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आर्थिक जोखिम वाले 10 देशों में भारत भी

वर्ष 2013 भारत के लिए आर्थिक परिदृश्य के हिसाब से उपयुक्त नहीं है. इस साल देश की अर्थव्यवस्था को संतुलित बनाए रखने का जोखिम है. भारत 2013 में दुनिया की 10 सब से जोखिम वाली अर्थव्यवस्था वाले देशों में 9वें स्थान पर है. आर्थिक मामलों पर नजर रखने वाले वैश्विक यूरेशिया समूह के एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ है.

अध्ययन में कहा गया है कि भारत में अगले वर्ष आम चुनाव है और उस से पहले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं जिन्हें देखते हुए सरकार अवसरवादी निर्णय ले सकती है और यदि ऐसा हुआ तो यह निर्णय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए जोखिम भरा हो सकता है. क्षेत्रीय दल भी अपने यहां कठोर कदम नहीं उठाएंगे. ऐसे में कमजोर आर्थिक नीतियां प्रभावी होंगी जो अर्थव्यवस्था के लिए जोखिम भरी हो सकती हैं.

इस क्रम में चीन दूसरे स्थान पर है. उस के बारे में कहा गया है कि वह सूचना के प्रवाह के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है. इस क्रम में जापान, इसराईल और इंगलैंड 5वें स्थान पर हैं जबकि ईरान 8वें स्थान पर है. ईरान का परमाणु कार्यक्रम उस के लिए जोखिम भरा बताया गया है.

भारत के बाद और सब से कम जोखिम वाले इन देशों की सूची में दक्षिण अफ्रीका आखिरी स्थान पर है. सूची में उत्तरी अमेरिका तथा लैटिन देशों का जिक्र नहीं किया गया है. अध्ययन में तो उन्हें शामिल ही नहीं किया गया. उन की अर्थव्यवस्था जोखिम के दायरे में नहीं है.

सरकारी लघु बचत योजनाओं पर लगा ग्रहण

लगभग ढाई दशक पहले तक जब उदारवादी अर्थव्यवस्था अपने शैशवकाल में या शुरुआती दौर में थी तो सरकारी स्तर पर बचत की कई लघु योजनाएं शुरू की गईं और पैसे वाले, सामान्य आय वर्ग वाले और नौकरीपेशा लोग उस में पैसा लगा कर 5 साल तक अपने निवेश के दोगुना होने का निश्चिंत हो कर इंतजार करते. बस चिंता थी?तो सिर्फ यह कि लघु बचत योजना पत्र को संभाल कर रखना है और निश्चित समय पर उस का भुगतान पा कर अगले 5 साल के लिए उसे फिर निवेश कर देना है. यह नौकरीपेशा लोगों में सामान्य प्रवृत्ति थी.

इन बचत योजनाओं के लिए सब से सुरक्षित और सुलभ डाकखाने ही हुआ करते थे. हर गली और हर गांव में डाकखाना था और डाकघर में रखा पैसा सब से अधिक सुरक्षित माना जाता था इसलिए हर आदमी डाकघर की योजना से जुड़ना चाहता था. लेकिन अब इस तरह की राष्ट्रीय बचत योजनाएं संकट में हैं. आज स्थिति बदल गई है और इन योजनाओं में पैसा जमा करने की तुलना में निकाले जाने की गति बढ़ी है.

जिस पश्चिम बंगाल में शारदा ग्रुप की चिटफंड कंपनी ने घोटाला किया है और लोगों के हजारों करोड़ रुपए डकार गई है वहां साल 2013 के वित्त वर्ष की पहली तिमाही में लघु बचत यानी डाकखाना आदि में जमा होने वाली कुल पूंजी 194 करोड़ रुपए थी जबकि लक्ष्य 8,370 करोड़ रुपए का रखा गया था. इसी तरह से इस अवधि में राष्ट्रीय स्तर पर इन योजनाओं में कुल जमा 15 हजार करोड़ रुपए रहा जबकि 2009-2010 वित्त वर्ष में यह राशि 64,300 करोड़ रुपए थी. कहने का तात्पर्य यह है कि लोग सुरक्षित योजनाओं से भाग कर लालच में लुटेरों के जाल में फंस रहे हैं और सरकार यह सब चुपचाप देख रही है क्योंकि नेताओं और अफसरों के इन योजनाओं को चलाने वालों के साथ करोड़ों रुपए दांव पर लगे हैं.

