Download App

Family Story : सी सा – मां और बीवी के बीच फंसा पूरन ?

Family Story : पूरन ने चैन की सांस ली. सालभर से वह परेशान था. वह दो पाटों के बीच पिसा जा रहा था. एक पाट थी मां और दूसरा थी पत्नी. पूरन इकोनौमिक्स में एमबीए था और एक एमएनसी में सीनियर ऐनैलिस्ट की जौब पर था. वह अलमोड़ा का निवासी था पर उस की शिक्षादीक्षा इलाहाबाद में हुई थी. अब यहीं के ब्रांच में उसे नौकरी मिल गई. पिता का देहांत बचपन में हो गया था. मां अभी भी पहाङिन बेटी थी. पति की अकाल मौत के बाद वह इकलौते बेटे को ले कर इलाहाबाद चली आई. उस ने एक स्कूल में नर्सरी में आया का काम कर के बेटे को उच्च शिक्षा दिलाई.

पढ़ाई पूरी करने के बाद बेटे को नौकरी भी मिल गई. 2 साल पहले एक सुंदर लङकी देख कर मां ने उस की शादी भी कर दी. पत्नी का नाम तारा था. उस का पिता सचिवालय में विभागाध्यक्ष था. तारा हर दृष्टि से सुंदर थी. उस ने हिंदी में प्रथम श्रेणी में एमए किया था. गृहकार्य में वह अधिक कुशल नहीं थी. पहाड़ी रीतिरिवाज, खानपान, भाषा आदि से भी वह अपरिचित थी, क्योंकि उस के पूर्वज 3 पीढ़ी पहले लखनऊ आ बसे थे. अब तो वे पहाड़ों पर सैलानियों की भांति ही जाते थे.

शादी के बाद तारा का 1 साल आनंद से बीता. वह कभी इलाहाबाद में रहती, कभी अपनी मां के पास लखनऊ चली जाती. सासबहू दोनों ही एकदूसरे को तौल रही थीं, आपस में तालमेल बैठाने का प्रयत्न कर रही थीं। सालभर बाद जब जम कर साथ रहने का अवसर आया तो दोनों एकदूसरे की कसौटी पर खरी नहीं उतरीं.

मां का पहले से पूरन पर पूरा अधिकार था. सात फेरे पड़ते ही जैसे किसी ने उस के अधिकार को चुनौती दे दी थी. उसे लगता, जैसे बेटे पर उस की पकड़ ढीली होती जा रही है. वह उस के हाथ से निकला जा रहा है. उस की ओर कम ध्यान देता है. उस की कम सेवा करता है. फुजूलखर्ची अधिक करता है और रात देर तक जागजाग कर अपना स्वास्थ्य चौपट कर रहा है.

मां को रात बहुत देर से और बहुत कम नींद आती. पास के कमरे से पूरन और तारा की गुटरगूं देर रात सुनाई पड़ती रहती. मां करवटें बदलती रहती और गठिया के दर्द को सहती रहती. मां ने सोचा था कि बहू के आ जाने पर वह पलंग पर बैठी राज करेगी.

उधर तारा की सब से बड़ी कसक यह थी कि पूरन उसे कहीं हनीमून के लिए नहीं ले गया था. शादी जिंदगी में एक ही बार तो होती है. पूरनचंद उसे मां के कारण ही हनीमून के लिए नहीं ले गया था. कहता रहा, ‘‘मां अकेली कैसे रहेगी.’’

तारा सोचती, ‘मां कोई बच्चा है कि उसे बंदर उठा ले जाएगा. पति न हुआ दूधपीता बच्चा हो गया, जो हर समय मिमियाता रहता है. हर समय मां का ही गुणगान करता रहता है. मां की सेवा, मां का त्याग, मां का परिश्रम. कौन मां अपने बच्चे के लिए यह सब नहीं करती. पशुपक्षी भी अपने बच्चों का ध्यान रखते हैं. मां को जब देखो, तब पहाड़ी गांव वाले व्यंजनों की रट लगी रहती है. उस ने कई बार कहा है कि वह बनाना नहीं जानती, न ही उसे पसंद है. पर वह उन्हीं के गुण गाती रहती है.’

लखनऊ में तो तारा रोज शाम को घूमने निकल जाती थी, सहेलियों के साथ या भाइयों के साथ. यहां शाम को बोर होती. कितनेकितने दिन हो जाते फिल्म देखे, शौपिंग किए, घूमने गए. क्यों? कारण वही, मां का पुछल्ला. मां बोर न हो, पत्नी भले ही बोर होती रहे. टीवी या मोबाइल पर आखिर कितना कुछ क्या देखा जाए.

हाथपैर मारने के बाद तारा को एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी भी मिल गई.
मां चाहती कि बेटा दिनभर का हाराथका आता है, घर पर आराम करे. पत्नी जानती थी कि दफ्तर में कोई चक्की तो पीसता नहीं है. मां का मन करता है कि वह भी उन लोगों के साथ जाए. कोई जानपहचान का मिले तो बता सके कि यह मेरा बेटा पूरन है और यह उस की बहू. पर सिनेमा हौल में 3 घंटे बैठे रहना उस के बस का नहीं. बिना औटो के 2 कदम भी चलना उस से भी कठिन है. फिर औटो में 2 व्यक्ति बैठते हैं, 3 नहीं. तीनों को जाना होता तो टैक्सी करनी पढ़ती.

शौपिंग में मां की पंसद आधुनिकाओं के लिए कोई अर्थ नहीं रखती. दृष्टि क्षीण होने के कारण वैसे भी वह ठीक रंग या डिजाइन नहीं आंक पाती थी और आजकल जो भी मौल थे उन में चलना बहुत पड़ता था. घूम भी वह ज्यादा नहीं पाती थी. पर अकेला घर उसे काटने को दौड़ता. उस का जी घबराने लगता. कभी कोई पड़ोसिन आ जाती तो वह बेटेबहू की अपने प्रति उदासीनता की चर्चा करने लगती. पड़ोसिनें भी इक्कादुक्का ही थीं क्योंकि उन के आसपास जनरल कास्ट भी ज्यादा थे जो अब उन से बात करने में कतराते थे, क्योंकि वे पिछङी जाति से थे।

तारा के संबंध में वह पूरन से भी चोरीछिपे कहती. सलोनी सूरत पर रीझ जाने के अपने निर्णय पर मलाल करती. बहू के आलसी होने, गृहकार्य में कुशल न होने, सेवा न करने आदि की बात कहती. पुराने जमाने की, आपबीती कहती रहती. पूरन हां…हूं करता रहता. क्या कहता. उसे तो अपने प्रति समर्पण में तारा में कहीं कमी नहीं दिखाई देती थी. पर वह अशिक्षित सी मां की आंखों पर लगा एक पीढ़ी पुराना चश्मा कैसे उतार फेंकता. मां के संस्कारों को कैसे पलटता. जिस मां का समूचा स्नेह उसी को मिला हो, उसे कैसे समझाता.

