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मधुचंद्रिका

रातरात भर प्रियतम की बांहों में सिमटी

छुईमुई सी कली

कैसे कहूं क्याक्या गुजरी

मिसरी की डली

 

माथे की बिंदिया चमकी

सावन की बूंदें बरसीं

मनप्राणों में भीगी

बूंदों से चोली भीगी

और भीगा यह तनमन

घूंघट खुली सी रह गई

कली खिली, फूल बन गई

हौलेहौले भीग गई बनारसी सारी

घांघर तेरी भांवर बन गई

 

मन एक भंवरा

चांद निकल पूनम का आया

शय्या पर सोई क्वांरी

सद्य: बन गई नारी.

 

– सनन्त प्रसाद

खतरनाक बीमारियों की सस्ती दवा

सरकारी अस्पतालों में घातक बीमारियों की सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की सरकार की योजना है. अब तक सिर्फ सामान्य बीमारियों की निशुल्क दवाएं गरीबों को अस्पतालों से उपलब्ध कराई जाती थीं. इन सस्ती और निशुल्क दवाओं के लिए भी लोग लंबी लाइन लगाते और कई बार जब तक नंबर आता, दवा देने वाला अस्पताल का कर्मचारी कहता-लंच का समय हो गया है, बाद में आना और खिड़की बंद कर देता. घंटाभर खिड़की पर दवा लेने के लिए धूप या छांव में खड़े व्यक्ति का नंबर आता तो या तो दवा ले कर जाता वरना कह दिया जाता कि दवा खत्म हो चुकी है. 

यह सरकारी अस्पतालों में गरीबों को दी जाने वाली सरकारी दवा की प्रत्यक्ष कहानी है. बहरहाल, अब सरकार की योजना कैंसर, ब्रेन ट्यूमर जैसी घातक बीमारियों की दवाएं सरकारी मैडिकल केंद्रों पर ही कम दामों पर उपलब्ध कराने की है. इन केंद्रों पर ये दवाएं लगभग पांचगुना सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराई जाएंगी.

बताया जा रहा है कि 3 हजार में मिलने वाली दवा 800 रुपए में और मस्तिष्क संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली मेरोपेनेम जैसी दवा 2,500 रुपए के बजाय सिर्फ 700 रुपए में दी जाएंगी. इन केंद्रों से ब्रैंडेड दवाएं बिकेंगी और उन पर सरकार की चौकस निगाह होगी. आमतौर पर सरकारी अस्पतालों से मिलने वाली दवा का स्तर बेहद खराब होता है और डाक्टर मरीज को वे दवाएं नहीं लेने की सलाह देते हैं.

हालांकि कई बार डाक्टर मैडिकल की दुकानों से बंधे अपने कमीशन के चक्कर में मरीज को बाहर से दवा खरीदने की हिदायत देते हैं. सरकारी केंद्रों पर खतरनाक बीमारियों की दवाओं की बिक्री के लिए सरकार फ्रैंचाइजी का सहारा ले रही है और अगले 4 साल में देश में 3 हजार नए औषधि केंद्र खोलने की योजना है. उस के लिए सारी तैयारी सरकार कर चुकी है. उसे सिर्फ योजना आयोग की मंजूरी लेनी है.             

बल्लेबल्ले तो सरकारी नौकरी में है

सरकार अपने कर्मचारियों को अत्यधिक सुविधा देती है, इसलिए देश में हर युवा का सपना सरकारी नौकरी हासिल करना होता है. कर्मचारियों की कार्यक्षमता बढ़ाने के नाम पर सरकार उन्हें खुश करने के सभी प्रयास करती है. नीतियां बनाने वाले भी तो सरकारी कर्मचारी ही होते हैं. उन्हें भी उन नीतियों का फायदा मिलता है, इसलिए वे लाभकारी नीतियां क्रियान्वित कराने तक सक्रिय रहते हैं. उन्हें फायदा नहीं होता तो फिर इस काम की योजना भी पंचवर्षीय होती और लाभ अर्जित करने वाले सिर्फ इंतजार ही करते रहते. इधर, सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के इश्यू अपने कर्मचारियों को आवश्यक रूप से देने की योजना बनाई है.

यह भी घोषणा गहो चुकी है कि इस योजना के तहत कुल बिकने वाले शेयरों के 5 प्रतिशत शेयर कर्मचारियों को छूट की दर पर मिलेंगे. मतलब यह कि शेयर की जो बाजार दर तय की जाएगी उस पर भी कर्मचारियों को छूट मिलेगी. सार्वजनिक क्षेत्र के सभी कर्मचारियों के लिए इस छूट की मंजूरी भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यानी सेबी से भी ली जा चुकी है.

नियम के तहत नाल्को, औयल इंडिया, राष्ट्रीय कैमिकल्स व फर्टिलाइजर सहित सभी कंपनियां विनिवेश की स्थिति में 5 प्रतिशत शेयर कर्मचारियों को देंगी. इन कंपनियों के सब से छोटे कर्मचारी का वेतन भी बहुत ज्यादा है जबकि बीटैक, एमटैक वाले हजारों बच्चे बेरोजगार घूम रहे हैं या 4-5 हजार रुपए प्रतिमाह की नौकरी कर रहे हैं. वे बहुत कम वेतन पर काम करने को तैयार हैं.

सरकारी नौकरी मिलते ही कर्मचारी जीवनभर के लिए निश्चिंत हो जाता है. उसे सब काम से बचने और मोटी तनख्वाह जेब में रख कर ऐश करने का सिद्धांत अपनाना होता है. उस की चिंता सरकार का सिरदर्द बन जाता है. उसे काम करना है अथवा नहीं, यह सब उस के विवेक पर छोड़ दिया जाता है. सरकार तो रामभरोेसे चलती ही है.

चिदंबरम का सुझाव सरकार को मान्य नहीं

वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने चालू वित्त वर्ष के लिए बजट पेश करते हुए इस वर्ष फरवरी में महिलाओं के लिए अलग राष्ट्रीय बैंक बनाने की घोषणा कर के अपनी तीक्ष्ण बुद्धि का लोहा मनवाने का प्रयास किया तो तत्काल समीक्षक उन से कुछकुछ सहमत नजर आ रहे थे. सब को लगा कि यह नया अंदाज है, हालांकि सभी इसे चुनावी बजट मान कर महिला मतदाताओं को लुभाने के प्रयास के रूप में देख रहे थे. वित्तमंत्री की भी अप्रत्यक्ष रूप से यही कोशिश थी. यह नया विचार था, इसलिए उन का विरोध कम ही हुआ. इस बैंक की स्थापना के लिए 1 हजार करोड़ रुपए की पूंजी की व्यवस्था की गई जिसे बहुत कम बताया जा रहा था. बैंक को इसी साल यानी चुनाव की घोषणा किए जाने से पहले स्थापित करने का प्रस्ताव है.

