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नारी मुक्ति का गलत अर्थ

नारी मुक्ति की मुहिम में महिला उत्पीड़न पर आग उगलने वालों की आज एक फौज सी खड़ी हो गई है. नारी मुक्ति के सही माने समझे बिना यह फौज नारी मुक्ति के वास्तविक उद्देश्य से भटक गई है. पत्रपत्रिकाओं में नारी मुक्ति पर आजकल जो लिखा जा रहा है और प्रचारकों द्वारा जो कहा जा रहा है उसे पढ़ और सुन कर लगता है जैसे नारी को पुरुष से लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा हो. 

महिला उत्पीड़न पर लिखने और आग उगलने वालों की एक फौज सी खड़ी हो गई है. नारी विमर्श नामक एक नई लेखन विधा भी पैदा हो गई है. उपन्यास और कहानियां छप रही हैं, समाचारपत्रों में स्तंभ छप रहे हैं. इन में नारी मुक्ति को समझने की चेष्टा कम, पुरुष पर आक्रमण करने का हठ अधिक होता है. नारी मुक्ति का अर्थ होता जा रहा है, पुरुष से टक्कर लेने की ताकत. इस से स्त्रीपुरुष एकदूसरे को संदेह की नजर से देखने और अपना वैवाहिक जीवन खराब करने पर उतारू हो रहे हैं.

नारी देह के दुरुपयोग का सवाल भी बारबार उठ रहा है. इस पर लिखने वालों को लिखने का मसाला तो मिलता है पर गलतफहमियां भी पैदा हो रही हैं. जो बलात्कारी है, जो देह व्यापार करता है, उस के खिलाफ रिपोर्ट करने पर उसे दंडित किया जाता है. बहुत सी घटनाओं की कोई रिपोर्ट दर्ज नहीं होती है, पर इस का अर्थ यह नहीं कि समाज में नारी पूरी तरह असुरक्षित और पुरुष की दासी है.

सच पूछें तो नारी जितनी सुरक्षित हमारे संस्कारों के चलते हमारे परिवारों में है उतनी आजाद और सुरक्षित किसी अन्य देश में नहीं है. विवाह होते ही वह घर की मालकिन बन जाती है, और प्रतीक की भाषा में बोलें तो उसे घर की चाबी भी थमा दी जाती है. इस पर कोई कहे कि यह तो पुरुष की चालाकी है तो यह तो बस एक फेर है समझ का.

वास्तविक मुक्ति

इसी के चलते आज हमें नारी की आजादी का मतलब यह समझाया जा रहा है कि मर्द से मुकाबला करो, मर्द जैसी हो जाओ, मर्द की नाक काटो और मर्द से वे सारे काम कराओ जो तुम खुद करती हो. आज का पढ़ालिखा और संवेदनशील पुरुष अपनी पत्नी के काम में अब कितना हाथ बंटाने लगा है, इस परिवर्तन की पूरी तरह अनदेखी कर दी जाती है.

मुक्ति के नाम पर आज नारी को अपने कर्तव्य से भटकाने वाली बातें बहुत की जा रही हैं. उस की समस्या को ठीकठीक समझने की कोशिश बहुत कम हो रही है. उस के अधिकार के बचाव का प्रयास भी कम ही हो रहा है. मुक्ति का पूरा आंदोलन एक नारा बन कर रह गया है. उस के प्राकृतिक, स्वाभाविक गुणों की अनदेखी कर पुरुष से लोहा लेने की बात कही जा रही है. उसे यह क्यों नहीं समझाया जा रहा है कि आर्थिक आजादी में ही उस की वास्तविक मुक्ति है और वह यह अच्छी शिक्षा से ही प्राप्त कर सकती है.

आज की जो उपन्यास लेखिकाएं स्त्री स्वतंत्रता को अपना विषय बना कर लिख रही हैं, वह उन के निजी अनुभव पर आधारित है. ये लेखिकाएं तर्कों का जो पहाड़ पुरुष के खिलाफ खड़ा करती हैं वह स्त्री स्वतंत्रता में बाधक ही होता है. 