मां और तारा दोनों ही पूरन के दफ्तर से लौटने की प्रतीक्षा करतीं. तारा भी स्कूल से 2 बजे तक आ जाती थी. उस का भी समय काटे नहीं कटता था. यदि वह मां के पास बैठ जाता तो तारा के बढ़े रक्तचाप का ज्ञान उसे रसोई में गिरतेखनकते बरतनों से हो जाता. वह रसोई में नहीं होती तो धपधप कर के आंगन में कई बार बेमतलब गुजरती. स्वागत की मुसकराहट के स्थान पर उस के अधरों पर उपेक्षा का भाव रहता.
यदि पूरन सीधा पत्नी के पास भीतर चला जाता तो मां कराहती, घिसटती, घुटनों के जोड़ों में दर्द को कोसती, स्वयं कमरे के बाहर बरामदे में आ जाती और कहने लगती, ‘‘कफ सिरप से खांसी में तो लाभ है, पर जोड़ों के दर्द में कतई फायदा नहीं है. उन से यह भी कहना कि भूख एकदम कम हो गई है. पूछना, मुनक्के सर्दी तो नहीं करेंगे…’’

फिर वह साड़ी ऊपर उठा कर घुटनों की सूजन पर हाथ फेरने लगती. तारा को चायनाश्ता लाने का आदेश देती.
तारा कुढ़ जाती. मां नहीं कहेंगी तो क्या वह नाश्ता नहीं देगी. रात देर तक तारा का मूड बिगड़ा रहता. वह कहती कि मां का बुढ़ापा है, रोग भी है पर वह नाटक अधिक करती हैं. दिन में खुद 2 बार बाथरूम हो आती हैं, गैस पर पानी गरम कर लेती हैं, पर पूरन के आते ही ठिनकने लगती हैं.

पूरन समझाता, ‘‘बच्चे और बूढ़े एकजैसे होते हैं. जीवन के आखिरी दौर में हैं, जितनी बन पड़े सेवा कर लो.’’

तारा सुबह जल्दी उठती थी. पर स्कूल जाने में कुछ और काम करने का समय नहीं होता. पूरन भी सवेरे जल्दी उठता. तारा को बैड पर ही चाय देता. उस के बिना तो उस की आंख ही नहीं खुलती थी. फिर मां को हाथमुंह बिस्तर पर ही धोने को गरम पानी देता. बाथरूम ले जाता. शेव बना कर नहाताधोता और बाजार से दूध का पैकेट और सब्जी लेने चला जाता. उसी समय लौट कर नाश्ता करता और काम पर चल देता.

शाम को हाराथका लौटता. चायनाश्ते के बाद मां के पास बैठता. उस के जोड़ों पर हाथ फेरता, तेल लगाता, दवा के बारे में पूछता, डाक्टर की दवाई लाने की पेशकश करता. तारा तब तक खाना बनाती. पूरन मां को गरम खाना खिलाता. दर्द अधिक बताती तो सिंकाई करता. उसे बिस्तर पर लिटा कर फिर अपराधी की तरह तारा के सम्मुख जाता.

तारा खाना सामने रखती हुई कहती, ‘‘मिल गई छुट्टी?’’

सोने जाने से पहले पूरन फिर एक बार मां को देख कर आता, दवाई देता.
मां तो यहां तक चाहती थीं कि पूरन या तारा में से कोई एक रात को उस के ही कमरे में सोए, वह घूमाफिरा कर कहती, ‘‘रात को आंख खुल जाती तो बहुत जी घबराता है. कोई पानी देने वाला भी नहीं होता. किसी दिन ऐसे ही तड़पतड़प कर मर जाऊंगी. कोई पास हो तो दर्द बढ़ने पर दवा तो मल सकता है. बाथरूम जाना होता है तो बिजली का स्विच खोलने में दीवार से टकरा जाती हूं.’’

पूरन कहता, ‘‘मां पुकार लिया करो न. बराबर के कमरे में ही तो हम सोते हैं. रातभर बिजली खुली रखा करो.’’ पर रोशनी में मां को नींद नहीं आती थी. वह आंखों की रहीसही रोशनी से भी हाथ धो बैठने का डर बताती.

पूरन की अपनी जिंदगी जैसे कुछ रह ही नहीं गई थी. भरसक दोनों की सेवा करता था. पर कोई भी उस से संतुष्ट नहीं था. तारा के लिए कपङे लाता तो मां का मुंह टेढ़ा हो जाता, ‘‘मेरे लिए भी कफन ले आया होता. बढ़िया, महंगी दवाएं तो लाता नहीं है और…’’
तारा को सदा शिकायत रहती, ‘‘तुम्हारा सारा वेतन मां की दवादारू पर खर्च हो जाता है और मेरे लिए हाथ तंग…’’

पूरन के अपने शौक तो जैसे हिरण हो गए थे. उस का जी करता, वह दोस्तों में बैठे, गपशप करे. जब घर पर कम रहता तो चिकचिक भी कम सुनने को मिलेगी. आखिर कहता भी तो किस से. करता भी तो क्या. फिर कौन दर्द बांटता है.

सालभर में पूरन टूट सा गया. दिनभर दफ्तर में खपता और शेष मां व पत्नी में खप जाता. सासबहू का माध्यम बनेबने तो वह पिसता चला जाएगा. उसे लगा वह अब अधिक नहीं निभा पाएगा.

एक शाम दफ्तर से लौटते समय मोहल्ले के बाहर पार्क का जंगला पकड़ कर वह 2 मिनट के लिए रुक गया. बच्चे खेल रहे थे. किलकारी मार रहे थे. दौड़ रहे थे. सब से अधिक भीड़ झूलों पर थी. तभी उस की दृष्टि ‘सी सा’ पर संतुलन करती 2 छोटी लड़कियों पर पड़ी स्थिर स्तंभ पर लंबा तख्ता लगा हुआ था. एक लङकी एक छोर पर और दूसरी लङकी दूसरे छोर पर बैठी थी. तख्ता किसी पक्षी के पंखों की तरह हवा में लहरा रहा था.

एक लङका पास में खड़ा था. वह कभी एक छोर पर बैठ जाता, कभी दूसरे पर. जिस छोर पर वह बैठता, वह नीचा हो जाता और दूसरा हलका होने के कारण अनायास ऊपर उठ जाता. ऊपर जाती लङकी चीख पड़ती. लङका खुश हो कर ताली बजाता. हंसने लगता. वह कूद पड़ता तो फिर संतुलन हो जाता. वह बारीबारी कभी इधर के, कभी उधर के छोर पर बैठ कर संतुलन बिगाड़ देता. जिधर वह बैठा होता उस छोर की लङकी स्वयं को सुरक्षित महसूस करती. दूसरी लङकी को अकस्मात ऊपर उठ जाने से गिरने का भय रहता.

पूरनचंद विचार में डूब गया. यही स्थिति तो उस की है. मां के पास बैठता है तो पत्नीत्व डोलने लगता है और पत्नी के पास रहने में मातृत्व डगमगाने लगता है. यदि वह हट जाए, किनारा कर जाए तो दोनों संतुलित रह सकती है. उसे लगा कि असंतुलन का कारण यही है.
रातभर वह कुछ सोचता रहा. अगले दिन उस ने 1 माह की छुट्टी ली और मुंबई में एक मित्र के पास जाने का कार्यक्रम बना लिया. घर पर उस ने कह दिया कि उस का मुंबई में तबादला हो गया है. फिलहाल अकेला जाएगा. मुंबई में मकान आसानी से नहीं मिलता. जब मकान की सुविधा हो जाएगी तब मां व पत्नी को भी ले जाएगा.

मां परेशान हो गई. पूरन के बिना कैसे काम चलेगा. कौन उस की सेवा करेगा. बोली, ‘‘बेटा, तबादला रुक क्यों नहीं सकता.’’

‘‘तरक्की पर जा रहा हूं मां, मार्केटिंग मैनेजर हो कर. अवसर छोड़ दिया तो फिर आगे कोई नहीं पूछेगा. सारी जिंदगी ऐनैलिस्ट में सड़ते रहना पड़ेगा.’’

