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सिक्सटीन

कुछ समय पहले तक 16 वर्ष की उम्र एक ऐसी उम्र हुआ करती थी जिस में मासूमियत होती थी, मगर आज इंटरनैट, पेज 3 और सैकड़ों टीवी चैनल्स ने किशोरों की इस मासूमियत को छीन लिया है. फास्ट फूड वाली इस जेनरेशन को सबकुछ फास्ट चाहिए यहां तक कि उन में 16 बरस की उम्र में ही सैक्स करने की इच्छा जोर पकड़ने लगी है. स्कूलों, खासकर पब्लिक स्कूलों में पढ़ने वाले किशोर वक्त से पहले मैच्योर होने लगे हैं. किशोरियां आपस में ऐसीऐसी बातें करने लगी हैं, जिन्हें सुन कर मांबाप के सिर शर्म से झुक जाएं. सैक्सी बातें करना, डिस्को में जा कर बीयर पीना, स्कूल बंक करना, सड़कों पर होहल्ला करना जैसी बातें आम हो गई हैं.

निर्देशक राज पुरोहित ने 15-16 साल के किशोरों की लाइफ पर ऐसी फिल्म बनाई है जो सचाई से रूबरू कराती है. यह फिल्म किशोरों को जिंदगी को करीब से समझने का मौका देती है. ‘सिक्सटीन’ कहानी है एक पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले 4 दोस्तों–तनीषा (वामिका गाबी), अनु (इजाबेल लेत्ते), निधि (महक मनवानी) और अश्विन (हाइफिल मैथ्यू) की. इन चारों को जिंदगी में तलाश है प्यार की. निधि को अपने बौयफ्रैंड रोहन का साथ चाहिए. तनीषा अपनी बूआ के घर रहती है. उसे एक परफैक्ट मैन चाहिए, जबकि अश्विन तनीषा पर मरता है. अनु बिंदास है, पर अकेली. तनीषा की बूआ जवान है, अकेली रहती है. एक नौजवान विक्रम (कीथ सिक्वेरिया) उस के घर बतौर पेइंगगेस्ट रहने आता है. वह एक लेखक है और एक किताब लिख रहा है. तभी तनीषा की जिंदगी में एक तबदीली आती है. उधर अश्विन की जिंदगी में भी बदलाव आता है. हर वक्त पिता की मार खाने वाले अश्विन के हाथों पिता का खून हो जाता है. इधर निधि को उस का बौयफ्रैंड प्रैग्नैंट कर देता है और अनु का एमएमएस सब के सामने आता है. इन चारों दोस्तों में आए बदलावों से वे टूट जाते हैं लेकिन अपनेअपने परिवारों का साथ मिलने पर वे पुन: संभल जाते हैं.

किशोरों में आने वाले इन बदलावों के लिए उन के शरीर में स्रवित होने वाले हार्मोन जिम्मेदार होते हैं जो उन्हें एकदूसरे की ओर आकर्षित करते हैं. यहां तक कि सैक्स करने के लिए भी उकसाते हैं. यह सब निर्देशक ने फिल्म के क्लाइमैक्स में समझाया है. फिल्म की कहानी साधारण होते हुए भी बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है और किशोरों की इस समस्या का समाधान करती है. फिल्म के लगभग सारे कलाकार नए हैं. तनीषा की भूमिका में वामिका गाबी ने सब से अच्छा अभिनय किया है. निर्देशन अच्छा है. फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है. छायांकन भी अच्छा है.

 

डी डे

दाऊद इब्राहीम को कौन नहीं जानता? भारत के मोस्टवांटेड अपराधियों की लिस्ट में उस का नाम सब से ऊपर है. दुनिया दाऊद को आतंकवादी मानती है. पूरी दुनिया जानती है कि वह आईएसआई के साए में कराची में रहता है और वहीं से आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देता रहता है. फिल्म ‘डी डे’ इसी दाऊद इब्राहीम को पकड़ने के मिशन पर बनाई गई है. कुछ समय पहले कराची में दाऊद इब्राहीम के बेटे की शादी संपन्न हुई थी. उस में वह शरीक भी हुआ था. अपने बेटे की शादी में जा रहे दाऊद को 4 भारतीय जासूस किस तरह दबोचते हैं और फिर किस तरह दाऊद उन के हाथ से निकल जाता है लेकिन फिर से पकड़ में आता है, यही इस फिल्म में दिखाया गया है.

