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मेरा पढ़ने में मन नहीं लगता है, आप ही बताइएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 17 साल का लड़का हूं. मेरा पढ़ने में मन नहीं लगता है. मेरे घर वाले चाहते हैं कि मैं कोई छोटीमोटी दुकान खोल लूं. लेकिन मैं कोई बड़ा काम करना चाहता हूं. मुझे सही सलाह दें?

जवाब

देखिए, समय के साथसाथ बहुत चीजें बदल रही हैं. जरूरी नहीं कि जो बच्चा पढ़ाई में अच्छा नहीं या उस का पढ़ाई में मन नहीं लगता, वह जीवन में कुछ नहीं कर सकता. आज अनेक क्षेत्र हैं जहां महारत हासिल कर बच्चे अपना उज्ज्वल भविष्य बना रहे हैं.

आप के कुछ न कुछ शौक तो होंगे ही. आप उस पर फोकस कर के उसे अपना प्रोफैशन बना सकते हैं. आज के समय में अपने पैशन को प्रोफैशन बना कर बच्चे हजारोंलाखों कमा रहे हैं. हम आप को कई औप्शन बताते हैं जैसे कि फोटोग्राफी इस में किसी डिग्री की जरूरत नहीं है, आप इस प्रोफैशन में जा कर हजारों कमा सकते हैं. मौडलिंग / एक्टिंग भी अच्छा प्रोफैशन है. बस, यहां धोखेबाजों से बच कर रहें. इस फील्ड में कोर्स कर अपना स्किल बढ़ा सकते हैं. यदि आप फिटनैस फ्रीक हैं तो जिम ट्रेनर बन सकते हैं.

इस के अलावा अगर आप डांस का शौक रखते हैं तो फिर तो कई औप्शन आप के पास हैं. डांस क्लासेस ले सकते हैं, कोरियोग्राफर बन सकते हैं. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म, यूट्‌यूब के जरिए भी अपना डांस पैशन को मनी मेकिंग बना सकते हैं. मेकअप आर्टिस्ट भी आज के टाइम में बहुत अच्छा फील्ड है.अब आप देखिए आप क्या शौक रखते हैं और उस शौक के जरिए काम कर सकते हैं.

रात में जल्दी सोने से मिलते हैं ये 7 फायदे

रात में खाना ठीक समय पर खाना बेहद जरूरी है. आम तौर पर भाग दौड़ भरी माहौल में ये कर पाना काफी मुश्किल हो गया है पर हमेशा सेहतमंद रहने के लिए आपको अपने खाने के समय पर खासा ध्यान रखना होगा. इस खबर में हम आपको बताएंगे कि रात में जल्दी खाना क्यों फायदेमंद है.

  • सीने में नहीं होगी जलन

रात का खाना खाने के तुरंत बाद लोग बेड पर सोने चले जाते हैं. ऐसा करने से गैस की समस्या बढ़ती है.

  •  वेट कंट्रोल होता है

वजन कम करने के लिहाज से रात में जल्दी खाना जरूरी है. रात में जल्दी खा के आप टहले जरूर. ऐसा करने से आपका खाना अच्छे से पचेगा और फैट भी इक्कठ्ठा नहीं होगा.

  • आएगी अच्छी नींद

पूरे दिन थकने के बाद अगर आपको सही समय पर खाना मिल जाए तो आपको सोने के लिए भी पर्याप्त समय मिलेगा और सुबह में आप फ्रेश महसूस करेंगे.

  • रहेंगे ज्यादा एनर्जेटिक

समय से खाना खाने और समय से नींद लेने से आप सुबह में खुद को ज्यादा एनर्जेटिक महसूस करेंगे.

  • पेट रहेगा हल्का

समय पर खाना खाने से खाने को पचने का पूरा समय मिलता है. खाने के बाद टहलने से खाना अच्छे से पचता है और पेट हल्का रहता है. दूसरे दिन पेट हल्‍का रहता है और उसमें गैस की शिकायत नहीं होती.

  • दिल रहेगा स्‍वस्‍थ

जब खाना अच्छे से हजम होगा तो फैट और कौलेस्ट्रौल की परेशानी नहीं होगी और आपका दिल स्वस्थ रहेगा.

  • पेट की सभी बीमारियां दूर होती है

सही समय पर खाना खाने से जब वह पूरी हरह से हजम हो जाता है, तो उससे आपका पेट हमेशा सही रहता है. पेट में दर्द, गैस और अपच की समस्‍या नहीं रहती.

सुहानी गुड़िया : वो वहां किसके इंतजार में खड़ी थी ?

आज मेरा जी चाह रहा है कि उस का माथा चूम कर मैं उसे गले से लगा लूं और उस पर सारा प्यार लुटा दूं, जो मैं ने अपने आंचल में समेट कर जमा कर रखा था. चकनाचूर कर दूं उस शीशे की दीवार को जो मेरे और उस के बीच थी. आज मैं उसे जी भर कर प्यार करना चाहती हूं.

मुझे बहुत जोर की भूख लगी थी. भूख से मेरी आंतें कुलबुला रही थीं. मैं लेटेलेटे भुनभुना रही थी, ‘‘यह मरी रेनू भी ना जाने कब आएगी. सुबह के 10 बजने को हैं, पर महारानी का अतापता ही नहीं. यह लौकडाउन ना होता तो ना जाने कब का इसे भगा देती और दूसरी रख लेती. जब इसे काम की जरूरत थी तो कैसे गिड़गिड़ा मेरे पास आई थी और अब नखरे देखो मैडम के.’’

अरविंद सुबहसुबह मुझे चाय के साथ ब्रेड या बिसकुट दे कर दवा खिलाते और खुद दूध कौर्नफ्लैक्स खा कर अस्पताल चले जाते हैं. डाक्टरों की छुट्टियां कैंसिल हैं, इसलिए ज्यादा मरीज ना होने पर भी उन्हें अस्पताल जाना ही पड़ता है.

मैं डेढ़ महीने से टाइफाइड के कारण बिस्तर पर पड़ी हूं. घर का सारा काम रेनू ही देखती है. मैं इतनी कमजोर हो गई हूं कि उठ कर अपने काम करने की भी हिम्मत नहीं होती. पड़ेपड़े न जाने कैसेकैसे खयाल मन में आ रहे थे, तभी सुहानी की मधुर आवाज मेरे कानों में पड़ी, ‘‘मां आप जाग रही हैं क्या? मैं आप के लिए चाय बना लाऊं.’’

मैं ने कहा, ‘‘नहीं, चाय और दवा तो तेरे बड़े पापा दे गए हैं, पर बहुत जोर की भूख लगी है. रेनू भी ना जाने कब आएगी. कितना भी डांट लो, इस पर कोई असर नहीं होता.’’

सुहानी बोली, ‘‘मां, आप उस पर चिल्लाना मत, आप की तबीयत और ज्यादा खराब हो जाएगी.’’

उस ने टीवी औन कर के लाइट म्यूजिक चला दिया. मैं गाने सुन कर अपना ध्यान बंटाने की कोशिश करने लगी.

थोड़ी ही देर में सुहानी एक प्लेट में पोहा और चाय ले कर मेरे पास खड़ी थी. मैं हैरानी से उसे देख कर बोली, ‘‘अरे, यह क्या किया तुम ने, अभी रेनू आ कर बनाती ना.’’

सुहानी ने बड़े धीमे से कहा, ‘‘मां, आप को भूख लगी थी, इसीलिए सोचा कि मैं ही कुछ बना देती हूं.’’

मेरा पेट सच में ही भूख के कारण पीठ से चिपका जा रहा था, इसलिए मैं प्लेट उस के हाथ से ले कर चुपचाप पोहा खाने लगी. उस ने मुझ से पूछा, ‘‘मां, पोहा ठीक से बना है ना?’’

नमक थोड़ा कम था, पर मैं मुसकरा कर बोली, ‘‘हां, बहुत अच्छा बना है, तुम ने यह कब बनाना सीखा.’’

यह सुन कर उस की आंखों में जो संतोष और खुशी की चमक मुझे दिखी, वह मेरे मन को छू गई.

जब से मैं बीमार पड़ी हूं, मेरे पति और बच्चों से भी ज्यादा मेरा ध्यान सुहानी रखती है. मेरे कुछ बोलने से पहले ही वह समझ जाती है कि मुझे क्या चाहिए.

मुझे याद आने लगा वह दिन, जब मेरे देवरदेवरानी अपनी नन्ही सी बिटिया के साथ शौपिंग कर के लौट रहे थे. सामने से आती एक तेज रफ्तार कार ने उन की कार में टक्कर मार दी. वे दोनों बुरी तरह घायल हो गए.