तारा अलग परेशान थी. कैसे रहेगी अकेली. और फिर मां के साथ या मायके चली जाए. पर स्कूल की जौब भी थी. कम पैसे मिलते थे तो क्या समय तो कटता था और घर के खर्च पूरे होते थे. पर लोग क्या कहेंगे. दोस्त रिश्तेदार थूकेंगे. पीछे कहीं मां दुनिया छोड़ गई तो मिट्टी खराब होगी. रात को आंसुओं से पूरन की छाती भिगोते हुए उस ने भी वही बात कही, ‘‘तबादला रुक नहीं सकता क्या?’’
और पूरन ने वही उत्तर दोहरा दिया.
आखिर पूरन चला गया.

अगली सुबह तारा बिस्तर में ही थी कि सास चाय ले कर आ गई. तारा आश्चर्यचकित आंखें मलमल कर देखती रही. मां ही थी. वह हड़बड़ा कर उठ बैठी. सास बोली, ‘‘गरम पानी करने को गैस जलाई थी. सोचा, तेरी चाय भी बना दूं.’’

घंटे भर बाद मां सब्जी की टोकरी उठाती हुई बोली, ‘‘ला तारा, सब्जी ला दूं. तू इतने में स्कूल जाने की तैयारी कर। दोपहर को क्या खाएगी? यहां तो ठेले वाला दोपहर को आएगा, वह भी बासी सब्जी लिए. बेचेगा भी महंगी. मसालावसाला तो कुछ नहीं लाना है? डाक्टर को अपना हाल बता कर दवाई भी लेती आऊंगी.’’

तारा ने खोएखोए 500 का नोट बढ़ा दिया, ‘मां ने तो बेटे का काम संभाल लिया,’ वह बुदबुदाई.

बाजार से लौट कर मां अपने घुटनों पर तेल मलने बैठ गई. तारा ने जब झाड़ूपोंछा किया तो सास का कमरा भी साफ कर दिया. बिस्तर धूप में डाल दिया. पहले यह काम पूरन करता था. तारा को कमरे में जहांतहां पड़े थूकबलगम से उबकाई आती थी. आज पहली बार उसे घृणा नहीं हुई.
1 सप्ताह में सासबहू पर्याप्त निकट आ गईं, अब मां को पूरन का अभाव नहीं अखर रहा था. कोई तो है उस की देखभाल को. तारा को भी सास से अपनत्व होता जा रहा था. सालभर का अलगाव धीरेधीरे पिघलता जा रहा था. तारा ने अपनी खाट सास के कमरे में ही डाल ली. सास तो जैसे निहाल हो गई.

1 माह बाद पूरन लौटा. आंगन में घुसते ही उस का चेहरा खिल गया. तारा बरामदे में बैठी मां के घुटनों पर तेल मल रही थी. दोनों के चेहरे तनावमुक्त थे. दिनभर दोनों में से किसी ने उस से कोई शिकवाशिकायत नहीं की. पूरन की मां से अकेले में भी बातचीत हुई. वह तारा की भूरिभूरि प्रशंसा कर रही थी. कह रही थी, ‘‘खरा सोना है मेरी तारा.’’

रात को तारा से भेंट होने पर पूरन बोला, ‘‘प्लेन में पहाड़ के एक पंडित मिले थे. मां को जानते हैं. कह रहे थे हरिद्वार भेज दो. वृद्धाश्रम है, सस्ता भी है. लंगर में खा लिया करेंगी. बहुत से बुजुर्ग वहां रहते हैं.’’

तारा तेवर चढ़ाती हुई बोली, ‘‘क्या कह रहे हो. मां क्या कोई हम पर भार है. मैं उन्हें कहीं नहीं भेजने दूंगी. जब तक हैं, यहीं रहेंगी.’’

पूरन की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए. अगले दिन उस ने घर पर बताया कि मुंबई की जलवायु माफिक न आने के कारण उस ने इलाहाबाद अपने पुराने पद पर ही तबादला करा लिया है. सास और बहू के मुंह से एकसाथ प्रसन्नता से निकला, ‘‘सच.’’

पूरन के जीवन का ‘सी सा’ पूर्ण संतुलित हो गया था.

दुलहन पर लगा दांव – क्या माया और रवि की साजिश पूरी हो पाई

सुर्ख जोड़े में सजी नईनवेली दुलहन सुलेखा दोस्त जैसे पति रवि राउत को पा कर बहुत खुश थी. यौवन की दहलीज पर उस ने खुली आंखों से जो सपने देखे थे, वे साकार हो गए थे. सुलेखा 15 जुलाई, 2018 को ब्याह कर खुशीखुशी ससुराल आई थी. शादी के 6 दिन बीत जाने के बावजूद उस के हाथों पर पति के नाम की मेहंदी का रंग अभी भी ताजा था.

रवि राउत बिहार के जिला गया के थाना मुफस्सिल क्षेत्र में आने वाले शहीद ईश्वर चौधरी हाल्ट स्थित मोहल्ला कुर्मी टोला के रहने वाला था. उस के पिता श्यामसुंदर कपड़े के व्यापारी थे. गया में उन का कपड़े का काफी बड़ा कारोबार था, जो अच्छा चल रहा था. इस से अच्छी कमाई होती थी. श्यामसुंदर राउत के 3 बेटे थे, रवि, विक्की और शुक्कर. विक्की और शुक्कर पिता के व्यापार में सहयोग करते थे.

सुबह दोनों नाश्ता कर के पिता के साथ दुकान पर चले जाते थे और रात में दुकान बढ़ा कर उन्हीं के साथ घर लौटते थे. जबकि यारदोस्तों की संगत में रह कर रवि की आदतें बिगड़ गई थीं. उस की आदतें सुधारने के लिए श्यामसुंदर ने उस की शादी कर दी थी ताकि बहू के आने पर अपनी जिम्मेदारियों को समझ सके.

बात 21 जुलाई, 2018 की रात की है. पढ़ीलिखी, समझदार सुलेखा ससुराल वालों को रात का भोजन करा कर पति के साथ फर्स्ट फ्लोर पर सोने चली गई. दिन भर की थकीहारी सुलेखा को बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई. रवि भी सो गया.

रवि तब अचानक नींद से उठ बैठा, जब उस के कानों में सुलेखा की दर्दनाक चीख पड़ी. नींद से जाग कर रवि ने पत्नी की ओर देखा तो सन्न रह गया. सुलेखा के गले से तेजी से खून बह रहा था. लगा जैसे किसी ने तेजधार हथियार से गला रेत कर उस की हत्या की कोशिश की हो. खून देख कर रवि बुरी तरह घबरा गया. जब उस की समझ में कुछ नहीं आया तो उस ने चादर से सुलेखा का गला लपेट दिया, ताकि खून बहना बंद हो जाए.

तभी अचानक रवि की नजर एक महिला पर पड़ी. वह अपना चेहरा कपड़े से ढंके हुए थी और उसी कमरे से निकल कर बाहर की ओर भाग रही थी. उस महिला से थोड़ी दूर आगे 2 और महिलाएं तेजी से भागी जा रही थीं.

इस से पहले कि नकाबपोश महिला भागने में सफल हो पाती, सुलेखा की चीख सुन कर उस के देवर विक्की और शुक्कर कमरे में आ गए थे.

