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कुंभ – किसे क्या मिला

इलाहाबाद में संपन्न हुए महाकुंभ 2013 को प्रबंधन की दृष्टि से भले ही सफल आयोजन कहा जाए पर दोटूक सवाल यही है कि करोड़ों रुपए दांव पर लगा कर आखिर किस को मिला क्या? सच तो यह है कि कुंभ धर्म के धंधेबाजों और मुफ्तखोरों का ठिकाना है, जहां ठगी का खेल खेला जाता है. पढि़़ए बुशरा का लेख.

इलाहाबाद में 14 जनवरी को कड़कड़ाती ठंड के साथ शुरू हुआ महाकुंभ 2013 गरमी की आहट के साथ 10 मार्च को संपन्न हो गया. 55 दिनों तक चला यह कुंभ मेला 2001 में आयोजित महाकुंभ की तुलना में 10 दिन अधिक लंबा चला. इस दौरान इलाहाबाद की जमीन पर करोड़ों लोगों के कदम पड़े, शहर ने सभी का गर्मजोशी के साथ स्वागत किया.

दुनियाभर की नजरें कुंभ में जुटे करोड़ों लोगों के साथसाथ इस आयोजन के लिए की गई व्यवस्था पर भी टिकी रहीं. कुंभ मेला आस्था के केंद्र के साथसाथ बेहतरीन प्रबंधन व आर्थिक गतिविधियों के लिए भी लोगों के आकर्षण का केंद्र बना रहा. कड़ाके की सर्दी के बीच करोड़ों लोगों के रहने, भोजन और सुरक्षा के इतने बड़े पैमाने पर पुख्ता इंतजाम किए गए, जो दुनिया की किसी भी इवैंट कंपनी और प्रबंधन गुरु के लिए अजूबा और शोध का विषय हो सकता है. प्रबंधन गुरुओं और शोध छात्रों ने इस मेले के कई पहलुओं जैसे वित्त, मार्केटिंग, सूचना, संवाद, सामाजिक व आर्थिक स्तर और मानव संसाधन पर शोध किया. छात्रों के लिए यह जमीनी अनुभव था. यही नहीं, हार्वर्ड बिजनैस स्कूल औफ पब्लिक हैल्थ, फैकल्टी औफ आर्ट्स ऐंड साइंसेज, स्कूल औफ डिजाइन, हार्वर्ड बिजनैस स्कूल, मैडिकल स्कूल फैकल्टी के छात्र कुंभ पर शोध करने के लिए विशेष रूप से इलाहाबाद और वाराणसी पहुंचे जिन्होंने कुंभ आयोजन के हर पहलू पर शोध किया. शोध में मुख्य रूप से कुंभ में व्यापार व एक विशाल अस्थायी कुंभनगरी बसाने की प्लानिंग शामिल रही.

25 कोस में फैले त्रिवेणी के तट पर आयोजित होने वाले इस महाकुंभ में करोड़ों देशीविदेशी, अमीरगरीब, छोटेबड़े श्रद्धालुओं ने संगम में आस्था की डुबकी लगाई व पूजापाठ कर अपने पापों से मुक्ति पाने की प्रक्रिया संपन्न कर के हर्ष की अनुभूति प्राप्त की.

आयोजन के दौरान इन धार्मिक मेहमानों की मेजबानी के लिए इलाहाबाद ने पूरी तन्मयता से पलकपांवड़े बिछाए रखे. ‘अतिथि देवो भव:’ का भाव लिए राज्यप्रशासन के सभी महकमे व स्थानीय लोगों ने यहां आने वालों की सुविधा के लिए हर तरह के प्रबंध व सुविधाएं जुटाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. हालांकि रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ को ले कर कुंभ के इंतजामों पर सवाल अवश्य उठे लेकिन वे जल्द ही शांत हो गए.

मेला प्रशासन की ओर से इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि मेले में आने वाले किसी भी व्यक्ति को परेशानी न हो. इस के लिए हर वर्ग को ध्यान में रखते हुए प्रबंध किए गए. श्रद्धालुओं व साधुसंतों की सेवा में बड़ी संख्या में अफसरों व कर्मचारियों को तैनात किया गया.

मेला प्रशासन ने कुंभ क्षेत्र में 2 महीनों के लिए यमुना किनारे एक अस्थायी शहर ‘कुंभनगरी’ बसाया जो करोड़ों लोगों और भगवाधारियों से लबालब भरा रहा. करोड़ों लोगों के रहने, भोजन, तट पर डुबकी लगाने, उन के स्वास्थ्य व चिकित्सा और सुरक्षा आदि के प्रबंध व्यापक पैमाने पर किए गए.

पिछले महाकुंभ 2001 की तुलना में इस बार अधिक लोगों के आने का अनुमान लगाते हुए मेला क्षेत्र 1,500 हैक्टेअर से बढ़ा कर 2 हजार हैक्टेअर कर दिया गया था. सैक्टरों को भी 11 से बढ़ा कर 14 किया गया, साथ ही पार्किंग लौट्स 35 से बढ़ा कर 99 कर दिए गए थे ताकि वाहनों को पार्क करने के लिए जगह पर्याप्त रहे व आवाजाही के रास्ते बाधित न हों.

सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद बनाए रखने के लिए मेला क्षेत्र में 30 पुलिस स्टेशन स्थापित किए गए जिन में लगभग 12 हजार पुलिसकर्मी तैनात रहे व आग की किसी भी आपातस्थिति से निबटने के लिए इतने ही फायर स्टेशन बनाए गए.

किसी आतंकी हमले से सुरक्षा के मद्देनजर यमुना किनारे स्थित अकबर के किले में स्थानीय पुलिस और सेना की मदद से एक कंट्रोलरूम बनाया गया जहां संचार की समस्त नवीनतम तकनीकें उपलब्ध थीं. नाइट विजन कैमरे और लौंग रेंज कैमरे भी लगाए गए ताकि 1937 हैक्टेअर क्षेत्र में फैले मेले में हर पल चौकसी बरती जा सके. पुलिस के खोजी कुत्तों के 15 स्क्वैड संदिग्ध वस्तुओं की तलाश में लगाए गए.

