मैंकानपुर से बरेली बस द्वारा जा रही थी. फर्रूखाबाद स्टेशन पर बस रुकते ही काफी लोग उतर गए. मैं खिड़की से बाहर देख रही थी. मुझे आभास भी नहीं हुआ किसी ने मेरा चश्मा उतार लिया. मैं हैरान हुई, तभी बस में एक सहयात्री से इस बारे में बताया. वह कहने लगा, नीचे एक बंदर बैठा चश्मे के फ्रेम को चबा रहा है. इस स्टौप पर यह मामूली सी बात है. बंदर बस की छत से उतर कर, खिड़की के पास बैठे यात्रियों का चश्मा रोज ही गायब करते हैं.
उस यात्री की सलाह पर चने व मूंगफली का पैकेट भी बंदर की तरफ फेंका लेकिन वह मेरा चश्मा खराब कर चुका था. नजर का चश्मा होने के कारण मुझे काफी परेशानी हुई.
शशि कटियार, कानपुर (उ.प्र.)

 

आज देश में ‘बेटी बचाओ अभियान’ चल रहा है पर हमारी दादी ने यह अभियान 46 वर्ष पहले शुरू किया था. यह बात मेरी मम्मी ने बताई तो मेरे मुंह से अनायास ही ‘दादी जिंदाबाद’ निकल गया.
बात 1966 की है. पापा उन दिनों जालंधर के समाचारपत्र में कार्यरत थे. मम्मी की डिलीवरी के कारण दादी गांव से मम्मी की देखरेख के लिए जालंधर आई हुई थीं.
मम्मी ने बताया कि पापा दफ्तर चले गए थे. उन्हें प्रसवपीड़ा होने लगी तो दादी लेडी डाक्टर को बुला लाईं. लेडी डाक्टर अपने साथ एक नर्स को भी ले आई थी. और तब हमारी बड़ी बहन, जो आजकल आयकर विभाग में उच्चाधिकारी हैं, का जन्म हुआ. दादी ने लेडी डाक्टर व नर्स को 100-100 रुपए दिए.
लेडी डाक्टर ने कहा, ‘‘माताजी, लड़की के जन्म पर कौन पैसे देता है, लड़का होता तो मैं खुद बधाई दे कर मांग लेती.’’
दादी ने जो जवाब दिया तो उसे सुन कर मैं ‘दादी जिंदाबाद’ कहने से अपने को रोक न पाई. उन्होंने कहा, ‘‘डाक्टर साहिबा, परिवार में 20 साल बाद संतान का जन्म हुआ है. हमारे लिए तो यह लड़कों से भी बढ़ कर है. इसलिए मैं बिना मांगे ही आप को बधाई दे रही हूं.’’
निमिषा चोपड़ा, मोहाली (पंजाब)

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