रवि और उस के दोनों भाइयों ने दौड़ कर नकाबपोश महिला को पकड़ लिया और लातघूसों से उस की जम कर पिटाई की. नकाबपोश महिला जब बेसुध हो गई तो विक्की ने उस के चेहरे से नकाब उतार दिया. नकाब हटते ही रवि, विक्की और शुक्कर तीनों दंग रह गए. वह महिला रवि के जानने वालों में थी, जिस का नाम माया था. वह सूढ़ीटोला में रहती थी.

उधर ज्यादा खून बहने से सुलेखा की हालत बिगड़ती जा रही थी. इस बीच रवि के भाई विक्की ने 100 नंबर पर फोन कर के इस घटना की सूचना पुलिस कंट्रोलरूम को दे दी थी. कंट्रोलरूम से सूचना मिलते ही थाना मुफस्सिल के थानेदार कमलेश शर्मा अपनी टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. घटनास्थल पर पहुंच कर उन्होंने हत्या की कोशिश करने वाली माया को आलाकत्ल ब्लेड के साथ गिरफ्तार कर लिया.

सुलेखा की हालत बिगड़ती जा रही थी. रवि उसे इलाज के लिए मगध मैडिकल अस्पताल ले गया और इमरजेंसी वार्ड में भरती करा दिया. डाक्टरों ने उस का इलाज शुरू कर दिया. समय पर इलाज मिल जाने से सुलेखा बच गई. यह 15/16 जुलाई, 2018 की रात ढाई बजे की बात थी.

अगले दिन रवि राउत की नामजद लिखित तहरीर पर मुफस्सिल थाने में माया के खिलाफ 307 आईपीसी के अंतर्गत केस दर्ज कर लिया गया. मुकदमा दर्ज होने के बाद थानेदार कमलेश शर्मा सुलेखा का बयान लेने मगध मैडिकल अस्पताल पहुंचे.

सुलेखा ने कमलेश शर्मा को बताया कि रात एकडेढ़ बजे के करीब उस का पति रवि दरवाजा खोल कर बाहर चला गया था, तभी एक नकाबपोश औरत ने कमरे में घुस कर मुझ पर हमला बोल दिया. एक औरत कमरे के अंदर थी, जबकि दूसरी कमरे के दरवाजे के पास खड़ी थी.

वह वहीं से पूछ रही थी कि सुलेखा मरी या नहीं. मुझ पर नकाबपोश औरत ने न केवल हमला किया बल्कि मुझे तेजाब पिलाने की भी कोशिश की. लेकिन मेरी चीख सुन कर ऊपर आए मेरे देवरों ने मुझे बचा लिया.

पकड़ी गई औरत ने अपना नाम माया बताया. जांच अधिकारी ने जब उस से हमले की वजह पूछी तो वह वजह बताने में असमर्थ रही. वह खुद हैरान थी कि माया ने उस की हत्या करने का प्रयास क्यों किया, जबकि वह उसे जानती तक नहीं थी. सुलेखा की बात सुन कर एसओ कमलेश शर्मा हैरान रह गए.

कमलेश शर्मा को सुलेखा के बयान ने परेशानी में डाल दिया था. इस का जवाब सिर्फ माया ही दे सकती थी या फिर सुलेखा का पति रवि राउत. माया महिला थाने के हवालात में बंद थी. कमलेश शर्मा ने थाने लौट कर आरोपी माया को महिला थाने से बुलवाया, फिर उस से पूछताछ की. माया का बयान सुन कर विवेचक शर्मा अवाक रह गए.

माया ने पुलिस को बताया कि रवि और उस के बीच करीब 3 साल से प्रेम संबंध थे. दोनों एकदूसरे को प्यार करते थे, रवि उस से शादी करना चाहता था. लेकिन अपने घर वालों की वजह से वह ऐसा नहीं कर पाया. अपने बयान में माया एकएक राज से परदा उठाती गई

माया के बयान से इस मामले में एक दिलचस्प मोड़ आ गया. उस के बयान पर विश्वास कर के पुलिस जब रवि से पूछताछ करने मगध मैडिकल अस्पताल पहुंची तो रवि वहां नहीं था. उस की जगह सुलेखा के पास उस का छोटा भाई विक्की बैठा था. पुलिस ने जब विक्की से रवि के बारे में पूछताछ की तो उस ने बताया कि रवि घर पर होगा.

एसओ कमलेश शर्मा ने रवि को अस्पताल बुलाने के लिए एक सिपाही उस के घर भेजा. सिपाही रवि के घर पहुंचा तो वह वहां भी नहीं था.

पूछने पर घर वालों ने बताया कि वह रात से अस्पताल से घर नहीं लौटा है. सिपाही ने लौट कर यह बात एसओ को बता दी. कमलेश शर्मा सोच में पड़ गए कि जब रवि न अस्पताल में है और न ही घर पर, तो वह कहां गया?

इस का मतलब वह फरार हो चुका था. निस्संदेह पत्नी की हत्या के प्रयास के पीछे उस का भी हाथ था. उस के फरार होने से यह बात साफ हो गई कि माया ने जो बयान दिया था, वह सच था. अब इस गुत्थी को सुलझाने के लिए रवि की गिरफ्तारी जरूरी थी. हकीकत जानने के लिए पुलिस ने रवि के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई.

काल डिटेल्स से पता चला कि रवि और माया के बीच बातें होती रहती थीं. घटना वाले दिन भी रवि और माया के बीच काफी देर तक बात हुई थी. इस डिटेल्स से पुलिस इस नतीजे पर पहुंची कि रवि ने अपनी प्रेमिका माया के साथ मिल कर पत्नी की हत्या का षडयंत्र रचा था. लेकिन वह अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाया था.

बहरहाल, सुलेखा ठीक हो कर अस्पताल से घर आ गई, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी रवि पुलिस के हत्थे नहीं चढ़ा. इस बीच पुलिस ने माया को अदालत में पेश कर के जेल भेज दिया था. आखिरकार घटना के एक महीने बाद रवि उस वक्त पुलिस के हत्थे चढ़ गया, जब वह गया रेलवे स्टेशन से कहीं भागने के लिए ट्रेन के इंतजार में वेटिंग रूम में बैठा था.

पुलिस रवि को गिरफ्तार कर के थाने ले आई और सुलेखा की हत्या की योजना जानने के लिए उस से पूछताछ की. चाह कर भी रवि हकीकत को छिपा नहीं सका. उस ने पुलिस के सामने सच उगल दिया. पूछताछ में रवि ने अपनी और माया की प्रेम कहानी सिलसिलेवार बतानी शुरू की.

माया मुफस्सिल थाना क्षेत्र के सूढ़ीटोला की रहने वाली थी. वह शादीशुदा और 3 बच्चों की मां थी. उस का पति मनोहर बाहर रह कर नौकरी करता था. वह 6 महीने या साल भर में एकाध बार ही घर आ कर कुछ दिन बिता पाता था.

माया भले ही 3 बच्चों की मां थी, लेकिन उस का शारीरिक आकर्षण खत्म नहीं हुआ था. उस का कसा हुआ शरीर और गोरा रंग पुरुषों को आकर्षित करने के लिए काफी था. सजसंवर कर माया जब घर से बाहर निकलती थी तो अनचाहे में लोगों की नजरें उस की ओर उठ ही जाती थीं.

