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बच्चों के मुख से

मैं फोन पर अपनी ननद से बात कर रही थी. ननद बोली, ‘‘भाभी, जरा मेरे पोते अरुण से 1 मिनट बात कर लीजिए. यह मुझे आप से बात नहीं करने दे रहा है.’’ उधर से अरुण ‘हल्लोहल्लो’ करने लगा. उस से इधरउधर की 2-4 बातें करने के बाद जब मैं ने कहा, ‘‘वाह अरुण, अब तो तुम बड़े हो गए हो.’’ तो वह तपाक से बोला, ‘‘हां, मैं 10 वर्ष का हूं और स्कूल भी जाता हूं.’’
ननद ने उस से फोन ले कर हंसते हुए बताया, ‘‘भाभी, तुम तो जानती हो, यह अभी 5 साल का है पर जल्दी बड़े होने के चक्कर में अपनी उम्र बढ़ा कर बताता है.’’
पद्मिनी सिंह, मुंबई (महा.)
 
बात उन दिनों की है जब मेरी 65 साल की सास की बच्चेदानी का औपरेशन उसी नर्सिंगहोम में हुआ जिस में मेरा बेटा, बेटी और ननद बड़े औपरेशन से पैदा हुए. हम सब मिल कर सास को देखने नर्सिंगहोम गए.
मेरा 4 साल का बेटा बहुत उत्सुकता से नर्सिंगहोम में दादी को देखने जा रहा था. जब दादी को देखा तो बोला, ‘‘मम्मी, दादी का बेबी कहां है?’’ यह सुन कर हम सब नीचे मुंह कर के हंस रहे थे.
प्रीतम कौर, धनबाद (झारखंड)
 
पिछले दिनों टमाटर का भाव खास चर्चा का विषय रहा. जहां 2 महिलाएं मिलीं, टमाटर के भाव पर चर्चा शुरू.
हुआ यों कि मैं अपनी एक सहेली से बात कर रही थी, पास में उस का 6 साल का बेटा खेल रहा था. 
मैं ने कहा, ‘‘सुन सीमा, टमाटर तो आसमान चढ़ गए हैं.’’
इस पर उस का बेटा तपाक से बोला, ‘‘आंटी, अब क्या टमाटर आसमान से तोड़ कर लाएंगे?’’ यह सुन कर मैं और मेरी सहेली दिल खोल कर हंसे. महंगाई का खौफ पलक झपकते ही मन से उड़ गया.
इला कुकरेती, वसुंधरा एनक्लेव, (दिल्ली)
 
मेरी बेटी कशिश 3 साल की थी. उसे रोज रात को सोने से पहले मुझ से कहानी सुनने की आदत थी. उन दिनों हम उसे चम्मच की सहायता से अपनेआप खाना खाना सिखा रहे थे.
एक दिन रात को वह कहने लगी, ‘‘पापा, मैं आप को एक कहानी सुनाती हूं.’’ मेरे हां कहने पर उस ने सुनाना शुरू किया.
‘‘एक जंगल में एक शेर रहता था. एक दिन उस ने एक बंदर को पकड़ लिया और उस से कहा, ‘मैं तुझे खा जाऊंगा.’ बंदर ने तुरंत कहा, ‘कैसे खाओगे? तुम्हारे पास चम्मच तो है ही नहीं.’’’
यह बात सुनते ही मैं और मेरी पत्नी हंसे बिना नहीं रह सके.
दीपक कुलश्रेष्ठ, गुड़गांव (हरियाणा) 

मेरा आशियां

बेतरह जल रहा है मेरा आशियां
पानी न हो तो आंसुओं से बुझा दो
झनझना कर रह गए मेरी वीणा के तार
गीत कोई अपनी खुशी का सुना दो.
बलवीर सिंह पाल
 

