी कर ले.’’

चाय से भरा गिलास देख कर नौकरानी खुश हो उठी, फिर उस ने अंजु को बहुत कुछ जानकारी दे दी और यह कह कर उठ गई कि मिठाई लाने में देरी हुई तो घर में डांट पड़ जाएगी.

यह जान कर अंजु के दिल पर सांप लोटने लगा कि जेठानी की बेटी निन्नी का रिश्ता अमेरिका प्रवासी इंजीनियर लड़के से पक्का होने जा रहा है.

जेठानी का बेटा डाक्टर बन गया. डाक्टर बहू घर में आ गई.

अब तो निन्नी को भी अमेरिका में नौकरी करने वाला इंजीनियर पति मिलगया.

ईर्ष्या से जलीभुनी अंजु पति और पुत्र दोनों को भड़काने लगी, ‘‘जेठजेठानी तो शुरू से ही हमारे दुश्मन रहे हैं. इन लोगों ने हमें दिया ही क्या है. ससुरजी की छोड़ी हुई 600 गज की कोठी में से यह 100 गज में बना टूटाफूटा नौकर के रहने लायक मकान हमें दे दिया.’’

हरीश भी भाई से चिढ़ा हुआ था. वह भी मन की भड़ास निकालने लगा, ‘‘भाभी यह भी तो ताने देती कहती हैं कि भैया ने अपनी कमाई से हमें दुकान खुलवाई, मेरी बीमारी पर भी खर्चा किया.’’

‘‘दुकान में कुछ माल होता तब तो दुकान चलती, खाली बैठे मक्खी तो नहीं मारते,’’ बेटे ने भी आक्रोश उगला.

अंजु के दिल में यह बात नश्तर बन कर चुभती रहती कि रहन- सहन के मामले में हम लोग तो जेठानी के नौकरों के बराबर भी नहीं हैं.

जेठजेठानी से जलन की भावना रखने वाली अंजु कभी यह नहीं सोचती थी कि उस का पति व्यापार करने के तौरतरीके नहीं जानता. मामूली बीमारी में भी दुकान छोड़ कर घर में पड़ा रहता है.

बच्चे इंटर से आगे नहीं बढ़ पाए. दोनों बेटियों का रंग काला और शक्लसूरत भी साधारण थी. न शक्ल न अक्ल और न दहेज की चाशनी में पगी सुघड़ता, संपन्नता तो अच्छे रिश्ते कहां से मिलें.

अंजु को सारा दोष जेठजेठानी का ही नजर आता, अपना नहीं.

थोड़ी देर में जेठानी की नौकरानी बुलाने आ गई. अंजु को बुरा लगा कि जेठानी खुद क्यों नहीं आईं. नौकरानी को भेज कर बुलाने की बला टाल दी. इसीलिए दोटूक शब्दों में कह दिया कि यहां से कोई नहीं जाएगा.

कुछ देर बाद जेठ ने खुद उन के घर आ कर आने का निमंत्रण दिया तो अंजु को मन मार कर हां कहनी पड़ी.

जेठानी के शानदार ड्राइंगरूम में मखमली सोफों पर बैठे लड़के वालों को देख कर अंजु के दिल पर फिर से सांप लोट गया.

लड़का तो पूरा अंगरेज लग रहा है, विदेशी खानपान और रहनसहन अपना-कर खुद भी विदेशी जैसा बन गया है.

लड़के के पिता की उंगलियों में चमकती हीरे की अंगूठियां व मां के गले में पड़ी मोटी सोने की जंजीर अंजु के दिल पर छुरियां चलाए जा रही थी.

एकाएक जेठानी के स्वर ने अंजु को यथार्थ में ला पटका. वह लड़के वालों से उन लोगों का परिचय करा रहे थे.

लड़के वालों ने उन की तरफ हाथ जोड़ दिए तो अंजु के परिवार को भी उन का अभिवादन करना पड़ा.

जेठजी कितने चतुर हैं. लड़के वालों से अपनी असलियत छिपा ली, यह जाहिर नहीं होने दिया कि दोनों परिवारों के बीच में बोलचाल भी बंद है. माना कि जेठजी के मन में अब भी अपने छोटे भाई के प्रति स्नेह का भाव छिपा हुआ है पर उन की पत्नी, बेटा और बेटी तो दुश्मनी निभाते हैं.

भोजन के बाद लड़के वालों ने निन्नी की गोद भराई कर के विवाह की पहली रस्म संपन्न कर दी.

लड़के की मां ने कहा कि मेरा बेटा विशुद्ध भारतीय है. वर्षों विदेश में रह कर भी इस के विचार नहीं बदले. यह पूरी तरह भारतीय पत्नी चाहता था. इसे लंबी चोटी वाली व सीधे पल्लू वाली निन्नी बहुत पसंद आई है और अब हम लोग शीघ्र शादी करना चाहते हैं.

अंजु को अपने घर लौट कर भी शांति नहीं मिली.

निन्नी ने छलकपट कर के इतना अच्छा लड़का साधारण विवाह के रूप में हथिया लिया. इस चालबाजी में जेठानी की भूमिका भी रही होगी. उसी ने निन्नी को सिखापढ़ा कर लंबी चोटी व सीधा पल्लू कराया होगा.

अंजु के घर में कई दिन तक यही चर्चा चलती रही कि जीन्सशर्ट पहन कर कंधों तक कटे बालों को झुलाती हुई डिस्को में कमर मटकाती निन्नी विशुद्ध भारतीय कहां से बन गई.

एक शाम अंजु अपनी बेटी के साथ बाजार में खरीदारी कर रही थी तभी किसी ने उस के बराबर से पुकारा, ‘‘आप निन्नी की चाची हैं न.’’

अंजु ने निन्नी की होने वाली सास को पहचान लिया और नमस्कार किया. लड़का भी साथ था. वह साडि़यों केडब्बों को कार की डिग्गी में रखवा रहा था.

‘‘आप हमारे घर चलिए न, पास मेंहै.’’

अंजु उन लोगों का आग्रह ठुकरा नहीं पाई. थोड़ी नानुकुर के बाद वह और उस की बेटी दोनों कार में बैठ गईं.

लड़के की मां बहुत खुश थी. उत्साह भरे स्वर में रास्ते भर अंजु को वह बतातीरहीं कि उन्होंने निन्नी के लिए किस प्रकारके आभूषण व साडि़यों की खरीदारी की है.

लड़के वालों की भव्य कोठी व कई नौकरों को देख अंजु फिर ईर्ष्या से जलने लगी. उस की बेटी के नसीब में तो कोई सर्वेंट क्वार्टर वाला लड़का ही लिखा होगा.

