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सरकार लाई विधेयक : कश्मीरी पंडितों को आरक्षण से आखिर हासिल क्या होगा ?

अव्वल तो पंडित के पहले ही कश्मीरी शब्द लगा होने से लगता है कि वे मुख्यधारा के पंडित नहीं हैं. ठीक वैसे ही जैसे कश्मीरी मुसलमान खुद को न हिंदुस्तानी मानते और न ही पाकिस्तानी मानते. केंद्र सरकार ने जम्मूकश्मीर से जुड़े जो 2 बिल लोकसभा में पेश किए हैं उन में से एक है जम्मू कश्मीर पुनर्गठन ( संशोधन ) विधेयक, जिस के तहत वहां विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ कर 114 हो जाएगी.

इस अधिनियम के मुताबिक विधानसभा में पहली बार विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए 2 और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर यानी पीओके के लिए एक सीट आरक्षित रहेगी. इन्हें उपराज्यपाल नामांकित कर सकेंगे और नामांकन में यह यह सुनिश्चित किया जाएगा कि एक प्रतिनिधि महिला हो.

लोकसभा में इस मसले पर हुई लंबीचौड़ी गरमागरम बहस में मुद्दे की बात के बजाय पंडित जवाहरलाल नेहरु की तथाकथित गलतियों का जिक्र और नरेंद्र मोदी द्वारा उन्हें कथित रूप से सुधारने का बखान होता रहा. अनुच्छेद 370 पर भी टीएमसी के सौगात राय और गृह मंत्री अमित शाह के बीच तीखी बहस हुई.

बकौल सौगात राय जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के खत्म होने के बाद भी राज्य में कोई बदलाव नहीं हुआ है. कांग्रेस के मनीष तिवारी ने तो इस विधेयक को ही असंवैधानिक करार दे डाला क्योंकि 370 के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक कोई फैसला नहीं दिया है.

बहस में महाराजा हरि सिंह का जिक्र भी मंत्री अनुराग ठाकुर ने किया कि क्या उन का कोई योगदान नहीं है. एक ही परिवार की भक्ति करते रहने वाले लोग उन्हें भूल गए.

मंशा, नीयत और नतीजे

कश्मीर को ले कर भाजपा की मंशा कहने को तो बहुत साफ है कि वह वहां के विस्थापित पंडितों को दोबारा बसा कर उन्हें पुराने दौर में लाना चाहती है. यह काम विधानसभा में आरक्षण से हो पाएगा इस में शक है क्योंकि उस की नीयत अपनी सियासी ताकत बढ़ाने भर की है. दरअसल में कश्मीर को जरूरत प्रोत्साहन, शांति और रोजगार की है.

5 दिसंबर को जब लोकसभा में पंडित जवाहरलाल नेहरु, हरिसिंह और नरेंद्र मोदी को ले कर आरोपप्रत्यारोप लग रहे थे ठीक उसी वक्त में श्रीनगर में भारतीय सेना अपने नारी शक्ति कार्यक्रम के तहत उन 25 महिलाओं को सम्मानित कर रही थी जिन्होंने लगातार मेहनत कर समाज को एक बेहतर मुकाम देने में अहम रोल निभाया. इन महिलाओं ने शिक्षा खेल और रोजगार के क्षेत्र में कश्मीर के लिए नई संभावनाएं पैदा की हैं. उल्फत बशीर, सादिया तारिक, आबिदा वार और सैयद हमेरिया इन में चंद उल्लेखनीय नाम हैं.

कश्मीरी पंडितों को विधानसभा में आरक्षण कहीं इस तरक्की और अमन में खलल न डाले इस पर सोचा जाना जरुरी है और इस के लिए जरुरी है कि पूरा देश और सभी वर्गों के लोग मुल्ला और पंडित जैसे तंग शब्दों के दायरे से बाहर आएं जिस से कश्मीर जलता रहा है.

370 को बेअसर करना भाजपा के हिंदू राष्ट्र का एजेंडा था जिस के पूरे होने के बाद भी भाजपा को चैन नहीं पड़ रहा. वह अपनी हिंदू और पंडित हितेषी इमेज चमकाने अब फूट डालने का काम कर रही है क्योंकि कश्मीरी पंडितों को अब जरूरत रोजगार और स्थायित्व की ज्यादा है जिस का रास्ता विधानसभा से हो कर तो कतई नहीं जाता. यह बात बजाय जज्बातों के व्यवहारिकता कश्मीरी पंडितों सहित सभी भारतीयों को समझने की जरूरत है.

यह आरक्षण हिंदुओं में फूट डाल कर वोट हासिल करने की साजिश है जिसे भाजपा ने पश्चिम बंगाल में भी ट्राई किया था, जब चुनावी दिनों में नरेंद्र मोदी ने वहां के मतुआ समुदाय को लुभाने उन के पूजा स्थलों पर जाना शुरू किया था.

2019 के लोकसभा चुनाव में तो मतुआ समुदाय ने भाजपा को थोड़ा भाव दिया लेकिन मंशा भांपते ही विधानसभा चुनाव में टीएमसी और ममता बनर्जी पर फिर से भरोसा जताया. कर्नाटक में भी भाजपा ने यही चाल चली थी जब उस ने अति पिछड़े दलितों को अलग से आरक्षण देने की बात कही थी लेकिन वहां भी उसे मुंह की खानी पड़ी थी.

कौन करता है हिंदू मुसलमान

कश्मीर के इतिहास को छोड़ दें तो आजादी के बाद से वहां चुनी गई राज्य सरकारें ही राजकाज संभालती रही हैं जिन्हें भाजपा हिंदू विरोधी और मुसलमान हिमायती बता कर पूरे देशभर के हिंदुओं का समर्थन सहानुभूति और वोट बटोरती रही है. क्योंकि वहां के मुख्यमंत्री मुसलमान ही रहे लेकिन ममता बनर्जी और विजयन तो मुसलमान नहीं हैं. इस सियासी गणित पर भाजपा चुप्पी साध जाती है कि वहां के हिंदू क्यों ममता और विजयन को चुनते रहते हैं.

यह दरअसल में फूट डालने की मुहिम और साजिश है. हालिया मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सोशल मीडिया पर ऐसी पोस्टें वायरल हो रही हैं जिन में यह बताया जा रहा है कि इतने मुसलिम बाहुल्य बूथों पर मुसलमानों ने कांग्रेस को वोट किया जबकि भाजपा को वहां हिंदुओं के ही वोट मिले.

इन पोस्टों में सवाल किया जा रहा है कि क्या कांग्रेस को वोट करने वाले मुसलमान ‘लाड़ली बहना’ सहित दूसरी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं लेते हैं. पहले दिल्ली में आम आदमी पार्टी की जीत और फिर कर्नाटक में कांग्रेस की जीत पर वहां के हिंदुओं को गद्दार और बिकाऊ तक कहा गया था. इस पर तरस खाने वाला सवाल तो इन सनातनियों पर यह उठता है कि ‘लाड़ली बहना’ के तहत भाजपा को वोट करने वाली महिलाएं इस पैमाने और लिहाज से बिकाऊ क्यों न कही जाएं. यानी हिंदू ही हिंदू को कोस रहा है. मुसलमान तो उन की इस सनातनी और पौराणिक फूट पर मजे ले रहा है.

इस कट्टर और भड़काऊ मानसिकता से समाज में तनाव अलगाव और दहशत का माहौल बनता है. यही शुरुआत जम्मू कश्मीर में चुनाव के पहले ही शुरू हो गई है जिस से वहां तनाव और बढ़ेगा.

क्या लौरेंस बिश्नोई तिहाड़ में बैठ कर अपना गैंग संचालित कर रहा है ?

राजस्‍थान की राजधानी जयपुर में 5 दिसंबर को दिनदहाड़े 3 बदमाशों ने राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को उन के घर में घुस कर उन्हें गोलियां से भून डाला और निकल भागे. आननफानन करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह को अस्‍पताल ले जाया गया, जहां डाक्‍टरों ने उन्‍हें मृत घोषित कर दिया. शादी का कार्ड देने के बहाने उन के घर में घुसे 2 लोगों ने उन पर कई राउंड फायरिंग की थी. इस में सुखदेव सिंह का एक सहयोगी अजीत भी गंभीर रूप से घायल हुआ और फिलहाल अस्पताल में है.

सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या की जिम्मेदारी गैंगस्टर रोहित गोदारा ने ली है, जो खुद को लौरेंस बिश्नोई गैंग का सदस्य बताता है. सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या के कुछ देर बाद ही सोशल मीडिया पर एक फेसबुक पोस्ट वायरल हो गई. इस में रोहित गोदारा कपूरीसर के अकाउंट से दावा किया कि “सुखदेव गोगामेड़ी की हत्या के लिए मैं और गोल्डी बरार जिम्मेदार हैं. यह हत्या हम ने करवाई है. सुखदेव सिंह हमारे दुश्मनों से मिल कर उन का सहयोग करता था. उन्हें मजबूत करता था.” साथ ही पोस्ट में दुश्मनों को धमकी भी दी गई है कि वह भी अपनी अर्थी को तैयार रखें.

सुखदेव सिंह गोगामेड़ी राजस्थान में राजपूतों के नेता थे. राजपूतों में उन का खासा सम्‍मान था और वे युवाओं के पसंदीदा थे. वह लंबे समय तक राष्ट्रीय करणी सेना से जुड़े रहे थे. बाद में करणी सेना में कुछ विवाद होने के बाद गोगामेड़ी ने राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के नाम से अपना अलग संगठन बना लिया था. तब से वह ही इस संगठन के अध्‍यक्ष थे. सुखदेव सिंह गोगामेड़ी देश में पहली बार तब चर्चा में आए थे, जब उन्‍होंने बौलीवुड फिल्म पद्मावत की शूटिंग के दौरान फिल्‍म के डायरैक्‍टर संजय लीला भंसाली को थप्पड़ जड़ दिया था. गोगामेड़ी ने ‘पद्मावती’ फिल्म का खूब विरोध किया था. इस दौरान फिल्‍म का विरोध करते हुए राजपूत करणी सेना के सदस्यों ने सैट पर तोड़फोड़ की थी और भंसाली पर थप्पड़ बरसाए. आखिरकार भंसाली को फिल्म का नाम बदल कर ‘पद्मावत’ करना पड़ा था.