उधर यह प्रक्रिया सरकार ने तेज कर दी. कुछ निजी कंपनियां भी बहती गंगा में हाथ धोने का प्रयास करती हुई बैंक लाइसैंस पाने की कतार में खड़ी हो गई हैं. वित्तमंत्री ने कहा था कि बैंक महिलाओं के लिए होगा और उस में काम करने वालों में भी महिलाओं की फौज रहेगी. यह एक तरह का कुछ ऐसा ही सुझाव था कि कोई कहे कि महिला विकास विभाग में महिलाएं ही काम करेंगी, विकलांग विभाग में विकलांग ही होंगे और बाल विकास विभाग का दायित्व बच्चे संभालेंगे क्योंकि वे अपनी समस्याओं को ज्यादा अच्छी तरह समझते हैं.

चिदंबरम की बात को सरकार ने अव्यावहारिक बता दिया है. इस प्रक्रिया में लगे अधिकारियों ने कह दिया है कि बैंक में सभी कर्मचारी महिलाएं होंगी और ग्राहक भी महिलाएं होंगी, यह अव्यावहारिक स्थिति है. प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों की बात तार्किक है. निर्णय लिया गया है कि बैंक सब के लिए होगा. कम से कम उस में सभी महिला कर्मचारी तो नहीं रखी जा सकती हैं. अधिकारी बैंक में योग्य  पुरुष उम्मीदवारों की भरती पर सहमत हैं और उन की बात मानने के लिए चिदंबरम को बाध्य होना पड़ सकता है.

उम्मीद है कि समाज को बांटने वाली, वोट की राजनीति के तहत की गई यह घोषणा क्रियान्वित नहीं होगी.

 

रुपए की कमजोरी से लुढ़का बाजार

शेयर बाजार में लुढ़कन का दौर थम नहीं रहा है. राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय परिस्थितियां उस की वजह हैं लेकिन सब से बड़ी वजह रुपए में निरंतर गिरावट का माहौल रहा और 18 जून को तो रुपया डौलर के मुकाबले 58.77 रुपए के रिकौर्ड निम्न स्तर पर पहुंच गया. उस से बाजार की चिंता बढ़ गई और पहले से ही डांवांडोल बाजार 103 अंक लुढ़क गया. उस से पहले दिन?रुपया 110 पैसे गिरा था. उस से पहले पिछले वर्ष 22 जून को रुपया डौलर के मुकाबले 58.33 रुपए के रिकौर्ड स्तर पर पहुंचा था. रुपए के कमजोर होेने से मुद्रास्फीति की दर 3 साल के निचले?स्तर 4.7 प्रतिशत पर पहुंच गई है.

मुद्रास्फीति का असर बाजार में भी देखने को मिला और बौंबे स्टौक ऐक्सचैंज यानी बीएसई का सूचकांक 14 जून को 351 अंक चढ़ गया. उस दिन रुपए की स्थिति में भी कुछ सुधार हुआ जिस का सकारात्मक असर बाजार पर देखने को मिला लेकिन ब्याज दरों के?स्तर पर रिजर्व बैंक के निराशाजनक फैसले से बाजार में फिर मायूसी आ गई और सूचकांक में गिरावट दर्ज की गई.

जानकारों का कहना है कि मानसून के समय से पहले आने के कारण मची तबाही और रुपए में स्थिरता के लिए ठोस उपाय नहीं किए जाने के चलते बाजार में फिलहाल गिरावट का दौर जारी रह सकता है, हालांकि अगले चुनाव तक सरकार की स्थिरता का अनुमान बाजार में तेजी ला सकता है.

 

छोटे शहरों के बच्चों के बड़े कारनामे

यूपी बोर्ड की हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में अव्वल आ कर छोटे शहरों और कसबों के विद्यार्थियों ने अभाव व पुराने मिथकों को दरकिनार कर कामयाबी की नई इबारत लिख दी है. हर चुनौती का सामना कर इन्होंने बता दिया है कि वे घर और समाज पर बोझ नहीं बल्कि देश का भविष्य हैं. पढि़ए शैलेंद्र सिंह की रिपोर्ट.

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर दूर सिरौलीगौसपुर तहसील के गांव सिलौटा में आराधना शुक्ला रहती है. वह बाराबंकी शहर के महारानी लक्ष्मीबाई स्कूल से हाईस्कूल की पढ़ाई कर रही थी. उस के पिता रामकुमार शुक्ला पेशे से किसान हैं. आराधना अपने घर से स्कूल का सफर बस के द्वारा तय करती थी. वह रोज 100 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती थी. वह कहती है, ‘‘घर आने के बाद खाना खा कर मैं 1 घंटे तक आराम करती थी. बस के सफर में थक जाती थी. इस के बाद सब से पहले स्कूल में मिलने वाला होमवर्क पूरा करती थी. फिर विषयों को याद करती थी. मैं ने अपनी पढ़ाई पर सफर में होने वाली थकान को कभी हावी नहीं होने दिया.

मेरी एक ही इच्छा थी कि पढ़ाई में प्रथमआ कर अपने मातापिता का नाम रोशन करूं.’’ आराधना शुक्ला ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हाईस्कूल परीक्षा की मैरिट लिस्ट में दूसरा स्थान हासिल किया. लड़कियों के वर्ग में वह टौपर रही. उसे 97 फ ीसदी अंक हासिल हुए.

पढ़ाई के समय आराधना के परिवार वालों ने कभी उस से कोई घरेलू काम नहीं करवाया. उस की मां रीता शुक्ला कहती हैं, ‘‘गांव में लोग लड़कियों को घरेलू काम में लगा देते हैं. लड़का, लड़की का भेद करते हैं. हम ने कभी ऐसा नहीं किया और हमेशा अपनी बेटी की पढ़ने में मदद की. किचन के काम में तो कभी उस को हाथ लगाने नहीं दिया. लड़की एक बार किचन के काम में लगी तो वह बारबार उधर जाना चाहती है. मैं ने अपनी बेटी को हमेशा यह कहा कि किचन का काम सीखने का मौका तो बाद में भी मिल जाएगा पर पढ़ाई का मौका बाद में नहीं मिलेगा.’’

आराधना के छोटे भाईबहनों ने भी पढ़ाई के दौरान कभी परेशान नहीं किया. आराधना कहती है, ‘‘हम गांव में रहने वालों की सब से बड़ी परेशानी गांव में पूरे समय बिजली का न आना रहता है. ऐसे में हमें रात में पढ़ाई करने के लिए लालटेन का सहारा लेना पड़ता है. अगर सही तरह से गांव वालों को बिजली मिलने लगे तो हमारी यह परेशानी दूर हो जाए.’’ आराधना का अगला लक्ष्य इंटरमीडिएट यानी 12वीं की परीक्षा में इसी तरह अच्छे अंक लाना है.