देवर ने तो अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही दम तोड़ दिया था और देवरानी एक हफ्ते तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझने के बाद भगवान को प्यारी हो गई.

अस्पताल में जब अर्धचैतन्य अवस्था में देवरानी ने नन्ही सलोनी का हाथ अरविंद के हाथों में थमाते हुए कातर निगाहों से देखा तो वह फफकफफक कर रो पड़े. उन की मृत्यु के बाद लखनऊ में उन के घर, औफिस, फंड, ग्रेच्युटी वगैरह के तमाम झमेलों का निबटारा करने के लिए लगभग 2 महीने तक अरविंद को लखनऊ में काफी भागदौड़ करनी पड़ी. सारी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद सलोनी की कस्टडी का प्रश्न उठा.

देवरानी का मायका रायबरेली में 3 भाइयों और मातापिता का सम्मिलित परिवार और व्यवसाय था. वे चाहते थे कि सलोनी की कस्टडी उन्हें दे दी जाए. उन के बड़े भैया बोले, ‘‘सलोनी हमारी बहन की एकमात्र निशानी है, हम उसे अपने साथ ले जाना चाहते हैं.’’

इस पर अरविंद ने कहा कि सलोनी मेरे भाई की भी एकमात्र निशानी है. वहीं अरविंद के पिताजी बोले, ‘‘सलोनी कहीं नहीं जाएगी. मेरे बेटे अनिल की बिटिया हमारे घर में ही रहेगी.”

इस पर देवरानी का छोटा भाई बिगड़ कर बोला, ‘‘मैं अपनी भांजी का हक किसी को नहीं मारने दूंगा. आप लोग मेरे बहनबहनोई की सारी संपत्ति पर कब्जा करना चाहते हैं, इसीलिए सलोनी को अपने पास रखना चाहते हैं.’’

इस विषय पर अरविंद और मांबाबूजी की उन से बहुत बहस हुई. अरविंद और बाबूजी जानते थे कि उन लोगों की नजर मेरे देवर के लखनऊ वाले मकान और रुपयोंपैसों पर थी. सलोनी के नानानानी बहुत बुजुर्ग थे, वे उस की देखभाल करने में सक्षम नहीं थे. अंत में अरविंद ने सब को बैठा कर निर्णय लिया कि अम्मांबाबूजी बहुत बुजुर्ग हैं और गांव में सलोनी की पढ़ाईलिखाई का उचित इंतजाम नहीं हो सकता, इसलिए सलोनी मेरे साथ रहेगी. अनिल का लखनऊ वाला मकान सलोनी के नाम पर कर दिया जाएगा और उसे किराए पर उठा दिया जाएगा. उस का जो भी किराया आएगा, उसे सलोनी के अकाउंट में जमा कर दिया जाएगा.

अनिल के औफिस से मिला फंड वगैरह का रुपया भी सलोनी के नाम से फिक्स कर दिया जाएगा, जो उस की पढ़ाईलिखाई और शादीब्याह में खर्च होगा.

अरविंद के इस फैसले से मैं सहम गई. उस समय तो कुछ न कह पाई, पर अपने 2 छोटे बच्चों के साथ एक और बच्चे की जिम्मेदारी उठाने के लिए मैं बिलकुल तैयार नहीं थी. अभी तक जिस सहानुभूति के साथ मैं उस की देखभाल कर रही थी, वह विलुप्त होने लगी.

मैं ने डरतेडरते अरविंद से कहा, ‘‘सुनिए, मुझे लगता है कि आप को सलोनी को उस के नानानानी को दे देना चाहिए. नानानानी और मामा के बच्चों के साथ वह ज्यादा खुश रहेगी.’’

अरविंद शायद मेरी मंशा भांप गए और मेरे कंधे पर सिर रख कर रो पड़े. कातर नजरों से मेरी ओर देखते हुए बोले, ‘‘रंजू, अनिल मेरा एकलौता भाई था. वह मुझे इस तरह छोड़ जाएगा, यह सपने में भी नहीं सोचा था. सलोनी मेरे पास रहेगी तो मुझे लगेगा मानो मेरा भाई मेरे पास है.’’

मैं ने उन्हें जीवन में पहली बार इतना मायूस और लाचार देखा था. वह बच्चों की तरह बिलखते हुए बोले, ‘‘रंजू, मेरे मातापिता और सलोनी को अब तुम्हें ही संभालना है.’’

उन को इतना व्यथित देख मैं ने चुपचाप नियति को स्वीकार कर लिया. बाबूजी इस गम को सह न पाए. हार्ट पेशेंट तो थे ही, महीनेभर बाद दिल का दौरा पड़ने से परलोक सिधार गए.

बाबूजी के जाने के बाद तो अम्मां मानो अपनी सुधबुध ही खो बैठीं, न खाने का होश रहता, न नहानेधोने का. हर समय पूजापाठ में व्यस्त रहने वाली अम्मां अब आरती का दीया भी ना जलाती थीं. वे कहतीं, ‘‘बहू, अब कौनो भगवान पर भरोसा नाही रही गओ है, का फायदा ई पूजापाठ का जब इहै दिन दिखबे का रहै.’’

उन्हें कुछ भी समझाने का कोई फायदा नहीं था. वे अंदर ही अंदर घुलती जा रही थीं. एक बरस बाद वे भी इस दुनिया को छोड़ कर चली गईं.

अरविंद अपने काम में बहुत व्यस्त रहने लगे. सामान्य होने में उन्हें दोतीन वर्ष का समय लग गया.

नन्ही सलोनी मुझे मेरे घर में सदैव अवांछित सदस्य की तरह लगती थी. उस के सामने न जाने क्यों मैं अपने बच्चों को खुल कर न तो दुलरा ही पाती और न ही खुल कर गले लगा पाती थी. मैं अपने बच्चों के साथसाथ उसे भी तैयार कर के स्कूल भेजती और उस की सारी जरूरतों का ध्यान रखती, पर कभी गले से लगा कर दुलार ना कर पाती.

समय कब हथेलियों से सरक कर चुपकेचुपके पंख लगा कर उड़ जाता है, इस का हमें एहसास ही नहीं होता. कब तीनों बच्चे बड़े हो गए और कब मैं सलोनी की बड़ी मां से सिर्फ मां हो गई, मुझे पता ही ना चला. मैं उसे कुछ भी नहीं कहती थी, पर सुमित और स्मिता को जो भी इंस्ट्रक्शंस देती, वह उन्हें चुपचाप फौलो करती. उन दोनों को तो मुझे होमवर्क करने, दूध पीने और खाने के लिए टोकना पड़ता था, पर सलोनी अपना सारा काम समय से करती थी.

मुझे पेंटिंग्स बनाने का बड़ा शौक था. घर की जिम्मेदारियों की वजह से मैं अपने इस शौक को आगे तो नहीं बढ़ा पाई, पर बच्चों के प्रोजैक्ट में और जबतब साड़ियों, कुरतों और कपड़ों के बैग वगैरह पर अपना हुनर आजमाया करती थी.

जब भी मैं कुछ इस तरह का काम करती, तो सुहानी भी अपनी ड्राइंग बुक और कलर्स के साथ मेरे पास आ कर बैठ जाती और अपनी कल्पनाओं को रंग देने का प्रयास करती. यदि कहीं कुछ समझ में ना आता, तो बड़ी मासूमियत से पूछती, ‘‘बड़ी मां, इस में यह वाला रंग करूं अथवा ये वाला ज्यादा अच्छा लगेगा.’’ उस की कला में दिनोंदिन निखार आता गया. विद्यालय की ओर से उसे सभी प्रतियोगिताओं के लिए भेजा जाने लगा और हर प्रतियोगिता में उसे कोई ना कोई पुरस्कार अवश्य मिलता. पढ़ाई में भी अव्वल सलोनी अपने सभी शिक्षकशिक्षिकाओं की लाड़ली थी.

जब कभी सुमित, स्मिता और सुहानी तीनों आपस में झगड़ा करते, तो सुहानी समझदारी दिखाते हुए उन से समझौता कर लेती. मैं बच्चों के खेल और लड़ाई के बीच में कोई दखलअंदाजी नहीं करती थी.

डेढ़ महीने पहले जब डाक्टर ने मेरी रिपोर्ट देख कर बताया कि मुझे टाइफाइड है तो सभी चिंतित हो गए. सुमित, स्मिता और अरविंद हर समय मेरे पास ही रहते और मेरा बहुत ध्यान रखते थे, पर धीरेधीरे सब अपनी दिनचर्या में बिजी हो गए.