अंजु अपने मन के भाव को छिपा नहीं पाई. लड़के की मां से अपनापन दिखाती हुई बोली, ‘‘बहनजी, कभीकभी आंखों देखी बात भी झूठी पड़ जाती है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

अंजु ने जो जहर उगलना शुरू किया तो उगलती ही चली गई. कहतेकहते थक जाती तो उस की बेटी कहना शुरू कर देती.

लड़के की मां सन्न बैठी थी, ‘‘क्या कह रही हो बहन, निन्नी के कई लड़कों से चक्कर चल रहे हैं. वह लड़कों के साथ होटलों में जाती है, शराब पीती है, रात भर घर से बाहर रहती है.’’

‘‘अब क्या बताऊं बहनजी, आप ठहरीं सीधीसच्ची. आप से झूठ क्या बोलना. निन्नी के दुर्गुणों के कारण पहले भी उस का एक जगह से रिश्ता टूट चुका है.’’

अंजु की बातों को सुन कर लड़के की मां भड़क उठी, ‘‘ऐसी बिगड़ी हुई लड़की से हम अपने बेटे का विवाह नहीं करेंगे. हमारे लिए लड़कियों की कमी नहीं है. सैकड़ों रिश्ते तैयार रखे हैं.’’

अंजु का मन प्रसन्न हो उठा. वह यही तो चाहती थी कि निन्नी का रिश्ता टूट जाए.

लोहा गरम देख कर अंजु ने फिर से चोट की, ‘‘बहनजी, आप मेरी मानें तो मैं आप को एक अच्छे संस्कार वाली लड़की दिखाती हूं, लड़की इतनी सीधी कि बिलकुल गाय जैसी, जिधर कहोगे उधर चलेगी.’’

‘‘हमें तो बहन सिर्फ अच्छी लड़की चाहिए, पैसे की हमारे पास कमी नहीं है.’’

लड़के की मां अगले दिन लड़की देखने के लिए तैयार हो गईं.

एक तीर से दो निशाने लग रहे थे. निन्नी का रिश्ता भी टूट गया और अपनी गरीब बहन की बेटी के लिए अच्छा घरपरिवार भी मिल गया.

अंजु ने उसी समय अपनी बहन को फोन कर के उन लोगों को बेटी सहित अपने घर में बुला लिया.

फिर बहन की बेटी को ब्यूटीपार्लर में सजाधजा कर उस ने खुद लड़के वालों के घर ले जा कर उसे दिखाया पर लड़के को लड़की पसंद नहीं आई.

अंजु अपना सा मुंह ले कर वापस लौट आई.

फिर भी अंजु का मन संतुष्ट था कि उस के घर शहनाई न बजी तो जेठानी के घर ही कौन सी बज गई.

निन्नी का रिश्ता टूटने की खुशी भी तो कम नहीं थी.

एक दिन निन्नी रोती हुई उस के घर आई, ‘‘चाची, तुम ने उन लोगों से ऐसा क्या कह दिया कि उन्होंने रिश्ता तोड़ दिया.’’

अंजु पहले तो सुन्न जैसी खड़ी रही, फिर आंखें तरेर कर निन्नी की बात को नकारती हुई बोली, ‘‘तुम्हारा रिश्ता टूट गया, इस का आरोप तुम मेरे ऊपर क्यों लगा रही हो. तुम्हारे पास क्या सुबूत है कि मैं ने उन लोगों से तुम्हारी बातें लगाई हैं.’’

‘‘लेकिन वे लोग तो तुम्हारा ही नाम ले रहे हैं.’’

‘‘मैं भला उन लोगों को क्या जानूं,’’ अंजु निन्नी को लताड़ती हुई बोली, ‘‘तुम दोनों मांबेटी हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती हो, रिश्ता टूटने का आरोप मेरे सिर पर मढ़ कर मुझे बदनाम कर रही हो. यह भी तो हो सकता है कि तुम्हारी किसी गलती के कारण ही रिश्ता टूटा हो.’’

‘‘गलती… कैसी गलती? मेरी बेटी ने आज तक निगाहें उठा कर किसी की तरफ नहीं देखा तो कोई हरकत या गलती भला क्यों करेगी?’’ दीवार की आड़ में खड़ी जेठानी भी बाहर निकल आई थीं.

जेठानी की खूंखार नजरों से घबरा कर अंजु ने अपना दरवाजा बंद कर लिया.

इस घटना को ले कर दोनों घरों में तनाव की अधिकता बढ़ गई थी. फिर जेठजी ने अपनी पत्नी को समझा कर मामला रफादफा कराया.

एक रात अंजु का बेटा दफ्तर से घर लौटा तो उस के पास 500 और 1 हजार रुपए के नएनए नोट देख कर पूरा परिवार हैरान रह गया.

अंजु ने जल्दी से घर का दरवाजा बंद कर लिया और धीमी आवाज में रुपयों के बारे में पूछने लगी.

बेटे ने भी धीमी आवाज में बताया कि आज सेठजी अपना पर्स दुकान में ही भूल गए थे.

हरीश को बेटे की करतूत नागवार लगी, ‘‘तू ने सेठजी का पर्स घर में ला कर अच्छा नहीं किया. उन्हें याद आएगा तो वे तेरे ही ऊपर शक करेंगे. तू इन रुपयों को अभी उन्हें वापस कर आ.’’

आंखें तरेर कर अंजु ने पति से कहा, ‘‘तुम सचमुच के राजा हरिश्चंद्र हो तो बने रहो. हमें सीख देने की जरूरत नहीं है.’’

मांबेटा दोनों देर रात तक रुपयों को देखदेख कर खुश होते रहे और रंगीन टेलीविजन खरीदने के मनसूबे बनाते रहे.

सुबह किसी ने घर का दरवाजा जोरों से खटखटाया.

अंजु ने दरवाजा खोलने से पहले खिड़की से बाहर देखा तो उस की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई. बेटे की दुकान का मालिक कई लोगों के साथ खड़ा था.

अंजु घबरा कर पति को जगाने लगी, ‘‘देखो तो, यह कौन लोग हैं?’’

बाहर खड़े लोग देरी होते देख कर चिल्लाने लगे थे, ‘‘दरवाजा खोलते क्यों नहीं? मुंह छिपा कर इस तरह कब तक बैठे रहोगे. हम दरवाजा तोड़ डालेंगे.’’

शोर सुन कर जेठजेठानी का पूरा परिवार बाहर निकल आया. उन को बाहर खड़ा देख कर अंजु का भी परिवार बाहर निकल आया.

‘‘आप लोग इस प्रकार से हंगामा क्यों मचा रहे हैं?’’ हरीश ने साहस कर के प्रश्न किया.