बाधा नहीं बनी गरीबी

हाईस्कूल की ही परीक्षा में 89.33 फीसदी अंक हासिल कर के इलाहाबाद की राधा यादव ने अपने मांबाप का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. इलाहाबाद जिले के बाल विकास इंटर कालेज, चकराना, नैनी में पढ़ने वाली राधा यादव गरीब परिवार की लड़की है. उस के पिता विजय बहादुर यादव साइकिल रिपेयर करने की दुकान चलाते हैं.

राधा यादव कहती है, ‘‘मैं बड़ी हो कर डाक्टर बनना चाहती हूं. मैं ने देखा है कि बड़ेबडे़ शहरों के डाक्टर बनने वाले युवा गांव और छोटे शहरों में आने से कतराते हैं. ऐसे में हम डाक्टर बन कर गांव के लोगों का सही तरह से इलाज करेंगे.’’ कल तक जिस विजय बहादुर यादव को लोग साइकिल रिपेयर करने वाले के नाम से जानते थे आज उसे राधा यादव के पिता के नाम से जानने लगे हैं. 

उत्तर प्रदेश के हाईस्कूल बोर्ड की परीक्षा में कुल 38 लाख 4 हजार 580 छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. इन में से 33 लाख 31 हजार 904 लोग परीक्षा में शामिल हुए. 28 लाख 86 हजार 379 छात्र पास हुए. इन में 15 लाख 23 हजार 447 लड़के और 13 लाख 62 हजार 932 लड़कियां पास हुईं. हाईस्कूल परीक्षा में सब से ज्यादा अंक ला कर टौप करने वाले बच्चों में छोटे शहरों का बोलबाला रहा.

पहले 3 स्थान हासिल करने वालों में पहले स्थान पर बाराबंकी जिले के आशुतोष मिश्रा रहे. आशुतोष को 97.33 फीसदी अंक हासिल हुए. बाराबंकी जिले की ही आराधना शुक्ला को 97 फीसदी और इलाहाबाद की श्रेया श्रीवास्तव को 96.17 फीसदी अंक हासिल हुए. बडे़ शहरों के बच्चे मैरिट में 1-2 जगहों पर ही आ सके. मैरिट रैंक के 5वें स्थान पर आई बाराबंकी की समीक्षा वर्मा को 95.83 फीसदी, छठे स्थान पर बाराबंकी के ही आदर्श कांत शुक्ला, अध्ययन मिश्रा और गोंडा के कप्तान वर्मा संयुक्त रूप से रहे. इन सभी बच्चों को 95.66 फीसदी अंक मिले. मैरिट लिस्ट में 8वें नंबर पर अंबेडकर नगर के संजय यादव को 95.16 फीसदी और अमेठी के कमलराज को 95 फीसदी अंक मिले.

हाईस्कूल परीक्षा में सब से अधिक अंक लाने वाले आशुतोष मिश्रा के पिता अनिल मिश्रा नर्सिंग सहायक के पद पर काम करते हैं. आशुतोष कहता है, ‘‘पढ़ाई में विषयों को रटने के बजाय उसे सम?ा कर पढ़ना चाहिए.’’ उस का कहना है कि वह बड़ा हो कर आईएएस अफसर बनना चाहता है जिस से समाज से भ्रष्टाचार को दूर करने में योगदान दे सके.

साइकिल का सफर प्रतिदिन

उत्तर प्रदेश बोर्ड की इंटरमीडिएट यानी 12वीं कक्षा के परिणामों में पहले स्थान पर संयुक्त रूप से उन्नाव जिले की मनु सिंह और बाराबंकी जिले की अर्जिता वर्मा ने सफलता हासिल की. दोनों को ही96.8 फीसदी अंक हासिल हुए. उन्नाव उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 57 किलोमीटर दूर है. यहां के समेरपुर ब्लौक के न्योति पोखरी गांव में मनु सिंह रहती है. उस के पिता पहले सेना में थे. रिटायर होने के बाद वे गनमैन की नौकरी करते हैं. उन की पत्नी रश्मि सिंह अपने सासससुर के साथ भरेपूरे परिवार में रहती हैं. मनु की शुरुआती परीक्षा गांव के ही त्रिवेणी काशी इंटरमीडिएट स्कूल से हुई. हाईस्कूल में मनु सिंह को 76 फीसदी अंक मिले थे. मनु कहती है, ‘‘हाईस्कूल परीक्षा में मु?ो इतने अंक मिलने की उम्मीद नहीं थी. तभी मैं ने मन में ठान लिया था कि इंटरमीडिएट परीक्षा में कुछ ऐसा करना है जिस से लोग मु?ो याद रखें.’’

मनु को घर के लोग प्यार से छुटकी पुकारते हैं. मनु ने अपनी पढ़ाई के लिए कभी कोचिंग का सहारा नहीं लिया. उस का कहना है, ‘‘स्कूल में टीचर पूरा कोर्स सही से पढ़ा देते हैं. जरूरत इस बात की होती है कि आप सही से विषयों को सम?ों और उस को दोहराते रहें.’’

मनु अपने घर से 14 किलोमीटर दूर पढ़ने जाती थी. यह दूरी वह रोज साइकिल से पूरी करती थी. वह कहती है, ‘‘साइकिल चलाने में थकान तो होती थी पर मैं ने कभी उस को अपने मन पर हावी होने नहीं दिया. मैं हमेशा यही सोचा करती थी कि जब मैं सफल हो जाऊंगी तो सारी थकान मिट जाएगी.’’

कालेज के प्रबंधक कमल बहादुर सिंह कहते हैं, ‘‘मनु शुरू से ही पढ़ाई में काफी तेज थी. स्कूल के टीचर जो भी पढ़ाई करने को कहते थे वह पूरा करती थी.’’

मनु को भी बिजली की कमी काफी अखर रही थी. वह कहती है, ‘‘रात में जब बिजली नहीं आती थी तो पढ़ने में बहुत परेशानी होती थी. ऐसे में हमें लालटेन का सहारा लेना पड़ता था. अगर छोटे शहरों में भी बडे़ शहरों की सुविधाएं हो जाएं तो यहां के लोगों को सफलता हासिल करने में आसानी हो सकेगी.’’

बेटी ने बढ़ाया सम्मान

इंटरमीडिएट परीक्षा में संयुक्त रूप से पहले स्थान पर आने वाली बाराबंकी जिले की अर्जिता वर्मा बाराबंकी जिले के लखपेडा बाग की रहने वाली है. रामसेवक यादव इंटर कालेज की अर्जिता वर्मा के 1 भाई और 3 बहनें हैं. उस के पिता जगन्नाथ वर्मा स्कूल में प्रधानाचार्य हैं. अर्जिता ने बताया कि वह स्कूल के अलावा घर में 5 घंटे की पढ़ाई करती थी. यह पढ़ाई पूरी तरह से नियमित होती थी. उसे जिस विषय से डर लगता था उस को वह और गंभीरता से पढ़ती थी.