ब्याज दर नहीं घटने से बाजार में मायूसी

अप्रैल तक बाजार में सबकुछ बढि़या रहा. हर दिन बाजार नया स्तर पार करता रहा और 25 अप्रैल को बौंबे स्टौक ऐक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक 7 माह के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया. पूरे अप्रैल में बाजार का लगभग यही रुख बना रहा. इस की वजह यह उम्मीद और अटकलें थीं कि रिजर्व बैंक द्वारा ब्जाज दरों में कटौती की जाएगी. निवेशकों में यही उम्मीद प्रचारित की जाती रही जिस के कारण बाजार लगातार 19 हजार अंक के पार बना रहा.

चीन का लद्दाख सीमा पर घुसपैठ करने का?भी बाजार पर नकारात्मक असर नहीं पड़ा क्योंकि यह संदेश दिया गया कि भारत इस स्थिति से निबट लेगा. कोयला घोटाले में संसद के बजट सत्र की कार्यवाही ठप रही और सरकार के लिए कई बार अस्थिर करने वाले सहयोगी दलों की तरफ से आए बयान का भी बाजार पर कोई नकारात्मक प्रभाव देखने को नहीं मिला.

3 मई को जैसे ही रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में फिलहाल कटौती से इनकार किया तो बाजार में मायूसी छा गई. बीएसई का सूचकांक शुक्रवार को 161 अंक तक लुढ़क गया. नैशनल स्टौक ऐक्सचेंज यानी निफ्टी भी 56 अंक टूट गया. मई के पहले से ही बाजार में अटकलें शुरू हो गई थीं कि बैंक ब्याज दरें नहीं घटा रहा. इस आशंका के कारण मई की शुरुआत से ही बाजार ढीला पड़ गया था लेकिन विश्लेषकों को उम्मीद है कि आर्थिक स्तर पर मजबूत संकेत हैं, इसलिए बाजार में अच्छा माहौल बनेगा.

पाठकों की समस्याएं

मैं24 वर्षीय विवाहिता 2 बच्चों की मां हूं. 1 साल से पति से अलग मां के घर रह रही हूं. दरअसल, मेरी शादी मेरी मरजी के खिलाफ मेरे जीजा से कर दी. वे मुझ से उम्र में 13 साल बड़े थे. जब दीदी नहीं रहीं उस समय मैं सिर्फ 10 साल की थी.
मैं अपनी मौसी के लड़के, जो बचपन से ही मेरे साथ पलाबढ़ा है, से बेहद प्यार करती हूं. वह भी मेरे बच्चों के साथ मु?ो अपनाने को तैयार है. एक राज की बात यह है कि हम दोनों ने कोर्ट में शादी भी कर ली है. बताइए, मैं क्या करूं?

जब आप के जीजाजी से शादी की बात चल रही थी, आप को तभी विरोध करना चाहिए था. शादी आप के बालिग होने के बाद ही हुई होगी.
आप के 2 बच्चे भी हो गए. अब अचानक ऐसा क्या हुआ जो आप मायके में 1 साल से हैं. आप के यहां रहने पर आप के पति व ससुराल वालों पर क्या प्रतिक्रिया हुई, यह नहीं बताया आप ने.
अब वास्तविक स्थिति को भी सम?ा लीजिए कि आप की शादी आप की मौसी के बेटे से हो ही नहीं सकती. वह रिश्ते में आप का भाई है और बिना तलाक लिए आप शादी कर भी कैसे सकती हैं और वह भी कोर्ट मैरिज, कहीं तो कुछ गलत हुआ है. जिंदगी के हर पहलू को सम?ा कर, सोचविचार कर ही निर्णय लें.

 

मैं 30 वर्षीय विवाहित हूं. पत्नी 25 वर्ष की है. हमारी शादी को 7 साल हो चुके हैं. अभी तक बच्चा नहीं हुआ. जब भी सैक्स करता हूं तो अवरोध सा लगता है, शायद उस के गर्भाशय का मुंह बंद हो. डाक्टरों को भी दिखा लिया पर फायदा नहीं हुआ. मैं अपनी जांच में ठीक हूं, बहुत परेशान हूं. क्या करूं?
आप अपनी पत्नी को किसी योग्य डाक्टर को दिखाएं. सभी टैस्ट करने के बाद पता चलेगा कि कारण क्या है. शायद आप जानते हों कि आजकल कई इन्फर्टिलिटी सैंटर भी हैं जहां हर तरह का इलाज किया जाता है. आप डाक्टर की सलाह ले कर जांच करवाइए.

