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हीरो : भाग 3

‘‘उन सब से पहले रास्ते में आप मुझे समझाना सारा चक्कर,’’ ऐसा कह उलझन का शिकार बनी कविता घर में ताला लगाने के काम में लग गई. आनंद की घर की तरफ बढ़ते हुए आशी बुआ ने कविता का हाथ पकड़ा और संजीदा लहजे में बोलीं, ‘‘बेटी, तू ने देख लिया था कि आज हर व्यक्ति को अपने जीवनसाथी की, अपनी संतान अपने मातापिता या रिश्तेदार की तुलना में फिक्र ज्यादा थी. सिर्फ तेरी मां इस का अपवाद रहीं और उन के अनोखे व्यवहार के बारे में मैं अपने विचार तुझे बाद में बताऊंगी.’’

‘‘बुआ, मेरी समझ से हर किसी को अपने जीवनसाथी की ज्यादा जुङाव होना स्वाभाविक है. पतिपत्नी किस उम्र के हैं, इस का ज्यादा प्रभाव इस बात पर नहीं पड़ता है,’’ कविता ने अपना मत प्रकट किया.

‘‘तुम ठीक कह रही हो। एकलौता बेटा प्यारा है, पर उस से पहले तेरी सास उर्मिला अपने पति दीगरवालजी को देखने गईं. मनोज की तुम से बहुत अच्छी पटती है, पर वह सुनंदा को देखने भागा चला गया. राजेश से तुम आजकल नाराज चल रही हो, पर अगर मौका पड़ता तो तुम उसे पहले देखने जाती या अपने जीजा को? या अपने पिता को?’’

‘‘अभी फैसला बताना कठिन है, पर बदहवासी की हालत में शायद राजेश को ही देखने भागती. औरों से भिन्न नहीं हूं मैं, बुआ,’’ कविता ने सोचपूर्ण लहजे में जवाब दिया.

‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुनो, कविता. शादीशुदा जिंदगी की फिल्म में हीरोहीरोइन की भूमिका पतिपत्नी ही निभाते हैं. उन के आपसी संबंधों में कितने भी उतारचढ़ाव आएं, पर जरूरत के समय वे दोनों ही एकदूसरे के सच्चे साथी, शुभचिंतक और मददगार साबित होता है. मेरे नाटक के क्या आज इस बात को सिद्ध नहीं किया है?’’

‘‘बिलकुल सिद्ध किया है, बुआ,’’ कविता ने फौरन हामी भरी.

‘‘तुम ऐसी फिल्म को किस खाने में रखोगी जिस की हीरोइन या हीरो अपनी किसी इच्छा, मांग जिद या कैसी भी परिवर्तन की चाह को कारण एकदूसरे से दूर होते चले जाएं?’’

‘‘ऐसी फिल्म तो रोने वाली फिल्म बनेगी, बुआ.’’

‘‘बेटी, राजेश और तुम्हें एकदूसरे से शिकायतें होंगी. तुम दोनों में ही कमियां हैं, पर बड़ी बात यह है कि आज की तारीख में एकदूसरे से नाराज हो कर तुम अलगअलग रह रहे हो. क्या तुम अपनी शादीशुदा जिंदगी की फिल्म को एक दुखांत फिल्म बनाना चाहती हो?’’ बड़ी सङक पर पहुंच बुआ रुक गईं और कविता के चेहरे पर नजरें गड़ा कर उन्होंने अपना सवाल पूछा.

‘‘कोई भी पत्नी ऐसा नहीं चाहेगी,’’ कविता ने गंभीर लहजे में जवाब दिया.

‘‘क्या यह जवाब तुम सोचसमझ कर दे रही हो?’’

‘‘हां, बुआ.’’

‘‘तब क्या तुम बता सकती हो कि मैं ने आज की पार्टी किस खुशी में दी है?’’ बुआ ने अर्थपूर्ण लहजे में सवाल पूछा.

‘‘मैं 1 नहीं बल्कि 2 कारण बताऊंगी,’’ कविता शरारती अंदाज में मुसकराई, ‘‘पहला कारण तो यह है कि मैं अपने हीरो राजेश के साथ आज अपने घर लौट जाऊंगी और यह आप के लिए बहुत खुशी की बात है.’’

‘‘और वह दूसरा कारण क्या हो सकता है जिस का मुझे भी नहीं पता?’’

‘‘बुआ, अपने नाटक में कुशल अभिनय व उस का सफल निर्देशन करने की खुशी को आप पार्टी देने का दूसरा कारण मान सकती हैं. आप अपनी इस हौबी को गंभीरता से लें, तो एक दिन पूरे देश में आप का नाम गूंज उठेगा.’’

‘‘क्या तुम मेरी टांग खींचने की कोशिश कर रही हो?’’ बुआ ने बनावटी अंदाज में आंखें तरेरी.

‘‘नहीं, मेरी प्यारी बुआ,’’ कविता उन के गले लग कर भावुक लहजे में बोली, ‘‘आप के नाटक ने मुझे तेज झटका लगा कर मेरी आंखें खोल दी हैं. अपने हीरो राजेश की मैं मनोज जीजाजी से तुलना बंद कर दूंगी. हर कदम पर अपने हीरो के साथ रह कर मैं अपनी जिंदगी के सारे कड़वेमीठे अनुभवों से नहीं गुजरी, तो अंत में मूर्ख बन कर नुकसान उठाऊंगी, यह सीख मैं ने अपने दिल में उतार ली है,’’ आशी बुआ ने प्यार से कविता का माथा चूम लिया.

“इस जगह से मैं पहले ही 6 व्यक्तियों को होटल पहुंचाने का काम कर के थक चुका हूं. मुझे नहीं मालूम था कि आप दोनों को लेने भी मुझे आना पड़ेगा। मां, यहां खड़े हो कर गपशप करने की क्या जरूरत है?’’ नाराज नजर आ रहे राहुल की आवाज सुन कर बुआभतीजी अलग हुए और अपनीअपनी आंखों से निकले आंसू पोंछते हुए आनंद के घर की तरफ बढ़ चले.

आशी बुआ ने कविता को आखिर में कहा, ‘‘बेटी, हम लोगों के पास रहनेखाने का ठीकठाक पैसा अब पहली बार मिल रहा है. अब तक तो हम लोग ऊंची जातियों के लोगों के इशारों पर चलते थे, उन के हुक्म मानते थे. उन के तौरतरीके दूसरे हैं. उन की नकल कर के एक अपनी जिंदगी खराब न करो। राजेश की कमाई इतनी नहीं है कि हीरो बना फिरता रहे और तुम्हें नया मकान दिला सके और न मनोज की कमाई परमानैंट रहने वाली है, जिस पर तू इतरा रही है. जो मिला है उसे सहेज कर रख मेरी बच्ची.”

आनंद के पास पहुंच कर जिस प्यार भरे अंदाज में कविता अपने हीरो राजेश की तरफ देख कर मुसकराई उसे नोट कर के आशी बुआ का दिल गदगद हो उठा. मन ही मन उन दोनों को सुखी रहने का आशीर्वाद दे कर वे वहां उपस्थित लोगों के नाटक से जुड़े सवालों का जवाब देने को तैयार हो गईं.

पहलापहला प्यार : भाग 3

तलाक को टेबू माने जाने वाले इस समाज में सुमी का यह फैसला किसी के गले नहीं उतर रहा था पर सुमी ने सब से कहा, “4 साल से घुटन और तनाव को झेल कर मैं मानसिक रूप से बहुत कमजोर हो गई हूं और अब मैं अपनी इस खूबसूरत जिंदगी को ढोना नहीं बल्कि जीभर के जीना चाहती हूं और उस के लिए मुझे इस बंधन से आजाद होना होगा.”

चूंकि वह आत्मनिर्भर थी, अच्छा कमाती भी थी इसलीए उस के इस निर्णय से किसी पर कोई विशेष फर्क भी नहीं पड़ा. विचारों का प्रवाह इतना तीव्र था कि सोचतेसोचते वह कब बालकनी से आ कर बैड पर लेट कर गहरी नींद में चली गई उसे कुछ पता नहीं चला.

अचानक सुमित की आवाज उस के कानों में पड़ी, “सुमी, तुम अभी भी सोई हो क्या?”

“नहीं, मैं अभी चाय मंगवाती हूं,” वह हड़बड़ा कर उठी और फोन पर चाय के लिए रैस्टोरेंट का नंबर डायल करने लगी. वह फिर बालकनी में आ कर बादलों की ओट में से अपनी छठा बिखेरते सूर्य को देखने लगी. बस यों ही उस के जीवन के अंधियारे की ओट में से निकल कर सुमित उस की जिंदगी में सूरज बन कर आए थे.

प्रशांत से डाइवोर्स लिए अब उसे 6 साल हो गए थे. पिताजी के रिटायर होने के बाद मांपापा भी अब उस के साथ ही रहने लगे थे. यों तो जिंदगी अपने ढर्रे पर चल रही थी पर अकसर मांपापा फिर से शादी की बात करने लगते तो वह चिढ़ जाती और कहती,”मां, अभी हम तीनों कितने सुख से रह रहे हैं. मैं अब कोई बंधन नहीं चाहती.”

एक दिन जैसे ही वह औफिस से आई तो उसी शहर में रहने वाली उस की कालेज की एक टीचर शमा का फोन आया और उन्होंने उसे आने वाले रविवार को अपने घर पर आने का न्योता दे डाला. कुछ हिचकिचाहट के बाद जब रविवार को वह पहुंची तो वहां अपने मातापिता के साथ सुमित भी वहां मौजूद थे.

औपचारिक चायनाश्ते के बाद शमाजी बोलीं, “सुमी, यह हैं मेरी फ्रैंड रश्मि का बेटा सुमित और सुमित यह हैं मेरी भांजी सुमी. आप दोनों एक बार मिल लीजिए फिर आगे की बात करते हैं.”

“पर मामीजी, आप ने अचानक…मुझे बिना बताए…शमाजी मैं अभी…” उस ने हैरत से भरे स्वर में कहा तो शमाजी बोलीं,” हां, जैसे बताते तू आ जाती. तुम्हारे पेरैंट्स को सब पता था. हम ने तुम्हारे बारे में कुछ भी नहीं छिपाया है. बस, अब तुम लोग आपस में बात कर लो फिर आगे की बात करेंगे,” कहते हुए शमा ने उसे छत पर भेज दिया.