नारी मुक्ति के बारे में हाल ही में एक आंकड़ा छपा था. उस में कहा गया था कि भारत की करीब 93 प्रतिशत नारियां मुक्त नहीं हैं. उन्हें पुरुष के आधिपत्य में जीना पड़ता है. आंकड़ा तैयार करने वालों को यह कैसे मालूम? क्या हर नारी शोषित, पीडि़त और पुरुष की हवस का शिकार है? सच में देखा जाए तो कोई पीड़ा है तो स्त्रीपुरुष दोनों की है. आर्थिक संकट हो या कोई बड़ा रोग, वह दोनों का है.

आजकल यह कहते रहने का एक फैशन सा चल पड़ा है कि स्त्री को हम केवल एक ‘देह’ मानते हैं. इसीलिए उस के लिए हम साड़ी, कपड़े और जेवर आदि खरीदते हैं. उस के विचारों, भावनाओं और संवेदनाओं का ध्यान नहीं रखते. जिन परिवारों में औरत की कोई अपनी आमदनी नहीं है उन परिवारों में यह कुछ हद तक सही हो सकता है पर इसे नारी जीवन का एक अकाट्य सत्य मानना मात्र एक हठधर्मिता है. नारी जब शराब पिए, सिगरेट पिए, मर्द की तरह ट्रक चलाए क्या तभी वह आजाद कही जाएगी?

नारी की मुक्ति के लिए लड़ने वाले अधिकतर लोग दरअसल अपना कोई सामाजिक, राजनीतिक अथवा साहित्यिक हित साध रहे हैं. किसी व्यावसायिक मकसद के लिए भी वे इस विषय को प्रमोट कर रहे हैं. इस मुहिम में नारियां ही अधिक हैं और इसे खेद का विषय माना जाना चाहिए कि वे इस में सब से बड़ी बाधा पुरुष को ही मानती हैं. आप अगर कामकाजी हैं तो इस में आप को पुरुष का प्रोत्साहन जरूर मिलना चाहिए और मिल भी रहा है. तभी आप कामकाजी हैं, पर अगर पूर्णकालिक गृहिणी हैं तो मुक्ति के नारेबाजों की चाल में पड़ कर घरगृहस्थी की अवहेलना करना मुक्ति का पर्याय बिलकुल नहीं है.

मुक्ति का सही अर्थ समझें तो महिलाओं को शिक्षा और निर्णय का पूरा अधिकार मिलना चाहिए. प्रेम का, भ्रमण का, अभिव्यक्ति का और न्याय का भी पूरा अधिकार होना चाहिए. अपने ढंग से घर चलाने, बच्चे पालने, मायके वालों से मिलने, पत्रव्यवहार करने, बेटेबेटी के लिए बहूदामाद चुनने में भी उन की इच्छा का पूरा ध्यान रखना चाहिए.

महिलाओं को उन रूढि़यों और दकियानूसी विचारों से भी मुक्त होना होगा जिन की शिकार वे सदियों से रही हैं और जिन के चलते उन का शोषण होता है. नारी मुक्ति के थोथे प्रचार से बचते हुए वे अपने चूल्हेचौके के अलावा आधुनिक जीवन के खुले माहौल को भी देखें. अपना जीवन संवारने की दिशा में वे कोई नया, सार्थक कदम उठाएं.

वे पुस्तकें और पत्रपत्रिकाएं भी नियमित रूप से पढ़ती रहें ताकि विचारों की खिड़की खुली रहे. इस से उन्हें व्यावहारिक जीवन में आने वाली समस्याओं से जूझने के रास्ते मिलेंगे. 

संपत्ति की खरीद और बिक्री से ले कर आयकर के नियमों को भी वे जानें, तो यह भी मुक्ति की एक राह होगी. दुख की बात है कि उन्हें उपभोक्ता अधिकारों और महिला आयोगों की कार्यप्रणाली के बारे में भी बहुत कम ज्ञान है. बहुत सी महिलाएं तो रेल अथवा हवाई टिकट खरीदने के लिए रिजर्वेशन फौर्म तक नहीं भर पातीं. 