करोड़ों लोगों के एक स्थान पर एकत्रित होने पर किसी तरह की कोई महामारी व बीमारी आदि न फैले,

इस के लिए सैकड़ों सफाई कर्मचारियों को चप्पेचप्पे की सफाई कार्य में लगाया गया. लोगों के मलमूत्र त्यागने के लिए 45 हजार अस्थायी शौचालय बनाए गए.

लोगों को चिकित्सा सेवा प्रदान करने के लिए 370 बिस्तरों वाले 48 अस्पताल पूरे मेला क्षेत्र में बनाए गए, जिन में 264 चिकित्सक व 838 स्वास्थ्यकर्मी काम पर लगाए गए. आपातकालीन स्थिति से निबटने के लिए 75 ऐंबुलैंस गाडि़यों को तैयार रखा गया.

लड़ाईझगड़े व वादविवाद के मामलों का तुरंत निबटारा करने के लिए अदालत व मजिस्ट्रेट भी तत्काल उपलब्ध रहें, इस के लिए एक अदालत का निर्माण किया गया. मेला क्षेत्र में रात में रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था बनाए रखने के लिए 25 हजार स्ट्रीट लाइटें लगाई गईं, जिस से घाटों पर चकाचौंध बनी रही.

भीड़ में एकदूसरे से बिछड़ों को मिलाने का जिम्मा लेते हुए 6 लौस्ट ऐंड फाउंड सैंटर्स बनाए गए जिन में हर समय अनाउंसमैंट की व्यवस्था रही ताकि लोगों को उन के बिछड़े साथी व खोयापाया सामान वापस मिल सके. 55 दिनों के इस लंबे आयोजन में किसी अप्रिय घटना से बचने और चप्पेचप्पे पर नजर रखने के लिए 100 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए थे जो मेले में होने वाली हर गतिविधि को रिकौर्ड करते रहे.

बाहर से आने वाले लोगों के रहने की व्यवस्था के लिए व वीआईपी पर्यटकों के लिए शहर में इलावर्त एवं त्रिवेणी पर्यटक आवास को उच्चीकृत किया गया. पर्यटन विभाग ने मेला क्षेत्र में रेत पर 10 महाराजा स्विस कौटेज व 42 लग्जरी स्विस कौटेज तैयार किए जो वाटरप्रूफ टैंट से बनाए गए थे ताकि बारिश आदि से बचाव रहे. इन में बैडरूम, लौबी, ड्रैसिंगरूम, स्टोररूम और बाथरूम थे. प्रवास का यह प्रबंध वास्तव में शाही था. इन में लकड़ी से बने डबल बैड, आरामदायक कुरसियां, डाइनिंग टेबल, कौफी टेबल आदि की सुविधाएं भी दी गईं. सर्दी को ध्यान में रखते हुए नहाने के लिए इन में गरम पानी मुहैया करवाया गया. इन कौटेजों का एक दिन का किराया 6 हजार से 10 हजार रुपए रखा गया था.

वहीं, आम पर्यटकों के लिए 66 लाख रुपए की लागत से स्विस कौटेज कालौनी का निर्माण किया गया जिस में शानदार सुविधाएं दी गईं. पर्यटन विभाग द्वारा मेला क्षेत्र में पांचसितारा सुविधाओं वाले लग्जरी कौटेज भी तैयार कराए गए, जहां विदेशी मेहमानों के साथसाथ देश के धनी वर्ग ने भी इस का लाभ उठाया. इस के अतिरिक्त मकानों का भी निर्माण किया गया.

मेला क्षेत्र की कच्ची जमीन पर लोहे की प्लेट्स लगा कर 156 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण किया गया जिस से लोगों के फिसल कर गिरने की आशंका न रहे. यमुना पर 12 पैंटून पुलों का निर्माण किया गया.

मीडियाकर्मियों के लिए मीडिया सैंटर्स बनाए गए, इन में पत्रकारों को हर तरह की सुविधाएं प्रदान की गईं.

सवाल यह है कि लगभग 1,200 करोड़ रुपयों की लागत से आयोजित हुए इस महाकुंभ से आखिर इलाहाबाद को क्या मिला?

जहां तक मेले से इलाहाबाद को मिलने वाले राजस्व का सवाल है तो इलाहाबाद महाकुंभ की आर्थिक क्षमता का हिसाब लगाते हुए ‘द एसोसिएटैड चैंबर्स औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री औफ इंडिया’ (एसोचैम) ने पहले ही अपना अनुमानपत्र जारी कर दिया था जिस के मुताबिक 2013 महाकुंभ के दौरान उत्तर प्रदेश को 12 से 15 हजार करोड़ रुपए का राजस्व अर्जित करने की बात कही गई. आयोजन के दौरान लोगों के लिए 6 लाख रोजगार के अवसर पैदा हुए. इस में एअरलाइंस व एअरपोर्ट सैक्टर में डेढ़ लाख, होटल इंडस्ट्री में ढाई लाख, टूर औपरेटर्स में 45 हजार, ईको टूरिज्म में 50 हजार व निर्माण कार्यों में 85 हजार रोजगार शामिल हैं.

इस से इलाहाबाद व आसपास के बेरोजगार युवकयुवतियों को वैकल्पिक रोजगार प्राप्त हुआ. विशेषकर होटलों, गैस्ट हाउसों व धर्मशालाओं ने कुंभ के दौरान जम कर चांदी काटी. लग्जरी होटलों में, जहां आम दिनों में 4,500 रुपए में कमरा मिल जाता है वहीं कुंभ के दौरान इन का रेट 12 हजार से 14 हजार रुपए तक पहुंच गया था. बजट होटल में किराया 3 हजार से बढ़ कर 9 हजार रुपए कर दिया गया.

