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औरतों की चिंता छोड़ बढ़ रही ज्यादा बच्चे पैदा करने की मांग

दुनिया भर में जनसंख्या घट रही है. कुछ देशों में हालात खतरनाक स्तर पर पहुंच रहे हैं. इस वजह से अलगअलग देशों में समयसमय पर यह मांग उठती रहती है कि औरतें ज्यादा बच्चे पैदा करें. ताजा चिंता रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने व्यक्त की है, उन्होंने औरतों से अपील की है कि ‘वह कम से कम 7-8 बच्चे पैदा करें . यह कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि पुराने जमाने में ऐसा ही होता था. यह काफी अच्छा था. इसी परंपरा को बरकरार रखना चाहिए.’ पुतिन ने कहना है कि बड़ा परिवार महज समाज की नींव नहीं बल्कि एक आदर्श जीवन का तरीका है.

इस के पीछे की वजह को रूस और यूक्रेन को माना जा रहा है. इस जंग में बड़ी तादाद में रूसी सैनिक मारे जा रहे हैं. रूस में लड़के सेना में जाने से बच रहे हैं. इसलिए ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ रही है, जिस की वजह से पुतिन औरतों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं. रूस मे कई सालों से बर्थ रेट में कमी आ रही है. यूक्रेन और रूस के दरमियान यह जंग तकरीबन डेढ़ साल से जारी है. रिपोर्ट के मुताबिक रूस के 50 हजार सैनिक मारे गए और तकरीबन 900,000 लोगों ने देश छोड़ दिया है.

रूस की ज्यादातर आवाम अपने घर छोड़ने पर मजबूर थी, क्योंकि पुतिन ने जंग में सैनिक की कमी पड़ने के वजह से तीन लाख फोर्स तैयार करने का ऐलान किया था. पुतिन ने रूस की औरतों से अपील कर कहा है कि हमारा पहला लक्ष्य देश की आबादी को बढ़ाना है. रूस की आबादी में पिछले कई दशकों से कमी हो रही है. जिसे बेहतर करने के लिए पुतिन औरतों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं. रूस की सरकार ने इस के लिए अहम मदद देने को भी कहा है. यहां तक की बड़े परिवार को जमीन देने का भी वादा किया.

इस के बाद भी वहां की लड़कियां और औरतें ज्यादा बच्चे पैदा करने को तैयार नहीं हैं. असल में पुतिन की चिंता परिवार और औरतें नहीं है. उन की चिंता युद्ध है. युद्ध में लड़ने के लिए सिपाही चाहिए. रूस में लड़के सेना में जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं इसलिए वह जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. जनसंख्या की परेशानी केवल रूस के सामने ही नहीं है. देश की सब से बड़ी आबादी वाला चीन भी इस से परेशान है. आंकड़ों के अनुसार चीनी लोगों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 850,000 कम हो कर 1.4118 अरब हो गई. इस की जन्म दर कई वर्षों से धीमी हो रही थी. चीन की जनसंख्या 60 वर्षों में पहली बार गिरी है.

भारत में भी ज्यादा बच्चों की मांग

भारत में भी लोग बच्चे कम पैदा कर रहे हैं. भारत में भी प्रजनन दर यानि टोटल फर्टिलिटी रेट में पिछले कुछ सालों में गिरावट आई है. इस के परिणाम 30-40 साल में देखने को मिलने लगेंगे. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में सभी धर्मों और जातीय समूहों में कुल प्रजनन दर या फर्टिलिटी रेट में कमी आई है. इस सर्वे के अनुसार 2015-2016 में जहां फर्टिलिटी रेट 2.2 थी, वहीं 2019-2021 में यह घटकर 2.0 पहुंच गई. टोटल फर्टिलिटी रेट में कमी का मतलब है कि दंपती औसतन 2 बच्चे पैदा कर रहे हैं.

अब संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं. इस का प्रमुख कारण आर्थिक दबाव के साथसाथ कामकाजी दंपतियों के लिए बच्चों की देखरेख सही से न कर पाना होता है. कम बच्चे पैदा होने का कारण लड़कियों की शादी की उम्र में बढ़ोतरी हो गई है. शादी के बाद वहीं गर्भ निरोध का प्रयोग बढ़ा है. जिन धर्मं और जातियों में गरीबी ज्यादा है और शिक्षा का स्तर खराब हैं, वहां ज्यादा बच्चे पैदा हो रहे हैं. शहरों में फर्टिलिटी रेट 1.6 है तो गांवों में यह 2.1 पाई गई है. यही नहीं सर्वे में मुसलमानों में भी फर्टिलिटी रेट में काफी कमी दिखी है. 1950 के दशक में भारत की टोटल फर्टिलिटी रेट लगभग 6 थी. जहां महिलाएं शिक्षित हैं, वहां उन के बच्चे कम हैं.

1979 में चीन अपने देश मे ‘एक बच्चा’ पैदा करने की नीति बनाई. यह करीब 30 साल तक चली. चीन की फर्टिलिटी रेट 2.81 से घट कर 2000 में 1.51 हो गई. इस से चीन के लेबर मार्केट पर बड़ा प्रभाव पड़ा. भारत में 2050 के आसपास इस तरह के हालात दिखने लगेंगे.
भाजपा के सांसद साक्षी महाराज ने कहा था कि हिंदू औरतें कम से कम 4 बच्चे पैदा करें. इस तरह के बयान दूसरे हिंदूवादी नेताओं के भी आते रहते हैं. इस तरह भारत में भी औरतों से कहा जा रहा है कि वह ज्यादा बच्चे पैदा करें. रूस में पुतिन को सेना के लिए सिपाही चाहिए जबकि भारत में पूजापाठी वर्ग को यह एक कमाई का जरिया दिख रहा है.

भारत में जैसे ही बच्चा गर्भ में आता है ‘गर्भ संस्कार’ से पूजा शुरू हो जाती है. इस के साथ ही साथ अगर बच्चे का जन्म खराब ग्रह नक्षत्र में हो गया है तो उस को सही करने के लिए पूजा होती है. ‘गोद भराई’ की रस्म बच्चे के पेट में आते ही होती है. अब बच्चा खराब नक्षत्र में पैदा न हो इस के लिए पहले पंडित से सही समय की गणना करा कर डाक्टर से कहा जाता है कि वह प्रसव इस सही नक्षत्र में कराएं.

बच्चा पैदा होने के बाद ‘जन्मोत्सव’ के नाम पर पूजा होती है. 6 दिन होने पर ‘छठी’ और 12 दिन होने पर ‘बारहीं’ होती है. जब बच्चे को पहली बार अन्न खिलाया जाता है तो ‘अन्न प्राशन’ का आयोजन होता है. पंडितों के साथ ही साथ किन्नरों की भी कमाई होती है.

बच्चे खासतौर पर लड़के के पैदा होने पर जन्मोत्सव अधिक बड़ा हो जाता है. पूजापाठ और चढ़ावा बढ़ जाता है. कट्टरवादी लोग जब बच्चे अधिक पैदा करने की बात कर रहे होते हैं तो उन का मकसद होता है कि लोग लड़के ज्यादा पैदा करें. पुतिन के लिए लड़के ही सेना में लड़ने का काम करेंगे और भारत में पूजापाठ करने वालों को भी तभी चढ़ावा ज्यादा मिलेगा जब लड़के पैदा होंगे. यह लोग एक तरफ तो औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन बनाना चाहते हैं दूसरी तरफ यह भी चाहते हैं कि लड़कियां कम पैदा हो. यह लोग औरतों से दो तरह का भेदभाव कर रहे हैं.

प्रौपर्टी हथियाने के चक्कर में कामवाली बन गई घरवाली

गाजियाबाद के थाना मुरादनगर पुलिस ने अवैध रूप से संपत्तियों पर कब्जा कराने वाले गैंग का खुलासा किया है. गैंग के मास्टरमाइंड सचिन ने एक बुजुर्ग महिला डाक्टर सुधा सिंह के घर प्रीति नाम की एक लड़की घरेलू कामकाज के लिए रखवाई थी. सचिन ने पहले डा. सुधा सिंह से जानपहचान बढ़ाई और उस के बाद प्रीति को उन के घर काम के लिए रखवा दिया.बाद में उस ने घर के लोगों को बताए बिना उस कामवाली की शादी बुजुर्ग महिला के मंदबुद्धि बेटे शिवम से करवा दी.

बुजुर्ग महिला की मौत के बाद कामवाली ने घर की बहू और मालकिन होने का दावा करते हुए जब शादी के सुबूत दिए तो मृतक महिला की बेटी आकांक्षा सिंह सकते में आ गई. उस का भाई शिवम तो मंदबुद्धि था, परिवार में कोई इस शादी के बारे में जानता तक नहीं था. बुजुर्ग महिला के पास करोड़ों की संपत्ति थी जिस पर मेड अपना हक जाता रही थी. उस को उस घर में मेड के तौर पर रखने वालों की तरफ से मृतक महिला की बेटी को धमकियां मिलने लगीं.

जब मामला पहुंचा पुलिस के पास

ऐसे में जब मामला पुलिस के पास पहुंचा और जांच पड़ताल हुई तो पता चला कि अवैध रूप से करोड़ों की संपत्ति हथियाने के लिए जिस मेड की शादी मंदबुद्धि लड़के से करवाई गई उस के पीछे पूरा गैंग काम कर रहा था.जांच में पुलिस को पता चला कि मेड का काम करने वाली आरोपी महिला प्रीति मूल रूप से सोनीपत की रहने वाली है, जिस ने पहले भी 3 फर्जी शादियां की हुई हैं. आपराधिक प्रवृत्ति की यह महिला गैंग के साथ लंबे समय से जुड़ी है. सचिन और प्रीति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है.

महानगरों में ही नहीं बल्कि अब छोटे शहरों में भी घरों में मेड रखने का चलन है.पहले कामवाली औरतें घर के आसपास के इलाके से ही होती थीं और लोगों को उन के बारे में पूरी जानकारी होती थी. मगर अब बड़े शहरों में कामवाली बाइयां प्लैसमेंट एजेंसियों के माध्यम से भी रखवाई जा रही हैं.

प्लैसमेंट एजेंसियां एकमुश्त ₹40-50 हजार ले कर 3-5 सालों के लिए घरेलू कामकाज के लिए लड़कियों को रखवाते हैं. अधिकांश लडकियां झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों से होती हैं. एजेंसियां दावा करती हैं कि इन लड़कियों का पूरा पुलिस वैरीफिकेशन करवाया गया है, मगर यह सच नहीं होता.