निम्नवर्गीय महिलाएं, जो कम शिक्षित हैं उन्हें भी चैक काटना, ड्राफ्ट बनवाना, मनीऔर्डर फौर्म भरना आदि आना चाहिए. मुक्ति का नारा बुलंद करने वाली मुक्तिवादी नारियां और नारी मुक्ति या नारी कल्याण के लिए संघर्ष कर रहे लोग उन्हें यह सब सिखाने का प्रयास क्यों नहीं करते? वे यह सब करें तो ज्यादा बेहतर होगा.      

बड़े सपनों की बड़ी कार

नए साल में अगर आप भी अपने परिवार को नई कार का तोहफा देना चाहते हैं तो पेश है दो बड़ी कारों का औप्शन जिस में एक वैल्यू फौर मनी है तो दूसरी है नए रूप में. अब पसंद आप की है, आप किसे घर लाते हैं.
आप कार खरीदने की सोच रहे हैं? अगर हां, तो जरा एक बार अपनी जेब टटोल लें क्योंकि कार बाजार में इस बार आप के सामने 2 विकल्प मौजूद हैं. पहला विकल्प हुंडई की एलांट्रा है जिसे वैल्यू फौर मनी की फिलौसफी पर तैयार किया गया है, जिस की कीमत 16.83 लाख रुपए है और दूसरा स्कोडा की रीलौंच औक्टाविया है जो पहले से कहीं बेहतर रूप में पेश की गई है. इस की कीमत 19.94 लाख रुपए है. 
फर्स्ट इंप्रैशन इज द लास्ट इंप्रैशन
कहते हैं फर्स्ट इंपै्रशन ही लास्ट इंप्रैशन होता है. क्योंकि  बात कार की हो रही है इसलिए कार के आउटर लुक का इंप्रैशन बहुत महत्त्वपूर्र्ण होता है. फ्ल्यूडिक डिजाइन फिलौसफी पर तैयार की गई एलांट्रा में इस बात का खास खयाल रखा गया है. इस कार का साइज और स्पोर्टी लुक इस के विजुअल इंप्रैशन को स्ट्रौंग बनाता है. वहीं दूसरी तरफ प्रीमियम सेडान कारों में जगह बनाने के लिए कंपनी ने औक्टाविया के नए मौडल को कई नए फीचर के साथ बाजार में उतारा है. इस का सौफिस्टीकेटेड लुक ग्राहकों को सब से ज्यादा मोहित करेगा, खासकर इस के एलईडी हैडलैंप बहुत आकर्षित करेंगे. फिर भी लुक्स के पैमाने पर तुलना की जाए तो एलांट्रा बाजी मार लेती है. 
कार के इंटीरियर और कंफर्ट को भी नजरअंदाज न करें क्योंकि इन की अनुपस्थिति में अच्छी बनावट भी फीकी लगने लगती है. औक्टाविया और एलांट्रा दोनों ही कारों में इस बात का बखूबी ध्यान रखा गया है. 
कहने को तो दोनों का इंटीरियर लगभग समान ही है लेकिन नई औक्टाविया में ड्राइवर की थकान को घटाने वाले फीचरों पर ध्यान दिया गया है. इस की हौट सीट यानी ड्राइवर सीट पर गौर फरमाएं तो एलांट्रा के मुकाबले इस के स्टियरिंग व्हील को आसानी से पकड़ कर गाड़ी को कंट्रोल किया जा सकता है. वहीं, अगर आप लौंग ड्राइव के शौकीन हैं तो एलांट्रा आप के लिए एक बेहतर विकल्प साबित होगी क्योंकि इस की सीटें औक्टाविया की सीटों की तुलना में ज्यादा आरामदायक हैं. दूसरे फीचर्स की बात की जाए तो दोनों के ब्रेक्स अच्छी तरह काम करते हैं. कुल मिला कर नई औक्टाविया और एलांट्रा में बेहतरीन किट लगी हैं. 
रफ्तार
चलिए, एक नजर दोनों गाडि़यों की स्पीड परफौर्मेंस पर डालते हैं. स्पीड के मामले में जहां औक्टाविया 3.9 सैकंड में 60 केपीएच और 9.5 सैकंड में 100 केपीएच की स्पीड देती है वहीं एलांट्रा स्पीड के मामले में औक्टाविया के सामने पैदल चलने के समान ही स्पीड (4.8 सैकंड में 60 केपीएच और 11.8 सैकंड में 100 केपीएच) दे पाती है. लेकिन इस का मतलब यह नहीं कि एलांट्रा ड्राइव करना बोरिंग होगा. हुंडई की सेडान कारों के सैगमैंट में एलांट्रा स्पीड के मामले में सब से बेहतरीन कार है.
-दिल्ली प्रैस की अंगरेजी पत्रिका बिजनैस स्टैंडर्ड मोटरिंग से 
 