कभीकभी रवि माया के घर के सामने से हो कर घाटबाजार स्थित अपनी दुकान पर जाया करता था. एकदो बार का आमनासामना हुआ तो दोनों की नजरें टकरा गईं. धीरेधीरे दोनों एकदूसरे की ओर आकर्षित होने लगे. जल्दी ही वह समय भी आ गया, जब दोनों ने आकर्षण को प्यार का नाम दे दिया. इस प्यार को शारीरिक संबंधों में बदलते देर नहीं लगी. इस की एक वजह यह भी थी कि माया का पति परदेस में था और वह शारीरिक रूप से प्यार की प्यासी थी.

धीरेधीरे रवि और माया के प्यार के चर्चे पूरे सूढ़ीटोला में होने लगे. रवि घर से दुकान पर जाने की कह कर निकलता और पहुंच जाता माया के पास. जब तक वह दुकान पर पहुंचता, तब तक उस के दोनों भाई विक्की और शुक्कर दुकान पर पहुंच कर पिता के साथ काम में लग जाते.

रवि देर से पहुंचता तो पिता श्यामसुंदर राउत उस से देर से आने की वजह पूछते, लेकिन वह चुप्पी साध लेता था. इस से श्यामसुंदर और भी परेशान हो जाते थे. उन की समझ में नहीं आ रहा था कि रवि को आखिर हो क्या गया. उन्होंने उस के देर से आने का रहस्य पता लगाने का फैसला किया.

आखिरकार श्यामसुंदर ने जल्द ही सच का पता लगा लिया. पता चला उन का बड़ा बेटा रवि एक शादीशुदा और 3 बच्चों की मां माया के प्रेमजाल में फंसा है. बेटे की सच्चाई जान कर वह परेशान हो गए.

उन्होंने रवि को माया से दूर रखने के बारे में सोचना शुरू किया. सोचविचार कर वह इस नतीजे पर पहुंचे कि रवि की शादी कर दी जाए तो वह माया को भूल जाएगा. उन्होंने रवि की शादी की बात चलाई तो बात बन गई. फलस्वरूप सुलेखा से रवि का रिश्ता तय हो गया.

रिश्ता तय हो जाने के बाद रवि जब कभी माया के घर के सामने से गुजरता तो उस से नजरें मिलाने के बजाय चुपचाप निकल जाता. रवि में अचानक आए बदलाव से माया परेशान हो गई. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक रवि को क्या हो गया, जो उस ने मुंह फेर लिया.

माया से रवि की जुदाई बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. एक दिन वह रवि का रास्ता रोक कर उसे अपने घर ले आई. फिर उस ने रवि से पूछा, ‘‘तुम्हें अचानक ऐसा क्या हो गया जो मुझ से मुंह फेर लिया.’’

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है माया.’’ रवि ने सहज भाव से कहा.

‘‘ऐसी कोई बात नहीं है तो अचानक मुझ से मुंह क्यों मोड़ लिया?’’

‘‘माया, अब हमारा मिलना संभव नहीं है.’’ रवि ने नजरें झुका कर कहा.

‘‘क्यों, संभव नहीं है हमारा मिलना? मैं तुम से कितना प्यार करती हूं, जानते तो हो. फिर हमारा मिलना क्यों नहीं संभव है?’’

“‘क्योंकि मेरे घर वालों ने मेरी शादी करने का फैसला कर लिया है.’’

रवि का जवाब सुन कर माया के होश उड़ गए. माथे पर हाथ रख कर वह बिस्तर पर जा बैठी. कुछ देर दोनों के बीच खामोशी छाई रही.

उस खामोशी को माया ने ही तोड़ा, ‘‘आखिर क्या समझ रखा है तुम ने मुझे? मैं कोई खिलौना नहीं हूं कि जब चाहा, खेला और जब चाहा छोड़ दिया. मेरी जिंदगी बरबाद कर के तुम किसी और के साथ शादी रचाओगे? तुम ने यह कैसे सोच लिया कि मैं ऐसा होने दूंगी? मेरे जीते जी ऐसा हरगिज नहीं हो सकता.’’

‘‘मेरी बात समझने की कोशिश करो, माया.’’ माया के सामने रवि हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘‘मैं घर वालों के सामने बेबस हूं. मुझे उन के सामने झुकना ही पड़ा.’’ रवि ने माया को समझाने की कोशिश की, ‘‘तुम तो जानती हो, मैं भी तुम से कितना प्यार करता हूं. तुम्हारे बिना जीने की कल्पना तक नहीं कर सकता.’’

‘‘मैं कुछ नहीं सुनना चाहती. तुम्हें जो भी करना हो करो, लेकिन मैं तुम्हारी शादी नहीं होने दूंगी.’’ माया ने रवि को धमकाया. रवि माया को काफी देर तक समझाता रहा. लेकिन माया ने रवि की शादी की बात स्वीकार नहीं की. उस ने खुल कर धमकी दी कि अगर उस ने किसी और से शादी की तो इस का अंजाम उसे भुगतना पड़ेगा.

उस दिन के बाद से रवि ने न तो माया से बात की और न ही मिला. माया ने सपने में भी नहीं सोचा था कि रवि उसे धोखा देगा और किसी दूसरी लड़की से शादी रचा लेगा. उस की बेवफाई से माया घायल नागिन सी बन गई. उस के सीने में बदले की आग धधकने लगी. यह मई 2018 की बात थी.

माया रवि से बदला लेने के लिए भले ही घायल नागिन बन गई थी, लेकिन उस की जुदाई में उस से कहीं ज्यादा तड़प रही थी. रवि भी माया से मिलने के लिए विरह की आग में जल रहा था. अंतत: उस से रहा नहीं गया और एक महीने बाद वह माया के पास लौट आया. सारे गिलेशिकवे भुला कर माया ने उसे प्यार के आंचल में छिपा लिया ताकि उन के प्यार को जमाने की नजर न लग जाए.

रवि ने माया से कहा कि मांबाप की खुशी के लिए वह सुलेखा से शादी तो जरूर करेगा, लेकिन उसे कभी पत्नी का दर्जा नहीं देगा और मौका मिलते ही उसे सदा के लिए अपने रास्ते से हटा देगा. रवि की बात पर माया ने सहमति जता दी. रवि की शादी के बाद सुलेखा को रास्ते से हटाने के लिए माया शादी से पहले ही योजना बनाने में जुट गई.

बहरहाल, वह दिन भी आ गया जिस का रवि और माया को इंतजार था. 15 जुलाई, 2018 को रवि की शादी सुलेखा के साथ हो गई. सुलेखा मायके से विदा हो कर ससुराल आ गई.

दूसरी ओर माया का आनाजाना बंद हो जाने से ईर्ष्या की आग में जल रही थी. रवि भले ही माया के पास नहीं जा रहा था, लेकिन फोन से दोनों की अकसर बातें हो जाती थीं. माया उसे बारबार उस का वादा याद दिलाती रहती थी. रवि उस से कह देता था कि जल्द ही अपना वादा पूरा करेगा.

शादी के 4-5 दिन बाद रवि के घर से सब मेहमान चले गए. घर पूरी तरह खाली हो गया. 21 जुलाई, 2018 की दोपहर रवि चुपके से माया से मिलने उस के घर जा पहुंचा. उस वक्त घर में माया के अलावा कोई नहीं था. उस के तीनों बच्चे स्कूल गए हुए थे.

पहले तो दोनों ने मौके का भरपूर फायदा उठाया. फिर रवि और माया अपनी पहले से तैयार योजना पर बात की. रवि ने माया से कहा कि आज रात सुलेखा को हमेशा के लिए रास्ते से हटा दिया जाएगा. मेरे फोन का इंतजार करना. जैसे ही मैं फोन करूं, धारदार हथियार ले कर मेरे घर आ जाना. घर का दरवाजा खुला रहेगा.