यह भी खूब रही

मैं अपनी बेटी को दिल्ली के होस्टल में टे्रन से छोड़ कर आ रही थी. मेरा डब्बा काफी खाली था. जैसे ही गाड़ी ने प्लेटफौर्म छोड़ा मैं ने अपने आसपास के यात्रियों का जायजा लेना शुरू किया. दूसरे यात्रियों पर तो ज्यादा ध्यान न गया पर ठीक मेरे सामने वाली बर्थ पर बुरका पहने एक मुसलिम महिला बैठी थीं. वे कम उम्र व मितभाषी थीं. उन के 6 बच्चे बेहद शरारत कर रहे थे. बड़ा बच्चा करीब 8 वर्ष का था और छोटा दुधमुंहा था.
कभी कोई बच्चा खिड़की से झांकता, कभी कोई दरवाजे की ओर भागता था, किसी को टौयलैट आती और किसी को कुछ. इन सब से बेखबर उन के पति अपने में ही मस्त थे, और साइड वाली खिड़की से बाहर के खूबसूरत नजारों का लुत्फ उठा रहे थे.
अगले स्टेशन पर कुछ हिजड़े डब्बे में चढ़ गए. उन को देख कर मैं ने अपनी आंखें बंद कर लीं और चुपचाप सीट पर लेट गई. हिजड़े पहले तो दूसरे यात्रियों से मांगते रहे. किसी को धमका कर तो किसी को पुचकार कर. फिर वे उस मुसलिम महिला व उस के पति से पैसे मांगने लगे पर उन्होंने पैसे देने से इनकार कर दिया. इस पर वे उस महिला से बोले, ‘‘तू बेचारी तो 6-6 बच्चों को संभाल रही है पर अपने आदमी को देख, ढेर सारे बच्चे पैदा कर नजारे देख रहा है.’’
दूसरा हिजड़ा उस के स्वर में स्वर मिला कर मुझे दिखा कर बोला, ‘‘और सास को भी बच्चों से कोई मतलब नहीं है. देख जरा, कैसे घोड़े बेच कर सो रही है. ए अम्मा, उठो. बहूबच्चों को संभालो वरना और मुटा जाओगी.’’
शर्म के मारे मेरा मुंह लाल पड़ गया. गाल जलने लगे. वह महिला लाख कहती रही कि वे मेरी सास नहीं हैं. पर वे न माने और मुझे उठा दिया और फिर कुछ रुपए ले कर ही वे वहां से गए.
ज्योत्सना खरे, लखनऊ (उ.प्र.)
विक्टर हमारी चाचीजी का प्यारा डौगी है. उन के हाथ से खाना खाता और उन के पलंग के नीचे सोता है. जब चाचीजी के बेटे की शादी हुई तब नई दुलहन शिल्पा का स्वागत भी उस ने घर के बुजुर्ग की तरह किया और जल्दी ही उस से घुलमिल गया.
चाचीजी कुछ दिन के लिए बाहर गई थीं. इस बीच शिल्पा को टैलकम पाउडर चाहिए था तो वह चाचीजी की ड्रैसिंगटेबल से लेने पहुंची. जैसे ही उस ने दराज खोली, विक्टर पता नहीं कहां से पहुंच गया और गुर्राने लगा. उस के बाद शिल्पा ने जैसे ही टैलकम पाउडर पर हाथ लगाया, विक्टर और जोरजोर से भूंकने लगा. वह तब तक भूंकता रहा जब तक उस की चाची नहीं आ गईं. उन के आते ही दोनों का मेल हो गया.
मनोरमा दयाल, नोएडा (उ.प्र.) 

इन्हें भी आजमाइए

  1. खाने के दौरान किसी प्रकार की जल्दबाजी दिखाने से खाने का स्वाद बिगड़ सकता है. हंसीमजाक और लतीफे खाने में चटपटी चटनी का काम करते हैं. रोजमर्रा की जिंदगी में आदमी जैसेतैसे खाता है और काम पर चला जाता है, पर कभीकभार आने वाले प्रिय मेहमान को खाना खिलाते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
  2. अपने कपड़ों की तुरपाई, बटन आदि का पूरा ध्यान रखें. उधड़ी हुई तुरपाई या टूटा हुआ बटन आप को फूहड़ सिद्ध करने के लिए काफी है. नित नए कपड़े बनवाने के चक्कर में न पड़ें. उचित यही होगा कि आप अपने कपड़ों के स्तर पर अधिक ध्यान दें.
  3. कई लोग सोचते हैं कि आभारप्रदर्शन लोगों को अच्छा नहीं लगेगा, उन्हें पसंद नहीं होगा. ऐसी बात नहीं है. यदि आप को स्वयं इस की अपेक्षा महसूस होती है तो दूसरों को भी क्यों नहीं होगी. आभारप्रदर्शन में चूकना नहीं चाहिए.
  4. आप रोगी के प्रति अपने स्नेह का प्रदर्शन अवश्य करें, पर सीमा में रहते हुए ही. फूल या फल आदि रोगी के लिए ले जाना चाहें तो सीमित मात्रा में ही ले कर जाएं.
  5. खून का धब्बा साफ करने के लिए उसे कोक में डिप करें. कोक सूखने से पहले कपड़े को धो लें. धब्बा दूर हो जाएगा.