अभी परसों की ही बात है, मैं स्मिता को आवाज लगा रही थी, ‘‘स्मिता, मेरी बोतल में पानी खत्म हो गया है, थोड़ा पानी कुनकुना कर के बोतल में भर कर रख दो.”

इस पर वह खीझ कर बोली, ‘‘ओफ्फो मम्मा, आप थोड़ा वेट नहीं कर सकतीं. कितनी अच्छी मूवी आ रही है, आप तो बस रट लगा कर रह जाती हैं.’’

इस पर सुहानी ने उठ कर चुपचाप मेरे लिए पानी गरम कर दिया. मेरी खिसियाई सी शक्ल देख कर वह बोली, ‘‘मां क्या आप का सिरदर्द हो रहा है, लाइए मैं दबा देती हूं.”

मैं ने मना कर दिया. सुमित बीचबीच में आ कर मुझ से पूछ जाता है, ‘‘मां, आप ने दवा ली, कुछ खाया कि नहीं वगैरह.”

स्मिता भी अपने तरीके से मेरा ध्यान रखती है और अरविंद भी, किंतु सलोनी उस के तो जैसे ध्यान में ही मैं रहती हूं.

आज मुझे आत्मग्लानि महसूस हो रही है. 11वीं कक्षा में पढ़ने वाली सलोनी कितनी समझदार है. मैं सदैव अपने घर में उसे अवांछित सदस्य ही मानती थी, कभी मन से उसे बेटी न मान पाई. लेकिन वह मासूम मेरी थोड़ी सी देखभाल के बदले में मुझे अपना सबकुछ मान बैठी. कितने गहरे मन के तार उस ने मुझ से जोड़ लिए थे.

मुझे याद आ रहा है उस का वह अबोध चेहरा, जब सुमित और स्मिता स्कूल से आ कर मेरे गले से झूल जाते और वह दूर खड़ी मुझे टुकुरटुकुर निहारती तो मैं बस उस के सिर पर हाथ फेर कर सब को बैग रख कर हाथमुंह धोने की हिदायत दे देती थी.

उस ने मेरी थोड़ी सी सहानुभूति को ही शायद मेरा प्यार मान लिया था. अपनी मां की तो उसे ज्यादा याद नहीं, पर मुझे ही मानो मां मान कर चुपचाप अपना सारा प्यार उड़ेल देना चाह रही है.

आज मेरा जी चाह रहा है कि मैं उसे अपने गले से लगा कर फूटफूट कर रोऊं और अपने मन का सारा मैल और परायापन अपने आंसुओं से धो डालूं. मैं उसे अपने सीने से लगा कर ढेर सारा प्यार करना चाह रही हूं. मैं उस से कहना चाहती हूं, ‘‘मैं तेरी बड़ी मां नहीं सिर्फ मां हूं. मेरी एक नहीं दोदो बेटियां हैं. अपने और सलोनी के बीच जो कांच की दीवार मैं ने खड़ी कर रखी थी, वह आज भरभरा कर टूट गई है. सलोनी मेरी गुड़िया मुझे माफ कर दो.‘‘

Taapsee Pannu के साथ क्यों कोई बड़ा एक्टर काम नहीं करना चाहता ? जानें वजह

Taapsee Pannu : बॉलीवुड एक्ट्रेस ”तापसी पन्नू” को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है. उन्होंने बहुत ही कम समय में फिल्म इंडस्ट्री में अपनी एक अलग जगह बनाई हैं और इसी वजह से देश-विदेश में उनके लाखों चाहने वाले भी हैं. एक्ट्रेस ”तापसी” ने बड़े पर्दे पर वकील से लेकर साइंटिस्ट, हॉकी प्लेयर और शार्पशूटर जैसे दमदार किरदार निभाए हैं. इसके अलावा फिल्मों में उनको सशक्त महिलाओं की भूमिका निभाने वालीं अभिनेत्री के तौर पर भी देखा जाता है. इसी वजह से बॉलीवुड में उन्हें महिला प्रधान फिल्में करने वाली अदाकारा के रूप में भी जाना जाता हैं.

लेकिन क्या आपने कभी इस बात पर गौर दिया है कि उनकी ज्यादातर फिल्मों में उनके (why no big actor wants to work with Taapsee Pannu) अपोजिट कोई बड़ा अभिनेता नहीं होता है. आखिर क्यों कोई भी बड़ा एक्टर उनके साथ काम नहीं करना चाहता है ? अगर नहीं. तो आइए जानते हैं उस वजह के बारे में जिसके कारण बॉलीवुड का कोई भी बड़ा एक्टर ”तापसी पन्नू” के साथ काम नहीं करना चाहता हैं.

तापसी ने खुद किया था खुलासा

दरअसल एक बार एक इंटरव्यू में खुद अभिनेत्री ”तापसी पन्नू” (Taapsee Pannu) ने इस बात का खुलासा किया था कि क्यों कोई भी बड़ा मेल एक्टर उनके साथ काम नहीं करना चाहता है. इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि, ‘अब तक उन्होंने क्यों किसी बड़े एक्टर के साथ काम नहीं किया है ?’ तो इस पर एक्ट्रेस ने कहा, ‘करियर के शुरुआत से ही मुझे किसी भी बड़े स्टार के साथ काम करने का मौका नहीं मिला. इसलिए मेरे पास सिर्फ ऐसी ही फिल्में करने का विकल्प रह गया.’ इसी के आगे ”तापसी” ने कहा, ‘वैसे आज भी मेरे पास ज्यादा विकल्प नहीं हैं. इसके अलावा मैंने कभी भी किसी से नहीं कहा है कि मैं एक हीरो से छोटा रोल नहीं करूंगी जबकि कई मेल अभिनेताओं ने मुझसे खुद कहा है कि वो उन फिल्मों में काम नहीं करना चाहते हैं, जिसमें एक हीरो का रोल किसी भी महिला किरदार से कम हो या महिला का किरदार बहुत स्ट्रांग हो या दूसरे किरदारों खासकर हिरो के रोल पर हावी हो. ये ही संघर्ष मेरी हर फिल्म के साथ होता है क्योंकि मेरी ज्यादातर फिल्मों में महिला का किरदार सशक्त होता है. जो कि उनके हिसाब से एक पुरुष अभिनेताओं के लिए खतरा है.’

तापसी पन्नू ने बड़े एक्टर पर साधा निशाना

इसी के आगे ”तापसी पन्नू” (Taapsee Pannu) ने ये भी कहा था कि, ‘अभिनेत्रियों के बीच महिला प्रधान फिल्मों को लेकर होड़ कम है क्योंकि कई अभिनेत्रियां फिल्मों का भार अपने कंधों पर नहीं लेना चाहती हैं. अगर फिल्में नहीं चली तो फ्लॉप का बिल उनके नाम पर ही फटेगा और इसी वजह से कई अभिनेत्रियां ऐसी फिल्मों में काम करने से बचती हैं.’

इसके अलावा एक्ट्रेस का ये भी मानना है कि, ‘उनको फिल्म इंडस्ट्री के दोगलेपन और मिसोजिनिस्ट (Misogynist) रवैये पर बहुत ज्यादा दुख होता है. क्योंकि जहां अभिनेत्रियां आसानी से पुरुष प्रधान फिल्मों का हिस्सा बनने के लिए तैयार हो जाती हैं तो वहीं जब चीजें बदल रही हैं तो एक मेल एक्टर घबरा रहे हैं.’ इसी के आगे उन्होंने कहा, उन अभिनेताओं को लगता है कि महिला प्रधान फिल्मों का हिस्सा बनकर उनकी स्टार पावर में कमी आ जाएगी. हालांकि कई मौको पर ये ही अभिनेता महिला-पुरुषों के बीच समानता की बात करते हैं लेकिन वहीं दूसरी तरफ महिला प्रधान फिल्मों का हिस्सा नहीं बनते.’

इन फिल्मों में तापसी ने किया है काम

आपको बताते चलें कि अभी तक के अपने करियर में एक्ट्रेस ”तापसी पन्नू” (Taapsee Pannu) ने कई फिल्मों में काम किया है. जैसे कि बदला, पिंक, सांड़ की आंख और मुल्क आदि-आदि जिन सभी में उन्होंने सशक्त महिला का किरदार निभाया है और इसमें से ज्यादातर फिल्में दर्शकों के दिलों पर एक अलग छाप छोड़ने में कामयाब भी रही हैं.

संतानसुख के लिए क्या मुझे आईवीएफ तकनीक की मदद लेनी चाहिए ?

सवाल

मेरी उम्र 27 और पति की 30 साल है. हमारी शादी को 5 साल हो चुके हैं. हम दोनों की सारी जांचें नौर्मल आई हैं. पति की जांच में उन के शुक्राणुओं की संख्या भी लगभग 90 मिलियन आई है. बावजूद इस के हम संतानसुख से वंचित हैं. क्या हमें आईवीएफ तकनीक की मदद लेनी चाहिए?