रात 10 बजे के करीब सुलेखा पति, सास, ससुर और देवरों को खाना खिला कर पति के साथ पहली मंजिल पर सोने चली गई. उसे क्या पता था कि आज की रात उस पर भारी पड़ने वाली है. खैर, पतिपत्नी बातें करतेकरते कब सो गए, पता ही नहीं चला.

रात 1 बजे के करीब रवि की आंखें खुल गईं. उस ने देखा, सुलेखा गहरी नींद में सो रही थी. रवि मोबाइल ले कर आहिस्ता से बिस्तर से नीचे उतरा और दरवाजा खोल कर बाहर चला गया. तभी सुलेखा की आंखें खुल गईं. उस ने पति से इतनी रात गए बाहर जाने के बारे में पूछा तो रवि ने कहा कि बाथरूम जाना है, अभी आता हूं.

रवि घर से बाहर निकल आया और फोन कर के माया को बता दिया कि रास्ता साफ है, आ जाओ. थोड़ी देर बाद रवि बाहर से लौट आया और फिर सोने का नाटक करने लगा. करीब 30 मिनट बाद माया 2 महिलाओं के साथ रवि के घर पहुंच गई.

माया इन महिलाओं को सुरक्षा के लिए लाई थी. उन्हें उस ने बाहर ही रोक दिया था. माया स्वयं चुपके से सीढि़यों के सहारे रवि के कमरे में दाखिल हो गई. उसे रवि के घर का कोनाकोना पता था.

सुलेखा रवि के बगल में सोई हुई थी. माया ने साथ लाए धारदार ब्लेड से सुलेखा के गले, चेहरे और आंख पर वार किए. साथ ही उस का गला दबाने का भी प्रयास किया. अचानक हुए हमले से सुलेखा के मुंह से दर्दनाक चीख निकल गई.

पत्नी की चीख सुन कर सोने का बहाना कर रहा रवि उठ बैठा. तब तक नीचे से रवि के दोनों भाई विक्की और शुक्कर ऊपर कमरे में पहुंच गए. विक्की और शुक्कर को देख माया डर गई, क्योंकि रवि का पूरा गेम ही उलटा पड़ गया था.

जैसे ही माया वहां से भागी, विक्की और शुक्कर ने उसे दौड़ा कर पकड़ लिया और उसे मारनेपीटने लगे. किसी को शक न हो, सोच कर रवि भी भाइयों के साथ जा मिला और मौका देख कर माया को लातथप्पड़ मारने लगा.

माया के गिरफ्तार हो जाने के बाद उस से महिला थाने में एसओ विमला ने पूछताछ की. माया ने सुलेखा की हत्या की योजना का खुलासा कर दिया कि कैसे उस ने अपने प्रेमी रवि के साथ मिल कर सुलेखा की हत्या की योजना बनाई थी. उस के बयान पर पुलिस ने उस के प्रेमी और सुलेखा के पति रवि को पत्नी की हत्या की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज कर के गिरफ्तार कर लिया.

कथा लिखे जाने तक दोनों प्रेमीप्रेमिका रवि राउत और माया जेल में बंद थे. बेटे की करतूत पर मांबाप को काफी दुख पहुंचा. स्वस्थ हो चुकी सुलेखा ससुराल से मायके लौट गई. उस रात माया के साथ आई 2 महिलाओं का पता नहीं चल सका.

— कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

Hindi Story : उड़ान – मोहिनी के हुस्न के जाल से क्या निकल पाया कपिल

Hindi Story : कपिल का नईनवेली पत्नी को छोड़ कर ड्यूटी पर जाने का जरा भी मन नहीं था. शादी के लिए उस ने कंपनी से एक महीने की छुट्टी ली थी. शादी के बाद पत्नी की खूबसूरती में वह कुछ इस तरह खो गया कि कब 2 महीने बीत गए, उसे पता ही नहीं चला.

जब कंपनी के मैनेजर ने फोन पर कपिल को चेतावनी दी कि अगर एक हफ्ते के अंदर उस ने ड्यूटी जौइन नहीं की, तो उसे नौकरी से बरखास्त कर दिया जाएगा. तब उस की आंखें खुलीं. अब तो उस का नौकरी पर जाना जरूरी था.

घर से विदा लेते समय कपिल ने पत्नी से कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो. दिल्ली जा कर सब से पहले एक बड़ा मकान किराए पर लूंगा, फिर तुम्हें बुला लूंगा.’’

कपिल बलिया के एक गांव का रहने वाला था. उस के पिता चाय की दुकान चलाते थे. गांव के स्कूल में 9वीं जमात फेल हो जाने के बाद कपिल का मन पढ़ाई से हट गया, तो उस ने नौकरी करने का मन बना लिया. कुछ दिन बाद नौकरी की तलाश में वह दिल्ली चला गया. 15 दिन भटकने के बाद उसे एक प्राइवेट कंपनी में डिलीवरी बौय की नौकरी मिल गई. रहने के लिए उस ने किराए पर छोटा सा मकान भी ले लिया.

कपिल को जो कमरा मिला था, उस में पहले से ही 2 लोग रहते थे. जल्दी ही वह दोनों से घुलमिल गया.

कपिल के बोलचाल के ढंग की वजह से उसे लोग जल्दी दोस्त बना लेते थे. वह हमेशा साफसुथरा रहता था. थोड़ी वर्जिश भी वह करता था. कपिल को कंपनी से 8 हजार रुपए मिलते थे. 3 हजार रुपए वह अपने पिता को भेज देता था, बाकी रुपयों से अपना गुजारा कर लेता था.

शादी के बाद कपिल से उस के पिता ने कहा था कि वह पत्नी को साथ में दिल्ली ले जाए. पत्नी भी उस के साथ रहना चाहती थी. मगर कपिल पत्नी को साथ कैसे ले जा सकता था. जब वह कुंआरा था, तो 5 हजार रुपए में गुजारा कर लेता था. दोस्तों के साथ एक ही कमरे में रह लेता था.

पत्नी को साथ में रखने के लिए एक कमरा तो अलग से चाहिए ही था. रुपए भी कुछ ज्यादा चाहिए थे.

कपिल भी पत्नी से प्यार करता था. वह खुद उस के बिना नहीं रहना चाहता था. वह उसे अपने साथ रखना चाहता था, इसलिए पहले ज्यादा तनख्वाह वाली नौकरी ढूंढ़ने लगा. उस ने सोचा कि एक कमरा किराए पर ले कर पत्नी को बुला लेगा. वह कम से कम 12 हजार रुपए की नौकरी पाना चाहता था.

मनपसंद नौकरी की तलाश में दरदर भटकता हुआ कपिल एक दिन मोहिनी की दुकान में गया. उस की कपड़े की दुकान थी. उस समय मोहिनी दुकान में मौजूद थी. कपिल के बात करने के तरीके से मोहिनी प्रभावित हो गई. उस ने कपिल का मोबाइल नंबर यह कहते हुए ले लिया कि जगह खाली होते ही वह उसे बता देगी. कपिल को जरा भी विश्वास नहीं था कि मोहिनी की दुकान में उसे नौकरी मिलेगी.

हैरानी तो कपिल को तब हुई, जब 5-6 दिन बाद मोहिनी ने फोन किया और इंटरव्यू के लिए उस ने रात के 8 बजे अपनी दुकान पर बुलाया.

