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हर रसोई कुछ कहती है

बचपन में मेरे पास एक किचन सैट था जो मुझे मेरी मां ने गिफ्ट किया था. उस किचन सैट से जुड़ी यादें, भावनाएं आज भी मेरे जेहन में ताजा हैं. विवाह के बाद अपनी रसोई डिजाइन करवाते समय मैं ने अपने डिजाइनर से उन्हीं खास यादों, रंगों, खुशनुमा पलों को समेटने को कहा ताकि वे यादें, खुशनुमा पल मेरी जिंदगी, मेरे परिवार में हमेशा रहें और मैं अपने परिवार को वे सारी खुशियां अपनी रसोई के माध्यम से परोस सकूं जो मैं अपने छोटे से किचन सैट से खेलखेल कर महसूस करती थी.

आप हैरान हो रहे होंगे कि क्या बचपन की यादों का रसोई की डिजाइन पर असर होता है. जी हां, वास्तव में ऐसा होता है. रसोई के डिजाइन के पीछे हर व्यक्ति की एक मनोवैज्ञानिक सोच होती है जो उस के आपसी रिश्तों, आदतों, सेहत पर प्रभाव डालती है. कोई भी व्यक्ति ऐसी रसोई कभी नहीं चाहेगा जो उसे उस स्थान की याद दिलाए जहां उस ने अपने मातापिता को सदैव लड़तेझगड़ते देखा था. हर व्यक्ति ऐसी रसोई चाहता है जहां से पूरे परिवार की खुशियां जुड़ी हों और जहां से आने वाले व्यंजनों की खुशबू सारी चिंताओं को दूर कर के आपसी रिश्तों में मिठास भर दे. इसलिए एक अच्छा किचन डिजाइनर किसी के लिए भी किचन डिजाइन करते समय उस के परिवार की जरूरतों, उस के इतिहास, उस के स्वभाव व आपसी रिश्तों की जानकारी भी लेता है.

किचन रिवोल्यूशन

रसोई डिजाइन करते समय इस बात का ध्यान भी रखा जाता है कि उस में अधिक से अधिक सामान आ जाए और वह फैलीफैली न लगे. एक ऐसी रसोई जिस के रंग, लाइट, खिड़कियां, वहां रखा सामान काम करने वाले की मनोवैज्ञानिक जरूरत के आधार पर हों तो वे उस व्यक्ति को सेहतमंद व स्वादिष्ठ खाना बनाने के लिए प्रेरित करते हैं.

आजकल किचन डिजाइन करते समय बोरियत से बचने के लिए मनोरंजन के संसाधन भी रखे जाने लगे हैं. यानी किचन जितनी स्टाइलिश और जरूरतों के आधार पर होगी, कुकिंग उतनी ही मजेदार होगी और रिश्तों में उतनी ही प्रगाढ़ता आएगी. इसलिए समय के साथ चलने के लिए किचन का कायाकल्प मनोवैज्ञानिक जरूरतों के आधार पर करना होगा.

रस्टिक किचन

यह किचन उन महिलाओं के लिए डिजाइन की जाती है जिन के पास समय की कमी होती है और वे रसोई का प्रबंधन ढंग से नहीं कर पातीं. यह किचन कौंसैप्ट आधुनिक होममेकर्स के लिए एक वरदान है. रस्टिक किचनवेयर में अर्दनवेयर पोट्स को सजावट के लिए प्रयोग किया जाता है. रस्टिक लुक के लिए कैबिनेट्स में ट्रैडिशनल लुक वाले हैंडल्स व नौब्स प्रयोग किए जाते हैं.

जैसा स्वभाव वैसी किचन

मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो लोग अंतर्मुखी होते हैं वे नहीं चाहते कि उन्हें किचन में खाना पकाते या उस की तैयारी व साफसफाई करते समय कोई देखे. इसलिए वे किचन ऐसी जगह पर चाहते हैं जहां से घर के मेहमान उन्हें खाना बनाते समय न देख सकें. और वे मेहमानों को बिना देखे ही उन से बात करना चाहते हैं. इसे उन का अक्खड़ स्वभाव न समझें, यह उन का जन्मजात स्वभाव है. इस के विपरीत वे लोग जो बहिर्मुखी हैं वे चाहेंगे कि उन की किचन घर के ऐसे स्थान पर हो जहां से मेहमान उन्हें देख सकें और वे वहीं से उन्हें देखते हुए बातें कर सकें.

मनोवैज्ञानिक प्रांजलि मल्होत्रा इस विषय पर कहती हैं, ‘‘पुराने समय से किचन को हमारे घरों का सब से पवित्र और शुद्ध हिस्सा माना जाता रहा है. इस का स्थान हमेशा ऐसी जगह पर होता है जो वेलकमिंग हो. किसी गृहिणी की किचन साफसुथरी, सिस्टेमैटिक और वैलडैकोरेटेड होती है तो उस किचन से अच्छी भावनाएं आती हैं. अगर किचन का रंग, डैकोरेशन गृहिणी की पसंद का होता है, उस में अच्छी सनलाइट आ रही होती है तो वह अपनी कुकिंग को एंजौय करती है, कुकिंग में नएनए ऐक्सपैरिमैंट करती है, उसे खाना बनाना एक बोझ नहीं लगता. यही नहीं, खाना बनाने में मिलाया गया प्यार का रस घर के सदस्यों में आपसी स्नेह को भी बढ़ाता है. इस के विपरीत जब किचन किसी होममेकर की मनोवैज्ञानिक सोच के आधार पर डिजाइन नहीं होती, उस का रंग, लाइट, उस की पसंद का नहीं होता तो वह तनाव व गुस्से में भोजन पकाती है जिस का विपरीत और नकारात्मक असर घर के सदस्यों के स्वास्थ्य और आपसी रिश्तों पर पड़ता है.’’