 

मैं 27 वर्षीय विवाहिता, 1 बेटे की मां हूं. वैसे जीवन ठीक चल रहा है पर मेरे पति को शराब पीने की आदत है जिस से मैं परेशान हूं. कहते हैं कि शराब पीना उन का ऐंजौयमैंट है. वे इस बारे में बात तक नहीं करना चाहते, क्या करूं?
शराब पीना दरअसल एक दुर्व्यसन है. आजकल लगभग हर शहर में ही नशामुक्ति केंद्र हैं जहां शराब छुड़ाने का इलाज किया जाता है. आप प्यार व मनुहार से पतिदेव को वहां ले जाएं, तभी समस्या का निदान हो पाएगा.

 

मैं 19 वर्षीय अविवाहिता हूं. 1 साल बाद मेरी शादी होने वाली है पर मेरे वक्षस्थल की ग्रोथ बहुत कम है, इस कारण कपड़ों की फिटिंग भी ठीक नहीं आती. इन्हें बढ़ाने के लिए बहुत सारी देसी दवाएं खाईं व मरहम से मसाज भी किया पर जरा भी फायदा नहीं हुआ. मैं खानेपीने का भी पूरा ध्यान रखती हूं, फिर भी कुछ फर्क नहीं पड़ रहा. आप ही बताइए क्या करूं?
कई बार शारीरिक संरचना ही ऐसी होती है. आप यह सम?ा लीजिए कि कोई देसी दवा खाने या मरहम लगाने से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला. आप नहाने से पूर्व जैतून के तेल से स्तनों की मसाज कर के फुहार लीजिए और खाने में वसा की मात्रा बढ़ा कर देखिए. वैसे शादी के बाद भी स्तनों के आकार में फर्क पड़ेगा.
इस के लिए किसी अच्छे विशेषज्ञ से सलाह ले सकती हैं. वैसे आजकल प्लास्टिक सर्जरी के द्वारा?भी वक्षस्थल को बढ़ाया जाता है. ग्लैमर वर्ल्ड में इस का प्रचलन बहुत ज्यादा है पर यह खर्चीला है. सोचसम?ा कर ही निर्णय लीजिए.

 

मैं 24 वर्षीय विवाहिता, 1 वर्षीय बेटी की मां हूं. शादी को 2 साल हो गए. हमारा प्रेमविवाह हुआ है. पति हर समय मेरे घर वालों को भलाबुरा कहते रहते हैं. मु?ो बहुत परेशान करते हैं. पति सास के काबू में हैं. मु?ो समय नहीं देते. काम या दोस्तों में व्यस्त रहते हैं. मैं एमबीए हूं. सोचती हूं कि नौकरी कर लूं. ससुराल वाले लालची भी हैं. कहिए तो तलाक ले लूं, क्या करूं?
आप एक योग्य स्त्री हैं. आप को तुरंत नौकरी कर लेनी चाहिए. इस से फर्क पड़ेगा पर यह सम?ा लीजिए कि बेटी अभी बहुत छोटी है, उस के बारे में भी सोचें. यह चिंतनीय है कि आप के ससुराल वाले लालची हैं. पर तलाक लेना न तो आसान है और न ही 1 वर्षीय बेटी को ले कर अकेले रह पाना. आप नौकरी कर के देखिए, शायद फर्क पड़े. आप बाहर निकलेंगी तो जीवनशैली में फर्क भी आएगा. हो सकता है पति के व्यवहार में भी बदलाव आए. इस बीच ससुराल वालों और पति से तालमेल बना कर रखें, इस से भी उन के स्वभाव में अंतर आ सकता है.

