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मेरी बेटी का बर्ताव अब बदल गया है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 41 वर्ष है. मेरी 19 वर्षीया एक बेटी है. वह अकसर अपनी बातें मुझ से शेयर करती है. लेकिन, पिछले 2 महीने से मैं उस के व्यवहार में कुछ नोटिस कर रही हूं. वह अपने इंस्टाग्राम अकाउंट से बारबार तसवीरें आर्काइव करती है तो कभी अनआर्काइव. ऐसा उस ने एकदो बार नहीं, कम से कम 10-12 बार कर लिया है. मैं ने उस से कारण पूछने की कोशिश की तो कहती है कि कुछ गंभीर नहीं है, बस उस का मन तसवीरों को ले कर बनताबिगड़ता रहता है. सुनने में तो यह छोटी बात लगती है मगर मैं जानती हूं कुछ तो गलत है इस में. क्या मेरा अंदेशा सही है?

जवाब

मनोवैज्ञानिक रूप से देखें तो आप का अंदेशा लगभग सही है. जब व्यक्ति लगातार अपनी तसवीरों से या इंस्टाग्राम अकाउंट से या किसी भी और चीज से छेड़छाड़ करता रहे तो उस से साफ है कि कुछ गड़बड़ है. आप की बेटी बारबार अपनी तसवीरें आर्काइव और फिर अनआर्काइव करती है, इस का अर्थ है कि उस के दिमाग में कुछ न कुछ जरूर चल रहा है.

हो सकता है कि कुछ है जो वह आप से छिपा रही हो. उस से तसल्ली से बैठ कर बात कीजिए और उस की मनोस्थिति जानने की कोशिश कीजिए. सोशल मीडिया के इस युग में बच्चे अपनी ऐक्टिविटीज और पोस्ट्स के जरिए अपने मन का हाल बताने की कोशिश तो करते हैं लेकिन कोई उसे सम झने में समर्थ नहीं हो पाता.

हो सकता है बिना कहे आप की बेटी कुछ कहने की कोशिश कर रही हो. आप उस से बात कीजिए, हो सकता है वह एंग्जाइटी से गुजर रही हो या किसी और समस्या से.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem

मेरी दीदी : सनम क्यों अपनी बड़ी बहन से नजरें नहीं मिला पा रही थी ?

मेरी आंखें बंद हो रही हैं, सांसें तन का साथ छोड़ रही हैं। ऐसा लग रहा है मानों मम्मी की आवाज दूर बहुत दूर से आ रही है,”सनम, आंखें खोलो बेटा, क्या हो रहा है तुझे सनम…”मैं आंखें नहीं खोल सकती। शायद मेरे पास ज्यादा वक्त नहीं, पर अनंत की डगर पर जातेजाते मेरी आंखों के सामने जिंदगी की हर घटना किसी फिल्म की तरह प्रतिबिंबित हो रही हैं। मम्मी के उस वाक्य ने मुझे स्कूल से ले कर अब तक की जिंदगी का स्मरण करा दिया और मैं अतीत की गलियों का सफर करते कुछ साल पीछे चली गई…

रोज सुबह मम्मी कितनी सारी आवाज लगा कर उठाती थीं, “सनम बेटा, उठो स्कूल के लिए देर हो रही है.मुझे भी मम्मी के मुंह से बेटा शब्द सुनना बहुत अच्छा लगता है तो जानबूझ कर बिस्तर पर ही पड़ी रहती और जब तक मम्मी सनम से सन्नूडी पर आ कर डांटती नहीं और मुझे जगाने के चक्कर में पूरा घर जग जाता तब दौड़ती हुई बाथरूम में घुस जाती थी। और मम्मी भी झूठा गुस्सा जताते रसोई में सब के लिए नाश्ता बनाने चली जातीं.

मम्मीपापा, सागरिका दीदी, समर्थ और मुझे मिला कर कुल 5 लोगों का हमारा छोटा सा परिवार है। एकदूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े शांति से जिंदगी जी रहे थे। मेरी सागरिका दीदी बहुत शांत और सरल स्वभाव की हैं और मैं थोड़ी सी चंचल। दीदी मुझे बहुत प्यार करती हैं पर एक बात मेरी दीदी को बिलकुल पसंद नहीं। दीदी की अपनी चीजें  कोई और इस्तेमाल करें वह उन्हें  बिलकुल पसंद नहीं था। पापा हमेशा तीनों बच्चों के लिए एक सी चीजें  लाते थे, पर मुझे हमेशा दीदी की चीजें  ही ज्यादा अच्छी लगती थीं, तो चोरीछिपे दीदी की चीजें इस्तेमाल कर लिया करती थी तो उस पर दीदी चिल्ला कर पूरे घर को सिर पर ले लेतीं।

घर में किसी बात पर कभी क्लेश नहीं होता था पर इस बात पर जंग छिड़ जाती। मम्मीपापा के बहुत डांटने पर,”सौरी, अगली बार ऐसा नहीं करूंगी…” बोल कर मैं छिटक लेती.दीदी मुझ से 3 साल बड़ी थीं। देखते ही देखते दीदी ग्रैजुएट हो गईं और मैं कालेज में आ गई। पापा दीदी के लिए लड़का ढूंढ़ने लगे और वह दिन भी आ गया। दीदी के लिए एक बहुत ही बेहतरीन रिश्ता आया। सूरत में अपना बिजनैस संभाल रहे आदित्य के साथ दीदी का रिश्ता पक्का हो गया। आदित्य के मम्मीपापा मुंबई में रहते थे क्योंकि उन की 1 ब्रांच वहां पर थी। बहुत ही सरल व समझदार और दिखने में हैंडशम थे आदित्य। मेरी दीदी भी गोरी, सुंदर और सलिकेदार हैं। दोनों की जोड़ी बहुत जमती थी। पापा ने बड़ी धूमधाम से दी की शादी की.

दीदी के ससुराल जाते ही मेरी जिंदगी में एक खालीपन भर गया। मुझे हर बात पर दीदी की याद आती.आहिस्ताआहिस्ता दीदी के बगैर जीने की आदत डाल रही थी. ऐसे में दीदी की शादी को 3 साल बीत गए। बीच में 2-3 बार दीदी घर आई थीं पर जीजू सिर्फ 1-2 बार ही आए। बस, फोन पर बातें होतीं. पढाई की वजह से मैं भी 1-2 बार ही दीदी के यहां गई थी, इसलिए जीजू का ज्यादा परिचय नहीं था, पर दीदी से उन की बहुत तारीफ सुनी थी.देखते ही देखते दीदी ने खुशखबरी दी, दीदी मां बनने वाली थीं.

मैं तो मौसी बनने के खयाल से ही झूम उठी। घर में नन्हें मेहमान के आने की तैयारियां शुरू हो गईं. मम्मीपापा भी नानानानी बनने वाले हैं, यह सुन कर खुशी से पागल हो गए। पर दीदी की तबियत बहुत ही खराब रहने लगी. जीजू दी को अपनी नजर के सामने रखना चाहते थे और मम्मीपापा दीदी को हमारे घर लाना चाहते थे.जीजू के मम्मी की तबियत भी कुछ ठीक नहीं रहती थी तो वे भी दी की देखभाल नहीं कर पातीं, इसलिए यह तय हुआ कि अगले कुछ महीने दीदी हमारे यहां रहेंगी और डिलिवरी के वक्त जीजू के यहां, दीदी को पापा हवाईजहाज से ले आए। उन के आते ही घर चहक उठा और मैं इसलिए ज्यादा खुश थी कि मेरा ग्रैजुएशन पूरा हो गया था तो अब आराम से दी के साथ वक्त बिता सकती थी.

मैं दीदी का बहुत खयाल रखती थी और मम्मी भी दीदी को बिस्तर से उठने नहीं देती थीं, फिर भी दी की तबियत दिनबदिन खराब होती चली गई और 7वें महीने में ही एक दिन उन्हें जोर का दर्द उठा और उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा. जीजू भी तुरंत आ गए पर डाक्टर की लाख कोशिशों के बाद भी बच्चे को नहीं बचा पाए. दी और जीजू दोनों ही टूट गए। तब मां ने कहा कि बच्चे के साथ लेनदेन नहीं होगा, कुदरत दोबारा सुख देगा, पर डाक्टर ने कहा कि दोबारा मां बनने की सोचिएगा भी नहीं, क्योंकि सागरिका का यूट्रस कमजोर है। 9 महीने तक बच्चे को कोख में नहीं पाल सकता… यह सुन कर दी को बहुत बड़ा झटका लगा, एक स्त्री तभी संपूर्ण कहलाती है जब उसे मां का सुख प्राप्त होता है। दीदी पर भी यही बात लागू होती थी। दीदी मानों बुत बन गई,जिंदगी से रस ही उड़ गया, अकेली बैठी पता नहीं क्या सोचती रहती। सारे घर वाले मिल कर भी दी को खुश नहीं रख पा रहे थे। 2 महीने बीत गए पर दी अपने बच्चे को भूल ही नहीं पा रही थी.