जैसे ही वे दोनों छत पर पहुंचे और वह कुछ बोल पाती उस से पहले ही बिना किसी लागलपेट के सुमित ने बोलना शुरू कर दिया,”मैं नहीं जानता कि किस ने आप को क्या और कितना बताया पर मैं आप को बताना चाहता हूं कि मुझे रेटिना पिग्मेंटोसा नाम की बीमारी है जिस का कोई इलाज नहीं है और आज जो आप मुझे देख रही हैं वैसा हमेशा नहीं रहने वाला है. इस लाइलाज बीमारी के कारण मेरा विजन कम होतेहोते एक दिन पूरी तरह खत्म हो जाएगा, आगे चल कर दृष्टिहीन हो जाने वाले इस इंसान से विवाह कर के आप को क्या मिलेगा? मैं तो आप से मिलना ही नहीं चाहता था पर शमाजी और घर वालों के दबाब के कारण आना पड़ा.”

पर सुमी को कहां सुमित की बातें सुनाई पड़ी थीं वह तो बस अपने सामने बैठे गोरे, चिट्टे, लंबे कदकाठी, बैंक में मैनेजर सुमित के व्यक्तित्व में ही इतना खो गई थी कि सुमित की बातें उसे सुनाई ही नहीं दीं. काफी देर तक उसे चुप देख कर जब एक बार फिर सुमित ने अपनी बात दोहराई तब कहीं उसे समझ आया कि सुमित को कोई बीमारी है जिस से एक दिन वह पूरी तरह दृष्टिहीन हो जाएगा.

एकबारगी तो सुमित की बातें सुन कर वह सन्न रह गई फिर कुछ ही देर में खुद को संयत कर के बोली,”हम जीवनसाथी बनेंगे या नहीं यह तो मैं अभी नहीं कह सकती पर हां, मुझे इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप को कोई बीमारी है. वैसे भी यदि शादी के बाद मुझे कोई बीमारी हो गई तो क्या आप मुझे छोड़ देंगे या फिर हमारी शादी के बाद आप की यह बीमारी डायग्नोस होती तो… मुझे बस इतना पता है कि आप ईमानदार हैं क्योंकि आप चाहते तो अपने घर वालों की ही भांति अपनी बीमारी के बारे में मुझ से छिपा सकते थे और आप के इसी गुण ने मेरा दिल जीत लिया है.

“हां, मैं डायवोर्स ले चुकी हूं यह आप को पता है न?” उस ने सुमित से कहा तो सुमित बहुत ही मासूमियत से बोले,”हां, मुझे आंटी ने बताया था और मुझे उस से कोई फर्क नहीं पड़ता और न मैं यह जानना चाहता हूं कि आप ने क्यों और किस से तलाक लिया. मैं एक बार फिर आप से विनती करता हूं कि आप जो भी निर्णय लें बहुत सोच समझ कर क्योंकि यह कोई 30 मिनट का सीरियल या 3 घंटे की मूवी नहीं है जो कुछ समय बाद खत्म हो जाएगी. यह जिंदगीभर का साथ है. मैं नहीं चाहता कि मेरे लिए आप अपनी जिंदगी से कोई समझौता करें, मैं जैसा हूं अच्छा हूं, आप खूबसूरत हैं, पूर्ण शिक्षित हैं, अच्छाखासा कमातीं हैं, तो कोई भी आप को अपना जीवनसाथी बना कर धन्य हो जाएगा पर प्लीज, मैं इस रिश्ते के लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हूं.

“मेरी कोई तब तक नहीं सुनेगा जब तक कि आप मना नहीं करेंगी. इसलिए प्लीज, मैं नहीं चाहता कि कोई मेरे ऊपर दया कर के अपना जीवन दांव पर लगाए. प्लीज, आप मना कर दीजिए. हां, एक और बात मैं उस परिवार से हूं जिसे आप लोग ओबीसी कहते हैं,” इस के बाद वे दोनों ही अपनेअपने घर चले गए.

कुछ दिनों के चिंतनमनन के बाद जब उस ने सुमित की पूरी सचाई बता कर मातापिता को अपना निर्णय सुनाया तो वे मानों बौखला गए, “पागल हो गई है तू जो अपने पैरों में कुल्हाड़ी मार रही है? मैं ने तो समझा था कि शमाजी तेरी सीनियर हैं, अमीर घराने से हैं, तेरी जाति देख कर कुछ कर रही होंगी. सोच कर देख कि उस की आंखे जाने के बाद कैसे काटेगी अकेले पूरी जिंदगी. मैं इस विवाह की अनुमति नहीं दे सकता. पहले ही तू इतना झेल चुकी है और अब फिर से एक अंधे से शादी करना चाहती है. अपनी नाजों से पली बेटी को मैं जानतेबूझते फिर से इस नर्क में जाने को कैसे सपोर्ट कर दूं? हमें तेरी शमा ने पहले ही यह सब बताया होता तो हम तुझे मिलाने के लिए ही तैयार नहीं होते.”

पर वह तो पहली मुलाकात में ही सुमित को अपना दिल दे बैठी थी, सुमित की साफगोई की वह कायल हो गई थी. प्यार में आंखों का क्या रोल वह तो दिल से दिल का होता है, न जाने क्यों लोग कहते हैं कि अरे, प्यार करने से पहले जरा देखसोच तो लिया होता जब कि प्यार जाति, धर्म, रंगरूप और उम्र इन सब से परे होता है और फिर वह तो मेरी पहली नजर का प्यार है, पहला पहला प्यार जिसे किसी भी कमी के कारण ठुकराया नहीं जा सकता और क्या शरीर के किसी विकार के आगे इंसान के व्यक्तित्व, गुण, जाति और शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं होता? मैं विवाह करूंगी तो बस सुमित से ही.

मन ही मन अपने निर्णय पर एक बार फिर दृढ़ होते हुए वह बोली,”पापा, इंसान कभी आंखों से नहीं बल्कि अपनी, अपने व्यवहार और अपने कार्यों से अंधा होता है. देख तो चुके हैं न आप प्रशांत को जो आंखें होते हुए भी पूरी तरह अंधा था जिसे शराब और शक करने के अलावा कुछ भी दिखाई ही नहीं देता था. हां, मैं सुमित के अलावा और किसी से विवाह नहीं करूंगी,” उस के इस अडिग निर्णय के आगे परिवार भी नतमस्तक हो गया और एक सादे से समारोह में वह सुमित की दुलहन बन कर सुमित के साथ भोपाल आ गई.

विवाह के बाद सुमित के परिवार वालों की खुशी का ठिकाना नहीं था. अपने जाने के बाद बेटे के भविष्य को ले कर चिंतित रहने वाले मातापिता को सुमी ने मानो सुमित की जिम्मेदारी ले कर चिंतामुक्त कर दिया था. दोनों की जोड़ी ऐसे लगती मानों कुदरत ने उन्हें एकदूसरे के लिए ही बनाया हो.

प्रशांत के उलट सुमित बेहद सुलझे, बहुत केयरिंग और बहुत प्यार करने वाले पति थे. उन की पूरी दुनिया ही सुमी में सिमटी हुई थी. कुछ समय बाद ही उन के घरआंगन में बेटी अनु का जन्म हुआ था. बला की खूबसूरती को समेटे अपने पापा की प्रतिकृति बेटी अनु अपने पापा की बेहद लाङली थी. सुमित का विजन धीरेधीरे कम होता जा रहा था.

कभीकभी सुमित बेचैन हो कर अपने अंतरंग क्षणों में आंखों में आंसू भर कर कहते, “जब तक आंखों की रौशनी है मैं तुम दोनों को अपनी आंखों और दिल में बसा लेना चाहता हूं ताकि बाद में कोई गिला न रहे.”

“ऐसे न कहो सुमित, मैं और अनु हैं न तुम्हारी आंखें… तुम्हारे पास 4 आंखें हैं. तुम चिंता क्यों करते हो, हम तुम्हारी आंखें बन कर जिंदगीभर तुम्हारी सारी इच्छाओं को पूरा करेंगे.”

विवाह के 8 साल बाद ही सुमित की आंखों की रौशनी पूरी तरह समाप्त हो गई थी. रौशनी समाप्त होने के बाद यों तो सुमी ने अपने प्रत्येक कार्य को स्वयं करने के लिए सुमित को ट्रैंड कर दिया था पर जहां जरूरत होती वहां अनु और सुमी की चार आंखें हरदम सुमित के पास मौजूद रहतीं. बेटी अनु अपने पापा की ही तरह बहुत ही मेधावी थी और अपने पहले प्रयास में ही उस ने यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली थी.

बेटी ने अपनी पसंद के ही एक अधिकारी से विवाह की बात की तो दोनों ने खुशी से उस के हाथ पीले कर दिए थे. बेटी अनु की जिद थी कि मैं हनीमून पर तब ही जाऊंगी जब आप लोग भी अपना सैकंड हनीमून मनाने मुंबई जाओगे. उस ने ही टिकट करवा कर उन्हें जबरदस्ती मुंबई भेजा था.”

बेटी के जाने के 1 सप्ताह बाद ही वे दोनों भी निकल पड़े थे और आज मुंबई घूम रहे थे.

सपनों की बगिया : भाग 3

सुजाता यह सब देखतीसुनती तो दंग रह जाती. एक मध्यवर्गीय परिवार कैसे इतनी रकम इस तरह स्वाहा कर सकता है, आवश्यकताओं की बलि दे कर बेकार के शौक पूरे कर सकता है? कोई उन्हें यथार्थ से अवगत क्यों नहीं कराता? क्या मिलता है इन नएनए फैशनों से? क्या वह उस से कुछ सीख कर लाभ उठा सकती है? यदि वह स्वयं ही कपड़े डिजाइन कर सकती तो कम से कम एक कला तो आती.

सुजाता को लगा कि उसे समस्या का समाधान मिल गया है. वह रतना को अपने कपड़े स्वयं डिजाइन करने का सु झाव देगी, जितना वह स्वयं जानती है, उस से उसे सीखने में मदद देगी. उसे विश्वास था कि कपड़ों की शौकीन रतना इस क्षेत्र में अवश्य रुचि लेगी.