सुखदेव सिंह की पिछले कई वर्षों से लौरेंस बिश्नोई गैंग के साथ आपसी झड़प की खबरें आ रही थी. लौरेंस बिश्नोई गैंग पहले भी कई नामचीन लोगों की हत्या कर चुका है. यह भी बात सामने आई है कि सुखदेव सिंह गोगामेड़ी काफी दिनों से सुरक्षा मांग रहे थे लेकिन उन्हें शासन से सुरक्षा नहीं मिली और अंततः वही हुआ जिस की उन को आशंका थी.

हाल के दिनों में लौरेंस बिश्नोई गैंग का नाम काफी चर्चा में है. हालांकि गैंग का मुखिया और पंजाब के फाजिल्का निवासी लौरेंस बिश्नोई लम्बे समय से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है, लेकिन राजस्थान, पजाब, हरियाणा, दिल्ली में जब भी किसी बड़े आदमी या किसी नेता की ह्त्या की वारदात होती है लौरेंस का नाम उछलता है.

पंजाबी सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या में बिश्नोई का नाम सामने आया है. इस से पहले दबंग खान यानी सलमान खान को मारने की धमकियां मिलने की बात सुनाई दी तो भी कहा गया कि यह धमकियां बिश्नोई गैंग से आती हैं. बिश्नोई गैंग ने हाल ही में दोबारा बौलीवुड अभिनेता सलमान खान को जान से मारने की धमकी दी है.

पुलिस कहती है कि लौरेंस बिश्नोई भले जेल में बंद हो मगर बाहर उस का गैंग काफी मजबूत है और उस के गुर्गे संगीन अपराधों को अंजाम देते हैं. राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी (एनआईए) के अधिकारी लम्बे समय से इस गैंग की छानबीन में जुटे हैं और इस के कई ऐसे सदस्यों की पहचान कर चुके हैं जो खालिस्तान समर्थक अलगाववादी नेताओं के संपर्क में हैं और उन को मदद पहुंचाते हैं.

राष्ट्रीय राजपूत करणी सेना के प्रमुख सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या के बाद पुलिस और एनआईए की करवाई तो चल रही है, प्रवर्तन निदेशालय ने भी बिश्नोई गैंग के करीबियों के ठिकानों पर छापा मारना शुरू कर दिया है. यह कार्रवाई मनी लौन्ड्रिंग के मामले में की जा रही है.

जांच एजेंसी ने हरियाणा और राजस्थान में 13 जगहों पर छापेमारी कार्रवाई की है. लौरेंस बिश्नोई और उन के सहयोगी गोल्डी बराड के खिलाफ एनआईए और कई राज्यों की पुलिस द्वारा दर्ज किए गए केसों पर संज्ञान लेते हुए ईडी ने मनी लौन्ड्रिंग की जांच शुरू की है. गोल्डी बराड के बारे में कहा जाता है कि वह खालिस्तान समर्थक है और उस के तार अन्य देशों में फैले खालिस्तान समर्थक लोगों से जुड़े हुए हैं. जिन के जरिए उस को धन और हथियार मिलते हैं.

जांच एजेंसी ने दोनों गैंगस्टरों के सहयोगी और करीबियों के ठिकानों पर छापेमारी की है. साथ ही यह भी जांच चल रही है कि कैसे लौरेंस बिश्नोई गैंग द्वारा जबरन वसूला गया पैसा खालिस्तान समर्थकों के लिए विदेशों में भेजा जा रहा है.

गौरतलब है कि 12 फरवरी 1993 को पंजाब के फिरोजपुर के एक गांव में जन्मे लौरेंस बिश्नोई के पिता हरियाणा पुलिस में सिपाही थे जिन्होंने 1997 में पुलिस बल छोड़ खेती-किसानी शुरू कर दी. लौरेंस बिश्नोई ने 2010 में 12वीं कक्षा तक अबोहर में पढ़ाई की, उस के बाद वह चंडीगढ़ के डीएवी कौलेज और 2011 में पंजाब यूनिवर्सिटी पहुंचा. यहां वह कैंपस स्टूडेंट्स काउंसिल में शामिल हुआ और यहीं उस की मुलाकात गोल्डी बराड़ से हुई. दोनों विश्वविद्यालय की राजनीति में शामिल हो गए और नेतागिरी के साथ साथ छोटेमोटे अपराधों को भी अंजाम देने लगे.

हालांकि दोनों ने पंजाब विश्वविद्यालय से एलएलबी की पढ़ाई भी पूरी की. सत्ता का संरक्षण मिलने के बाद छात्र राजनीति करते करते दोनों ने एक गैंग बना लिया और बड़ी वारदातों को अंजाम देने लगाए. पैसे और हथियार की कमी कभी नहीं हुई.

पुलिस दावा करती है कि आज लौरेंस के गैंग में 700 से ज़्यादा शार्प शूटर्स हैं जो देशभर में फैले हुए हैं. 2014 में राजस्थान पुलिस के साथ सशस्त्र मुठभेड़ में लौरेंस को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया मगर वह जेल से ही हत्याओं और गवाहों को मौत की सजा देने की साजिश रचनी शुरू कर दी और अपने गुर्गों के जरिए कई घटनाओं को अंजाम दिया.

29 मई, 2022 को पंजाब के मानसा में पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला की गोली मार कर हत्या कर दी गई. जिस की जिम्मेदारी बिश्नोई गैंग ने ली. 21 सितंबर 2023 को बिश्नोई ने गैंगस्टर और खालिस्तानी अलगाववादी सुखदूल सिंह की हत्या की भी जिम्मेदारी ली और अब करणी सेना के प्रमुख सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की हत्या की जिम्मेदारी भी बिश्नोई गैंग ने ली है.

सुखदेव सिंह गोगामेड़ी को गोली मारने वाले दोनों आरोपियों की पहचान हो गई है. एक आरोपी का नाम रोहित राठौर है जो कि नागौर के मकराना का रहने वाला है. वहीं दूसरे का नाम नितिन फौजी है, वो हरियाणा के महेंद्रगढ़ का रहने वाला है. फिलहाल दोनों फरार हैं.

बड़ा सवाल यह है कि क्या लौरेंस बिश्नोई देश की सब से सुरक्षित कही जाने वाली जेल में बैठ कर अपना गैंग संचालित कर रहा है? कहा जाता है कि तिहाड़ की दीवारों के भीतर चिड़िया भी पर नहीं मार सकती और फिर बिश्नोई जैसे गैंगस्टरों को वह सुविधा कैसे मिल रही है कि वह अपने संदेशे जेल से बाहर अपने गैंग तक पहुंचा रहा है? मंसूबे बना रहा है और उन को अंजाम तक पहुंचा रहा है. अगर सरकार पुलिस और कानून अपराधियों को जेल के अंदर बंद कर के भी उन के कारनामों को रोक पाने में असफल है तो फिर सजा का औचित्य ही क्या रहा?

एनिमल : सपाट कहानी पर भरपूर मसाला

2 स्टार

आज से 10 साल पहले आई अनुराग कश्यप की फिल्म (गैंग्स आफ वासेपुर) को सब से हिंसक फिल्म माना जाता था लेकिन अब निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा ने हिंसा के मामले में (गैंग्स औफ वासेपुर) को पीछे छोड़ दिया है. अब ‘एनिमल’ को बौलीवुड की सब से ज्यादा हिंसक फिल्म माना जा रहा है.

इस फिल्म में नायक रणबीर कपूर को खूंखार जानवर की तरह दिखाया गया है जो खून की होली खेलने से भी पीछे नहीं हटता. कमजोर दिल वालों को यह फिल्म नहीं देखनी चाहिए. खूनखराबे के मामलों में यह फिल्म ‘गोडफादर’ और ‘कल बिल’ जैसी फिल्मों की याद दिलाती है. मारकाट वाली फिल्मों के शौकीन दर्शकों को यह फिल्म अच्छी लग सकती है.

कहते हैं हर इंसान के अंदर एक जानवर होता है जो वैसे तो किसी को कुछ नहीं कहता मगर कोई उसे या उस के परिवार वालों पर जानलेवा हमला करे तो वह हमला करने वालों के खून का प्यासा हो जाता है.

इस फिल्म में नायक को हिंसक दिखाया गया है. नायक विजय (रणवीर सिंह) अपने अरबपति पिता बलबीर सिंह (अनिल कपूर) को दीवानगी की हद तक चाहता है मगर पिता रातदिन बिजनैस में बिजी रहने के कारण बेटे को प्यार व समय नहीं दे पाता. पिता का ध्यान आकर्षित करने के लिए वह हिंसा का सहारा लेता है. तंग आ कर पिता उसे होस्टल में डाल देता है. मगर जब विजय अपने जीजा के साथ बदतमीजी करता है तो पिता को लगता है उस में कोई बदलाव नहीं आया है.

विजय खुद को सब से शक्तिशाली पुरुष कहलाना पसंद करता है. उसे गीतांजलि (रश्मिका मंदाना) से प्यार हो जाता है. मगर विजय का पिता उस के खिलाफ होता है तो विजय गीतांजलि को ले कर अमेरिका चला जाता है.