इंटीरियर डिजाइनर सोनिया किचन डिजाइन के पीछे छिपी मनोवैज्ञानिक सोच के बारे में कहती हैं, ‘‘किचन का जितना अच्छा डिजाइन होगा पतिपत्नी के बीच उतना ही अधिक प्यार बढ़ेगा जैसे लाइट पिंक रंग अगर किचन में कराया जाए तो वह कुकिंग करने वाले को शांत रखता है और घर में प्यार बढ़ता है जबकि किचन में डार्क रंग कुकिंग करने वाले को हाइपर बनाते हैं.’’ किचन डिजाइन करते समय हम घर के सदस्यों की सोच, उन की पसंद का ध्यान रखते हैं क्योंकि यह सोच उन के आपसी रिश्तों और घर के सदस्यों के स्वास्थ्य को प्रभावित करती है. अगर किचन में म्यूजिक व डिजाइनर क्रौकरी का इस्तेमाल किया जाता है तो खाना बनाने वाला कुकिंग को एंजौय करता है. कुल मिला कर किचन छोटी हो या

बड़ी, वह परिवार की मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक जरूरतों को पूरा करती है, इसलिए वह जगह जहां से पूरे घर के लोगों को स्वाद और सेहत परोसी जाती है, ऐसी होनी चाहिए जो कुकिंग करने वाले का परफैक्ट मूड बनाए ताकि गृहिणी घर के सदस्यों को एक से बढ़ कर एक स्वाद परोस सके. 

रोशनी हो ऐसी

रसोई में परफैक्ट लाइटिंग, कुकिंग करने वालों और भोजन खाने वालों के बीच के रिश्तों को मजबूत बनाती है. ब्राइट लाइट ग्लास व हलके रंगों के वुड के साथ परफैक्ट मैच करती है. जबकि गहरे रंगों की लाइट वाइब्रैंट वुड वर्क व ऐप्लाएंस के साथ मैच करती है. इसीलिए डिजाइनर्स आजकल किचन की डिजाइन करते समय मानव मूड पर रोशनी के महत्त्वपूर्ण प्रभाव की महत्ता को समझते लाइट को महत्त्वपूर्ण स्थान देने लगे हैं.

मनोवैज्ञानिक सोच

रंगों के जानकार कहते हैं कि अगर आप के जेहन में किचन की अच्छी यादें हैं तो आप बड़े हो कर भी उन्हीं रंगों को अपनी किचन में अपनाना चाहेंगे. जैसे अगर आप सफेद और नीले रंग की किचन को देखते हुए बड़े हुए हैं और उस किचन से आप की अच्छी यादें जुड़ी हैं तो आप अपनी किचन में नीला और सफेद रंग ही चाहेंगे. ऐसा करना आप के और आप के परिवार के लिए भी खुशियों को आमंत्रण देगा. अगर आप की यादों में कोई विशेष रंग नहीं है तो लाल व पीला रंग आप के लिए बेहतर रहेगा.

वहीं, अगर आप अपने बढ़ते वजन से परेशान हैं और वजन पर नियंत्रण करना चाहते हैं तो लाल रंग किचन में हरगिज न करवाएं क्योंकि कंसल्टैंट्स कहते हैं कि लाल रंग परिवार के सदस्यों को ज्यादा खाने के लिए प्रेरित करता है. आप ने देखा होगा कि अधिकांश रैस्टोरैंट्स और ईटिंग जौइंट्स के डिजाइन में लाल रंग का इस्तेमाल किया जाता है. अलगअलग रंग व्यक्ति के मूड पर अलगअलग तरह से प्रभाव डालते हैं. जैसे, अगर आप अपने परिवार के सदस्यों व मेहमानों की भूख बढ़ाना चाहते हैं तो अपनी किचन में लाल रंग का तड़का लगाइए. अगर आप सौफिस्टिकेटेड लुक चाहते हैं तो हलके रंगों का इस्तेमाल कीजिए. अगर आप किचन को ऐक्सपैंसिव लुक देना चाहते हैं तो ब्राइट कलर्स का प्रयोग करें क्योंकि ये फ्रैंडली व हैप्पी कलर्स माने जाते हैं. ये रंग घर के सदस्यों के बीच संवाद कायम करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.    

पाठकों की समस्याएं

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. मेरी समस्या यह है कि मैं एक ऐसे लड़के से प्यार करती हूं जो विवाहित है और उस के 3 बच्चे हैं. वह भी मुझ से बहुत प्यार करता है. हम दोनों विवाह करना चाहते हैं पर हमारे मातापिता को यह विवाह मंजूर नहीं है क्योंकि हम दोनों अलगअलग जाति के हैं. हम एकदूसरे के बिना रहने की कल्पना नहीं कर सकते लेकिन साथ ही अपने मातापिता की इच्छा के खिलाफ भी नहीं जाना चाहते. आप ही बताएं, हम क्या करें?

विवाहित, 3 बच्चों के पिता से प्यार कर के आप नादानी कर रही हैं. जो पुरुष अपने परिवार, पत्नी के साथ धोखा कर सकता है, इस बात की गारंटी नहीं है कि वह आप के प्रति वफादार रहेगा और आगे किसी और के प्यार के चक्कर में नहीं पड़ेगा.

आप अभी युवा हैं, आप के पास और बेहतर विकल्प हो सकते हैं. इसलिए मातापिता की इच्छा मान कर इस विवाह के बारे में भूल जाइए और एक सही जीवनसाथी की तलाश कीजिए या फिर उस प्रेमी को कहें कि वह पहले अपनी पत्नी से तलाक ले, फिर आप के साथ प्रेम करे. तलाक लेना हंसीखेल नहीं है.

मैं 35 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं. शादी को 10 वर्ष हो चुके हैं. मेरा एक बेटा भी है. मैं अपनी पत्नी से बहुत परेशान हूं. वह मुझ से गलत ढंग से बात करती है. संभोग के समय साथ नहीं देती है, हमेशा पैसे की बात करती रहती है. उसे सिर्फ पैसे से मतलब है. इसी बीच मेरे पास एक लड़की का फोन आने लगा है. 20 वर्षीय यह लड़की एक अमीर खानदान से है और 12वीं कक्षा में पढ़ रही है. हालांकि मैं भी उस से प्यार करने लगा हूं. मैं ने उसे अभी तक देखा नहीं है. वह मुझे मिलने के लिए अपने घर बुला रही है. मैं क्या करूं?

