यूपी बोर्ड की हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में अव्वल आ कर छोटे शहरों और कसबों के विद्यार्थियों ने अभाव व पुराने मिथकों को दरकिनार कर कामयाबी की नई इबारत लिख दी है. हर चुनौती का सामना कर इन्होंने बता दिया है कि वे घर और समाज पर बोझ नहीं बल्कि देश का भविष्य हैं. पढि़ए शैलेंद्र सिंह की रिपोर्ट.

उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर दूर सिरौलीगौसपुर तहसील के गांव सिलौटा में आराधना शुक्ला रहती है. वह बाराबंकी शहर के महारानी लक्ष्मीबाई स्कूल से हाईस्कूल की पढ़ाई कर रही थी. उस के पिता रामकुमार शुक्ला पेशे से किसान हैं. आराधना अपने घर से स्कूल का सफर बस के द्वारा तय करती थी. वह रोज 100 किलोमीटर से ज्यादा का सफर तय करती थी. वह कहती है, ‘‘घर आने के बाद खाना खा कर मैं 1 घंटे तक आराम करती थी. बस के सफर में थक जाती थी. इस के बाद सब से पहले स्कूल में मिलने वाला होमवर्क पूरा करती थी. फिर विषयों को याद करती थी. मैं ने अपनी पढ़ाई पर सफर में होने वाली थकान को कभी हावी नहीं होने दिया.

मेरी एक ही इच्छा थी कि पढ़ाई में प्रथमआ कर अपने मातापिता का नाम रोशन करूं.’’ आराधना शुक्ला ने उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की हाईस्कूल परीक्षा की मैरिट लिस्ट में दूसरा स्थान हासिल किया. लड़कियों के वर्ग में वह टौपर रही. उसे 97 फ ीसदी अंक हासिल हुए.

पढ़ाई के समय आराधना के परिवार वालों ने कभी उस से कोई घरेलू काम नहीं करवाया. उस की मां रीता शुक्ला कहती हैं, ‘‘गांव में लोग लड़कियों को घरेलू काम में लगा देते हैं. लड़का, लड़की का भेद करते हैं. हम ने कभी ऐसा नहीं किया और हमेशा अपनी बेटी की पढ़ने में मदद की. किचन के काम में तो कभी उस को हाथ लगाने नहीं दिया. लड़की एक बार किचन के काम में लगी तो वह बारबार उधर जाना चाहती है. मैं ने अपनी बेटी को हमेशा यह कहा कि किचन का काम सीखने का मौका तो बाद में भी मिल जाएगा पर पढ़ाई का मौका बाद में नहीं मिलेगा.’’

आराधना के छोटे भाईबहनों ने भी पढ़ाई के दौरान कभी परेशान नहीं किया. आराधना कहती है, ‘‘हम गांव में रहने वालों की सब से बड़ी परेशानी गांव में पूरे समय बिजली का न आना रहता है. ऐसे में हमें रात में पढ़ाई करने के लिए लालटेन का सहारा लेना पड़ता है. अगर सही तरह से गांव वालों को बिजली मिलने लगे तो हमारी यह परेशानी दूर हो जाए.’’ आराधना का अगला लक्ष्य इंटरमीडिएट यानी 12वीं की परीक्षा में इसी तरह अच्छे अंक लाना है.

बाधा नहीं बनी गरीबी

हाईस्कूल की ही परीक्षा में 89.33 फीसदी अंक हासिल कर के इलाहाबाद की राधा यादव ने अपने मांबाप का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया है. इलाहाबाद जिले के बाल विकास इंटर कालेज, चकराना, नैनी में पढ़ने वाली राधा यादव गरीब परिवार की लड़की है. उस के पिता विजय बहादुर यादव साइकिल रिपेयर करने की दुकान चलाते हैं.

राधा यादव कहती है, ‘‘मैं बड़ी हो कर डाक्टर बनना चाहती हूं. मैं ने देखा है कि बड़ेबडे़ शहरों के डाक्टर बनने वाले युवा गांव और छोटे शहरों में आने से कतराते हैं. ऐसे में हम डाक्टर बन कर गांव के लोगों का सही तरह से इलाज करेंगे.’’ कल तक जिस विजय बहादुर यादव को लोग साइकिल रिपेयर करने वाले के नाम से जानते थे आज उसे राधा यादव के पिता के नाम से जानने लगे हैं. 

उत्तर प्रदेश के हाईस्कूल बोर्ड की परीक्षा में कुल 38 लाख 4 हजार 580 छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. इन में से 33 लाख 31 हजार 904 लोग परीक्षा में शामिल हुए. 28 लाख 86 हजार 379 छात्र पास हुए. इन में 15 लाख 23 हजार 447 लड़के और 13 लाख 62 हजार 932 लड़कियां पास हुईं. हाईस्कूल परीक्षा में सब से ज्यादा अंक ला कर टौप करने वाले बच्चों में छोटे शहरों का बोलबाला रहा.

पहले 3 स्थान हासिल करने वालों में पहले स्थान पर बाराबंकी जिले के आशुतोष मिश्रा रहे. आशुतोष को 97.33 फीसदी अंक हासिल हुए. बाराबंकी जिले की ही आराधना शुक्ला को 97 फीसदी और इलाहाबाद की श्रेया श्रीवास्तव को 96.17 फीसदी अंक हासिल हुए. बडे़ शहरों के बच्चे मैरिट में 1-2 जगहों पर ही आ सके. मैरिट रैंक के 5वें स्थान पर आई बाराबंकी की समीक्षा वर्मा को 95.83 फीसदी, छठे स्थान पर बाराबंकी के ही आदर्श कांत शुक्ला, अध्ययन मिश्रा और गोंडा के कप्तान वर्मा संयुक्त रूप से रहे. इन सभी बच्चों को 95.66 फीसदी अंक मिले. मैरिट लिस्ट में 8वें नंबर पर अंबेडकर नगर के संजय यादव को 95.16 फीसदी और अमेठी के कमलराज को 95 फीसदी अंक मिले.