जीजू दी को लेने आ गए पर दी की तबियत इतनी ठीक नहीं थी तो उन का ध्यान रखने के लिए मम्मीपापा ने मुझे दी के साथ सूरत भेज दिया, मैं और जीजू दी को हंसाने की भरपूर कोशिश करते रहते थे, पर दी को डिप्रैशन से बाहर निकालने में नाकामयाब रहे, दी खानेपीने में भी लापरवाह रहने लगीं और न किसी चीज में दिलचस्पी ले रही थीं, एक दिन हीमोग्लोबिन कम हो जाने की वजह से वे चक्कर खा कर गिर गईं, तुरंत ऐंबुलेंस बुला कर उन्हें अस्पताल ले गए, डाक्टर ने कहा कि औक्सीजन और ब्लड चढ़ाना होगा और 3-4 दिन अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ेगा, दी को अस्पताल में ऐडमिट करना पड़ा। घर और जीजू की जिम्मेदारी मेरे उपर आ गई। अस्पताल वाले वहां किसी को रहने नहीं देते, वहां का स्टाफ ही मरीज को देखता. मैं ने अच्छे से सब संभाल लिया पर दीदी की चिंता में जीजू भी अपनी सेहत के प्रति लापरवाह होते चले गए.

अगली रात 2 बजे मैं पानी पीने उठी तो देखा कि जीजू बालकनी में खड़े आसमान की तरफ देख कर चिंता में जाग रहे थे. नींद कोसों दूर थी. मुझ से जीजू की यह हालत देखी नहीं गई. मैं आहिस्ता से जीजू के पास गई और सांत्वना देते हुए पानी का गिलास दे कर समझाने लगी कि सब ठीक हो जाएगा सो जाइए, जीजू मुझ से लिपट कर रोने लगे,”सनम, हम ने किसी का क्या बिगाड़ा था…क्यों हुआ हमारे साथ यह सब…”

मैं ने भी जीजू को रोने दिया ताकि दर्द थोड़ा कम हो, पर आहिस्ताआहिस्ता हम दोनों पर पता नहीं कौन सा नशा छाने लगा,  विपरीत सैक्स की पहली छुअन पा कर थोड़ी मैं बहक गई और बहुत महीनों के प्यासे जीजू मुझ में दीदी को ढूंढ़ने लगे। नजदीकियों ने कब हम दोनों को अपनी आगोश में ले लिया पता ही नहीं चला और जो नहीं होना चाहिए वह हो गया.

सारी सीमाओं को लांघने के बाद हम दोनों को होश आया, मैं तो धक से रह गई, ‘हाय, यह मैं क्या कर बैठी? दी को क्या मुंह दिखाऊंगी, मम्मीपापा से कैसे नजरें मिला पाऊंगी’, पर जो हुआ उसे कैसे झुठलाऊं, जीजू मुझ से नजरें तक नहीं मिला पा रहे थे, बारबार मुझे सौरी कहते रहे पर उन के अकेले की गलती भी नहीं थी, न उन्होंने जबरदस्ती की थी, इस गुनाह में मैं बराबर की हिस्सेदार थी, हम दोनों ही बहक गए थे.

जीजू ने अब घर आना बंद कर दिया। औफिस में ही लंच मंगवा लेते थे और वहीं पर सो जाते थे। दीदी 1 सप्ताह बाद अच्छी हो कर घर आ गई, अब जीजू को घर आए बगैर चारा नहीं था। दी अब थोड़ी मूड़ में भी रहने लगी थीं, पर मुझे और जीजू को चुप देख कर टोकतीं,”आखिर आप दोनों को हुआ क्या है? जो पूरा घर सिर पर लिए घूमते थे अचानक यह परिवर्तन क्यों? अब तो मैं भलीचंगी हूं। अब तो दोनों खुश रहो…” पर क्या जवाब देते हम दोंनो।

जीजू दी का बहुत खयाल रखते थे, मगर मेरे साथ बात करने से भी कतराते थे। चाह कर भी हम दोनों उस कमजोर पल को भूला नहीं पा रहे थे। याद आते ही सिर शर्म से झुक जाता था. अब मैं यहां से भाग जाना चाहती थी। मैंने दी से कहा,”दी, अब आप ठीक हो तो मैं घर जाऊं?”

मम्मीपापा कुछ दिन बाद दी को देखने आने वाले थे, तो उन्होंने कहा कि इतनी जल्दी क्या है तुझे, अब मम्मीपापा के साथ ही जाना और जबरदस्ती रोक लिया। ऐसा करते 1 महीना बीत गया और एक दिन खाने के टेबल पर दाल की खुशबू लेते ही मुझे जोरदार मितली उठी। मैं दौड़ कर बाथरूम चली गई और वहां उलटी हो गई। मैं सोच में पड़ गई कि पेट में तो कोई गड़बड़ नहीं फिर यह उलटी किस बात की? और सोचते ही मेरे रौंगटे खड़े हो गए। आंखों में आंसू आ गए। आजतक दी की हर चीज छिप कर इस्तेमाल कर लेती थी तब उन के डांटने पर भी मजे लेती थी मैं, आज पहली बार दी को जान से भी ज्यादा अजिज जीजू के साथ अंतरंग पल बिताने पर घोर पछतावा हो रहा था और खुद के प्रति तिरस्कार।

किस मुंह से उन्हें बताऊं कि दी, आजतक मैं ने आप की हर चीज को बिना बताए इस्तेमाल किया। ऐसा तो सपने में भी नहीं सोचा था कि जिस पर सिर्फ और सिर्फ आप का अधिकार है एक दिन उसे भी मैं… ओह, यह मैं क्या कर बैठी। आज अनजाने में ही सही अपनी उस आदत को दोहराने पर खुद पर शर्म आ रही थी.इतने में बाथरूम के बाहर से दीदी ने पूछा,”सनम, क्या हुआ तू ठीक तो है? चल बाहर आ हम डाक्टर को दिखा देते हैं. मैं स्वस्थता का चोला पहन कर बाहर आई और दी से कहा कि शायद ऐसीडिटी हो गई है, थोड़ा आराम कर लेती हूं ठीक हो जाऊंगी। अपने रूम में आ कर बिस्तर पर ओंधे मुंह लेटे इतना रोई कि आंखें सूख गईं.

मन में खयालों का बवंडर उठ रहा था पर किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थी,  ऐसे ही पूरा दिन पड़ी रही,  उलटी के डर से रात को डिनर के लिए भी नहीं उठी, थोड़ा जूस पी कर सो गई. दूसरे दिन मम्मीपापा और समर्थ आ गए, दीवाली की छुट्टियां थीं तो मम्मीपापा कुछ दिन रुकने का प्लान बना कर आए थे. मैं यहां से कहीं भाग जाना चाहती थी पर जाऊं तो कहां जाऊं…

मम्मीपापा और दी पीछे गार्डन में गप्पें लड़ा रहे थे कि इतने में जीजू औफिस से आ गए, उस एकांत का फायदा उठा कर मैं ने जीजू से अपने मन की शंका बता दी, जीजू घबरा गए। उन की आंखें पछतावे के आंसू से नम हो गईं, हम दोनों में से कोई एकदूसरे को आश्वासन देने की स्थिति में नहीं थे, जैसे पाप छत पर चढ़ कर चिल्लाता है वैसे ही मेरी उलटियों का सिलसिला दूसरे दिन भी चालू रहा, उस दिन तो दी गुस्सा हो गईं,”सनम, 2 दिन से तबियत खराब है, न ठीक से खाना खाती है न दवा लेती है, अब हद हो गई, जबरदस्ती डाक्टर के पास ले गईं, मेरे तो पसीने छूट गए.

डाक्टर ने सारे टेस्ट किए और रिपोर्ट देखते ही दी को बधाई देते हुए कहा,”बधाई हो, यह मां बनने वाली हैं…”दी की आंखें बाहर निकल आईं, होंठ सील गए मानों बदन का पूरा खून जम गया हो। मैं सिर झुकाए बैठी रही। कोई चारा न था, क्या रिएक्ट करती? दी जल्दी ही डाक्टर का शुक्रिया अदा कर बाहर चली गईं, मैं भी पीछेपीछे चल दी। घर आते ही दी का आक्रोश ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ा। सब से पहले यही सवाल किया,”कौन है वह? आदित्य…”

मैं ने हलका सा सिर हिला कर हां कहा तो दी बोली,”सनम, तुम ने मेरी सारी चीजें आजतक इस्तेमाल कीं मैं बरदाश्त करती रही पर अब आदित्य को भी…?” इतना सुनते ही मम्मी ने मेरे गाल पर थप्पड़ जङ दिया और पापा तो मानों मेरा मुंह तक देखने को तैयार नहीं थे, पीछे मुड़ कर बोले,”कल ही नर्सिंगहोम जा कर सब क्लियर करवा लो. पर इतना सुनते ही दी को पता नहीं क्या हुआ कि मुझ से लिपट कर चिल्लाते हुए बोलीं,”नहीं, मैं अपने बच्चे की हत्या करने की किसी को इजाजत नहीं दूंगी, यह मेरा बच्चा है मुझे हर कीमत पर चाहिए। दी मेरा सिर चुमती रहीं मानों बच्चे के आने की खुशी में मेरी और जीजू की गलती माफ करने के मूड़ में हों। दी खुशी से झूम उठीं और मेरे सामने दया की भीख मांगते बोलीं,”सनम, वादा कर तू मेरे बच्चे को जन्म देगी, मेरी झोली ममता से भर दे मेरी बहन। तेरा यह उपकार मैं जिंदगीभर नहीं भूल पाऊंगी।”

मैं असमंजस में थी और मम्मीपापा इस बात से बिलकुल सहमत नहीं थे। उन्होंने दी को समझाया कि तुम्हारी खुशी के लिए सनम की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकते। जीजू किसी भी बात की तरफदारी करने की परिस्थिति में नहीं थे। हाथ जोड़ कर इतना ही बोले,”हो सके तो मुझे माफ़ कर दीजिएगा, फिर दीदी को भी लगा की सनम की जिंदगी का सवाल है, मेरी खुशी के लिए सनम की जिंदगी बरबाद नहीं कर सकती। तो दी ने मुझे कहा कल ही हम अस्पताल जाते हैं, तुम तैयार रहना.