अमेरिका में 8 साल रहने के बाद एक दिन विजय को पता चलता है कि उस के पिता को किसी ने गोली मार दी है तो विजय वापस इंडिया लौटता है. पिता का बदला लेने के लिए वह जानवर बन कर खूनी खेल में शामिल हो जाता है.

अपने पिता की आन बान और शान के लिए विजय सभी से टकरा जाता है. खुद संदीप का मानना है कि यह फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ जैसी नहीं है. अपने पिता पर जानलेवा हमला होने से वह ऐलान करता है कि जिस किसी ने भी मेरे पापा पर गोली चलाई है उस का गला मैं अपने हाथ से काटूंगा. लेकिन लगने लगता है कि घर का भेदी ही लंका ढा रहा है. कहानी में असली मोड़ तब आता है जब यह दुश्मनी खानदानी निकलती है.

खलनायक की भूमिका बोबी देओल ने निभाई है. उस का किरदार गूंगा है. विजय इस किरदार से अपने खानदान का बदला लेता है. विजय ने वहशी और खूंखार का किरदार शानदार तरीके से निभाया है. उस का अभिनय फिल्म के हर दृश्य में लाजवाब है. अपनी प्रेमिका के साथ विजय के अंतरंग दृश्य दिल को छूते हैं.

बतौर निर्देशक संदीप रेड्डी की यह तीसरी और हिंदी में दूसरी फिल्म है रश्मिका मंदाना ने एक सनकी टाईप के लड़के से शादी करने से ले कर 2 बच्चों की मां तक का किरदार बहुत खूबसूरती से निभाया है.

विजय के शारीरिक संबंध किसी और महिला से बन चुके हैं तो उस के बाद के दृश्य में रश्मिका ने अपनी बेहतरीन अभिनय प्रतिमा का प्रदर्शन किया है. पति कोमा से लौट कर घर आता है और उस के सारे अंग शिथिल हो चुके हैं तब वह घर में काम कर रही सहायिका के सामने ही पत्नि के साथ अंतरंग होने की कोशिश करता है और रश्मिका इस सीन में अपने कपड़े उतार कर पति के पास आती है. इस सीन को करने के लिए रश्मिका तारीफ की हकदार है.

अनिल कपूर ने रणबीर कपूर के पिता का किरदार शिद्दत से निभाया है. फिल्म में शक्ति कपूर, सुरेश ओबराय और प्रेम चोपड़ा ने भी अपने किरदार मजबूती से निभाए हैं. बोबी देओल का किरदार फिल्म खत्म होने से थोड़ी देर पहले ही आता है और कहानी को ऊंचाई तक ले जाता है.
फिल्म की सब से बड़ी कमजोरी इस का लंबा होना है. फिल्म 3 घंटे से भी अधिक लम्बी है. फिल्म का निर्देशन अच्छा है. संगीत भी अच्छा है. दो गाने ‘अर्जन वैल्ली’, ‘पापा मेरी जां’ पहले ही हिट हो चुके हैं. फिल्म का क्लाईमैक्स शानदार है.

फिल्म के सीक्वल बनने का इशारा फिल्म में कर दिया गया है. फिल्म का संपादन अच्छा है. फिल्म मंहगे बजट वाली है और ये बजट पर्दे पर साफ दिखता है. फिल्म की सिनेमेटोग्राफी और लोकेशन अच्छी है. कम्प्यूटर ग्राफिक्स बेहद अच्छे हैं और एक बात रणबीर कपूर का हर वक्त सिगरेट पीते रहने से कईयों को एतराज हो सकता है.

विपक्ष के लिए क्यों खास है ‘इंडिया’ गठबंधन

5 राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम के विधानसभा चुनाव के नतीजे से इंडिया गठबंधन में निराशा का माहौल है. क्षेत्रीय दल कांग्रेस पर दबाव बनाने की राजनीति कर रहे हैं. 6 दिसम्बर को दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास पर इंडिया गठबंधन की मीटिंग है. यह पहले से तय कार्यक्रम है. सूचना मिल रही है कि ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने अभी तक इस मीटिंग में शामिल होने की सहमति नहीं दी है.

अंदरखाने चर्चा इस बात की है कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जिस तरह का व्यवहार सहयोगी दलों के साथ किया उस के चलते यह हालात बन रहे हैं. क्षेत्रीय दल चाहे वह समाजवादी पार्टी, टीएमसी और बीआरएस या कोई और हो, उन की कांग्रेस के साथ संबंध अजीबओगरीब हैं. केन्द्र में वह इंडिया गठबंधन का हिस्सा है और प्रदेशों में वह आमनेसामने विरोधियों की तरह से चुनाव लड़ रहे हैं.

गठबंधन देगा ताकत

मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में यह साफ दिखा. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सपा, लोकदल और आम आदमी पार्टी कांग्रेस के सामने चुनाव लड़ रही थी. दूसरे राज्यों में भी इसी तरह के पेंच फंसे हैं. जहां पर क्षेत्रीय दल और कांग्रेस आमनेसामने चुनाव लड़ते हैं. ज्यादातर क्षेत्रीय गैर भाजपा गैर कांग्रेस के नाम पर राजनीति करते हैं. इन क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के ही वोट अपने पाले में लाने का काम किया था.

अब जब कांग्रेस अपने वोट वापस लाने के लिए जोर लगा रही तो इन दलों को लग रहा है कि कहीं उन की राजनीति ही खत्म न हो जाए. 5 राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार ने क्षेत्रीय दलों को कांग्रेस पर दबाव बनाने का मौका दे दिया है. इन राज्यों की हार के बाद भी कांग्रेस को भाजपा से अधिक वोट मिले हैं.

हार के बाद भी पाए ज्यादा वोट :

इन चुनावों में भाजपा को 4 करोड़ 81 लाख 29 हजार 325 वोट मिले. वहीं कांग्रेस को 4 करोड़ 90 लाख 69 हजार 462 वोट मिले हैं. हार के बाद भी कांग्रेस को ज्यादा मत मिलना यह बताता है कि उस की ताकत कम नहीं हुई है. दूसरी बात नेशनल लेवल पर कांग्रेस के बिना कोई मोर्चा नहीं बन सकता जो भाजपा को कुर्सी से हटा सके. इस मुददे पर ही इंडिया गठबंधन बना था. क्षेत्रीय दल चाहे आम आदमी पार्टी हो, टीएमसी हो या कांग्रेस ही क्यों न हो मोदी सरकार की अफसरशाही का शिकार हो चुकी है.

राजस्थान में अशोक गहलोत के ओएसडी रहे लोकेश शर्मा चर्चा में रहे हैं. सचिन और गहलोत विवाद के दौरान उन का नाम चर्चा में रहा. उस दौरान वायरल हुई औडियो क्लिप के वायरल करने का आरोप लोकेश शर्मा पर लगा था. मोदी सरकार अफसरों के जरीए राज्यों में बड़ेबड़े खेल कर सकती है. ममता बनर्जी के साथ भी ऐसा हो चुका है. यही नहीं, राज्यपालों के जरिए भी राज्यों को नियंत्रित करने का काम हो चुका है. जिस पर सुप्रीम कोर्ट तक को फैसला और आदेश देने पड़े.

आम आदमी पार्टी जिस ने दिल्ली और पंजाब में सरकार बनाई उस को खत्म करने के लिए सीबीआई और ईडी का प्रयोग हुआ सब के सामने है. टीएमसी भी इस की शिकार बन चुकी है. अखिलेश यादव चूंकी उत्तर प्रदेश में सरकार नहीं चला रहे इसलिए उस प्रकोप से बचे हैं. राजस्थान और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को चुनाव के समय ईडी और सीबीआई का सामना करना पड़ा. इस का मुकाबला करने के लिए एकजुटता जरूरी है.

क्षेत्रीय दलों को विधानसभा चुनाव के नतीजों से परेशान होने की जरूरत नहीं है. इन नतीजों में आंकड़ों के खेल को देखेंगे तो कांग्रेस का लाभ होता दिखेगा. 2019 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में बहुमत के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. अशोक गहलोत, भूपेश बघेल और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे. उस के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई और भाजपा जीत गई. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में ऐसा क्यों नहीं हो सकता है ?

जरूरत एकजुटता और ईमानदारी से बिना डरे भाजपा का विरोध करने की है. विधानसभा चुनाव की हैट्रिक से लोकसभा चुनाव में भी हैट्रिक लगेगी यह कोई फामूर्ला नहीं है. हर चुनाव अलग महत्व, मुद्दे और तैयारी होती है.

लंग्स के स्वास्थ्य का जिस्म के अंगों पर प्रभाव

मानव शरीर अलगअलग अंगों से जुड़ा हुआ एक जटिल तंत्र है. इस के सभी अंग हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य और खुशहाली को बरकरार रखने के लिए अहम भूमिका निभाते हैं. इन महत्त्वपूर्ण अंगों में फेफड़ों का खास स्थान है जो शरीर के भीतर रक्तप्रवाह में औक्सीजन पहुंचाने और कार्बन डाइऔक्साइड बाहर निकालने का काम करते हैं. जब हमारे फेफड़े स्वस्थ होते हैं तो वे शरीर की कोशिकाओं में औक्सीजन पहुंचाते हैं और कार्बन डाईऔक्साइड को बाहर निकालते हैं.

हालांकि, इस के ठीक उलट स्थिति भी संभव है, यानी अस्वस्थ फेफड़े शरीर के अन्य अंगों पर बेहद नुकसानदायक प्रभाव डाल सकते हैं, जिस का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य और खुशहाली पर पड़ेगा. फेफड़ों के स्वास्थ्य और हृदय, मस्तिष्क, किडनी व मांसपेशियों की बेहतर स्थिति के बीच एक गहरा संबंध है. इसलिए, फेफड़ों को अच्छी स्थिति में बनाए रखना काफी जरूरी होगा.