हाईस्कूल परीक्षा में सब से अधिक अंक लाने वाले आशुतोष मिश्रा के पिता अनिल मिश्रा नर्सिंग सहायक के पद पर काम करते हैं. आशुतोष कहता है, ‘‘पढ़ाई में विषयों को रटने के बजाय उसे सम?ा कर पढ़ना चाहिए.’’ उस का कहना है कि वह बड़ा हो कर आईएएस अफसर बनना चाहता है जिस से समाज से भ्रष्टाचार को दूर करने में योगदान दे सके.

साइकिल का सफर प्रतिदिन

उत्तर प्रदेश बोर्ड की इंटरमीडिएट यानी 12वीं कक्षा के परिणामों में पहले स्थान पर संयुक्त रूप से उन्नाव जिले की मनु सिंह और बाराबंकी जिले की अर्जिता वर्मा ने सफलता हासिल की. दोनों को ही96.8 फीसदी अंक हासिल हुए. उन्नाव उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 57 किलोमीटर दूर है. यहां के समेरपुर ब्लौक के न्योति पोखरी गांव में मनु सिंह रहती है. उस के पिता पहले सेना में थे. रिटायर होने के बाद वे गनमैन की नौकरी करते हैं. उन की पत्नी रश्मि सिंह अपने सासससुर के साथ भरेपूरे परिवार में रहती हैं. मनु की शुरुआती परीक्षा गांव के ही त्रिवेणी काशी इंटरमीडिएट स्कूल से हुई. हाईस्कूल में मनु सिंह को 76 फीसदी अंक मिले थे. मनु कहती है, ‘‘हाईस्कूल परीक्षा में मु?ो इतने अंक मिलने की उम्मीद नहीं थी. तभी मैं ने मन में ठान लिया था कि इंटरमीडिएट परीक्षा में कुछ ऐसा करना है जिस से लोग मु?ो याद रखें.’’

मनु को घर के लोग प्यार से छुटकी पुकारते हैं. मनु ने अपनी पढ़ाई के लिए कभी कोचिंग का सहारा नहीं लिया. उस का कहना है, ‘‘स्कूल में टीचर पूरा कोर्स सही से पढ़ा देते हैं. जरूरत इस बात की होती है कि आप सही से विषयों को सम?ों और उस को दोहराते रहें.’’

मनु अपने घर से 14 किलोमीटर दूर पढ़ने जाती थी. यह दूरी वह रोज साइकिल से पूरी करती थी. वह कहती है, ‘‘साइकिल चलाने में थकान तो होती थी पर मैं ने कभी उस को अपने मन पर हावी होने नहीं दिया. मैं हमेशा यही सोचा करती थी कि जब मैं सफल हो जाऊंगी तो सारी थकान मिट जाएगी.’’

कालेज के प्रबंधक कमल बहादुर सिंह कहते हैं, ‘‘मनु शुरू से ही पढ़ाई में काफी तेज थी. स्कूल के टीचर जो भी पढ़ाई करने को कहते थे वह पूरा करती थी.’’

मनु को भी बिजली की कमी काफी अखर रही थी. वह कहती है, ‘‘रात में जब बिजली नहीं आती थी तो पढ़ने में बहुत परेशानी होती थी. ऐसे में हमें लालटेन का सहारा लेना पड़ता था. अगर छोटे शहरों में भी बडे़ शहरों की सुविधाएं हो जाएं तो यहां के लोगों को सफलता हासिल करने में आसानी हो सकेगी.’’

बेटी ने बढ़ाया सम्मान

इंटरमीडिएट परीक्षा में संयुक्त रूप से पहले स्थान पर आने वाली बाराबंकी जिले की अर्जिता वर्मा बाराबंकी जिले के लखपेडा बाग की रहने वाली है. रामसेवक यादव इंटर कालेज की अर्जिता वर्मा के 1 भाई और 3 बहनें हैं. उस के पिता जगन्नाथ वर्मा स्कूल में प्रधानाचार्य हैं. अर्जिता ने बताया कि वह स्कूल के अलावा घर में 5 घंटे की पढ़ाई करती थी. यह पढ़ाई पूरी तरह से नियमित होती थी. उसे जिस विषय से डर लगता था उस को वह और गंभीरता से पढ़ती थी.

अर्जिता की मां सरिता वर्मा पोस्ट- ग्रेजुएट हैं. उन का पूरा ध्यान बेटी पर रहता था. वे सही टाइमटेबल के साथ अर्जिता को पढ़ने में मदद करती थीं. अर्जिता पढ़ाई के साथसाथ घर के कामों में भी हाथ बंटाती थी.

अर्जिता कहती है कि देश को परेशानियों से बचाने के लिए कानून को सही तरह और समय से काम करना होगा. कानून का डर सभी को होता है. खुद अर्जिता बड़ी हो कर जज बनना चाहती है.

ये तो कुछ उदाहरण हैं. पूरे प्रदेश में छोटे जिलों और गांवों के अभावग्रस्त बच्चों ने कमाल दिखाया है. इन की राह में बिजली का न आना और पढ़ने के लिए घंटों का थकानभरा सफर बाधा नहीं बन पाया. सब से बड़ी बात यह है कि हर चुनौती को दूर कर लड़कियों ने अपना प्रभाव दिखाया है. इस से यह बात साफ हो गई है कि लड़कियां घर और समाज पर बो?ा नहीं हैं. आने वाले समय में वे देश और समाज की सच्ची पथप्रदर्शक साबित होंगी.

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