सिलसिले

थमते नहीं अश्कों से
मुलाकात के सिलसिले
उस रोज से जब हम
तुम से आखिरी बार मिले
आदत है रखना
दबा के दिल में सारा दर्द
तुम से करेंगे कभी
शिकवे शिकायतें गिले
मुरझाया सा चेहरा रहेगा
अपना उम्रभर
मुसकान की रोशनी
शायद ही अब खिले
बाहर से दिखते थे
जो मजबूत सख्तजान
वक्त पड़ा तो निकले
सब के सब पिलपिले
एकएक दिन कर के
बीत जाएगी जिंदगी
हो सके तो ढहा लो
नफरतों के कुछ किले.
हरीश कुमार ‘अमित’

इन्हें भी आजमाइए

  1. वाशरूम में बड़े साइज का वर्ल्ड मैप लगाएं. जितना समय आप वहां गुजारेंगे, उस मैप को रोजाना देखना आप को भूगोल का ज्ञान कराएगा.
  2. मछली का ताजापन जांचने के लिए उसे ठंडे पानी भरे कटोरे में डालें. ऊपर तैरे तो मतलब मछली ताजा है.
  3. कपड़े से स्याही का दाग हटाना चाहते हैं तो दाग पर टूथपेस्ट लगा कर उसे पूरी तरह सूखने दें, बाद में धो लें.
  4. गरम पानी में नीबू का रस डाल कर उस में 10 मिनट तक सफेद कपड़े भीगने दें, फिर सफेदी देखिए.
  5. अपने छोटेछोटे आभूषणों को व्यवस्थित रखने के लिए आइस ट्रे का इस्तेमाल करें.
  6. कपड़े में लगे च्युंगम को हटाने के लिए कपड़े को 1 घंटे के लिए फ्रीजर में रख दें.
  7. टिश्यू पेपर बौक्स के साथ एक खाली टिश्यू पेपर बौक्स रबड़ बैंड से अटैच कर दें. जो भी टिश्यू पेपर इस्तेमाल करेगा, इधरउधर के बजाय खाली बौक्स में ही डालेगा.
  8. स्प्रिट से शीशा साफ करें, चमक उठेगा.
  9. ठंडे पानी से बालों की शौवरिंग करें, रूसी से नजात मिलेगी.

सांस

एकएक सांस का 
हिसाब मांगती है जिंदगी
कहां से शुरू, कहां खत्म 
कितनी कहानी अभी बाकी है
 
कहां रुकी, कहां थमी
सांस लेने को जिंदगी
कहकहे कहां गए
क्या बुलबुले से फूट गए
 
लुप्त हुई मुसकान कहां गई
कहां जाएगी ये जिंदगी
समझने को बेकरार मेरा शरीर
किसी उत्तर के इंतजार में आज भी .
शशि श्रीवास्तव

