सरकारी अस्पतालों में घातक बीमारियों की सस्ती दवाएं उपलब्ध कराने की सरकार की योजना है. अब तक सिर्फ सामान्य बीमारियों की निशुल्क दवाएं गरीबों को अस्पतालों से उपलब्ध कराई जाती थीं. इन सस्ती और निशुल्क दवाओं के लिए भी लोग लंबी लाइन लगाते और कई बार जब तक नंबर आता, दवा देने वाला अस्पताल का कर्मचारी कहता-लंच का समय हो गया है, बाद में आना और खिड़की बंद कर देता. घंटाभर खिड़की पर दवा लेने के लिए धूप या छांव में खड़े व्यक्ति का नंबर आता तो या तो दवा ले कर जाता वरना कह दिया जाता कि दवा खत्म हो चुकी है. 

यह सरकारी अस्पतालों में गरीबों को दी जाने वाली सरकारी दवा की प्रत्यक्ष कहानी है. बहरहाल, अब सरकार की योजना कैंसर, ब्रेन ट्यूमर जैसी घातक बीमारियों की दवाएं सरकारी मैडिकल केंद्रों पर ही कम दामों पर उपलब्ध कराने की है. इन केंद्रों पर ये दवाएं लगभग पांचगुना सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराई जाएंगी.

बताया जा रहा है कि 3 हजार में मिलने वाली दवा 800 रुपए में और मस्तिष्क संक्रमण के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली मेरोपेनेम जैसी दवा 2,500 रुपए के बजाय सिर्फ 700 रुपए में दी जाएंगी. इन केंद्रों से ब्रैंडेड दवाएं बिकेंगी और उन पर सरकार की चौकस निगाह होगी. आमतौर पर सरकारी अस्पतालों से मिलने वाली दवा का स्तर बेहद खराब होता है और डाक्टर मरीज को वे दवाएं नहीं लेने की सलाह देते हैं.

हालांकि कई बार डाक्टर मैडिकल की दुकानों से बंधे अपने कमीशन के चक्कर में मरीज को बाहर से दवा खरीदने की हिदायत देते हैं. सरकारी केंद्रों पर खतरनाक बीमारियों की दवाओं की बिक्री के लिए सरकार फ्रैंचाइजी का सहारा ले रही है और अगले 4 साल में देश में 3 हजार नए औषधि केंद्र खोलने की योजना है. उस के लिए सारी तैयारी सरकार कर चुकी है. उसे सिर्फ योजना आयोग की मंजूरी लेनी है.             

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