इलाहाबाद के धार्मिक स्थलों के आसपास डेरा जमाए रखने वाले भूखेनंगे भिखारियों को 55 दिनों तक अपने दो वक्त के भोजन की चिंता नहीं करनी पड़ी. साथ ही, लोगों ने उन्हें खूब दान भी दिया. इलाहाबाद के गरीब रिकशा व आटोरिकशा चालकों ने इन 2 माह के भीतर कई गुना अधिक कमाई की और लोगों से मनमरजी का भाड़ा वसूल किया. वहीं इलाहाबाद के लोकल ट्रांसपोर्टरों व दुकानदारों, फुटकर विक्रेताओं ने भी जम कर लाभ कमाया.

मेले से इलाहाबाद को करोड़ों रुपए का राजस्व प्राप्त हुआ वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने अपनी भावी योजनाओं का मेले में जम कर प्रचारप्रसार किया. इस से न केवल प्रचार पर खर्च बचा बल्कि एक ही स्थान से करोड़ों लोगों तक सरकार अपना संदेश पहुंचाने में भी कामयाब रही. जहां लगभग 1,200 करोड़ रुपए की लागत से आयोजित इस कुंभ से केंद्र सरकार मालामाल हुई वहीं शहर के होटलों, बाजारों, रेलवे स्टेशन से ले कर सड़कों तक का पूरी तरह से कायाकल्प हुआ. इस दौरान सरकारी कर्मचारियों को खुद को बेहतरीन प्रशासनिक अधिकारी साबित करने का मौका भी मिला.

एसोचैम ने अपने अनुमान के अनुसार, आयोजन के दौरान इलाहाबाद में करोड़ों देशीविदेशी पर्यटकों की आवक का अनुमान लगाया था. निकटवर्ती राज्यों जैसे राजस्थान (जयपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, कोटा आदि), उत्तराखंड (नैनीताल, मसूरी, देहरादून, हरिद्वार, रानीखेत, अल्मोड़ा), उत्तर प्रदेश (आगरा, लखनऊ), पंजाब (अमृतसर,  लुधियाना), हिमाचल प्रदेश (शिमला, कुफरी, मनाली) में भी पर्यटन से राजस्व में भारी वृद्धि की संभावना जताई थी.

बिना कुछ खर्च किए लाभ कमाने वालों में धार्मिक गतिविधियों के संचालक शामिल हैं. पूरे आयोजन में आए साधुसंतों और अखाड़ों पर नोटों की बरसात होती रही. विभिन्न अखाड़ों के पास करोड़ों रुपयों का दान आया. मेले में आए साधुसंत व अखाड़े मलाई चाट कर चलते बने और अपने पीछे अंधभक्तों को धूल फांकने के लिए छोड़ गए जो आयोजन के अंतिम दिन तक संगम में डुबकियां लगाते रहे.

धार्मिक आयोजनों में आने वाले श्रद्धालुओं से आयोजक द्वारा किसी तरह का कोई प्रवेश शुल्क अथवा पैसा नहीं लिया जाता जबकि किसी ऐतिहासिक स्थल अथवा सिनेमा हौल आदि में टिकट ले कर ही प्रवेश कराया जाता है. क्योंकि लोगों को धर्म पहले मुफ्त में बांटा जाता है और फिर जब इस धर्मनुमा अफीम की लत लग जाती है तो इस के बदले में श्रद्धालु स्वयं पैसा लुटाने लगते हैं. धर्मगुरु इसी फार्मूले पर चलते हैं, धर्म के धंधे की यही आर्थिक नीति है. दान देने का पाठ पढ़ने वाले श्रद्धालुओं ने इन साधुसंतों को दिल खोल कर दान दिया और स्वयं सबकुछ लुटा कर गए.

दरअसल, इस तरह के धार्मिक आयोजनों को बढ़ाचढ़ा कर प्रचारित करने के पीछे कोई आस्था या विश्वास नहीं होता बल्कि ऐसे आयोजन करना कुछ लोगों का व्यवसाय है जिस के जरिए वे लाखोंकरोड़ों रुपयों का खरा लाभ कमाते हैं.

इन में सब से पहला नाम आता है साधुसंतों व धर्मगुरुओं का जो जनता के बीच धर्म का बीज बो कर उसे हर समय खादपानी देते रहते हैं ताकि इस पेड़ को हिला कर वे जब चाहें पैसा बटोर सकें. वहीं, दूसरी ओर जनता की धार्मिक भावनाओं का लाभ नेता अपनी राजनीति की नैया पार लगाने में उठाते हैं.

इस धार्मिक आयोजन के दौरान इलाहाबाद के हर छोटेबड़े धार्मिक स्थलों में श्रद्धालुओं ने दिल खोल कर दानदक्षिणा दी व चढ़ावा चढ़ाया. लोग श्रद्धाभाव से ओतप्रोत हो कर अधिक से अधिक दान देने की होड़ में थे. पूजापाठ व दानदक्षिणा के जरिए हर कोई अपने पापों से मुक्ति व अच्छे भविष्य की कुंजी चाह रहा था.

दरअसल, कुंभ में इलाहाबाद व साधुसंतों को मिलने वाले करोड़ों के लाभ के पीछे धर्म के इन करोड़ों ग्राहकों का ही योगदान है जो संगम तट पर लगने वाले धर्म के इस महा आयोजन का हिस्सा बनने के लिए हर पीड़ा सहने और सबकुछ लुटा देने को आतुर थे.

महाकुंभ 2013 में स्नान से श्रद्धालुओं के पाप धुले या नहीं, लेकिन यह कुंभ उत्तर प्रदेश सरकार को करोड़ों का राजस्व और लाखों बेरोजगारों को अस्थायी वैकल्पिक रोजगार के अवसर जरूर दे गया. साथ ही, देशदुनिया को बेहतरीन प्रबंधन का पाठ भी पढ़ा गया जिस के लिए प्रशासन व मेला प्रबंधन की चहुंओर वाहवाही हो रही है. इस कुंभ से सब से अधिक लाभ कमाने वालों में अखाड़े और साधुसंत रहे जो बिना कुछ खर्च किए करोड़ों बना कर चलते बने.