प्लैसमेंट ऐजेंसी की मिलीभगत

कीर्ति नगर में रहने वाली पायल आहूजा की मां का ऐक्सीडैंट होने के कारण पायल को घर के काम के लिए मेड रखनी पड़ी, जो उन्होंने प्लैसमेंट एजेंसी के जरिए हायर की. पायल वर्किंग थी, इसलिए मां की देखभाल और घर के काम के लिए उन को फुल टाइम नौकर की जरूरत थी. उन्होंने एक प्लैसमेंट एजेंसी से बात की और अपनी जरूरत बताई.

प्लैसमेंट एजेंसी ने 5 साल के लिए एक लड़की उन के वहां भेज दी. इस के लिए एजेंसी ने पायल से ₹25 हजार लिए. इस के अलावा हर महीने ₹10 हजार मेड को भी देने थे. उस का खानापीना, कपड़े, दवाई, फोन रिचार्ज इत्यादि का जिम्मा मालिक का था. उस मेड ने पायल के घर पर 8 महीने काम किया.जब उस के हाथ अच्छा पैसा जमा हो गया तो एक दिन वह पायल के औफिस जाने के बाद घर की बहुमूल्य चीजें और पायल के अच्छे सूट व कौस्मेटिक्स 3 बैगों में भर कर रफूचक्कर हो गई. पायल ने एजेंसी को फोन किया, पुलिस में कंप्लेंट दो मगर आज तक झारखंड की उस लड़की का कुछ पता नहीं चला.बाद में एजेंसी वाले ने पायल पर ही आरोप लगाने शुरू कर दिए कि उस ने लड़की को गायब करवा दिया.

कहीं का नहीं छोड़ा

शाइनी आहूजा का किस्सा लोग भूल नहीं सकते.मेड के चक्कर में फिल्मी जगत के इस उभरते सितारे ने अपना पूरा भविष्य ही खराब कर लिया. पत्नी के बाहर जाने के बाद मेड के साथ उस के शारीरिक संबंधों ने अंततः शाइनी को कहीं का नहीं छोड़ा.

कामवाली बाई से जुड़ी ऐसी अनेक कहानियां समाज में हैं जिन के चलते परिवार तबाह हो रहे हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से महानगरों में काम के लिए आने वाली जवान लड़कियां यहां की चकाचौंध देख कर मुग्ध हो जाती हैं. कुछ पैसा हाथ में आते ही वह शहर के रंग में जल्दी रंग जाती हैं.

भड़कीले कपड़े, नकली ज्वैलरी, मेकअप की परतें चढ़ा कर जब ऐसी लड़कियां मालकिन की अनुपस्थिति में घर के काम करती हैं तो साहब की नजरों में जल्दी चढ़ती हैं.घरवाली अगर वर्किंग है और साहब अगर घर में रहते हैं तो कामवाली को घरवाली की जगह लेते देर नहीं लगती. कुछ ऐसे संबंध छिपे तौर चलते रहते हैं तो कुछ जाहिर हो जाते हैं, जिस के चलते परिवार में झगड़े होते हैं, तलाक होते हैं.

रहें सावधान

जब किसी औरत को काम पर रखें तो उस से उस के आधार कार्ड की एक प्रति जरूर मांग लें.भले ही वह किसी प्लैसमेंट एजेंसी के माध्यम से आई हो अथवा आप ने खुद रखी हो. घर में किसी भी महिला या नौकर को काम पर रखने से पहले उन की पूरी तरह पड़ताल जरूर करें.उन के पते और पहचान के कागजात में आधार कार्ड जरूर देखें और इन कागजात की एक फोटो कौपी अपने रिकौर्ड में जरूर रखें.

जब तक आप उन के व्यवहार से सुनिश्चित न हो जाएं, तब तक अपनी कीमती चीजों की जिम्मेदारी उस को न सौंपे. जैसे पैसे, जेवर, कपड़े और बच्चे की जिम्मेदारी. जिस पर आप को विश्वास न हो उसे आप काम पर न रखें क्योंकि आप उस पर विश्वास नहीं कर पाएंगे, मन में संदेह बना रहेगा। न आप सुखी रहेंगे और न दुखी रहेंगे, बस तनाव में बने रहेंगे.

यह सुनिश्चित करें कि लड़की अधिक समय तक आप की गैरहाजिरी में आप के पति के पास न रहे. अगर आप 8 घंटे औफिस में हैं तो बीचबीच में कामवाली से अचानक वीडियो कौल पर बात करें. चपल, चंचल और तीखे नैननक्श वाली लड़कियों को काम पर रखने से बचें.

जब प्रिय की ‘पौलिटिक्स’ मन भाए तो ही शादी के लिए ‘हां’ करें

भिन्न राजनैतिक विचारों या विचारधारा के चलते देश में अपवाद स्वरूप ही अलगाव या तलाक के मामले सामने आते हैं. इस का यह मतलब नहीं कि पतिपत्नी के बीच सियासी मतभेद नहीं होते बल्कि होता यह है कि विवाद या बहस की स्थिति में पतिपत्नी में से कोई एक पक्ष या दोनों ही जल्द इसे खत्म करने की कोशिश करते हैं लेकिन अपने पीछे हटने का अफसोस, घुटन या खीझ उन्हें सालते रहते हैं.

26 वर्षीय रुता दुधागरा गुजरात के सूरत शहर के वार्ड नंबर 3 से आम आदमी पार्टी से पार्षद हैं. उन्हें निगम चुनाव में रिकौर्ड 54,754 वोट मिले थे और उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को 34,000 से भी बड़े अंतर से पटखनी दी थी. रूता के पास कोई राजनैतिक अनुभव नहीं था उन्होंने कुछ शौकिया और कुछकुछ कर गुजरने की गरज से राजनीति शुरू की थी. आप और अरविंद केजरीवाल से प्रभावित इस सुंदर और आकर्षक युवती को वोटर्स ने हाथोंहाथ लिया था तो इस की एक और अहम वजह उन का आईटी इंजीनियर होना भी थी.

लेकिन यह सियासी कामयाबी उन की घरगृहस्थी और दाम्पत्त्य तोड़ने वाली साबित हुई. रूता की शादी चुनाव से 3 साल पहले पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर चिराग दुधागरा से हुई थी. चिराग दिलोदिमाग से भाजपाई है चुनाव के कुछ दिनों बाद ही उस ने रूता पर दबाब बनाना शुरू कर दिया कि वह आप छोड़ भाजपा में शामिल हो जाए. बकौल रूता इस बाबत चिराग को करोड़ों की पेशकश हुई थी लेकिन मैं किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि मेरी प्रतिबद्धताएं आप और उस की नीतियों के साथ थीं.

कहना और सोचना आसान है कि यह एक असफल पति की कुंठा और सफल पत्नी की अति महत्वाकांक्षा रही होगी कि दोनों में तलाक की नौबत आ गई लेकिन यह पूरा सच नहीं है बकौल. रूता वह भाजपा ज्वाइन करने तैयार नहीं हुई तो चिराग ने उसे मारनापीटना शुरू कर दिया जिस के चलते उन्होंने अलग होने का फैसला कर लिया. चिराग इस पर और आक्रामक हो उठा और उस ने रूता का लेपटाप और पहचान संबंधी अहम दस्तावेज भी अपने पास रख लिए.

कुछ दिनों बाद आपसी सहमति से दोनों का तलाक हो गया लेकिन इस के लिए रूता को चिराग को 7 लाख रुपए नकद और 90 ग्राम के सोने के जेवर देना पड़े. इस विवाद और अलगाव को गुजरे ढाई साल से भी ज्यादा का अरसा हो गया है और यह कहने को ही सूरत और गुजरात तक सिमटा है नहीं तो सियासी मतभेद हर दूसरे कपल में हैं. कैसे हैं और नए दौर के युवा क्यों डेट के पहले अपने पार्टनर के राजनीतिक विचार भी जाननेसमझने को प्राथमिकता देने लगे हैं उस से पहले संक्षेप में यह समझ लेना जरुरी है कि दरअसल में अब महिलाओं की स्वतंत्र सोच विस्तार लेने लगी है.

महिलाओं की राजनीतिक चेतना

अब से कोई 50 साल पहले तक महिलाओं की अपनी कोई स्वतंत्र राजनीतिक सोच नहीं हुआ करती थी. और होती भी होगी तो उस के कोई माने नहीं होते थे. परिवार और समाज में उन की भूमिका बहुत सीमित थी कुल जमा वे एक देह भर होती थीं जिस का काम बच्चे पैदा करना होता था.

70 के दशक से महिलाओं का बड़े पैमाने पर शिक्षित होना और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना शुरू हुआ. इस के बाद से उन की राजनीतिक चेतना विकसित होना शुरू हुई जो अब इस मुकाम तक तो आ गई है चिराग जैसे पति उन्हें जबरिया अपनी सोच की पार्टी में लाने प्रताड़ित करने से नहीं चूकते.

यानी वह दौर गया जब महिलाएं पिता और पति के कहने पर वोट डालती थीं. रूता जैसी महिलाएं अपनी राजनीतिक विचारधारा पर इतनी अडिग हैं कि उन्हें अपने कुंठित और जिद्दी पति को छोड़ देना बेहतर लगने लगा है. अच्छा तो यह है कि यह रोग अभी संक्रामक नहीं हुआ है लेकिन कल को हो जाए तो बात कतई हैरानी की नहीं होगी और इस में घर तोड़ने या टूटने का दोषी अकेली महिला को ठहराना ही उन के साथ ज्यादती होगी.

इस मामले में यह कहना एकदम खारिज नहीं किया जा सकता कि अगर पत्नी भाजपाई होने तैयार नहीं थी तो पति ही आप का हो लेता. इस में कहां का पहाड़ टूट पड़ता अगर वह तैयार हो जाता तो गृहस्थी टूटने से बच जाती. लेकिन इन दोनों को ही गृहस्थी और 4 साल पुराने रोमांस से ज्यादा चिंता अपनी अपनी विचारधारा की थी. हर कोई जानता है कि आप और भाजपा की जन्मपत्री का एक गुण भी नहीं मिलता है इसलिए इन दोनों का अहम अड़ गया जो स्वाभाविक भी था.

राजनातिक आरक्षण से महिलाएं सक्रिय हुईं तो पुरुषों की खींची लक्ष्मण रेखा खत्म हो रही है हालांकि अभी भी पार्षद पति और सरपंच पति जैसे शब्द और संबोधन व्यंगात्मक रूप से आम हैं जिन के तहत चुनी गई महिला दर्शनीय हुंडी होती है. उन के हिस्से का सारा काम उन के पति ही करते हैं यह कितना गलत और कितना सही है इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें मौजूद हैं.