 

मैं 24 वर्षीय विवाहिता, मुसलिम परिवेश की स्त्री हूं. मैं बड़े शहर में पलीबढ़ी हूं और शादी छोटे शहर में हुई है. घर का वातावरण परदे वाला है, खासतौर पर मेरे शौहर बेहद सख्त किस्म के हैं. वे कहते हैं कि घर से बाहर मत जाओ और पूरे बुरके के साथसाथ हाथों में दस्ताने भी पहनो, आंख और एक बाल तक दिखना नहीं चाहिए. मैं तो इस तरह घुट जाऊंगी. यह घर वालों की तय की गई शादी है, कुछ कह नहीं सकती. आप ही बताइए, क्या करूं?
देखिए, शारीरिक पहनावा अलगअलग किस्म का होता है. आप अपने शौहर या ससुराल में किसी बड़े से बात कर के देखिए. हो सकता है कुछ राहत मिल जाए. जब आप के शौहर का मूड अच्छा हो तो आप उन्हें प्यार से समझाइए कि इस तरह के पहनावे से मेरा दम घुटता है. हो सकता है वे आप की बात को मान लें और आप की समस्या का समाधान हो जाए.

ऐसा भी होता है

मैंकानपुर से बरेली बस द्वारा जा रही थी. फर्रूखाबाद स्टेशन पर बस रुकते ही काफी लोग उतर गए. मैं खिड़की से बाहर देख रही थी. मुझे आभास भी नहीं हुआ किसी ने मेरा चश्मा उतार लिया. मैं हैरान हुई, तभी बस में एक सहयात्री से इस बारे में बताया. वह कहने लगा, नीचे एक बंदर बैठा चश्मे के फ्रेम को चबा रहा है. इस स्टौप पर यह मामूली सी बात है. बंदर बस की छत से उतर कर, खिड़की के पास बैठे यात्रियों का चश्मा रोज ही गायब करते हैं.
उस यात्री की सलाह पर चने व मूंगफली का पैकेट भी बंदर की तरफ फेंका लेकिन वह मेरा चश्मा खराब कर चुका था. नजर का चश्मा होने के कारण मुझे काफी परेशानी हुई.
शशि कटियार, कानपुर (उ.प्र.)

 

आज देश में ‘बेटी बचाओ अभियान’ चल रहा है पर हमारी दादी ने यह अभियान 46 वर्ष पहले शुरू किया था. यह बात मेरी मम्मी ने बताई तो मेरे मुंह से अनायास ही ‘दादी जिंदाबाद’ निकल गया.
बात 1966 की है. पापा उन दिनों जालंधर के समाचारपत्र में कार्यरत थे. मम्मी की डिलीवरी के कारण दादी गांव से मम्मी की देखरेख के लिए जालंधर आई हुई थीं.
मम्मी ने बताया कि पापा दफ्तर चले गए थे. उन्हें प्रसवपीड़ा होने लगी तो दादी लेडी डाक्टर को बुला लाईं. लेडी डाक्टर अपने साथ एक नर्स को भी ले आई थी. और तब हमारी बड़ी बहन, जो आजकल आयकर विभाग में उच्चाधिकारी हैं, का जन्म हुआ. दादी ने लेडी डाक्टर व नर्स को 100-100 रुपए दिए.
लेडी डाक्टर ने कहा, ‘‘माताजी, लड़की के जन्म पर कौन पैसे देता है, लड़का होता तो मैं खुद बधाई दे कर मांग लेती.’’
दादी ने जो जवाब दिया तो उसे सुन कर मैं ‘दादी जिंदाबाद’ कहने से अपने को रोक न पाई. उन्होंने कहा, ‘‘डाक्टर साहिबा, परिवार में 20 साल बाद संतान का जन्म हुआ है. हमारे लिए तो यह लड़कों से भी बढ़ कर है. इसलिए मैं बिना मांगे ही आप को बधाई दे रही हूं.’’
निमिषा चोपड़ा, मोहाली (पंजाब)

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, विवाहयोग्य जोड़ों की शादी करवाते हैं, जिसे बोलचाल की?भाषा में सरकारी शादी कहते हैं. हुआ ऐसा कि एक शादीशुदा जोड़े, जिस का एक बच्चा?भी है, ने इस स्कीम का फायदा उठाते हुए दोबारा शादी कर ली.
इस शादी में उस जोड़े को पलंग, चांदी का मंगलसूत्र, मेकअप बौक्स व अन्य सामान उपहारस्वरूप मिल गए.
जी आर ध्रुव, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

 

