बात मेरी छोटी बहन की सगाई की है. सगाई की रस्म समाप्त होने के बाद बहन के ससुर बोले, ‘‘क्या रिंग सेरेमनी भी होगी?’’ इस पर मैं तुरंत बोली, ‘‘हां, जरूर होगी.’’ इस के बाद हम सब लोग घर आ गए.
घर आ कर मेरे ससुराल वालों ने कहा कि तुम्हें बीच में बोलने की क्या जरूरत थी? तभी मेरे पापा बोले, ‘‘मेरी बेटी ने रिंग सेरेमनी की हामी भर कर बहुत ठीक किया. एक अंगूठी क्या इस बेटी पर तो हजार अंगूठियां न्यौछावर हैं.’’
यह सुन कर मेरा मन पापा के प्रति श्रद्धा से भर गया.
मीना सक्सेना, हरदोई (उ.प्र.)
 
बात बहुत पुरानी है. मैं पहली कक्षा में पढ़ता था. मैं हर रोज अपने पापा की जेब से 10 पैसे चुराया करता था. तब 10 पैसे की बहुत सी चीजें आ जाती थीं. एक दिन पापा ने कमीज को ऊपर टांग दिया था. वहां तक मेरा हाथ नहीं पहुंच सकता था इसलिए मैं ने एक कुरसी पर स्टूल रखा और पापा की जेब से 25 पैसे का सिक्का निकाल लिया. उतरते वक्त मेरा संतुलन बिगड़ गया और मैं नीचे गिर पड़ा.
आवाज सुन कर पापा आ गए. उन्होंने मुझे सहलाया और पूरी बात मुझ से पूछी. मैं ने सारी घटना का जिक्र कर दिया.
तब मेरे पापा ने मुझ से कहा कि ‘‘बेटा, चोरी करना बुरी आदत है और जिन बच्चों के साथ तुम उठतेबैठते हो वे ठीक नहीं हैं.’’
बचपन में पापा द्वारा दी गई सीख ने मेरी सोच बदल दी. आज मैं एक स्कूल में शिक्षक के तौर पर कार्यरत हूं और अपने सभी छात्रों को भी यही नसीहत देता रहता हूं.
प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.)
 
वर्ष 1990 की घटना है. उस वक्त मेरी उम्र 8 साल थी. मैं अपने पापा के साथ देवघर से पटना जा रहा था. मेरे साथ मेरी छोटी बहन भी थी. उस की उम्र 5 वर्ष थी. पटना जाने के लिए टे्रन पकड़ने के लिए हम लोग जसीडीह नामक स्टेशन पर आ गए.
प्लेटफौर्म नंबर 2 पर खड़े हो कर हम सभी टे्रन का इंतजार करने लगे. तभी उत्तर दिशा से धड़धड़ाती हुई टे्रन आई और प्लेटफौर्म पर रुक गई. फिर आपाधापी मच गई.
पापा ने बहन को ट्रेन पर चढ़ा दिया और जैसे ही मुझे लेने के लिए उतरने लगे वैसे ही टे्रन चल दी. मैं प्लेटफौर्म पर छूट गया और रोने लगा. तभी पापा ने आननफानन ट्रेन की जंजीर खींच दी. कुछ ही देर में गाड़ी रुक गई और पापा हक्केबक्के से मेरे पास आए. उन्होंने मुझे सीने से लगा लिया. इस क्रम में उन के घुटने में चोट भी लग गई थी मगर उन्होंने उस की परवा नहीं की थी.
रोहित चौधरी, देवघर (झारखंड)

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