उस का अनुमान ठीक ही था. इंटर की परीक्षा देने के बाद उस ने घोषणा कर दी थी कि वह बीए में न बैठ कर डिजाइन स्कूल में भरती होगी. मातापिता उस के इस निश्चय पर बहुत नाराज थे. बीए, एमए की डिगरी के सामने सिलाई में निपुणता का मतलब फिर पुराने जातिगत काम करना जो वे अब छोड़ना चाहते थे, क्योंकि उन में पैसा नहीं था, की दृष्टि में मूल्य ही क्या था? परंतु एक बार निश्चय कर लेने की रतना की जिद कोई सरलता से तोड़ नहीं सकता था.

इस बात को रतना के दिमाग में बैठाने के लिए सुजाता को भी भर्त्सना का कुछ न कुछ हिस्सा जरूर मिला था, परंतु वह प्रसन्न थी कि वह एक बेकार शौक और थोथी पढ़ाई की जगह, जो केवल डिगरी के लिए की जा रही थी, ठोस कार्य के लिए सु झाव दे सकी थी.

सुजाता सुबह से शाम तक सास को खाना बनाते, सब को खिलाते देखती. वह कंघी तक करने की फुरसत न जुटा पाती थी. सुजाता उसे रसोईघर से खींच लाती, उस के सिर में शैंपू करती. वह हंसती, ‘‘अरे सुजाता, तुम्हारे संजनेसंवरने के दिन हैं. भला मैं सिंगारपिटार करती अच्छी लगती हूं?’’ पर सुजाता एक न सुनती. उसे नई साड़ी पहनवाती, फेसपैक लगा कर स्किन साफ करती. हलका सा मेकअप कर बिंदी लगा कर छोड़ती. सास मुंह से मना करती पर उसे कुछ देर रसोईघर से छुट्टी पा कर, सजसंवर कर अच्छा ही लगता. थका शरीर और मन ताजा हो उठता.

सुजाता सब से शिकायत करती, ‘‘तुम लोग जब चाहे आतेजाते हो, जब चाहे खाना खाते हो. मांजी को कितनी मेहनत करनी पड़ती है. दिनभर उन्हें रसोईघर से छुट्टी नहीं मिलती. क्या तुम लोगों का फर्ज नहीं कि उन का काम कुछ हलका करो? सब एक ही साथ बैठ कर खाना खा लें तो काम कितनी जल्दी खत्म हो जाए.’’

कभी हंस कर, कभी बनावटी क्रोध दिखा कर वह सब को एकसाथ खाना खाने पर विवश करने लगी. नई बहू का मन रखने के लिए ससुर भी ताश छोड़ कर उठ जाते और खाने की मेज पर पहुंच जाते. इस नियम में सब ढिलाई करने की कोशिश करते, परंतु सुजाता अपनी पकड़ ढीली न होने देती.

सुजाता के सु झाव पर महेश ने नाटकों में बहुत झि झकते हुए भाग लिया था, परंतु अभिनय के क्षेत्र में कदम रखते ही उसे लगा कि उस ने ऐसी नई दिशा में कदम रखा है, जहां उसे अपने सपनों को साकार करने का अवसर मिलेगा. फिल्मों का शौकीन महेश इस नए शौक में गले तक इस तरह डूब गया कि उस के मन में मचलती उमंगें निकास पाने को उमड़ती चली जा रही थीं. बेटे को नाटकों में भाग लेते देख पिता ने काफी डांटफटकार की. वे सब से शिकायत करते, ‘‘लड़का हाथों से निकल गया है. वह नचनिया होता जा रहा है. पढ़नालिखना तो गया भाड़ में.’’

उन की दृष्टि में पिक्चर देखना एक बात थी, परंतु नाटकों में भाग लेना दूसरी. उन्होंने जहां दिनरात फिल्में देखने पर महेश को कभी नहीं रोका था, वहां अब वे उस पर बातबात पर बिगड़ने लगे थे, परंतु कालेज के एक नाटक में उस का अभिनय देख कर उन्हें अपनी राय बदलनी पड़ी.

दिनेश की मौसी आई हुई थी. वह बहन को रसोईघर से निकाल कर, मुंहहाथ धो कर कंघीचोटी करते देख रही थी. वह हंस कर बोली, ‘‘वाह दीदी, घर में नई बहू क्या आई, लगता है कि तुम पर ही जवानी आ गई. इस उम्र में सजनेसंवरने का शौक लग गया है. तुम्हीं क्या, देख रही हूं, तुम्हारे सारे घर की रंगत बदल गई है. मु झे लगता ही नहीं कि यह पहले वाला घर है.’’

माथे पर बिंदी लगाती बड़ी बहन भी हंसी, ‘‘हमारी तो जैसेतैसे गुजर गई पर जब घर में पढ़ीलिखी, होशियार बहू आ जाए तो अपने को बदलना ही पड़ता है.’’

सुजाता बाहर खड़ी सब सुन रही थी. वह मुसकराई. उस ने सुरुचिपूर्ण सजे घर को देखा और उस की निगाह हरेभरे पौधों पर अटक गई. नन्हेनन्हे पौधे युवा हो कर पत्तों से लदे थे. उन में नन्हीनन्ही कलियां सिर निकाले  झांक रही थीं. उसे लगा, अब देर नहीं, शीघ्र ही उस की बगिया में रंगबिरंगे फूल खिल उठेंगे और उस का घर महकती हवाओं से भर उठेगा. वह प्रसन्न थी कि उस ने परिवार के बाग से पौधा उखाड़ कर अपनी दुनिया अलग नहीं बसाई, वरन उस बाग को ही संवार दिया. उस ने अपना सपना टूटने नहीं दिया था. वह साकार हो उठा. सुख जाति के बड़प्पन में नहीं है, गुणों के सही इस्तेमाल से मिलता है.

अब जब भी सुजाता के मातापिता उस से मिलने आते, न दिनेश को संकोच होता, न दिनेश के मातापिता को और न ही सुजाता के मातापिता को एहसास होता कि उन के परिवारों में कभी कोई खाई भी थी.

अपनी अपनी नजर : भाग 3

समीर और मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था. अस्पताल से फ्री होते ही समीर मुझे फोन करता और हम दोनों बाहर घूमते, शौपिंग करते और नए जीवन के सपने देखते. शादी से एक दिन पहले मैं उदास हो गई और चुपचाप लान में बैठी मम्मी से कही अपनी बातें सोच रही थी, उन को इतनी कड़वी बातें कहने का दुख भी था लेकिन अब तो भड़ास निकल ही चुकी थी. अब सब ठीक था. मम्मी शांत रहतीं, पापा शादी की तैयारियों में काफी समय निकाल रहे थे.

अचानक मम्मी मुझे ढूंढ़ती लान में आ गईं और मेरे पास ही बैठ गईं. थोड़ी देर मुझे देखती रहीं फिर बोलीं, ‘सुनंदा, तुम्हारी नानी कहा करती थीं कि हर इनसान जीवन को अपनी नजर से देखता है. मैं मानती हूं कि मैं ने तुम से हमेशा एक दूरी बनाए रखी. कभी मेरी बेटी, मेरी बेटी कह कर तुम्हें प्यार नहीं दिखाया लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि मुझे तुम से प्यार नहीं. मैं ने जिस नजर से दुनिया को देखा था और जिन हालात से गुजरी थी उन्हें देखने के बाद मुझे लगता था कि लड़कियों को हमेशा रौब में रखना चाहिए, क्योंकि मेरी मां ने मुझ पर कभी सख्ती नहीं की थी जिस वजह से जीवन में मुझ से बहुत गलतियां हुई हैं. ‘हर मां यही चाहती है कि जो परेशानी उस ने सही है उस की बेटी उस से दूर रहे. रही तुम्हारे पापा और मेरी बात तो इस उम्र में खुद को बदलना आसान तो नहीं है लेकिन मैं कोशिश करूंगी. तुम्हारे लिए मुझे दुख है कि मैं अपनी सख्ती में हद से बढ़ गई जैसे मेरी मां अपनी नरमी में हद से बढ़ गई थीं. हां, यह मेरी गलती है कि मुझे बैलेंस रखना नहीं आया.’

मम्मी के चुप होने पर मुझे ऐसा लगा जैसे पूरी कायनात खामोश हो गई हो. मम्मी की बातों पर मैं पथरा कर रह गई मगर मेरे अंदर एक तूफान मचा था. मम्मी ने मेरे सिर पर हाथ रख कर इतना ही कहा, ‘हमेशा खुश रहो. मैं शर्मिंदा हूं तुम से, मेरी बच्ची.’

पता नहीं इस वाक्य में ऐसा क्या था कि मैं खुद पर नियंत्रण खो बैठी और उन के गले लग कर फूटफूट कर रो पड़ी. फिर मैं ने समीर के साथ नए सफर के लिए नए रास्ते में बड़ी मजबूती से पहला कदम रखा. मैं ने अपनेआप से वादा किया था कि मैं कभी समीर से लड़ूंगी नहीं, अपना धैर्य नहीं खोऊंगी. मम्मी से बात करने के बाद मैं अपनी जबान पर और भी नियंत्रण रखना सीख गई थी, क्योंकि उस अनुभव ने मुझे सिखा दिया था कि गुस्से में इनसान कई गलत शब्द बोल जाता है जिस से बाद में शर्मिंदगी होती है जबकि जीवन में ऐसे कई पल आए जहां मुझे समीर की अतिव्यस्तता पर बहुत गुस्सा आया था और हजार कोशिशों के बावजूद मुझे लगता था मैं फट पड़ूंगी.

ऐसे समय में मेरी कोशिश होती कि समीर से मेरा सामना न हो. वैसे भी मैं ने सारा जीवन भरी ससुराल में बिताया था जहां वैसे भी हर बात बोलने से पहले तोलनी पड़ती है वरना हर बात का उलटा मतलब आसानी से निकाला जा सकता है. मैं ने घर की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी. मांबाबूजी की देखभाल, सुमित और जया की फरमाइशें, दोनों भाभीभाभी करते नहीं थकते थे. समीर घर की तरफ से बिलकुल बेफिक्र हो कर अपने काम में दिन पर दिन और व्यस्त होता गया. अब उस की गिनती शहर के जानेमाने डाक्टर के रूप में होती थी. नया अस्पताल बन रहा था, जिसे बनाना हम दोनों का एक सपना था.