अब मुद्दा यह है

लेकिन अब बहस का मुद्दा यह होता जा रहा है कि अगर पतिपत्नी के राजनीतिक विचार पूरब पश्चिम और उत्तर दक्षिण जैसे हों तो क्या वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण और बोझिल हो जाता है. इस सवाल का जवाब में ही निकलता है. जबाब तो इस दिलचस्प सवाल का भी हां में ही मिलता है कि शादी करने जा रहे युवाओं को डेट पर अपने पार्टनर के राजनीतिक विचार भी जान लेना चाहिए. ऐसा हो भी रहा है फिर भले ही वह लोगों की नजरों और जानकारी में बड़े पैमाने पर न आता हो.

पिछले दिनों 5 राज्यों के विधानसभी चुनाव के दौरान डेटिंग एप बम्बल ने आंकड़े देते हुए बताया था कि 41 फीसदी भारतीय डेटर्स का कहना है कि ऐसा साथी जिस की कोई राजनीतिक सोच है और वह वोट देता है उन के लिए मायने रखता है. 21 फीसदी लोग ऐसे साथी को पसंद करते हैं जो सामाजिक कार्यों में भागीदारी करते हैं. 38 फीसदी लड़कियां ऐसे साथी तलाशती हैं जिन के मूल्य भी समान हों.

एक और डेटिंग एप टिंडल के मुताबिक भारतीय युवा डेटिंग में भी राजनीतिक सोच को महत्व दे रहे हैं. पहली डेटिंग के दौरान उन की बातचीत का महत्वपूर्ण हिस्सा राजनीति होता है. वे एकदूसरे से राजनीति पर बातचीत कर रहे हैं और विचार न मिलने पर ब्रेकअप भी कर रहे हैं. टिंडर के एक सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी भारतीय युवाओं का मानना है कि उन के पार्टनर की राजनीतिक सोच कैसी है यह उन के लिए महत्व रखता है.

बम्बल की इंडिया कम्युनिकेशंस की निदेशक समर्पिता समदर के मुताबिक डेट करने वाले भारतीय आजकल ऐसे साथी चुन रहे हैं जिन के पार्टनर की प्राथमिकता और मूल्य सामान हों. टिंडर इंडिया की कम्युनिकेशंस डायरैक्टर अहाना धर की माने तो युवा भारतीयों ने पारंपरिक डेटिंग मान्यताओं को अब पीछे छोड़ दिया है और वे ऐसी चीजें देख रहे हैं जिन में दोनों एकदूसरे की पसंद को पसंद कर रहे हैं.

बेंगलुरु की रिलेशनशिप कोच राधिका मोह्तो के मुताबिक अगर कोई अपनी राजनीतिक विचारधारा में कट्टर है तो वह अच्छा साथी नहीं हो सकता. बिलाशक राधिका एक जटिल बात को बहुत आसान शब्दों में कहती हैं और इस के कई शीर्ष उदाहरण भी उपलब्ध हैं जिन का लघु संस्करण चिराग साबित हुआ जिस ने पत्नी छोड़ दी लेकिन कट्टरता नहीं छोड़ी.

जरुरी है पौलिटिकल डेट

पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी और इस के बाद की डेट पर युवा आमतौर पर एकदूसरे को समझने जो बातें करते हैं वे जौब, सेलरी, कम्पनी, शौक, सैक्स और रोमांस के अलावा शादी के तौरतरीके और एक फ्लेट और एक बच्चा प्लान करने तक सिमटी नहीं रही गई हैं. अब वे एकदूसरे के राजनातिक विचार भी जानने लगे हैं जिस से उन का स्वभाव बहुत स्पष्ट रूप से समझ आए और यह तय किया जा सके कि बंदे या बंदी से कितनी पटरी बैठेगी.

धर्म, रिश्तेदारी, समाज और दीगर मामलों पर तालमेल बैठाना अब अपेक्षाकृत आसान हो चला है, भोपाल की एक 24 वर्षीय युवती समीक्षा जैन कहती हैं लेकिन राजनितिक समझ इन सब चीजों का मिक्श्चर्र होती है. इस से संपूर्ण व्यक्तित्व समझने में आसानी हो सकती है. मसलन कोई युवक अगर कट्टर भाजपाई है तो वह अपनी पार्टनर से मुसलमानों से नफरत करने की स्वभाविक अपेक्षा रखेगा.

अगर पार्टनर इस से सहमत नहीं होती तो उन के बीच समझिए असहमति की शुरुआत हो चुकी है. अगर यह जिद या आग्रह बढ़ता है तो वह अलगाव पर जा कर ही खत्म होगा, ऐसी संभावना ज्यादा है फिर कोई युवती क्यों यह रिस्क उठाएगी कि बहुत कुछ दूसरी मेचिंग्स होते हुए भी उसे ही चुने.

कुरेदने पर समीक्षा थोड़ा खुल कर बताती है जो एक तरह से राधिका महतो का ही समर्थन लगता है कि कट्टरता आज के सभी युवाओं को रास नहीं आती है. उन का नजरिया इस मसले पर थोड़ा उदार है लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि वह कांग्रेस से या दूसरे भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलों की समर्थक है पर होगा यह कि उस का पार्टनर अपने पूर्वाग्रहों के चलते मतलब यही निकालेगा. इसलिए राजनातिक सोच को ठोक बजा कर आगे की सोचना ज्यादा बेहतर है.

यानी लड़ाई यहां भी कट्टरवाद और उदारवाद की दिखती है जो अमेरिका में 50 के दशक से रिपब्लिकन्स और डैमोक्रेट्स के बीच देखने में आ रही है. ताजा उदाहरण साल 2016 का है जब वेकफील्ड रिसर्च में यह उजागर किया गया था कि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद 10 में से 1 जोड़े ने अपने सियासी मतभेदों के चलते रिश्ते खत्म कर लिए थे.

इसी तर्ज पर अब से सौ साल पहले जरमन तानाशाह हिटलर के दौर में भी कपल्स में बड़े पैमाने पर अलगाव हुआ था. आमतौर पर हिटलर और उस के यहूदी विरोधी नाजी राष्ट्रवाद को पसंद करने वाले पुरुष अपनी पार्टनर से भी यही उम्मीद रखते थे जो अगर पूरी नहीं होती थी तो हिटलर में आस्था की गाज रिश्ते पर टूटती थी.

इंदिरा बनाम मोदी

प्रसंगवश पूरी दुनिया में पतिपत्नी के बीच अलगाव बड़े पैमाने पर तभी देखने में आया जब तानाशाही या दक्षिणपंथ हावी हुआ. हमारे देश में इंदिरा गांधी के दौर में पतिपत्नी के बीच विवाद तो नहीं होते थे लेकिन मतभेद जरुर परिवारों में पैदा हुए थे. अधिसंख्यक महिलाएं उदारवादी इंदिरा गांधी को चाहती थी जो पुरुषों खासतौर से हिंदू महासभाइयों और जनसंघियों को रास नहीं आता था.

इस की वजह यह थी कि इंदिरा गांधी अपने उदार और कथित धर्म निरपेक्ष विचारों के प्रति ज्यादा कट्टर होती जा रहीं थीं. दक्षिण भारत में तो वे इंदिराम्मा के नाम और पहचान से देवी की तरह पूजी जाने लगीं थी.

राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह और दिलचस्पी की बात हो सकती है कि आपातकाल के बाद भी कांग्रेस को दक्षिण भारत से लोकसभा की खासी सीटें मिली थीं क्योंकि वहां का हिंदुत्व उत्तर भारत के हिंदुत्व से बहुत अलग है. यह बात नरेंद्र मोदी के दौर में भी समझ आ रही है कि इसी पृथक हिंदुत्व के बने रहने के कारण भाजपा दक्षिण में कुछ खास हासिल नहीं कर पाती.

इन्हीं नरेंद्र मोदी को ले कर घरों में खासतौर से पतिपत्नी में खटपट आम है लेकिन वह अंदरूनी है. वे तय है रिश्ते की अहमियत और जरूरत समझते हैं. उत्तर भारत के अधिकांश सवर्ण पुरुष मोदी के हिन्दू राष्ट्रवाद से सहमत हैं लेकिन महिलाएं पूरी तरह नहीं हैं. हालांकि वे पुरुषों से ज्यादा धार्मिक और कर्मकांडी हैं.

अमेरिका की तरह कभी इस पर कोई शोध हो तो सच शायद सामने आए कि सभी सवर्ण महिलाओं के रोल मौडल मोदी क्यों नहीं बन पा रहे. यहां, यह याद रखना जरुरी है कि इन महिलाओं को मोदी से उजागर तौर पर कोई शिकायत भी नहीं है.
मुमकिन है इस की वजह उन का बिना ठोस कारण पत्नी को त्याग देना रहा हो जिस की उपस्थिति धार्मिक आयोजनों में सनातन धर्म के मुताबिक पति के साथ अनिवार्य होती है.

वह इंसान से बन गया कुत्ता

घटना हैरान करने वाली है. आखिर कोई आदमी कुत्ता कैसे बन सकता है और भला किसी का इंसान से कुत्ता बनने का सपना कैसे हो सकता है? लेकिन ऐसा हुआ है.

एक शख्स कुत्ता बन गया और उस की पूरी हरकतें भी बदल गईं. दरअसल जापान के एक शख्स ने 18 लाख रुपए खर्च कर खुद को कुत्ते में बदल लिया है, जिसे देख लोग हैरानी जता रहे हैं. आदमी से कुत्ता बने शख्स का कहना है कि यह उस का सपना था, इसलिए उस ने इतने रुपए बिना किसी परवा के खर्च कर दिए.

यह दुनिया अजीबोगरीब लोगों से भरी पड़ी है. कोई भी शख्स हो, आजकल हर कोई कुछ नया करने के चक्कर में किसी भी हद तक जाने को तैयार है, फिर चाहे उस के लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

जापान में कुत्ते में तबदील हुआ शख्स का नाम टोको बताया जा रहा है. इस के लिए टोको ने 22 हजार डौलर यानी करीब 18 लाख रुपए खर्च किए हैं. अब कुत्ते की तरह दिखने वाले शख्स को देख लोग हैरानी जता रहे हैं.