फेफड़े कैसे काम करते हैं ?

हम पहले अपनी श्वसन प्रणाली यानी सांस लेने की प्रणाली के बारे में जानेंगे. फेफड़े छाती के अंदर पाए जाते हैं और इन में कई सारी हवा की थैलियां होती हैं, जिन्हें एल्विओली कहा जाता है. ये एल्विओली रक्त वाहिनियों के नैटवर्क के साथ करीब से जुड़ी होती हैं. जब भी शरीर द्वारा सांस ली जाती है तो वह हवा अपने रास्ते से गुजरते हुए एल्विओली तक पहुंचती है.

इस स्थान पर, सांस द्वारा अंदर आई हवा में से औक्सीजन निकल कर एल्विओली की दीवारों से गुजरते हुए रक्तप्रवाह में प्रवेश करती है, जबकि कार्बन डाईऔक्साइड, जो शरीर की कोशिकाओं द्वारा उत्पन्न किया हुआ अपशिष्ट पदार्थ है, रक्तप्रवाह से निकल कर एल्विओली में चला जाता है. जब एक व्यक्ति सांस बाहर छोड़ता है तो कार्बन डाईऔक्साइड शरीर से बाहर निकलता है और इस तरह सांस लेने की प्रक्रिया पूरी होती है.

फेफड़ों के स्वास्थ्य का महत्त्व

इस बात को नकारा नहीं जा सकता है कि जीवित रहने के लिए फेफड़ों का होना आवश्यक है. ये औक्सीजन और कार्बन डाईऔक्साइड के आदानप्रदान की नली का काम करते हैं. साथ ही, यह सुनिश्चित करते हैं कि शरीर को आवश्यक मात्रा में औक्सीजन मिलती रहे और इस में पैदा होने वाले कार्बन डाइऔक्साइड बाहर निकलता रहे.

फेफड़ों के स्वस्थ रहने से यह प्रक्रिया प्रभावी तरीके से चलती रहती है और शरीर की संपूर्ण कार्यप्रणाली में सहायता करती है. इस के विपरीत, फेफड़ों में समस्या होने पर उन के इस महत्त्वपूर्ण काम करने की क्षमता में बाधा आती है, जिस से कई सारी तकलीफें पैदा होने लगती हैं.

सांस लेने में परेशानी : सांस लेने में तकलीफ या फिर पर्याप्त हवा न मिलने जैसा महसूस होना फेफड़ों में समस्या के आम लक्षण हैं.

सीने में दर्द : फेफड़ों में समस्या होने से सीने में दर्द हो सकता है, जिस की गंभीरता और स्थान अलगअलग हो सकते हैं.

सांस लेते वक्त आवाज निकलना (घरघराहट) : सांस लेते वक्त सीटी जैसी तेज आवाज निकलना अकसर फेफड़ों में अस्थमा जैसी बीमारी से जुड़ी हो सकती है.

खांसी : लगातार खांसी आना फेफड़ों की विभिन्न बीमारियों के संकेत हैं, जिन में ब्रोंकाइटिस और निमोनिया भी शामिल हैं.

थकावट : शरीर में पर्याप्त औक्सीजन के आदानप्रदान न होने से लगातार थकावट और ऊर्जास्तर में कमी महसूस हो सकती है.

सायनोसिस : त्वचा पर या नाखून में नीले रंग के धब्बे पड़ना खून में औक्सीजन की कमी होने का संकेत है.

क्लबिंग : क्लबिंग का मतलब हाथ और पैर की उंगलियों के मुंहानों का गोलाकार में बड़ा हो जाना, जो फेफड़ों की गंभीर बीमारी के संकेत हो

सकते हैं.

फेफड़ों की स्थिति गंभीर होने पर सांस लेने की प्रक्रिया विफल हो सकती है, जिस से जान को खतरा हो सकता है. इसलिए यह जरूरी होगा कि संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए फेफड़ों की सेहत भी अच्छी रखी जाए.

अन्य अंगों पर प्रभाव

फेफड़े शरीर के अंदर कोई अलग अंग नहीं हैं, बल्कि ये रक्तप्रवाह के जरिए शरीर के अन्य अंगों से जुड़े होते हैं. इसलिए फेफड़ों का स्वास्थ्य शरीर के अन्य जरूरी अंगों की स्थिति को निश्चित रूप से प्रभावित कर सकता है.

हम यहां फेफड़ों के अस्वस्थ होने से शरीर के अन्य अंगों को होने वाली तकलीफों के बारे में बता रहे हैं :

हृदय

हृदय और फेफड़े साथ मिल कर काम करते हुए शरीर को औक्सीजन से भरपूर खून की आपूर्ति करते हैं और कार्बन डाइऔक्साइड बाहर निकालते हैं. जब फेफड़े अपनी पूरी क्षमता व अच्छी तरह से काम नहीं कर पाते तो शरीर में होने वाली औक्सीजन की कमी को पूरा करने के लिए हृदय को ज्यादा काम करना पड़ता है.

इस अतिरिक्त काम के बोझ से हृदय से जुड़ी विभिन्न समस्याएं पैदा हो सकती हैं, जैसे हार्टफेलियर और अर्थेमिया.

मस्तिष्क

मस्तिष्क को सही ढंग से काम करने के लिए निरंतर औक्सीजन की आपूर्ति की जरूरत होती है. फेफड़ों की स्थिति ठीक नहीं होगी तो मस्तिष्क को पर्याप्त औक्सीजन नहीं मिल पाएगी जिस से गंभीर परिणाम हो सकते हैं.

मस्तिष्क में औक्सीजन आपूर्ति में बाधा पड़ने पर स्ट्रोक, कौग्निटिव इंपेयरमैंट और डिमैंशिया जैसी गंभीर समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं.

औक्सीजन आपूर्ति में कमी होने से रक्त में अधिक मात्रा में कार्बन डाइऔक्साइड जमा होने लगती है, जिस से एसिडोसिस, मस्तिष्क में धुंधलापन और मस्तिष्क को नुकसान पहुंच सकता है.

किडनी

किडनी का काम रक्तप्रवाह से अपशिष्ट पदार्थ फिल्टर करना और इलैक्ट्रोलाइट संतुलन बनाना होता है.

जब फेफड़ों का स्वास्थ्य ठीक नहीं होता और ये अच्छी तरह से कार्बन डाइऔक्साइड नहीं निकाल पाते तो इस काम का बो?ा किडनी पर पड़ता है.

किडनी पर यह अतिरिक्त बो?ा लंबे समय तक पड़ने के कारण कई समस्याएं हो सकती हैं, जैसे किडनी की बीमारी और स्थिति गंभीर होने पर किडनी फेलियर का भी खतरा हो सकता है.

मांसपेशियां

शरीर की मांसपेशियों को सही ढंग से काम करने के लिए लगातार औक्सीजन आपूर्ति की जरूरत पड़ती है. फेफड़ों के सही ढंग से काम न करने पर मांसपेशियों को पर्याप्त मात्रा में औक्सीजन नहीं मिल पाती, जिस से उन में कमजोरी, थकावट और अधिक शारीरिक मेहनत होने पर सांस फूलने जैसी तकलीफ हो सकती है.

फेफड़ों के स्वास्थ्य को कैसे बेहतर बनाएं ?

फेफड़ों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने और उन्हें अच्छी स्थिति में रखने के लिए आप कई कदम उठा सकते हैं-

धूम्रपान छोडि़ए : सिगरेट, बीड़ी पीना फेफड़ों की बीमारी का एक प्रमुख कारण है. अगर आप धूम्रपान करते

हैं तो इसे तुरंत छोड़ना ही आप के फेफड़ों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, एकमात्र सब से प्रभावशाली कदम होगा.

वायु प्रदूषण से बचें : घर के बाहर और अंदर वायु प्रदूषण से बचने के लिए आप को अच्छे हवादार स्थानों में रहना चाहिए और जरूरी होने पर घर के अंदर एयर प्यूरिफायर भी लगाने चाहिए.

नियमित व्यायाम करें : नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियां करने पर सांस लेने वाली मांसपेशियां मजबूत बनती हैं, फेफड़ों के काम करने की क्षमता बेहतर होती है और हृदय का स्वास्थ्य भी बेहतर बनता है.

सिगरेटबीड़ी के धुंए से बचें : ऐसे स्थानों पर जाने से बचें जहां कोई व्यक्ति धूम्रपान कर रहा हो क्योंकि यह खुद धूम्रपान करने जितना ही नुकसानदायक हो सकता है.

स्वस्थ आहार खाएं : फल, सब्जियां, साबुत अनाज और लीन प्रोटीन से भरपूर संतुलित भोजन फेफड़ों के स्वास्थ्य को अच्छा रखने में मददगार होता है.

फ्लू और निमोनिया की वैक्सीन लगाएं : डाक्टरों की सलाह ले कर हर साल फ्लू एवं निमोनिया की वैक्सीन लगाने से श्वासप्रणाली में संक्रमण होने से बचा जा सकता है. इस संक्रमण से फेफड़ों को नुकसान होने का खतरा होता है.

फेफड़ों की समस्या का समाधान : अगर आप को पहले से अस्थमा या क्रौनिक औब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज जैसी फेफड़ों की तकलीफ है तो अपने डाक्टर के बताए गए उपचार का पालन करें. इस के तहत आप को बताई गई दवाएं लेना, इन्हेलर का इस्तेमाल करना और पल्मोनरी रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम में हिस्सा लेना होगा.

हमारे शरीर को औक्सीजन की आपूर्ति करने और कार्बन डाइऔक्साइड बाहर निकाल कर हमें स्वस्थ रखने में फेफड़ों की अहम भूमिका होती है. जब फेफड़ों का स्वास्थ्य कमजोर होने लगता है तो इस से शरीर के अन्य हिस्सों, जैसे हृदय, मस्तिष्क, किडनी और मांसपेशियों को नुकसान हो सकता है.

