मैं बाजार में आम खरीदने गई थी. एक ठेले वाले के पास मुझे दशहरी आम दिखाई दिए. मैं ने भाव पूछा तो उस ने उन का भाव 50 रुपए किलो बताया. मैं ने उसे 1 किलो आम तौलने के लिए कहा और पर्स से पैसे निकालने लगी. इसी बीच आम वाले ने आम पौलिथीन में डाल कर बांध दिए.
हमारे परिवार ने पिछले कई सालों से पौलिथीन का इस्तेमाल बंद कर दिया है इसलिए मैं ने उस से कहा कि आम मेरे बैग में डाल दे, मुझे पौलिथीन नहीं चाहिए, तो वह आनाकानी करने लगा. मैं भी अपनी बात पर अड़ी रही. आखिरकार उस को पौलिथीन खोलनी पड़ी. मैं दंग रह गई, उस में भरे हुए ज्यादातर आम खराब थे. मेरे आम दूसरी तरफ रखे हुए थे. दुकानदार बारबार कहने लगा कि गलती से ऐसा हो गया.
वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)
मेरी सहेली बनारस जा रही थी. कुछ रिश्तेदार भी साथ जा रहे थे. सभी को स्टेशन पर मिलना था. मेरी सहेली कुछ जल्दी पहुंच कर स्टेशन के बाहर ही अपने परिचितों का इंतजार कर रही थी. एक अच्छाभला संभ्रांत सा व्यक्ति उस के बगल में आ कर खड़ा हुआ और अपने मोबाइल से किसी से बातें करने लगा. उस की बातों से ऐसा लग रहा था कि वह बहुत परेशान सा है.
मेरी सहेली ने जिज्ञासावश पूछ लिया कि क्या बात है. उस ने बताया कि सुबह 3 बजे एअरपोर्ट पर उस ने अपने पिता को विदा किया था. वे जरमनी जा रहे थे बिजनैस के सिलसिले में और सुबह उन की फ्लाइट थी. उन का मध्य प्रदेश के मऊ शहर में साडि़यों का बड़ा कारोबार है.
एअरपोर्ट से लौटते समय बस में किसी ने उस का पौकेट मार लिया जिस से सारे पैसे चले गए. दिल्ली में उस की कोई जानपहचान भी नहीं है. रेलवे अधिकारी से भी बात की थी पर कोई मदद नहीं मिली.
उस व्यक्ति ने इतनी दयनीयता से अपनी परेशानी कही कि मेरी सहेली ने सहानुभूतिवश उस से पूछ लिया कि किराए में कितना लगेगा? उस व्यक्ति ने कहा, 300 रुपए. मेरी सहेली ने जब 300 रुपए दिए तो उस ने कहा, 500 कर दीजिए, मैं पहुंचते ही रुपए भेज दूंगा. इत्तेफाक से सहेली के पास उस समय पर्स में सिर्फ 400 रुपए ही थे जो उस ने दे दिए.
उस व्यक्ति ने अपना नाम पता दिया और सहेली का भी नाम, पता, फोन नंबर ले लिया. पैसे हाथ में पाते ही यह कहता हुआ चला गया कि देखूं शायद अभी कोई टे्रन मिल जाए. जिस तरह से वह गायब हुआ, मेरी सहेली को थोड़ा शक हुआ पर पैसे तो चले ही गए थे.
डेढ़ महीने बीत गए पर पैसे वापस न आने थे न आए.
किरन श्रीवास्तव, वसंत कुंज (न.दि.)
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