मैं अपनी दी की मनोदशा से वाकिफ थी। दीदी दिल से चाहती थीं कि यह  बच्चा किसी भी हाल में जन्म ले कर उन का आंचल ममता से भर दे, पर उन का मन इजाजत नहीं दे रहा था। दी की लाचारी उन की आंखों से आंसू बन कर बह रही थी और उन आंसूओं ने मुझे एक ठोस निर्णय लेने पर मजबूर कर दिया।

मैं ने दी को अपने पास बैठाया और उन का हाथ अपने हाथों में ले कर वादा किया,”दी, मेरी जिंदगी का जो होना है हो जाए पर मैं आप को मां का सुख दे कर आप को संपूर्ण स्त्री बनने का सुख जरूर दूंगी। मेरी कोख में पल रहा बच्चा आप की अमानत है। मैं इस बच्चे को जन्म दूंगी फिर जो हो मेरे साथ। कोई ऐसा लड़का मिल जाएगा जो मुझे मेरी कमी और खूबी के साथ मुझे अपनाएगा। बाकी जो होगा देखा जाएगा,” इतना सुनते ही जैसे पहली बारिश का स्पर्श पाते पतझड़ वसंत में बदल जाती है वैसे ही दीदी के भीतर नवचेतना का संचार हुआ और मुझ से लिपट कर बोलीं,”सनम, आज पहली बार तेरा मेरी चीज का इस्तेमाल करने पर मैं नाराज नहीं, जानेअनजाने मेरी चीजों का इस्तेमाल करने की बहुत बड़ी कीमत तुम ने चुका दी है।”

मम्मीपापा को भी मेरे निर्णय के आगे झुकना पड़ा। बच्चों के प्यार के आगे मांबाप हमेशा झुकते जो आए हैं, वक्त अपनी गति से बह रहा था। दी ने 8 महीने एक मां की तरह मेरा खयाल रखा, पर 9वें महीना लगते ही एक दिन बाथरूम में नहाते वक्त मेरा पैर फिसला और दर्द के साथ ब्लिडिंग होने लगा। चीखते हुए मैं बेहोश हो गई। आंखें खुलीं तो खुद को अस्पताल के बिस्तर पर पाया। मेरी आगोश में फूल सी बच्ची सो रही थी। डाक्टर ने कहा,”अभिनंदन… आप को बेटी हुई है। मैं ने बच्ची दीदी के हाथों में सौंपते हुए कहा,”दी, संभालिए अपनी अमानत।”

जिंदगी जैसे मेरी सांसों से नाता छुड़ा कर छूट रही थी, आंखों के आगे अंधेरा छाने लगा, हृदय की गति मंद होती महसूस हो रही थी। सब के चेहरे धुंधले दिख रहे थे और मम्मी की आवाज मानों दूर किसी पर्वत के पीछे से आ रही हो ऐसा महसूस हो रहा था,”सनम बेटा, आंखें खोल… क्या हो रहा है तुझे। डाक्टर, देखिए मेरी बच्ची को… सनम बेटे, आंखें खोल…” और आज भी मम्मी के मुंह से बेटा शब्द महसूस करते पड़ी रही। आज तो मम्मी सनम से सन्नूडी पर आएगी फिर भी उठा नहीं जाएगा, अनंत की डगर पर प्रस्थान जो कर रही हूं। एक तसल्ली लिए कि दीदी की इस्तेमाल की हुई सारी चीजों की कीमत चुका कर जा रही हूं। अब अलविदा कहने का भी होश नहीं रहा, आंखें हमेशा के लिए बंद जो हो रही थीं।

Valentine’s Day 2024 : प्यार की पहली किस्त – सायरा को किस बात का सदमा लगा था ?

बेगम रहमान से सायरा ने झिझकते हुए कहा, ‘‘मम्मी, मैं एक बड़ी परेशानी में पड़ गई हूं.’’

उन्होंने टीवी पर से नजरें हटाए बगैर पूछा, ‘‘क्या किसी बड़ी रकम की जरूरत पड़ गई है?’’

‘‘नहीं मम्मी, मेरे पास पैसे हैं.’’

‘‘तो फिर इस बार भी इम्तिहान में खराब नंबर आए होंगे और अगली क्लास में जाने में दिक्कत आ रही होगी…’’ बेगम रहमान की निगाहें अब भी टीवी सीरियल पर लगी थीं.

‘‘नहीं मम्मी, ऐसा कुछ भी नहीं है. आप ध्यान दें, तो मैं कुछ बताऊं भी.’’

बेगम रहमान ने टीवी बंद किया और बेटी की तरफ घूम गईं, ‘‘हां, अब बताए मेरी बेटी कि ऐसी कौन सी मुसीबत आ पड़ी है, जो मम्मी की याद आ गई.’’

‘‘मम्मी, दरअसल…’’ सायरा की जबान लड़खड़ा रही थी और फिर उस ने जल्दी से अपनी बात पूरी की, ‘‘मैं पेट से हूं.’’

यह सुन कर बेगम रहमान का हंसता हुआ चेहरा गुस्से से लाल हो गया, ‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि एहतियात बरता करो, लेकिन तुम निरी बेवकूफ की बेवकूफ रही.’’

बेगम रहमान को इस बात का सदमा कतई नहीं था कि उन की कुंआरी बेटी पेट से हो गई है. उन्हें तो इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि उस ने एहतियात क्यों नहीं बरती.

‘‘मम्मी, मैं हर बार बहुत एहतियात बरतती थी, पर इस बार पहाड़ पर पिकनिक मनाने गए थे, वहीं चूक हो गई.’’

‘‘कितने दिन का है?’’ बेगम रहमान ने पूछा.

‘‘चौथा महीना है,’’ सायरा ने सिर झुका कर कहा.

‘‘और तुम अभी तक सो रही थी,’’ बेगम रहमान को फिर गुस्सा आ गया.

‘‘दरअसल, कैसर नवाब ने कहा था कि हम लोग शादी कर लेंगे और इस बच्चे को पालेंगे, लेकिन मम्मी, वह गजाला है न… वह बड़ी बदचलन है. कैसर नवाब पर हमेशा डोरे डालती थी. अब वे उस के चक्कर में पड़ गए और हम से दूर हो गए.’’

रहमान साहब शहर के एक नामीगिरामी अरबपति थे. कपड़े की कई मिलें थीं, सियासत में भी खासी रुचि रखते थे. सुबह से शाम तक बिजनेस मीटिंग या सियासी जलसों में मसरूफ रहते थे.

बेगम रहमान भी अपनी किटी पार्टी और लेडीज क्लब में मशगूल रहती थीं. एकलौती बेटी सायरा के पास मां की ममता और बाप के प्यार के अलावा दुनिया की हर चीज मौजूद थी, यारदोस्त, डांसपार्टी वगैरह यही सब उस की पसंद थी.

हाई सोसायटी में किरदार के अलावा हर चीज पर ध्यान दिया जाता है. सायरा ने भी दौलत की तरह अपने हुस्न और जवानी को दिल खोल कर लुटाया था, लेकिन उस में अभी इतनी गैरत बाकी थी कि वह बिनब्याही मां बन कर किसी बच्चे को पालने की हिम्मत नहीं कर सकती थी.

‘‘तुम ने मुसीबत में फंसा दिया बेटी. अब सिवा इस बात के कोई चारा नहीं है कि तुम्हारा निकाह जल्द से जल्द किसी और से कर दिया जाए. अपने बराबर वाला तो कोई कबूल करेगा

नहीं. अब कोई शरीफजादा ही तलाश करना पड़ेगा,’’ कहते हुए बेगम रहमान फिक्रमंद हो गईं.

एक महीने के अंदर ही बेगम रहमान ने रहमान साहब के भतीजे सुलतान मियां से सायरा का निकाह कर दिया.