शह और मात का खेल

सहारा ने जिस पैरा बैंकिंग के जरिए कारोबार की दुनिया में सफलता की बुलंदियों को छुआ, आज वह हवाई किला साबित हो रही है. सेबी ने जिस तरह सहारा के झूठे दावों की पोल खोली है उस से सहारा समूह की कार्यशैली पर सवालिया निशान तो लग ही गया है. पढि़ए शैलेंद्र सिंह का लेख.

‘बस, बहुत हो गया,’ यह किसी टीवी सीरियल के डेली सोप या फिर फिल्म का डायलौग नहीं है बल्कि सहारा ग्रुप औफ कंपनीज का सिक्योरिटी ऐंड ऐक्सचेंज बोर्ड औफ इंडिया यानी सेबी को जवाब है. देखा जाए तो सहारा और सेबी के बीच चल रहे शह और मात के खेल में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका निर्णायक की है. सेबी शह और मात के इस खेल में सहारा को पछाड़ने में लगा है तो सहारा अपने साधनों का इस्तेमाल कर सेबी को झूठा और खुद को सच्चा साबित करने में लगा है.

सेबी जब सहारा पर कोई कार्यवाही करता है तो अगले दिन अखबारों में एक पैराग्राफ की खबर छपती है जिस से तिलमिला कर सहारा उस के अगले दिन अखबारों को पूरे पेज का विज्ञापन दे कर सेबी को झूठा साबित करने का प्रयास करता है.

17 मार्च, 2013, दिन रविवार को प्रकाशित विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ इस कड़ी का अंग है. इस विज्ञापन में सहारा ने सेबी को अप्रत्यक्ष रूप से धमकाने का काम किया है जो एक तरह से सुप्रीम कोर्ट की अवमानना सा दिखता है.

विज्ञापन में सहारा के प्रबंध कार्यकर्ता सुब्रत राय सहारा कहते हैं, ‘हमारा किसी भी तरह का दोष न होते हुए भी सेबी जानबूझ कर गलत आदेश पारित कर के हमें बदनाम कर रहा है जिस से पिछले 34 साल में मेहनत से अर्जित की गई छवि को नुकसान हो रहा है.’ यही नहीं, वे सेबी को टीवी चैनल पर खुली बहस करने के लिए चुनौती भी देते हैं.

वे यह भी कहते हैं कि सेबी बदले की भावना से काम कर रही है. सेबी को जवाब देने के लिए सहारा ने जिस तरह विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ का सहारा लिया है वह किसी धमकी से कम नहीं लगता. जब अदालत में इतने गंभीर लैवल पर मामला चल रहा हो तो ऐसे काम फैसले को प्रभावित करने की श्रेणी में आते हैं. बेहतर होता कि सहारा ये बातें अदालत में कहता जहां उस की बात को पूरी गंभीरता के साथ सुना जाता.

क्यों तिलमिलाया सहारा

सेबी ने निवेशकों का पैसा लौटाने में आनाकानी करने पर सहारा समूह के खिलाफ कड़े कदम उठाने की इजाजत देने के लिए 15 मार्च, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के सामने एक प्रार्थनापत्र दिया था. इस में सेबी ने सहारा समूह के मुखिया सुब्रत राय की गिरफ्तारी की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सामने याचिका दाखिल की थी.

जस्टिस के एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली पीठ ने अप्रैल के पहले सप्ताह में इस की सुनवाई करने की तारीख तय कर दी. इस याचिका में पहली बार सेबी ने कहा कि अदालत सुब्रत राय के देश छोड़ने पर रोक लगाए. सुप्रीम कोर्ट से कहा गया कि वह सुब्रत राय को अपना पासपोर्ट अदालत में जमा करने का आदेश दे. सुब्रत राय के साथ ही साथ सहारा समूह के 2 और निर्देशकों, अशोक राय चौधरी और रवि शंकर दुबे के खिलाफ भी गैर जमानती वारंट जारी करने का अनुरोध किया गया था.

दरअसल, यह पूरा मामला निवेशकों के 24 हजार करोड़ रुपए लौटाने से जुड़ा हुआ है. खुद सुप्रीम कोर्ट सहारा समूह की 2 कंपनियों, सहारा इंडिया रियल स्टेट कौर्पोरेशन और सहारा हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन द्वारा गलत तरीके से जुटाए गए 24 हजार करोड़ रुपए निवेशकों को लौटाने का आदेश दे चुका है. इस के बाद भी सहारा इस रकम को लौटाने में आनाकानी कर रहा है.

सेबी का कहना है कि सहारा सही जानकारी न दे कर उसे और अदालत दोनों को गुमराह कर रहा है. इस से बचने के लिए सेबी पहले ही सहारा इंडिया रियल स्टेट कौर्पोरेशन, सहारा हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन और सुब्रत राय सहित 3 दूसरे निदेशकों के चलअचल खाते और संपत्ति जब्त करने की प्रक्रिया शुरू कर चुका है.

34 सालों में पहली बार किसी सरकारी विभाग ने सहारा समूह के खिलाफ इतने बड़े लैवल पर पुख्ता प्रमाणों के साथ कार्यवाही की है. सेबी की कार्यवाही से अदालत भी सहमत नजर आती है. इस का प्रमाण तब मिला जब सहारा ने सुप्रीम कोर्ट से निवेशकों का पैसा लौटाने के लिए समय देने की मांग की. उस समय चीफ जस्टिस अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने सहारा समूह को फटकार लगाते हुए कहा कि उस ने पहले दिए गए आदेशों का पालन नहीं किया है. ऐसे में सहारा समूह को लग रहा है कि कहीं अगर सेबी की बात मानते हुए अदालत ने सुब्रत राय और दूसरे निदेशकों के देश छोड़ कर न जाने का आदेश दे दिया और उन का पासपोर्ट जमा कर लिया तो वह सहारा की सब से बड़ी हार होगी. ऐसे में सहारा समूह के खिलाफ अदालत से बाहर धमकी देने जैसे विज्ञापन ‘बस, बहुत हो गया’ छपवाया गया है.