मेरे पापा

मेरे पापा शिक्षा को बहुत अहमियत देते थे. जब लड़कियों में शिक्षा का प्रचलन कम था, उस समय भी उन्होंने छोटे शहर में रहने के बावजूद हम
5 बहनों और 2 भाइयों को शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वे कहते थे, जो जितना पढ़ेगा उसे उतना अधिक पढ़ाऊंगा.
पापा की उम्मीदों पर खरी सिर्फ एक दीदी ही उतरती थीं इसलिए वे उन्हें ऐक्सप्रैस ट्रेन और हम लोगों को मालगाड़ी कहते थे ताकि हम लोग भी मेहनत से पढ़ें और आगे बढ़ें.
जीवन के नैतिक मूल्यों की शिक्षा और अच्छे संस्कार, जो उन के द्वारा मिले, उस की बदौलत हम भाईबहनों की गाड़ी कभी पटरी से नीचे नहीं उतरी, बल्कि अपनेअपने क्षेत्र में कामयाब हो कर आगे बढ़ते हुए सुव्यवस्थित जीवनयापन करने में सफल रहे.
यद्यपि पापा हम लोगों के बीच नहीं हैं फिर भी उन के व्यक्तित्व व शिक्षा से हमें सदैव आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है.
रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)
 
मुझे रसोई के काम में तनिक भी रुचि नहीं थी. कभीकभार मेरे पापा मुझे चाय बनाने के लिए कह देते तो मैं कभी ज्यादा पानी वाली या कभी ज्यादा चीनी वाली चाय उन को बना कर दे देती.
उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि चाय में चीनी अधिक है या चाय ठीक नहीं बनी है. वे हमेशा एक ही बात कहते, ‘बेटा, तुम ने चाय तो बढि़या बना कर दी है.’
एक दिन पापा के एक मित्र आए. पापा मेरे साथ किचन में आए. उन्होंने मुझ से चाय बनवाई. चाय पीने के बाद पापा के दोस्त जब जाने लगे तो उन्होंने कहा कि आप की बिटिया तो सब काम अच्छी तरह कर लेती है.
पापा ने अपने मित्र से कहा कि इस के रहते हुए मुझे कोई फिक्र नहीं है. पापा की बातों से मुझ में आत्मविश्वास पैदा हुआ और अब रसोई का कार्य मैं स्वयं कर लेती हूं. काश, सभी के पापा ऐसे हों.
दीपशिखा गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)
 
बात वर्ष 1986-87 की है. मैं 11वीं में पढ़ता था. मेरी मां का देहांत, जब मैं मात्र 5 साल का था, हो गया था. मुझे मेरे भैयाभाभी ने पालापोसा. मेरे पिताजी रिटायर्ड फौजी थे और दिल्ली में दूसरी सर्विस कर रहे थे. मां के देहांत के बाद अचानक पिताजी की आंखों की रोशनी चली गई. पिताजी गांव में रहने लगे. वे मुझे सेना में जाने के लिए जागरूक करते, सेना की बहादुरी के पुराने किस्से सुनाते. नतीजतन, मुझे भी सेना में जाने की जिज्ञासा हुई.
पापा की ही प्रेरणा से मैं आज सेना में सूबेदार हूं. पापा को सैल्यूट.
महिपाल रावत, नंदौली (उ.खं.) 

सूक्तियां

प्रशंसा
झिड़कियां और बदनामी वही सह सकते हैं जो प्रशंसा के योग्य होते हैं.
अज्ञानता
अपने ज्ञान के लिए गर्वित होना सब  से बड़ी अज्ञानता है.
धोखा
जीवन में कोई मनुष्य किसी से इतना धोखा नहीं खाता जितना कि अपनेआप से.
लक्ष्य
महान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए यत्न करतेकरते असफल हो जाना?भी शान की बात है.
विवाह
विवाह कभी विफल नहीं होते. यह तो व्यक्ति है जो विफल होता है. विवाह तो केवल व्यक्ति को उस के वास्तविक रूप में प्रकट कर देता है.
शिकायत
हम हमेशा शिकायत करते रहते हैं कि हमारे जीने के दिन थोड़े हैं, पर काम ऐसे करते रहते हैं मानो हमारा अंत कभी न होगा.
श्रेष्ठ व्यक्ति
श्रेष्ठ व्यक्ति के 3 रूप होते हैं–वह नेक हो तो चिंताओं से, बुद्धिमान हो तो उलझनों से और शक्तिवान हो तो भय से मुक्त रहता है.