जेपपेट नाम की कंपनी ने की मदद

जेपपेट नाम की एक कंपनी ने इस जापानी शख्स को कुत्ते के रूप को बनाने में मदद की है. कंपनी को ऐसा करने में करीब 40 दिन लगे. इस शख्स ने कोल्ली ब्रीड के कुत्ते का रूप लिया है, जिस को ले कर कंपनी के प्रवक्ता ने कहा है कि इस शख्स को कोल्ली कुत्ते की तर्ज पर बनाया गया है.

यह 4 पैरों पर चलने वाले असली कुत्ते जैसा दिखता है. कोल्ली एक मध्यम आकार का कुत्ता है. नर का वजन लगभग 30 से 45 पाउंड होता है और कंधों तक लगभग 20 इंच लंबा होता है. मादाएं थोड़ी छोटी होती हैं. इस शख्स को देख कर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि उस ने कौस्ट्यूम पहना है क्योंकि उसे हूबहू कुत्ते जैसा ही बनाया गया है.

पहली बार टोको कुत्ता बन कर सड़क पर टहलने निकला तो लोग हैरानी में पड़ गए. पहले तो किसी को कुछ सम?ा नहीं आया लेकिन जब पता चला तो लोग हैरान रह गए.

टोको का यह सपना था

आदमी से कुत्ता बने इस जापानी शख्स ने बताया है कि यह उस की जिंदगी का सपना था. इस शख्स ने अपने यूट्यूब चैनल पर ‘आई वांट टू बी एन एनिमल’ नाम से एक वीडियो अपलोड किया. इस चैनल के करीब 31,000 सब्सक्राइबर हैं और वीडियो को 1 मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है.

वीडियो में टोको को गले में पट्टा डाल कर सैर के लिए ले जाते हुए देखा जा सकता है. मानव कुत्ता पार्क में अन्य कुत्तों को सूंघते हुए और जानवरों की तरह फर्श पर लोटते हुए देखा गया.

पहली बार बताया सपना

इस से पहले टोको ने मीडिया को बातचीत में बताया कि यह उस के बचपन का शौक था, लेकिन वह नहीं चाहता था कि इस शौक के बारे में उस के आसपास के लोगों को पता चले. अगर लोगों को पता चलता तो उन्हें लगता कि यह अजीब है कि कुत्ता बनना चाहता है. इसी कारण से वह अब अपना असली चेहरा नहीं दिखा सकता.

सर्दी आते ही मेरे बाल फ्रिजी होने शुरू हो गए हैं, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 22 साल की है. वैसे तो मेरे बाल सिल्की हैं लेकिन जैसेजैसे सर्दी का मौसम नजदीक आ रहा है, मेरे बाल फ्रिजी होने शुरू हो गए हैं. कंडीशनर लगाती हूं, फिर भी फ्रिजीनैस दूर नहीं होती. आप ही बताएं कि क्या करूं?

जवाब

आजकल के मौसम में गीले बालों के साथ बाहर न जाएं. न ही गीले बालों के साथ सोएं. ऐसा करने से बाल डैमेज हो जाते हैं. माइक्रो फाइबर टौवेल सूती तौलिए की तुलना में अधिक पानी सोखती है. ऐसे में आप बालों को धोने के बाद उन को माइक्रोफाइबर की मदद से सुखा सकते हैं.

आप तकिए का कवर सिल्क या साटन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस से बाल टूटेंगे नहीं. बालों पर हेयर सीरम या मौइश्चराइजर हेयर औयल लगाएं. इस से बाल हाइड्रेटेड रहेंगे, उन्हें फ्रिजी बालों से लड़ने की शक्ति मिलेगी.

बालों को कंडीशन करने से बालों के क्यूटिकल्स स्मूद होते हैं, नई फील होती है और सोते समय बाल फ्रिजी होने से बचते हैं. ऐसे में आप हेयर मसाज, प्री या पोस्ट कंडीशनिंग आदि को हेयर केयर में शामिल करें.

मगर आप उलझे या फ्रिजी बालों में शैंपू करेंगी तो बाल टूटेंगे, झड़ेंगे. इसलिए धोने से पहले हमेशा बालों को अच्छी तरह से कौम्ब कर लेना चाहिए.

अपने खाने में अधिक से अधिक आयरन, मिनरल्स, ओमेगा 3 फैटी एसिड आदि का सेवन करें और एंटीऔक्सीडैंट से भरपूर चीजों का सेवन करें.

घर के सामान से भी होते हैं लंग्स खराब

गैसचैंबर के अप्रिय खिताब से नवाजी जाने लगी देश की राजधानी दिल्ली में प्रदूषण का खतरनाक स्तर को पार कर जाना अब आएदिन की बात हो गई है जिस पर कुछ दिनों के लिए होहल्ला मचता है. तरहतरह की एडवाइजरी जारी होती हैं, फिर बात कुछ दिनों के लिए आईगई हो जाती है. अक्तूबर के महीने में भी फिर ऐसा ही कुछ हुआ और कई और बातें निकल कर सामने आईं लेकिन उन में से अधिकतर दिल्ली तक ही में सिमट कर रह गईं.

मसलन यह कि दिल्ली में तेजी से फेफड़ों के मरीजों की तादाद में इजाफा हो रहा है. कुछ इलाकों में तो ब्रोन्कियल अस्थमा और सीओपीडी यानी क्रौनिक औब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जैसी घातक बीमारियां बहुत तेजी से फैल रही हैं.

ब्रोन्कियल अस्थमा में मरीज को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है क्योंकि उसे सांस लेने में ज्यादा जोर लगाना पड़ता है. इस बीमारी में सांस लेने में घरघराहट और सीने में भी तकलीफ होने लगती है. सीओपीडी में भी कमोबेश यही लक्षण दिखाई देते हैं जिस में मरीज औक्सीजन खींच तो लेता है लेकिन कार्बन डाइऔक्साइड आसानी से बाहर नहीं छोड़ पाता जिस से उस का दम घुटने लगता है. कई बार तो इस से मौत तक हो जाती है.

नैशनल इंस्टिट्यूट फौर इंप्लीमेंटेशन रिसर्च औन नौन कम्युनिकेबल डिजीज, जोधपुर और आईआईटी, दिल्ली सहित कोई 6 एजेंसियों ने इन बीमारियों पर रिसर्च की तो पता यह भी चला कि घर की हवा की गुणवत्ता भी लंग्स की बीमारियों की जिम्मेदार है. घरों में धूल की मौजूदगी, खाना बनाने में इस्तेमाल होने वाला ईंधन और धुआं, सामान पर जमा होता ठोस और जैविक वेस्ट का डिस्पोजल और कीड़ेमकोड़े भी फेफड़ों के खराब होने में अहम रोल निभाते हैं.

बाहरी प्रदूषण को नियंत्रित करने की सरकारी और गैरसरकारी कोशिशें कब और कितनी कामयाब होंगी, यह कोई नहीं कह सकता, हां, बाहरी प्रदूषण से बचने के लिए मास्क लगाने जैसी कुछ सावधानियां जरूर रखी जा सकती हैं पर घर के अंदर के सामान से फेफड़े कब और कैसे खराब होने लगते हैं, इस बारे में आम लोगों को ज्यादा जानकारी नहीं होती हैं क्योंकि हल्ला बाहरी प्रदूषण को ले कर मचता है जबकि जरूरत घर के अंदर ध्यान देने की ज्यादा है, क्योंकि हम सभी ज्यादा वक्त वहीं बिताते हैं. जाहिर है लगातार घर के सामान के संपर्क में रहते हैं.

धूल हर कहीं है

घर का कोई कोना ऐसा नहीं होता जहां धूल न हो. फेफड़ों की तमाम बीमारियां धूल से ही ज्यादा होती हैं क्योंकि इस से वे खराब होने लगते हैं. एक आम घर में पर्याप्त साफसफाई के बाद भी धूल रह ही जाती है जो हवा के साथ आती है. सोफे, कारपेट, इलैक्ट्रौनिक्स आइटम्स  और पंखों पर धूल का डेरा बहुत आम है.

धूल सांस के जरिए फेफड़ों में पहुंचती है तो मामला गड़बड़ होने लगता है. भोपाल के वरिष्ठ पल्मोनोलौजिस्ट, गांधी मैडिकल कालेज के प्रोफैसर, निशांत श्रीवास्तव के मुताबिक, मामूली सी धूल स्ट्रोक, हार्ट अटैक सहित फेफड़ों के कैंसर की भी वजह बनती है. सो, इस से बचना जरूरी है.

यानी प्रदूषण घर के अंदर भी होता है. साफसफाई के बाद भी धूल सामान पर जमा रहती है खासतौर से परदों, कारपेट और कोनों पर. सामान जरूरी हैं, इन्हें फेंका नहीं जा सकता लेकिन धूल साफ की जा सकती है. दिल्ली की बदहाली पूरे देश के लिए सबक भी है कि सभी को सावधान घर के अंदर के उन सामान से भी रहना है जिन पर धूल जमा होती जाती है और जिन की रोज साफसफाई संभव नहीं होती. इन सामान की साप्ताहिक सफाई यानी डस्टिंग जरूरी है जिस की धमक दिल्ली में देखने में आ रही है.

दिल्लीवासियों को घर के खिड़कीदरवाजे भी ज्यादा से ज्यादा बंद रखने की सलाह दी जा रही है. साथ ही, यह भी कहा जा रहा है कि ऐसा चौबीसों घंटे नहीं करना है क्योंकि हवा भी जरूरी है. हवा में धूल सभी जगह है जिसे घरों में दाखिल होने से रोका नहीं जा सकता लेकिन डस्टिंग करने की नियमितता फेफड़ों की हिफाजत तो करती ही है.

मोल्ड भी कम खतरा नहीं

धूल की तरह मोल्ड यानी नमी भी फेफड़ों के लिए बेहद नुकसानदेह होती है जो धूल की ही तरह हर घर में होती है. यह एक तरह का कवक होता है जो काले, पीले और भूरे रंग का होता है और नमी में ज्यादा पनपता है. हरे और सफेद रंग का मोल्ड बहुत आम है जिसे फफूंद और काई भी कहा जाता है. खानेपीने के पुराने और बासी आइटमों पर यह हर कभी दिख जाता है. किचन, बाथरूम की दीवारें और खिड़कियां मोल्ड के बड़े अड्डे होते हैं. स्टोररूम, लौन और गमलों पर भी मोल्ड जल्द जमता है.