अगस्त 2012 में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अगुआई में बनी 3 सदस्यों की खंडपीठ ने सहारा को 3 करोड़ निवेशकों को 15 फीसदी ब्याज के साथ लगभग 24 हजार करोड़ रुपए वापस करने का आदेश दिया था. सहारा ने इस आदेश पर पुनर्विचार के लिए एक याचिका दाखिल की थी. 9 जनवरी, 2013 को सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के एस बालाकृष्णन और जगदीश सिंह खेहर की खंडपीठ ने इस याचिका को खारिज कर दिया था. ऐसे में निवेशक बेचैन हैं. उन्हें समझ नहीं आ रहा कि उन का जमा पैसा कैसे वापस मिलेगा.

नाम बदल कर कराया निवेश

कोलकाता में कंपनी और कारोबारी जगत के जानकार श्रीकुमार बनर्जी का कहना है कि आम लोगों से पैसे उगाहते रहने के लिए मार्च 2008 में सहारा इंडिया ने अपनी एक अन्य कंपनी सहारा इंडिया ‘सी’ जंक्शन का नाम बदल कर सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पाेरेशन कर दिया. कंपनी ने डिबैंचर के माध्यम से रुपए उगाहने का फैसला किया. इस के बाद सितंबर 2009 में सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन ने भी डिबैंचर के रूप में निवेश कराने का फैसला किया.

कंपनी की ओर से कहा गया कि यह रकम वह रियल एस्टेट और इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश करेगी. इस के अलावा सहारा क्रैडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी के माध्यम से भी सहारा ने निवेश कराया. सहारा क्रैडिट कोऔपरेटिव सोसाइटी एक तरह की कोऔपरेटिव संस्था थी. इस पर रिजर्व बैंक औफ इंडिया का नियंत्रण नहीं था. ऐसे में सहारा पर यह आरोप लगा कि वह किसी चिटफंड कंपनी की ही तरह लोगों से पैसा वसूल रहा था.

सहारा समूह ने लोगों को शुद्ध चीजें उपलब्ध कराने के नाम पर सहारा क्यू शौप की शुरुआत की. सहारा क्यू शौप डायरैक्ट सेलिंग प्रोजैक्ट है. इस को जुलाई 2012 में सुब्रत राय और स्वप्ना राय ने 5 लाख रुपए के मूलधन से शुरू किया था. तय हुआ था कि कंपनी की आधिकारिक इक्विटी मूलधन 10 लाख करोड़ रुपए होगी. निवेशकों से भी 12,250 रुपए की रकम अग्रिम ली गई थी. इस रकम के एवज में कंपनी ने निवेशकों को यह सहूलियत दी कि निवेशक इस रकम के बराबर मूल्य की सामग्री क्यू शौप के यूनिक प्रोडक्ट रेंज से खरीद सकते हैं. साल 2012 में आधिकारिक इक्विटी मूलधन 5 लाख से बढ़ कर अब 2 हजार करोड़ रुपए का हो गया.

क्यू शौप के लिए वसूल की गई रकम को सहारा ने परोक्ष रूप से रियल एस्टेट में खर्च किया. 4 अक्तूबर, 2012 को कंपनी ने 2 हजार करोड़ रुपए का शेयर ऐंबी वैली सिटी डैवलपर्स को दिया. ऐंबी वैली सिटी डैवलपर्स ऐंबी वैली सिटी की ही अलग कंपनी है. सहारा इंडिया कौमर्शियल कौर्पाेरेशन ऐंबी वैली सिटी का एक बड़ा शेयरधारक है. इस कंपनी में सहारा इंडिया कौर्पाेरेशन के 40 प्रतिशत, स्वप्ना राय के 26 प्रतिशत, ऐंबी वैली लिमिटेड के 35 प्रतिशत शेयर हैं.

इस के अलावा ऐंबी वैली लिमिटेड के प्रोमोटर शेयरधारक के रूप में सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन के 40 प्रतिशत, सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन के 3 प्रतिशत और सहारा इंडिया कौमर्शियल कौर्पोरेशन के  25 प्रतिशत शेयर हैं. कुल मिला कर यह पूरा मामला बहुत जटिल है. इस को समझ पाना बड़े से बड़े निवेशक के लिए सरल नहीं है. कारोबार जगत के लोग मानते हैं कि जटिलता रिजर्व बैंक, सेबी और निवेशकों की आंख में धूल झोंकने के लिए है.

सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन और सहारा इंडिया हाउसिंग इंवैस्टमैंट कौर्पोरेशन के डिबैंचर के निवेशकों का पैसा चुकाने के लिए सहारा ग्रुप की ओर से सुप्रीम कोर्ट में ऐंबी वैली लिमिटेड की 3,500 एकड़ जमीन को सिक्योरिटी के रूप में रखा गया है. सेबी को गोलगोल घुमाने के लिए सहारा ने विभिन्न कंपनियों में पैसों को गोलगोल घुमाया है. साथ में आम निवेशकों का पैसा सहारा ग्रुप ने रियल एस्टेट में निवेश किया. ऐंबी वैली को सहारा ग्रुप और ऐंबी वैली लिमिटेड ने मिल कर मुंबई में लोनावला के पास बसाया है. 10,600 एकड़ जमीन पर ऐंबी वैली नाम से बसा यह शहर एक बहुत ही आधुनिक सिटी के रूप में बसाया गया. इस की एक शाखा मौरीशस में बताई जाती है. कंपनी की एक शाखा ने न्यूयार्क में प्लाजा होटल और लंदन में ग्रौसवेनर होटल भी खरीदा है.

आमनेसामने सेबी और सहारा

सहारा ग्रुप को निवेशकों का कितना पैसा चुकाना है, इस को ले कर सेबी का आंकड़ा 26 हजार करोड़ रुपए के आसपास का है. इस के विपरीत सहारा का कहना है कि उस ने 22 हजार करोड़ रुपए निवेशकों को लौटा दिए हैं. उसे अब केवल 3,500 करोड़ रुपए ही लौटाने हैं.