सुलतान कोआपरेटिव बैंक में मैनेजर था. नौजवान खूबसूरत सुलतान के घर जब बेगम रहमान सायरा के रिश्ते की बात करने गईं, तो सुलतान की मां आब्दा बीबी को बड़ी हैरत हुई थी.

बेगम रहमान 5 साल पहले सुलतान के अब्बा की मौत पर आई थीं. उस के बाद वे अब आईं, तो आब्दा बीबी सोचने लगीं कि आज तो सब खैरियत है, फिर ये कैसे आ गईं.

जब बेगम रहमान ने बगैर कोई भूमिका बनाए सायरा के रिश्ते के लिए सुलतान का हाथ मांगा तो उन्हें अपने कानों पर यकीन नहीं आया था.

कहां सायरा एक अरबपति की बेटी और कहां सुलतान एक मामूली बैंक मैनेजर, जिस के बैंक का सालाना टर्नओवर भी रहमान साहब की 2 मिलों के बराबर नहीं था.

सुलतान की मां ने बड़ी मुश्किल से कहा था, ‘‘भाभी, मैं जरा सुलतान से बात कर लूं.’’

‘‘आब्दा बीबी, इस में सुलतान से बात करने की क्या जरूरत है. आखिर वह रहमान साहब का सगा भतीजा है. क्या उस पर उन का इतना भी हक नहीं है

कि सायरा के लिए उसे मांग सकें?’’ बेगम रहमान ने दोटूक शब्दों में खुद ही रिश्ता दिया और खुद ही मंजूर कर लिया था.

चंद दिनों के बाद एक आलीशान होटल में सायरा का निकाह सुलतान मियां से हो गया. रहमान साहब ने उन के हनीमून के लिए स्विट्जरलैंड के एक बेहतरीन होटल में इंतजाम करा दिया था. सायरा को जिंदगी का यह नया ढर्रा भी बहुत पसंद आया.

हनीमून से लौट कर कुछ दिन रहमान साहब की कोठी में गुजारने के बाद जब सुलतान ने दुलहन को अपने घर ले जाने की बात कही तो सायरा के साथ बेगम रहमान के माथे पर भी बल पड़ गए.

‘‘तुम कहां रखोगे मेरी बेटी सायरा को?’’ बेगम रहमान ने बड़े मजाकिया अंदाज में पूछा.

‘‘वहीं जहां मैं और मेरी अम्मी रहती हैं,’’ सुलतान ने बड़ी सादगी से जवाब दिया.

‘‘बेटे, तुम्हारे घर से बड़ा तो सायरा का बाथरूम है. वह उस घर में कैसे रह सकेगी,’’ बेगम रहमान ने फिर एक दलील दी.

सुलतान को अब यह एहसास होने लगा था कि यह सारी कहानी घरजंवाई बनाने की है.

‘‘यह सबकुछ तो आप को पहले सोचना चाहिए था,’’ सुलतान ने कहा.

इस से पहले कि सायरा कोई जवाब देती, बेगम रहमान को याद आ गया कि यह निकाह तो एक भूल को छिपाने के लिए हुआ है. मियांबीवी में अभी से अगर तकरार शुरू हो गई, तो पेट में पलने वाले बच्चे का क्या होगा.

उन्होंने अपने मूड को खुशगवार बनाते हुए कहा, ‘‘अच्छा बेटा, ले जाओ. लेकिन सायरा को जल्दीजल्दी ले आया करना. तुम को तो पता है कि सायरा

के बगैर हम लोग एक पल भी नहीं रह सकते.’’

सुलतान और उस की मां की खुशहाल जिंदगी में आग लगाने के लिए सायरा सुलतान के घर आ गई.

2 दिनों में ही हालात इतने खराब हो गए कि सायरा अपने घर वापस आ गई. मियांबीवी की तनातनी नफरत में बदल गई और बात तलाक तक पहुंच गई, लेकिन मसला था मेहर की रकम का, जो सुलतान मियां अदा नहीं कर सकते थे.

10 लाख रुपए मेहर बांधा गया था. आखिर अरबपति की बेटी थी. उस के जिस्म को कानूनी तौर पर छूने की कीमत 10 लाख रुपए से कम क्या होती.

एक दिन मियांबीवी की इस लड़ाई को एक बेरहम ट्रक ने हमेशा के लिए खत्म कर दिया.

हुआ यों कि सुलतान मियां शाम को बैंक से अपने स्कूटर से वापस आ रहे थे, न जाने किस सोच में थे कि सामने से आते हुए ट्रक की चपेट में आ गए और बेजान लाश में तबदील हो गए.

सायरा बेगम अपने पुराने दोस्तों के साथ एक बड़े होटल में गपें लगाने में मशगूल थीं, तभी बीमा कंपनी के एक एजेंट ने उन्हें एक लिफाफे के साथ

10 लाख रुपए का चैक देते हुए कहा, ‘‘मैडम, ऐसा बहुत कम होता है कि कोई पहली किस्त जमा करने के बाद ही हादसे का शिकार हो जाए.

‘‘सुलतान साहब ने अपनी तनख्वाह में से 10 लाख रुपए की पौलिसी की पहली किस्त भरी थी और आप को नौमिनी करते समय यह लिफाफा भी दिया था. शायद वह यही सोचते हुए जा रहे थे कि महीने के बाकी दिन कैसे गुजरेंगे और ट्रक से टकरा गए.’’

सायरा ने पूरी बात सुनने के बाद एजेंट का शुक्रिया अदा किया और होटल से बाहर आ कर अपनी कार में बैठ कर लिफाफा खोला. यह सुलतान का पहला और आखिरी खत था. लिखा था :

तुम ने मुझे तोहफे में 4 महीने का बच्चा दिया था, मैं तुम्हें मेहर के 10 लाख रुपए दे रहा हूं.

तुम्हारी मजबूरी सुलतान.

सायरा ने खत को लिफाफे में रखा और ससुराल की तरफ गाड़ी को घुमा लिया.

वह होटल आई थी अरबपति रहमान की बेटी बन कर, अब वापस जा रही थी एक खुद्दार बैंक मैनेजर की बेवा बन कर.

दोस्त अजनबी : आखिर क्या हुआ था सुधा और पुण्पावती के बीच ?

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एक साथी की तलाश : आखिर मधुप और बिरुवा का रिश्ता था क्या ? – भाग 4

बच्चे शुरूशुरू में कभीकभार उन के पास आ जाते थे. फिर धीरेधीरे वे भी अपने परिवार में व्यस्त हो गए. वैसे भी मां ही तो सेतु होती है बच्चों को बांधने के लिए. वह तो उन्हीं के पास थी. मधुर सोचते उन के स्वभाव में यदि निर्जीवता थी तो श्यामला तो जैसे पत्थर हो गई थी. क्या कभी श्यामला को इतने सालों का साथ, उन का संसर्ग, स्पर्श नहीं याद आया होगा. ऐसी ही अनेक बातें सोचतेसोचते न जाने कब नींद ने उन्हें आ घेरा.

अतीत में भटकते मधुप को बहुत देर से नींद आई थी. सुबह उठे, तो सिर बहुत भारी था. नित्यकर्म से निबट कर मधुप बाहर बैठ गए. बिरुवा वहीं नाश्ता दे गया.

‘‘साहब,’’ बिरुवा झिझकता हुआ बोला, ‘‘एक बार मालकिन को मना लाने की कोशिश कीजिए, हम भी कब तक रहेंगे, अपने बालबच्चों, परिवार के पास जाना चाहते हैं. आप कैसे अकेले रहेंगे. अगर हो सके तो आप ही मालकिन के पास चले जाइए.’’

उन्होंने चौंक कर बिरुवा का चेहरा देखा. इस बार बिरुवा रुकने वाला नहीं है, वह जाने के लिए कटिबद्ध है. देरसवेर बिरुवा अब अवश्य चला जाएगा. कैसे और किस के सहारे काटेंगे वे अब बाकी की जिंदगी. एक विराट प्रश्नचिह्न उन के सामने जैसे सलीब पर टंगा था. सामने मरुस्थल की सी शून्यता थी, जिस में दूरदूर तक छांव का नामोनिशान नहीं था. आखिर ऐसी मरुस्थल सी जिंदगी में वे प्यासे कब तक और कहां तक भटकेंगे अकेले.

2 दिन इसी सोच में डूबे रहे. दिल कहता कि श्यामला को मना लाए. पर कदम थे कि उठने से पहले ही थम जाते थे. क्या करें और क्या न करें, इसी ऊहापोह में अगले कई दिन गुजर गए. सोचते रहते, क्या उन्हें श्यामला को मनाने जाना चाहिए, क्या एक बार फिर प्रयत्न करना चाहिए. अपने अहं को दरकिनार कर इतने वर्षों के बाद जाते भी हैं और अगर श्यामला न मानी तो… क्या मुंह ले कर वापस आएंगे.