दोनों बच्चों यश और सुरभि के बाद तो मैं घनचक्कर बनी रहती और फिर समय बीतने के साथ, समीर के पास इतनी फुर्सत भी नहीं रही कि मेरे साथ बैठ कर कभी मेरी बात सुने या अपनी कहे. शादी से पहले मैं मम्मी को देख कर सोचा करती थी कि अगर पापा बिजी रहते हैं तो मम्मी की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है, क्योंकि उन्हें मां और बाप दोनों का रोल प्ले करना चाहिए और मैं अपने बच्चों के साथ इसी सोच पर चली थी. मैं उन के साथ न तो इतनी सख्त थी कि वे अपने ही घर में परायापन महसूस करते और न इतनी नरम कि वे बदतमीज और गुस्ताख बन जाएं. यश सुरभि से 2 साल बड़ा था, उस के सैटल होने में अभी समय था, सुरभि का एक बहुत अच्छा रिश्ता आया तो हम सब ने हां कर दी. अब कुछ ही हफ्तों में उस की शादी होने वाली थी.

मैं ने एक रात को देर तक सुरभि के कमरे की लाइट जलती देखी तो मैं उठ कर गई. देखा, सुरभि बहुत उदास सी खिड़की पर खड़ी थी. कुछ ही दिनों बाद विदा होने वाली अपनी बेटी की उदासी ने मुझे भी उदास कर दिया था. मैं उस के पास जा कर खड़ी हो गई और पूछा, ‘क्या हुआ बेटा, क्या बात है?’ सुरभि बोली, ‘मम्मी, पापा एक जरूरी ट्रिप से बाहर जा रहे हैं. कहा तो उन्होंने यही है कि शादी से पहले आ जाऊंगा, लेकिन मुझे पता है वह इस बार भी हमेशा की तरह समय पर नहीं आएंगे. बस, यही सोच रही थी कि काश, जितने दिन मेरी शादी के रह गए हैं, पापा कम से कम वे दिन मेरे साथ बिता लें.’

मैं उसी समय समीर के पास पहुंची जो सोने के लिए बिस्तर पर लेटा हुआ था. पहली बार उस के थके होने का खयाल किए बिना मैं ने पूछा, ‘अगर शादी तक तुम नहीं आ पाए तो?’ समीर ने हैरानी से कहा, ‘क्यों नहीं आऊंगा? मेरी बेटी की शादी है.’

और इस समय मैं अपनेआप से किया हर वादा भूल गई. मेरी सहनशक्ति जवाब दे गई थी. वे सारी शिकायतें जो काफी समय से मैं ने अपने अंदर दबा कर रखी थीं, सब मुंह पर आ गईं. पुरानी से पुरानी और छोटी से छोटी बात. ‘दोनों बार डिलीवरी के समय भी तुम ने यही कहा था. बहुत बड़ा सेमिनार है. बस, 2 दिन में आ जाऊंगा लेकिन तुम नहीं आ पाए थे. बस, आ कर सौरी बोल दिया था. हमेशा सबकुछ मैं ने अकेले संभाला है. तुम ने कभी सोचा, मुझे कौन संभालेगा. तुम अब भी नहीं आ पाओगे. वहां कई काम निकल आएंगे. तुम ने मुझे अपने ही घर में खो दिया है और तुम्हें पता तक नहीं है.’

सुरभि का कमरा बराबर में ही था. शोर सुन कर वह दौड़ी चली आई. उसे देख कर भी मैं अपने पता नहीं कबकब के गिलेशिकवे दोहराती रही और फिर खुद ही रोने लगी. इतने में यश की आवाज आई, ‘पापा, अमेरिका से डा. जौन का फोन है.’

यश के आवाज लगाने पर समीर तो हक्काबक्का सा कमरे से निकल गया, लेकिन मेरे लिए पानी का गिलास लिए खड़ी सुरभि मुझे कहने लगी, ‘सारी गलती आप की है, मम्मी. इन सब बातों की जिम्मेदार आप ही हैं. आज जो हुआ वह तो एक दिन होना ही था. आप ने पापा को आज कितना सुनाया, वह शहर के प्रसिद्ध डाक्टर हैं, आप को उन की मजबूरियां भी तो समझनी चाहिए. नहीं, मम्मी, आप को पापा से ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए थीं आज,’ और वह गिलास रख कर रोती हुई चली गई.

कितनी देर तक मैं कमरे में सुन्न मस्तिष्क ले कर बैठी रही. 24 साल पहले अपने मांबाप के लिए मैं ने यही सोचा था कि वे लाइफ में बैलेंस नहीं रख सके. मेरी नानी ठीक कहती थीं कि हर इनसान दुनिया को अपनी नजर से देखता है. सारा जीवन मैं ने खुद से लड़ते हुए बिताया था कि मुझे अपनी मम्मी जैसा नहीं बनना है, मगर आज मेरी बेटी ने मुझे वहीं खड़ा कर दिया जहां 24 साल पहले मैं अपनी मम्मी को खड़ा देखती थी लेकिन मेरे पास अभी भी समय था. मैं सब ठीक करने की फिर कोशिश करूंगी. यह सोच कर मैं कमरे से बाहर आ गई जहां समीर फोन पर बात कर रहा था, ‘मैं नहीं आ सकता, जौन. मेरी बेटी की शादी है. हां, मेरी पत्नी सब संभाल लेगी लेकिन उसे संभालने के लिए भी तो कोई होना चाहिए.’

समीर मुझ पर नजर पड़ते ही मुसकरा दिया और फोन रखते ही उस ने अपनी बांहें फैला दीं और मैं एक पल की देरी किए बिना उन बांहों में समा गई. समीर की बांहों में सिमटी मैं यही सोच रही थी कि मांबाप भी इनसान होते हैं. वे अपने अनुभवों के अनुसार ही जीवन जीने की कोशिश करते हैं. सारी बात अपनीअपनी नजर की है. सुरभि की उदासी देख कर मैं समीर से उलझ गई थी और सुरभि के अनुसार मुझे समीर की परेशानियां समझनी चाहिए थीं, हमेशा की तरह कुछ कहना नहीं चाहिए था. सचमुच मेरी नानी ठीक कहती थीं कि हर इनसान जीवन को अपनी नजर से देखता है.

कठघरे में प्यार : भाग 3

“एक बात कहना चाहता हूं. आई होप, तुम मुझे गलत नहीं समझोगी,” एक दिन पिज्जा हट में बैठे हुए पिज्जा कुतरते हुए रोमेश ने इतना कहा तो रीतिका चौंकी. बेबाकी से हर बात कहने वाला इंसान आज अनुमति ले रहा था. यह सच था कि रोमेश का साथ उसे भाने लगा था और औपचारिकताएं की सीमा भी उन के बीच टूट चुकी थीं, इसलिए आप से तुम पर आ गए थे.

“बोलो ना, तुम कब से हिचकिचाने लगे?” रीतिका हंसी.

“तुम्हें ले कर एक लाइकिंग मन में हो गई है. आई नो यू आर मैरिड. एंड आई बिलीव हैप्पिली मैरिड. आई डोंट वांट एनी कमिटमैंट फ्रौम यू एंड प्लीज मुझ से दोस्ती मत तोड़ देना.”

रीतिका चुप रही. मिंट मौकटेल का सिप लेती रही.

“कुछ कहोगी नहीं?”

“क्या कहूं? कि आई ऑल्सो लाइक यू? बहुत बचकाना नहीं लगेगा क्या?” रोमेश उस की इस बात का जवाब देते, उस से पहले ही वह आगे बोल उठी, “अच्छा चलो, बचकाना लगने दो, मुझे भी तुम अच्छे लगते हो, इसीलिए मैं इस समय यहां बैठी हुई हूं, वरना केवल दोस्ती की डोर इतनी दूर तक नहीं खिंच पाती है.” और रीतिका ने रोमेश के हाथ पर अपना हाथ रख दिया. “पर प्लीज, इसे प्यार का नाम मत देना. बड़ी खतरनाक चीज है वह.” अपनी आगे झूल आई लट को पीछे धकलते हुए वह बोली.

“कोई नाम देना जरूरी तो नहीं हर रिश्ते को. एहसासों का समुद्र, बस, बहते रहना चाहिए बीच में. किसी बंधन की जरूरत नहीं,” रोमेश थोड़े पोएटिक हो गए थे.

समुद्र में कभीकभी उफान आ ही जाता है, फिर उन दोनों के बीच भी उफान आना स्वाभाविक ही था, क्योंकि दोनों एकदूसरे का साथ पाने को बेचैन रहते थे. दो दिन के लिए प्रो. विवेक शास्त्री दूसरे शहर में अपना नाटक मंचन करने गए थे. रीतिका एक रात रोमेश के घर ही रुक गई. रोमेश के स्पर्श से भीग जब वह लौटी तो मन में कोई ग्लानि नहीं थी उस के, पर एक डर था कि विवेक को पता लगा तो उन की जिंदगी में तूफान आ सकता है. जो सुख, जो पल विवेक उसे नहीं दे पाए थे, वे रोमेश के सान्निध्य ने दे दिए थे. वह हजारों बार खुद को समझा चुकी थी कि जिस्म की जरूरत क्या माने नहीं रखती…वह विवेक के प्रति पूरी तरह समर्पित है…फिर इस में गलत क्या है…

नहीं, वह इस तरह के संबंधों को न तो जस्टीफाई करना चाहती है और न ही एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन की पक्षधर है. बस, खालीपन के साथ जीतेजीते वह थक गई है. विवेक बहुत अच्छे इंसान हैं, बेहतरीन पति हैं, पर उन के आदर्शों का चोला उठातेउठाते उसे लगने लगा है कि जैसे वह भीतर ही भीतर खोखली हो रही है. जैसे वह बूढ़ी हो रही है, जैसे उस के जीने की इच्छा खत्म हो रही है. वह, बस, एक बार सिर्फ पुरुष के सान्निध्य को पूरी तरह से महसूस करना चाहती थी, जानना चाहती थी कि चरम सुख कैसा होता है, पाना चाहती थी अपने जिस्म के हर रेशे पर होंठों की तपिश, एक मजबूत आलिंगन का एहसास जो उसे तृप्त कर दे. प्यार को जताना कितना सुखद होता है…

रीतिका जब घर लौटी तो सच में तृप्त महसूस कर रही थी, सुखद अनुभूतियों के घेरों में कैद, पर उस बंधन में भी बहुत खुश.