मेरे पापा

बात मेरी छोटी बहन की सगाई की है. सगाई की रस्म समाप्त होने के बाद बहन के ससुर बोले, ‘‘क्या रिंग सेरेमनी भी होगी?’’ इस पर मैं तुरंत बोली, ‘‘हां, जरूर होगी.’’ इस के बाद हम सब लोग घर आ गए.
घर आ कर मेरे ससुराल वालों ने कहा कि तुम्हें बीच में बोलने की क्या जरूरत थी? तभी मेरे पापा बोले, ‘‘मेरी बेटी ने रिंग सेरेमनी की हामी भर कर बहुत ठीक किया. एक अंगूठी क्या इस बेटी पर तो हजार अंगूठियां न्यौछावर हैं.’’
यह सुन कर मेरा मन पापा के प्रति श्रद्धा से भर गया.
मीना सक्सेना, हरदोई (उ.प्र.)
 
बात बहुत पुरानी है. मैं पहली कक्षा में पढ़ता था. मैं हर रोज अपने पापा की जेब से 10 पैसे चुराया करता था. तब 10 पैसे की बहुत सी चीजें आ जाती थीं. एक दिन पापा ने कमीज को ऊपर टांग दिया था. वहां तक मेरा हाथ नहीं पहुंच सकता था इसलिए मैं ने एक कुरसी पर स्टूल रखा और पापा की जेब से 25 पैसे का सिक्का निकाल लिया. उतरते वक्त मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं नीचे गिर पड़ा.
आवाज सुन कर पापा आ गए. उन्होंने मुझे सहलाया और पूरी बात मुझ से पूछी. मैं ने सारी घटना का जिक्र कर दिया.
तब मेरे पापा ने मुझ से कहा कि ‘‘बेटा, चोरी करना बुरी आदत है और जिन बच्चों के साथ तुम उठतेबैठते हो वे ठीक नहीं हैं.’’
बचपन में पापा द्वारा दी गई सीख ने मेरी सोच बदल दी. आज मैं एक स्कूल में शिक्षक के तौर पर कार्यरत हूं और अपने सभी छात्रों को भी यही नसीहत देता रहता हूं.
प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)
 
वर्ष 1990 की घटना है. उस वक्त मेरी उम्र 8 साल थी. मैं अपने पापा के साथ देवघर से पटना जा रहा था. मेरे साथ मेरी छोटी बहन भी थी. उस की उम्र 5 वर्ष थी. पटना जाने के लिए टे्रन पकड़ने के लिए हम लोग जसीडीह नामक स्टेशन पर आ गए.
प्लेटफौर्म नंबर 2 पर खड़े हो कर हम सभी टे्रन का इंतजार करने लगे. तभी उत्तर दिशा से धड़धड़ाती हुई टे्रन आई और प्लेटफौर्म पर रुक गई. फिर आपाधापी मच गई.
पापा ने बहन को ट्रेन पर चढ़ा दिया और जैसे ही मुझे लेने के लिए उतरने लगे वैसे ही टे्रन चल दी. मैं प्लेटफौर्म पर छूट गया और रोने लगा. तभी पापा ने आननफानन ट्रेन की जंजीर खींच दी. कुछ ही देर में गाड़ी रुक गई और पापा हक्केबक्के से मेरे पास आए. उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया. इस क्रम में उन के घुटने में चोट भी लग गई थी मगर उन्होंने उस की परवा नहीं की थी.
रोहित चौधरी, देवघर (झारखंड)