किस से कहें वे अपने दिल की बात और किस से मांगें सलाह. बिरुवा उन के दिल में कौंधा. और किसी से तो उन का अधिक संपर्क रहा नहीं. वैसे भी और किसी से कहेंगे तो वह उन की बात पर हंसेगा कि अब याद आई. आखिर बिरुवा से पूछ ही बैठे एक दिन, ‘‘बिरुवा, क्या तुम्हें वाकई लगता है कि मुझे एक बार उन्हें मना लाने की कोशिश करनी चाहिए?’’ उन के स्वर में काफी बेचारगी थी अपने स्वाभिमान के सिंहासन से नीचे उतरने की.

बिरुवा चौंक गया उन का इस कदर लाचार स्वर सुन कर. उन की कुरसी के पास बैठता हुआ बोला, ‘‘दोबारा मत सोचिए साहब, कुछ बातों में दिमाग की नहीं, दिल की सुननी पड़ती है. मालकिन आ जाएंगी तो यह घर फिर से खुशियों से भर जाएगा. माना कि कोशिश करने में आप ने बहुत देर कर दी पर आप के दिमाग पर यह बोझ तो नहीं रहेगा कि आप ने कोशिश नहीं की थी. बाकी सब नियति पर छोड़ दीजिए.’’

बिरुवा की बातों में दम था. वे सोचने लगे, आखिर एक बार कोशिश करने में क्या हर्ज है, जो भी होगा, देखा जाएगा, उन्होंने खुद को समझाया. खुद को तैयार किया. अपना छोटा सा बैग उठाया और जयपुर के लिए चल दिए. आजकल श्यामला जयपुर में थी.

बिरुवा बहुत खुश था. एक तो वह उन का भला चाहता था, दूसरा वह अपने परिवार के पास लौट जाना चाहता था. दिल्ली से जयपुर तक का सफर जैसे सात समुंदर पार का सफर महसूस हो रहा था उन्हें. जयपुर पहुंच कर अपना छोटा सा बैग उठा कर वे सीधे घर पर पहुंच गए. अपने आने की खबर भी उन्होंने इस डर से नहीं दी कि कहीं श्यामला घर से कहीं चली न जाए.

दिल में अजीब सी दुविधा थी. पैरों की शक्ति जैसे निचुड़ रही थी. वर्षों बाद अपने ही बेटे के घर में अपनी ही पत्नी से साक्षात्कार होते हुए उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे वे अपनी जिंदगी की कितनी कठिन घडि़यों से गुजर रहे हों. धड़कते दिल से उन्होंने घंटी बजा दी. उन्हें पता था इस समय बेटा औफिस में होगा और बच्चे स्कूल. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुल गया. बहू ने उन को बहुत समय बाद देखा था, इसलिए एकाएक पहचान का चिह्न न उभरा उस के चेहरे पर. फिर पहचान कर चौंक गई, ‘‘पापा, आप? ऐसे अचानक…’’ वह पैर छूते हुए बोली, ‘‘आइए.’’ और उस ने दरवाजा पूरा खोल दिया.

वे अंदर आ कर बैठ गए, ‘‘अचानक कैसे आ गए पापा. आने की कोई खबर भी नहीं दी आप ने.’’ बहू का आश्चर्य अभी भी कम न हो रहा था. उन्हें एकाएक कोई जवाब नहीं सूझा, ‘‘जरा पानी पिला दो और एक कप चाय.’’

‘‘जी पापा, अभी लाती हूं,’’ बहू चली गई. उन्हें लगा अंदर का परदा कुछ हिला. शायद श्यामला रही होगी. पर श्यामला बाहर नहीं आई. वे निरर्थक उम्मीद में उस दिशा में ताकते रहे. तब तक बहू चाय ले कर आ गई.

‘‘श्यामला कहां है?’’ चाय का घूंट भरते हुए वे धीरे से बोले.

‘‘अंदर हैं,’’ बहू भी उतने ही धीरे से बोल कर अंदर चली गई.

थोड़ी देर बाद बहू बाहर आई, ‘‘पापा, मैं जरा काम से जा रही हूं. फिर, बंटी को स्कूल से लेती हुई आऊंगी,’’ फिर अंदर की तरफ नजर डालती हुई बोली, ‘‘आप तब तक आराम कीजिए. लंच पर लक्ष्य भी घर आते हैं,’’ कह कर वह चली गई.

वे जानते थे बहू जानबूझ कर इस समय चली गई घर से. लेकिन अब वे क्या करें. श्यामला तो बाहर भी नहीं आ रही. बात भी करें तो कैसे. इतने वर्षों बाद अकेले घर में उन का दिल श्यामला की उपस्थिति में अजीब से कुतूहल से धड़क रहा था. थोड़ी देर वे वैसे ही बैठे रहे. अपनी घबराहट पर काबू पाने का प्रयत्न करते रहे. फिर उठे और अंदर चले गए. अंदर एक कमरे में श्यामला चुपचाप खिड़की के सामने बैठी खिड़की से बाहर देख रही थी.

‘‘श्यामला,’’ उसे ऐसे बैठे देख कर उन्होंने धीरे से पुकारा. सुन कर श्यामला ने पलट कर देखा. इतने वर्षों बाद मधुप को अपने सामने देख कर श्यामला जैसे जड़ हो गई. समय जैसे पलभर के लिए स्थिर हो गया. आंखों में प्रश्न सलीब की तरह टंगा हुआ था, क्या करने आए हो अब.

Poonam Pandey के मौत की झूठी खबर पर भड़के लोग, सोशल मीडिया पर एक्ट्रेस हुई जमकर ट्रोल

दो फरवरी की सुबहसुबह इंस्टाग्राम पर पूनम पांडे के आधिकारिक एकाउंट पर खबर आई कि सर्वाइकल कैंसर से पूनम पांडे की मौत हो गई. मगर जगह या अस्पताल आदि के नाम का कोई जिक्र नहीं था. इस वजह से हमें यकीन नहीं हुआ था क्योंकि 28 जनवरी को ही हमारी मुलाकात पूनम पांडे से हुई थी, उस वक्त वह कहीं से भी बीमार नजर नहीं आ रही थी.
यूं भी मेरी व्यक्तिगत राय में सोशल मीडिया महज झूठ का समुद्र है, लेकिन कुछ देर में जब हमारे पास पूनम पांडे की मैनेजर निकिता शर्मा का ईमेल आया, तो लगा कि ईमेल पर गलत खबर नहीं दी जाएगी. तब हम ने पूनम पांडे की मैनेजर के ईमेल में लिखी बातों को समाचार के तौर पर दो फरवरी को जगह दी थी. पर उस में हम ने साफसाफ लिखा था कि हमें यकीन नहीं है कि पूनम पांडे की मौत हुई है और हम ने मैनेजर द्वारा भी मौत की जगह या अस्पताल का नाम न बताने पर सवाल उठाया था.

 

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बहरहाल,दो फरवरी की शाम तक हम समझ चुके थे कि यह सारा खेल महज पब्लिसिटी स्टंट और पैसा कमाने के लिए पूनम पांडे, पूनम पांडे की प्रचारक और मैनेजर ने मिलकर रचा है. इस बीच हमें यह खबर मिल गई थी कि सरकार ने 4 फरवरी,विश्व कैंसर दिन से 9 वर्ष से ले कर 26 वर्ष तक की लड़कियों को मुफ्त में ‘सर्वाइकल कैंसर’ का टीकाकरण की शुरूआत करने वाली है.

 

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जी हां! हाल ही में घोषित केंद्रीय बजट में केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि 9-26 वर्ष की आयु की महिलाओं को एचपीवी वैक्सीन मुफ्त उपलब्ध कराई जाएगी. यह सारे सूत्र भी पोल खोल रहे थे कि पूनम पांडे ने असंवदेनशीलता का परिचय देते हुए कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी व मौत का मजाक बना कर रख दिया है. पर ठोस सबूत नहीं थे. उन की पीआर एक ही वाक्य दोहरा रही थी कि उन के परिवार वालों ने उन्हें मौत की खबर दी थी. उस के बाद से परिवार वालों का फोन बंद आ रहा है.
उधर इंटरनेट पर दिन भी लोग ‘सर्वाइकल कैंसर’ के बारे में ही जानकारी ढूढ़ते नजर आए. लेकिन आज, 3 फरवरी, दोपहर 12 बजे तक खुद पूनम पांडे ने इंस्टाग्राम पर वीडियो डाल कर अपने जिंदा होने की खबर दे दी. उस ने अपने वीडियो में बताया कि उसे कोई बीमारी नहीं है. मगर उस ने यह कदम ‘सर्वाइकल कैंसर’ के प्रति लोगों के बीच जागरूकता लाने के नेक इरादे से ऐसा कदम उठाया.
माना कि पूनम पांडे के इस कदम से लोगों के बीच ‘सर्वाइकल कैंसर’ को ले कर एक जागरूकता आई और हो सकता है कि कल, 4 फरवरी से तमाम लड़कियां स्वतंः स्फूर्ति से सर्वाइकल कैंसर से बचाव का टीका लगावाने भी पहुंच जाएं. मगर पूनम पांडे ने इस जानलेवा  बीमारी और मौत का जिस तरह से मजाक बना कर रख दिया, उस के लिए उन्हें दोषी माना जाना चाहिए, पर पूनम पांडे इस के लिए शर्मिंदा नहीं हैं.
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसा कर के पूनम पांडे ने अति सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के साथ ही चंद रकम कमाने का ही काम किया है. फिलहाल,वह अपने घर के अंदर ही हैं, लेकिन उम्मीद है कि वह जल्द घर से निकल कर एक बार फिर मीडिया को मूर्ख बनाने के लिए प्रैस कांफ्रेंस जरुर करेंगी.
यूं भी मातापिता को धोखा दे कर मुंबई आने से ले कर अब तक वह लोगों को मूर्ख ही बनाते हुए शोहरत व पैसा बटोरती रही हैं, फिर चाहे 2011 में विश्व कप क्रिकेट जतीने पर नग्न अवस्था में क्रिकेट के मैदान पर घूमने का ऐलान किया था,भारतीय टीम जीत गई. हालांकि, पांडे को कानून अधिकारियों ने ऐसे कृत्य करने से रोक दिया था. या कुछ वर्ष पहले नकली शादी रचानी हो.