कपिल ठीक समय पर मोहिनी की दुकान में पहुंच गया. मोहिनी ने कहा कि वह दुकान बंद कर रही है, इसलिए घर चलो. उस का मकान बड़ा था. वहां कोई और नहीं था.

मकान का दरवाजा खुद मोहिनी ने खोला था. मोहिनी ने उसे बताया कि उस की पार्टटाइम नौकरानियां हैं.

कपिल से उस के घरपरिवार की जानकारी लेने के बाद मोहिनी ने कहा, ‘‘तुम्हारी काबिलीयत के मुताबिक कोई भी तुम्हें 10 हजार से ज्यादा की नौकरी नहीं देगा.

‘‘मैं तुम्हें 15 हजार रुपए हर महीने की नौकरी दे सकती हूं, अगर तुम मेरी बात मान लोगे.’’

‘‘कौन सी बात मैडम?’’

‘‘बात यह है कि तुम मेरे दिल में बस गए हो. एक रात के लिए तुम्हें अपना बनाना चाहती हूं.’’

कपिल को समझते देर नहीं लगी कि मोहिनी चरित्रहीन औरत है. कपिल पत्नी के साथ बेवफाई नहीं करना चाहता था. लेकिन सामने औरत को देख कर वह नौकरी के लालच में आ गया.

यह सोच कर उस ने मोहिनी की बात मान ली कि सिर्फ एक रात की बात है. उस के बाद वह पत्नी के साथ कभी बेवफाई नहीं करेगा. फिर वह मोहिनी के साथ बैडरूम में चला गया. अपने तन की आग बुझाने के बाद मोहिनी बाथरूम में चली गई.  अगले दिन सुबह कपिल चला गया. मोहिनी ने उसे अपनी दुकान में नौकरी दे दी.

एक हफ्ते तक सबकुछ ठीकठाक चला. उस के बाद एक दिन दुकान पर मोहिनी ने कपिल से कहा, ‘‘रात के 10 बजे मेरे घर आ जाना. मुझे कुछ जरूरी बात करनी है.’’ मोहिनी उस दिन भी घर पर अकेली थी. वह उसे सीधे बैडरूम में ले गई. अब कपिल को यह समझते देर नहीं लगी कि मोहिनी ने उसे अपने घर क्यों बुलाया है.

‘‘आप चाहें तो नौकरी से निकाल दीजिए. मगर अब मैं पत्नी के साथ विश्वासघात नहीं करूंगा,’’ कपिल ने अब अपना फैसला सुना दिया.

मोहिनी ने कपिल को तरहतर  से समझाने की कोशिश की, मगर वह नहीं माना.

कपिल जब वहां से जाने लगा, तो मोहिनी ने कहा, ‘‘मेरा कहा नहीं मानोगे, तो तुम्हें मेरा रेप करने के आरोप में जेल जाना होगा.’’

‘‘मैं पुलिस को सुबूत दूंगी कि तुम ने मेरा रेप किया है. तुम्हें मेरी बात पर यकीन नहीं है, तो खुद यह वीडियो देख लो.’’

मोहिनी ने कपिल को एक वीडियो दिखाया. उस में वह उस के साथ बिस्तर पर था. मोहिनी की चाल कपिल समझ गया. उस के जाल से निकलने का उस के पास कोई रास्ता नहीं था, इसलिए उस की बात उस ने मान ली. बात यह थी कि पहले दिन मोहिनी ने कपिल को साथ सोने के लिए जब कहा था, तो उस ने यह वीडियो तैयार कर लिया था.

मजबूर हो कर कपिल को मोहिनी की सारी बात मान लेनी पड़ी. दोस्तों का साथ छोड़ कर वह मोहिनी के मकान में असिस्टैंट बन कर रहने लगा. मोहिनी के कहने पर उस ने दोस्तों के साथसाथ पत्नी और अपने घर वालों से भी नाता तोड़ लिया. पिता को रुपए भेजना भी उस ने बंद कर दिया था.

मोहिनी ने उस से कहा था कि उस का सारा रुपया वह 2-3 साल बाद एकसाथ देगी, जिस से वह खुद का अपना कोई कारोबार कर सके. मोहिनी की बात मानने के सिवा कपिल के पास कोई रास्ता नहीं था. वैसे, उसे विश्वास था कि मोहिनी उस के साथ विश्वासघात नहीं करेगी.

बात यह थी कि मोहिनी के पति की मौत तकरीबन 5 साल पहले एक सड़क हादसे में हो गई थी. उस समय उस का बेटा आकाश 4 साल का था. पति की मौत के बाद मोहिनी कपड़े की दुकान की मालकिन हो गई.

उस के मातापिता ने उसे दूसरी शादी करने की सलाह दी थी, मगर उस ने दूसरी शादी करने से मना कर दिया. वह आकाश की परवरिश करते हुए अपनी जिंदगी गुजार देना चाहती थी.

पति की यादों के सहारे मोहिनी ने 2 साल तो गुजार दिए, उस के बाद अचानक उसे लगने लगा कि मर्द के बिना वह नहीं रह सकती है. जवानी की भूख जब उसे ज्यादा सताने लगी, तो एक दिन उस ने पड़ोस के एक लड़के से संबंध बना लिया. आकाश को उस की सचाई का पता न चल सके, इसलिए उस ने उसे होस्टल में दाखिल कर दिया. वह उसे घर पर सिर्फ छुट्टियों पर लाती थी.

2 साल तक वह लड़का मोहिनी के हुस्न से बंधा रहा. उस के बाद उस की शादी हो गई, तो उस ने संबंध तोड़ लिया. फिर मोहिनी ने कपिल को फांसा. कपिल उस के चंगुल से कभी न निकल सके, इसीलिए उस ने अपनी और उस की एक वीडियो क्लिप भी बना ली थी.

पुलिस का डर दिखा कर मोहिनी ने कपिल को अपने वश में तो कर ही लिया था. इस के अलावा उस ने उसे शराब की लत भी लगा दी थी.

कपिल को भी ऐशोआराम की यह जिंदगी अच्छी लगने लगी थी. इस तरह एक साल बीत गया. एक दिन मोहिनी ने कपिल से पूछा, ‘‘तुम्हें मेरे साथ कैसा लगता है?’’

‘‘बहुत अच्छा.’’

‘‘तुम सारी जिंदगी मेरे साथ रहोगे न?’’

‘‘यह भी कोई पूछने वाली बात है. अब तो मैं आप के बिना रह ही नहीं सकता.’’

‘‘जैसा मैं कहूंगी, वैसा करोगे न?’’

‘‘जरूर करूंगा.’’

‘‘बात यह है कि मेरे हुस्न पर एक अमीर शादीशुदा लड़का फिदा हो गया है. मैं उस से संबंध बना कर लाखों रुपए ऐंठना चाहती हूं.’’

कुछ सोचने के बाद कपिल ने कहा, ‘‘आप जो चाहें कर सकती हैं. मैं आप का कोई विरोध नहीं करूंगा. बस इतना खयाल रखिएगा कि कभी मुझे अपने से जुदा न कीजिएगा.’’

‘‘तुम्हें अपने से जुदा करने की तो मैं कभी सोच भी नहीं सकती, क्योंकि तुम मेरी धड़कन बन गए हो.

‘‘तुम मेरे बताए रास्ते पर चुपचाप चलते जाना. देखना, जल्दी ही हम दोनों के पास करोड़ों की जायदाद होगी. वह जायदाद सिर्फ मेरे नाम नहीं, तुम्हारे नाम भी होगी.’’