हमारी बेड़ियाँ

हमारी एक रिश्तेदार को पंडित ने बताया कि यदि काले नादिया को शनिवार को काला कंबल उढ़ा कर अन्न खिलाओगी तो तुम्हारे घर की परेशानियां खत्म हो जाएंगी. हर शनिवार को उन के घर के सामने से एक पंडित नादिया ले कर निकलता था और सब से चढ़ावा लेता जाता था. घर वालों ने बहुत कहा, उसी को कंबल ओढ़ा दो पर वे नहीं मानीं क्योंकि उन के अनुसार एक तो वह नादिया वयस्क नहीं था, दूसरे, पूरी तरह काला भी नहीं था. उस पर केवल काले चकत्ते थे.
वे पूरी तैयारी के साथ गोशाला गईं. वहां एक काला सांड़ था. वे प्रसन्न हो गईं. वे जैसे ही उसे कंबल ओढ़ाने लगीं, वह भड़क गया. उस ने उन्हें गिरा कर घायल कर दिया. तब से उन का पूरा शरीर लकवाग्रस्त है और इस बात को 1 साल हो गया, वे पलंग पर पड़ी हैं.
डा. शशि गोयल, आगरा (उ.प्र.)
हमारे पड़ोस में एक मारवाड़ी परिवार रहता है. सभी लोग पढ़ेलिखे और मौडर्न विचारों के हैं. कुछ महीनों पहले उन के यहां पुत्र का जन्म हुआ है. हमारे घर के पास एक पार्क है. उस के आसपास कुछ लोग झुग्गी बना कर परिवार सहित रहते हैं.
एक रविवार को सुबहसुबह करीब 20-25 झुग्गी वाले लोग, पड़ोसी के दरवाजे पर जा कर चिल्लाने लगे, खूब गालीगलौज कर हंगामा करने लगे. पूछने पर पता लगा कि रात को हमारे पड़ोसी नारियल, सिंदूर, काले तिल, हरी मिर्च, नीबू आदि पार्क के पीपल की जड़ में गाड़ आए हैं. ऐसा करते उन्हें किसी ने देख लिया.
उन लोगों का कहना था कि उन के बच्चे पार्क में खेलते हैं, उन पर जादूटोना करने के लिए उन्होंने ऐसा किया. वे लोग पड़ोसी को खींचते हुए ले गए और उन से सब सामान हटावाया. जब लोगों ने पड़ोसी से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो वे बोले, ‘‘मेरे बच्चे की तबीयत खराब है. पंडितजी ने कहा कि उस पर किसी ने टोना कर दिया है, इसलिए ये वस्तुएं शनिवार की रात को पीपल की जड़ में गाड़ देना तो टोना उतर जाएगा.’’
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, पढ़ेलिखे लोग ही जब इतने अंधविश्वासी हैं तो वे तो गरीब अनपढ़ लोग हैं.
सरिता सेठ, कानपुर (उ.प्र.)
मेरे एक रिश्तेदार की पत्नी हमेशा धार्मिक उत्सवों में डूब कर अपने पति की आय का अधिकांश हिस्सा पंडेपुजारियों को दानदक्षिणा देने में खर्च कर देती है. इस वजह से न उस के बच्चों के पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े होते हैं न पौकेट मनी के लिए पैसा.
पति व बच्चे उसे इस आडंबर को बंद करने को कहते हैं तो वह मानती नहीं.
परिवार के सारे लोग एक व्यक्ति की हठधर्मी के कारण बेडि़यों में जकड़े हुए हैं.
प्रदीप, बिलासपुर (हि.प्र.) 

ठंडक फैल गई

बहुएं, बेटियां बंटवारा कर रही थीं
मेरे गहनों व कीमती वस्तुओं का
हड्डियों का ढांचा मात्र मैं अपनों से
अपनी मृत्यु की कामना सुन रही थी
 
अब यह घर भी उन का था
जिसे मैं ने व पति ने बनाया था
पर अब बच्चों को बदबू आती है 
मुझ से, मेरी दवाओं से
 
‘न इन को चैन है न हम को
न मालूम क्यों अटके हैं प्राण इन के
किस मोह में जकड़ी हैं सांसें इन की
कब मुक्त होंगे हम इन से’
 
मेरे लाड़ले के इन बोलों से
एक असह्य टीस उठी, सांस रुकी
और एक ठंडक फैल गई
चारों ओर मेरे वजूद के.
मीता प्रेम शर्मा 

बनाएं किचन को मौड्यूलर

एक समय था जब घर में किचन को सब से कम महत्त्व दिया जाता था. तब किचन का मतलब एक छोटे से कमरे से होता था, जहां बस जैसेतैसे खाना पक सके. उस में किसी भी तरह के कोई आधुनिक उपकरण नहीं होते थे और न ही किसी तरह की कोई सजावट होती थी. अगर कभी कोई खास पकवान बनाना हो तो घंटों समय लग जाता था.