अर्जिता की मां सरिता वर्मा पोस्ट- ग्रेजुएट हैं. उन का पूरा ध्यान बेटी पर रहता था. वे सही टाइमटेबल के साथ अर्जिता को पढ़ने में मदद करती थीं. अर्जिता पढ़ाई के साथसाथ घर के कामों में भी हाथ बंटाती थी.

अर्जिता कहती है कि देश को परेशानियों से बचाने के लिए कानून को सही तरह और समय से काम करना होगा. कानून का डर सभी को होता है. खुद अर्जिता बड़ी हो कर जज बनना चाहती है.

ये तो कुछ उदाहरण हैं. पूरे प्रदेश में छोटे जिलों और गांवों के अभावग्रस्त बच्चों ने कमाल दिखाया है. इन की राह में बिजली का न आना और पढ़ने के लिए घंटों का थकानभरा सफर बाधा नहीं बन पाया. सब से बड़ी बात यह है कि हर चुनौती को दूर कर लड़कियों ने अपना प्रभाव दिखाया है. इस से यह बात साफ हो गई है कि लड़कियां घर और समाज पर बो?ा नहीं हैं. आने वाले समय में वे देश और समाज की सच्ची पथप्रदर्शक साबित होंगी.

ठगों के निशाने पर बेरोजगार

हमारे यहां मूर्खों की कमी नहीं, एक  ढूंढ़ो हजार मिल जाते हैं. इन्हीं मूर्खों को ठग मनमाने तरीकों से ठग कर अपनी रियासतें खड़ी कर लेते हैं. वैसे ठगी का धंधा बहुत पुराना है. पहले के ठग पुराने तरीकों से लोगों को मूर्ख बना कर लूटते थे लेकिन आज ठगी के तरीकों में बदलाव आ गया है. अब नई टैक्नोलौजी के सहारे घरबैठे इंटरनैट, मोबाइल फोन आदि का सहारा ले कर जालसाजी की जाती है, विज्ञापनों के भ्रमजाल में फंसा कर लूटा जाता है. लेकिन मूर्खों में अब तक कोई बदलाव नहीं आया. वे जस के तस हैं. ऐसे लोग कभी सारदा चिटफंड जैसी फ्रौड कंपनियों द्वारा 2 के 4 किए जाने के लालच में अपना सबकुछ लुटा बैठते हैं तो कभी भविष्य बांचने वाले ज्योतिषियों, ढोंगी बाबाओं, संतों की बातों में आ कर अपनी गाढ़ी कमाई उन की झोली में डाल देते हैं. कभी कोई ठग मिट्टी की ईंटें सोने के दामों में इन के हाथों बेच देता है तो कभी नौकरी के नाम पर ये अपने लाखों रुपए फर्जी एजेंटों के हवाले कर देते हैं. आज के जमाने में ऐसे भी ठग हैं जो परचे बांट कर लोगों को आमंत्रित करते हैं और फिर उन्हें ठगते हैं.

एक आंकडे़ के मुताबिक, पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर, निर्माण विहार, शकरपुर व इन के आसपास लगभग 250 फर्जी प्लेसमैंट एजेंसियां काम कर रही हैं और परचे बांट कर युवकयुवतियों को नौकरी दिलाने के नाम पर चूना लगा रही हैं. 24 साल का अंकुल वर्मा गाजियाबाद के एक छोटे से गांव का रहने वाला है. वह दिल्ली के एक इंस्टिट्यूट में पढ़ रहा है. पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए वह काफी समय से पार्टटाइम नौकरी ढूंढ़ रहा था. 

एक दिन उस ने सड़क पर लगे नौकरी दिलाने के एक विज्ञापन को देख कर उस पर दिए गए मोबाइल नंबर पर संपर्क किया. उसे इंटरव्यू के लिए नोएडा बुलाया गया, जहां एक छोटे से टैंपरेरी औफिस में एक मेज व कुछ कुरसियां पड़ी थीं और कुछ युवकयुवतियां बैठे थे. अंकुल से कुछ प्रश्न पूछने के बाद उस से एक फार्म भरवाया गया और जौब सिक्योरिटी के नाम पर उस से 500 रुपए वसूल कर उसे एक परची दे कर नोएडा स्थित एक्या टैक्नोलौजीज नामक कंपनी में भेज दिया गया जहां उस की नौकरी लगवा दिए जाने का दावा किया गया था. जब अंकुल वहां पहुंचा तो उसे पता चला कि इस कंपनी को कोई जानकारी ही नहीं थी कि उस के यहां किसी का इंटरव्यू होना है. अंकुल समझ गया कि दाल में कुछ काला है. उस ने विज्ञापन में दिए गए उस नंबर पर फिर संपर्क किया, फोन बंद था. अंकुल वापस उसी औफिस में पहुंचा जहां उस ने 500 रुपए दिए थे, लेकिन वह औफिस भी बंद निकला.

अंकुल ने कई चक्कर काटे, लेकिन औफिस नहीं खुला. यह 1 साल पुरानी घटना है. हाल ही में अंकुल जब लक्ष्मीनगर स्थित एक फर्जी प्लेसमैंट एजेंसी में नौकरी के लिए पहुंचा तो उसे होटल में वेटर की नौकरी दिलवाने का आश्वासन दे कर वरदी और जौब सिक्योरिटी के नाम पर उस से 1 हजार रुपए जमा करवाने को  कहा गया. यह छोटा सा औफिस लक्ष्मीनगर में एक बेसमैंट में चलाया जा रहा है जहां रमेश (बदला हुआ नाम) नाम का 25-26 साल का एक नौजवान युवक बौस बन कर बैठा है और उस के साथ काम करने वाली 3-4 लड़कियां आने वाले युवकों को नौकरी दिलाने का झांसा दे कर उन से 1 हजार रुपए वसूलने का जिम्मा संभालती हैं. यहां लंबे समय से युवकयुवतियों के साथ नौकरी दिलाने के नाम पर खिलवाड़ किया जा रहा है.

यहां पहुंचने पर हम ने पाया कि इस औफिस में एक पुलिस वाला भी बड़े दोस्ताना अंदाज में रमेश से अपने किसी रिश्तेदार की नौकरी लगवाने के लिए दबाव बना रहा था. रमेश व उस के यहां काम करने वाली एक लड़की निकिता (बदला हुआ नाम) ने हमें नौकरी देने का वादा किया और बताया कि हमें यहां आने वाले युवकों की जेब से किसी भी तरह 1 हजार रुपए निकलवाने होंगे. उन से ऐसे बात करनी होगी जिस से कि वे हमारी कंपनी पर आंख मूंद कर भरोसा कर लें. हमारी सैलरी इसी कार्यकुशलता के आधार पर निर्धारित की जानी थी कि हम 1 दिन में कितने युवकयुवतियों से रुपए निकलवाने में कामयाब हो पाते हैं. शुरू के 15 दिन हमें ट्रेनिंग पर रखे जाने की बात कही गई.