दाऊद को पकड़ने गए ये 4 जासूस भारतीय गुप्तचर संस्था ‘रा’ के हैं. ‘रा’ द्वारा चलाए गए गुप्त मिशनों पर कई फिल्में पहले भी बन चुकी हैं. पिछले साल रिलीज हुई ‘एक था टाइगर’ में ‘रा’ के जासूस सलमान खान ने पाकिस्तानी हुक्मरानों के छक्के तो छुड़ाए ही, ‘रा’ अधिकारियों का भी पसीना निकाल दिया था. ‘रा’ के मिशन इतने गुप्त होते हैं कि असफल होने पर रा अधिकारी और हमारी सरकार एकदम पल्ला झाड़ लेती है कि जासूस उन के देश के नहीं हैं और न ही उन्होंने उन्हें किसी मिशन पर भेजा है. फिल्म ‘डी डे’ में इसी बात का खुलासा किया गया है. फिल्म में कई खामियां होने पर भी यह कुछ हद तक दर्शकों को बांधे रखती है.

फिल्म की कहानी 4 भारतीय जासूसों वली खान (इरफान खान), रुद्र प्रताप सिंह (अर्जुन रामपाल), जोया (हुमा कुरैशी) और असलम (आकाश दहिया) की है. ‘रा’ प्रमुख अश्विनी (नासिर) ने वली खान को पिछले 9 सालों से पाकिस्तान में नियुक्त किया हुआ है. वहां उस की नाई की दुकान है. वह अपनी पत्नी व बेटे के साथ रहता है. उसे सुराग मिलता है कि गोल्डमैन यानी दाऊद (ऋषि कपूर) अपने बेटे की शादी में शामिल होने के लिए कराची के होटल में आने वाला है. भारत से 3 और जासूस उसे दबोचने के लिए पहुंचते हैं. बड़ी मुश्किल से चारों उसे दबोच लेते हैं मगर एक छोटी सी गलती से पासा पलट जाता है.

असलम एक बम धमाके में मारा जाता है और दाऊद बच निकलता है. आखिरकार वे उसे फिर से दबोच लेते हैं और भारतीय बौर्डर पर लाने की कोशिश करते हैं. वली खान गोल्डमैन को जिंदा पकड़ कर ले जाना चाहता है. उस का बाकी बचे 2 साथियों से मनमुटाव हो जाता है और वह अकेला ही बौर्डर की तरफ बढ़ता है लेकिन पाकिस्तानी फौज की गोलियों से मारा जाता है. उस की पत्नी व बेटे को भी पाकिस्तानी फौज जहर दे कर मार डालती है. पीछे से दूसरी कार में आ रहे रुद्र और जोया गोलीबारी की परवा न करते हुए भारतीय सीमा में प्रवेश कर जाते हैं और अपने देश की मिट्टी पर ही रुद्र गोल्डमैन को गोली से उड़ा देता है.

फिल्म का क्लाइमैक्स दर्शकों को तालियां बजाने का मौका देता है. फिल्म में मध्यांतर के बाद सस्पैंस बना रहता है कि दाऊद को पकड़ कर भारत ले जाया जा सकेगा या नहीं. फिल्म की कहानी अच्छी है. निखिल आडवाणी ने मेहनत की है, लेकिन शुरुआत में सूत्रधार की कमी खटकती है. कराची के होटल में दाऊद के बेटे की शादी के मौके पर पता नहीं चलता कि ये भारतीय जासूस हैं या दाऊद के आदमी.

फिल्म में पाकिस्तानी तवायफ सुरैया (श्रुति हसन) और रुद्र का प्रेम प्रसंग भी है. दोनों के बीच अनकही चाहत पैदा होती है, मगर सुरैया का कत्ल कर दिया जाता है. यह प्रसंग दिल को छू जाता है. फिल्म में ऐक्शन बहुत हैं. गीतसंगीत अच्छा है. ऋषि कपूर पूरी फिल्म में छाया हुआ है. छायांकन अच्छा है.

 

ग्लैमरवर्ल्ड दूर से ग्लैमरस – प्रभुदेवा

बौलीवुड में डांस विधा को खासा मुकाम हासिल कराने वाले प्रभुदेवा आज अभिनय और निर्देशन की कमान भी बखूबी संभाल रहे हैं. भाषा से परे सिनेमा की नई परिभाषा गढ़ते प्रभुदेवा का कोई सानी नहीं है. पेश है सोमा घोष के साथ हुई उन की बातचीत के खास अंश.

भारत के माइकल जैक्सन कहे जाने वाले प्रभुदेवा डांसर, कोरियोग्राफर, निर्देशक और अभिनेता हैं. भले ही वे माइकल जैक्सन की तरह डांस के लिए जाने जाते हैं पर वे क्लासिकल डांसर भी हैं. उन्होंने धर्मराज और उडिपि लक्ष्मीनारायण से भरतनाट्यम की शिक्षा ग्रहण की.प्रभुदेवा के पिता मुगुर सुंदर, सुंदरम् मास्टर के नाम से जाने जाते हैं. वे भी कोरियोग्राफर थे. डांस के शौकीन प्रभुदेवा ने 14 वर्ष की उम्र से ही डांस करना शुरू कर दिया था. उन का शुरुआती दौर काफी उतारचढ़ाव भरा रहा. पर उन्होंने धीरज और मेहनत के बल पर कामयाबी हासिल की. पढ़ाई की ओर अधिक ध्यान न होने की वजह से प्रभुदेवा ने डांस की ओर रुख किया, जिस में साथ दिया उन के पिता ने.

