थमते नहीं अश्कों से
मुलाकात के सिलसिले
उस रोज से जब हम
तुम से आखिरी बार मिले
आदत है रखना
दबा के दिल में सारा दर्द
तुम से करेंगे कभी
शिकवे शिकायतें गिले
मुरझाया सा चेहरा रहेगा
अपना उम्रभर
मुसकान की रोशनी
शायद ही अब खिले
बाहर से दिखते थे
जो मजबूत सख्तजान
वक्त पड़ा तो निकले
सब के सब पिलपिले
एकएक दिन कर के
बीत जाएगी जिंदगी
हो सके तो ढहा लो
नफरतों के कुछ किले.
हरीश कुमार ‘अमित’
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