जवाब

आप को घबराने की आवश्यकता नहीं है. चूंकि आप के पति के शुक्राणुओं की संख्या ठीक है, इसलिए आप को आईयूआई तकनीक की दरकार नहीं है. लेकिन आप के लिए बढि़या विकल्प आईवीएफ तकनीक है. इस की मदद से आप संतानसुख की प्राप्ति कर सकते हैं. हां, यह ध्यान रहे कि इस तकनीक के लिए किसी अच्छे डाक्टर से ही संपर्क करें.

डायबिटीज कंट्रोल करने के लिए खाएं ये 5 फूड

डायबिटीज के रोगी को ब्लडशुगर कंट्रोल में रखने के लिए सही फूड्स का चयन करना जरूरी है. अगर नाश्ते में खास तरह के कुछ फूड्स का सेवन किया जाए तो ब्लडशुगर लैवल को नियंत्रण में रखा जा सकता है. जिसे डायबिटीज रोग हो गया, उसे जीवनभर यह रहता है. डायबिटीज की हालत में हमारा शरीर या तो पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर रहा होता है या उत्पादित इंसुलिन का रिस्पौंड नहीं दे पाता है.

मैक्स सुपरस्पैशलिटी हौस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली की डायबिटीज एजुकेटर डाक्टर मंजू पंडा कहतीं हैं, ‘‘डायबिटीज रोगियों को नियमित अंतराल में भोजन करते रहना चाहिए ताकि अचानक ब्लडशुगर में कमी न हो. इस के अलावा फाइबर और एंटीऔक्सीडैंट से भरपूर आहार का सेवन करना चाहिए. इस बात का खास ध्यान रखें कि सुबह के नाश्ते और दोपहर के लंच के बीच के टाइम, जिस को प्रीलंच कहते हैं, में हलकाफुलका कुछ खाएं.’’ वहीं, आप को अपने भोजन को डिवाइड करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि आप को अपनी डाइट में रोजाना कितनी कैलोरी लेनी है क्योंकि डायबिटिक रोगियों के लिए ज्यादा कैलोरी नुकसानदायक होती है, यह शुगर और वजन बढ़ाती है..

1.मौसमी फल : लोकल या मौसमी वे फल जो फाइबर में उच्च और ग्लाइसीमिक इंडैक्स में कम हैं, आप के ब्लडशुगर के उतारचढ़ाव को कंट्रोल करने में मदद कर सकते हैं.

2. पालक और पत्तागोभी का जूस : अकसर जूस में सब्जी या फल की फाइबर सामग्री कम हो जाती है, इसलिए इन्हें ऐसे ही खाने की सलाह दी जाती है. हालांकि, एक बार जूस पीने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन यह सुनिश्चित करें कि यह ताजा, घर का बना और नैचुरल हो. आप चाहे तो ताजे पालक के पत्तों के साथ पत्तागोभी के पत्तों को एकसाथ मिला कर, थोड़ा सा पानी डाल कर ब्लैंड कर के ऐसे ही पीने की कोशिश कर सकते हैं.

3. नट्स का मिश्रण : बादाम, कद्दू के बीज, काजू, तिल के बीज, अलसी के बीज और अखरोट को एकसाथ मिला कर आप एक होममेड नटट्रेल तैयार कर सकते हैं. आप इस को खा सकते हैं. इस बात का खास ध्यान रखें कि इस का सेवन सीमित मात्रा में ही करें.

4. टमाटर और धनिया का सलाद : यह लो कैलोरी वाला सैलेड आप के लिए दिन में ताजगी का संचार कर सकता है. आप इस सिंपल से सलाद को तब भी बना सकते हैं जब आप के पास बहुत ही कम समय हो. कटा हुआ टमाटर, कटा हरा धनिया, नीबू का रस और कालीमिर्च जैसी सभी चीजों को मिला कर इसे तैयार कर सकते हैं.

5. कैरेट स्टिक एंड हम्मस : गाजर साफ कर के छील लें, फिर इसे लंबाई में काट लें. इन्हें हम्मस (काबुली चने से तैयार एक तरह की चटनी)में डिप कर सकते हैं. यह एक लोकार्ब स्नैक का बहुत ही बढि़या विकल्प है. अगर आप को गाजर पसंद नहीं है, तो आप इस की जगह खीरे का उपयोग कर सकते हैं.

उस रात का सच

महेंद्र को यकीन था कि हरिद्वार थाने में वह ज्यादा दिनों तक थानेदार के पद पर नहीं रहेगा, इसीलिए नोएडा के थाने में तबादला होते ही उस ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन चला आया. रेल चलते ही हरिद्वार में गुजारे समय की यादें उस के सामने एक फिल्म की तरह गुजरने लगीं. दरअसल, हुआ ऐसा था कि रुड़की थाने में रहते हुए वहां के एक साधु द्वारा वहीं के लोकल नेताओं को लड़कियों के साथ मौजमस्ती कराते महेंद्र ने रंगे हाथों पकड़ा था और थाने में बंद कर दिया था.

यकीन मानिए, उन नेताओं को थाने में  लाए उसे 10 मिनट भी नहीं हुए थे कि डीएसपी साहब का फोन आ गया कि फलांफलां नेता को फौरन रिहा कर दो. महेंद्र बड़े अफसर का आदेश मानने को मजबूर था, इसलिए उसे उन नेताओं को फौरन रिहा करना पड़ा. चूंकि वे नेता सत्ताधारी दल से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने महेंद्र का तबादला हरिद्वार थाने में करा दिया. हरिद्वार थाने में कुछ दिन महेंद्र चुपचाप बैठा अपना काम करता रहा, लेकिन जब एक दिन थाने में बैठ कर वह पुरानी फाइलें देख रहा था, तभी एक फाइल पर जा कर उस की नजर रुक गई. उस ने फाइल में दर्ज रिपोर्ट पढ़ी. उस रिपोर्ट में लिखा था,  ‘गंगाघाट आश्रम में रहने वाली गंगाबाई आश्रम की तिजोरी में से 10 हजार रुपए चुरा कर भागी.’

उसी फाइल के अगले पेज पर उस आश्रम के महंत और उस के एक शिष्य का बयान था,  ‘उस रात हम दोनों साधना करने के लिए पास की पहाड़ी पर बने मंदिर में गए थे. चूंकि इस बात की जानकारी गंगाबाई को थी, इसी बात का फायदा उठा कर उस ने हमारे कमरे में से तिजोरी की चाबी चुराई और उस में रखे 10 हजार रुपए चुरा कर भाग गई. आश्रम से एक रजाई भी गायब है.’

महेंद्र ने जब यह रिपोर्ट पढ़ी, तो उसे इस में कुछ गोलमाल लगा. उस ने तभी सबइंस्पैक्टर राकेश को बुलाया और उस से पूछा,  ‘‘राकेश, गंगाघाट आश्रम में हुई चोरी की तहकीकात क्यों नहीं की गई?’’ उस ने जबाब दिया,  ‘‘सर, थानेदार साहब ने मुझ से कहा था कि आश्रम का महंत इस मामले की जांच की तहकीकात में मदद नहीं कर रहा है, इसलिए इसे ऐसे ही पड़ा रहने दो. सो, तब से यह फाइल ऐसे ही पड़ी है.’’ राकेश के जाने के बाद महेंद्र को लगा कि हो न हो, इस मामले में कुछ राज जरूर है, जो महंत छिपा रहा है. उस ने तय किया कि इस मामले की तहकीकात वह खुद ही करेगा.

इस के बाद महेंद्र ने आश्रम पर पैनी नजर रखनी शुरू कर दी. एक दिन शाम को महेंद्र गंगाघाट आश्रम के सामने वाले होटल में बैठा था. उस की नजर आश्रम के गेट पर थी. उस ने देखा कि कुछ औरतें आश्रम के अंदर गई हैं और तकरीबन एक घंटे बाद निकलीं. यह देख कर महेंद्र सोच में पड़ गया कि ये औरतें इतनी देर तक आश्रम में क्या कर रही थीं? जैसे ही वे औरतें आश्रम से बाहर निकल कर होटल के पास आईं, तभी महेंद्र ने उन में से एक औरत से पूछा,  ‘‘बहनजी, क्या आश्रम में बहुत से मंदिर हैं, जो दर्शन करने के लिए बहुत देर लगती है?’’ वह औरत हंसी और बोली,  ‘‘भैया, आश्रम में तो एक भी मंदिर नहीं है. हम तो महंतजी के पास गई थीं. वे  लाइलाज बीमारियों का इलाज भी मुफ्त में करते हैं.’’