धूल की तरह मोल्ड भी सांस के साथ फेफड़ों तक पहुंचता है और कई बीमारियों की वजह बनता है. यह जब फेफड़ों में पहुंच जाता है तो जिंदगी खतरे में पड़ जाती है. अब से कोई 3 साल पहले ब्राजील के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो ने यह खुलासा किया था कि उन के फेफड़ों में मोल्ड है जिस के चलते वे कमजोरी महसूस कर रहे हैं और ठीक होने को एंटीबायोटिक्स ले रहे हैं.

गौरतलब है कि टीबी की बीमारी भी मोल्ड से हो सकती है. समय रहते फेफड़ों में मोल्ड होने की पहचान या पुष्टि हो पाए तो इलाज संभव है. इस के शुरुआती लक्षण सांस लेने में दिक्कत खांसी, सिरदर्द, खुजली, खांसी और थकान सहित एलर्जी वगैरह जैसे होते हैं. इन से इम्यूनिटी जल्द और ज्यादा कमजोर होती है. मोल्ड से फेफड़ों का बचाव इस की जानकारी और साफसफाई से होना आसान है.

धुआं फेफड़ों का दुश्मन

यह ठीक है कि आजकल एलपीजी गैस के चलते चूल्हों का चलन खत्म हो गया है लेकिन धुआं अभी भी घरों में है, जो फेफड़ों के बड़े दुश्मनों में से एक है. सिगरेट का धुआं अब सार्वजनिक स्थानों में कम दिखता है लेकिन यह भी खत्म नहीं हुआ है. लोग स्मोकिंग जोन में जा कर खुद की और दूसरों की जिंदगी खतरे में डाल रहे हैं.

अगरबत्ती हर घर में जलती है. इस का धुआं भी फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है. यज्ञ-हवन में उपले इफरात से जलाए जाते हैं. दीवाली की आतिशबाजी का नजारा तो कुछ दिनों पहले हर किसी ने देखा ही है, जो अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी बीमारियों का कारण है. इसी तरह गैरजरूरी होते हुए भी लोग मोमबत्ती जलाते हैं.

स्मोकिंग के नुकसान किसी सुबूत के मुहताज कभी नहीं रहे, जिन में फेफड़ों का कैंसर भी शामिल है. मोमबत्ती, उपले, अगरबत्ती और पटाखों के धुएं से भी फेफड़ों को नुकसान होता है लेकिन अल्पकालिक होने के चलते यह दिखता नहीं. इसलिए लोग इसे भी धुएं में उड़ा देते हैं.

इंडस्ट्रियल इलाकों के लोगों के फेफड़े ज्यादा कमजोर होते हैं. दरअसल धुएं से हाइड्रोजन क्लोराइड, अमोनिया, सल्फर डाइऔक्साइड जैसी नुकसानदेह गैसों के अलावा जहरीला कैमिकल एलडीहाइड फेफड़ों में पहुंचता है जो फेफड़ों में सूजन और दूसरी बीमारियों की वजह बनता है.

फेफड़ों की जिम्मेदारी पूरे शरीर में औक्सीजन सप्लाई की होती है. ऐसे में जैसी हवा उसे मिलेगी वह उसे ही सप्लाई करेगा. अब हवा में ही जहर हो तो फेफड़ों का क्या दोष. सबकुछ लोगों के नियंत्रण में न सही पर बहुत कुछ तो है, मसलन धुएं से खुद को बचाना. इस के लिए जरूरी है कि सिगरेट, मोमबत्ती, अगरबत्ती, उपलों और लकड़ी के इस्तेमाल से बचा जाए, नहीं तो कल को हर घर में एयर प्योरीफायर भी नजर आएगा और इस के बाद भी शुद्ध हवा शरीर को मिलेगी, इस की गारंटी नहीं रहेगी.

दिल्ली में इन दिनों कोई आइटम इफरात से बिक रही है तो वह एयर प्यूरिफायर, जो 6 से ले कर 60 हजार रुपए तक में मिलता है. इस से हवा शुद्ध होती है. कांग्रेस नेता शशि थरूर के तो गले में यह लटका रहता है जिस की सोशल मीडिया पर आएदिन चर्चा भी होती रहती है.

ऐसी नौबत ही क्यों आने दी जाए कि जिस से फेफड़ों को नुकसान हो. बचने को खास कुछ नहीं करना है, बस, घर के सामान की साफसफाई का ध्यान रखना है. धूल, धुएं, कवक और कैमिकल्स से बचना है, नहीं तो कल को जिंदगी दिल्ली वालों जैसी दुश्वार हो जाएगी.

सिसकता इश्क़ : भाग 2

रशिका इस प्रोजैक्ट को रिजैक्ट कर देना चाहती थी लेकिन दिल के आगे भला आज तक किसी का जोर चला है जो रशिका का चलता. वैसे भी किसी ने ठीक ही कहा है कि किसी के चाहने से क्या होता है, वही होता है जो होना होता है. रशिका खुद को संभालने में लगी हुई थी, इसलिए उस ने निश्चय किया कि वह यह प्रोजैक्ट नहीं करेगी, यही सोच कर वह इस प्रोजैक्ट को नहीं कहने के लिए जा ही रही थी कि कौरिडोर में हनीफ से टकरा गई और हनीफ ने उस से पूछ लिया- “रैडी फौर अ न्यू प्रोजैक्ट?”

रशिका हनीफ को यह नहीं कह पाई कि वह उस के साथ नहीं जाना चाहती. वह थोड़ी मुसकराती और थोड़ी सकुचाती हुई बोली- “इया, आय एम रैडी.”

15 दिनों तक हनीफ के साथ एक ही छत यानी एक होटल में रहना होगा, यह सोच कर रशिका का दिल हिचकोले खाने लगा. भीतर ही भीतर रशिका का दिल इस बात से भी डरने लगा, कहीं अपने जज्बात के आगे वह कमजोर न पड़ जाए. उस के मन में दबा हुआ प्यार सिर उठाने की गुस्ताखी न कर बैठे. लेकिन अब सिर ओखली में रख ही दिया है तो फिर मूसल से क्या डरना. जो होगा, देखा जाएगा, यह सोच कर रशिका सब के साथ बैंगलुरु आ गई.

यहां बैंगलुरु में पहले से ही होटल व सभी के लिए अलग कमरे बुक थे. इस ग्रुप में रशिका के साथ एक और लड़की उपासना भी थी, जो इस एक महीने में रशिका की शुभचिंतक बन गई थी और हर वक्त रशिका को हनीफ से सतर्क रहने व हनीफ से बच के रहने के लिए आगाह करती रहती थी. हनीफ को मिला कर 2 और लड़के भी थे राजीव और संदीप. कुल मिला कर इन का 5 लोगों का एक ग्रुप था जो इस नए प्रोजैक्ट पर काम करने वाला था, जिसे लीड हनीफ ही कर रहा था.

बैंगलुरु में पहुंचते ही और एयरपोर्ट से बाहर पांव धरते ही रशिका ने देखा, सभी के तेवर ही बदल ग‌ए. हमेशा संस्कारों, धर्म और सहीग़लत की बातें करने वाले अपने संस्कारों को भूल मौजमस्ती और अपने वास्तविक रूप में आ गए हैं, जिसे देख रशिका हैरान थी. लेकिन हनीफ में अब भी वही सादगी बरकरार थी जो हैदराबाद में रशिका ने हनीफ में देखा था. रशिका की हैरानी उस वक्त और अधिक बढ़ गई जब होटल पहुंच कर उपासना अपना रूम होते हुए भी संदीप संग रूम शेयर करने के लिए राज़ी हो गई. संस्कारों और अपनी सभ्यता की दुहाई देने वाली उपासना का यह रूप रशिका के लिए अप्रत्याशित था. लेकिन हनीफ पर इन सब बातों का कोई असर नहीं था. वह सभी से नौर्मल बिहेव ही कर रहा था. रशिका ने उपासना को संदीप संग रूम शेयर करने से रोकना चाहा लेकिन उपासना ने रशिका को यह कह कर चुप रहने को कहा कि-

“चिल यार, यह हमारा हैदराबाद नहीं बैंगलुरु है, यहां हम कुछ भी कर सकते हैं, किसी को कुछ पता नहीं चलेगा, ये 15 दिन न, हमारे हैं. हम सारा दिन प्रोजैक्ट पर काम करेंगे और रात को पार्टी.”

वैसा ही हुआ. पांचों पूरा दिन औफिस में अपने न‌ए प्रोजैक्ट पर काम करते और फिर सभी बैंगलुरु घूमने निकल जाते, केवल हनीफ को छोड़ कर. उस के बाद देररात तक उपासना, संदीप और राजीव तीनों एक ही रूम में मिल कर पार्टी करते. रशिका भी एकदो दिनों तक उन तीनों के साथ शाम को घूमने निकली लेकिन उसे उन के साथ घूमना रास नहीं आया और वह भी हनीफ की ही तरह अगले दिन से होटल में रुकने लगी. एक रोज़ रशिका को अपने रूम में बोरियत महसूस होने लगी, तो वह हनीफ के रूम में आई. उस ने हलका सा दरवाजे को हाथ लगाया और दरवाजा खुल गया. उस के बाद रशिका ने जो देखा, हैरान हो गई और दरवाजे पर ही खड़ी रही, हनीफ कोई मोटी किताब पढ़ रहा था.

हनीफ को प्यास महसूस हुई तो वह पानी पीने के लिए उठा. उस ने रशिका को दरवाजे पर खड़ा देख उसे अंदर आने को कहा. लेकिन रशिका फिर भी कुछ देर वहीं खड़ी रही. उस के मन में यह दुविधा थी कि वह इस कट्टरपंथी व्यक्ति के कमरे में जाए या फिर दरवाजे से ही लौट जाए. तभी हनीफ ने उसे फिर अंदर आने को कहा. रशिका सकुचाती हुई अंदर आई. हनीफ रशिका के मनोभाव को समझ गया, बोला-

“माना कि मैं और मेरा परिवार इसलाम धर्म को मानने वाले हैं लेकिन इस बात से मेरा परिवार या मैं बिलकुल भी इत्तफाक नहीं रखते कि हमें हिंदुओं से या हिंदू धर्म से कोई रंजिश है.”

रशिका हिचकिचाती हुई बोली-

“नहीं, तुम गलत सोच रहे हो, मैं ऐसा कुछ नहीं सोच रही थी.”