कई बार पत्नी किसी विशेष कारण से पति से शादी के समय से ही नाराज रहती है, इस का कारण ढूंढ़ना आसान नहीं है. पत्नी से बारबार खुल कर बात करें ताकि कुछ तो पता चले. जहां तक 20 वर्षीय लड़की से प्यार की बात है, यह कृत्य बेमतलब का है. सिर्फ फोन पर बात कर के बिना देखेजाने आप को उस से प्यार हो गया. वह लड़की तो सिर्फ मजे ले रही है पर आप तो समझदारी की बात कीजिए.

 

मैं 19 वर्षीय अविवाहित लड़की हूं और पिछले 2 वर्षों से एक लड़के से प्यार करती हूं. हमारे बीच शारीरिक संबंध भी बन चुके हैं. लेकिन मेरे घर वाले मेरा विवाह कहीं और कर रहे हैं. मैं अपने विवाह को ले कर बहुत परेशान हूं. सलाह दीजिए, मैं क्या करूं?

आप अपने मातापिता को अपने प्रेम संबंधों के बारे में बताएं. यदि वह लड़का इस काबिल नहीं कि मातापिता उस से ही आप का विवाह करा सकें तो यह संबंध भूल जाएं. विवाहपूर्व शारीरिक संबंध बनाना गलत है. पर विवाह के बाद अपने विवाहपूर्व संबंधों की चर्चा कभी भी किसी से न करें, खासकर पति से.

 

मैं 21 वर्षीय विवाहित महिला हूं और पिछले 8 वर्षों से 1 लड़के से प्यार करती हूं. वह भी मुझे बहुत प्यार करता है. मैं उस के बिना जी नहीं सकती. अगर एक दिन भी उस से बात नहीं करती हूं तो परेशान हो जाती हूं. हमारे शारीरिक संबंध भी हैं और 1 महीने का बेटा भी है. वह यह नहीं बताता कि वह विवाहित है या नहीं. इसलिए हम दोनों विवाह भी नहीं कर सकते. मैं अपने पति को बिलकुल पसंद नहीं करती और न ही उन से शारीरिक संबंध बनाना मुझे अच्छा लगता है. वह मुझ से और बच्चे दोनों से प्यार करता है लेकिन मुझे मेरे पति के साथ देख नहीं सकता. साथ ही, वह यह भी कहता है कि मैं अपनी जिंदगी खराब न करूं और अपने पति के साथ ही रहूं. जबकि मैं अपनी जिंदगी से खुश नहीं हूं और सोचती हूं कि अपने पति को तलाक दे दूं. क्या ऐसा करना ठीक होगा? सही सलाह दीजिए.

जब आप का विवाहपूर्व अफेयर था तो आप ने किसी अन्य के साथ विवाह कर के उस की जिंदगी क्यों बरबाद की? यह आप की सब से बड़ी गलती थी. और अब जब आप का विवाह हो चुका है तो अब भी आप पूर्व प्रेमी से संबंध बनाए हुए हैं और पसंदनापसंद की बात कर रही हैं. आप का प्रेमी भी अजीब है जो आप को पति के साथ भी नहीं देख सकता और साथ ही आप को उन के साथ ही रहने को भी कह रहा है. आप उस से साफसाफ दोटूक शब्दों में बात करें कि आखिर वह चाहता क्या है?

उस की बातों से लग रहा है कि वह आप से मजे ले रहा है. इसलिए उस से संबंध तोड़ लेने में ही समझदारी होगी और पति से तलाक की बात भी दिमाग से निकाल दें बल्कि पति के साथ ही खुश रहने के बारे में सोचें.

 

मैं 28 वर्षीय कामकाजी युवती हूं और अपने से 3 वर्ष छोटे युवक से प्यार करती हूं. शुरुआत में उस ने मुझ से कहा था कि वह मुझ से विवाह करेगा लेकिन अब मैं जब भी विवाह के बारे में कोई भी बात करती हूं तो वह बेरुखी दिखाता है और परिवार वालों की रजामंदी की बात करता है. मुझे लग रहा है कि वह मुझ से शादी नहीं करना चाहता, मुझे धोखा दे रहा है. क्या मुझे उस से रिश्ता तोड़ लेना चाहिए?

आप की बातों से लगता है कि उस लड़के का आप के प्रति आकर्षण मात्र था, प्यार नहीं. वह आप के साथ सिर्फ टाइम पास कर रहा था. इसलिए उसे भूल जाने और उस से रिश्ता तोड़ लेने में ही आप की भलाई है. जहां तक विवाह के लिए पारिवारिक रजामंदी की बात है तो वह उस का आप से दूरी बनाने का बहाना मात्र है. इसलिए समय रहते संभल जाइए, यही आप के पक्ष में होगा.

हुस्न और कार का क्रेज

आटोमोबाइल की दुनिया में नई तकनीक और हाइटैक फीचरों से लैस कार और मोटरसाइकिल का जलवा अगर कहीं दिखता है तो वह है आटो एक्सपो. रंगीन गाडि़यों और खूबसूरत मौडलों से सजा यह मेला हर खासोआम के लिए आकर्षण के ढेरों इंतजाम मुहैया कराता है.

इस बार के आटो एक्सपो 2014 में 24 देशों से 1,500 कंपनियों ने 50 से अधिक वैश्विक ब्रैंड पेश किए. इस के अलावा 58 नई कार के साथसाथ 9 कौन्सैप्ट और 12 पर्यावरण अनुकूल गाडि़यों ने इस आटो एक्सपो को खास बना दिया.

साल दर साल सुपर कार और बाइक के मामले में हाइटैक होता आटो एक्सपो इस बार कुछ जुदा अंदाज में नजर आया. यानी पिछली बार की तरह इस का वेन्यू प्रगति मैदान नहीं बल्कि ग्रेटर नोएडा में रहा. इस से इस एक्सपो को बड़ा प्लेटफौर्म मिला. 5 से 11 फरवरी के दौरान चले इस एक्सपो में करीब साढ़े 5 लाख लोगों ने शिरकत की. इतना ही नहीं, मेले के दौरान अक्षय कुमार, सचिन तेंदुलकर और प्रियंका चोपड़ा जैसे कलाकारों की मौजूदगी ने इस की रौनक में चारचांद लगा दिए. इस आटो एक्सपो की खासीयत यह भी रही कि विश्वप्रसिद्ध ब्रैंड हार्ले डेविडसन ने पहली बार भारत में बनी बाइक भी शोकेस की. ?इस ने रफ्तार के शौकीन युवाओं का दिल जीत लिया.  

