दिग्गज भाजपा नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण अडवाणी को देश का सर्वोच्च पुरस्कार भारत रत्न देने पर उम्मीद के मुताबिक प्रतिक्रिया नहीं हुई. विपक्ष के तमाम नेता ईडी से बचने के जुगाड़ और भागादौड़ी में लगे हैं. ऐसे में वे इस फैसले पर प्रतिक्रियाहीन बने रहने में ही अपना भला महसूस रहे हैं. लेकिन जिस जनता के बिहाफ पर भारत रत्न और पद्म पुरस्कार सहित दूसरे छोटेबड़े सरकारी पुरस्कार व सम्मान दिए जाते हैं उस जनता के दिलोदिमाग पर भी भारत रत्न के ऐलान का कोई खास असर नहीं हुआ.

इस घोषणा के 11 दिनों पहले जब बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा हुई थी तब जरूर थोड़ी हलचल हुई थी. लेकिन अधिकतर लोगों को खासतौर से युवाओं के जेहन में यह सवाल आया था कि अब ये कर्पूरी ठाकुर कौन हैं और इन्होंने देश के लिए ऐसा क्या किया है कि उन्हें यह सब से बड़ा सम्मान प्रदान किया जा रहा है.

यह घोषणा बिहार और उत्तर प्रदेश के समाजवादी दलों और कुछ पिछड़ों को ही थोड़ी रास आई थी लेकिन लालकृष्ण आडवाणी के बारे में गिनाने के लिए हिंदूवादियों के पास इतना ही है कि उन की कोशिशों के चलते राममंदिर बन पाया और देश हिंदू राष्ट्र होने की तरफ बढ़ रहा है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस पुरस्कार को देने की घोषणा के साथ वजह बताने की कोशिश भी सोशल मीडिया प्लेटफौर्म एक्स पर की थी कि एल के आडवाणी का देश के विकास में अहम योगदान रहा है. यह योगदान क्या था, किसी की समझ नहीं आया, न ही इस बाबत नरेंद्र मोदी ने कोई उदाहरण पेश किया.

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