उस दिन रशिका और हनीफ के बीच काफी देर तक बातें चलती रहीं. रशिका हनीफ के मोहपाश में बंधती चली जा रही थी. अब यह रोज़ का सिलसिला हो गया था. औफिस से आने के बाद दोनों घंटों बातें किया करते. इस तरह समय पंख लगा कर उड़ गया और हैदराबाद जाने का वक्त आ गया. रशिका को ऐसा लग रहा था मानो पलक झपकते ही ये 14 दिन बीत गए. 15वें दिन सभी ने मिल कर तय किया कि आज रात हैदराबाद निकलने से पहले ग्रैंड पार्टी करेंगे. उस रात सब ने खूब एंजौय किया. उपासना, संदीप और राजीव ने कुछ ज्यादा ही पी ली थी. होटल पहुंच कर सभी अपनेअपने रूम में चले गए.

रशिका अपने रूम में पहुंच कर आईने के सामने खड़ी हो खुद को निहारने लगी. आईने में हनीफ और खुद को एक जोड़े के रूप में कल्पना कर खुद से ही शरमाने लगी. तभी डोरबेल बजी और रशिका का चेहरा यह सोच कर सूर्खगुलाबी हो गया कि शायद डोर पर हनीफ होगा क्योंकि पिछले कुछ दिनों से रशिका को यह लगने लगा था कि हनीफ के दिल में भी उस के लिए प्यार के अंकुर फूट रहे हैं.

पलकें झुकाए, मुसकराती हुई रशिका ने दरवाजा खोला तो वह हैरान रह ग‌ई. सामने नशे में धुत राजीव खड़ा था और वह रशिका के मना करने के बाबजूद कमरे में घुस आया और रशिका से बदतमीजी के साथ जबरदस्ती भी करने की कोशिश करने लगा. उसी वक्त वहां हनीफ आ गया और उस ने रशिका को राजीव से छुड़ाया. उस के बाद रशिका हनीफ से लिपट गई. यह देख राजीव ज़ोरज़ोर से चिल्लाता हुआ रशिका को भलाबुरा कहते हुए कहने लगा-

“तुम जैसी लड़कियों की वजह से ही हमारा समाज और धर्म बिगड़ रहा है और हनीफ जैसे लोग अपने मनसूबे में कामयाब हो रहे. ये लोग जिहाद को प्यार का नाम दे देते हैं और तुम जैसी आवारा लड़कियां अपने धर्म के लड़कों को छोड़ उन के क़ौम में चली जाती हो. तुम भी उन्हीं में से एक हो. मैं सब जानता हूं, तुम भी रशिका भटनागर से रशिका बानो, रशिका बेगम बनना चाहती हो. तभी तो जब से यहां आई हो, घंटों इस के कमरे में बैठी रहती हो. अभी ही देख लो खुद को कैसे लिपटी हुई हो एक तलाकशुदा आदमी के साथ.”

यह सुन हनीफ का पारा चढ़ ग‌या और वह राजीव पर हाथ उठाने ही वाला था कि रशिका ने उसे रोक दिया. उसी वक्त होटल के और भी कुछ लोग वहां आ गए. उस के बाद राजीव वहां से चला गया और हनीफ रशिका को संबल देने के बाद उस का मोबाइल उसे देते हुए बोला-

“हमारा फोन एक्सचेंज हो गया है. ये तुम्हारा फोन, मैं तुम्हें लौटाने आया था. मेरा फ़ोन शायद तुम ले आई हो.”

अपना फोन लेने के बाद रशिका ने हनीफ का फोन उसे लौटा दिया और फिर हनीफ जैसे ही जाने लगा, रशिका ने हनीफ से धीरे से कहा- “थैंक्स.”

यह सुन हनीफ दरवाजे पर रुक गया और मुसकराते हुए बोला-

“कोई भी प्रौब्लम हो, फोन कर लेना.” इतना कह कर वह वहां से चला गया.

रशिका बिस्तर पर लेटी हनीफ के बारे में सोचने लगी. सहसा उसे अपनी सहेली गजाला याद आ गई. गजाला उस की स्कूलफ्रैंड थी और दोनों कालेज में भी साथ थीं. लेकिन गजाला और रशिका की दोस्ती रशिका के परिवार वालों को हमेशा बेहद खटकती थी. उन्हें यह दोस्ती पसंद न थी.

रशिका की मां हमेशा यही कहती कि गजाला के क़ौम के लोग कभी अपने नहीं होते हैं. ये लोग हमेशा पीठपीछे वार करते हैं. रशिका के पापा भी रशिका को हमेशा बारबार, बस, यही समझाते हुए कहते कि तुम देख लेना, एक न एक दिन तेरी यह अभिन्न सहेली गजाला तुझे जरूर धोखा देगी और ऐसा ही कुछ हो गया.

इंटर कालेज डांस कंपीटिशन के दौरान रशिका फाइनल राउंड में पहुंच गई थी. फाइनल राउंड शुरू ही होने वाला था कि रशिका गजाला को ढूंढती हुई ड्रैसिंगरूम से बाहर आई तो उस ने जो देखा उसे देख उस की आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ. गजाला के हाथों में रशिका के पानी की बोतल थी और वह राशि से बात कर रही है जो फाइनल राउंड में रशिका की प्रतिद्वंद्वी है. रशिका ने यह भी देखा कि राशि के हाथों में दवाई की एक शीशी थी. यह देख रशिका यह समझ बैठी कि गजाला राशि से मिली हुई है और दोनों मिल कर उस के पानी में दवाई मिलाने की बात कर रही हैं क्योंकि रशिका ने राशि को यह कहते हुए सुन लिया था कि इस शीशी में नशे की दवाई है.

हीरो : भाग 2

उस रात मनोज, सुनंदा और उन के दोनों बच्चे वापस अपने घर नहीं गए थे. आशी बुआ के जोर देने पर मनोज ने सुनंदा और बच्चों को 3 दिनों के लिए वहीं रहने की इजाजत दे दी.

अगले दिन शाम को आशी बुआ सुनंदा के दोनों बच्चों के साथ पास वाली मुख्य सङक पर टहलने निकलीं. उन्होंने नोट किया कि इस सङक पर पहुंचते ही जो 2 सब से बड़ी इमारतें नजर आती थीं, वे नर्सिंगहोम थे.

बाईं तरफ 50-60 मीटर दूर आलोक नर्सिंगहोम था. दाईं तरफ करीब इतनी ही दूरी पर ज्योति नर्सिंगहोम था. दोनों ही बहुत पुराने और आसपास के इलाके में खूब मशहूर थे. इन दोनों में शहरी भी आते थे और आसपास के कस्बों के लोग भी.

इन्हीं दोनों नर्सिंगहोम को आधार बना कर आशी बुआ ने कविता की आंखें खोलने व पतिपत्नी के रिश्ते का जरूरत समझाने का काम अगले दिन दोपहर में की. उस समय घर में सिर्फ कविता मौजूद थी. बुआ ने अपनी भाभी कमलेश को अपनी बचपन की सहली रंजना के घर बहाने से भेज दिया, जिस के पिता पुलिस में कांस्टेबल थे उन की ही प्रार्थना पर चाचेरे भाई की लङकी अनिता ने सुनंदा को बच्चों समेत अपने घर खाने पर बुला लिया था. उन के भैया आनंद सुबह काम पर चले ही गए थे.

अपने बेटे राहुल को उन्होंने पड़ोसी मेवालालजी के बेटे की मोटर साइकिल पर सुबह भिजवा कर सारा इंतजाम पूरा कर लिया था.

आशी बुआ का सारा नाटक दोपहर 12 बजे के आसपास शुरू हुआ. कविता ने सबकुछ कमरे की खिडक़ी पर पड़े परदे की ओट में छिप कर देखासुना था. कविता की ससुराल ज्यादा दूर नहीं 4-5 किलोमीटर पर थी. वहां से राहुल कविता की सास उर्मिला को मोटरसाइकिल पर पीछे बैठा कर सब से पहले ले आया.

राहुल ने घबराए अंदाज में उन्हें सिर्फ इतना बताया था कि मां ने आप को फौरन लिवा लाने का आदेश दे कर भेजा था. उर्मिला के कुछ पूछने से पहले ही आशी बुआ ने डरी व घबराई आवाज में उन से कहा, ‘‘बहनजी, राजेश और उस के पिताजी को मैं ने सुबह यहां बुलाया था, कविता की वापसी के बारे में बात करने के लिए, उन के खाने के लिए जो सांभरबड़ा मंगाया, वह स्वाद में अच्छा पर जहरीला निकला. वे दोनों नर्सिंगहोम में भरती हैं इस वक्त.’’

‘‘ओह…’’ उर्मिला के चेहरे का रंग फौरन उड़ गया, ‘‘क्या तबियत बहुत बिगड़ गई है? कौन से नर्सिंगहोम में भरती हैं? मुझे ले चल उन के पास बेटा.’’

‘‘आंटी, मैं ने जीजाजी को ज्योति नर्सिंगहोम में भरती कराया था. कुछ देर बाद अंकल को पड़ोस वाले मेवालाल अंकल नर्सिंगहोम ले कर चले गए थे. हम पहले कहां चलें?’’ राहुल ने मोटरसाइकिल घुमाते हुए पूछा.

‘‘पहले अपने अंकल से मिला दे, बेटा. वे बीमारी में बड़ी जल्दी घबरा कर हौसला खो देते हैं,’’ घबराहट के कारण कांप रहीं उर्मिला उचक कर पीछे बैठीं और राहुल उन्हें ले कर मुख्य सङक की तरफ चला गया.

परदे के पीछे छिपी कविता ने सब कुछ देखासुना था.

करीब 20 मिनट बाद सुनंदा रिकशे से घर पहुंची. उसे बुआ ने फोन कर के फौरन अकेले लौट आने का आदेश दिया था. बुआ ने उसे वही जानकारी दी जो उर्मिला को दी थी, पर राजेश के पिता की जगह अपने भाई आनंद का नाम लिया और राजेश की जगह उस के पति मनोज का.

सुनंदा जिस औटो से आई थी, उसी से लौट चली. मुख्य सङक पर पहुंच कर आटो दाईं तरफ मुड़ा. उधर ज्योति नर्सिंगहोम था जिस में मनोज की तरफ भरती होने की जानकारी उसे बुआ ने दी थी.

1-1 कर के मनोज, राजेश के पिता, फिर राजेश और अंत में कविता की मां कमलेश घर पहुंचे. बुआ फूड पौइजनिंग की कहानी हरएक को गेट पर खड़ा कर के सुनातीं. डर और घबराहट का अभिनय वे हर बार पहले से बेहतर कर रही थीं. आने वाले को किसी अपने करीबी में से एक व्यक्ति को पहले किसी नर्सिंगहोम में देखने जाने का फैसला बदहवासी की हालत में फौरन करना पड़ता. बुआ किसी को सोचने का बिलकुल समय नहीं दे रही थीं. मनोज को अपनी लाडली साली और पत्नी में से चुनाव करना पड़ा और वह सुनंदा को पहले देखने गया.