‘‘तुम्हारा लड़का दुकान से रुपए चुरा कर ले आया है,’’ मालिक क्रोध से आगबबूला हो कर बोला.

‘‘सेठजी, आप को कोई गलत- फहमी हुई है. मेरा बेटा ऐसा नहीं है. इस ने कोई रुपए नहीं चुराए हैं,’’ अंजु घबराहट से कांप रही थी.

‘‘हम तुम्हारे घर की तलाशी लेंगे अभी दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा,’’ सारे लोग जबरदस्ती घर में घुसने लगे.

तभी जेठजी अंजु के घर के दरवाजे में अड़ कर खड़े हो गए, ‘‘तुम लोग अंदर नहीं जा सकते, हमारी इज्जत का सवालहै.’’

‘‘हमारे रुपए…’’

‘‘हम लोग चोर नहीं हैं, हमारे खानदान में किसी ने चोरी नहीं की.’’

‘‘यह लड़का चोर है.’’

‘‘आप लोगों के पास क्या सुबूत है कि इस ने चोरी की?’’ जेठजी की कड़क आवाज के सामने सभी निरुत्तर रह गए थे.

तभी जेठजी का डाक्टर बेटा सामने आ गया, उस के हाथों में नोटों की गड्डियां थीं. आक्रोश से बोला, ‘‘बोलो, कितने रुपए थे आप के. जितने थे इस में से ले जाओ.’’

वे लोग चुपचाप वापस लौट गए.

जेठजी व उन के बेटे के प्रति अंजु कृतज्ञता के भार से दब गई थी. अगर जेठजी साहस नहीं दिखाते तो आज उन सब की इज्जत सरे बाजार नीलाम हो जाती.

अंजु रोने लगी. लालच में अंधी हो कर वह कितनी बड़ी गलती कर बैठी थी. उस ने वे सारे रुपए निकाल कर बेटे के मुंह पर दे मारे, ‘‘ले, दफा हो यहां से, चोरी करेगा तो इस घर में नहीं रह पाएगा. मालिक को रुपए लौटा कर माफी मांग कर आ नहीं तो मैं तुझे घर में नहीं घुसने दूंगी,’’ फिर वह जेठजेठानी के पैरों पर गिर कर बोली, ‘‘आप लोगों ने आज हमारी इज्जत बचा ली.’’

‘‘तुम लोगों की इज्जत हमारी इज्जत है. खून तो एक ही है, आपस में मनमुटाव होना अलग बात है पर बाहर वाले आ कर तुम्हें नीचा दिखाएं तो हम कैसे देख सकते हैं,’’ जेठजी ने कहा.

अंजु शरम से पानीपानी हो रही थी. जेठजी के मन में अब भी उन लोगों के प्रति अपनापन है और एक वह है कि…उस ने जेठजी के प्रति कितना बड़ा अपराध कर डाला. उफ, क्या वह अपनेआप को कभी माफ कर सकेगी.

अंजु मन ही मन घुलती रहती. निन्नी का कुम्हलाया हुआ चेहरा उसे अंदर तक कचोटता रहता.

निन्नी छोटी थी तो उस का आंचल थामे पूरे घर में घूमती फिरती. मां से अधिक वह चाची से हिलीमिली रहती.

अपने बच्चे हो गए तब भी अंजु निन्नी को अपनी गोद में बैठा कर खिलातीपिलाती रहती. और अब ईर्ष्या की आग में जल कर उस ने अपनी उसी प्यारी सी निन्नी की भावनाओं का गला घोंट दिया था.

एक दिन अंजु के मन में छिपा अपराधबोध, सहनशक्ति से बाहर हो गया तो वह निन्नी को पकड़ कर अपने घर में ले आई, उस पर अपनापन जताती हुई बोली, ‘‘खानापीना क्यों बंद कर दिया पगली, क्या हालत बना डाली अपनी. लड़कों की कमी है क्या…’’

निन्नी उस की गोद में गिर कर बच्चों की भांति फूटफूट कर रो पड़ी, ‘‘चाची, मुझे माफ कर दो, मैं उस दिन आप से बहुत कुछ गलत बोल गई थी, उन लोगों की बातों पर विश्वास कर के मैं ने आप को गलत समझ लिया, मैं जानती हूं कि आप मुझे बहुत प्यार करती हैं.’’

‘‘हां, बेटी मैं तुझे बहुत प्यार करती हूं, पर मुझ से भी गलती हो सकती है. इनसान हूं न, फरिश्ता थोड़े ही हूं,’’ अंजु की आंखों से आंसू बहने लगे थे, ‘‘पता नहीं इनसानों को क्या हो जाता है जो कभी अपने होते हैं वे पराए लगने लगते हैं पर तू चिंता मत कर, मैं तेरे लिए उस विदेशी इंजीनियर से भी अच्छा लड़का ढूंढ़ निकालूंगी. बस, तू खुश रहा कर, वैसे ही जैसे बचपन में रहती थी. मैं तुझे अपने हाथों से दुलहन बना कर तैयार करूंगी, ससुराल भेजूंगी, मेरी अच्छी निन्नी, तू अब भी वही बचपन वाली गुडि़या लगती है.’’

जेठानी छत पर खड़ी हो कर देवरानी की बातें सुन रही थी.

अंजु के शब्दों ने उस के अंदर जादू जैसा काम किया. नीचे उतर कर पति से बोली, ‘‘झगड़ा तो हम बड़ों के बीच चल रहा है, बच्चे क्यों पिसें. तुम अंजु के बेटे की कहीं अच्छी सी नौकरी लगवा दो न.’’

‘‘तुम ठीक कहती हो.’’

‘‘अंजु की लड़कियां पूरे दिन घर में खाली बैठी रहती हैं. एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन ला कर उन्हें दे दो. मांबेटियां सिलाई कर के कुछ आर्थिक लाभ उठा लेंगी.’’

‘‘ठीक है, जैसा तुम कहती हो वैसा ही करेंगे. इन लोगों का और है ही कौन.’’

अंजु ने निन्नी पर प्यार जताया तो जेठानी के मन में भी उस के बच्चों के प्रति ममता का दरिया उमड़ पड़ा था.

मां का घर : माता पूजा से यह बात क्यों छिपाना चाहती थीं ?

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नैटवर्क ही नहीं मिलता : नंदिनी का जीवन क्यों वीरान हो गया था ?

फोन की घंटी बज रही थी. नंदिनी ने नहीं उठाया. यह सोच कर कि बाऊजी का फोन तो होगा नहीं. दूसरी, तीसरी, चौथी बार भी घंटी बजी तो विराज हाथ में किताब लिए हड़बड़ाए से आए.

‘‘नंदू, फोन बज रहा है भई?’’