क्या कह रहे हैं लोग..?

पूनम पांडे की हरकतों की बड़े पैमाने पर आलोचना हो रही है और उन्हें वास्तविक कैंसर रोगियों के प्रति असंवेदनशील माना जा रहा है. कैंसर रोगी, मौडल व अभिनेत्री रोजलीन खान ने तो लोगों से इस तरह के प्रचार स्टंट से बचने का आग्रह किया है. जिस का वास्तविक रोगियों पर निराशाजनक प्रभाव पड़ सकता है. रोजलीन खान ने इसे इंस्टाग्राम स्टोरी के रूप में पोस्ट किया था,‘‘मुझे नहीं पता कि पूनम (मरने) की यह खबर सच है या नहीं, लेकिन अगर यह फर्जी है, तो यह समझने की जरूरत है कि लोग प्रचार के लिए कैंसर का इस्तेमाल कर रहे हैं.
“भारत में 20 मिलियन कैंसर रोगी हैं, कैंसर से होने वाली प्रत्येक मृत्यु अन्य कैंसर रोगियों को जीवन में आशा खो देती है. इसलिए कृपया ऐसी चीजों से बचें.”
वहीं पूनम पांडे के साथ एक फिल्म कर चुके निर्देशक जगबीर दहिया इस उद्देश्य का सम्मान करते हैं. वह भी पूनम के तरीके को स्वीकार नहीं करते हैं. उन्होने कहा, ‘‘पूनम एक अच्छी, संवेदनशील इंसान हैं. मुझे लगता है कि कैंसर के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए उन की सराहना की जानी चाहिए. इस कारण से कोई नुकसान नहीं है, लेकिन उस ने जो तरीका अपनाया वह संदिग्ध है. पूनम को खबरों में बने रहने से कोई गुरेज नहीं है. जबकि हर कोई अब सर्वाइकल कैंसर के बारे में बात कर रहा है, आगे चल कर यह उस के साथ ‘शेर आया‘ जैसा मामला होगा. अब कोई भी उन पर आसानी से विश्वास नहीं करेगा.”
फिल्मकार अशोक पंडित ने पूनम पांडे और उन की पीआर टीम के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है. तीखा हमला बोलते हुए अशोक पंडित कहते है, ‘‘पूनम ने लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया है. उन्होंने उन सभी लोगों का मजाक उड़ाया, जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं. उन्होंने ऐसी बीमारियों से लड़ने में भारत सरकार, चिकित्सकों, डाक्टरों, नर्सों की कड़ी मेहनत का भी मजाक उड़ाया है. कानून प्रवर्तन एजेंसियों को चाहिए कि ऐसे सस्ते, असंवेदनशील पीआर स्टंट के लिए ऐसे अभिनेताओं और उन की पीआर मशीनरी के खिलाफ कार्रवाई करे.’’
पूनम पांडे की झूठी मौत की खबर पर अभिनेत्री ज्योति सक्सेना ने कहा है, ‘‘यह सब से खराब मीडिया रणनीतियों में से एक है जिसे कोई भी कभी भी अपना सकता है. सस्ते प्रचार के लिए सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौत की त्रासदी का फायदा उठाना उचित नहीं है. बिल्कुल अस्वीकार्य यह सर्वथा घृणित है. कैंसर एक गंभीर और संवेदनशील विषय है और इसे प्रचार के लिए एक उपकरण के रूप में उपयोग करना न केवल अनैतिक है, बल्कि युवा लोगों के दिमाग के लिए हानिकारक भी है. कैंसर जैसे गंभीर मामले पर नकली जागरूकता फैलाना एक खतरनाक खेल है. यह न केवल अनावश्यक घबराहट और भय पैदा करता है बल्कि वास्तविक मुद्दों को भी कमजोर करता है.
“हमें वास्तविक जागरूकता की दिशा में काम करना चाहिए. पूनम पांडे ने अपने इस असवंदेनशील कृत्य से न सिर्फ अपनी विश्वसनीयता खोई है, बल्कि फिल्म प्रचारकों व मैनेजर को भी अविश्वसनीय ठहरा दिया है. बौलीवुड में पूनम पांडे के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाही किए जाने की मांग भी हो रही है.

सोनम कपूर से लेकर श्रद्धा कपूर तक, बौलीवुड में फ्लौप हैं ये फेमस स्टारकिड्स

Bollywood Star kids Career : फिल्म निर्मातानिर्देशक स्टारकिड्स को यह समझ कर हिंदी फिल्मों में ले लेते हैं कि वे फ़िल्मी माहौल में पलेबढ़े हैं और फ़िल्मी दुनिया को अच्छी तरह से जानते हैं. उन के अंदर अभिनय की क्षमता जन्मजात होगी. लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा. इतना ही नहीं, कई बार उन के फ़िल्मी पेरैंट्स उन्हें लौंच करवाने के लिए अच्छी मात्रा में पैसे भी फिल्ममेकिंग पर खर्च कर देते हैं. लेकिन फिर भी वे सफलता हासिल नहीं कर पाते. एक या दो फिल्मों के फ्लौप होने पर वे कहीं नहीं दिखते, क्योंकि निर्मातानिर्देशक उन्हें आगे फिल्मों में लेने से घबराते हैं.

इस श्रृंखला में सब से अधिक स्टारकिड्स को मौका देने वाले निर्माता निर्देशक करण जौहर हैं, जो हमेशा इसे सही मानते हैं. उन के हिसाब से फ़िल्मी माहौल में पैदा हुए बच्चे अच्छी ऐक्टिंग कर सकते हैं. उन्होंने हर बार 2 स्टारकिड्स को लौंच किया है, जबकि इस दौर में एक कदम आगे बढ़ कर निर्देशक जोया अख्तर ने 3 स्टारकिड्स को लौंच किया, जबकि उन की फिल्म ‘द आर्चिज’ एक असफल साबित हुई. इस फिल्म के लिए जोया ने करीब एक से डेढ़ साल तक सभी स्टारकिड्स को ट्रेनिंग भी दी. लेकिन फिल्म ठंडे बसते में चली गई. दर्शकों ने इस फिल्म को पसंद नहीं किया. इस में सुहाना खान, ख़ुशी कपूर, अदिति सहगल आदि कईयों ने काम किया, पर आगे उन की छवि कुछ स्थापित नहीं हो पाई.

एक इंटरव्यू में पूजा बेदी की बेटी अभिनेत्री अलाया ने कहा भी है कि फिल्म इंडस्ट्री एक व्यवसाय है, इसलिए मैं बहुत सावधानी से फिल्मों का चयन करती हूं, ताकि फिल्म सफल हो. फिल्मों में एंट्री आसानी से मिलना भी एक जोखिम होता है, क्योंकि दर्शक मुझ से वैसी ऐक्टिंग देखने की इच्छा रखते हैं और अगर ऐसा नहीं कर पाई, तो असफलता हाथ लगती है.
देखा जाए तो कई स्टारकिड्स हैं, जो फिल्मों में आसानी से आ तो गए लेकिन अपनी साख जमा नहीं पाए, जबकि बगैर फ़िल्मी माहौल से आए आर्टिस्ट काफी मेहनत करते हैं और खुद को स्थापित भी कर लेते हैं.

सोनम कपूर

बौलीवुड अभिनेत्री सोनम कपूर ने फिल्म ‘सांवरिया’ से इंडस्ट्री में कदम रखा. अभिनेता अनिल कपूर की बेटी होने की वजह से उन्हें फिल्मों में काम तो मिल जाता था, लेकिन अधिकतर फिल्में फ्लौप ही रहीं. वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में अपना सिक्का नहीं जमा पाईं.

अनन्या पांडे

करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडैंट औफ़ द ईयर 2’ से चंकी पांडे की बेटी अनन्या पांडे ने बौलीवुड इंडस्ट्री में एंट्री मारी. इस के बाद उन्हें कई फिल्मों में काम मिला, लेकिन उन की कई फिल्में फ्लौप रहीं. तमिल फिल्म ‘लाइगर’ बुरी तरह से फ्लौप रही. कोई भी डायरैक्टर अब अनन्या को फिल्मों में लेना पसंद नहीं कर रहा क्योंकि उन की अभिनय क्षमता बहुत कमजोर है. इसलिए उन की साख अभी तक नहीं जम पाई है.