राजेश ने अपनी मां उर्मिला और कविता के बीच में अपनी जीवनसंगिनी को पहले देखने जाने का निर्णय लिया. दीगरवालजी अपनी पत्नी उर्मिला का हालचाल जानने को बाईं तरफ आलोक नर्सिंगहोम गए जबकि उन के बेटे राजेश के ज्योति नर्सिंगहोम में होने की जानकारी बुआ ने उन्हें दी थी.

सिर्फ कमलेश अपवाद साबित हुईं. अपने पति और बेटी के बीच में उन्होंने सुनंदा को पहले देखने जाने का फैसला किया था. अपने भाई के गुस्सैल स्वभाव को देखते हुए बुआ ने आनंद को नाटक का हिस्सा नहीं बनाया था. परदे के पीछे छिपी कविता को बुआ के नाटक की पूर्व जानकारी कतई नहीं थी. किस ने पहले किसे देखने जाने का चुनाव किया था, यह जानकारी देने के अलावा बुआ ने कविता से सारे समय नाटक को ले कर कोर्ई चर्चा नहीं करी. कमलेश की आंखों से ओझल हो जाने के बाद बुआ ने कविता को आवाज दे कर अपने पास बुला लिया.

‘‘बुआ, जब नर्सिंगहोम में कोई मरीज भरती है ही नहीं, तो कोई भी यहां वापस क्यों नहीं लौटा है?’’ सामने आते ही कविता ने उलझन भरे स्वर में बुआ से सवाल पूछा.

‘‘वे सभी छोटी सी पार्टी का आनंद अपने दोस्त के घर में ले रहे हैं,’’ बुआ रहस्यमयी अंदाज में मुसकराईं.

‘‘किस ने दी है पार्टी?’’

‘‘मैं ने.’’

‘‘भला किसलिए, बुआ.’’

‘‘पार्टी मैं ने दी है और कारण भी देरसवेर पैदा हो जाएगा,’’ बुआ अचानक हंसी, तो कविता की उलझन और बढ़ गई.

‘‘बुआ, मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा है,’’ कविता ने कहा,’’ जो कुछ भी आप ने किया है, उस के द्वारा आप मुझे कुछ सीख देना चाहती हैं, मैं इतना समझ रही हूं, पर क्या है वह सीख? अब आप हंसनामुसकराना छोड़ कर मुझ से सीधीसीधी बात कहो.’’

‘‘तू पहले फटाफट घर का ताला लगा. सब लोग हमारे आनंद के यहां बेसब्री से इंतजार कर रहे होंगे. बेचारा राहुल किसी को नाटक के बारे में कुछ भी नहीं समझा पा रहा होगा.’’

केलिकुंचिका : भाग 2

छोटे से माइनिंग वाले शहर में सभी अफसर एकदूसरे को अच्छी तरह जानतेपहचानते थे. थोड़ी ही देर में डाक्टर ने अमोलिका को फोन कर कहा, ‘‘मुबारक हो, शाम को मैं आ रही हूं, मिठाई खिलाना.’’

‘‘श्योर, दरअसल हम लोगों ने जिस दिन पार्टी दी थी आप छुट्टी ले कर बाहर गई थीं.’’

‘‘वह तो ठीक है, मैं तुम्हारी मौसी बनने की खुशी में मिठाई मांग रही हूं. ठीक है, शाम को डबल मिठाई खा लूंगी.’’ डाक्टर से बात करने के बाद अमोलिका के चेहरे की हवाइयां उड़ने लगीं. उस के मन में संदेह हुआ क्योंकि दुर्गा और जतिन के अलावा घर में तीसरा और कोई नहीं था, कहीं यह बच्चा जतिन का न हो. उसे अपनी बहन पर क्रोध आ रहा था. साथ ही, उसे नफरत भी हो रही थी.

अभी तक दुर्गा और जतिन दोनों अस्पताल से घर भी नहीं लौटे थे. दोनों की समझ में नहीं आ रहा था कि आने वाले भीषण तूफान से कैसे निबटा जाए. कुछ पलों का आनंद इतनी बड़ी मुसीबत बन जाएगा, उन्होंने इस की कल्पना भी नहीं की थी. दोनों सोच रहे थे कि आज नहीं तो कल अमोलिका को यह बात तो पता चलेगी ही, तब उस के सामने कैसे मुंह दिखाएंगे.

घर पहुंच कर दुर्गा बंटी के लिए दूध बना कर ले गई. उस ने दूध की बोतल अमोलिका को दी. वह बहुत गंभीर थी. दुर्गा वापस जाने को मुड़ी ही थी कि अमोलिका ने उसे हाथ पकड़ कर रोक लिया. पहले तो वह सोच रही थी कि सारा गुस्सा अभी के अभी उतार दे, पर उस ने बात बदलते हुए पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारा एमए भी पूरा हो गया है. अगले महीने तुम्हारा कौन्वोकेशन भी है.’’ दुर्गा बोली, ‘‘हां.’’

‘‘आगे के लिए क्या सोचा है? और तुम ने संस्कृत ही क्यों चुनी? इनफैक्ट संस्कृत की तो यहां कोई कद्र नहीं है.’’

‘‘आजकल जरमनी में लोग संस्कृत में रुचि ले रहे हैं. बीए करने के बाद मैं एक साल स्कूल में पार्टटाइम संस्कृत टीचर थी. मैं ने जरमनी की एक यूनिवर्सिटी में संस्कृत ट्यूटर के लिए आवेदन दिया था. मैं ने जरमन भाषा का भी एक शौर्टटर्म कोर्स किया है. मुझे उम्मीद है कि जरमनी से जल्दी ही बुलावा आएगा.’’

‘‘कब तक जाने की संभावना है?’’

‘‘कुछ पक्का नहीं कह सकती हूं, पर 6 महीने या सालभर लग सकता है. उन्होंने कहा है कि अभी तुरंत वैकेंसी नहीं है, होने पर सूचित करेंगे.’’

‘‘तब तक तुम्हारा ये बच्चा…’’ अमोलिका के मुंह से अचानक यह सुनना दुर्गा के लिए अनपेक्षित था. इस अप्रत्याशित प्रश्न के लिए वह तैयार नहीं थी. उसे चुप देख कर अमोलिका ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आई दीदी के यहां आ कर यह सब गुल खिलाने में. वैसे तो मैं समझ सकती हूं तेरे पेट में किस का अंश है, फिर भी मैं तेरे मुंह से सुनना चाहती हूं.’’

दुर्गा सिर नीचे किए रो रही थी, कुछ बोल नहीं पा रही थी. अमोलिका ने ही फिर कड़क कर कहा, ‘‘यह किस का काम है? बंटी के सिर पर हाथ रख कर कसम खा तू, किस का काम है यह?’’ दुर्गा फिर चुप रही. तब अमोलिका ने ही कहा, ‘‘जतिन का ही दुष्कर्म है न यह? सच बता तुझे बंटी की कसम.’’

‘‘तुम्हारी खामोशी को मैं तुम्हारी स्वीकृति समझ रही हूं. बाकी मैं जतिन से समझ लूंगी.’’ दुर्गा वहां से चली गई. अमोलिका ने अपनी मां को फोन कर कहा, ‘‘मां, मैं कुछ दिनों के लिए वहां आ कर तुम लोगों के साथ रहना चाहती हूं.’’

जतिन के माफी मांगने और मना करने के बावजूद दूसरे दिन अमोलिका दुर्गा के साथ पीहर आ गई. उस ने मेघाताबुरू की कहानी मां को बताई. उस की मां भी बहुत क्रोधित हुईं और उन्होंने दुर्गा से कहा, ‘‘अरे, तू अपनी सगी बहन के घर में आग लगा बैठी.’’ दुर्गा के पास कोई जवाब न था. वह चुप रही. मां ने कहा, ‘‘मैं तेरी जैसी कुलटा को अपने घर में नहीं रख सकती. तू निकल जा मेरे घर से. हम लोग तुम्हारा मुंह नहीं देखना चाहते.’’

उस रात दुर्गा को नींद नहीं आ रही थी. वह रात में एक बैग ले कर दरवाजा खोल कर घर से निकलना ही चाहती थी कि अमोलिका जग उठी. उस ने कहा, ‘‘कहां जा रही हो?’’ दुर्गा बोली, ‘‘कुछ सोचा नहीं है, या तो आत्महत्या करूंगी या फिर सब से दूर कहीं चली जाऊंगी.’’

‘‘एक पाप तो तूने पहले ही किया, दूसरा पाप आत्महत्या करने का होगा.’’

‘‘तो मैं क्या करूं?’’

‘‘तू एबौर्शन करा ले, उस के बाद आगे की जिंदगी का रास्ता साफ हो जाएगा.’’

‘‘एबौर्शन कराना भी तो एक पाप ही होगा.’’

‘‘तू अभी चुपचाप घर में बैठ. कुछ दिनों में हम सब लोग मिलजुल कर बात कर कोई समाधान ढूंढ़ लेंगे.’’

दुर्गा ने महसूस किया कि उस के मातापिता दोनों ने ही उस से बोलचाल बंद कर दी है. वह तो अमोलिका की गुनाहगार थी, फिर भी दीदी कभीकभी उस से बात कर लेती थीं. उस को अंदर से ग्लानि थी कि उस की एक छोटी सी भूल की सजा दीदी और बंटी को भी मिल रही है. 2 दिनों बाद ही दुर्गा अचानक घर छोड़ कर कहीं चली गई. उस ने अपना कोई अतापता किसी को नहीं बताया.

दुर्गा अपने साथ पढ़ी एक सहेली माधुरी के यहां कोलकाता आ गई. दोनों ने 12वीं तक साथ पढ़ाई की थी. उस ने उसे अपनी कहानी बताई और कहा, ‘‘प्लीज, मेरा पता किसी को मत बताना. मुझे कुछ दिनों के लिए पनाह दे, फिर मैं कहीं दूरदराज चली जाऊंगी.’’

माधुरी अविवाहित थी और नौकरी करती थी. वह बोली, ‘‘तू कहीं नहीं जाएगी. तू जब तक चाहे यहां रह सकती है. तू तो जानती ही है कि इस दुनिया में मेरा अपना निकटसंबंधी कोई नहीं है. तू यहीं रह, तू मां बनेगी और मैं मौसी.’’