विराज ने उसे देखते हुए फोन उठाया पर समझ न पाए कि नंदिनी ने कुछ सुना या नहीं? फोन किस का है, पूछे बिना नंदिनी गैलरी में आ गई. वह जानती है कि बाऊजी का फोन तो नहीं होगा.

मायके से लौटे महीनाभर हो चला है. वह फ्लैट से बाहर नहीं निकली है. शाम को धुंधलका होते ही गैलरी में आ खड़ी होती है. अंधेरा गहराते ही बत्तियां जगमगा उठती हैं मानो महानगर में होड़ शुरू हो जाती है भागदौड़ की. वह हंसतेबतियाते लोगों को ताकते हुए और भी उदास हो जाती है.

विराज उस की मनोस्थिति समझ कर भी बेबस थे. वे जानते हैं बाऊजी के एकाएक चले जाने से नंदिनी के जीवन में आए खालीपन को. बाऊजी नंदिनी के पिता तो बाद में थे, पिता से ज्यादा वे नंदिनी के भरोसेमंद मित्र एवं मां भी थे. मां से ही मन की बातें करती हैं बेटियां. नंदिनी की मां भी बाऊजी ही थे और पिता भी. मां को तो उस ने देखा ही नहीं. हमेशा बाऊजी से सुना कि ‘मां मिट्टी से नहीं, बल्कि फूलों से बनी थीं, बेहद नाजुक. गरम हवा के एक थपेड़े से ही पंखुरीपंखुरी हो बिखर गईं.’

अस्पताल के झूले में गुलाबी गोरी बिटिया को देखते ही बाऊजी ने सीने पर पत्थर रख लिया और अपनी बिटिया के लिए खुद फौलाद बन गए. उन्हें जीना होगा बिटिया के लिए.

विराज ने विवाह के बाद नंदिनी के रिश्तेदारों से पितापुत्री के प्रगाढ़ संबंध, बाऊजी की करुण संघर्ष गाथा को इतनी बार सुना है कि उन्हें रट गई हैं सब बातें. उन्हें भी बाऊजी की कमी खलती है. नंदिनी ने तो बाऊजी की गोद में आंखें खोली थीं. वे समझ रहे हैं उस की मनोस्थिति. नंदिनी को समय देना ही होगा.

नंदिनी कंधे पर स्पर्श पा कर चौंक गई, कैसी जानीपहचानी ममता से भरी कोमल छुअन है. गरदन घुमा कर देखा, विराज हैं.

‘‘क्या सोच रही हो नंदू?’’

‘‘आकाश देख रही हूं, तारे कम नहीं नजर आ रहे?’’

‘‘दिन के ज्यादा उजाले में चौंधिया रहा है पूरा शहर, जमीन से आसमान तक. ऐसे में तारे कम ही नजर आते हैं. चांदतारों का असल सौंदर्य व प्रकाश तो अंधेरे में दिखता है,’’ यह तर्क देतेदेते रुक गए विराज.

नंदू ने बात सिरे से नकार दी, ‘‘नहीं तो, बल्कि मुझे तो एक तारा ज्यादा नजर आ रहा है. वह देखो, वह वाला, एकदम अपनी गैलरी के ऊपर चमकदार.’’

‘‘तुम्हें देख रहा है प्यार से मुसकराते हुए बाऊजी की तरह.’’

यह सुनते ही नंदिनी को करंट सा लगा. विराज का हाथ झटक कर गुमसुम अंदर चली गई. विराज बातबात पर प्रयत्न करते हैं कि किसी तरह नंदिनी का दुखदर्द बाहर निकले किंतु आंसू तो दूर, उस की आंखें नम तक नहीं हो रहीं, मानो सारे आंसू ही सूख चुके हों. न सिर्फ बाऊजी की बातें और यादें, मानो पूरे के पूरे बाऊजी सिर्फ उसी के थे. यादोंबातों तक में किसी की हिस्सेदारी उसे मंजूर नहीं.

नंदिनी सीधे बैडरूम में आ गई. बैडरूम में अकसर पिता की तसवीरें नहीं होतीं पर नंदिनी की तो बात ही अलहदा है. उस के बैडरूम की दाईं दीवार पर सिर्फ तसवीरें ही तसवीरें हैं. बाऊजी के साथ वह या उस के संग बाऊजी. विदाई वेला की तसवीरें. वह तसवीरों पर उंगलियां फेर रही थी कि ड्राइंगरूम में रखा फोन फिर बज उठा. उस का जी धक से रह गया.

घड़ी देखी, 8 बज रहे हैं. उसी ने तो बाऊजी को समय बताए थे – सुबह

10 बजे के बाद और शाम को 7 के बाद.

वरना वे तो उठते ही फोन लगा देते थे. ‘बेटा, तू ठीक तो है? नींद अच्छी आई? नाश्ता जरूर करना? खाना क्याक्या बनाएगी? बढि़या कपड़े पहनना. तमाम सवाल.’

और शाम होते ही ‘विराज औफिस से आ गए? नवेली ने तुझे तंग तो नहीं किया? शाम को घूमने जाते हो न?’ आदि.

सवाल अकसर वही होने के बावजूद उन में इतनी परवा, फिक्र होती कि नंदिनी का मन गुलाबगुलाब हो जाता. कई बार वह सुबह बिस्तर या बाथरूम में होती या शाम को विराज औफिस से ही नहीं लौटते होते, तब पितापुत्री के मध्य समय तय हुआ था. हड़बड़ी में वह बाऊजी से मन की बातें ही नहीं कर पाती थी.

अकसर बेटियां मन की बातें मां से करती हैं, इसी हिसाब से बाऊजी उस के मातापिता दोनों ही थे. उस का तो मायका ही खत्म हो गया. कहने को तमाम नातेरिश्ते हैं, पर सब कहनेभर के. महीने दो महीने में औपचारिक बातें ही होती हैं.

फिर फोन बजा. विचारशृंखला में बाधा पड़ते ही नंदिनी पैर पटकती ड्राइंगरूम में पहुंची ही कि देखा, विराज फोन को डिस्कनैक्ट कर रहे थे. एक हाथ में फोन का प्लग और दूसरे में नवेली को थामे वे ठगे से खड़े रह गए.

नवेली, नाना की प्यारी नातिन, बाऊजी का नन्हा सा खिलौना. इसे तो समझ भी नहीं होगी कि नाना अब कभी नहीं नजर आएंगे. नंदिनी एकटक अपनी बिटिया को देखने लगी.

और विराज…नंदिनी को. वे द्रवित हो उठे उस के दुख से. क्या बीती होगी नंदू के हृदय पर पिता की निश्चल देह देख कर, क्या गुजरी होगी पिता की अस्थियों से भरा कलश देख कर, इतना हाहाकार, ऐसा झंझावात कि अश्रु तक उड़ा ले गए.