सहारा कंपनी का मानना है कि वह सेबी के अधीन आती ही नहीं है. इस आधार पर उस ने सेबी को कोई भी जानकारी देने से इनकार कर दिया था. सहारा ग्रुप का कहना है कि उस की कंपनी शेयर बाजार में पंजीकृत नहीं है, इसलिए वह सेबी के अधीन नहीं आती है. दबाव में आने के बाद सहारा ने निवेशकों से जुड़े तमाम तथ्य सीडी में डाल कर सेबी को दिए. यह सीडी पासवर्ड प्रोटैक्टेड थी, जिस के चलते सेबी उन का विश्लेषण करने में नाकाम रही. सीडी सेबी के किसी काम न आ सकी. सेबी की आपत्ति पर सहारा ने निवेशकों से जुड़े दस्तावेज ट्रकों में लाद कर सेबी को भेज दिए. इन का अध्ययन करना सेबी के लिए आसान नहीं था.

सहारा के हजारों निवेशकों में से सेबी को केवल 68 प्रामाणिक निवेशक मिले हैं. सहारा का कहना है कि जिन छोटेबड़े निवेशकों को भुगतान किया जा चुका है, वे सेबी से संपर्क क्यों करेंगे. सेबी का आरोप है कि सहारा ने अपने निवेशकों के सही पते नहीं लिखे हैं. सहारा कहता है कि हमारे लाखों निवेशक चाय के ढाबे चलाने जैसे छोटेछोटे रोजगार करते हैं. वे सड़क किनारे बैठते हैं. उन के पते उसी तरह के हो सकते हैं. इसी तरह गांव के लोगों के भी न मकान नंबर होते हैं और न ही उन का कोई महल्ला होता है. बड़ी संख्या में ऐसे निवेशक हैं जिन के अपने मकान नहीं हैं, इसलिए वे समयसमय पर अपने पते बदलते रहते हैं.

सहारा का तर्क है कि हमारे एजेंट उन को जानते हैं, इसलिए जरूरत पड़ने पर उन लोगों तक पहुंच जाते हैं. ‘बस, बहुत हो गया’ विज्ञापन में सहारा ने सेबी को चुनौती देते हुए कहा है कि वह हमारे एक भी निवेशक को फर्जी पा ले या उसे फर्जी साबित करे.

सेबी के आरोपों के जवाब में सहारा दावा करता रहा है कि उस ने निवेशकों के पैसे वापस कर दिए हैं. सहारा के इस तर्क का जवाब देने के लिए असली निवेशकों ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा दिया है. दिल्ली के रहने वाले रोशन लाल मौर्या ने दूसरे निवेशकों के साथ मिल कर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की और अदालत से गुहार लगाई कि उन के पैसे ब्याज सहित देने के लिए सहारा को आदेश दिया जाए.

कंपनी रजिस्ट्रार ने किए सवाल

सहारा अपने निवेशकों का पैसा लौटाने के बजाय उसे दूसरी योजनाओं में बिना निवेशक की जानकारी के निवेश कर देता था. कंपनी रजिस्ट्रार कानपुर, उत्तर प्रदेश ने इस की जांच शुरू कर दी है. सहारा इंडिया रियल एस्टेट कौर्पोरेशन लिमिटेड के खिलाफ आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर, समाजसेवी नूतन ठाकुर और आशीष वर्मा ने शिकायत दर्ज कराई थी. सेबी के जाल से बचने के लिए सहारा ने क्यू शौप को उपभोक्ता सामग्री बेचने वाली नैटवर्क कंपनी बताया था.

असल में सहारा, क्यू शौप के जरिए भी पैसे एकत्र कर रहा था. नूतन ठाकुर और अमिताभ ठाकुर ने सहारा क्यू शौप के 1-1 हजार रुपए के 2 बौंड खरीदे. बौंड खरीदते समय इन लोगों को बताया गया कि 8 साल के बाद 1 हजार रुपए के बदले 2,335 रुपए देंगे. इस से पता चलता है कि ऊपर से सहारा जिस योजना को उपभोक्ता सामग्री वाली चेन बताते रहे, असल में वह भी निवेश योजना का अंग थी.

एक दूसरे शिकायतकर्ता आशीष के पास 58 हजार रुपए के 4 ऐडोबे बौंड थे. उस के मिलने वाले 2 लाख 32 हजार रुपए सहारा कंपनी पहले सहारा क्यू शौप में निवेश कराना चाहती थी. कंपनी रजिस्ट्रार में शिकायत के बाद सहारा ने पूरा पैसा वापस कर दिया. कंपनी रजिस्ट्रार कानपुर ने शिकायत के आधार पर सहारा रियल एस्टेट से 5 सवाल पूछे हैं. ये सवाल हैं : क्या सहारा रियल एस्टेट बौंड को सहारा क्यू शौप में परिवर्तित करने हेतु धारा 297 के तहत कंपनी अधिनियम के तहत कोई अनुमति ली गई है? सहारा रियल एस्टेट के बौंड में पैसा लौटाने की जगह पर सहारा क्यू शौप में सामग्री खरीदने की कोई शर्त थी? क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश में पैसा लगाने की जगह पर बौंड परिवर्तन की व्यवस्था है? अब तक कैश और शेयरों के माध्यम से परिवर्तित किए गए निवेश का प्रतिशत क्या है? क्या सहारा रियल एस्टेट के ब्रोशर में सहारा क्यू शौप से सामान खरीदने की बात कही गई थी?

सहारा पर सेबी की शिकायत से पहले भी आरोप लगते रहे हैं. सहारा की ‘द प्राइज सर्कुलेशन ऐंड कलैक्शन मनी गोल्डन स्कीम’ भी सवालों के घेरे में रहती है. 1995-96 में शुरू की गई इस स्कीम के जरिए पैसा हड़पने का आरोप लगा था. पैसा जमा करने वालों की याचिका पर बदायूं के न्यायिक मजिस्ट्रेट बिसौली शिवकुमार ने सहारा के कुछ लोगों के खिलाफ फरवरी में गैर जमानती वारंट जारी किया है. मजिस्ट्रेट की सुनवाई में ये लोग उपस्थित नहीं हो रहे थे, इस कारण अदालत को यह कदम उठाना पड़ा है.वर्ष 1986 में सहारा ने ‘गोल्डन की’ नाम से एक इनामी योजना शुरू की थी. इनाम बांट कर पैसा दोगुना करने का लालच दे कर लोगों से इस योजना में पैसा लगवाया गया. इस के खिलाफ सुब्रत राय, जयव्रत राय और ओ पी श्रीवास्तव के खिलाफ अलीगंज थाने में मुकदमा लिखा गया था.