ये पति

छुट्टी का दिन था. ये नहाने जा रहे थे. मैं ने अपने हाथ से सिला पाजामा और नई बनियान इन को दी. इन के वापस आने पर हम दोनों ने नाश्ता किया और फिर अपनेअपने काम में व्यस्त हो गए.
तकरीबन 1 घंटे बाद ये अंदर आए. और बड़े ही गर्व से बोले, ‘‘देखो, आज मैं ने कार के नीचे ठीक से पेंट कर दिया है. अब वह रस्टी नहीं होगी.’’
जब मैं ने इन की तरफ देखा तो मेरे होश उड़ गए. ये सिर से पांव तक काले पेंट से पुते थे. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं इन के काम की तारीफ करूं या अपना सिर पीट लूं.
मैं इन्हें आईने के सामने ले गई. अब इन की हालत देखने लायक थी.
सुधा रती, भोपाल (म.प्र.)

मेरे पति को जरूरी काम से जाना था, वहां कार पार्किंग की दिक्कत थी. इन्होंने सोचा कि कार से न जा कर आटो से ही निकल लेता हूं. इन्होंने आटो किया और बैठ गए. रैड लाइट पर आटो रुका तो एक आदमी आटो वाले से बोला कि मुझे फलां जगह पहुंचा दोगे तो आटो वाले ने कहा कि साहब ने पूरा आटो कर रखा  है, मैं नहीं ले जा सकता.
मेरे पति ने देखा तो बोले कि कोई बात नहीं, बैठा लो.
वह आदमी बैठ गया. उस की जो जगह थी, वहां वह उतर गया. जहां इन्हें उतरना था, उतर कर पैसे देने को जेब से बटुआ निकालना चाहा, तो बटुआ वह आदमी पार कर ले गया था. फिर जिन के पास गए थे उन से पैसे ले कर आटो वाले को दिए. घर आ कर इन्होंने बताया कि मेरी आंख लग जाने के कारण 5 हजार रुपए कि चपत लग गई. मैं ने कहा कि आप की नींद बहुत महंगी पड़ी और मेरी हंसी छूट गई.
प्रीतिसिंह गहलोत, कालकाजी (न. दि.)

मेरे पति की आदत है कि अगर उन से कोई काम कहा जाए तो सिर्फ शब्दों पर ध्यान देते हैं. एक बार मैं रसेदार सब्जी बना रही थी कि तभी मेरी पड़ोसिन आ कर बोली कि फूलों के गमले बेचने वाला आया है, मैं आ कर देख लूं. जल्दबाजी में जाते समय मैं ने पति को आवाज लगा कर कहा, ‘‘जरा कमरे से निकल कर किचन में देख लेना.’’
लौट कर जब आई तो देखा कि वे आराम से अखबार पढ़ रहे हैं और रसेदार सब्जी सूखी सब्जी में तबदील हो गई. गुस्से से मैं ने उन से पूछा तो बोले, ‘‘तुम्हीं ने तो कहा था कि किचन देख लेना, सो मैं ने देख लिया. तुम्हें सब्जी संभालने के बारे में कहना चाहिए था.’’ उन की बात सुन कर मैं ने माथा थाम लिया.
शालिनी बाजपेयी, चंडीगढ़ (पंजाब)

 

इन्हें भी आजमाइए

✓  बचे हुए रंगरोगन के छोटे डब्बों को स्टोर में रखते समय, पहले उन के ढक्कनों को मजबूती से बंद कीजिए, फिर उन्हें उलटा रख दीजिए. इस से उन के भीतर हवा नहीं जाएगी और रंगों की सतह पर पपड़ी भी नहीं जमेगी.

✓ गेहूं को सुरक्षित रखने के लिए ड्रम के पेंदे में और ड्रम में गेहूं भरने के बाद ऊपर नीम की पत्तियां सुखा कर रखिए. गेहूं सालभर तक खराब नहीं होगा और उस में कीड़ा भी नहीं लगेगा.

✓ सफेद पत्थर के फर्श को चमकाने के लिए एक कपड़े के टुकड़े पर थोड़ा सा पैराफिन डाल कर रगड़ें. इस से फर्श का फीका पड़ता हुआ रंग फिर चमक उठेगा.