धीरेधीरे बदलते समय के साथ किचन के रूप में भी बदलाव आने लगा. किचन सिटिंग की जगह स्टैंडिंग होने लगा. इंडियन स्टाइल किचन की जगह आधुनिक कौंसैप्ट ने ले ली और किचन को मौड्यूलर किचन कहा जाने लगा.

इंटीरियर डिजाइनर मनोज पांडेय कहते हैं, ‘‘ये किचन देखने में पहली नजर में भले ही महंगे और शोबाजी वाली चीज लगें पर ये काफी यूजरफ्रैंडली होते हैं. मौड्यूलर किचन को इंस्टौल करना काफी ईजी होता है. इस में काफी ट्रैंडी फिटिंग्स, जैसे किचन कैबिनेट्स, बास्केट्स, कौर्नर ट्रौलीज, शैल्फ्स, स्लाइडिंग ड्राअर्स आदि लगे होते हैं. इन में आप रसोई का सामान, उपकरण वगैरह व्यवस्थित ढंग से रख सकते हैं.’’

आधुनिक उपकरणों से तैयार मौड्यूलर किचन में हर चीज की जगह फिक्स होती है. कोई भी सामान निकालने और काम करने में दिक्कत नहीं होती. रसोई में स्टोरेज की पर्याप्त सुविधा होने की वजह से काफी जगह रहती है क्योंकि सामान कैबिनेट्स और ट्रौलीज के अंदर रखा जाता है. ये गोल, टेढ़ेमेढ़े व त्रिकोणीय सभी प्रकार के किचन में आसानी से फिट हो जाते हैं. नतीजतन, खाना बनाने में समय की भी बचत होती है.

मौड्यूलर किचन को कई अलगअलग वैराइटी, डिजाइन व रंगों में तैयार किया जा सकता है, जैसे कैबिनेट्स को मैटल, वुड, स्टील या ग्लास का बनाया जा सकता है और इन के कलर टिपिकल गे्र, ब्राउन व बेज आदि रखने के बजाय रैड, लीफी ग्रीन, रौयल ब्लू जैसे विकल्पों को चुन कर किचन को अट्रैक्टिव लुक दिया जा सकता है.

मौड्यूलर किचन का बजट मुख्य रूप से इस के साइज पर निर्भर करता है. अगर आप 8×6 फुट का किचन बनवाना चाहती हैं तो इस की कीमत लगभग 1 लाख रुपए हो सकती है. जैसेजैसे आप के किचन का साइज बढ़ता है, इस की कीमत भी बढ़ती जाती है. लेकिन इस किचन को आप कम बजट व अपनी पसंद के अनुसार भी आसानी से तैयार करवा सकती हैं.

बाजार में आज आधुनिक और ट्रैंडी किचन ऐप्लाएंसेज की कमी नहीं है. ये ऐप्लाएंसेज आप के मौड्यूलर किचन को एक स्टाइलिश लुक देते हैं. आइए, एक नजर डालें, ऐसे ही कुछ ऐप्लाएंसेज पर.

माइक्रोवेव ओवन

सब से पहले यह जरूरी है कि आप यह तय कर लें कि आप माइक्रोवेव ओवन लेना चाहती हैं या सिंपल ओवन. ये दोनों अलगअलग काम करते हैं. सिंपल ओवन का काम सामान को बेक करना होता है, वहीं माइक्रोवेव ओवन में आप खाने की चीजों को गरम कर सकती हैं, उबाल सकती हैं और पका भी सकती हैं. मार्केट में कई कंपनियों के माइक्रोवेव ओवन उपलब्ध हैं, जिस की शुरुआत लगभग 3 हजार रुपए से है.

हुड्स ऐंड होब्स

हुड्स यानी चिमनी और होब्स यानी स्टोव्स (गैसचूल्हा). इन दोनों ऐप्लाएंसेज के बिना किचन अधूरी रहती है क्योंकि एक के बिना भोजन तैयार नहीं हो सकता तो दूसरे के बिना खूबसूरत किचन.

बाजार में बर्नर्स की भी कई किस्में उपलब्ध हैं, जैसा कि आप जानती ही होंगी कि पहले बर्नर ब्रास के बनाए जाते थे, लेकिन अब यह एलोय के बने होते हैं. इन की खासीयत यह होती है कि ये कभी काले नहीं पड़ते. इस के अलावा कई बर्नर वाले होब्स भी बाजार में आ रहे हैं. जिन की मदद से आप एक ही समय में 3-4 रैसिपीज बना सकती हैं. इस से आप के समय की काफी बचत होगी.