“क्यों तुम अब नौकरी छोड़ रही हो? सब ठीक ही तो चल रहा है,” हैरान विवेक की बात का जवाब देने के बजाय रीतिका रसोई का काम करती रही.

“बोलो न, कुछ हुआ है क्या?”

“नहीं, यों ही,” रीतिका ने इतना ही कहा.

शाम को जब स्टूडैंट्स एकत्र हुए नाटक की रिहर्सल करने के लिए तो रीतिका बिस्तर पर लेटी हुई थी. ऐसा शायद पहली बार ही हुआ था. प्रो. शास्त्री इस बात से जितना हैरान थे, उतने ही बाकी सब भी थे. इला उन के कमरे में गई. अंधेरा इतना था कि उसे कुछ पल लगे यह समझने में कि रीतिका जाग रही है या सो रही है. “दीदी, क्या तबीयत ठीक नहीं है?”

“नहीं, तबीयत ठीक है, इला. बस, कुछ देर अकेले रहने का मन था. मन को भी तो विराम देना जरूरी होता है. आज कुछ बनाने का भी मन नहीं है. तुम्हें ही बनाना पड़ेगा.”

“कोई नहीं दीदी, आखिर आप से इतने दिनों से डिशेज बनाने की ट्रेनिंग ले रही हूं, उस को आज आजमा लेती हूं कि कितनी दक्ष हुई हूं,” इला ने वातावरण को हलका करने के ख़याल से मजाक किया.

इला केवल प्रो. शास्त्री की स्टूडैंट ही नहीं थी, बल्कि लगातार घर आते रहने की वजह से उस में और रीतिका के बीच एक रिश्ता सा जुड़ गया था. शेयर करने का रिश्ता…अच्छीबुरी सारी बातें. एकदूसरे की वे कब राजदार बन गई थीं, उन्हें भी पता न चला था.

“दीदी, मन को विराम देने के लिए उसे हलका करना भी जरूरी है. कह दीजिए न, जो भी है भीतर.”

रीतिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने भीतर चल रही कशमकश को इला को बताए या नहीं. पता नहीं वह कैसे रिऐक्ट करेगी. इस उम्र में उसे यह सब समझ आएगा भी कि नहीं. वह तो चाहती थी कि विवेक को ही जा कर सब बता दे क्योंकि उसे पता था वे उस की बात समझेंगे और उस की गलती, हां, दूसरों को तो यह गलती ही लगेगी, माफ कर देंगे.

इला ने रीतिका के हाथ को छुआ, मानो उसे आश्वस्त कर रही हो कि वह उसे बता सकती है. बह निकला रीतिका के भीतर से सब. यह भी कि वह कितनी तृप्त महसूस कर रही है.

इला ने लाइट औन कर दी. दरवाजे के पास कोई खड़ा था सफेद कुरतेपाजामे में. कोल्हापुरी चप्पलों से उस ने पहचान लिया.

प्रो. शास्त्री लड़खड़ाते कदमों से बाहर आए. यह क्या हो गया, कैसे माफ कर सकते हैं वे रीतिका को इस बात के लिए. नहीं, कभी नहीं. किसी और पुरुष से संबंध बनाए और वह इस एहसास में डोल रही है खुशी से…

इला उन के पीछेपीछे उन के कमरे तक आ गई. एक सन्नाटा सा हर ओर पसर गया था.

“अब मैं इस के साथ नहीं रह पाऊंगा. इतना प्यार करने पर भी मेरे साथ ऐसा किया. अब तो अच्छा है कि मैं जहर खाकर मर जाऊं. कितनी जिल्लत की बात है. अच्छा होगा कि वही यह घर छोड़ कर चली जाए…” प्रो. शास्त्री बारबार यही कह रहे थे.

“इस का मतलब आप रीतिका दीदी से प्यार नहीं करते? आप ने ही तो प्यार की नई परिभाषा दी है. आप ही तो कहते हैं कि प्यार का मतलब होता है अपने जीवन की सारी समस्याओं, सारी परेशानियों और दुख में एकदूसरे का साथ देना, एकदूसरे की गलतियों को माफ करना, उसे सपोर्ट करना और सहयोग देना. बताइए आप रीतिका दीदी से प्यार करते हैं कि नहीं?”

इला का सवाल सुन प्रो. शास्त्री सकते में आ गए. उन्हें लगा कि जैसे उन के आइडियलिज्म के परखच्चे उड़ गए हैं. कहीं गहरे जमीं सोच की जड़ें उन के भीतर भी कब्जा जमाए हुए हैं और शायद बरसों से इसी सच को गहराती रही हैं कि रोमियो-जूलियट, हीर-रांझा, शीरीं-फरहाद और लैला-मजनूं का प्यार सच्चा था. उन्हें लगा कि रोमियो-जूलियट, हीर-रांझा, शीरीं-फरहाद और लैला-मजनूं के प्यार ने आज उन्हें कठघरे में ला कर खड़ा कर दिया है. या शायद, प्यार को ही उन्होंने कठघरे में ला कर खड़ा कर दिया है.

औरतों की चिंता छोड़ बढ़ रही ज्यादा बच्चे पैदा करने की मांग

दुनिया भर में जनसंख्या घट रही है. कुछ देशों में हालात खतरनाक स्तर पर पहुंच रहे हैं. इस वजह से अलगअलग देशों में समयसमय पर यह मांग उठती रहती है कि औरतें ज्यादा बच्चे पैदा करें. ताजा चिंता रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने व्यक्त की है, उन्होंने औरतों से अपील की है कि ‘वह कम से कम 7-8 बच्चे पैदा करें . यह कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि पुराने जमाने में ऐसा ही होता था. यह काफी अच्छा था. इसी परंपरा को बरकरार रखना चाहिए.’ पुतिन ने कहना है कि बड़ा परिवार महज समाज की नींव नहीं बल्कि एक आदर्श जीवन का तरीका है.

इस के पीछे की वजह को रूस और यूक्रेन को माना जा रहा है. इस जंग में बड़ी तादाद में रूसी सैनिक मारे जा रहे हैं. रूस में लड़के सेना में जाने से बच रहे हैं. इसलिए ज्यादा लोगों की जरूरत पड़ रही है, जिस की वजह से पुतिन औरतों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं. रूस मे कई सालों से बर्थ रेट में कमी आ रही है. यूक्रेन और रूस के दरमियान यह जंग तकरीबन डेढ़ साल से जारी है. रिपोर्ट के मुताबिक रूस के 50 हजार सैनिक मारे गए और तकरीबन 900,000 लोगों ने देश छोड़ दिया है.

रूस की ज्यादातर आवाम अपने घर छोड़ने पर मजबूर थी, क्योंकि पुतिन ने जंग में सैनिक की कमी पड़ने के वजह से तीन लाख फोर्स तैयार करने का ऐलान किया था. पुतिन ने रूस की औरतों से अपील कर कहा है कि हमारा पहला लक्ष्य देश की आबादी को बढ़ाना है. रूस की आबादी में पिछले कई दशकों से कमी हो रही है. जिसे बेहतर करने के लिए पुतिन औरतों से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अपील कर रहे हैं. रूस की सरकार ने इस के लिए अहम मदद देने को भी कहा है. यहां तक की बड़े परिवार को जमीन देने का भी वादा किया.

इस के बाद भी वहां की लड़कियां और औरतें ज्यादा बच्चे पैदा करने को तैयार नहीं हैं. असल में पुतिन की चिंता परिवार और औरतें नहीं है. उन की चिंता युद्ध है. युद्ध में लड़ने के लिए सिपाही चाहिए. रूस में लड़के सेना में जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं इसलिए वह जनसंख्या बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं. जनसंख्या की परेशानी केवल रूस के सामने ही नहीं है. देश की सब से बड़ी आबादी वाला चीन भी इस से परेशान है. आंकड़ों के अनुसार चीनी लोगों की संख्या पिछले वर्ष की तुलना में 850,000 कम हो कर 1.4118 अरब हो गई. इस की जन्म दर कई वर्षों से धीमी हो रही थी. चीन की जनसंख्या 60 वर्षों में पहली बार गिरी है.

भारत में भी ज्यादा बच्चों की मांग

भारत में भी लोग बच्चे कम पैदा कर रहे हैं. भारत में भी प्रजनन दर यानि टोटल फर्टिलिटी रेट में पिछले कुछ सालों में गिरावट आई है. इस के परिणाम 30-40 साल में देखने को मिलने लगेंगे. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के ताजा आंकड़े बताते हैं कि भारत में सभी धर्मों और जातीय समूहों में कुल प्रजनन दर या फर्टिलिटी रेट में कमी आई है. इस सर्वे के अनुसार 2015-2016 में जहां फर्टिलिटी रेट 2.2 थी, वहीं 2019-2021 में यह घटकर 2.0 पहुंच गई. टोटल फर्टिलिटी रेट में कमी का मतलब है कि दंपती औसतन 2 बच्चे पैदा कर रहे हैं.

अब संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं. इस का प्रमुख कारण आर्थिक दबाव के साथसाथ कामकाजी दंपतियों के लिए बच्चों की देखरेख सही से न कर पाना होता है. कम बच्चे पैदा होने का कारण लड़कियों की शादी की उम्र में बढ़ोतरी हो गई है. शादी के बाद वहीं गर्भ निरोध का प्रयोग बढ़ा है. जिन धर्मं और जातियों में गरीबी ज्यादा है और शिक्षा का स्तर खराब हैं, वहां ज्यादा बच्चे पैदा हो रहे हैं. शहरों में फर्टिलिटी रेट 1.6 है तो गांवों में यह 2.1 पाई गई है. यही नहीं सर्वे में मुसलमानों में भी फर्टिलिटी रेट में काफी कमी दिखी है. 1950 के दशक में भारत की टोटल फर्टिलिटी रेट लगभग 6 थी. जहां महिलाएं शिक्षित हैं, वहां उन के बच्चे कम हैं.

1979 में चीन अपने देश मे ‘एक बच्चा’ पैदा करने की नीति बनाई. यह करीब 30 साल तक चली. चीन की फर्टिलिटी रेट 2.81 से घट कर 2000 में 1.51 हो गई. इस से चीन के लेबर मार्केट पर बड़ा प्रभाव पड़ा. भारत में 2050 के आसपास इस तरह के हालात दिखने लगेंगे.
भाजपा के सांसद साक्षी महाराज ने कहा था कि हिंदू औरतें कम से कम 4 बच्चे पैदा करें. इस तरह के बयान दूसरे हिंदूवादी नेताओं के भी आते रहते हैं. इस तरह भारत में भी औरतों से कहा जा रहा है कि वह ज्यादा बच्चे पैदा करें. रूस में पुतिन को सेना के लिए सिपाही चाहिए जबकि भारत में पूजापाठी वर्ग को यह एक कमाई का जरिया दिख रहा है.