उन्होंने बढ़ कर नवेली को नंदिनी की गोद में दे कर अपने पास बैठा लिया. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था, कैसे सांत्वना दें कि नंदिनी इस सदमे से उबर आए. धीमे से प्रस्ताव रखा.

‘‘नंदू, कितने दिन हो गए तुम्हें घूमने निकले, आज चलें?’’

‘‘नहीं, मन नहीं होता.’’

‘‘लक्ष्य’’ जिंदगी बदलने वाली कहानी

Top 10 लक्ष्य स्टोरी इन हिंदी : सरिता डिजिटल लाया है latest lakshya ki Kahaniyan. पढ़िए ‘‘लक्ष्य’’ जिंदगी बदलने वाली एक से बढ़कर एक कहानियां.

1. चुनौतियां : परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे किया पूरा ?

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सैनिक परिवारों से आई लड़कियां जानती थीं कि अब क्या होने वाला है. उन में से सिख परिवार से आई लड़की सुरिंदर कौर से मैं ने पूछा था, उन के पिता कर्नल थे, ‘यहां हमारे बाल स्टाइलिश किए जाएंगें?’

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2. माफी या सजा: कौन था विशाखा पर हुए एसिड अटैक के पीछे

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विशाखा और सौरभ एकसाथ कालेज में पढ़ते थे. कालेज के अंतिम वर्ष तक आतेआते उन दोनों की मित्रता बहुत गहरी हो गई थी. विशाखा एक संपन्न परिवार की इकलौती बेटी थी. वह नाजों से पलीबढ़ी. उस के उच्चशिक्षण के लिए उस का दाखिला दूसरे शहर के एक अच्छे कालेज में करा दिया गया.

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3. जाएं तो जाएं कहां: क्या कैदी जेल से बाहर आ पाएं?

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चांद मोहम्मद को वह जमाना याद आ गया, जब वह शेरोशायरी किया करता था. प्यारमुहब्बत भरी गजलें लिखा करता था. फिर उस की शादी उसी लड़की से हो गई, जिसे वह बेहद प्यार करता था.

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4. मुक्तिद्वार: क्या थी कुमुद की कहानी

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माधुरी और उस के पूरे ग्रुप का आज धनोल्टी घूमने का प्रोग्राम था. माधुरी ने सारी तैयारी कर ली थी. एक छोटी सी मैडिसिन किट भी बना ली थी. तभी कुमुद चुटकी काटते हुए बोली, “मधु, 2 ही दिनों के लिए जा रहे हैं.” और विनोद हंसते हुए बोला, “भई, माधुरी को मत रोको कोई, पूरे 10 वर्षों बाद कहीं जा रही हैं. कर लेने दो उसे अपने मन की.” तभी जयति और इंद्रवेश अंदर आए, दोनों गुस्से से लाल पीले हो रहे थे.

विनोद बोले, “क्या फिर से प्रिंसिपल से लड़ कर आ रहे हो?” जयति गुस्से में बोली, “वो क्या हमें अपना गुलाम समझते हैं, क्या छुट्टियों पर भी हमारा हक नही हैं?” कुमुद तभी दोनों को चाय के कप पकड़ाते हुए बोली, “अरे, विजय समझा देगा. अभी वह टैक्सी की बात करने गया है.”

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5. याददाश्त-इंसान को कमजोरी का एहसास कब होता है

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घर से जब बाहर निकलता तो कुछ न कुछ लाना भूल जाता था. यह भी समझ में आता था कि कुछ भूल रहा हूं लेकिन क्या? यह पकड़ में नहीं आता था. अब मैं कागज पर लिख कर ले जाने लगा था कि क्याक्या खरीदना है बाजार से. इस बार मैं तैयार हो कर घर से बाहर निकला और बाहर निकलते ही ध्यान आया कि चश्मा तो पहना ही नहीं है.

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6. कोरा कागज: आखिर कोरे कागज पर किस ने कब्जा किया

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1996, अब से 25 साल पहले. सुबह के 9 बजने को थे. नाश्ते की मेज पर नवीन और पूनम मौजूद थे. नवीन अखबार पढ़ रहे थे और पूनम चाय बना रही थी, तभी राजन वहां पहुंचा और तेजी से कुरसी खींच कर उस पर जम गया. “गुड मौर्निंग मम्मीपापा,” राजन ने कहा. “गुड मौर्निंग बेटा,” पूनम ने मुसकरा कर जवाब दिया और उस के लिए ब्रैड पर जैम लगाने लगी. “मम्मी, सामने वाली कोठी में लोग आ गए क्या…? अभी मैं ने देखा कि लौन में एक अंकल कुरसीपर बैठे हैं.”

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7. एक साथी की तलाश: क्या श्यामला अपने पति मधुप के पास लौट पाई?

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शाम गहरा रही थी. सर्दी बढ़ रही थी. पर मधुप बाहर कुरसी पर बैठे शून्य में टकटकी लगाए न जाने क्या सोच रहे थे. सूरज डूबने को था. डूबते सूरज की रक्तिम रश्मियों की लालिमा में रंगे बादलों के छितरे हुए टुकड़े नीले आकाश में तैर रहे थे. उन की स्मृति में भी अच्छीबुरी यादों के टुकड़े कुछ इसी प्रकार तैर रहे थे.

2 दिन पहले ही वे रिटायर हुए थे. 35 सालों की आपाधापी व भागदौड़ के बाद का आराम या विराम… पता नहीं…

‘‘पर, अब… अब क्या…’’ विदाई समारोह के बाद घर आते हुए वे यही सोच रहे थे. जीवन की धारा अब रास्ता बदल कर जिस रास्ते पर बहने वाली थी, उस में वे अकेले कैसे तैरेंगे.

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8. अपनी खुशी के लिए: क्या जबरदस्ती की शादी से बच पाई नम्रता?

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‘‘नंदिनी अच्छा हुआ कि तुम आ गईं. तुम बिलकुल सही समय पर आई हो,’’ नंदिनी को देखते ही तरंग की बांछें खिल गईं. ‘‘हम तो हमेशा सही समय पर ही आते हैं जीजाजी. पर यह तो बताइए कि अचानक ऐसा क्या काम आन पड़ा?’’ ‘‘कल खुशी के स्कूल में बच्चों के मातापिता को आमंत्रित किया गया है. मैं तो जा नहीं सकता. कल मुख्यालय से पूरी टीम आ रही है निरीक्षण करने. अपनी दीदी नम्रता को तो तुम जानती ही हो. 2-4 लोगों को देखते ही घिग्घी बंध जाती है. यदि कल तुम खुशी के स्कूल चली जाओ तो बड़ी कृपा होगी,’’ तरंग ने बड़े ही नाटकीय स्वर में कहा.