सारा अली खान

अभिनेत्री अमृता सिंह और सैफ अली खान की बेटी सारा अली खान का भी यही हाल है. फिल्म केदारनाथ को लोगों ने कमोबेश पसंद किया लेकिन इस के बाद की फिल्में नहीं चलीं, क्योंकि अभिनय बहुत कमजोर रहा.

जाह्नवी कपूर

सफल अभिनेत्री श्रीदेवी की बेटी जाह्नवी कपूर ने फिल्म ‘धड़क’ से हिंदी सिनेमा में कदम रखा. उस ने इस फिल्म को सफल बनाने के लिए काफी मेहनत भी की थी. फिल्म बौक्सऔफिस पर कमजोर रही. इस के बाद आई किसी भी फिल्म में वह कहीं नहीं दिखी. उन की फ्लौप फिल्मों की लिस्ट लंबी है. फिल्म ‘गुड लक जेरी’, ‘मिली’, ‘बवाल’ आदि कई लिस्ट में हैं. इतने सालों बाद भी ऐक्ट्रेस एक बड़ी सुपरहिट फिल्म के लिए तरस रही है.

श्रद्धा कपूर

श्रद्धा कपूर ने अपने 9 साल के कैरियर में तकरीबन 17 फिल्में की हैं. इस अवधि में श्रद्धा 3 बड़े प्रोजैक्ट्स का भी हिस्सा बनी हैं. लेकिन इतने बड़े प्रोजैक्ट करने के बावजूद श्रद्धा कपूर टौप ऐक्ट्रेसेस की सूचीं में शामिल नहीं. ‘एबीसीडी 2’, ‘हसीना पारकर’, ‘साहो’, ‘तू झूठी मैं मक्कार’ आदि कई ऐसी उन की फ्लौप फिल्में हैं. श्रद्धा कपूर आजकल विज्ञापनों में अधिक दिखती हैं, क्योंकि उन की अधिकतर फिल्म सफल नहीं हो पातीं. ‘आशिकी 2’ में उन के अभिनय को दर्शकों ने पसंद किया, लेकिन इस के बाद आई किसी भी फिल्म ने कमाल नहीं किया.

अथिया शेट्टी

90 के दशक के फेमस ऐक्टर सुनील शेट्टी के अलग अंदाज को जहां औडियंस ने खूब सराहा, तो वहीं उन की बेटी थिया शेट्टी इंडस्ट्री में अपने कदम जमाने में असफल रही. अभिनेता सलमान खान के प्रोडक्शन हाउस से लौंच होने वाली अथिया शेट्टी की फिल्म ‘हीरो’ भी बौक्सऔफिस पर फ्लौप हो गई. इस के बाद वे ज्यादा फिल्मों में नजर नहीं आईं.

युवाओं में क्यों बढ़ रहा है हाई ब्लडप्रैशर का खतरा, जानें वजह

औफिस में 27 वर्षीय सीए अतुल अचानक पसीने से तरबतर हो गया और घबराहट महसूस करने लगा. उस के हाथ कांप रहे थे. उस के सीने में दर्द भी था. उसे लगा जैसे वह बेहोश होने वाला है, उसे कुछ होने वाला है. उसे फौरन औफिस के मैडिकलरूम में ले जाया गया जहां मैडिकल सुपरिन्टैंडैंट ने उस का चैकअप किया और बताया कि ब्लडप्रैशर बहुत ज्यादा हाई हो गया है. पलभर तो उसे समझ ही नहीं आया कि डाक्टर साहब क्या कह रहे हैं, क्योंकि उसे अब तक ब्लडप्रैशर की समस्या हुई ही नहीं थी. यह सब इतना अचानक कैसे हो गया. वह हैरान था.

जनरल फिजीशियन प्रशांत कुलकर्णी कहते हैं, ‘‘पहले ब्लडप्रैशर की समस्या बुजुर्गों में ही देखने को मिलती थी पर आजकल अतुल जैसे कई युवा हाई ब्लडप्रैशर की समस्या से ग्रसित हो रहे हैं.’’

डाक्टर कुलकर्णी का कहना है, ‘‘हाई ब्लडप्रैशर अभी तक आनुवंशिक समझा जाता था पर आजकल इस का कारण युवाओं का लाइफस्टाइल भी है. काम से संबंधित तनाव, अल्कोहल, स्मोकिंग और अन्य कई कारण हैं जिन के चलते युवाओं को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या होने लगी है. यह समस्या काफी पहले से शुरू हो चुकी होती है पर इस के लक्षण देर में दिखाई देते हैं, इसलिए पता चलने में वक्त लगता है.

वजन का बढ़ना : जब आप मोटे हो जाते हैं, तो आप के दिल को धमनियों तक खून पहुंचाने में कठिनाई होती है, जिस के कारण ब्लडप्रैशर हाई हो सकता है.

नमक की अधिकता : ज्यादा नमक (सोडियम) खाने से भी व्यक्ति को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या हो सकती है. डाक्टर बिस्वास का कहना है, ‘‘कुकिंग में जितना नमक प्रयोग किया जाता है, उतना पर्याप्त होता है. अपने खाने में अतिरिक्त नमक डालने से आप के शरीर में न केवल चक्कर, वजन बढ़ना और वाटर रिटैंशन की समस्या उत्पन्न हो सकती है बल्कि हाई ब्लडप्रैशर भी हो सकता है.’’

शारीरिक क्रियाओं की कमी : जब आप अपने रूटीन में किसी भी तरह शारीरिक रूप से ऐक्टिव नहीं रहते, तो आप के दिल को ब्लडपंप करने में कठिनाई होती है जिस से आप का ब्लडप्रैशर बढ़ सकता है.

तनाव और आदतें : युवाओं का लाइफस्टाइल हाई ब्लडप्रैशर का कारण हो सकता है. काम का तनाव, दबाव आजकल युवाओं पर काफी रहता है, इस के चलते उन्हें हाई ब्लडप्रैशर की शिकायत रहने लगी है.

फैमिली हिस्ट्री : अगर आप के मातापिता को हाई ब्लडप्रैशर की समस्या है, तो आप भी हाई ब्लडप्रैशर के शिकार हो सकते हैं.

परिणाम घातक हो सकते हैं

हृदय पर दुष्प्रभाव : हाई ब्लडप्रैशर का सब से बड़ा साइड इफैक्ट है कि यह दिल को कमजोर कर देता है जिस से हार्टअटैक हो सकता है. शरीर को जब दिल तक पर्याप्त रक्त पहुंचाने में कठिनाई होती है, स्थिति घातक हो सकती है.

दृष्टिबाधा : यह बात अजीब लग सकती है पर हाई ब्लडप्रैशर से अंधापन या आंखों से संबंधित अन्य समस्या हो सकती है क्योंकि हमारी आंखों की नसें हमारे मस्तिष्क से जुड़ी होती हैं जो पर्याप्त रक्त न मिलने पर प्रभावित हो सकती हैं.

सिरदर्द : यदि आप अपने स्वास्थ्य की उचित तरीके से देखभाल नहीं करते हैं तो आप को बारबार सिरदर्द हो सकता है, जो चिंता का विषय है. अकसर जब आप का ब्लडप्रैशर बढ़ता है, आप सिर में भी तेज दर्द महसूस कर सकते हैं, इस पर ध्यान दें.

लक्षणों की उपेक्षा न करें

हाई ब्लडप्रैशर का सब से आम लक्षण है, सीने में दर्द.

यदि आप को हमेशा चक्कर आते रहते हैं या हर समय असहज महसूस करते हैं, तो अपना ब्लडप्रैशर जरूर चैक करवाएं.

यदि अचानक आप की आंखें लाल रहने लगें, तो ब्लडप्रैशर हाई हो सकता है. लाल आंखें अकसर सिरदर्द से भी हो सकती हैं. ऐसे में तुरंत चैकअप करवाएं.

आंखों के आसपास तेज दर्द हो और बारबार सिरदर्द रहने लगा हो तो हाई ब्लडप्रैशर हो सकता है.

डाक्टरों का कहना है कि आजकल के युवा हाइपरटैंशन के शिकार हो रहे हैं. यह भी युवाओं में बढ़ते हाई ब्लडप्रैशर का एक कारण है.

क्या करें ?

डाक्टरों का कहना है कि हाई ब्लडप्रैशर के मरीज को रोज दवा लेनी होती है. इस से ब्लडप्रैशर कंट्रोल में रहता है, रोज दवा लेने में लापरवाही न बरतें.

जब आप किसी भी तरह की शारीरिक ऐक्टिविटी करते हैं, आप का शरीर प्राकृतिक रूप से पर्याप्त रक्त पंप करता है जिस से आप के दिल को पर्याप्त औक्सीजन मिलती रहती है और मुख्य धमनियों को रक्त पहुंचता रहता है. पर्याप्त पानी पिएं, इस से आप को शरीर सुचारु रूप से काम करता रहता है. ब्लडप्रैशर हाई होने की आशंका कम हो जाती हैं.