भारत में जैसे ही बच्चा गर्भ में आता है ‘गर्भ संस्कार’ से पूजा शुरू हो जाती है. इस के साथ ही साथ अगर बच्चे का जन्म खराब ग्रह नक्षत्र में हो गया है तो उस को सही करने के लिए पूजा होती है. ‘गोद भराई’ की रस्म बच्चे के पेट में आते ही होती है. अब बच्चा खराब नक्षत्र में पैदा न हो इस के लिए पहले पंडित से सही समय की गणना करा कर डाक्टर से कहा जाता है कि वह प्रसव इस सही नक्षत्र में कराएं.

बच्चा पैदा होने के बाद ‘जन्मोत्सव’ के नाम पर पूजा होती है. 6 दिन होने पर ‘छठी’ और 12 दिन होने पर ‘बारहीं’ होती है. जब बच्चे को पहली बार अन्न खिलाया जाता है तो ‘अन्न प्राशन’ का आयोजन होता है. पंडितों के साथ ही साथ किन्नरों की भी कमाई होती है.

बच्चे खासतौर पर लड़के के पैदा होने पर जन्मोत्सव अधिक बड़ा हो जाता है. पूजापाठ और चढ़ावा बढ़ जाता है. कट्टरवादी लोग जब बच्चे अधिक पैदा करने की बात कर रहे होते हैं तो उन का मकसद होता है कि लोग लड़के ज्यादा पैदा करें. पुतिन के लिए लड़के ही सेना में लड़ने का काम करेंगे और भारत में पूजापाठ करने वालों को भी तभी चढ़ावा ज्यादा मिलेगा जब लड़के पैदा होंगे. यह लोग एक तरफ तो औरतों को बच्चा पैदा करने की मशीन बनाना चाहते हैं दूसरी तरफ यह भी चाहते हैं कि लड़कियां कम पैदा हो. यह लोग औरतों से दो तरह का भेदभाव कर रहे हैं.

प्रौपर्टी हथियाने के चक्कर में कामवाली बन गई घरवाली

गाजियाबाद के थाना मुरादनगर पुलिस ने अवैध रूप से संपत्तियों पर कब्जा कराने वाले गैंग का खुलासा किया है. गैंग के मास्टरमाइंड सचिन ने एक बुजुर्ग महिला डाक्टर सुधा सिंह के घर प्रीति नाम की एक लड़की घरेलू कामकाज के लिए रखवाई थी. सचिन ने पहले डा. सुधा सिंह से जानपहचान बढ़ाई और उस के बाद प्रीति को उन के घर काम के लिए रखवा दिया.बाद में उस ने घर के लोगों को बताए बिना उस कामवाली की शादी बुजुर्ग महिला के मंदबुद्धि बेटे शिवम से करवा दी.

बुजुर्ग महिला की मौत के बाद कामवाली ने घर की बहू और मालकिन होने का दावा करते हुए जब शादी के सुबूत दिए तो मृतक महिला की बेटी आकांक्षा सिंह सकते में आ गई. उस का भाई शिवम तो मंदबुद्धि था, परिवार में कोई इस शादी के बारे में जानता तक नहीं था. बुजुर्ग महिला के पास करोड़ों की संपत्ति थी जिस पर मेड अपना हक जाता रही थी. उस को उस घर में मेड के तौर पर रखने वालों की तरफ से मृतक महिला की बेटी को धमकियां मिलने लगीं.

जब मामला पहुंचा पुलिस के पास

ऐसे में जब मामला पुलिस के पास पहुंचा और जांच पड़ताल हुई तो पता चला कि अवैध रूप से करोड़ों की संपत्ति हथियाने के लिए जिस मेड की शादी मंदबुद्धि लड़के से करवाई गई उस के पीछे पूरा गैंग काम कर रहा था.जांच में पुलिस को पता चला कि मेड का काम करने वाली आरोपी महिला प्रीति मूल रूप से सोनीपत की रहने वाली है, जिस ने पहले भी 3 फर्जी शादियां की हुई हैं. आपराधिक प्रवृत्ति की यह महिला गैंग के साथ लंबे समय से जुड़ी है. सचिन और प्रीति को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है.

महानगरों में ही नहीं बल्कि अब छोटे शहरों में भी घरों में मेड रखने का चलन है.पहले कामवाली औरतें घर के आसपास के इलाके से ही होती थीं और लोगों को उन के बारे में पूरी जानकारी होती थी. मगर अब बड़े शहरों में कामवाली बाइयां प्लैसमेंट एजेंसियों के माध्यम से भी रखवाई जा रही हैं.

प्लैसमेंट एजेंसियां एकमुश्त ₹40-50 हजार ले कर 3-5 सालों के लिए घरेलू कामकाज के लिए लड़कियों को रखवाते हैं. अधिकांश लडकियां झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों से होती हैं. एजेंसियां दावा करती हैं कि इन लड़कियों का पूरा पुलिस वैरीफिकेशन करवाया गया है, मगर यह सच नहीं होता.

प्लैसमेंट ऐजेंसी की मिलीभगत

कीर्ति नगर में रहने वाली पायल आहूजा की मां का ऐक्सीडैंट होने के कारण पायल को घर के काम के लिए मेड रखनी पड़ी, जो उन्होंने प्लैसमेंट एजेंसी के जरिए हायर की. पायल वर्किंग थी, इसलिए मां की देखभाल और घर के काम के लिए उन को फुल टाइम नौकर की जरूरत थी. उन्होंने एक प्लैसमेंट एजेंसी से बात की और अपनी जरूरत बताई.

प्लैसमेंट एजेंसी ने 5 साल के लिए एक लड़की उन के वहां भेज दी. इस के लिए एजेंसी ने पायल से ₹25 हजार लिए. इस के अलावा हर महीने ₹10 हजार मेड को भी देने थे. उस का खानापीना, कपड़े, दवाई, फोन रिचार्ज इत्यादि का जिम्मा मालिक का था. उस मेड ने पायल के घर पर 8 महीने काम किया.जब उस के हाथ अच्छा पैसा जमा हो गया तो एक दिन वह पायल के औफिस जाने के बाद घर की बहुमूल्य चीजें और पायल के अच्छे सूट व कौस्मेटिक्स 3 बैगों में भर कर रफूचक्कर हो गई. पायल ने एजेंसी को फोन किया, पुलिस में कंप्लेंट दो मगर आज तक झारखंड की उस लड़की का कुछ पता नहीं चला.बाद में एजेंसी वाले ने पायल पर ही आरोप लगाने शुरू कर दिए कि उस ने लड़की को गायब करवा दिया.

कहीं का नहीं छोड़ा

शाइनी आहूजा का किस्सा लोग भूल नहीं सकते.मेड के चक्कर में फिल्मी जगत के इस उभरते सितारे ने अपना पूरा भविष्य ही खराब कर लिया. पत्नी के बाहर जाने के बाद मेड के साथ उस के शारीरिक संबंधों ने अंततः शाइनी को कहीं का नहीं छोड़ा.

कामवाली बाई से जुड़ी ऐसी अनेक कहानियां समाज में हैं जिन के चलते परिवार तबाह हो रहे हैं। ग्रामीण पृष्ठभूमि से महानगरों में काम के लिए आने वाली जवान लड़कियां यहां की चकाचौंध देख कर मुग्ध हो जाती हैं. कुछ पैसा हाथ में आते ही वह शहर के रंग में जल्दी रंग जाती हैं.

भड़कीले कपड़े, नकली ज्वैलरी, मेकअप की परतें चढ़ा कर जब ऐसी लड़कियां मालकिन की अनुपस्थिति में घर के काम करती हैं तो साहब की नजरों में जल्दी चढ़ती हैं.घरवाली अगर वर्किंग है और साहब अगर घर में रहते हैं तो कामवाली को घरवाली की जगह लेते देर नहीं लगती. कुछ ऐसे संबंध छिपे तौर चलते रहते हैं तो कुछ जाहिर हो जाते हैं, जिस के चलते परिवार में झगड़े होते हैं, तलाक होते हैं.

रहें सावधान

जब किसी औरत को काम पर रखें तो उस से उस के आधार कार्ड की एक प्रति जरूर मांग लें.भले ही वह किसी प्लैसमेंट एजेंसी के माध्यम से आई हो अथवा आप ने खुद रखी हो. घर में किसी भी महिला या नौकर को काम पर रखने से पहले उन की पूरी तरह पड़ताल जरूर करें.उन के पते और पहचान के कागजात में आधार कार्ड जरूर देखें और इन कागजात की एक फोटो कौपी अपने रिकौर्ड में जरूर रखें.

जब तक आप उन के व्यवहार से सुनिश्चित न हो जाएं, तब तक अपनी कीमती चीजों की जिम्मेदारी उस को न सौंपे. जैसे पैसे, जेवर, कपड़े और बच्चे की जिम्मेदारी. जिस पर आप को विश्वास न हो उसे आप काम पर न रखें क्योंकि आप उस पर विश्वास नहीं कर पाएंगे, मन में संदेह बना रहेगा। न आप सुखी रहेंगे और न दुखी रहेंगे, बस तनाव में बने रहेंगे.

यह सुनिश्चित करें कि लड़की अधिक समय तक आप की गैरहाजिरी में आप के पति के पास न रहे. अगर आप 8 घंटे औफिस में हैं तो बीचबीच में कामवाली से अचानक वीडियो कौल पर बात करें. चपल, चंचल और तीखे नैननक्श वाली लड़कियों को काम पर रखने से बचें.

जब प्रिय की ‘पौलिटिक्स’ मन भाए तो ही शादी के लिए ‘हां’ करें

भिन्न राजनैतिक विचारों या विचारधारा के चलते देश में अपवाद स्वरूप ही अलगाव या तलाक के मामले सामने आते हैं. इस का यह मतलब नहीं कि पतिपत्नी के बीच सियासी मतभेद नहीं होते बल्कि होता यह है कि विवाद या बहस की स्थिति में पतिपत्नी में से कोई एक पक्ष या दोनों ही जल्द इसे खत्म करने की कोशिश करते हैं लेकिन अपने पीछे हटने का अफसोस, घुटन या खीझ उन्हें सालते रहते हैं.