दिन दहाड़े

मैं बाजार में आम खरीदने गई थी. एक ठेले वाले के पास मुझे दशहरी आम दिखाई दिए. मैं ने भाव पूछा तो उस ने उन का भाव 50 रुपए किलो बताया. मैं ने उसे 1 किलो आम तौलने के लिए कहा और पर्स से पैसे निकालने लगी. इसी बीच आम वाले ने आम पौलिथीन में डाल कर बांध दिए.
हमारे परिवार ने पिछले कई सालों से पौलिथीन का इस्तेमाल बंद कर दिया है इसलिए मैं ने उस से कहा कि आम मेरे बैग में डाल दे, मुझे पौलिथीन नहीं चाहिए, तो वह आनाकानी करने लगा. मैं भी अपनी बात पर अड़ी रही. आखिरकार उस को पौलिथीन खोलनी पड़ी. मैं दंग रह गई, उस में भरे हुए ज्यादातर आम खराब थे. मेरे आम दूसरी तरफ रखे हुए थे. दुकानदार बारबार कहने लगा कि गलती से ऐसा हो गया.
वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)
मेरी सहेली बनारस जा रही थी. कुछ रिश्तेदार भी साथ जा रहे थे. सभी को स्टेशन पर मिलना था. मेरी सहेली कुछ जल्दी पहुंच कर स्टेशन के बाहर ही अपने परिचितों का इंतजार कर रही थी. एक अच्छाभला संभ्रांत सा व्यक्ति उस के बगल में आ कर खड़ा हुआ और अपने मोबाइल से किसी से बातें करने लगा. उस की बातों से ऐसा लग रहा था कि वह बहुत परेशान सा है.
मेरी सहेली ने जिज्ञासावश पूछ लिया कि क्या बात है. उस ने बताया कि सुबह 3 बजे एअरपोर्ट पर उस ने अपने पिता को विदा किया था. वे जरमनी जा रहे थे बिजनैस के सिलसिले में और सुबह उन की फ्लाइट थी. उन का मध्य प्रदेश के मऊ शहर में साडि़यों का बड़ा कारोबार है.
एअरपोर्ट से लौटते समय बस में किसी ने उस का पौकेट मार लिया जिस से सारे पैसे चले गए. दिल्ली में उस की कोई जानपहचान भी नहीं है. रेलवे अधिकारी से भी बात की थी पर कोई मदद नहीं मिली.
उस व्यक्ति ने इतनी दयनीयता से अपनी परेशानी कही कि मेरी सहेली ने सहानुभूतिवश उस से पूछ लिया कि किराए में कितना लगेगा? उस व्यक्ति ने कहा, 300 रुपए. मेरी सहेली ने जब 300 रुपए दिए तो उस ने कहा, 500 कर दीजिए, मैं पहुंचते ही रुपए भेज दूंगा. इत्तेफाक से सहेली के पास उस समय पर्स में सिर्फ 400 रुपए ही थे जो उस ने दे दिए.
उस व्यक्ति ने अपना नाम पता दिया और सहेली का भी नाम, पता, फोन नंबर ले लिया. पैसे हाथ में पाते ही यह कहता हुआ चला गया कि देखूं शायद अभी कोई टे्रन मिल जाए. जिस तरह से वह गायब हुआ, मेरी सहेली को थोड़ा शक हुआ पर पैसे तो चले ही गए थे.
डेढ़ महीने बीत गए पर पैसे वापस न आने थे न आए.
किरन श्रीवास्तव, वसंत कुंज (न.दि.) 

बहाने आंसू के

निकल ही आते हैं बहाने
आंसू बहाने के
दूर से भी तुम 
नहीं छोड़ते मौके रुलाने के
ऐसी भी क्या बेचैनी थी 
दामन छुड़ाने की
पहले ढूंढ़ तो लेते 
बहाने कुछ ठिकाने के
मैं दिल की बात करता हूं 
तुम करो दुनिया की
छोड़ कर भी मुझे तुम 
न हो सके जमाने के
मेरे गीत-ओ-गजल में 
ढूंढ़ते हैं सब तुम्हें
मगर कुछ फिक्र न करना 
हम नहीं बताने के
बड़ी मुद्दत के बाद सोया था
कल रात मैं
तसवीर नहीं थी तेरी,
नीचे मेरे सिरहाने के
दिल को यकीं है
तुम लौट तो आओगे मगर
आवाज दे कर ‘आलोक’
अब तुम्हें नहीं बुलाने के.
आलोक यादव
 