सब से पहले अतिरिक्त वजन कम कर लेना चाहिए. जैसेजैसे उम्र बढ़ती है, वजन कम करना मुश्किल हो जाता है.

जनवरी के चौथे सप्ताह में कैसा रहा बौलीवुड का कारोबार, जानें यहां पूरी डिटेल्स

हम लंबे समय से लिखते आए हैं कि फिल्म निर्माता और फिल्म प्रचारक के पैसे पर पल रहे फिल्म क्रिटिक्स/आलोचक व इन्फ्लुएंसर भारतीय सिनेमा को खत्म करने पर आमादा हैं. वास्तव में फिल्म का प्रचारक उस ‘दक्षिणापंथी’ (शादी कराने वाला पंडित) की तरह हैं जिसे सिर्फ अपनी दक्षिणा यानी कि जेब भरने से मतलब है, फिर चाहे ‘वर’ मरे या ‘कन्या’.

यानी कि फिर फिल्म डूबे, निर्माता डूबे, कलाकार डूबे, इस से प्रचारक को कोई फर्क नहीं पड़ता. इस के लिए भी फिल्म के निर्माता व कलाकार ही दोषी हैं क्योंकि फिल्म का निर्माता ही अपने प्रचारक को पैसा देता है कि वह फिल्म क्रिटिक्स को खरीद कर उस की फिल्म के लिए 4 या 5 स्टार दिलवाए.

किसी भी निर्माता ने आज तक अपने प्रचारक की कोई जवाबदेही तय ही नहीं की. यह कटु सत्य अब नासूर बन चुका है. अब अजय देवगन और करण जौहर की आंखें खुली हैं. कुछ समय पहले अजय देवगन और करण जौहर ने कुबूल किया कि वे पैसे दे कर ‘स्टार’ खरीदते रहे हैं. पत्रकारों को खरीदते रहे हैं. यह गलत है. लोग सवाल कर रहे हैं कि यदि यह गलत है तो वे इस काम में भागीदार क्यों हैं?

बहरहाल, फिल्म निर्माता व प्रचारक की इसी नीति के चलते 25 जनवरी, गुरुवार को प्रदर्शित हृतिक रोशन, दीपिका पादुकोण और अनिल कपूर के अभिनय से सजी देशभक्ति की बात करने वाली फिल्म ‘फाइटर’ एक सप्ताह बाद सिर्फ 140 करोड़ रुपए ही इकट्ठा कर सकी.

ये आंकड़े निर्माता की तरफ से दिए गए हैं और हमारा मानना है कि निर्माता सही आंकड़े देने के बजाय बढ़ा कर आंकड़े देता है. यह हालत तब है जब 26, 27, 28 जनवरी को छुट्टी थी. पूरे देश में राष्ट्रवाद, गणतंत्र व देशभक्ति का माहौल था. खैर, 140 करोड़ रुपए में से सारे खर्च काट कर निर्माता के हाथ में बामुश्किल 50 करोड़ रुपए ही आएंगे, जबकि फिल्म की लागत 300 करोड़ रुपए है. ‘दक्षिणापंथियों’ को दी गई रकम का तो खुलासा ही नहीं हुआ है.

फिल्म ‘फाइटर’ की बौक्सऔफिस पर इस बुरी मौत के लिए पूरी तरह से फिल्म के प्रचारक व बिके हुए दक्षिणापंथी फिल्म क्रिटिक्स के साथ ही इस के कलाकार दोषी हैं. दीपिका पादुकोण, अनिल कपूर व हृतिक रोशन ने इस फिल्म को ठीक से प्रचारित नहीं किया. अपने प्रचारक की सलाह पर वे मीडिया से दूर ही रहे. एक दिन ग्रुप इंटरव्यू के लिए मीडिया के सामने आए थे, पर लोग बताते हैं कि वह महज तमाशा ही था.

तो वहीं 2023 के अंतिम सप्ताह से इन्फ्लुएंसर और कुछ फिल्म क्रिटिक्स ने चिल्लाना शुरू कर दिया था कि हृतिक रोशन व दीपिका की फिल्म ‘फाइटर’ हजार करोड़ रुपए कमा कर एक नया इतिहास रचेगी. मजेदार बात तो यह है कि फिल्म ‘फाइटर’ की अच्छाई का गुणगान करने वाला और फिल्म के रिलीज होने के बाद इसे साढ़े 4 स्टार देते हुए ‘ब्रिलिएंट’ बताने वाला फिल्म क्रिटिक्स पिछले 2 माह से मुंबई के अस्पताल में जीवन व मौत से जूझ रहा है. मगर निर्माता ने कई बड़े अखबारों व डिजिटल पर विज्ञापन दे कर बताया कि किस फिल्म क्रिटिक्स ने फिल्म को कितने स्टार दिए. उन में अस्पताल में पड़े हुए फिल्म क्रिटिक्स का भी नाम है.

इस पत्रकार ने बिना फिल्म देखे अस्पताल से ‘फाइटर’ को बेहतरीन फिल्म बताने वाला ट्वीट भी कर रहा है. इस से लोग आश्चर्यचकित हैं क्योंकि इस के अस्पताल में होने की खबरें भी छप चुकी हैं. मजेदार बात यह है कि एक तरफ निर्माता अखबारों में विज्ञापन दे कर बता रहा है कि फिल्म क्रिटिक्स या समोसा क्रिटिक्स के अनुसार ‘फाइटर’ कितनी बेहतरीन फिल्म है तो दूसरी तरफ कई पूर्व वायुसेना के पायलट फिल्म के खिलाफ बयान दे रहे हैं. वे सवाल उठा रहे हैं कि वायुसेना के पायलट व युद्ध के घटनाक्रमों को गलत तरीके से दिखाने वाली इस फिल्म को सैंसर बोर्ड ने पारित कैसे कर दिया.

हकीकत में फिल्म ‘फाइटर’ बहुत ही घटिया फिल्म है. लगभग 6-7 माह पहले प्रदर्शित कंगना रानौत की फिल्म ‘तेजस’ और ‘फाइटर’ में कोई अंतर नहीं है. ‘फाइटर’ के कई दृश्य देख कर हंसी आती है. ‘फाइटर’ देख कर लगता है कि हृतिक रोशन तो अभिनय ही भूल चुके हैं. यों भी 2014 में प्रदर्शित फिल्म ‘बैंग बैंग’ से ले कर अब तक हृतिक रोशन की हर फिल्म बौक्सऔफिस पर बुरी तरह से असफल होती रही है. फिल्म में दीपिका पादुकोण ने जिस्म की नुमाइश के अलावा कुछ नहीं किया. ऊपर से सैंसर बोर्ड ने उन के कुछ बिकिनी दृश्यों पर कैंची चला दी. कहानी व पटकथा में तमाम गड़बड़ियां हैं.

26 जनवरी तक ‘फाइटर’ की प्रशंसा में कसीदे पढ़ने वाले ‘समोसा क्रिटिक्स’ अब ‘फाइटर’ की असफलता के लिए अलगअलग वजह बता रहे हैं. एक ने दावा किया है कि ‘फाइटर’ के खिलाफ साजिश की गई है. एक का मानना है कि दीपिका पादुकोण के प्रति देश में नाराजगी के चलते ‘फाइटर’ असफल हुई. एक दक्षिणापंथी फिल्म क्रिटिक्स का दावा है कि लोग दीपिका से नफरत करते हैं, जिस का खमियाजा हृतिक रोशन और ‘फाइटर’ को भुगतना पड़ा.

‘फाइटर’ की असफलता की गाज किस पर गिरी ?

पूरी फिल्म इंडस्ट्री व हर फिल्म निर्माता सच जानता है कि वह अपनी घटिया फिल्म को किस तरह ‘दक्षिणापंथी’ क्रिटिक्स से बेहतरीन फिल्म साबित करवाता रहता है. मगर ‘फाइटर’ की असफलता की गाज फिल्म के प्रचारक पर नहीं गिरी क्योंकि प्रचारक की जवाबदेही तय ही नहीं है. लेकिन इस का असर फिल्म के निर्देशक पर जरूर पड़ा है.

फिल्म ‘फाइटर’ के बुरी तरह असफल होते ही शाहरुख खान ने अपनी बेटी के लिए बनाई जाने वाली फिल्म बंद कर दी, जिस का निर्देशन ‘फाइटर’ के निर्देशक सिद्धार्थ आनंद करने वाले थे. तो वहीं यशराज फिल्म्स ने भी फिल्म ‘वार 2’ के निर्देशन से सिद्धार्थ आनंद की छुट्टी कर दी. वहीं बौलीवुड के अंदर से ‘समोसा क्रिटिक्स’ या यों कहें कि दक्षिणापंथी फिल्म आलोचकों को पैसा देना बंद किए जाने की मांग तेजी से उठने लगी है.

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