समलैंगिकता – अपराधों को निमंत्रण

रवि (बदला हुआ नाम) पुलिस गिरफ्त में अपने किए पर माफी मांग कर खुद को छोड़ने की गुहार लगा रहा था. गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में रहने वाला रवि एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सौफ्टवेयर इंजीनियर था. उस के परिवार में पत्नी व 1 बेटा है. उस की जिंदगी में वह सबकुछ था जिन के हर कोई सपने देखता है, लेकिन रवि के मन में कुछ और ही हसरतें थीं.

अप्राकृतिक संबंध बनाने के लिए उस ने एक साथी की खोज शुरू कर दी. वैबसाइट के जरिए उस का संपर्क डेविड से हुआ. बातचीत के बाद दोनों ने अंतरंग संबंध बना लिए. पैसे वाले एक इंजीनियर के संबंधों से डेविड के मन में लालच ने जन्म ले लिया. उस ने संबंध बनाते समय रवि की कुछ नग्न तसवीरें उतार लीं. रवि के तब होश उड़ गए जब डेविड ने उस की तसवीरें उजागर करने के बदले रुपयों की मांग की.

रवि ने बदनामी से बचने के लिए अपनी पत्नी के 10 लाख रुपए के आभूषण डेविड के हवाले कर दिए.

रवि ने पुलिस को बताया कि 2 बदमाशों ने हथियारों की नोंक पर उस से आभूषण लूट लिए. उस का मकसद पत्नी की नजरों में पाकसाफ बने रहना था. पुलिस ने जांच की और कौल डिटेल के जरिए डेविड तक पहुंची, तो सारा राज खुल गया. लिहाजा, पुलिस ने रवि को गिरफ्तार कर लिया.

समलैंगिक रिश्तों में गंवाई जान

हंसमुख स्वभाव के एमबीबीएस, एमडी डा. अक्षय राजवंशी का उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में अपना अस्पताल था. उन की पत्नी प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञा थीं. अकसर रात 8 बजे तक घर पहुंचने वाले डा. अक्षय उस दिन देर रात तक घर नहीं पहुंचे. स्टाफ के अनुसार, वे लेबररूम में आराम करने गए थे. किसी काम से जब नर्स अंजुम लेबररूम में पहुंची, तो अक्षय की लाश नग्नावस्था में पड़ी हुई थी. इस हालत में डा. अक्षय को देख कर वह चौंक गई. इस बात की जानकारी तुरंत पुलिस को दी.

कुछ देर बाद मौके पर पुलिस पहुंच गई. डा. अक्षय के बराबर में पड़े अंडरवियर व पेंट पर वीर्य के धब्बे थे. रूम में अंगरेजी शराब की बोतल व सिगरेट के पैकेट पड़े थे. शुरुआती जांच में पता चला कि हीटर के तार से डा. अक्षय का गला घोंट कर हत्या की गई है.

शराब व सैक्स से शुरू हुई जांच में पुलिस ने लड़कियों जैसे हावभाव वाले युवक नूर मोहम्मद उर्फ चांदनी व साबिर को गिरफ्तार कर लिया. चांदनी लंबे अरसे से समलैंगिक रिश्तों का आदी था. समलैंगिकों की महफिल में उसे चांदनी के नाम से जाना जाता था. वह डांस पार्टियों में गानेबजाने का काम करता था. अक्षय राजवंशी भी समलैंगिक थे. चांदनी के शरीर में एलर्जी हो गई. उस ने अपने एक समलैंगिक साथी से सलाह ली, तो उस ने उस की मुलाकात डा. अक्षय से करा दी.

अगले दिन डा. अक्षय ने उसे आने के लिए कहा. वह आया तो डा. अक्षय उसे अपने प्राइवेट रूम में ले गए और शराब पी कर कामोत्तेजक दवाइयां खा कर उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए. चलते समय खुश हो कर अक्षय ने उसे कुछ रुपए भी दिए. अगले दिन भी उसे अक्षय ने बुलाया और संबंध बनाए. एक दिन अक्षय ने चांदनी को फोन कर के बुलाया, लेकिन चांदनी ने तबीयत खराब का बहाना बनाया, तो उस से अपने जैसे किसी और को भेजने के लिए कहा. चांदनी ने अपने गे साथी साबिर को जाने के लिए तैयार कर लिया.

डा. अक्षय उसे अपने लेबररूम में ले गए. दोनों ने साथ शराब पी. डा. अक्षय ने उस के साथ शारीरिक संबंध बनाए. साबिर जाने की जिद करने लगा, लेकिन अक्षय उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए. इस बीच साबिर के मन में लालच भी आ गया. अक्षय की जिद से जब वह बौखला गया, तो उस ने हीटर का तार निकाल कर अक्षय के गले में फंदा बना कर कस दिया. नशे के चलते अक्षय ज्यादा विरोध नहीं कर सके और उन की मौत हो गई. उस के बाद साबिर अक्षय के गले से सोने की चेन, 4 अंगूठियां, मोबाइल फोन और पर्स निकाल कर वहां से निकल लिया. डा. अक्षय के ऐसे रिश्ते न होते तो उन्हें जान न गंवानी पड़ती.

सहेली के सीने में दागी गोली

समलैंगिक रिश्तों से स्त्रीपुरुष दोनों ही अछूते नहीं हैं. गोंडा जिले के महल्ला इस्माइलगंज निवासी 36 वर्षीया खूबसूरत दीपा सिंह (शादीशुदा) अपने घर में थी. तभी उस की सहेली सुमन, जोकि ग्राम कटरा शबाजपुर की प्रधान थी, कार में सवार हो कर चालक शिवम मिश्रा को ले कर वहां आई और दीपा के सीने में गोली दाग कर उस की हत्या कर दी. पुलिस ने सुमन को गिरफ्तार कर लिया. हत्या की जो वजह उस ने कुबूली उस से पुलिस और समाज दोनों ही दंग रह गए. सुमन व दीपा के समलैंगिक रिश्ते थे. बेवफाई से बौखला कर उस ने अपराध को जन्म दिया.