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9. सौतेली मां

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मां की मौत के बाद ऋजुता ही अनुष्का का सब से बड़ा सहारा थी. अनुष्का को क्या करना है, यह ऋजुता ही तय करती थी. वही तय करती थी कि अनुष्का को क्या पहनना है, किस के साथ खेलना है, कब सोना है. दोनों की उम्र में 10 साल का अंतर था. मां की मौत के बाद ऋजुता ने मां की तरह अनुष्का को ही नहीं संभाला, बल्कि घर की पूरी जिम्मेदारी वही संभालती थी.

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10. कर्ण : खराब परवरिश के अंधेरे रास्तों से गुजरती रम्या

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न्यू साउथ वेल्स, सिडनी के उस फोस्टर होम के विजिटिंग रूम में बैठी रम्या बेताबी से इंतजार कर रही थी उस पते का जहां उस की अपनी जिंदगी से मुलाकात होने वाली थी. खिड़की से वह बाहर का नजारा देख रही थी. कुछ छोटे बच्चे लौन में खेल रहे थे. थोड़े बड़े 2-3 बच्चे झूला झूल रहे थे. वह खिड़की के कांच पर हाथ फिराती हुई उन्हें छूने की असफल कोशिश करने लगी. मृगमरीचिका से बच्चे उस की पहुंच से दूर अपनेआप में मगन थे. कमरे के अंदर एक बड़ा सा पोस्टर लगा था, हंसतेखिलखिलाते, छोटेबड़े हर उम्र और रंग के बच्चों का.

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ऑस्कर में जाएगी शाहरुख-नयनतारा की फिल्म Jawan! निर्देशक एटली ने जाहिर की इच्छा

Jawan Director Atlee : बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान, एक्ट्रेस नयनतारा और अभिनेता विजय सेतुपति की एक्शन-थ्रिलर फिल्म ‘जवान’ बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई कर रही है. फिल्म को रिलीज हुए 12 दिन से भी ज्यादा हो गए है, लेकिन जवान की कमाई में कोई कमी नहीं आ रही हैं. वहीं इस बीच ‘जवान’ के  निर्देशक एटली ने फिल्म को ऑस्कर में भेजे जाने की अपनी इच्छा व्यक्त कर दी है.

एटली- मैं जवान को ऑस्कर में ले जाना पसंद करूंगा

दरअसल जब एक इंटरव्यू में निर्देशक एटली (Jawan Director Atlee) से पूछा गया कि, ‘क्या आप चाहते हैं कि शाहरुख खान की फिल्म ‘जवान’ अकादमी पुरस्कार की दौड़ में भी आगे जाए.’ तो इसका जवाब देते हुए एटली ने कहा, ‘बेशक, ‘जवान’ को भी जाना चाहिए, अगर सब कुछ ठीक हो जाए. मुझे लगता है कि हर प्रयास, हर कोई, हर निर्देशक, हर तकनीशियन जो सिनेमा में काम कर रहे हैं. उनकी नजर गोल्डन ग्लोब्स, ऑस्कर, राष्ट्रीय पुरस्कार और हर तरह के पुरस्कार पर होती है.’

इसी के आगे एटली ने कहा, ‘निश्चित रूप से हां, मैं भी जवान को ऑस्कर में ले जाना पसंद करूंगा. चलो देखते हैं. मुझे उम्मीद है कि शाहरुख सर इस इंटरव्यू को देखेंगे और पढ़ेंगे भी. इसके अलावा मैं उनसे कॉल करके पूछूंगा भी कि, ‘सर, क्या हमें इस फिल्म को ऑस्कर में ले जाना चाहिए?’

500 करोड़ के क्लब में शामिल होने जा रही हैं ‘जवान’  

आपको बताते चलें कि एटली के निर्देशन (Jawan Director Atlee) में बनी फिल्म ‘जवान’ को भारत के साथ-साथ विश्व स्तर पर भी खूब प्यार मिल रहा है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी फिल्म ने कमाई के मामले में कई रिकॉर्ड तोड़े हैं. इसके अलावा जल्द ही फिल्म इंडिया में 500 करोड़ रुपये के क्लब में भी शामिल होने वाली है.

Zareen Khan जाएंगी जेल ! जारी हुआ वारंट

Zareen Khan Arrest Warrant : बॉलीवुड एक्ट्रेस ”जरीन खान” को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है. उन्होंने अपनी बेहतरीन एक्टिंग से लाखों लोगों का दिल जीत रखा है. इसके अलावा अभिनेता सलमान खान के साथ फिल्म ‘वीर’ में उनके अभिनय को भी खूब प्रशंसा मिली थी. वहीं अब खबर आ रही है कि एक्ट्रेस जरीन खान के खिलाफ वारंट जारी किया है, जिसके चलते उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है.

साल 2018 का है मामला

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अभिनेत्री ”जरीन खान” (Zareen Khan Arrest Warrant) के नाम पर कोलकाता के सियालदह कोर्ट में गिरफ्तारी वारंट जारी किया है. कहा जा रहा है कि साल 2018 में जरीन 6 आयोजनों में शामिल नहीं हुई थी. इसलिए एक कंपनी ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, जिसके बाद जरीन के खिलाफ जारी हुए आरोप पत्र को नारकेलडांगा पुलिस ने सियालदह कोर्ट में पेश किया.

वहीं जब मीडिया ने जरीन खान की टीम से इस बारे में बात की, तो उन्होंने एक्ट्रेस के खिलाफ लगे सभी आरोपों से इनकार कर दिया. साथ ही इस खबर को गलत भी बताया.

जरीन के वकील ने जारी किया आधिकारिक बयान

इसी के साथ बीते दिन एक्ट्रेस ”जरीन खान” (Zareen Khan Arrest Warrant) की ओर से उनके वकील ने आधिकारिक तौर पर सोशल मीडिया पर अपना बयान जारी किया. इस बयान में लिखा गया है कि, ‘सभी को ये ध्यान रखना होगा कि मेरे मुवक्किल के खिलाफ मजिस्ट्रेट के द्वारा ‘अनजाने में’ वारंट जारी किया गया है, जिसे मेरिट्स के आधार पर निपटाया जाएगा.’

जानें क्या है पूरा मामला ?