फेफड़ों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए, जैसे धूम्रपान छोड़ना, धूम्रपान वाली जगहों पर न जाना और वायु प्रदूषण से बचना. इस के अलावा, आप को सक्रिय जीवनशैली अपनाना, संतुलित एवं स्वस्थ भोजन करना और सांस की बीमारियों के लिए वैक्सीन लगाने जैसी बातों का भी ध्यान रखना चाहिए.

अपने डाक्टर के बताए गए उपचार का ध्यानपूर्वक पालन करें. फेफड़ों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने से आप के संपूर्ण शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होगा और फेफड़ों की तकलीफों से शरीर में होने वाली बीमारियों से बचा जा सकेगा.

(लेखक फोर्टिस हौस्पिटल, नगरभावी, बेंगलुरु में पल्मोनोलौजी/चैस्ट एंड स्लीप मैडिसिन के कंसल्टैंट हैं)

मेरी बेटी ने भाग कर शादी की है और वो घर वापस नहीं आ रही है, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी बेटी घर से भाग गई है और उस ने लवमैरिज की है. हमें पता नहीं था कि उस ने 2 साल पहले ही कोर्टमैरिज कर ली थी. तब उस की उम्र 21 वर्ष थी. उस के घर से भाग जाने के बाद जब हम उस लड़के के घर गए तब हमें इस बात की जानकारी हुई. वह वापस नहीं आ रही और न ही उस की ससुराल वाले उसे वापस घर आने दे रहे हैं. समझ नहीं आ रहा कि मैं अब क्या करूं ?

जवाब

कटु सत्य तो यही है कि आप इस में कुछ नहीं कर सकते. बेटी बालिग है और अपनी मरजी से उस ने यह शादी की है. आप को यह शादी और उस का नया जीवन स्वीकार तो करना ही होगा. आप अपनी बेटी वापस पाना चाहते हैं तो उस की खुशी में आप को खुशी ढूंढ़नी होगी. उस से बात करने की कोशिश कीजिए और उसे समझाइए कि अब आप को उस के इस फैसले से कोई परेशानी नहीं है. आप की बेटी अपनी मरजी से जा चुकी है,  आप को यह बात अपनानी ही पड़ेगी.

मुक्तिद्वार : क्या थी कुमुद की कहानी

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धंधा अपना अपना

‘‘भक्तजनो,यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन तुम इन बेड़ियों को तोड़ दोगे उस दिन तुम मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाओगे,’’ स्वामी दिव्यानंद की ओजस्वी वाणी गूंज रही थी.

महानगर के सब से वातानुकूलित हाल में एक ऊंचे मंच पर स्वामीजी विराजमान थे. गेरुए रंग के रेशमी वस्त्र, गले में रुद्राक्ष की माला, माथे पर चंदन का तिलक और उंगलियों में जगमगा रही पुखराज की अंगूठियां उन के व्यक्तित्व को अनोखी गरिमा प्रदान कर रही थीं.

प्रचार करा गया था कि स्वामीजी को सिद्धि  प्राप्त है. जिस पर उन की कृपादृष्टि हो जाए उस के कष्ट दूर होते देर नहीं लगती. पूरे शहर में स्वामीजी के बड़ेबड़े पोस्टर लगे थे. दूरदूर के इलाकों से आए भक्तजन स्वामीजी की महिमा का बखान करते रहते. जन सैलाब उन के दर्शन करने के लिए उमड़ा पड़ा था.

सुबह, दोपहर, शाम स्वामीजी दिन में 3 बार भक्तों को दर्शन और प्रवचन देते थे. इस समय उन का अंतिम व्याख्यान चल रहा था. पूरा हाल रंगबिरंगे बल्बों की रोशनी से जगमगा रहा था. मंच की सज्जा गुलाब के ताजे फूलों से की गई थी, जिन की खुशबू पूरे हाल में बिखरी थी.

स्वामीजी के चरणों में शीश झुका कर आशीर्वाद लेने वालों का तांता लगा था. आश्रम के स्वयंसेवक भी श्रद्धालुओं को अधिकाधिक चढ़ावा चढ़ा कर आशीर्वाद लेने के लिए प्रेरित कर रहे थे.

रात 9 बजे स्वामीजी का प्रवचन समाप्त हुआ. उन्होंने हाथ उठा कर भक्तों को आशीर्वाद दिया तो उन के जयघोष से पूरा हाल गुंजायमान हो उठा. मंदमंद मुसकराते हुए स्वामीजी उठे और आशीर्वाद की वर्षा करते हुए मंच के पीछे चले गए. उन के जाने के बाद धीरेधीरे हाल खाली हो गया. स्वामीजी के विश्वासपात्र शिष्यों श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंदजी महाराज ने स्वयंसेवकों को भी बाहर निकालने के बाद हाल का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया.

‘‘चलो भाई, आज की मजदूरी बटोरी जाए’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने अपने गेरुए कुरते की बांहें चढ़ाते हुए कहा.

‘‘दिन भर इन बेवकूफों का स्वागतसत्कार करतेकरते यह नश्वर शरीर थक कर चूरचूर हो गया है. अब इसे तत्काल उत्तम किस्म के विश्राम की आवश्यकता है. इसलिए सारी गिनती शीघ्र पूरी कर ली जाए,’’ सत्यानंदजी महाराज ने अंगड़ाई लेते हुए सहमति जताई.

‘‘जो आज्ञा महाराज, श्रद्धानंदजी महाराज ने मुसकराते हुए मंच के सामने लगे फूलों के ढेर को फर्श पर बिखरा दिया. फूलों के साथ भक्तजनों ने दिल खोल कर दक्षिणा भी अर्पित की थी. दोनों तेजी से उसे बटोरने लगे, किंतु उन की आंखों से लग रहा था कि उन्हें किसी और चीज की तलाश है.

श्रद्धानंदजी महाराज ने फूलों के ढेर को एक बार फिर उलटापुलटा तो उन की आंखें चमक उठीं. वे खुशी से चिल्लाए, ‘‘वह देखो मिल गया.’’

सामने लाल रंग के रेशमी कपड़े में लिपटी कोई वस्तु पड़ी थी. सत्यानंदजी महाराज ने लपक कर उसे उठा लिया. शीघ्रता से उन्होंने उस वस्त्र को खोला तो उस के भीतर 1 लाख रुपए की नई गड्डी चमक रही थी.

‘‘महाराज, आज फिर वह 1 लाख की गड्डी चढ़ा गया है,’’ सत्यानंदजी गड्डी ले कर दिव्यानंदजी के कक्ष की ओर लपके. श्रद्धानंदजी महाराज भी उन के पीछेपीछे दौड़े.

स्वामी दिव्यानंद शानदार महाराजा बैड पर लेटे हुए थे. आवाज सुनते ही वे उठ बैठे. उन्होंने एक लाख की गड्डी को ले कर उलटपुलट कर देखा. उस के असली होने का विश्वास होने पर उन्होंने पूछा, ‘‘कुछ पता चला कौन था वह?’’

‘‘स्वामीजी, हम ने बहुत कोशिश की, लेकिन पता ही नहीं चल पाया कि वह गड्डी कब और कौन चढ़ा गया,’’ सत्यानंद महाराज ने कहा.

‘‘तुम दोनों माल खाखा कर मुटा गए हो. एक आदमी 5 दिनों से रोज 1 लाख की गड्डी चढ़ा जाता है और तुम दोनों उस का पता नहीं लगा पा रहे हो,’’ स्वामीजी की आंखें लाल हो उठीं.

‘‘क्षमा करें महाराज, हम ने पूरी कोशिश की…’’

‘‘क्या खाक कोशिश की,’’ स्वामीजी उस की बात काटते हुए गरजे, ‘‘तुम दोनों से कुछ नहीं होगा. अब हमें ही कुछ करना होगा,’’ इतना कह कर उन्होंने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर मिलाते हुए बोले, ‘‘हैलो निर्मलजी, मैं जिस मंच पर बैठता हूं उस के ऊपर आज रात में ही सीसी टीवी कैमरा लग जाना चाहिए.’’

‘‘लेकिन स्वामीजी, आप ही ने तो वहां कैमरा लगाने से मना किया था. बाकी सभी जगहों पर कैमरे लगे हुए हैं और उन की चकाचक रिकौर्डिंग हो रही है,’’ निर्मलजी की आवाज आई.

‘‘वत्स, यह सृष्टि परिवर्तनशील है. यहां कुछ भी स्थाई नहीं होता है,’’ स्वामीजी हलका सा हंसे फिर बोले, ‘‘तुम तो जानते हो कि मेरे निर्णय समय और परिस्थितियों के अनुसार बदलते रहते हैं. इसी कारण सफलता सदैव मेरे कदम चूमती है. तुम तो बस इतना बतलाओ कि यह काम कितनी देर में पूरा हो जाएगा. काम तुम्हारा और पैसा हमारा.’’

‘‘सूर्योदय से पहले आप की आज्ञा का पालन हो जाएगा,’’ निर्मलजी ने आश्वासन दिया. फिर झिझकते हुए बोले, ‘‘स्वामीजी कुछ जरूरी काम आ पड़ा है. अगर कुछ पैसे मिल जाते तो कृपा होती.’’

‘‘1 पैसे का भी भरोसा नहीं करते हो मुझ पर,’’ स्वामीजी ने कहा और फिर श्रद्धानंद की ओर मुड़ते हुए बोले, ‘‘निर्मलजी को अभी पैसे पहुंचा दो वरना उन्हें कोई दूसरा जरूरी काम याद आ जाएगा.’’

‘‘जो आज्ञा महाराज,’’ कह श्रद्धानंदजी महाराज सिर नवा कर चले गए.