निकाह बना जान का दुश्मन

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में 2 युवकों के बीच गहरी दोस्ती थी. दोस्ती समलैंगिक रिश्तों में बदल गई. बात तब खुली जब जमील (बदला हुआ नाम) एसएसपी के सामने अपनी व अपने परिवार की जान की सुरक्षा की फरियाद ले कर पेश हुआ. वह बेगम की भूमिका में था जबकि दूसरा साथी शौहर. दोनों ने गुपचुप ढंग से निकाह भी कर लिया था. बीवी बना जमील इन रिश्तों से ऊबने लगा और दूरियां बनाने लगा. उस के साथी ने विरोध के साथ उसे धमकाना शुरू किया तो वह पुलिस की शरण में आ गया. पुलिस ने दखल दे कर युवक को परेशान न करने की हिदायत दे कर मामले को किसी तरह निबटाया.

अदालत ने भी माना अपराध

कानूनी मान्यता समलैंगिकों को भले ही मिल गई हो लेकिन उस से उपजता इस तरह का अपराध समाज के लिए भी घातक ही कहा जाएगा. समलैंगिकता का कानूनी अधिकार पाने के लिए लड़ाई चल रही है. मौलिक अधिकारों का दावा कर के अदालत के दरवाजे पर ऐसे रिश्तों की दावेदारी पहुंची, तो समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की तरफदारी करने वालों को देश की शीर्ष अदालत सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में 28 जनवरी को यह कह कर झटका दे दिया कि समलैंगिकता अपराध ही रहेगी. भारतीय दंड विधान की धारा 377 वैधानिक है संसद चाहे तो इसे कानून की किताब से हटा सकती है. समलैंगिक रिश्ते से बहुत से अपराध पैदा होते हैं क्योंकि इस में दोनों साथी, चाहे मर्द हों या औरतें, बराबर की हैसियत के होते हैं और ऐसे में झगड़ा होना स्वाभाविक है. 

भारत भूमि युगे युगे

आजम की वीआईपी भैंसें
भैंस हमेशा से ही दूध के जरिए पैसा उगलने वाली मशीन रही है जिस के गुमने या चोरी होने पर पुराने जमाने के पशुपालकों को गश आ जाता था और वे नजदीकी पंडित, छोटेमोटे तांत्रिक या ओझा के पास भागते थे. वह 11 रुपए ले कर जिस दिशा की तरफ इशारा कर देता था, पशुपालक उसे ढूंढ़ने के लिए सपरिवार उधर चल पड़ता था. भैंस मिल जाती थी तो मान लिया जाता था कि पंडितजी बड़े सिद्ध हैं, वरना लोग खुद को ही कोस कर रह जाते थे.
उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आजम खान की भैंसें गुमीं तो खासा बवाल मचा, जिस से साबित यही हुआ कि भैंसें भी वीआईपी होती हैं और आजकल इन की खोज पुलिस वाले और कुत्ते करते हैं. शुक्र की बात यह रही कि भैंसें मिल गईं.
 
इश्तिहार और सियासत
एक मध्यवर्गीय मुसलिम युवती जैसी दिखनी चाहिए, वैसी गोआ की हसीबा बी अमीन हैं, जो कांग्रेस के इश्तिहार में खड़ी पूरी गंभीरता और आत्मविश्वास से कहती नजर आती हैं कि कट्टर सोच नहीं, युवा जोश चाहिए.
हसीबा चंद दिनों में ही ऐसी लोकप्रिय हो गईं कि उन पर पीडब्लूडी घोटाले में लिप्त होने का इलजाम लग गया और दूसरा यह भी कि कथित तौर पर वे जेल भी जा चुकी हैं. कट्टर सोच और युवा जोश चुनावी मुद्दे बनें, न बनें, हसीना जरूर चमक गई हैं. मुमकिन है उन्हें कांग्रेस चुनाव भी लड़ा डाले. 
घोटालेबाजी बड़ी बात या मुद्दा नहीं है, झंझट इस बात की है कि भाजपा किसी मुसलिम युवती को इस तरह के इश्तिहार में भी नरेंद्र मोदी के बगल में खड़ा नहीं कर सकती क्योंकि शायद ही कोई युवती इस के लिए तैयार हो.
 
संत की रासलीला
दुष्कृत्य को भी संत, बाबा और पुजारियों ने हमेशा से ही ईश्वरीय कार्य मान कर संपन्न किया है. त्रेता, द्वापर तो दूर की बात है कलियुग और उस में भी बीते 2 साल ऐसे प्रसंगों व उदाहरणों से भरे पड़े हैं. बद्रीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी केशव नम्बूदरी ने छेड़छाड़ करने के पहले शराब पीने की औपचारिक कार्यवाही पूरी की. फिर अपनी हैसियत के मुताबिक एक होटल व्यवसायी धनाढ्य महिला को आमंत्रित कर बलपूर्वक छेड़ा, जिस ने छिड़ने से इनकार कर दिया. नतीजतन, पंडितजी आलीशान होटल से सीधे अपने असल मुकाम तिहाड़ जेल पहुंच गए.
केशव युवा हैं. उन का नाम ही कृष्ण का पर्यायवाची है जो रास रचाने और गोपियों से छेड़छाड़ व प्रणय के लिए जाने व पूजे जाते हैं. ऐसे में वे बहक गए तो हैरत किस बात की. देशभर के धर्मगुरु यही कर रहे हैं, मानो यह उन का हक हो. धर्मग्रंथ भी कहते हैं कि स्त्री भोग की वस्तु है. लेकिन यदि वह जागरूक हो तो खतरा भी बन जाती है.
 