अगर चिमनी की बात की जाए तो इस में ज्यादा बदलाव तो नहीं हुए हैं, लेकिन फिल्टर वाली चिमनी आने लगी हैं जो धुएं को बाहर निकालने की जगह घर के वातावरण में ही घुला देती हैं, वह भी वातावरण को बिना नुकसान पहुंचाए.

एयरफ्रायर

यह आधुनिक रसोई में एक बेहतरीन उपकरण है. साथ ही, यह कई सारे भारतीय व्यंजनों को पकाने में तेल की 80 फीसदी तक बचत करता है. पैटेंटेड रैपिड एयर तकनीक से सुसज्जित यह उपकरण तीव्रता से घूमता हुआ गरम हवा को ग्रिल ऐलिमैंट के साथ जोड़ कर तेलरहित स्वादिष्ठ फ्राइड फूड पकाता है. इस की कीमत बाजार में 14,995 रुपए से शुरू होती.

फ्रिज

बदलते वक्त के साथ अब लोगों की जरूरतें भी बदलती जा रही हैं, खासकर फूड हैबिट की. अब लोग विधिपूर्ण खाना पकाने से ज्यादा ‘रेडी टु ईट’ फूड खाना पसंद कर रहे हैं, जिन्हें फ्रिज में ही स्टोर कर के रखना होता है. रसोई में यह सब से जरूरी चीज है. मार्केट में एक नौर्मल फ्रिज 8 हजार रुपए में उपलब्ध है.

हैंडब्लैंडर

किसी चीज को छोटेछोटे टुकड़ों में काटना हो या फिर पेस्ट तैयार करना हो, अब यह मिनटों का खेल है. हैंड ब्लैंडर तकनीक ने इस काम को काफी आसान बना दिया है. मार्केट में अलगअलग कंपनियों के हैंड ब्लैंडर अलगअलग रेंज में उपलब्ध हैं. इस की शुरुआती कीमत 700 रुपए है.

इलैक्ट्रिक केटल

रसोई में केटल आजकल जरूरी ऐप्लाएंसेस में से एक है. इस में पानी, दूध, चाय, कौफी व मैगी आसानी से बनाई जा सकती है. ये 700-2500 रुपए के बीच उपलब्ध हैं.

रोटी मेकर

आज के जमाने में रोटी बनाना भी आसान हो गया है. अब रोटी बनाने के लिए बारबार बेलने की जरूरत नहीं है. बस, आटे की लोई को मशीन में रख कर दबाया और रोटी तैयार. अगर आप रोटी मेकिंग मशीन खरीदना चाहती हैं तो इस की कीमत 1 हजार रुपए रुपए से शुरू होती है.

मिक्सर ग्राइंडर

मिक्सर ग्राइंडर किचन के उपयोगी उपकरणों में से एक है. इस के बिना किचन अधूरी है. मार्केट में यह 2 हजार से ले कर 5 हजार रुपए तक के बीच उपलब्ध हैं.

मौडर्न कुकर

कुकर 2 तरह के होते हैं. पहला इलैक्ट्रिक कुकर और दूसरा स्टीम कुकर. इलैक्ट्रिक कुकर में चावल, पुलाव इत्यादि बनाना आसान होता है. वहीं, स्टीम कुकर में खासकर स्टीम प्रोडक्ट, जैसे मोमोज, इडली इत्यादि बनाना आसान होता है. इसलिए इसे खरीद कर आप अपनी रसोई को ईजी टू कुक बना सकती हैं.

इलैक्ट्रिक तंदूर

आज के समय में संभव नहीं है कि किचन में तंदूर रखा जाए. इसलिए तंदूरी व्यंजन बनाने के लिए मार्केट में इलैक्ट्रिक तंदूर आ गए हैं. इस की मदद से अलगअलग प्रकार के तंदूरी व्यंजन तुरंत तैयार हो जाते हैं. इस की शुरुआती कीमत 3 हजार रुपए है.

मेजरिंग इक्विपमैंट

कभीकभी खाना बनाते समय समझ नहीं आता कि चीजों को किस अनुपात में मिक्स किया जाए. अगर किसी भी चीज को थोड़ा ज्यादा डाल दिया जाए तो खाने में मजा नहीं आता. इसलिए रसोई में मेजरिंग इक्विपमैंट जरूर रखें.