26 वर्षीय रुता दुधागरा गुजरात के सूरत शहर के वार्ड नंबर 3 से आम आदमी पार्टी से पार्षद हैं. उन्हें निगम चुनाव में रिकौर्ड 54,754 वोट मिले थे और उन्होंने भाजपा उम्मीदवार को 34,000 से भी बड़े अंतर से पटखनी दी थी. रूता के पास कोई राजनैतिक अनुभव नहीं था उन्होंने कुछ शौकिया और कुछकुछ कर गुजरने की गरज से राजनीति शुरू की थी. आप और अरविंद केजरीवाल से प्रभावित इस सुंदर और आकर्षक युवती को वोटर्स ने हाथोंहाथ लिया था तो इस की एक और अहम वजह उन का आईटी इंजीनियर होना भी थी.

लेकिन यह सियासी कामयाबी उन की घरगृहस्थी और दाम्पत्त्य तोड़ने वाली साबित हुई. रूता की शादी चुनाव से 3 साल पहले पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर चिराग दुधागरा से हुई थी. चिराग दिलोदिमाग से भाजपाई है चुनाव के कुछ दिनों बाद ही उस ने रूता पर दबाब बनाना शुरू कर दिया कि वह आप छोड़ भाजपा में शामिल हो जाए. बकौल रूता इस बाबत चिराग को करोड़ों की पेशकश हुई थी लेकिन मैं किसी भी कीमत पर अपनी पार्टी नहीं छोड़ सकती थी क्योंकि मेरी प्रतिबद्धताएं आप और उस की नीतियों के साथ थीं.

कहना और सोचना आसान है कि यह एक असफल पति की कुंठा और सफल पत्नी की अति महत्वाकांक्षा रही होगी कि दोनों में तलाक की नौबत आ गई लेकिन यह पूरा सच नहीं है बकौल. रूता वह भाजपा ज्वाइन करने तैयार नहीं हुई तो चिराग ने उसे मारनापीटना शुरू कर दिया जिस के चलते उन्होंने अलग होने का फैसला कर लिया. चिराग इस पर और आक्रामक हो उठा और उस ने रूता का लेपटाप और पहचान संबंधी अहम दस्तावेज भी अपने पास रख लिए.

कुछ दिनों बाद आपसी सहमति से दोनों का तलाक हो गया लेकिन इस के लिए रूता को चिराग को 7 लाख रुपए नकद और 90 ग्राम के सोने के जेवर देना पड़े. इस विवाद और अलगाव को गुजरे ढाई साल से भी ज्यादा का अरसा हो गया है और यह कहने को ही सूरत और गुजरात तक सिमटा है नहीं तो सियासी मतभेद हर दूसरे कपल में हैं. कैसे हैं और नए दौर के युवा क्यों डेट के पहले अपने पार्टनर के राजनीतिक विचार भी जाननेसमझने को प्राथमिकता देने लगे हैं उस से पहले संक्षेप में यह समझ लेना जरुरी है कि दरअसल में अब महिलाओं की स्वतंत्र सोच विस्तार लेने लगी है.

महिलाओं की राजनीतिक चेतना

अब से कोई 50 साल पहले तक महिलाओं की अपनी कोई स्वतंत्र राजनीतिक सोच नहीं हुआ करती थी. और होती भी होगी तो उस के कोई माने नहीं होते थे. परिवार और समाज में उन की भूमिका बहुत सीमित थी कुल जमा वे एक देह भर होती थीं जिस का काम बच्चे पैदा करना होता था.

70 के दशक से महिलाओं का बड़े पैमाने पर शिक्षित होना और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना शुरू हुआ. इस के बाद से उन की राजनीतिक चेतना विकसित होना शुरू हुई जो अब इस मुकाम तक तो आ गई है चिराग जैसे पति उन्हें जबरिया अपनी सोच की पार्टी में लाने प्रताड़ित करने से नहीं चूकते.

यानी वह दौर गया जब महिलाएं पिता और पति के कहने पर वोट डालती थीं. रूता जैसी महिलाएं अपनी राजनीतिक विचारधारा पर इतनी अडिग हैं कि उन्हें अपने कुंठित और जिद्दी पति को छोड़ देना बेहतर लगने लगा है. अच्छा तो यह है कि यह रोग अभी संक्रामक नहीं हुआ है लेकिन कल को हो जाए तो बात कतई हैरानी की नहीं होगी और इस में घर तोड़ने या टूटने का दोषी अकेली महिला को ठहराना ही उन के साथ ज्यादती होगी.

इस मामले में यह कहना एकदम खारिज नहीं किया जा सकता कि अगर पत्नी भाजपाई होने तैयार नहीं थी तो पति ही आप का हो लेता. इस में कहां का पहाड़ टूट पड़ता अगर वह तैयार हो जाता तो गृहस्थी टूटने से बच जाती. लेकिन इन दोनों को ही गृहस्थी और 4 साल पुराने रोमांस से ज्यादा चिंता अपनी अपनी विचारधारा की थी. हर कोई जानता है कि आप और भाजपा की जन्मपत्री का एक गुण भी नहीं मिलता है इसलिए इन दोनों का अहम अड़ गया जो स्वाभाविक भी था.

राजनातिक आरक्षण से महिलाएं सक्रिय हुईं तो पुरुषों की खींची लक्ष्मण रेखा खत्म हो रही है हालांकि अभी भी पार्षद पति और सरपंच पति जैसे शब्द और संबोधन व्यंगात्मक रूप से आम हैं जिन के तहत चुनी गई महिला दर्शनीय हुंडी होती है. उन के हिस्से का सारा काम उन के पति ही करते हैं यह कितना गलत और कितना सही है इस पर बहस की तमाम गुंजाइशें मौजूद हैं.

अब मुद्दा यह है

लेकिन अब बहस का मुद्दा यह होता जा रहा है कि अगर पतिपत्नी के राजनीतिक विचार पूरब पश्चिम और उत्तर दक्षिण जैसे हों तो क्या वैवाहिक जीवन कलहपूर्ण और बोझिल हो जाता है. इस सवाल का जवाब में ही निकलता है. जबाब तो इस दिलचस्प सवाल का भी हां में ही मिलता है कि शादी करने जा रहे युवाओं को डेट पर अपने पार्टनर के राजनीतिक विचार भी जान लेना चाहिए. ऐसा हो भी रहा है फिर भले ही वह लोगों की नजरों और जानकारी में बड़े पैमाने पर न आता हो.

पिछले दिनों 5 राज्यों के विधानसभी चुनाव के दौरान डेटिंग एप बम्बल ने आंकड़े देते हुए बताया था कि 41 फीसदी भारतीय डेटर्स का कहना है कि ऐसा साथी जिस की कोई राजनीतिक सोच है और वह वोट देता है उन के लिए मायने रखता है. 21 फीसदी लोग ऐसे साथी को पसंद करते हैं जो सामाजिक कार्यों में भागीदारी करते हैं. 38 फीसदी लड़कियां ऐसे साथी तलाशती हैं जिन के मूल्य भी समान हों.

एक और डेटिंग एप टिंडल के मुताबिक भारतीय युवा डेटिंग में भी राजनीतिक सोच को महत्व दे रहे हैं. पहली डेटिंग के दौरान उन की बातचीत का महत्वपूर्ण हिस्सा राजनीति होता है. वे एकदूसरे से राजनीति पर बातचीत कर रहे हैं और विचार न मिलने पर ब्रेकअप भी कर रहे हैं. टिंडर के एक सर्वे के मुताबिक 60 फीसदी भारतीय युवाओं का मानना है कि उन के पार्टनर की राजनीतिक सोच कैसी है यह उन के लिए महत्व रखता है.

बम्बल की इंडिया कम्युनिकेशंस की निदेशक समर्पिता समदर के मुताबिक डेट करने वाले भारतीय आजकल ऐसे साथी चुन रहे हैं जिन के पार्टनर की प्राथमिकता और मूल्य सामान हों. टिंडर इंडिया की कम्युनिकेशंस डायरैक्टर अहाना धर की माने तो युवा भारतीयों ने पारंपरिक डेटिंग मान्यताओं को अब पीछे छोड़ दिया है और वे ऐसी चीजें देख रहे हैं जिन में दोनों एकदूसरे की पसंद को पसंद कर रहे हैं.

बेंगलुरु की रिलेशनशिप कोच राधिका मोह्तो के मुताबिक अगर कोई अपनी राजनीतिक विचारधारा में कट्टर है तो वह अच्छा साथी नहीं हो सकता. बिलाशक राधिका एक जटिल बात को बहुत आसान शब्दों में कहती हैं और इस के कई शीर्ष उदाहरण भी उपलब्ध हैं जिन का लघु संस्करण चिराग साबित हुआ जिस ने पत्नी छोड़ दी लेकिन कट्टरता नहीं छोड़ी.

जरुरी है पौलिटिकल डेट

पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी और इस के बाद की डेट पर युवा आमतौर पर एकदूसरे को समझने जो बातें करते हैं वे जौब, सेलरी, कम्पनी, शौक, सैक्स और रोमांस के अलावा शादी के तौरतरीके और एक फ्लेट और एक बच्चा प्लान करने तक सिमटी नहीं रही गई हैं. अब वे एकदूसरे के राजनातिक विचार भी जानने लगे हैं जिस से उन का स्वभाव बहुत स्पष्ट रूप से समझ आए और यह तय किया जा सके कि बंदे या बंदी से कितनी पटरी बैठेगी.

धर्म, रिश्तेदारी, समाज और दीगर मामलों पर तालमेल बैठाना अब अपेक्षाकृत आसान हो चला है, भोपाल की एक 24 वर्षीय युवती समीक्षा जैन कहती हैं लेकिन राजनितिक समझ इन सब चीजों का मिक्श्चर्र होती है. इस से संपूर्ण व्यक्तित्व समझने में आसानी हो सकती है. मसलन कोई युवक अगर कट्टर भाजपाई है तो वह अपनी पार्टनर से मुसलमानों से नफरत करने की स्वभाविक अपेक्षा रखेगा.