आपको बता दें कि साल 2018 में एक्ट्रेस ”जरीन खान” (Zareen Khan Arrest Warrant) को कोलकाता में आयोजित दुर्गा पूजा कार्यक्रम में प्रदर्शन करने के लिए शामिल होना था. लेकिन वो इस कार्यक्रम में शामिल नहीं हुई थी, जिसके बाद उस कार्यक्रम के आयोजकों ने जरीन के खिलाफ पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करवाई थी. एफआईआर दर्ज होने के बाद एक्रट्रेस को कोलकाता पुलिस ने पूछताछ के लिए थाने में भी बुलाया था.

जरीन ने आयोजकों के खिलाफ लगाएं आरोप

हालांकि वहां जाकर अभिनेत्री ”जरीन खान” (Zareen Khan Arrest Warrant) ने उस कार्यक्रम के आयोजकों के खिलाफ ही आरोप लगा दिया था. उन्होंने अपने बयान में कहा था कि, ”आयोजकों ने कार्यक्रम का गलत प्रतिनिधित्व करके उन्हें गुमराह किया था. उनसे कहा गया था कि कार्यक्रम में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी शामिल होंगी. लेकिन जब जरीन की टीम नें जांच की तो उन्हें पता चला कि ये कार्यक्रम उत्तरी कोलकाता में हो रहा है और वो भी एक छोटे पैमाने पर.”

इसी के साथ जरीन ने ये भी कहा था कि, ‘आयोजकों और उनके बीच वहां ठहरने और हवाई जहाज के टिकटों को लेकर गलतफहमी भी हुई थी.’

क्या आपका भी वजन कम हो रहा है ? अगर हां तो हो जाएं सावधान

आज के दौर में इकहरा बदन सौंदर्य का मापदंड माना जाता है. वजन ज्यादा होने से सौंदर्य, आकर्षण, स्मार्टनेस कम होती है और साथ ही अनेक घातक व जटिल रोगों का खतरा बढ़ जाता है. सभी समझदार व्यक्ति वजन ज्यादा होने पर उसे कम करने की कोशिश करते हैं. इस के लिए डायटिंग, व्यायाम एवं दूसरे तरीकों का सहारा लेते हैं, पर यदि किसी व्यक्ति का वजन बगैर किसी प्रयास के कम होने लगता है तो यह गंभीर रोगों का संकेत हो सकता है. अत: इस में लापरवाही न बरतें.

स्वस्थ व्यक्ति का वजन भोजन की मात्रा और उन की सक्रियता, कार्य, मेहनत के अनुसार लगभग स्थिर रहता है. आमतौर पर व्यक्ति के कार्य के अनुसार ही उस की ऊर्जा (कैलोरी) की मात्रा निर्धारित हो जाती है.

ज्यादा मेहनत या व्यायाम करने के बाद भूख बढ़ जाती है. यदि शरीर को पर्याप्त कैलोरी मिलती रहती है तो वजन सामान्य बना रहता है. यदि सक्रियता और कैलोरी में संतुलन गड़बड़ाता है तो वजन घटता व बढ़ता है. शरीर का 1 पौंड वजन कम होने या बढ़ने का अर्थ है कि शरीर में 3,500 कैलोरी की कमी या बढ़ोतरी हो गई है. अस्थायी रूप से शरीर का वजन शरीर में द्रव की कमी या ऊतकों के टूटने से भी घट सकता है.

वजन कम होने के मुख्य कारण

वजन में कमी कई रोगों के चलते हो सकती है. अकसर ये रोग दीर्घकालीन होते हैं. ऐसे व्यक्तियों को लापरवाही नहीं करनी चाहिए और कुशल चिकित्सक से सलाह ले कर निर्देशित जांच करवानी चाहिए, ताकि रोग के कारण का पता लग सके और समुचित उपाय हो सके.

– गरीबी या अन्य कारणों से पर्याप्त मात्रा में संतुलित भोजन न मिलने पर वजन कम होने लगता है.

– पोषक तत्त्वों का पाचन, अवशोषण, आंतों के रोगों, संक्रमण, अग्नाशय के स्राव में कमी, पित्त के स्राव में कमी, दवाओं के दुष्प्रभाव आदि कारणों से वजन कम हो सकता है.

– यदि उलटी, दस्त, पेचिश, उच्च ज्वर आदि कारणों से शरीर की ऊर्जा/ पोषक तत्त्वों की कमी होती है तो भी वजन कम होने लगता है.

– मधुमेह के मरीजों में भूख ज्यादा लगने के बावजूद, वजन कम हो सकता है, क्योंकि इन मरीजों के द्वारा शरीर की कोशिकाएं ग्लूकोज का समुचित रूप से उपयोग नहीं कर पाती हैं, अत: शरीर ऊर्जा के लिए वसा का उपयोग करने लगता है.

– ज्यादातर व्यक्तियों में 60 साल के बाद वजन हर साल कुछ न कुछ कम होने लगता है. यह बुढ़ापे में ऊतकों की टूटफूट के कारण होता है पर यदि बढ़ती आयु में तेजी से वजन कम होता है तो गंभीर रोगों का संकेत भी हो सकता है.

– जो वृद्ध व्यक्ति अकेले रहते हैं तो अपंगता, दृष्टि में कमी, संवेदनाओं में बदलाव आदि कारणों से भोजन पकाने, खाने में लाचार हो सकते हैं जिस के कारण वजन कम हो सकता है.

– मानसिक तनाव, अवसाद, चिंता, प्रियजन की मौत, गंभीर बीमारी, घाटा होने पर भी भूख कम हो सकती है, चूंकि भोजन करने में रुचि नहीं होती अत: वजन कम हो सकता है.

– कुछ व्यक्ति वजन के प्रति अत्यधिक सजग रहते हैं और वजन कम करने की सनक में बेवजह अत्यधिक डायटिंग करते हैं, अत्यधिक व्यायाम करते हैं. यह एक तरह का मानसिक रोग है. इन का वजन अत्यधिक कम हो जाता है, साथ ही इन में अनेक मानसिक समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं.

– अनेक अंतर्स्रावी ग्रंथियों के रोग जैसे मधुमेह, थायरायड हार्मोन से ज्यादा स्राव होने (ग्रेबस रोग)  फियोक्रोमोसाइटोमा/ एडरीनल हार्मोन का ज्यादा स्राव आदि में भी वजन कम होता है.

– विभिन्न दीर्घकालीन हृदय रोगों, एंजाइना आदि के कारण भी वजन कम हो सकता है.

– गंभीर दीर्घकालीन फेफड़ों के रोगों, दमा, टी.बी., पुरानी खांसी, इंफाइजिमा आदि में भी मरीजों का वजन तेजी से कम होने लगता है.

– दीर्घकालीन गुर्दों के रोगों में भी वजन कम होने की समस्या रहती है.