दरअसल, यहां आए युवकों को यहां मौजूद लड़कियां सोचनेविचारने का बिलकुल मौका नहीं देतीं और इस तरह बात करती हैं मानो यह नौकरी सिर्फ आज ही मिल सकती है. यदि देर की तो नौक री हाथ से निकल सकती है. ऐसे में युवक की जेब में जितने पैसे होते हैं उन्हें जमा करने क ो कह  कर बाकी दूसरे दिन जमा करवाने की मोहलत दे दी जाती है. हड़बड़ी में आ कर व्यक्ति तुरंत 1 हजार रुपए इन के हवाले कर देता है और फिर चक्कर पर चक्कर काटता रहता है और आखिरकार थक कर बैठ जाता है.

जब हम ने बतौर रिपोर्टर रमेश से इस बाबत बात की तो वह साफ मुकर गया कि वह किसी से भी 1 हजार रुपए नहीं लेता है. उस ने आगे कहा कि वह बिना पैसा लिए लोगों की नौकरी लगवाता है. लेकिन उस के पास इस बात का एक भी सुबूत नहीं था कि उस ने किसी की नौकरी लगवाई हो.

दरअसल, रमेश जैसे सैकड़ों ठग पूरी दिल्ली में चप्पेचप्पे पर अपना जाल बिछाए बैठे हैं और अंकुल जैसे सैकड़ों लड़केलड़कियों को मूर्ख बना रहे हैं. विशेष रूप से पूर्वी दिल्ली के लक्ष्मीनगर, शकरपुर व निर्माण विहार में पुलिस की नाक के नीचे लंबे समय से चलाया जा रहा यह धंधा चरम पर है. गलियों में छोटेछोटे औफिस 6 से 8 हजार रुपए में किराए पर ले कर इस तरह के ठगी के धंधों को अंजाम दिया जा रहा है. हैरानी की बात यह है कि यह ठगी छिपा कर नहीं बल्कि खुल्लमखुल्ला बसों, सड़कों, चौराहों पर परचे व हैंडबिल बांट कर, अखबारों में भ्रमित विज्ञापन दे कर, दीवारों पर पोस्टर आदि चिपका कर की जा रही है. ठग बड़ी कंपनियों में पार्टटाइम व फुलटाइम नौकरियों व आकर्षक वेतन का लालच देते हैं.

और तो और, राह चलते भी आप के हाथ में कोई सड़क किनारे खड़ा व्यक्ति विज्ञापन का छोटा सा परचा पकड़ा कर कौल सैंटर, बैंकों, रिसैप्शनिस्ट, वेटर आदि की नौकरी के लिए तुरंत इंटरव्यू करवा सकता है. इस के लिए न कोई उम्र का बंधन और न किसी विशेष डिगरी या उच्च शिक्षा की आवश्यकता बताई जाती है. इस तरह बेरोजगार युवकयुवतियां इन ठगों के जाल में फंस जाते हैं. इन परचों में औफिस का कोई पता या नाम नहीं दिया गया होता है. बस, एक  मोबाइल नंबर छपा होता है जिस पर संपर्क करने पर इंटरव्यू के लिए बुलाया जाता है और फिर ठगी के बाद इन मोबाइल नंबरों को बंद कर दिया जाता है या ठगी के किसी नए धंधे में प्रयोग किया जाता है.

एक ही समय में ये ठग कई टैंपरेरी औफिस खोल कर कई निजी कंपनियों के नाम से बेरोजगारों का पैसा हड़प रहे हैं.  एक जगह ठगी करने के बाद ये अपनी दुकान दूसरी जगह खोल कर अपना धंधा फिर से शुरू कर देते हैं. हैरानी तो तब होती है जब इन मामूली पढ़ेलिखे ठगों के निशाने पर पढ़ेलिखे लोग होते हैं जिन्हें फंसा कर ये अपनी उंगलियों पर नचाते हैं. पहले तो आश्वासन दिया जाता है कि बस 1 हजार रुपए देते ही नौकरी आप के हाथ में. जैसे ही 1 हजार रुपए इन के हाथ में आ जाते हैं, ये कहते हैं कि आप की 15 दिन की ट्रेनिंग होगी जिस के लिए 1 हजार से 15 हजार और जमा करवाने होंगे. जबकि ऐसी किसी टे्रनिंग के बारे में पहले नहीं बताया जाता.

टे्रनिंग के बाद 10-20 हजार रुपए वेतन वाली नौकरी मिल जाने का झांसा दिया जाता है. फंसा हुआ व्यक्ति यह पैसा भी जमा करवा देता है. इस के बाद उसे लंबे समय तक टाला जाता है और अंत में धमका कर या हाथापाई कर के भगा दिया जाता है. कभीकभी ट्रेनिंग के बाद किसी युवक को यदि किसी कंपनी में भेज भी दिया जाता है तो वहां उसे मात्र 4 या 5 हजार रुपए वेतन पर सफाईकर्मी या चपरासी की नौकरी पर रखा जाता है.

दरअसल, ठगी के ये ठिकाने लक्ष्मीनगर या शकरपुर में इसलिए हैं क्योंकि इस क्षेत्र में होस्टल व कंपीटिशन की किताबों की दुकानों की भरमार है, जहां छात्रछात्राएं बड़ी संख्या में देखे जाते हैं. इसी का लाभ उठा कर ठगी का धंधा करने वाले विशेषकर इन युवकयुवतियों को ही अपना निशाना बनाते हैं. इन फर्जी प्लेसमैंट एजेंसियों पर नौकरी पाने के लिए नौजवान लड़केलड़कियों का जमावड़ा लगा रहता है.

ऐसी ही ठगी करने वाले एक व्यक्ति ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया, ‘‘पूर्वी दिल्ली में जितने नौकरी दिलाने के नाम पर औफिस खुले हैं वे सब ठगी के ठिकाने हैं. आज तक इन्होंने कभी किसी को नौकरी नहीं दिलाई और न ही किसी कंपनी के साथ इन का कोई कौंटै्रक्ट होता है. धोखाधड़ी के इस धंधे को बिना किसी बाधा के चालू रखने के लिए पुलिस को हफ्ता पहुंचाया जाता है. इसलिए ठगी का शिकार हुआ कोई व्यक्ति जब शिकायत ले कर पुलिस के पास जाता है तो उसे बहाने बना कर बैरंग लौटा दिया जाता है. ये धंधा पूर्वी दिल्ली के अलावा नेहरू प्लेस, पीतमपुरा, बदरपुर व जनकपुरी में भी जोरों पर है. मौडलिंग या फिल्मों में काम दिलाने के नाम पर भी लूट का धंधा चल रहा है.’’