महेंद्र ने आगे पूछा,  ‘‘बहनजी, आप इन महंतजी के आश्रम में कब से आ रही हैं?’’

वह औरत बोली,  ‘‘आज तो मैं दूसरी ही बार आई हूं, लेकिन महंतजी कहते हैं कि तुम्हारी बीमारी गंभीर है. तुम्हें ठीक होने में 4-5 महीने तो लग ही जाएंगे,’’ इतना कह कर वह औरत चली गई.

एक दिन शाम को महेंद्र ने एक पुलिस वाले को उस आश्रम के बाहर बैठा दिया और उस से कहा, ‘‘कोई औरत अंदर से बाहर आए, तो उसे ले कर तुम मेरे पास आना.’’

उस दिन रात के 8 बजे वह पुलिस वाला एक 30-32 साला औरत को ले कर महेंद्र के घर आया. महेंद्र ने उसे बैठने के लिए कहा.

‘‘क्या आप आश्रम में नौकरी करती हैं?’’ महेंद्र ने पूछा.

‘‘नहीं सर. दरअसल, मेरी शादी हुए तकरीबन 7 साल हो गए हैं और अभी तक मेरी गोद नहीं भरी है. मेरे महल्ले की एक औरत ने मुझे बताया कि तू गंगाघाट आश्रम के महंत के पास जा. कुछ ही दिनों में तेरी गोद भर जाएगी, इसलिए आज मैं पहली बार वहां गई थी.’’

महेंद्र ने उस से यह जानकारी ली और उसे इस तसदीक के साथ जाने के लिए कहा,  ‘‘मैं ने तुम से जो जानकारी ली है, यह बात तुम किसी को मत बताना. यहां तक कि महंत को भी नहीं.’’

उन दोनों औरतों से मिली जानकारी संकेत दे रही थी कि हो न हो, उस आश्रम में कोई  ‘अपराध का अड्डा’ जरूर चल रहा है. सो, महेंद्र ने गंगाघाट आश्रम में हुई चोरी की घटना की तहकीकात जोरशोर से शुरू कर दी.

एक बार जब महेंद्र इसी सिलसिले में महंत से मिलने आश्रम गया, तो उस ने उसे इस मामले पर हाथ ही नहीं रखने दिया और बोला,  ‘‘जाने भी दीजिए. 10 हजार रुपए कोई बड़ी बात नहीं है. आप तो चाय पीजिए.’’

उस की होशियारी देख महेंद्र के मन में शक और भी गहरा गया.

एक दिन रात को जब महेंद्र गश्त के लिए निकला, तो देखा कि वह महंत अपने शिष्य के साथ पहाड़ी पर जा रहा था. उस के पहाड़ी पर जाते ही महेंद्र गंगाघाट आश्रम के अंदर पहुंचा. वहां उसे भोलाराम नाम का एक आदमी मिला.

‘‘तुम यहां क्या करते हो? ’’ महेंद्र ने पूछा.

‘‘सर, आप मुझे इस आश्रम का मैनेजर भी कह सकते हैं और चौकीदार भी. सच तो यह है कि यहां का सारा काम मैं ही संभालता हूं. अब मेरी उम्र 70 पार हो चली है, इसलिए समय काटने के लिए मैं यहां रहता हूं. मैं ईमानदार आदमी हूं, इसलिए महंत ने मुझे अपने पास रखा है,’’ उस आदमी ने बताया.

‘‘तुम ईमानदार हो और सच्चे भी लगते हो. अच्छा, यह बताओं कि तुम्हारे आश्रम में रहने वाली गंगाबाई कैसी औरती थी? क्या वाकई वह चोरी कर सकती है?’’ महेंद्र ने पूछा.

वह आदमी बोला,  ‘‘सर, मैं आप से झूठ नहीं बोलूंगा. दरअसल, गंगाबाई इस आश्रम में झाड़ूपोंछे का काम करती थी. वह  ‘सुंदर’ तो थी ही, लेकिन  ‘जवान’ होने से कामकाज में बहुत तेज भी थी.

‘‘जब मैं नयानया इस आश्रम में आया, तब गंगाबाई ने ही मुझे बताया था कि महंतजी का नित्यक्रम एकदम पक्का है. वे सुबह मुझ से एक गिलास दूध मंगवाते हैं, फिर उस में अपने पास रखे काजूबदाम और अन्य मेवे मिलाते हैं और उसी का सेवन करते हैं. फिर दोपहर में केवल 2 रोटी खाते हैं. इसी तरह शाम को भी उन का यही नित्यक्रम रहता है.’’

‘‘उस दिन उस की यह बात सुन कर मुझे हंसी आ गई थी. तब गंगाबाई ने मुझ से पूछा भी था,  ‘भोला भैया, तुम्हें हंसी क्यों आई?’

‘‘सर, मुझे हंसी इसलिए आई थी कि उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया था कि एक दिन में 2-2 गिलास  मेवे वाला दूध पी कर यह महंत उसे हजम कैसे करता होगा? क्योंकि वह अपने कमरे से कभीकभार ही बाहर जाता है.

‘‘सर, गंगाबाई का पति इसी आश्रम में रहता था. मेरे यहां आने से पहले आश्रम का सारा काम वही देखता था. कुछ दिनों से मैं ने उस में एक बरताव देखा था कि वह रोजाना रात को शराब पी कर आश्रम में आने लगा था. तब मेरे मन में सवाल भी उठा था कि उस के पास शराब पीने के लिए पैसे कहां से आते हैं?

‘‘एक दिन मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने गंगाबाई से पूछ ही लिया,  ‘बहन, तुम रोजाना अपने पति को शराब पीने के लिए पैसे क्यों देती हो?’

‘‘तब वह बोली थी,  ‘भोला भैया, मेरे पति को शराब पीने के लिए पैसे मैं नहीं देती हूं, बल्कि खुद महंतजी ही देते हैं.’’’

उस दिन उस आदमी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर महेंद्र भी दंग रह गया था.

उस आदमी ने आगे बताया, ‘‘एक दिन जब रात को गंगाबाई का पति शराब पी कर आया, तब महंतजी ने उस की सरेआम पिटाई की और आश्रम के गेट से उसे बाहर धकेलते हुए कहा,  ‘तू रोजाना शराब पी कर आश्रम के नियमों को तोड़ता है. अब तू इस आश्रम में नहीं रह सकेगा. आज के बाद तू मुझे कभी अपना मुंह मत दिखाना.’

‘‘सर, उस रात उस का पति जो इस आश्रम से गया, तो आज तक उस का पता नहीं चला कि वह कहां है? जिंदा भी है या नहीं?

‘‘गंगाबाई भी अपने पति के साथ यहां से जाना चाहती थी, लेकिन उसी दिन महंत का एक शिष्य आश्रम में आया और उस ने महंतजी को कह कर उसे आश्रम से नहीं जाने दिया. महंत और उस का शिष्य रोजाना मेवे वाला दूध गंगाबाई के हाथों से पीते रहे.’’

‘‘एक दिन महंतजी ने मुझ से कहा,  ‘कुछ दिन के लिए तुम अपने ऋषिकेश वाले आश्रम जा कर रहो और वहां का इंतजाम देखो.’

‘‘सर, समय कब रुका है, जो रुकता. मैं एक महीने बाद दोबारा इस आश्रम में आ गया.

‘‘एक दिन सुबहसुबह गंगाबाई दौड़ीदौड़ी अपने कमरे से बाहर निकली और बाथरूम में जा कर उलटियां करने लगी. जब उस की इस हरकत पर महंतजी और उन के शिष्य की भी नजर पड़ी, तब शिष्य बोला,  ‘गुरुजी, कुछ गड़बड़ लगती है. गंगा सुबह से कई बार उलटियां कर चुकी है. मुझे लगता है कि वह पेट से हो गई है.’

‘‘शिष्य के मुंह से ऐसी बात सुनते ही महंत के माथे पर पसीना आ गया. वे बोले, ‘जैसेजैसे इस का पेट बढ़ता जाएगा, अपने पाप का घड़ा लोगों के सामने आने लगेगा. फिर जो लोग हमें साधुसंन्यासी मान कर पूजते हैं, वे ही हमारा मुंह काला कर के हमें सरेबाजार घुमाएंगे. अगर इस मुसीबत को हम ने जल्दी से नहीं निबटाया, तो हम निबट जाएंगे.’