क्लासिकल डांसर होते हुए जब प्रभुदेवा ने माइकल जैक्सन की थ्रिलर एलबम देखी तो दंग रह गए. तब से ले कर आज तक वे उन के प्रशंसक हैं. दक्षिण भारतीय होने के बावजूद प्रभुदेवा के लिए हिंदी में कोई बाधा नहीं रही. वे हिंदी भाषा अच्छी तरह बोल और सम?ा लेते हैं. जितना स्मार्टली वे डांस करते हैं, उतना ही स्मार्टली वे बातचीत भी करते हैं.

आप निर्देशक, कोरियोग्राफर और अभिनेता भी हैं. किस फौर्म में काम करना पसंद करते हैं?

मु?ो निर्देशक हर हाल में बनना था पर कुछ समय तक कोरियोग्राफी करनी पड़ी. उस दौरान एक प्रोड्यूसर ने कहा था कि अगर आप मेरी फिल्म की कोरियोग्राफी करेंगे तो अगली फिल्म में आप निर्देशक बन सकेंगे. यह मौका मु?ो मिला और मैं निर्देशक बन गया. हालांकि निर्देशन में जिम्मेदारी अधिक होती है. टैंशन भी अधिक होती है पर वे मु?ो पसंद हैं.

क्या कोरियोग्राफर से निर्देशक बनना आसान रहा?

कोरियोग्राफर ही नहीं फाइटमास्टर, कैमरामैन आदि भी निर्देशक बन सकते हैं क्योंकि उन में मानस शक्ति अधिक होती है.

निर्देशन करते वक्त किस बात का खास ध्यान रखते हैं?

कोई भी फिल्म बनाते समय कई बातों पर खास ध्यान रखना पड़ता है. फिल्म निर्देशन एक टीमवर्क है. टीम का अच्छा होना जरूरी है. फिल्म में प्रोड्यूसर का काफी पैसा लगा होता है इसलिए एक एनर्जी फिल्म में होनी चाहिए. टीम में एक खुशी होनी चाहिए जिसे मु?ो हमेशा ध्यान रखना पड़ता है.

आजकल फिल्में तो बनती हैं पर कुछ ही चलती हैं. इस की वजह क्या है? आप किस तरह की फिल्में बनाने में विश्वास रखते हैं?

हर फिल्म में एक इमोशन होना चाहिए. उस के बाद मनोरंजन की बारी आती है. अच्छे दृश्य, कौमेडी आदि होने चाहिए पर सब से जरूरी यह देखना है कि स्टोरी ठीक से कही गई है या नहीं. फिल्में चलें या न चलें, हर फिल्म में मेहनत तो की ही जाती है.

आगे कोरियोग्राफी करना चाहेंगे?

समय होगा तो जरूर करना चाहूंगा. अभी ‘रमैया वस्तावैया’ के बाद शाहिद कपूर की ‘रेंबो राजकुमार’ का निर्देशन कर रहा हूं.

एक बेहतरीन डांसर बनने के लिए क्या जरूरी है?

आजकल कई बच्चे अच्छा डांस करते हैं. इन्हें मंच तक लाने का काम रिऐलिटी शो कर रहे हैं. अवसर बहुत हैं पर हर दिन आगे बढ़ना मुश्किल हो रहा है. पहले 100 लोगों में एक लड़का डांस करता था अब इन की संख्या हजारों में है. 100 में से 95 लोग अच्छा डांस कर लेते हैं. अच्छा डांसर बनने के लिए शास्त्रीय नृत्य का ज्ञान होना आवश्यक है.

ग्लैमर वर्ल्ड में जो नई पीढ़ी आना चाहती है उन के लिए क्या कहना चाहते हैं?

ग्लैमर वर्ल्ड, दूर से जितना ग्लैमरस दिखता है उतना होता नहीं है. यहां हार्डवर्क चाहिए. कुछ लोग मजबूत होते हैं और किसी भी हालात में टूटते नहीं. लेकिन कुछ मुश्किल वक्त में हार मान जाते हैं. अगर शुरुआत में काम न भी मिले आगे बढ़ते रहना चाहिए. हर क्षेत्र में उतारचढ़ाव तो होते ही हैं.

खाली समय में आप क्या करना पसंद करते हैं?