वास्तव में ये कम पढ़ेलिखे ठग बड़ी आसानी से लोगों को अपने झांसे में फंसा लेते हैं. इन में से कुछ ऐसे ठग भी मिल जाएंगे जिन की बुरी नजर सिर्फ आप की जेब पर ही नहीं बल्कि खूबसूरत लड़कियों पर भी रहती है. ये लोग अपने पास आने वाली खूबसूरत लड़कियों को अच्छी नौकरी दिलाने के एवज में शारीरिक संबंध बनाने का प्रस्ताव रखते हैं. अधिकतर दूसरे शहरों से आए भोलेभाले युवकयुवतियां नौकरी की आवश्यकता के चलते आसानी से इन के चंगुल में फंस कर अपना सबकुछ गंवा बैठते हैं. 

नौकरी के नाम पर ही नहीं, आप को पार्टटाइम, फुलटाइम बिजनैस में इनवैस्ट कर के अपना पैसा दोगुना करने का प्रलोभन भी दिया जाता है. इन के दरवाजे गृहिणियों, स्टूडैंट्स, रिटायर्ड आदि हर किसी के लिए खुले होते हैं. बस, जेब में पैसा होना चाहिए. यहां आप को शुरू में तो पैसा कमाने के लिए बिजनैस का बड़ा आसान तरीका बताया जाता है लेकिन समय के साथसाथ आप को इस फ्रौड बिजनैस के जाल में पूरी तरह उलझा दिया जाता है और आप के हजारों रुपए डूब चुके होते हैं और तब व्यक्ति जैसेतैसे इस से बाहर आने में ही अपनी भलाई सम?ाता है.

नौकरी दिलाने के गिरोह पूरे भारत में सक्रिय हैं जो भोलेभाले लोगों से लाखों रुपए की ठगी कर के फरार हो जाते हैं. विदेश में नौकरी दिलाने के नाम पर एजेंट इन युवकों से लाखों रुपए वसूल कर इन्हें अवैध तरीके से विदेशों में छोड़ कर भाग आते हैं. रेलवे, एमसीडी, पीडब्लूडी, मैट्रो ट्रेन, स्कूलों, सेना आदि में नौकरी दिलाने के नाम पर पूरे देश में सक्रिय ये गिरोह लोगों को लाखों का चूना लगा कर चंपत हो जाते हैं.

दरअसल, ठगी का यह धंधा और ये ठग इसलिए कभी कम नहीं होते क्योंकि भारत जैसे करोड़ों की आबादी वाले देश में आम जनता को लालच दे कर ठगना बड़ा आसान है. यह ठीक है कि बेरोजगारी और गरीबी के कारण लोग इन ठगों के चंगुल में फंसने को बाध्य हो जाते हैं. ऐसे सैकड़ों गिरोह निजी कंपनियों के नाम से हमारे और आप के बीच सक्रिय हैं.

यहां सवाल यह नहीं है कि ठग ठगी क्यों करता है बल्कि इस से बड़ा सवाल है कि आखिर हम ठगे क्यों जाते हैं? वास्तव में क्या हम पढ़ेलिखे हो कर भी इतने बेवकूफ हैं कि कोई भी राह चलता व्यक्ति हमें मूर्ख बना कर ठग ले. हमारे सोचनेसम?ाने की शक्ति क्या इतनी क्षीण हो चुकी है कि हम यह भी नहीं भांप पाते कि सारदा चिटफंड जैसी धोखेबाज कंपनी 1 लाख लोगोंका पैसा कैसे दोगुना कर देगी, कहां से लाएगी वह इतना पैसा. दरअसल, हमें भेड़चाल की आदत लग चुकी है. जिस तरफ 10 लोगों को दौड़ते देखा, सब उधर ही भागने लगते हैं. चाहे वे 10 लोग कुएं में ही कूदने क्यों न जा रहे हों. सम?ादार लोग दूसरों की गलतियों से सीख लेते हैं लेकिन इस तरह के मूर्ख जब तक खुद खड्डे में नहीं गिर जाते तब तक संभलते नहीं हैं. ऐसे लोगों के बल पर ही धोखाधड़ी के नएनए धंधे पनप रहे हैं.

यदि आप को सड़क पर कहीं किसी दीवार आदि पर नौकरी दिलाने का कोई विज्ञापन चिपका दिखे या नौकरी के नाम पर कोई आप से पैसा मांगे तो कतई उस के झांसे में न आएं. ये बहुरुपिए ठग आप से कहीं भी किसी भी रूप में टकरा जाएंगे और आप को ठग कर रफूचक्कर हो जाएंगे.

ऐसे मौके कम ही आते हैं जब ये ठग पकड़े जाते हों, इसलिए ठगे जाने के बाद हायतौबा करने से अच्छा है कि इन से सचेत और सावधान रहें.

पाठकों की समस्याएं

मैं 32 वर्षीया विवाहिता, 2 बच्चों की मां हूं. आज से 7-8 वर्ष पहले एक विवाहित अमीर आदमी ने मु?ो यह कह कर अपने प्यार के जाल में फंसा लिया कि उस की पहली शादी सिर्फ नाम की शादी है, वह अपनी पत्नी से अलग रहता है. मैं ने भी उस की बातों को सच मान कर अपने परिवार वालों के मना करने के बावजूद उस से शादी कर ली. उस से मेरे 2 बच्चे हुए. पर अब वह बदल गया है. उस ने अपनी सारी प्रौपर्टी अपनी पहली पत्नी और बच्चों के नाम कर दी है. मु?ो वह सिर्फ घर का खर्च देता है. वह यह भी कहता है कि उस ने मु?ा से सिर्फ सैक्स के लिए शादी की थी. मेरे बच्चे बड़े हो रहे हैं. मु?ो अपने और उन के भविष्य की चिंता सताती है. आप ही राह दिखाइए, मैं क्या करूं?

आप ने जानबूझ कर अगर नकली विवाह ही सही, किया है तो सैक्स तो होना ही था. अब वह आप के बच्चों का पिता है इसलिए जब तक हो सके उस से खर्चा लेती रहें. बच्चों को इस मामले से दूर रखें. पुरुष की पहली पत्नी से मुलाकात होने पर दोस्ती का भाव रखें क्योंकि लड़ाई?ागड़े में आप का ही नुकसान होगा. अपनी जिंदगी को नए सिरे से शुरू करने के बारे में सोचें. कुछ काम कर के अपनी आमदनी बढ़ाने की कोशिश करें. अखबार व इंटरनैट द्वारा दूसरे जीवनसाथी की तलाश करें. स्वयं को स्मार्ट व आत्मविश्वासी बनाएं. गलती का रोना रोने की स्थिति का मुकाबला करें. अपने इस नकली पति पर ज्यादा से ज्यादा पैसे लेने का लगातार दबाव बनाए रखें. हालांकि कानून आप के साथ है पर कानूनी खर्च बहुत ज्यादा होता है, इसलिए बिना अदालत जाए जो भी मिले उसे ले लें.