‘‘सर, उस रात का सच आप को बता रहा हूं. वह अमावस की काली रात थी. जब रात को गंगाबाई उन्हें दूध देने उन के कमरे में गई, तभी उन्होंने उस के मुंह में कपड़ा ठूंसा, फिर गला दबा कर उस की हत्या कर दी और आधी रात के बाद रात के अंधेरे में  महंत के शिष्य ने उस की लाश एक रजाई में लपेटी और उसे गंगा में बहा आया.

‘‘उस के बाद उन दोनों ने तिजोरी से रुपए निकाल कर उसे खुला छोड़ दिया, ताकि  लगे कि यहां चोरी की वारदात हुई है.

‘‘सर, उस रात हुई हत्या और चोरी के बहुत से सुबूत मैं ने अपने पास महफूज रखे हैं. मेरी भी यही इच्छा थी कि साधु के रूप में छिपे इन अपराधी भेडि़यों को मैं सलाखों के पीछे देखूं, लेकिन जब आप के पहले के थानेदार ने इस केस में दिलचस्पी नहीं दिखाई, इसलिए मैं उन के सामने इन सुबूतों को नहीं लाया. अब मैं इस मामले से जुड़े सारे सुबूत आप को सौंप दूंगा.’’

‘‘अच्छा भोला भैया, यह बताओ कि यहां शाम ढले रोजाना कुछ औरतें अपनी लाइलाज बीमारी के इलाज के लिए आती हैं, जो कुछ  गोद भर जाने की चाह में. इस का क्या राज है?’’ महेंद्र ने धीरे से पूछा.

भोला बोला,  ‘‘सर, यह महंत और उस का शिष्य भोलीभाली औरतों को उन की लाइलाज बीमारी को मुफ्त में ठीक करने के बहाने यहां बुलाते हैं. तकरीबन 2 महीने तक जड़ीबूटियों के नाम पर पहाड़ी पर लगे पेड़ों की डालियों को पीस कर उन्हें दूध में पिलाया जाता है और जब वे औरतें इस महंत पर पूरा विश्वास करने लगती हैं, तब बारीबारी से, एकएक को दूध में  नशे की गोलियां मिला कर बेहोश किया जाता है और फिर ये उन के जिस्म के साथ अपनी हवस पूरी करते हैं. बेचारी इज्जत खो चुकी औरतें शर्म के मारे किसी को कुछ नहीं बतातीं और चुपचाप घर में बैठ जाती हैं.’’

‘‘लेकिन, आश्रम में गोद भरने ये औरतें किस आस पर आती हैं?’’ महेंद्र ने भोला से पूछा.

‘‘सर, यह महंत ऐसी हवा अपने बारे में फैलाता है कि गंगाघाट के आश्रम के महंत को सिद्धि प्राप्त हुई है और उन के आशीर्वाद से बांझ औरतों को भी बच्चे हो जाते हैं.

‘‘हमारा यह महंत गोद भरने की चाह रखने वाली औरतों को रात को आश्रम में बुलाता है, उन को 2-4 बार पूजापाठ और हवनों में बैठाता है, फिर एक  फल हाथ में दे कर उस के कान में धीरे से कहता है कि जब हम आदेश करें, तब इसे अपने मुंह में रखना. देखना, तुम्हारी गोद जल्दी ही भर जाएगी.

‘‘फिर उस औरत को महंत के कमरे के पास वाले अंधियारे कमरे में जाने के लिए कहा जाता है. वहां पहुंचते ही महंत का शिष्य उस औरत के कान में धीरे से कहता है, ‘आज तुम्हारी गोद भरने का  शुभ दिन है. देखना, आज चमत्कार होगा और महंतजी की कृपा से तुम्हारी गोद भर जाएगी. तुम इस फल को आंख बंद कर के खाती रहो.

‘‘जब वह औरत बिना कपड़ों में चमत्कार होने की राह देख रही होती है, तभी कभी यह महंत, तो कभी उस का शिष्य उस को उस अंधियारे कमरे में शिकार बनाते हैं. आखिर  मेवे वाला दूध कभी तो अपना असर दिखाएगा ही न?

‘‘अपनी लुटी इज्जत को ढकने के चक्कर में ऐसी औरतें इन पाखंडियों की करतूत किसी को नहीं बतातीं, इसलिए इन की यह दुकानदारी चलती रहती है.’’

‘‘अगर मैं महंत के खिलाफ ऐक्शन लूं, तो क्या तुम गवाही दोगे?’’ महेंद्र ने भोलाराम से पूछा.

‘‘सर, मैं यह सब लिख कर भी देने को तैयार हूं,’’ भोलाराम ने पूरे जोश के साथ कहा.

भोलाराम के बयान और उस के द्वारा दिए सुबूतों के आधार पर महेंद्र ने अगले ही दिन महंत और उस के शिष्य को गिरफ्तार कर लिया.

महंत और उस के शिष्य को गिरफ्तार हुए 2 घंटे भी नहीं हुए थे कि महेंद्र को आईजी और डीएसपी से संदेश मिलने शुरू हो गए कि उस महंत को तत्काल रिहा करो और उस के खिलाफ जो सुबूत है, उन्हें जला कर नष्ट कर दो.

जब महेंद्र ने आईजी साहब से कहा,  ‘‘सर, उस महंत के खिलफ मेरे पास पुख्ता सुबूत हैं.’’

तब आईजी बोले,  ‘‘मिस्टर, थोड़ी मेरी बात समझने की भी कोशिश करो. उस महंत का प्रभाव इतना ज्यादा है कि हम पर भी ऊपर से लगातार दबाव आ रहा है.’’

महेंद्र ने आईजी साहब से कहा,  ‘‘सर, मैं उन्हें रिहा नहीं कर सकता.’’

तब वे बोले,  ‘‘फिर तुम मेरा यह और्डर भी सुन लो, तुम्हारा तबादला  नोएडा थाने में किया जाता है. तुम तत्काल नोएडा थाने में जा कर मुझे सूचना दो.’’

रेल एकदम से रुक गई. मालूम करने पर पता चला कि किसी ने चेन खींची थी. रेल के रुकते ही इंस्पैक्टर महेंद्र यादों के साए से बाहर निकल कर हकीकत की दुनिया में आ गया. तब भी उस के मन में यह एकदम पक्का था कि वह किसी भी थाने मे क्यों न रहे, उस के काम करने का तरीका यही रहेगा, चाहे फिर तबादले कितने ही क्यों न होते रहें.

गलतियां सभी से होती हैं

दुलहन के जोड़े में सजी रोली बेहद ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी. वैसे तो रोली प्राकृतिक रूप से खूबसूरत थी, परंतु आज ब्यूटीपार्लर के ब्राइडल मेकअप ने उस के चेहरे पर चार चांद लगा दिया था, किंतु उस के कमनीय चेहरे पर आकुलता थी. उस की नजरें रिसेप्शन में आ रहे मेहमानों पर ही टिकी हुई थीं. उस की निगाहें बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रही थीं.

रोली को इस प्रकार परेशान देख वीर उस के हाथों को थामते हुए बोला, “क्या बात है? आर यू ओके?”

रोली होंठों पर फीकी सी मुसकान लिए बोली, “यस… आई एम ओके, परंतु थोड़ी सी थकान लग रही है.”

ऐसा सुनते ही वीर ने कहा, “पार्टी तो काफी देर तक चलेगी. तुम चाहो तो कुछ देर रूम में रिलैक्स हो कर आ जाओ.”

वीर के ऐसा कहने पर रोली रूम में चली आई और फौरन मोबाइल फोन निकाल नंबर डायल करने लगी. फोन बजता रहा, लेकिन किसी ने नहीं उठाया.रोली दुखी हो कर वहीं सोफे पर पसर गई.

उसे डौली आंटी याद आने लगी. आज वह जो भी है, उन्हीं की वजह से है वरना वह तो इस महानगरी में गुमनामी की जिंदगी जीने की ओर अग्रसर थी. वो डौली आंटी ही थीं, जिन्होंने वक्त पर उस का हाथ थाम लिया और वह उस गर्त में जाने से बच ग‌ई.

आज उस का प्यार वीर उस के साथ है. यह भी डौली आंटी की ही देने है. पर, अब तक वे आई क्यों नहीं? उन्होंने तो वादा किया था कि वे अंकल के साथ उस की शादी में जरूर आएंगी.

यही सब सोचती हुई रोली वहां पहुंच गई. अपने परिवार वालों से जिद कर वह एक सफल इंटीरियर डिजाइनर बनने का इरादा मन में ठाने जब अपने छोटे से शहर जौनपुर से दिल्ली आई थी.