अपने बच्चों के साथ समय बिताता हूं. फिल्में, खासकर तमिल फिल्में, देखता हूं. फिलहाल हिंदी फिल्में बना रहा हूं. तमिल भी अवश्य बनाऊंगा बशर्तेे अच्छी स्क्रिप्ट और कहानी मिले. आज चीजें बदल चुकी हैं. दक्षिण भारतीय फिल्में यहां और यहां की फिल्में दक्षिण में एकसाथ रिलीज होती हैं. इसलिए भाषा का फर्क नहीं पड़ता.   

पाठकों की समस्याएं

मैं 30 वर्षीय अविवाहित, प्राइवेट कंपनी में कार्यरत हूं. मुझे अपनी कंपनी में काम करने वाली एक लड़की से प्यार हो गया है. वह भी मुझे चाहती है. शीघ्र ही हम शादी करने वाले हैं. समस्या यह है कि वह उच्चवर्गीय परिवार की इकलौती लड़की है, जबकि मैं मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार से हूं. क्या वह हमारे घरपरिवार में ऐडजस्ट कर पाएगी?

आप बेकार ही परेशान हो रहे हैं. अगर आप एकदूसरे को चाहते हैं तो उस के ऐडजस्ट न करने का सवाल ही नहीं उठता. उसे आप के घर का माहौल अवश्य पसंद आएगा. आप उसे अपने परिवार के रीतिरिवाजों, तौरतरीकों के बारे में बताएं. घर में साथ रहने के फायदे गिनवाएं. जहां तक आप के और उस के आर्थिक स्तर का सवाल है, उस ने आप के बारे में सबकुछ जानते हुए ही आप से शादी करने का निर्णय लिया होगा. इसलिए बेफिक्र हो कर अपनी शादी की योजनाएं बनाएं और भविष्य में जब कोई मुश्किल आए, एकदूसरे के प्यार के सहारे उस का हल निकालें.

 

मैं 35 वर्षीया विवाहिता हूं. कुछ दिनों से पति का व्यवहार बदलाबदला नजर आ रहा है. आजकल वे अपनी एक महिला कुलीग के बारे में बहुत बात करते हैं. कभी उस के बने खाने की तारीफ करते हैं तो कभी उस की ड्रैसिंग सैंस की तारीफ करते हैं.

आप ने कहा कि आप को पति की कुलीग से ईर्ष्या होने लगी है. इस का अर्थ है कि आप के पति अपने उद्देश्य में सफल हो गए हैं. दरअसल, आप के पति का बदला रूप और कुछ नहीं, यह जानना है कि आप उन की कितनी परवा करती हैं. क्या किसी और की तारीफ करने से आप को फर्क पड़ रहा है? ईर्ष्या हो रही है? आप ध्यान से अपने आसपास देखिए, आप पाएंगी अब आप ने पति की ओर ध्यान देना कम कर दिया है और पति चाहते हैं कि आप उन की तरफ ध्यान दें, उन्हें आकर्षित करने के लिए अच्छे कपड़े पहनें, अच्छी तरह तैयार हों, अच्छा खाना बना कर उन का दिल जीतें.

 

मैं 27 वर्षीया विवाहिता हूं. मेरी 7 वर्ष की एक बेटी है. समस्या यह है कि बेटी स्कूल जाने में आनाकानी करने लगी है. स्कूल जाने के समय से कुछ पहले वह पेटदर्द, सिरदर्द की शिकायत करती है. जबरदस्ती भेजने की कोशिश करती हूं तो रोनाधोना शुरू कर देती है. पढ़ाई में वह पिछड़ती जा रही है. समझ नहीं आ रहा, वह ऐसा क्यों कर रही है. इस से पहले तक वह आराम से खुश हो कर स्कूल जाती थी. आप ही बताइए मैं क्या करूं?

आप ने बताया कि अब से पहले आप की बेटी खुश हो कर स्कूल जाती थी, कुछ दिनों से स्कूल जाने में आनाकानी कर रही है. इस के लिए सब से पहले आप बच्चे से अकेले में बैठ कर आराम से, प्यार से पूछें कि उस के साथ क्या समस्या है. क्या स्कूल में कोई बच्चा उसे परेशान करता है या उसे अपनी किसी टीचर से कोई परेशानी है. यह जानने के बाद स्कूल में टीचर, काउंसलर से मिलें और अपनी बेटी की समस्या उन के साथ बांटें. बच्चा स्कूल जाने से आनाकानी कर रहा है, इस का मतलब कहीं न कहीं कुछ तो बात है. यह जानने का प्रयास करें. आप स्वयं भी बेटी की पढ़ाई पर ध्यान दें. पढ़ाई में उस की रुचि पैदा करें, उस का काम पूरा करवाएं क्योंकि कई बार बच्चा काम पूरा न होने के डर से भी स्कूल जाने से मना करता है.