अपराध संख्या 332/93 पर दर्ज इस मुकदमे की जांच का काम सीबीसी आईडी ने किया था. 2003 में इस मामले में चार्जशीट भी सौंप दी गई थी. इस के बाद शुरू हुआ मामले से बच निकलने का काम. मुकदमा वापस लेने का प्रयास शुरू हो गया. 18 अप्रैल, 2007 को न्यायिक मजिस्ट्रेट बिजेंद्र त्रिपाठी ने मुलायम सरकार के प्रार्थनापत्र 3 मई, 2006 को अस्वीकार कर दिया था. 31 जुलाई, 2009 को यूपी के न्याय विभाग ने भी मामला वापस लेने की अर्जी को खारिज कर दिया था. 3 नवंबर, 2009 को सत्र न्यायाधीश ने निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया जिस में मामले को वापस लेने से मना कर दिया गया था. 

20 नवंबर, 2009 को इस की शिकायत भारत के मुख्य न्यायाधीश से की गई.

दीवाली 2022: त्यौहारों पर सही लाइटिंग से जगमगाएं घर

लोग अब अपने  घरों  के लुक को लेकर पहले से ज्यादा जागरूक हो गए हैं, अब वे बारीक से बारीक पहलुओं पर ध्यान  देते है और जब बात घर की सजावट की आए तो इसमें भी पहले के मुकाबले काफी बदलाव देखे गए हैं. जहां पहले घरों में लाइट केवल रोशनी के लिए लगाई जाती थी, लेकिन आजकल लाइट घर की साजसजावत से लेकर लाइफस्टाइल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. लाइट डौक्टर एक्सपर्ट्स की मानें तो घरों में कूल कलर की लाइट के इस्तेमाल करने के बजाए वार्म कलर की लाइट का इस्तेमाल करना चाहिए. कूल कलर की लाइट से जहा मन विचलित रहता है वहीं वार्म कलर मन को स्थिर रखती है. आइए जानते हैं प्राची लोड फौउन्डिंग पार्टनर और सीईओ , लाइट डौक्टर से कि घरों में परफेक्ट लाइट रिजल्ट पाने के लिए आपको किन किन बातों का ध्यान रखना

  1. रूम की लाइट

सस्पेंडेड लाइट जैसे की पेंडेंट्स और शेंडलीर लगाने से पहले आपको रूम की हाइट का ध्यान रखना चाहिए. लाइट न ही ज्यादा ऊंचाई पर होनी चाहिए और न ही ज्यादा ज़मीन के पास. एक्सपर्ट्स के अनुसार अगर आपके रूम की हाइट 9 फुट है, सीलिंग पर लगने वाली लाइट 12 -24 इंच नीचे होनी चाहिए. ध्यान रखे लाइट चलते हुए आपसे न टकराए.

  1. डायनिंग एरिया के लिए लाइट

अगर आप डयनिंग टेबल के ऊपर लाइट लगवाने की सोच रहे हैं तो ध्यान रखें कि लाइट  के बेस और टेबल के सरफेस के बीच 30 से 36 इंच का अंतर होना चाहिए.आमतौर पर छोटी लाइट को नीचे किया जा सकता है. थोड़ी सी क्रिएटिविटी और कुछ बातों का ध्यान रखकर आप अपने डयनिंग एरिया को सेंटर ऑफ़ अट्रैक्शन बना सकते हैं.

  1. प्री प्लानिंग है जरूरी

जैसे घर बनाने से पहले हर कार्नर का लेआउट बनाया जाता है , ठीक उसी प्रकार लाइट के लेआउट को भी प्रीप्लान करना जरूरी है. उदहारण के लिए अगर आप फाल्स सीलिंग पर शेडलीर लाइट लगवाने की सोच रहे हैं तो फिनिशिंग स्टेज में ब्रेकेज से बचने के लिए आपको पहले ही सपोर्ट फ्रेम लगवा लेना चाहिए. ऐसे ही इलेक्ट्रिक केबल, प्लग सॉकेट्स की प्लेसमेंट को भी पहले से ही प्लान करना जरुरी होता है.

  1. लेयरिंग लाइटिंग

अब आपको समझ आ गया होगा कि लाइट का उपयोग अब सिर्फ रोशनी के लिए ही सीमित नहीं है. एक्सपर्ट्स के अनुसार गुड लाइट में लेयरिंग को भी प्रैक्टिस किया जा सकता है.  लेयरिंग और बेहतरीन रिजल्ट के लिए एम बीएंट, ए कसेंट और टास्क लाइट का कौम्बिनेशन सबसे बेहतरीन माना जाता है. दीवारों और फ्लोर पर एम बीएंट लाइट  (फर्स्ट लेयर) लगाई जाती है. जिससे घरो में सफाई में मदद मिलती है. वहीं एक्सेंट लाइट उसी कार्नर को पहले की तुलना में बेहतरीन दिखाता है. ये लाइट किसी भी कार्नर को डेकोरेटिव बनाने के लिए लगाई जाती है और इस लाइट में टेबल लैंप, फ्लोर लैंप के कई औप्शन मिल जाते हैं. तीसरी लेयर टास्क लाइट की लगाई जाती है.

इन सब पहलुओं पर चर्चा करने के बाद आप समझ ही गए हैं कि परफेक्ट लाइट घर के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. लाइट आपके मूड, हेल्थ और लाइफस्टाइल पर अहम भूमिका निभाती है. इसलिए घरों में लाइट लगवाने से पहले लाइट डौक्टर के सुझावों पर जरूर ध्यान दे.