आइसक्रीम मेकर

आधुनिक रसोई में यह एक नई तकनीक आई है. इस में बिना फ्रिज के भी आसानी से आइसक्रीम बनाई जा सकती है. मार्केट में आइसक्रीम मेकर की कीमत 4 हजार रुपए से शुरू होती है.

कुछ ऐसे रखें किचन

किचन में आधुनिक उपकरण लगाने के साथसाथ जरूरी है कि उसे अच्छी तरह से सजाया भी जाए ताकि वह ट्रैंडी के साथसाथ व्यवस्थित भी नजर आए. किचन की दीवारें हमेशा लाइट कलर की रखें ताकि कीड़ेमकोड़े और गंदगी का पता जल्दी चल सके.

किचन ऐसी हो कि उस में स्वच्छता और हाईजीन साफ नजर आए. इसलिए साफसफाई का ध्यान रखें. किचन को प्रदूषणरहित रखने के लिए चिमनी लगवा लें ताकि किचन धुआंरहित रहे. किचन की दीवार पर एक सुंदर बड़ा प्लानर लगा लें ताकि उस पर गैस लगाने की तिथि, अखबार, दूध वाले और हाउस हैल्पर के पैसे की तिथि नोट की जा सके. किचन में रेडियो या टैलीविजन का स्पीकर लगवा लें, इस से आप काम के साथ एंजौय भी कर सकती हैं.

अब जमाना बदल रहा है तो फिर आप का किचन क्यों पीछे रहे. देर किस बात की. आज ही अपने किचन का कायापलट कर डालिए और आधुनिक उपकरणों का मजा लीजिए.     

स्वाद के साथ सेहत भी परोसें

स्वस्थ शरीर जिम में नहीं रसोई में बनते हैं और हर होममेकर चाहती है कि उस की रसोई से उस के परिवार को स्वास्थ्य मिले. आइए जानें रसोई से अपने परिवार को सेहत व स्वाद कैसे परोसें?

रसोई को घर के दिल की धड़कन इसलिए कहा गया है क्योंकि किसी भी घर में यही वह जगह होती है जहां से हंसीखुशी, आनंद, स्वाद के अलगअलग चटखारों के साथ ही स्वास्थ्य भी परोसा जाता है. सच यह भी है कि स्वस्थ शरीर जिम में नहीं रसोई में बनते हैं.

दरअसल, रसोई ही वह महत्त्वपूर्ण जगह होती है जहां से अगर स्वस्थ, पौष्टिक व साफसुथरा खाना परोसा जाए तो पूरे परिवार को स्वास्थ्य का उपहार मिलता है. वहीं यह भी सच है कि इसी जगह में खाना बनाते समय हुई चूक और सही पोषक तत्त्वों का अभाव परिवार के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ का कारण बन सकती है.

यदि आप भी अपनी रसोई से अपने परिवार को सेहत व स्वास्थ्य परोसना चाहती हैं तो अपनी रसोई को बनाएं हैल्दी रसोई. अब आप कहेंगे क्या रसोई भी स्वस्थ होती है. जी हां, वह रसोई स्वस्थ होती है जहां साफसफाई, स्वच्छता और भोजन की पौष्टिकता का पूरा ध्यान रखा जाता है. स्वस्थ रसोई के लिए आज बाजार में अनेक ऐसे स्मार्ट प्रोडक्ट्स मौजूद हैं जिन से समय की बचत होने के साथसाथ आप को मिलते हैं सेहत, स्वाद और स्वास्थ्यवर्द्धक जीवनशैली.

हैल्थफ्रैंडली गैजेट्स

हैल्दी भोजन परोसने में आधुनिक किचन प्रोडक्ट्स मददगार साबित होते हैं. ये न केवल हैल्दी कुकिंग को कम चैलेंजिंग बनाते हैं बल्कि समय की भी बचत करते हैं. माइक्रोवेव भोजन के न्यूट्रीएंट्स को बरकरार रखते हुए पूरे परिवार को स्वास्थ्यवर्द्धक व स्वादिष्ठ भोजन परोसने में मदद करता है. इस के अलावा वैजिटेबल स्टीमर, फूड प्रोसैसर, मिक्सर, जूसर ग्राइंडर, इंडक्शन कुकर, टोस्टर, सैंडविच मेकर, सलाद चौपर आदि कुकिंग में लगने वाली मेहनत को कम करते हैं और कुकिंग के काम को आसान व रोचक बनाते हैं.