 

मैं 35 वर्षीया विवाहिता हूं. विवाह हुए 10 वर्ष बीत चुके हैं. हम दोनों कामकाजी हैं. समस्या यह है कि मेरी सैक्स में रुचि कम हो गई है. मेरे इस?व्यवहार से पति नाखुश रहते हैं. मैं जानती हूं कि इस से हमारे आपसी रिश्तों में कड़वाहट आ रही है पर घर व औफिस की भागदौड़ से उपजी थकान के बाद सैक्स की तरफ ध्यान नहीं जाता. मैं क्या करूं?

आप की समस्या आजकल के अधिकांश वैवाहिक जोड़ों की है. काम व पैसे कमाने की व्यस्तता में वे सैक्स जैसी महत्त्वपूर्ण क्रिया को पूरी तरह इग्नोर करने लगे हैं. वे शायद यह नहीं जानते कि वैवाहिक जीवन में सैक्स का कितना महत्त्व है. सैक्स न सिर्फ आपसी रिश्तों को मजबूत बनाता है बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभदायक होता है. आप के केस में आप अपनी जीवनशैली में थोड़ा बदलाव लाएं. शारीरिक व मानसिक थकान को दूर करने के लिए अच्छा म्यूजिक सुनें, अच्छी किताबें पढ़ें. एकदूसरे के साथ जितना भी समय हो सके, बिताएं. इस से आप दोनों के बीच नजदीकियां बढ़ेंगी और धीरेधीरे आप की सैक्स में रुचि भी पनपेगी.

 

मैं अपनी 16 वर्षीय बेटी से बहुत परेशान हूं. वह जब देखो मोबाइल, टीवी या इंटरनैट में व्यस्त रहती है. कुछ कहो या मना करो तो बुरा मान जाती है. वह घर से बाहर अपने दोस्तों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों से अच्छी तरह पेश आती है लेकिन हमारे साथ उस का व्यवहार बहुत रूखा है. मैं समझ नहीं पा रही हूं, गलती कहां कर रही हूं. आप बताएं, मुझे क्या करना चाहिए?

सब से पहले तो यह जान लें कि आप की बेटी एक बदलाव के दौर से गुजर रही है. ऐसे में अकेले रहना, नईनई चीजों के बारे में जानना, पेरैंट्स से ज्यादा दोस्तों से हर बात शेयर करना आम बात है. आप चाहती हैं कि आप की बेटी मोबाइल, टीवी, इंटरनैट पर कम समय व्यतीत करे तो इस के लिए आप ज्यादा रोकटोक करने के बजाय, उस का इन चीजों के प्रयोग के लिए समय निर्धारित कर दें. उस के साथ नजदीकी बढ़ाने के लिए उस से एक दोस्त की तरह बात करें, उस के दोस्तों के साथ भी दोस्ताना व्यवहार रखें. उस के साथ अपने टीनएज अनुभव शेयर करें. आप के प्यार व अपनेपन से वह आप के नजदीक आएगी और आप के प्रति उस का चिड़चिड़ापन व रूखा व्यवहार भी दूर होगा.

अलविदा शेरखान

फिल्मी परदे पर विविध किरदारों को जीवंत करने वाले अभिनेता प्राण अब इस दुनिया में नहीं हैं. उन का खलनायकी मिजाज और अभिनय का अंदाज सिनेमा प्रेमियों के जेहन में ताउम्र जिंदा रहेगा. कैसे, बता रही हैं बुशरा खान.

प्राण कृष्ण सिकंद भारतीय सिनेमा के ऐसे नायाब कलाकार थे जिन्हें दुनिया प्राण के नाम से जानती है. प्राण ने अपनी बेजोड़ और दमदार अदाकारी के बल पर फिल्मी परदे पर खलनायकी के नए आयाम गढ़े और आधी से अधिक सदी तक हिंदी फिल्म जगत और सिनेप्रेमियों के दिलों पर राज किया. प्राण ने शुरुआती दौर में बतौर खलनायक व नायक फिल्मों में अभिनय किया. बाद में जब चरित्र भूमिकाओं की बात आई तो उन्होंने इस काम को भी बखूबी अंजाम दिया.

प्राण 12 जुलाई, 2013 को दुनिया को अलविदा कह गए. प्राण के फिल्मी सफर की शुरुआत बेहद रोचक किस्से के साथ हुई. उन को फिल्मों में लाने का श्रेय वली मोहम्मद वली को जाता है जो एक लेखक थे. प्राण के जीवन पर लिखी गई किताब ‘…ऐंड प्राण’ में इस का जिक्र बड़ी खूबसूरती के साथ किया गया है.