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Bollywood : फिल्ममेकर्स कुछ नया और बड़ा करने के लिए धार्मिक फिल्मों का सहारा लेते हैं,

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ये दर्शकों के बीच सब से ज्यादा पसंद भी की जाती हैं. बौलीवुड में ऐसी ही कुछ फिल्में हैं जो काफी विवादों में रहने के बावजूद भी छप्परफाड़ कमाई कर चुकी हैं.

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हिंदी फिल्में असल में मनोरंजन का एक पैकेज हुआ करती हैं, जिस में गाने, डांस, मारधाड़ आदि दृश्य होते हैं. फिल्मों को समाज का आईना भी कहा जाता है, इस वजह से हिंदी फिल्में भी उस बात को ध्यान में रखते हुए ही बनाई जाती हैं, जिस में सब से अधिक धार्मिक फिल्में सब को अधिक पसंद आती है, क्योंकि धर्म हर व्यक्ति की भावनाओं से जुड़ा होता है और इस पर बनी फिल्में दर्शकों को अधिक आकर्षित करती हैं.

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बौलीवुड की ऐसी 5 सफल धार्मिक फिल्में हैं, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया. ऐसी फिल्मों पर कई बार सवाल भी उठाए जाते हैं, लेकिन

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फिल्ममेकर इसे बनाने से नहीं चूकते.

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अभिनेता आमिर खान और अभिनेत्री अनुष्का शर्मा की फिल्म ‘पीके’ भक्ति और आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधे को ले कर बनाई गई फिल्म है, जिस में धर्म को ले कर आडंबर और लूटपाट की घटनाओं के बीच एक दूर ग्रह से एक अंतरिक्ष यात्री आता है, जिस के भाषा का कोई आचरण नहीं औ

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र न ही उस के शरीर पर वस्त्रों का कोई आवरण है. सच्चे दिल का एक इंसान है, लेकिन उस के बातचीत और सवालों से धरतीवासी चकित हो जाते हैं और मान बैठते हैं कि वह हमेशा पिए रहता है यानि पीके घूम रहा है.

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Baidyanath Sundari Sakhi : महावारी यानी मासिक धर्म एक ऐसी प्रक्रिया है जो हर महिला के जीवन का अहम हिस्सा है. यह केवल भौतिक विकास का प्रतिनिधित्व करता है, बल्कि अपने साथ काई तरह की समस्याएं भी उत्पन्न करता है. आइए, हम इन समस्याओं का विश्लेषण करें और उनके समाधान खोजें.

महावारी की समस्याएँ

   1. समस्याओं का संकोच 

बहुत सी महिलाएँ महावारी के दौरन होने वाले शरीरिक और मानसिक दर्द के बारे में बात करने में संकोच महसूस करती हैं. इसी वजह से उन्हें सहारा नहीं मिलता और समस्याओं को समझने और हल करने में कठिनाई होती है.

    2. शारीरिक दर्द

बहुत सी महिलाएँ महावारी के दौरन पेट दर्द, सर दर्द, और थकान का सामना करती हैं. ये दर्द कभीकभी इतना कठिन होता है कि उनका दिनचर्या प्रभावित होती है.

   3. मानसिक तनव

हार्मोनल परिवर्तन की वजह से महावरी के दौरान महिलाएं मानसिक तनाव और मूड स्विंग का सामना करती हैं. इस्से उनका सामान्य जीवन जीने में कठिनाइयां होती है.

   4. स्वास्थ्य संबंधि समस्याएँ

कुछ महिलाओं को अत्यधिक रक्तस्राव, अनियमित मासिक धर्म, या PCOS जैसा स्वास्थ्य संबंध समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो उनकी जीवन शैली को प्रभावित कर सकती हैं.

समाधान

     1. समस्या का विश्लेषण 

महावरी से जुड़ी समस्याओं पर खुली बातचीत करना जरूरी है. परिवार और दोस्त इसमें मददगार साबित हो सकते हैं. जागरूकता बढ़ाने से समस्या कम होती है.

    2. दर्द प्रबंधन

दर्द के लिए दर्द निवारक दवा का उपयोग किया जा सकता है. कुछ महिलाएं योग और ध्यान के माध्यम से भी दर्द को कम करने का प्रयास करती हैं.

   3. पोषण और व्यायाम 

सही पोषण और नियमित व्यायाम से आप अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते हैं. फल, सब्जियां और hydration का ध्यान रखना जरूरी है.

   4. मानसिक स्वास्थ्य सहायता

अगर आपको मानसिक स्वास्थ्य के दौरान स्वास्थ्य समस्याओं से जूझना पड़ता है, तो पेशेवर मदद लेना संभव है. Counselling या therapy से आपको समस्याओं का समाधान मिल सकता है.

यदि इसे भी आराम नहीं मिलता, तो आप वैद्य से परामर्श लेकर बैद्यनाथ द्वारा दी गई सुंदरी सखी का उपयोग कर सकते हैं;

बैद्यनाथ सुंदरी सखी आयुर्वेदिक जड़ीबूटियों से तैयार किया गया एक healthy टॉनिक है, सेहत को हर स्तर पर सुधारने में मदद करता है। इसमें शामिल जड़ीबूटियाँ सिर्फ शारीरिक बल देती हैं, बल्कि मानसिक तनाव को भी कम करती हैं.

बैद्यनाथ सुंदरी सखी में शामिल आयुर्वेदिक जड़ीबूटियाँ

  1. अशोका: महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य को सुधारने वाली यह जड़ीबूटी मासिक धर्म की अनियमितताओं में बहुत लाभकारी है.
  2. अश्वगंधा: यह जड़ीबूटी शरीर की थकान और दर्द को दूर कर ऊर्जा प्रदान करती है.
  3. मंजिष्ठा – यह त्वचा के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है

सुंदरी सखी का उपयोग कैसे करें?

  • वैद्य से परामर्श लेकर रोजाना सुबह और शाम 2 चम्मच सुंदरी सखी को गुनगुने पानी  के साथ लें.
  • इसे नियमित रूप से 3 महीने तक उपयोग करें.
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