बाजार में मिलने वाला औयल मिस्टर आप के भोजन से अतिरिक्त फैट को कम कर के आप को कम तेल प्रयोग करने का अवसर देता है. इस की मदद से खाना बनाने वाले बरतन में तेल का केवल स्पे्र होता है जिस से आप को पौष्टिक भोजन मिलता है. बाजार में मिलने वाले इन आधुनिक उपकरणों की मदद से आप हैल्दी स्नैक्स, जूस, स्मूदी, सलाद, बना सकते हैं. फूड प्रोसैसर की मदद से आप सब्जियों और फलों को कुछ मिनटों में चौप ऐंड चर्न कर सकते हैं.

अगर बरतनों की बात की जाए तो आजकल मार्केट में ऐसे बरतन मौजूद हैं जो कम तेल सोखने के साथसाथ गंधरहित, माइक्रोवेवपू्रफ, जर्म फ्री व ईकोफ्रैंडली होते हैं. इस के अलावा ऐसे किचन स्टोरेज कंटेनर्स भी बाजार में मौजूद हैं जो फूड ग्रेड, नौन टौक्सिक, माइक्रोवेव सेफ होने के साथ आकर्षक भी होते हैं. इन बरतनों व कंटेनर्स में रखा परोसा गया भोजन आप को बेहतर स्वास्थ्य का उपहार देता है.

ये किचन गैजेट्स उन महिलाओं के लिए बहुत ही मददगार साबित होते हैं जिन्हें घर के साथसाथ कामकाजी होने का भी मोरचा संभालना पड़ता है. समय की कमी होने पर ये सभी उपकरण उन्हें अपने परिवार को घर का बना पौष्टिक खाना परोसने में मदद करते हैं और पति व बच्चों को स्वास्थ्यवर्द्धक खाना न परोस पाने के अपराधभाव से बचाते हैं.

रसोई में साफ और स्वास्थ्यवर्धक खाना बनाने की पहली जरूरत है उस का साफसुथरा होना, क्योंकि स्वच्छ परिवेश में ही खाना बनाने की स्वस्थ प्रक्रिया हो सकती है. चिकित्सकों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एकमत राय है कि पेट व आंत संबंधी संक्रमणों से बचने के लिए रसोई में स्वच्छता बेहद जरूरी है. देखने में साफ दिखने वाली रसोई वास्तव में साफ हो, यह जरूरी नहीं है. रसोई के सिंक में बहुत देर तक भीगे बरतन, मिक्सर व जूसर, ग्राइंडर में बचे खाद्य कण, जीवाणु व कीटाणुओं के जन्म लेने व कई रोगों का कारण बन सकते हैं. हानिकारक माइक्रोऔरगेनिज्म लकड़ी के बोर्ड पर पैदा होते हैं, इस से भोजन के संक्रमित होने का खतरा रहता है.

हैल्दी किचन प्रोडक्ट 

रसोई में इस्तेमाल किए जाने वाले बरतनों और उपकरणों को हैल्दी किचन जैल से अच्छी तरह धोएं. आजकल बाजार में कई कंपनियों के डिश जैल मौजूद हैं जो कीटाणुओं को नष्ट करने के साथसाथ बरतनों को साफ कर के चमकदार बनाते हैं. ये प्रोडक्ट हैल्दी कुकिंग व हैल्दी सर्विंग में मदद करते हैं. इन प्रोडक्ट के प्रयोग से बरतन, सिंक, कुकिंग टौप्स व स्लैब्स से कीटाणु नष्ट हो जाते हैं और आप को मिलता है बेहतर स्वाद व अच्छी सेहत.

एक मशहूर कंपनी की होम हाइजिन स्टडी के अनुसार, घरों में रसोई की साफसफाई में प्रयोग किए जाने वाले कपड़े सब से अधिक संक्रमित होते हैं और इन कपड़ों का इस्तेमाल खाद्यपदार्थों में संक्रमण के पनपने की आशंका को बढ़ा देता है. इन सभी कपड़ों को डिसइन्फैक्ट क्लीनर से साफ करना आवश्यक होता है क्योंकि स्वस्थ व साफ रसोई में ही स्वास्थ्य के राज छिपे होते हैं. इसलिए साफ दिखने वाली रसोई का वास्तव में साफ व स्वच्छ होना जरूरी है.

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