एक सर्द शाम को अपने कुछ दोस्तों के साथ अविभाजित भारत के लाहौर की हीरा मंडी में रंगीले राम लुभाया की दुकान पर पान का और्डर देने के साथ ही इस गोरेचिट्टे युवक के जीवन में पूर्ण रूप से नया अध्याय खुलने जा रहा था. वली मोहम्मद फिल्म ‘यमलाजट्ट’ की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे. जब उन्होंने पान की दुकान पर प्राण को देखा तो वे उन की खूबसूरती और पान खाने के खास अंदाज से बेहद प्रभावित हुए. वली मोहम्मद ने प्राण से कहा, ‘‘आप का यह रूपरंग मेरी कहानी के किरदार से मेल खाता है. क्या आप फिल्म में काम करेंगे?’’ हालांकि प्राण ने शुरुआत में उन से नानुकुर की लेकिन अचानक हुई अगली मुलाकात के बाद आखिरकार प्राण इस फिल्म में 50 रुपए महीने के वेतन पर काम करने को तैयार हो गए. फिल्म बेहद कामयाब रही और यहीं से प्राण के फिल्मी सफर की शुरुआत हो गई.

दलसुख एम पंचोली ने फिल्म ‘खानदान’ में युवा नूरजहां के साथ प्राण को पहली बार बतौर रोमांटिक हीरो पेश करने का फैसला किया. प्राण का जन्म 12 फरवरी, 1920 को बल्लीमारान, पुरानी दिल्ली के एक अमीर परिवार में हुआ था. 4 भाई और 3 बहनों में प्राण छठे नंबर पर थे. प्राण के पिता लाला केवल कृष्ण सिकंद एक सिविल इंजीनियर थे. प्राण को पढ़ाई में विशेष रुचि नहीं थी. मां की असमय मौत के कारण वे अपने पिता के काफी नजदीक आ गए थे. यही कारण था कि जब प्राण ने मैट्रिक करने के बाद पढ़ाई छोड़ कर स्टिल फोटोग्राफी में अपना कैरियर बनाने की बात पिता के सामने रखी तो उन्होंने कुछ समय तक इस विषय पर गंभीर चिंतन किया और अंत में उन्हें इस की इजाजत दे दी. उन्होंने प्राण को अपने फोटोग्राफर मित्र से विशेष रूप से प्रशिक्षण लेने की सलाह दी. इस के बाद शिमला और लाहौर में फोटोग्राफी की नई शाखाएं खोलने के साथ ही प्राण को लाहौर भेज दिया गया. वे फोटोग्राफी के शौकीन थे. फोटोग्राफी से वे 200 से 300 रुपए कमा लेते थे और उस कमाई से वे अपनी रुचि के अनुसार कपड़े पहनने के शौक को पूरा करते थे.

लाहौर में जब उन्हें अभिनय का प्रस्ताव मिला तो उन्हें अपने परिवार को इस बारे में बताने का मौका ही नहीं मिला और उन्होंने पिता को बताए बिना अभिनय का पेशा अपना लिया. प्राण कहते हैं कि मेरा फिल्मों से जुड़ना मेरे पिता को बिलकुल अच्छा नहीं लगा. उन्होंने मुझे दिल्ली बुलाया और कोई दूसरा पेशा अपनाने को कहा. इस पर प्राण ने कुछ समय तक पिता का दिल रखने के लिए अभिनय से दूरी बना ली थी.

इसी दौरान पिता ने उन पर शादी का दबाव डालना शुरू किया. 1945 में प्राण का विवाह शुक्ला अहलूवालिया से हो गया. विभाजन से पहले तक वे लगभग 20 फिल्मों में अभिनय कर ख्यातिप्राप्त कलाकार बन चुके थे. चारों ओर उन की कलाकारी के कद्रदान थे. विभाजन के बाद 1947 में प्राण मुंबई आ गए. मुंबई आने के बाद कई महीने तक उन्होंने फिल्मी दुनिया के दरवाजे खटखटाए, लेकिन बात नहीं बनी. बौंबे टाकीज में प्राण के पुराने मित्र सआदत हसन मंटो ने उन की मदद की और उन्हें काम दिलाने के लिए बौंबे टाकीज ले कर गए. मंटो की सिफारिश रंग लाई और प्राण को फिल्म ‘जिद्दी’ में एक रोल मिला. मुंबई में प्राण का यह पहला अनुबंध था. मेहनताना 500 रुपए तय हुआ.