यहां दिल्ली यूनिवर्सिटी में आ कर उस ने जो देखा, उसे देख वह भौंचक्की सी रह गई. यहां सभी लड़केलड़कियां बिना किसी पाबंदी के उन्मुक्त बिंदास अंदाज में खुल कर जीता देख रोली खुशी से उछल पड़ी. ऐसा उस ने पहले कभी नहीं देखा था.यहां ना तो कोई किसी को रोकने वाला था और ना ही कोई टोकने वाला, जैसा चाहो वैसा जियो.

रोली भी अब आजाद पंछी की भांति आकाश में उड़ने को तैयार थी.

वहां जौनपुर में दादी, मम्मीपापा, चाचाचाची, ताऊ यहां तक कि उस का छोटा भाई भी उस पर बंदिशें लगाता. हर छोटीबड़ी बातों के लिए उसे अनुमति लेनी पड़ती, परंतु यहां ऐसा कुछ नहीं था.

यहां रोली स्वयं अपनी मरजी की मालकिन थी. वह वो सब कर सकती थी, जो उस का दिल चाहता.

दिल्ली में आने के पश्चात रोली अपना लक्ष्य भूल यहां के चकाचौंध में खो गई. वह तो अपनी रूम पार्टनर रागिनी के संग जिंदगी के मजे लूटने लगी.

रागिनी उस से एक साल ‌सीनियर थी और हर मामले में स्मार्ट, र‌ईस लड़कों को अपनी अदाओं से रिझाना, उन्हें फांसना और उन से पैसे खर्च कराना, ये सारे हुनर उसे बखूबी आते थे, लेकिन रोली इन सब बातों से बेखबर बस रागिनी के बोल्डनेस और उस के बिंदास जीने के अंदाज की कायल थी.

रोली बिना सोचेसमझे कालेज में दिखावा और खुद को मौडल बताने के चक्कर में पैसे खर्च करने लगी. उसे इस बात का भी खयाल ना रहा कि वह एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती है, जहां पैसे हिसाब से खर्च किए जाते हैं.

अपने घर की सारी परिस्थितियों से भलीभांति अवगत होने के बावजूद रोली रागिनी के रंग में रंगने लगी. केवल अब तक वह सिगरेट और शराब से बची हुई थी, लेकिन रागिनी को बिंदास धुआं उड़ाते, कश लगाते और पी कर लहराते देख कभीकभी उस का भी मन करता, लेकिन ना जाने कौन सी बात उसे रोक लेती. इस बार पैसे खत्म होने पर जब उस ने घर पर मां को फोन किया, तो मां भरे कंठ से बोली, “रोली, देखो बेटा हम हर महीने तुम्हें जितने पैसे भेजते हैं, तुम उसी से खर्च चलाने की कोशिश करो अन्यथा तुम्हें यहां वापस आना पड़ेगा.”

मां और भी कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उन के कहने से पहले ही रोली ने फोन काट दिया. होस्टल के कमरे में आई, तो उस ने देखा कि रागिनी अपना सारा सामान समेट कर कहीं जाने की तैयारी में है. यह देख रोली बोली, “कहां जा रही हो?”

रागिनी हंसते हुए अपने दोनों हाथ रोली के कंधे पर टिकाती हुई बोली, “ऐश करने, मेरी जान.”

रोली आश्चर्य से रागिनी को देखने लगी, तभीरागनी धुआं उड़ाती हुई बोली, “नहीं समझी मेरी मोम की भोली गुड़िया, मैं सौरभ के पास जा रही हूं. अब हम दोनों साथ ही रहेंगे. उस के बाप के पास बहुत माल है. उसे उड़ाने के लिए कोई तो चाहिए ना, सो मैं जा रही हूं. वैसे भी सौरभ मुझ पर लट्टू है.”

यह सुनते ही रोली बोली, “लेकिन…”

रागिनी उसे बीच में ही टोकती हुई बोली, “लेकिन क्या…? माई स्विट हार्ट मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रही हूं. मेरी मान तो तू भी होस्टल छोड़ करबकिसी पीजी में रहने चली जा, फिर बिंदास रहना अपने वीर के साथ, समय पर होस्टल लौटने का कोई लफड़ा नहीं, अच्छा चलती हूं… फिर मिलते हैं,” कहती हुई रागिनी झूमते हुए चली गई.

रागिनी के होस्टल से चले जाने के पश्चात रोली भी कुछ दिनों में होस्टल छोड़ पीजी में डौली आंटी के यहां आ गई.

यहां आने के बाद उसे पता चला कि यहां रहना इतना आसान नहीं है. लोग डौली आंटी के बारे में तरहतरह की बातें किया करते थे. कोई उन्हें खड़ूस, कोई पागल, तो कोई उन्हें सीसीटीवी कहता, क्योंकि उन की नजरों से कुछ भी छुपना नामुमकिन था. आसपड़ोस की महिलाएं तो उन से बात करने से भी कतरातीं, सब कहतीं कि न जाने कब ये सनबकी बुढ़िया किस बात पर सनक जाए.

डौली आंटी की टोकाटाकी की वजह से कोई ज्यादा दिनों तक यहां टिकता भी नहीं था, लेकिन रोली का अब यहां रहना मजबूरी था, क्योंकि वह होस्टल छोड़ चुकी थी और सब से बड़ी बात डौली आंटी पैसे भी कम ले रही थी, यहां से कालेज की दूरी भी ज्यादा नहीं थी, जिस की वजह से बस और रिकशा के पैसे भी बच रहे थे और साथ ही साथ डौली आंटी के हाथों में वो जादू था कि वह जो भी खाना बनाती स्वादिष्ठ और लजीज होता, उस में बिलकुल मां के हाथों का स्वाद होता.

सब ठीक था, लेकिन डौली आंटी की टोकाटाकी और जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप रोली को नागवार गुजरने लगा. वह वीर के साथ भी वैसे समय नहीं बिता पा रही थी, जैसा उस ने सोचा था.
जब उस ने वीर से इस बारे में बात की, तो वह कहने लगा, “आंटी स्ट्रिक्ट है तो क्या हुआ… वह तुम्हारा भला ही चाहती है. 1-2 साल में मेरा प्रमोशन हो जाएगा. कंपनी की ओर से मुझे फ्लेट भी मिल जाएगा और तुम्हारा ग्रेजुएशन भी पूरा हो जाएगा, फिर हम शादी कर साथ रहेंगे.”

वीर से यह सब सुन रोली स्तब्ध रह ग‌ई. वह तो उस से शादी करना ही नहीं चाहती. वह तो बस वीर को अपनी खूबसूरती और मोहपाश के झूठे जाल में केवल पैसों के लिए बांध रखी थी और वह भी रागिनी के कहने पर, लेकिन अब वीर उस से शादी की सोच रहा है. यह जान कर रोली विचलित हो ग‌ई.

अपसेट रोली घर पहुंची, तो उस ने देखा कि डौली आंटी और अंकल कहीं जाने की तैयारी में हैं. उसे देखते ही आंटी बोली, “रोली बेटा मैं और अंकल एक शादी में जा रहे हैं. कल रात तक लौटेंगे. तुम अपना और घर का खयाल रखना, रात को दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लेना,” इतना कह कर वे दोनों चले गए.

परेशान रोली को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. तभी रागिनी का फोन आया.

रोली उसे फोन पर सारी बातें बता कर इस समस्या से बाहर निकलने का हल पूछने लगी, तो रागनी ने कहा, “डोंट वरी डियर, आज रात मैं तेरे रूम पर आती हूं. दोनों पार्टी करते हैं और सोचते हैं कि क्या करना है.”

रोली नहीं चाहती थी कि रागिनी आए, लेकिन वह उसे मना ना कर सकी. रागिनी शराब, सिगरेट और दो चीज पिज्जा ले कर पहुंची.

ये सब देख कर रोली चिढ़ती हुई बोली, “तू ये सब क्या ले कर आई है? आंटी को पता चल गया, तो वह मुझे निकाल देगी.”

“चिल यार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. वैसे भी आंटी तो कल रात तक लौटेंगी?” कहती हुई रागिनी एक गिलास में शराब डालती हुई धुआं उड़ाने लगी.

रोली भी वीर की बातों से परेशान तो थी ही, वह भी सिगरेट सुलगा कर पीने लगी. तभी रागिनी अपने बैग से एक छोटी सी पुड़िया निकाल कर रोली को देती हुई बोली, “इसे ट्राई कर… ये जादू की पुड़िया है. इसे लेते ही तेरी सारी परेशानी उड़नछू हो जाएगी.”

यह सुन कर रोली पुड़िया खोल कर एक ही बार में ले ली. पुड़िया लेने के कुछ समय पश्चात वह बेहोश होने लगी. यह देख कर रागिनी उसे उसी हालत में छोड़ भाग गई.