निर्मलजी ने वादा निभाया. सूर्योदय से पहले स्वामीजी के मंच के ऊपर सीसी टीवी कैमरा लग गया. उधर उस भक्त ने भी अपनी रीति निभाई. आज फिर वह लाल वस्त्र में लिपटी 1 लाख की गड्डी स्वामीजी के चरणों में अर्पित कर गया था. श्रद्धानंद और दिव्यानंद आज भी उस भक्त का पता नहीं लगा पाए.

रात के 11 बजे स्वामीजी बड़ी तल्लीनता के साथ सीसी टीवी की रिकौर्डिंग देख रहे थे. अचानक एक दृश्य को देखते ही वे बोले, ‘‘इसे रिवाइंड करो.’’

श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग को रिवाइंड कर के चला दिया. स्वामीजी ने 2 बार और रिवाइंड करवाया. श्रद्धानंद को उस में कोई खास बात नजर नहीं आ रही थी, लेकिन स्वामीजी की आज्ञा का पालन जरूरी था.

‘‘रोकोरोको, यहीं पर रोको,’’ अचानक स्वामीजी चीखे, श्रद्धानंद ने रिकौर्डिंग तुरंत रोक दी.

‘‘जूम करो इसे,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी तो श्रद्धानंद ने जूम कर दिया.

‘‘यह रहा मेरा शिकार,’’ स्वामीजी ने सोफे से उठ कर स्क्रीन पर एक जगह उंगली रख दी. फिर बोले, ‘‘हलका सा रिवाइंड कर स्लो मोशन में चलाओ इसे.’’

श्रद्धानंद ने स्लो मोशन में रिकार्डिंग चला दी. रिकौर्डिंग में करीब 45 साल का एक व्यक्ति हाथों में फूलों का दोना लिए स्वामीजी के करीब आता दिखाई पड़ा. करीब आ कर उस ने फूलों को स्वामीजी के चरणों में अर्पित करने के बाद अपना शीश भी उन के चरणों में रख दिया. इसी के साथ उस ने अत्यंत शीघ्रता के साथ अपनी जेब से लाल रंग के वस्त्र में लिपटी गड्डी निकाली और फूलों के नीचे सरका दी. एक बार फिर शीश नवाने के बाद वह उठ कर तेजी से बाहर चला गया.

‘‘यह कोई तगड़ा आसामी मालूम पड़ता है. इस का चेहरा तुम दोनों ध्यान से देख लो. मुझे यह आदमी चाहिए… हर हालत में चाहिए,’’ स्वामीजी की आंखों में अनोखी चमक उभर आई.

‘‘आप चिंता मत करिए. कल हम लोग इसे हर हालत में पकड़ लाएंगे,’’ सत्यानंद ने आश्वस्त किया.

‘‘नहीं वत्स,’’ स्वामीजी अपना दायां हाथ उठा कर शांत स्वर में बोले, ‘‘वह मेरा अनन्य भक्त है. उसे पकड़ कर नहीं, बल्कि पूर्ण सम्मान के साथ लाना. स्मरण रहे कि उसे कोई कष्ट न होने पाए.’’

‘‘जो आज्ञा,’’ श्रद्धानंद और सत्यानंद ने शीश नवाया और कक्ष से बाहर चले गए.

अगले दिन उन दोनों की दृष्टि हर आनेजाने वाले भक्त के चेहरे पर टिकी थी. रात के करीब 8 बजे जब शरीर थक कर चूर होने लगा तब वह व्यक्ति आता दिखाई पड़ा.

‘‘देखो वह आ गया,’’ श्रद्धानंद ने सत्यानंद को कुहनी मारी.

‘‘लग तो यही रहा है. चलो उसे उधर ले कर चलते हैं,’’ सत्यानंद ने कहा.

‘‘अभी नहीं. पहले उसे गड्डी चढ़ा लेने दो ताकि सुनिश्चित हो जाए कि यह वही है जिस की हमें तलाश है,’’ श्रद्धानंद फुसफुसाए.

पिछले कल की तरह वह व्यक्ति आज भी मंच के करीब आया. फूल अर्पित करने के बाद उस ने स्वामीजी के चरणों में शीश नवाया, लाल रंग में लिपटी नोटों की गड्डी को चढ़ाने के बाद वह तेजी से उठ कर बाहर चल दिया.

‘‘मान्यवर, कृपया इधर आइए,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने उस के करीब आ कर सम्मानित स्वर में कहा.

‘‘क्यों?’’

‘‘स्वामीजी आप से भेंट करना चाहते हैं,’’ सत्यानंदजी महाराज ने बताया.

‘‘मुझ से? किसलिए?’’ वह व्यक्ति घबरा उठा.

‘‘वे आप की भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हैं. इसलिए आप को साक्षात दर्शन दे कर आशीर्वाद देना चाहते हैं,’’ श्रद्धानंदजी महाराज ने बताया, ‘‘बड़ेबड़े मंत्री और अफसर स्वामीजी के दर्शनों के लिए लाइन लगा कर खड़े होते हैं. आप अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, जो स्वामीजी ने आप को स्वयं मिलने के लिए बुलाया है. अब आप का भाग्योदय निश्चित है.’’

यह सुन उस व्यक्ति के चेहरे पर राहत के चिह्न उभर आए. श्रद्धानंदजी महाराज और सत्यानंद महाराज ने उसे एक खूबसूरत कक्ष में बैठा दिया.

करीब आधा घंटे बाद स्वामीजी उस कक्ष में आए और अत्यंत शांत स्वर में बोले, ‘‘वत्स, तुम्हारे ललाट की रेखाएं बता रही हैं कि तुम्हें जीवन में बहुत बड़ी सफलता मिलने वाली है.’’

स्वामीजी की वाणी सुन वह व्यक्ति उन के चरणों में लेट गया. उस की आंखों से श्रद्धा सुमन बह निकले. स्वामीजी ने उसे अपने हाथों से पकड़ कर उठाया और फिर स्नेह भरे स्वर में बोले, ‘‘उठो वत्स, अश्रु बहाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि एक नया सवेरा तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा है.’’

‘‘स्वामीजी, आप के दर्शन पा कर मेरा जीवन धन्य हो गया,’’ वह व्यक्ति हाथ जोड़ कर बोला. भावातिरेक में उस की वाणी अवरुद्ध हो रही थी.

स्वामीजी ने उसे अपने साथ सोफे पर बैठाया और फिर बोले, ‘‘वत्स, एक प्रश्न पूछूं तो क्या उस का उत्तर सचसच दोगे?’’

‘‘आप आज्ञा करें तो उत्तर तो क्या आप के लिए प्राण भी देने के लिए तैयार हूं,’’ उस व्यक्ति ने कहा.

स्वामीजी ने अपनी दिव्यदृष्टि उस के चेहरे पर टिका दी फिर सीधे उस की आंखों में झांकते हुए बोले, ‘‘तुम प्रतिदिन 1 लाख रुपयों की गड्डी मेरे चरणों में क्यों चढ़ा रहे हो?’’

यह सुन उस व्यक्ति ने अपनी आंखें बंद कर लीं. उस के चेहरे पर छाए भावों को देख कर लग रहा था कि उस के भीतर भारी संघर्ष चल रहा है. चंद पलों बाद उस ने अपनी आंखें खोलीं और बोला, ‘‘स्वामीजी, मैं एक अरबपति आदमी था, लेकिन व्यापार में घाटा हो जाने के कारण मैं पूरी तरह बरबाद हो गया. सभी रिश्तेदारों और परिचितों ने मुझ से मुंह मोड़ लिया था. एक दिन मुझे पता चला कि यूरोप में एक बंद फैक्टरी कौड़ियों के भाव बिक रही है. मेरी पत्नी आप की अनन्य भक्त है. उस की सलाह पर मैं ने अपना मकान और पत्नी के गहने बेच कर वह फैक्टरी खरीद ली. आप को उस फैक्टरी में 20% का साझेदार बना कर मैं ने उस फैक्टरी को दोबारा चलाना शुरू कर दिया. शुरुआती दिनों में काफी परेशानियां हुईं लेकिन आप के आशीर्वाद से पिछले सप्ताह से वह फैक्टरी फायदे में आ गई. इस समय उस से 5 लाख रुपये रोज का फायदा हो रहा है. इसलिए 20% के हिसाब से मैं रोज 1 लाख रुपए आप के चरणों में अर्पित कर देता हूं.’’

‘‘लेकिन तुम ने यह बात गुप्त क्यों रखी?’’ मुझे बता भी तो सकते थे? स्वामीजी ने पूछा.

‘‘मैं ने सुना है कि आप मोहमाया और लोभ से काफी ऊपर हैं. इसलिए आप को बता कर आप की साधना में विध्न डालने का साहस मैं नहीं कर सका.’’

‘‘वत्स, धन्य हो तुम. तुम जैसे ईमानदार व्यक्तियों के बल पर ही यह दुनिया चल रही है वरना अब तक अपने पाप के बोझ से यह रसातल में समा चुकी होती,’’ स्वामीजी ने गंभीर स्वर में सांस भरी फिर आशीर्वाद की मुद्रा में आते हुए बोले, ‘‘ईश्वर की कृपा दृष्टि तुम पर पड़ चुकी है. जल्द ही तुम्हें 5 लाख रुपए नहीं, बल्कि 5 करोड़ रोज का मुनाफा होने वाला है.’’

‘‘सत्य वचन महाराज,’’ उस व्यक्ति ने श्रद्धा से शीश झुकाया फिर बोला, ‘‘यूरोप में ही एक और बंद पड़ी खान का पता लगा है, मैं ने हिसाब लगाया है कि अगर उसे ठीक से चलाया जाए तो 5 करोड़ रुपए रोज तो नहीं लेकिन 5 करोड़ रुपए महीने का फायदा जरूर हो सकता है.’’