मुंबई की फिल्म नगरी में उन्होंने खलनायक के तौर पर पदार्पण किया था. उस समय वहां पहले से ही दिग्गज खलनायक मौजूद थे. जैसे : जीवन, अजीत, के एन सिंह, हीरालाल, कन्हैयालाल आदि. एस एम यूसुफ की फिल्म ‘गृहस्थी’ पूरे भारत में सुपरहिट रही. इस फिल्म की शानदार कामयाबी ने मुंबई में प्राण को प्रकाश में ला दिया. उन्हीं दिनों प्राण द्वारा साइन की गई फिल्म ‘बड़ी बहन’ ने अगले 2 दशकों तक उन के कैरियर को खलनायक की निश्चित दिशा प्रदान की. इस में उन की खलनायकी का बिलकुल अलग रूप देखने को मिला. पूरी फिल्म में वे सिगरेट पी कर मुंह से धुएं के छल्ले छोड़ते दिखाई दिए. उन के इस अंदाज ने खलनायक के एक नए रूप को जन्म दिया.

1954 तक अपने अभिनय कैरियर के दूसरे दशक के पहले 5 वर्षों में प्राण ने लगभग 33 फिल्मों में और अपने कैरियर के दूसरे दशक में 73 फिल्मों में काम किया. 50 के दशक में प्राण के कैरियर की उत्कृष्ट फिल्मों में उन की मनचाही भूमिकाओं की भरमार रही. इसी दशक में प्राण ने सामाजिक फिल्मों में पूरी तरह दूषित खलनायक की भूमिका निभाई.

प्राण ने ‘शीशमहल’, ‘आनबान’, ‘हलाकू’ व ‘राजतिलक’ जैसी कई कौस्ट्यूम ड्रामा फिल्मों में अभिनय किया. ‘तूफान’, ‘दो गुंडे’ और ‘मैडम ऐक्सवाइजेड’ जैसी ऐक्शनप्रधान फिल्मों में भी उन्होंने अपनी अदाकारी के जलवे दिखाए. कौमेडी फिल्मों में भी अपने अभिनय की छटा बिखेरी. ‘छम छमा छम’, ‘पिलपिली साहब’, ‘हम सब चोर हैं’, ‘राजा और राणा’ व ‘एक झलक’ उन की प्रमुख फिल्में थीं. ‘मधुमति’, ‘मोती महल’, ‘गेस्ट हाउस’ उन की यादगार रोमांचक फिल्में साबित हुईं.

प्राण ने 350 से भी अधिक फिल्मों में काम किया. 2001 में उन्हें पद्मभूषण अवार्ड प्रदान किया गया. साल 2013 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमैंट के लिए दादा साहेब फाल्के सम्मान से नवाजा गया.

इन्हें भी आजमाइए

  1. धुलने के बाद यदि साड़ी सिकुड़ गई है तो नीचे की तरफ 15 सैंटीमीटर प्रिंटेड रंगीन कपड़ा बौर्डर के रूप में लगा लें और वैसा ही प्रिंटेड ब्लाउज बना लें.
  2. फलालेन की चादरें या रजाइयां खरीदने पर हमेशा उन की सिलाई पर मशीन की एक सिलाई और कर दें, इस से सिलाई टूटने का डर नहीं रहेगा.
  3. फूलदान में फूल लगाने से पहले पानी में एक चम्मच कोयला पीस कर डाल दीजिए. फूल बदले बिना ही, कई दिनों तक ताजा रहेंगे.
  4. मक्खियों से परेशान हैं तो कपूर की एकदो डली लोहे की किसी गरम चीज पर डालें. मक्खियां फौरन भाग जाएंगी.
  5. दरवाजों व खिड़कियों के पल्लों को हमेशा चमकदार रखने के लिए हर हफ्ते उन को पानी में सरसों का तेल मिला कर पोंछिए.
  6. चिपकने वाली टेप से बंद डब्बों को खोलने के लिए उन्हें कुछ सैकंड तक भाप में रखिए.
  7. जूते यदि पानी में भीगने से ऐंठ गए हों तो उन में मिट्टी का तेल डालने से वे नए के समान मुलायम हो जाएंगे.
  8. चांदी के आभूषणों को काला दाग पड़ने से बचाने के लिए सूखे आटे में रख दें.

सूक्तियां

उत्साह

हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है. उत्साह ही मनुष्य को सर्वदा सब प्रकार के कर्मों में प्रवृत्त करने वाला है और जीव जो कुछ कर्म करता है, उसे उत्साह ही सफल बनाता है.

उपकार

मनुष्य के जीवन की सफलता इसी में है कि वह उपकारी के उपकार को कभी न भूले. उस के उपकार से भी बढ़ कर उस का उपकार कर दे.

ईमानदारी

ईमानदारी, वचन का पालन और उदारता : ये 3 ऐसे गुण हैं जो स्वाभिमान के साथ अनिवार्य रूप से रहते हैं.

उधार

न उधार लो और न उधार दो क्योंकि उधार अकसर स्वयं को और मित्र दोनों को खो देता है.

इच्छाएं

इच्छाओं को शांत करने से नहीं अपितु उन्हें परिमित करने से शांति प्राप्त होती है.

