बात कुछ समय पहले की है. मुझे एक अजीब सी आदत हो गई थी चेहरे मिलाने की. मसलन, टीवी पर किसीकिसी लड़की को देख कर मैं कह उठती थी, देखो जी, यह तो बिलकुल अंजु की तरह लग रही है, है न? साथ में स्वीकारोक्ति भी चाहती थी. इन के न कहने पर मु?ो बुरा लगता था. इन्होंने मु?ो बहुत सम?ाया कि यह आदत अच्छी नहीं है. इसे छोड़ दो, पर मैं न सुधरी.
कुछ दिनों बाद हम सब टीवी देख रहे थे. तभी टीवी पर एक दुबलापतला सा लड़का दिखाई दिया तो मेरे पति तपाक से बोले, ‘‘अरे, देखो तो, यह तो बिलकुल मेरे साले जैसा दिख रहा है.’’
मैं बोली, ‘‘नहीं तो, यह तो कुछ अलग ही दिख रहा है.’’
कुछ देर बाद मैं भीतर चली गई.
अचानक इन्होंने जोर से चिल्ला कर कहा, ‘‘अरे, जल्दी इधर आना.’’ मैं दौड़ कर गई तो टीवी पर एक मोटी सी महिला दिखा कर बोले, ‘‘ये तो बिलकुल मेरी सास जैसी दिखती हैं.’’ सिलसिला यहीं नहीं थमा, मेरे मायके के सारे चेहरों का मिलान इन के द्वारा होने लगा. पहले तो मैं चिढ़ती थी पर धीरेधीरे मेरी चेहरे मिलाने की आदत छूट गई.
वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)
मेरे पति अजीब भुलक्कड़ स्वभाव के हैं. गंभीरता से किसी बात पर ध्यान ही नहीं देते, खासकर घरेलू बातों पर. एक दिन मैं उन के साथ एक जरूरी काम के सिलसिले में एक रिश्तेदार के घर गई. दरवाजे पर ही वे अपनी पत्नी के साथ मिल गए. सुबह का समय होने की वजह से उन की पत्नी साफसफाई करने के चलते कुछ अस्तव्यस्त थीं. मेरे रिश्तेदार ने अपनी पत्नी का परिचय मेरे पति से कराया. इन्होंने भी बड़ी गर्मजोशी से नमस्ते की.
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