‘‘तो उस फैक्टरी को खरीद क्यों नहीं लेते?’’

‘‘खरीद तो लेता, लेकिन उस के लिए करीब 20 करोड़ रुपए चाहिए. मैं ने काफी भागदौड़ की, लेकिन फंड का इंतजाम नहीं हो पा रहा है. एक बार मुझे व्यापार में घाटा हो चुका है, इसलिए फाइनैंसर मुझ पर दांव लगाने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं,’’ उस व्यक्ति के स्वर में निराशा झलक उठी.

‘‘वत्स, फंड की चिंता मत करो. ऊपर वाले ने तुम्हें मेरी शरण में भेज दिया है, इसलिए अब सारी व्यवस्थाएं हो जाएंगी,’’ स्वामीजी मुसकराए.

‘‘वह कैसे?’’

‘‘तुम जैसे व्यक्तियों का दिया मेरे पास बहुत कुछ है. वह मेरे किसी काम का नहीं है. तुम उसे ले जाओ और फैक्टरी खरीद लो,’’ स्वामीजी ने कहा.

‘‘आप मुझे इतना रुपया दे देंगे?’’ उस व्यक्ति की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘अकारण नहीं दूंगा,’’ स्वामीजी मुसकराए, ‘‘मुझे अपने भक्तों के कल्याण के लिए बहुत सारे कार्य करने हैं. इस सब के लिए बहुत पैसा चाहिए. इसलिए इस पैसे से तुम फैक्टरी खरीद लो, लेकिन उस में 51 प्रतिशत शेयर मेरे होंगे.’’

‘‘आप धन्य हैं महाराज,’’ वह व्यक्ति एक बार फिर स्वामीजी के चरणों में लोट गया.

‘‘श्रद्धा और सत्या, तुम दोनों अभी इन के साथ इन के निवास पर जाओ.

साझेदारी के कागजात तुरंत बना लो ताकि फैक्टरी को जल्द से जल्दी खरीद लिया जाए,’’ स्वामीजी ने आज्ञा दी.

अगले ही दिन साझेदारी के कागजात तैयार हो गए. स्वामीजी ने हजारों भक्तों की चढ़ाई की कमाई अपने अनन्य भक्त को सौंप दी. वह भक्त फैक्टरी खरीदने यूरोप चला गया.

स्वामीजी की आंखों में सुनहरे भविष्य के सपने जगमगा रहे थे. किंतु जब 1 महीने तक उस भक्त का कोई संदेश नहीं आया तो उन्होंने श्रद्धानंद और सत्यानंद को उस के निवास पर भेजा. वहां उपस्थिति गार्ड ने उन दोनों को देखते ही बताया, ‘‘उन साहब ने तो 2 महीने के लिए यह कोठी किराए पर ली थी, किंतु आप लोगों के आने के 2 दिनों बाद वे अचानक ही इसे खाली कर के चले गए थे. किंतु जाने से पहले वे आप लोगों के लिए एक लिफाफा दे गए थे. कह रहे थे कि आप लोग एक न एक दिन उन से मिलने यहां जरूर आएंगे.’’

इतना कह कर गार्ड अपनी कोठरी के भीतर से एक लिफाफा ले आया. डगमगाते कदमों से वे दोनों स्वामी दिव्यानंद के पास लौट आए और लिफाफा उन्हें पकड़ा दिया.

स्वामीजी ने लिफाफा फाड़ा तो उस के भीतर से एक पत्र निकला, जिस में लिखा था:

‘‘आदरणीय स्वामी जी,

सादर चरण स्पर्श. अब तो आप को विश्वास हो गया होगा कि यह शरीर नश्वर है. इस के अंदर निवास करने वाली आत्मा का परमात्मा से मिलन ही परमानंद है. किंतु काम, क्रोध, लोभ नामक बेड़ियां इस मिलन में सब से बड़ी बाधा हैं. जिस दिन कोई व्यक्ति इन बेड़ियों को तोड़ देगा उस दिन वह मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर हो जाएगा. आप ने अपने भक्तों की बेड़ियां तोड़ने का कार्य किया है और मैं ने आप की इन बेड़ियों को तोड़ने की छोटी सी चेष्टा की है. आप इसे ‘धंधा अपना अपना’ भी कह सकते हैं.

आप का एक सेवक.

स्वामीजी उस पत्र को अपलक निहारे जा रहे थे और श्रद्धा और सत्या उन के चेहरे को.

मध्य प्रदेश का चुनावी रिजल्ट : दलित समझौतावादी क्यों होता जा रहा है

हिंदी पट्टी के तीनों राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान इस बार कहीं से भी यह मांग नहीं उठी कि इस बार मुख्यमंत्री दलित समुदाय से होना चाहिए. साल 2018 तक यदाकदा ही सही यह मांग उठती रहती थी तो लगता था कि यह तबका अपने अधिकारों को ले कर जागरूक है जिसे बुद्धिजीवी और अभिजात्य वर्ग दलित चेतना कहता है. तीनों राज्यों में दलितों ने किसी भी पार्टी के लिए एकतरफा वोट नहीं किया है. हां भाजपा की तरफ उस का झुकाव ज्यादा रहा है क्योंकि वाकई में भाजपा ने उस के लिए काफी कुछ किया है.

क्या और कैसे किया है इसे समझने से पहले एक नजर आंकड़ों पर डालना जरुरी है जिस से साफ होता है कि यह वर्ग या वोट अब अब किसी एक दल का बैंक या बपौती नहीं रह गया है. हालांकि यह इंडिया एलायंस के लिए एक मौका और न्यौता भी है कि वह अगर वाकई भाजपा को सत्ता से हटाने के प्रति गंभीर है तो उसे इस भटकते वंचित समुदाय को साधना होगा और उस के हितों व सामाजिक स्थिति पर भी अपने राजनातिक स्वार्थों से हट कर प्राथमिकता में रखना होगा.

यह कहते हैं आंकड़े

सब से ज्यादा 230 सीटों वाले मध्य प्रदेश में एससी के लिए 35 आरक्षित सीटों में से भाजपा इस बार 26 सीटों पर जीती है जबकि कांग्रेस 9 पर सिमट कर रह गई है. 2018 के चुनाव में भाजपा को 18 और कांग्रेस को 17 सीटें मिली थीं. 90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ में एससी समुदाय के लिए आरक्षित 10 में से 6 पर कांग्रेस और 4 पर भाजपा जीती है.

2018 में कांग्रेस 7 पर भाजपा 2 पर और एक पर बसपा जीती थी. राजस्थान की 199 में से 34 सीटें एससी के लिए रिजर्व थीं जिन में से भाजपा 22 कांग्रेस 11 और एक सीट पर निर्दलीय जीता. 2018 में भाजपा 12 कांग्रेस 19 सीटों पर जीती थी.

यानी 5 साल में दलितों का झुकाव भाजपा की तरफ बढ़ा है और कांग्रेस से घटा है लेकिन दिल्ली, भोपाल, जयपुर और रायपुर में हार को ले कर जो चिन्तन मंथन हो रहे हैं उन में भी दलितों का जिक्र न होना बताता है कि कांग्रेस सिर्फ खिसियाहट दूर कर रही है. अपने इस परंपरागत वोट के छिटकने पर वह खामोश है. इस चुनाव में बसपा बिलकुल नकार दी गई है जिस का फायदा बजाय कांग्रेस के भाजपा को मिला तो इस की वजहें भी हैं.

ये रही वजहें

पूरे चुनाव प्रचार में कांग्रेस जातिगत जनगणना की माला फेरती रही जो कि घोषित तौर पर पिछड़ों को लुभाने के लिए थी. मल्लिकार्जुन खड्गे को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने को जो फायदा उसे कर्नाटक और इस चुनाव में तेलांगना में वह मिला वह हिंदी भाषी राज्यों में नहीं मिला क्योंकि उस ने इन राज्यों के दलितों को यह जताने और बताने की जहमत ही नहीं उठाई कि हम ने तो एक दलित को पार्टी की कमान सौंपी लेकिन भाजपा ने नहीं. क्यों यह सवाल वोटर से उसे पूछना चाहिए था इस के पहले किस ने किस दलित को अध्यक्ष बनाया था इस से वोटर को कोई सरोकार है ऐसा लगता नहीं.

कांग्रेसी नेता किस जल्दबाजी और खुशफहमी का शिकार थे इस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वे किसी मीटिंग में जनता को यह नहीं बता पाए कि हम ने तो खड़गे के पहले सीताराम केसरी और उन के पहले जगजीवन राम को सब से बड़ा पद दिया था लेकिन ब्राह्मण और वैश्य अध्यक्ष रखने वाली भाजपा ने एक ही बार यह जिम्मेदारी बंगारू लक्ष्मण को दी और पूरे वक्त उन्हें उपेक्षित रखा. भाजपा में यह परम्परा रही है कि लगभग सभी जूनियर नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष की पांव छूते हैं पर बंगारू लक्ष्मण के समय में यह रिवाज बंद हो गया था.

तीनों राज्यों की चुनावी सभाओं में खुद मल्लिकार्जुन खड़गे भावनात्मक तौर पर दलितों को यह एहसास नहीं करा पाए कि वे कांग्रेस को जिताएं तो उन के सम्मान और स्वाभिमान की रक्षा की गारंटी वे लेते हैं. दिक्कत तो कांग्रेस के साथ यह भी रही कि अधिकतर दलितों को वह बता भी नहीं पाई कि उस के राष्ट्रीय अध्यक्ष दलित समुदाय से हैं.