ईर्ष्या

ईर्ष्यालु मनुष्य स्वयं ही ईर्ष्याग्नि में जला करता है. उसे और जलाना व्यर्थ है.

बच्चों के मुखसे

हमारी बालकनी के निचले हिस्से में कबूतर ने अंडे दिए. उस में से बच्चे निकल आए. ये सारी प्रक्रिया मैं और मेरा 4 साल का बेटा रोज देखते और उन के बारे में बातें करते. कबूतर का वह बच्चा बड़ा होता गया. उस के छोटेछोटे पंख निकलते रहे और एक दिन वह उड़ गया. जब मेरे बेटे ने मुझ से कबूतर के बच्चे के बारे में पूछा तो मैं ने उसे बताया कि वह तो उड़ गया. तब वह बड़ी देर तक सोचते हुए बोला, ‘‘ठीक है मम्मी, जब मेरे भी पंख आ जाएंगे तो मैं भी उड़ जाऊंगा.’’ यह सुन कर मैं ठहाका लगा कर हंस पड़ी.

बीना, गोल मार्केट (दिल्ली)

 

मेरा ढाई वर्षीय नाती अक्षत बहुत नटखट और हाजिरजवाब है. उसे मिट्टी खाना अच्छा लगता है. हम उसे रोकते हैं तो वह छिप कर खाने की कोशिश करता है. एक दिन वह दीवार खुरच कर खा रहा था. मुझे आते देख कर डर गया और पास की दीवार पर बैठी छिपकली को दिखा कर अपनी तोतली आवाज में कहने लगा, ‘‘नानी, मैं ने नहीं, उछ ‘छुपली’ ने मिट्टी खाई है.’’ उस की मासूम सफाई और भोली सूरत पर हम सब हंस पड़े.

निर्मला राम, पटना (बिहार)

 

एक दिन मैं अपने कमरे में बच्चों को पढ़ा रही थी. देवरानी खाना बना रही थी. सासूमां मेरी देवरानी की 3 साल की बेटी रोशनी को दुलार कर रही थीं. वे गा रही थीं : चल मेरी चक्की शानोशान, आटा पीसना मेरा काम, पीसूंगी, पिसवाऊंगी, रोटियां पकाऊंगी, भैया को खिलाऊंगी, भैया जाएगा पढ़ने, डाक्टर बन कर आएगा. इस पर रोशनी बोली, ‘‘दादीमां, मैं रोटी नहीं पकाऊंगी, बड़ी मम्मी की तरह पढ़ कर मैडमजी बनूंगी.’’ आंगन में जितने लोग थे, ठहाके लगाने लगे.

पारुल देवी, मुजफ्फरपुर (बिहार)

 

हम परिवार सहित सब टीवी पर ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ देख रहे थे. लड़कियों के साथ छेड़छाड़ के मामले में उक्त धारावाहिक फिल्माया गया था, जिस में अपराधी लड़कों को पुलिस हथकड़ी पहना कर ले जा रही थी. तभी मेरे पुत्र ने मुझ से प्रश्न किया, ‘‘डैडी, पुलिस ने इन के हाथ में हथकड़ी क्यों लगाई है?’’ तो मैं ने कहा, ‘‘ताकि ये भाग न सकें.’’

तभी मेरे पुत्र प्रसन्न ने कहा कि हाथ में हथकड़ी लगाने से क्या होगा. यदि इन्हें भागने से रोकना है तो पैरों में हथकड़ी लगानी चाहिए. लोग हाथ से थोड़े ही भागते हैं. उस की इस त्वरित प्रतिक्रिया को सुन कर हम सब हंसे बिना न रह सके.

आशीष जयकिशन, राजनादगांव, (छग.)

उधार

बहुत दिन से मैं ने देखी नहीं है धूप

कैसी होती है, भूल सी गई हूं

थोड़ी रोशनी उधार दे दो न तुम

 

अंधेरे तहखानों में छूट रही हैं सांसें

सीलन और उमस फैली है चारों ओर

अपनी खुशबू उधार दे दो न तुम

 

सन्नाटों ने घेरा है मुझ को

तन्हाई में घूमती हूं उदास

ये मुस्कुराहट उधार दे दो न तुम

 

परेशान हूं न जाने क्यों

पशेमां हूं अपने आप पर

थोड़ी जिंदगी उधार दे दो न तुम

 

चाहती हूं फिर लौट आए

वो जो मेरा खो गया था

मेरा बचपन उधार दे दो न तुम

 

जो तुम दोगे कोई न दे सकेगा ‘उधार’

लौटा सकूंगी तुम्हारा सबकुछ

यह जानती नहीं

 

जो भी तुम दोगे रखूंगी संभाल कर

क्या तुम दोगे बस, थोड़ा प्यार

मुझे उधार.

 – अर्चना भारद्वाज

 

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