हमारी एक रिश्तेदार को पंडित ने बताया कि यदि काले नादिया को शनिवार को काला कंबल उढ़ा कर अन्न खिलाओगी तो तुम्हारे घर की परेशानियां खत्म हो जाएंगी. हर शनिवार को उन के घर के सामने से एक पंडित नादिया ले कर निकलता था और सब से चढ़ावा लेता जाता था. घर वालों ने बहुत कहा, उसी को कंबल ओढ़ा दो पर वे नहीं मानीं क्योंकि उन के अनुसार एक तो वह नादिया वयस्क नहीं था, दूसरे, पूरी तरह काला भी नहीं था. उस पर केवल काले चकत्ते थे.
वे पूरी तैयारी के साथ गोशाला गईं. वहां एक काला सांड़ था. वे प्रसन्न हो गईं. वे जैसे ही उसे कंबल ओढ़ाने लगीं, वह भड़क गया. उस ने उन्हें गिरा कर घायल कर दिया. तब से उन का पूरा शरीर लकवाग्रस्त है और इस बात को 1 साल हो गया, वे पलंग पर पड़ी हैं.
डा. शशि गोयल, आगरा (उ.प्र.)
हमारे पड़ोस में एक मारवाड़ी परिवार रहता है. सभी लोग पढ़ेलिखे और मौडर्न विचारों के हैं. कुछ महीनों पहले उन के यहां पुत्र का जन्म हुआ है. हमारे घर के पास एक पार्क है. उस के आसपास कुछ लोग झुग्गी बना कर परिवार सहित रहते हैं.
एक रविवार को सुबहसुबह करीब 20-25 झुग्गी वाले लोग, पड़ोसी के दरवाजे पर जा कर चिल्लाने लगे, खूब गालीगलौज कर हंगामा करने लगे. पूछने पर पता लगा कि रात को हमारे पड़ोसी नारियल, सिंदूर, काले तिल, हरी मिर्च, नीबू आदि पार्क के पीपल की जड़ में गाड़ आए हैं. ऐसा करते उन्हें किसी ने देख लिया.
उन लोगों का कहना था कि उन के बच्चे पार्क में खेलते हैं, उन पर जादूटोना करने के लिए उन्होंने ऐसा किया. वे लोग पड़ोसी को खींचते हुए ले गए और उन से सब सामान हटावाया. जब लोगों ने पड़ोसी से पूछा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो वे बोले, ‘‘मेरे बच्चे की तबीयत खराब है. पंडितजी ने कहा कि उस पर किसी ने टोना कर दिया है, इसलिए ये वस्तुएं शनिवार की रात को पीपल की जड़ में गाड़ देना तो टोना उतर जाएगा.’’
मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, पढ़ेलिखे लोग ही जब इतने अंधविश्वासी हैं तो वे तो गरीब अनपढ़ लोग हैं.
सरिता सेठ, कानपुर (उ.प्र.)
मेरे एक रिश्तेदार की पत्नी हमेशा धार्मिक उत्सवों में डूब कर अपने पति की आय का अधिकांश हिस्सा पंडेपुजारियों को दानदक्षिणा देने में खर्च कर देती है. इस वजह से न उस के बच्चों के पास पहनने के लिए ढंग के कपड़े होते हैं न पौकेट मनी के लिए पैसा.
पति व बच्चे उसे इस आडंबर को बंद करने को कहते हैं तो वह मानती नहीं.
परिवार के सारे लोग एक व्यक्ति की हठधर्मी के कारण बेडि़यों में जकड़े हुए हैं.
प्रदीप, बिलासपुर (हि.प्र.) 

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