बच्चे जब 12-14 साल के हो जाएं तो धीरेधीरे उन्हें अपनी भूल के बारे में बताएं और कहें कि ऐसा आप ने भावनाओं में बह कर किया था. लेकिन अब उन की सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी आप की है. ऐसा कहने पर बच्चे आप का साथ देंगे और आप को सम?ोंगे.

 

मेरी 13 वर्षीय बेटी है. उस के पीरियड्स 11 वर्ष की आयु में शुरू हुए थे. पहले सब ठीक चल रहा था पर अब कुछ समय से उस के पीरियड्स 3-4 महीने के अंतराल पर हो रहे हैं. राय दीजिए, क्या करूं?

पीरियड्स के शुरुआती समय में कई बार ऐसा हो जाता है लेकिन यह कोई बीमारी नहीं है. फिर भी आप अपनी बेटी को किसी महिला रोग विशेषज्ञ को दिखा लें. अगर कोई परेशानी होगी तो कुछ जरूरी जांचों के बाद दवाओं से समस्या दूर हो जाएगी.

मैं 25 वर्षीय अविवाहित युवक हूं. आप से जानना चाहता हूं कि शादी के बाद पतिपत्नी में से एक के वैजीटेरियन और दूसरे के नौनवैजीटेरियन होने से क्या सैक्सलाइफ पर कोई असर पड़ेगा? एक के वैजीटेरियन और दूसरे के नौनवैजीटेरियन होने से वैवाहिक जीवन पर कोई असर नहीं पड़ता. यह अपनीअपनी पसंद है. हां, अगर पत्नी को वैजीटेरियन खाना पसंद है, और आप किचन में नौनवेज बनाते हैं तो हो सकता है उन को परेशानी हो. ज्यादा अच्छा तो रहेगा कि विवाह के बाद दोनों या तो वैजीटेरियन बन जाएं या नौनवैजीटेरियन.

 

मैं 14 वर्षीय किशोरी हूं. मेरे 2 बौयफ्रैंड हैं. एक से बात करती हूं तो दूसरा नाराज हो जाता है. दूसरे को मनाती हूं तो पहला नाराज हो जाता है. मैं दोनों से दोस्ती रखना चाहती हूं, सम?ा नहीं आता कैसे करूं. आप ही कोई सलाह दीजिए.

आप की बात से लगता है कि आप के दोनों दोस्त आप से दोस्ती रखना चाहते हैं और आप भी दोनों का साथ चाहती हैं, ऐसे में आप को सिर्फ इतना करना है कि अपने दोनों दोस्तों की आपस में दोस्ती करा दें. फिर देखिए कैसे आप की समस्या हल होती है और आप एकदूसरे का साथ ऐंजौय करते हैं.

 

मैं 19 वर्षीय विवाहिता हूं. शादी से पहले एक लड़के से प्यार करती थी पर पारिवारिक दबाव के कारण शादी किसी और से करनी पड़ी. शादी के बाद ससुराल वाले मु?ो मानसिक तौर पर प्रताडि़त करने लगे और मैं डिप्रैशन में चली गई. जब मेरे पूर्व प्रेमी को यह पता चला तो उस ने मु?ो बहुत सपोर्ट किया. वह मु?ा से आज भी शादी करना चाहता है और मैं भी अपनी आगे की जिंदगी उस के साथ बिताना चाहती हूं. मु?ो क्या करना चाहिए? सही राह सु?ाइए?

शादी के बाद आप के ससुराल वालों ने आप के साथ गलत व्यवहार क्यों किया? क्या आप ने कभी यह जानने की कोशिश की? कहीं आप के पूर्व प्रेम संबंध ही तो आप की समस्या का कारण नहीं? अपने पति व ससुराल वालों से उन की नाराजगी का कारण जानने की कोशिश करें. आमनेसामने बैठ कर बात करें. आपस में सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करें. लेकिन अगर आप पूर्व प्रेमी के साथ ही रहना चाहती हैं तो यह राह भी इतनी आसान नहीं होगी. आप को इस के लिए पति से तलाक लेना होगा जिस में लंबा समय और पैसा लगेगा. कुछ भी निर्णय लेने से पहले एक बार पति व ससुराल वालों के साथ बात कर के समस्या को सुल?ाने की कोशिश अवश्य करें.

 

मैं 35 वर्षीय विवाहिता हूं. आजकल मेरे और पति के बीच दूरियां बढ़ रही हैं. हम एकदूसरे से उखड़ेउखड़े रहने लगे हैं. हमारे रिश्ते में से प्यार की मिठास कहीं खो सी गई है. आप ही बताइए, क्या करूं?

किसी भी रिश्ते में दूरियों का कारण एकदूसरे को समय न देना होता है. आप के और आप के पति के बीच भी दूरियों व प्रेमाभाव का यही कारण है. आप अपने काम में कितने भी व्यस्त क्यों न हों, एकदूसरे के लिए समय निकालें. फिर देखिए, रिश्तों में कैसे मिठास वापस आती है.

भारत भूमि युगे युगे

शरीअत का कहर

अधेड़ावस्था में पिता बनने की चाहत फिल्म अभिनेता शाहरुख खान को महंगी पड़ रही है. वे यह ख्वाहिश किराए की कोख के जरिए पूरी करने जा रहे हैं. बात जब उजागर हुई तो मुल्लामौलवी तिलमिला उठे और शरीअत का हवाला देते हुए शाहरुख को हड़काने लगे. बकौल मुफ्ती मुजफ्फर हुसैन, सैरोगेसी से बच्चा पैदा करना बेहयाई है. इस मौलवी का कहना यह है कि बच्चे वैसे ही पैदा करने चाहिए जैसे कुदरती तौर पर होते हैं.

यानी शाहरुख को बेहयाई से बचने के लिए अपनी पत्नी गौरी से बेवफाई करनी चाहिए, यह जायज है. दोनों ही बातें औरतों पर जुल्म ढाती हुई हैं और मजहब के ठेकेदार यही चाहते हैं. वजह, किराए की कोख उन के धंधे को खोटा करती है. किसी के व्यक्तिगत मामले में दखल देना भले ही शरीअत में गुनाह हो लेकिन मौलवी समुदाय तो इसे करता ही रहा है.