वहीं दुर्गा ने एक बालक को जन्म दिया. उस ने वहीं रह कर इग्नू से 2 साल का मास्टर इन वैदिक स्टडीज का कोर्स किया. इसी बीच, उस ने झारखंड में धनबाद के निकट काको मठ और महाराष्ट्र में नासिक के निकट वेद पाठशालाओं में वहां के संतों व गुरुजनों से भी वेद पर विशेष चर्चा कर वेद के बारे में अपना ज्ञान बढ़ाया. माधुरी ने उस से कहा, ‘‘तुम वेदों को इतना महत्त्व क्यों दे रही हो? मैं ने तो सुना है कि वेद स्त्रियों के लिए नहीं हैं.’’

दुर्गा बोली, ‘‘तू उस की छोड़, क्लासिकल भाषाओं के अच्छे जानकारों की जरूरत हमेशा रहेगी. हर युग में उन्हें नए ढंग से पढ़ा और समझा जाता है.’’ जब तक दुर्गा माधुरी के साथ रही, उस ने दुर्गा की आर्थिक सहायता भी की. कुछ पैसे दुर्गा ट्यूशन पढ़ा कर भी कमा लेती थी. इस बीच, दुर्गा का बेटा शलभ 2 साल का हो चुका था. तभी जरमनी से संस्कृत टीचर के लिए उस का बुलावा आ गया.

कोलकाता के जरमन कौन्सुलेट से दुर्गा और बेटे शलभ को वीजा भी मिल गया. वह जरमनी के हीडेलबर्ग यूनिवर्सिटी गई.

टीनऐजर्स लव : भाग 2

एकदूसरे को देखते, हंसतेमुसकराते समय निकल रहा था जैसे मुट्ठी में से रेत देखते ही देखते उंगलियों के बीच की जगह से निकल जाती है. दोनों को ही छुट्टी होने की अधीर प्रतीक्षा थी. समर तो मन ही मन योजना बना रहा था…‘12 बजे छुट्टी होगी, 1 बजे यह घर पहुंचेगी, 2 बजे तक फ्री होगी और मुझे ठीक ढाई बजे कौल करना होगा.’ उस का दिमाग तेजगति से काम कर रहा था जैसे मार्च में अकाउंटैंट का दिमाग किया करता है. आखिर ढाई बज ही गए. समर ने बिना क्षण गंवाए, मोबाइल उठाया और अस्मिता का नंबर डायल किया.

पहली बार में तो अस्मिता ने कौल काट दी. फिर मिस्डकौल की. सामान्य औपचारिक बातचीत के बाद समर गंभीर मुद्दे पर आना चाहता था. शायद अस्मिता भी यही तो चाहती थी. ‘‘क्या तुम मुझ से इसी तरह रोज बात करोगी?’’ समर ने पूछा.

‘‘किसी लड़की के भोलेपन का फायदा उठा रहे हो?’’ अस्मिता ने जान कर प्रतिप्रश्न किया. ‘‘नहींनहीं, ऐसे ही, अगर तुम्हें उचित लगे तो,’’ समर ने शराफत दिखाते हुए कहा.

रुकरुक कर दिन में 5-6 बार बातें होने लगीं. समर कभी मिस्डकौल करता तो कभी जोखिम उठाते हुए सीधा कौल कर देता. दिन बीतते गए, बातें बढ़ती गईं और उन दोनों के संबंधों में प्रगाढ़ता आती गई. हंसीमजाक, स्कूल की बातें, दोस्तोंसहेलियों के किस्से उन के विषय रहते थे. वे स्कूल में बहाना खोजते ताकि एकांत में बैठ कर प्यारभरी बातें कर सकें. रास्ते सुहाने होते गए, हलके स्पर्श में मिठास का एहसास होता.

एक दिन आया जब उन के प्रेम का जिक्र क्लास के हर स्टूडैंट की जबां पर तो था ही, टीचर्स के बीच में भी बात फैल गई और प्रधानाचार्य ने दोनों को स्टाफरूम में बुला कर ऐसी हरकतों के दुष्परिणामों से अवगत करवाया. उन दोनों ने भविष्य में इस प्रकार की गलती दोहराने की प्रतिबद्घता व्यक्त कर पीछा छुड़ा लिया. अब लगभग सब लोग उन के बीच का सबकुछ जान चुके थे. यह वह वक्त था जब अर्धवार्षिक परीक्षाएं सिर पर थीं. दोनों को ही किताब खोले महीनों हो गए थे. अस्मिता अपनी बौद्धिकता के अहं में थी और समर अपने बौद्धिक होने के वहम में.

एक रोज फोन पर समर कुछ उदास आवाज में बोला, ‘‘क्या मैं पास हो सकूंगा? मैं ने पढ़ा तो कुछ नहीं. तुम तो फिर भी होशियार हो, मेरा क्या होगा?’’ ‘‘सब ठीक होगा, क्लास में तुम से कमजोर भी बहुत हैं,’’ अस्मिता ने उसे ढांढ़स बंधाते हुए कहा.

‘‘मैं क्या करूं बताओ? तुम से बात किए बिना एक पल भी नहीं रहा जाता. हर बार मोबाइल उठा कर देखता हूं कि कहीं तुम्हारा मैसेज या कौल तो नहीं आई, अस्मिता.’’ ‘‘मेरा भी यही हाल है. सभी सखीसहेलियों, परिजनों के इतर जीवन अब सिर्फ तुम पर केंद्रित हो गया है. मेरी हर कल्पना, हर सपने का प्रधान किरदार तुम ही हो, समर. मैं इन सभी चीजों को ले कर मजाक में थी. मगर अब यह बेचैनी बताती है, छटपटाहट बताती है कि दिल पर अब मेरा बस नहीं रहा. अब मैं तुम्हारी हो गई हूं. पर क्या वह सब संभव है? मैं भी न, क्याक्या बकती जा रही हूं.’’

दिन बीतते गए, फोन पर उन की बातें चलती गईं. ‘‘कहीं मिलते हैं, कुछ घंटे साथ बिताते हैं, अब सिर्फ बातों से मन नहीं भरता, अस्मिता.’’ अब समर कभीकभी अस्मिता पर, घर से बाहर मिलने पर भी जोर डालने लगा.

एक दिन निश्चय किया कि कहीं एकांत में मिलते हैं. लेकिन कहां? यह प्रश्न था कि कहां मिला जाए. परेशानी को दूर किया अस्मिता की सहेली दीपिका ने. उसी ने रास्ता सुझाया. दीपिका ने कहा, ‘‘मैं अपनी मम्मी को अपनी बहन के साथ मूवी देखने के लिए भेज दूंगी. उन लोगों के जाते ही तुम दोनों मेरे फ्लैट में आ जाना. मैं बाहर से ताला लगा कर चली जाऊंगी. और ठीक 2 घंटे बाद आ कर ताला खोल दूंगी. अगर कोई आएगा भी तो समझेगा कि घर में कोई नहीं है. देख अस्मिता, तुझे समर के साथ समय बिताने का इस से अच्छा कोई मौका नहीं मिल सकता. तू और समर वहां खूब मस्ती करना.’’ समर को भी इस में कोई आपत्ति न थी. 2 दिन बाद मिलने का कार्यक्रम तय कर लिया गया. मौसम साफ था, हवा में संगीत था, पंछियों की कोमल आवाज मनमस्तिष्क में नव स्फूर्ति भर रही थी. नीयत स्थान और निश्चित समय. समर का पहला और आखिरी काम जो पूर्व तैयारी के साथ संपन्न होने जा रहा था वरना अब तक तो उस ने परीक्षा तक के लिए कोई तैयारी नहीं की थी.

तय दिन तय समय पर, अस्मिता समर के साथ दीपिका के फ्लैट पर पहुंची. प्लान के मुताबिक दीपिका ने अपनी मम्मी और बहन को नई मूवी देखने के लिए भेज दिया. वे दोनों फ्लैट के अंदर और बाहर ताला. लेकिन उन की ये सब गतिविधियां फ्लैट के सामने दूसरे फ्लैट में रहने वाले एक अंकल खिड़की से देख रहे थे. उन्हें शायद कुछ गड़बड़ लगा. वे अपने फ्लैट से नीचे उतर कर आए और कालोनी के 2-3 लोगों को एकत्र कर धीरे से बोले, ‘‘यह जो फ्लैट है, अरे वही सामने, बख्शीजी का फ्लैट, उस में एक लड़का और एक लड़की बंद हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’ दूसरे फ्लैट वाले अंकल ने पूछा. ‘‘मतलब… बख्शीजी की लड़की तो बाहर से ताला लगा गई है पर अंदर लड़कालड़की बंद हैं.’’

‘‘अरे, छोड़ो यार, हमें क्या मतलब. इस में नया क्या है? आजकल तो यह आम बात है,’’ दूसरे फ्लैट वाले अंकल टालते हुए बोले. ‘‘अमा यार, कैसी बात कर रहे हो? अपनी आंखों के सामने, यह गलत काम कैसे होने दूं्?’’

‘‘गलत?’’ ‘‘हां जी, मैं ने खुद अपनी आंखों से देखा है दोनों को फ्लैट के अंदर जाते हुए.’’

तभी पड़ोस की एक आंटी भी आ गई, ‘‘क्या हुआ भाईसाहब?’’ ‘‘अरे, सामने बख्शीजी के फ्लैट में एक लड़कालड़की बंद हैं,’’ पहले वाले अंकल बोले.

‘‘तो ताला तोड़ दो,’’ महिला ने मशवरा दिया. ‘‘नहीं, यह सही नहीं है, जिस का मकान है, उसे बुलाओ,’’ दूसरे अंकल ने सलाह दी.

शोर बढ़ता गया. लोग इकट्ठे होते चले गए. तभी कहीं से पुलिस का एक हवलदार भी पहुंच गया. लोगबाग दरवाजा पीटने लगे. ‘‘बाहर निकलो, दरवाजा खोलो…’’ बिना यह सोचेसमझे कि ताला तो बाहर से बंद है, तो दरवाजा खुलेगा कैसे? प्लान के मुताबिक, दीपिका समय पूरा होने से 10 मिनट पहले वहां पहुंच गई, लेकिन भीड़ को देख कर एक बार वह भी घबरा गई. उस ने लोगों से वहां इकट्ठे होने का प्रयोजन पूछा और गुस्से में बोली, ‘‘मेरा फ्लैट है, मैं जानूं. आप लोगों को क्या मतलब?’’

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