– अधेड़ावस्था के बाद और बगैर स्पष्ट कारण के वजन कम होने का कारण कैंसर भी हो सकता है. विभिन्न अंगों के कैंसर ग्रस्त होने पर अकसर शुरुआत में कोई विशेष लक्षण नहीं होते पर उन का वजन कम होने लगता है.

वजन कम होने के दुष्परिणाम

वजन कम होना कई शारीरिक, मानसिक रोगों का संकेत है. अधेड़ावस्था या वृद्धावस्था में वजन कम होना ज्यादा गंभीर रोगों का सूचक होता है. हर व्यक्ति की आयु, लंबाई के अनुसार वजन को आदर्श वजन के आसपास ही रखना चाहिए. यदि वजन मानक वजन से 20 प्रतिशत से ज्यादा होता है तो अनेक गंभीर रोगों जैसे मधुमेह, उच्चरक्तचाप, जोड़ों के रोगों, हृदय धमनी रोग, (एंजाइना हार्ट अटैक), पक्षाघात आदि की आशंका बढ़ जाती है.

इसी प्रकार मानक वजन से 10 प्रतिशत से ज्यादा वजन कम होने से कार्यक्षमता कम हो जाती है, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती है जिस के परिणामस्वरूप संक्रमण रोग आसानी से हो सकते हैं. कम वजन के व्यक्ति यदि किसी रोग से ग्रस्त नहीं हैं तो भी गुस्सैल, असंयमी होते हैं. हीन भावना से पीडि़त हो सकते हैं. अध्ययनों से पता चला है कि यदि वजन घटने लगता है तो मौत का खतरा बढ़ जाता है. शोधों से यह भी ज्ञात हुआ कि अत्यधिक दुबले व्यक्तियों की औसत आयु सामान्य वजन वालों की अपेक्षा कम होती है.वजन कम और ज्यादा होना दोनों ही स्थिति, नुकसानप्रद होती हैं, अत: अपना वजन सामान्य बनाए रखना आवश्यक है.

समाधान

यदि पिछले 6 से 12 सप्ताह में वजन बिना प्रयास के 5 प्रतिशत से ज्यादा कम होता है तो सचेत हो जाएं, लापरवाही न करें, चिकित्सक से परामर्श लें, वह लक्षण और परीक्षण के आधार पर आवश्यक जांच द्वारा कारण का पता लगा कर समुचित उपचार करेंगे. मेरा अनुभव है कि अनेक व्यक्तियों को वजन कम होने की गलतफहमी हो सकती है क्योंकि उन्होंने अपना वजन पहले नहीं लिया है. इन व्यक्तियों में वजन कम होने की पुष्टि बेल्ट की नाप, कपड़ों की फिटिंग से की जा सकती है.

अनेक मां अपने बच्चों को दुबला समझती हैं और उन के वजन कम होने की शिकायत के साथ चिकित्सक से परामर्श करती हैं. वैसे ये बच्चे हृष्टपुष्ट और सक्रिय होते हैं. यदि वजन मानक वजन से कम है, या कम हो रहा है तो इस समस्या का समाधान आवश्यक है. अकसर वजन कम हो रहे मरीजों में मूल रोग के कारण के भी लक्षण होते हैं, जिन के आधार पर चिकित्सक  संभावित रोगों के अनुसार जांच करवा कर रोग का पता लगाने पर समुचित उपचार करते हैं. रोगमुक्त हो जाने पर और पर्याप्त मात्रा में संतुलित भोजन लेने से वजन पुन: सामान्य हो जाता है.

वृद्धावस्था में अवसाद, अकेलेपन, कैंसर, आंतों से पाचन, अवशोषण बाधित होने के कारण और युवा और अधेड़ावस्था में मधुमेह, थायरायड हार्मोन के ज्यादा स्राव, संक्रमण, टी.वी., एनोरेक्सिया नरवोसा रोग के कारण वजन कम होना सामान्य है. बीमारी के दौरान भूख कम हो जाती है, भोजन की अनिच्छा हो जाती है. कुछ रोगों में तो ज्वर, दस्त के दौरान भोजन बंद करने की प्रथा है. किसी भी रोग के दौरान शरीर के ऊतकों की टूटफूट की मरम्मत के लिए अतिरिक्त ऊर्जा, प्रोटीन एवं पोषक तत्त्वों की जरूरत बढ़ जाती है.

यदि इन की पूर्ति नहीं होती तो वजन कम होना लाजिमी है. अत: रोग पीडि़त होने पर पोषण पर विशेष ध्यान रखना आवश्यक है, जिस से शरीर शीघ्र स्वस्थ हो जाए. रोग मुक्त होने के कुछ समय बाद तक भी पौष्टिक भोजन जरूरी होता है.

सुंदर, सक्रिय, स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक है कि वजन आदर्श (मानक), वजन के आसपास रहे. वजन कम होना या ज्यादा होना, दोनों ही स्वास्थ्य और सुंदरता, स्मार्टनेस की दृष्टि में हितकर नहीं है.

मुझे मेरे बेटे की पसंद की गई लड़की अच्छी नहीं लगती, बताएं मैं क्या करूं?

सवाल

मेरी उम्र 55 वर्ष है. मेरे 26 वर्षीय बेटे ने अपनी कंपनी में काम कर रही गर्लफ्रैंड से शादी करने का फैसला कर लिया है. दोनों पढ़ेलिखे हैं और एकदूसरे को अच्छी तरह जानते भी हैं. उस लड़की का शादी से पहले ही घर में आनाजाना सामान्य हो चुका है. मुझे इस बात से भी कोई आपत्ति नहीं है परंतु उस लड़की का व्यवहार मुझे बेहद अटपटा लगता है.

वह जब भी घर आती है, सीधा बेटे के कमरे में चली जाती है, न रुक कर मुझे नमस्ते कहती और न ही मेरी बेटी से बात करती है. मुझे नहीं लगता कि शादी के बाद वह इस घर में हमारे साथ निभा पाएगी. क्या मुझे अपने बेटे से शादी के बाद अलग गृहस्थी बसाने के लिए कह देना चाहिए?

जवाब

आप का अपनी होने वाली बहू से कुछ इच्छाएं रखना स्वाभाविक है परंतु उस का आप और आप की बेटी के प्रति जो उदासीन व्यवहार है वह चिंताजनक है. आप इस विषय में अपने बेटे से बात करें, इस बारे में आप को उस लड़की से भी बात करनी चाहिए. हो सकता है कि वह आप लोगों से बात करने में झिझकती हो और उस का स्वभाव ही कुछ ऐसा हो. आप को खुद उस से बात करने की पहल करनी चाहिए. उस के विचार भी इस तरह के बड़े फैसलों में माने रखते हैं. अपने बेटे और होने वाली बहू दोनों से विचारविमर्श करने के बाद ही कोई फैसला लें.

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