अगर पार्टनर इस से सहमत नहीं होती तो उन के बीच समझिए असहमति की शुरुआत हो चुकी है. अगर यह जिद या आग्रह बढ़ता है तो वह अलगाव पर जा कर ही खत्म होगा, ऐसी संभावना ज्यादा है फिर कोई युवती क्यों यह रिस्क उठाएगी कि बहुत कुछ दूसरी मेचिंग्स होते हुए भी उसे ही चुने.

कुरेदने पर समीक्षा थोड़ा खुल कर बताती है जो एक तरह से राधिका महतो का ही समर्थन लगता है कि कट्टरता आज के सभी युवाओं को रास नहीं आती है. उन का नजरिया इस मसले पर थोड़ा उदार है लेकिन इस का यह मतलब नहीं कि वह कांग्रेस से या दूसरे भाजपा विरोधी क्षेत्रीय दलों की समर्थक है पर होगा यह कि उस का पार्टनर अपने पूर्वाग्रहों के चलते मतलब यही निकालेगा. इसलिए राजनातिक सोच को ठोक बजा कर आगे की सोचना ज्यादा बेहतर है.

यानी लड़ाई यहां भी कट्टरवाद और उदारवाद की दिखती है जो अमेरिका में 50 के दशक से रिपब्लिकन्स और डैमोक्रेट्स के बीच देखने में आ रही है. ताजा उदाहरण साल 2016 का है जब वेकफील्ड रिसर्च में यह उजागर किया गया था कि डोनाल्ड ट्रम्प के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद 10 में से 1 जोड़े ने अपने सियासी मतभेदों के चलते रिश्ते खत्म कर लिए थे.

इसी तर्ज पर अब से सौ साल पहले जरमन तानाशाह हिटलर के दौर में भी कपल्स में बड़े पैमाने पर अलगाव हुआ था. आमतौर पर हिटलर और उस के यहूदी विरोधी नाजी राष्ट्रवाद को पसंद करने वाले पुरुष अपनी पार्टनर से भी यही उम्मीद रखते थे जो अगर पूरी नहीं होती थी तो हिटलर में आस्था की गाज रिश्ते पर टूटती थी.

इंदिरा बनाम मोदी

प्रसंगवश पूरी दुनिया में पतिपत्नी के बीच अलगाव बड़े पैमाने पर तभी देखने में आया जब तानाशाही या दक्षिणपंथ हावी हुआ. हमारे देश में इंदिरा गांधी के दौर में पतिपत्नी के बीच विवाद तो नहीं होते थे लेकिन मतभेद जरुर परिवारों में पैदा हुए थे. अधिसंख्यक महिलाएं उदारवादी इंदिरा गांधी को चाहती थी जो पुरुषों खासतौर से हिंदू महासभाइयों और जनसंघियों को रास नहीं आता था.

इस की वजह यह थी कि इंदिरा गांधी अपने उदार और कथित धर्म निरपेक्ष विचारों के प्रति ज्यादा कट्टर होती जा रहीं थीं. दक्षिण भारत में तो वे इंदिराम्मा के नाम और पहचान से देवी की तरह पूजी जाने लगीं थी.

राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के लिए यह और दिलचस्पी की बात हो सकती है कि आपातकाल के बाद भी कांग्रेस को दक्षिण भारत से लोकसभा की खासी सीटें मिली थीं क्योंकि वहां का हिंदुत्व उत्तर भारत के हिंदुत्व से बहुत अलग है. यह बात नरेंद्र मोदी के दौर में भी समझ आ रही है कि इसी पृथक हिंदुत्व के बने रहने के कारण भाजपा दक्षिण में कुछ खास हासिल नहीं कर पाती.

इन्हीं नरेंद्र मोदी को ले कर घरों में खासतौर से पतिपत्नी में खटपट आम है लेकिन वह अंदरूनी है. वे तय है रिश्ते की अहमियत और जरूरत समझते हैं. उत्तर भारत के अधिकांश सवर्ण पुरुष मोदी के हिन्दू राष्ट्रवाद से सहमत हैं लेकिन महिलाएं पूरी तरह नहीं हैं. हालांकि वे पुरुषों से ज्यादा धार्मिक और कर्मकांडी हैं.

अमेरिका की तरह कभी इस पर कोई शोध हो तो सच शायद सामने आए कि सभी सवर्ण महिलाओं के रोल मौडल मोदी क्यों नहीं बन पा रहे. यहां, यह याद रखना जरुरी है कि इन महिलाओं को मोदी से उजागर तौर पर कोई शिकायत भी नहीं है.
मुमकिन है इस की वजह उन का बिना ठोस कारण पत्नी को त्याग देना रहा हो जिस की उपस्थिति धार्मिक आयोजनों में सनातन धर्म के मुताबिक पति के साथ अनिवार्य होती है.

वह इंसान से बन गया कुत्ता

घटना हैरान करने वाली है. आखिर कोई आदमी कुत्ता कैसे बन सकता है और भला किसी का इंसान से कुत्ता बनने का सपना कैसे हो सकता है? लेकिन ऐसा हुआ है.

एक शख्स कुत्ता बन गया और उस की पूरी हरकतें भी बदल गईं. दरअसल जापान के एक शख्स ने 18 लाख रुपए खर्च कर खुद को कुत्ते में बदल लिया है, जिसे देख लोग हैरानी जता रहे हैं. आदमी से कुत्ता बने शख्स का कहना है कि यह उस का सपना था, इसलिए उस ने इतने रुपए बिना किसी परवा के खर्च कर दिए.

यह दुनिया अजीबोगरीब लोगों से भरी पड़ी है. कोई भी शख्स हो, आजकल हर कोई कुछ नया करने के चक्कर में किसी भी हद तक जाने को तैयार है, फिर चाहे उस के लिए उसे कोई भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े.

जापान में कुत्ते में तबदील हुआ शख्स का नाम टोको बताया जा रहा है. इस के लिए टोको ने 22 हजार डौलर यानी करीब 18 लाख रुपए खर्च किए हैं. अब कुत्ते की तरह दिखने वाले शख्स को देख लोग हैरानी जता रहे हैं.

जेपपेट नाम की कंपनी ने की मदद

जेपपेट नाम की एक कंपनी ने इस जापानी शख्स को कुत्ते के रूप को बनाने में मदद की है. कंपनी को ऐसा करने में करीब 40 दिन लगे. इस शख्स ने कोल्ली ब्रीड के कुत्ते का रूप लिया है, जिस को ले कर कंपनी के प्रवक्ता ने कहा है कि इस शख्स को कोल्ली कुत्ते की तर्ज पर बनाया गया है.

यह 4 पैरों पर चलने वाले असली कुत्ते जैसा दिखता है. कोल्ली एक मध्यम आकार का कुत्ता है. नर का वजन लगभग 30 से 45 पाउंड होता है और कंधों तक लगभग 20 इंच लंबा होता है. मादाएं थोड़ी छोटी होती हैं. इस शख्स को देख कर कहीं से भी ऐसा नहीं लगता कि उस ने कौस्ट्यूम पहना है क्योंकि उसे हूबहू कुत्ते जैसा ही बनाया गया है.

पहली बार टोको कुत्ता बन कर सड़क पर टहलने निकला तो लोग हैरानी में पड़ गए. पहले तो किसी को कुछ सम?ा नहीं आया लेकिन जब पता चला तो लोग हैरान रह गए.

टोको का यह सपना था

आदमी से कुत्ता बने इस जापानी शख्स ने बताया है कि यह उस की जिंदगी का सपना था. इस शख्स ने अपने यूट्यूब चैनल पर ‘आई वांट टू बी एन एनिमल’ नाम से एक वीडियो अपलोड किया. इस चैनल के करीब 31,000 सब्सक्राइबर हैं और वीडियो को 1 मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है.

वीडियो में टोको को गले में पट्टा डाल कर सैर के लिए ले जाते हुए देखा जा सकता है. मानव कुत्ता पार्क में अन्य कुत्तों को सूंघते हुए और जानवरों की तरह फर्श पर लोटते हुए देखा गया.

पहली बार बताया सपना

इस से पहले टोको ने मीडिया को बातचीत में बताया कि यह उस के बचपन का शौक था, लेकिन वह नहीं चाहता था कि इस शौक के बारे में उस के आसपास के लोगों को पता चले. अगर लोगों को पता चलता तो उन्हें लगता कि यह अजीब है कि कुत्ता बनना चाहता है. इसी कारण से वह अब अपना असली चेहरा नहीं दिखा सकता.

सर्दी आते ही मेरे बाल फ्रिजी होने शुरू हो गए हैं, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 22 साल की है. वैसे तो मेरे बाल सिल्की हैं लेकिन जैसेजैसे सर्दी का मौसम नजदीक आ रहा है, मेरे बाल फ्रिजी होने शुरू हो गए हैं. कंडीशनर लगाती हूं, फिर भी फ्रिजीनैस दूर नहीं होती. आप ही बताएं कि क्या करूं?

जवाब

आजकल के मौसम में गीले बालों के साथ बाहर न जाएं. न ही गीले बालों के साथ सोएं. ऐसा करने से बाल डैमेज हो जाते हैं. माइक्रो फाइबर टौवेल सूती तौलिए की तुलना में अधिक पानी सोखती है. ऐसे में आप बालों को धोने के बाद उन को माइक्रोफाइबर की मदद से सुखा सकते हैं.

आप तकिए का कवर सिल्क या साटन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इस से बाल टूटेंगे नहीं. बालों पर हेयर सीरम या मौइश्चराइजर हेयर औयल लगाएं. इस से बाल हाइड्रेटेड रहेंगे, उन्हें फ्रिजी बालों से लड़ने की शक्ति मिलेगी.

बालों को कंडीशन करने से बालों के क्यूटिकल्स स्मूद होते हैं, नई फील होती है और सोते समय बाल फ्रिजी होने से बचते हैं. ऐसे में आप हेयर मसाज, प्री या पोस्ट कंडीशनिंग आदि को हेयर केयर में शामिल करें.

मगर आप उलझे या फ्रिजी बालों में शैंपू करेंगी तो बाल टूटेंगे, झड़ेंगे. इसलिए धोने से पहले हमेशा बालों को अच्छी तरह से कौम्ब कर लेना चाहिए.

अपने खाने में अधिक से अधिक आयरन, मिनरल्स, ओमेगा 3 फैटी एसिड आदि का सेवन करें और एंटीऔक्सीडैंट से भरपूर चीजों का सेवन करें.

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