चल गया पूजापाठ

उलट इस के भाजपा ने दलितों को कुछ इस तरह घेरा कि उन में सवर्णों जैसी फीलिंग आने लगी. बुंदेलखंड इलाके में दलित संत रविदास के मंदिर का समारोहपूर्वक पूजापाठ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था जिस में भाजपा दलितों को घेर कर ले गई थी. इस पर कोई कांग्रेसी या गैरकांग्रेसी यह नहीं कह पाया था कि दलितों को धर्म और पूजापाठ के मकड़जाल में मत उलझाओ. भीमराव अम्बेडकर की जन्मस्थली महू में तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जब तब पहुंच जाते थे और खुद को दलित हितैषी बताने से चूकते नहीं थे.
किस खूबसूरती से शिवराज सिंह ने दलितों को लुभाया इस से कांग्रेस आंखें बंद किए बैठी रही. चुनाव के पहले ही उन्होंने घोषणा कर दी थी कि राज्य सरकार अनुसूचित जाति की प्रमुख उप जातियों के लिए अलगअलग कल्याण बोर्ड बनाएगी जिन के अध्यक्षों को मंत्री का दर्जा दिया जाएगा.

भाजपा दलित महत्वाकांक्षाओ को हवा देती रही, उन्हें पूजापाठी तो वह कब का बना चुकी है जिस के नुकसान दलितों को बताने वाला कोई नहीं और स्वामीप्रसाद मौर्य जैसे जो इनेगिने नेता हैं उन की तार्किक बातों और मुद्दों की मियाद एक साजिश के तहत समेट कर रख दी जाती है. जिस में गोदी मीडिया अपना योगदान देना नहीं भूलता. अब दलितों के अपने मंदिर भव्य होने लगे हैं वे दानदक्षिणा के फेर में पड़ गए हैं लेकिन उन की सामाजिक हैसियत है तो दोयम दर्जे की ही, जिसे स्वीकारने वे मजबूर हो चले हैं.

ऐसे कई सवाल हैं जिन पर इंडिया गठबंधन पहल करे दलित सचेतना को आंबेडकर और कांशीराम की तरह झकझोर पाए तो शायद दिल्ली दूर न रहे लेकिन इस के लिए उन्हें भगवा गैंग का धार्मिक चक्रव्यूह भेदना पड़ेगा और उस से भी पहले दलित विमर्श पर एक राय तो बनानी ही होगी.

धर्म के प्रचार के साथ देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ रहा है अपराध का ग्राफ

केंद्र की मोदी सरकार हो या उत्तर प्रदेश की योगी सरकार महिलाओं की सुरक्षा, शिक्षा, विकास के दावे खूब बढ़चढ़ कर करती है. औरत के पक्ष में खूब नारेबाजी करती है. योजनाओं के ढोल पीटती है मगर सचाई यह है की भाजपा के ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ के नारे के बीच देशभर में बेटियों हत्या, बलात्कार, हिंसा, लूट खसोट के मामले लगातार बढ़ ही रहे हैं.

कहीं उन पर एसिड अटैक हो रहे हैं, कहीं दहेज के लोभी राक्षस उन की हत्या कर रहे हैं, कहीं सत्ता में बैठे वहशी दरिंदे जनता को उकसा कर उन की नग्न परेड निकलवा रहे हैं, उन का सामूहिक बलात्कार करवा रहे हैं और सरेआम उन के गले रेत रहे हैं.

प्रतिदिन अखबार के पन्ने औरतों के प्रति होने वाली अपराध खबरों से रंगे रहते हैं. यह वो खबरे हैं जो किसी तरह थाने में दर्ज हो जाती हैं, मगर उन घटनाओं का क्या जो शर्म, गरीबी, जानकारी के अभाव या दबंगों के डर से सरकारी कागज पर दर्ज नहीं होतीं? उन घटनाओं की संख्या का तो पता ही नहीं चलता जो थाने तक आती हैं और पैसे के लेनदेन से दबा दी जाती हैं.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने औरतों के प्रति अपराध पर जो रिपोर्ट जारी की है उस के मुताबिक देश में हर घंटे 51 एफआईआर महिलाओं के खिलाफ हुए संगीन अपराध की दर्ज हो रही हैं.

महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराध

पिछले साल भारत में महिलाओं के खिलाफ रजिस्टर्ड अपराधों में 4 फीसदी की वृद्धि हुई है. महिलाओं के खिलाफ अपराध में दिल्ली सब से आगे है. यहां वर्ष 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में सब से अधिक दर 144.4 दर्ज की गई. यह राष्ट्रीय अपराध की औसत दर 66.4 से काफी अधिक है. 20 लाख से ज्यादा आबादी वाले 19 महानगरों की तुलना में दिल्ली में सर्वाधिक अपराध दर्ज किए गए हैं जो महिलाओं के खिलाफ हुए.

दूसरे नंबर पर योगी का उत्तर प्रदेश है जहां 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 65,743 मामले दर्ज हुए जो अन्य राज्यों की तुलना में बहुत अधिक हैं. इस के बाद महाराष्ट्र में 45,331 एफआईआर दर्ज हुईं, राजस्थान में 45,058, पश्चिम बंगाल में 34,738 और मध्य प्रदेश 32,765 एफआईआर दर्ज की गईं.

2022 में बलात्कार व गैंगरेप के साथ हत्या’ की कैटेगरी में भी उत्तर प्रदेश 62 पंजीकृत मामलों के साथ सूची में शीर्ष पर है. इस के बाद मध्य प्रदेश 41 मामलों के साथ दूसरे नंबर पर है. दहेज ह्त्या के मामले में भी उत्तर प्रदेश सब से आगे है. 2022 में 2,138 दहेज ह्त्या के मामले यहां थानों में दर्ज हुए. इस के बाद बिहार का नंबर है जहां दहेज दानवों ने 1,057 महिलाओं को दहेज के लालच में मौत की नींद सुला दिया.

राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2022 में देश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 445256 मामले दर्ज किए गए. आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत महिलाओं के खिलाफ ज्यादातर मामले ‘पति या उस के रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता’ (31.4 प्रतिशत) के थे, इसके बाद ‘महिलाओं का अपहरण’ (19.2 प्रतिशत), शील भंग (गरिमा के ठेस पहुंचाने) करने के इरादे से ‘महिलाओं पर हमले’ के तहत (18.7 प्रतिशत) और ‘बलात्कार’ (7.1 प्रतिशत) के मामले दर्ज हुए.

इस से पहले वर्ष 2021 में 428278 जबकि वर्ष 2020 में 371503 एफआईआर स्त्री के प्रति हुए अपराधों पर दर्ज हुई थीं.

पिछले 5 वर्षों में महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में सब से अधिक वृद्धि राजस्थान (61.7 फ़ीसदी), तमिलनाडु (58.1 फ़ीसदी) में दर्ज की गई है. जबकि असम में इस अवधि में ऐसे मामले लगभग आधे हो गए हैं.

साइबर अपराध के तहत दर्ज मामलों की संख्या में भी 24.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. 2021 में 52,974 मामलों से बढ़ कर यह संख्या 2022 में 65,893 हो गई. 2022 में, दर्ज किए गए साइबर अपराध के 64.8 प्रतिशत मामले धोखाधड़ी के हैं. इस के बाद जबरन वसूली (5.5 प्रतिशत) और यौन शोषण के (5.2 प्रतिशत) मामले सामने आए.

बच्चों के प्रति हिंसा

बच्चों के प्रति हिंसा और अपराध के मामलों में भी उत्तर प्रदेश सब से आगे है. वर्ष 2022 में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पोक्सो) अधिनियम के तहत उत्तर प्रदेश में 7,955 मामले दर्ज हुए. इस के बाद 7,467 मामलों के साथ महाराष्ट्र है. 2022 में देशभर में पोक्सो की धाराओं के तहत कुल 62,095 मामले दर्ज किए गए.

इस के अलावा, 2022 में ‘पोर्नोग्राफी के लिए बच्चों का इस्तेमाल / बाल पोर्नोग्राफी सामग्री का भंडारण’ कैटेगरी के तहत कुल 667 मामले दर्ज किए गए, जिन में सब से अधिक मामले बिहार (201) में, उस के बाद राजस्थान में (170) मामले दर्ज किए गए. देश में बच्चों के खिलाफ अपराधों में 8.7 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.

दलित व पिछड़ी जातियां उत्पीड़न का शिकार

दलित और अन्य पिछड़ी जातियां भी बड़ी संख्या में हिंसा और उत्पीड़न का शिकार हैं. एनसीआरबी की ताजा रिपोर्ट के कहती है कि 2022 में अनुसूचित जाति (एससी) के खिलाफ अपराध के तहत 57,582 मामले दर्ज किए गए, जो 2021 की तुलना में 13.1 प्रतिशत की वृद्धि है.

2021 में ऐसे 50,900 मामले दर्ज हुए थे. उत्तर प्रदेश 15,368 मामलों के साथ शीर्ष पर है. 2021 में एससी \एसटी अधिनियम के तहत दर्ज 13,146 मामलों की तुलना में एक साल के अंदर ये बहुत तीव्र वृद्धि है. इसी तरह, राजस्थान भी 8,752 मामले सामने आए हैं, जो 2021 में 7,524 मामलों से अधिक है. भारत में, 2022 में अनुसूचित जाति के खिलाफ बलात्कार के कुल 4,241 मामले दर्ज किए गए, जिस में 658 मामलों के साथ राजस्थान सब से आगे है, इस के बाद 646 मामलों के साथ यूपी है.

अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ होने वाले अपराधों में भी 2021 (8,802 मामले) की तुलना में 2022 में 14.3 प्रतिशत (10,064 मामले) की वृद्धि हुई है. एसटी के खिलाफ बलात्कार के 1,347 मामले दर्ज किए गए, जिस में मध्य प्रदेश 359 ऐसे मामलों के साथ आगे रहा.

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