जब रोली को होश आया, तो उस ने स्वयं को अस्पताल के बेड पर लेटा पाया, जहां एक ओर डौली आंटी डबडबाई आंखों से स्टूल पर बैठी थी और अंकल डाक्टर से कुछ बातें कर रहे थे.

रोली को होश में आया देख आंटी ने रोली का माथा चूम लिया. रोली घबराई हुई डौली आंटी की ओर देखने लगी, तभी आंटी रोली का हाथ अपने हाथों में लेती हुई बोली, “शादी में पहुंचने के बाद मैं ने रात को क‌ई दफे तुम्हें फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, किसी अनहोनी के भय से हम उसी वक्त घर लौट आए. यहां आ कर देखा, तो बाहर का दरवाजा खुला था और तुम बेहोश पड़ी थी. पूरे कमरे में शराब की बोतल, सिगरेट और ड्रग्स के पैकेट पड़े थे. हम समझ गए कि आखिर माजरा क्या है.”

फिर आंटी लंबी सांस लेते हुए बोली, “तुम सब यह सोचते हो ना कि मैं इतनी खड़ूस, इतनी स्ट्रिक्ट क्यों हूं. मैं ऐसी इसलिए हूं, क्योंकि इसी ड्रग्स की वजह से मैं ने अपने एकलौते बेटे को खोया है…

“और मैं यह नहीं चाहती कि कोई भी मांबाप अपने बच्चे को इस वजह से खोए. मेरा बेटा भी तुम्हारी तरह आंखों में क‌ई सुनहरे सपने लिए बीई की पढ़ाई करने जालंधर गया था, लेकिन वहां जा कर वह बुरी संगत में पड़ ड्रग्स लेने लगा, क्योंकि वहां कोई रोकटोक करने वाला नहीं था और हर कोई बस यही सोचता था कि हमें क्या करना…?

“एक बार सप्ताहभर उस ने कोई फोन नहीं किया, हमारे फोन लगाने पर वह फोन भी नहीं उठा रहा था, तब हम परेशान हो कर उस के पास पहुंचे, तो पता चला कि वह ड्रग्स की ओवरडोज के कारण हफ्तेभर से अपने कमरे में बेहोश पड़ा है. उसे देखने वाला कोई नहीं था. हम उसे उसी हालत में यहां ले आए, लेकिन बचा ना सके.”

यह सब कहती हुई डौली आंटी फूटफूट कर रो पड़ी. रोली की आंखों के कोर में भी पानी आ गया.

आंटी ने आगे बताया कि तुम भी ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से बेहोश पड़ी थी. आज पूरे 2 दिन बाद तुम्हें होश आया है.

यह सुन कर रोली की आंखें शर्म से झुक गईं. तभी आंटी बोली, “बेटी, गलतियां तो सभी से होती हैं, लेकिन उन गलतियों से सबक ले कर आगे बढ़ना ही जीवन है. अक्लमंदी और समझदारी इसी में है कि वक्त रहते उन्हें सुधार लिया जाए .”

फिर आंटी मुसकराती हुई बोली, “वीर एक अच्छा लड़का है. तुम्हें बहुत प्यार भी करता है और शायद तुम भी, वरना पिछले डेढ़ साल में रागिनी की तरह तुम भी क‌ई बौयफ्रेंड बदल चुकी होती.

“वीर तुम्हें क‌ई बार फोन कर चुका है, मैं ने उस से कहा है कि तुम हमारे साथ शादी में आई हो और अभी काम में व्यस्त हो.”

खटखट की आवाज से रोली वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोलते ही डौली आंटी और अंकल सामने खड़े थे. उन्हें देखते ही रोली आंटी से लिपट रो पड़ी, उसे शांत कराती हुई आंटी बोली, “रोते नहीं बेटा, अब तुम एक सफल इंटीरियर डिजाइनर हो. तुम सफलता के उस शिखर पर हो, जहां पहुंचने का सपना लिए तुम इस महानगरी में आई थीं. आज खुशी का दिन है,अब आंसू पोंछो और चलो वीर तुम्हारा पार्टी में इंतजार कर रहा है.”

जिंदगी बदगुमां नहीं : जिंदगी के भंवर में फंस चुके युवक की कहानी

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हिंदी फिल्मों में काम क्यों नहीं करना चाहते Mahesh Babu ? जानें कारण

Mahesh Babu : हिंदी और साउथ सिनेमा में हमेशा से ही एक तकरार रही है. जहां साउथ की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई करती हैं. तो वहीं हिंदी की ज्यादातर फिल्में अपने बजट के पैसे भी नहीं निकाल पाती थी. लेकिन अब समय बदल रहा है. पिछले कुछ समय में केजीएफ, पु्ष्पा, आरआरआर और केजीएफ चैप्टर 2 को दर्शकों का जहां खूब प्यार मिला है. तो वहीं पठान, गदर 2, जवान और रॉकी और रानी की प्रेम कहानी भी लोगों के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रही.

इसके अलावा साउथ सिनेमा के तमाम स्टार्स भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहे हैं. तो वहीं तमिल सुपरस्टार ”महेश बाबू” बॉलीवुड में काम करने से कतराते हैं. उन्होंने अब तक के अपने करियर में किसी भी हिंदी फिल्म में काम नहीं किया है. तो आइए जानते हैं उस कारण (Why Mahesh Babu not to work in bollywood) के बारे में जिस वजह से एक्टर ”महेश बाबू” हिंदी फिल्मों में काम नहीं करते हैं.

वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

आपको बता दें कि फिल्म ‘मेजर’ के ट्रेलर लॉन्च के दौरान मीडिया को दिए इंटरव्यू में अभिनेता ”महेश बाबू” (Mahesh Babu) ने बताया था कि क्यों वो हिंदी फिल्मों में काम नहीं करना चाहते हैं. एक्टर ”महेश” का कहना था कि, ‘बॉलीवुड उन्हें अफोर्ड नहीं कर सकती इसलिए वो वहां जाकर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते. वो पैन इंडिया स्टार नहीं बनना चाहते हैं और वो तेलुगू में ही खुश हैं.

इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा था कि, ‘वैसे तो उन्हें बॉलीवुड फिल्मों के ऑफर मिलते रहते हैं लेकिन वो तेलुगू के लिए ही सिनेमा बनाना चाहते हैं क्योंकि वो इससे ज्यादा खुश नहीं होना चाहते.’ हालांकि बाद में ”महेश बाबू” को अपने इस बयान के चलते खूब आलोचना का सामना भी करना पड़ा था. सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके खिलाफ एक जंग सी छेड़ दी थी.

एक्टर के चाहने वालों की नहीं है कोई कमी

आपको बताते चलें कि बेशक ”महेश बाबू” (Mahesh Babu) ने अभी तक हिंदी फिल्मों में काम नहीं किया है. लेकिन ‘कोल्ड ड्रिंक’ और ‘टोबैको’ प्रोडक्ट की ऐड के जरिए उन्हें साउथ के साथ-साथ दुनियाभर में प्रसिद्धी मिली है. इसके अलावा साउथ की हिंदी डब फिल्मों में भी लोग एक्टर को देख चुके हैं और इसी वजह से बॉलीवुड में भी उनके चाहने वालों की कोई कमी नहीं हैं.

करोड़ों के मालिक हैं महेश बाबू

आपको बता दें कि ”महेश बाबू” (Mahesh Babu) के हैदराबाद स्थित घर को सबसे महंगे घरों में एक माना जाता हैं, जिसमें स्विमिंग पूल से लेकर जिम, मिनी थिएटर सहित कई आलीशान चीजें है. इसके अलावा उनके घर का नाम साल 2012 में आई ‘फोर्ब्स की सेलिब्रिटी 100 लिस्ट’ में भी शामिल हुआ था. इसी के साथ एक्टर के नाम पर हैदराबाद की जुबिली हिल्स में तीस करोड़ रुपए की कीमत के दो बड़े बंगले, बेंगलुरु में भी कई प्रॉपर्टीज, एक करोड़ रुपए से ज्यादा की कई महंगी गाड़ियां और 7 करोड़ रुपए की एक वैनिटी वैन भी हैं.

वहीं ‘डॉटकॉम कंपनी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक ”महेश बाबू” एक फिल्म के लिए लगभग 55 करोड़ रुपए चार्ज करते हैं. इसी के साथ फिल्मों के प्रॉफिट में से कमीशन भी लेते हैं. इसी हिसाब से उनकी नेटवर्थ करीब 135 करोड़ रुपये हैं. इसके अलावा एक्टर ब्रांड्स एंडोर्समेंट से भी 15 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर लेते हैं. साथ ही उनका एक प्रोडक्शन हाउस भी है.

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