इश्तहारी त्रुटि

जमाना इश्तहारों का है, कई तो इतने अच्छे होते हैं कि लोग उन्हें ही देखने के लिए टीवी देखते व पत्रिकाएं खरीदते हैं. जाहिर है कि ये विज्ञापन नामी और अच्छी एजेंसियों द्वारा तैयार किए जाते हैं. लेकिन सरकारी विज्ञापन आमतौर पर उबाऊ और पुराने जमाने की श्वेतश्याम डौक्यूमैंट्री फिल्मों सरीखे होते हैं जिन्हें देखने के बजाय लोग एक ?ापकी ले लेना पसंद करते हैं.

यूपीए सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने तकरीबन 2 अरब रुपए विज्ञापनों पर खर्च किए पर इन में से एक में क्रिकेटर महेंद्र सिंह धौनी को चेन्नई टीम का कैप्टन बिहारी… कहा गया था. छीछालेदर हुई तो कुछ दिनों बाद उसे सुधार लिया गया पर तब तक काफी कुछ बिगड़ चुका था. शुक्र तो इस बात का मनाना चाहिए कि मीडिया को हांकने वाले इस मंत्रालय ने धौनी को हौकी या फुटबाल का खिलाड़ी नहीं बताया था.

महंत की चाटुकारिता

केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री चरणदास महंत ने छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष बनने के बाद एक ऐसी बात कही जिसे सुन कर बेनी प्रसाद वर्मा जैसे चाटुकार भी शरमा जाएं. बकौल महंत, अगर सोनिया गांधी कहेंगी तो वे पोंछा भी लगा सकते हैं.

25 मई के हमले में छत्तीसगढ़ में नक्सलियों ने थोक में कांग्रेसी नेता मार डाले थे. लिहाजा, सोनिया को वहां एक ऐसे नेता की जरूरत थी जो जमीनी तौर पर मजबूत हो और भरोसेमंद भी. निष्ठा बुरी बात नहीं पर खुशामद और चाटुकारिता देख लगता है महंत जैसे नेताओं में स्वाभिमान नाम का तत्त्व पाया ही नहीं जाता. वे ऊपर तो खुद की मेहनत से आते हैं पर श्रेय गांधीनेहरू परिवार को देने लगते हैं और ?ाड़ूपोंछा तक करने को तैयार रहते हैं. ऐसे लोग काम क्या खाक करेंगे जो वैक्यूम क्लीनर के जमाने में भी पोंछा इस्तेमाल करते हों.

लालू और नीतीश के शनि

शिरडी के पास एक जगह है शिगणापुर, जहां अनूठा शनि मंदिर है. यहां हैरान- परेशान लोगों का तांता लगा रहता है. बीते दिनों लालू प्रसाद यादव भी वहां सपत्नीक गए और परंपरागत धोती पहन पूजापाठ कर अपने ऊपर चढ़े शनि उतारे. शिगणापुर इसलिए भी जाना जाता है कि वहां मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है यानी शनि भी महिलाओं से डरता है.

अंधविश्वासी लालू के शनि उतरे या नहीं, यह तो शायद ही कोई बता पाए पर यह जरूर कहा जा रहा है कि अब नीतीश कुमार को भी एक दफा वहां हो आना चाहिए. बिहार में हुए हालिया उपचुनाव में जीत दर्ज कराने के बाद लोग कहने लगे हैं कि लालू पर से शनि उतरते दिख रहे हैं.

ये पति

बात कुछ समय पहले की है. मुझे एक अजीब सी आदत हो गई थी चेहरे मिलाने की. मसलन, टीवी पर किसीकिसी लड़की को देख कर मैं कह उठती थी, देखो जी, यह तो बिलकुल अंजु की तरह लग रही है, है न? साथ में स्वीकारोक्ति भी चाहती थी. इन के न कहने पर मु?ो बुरा लगता था. इन्होंने मु?ो बहुत सम?ाया कि यह आदत अच्छी नहीं है. इसे छोड़ दो, पर मैं न सुधरी.

कुछ दिनों बाद हम सब टीवी देख रहे थे. तभी टीवी पर एक दुबलापतला सा लड़का दिखाई दिया तो मेरे पति तपाक से बोले, ‘‘अरे, देखो तो, यह तो बिलकुल मेरे साले जैसा दिख रहा है.’’

मैं बोली, ‘‘नहीं तो, यह तो कुछ अलग ही दिख रहा है.’’

कुछ देर बाद मैं भीतर चली गई.

अचानक इन्होंने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘अरे, जल्दी इधर आना.’’ मैं दौड़ कर गई तो टीवी पर एक मोटी सी महिला दिखा कर बोले, ‘‘ये तो बिलकुल मेरी सास जैसी दिखती हैं.’’ सिलसिला यहीं नहीं थमा, मेरे मायके के सारे चेहरों का मिलान इन के द्वारा होने लगा. पहले तो मैं चिढ़ती थी पर धीरेधीरे मेरी चेहरे मिलाने की आदत छूट गई.

वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)

 

मेरे पति अजीब भुलक्कड़ स्वभाव के हैं. गंभीरता से किसी बात पर ध्यान ही नहीं देते, खासकर घरेलू बातों पर. एक दिन मैं उन के साथ एक जरूरी काम के सिलसिले में एक रिश्तेदार के घर गई. दरवाजे पर ही वे अपनी पत्नी के साथ मिल गए. सुबह का समय होने की वजह से उन की पत्नी साफसफाई करने के चलते कुछ अस्तव्यस्त थीं. मेरे रिश्तेदार ने अपनी पत्नी का परिचय मेरे पति से कराया. इन्होंने भी बड़ी गर्मजोशी से नमस्ते की.

कुछ देर तक बातचीत होती रही, इतने में उन की पत्नी नहाधो कर नाश्ता ले आईं. मेरे पति ने उन्हें कोई और सम?ा कर फिर नमस्ते कर दी. मेरे रिश्तेदार ने हंसते हुए कहा, अरे साहब, मेरी एक ही पत्नी है 2? नहीं. अभीअभी तो मैं ने आप से मिलवाया है. उन की इस आदत से मैं पहले भी परेशान थी, उस दिन तो मु?ो बड़ी खी?ा हुई. जब मैं गुस्सा हुई तो बोले, ‘‘अरे यार, मैं तो तुम्हें भी नमस्ते करने जा रहा था किंतु तुम्हारी तरफ देख चुप हो गया. तुम उन के साथसाथ क्यों आईं थोड़ा आगेपीछे आतीं.’’

उन का जवाब सुन कर मु?ो हंसी तो बहुत आई किंतु गुस्सा भी बहुत आया. अब किसी रिश्तेदार के घर जाने से पहले उन्हें अच्छी तरह सम?ाबु?ा कर ले जाती हूं.

पुष्पा श्रीवास्तव, गोरखपुर (उ.प्र.)

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