अडि़यल आडवाणी
राजनीतिक कैरियर खत्म करने का सम्मानजनक रास्ता है कि जिसे निबटाना हो उसे राज्यसभा भेज दो, जो वाकई वृद्धाश्रम है. कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने तो इस सजा या इनाम को सिर झुका कर स्वीकार कर लिया लेकिन बुजुर्ग भाजपाई लालकृष्ण आडवाणी अड़ गए कि नहीं, राज्यसभा में नहीं जाऊंगा.
अब नरेंद्र मोदी खेमा अभी इतना ताकतवर भी नहीं हुआ है कि बातबात पर रूठ कर माहौल बिगाड़ने वाले आडवाणी की नई नाराजगी मोल ले. लिहाजा, खामोश रहा. इस से यह साफ हुआ कि अभी प्रधानमंत्री पद का मसला पूरी तरह सुलझा नहीं है और आडवाणी जैसे अनुभवी नेता पर पुराने टोटके नहीं चलेंगे.
 

राजन की घोषणा के बाद ढह गया बाजार

अमेरिकी राहत पैकेज को कम करने की घोषणा दुनियाभर के शेयरबाजारों के लिए संवेदनशील साबित हुई है और इस घोषणा के बाद दुनियाभर के बाजार धड़ाम से गिर गए. दूसरा असर जनवरी में ऊंचाई का नया रिकौर्ड कायम करने वाले भारतीय शेयर बाजार पर भी पड़ा और रिकौर्ड ऊंचाई हासिल करने के महज कुछ ही सत्रों के बाद बौंबे बाजार यानी बीएसई का सूचकांक 26 जनवरी को 21 हजार के स्तर से गिर गया. बाजार का सूचकांक 427 अंक टूटा और सूचकांक 5 माह के न्यूनतम स्तर पर चला गया. बाजार में 3 सितंबर के बाद की यह सब से बड़ी गिरावट रही है.

इस के एक दिन बाद, 27 जनवरी को रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने महंगाई का हवाला दे कर अल्पकालिक ऋण दरों में एकचौथाई प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी. इस का सीधा असर बाजार पर पड़ा और सूचकांक 620 अंक टूट गया. दूसरी तरफ 2013 में बुनियादी उद्योग की विकास दर भी 2.1 प्रतिशत रही, जो पिछले 10 साल में सब से कम है, उस का भी बाजार पर बुरा असर हुआ. रुपया भी इस दौरान इस सप्ताह के न्यूनतम स्तर पर रहा.

बाजार में गिरावट का यह सिलसिला फरवरी में भी जारी रहा और 3 फरवरी को बाजार 305 अंक फिसल गया. इस के 2 दिन बाद लगातार 8 सत्र की गिरावट के बाद बाजार में कुछ सुधार हुआ लेकिन देखना यह है कि यह स्थिति कब तक बनी रह सकती है.       

अफसरों ने बैंकों के 23 हजार करोड़ रुपए डुबो दिए

हाल में दिल्ली के एक प्रमुख अंगरेजी अखबार ने सूचना के अधिकार यानी आरटीआई के तहत खुलासा किया है कि सब से विश्वसनीय माने जाने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में भी 3 साल में 23 हजार करोड़ रुपए का घपला हुआ है. इन पैसों का बैंक के पास कोई हिसाबकिताब नहीं है. इस तरह का घोटाला हर साल हो रहा है लेकिन उस की किसी को खबर नहीं है.

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जितनी राशि डकार गए हैं उस से सब के लिए शिक्षा के संकल्प की सरकारी योजना ‘सर्व शिक्षा अभियान’ को सुचारु रूप से चलाया जा सकता था. बैंकों में घपले का सब से बड़ा खेल इंडियन ओवरसीज बैंक में हुआ है जिस ने अप्रैल 2010 से सितंबर 2013 के बीच 3,033 करोड़ रुपए डुबोए हैं. मजे की बात यह है कि इस अवधि में बैंक को 2,848 करोड़ रुपए का लाभ हुआ है. इस के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के सब से बड़े स्टेट बैंक औफ इंडिया का स्थान है जिस ने 2,722 करोड़ रुपए गंवाए हैं. हालांकि बैंक ने उस अवधि में करीब 40 हजार करोड़ रुपए का लाभ भी अर्जित किया है. केनरा बैंक को 2,394 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है जबकि यूबीआई ने 1,775 तथा यूसीओ बैंक ने 1,491 करोड़ रुपए डुबोए हैं.

सवाल है कि रुपए कहां गए, तो इस का संकेत मई 2013 में इंडियन बैंक के पूर्व अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक एम गोपालकृष्णन की चेन्नई में हुई गिरफ्तारी से मिल जाता है, उन पर सीबीआई के विशेष जज ने नियमों का उल्लंघन कर के तथा सुरक्षा की पर्याप्त गारंटी के बिना भारी ऋण स्वीकृत करने के आरोप लगाए हैं.

तय है कि प्रबंध निदेशक महोदय ने पैसे खा कर ही नियम तोड़े हैं. इन मामलों की पड़ताल से ही खुलासा हुआ है कि अधिकारियों ने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर के ऋण आवंटित किया. खूब पैसे डकारे और ऋण की वसूली नहीं कर सके. कंपनियां भाग गईं और बैंक को चूना लग गया. इस तरह से बड़े स्तर पर सरकारी बैंकों से पैसों का घोटाला हुआ है.

27 सरकारी बैंकों के 6 हजार कर्मचारियों पर सीबीआई इस घोटाले को ले कर कड़ी निगाह रखे हुए है. घोटालों पर लगाम कसने का यही तरीका है कि जो नियम तोड़े, उसे ही तोड़ डालो.

 

पार्टियों का 2 हजार करोड़ रुपए का विज्ञापन बाजार

सामान्य आदमी के लिए यह हैरान कर देने वाली खबर है कि जिन राजनीतिक दलों को उस ने राष्ट्र की उन्नति के लिए उन की नीतियों पर भरोसा किया उन का मकसद आम आदमी की तरक्की नहीं बल्कि सत्ता का सुख भोगना है. इन दलों के बीच सत्ता हासिल करना बड़ी प्रतिद्वंद्विता बन गई है और सामान्य आदमी के भरोसे ही लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है इसलिए चुनाव आते ही सभी दल मतदाताओं को लुभाने, भरमाने अथवा गुमराह करने के लिए हथकंडा अपनाना शुरू कर देते हैं. आगामी

चुनाव में उतरने वाले दलों ने सिर्फ विज्ञापन दे कर अपनी छवि का दिग्दर्शन कराने के लिए 2 हजार करोड़ रुपए से अधिक बाजार में झोंक दिए हैं. इन में सब से ज्यादा कांगे्रस और भाजपा 500-500 हजार करोड़ रुपए विज्ञापन बाजार में फेंक रही हैं. शेष 1 हजार करोड़ रुपए समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, जनता दल (यू), तेलुगु देशम पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम, अखिल भारतीय अन्ना द्रमुक जैसे क्षेत्रीय दल खर्च कर रहे हैं. इस का बड़ा हिस्सा टीवी चैनलों के पास जा रहा है. अखबारों को भी खासे विज्ञापन मिल रहे हैं लेकिन पत्रिकाओं को कम विज्ञापन मिल रहे हैं.