कुत्ता एक सच्चा पहरेदार

आज के दौर में जब सुरक्षा प्रश्नचिह्न बनती जा रही है और लोगों का अपनों पर से विश्वास उठता जा रहा है तो ऐसे में कुत्ते अपनी वफादारी के बलबूते खेत, घर और फार्महाउस के नए पहरेदार बन कर उभर रहे हैं.

किसी को गाली देनी हो तो उसे कुत्ता कह देना काफी है, हालांकि समाज में कुत्ते को वफादार माना व कहा जाता है. कुत्ते इंसानों की सुरक्षा ही नहीं, घरों, फार्म हाउसों, खेतखलिहानों, बागबगीचों की पहरेदारी भी बखूबी करते हैं. बुंदेलखंड के महोबा जिले का कालीपहाड़ी गांव पत्थरों और छोटीछोटी पहाडि़यों से घिरा है. खेत गांव से दूर स्थित हैं. लिहाजा, किसानों को अपनी फसलों की सुरक्षा के लिए कई तरह के इंतजाम करने होते हैं. रामदीन ने वहां अपने खेतों के चारों ओर बाड़ लगा  कर सब्जी की खेती की है. वह अपनी 10 बीघा जमीन पर सब्जी के अलावा गेहूं, चना और मूंग की खेती करता है. उस ने अपने खेत के एक हिस्से में कटहल, नीबू और आम के पेड़ भी लगाए हैं.

उस की सब से बड़ी परेशानी इन फसलों की सुरक्षा की होती है. नीलगाय और छुट्टा जानवरों के अलावा चोरी करने वाले लोगों से फल और फसलों को बचाना मुश्किल होता है. रामदीन कहता है, ‘‘बुंदेलखंड में वैसे तो छुट्टा जानवरों को छोड़ने वाली अन्ना प्रथा लगभग बंद हो गई है लेकिन नीलगाय और दूसरे जानवरों से खेतों को बचाना आसान नहीं है. वहीं, फसलों की चोरी करने वाले भी परेशान करते हैं.’’

फसलों को बचाने के लिए रामदीन ने अपने खेत के बीच में एक जगह बनाई है जहां वह रात को सोता है. जंगली इलाके में रात को सोना किसी मुसीबत से कम नहीं होता. इस से बचने के लिए रामदीन ने 2 देसी नस्ल के कुत्ते पाल रखे हैं. किसी अनजान आदमी के आने पर वे जोरजोर से भूंकने लगते हैं. इस से रामदीन सचेत हो जाता है. वह कहता है, ‘‘कई जानवर तो इन कुत्तों की आवाज सुन कर ही भाग जाते हैं. जो जानवर या आदमी इस के बाद भी खेत में घुस कर फल और फसलों को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते हैं, कुत्ते उन का मुकाबला करते हैं. इन को जैसे ही यह पता चलता है कि हम जाग गए हैं और इन के पास हैं, ये दोगुनी ताकत से विरोधी पर हमला कर देते हैं.’’

ऐसा केवल रामदीन के साथ ही नहीं है, खेत से ले कर फार्म हाउस तक में खेती करने वाले सभी मानते हैं कि कुत्ते किसानों के दोस्त और फसलों के सब से बेहतर सुरक्षाकर्मी होते हैं. लखनऊ के रहने वाले राजेश राय ने सुल्तानपुर रोड पर गोमती नदी के किनारे अपना एक फार्म हाउस ‘ड्रीमवैली’ नाम से बनाया है. इस में वे मैडिसिनल प्लांट की खेती करते हैं. उन्होंने फार्म हाउस को पार्क का रूप भी दे रखा है. यहां पर हौर्स राइडिंग और कै मल राइडिंग के शौकीन लोग खूब आते हैं. वैसे तो यह फार्म हाउस लोहे के कंटीले तार से घिरा है पर फार्म हाउस का काफी हिस्सा खुला हुआ है. इस रास्ते से तमाम जानवर व चोरउचक्के फार्म हाउस में आ कर फसलों व वहां रहने वालों को नुकसान पहुंचा सकते हैं. इस से बचने के लिए राजेश राय ने जरमन शेफर्ड नस्ल के 2 कुत्ते पाल रखे हैं.