✓ बरसात के बाद छाते को रखने से पहले नौसादर मिले पानी से अच्छी तरह साफ कर लें. ऐसा करने से छाता खराब नहीं होगा.

✓ मोमबत्ती को ठंडे पानी में रख कर जलाइए. देर तक जलेगी और रोशनी भी अच्छी देगी.

✓ फिटकरी को गरम पानी में घोल कर चारपाई पर डाल दें. खटमल भाग जाएंगे.

✓ सुंदर आकार वाली खाली बोतलों को चटकीले रंगों से रंग कर फूलदान बनाएं, घर को सजाएं.

 

जीवन की मुसकान

गोआ का डोना पाउला टूरिस्ट स्थल, चारों ओर मौजमस्ती का आलम और सैलानियों का जमघट, ऐसा लग रहा था मानो पूरी दुनिया यहां इकट्ठी हो गई हो. सब को इंतजार था सूरज के डूबने का, बेहद आकर्षक नजारा था. आकाश में सूरज तेजी से धरती के दूसरे छोर, जहां दूरदूर तक पानी ही पानी दिखाई दे रहा था, को छूने को बेताब हो रहा था. उस की लालिमा समुद्र में बिखरने लगी थी और धीरेधीरे लाल होता समुद्र सूरज को अपने आगोश में लेने को बेचैन हो रहा था.

अब कई लोग हाथों में कैमरे लिए उस अद्भुत नजारे को कैद करने जा रहे थे, तभी मेरी नजर दूर बैंच पर बैठे, एक बुजुर्ग दंपती पर पड़ी जो आसमान की ओर टकटकी लगाए उस डूबते सूरज को देख रहा था. उन के चेहरे पर खिंची अनेक रेखाएं जीवन में उन के अनगिनत संघर्षों को दर्शा रही थीं. तभी वे दोनों धीरे से बैंच से उठे, एकदूसरे का हाथ थामा और धीमी चाल से रेलिंग की ओर बढ़ने लगे.

हिलोरें मारती समुद्र की विशाल लहरों का शोर उस ढलती शाम की शांति को भंग कर रहा था. लाल सूरज ने समुद्र के पानी की सतह को लगभग छू लिया था. ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे एक विशालकाय आग का गोला पानी के ऊपर पड़ा हो. भीड़ में से अनेक हाथ कैमरा लिए ऊपर उठ चुके थे और अनेक फ्लैश की रोशनियां इधरउधर से चमकने लगीं, परंतु मेरी नजरें उसी बुजुर्ग दंपती पर टिकी हुई थीं. अचानक उस बुजुर्ग महिला ने अपना संतुलन खो दिया और वह गिरने को हुई, जब तक कोई उन्हें संभालता, उन के पति की बूढ़ी बांहों ने उन्हें थाम लिया. उन देनों ने आंखों ही आंखों में एकदूसरे को देखा और उन के चेहरे हलकी सी मुसकराहट के साथ खिल गए. तभी मैं वहां पहुंच चुकी थी, ‘‘आंटी, आप ठीक तो हैं,’’ अचानक ही मैं बोल पड़ी. लेकिन उत्तर दिया उन के पति ने, ‘‘बेटा, 55 साल का साथ है, ऐसे कैसे गिरने देता.’’ मैं ने अपना कैमरा उन की ओर करते हुए पूछा, ‘‘एक फोटो प्लीज.’’ और उन को डूबते सूरज के साथ अपने कैमरे में कैद कर लिया.
रेखा जोशी, फरीदाबाद (हरियाणा)

 

मैंरेलवे में बुकिंग काउंटर पर कार्यरत हूं. एक बार एक सज्जन मुझ से प्लेटफार्म टिकट ले कर गए. उन्होंने 50 रुपए का नोट दिया और 5 टिकट लिए.
मैं ने 100 रुपए का नोट समझ कर उन्हें 85 रुपए वापस कर दिए.
थोड़ी देर बाद वे अंकल वापस आए और मुझे 50 रुपए का नोट दे कर सारी स्थिति समझाई. तब मुझे अपनी गलती का पता चला. मैं ने उन्हें धन्यवाद दिया. उन की ईमानदारी दिल को छू गई. ऐसे ही लोगों की वजह से आज भी ईमानदारी जिंदा है.
स्नेहा अभिनव धनोदकर, इंदौर (म.प्र.)

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