विज्ञापन मुहिम में मोबाइल कंपनियों को शामिल किया जा रहा है. होर्डिंग्स आदि पर भी काफी पैसा खर्च हो रहा है. इस के लिए मैडिसन वर्ड, रेडीफ्यूजन, गे्र ग्रुप जैसी कई एजेंसियां दिनरात एक किए हैं. विज्ञापन तैयार करने के लिए विशेष टीम जुटी हैं जो जानती हैं कि उन्हें किस आइडिया से लोगों को आकर्षित करना है.

अनुमान लगाया जा सकता है जिस सत्ता के लिए इस तरह की मारामारी हो रही हो उसे हासिल करने के बाद स्वाभाविक रूप से पैसा वसूल पहले होगा और जनता को दिखाए सपने दिवास्वप्न ही बने रहेंगे.?

 

बीमा कंपनियों के नए उत्पादों की भरमार

सरकार की कोशिश बीमा कंपनियों के उत्पादों को जनोपयोगी बनाने की है और इस के लिए भारतीय बीमा नियामक विकास प्राधिकरण यानी इरडा ने कमर कस ली है. इरडा ने बीमा कंपनियों को सख्ती से नियमों का अनुपालन करने को कहा है और इस के लिए ताजा दिशानिर्देश जारी किए हैं जिस के कारण इस साल बीमा क्षेत्र के बाजार को लुभाने के लिए 400 से अधिक बीमा उत्पाद बाजार में आएंगे.

नए साल की शुरुआत में ही कई उत्पाद लौंच किए जा चुके हैं. जीवन बीमा निगम यानी एलआईसी जैसी बड़ी कंपनी नए दिशानिर्देश के तहत जीवन सरल, जीवन आनंद, जीवन मधुर जैसी योजनाओं को वापस ले कर उन की जगह कई नई योजनाएं लौंच कर चुकी है.

आईसीआईसीआई पू्रडैंशियल, एचडीएफसी लाइफ, मैक्स लाइफ, रिलायंस लाइफ, पीएनबी मेटलाइफ जैसी कंपनियां भी बाजार में नए उत्पाद उतारने की घोषणा कर चुकी हैं. बीमा कंपनियोें के उत्पाद विश्वसनीय और ग्राहक के अनुकूल हों तभी बड़ी संख्या में लोगों को बीमा उत्पादों से जोड़ा जा सकता है. हर व्यक्ति का भविष्य सुरक्षित रहे, इस के लिए बीमा कंपनियों में ईमानदारी व उन के उत्पाद आमजन के अनुकूल होने चाहिए और इस काम में इरडा महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है.

 

धूधू जल उठी गार्टन कैसल

बौलीवुड की सुपरहिट फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में दिखाया गया चांचड़ भवन यानी ब्रिटिश काल की ऐतिहासिक धरोहर ‘गार्टन कैसल’ में लगी हाल की आग से ऐतिहासिक इमारतों का वजूद व गौरव एक बार फिर से संकट में आ गया है. कैसे, बता रहे हैं विजयेंद्र शर्मा.

हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का गौरव मानी जाने वाली ऐतिहासिक धरोहर ‘गार्टन कैसल’ धूधू कर जल उठी. ब्रिटिशकाल का सचिवालय व मौजूदा समय में महालेखाकार कार्यालय के रूप में इस्तेमाल हो रहे गार्टन कैसल से 28 जनवरी को करीब तड़के साढ़े 3 बजे आग की लपटें उठती दिखाई दीं और देखते ही देखते 2 मंजिलें खाक हो गईं. महालेखाकार कार्यालय के 266 में से

70 कमरे राख हो गए और करोड़ों रुपए की संपत्ति स्वाहा हो गई. इस भीषण अग्निकांड में लाखों कर्मचारियों से जुड़ा रिकौर्ड भी स्वाहा हो गया. आग की चपेट में कर्मचारियों की पैंशन का ओरिजनल रिकौर्ड, स्टेट वाउचर, पेपरबिल, कुछ जीपीएफ का रिकौर्ड, एचबीए रिकौर्ड, औडिट रिकौर्ड सहित अन्य अहम कागजात भी जल गए.

महालेखाकार कार्यालय के जो 70 कमरे आग की भेंट चढ़े उन में एंटीक फ्लोर के 30 कमरे थे, जिन में औडिट व पैंशन फंड से संबंधित रिकौर्ड था. कर्मचारियों का जीपीएफ से संबंधित कुछ रिकौर्ड भी जल गया, जबकि बचा हुआ रिकौर्ड आग बुझाने के लिए इस्तेमाल की गई पानी की बौछारों से खराब हो गया.

उधर, महालेखाकार कार्यालय के कर्मचारियों व अफसरों का कहना है कि जीपीएफ से जुड़ा कर्मचारियों का रिकौर्ड कंप्यूटर में सेफ है. ये कंप्यूटर आग भड़कने से पहले सुरक्षित बाहर निकाले जा चुके थे. कंप्यूटर, फाइनैंस वाउचर, सर्विस बुक, इंस्पैक्शन रिकौर्ड भी आग की भेंट चढ़ गया लेकिन यह रिकौर्ड भी कार्यालय के पास बैकअप के रूप में उपलब्ध है. सब से बड़ी बात यह है कि महालेखाकार के चारों सर्वर फेस, जिन में कंप्यूटर से जुड़ा रिकौर्ड रखा जाता है, वे सेना के जवानों की मदद से सुरक्षित निकाल लिए गए थे.