कुत्तों की फौज

यही हाल कानपुर रोड पर लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर ‘ड्रीमवर्ल्ड’ वाटर पार्क और फार्म हाउस चलाने वाले मनीष वर्मा का भी है. वाटर पार्क को तो बाउंड्रीवाल से सुरक्षित कर दिया गया पर फार्म हाउस की सुरक्षा के लिए केवल लोहे के तार की बाड़ का ही सहारा लिया गया है. इस के बीच से रास्ता बना कर जंगली जानवर और चोरउचक्के रात को यहां घुसने का प्रयास करते हैं. इन को रोकने के लिए मनीष वर्मा ने 18 कुत्तों की फौज तैनात कर रखी है. इन में जरमन शेफर्ड, नैपोलियन मैस्टिफ, ग्रेडडेन, लैब्राडोर और डालमेशन नस्ल के कुत्ते शामिल हैं.

दिन में ये कुत्ते एक ठंडी जगह पर बंधे रहते हैं. रात होते ही इन को फार्म हाउस में छोड़ दिया जाता है. इन के डर से चोर- उचक्के और जंगली जानवर फार्म हाउस में घुसने की हिम्मत नहीं करते. मनीष वर्मा बताते हैं कि अगर गलती से कोई छोटामोटा जानवर वहां पर आ भी जाता है तो ये कुत्ते मिल कर उसे मार देते हैं.

यह चलन नया नहीं है, बहुत पहले से लोग अपनी सुरक्षा के लिए कुत्तों को ले कर चलते थे. शिकार करने के शौकीन लोग भी कुत्तों पर खूब भरोसा करते थे. जब से फार्म हाउस कल्चर बढ़ा और लोगों ने फार्म हाउस में महंगे सामान रखने शुरू किए, उन की सुरक्षा बहुत जरूरी हो गई. कुत्ता रातभर जाग कर पूरी मुस्तैदी से फार्म हाउस की सुरक्षा करता है. हल्की सी आहट सुन कर वह उठ जाता है. जरूरत के अनुसार लोग खतरनाक किस्म के कुत्ते पालने लगे हैं जिन को देख कर ही लोगों के पसीने छूट जाते हैं.

सुरक्षा का बेहतर माध्यम

बाराबंकी जिले में अपना फार्म हाउस चलाने वाले राहुल मिश्रा ने बड़ी और छोटी दोनों ही प्रजाति के 20 से ज्यादा कुत्ते पाल रखे हैं. इन में छोटी प्रजाति वाले कुत्ते जहां घर पर रहते हैं वहीं बड़ी प्रजाति वाले डोबर मैन और जरमन शेफर्ड जैसे कुत्ते फार्म हाउस की सुरक्षा के लिए तैनात हैं. राहुल मिश्रा को प्रगतिशील किसान का अवार्ड मिल चुका है. वे कहते हैं, ‘‘सुरक्षा के लिए कुत्ता सब से सही माध्यम होता है. यह किसानों का सदा से मित्र रहा है. अब फार्म हाउस कल्चर बढ़ने से सुरक्षा का मसला खड़ा होने लगा है. इस के लिए  खतरनाक नस्ल के विदेशी कुत्ते को पालने का प्रचलन बढ़ गया है.’’ 

इस तरह से कुत्ते वर्तमान में घर, खेत, बागबगीचे व फार्म हाउस सभी की सुरक्षा कर रहे हैं. इंसान इन से तरहतरह के काम कराता रहा है. इंसानों ने जानवरों में कुत्ते को वफादार का तमगा दिया है. यह बागबानी की देखरेख में भी अपना योगदान देता है.    

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