गौरतलब है कि होटल लैंडमार्क के सुरक्षाकर्मी, उस के बाद एक टैक्सी चालक ने एजी औफिस में आग लगने की सूचना दमकल केंद्र, मालरोड को दी. हैरत की बात है कि महालेखाकार कार्यालय में तैनात चौकीदारों को आग लगने की कोई भनक नहीं थी. 4 बजे के करीब 12 फायर टैंडर गाडि़यों सहित 100 दमकल कर्मियों ने बचाव राहत कार्य शुरू किया. इस के बाद सेना के जवान व सेना की 1 फायर टैंडर गाड़ी भी बचाव कार्यों में शामिल हो गई. उस समय तक एंटीक की सीलिंग में ही आग की लपटें उठी थीं, लेकिन हवा के झोंकों ने बचाव व राहत दल की मुस्तैदी पर पानी फेर दिया. हवा से आग पूरी

2 मंजिलों में भड़क गई. आग पर काबू पाने के लिए फायर हाइड्रैंट भी रोड़ा बने. महालेखाकार कार्यालय के समीप हाइड्रेंट काम नहीं कर रहा था. मेन लाइन से पानी के कनैक्शन को जोड़ना पड़ा.

हालांकि आग बुझाने में पानी की कमी नहीं खली लेकिन भवन के चारों तरफ से 2 मंजिलों के 70 कमरों में भड़की आग पर काबू पाने में समय लग गया. आग की लपटों के थोड़ी शांत होने के बाद दमकल कर्मियों ने अपनी जान जोखिम में डाल कर अंदर कमरों में जा कर आग को बुझाया. सुबह 4 बजे से शुरू हुआ बचाव व राहत कार्य कई घंटे चला और देर शाम तक ही आग पर काबू पाया जा सका. उधर, इस मामले में चीफ फायर अफसर भोपाल चौहान का कहना है कि महालेखाकार कार्यालय में आग लगने की सूचना

मिलते ही 12 दमकल गाडि़यां व 100 दमकलकर्मी मौके पर पहुंच गए थे. सोलन, ठियोग, मालरोड, छोटा शिमला, बालूगंज से फायर टैंडर गाडि़यां बचाव राहत कार्य के लिए बुलाई गई थीं. भयंकर आग की लपटों पर काबू पाने वाले बचाव व राहत दल के कई कर्मियों को चोटें भी आईं.

प्रधान महालेखाकार सतीश लुंबा का कहना है कि ब्रिटिश काल के इस ऐतिहासिक भवन में आग लगने से उन्हें बेहद दुख है. इस भवन से 1947 तक ब्रिटिश की हुकूमत चलती थी. ब्रिटिश सरकार की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी इसी भवन में थी. भारत सरकार का सचिवालय भी इसी भवन में हुआ करता था. 1947 के बाद एजी पंजाब व 1971 के बाद एजी हिमाचल का इस भवन में कार्यालय था. यह धरोहर देश की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है. आग से जो रिकौर्ड नष्ट हो गया है उसे दोबारा हासिल करने में समय लग सकता है.

यहीं से चलती थी सरकार

19वीं शताब्दी में निर्मित गार्टन कैसल भवन से किसी समय देश की सरकार चला करती थी. ब्रिटिश हुकूमत की ग्रीष्मकालीन राजधानी शिमला थी और उस समय यह भवन अंगरेजों का सचिवालय हुआ करता था. इस भवन का नामकरण इस के मालिक गार्टन आईसीएस ने 1840 में किया था. उन की मृत्यु के बाद कई लोगों के हाथों में यह भवन रहा. इस के बाद सर जेम्स वाकर के पास यह भवन रहा.

1900 में भारत सरकार ने इस भवन को 1.20 लाख रुपए में खरीदा. इस भवन को इंपीरियल सिविल सचिवालय बनाने के लिए कर्नल सर एस एस जैकाब ने डिजाइन तैयार किया. मेजर एच एफ चेस्त्री, जो उस समय अभियंता, आवासीय थे, के पर्यवेक्षण में इस भवन को तैयार किया गया. 1947 में आजादी के बाद इस भवन में पंजाब एजी का कार्यालय हुआ करता था. 1971 के बाद यहां पर हिमाचल प्रदेश महालेखाकार कार्यालय शुरू हुआ.

इमारतों का वजूद संकट में

कभी ब्रिटिशकालीन राजधानी रहे शिमला की उन ऐतिहासिक इमारतों का वजूद व गौरव फिर से संकट में है, जिन से शिमला की पहचान बरकरार है. भीषण अग्निकांडों की भेंट चढ़ चुकी इमारतों को सहेजने का कार्य अभी तक भी कागजों में ही है. इस की जीवंत मिसाल शिमला का वाकर हौस्पिटल (सेना), केंद्रीय विद्यालय इमारत, सेना का मैस, पश्चिमी कमान की इमारत हैं. हैरानी की बात है कि इन इमारतों को संरक्षित रखने के लिए हैरिटेज कमेटी का गठन तो हुआ, मगर इन में एहतियातन क्या कदम उठाए जाने चाहिए, उस की कभी भी किसी को फिक्र नहीं रही. कभी निजी भूमालिकों का हस्तक्षेप कह कर बात को चलता किया जाता है तो कभी अन्य कारणों को गिना कर खानापूर्ति हो जाती है.

अभी तक हैरिटेज कमेटी ने करीब 90 इमारतों को ही धरोहर की श्रेणी में सूचीबद्ध किया है. इन में जाखू स्थित कांगे्रस के संस्थापक ए ओ ह्यूम का कभी औफिशियल आवास रहा ‘रौथनी कैसल’ भी इस की मिसाल है.

थ्री इडियट्स की यादें

बौलीवुड की सुपरहिट फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में जो चांचड़ भवन दिखाया गया था वह गार्टन कैसल ही था. यहां फिल्म का वह सीन शूट किया गया था जिस में रणछोड़ दास चांचड़ यानी आमिर खान की तलाश में उस के 2 दोस्त राजू और फरहान उस के पुश्तैनी घर शिमला पहुंचते हैं, जहां उन्हें रणछोड़ दास की हकीकत का पता चलता है. फिल्म में आमिर खान को उस के दोस्त रैंचो के नाम से पुकारते दिखाए गए हैं.

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