अगले दिन मोहिनी अपने साथ एक लड़के को ले कर घर पर आई. योजना के मुताबिक कपिल ने वीडियो बनाने की पूरी तैयारी कर ली थी. कपिल ने मोहिनी और उस लड़के का वीडियो बना लिया था.

उस वीडियो के बल पर मोहिनी ने उस लड़के से बहुत दिनों तक रुपए ऐंठे. उस के बाद मोहिनी ने दूसरे लड़के को फांसा, फिर तीसरे और…

एक दिन जब कपिल दुकान से निकल रहा था, तो पुलिस जिप्सी आई और उसे गिरफ्तार कर लिया. मोहिनी ने उस पर रेप का केस कर दिया था. कई महीनों तक वह जेल में रहा, पर मोहिनी ने दया कर के उस को छुड़वा दिया, पर यह वादा ले कर कि वह कभी पास नहीं आएगा.

कपिल के पास न अब पत्नी है, न पिता हैं, न मोहिनी जैसी औरत. वह मजदूरी कर के किसी तरह मौत का इंतजार कर रहा है.

Romantic Story : सौदामिनी – मृदुल और आदित्य के हाथों कैसे छली गई सौदामिनी

Romantic Story : आबू की घुमावदार सड़कों और हरीभरी वादियों के बीच बसे उस छोटे से रमणीक स्थल पर मूकबधिरों की सेवा करती सौदामिनी से यों भेंट हो जाएगी, इस की तो मैं ने कभी कल्पना भी नहीं की थी. गहरा नीला रंग उसे सब से अधिक प्रिय था. गहरे नीले रंग की साड़ी में उस ने सलीके से अपनी दुर्बल काया को छिपा रखा था. हाथ में पकड़े पैन को, रजिस्टर पर तेजी से दौड़ाती हुई मैं उस को अपलक निहारती रह गई.

माथे पर चौड़ी लाल बिंदी और मांग में रक्तिम सिंदूर की आभा इस बात की पुष्टि कर रही थी कि इतना संघर्षभरा जीवन जीने के बाद भी अपने अतीत से जुड़े उन चंद पृष्ठों को वह अपने वर्तमान से दूर रखने में शायद असमर्थ थी. मेज की दराज से उस ने पुस्तकें निकालीं तो मैं ने उस का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए पुकारा, ‘‘सौदामिनी, पहचाना नहीं क्या मुझे?’’

सौदामिनी चौंकी जरूर थी, पर मुझे पहचान लिया हो, ऐसा भी नहीं लगा था. वह अपनी जगह पर यों ही बैठी रही, न मुसकराई, न ही कुछ बोली. उस का शुद्ध व्यवहार मुझे अचरज में डाल गया था. सोचा, समय का अंतराल चाहे कितना ही क्यों न फैल जाए, इंसान का चेहरा, रूपरंग इतना तो नहीं बदल जाता कि उसे पहचाना ही न जा सके.

चश्मे को पोंछ कर उस ने फ्रेम को कुछ ऊपर खिसका दिया और पहचानने की कोशिश करने लगी. मैं ने फिर याद दिलाया, ‘‘सौदामिनी, मैं हूं, तनु, तुम्हारे अच्युत काका की बेटी.’’

‘‘अरे, तनु तुम? आओआओ, इतने बरसों बाद कैसे आना हुआ?’’ उस ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखते हुए पूछा.

फिर दराज बंद कर के उस ने चाबी का गुच्छा, पास ही खड़े चौकीदार को पकड़ाया और कमरा बंद करने का निर्देश दे कर बाहर निकल आई. कुछ ही कदमों के फासले पर हरीभरी झाडि़यों व लतिकाओं से घिरा हुआ उस का घर था. लौन का गेट खोल कर उस ने बाहर रखी चारपाई को, घुटने मोड़ कर सीधा किया और उस पर मोटी सी दरी बिछा कर बोली, ‘‘अमेरिका में रहते हुए तुम्हारी तो चारपाई पर बैठने की आदत छूट गई होगी? मुश्किल हो तो आरामकुरसी निकाल दूं?’’

‘‘कैसी बातें करती हो? यही सब तो वहां याद आता है…आम का अचार, उड़द की दाल की बडि़यां. सच पूछो तो यहां की मिट्टी की सोंधी महक ही तो बारबार मुझे खींच लाती है.’’

झुर्रीदार चेहरे पर हंसी प्रस्फुटित हुई थी, ‘‘अच्छा, यह तो बताओ, मेरा पता तुम्हें किस ने दिया?’’

‘‘अविनाश और मैं दोनों ही काम पर जाते हैं, इसलिए रोजरोज तो छुट्टी मिलती नहीं है. 5 वर्षों में एक बार आ पाते हैं. कुल मिला कर 3 सप्ताह की छुट्टी मिलती है, उन में 2 सप्ताह तो अम्मा, बाबूजी के पास रामपुर में ही बीत जाते हैं. बाकी एक सप्ताह किसी न किसी पहाड़ी जगह पर ही हम बिताते हैं. इस बार बच्चों ने आबू देखने की जिद की, तो यहीं चले आए.’’

कुछ देर बाद चारों ओर पसरे मौन को मैं ने ही बींधा, ‘‘दरअसल, शारीरिक रूप से अपंग बच्चों पर मैं एक किताब लिख रही हूं. किसी ने तुम्हारे आश्रम का नाम सुझाया, तो यहीं चली आई.’’

मैं ने उसे वस्तुस्थिति से अवगत कराया. वह चुपचाप गुमसुम सी बैठी रही, जैसे न ही कुछ पूछना चाह रही हो, न ही कुछ कहने की इच्छुक हो. वातावरण कुछ बोझिल सा हो चला था. दिसंबर की ठंडी धूप सामने वाले पेड़ पर जा अटकी थी. ठंडी हवाओं से कुछ सिहरन सी महसूस हुई तो मैं ने शौल ओढ़ ली.

‘‘यहां अकसर शाम को ठंड बढ़ जाती है. चलो, अंदर चल कर बैठते हैं. अब तो अंधेरा भी होने लगा है.’’

दरवाजा खोल कर उस ने मुझे अंदर बिठाया और खुद अलमारी में से कुछ निकालने लगी. पलस्तर उखड़े कमरे में 4 कुरसियां और मेजपोश से ढकी मेज के अलावा, कोने में एक पुराना पलंग था, जिस पर कांच सी पारदर्शी आंखों में तटस्थ सा भाव लिए एक छोटा सा बालक लेटा था. सौदामिनी को देख कर उस के चेहरे पर स्मित हास्य के चिह्न मुखर हो उठे थे. न जाने कौन सी भाषा में वह उस से प्रश्न करता जा रहा था और वह भी उसी की भाषा में उस की जिज्ञासा शांत करती जा रही थी.

मैं एकटक उसे निहारती रह गई. बालों में छिटके चांदी के तार, चेहरे पर पड़ आई झुर्रियों ने उसे असमय ही बुढ़ापे की ओर धकेल दिया था. दुग्ध धवल सा गौर वर्ण आबनूस की तरह काला हो चुका था. भराभरा सा गदराया शरीर संघर्ष करतेकरते दुर्बल काया का रूप ले चुका था.

‘‘यह मानव है, मेरा बेटा, बहुत प्यारा है न?’’ बच्चे के कपड़े बदलते हुए उस ने मुझ से कहा तो मैं चौंकी. कमरे में पसरी सड़ांध मेरे नथुनों में समाने लगी थी. बड़ी मुश्किल से मैं ने उबकाई को रोका. मेरी परेशानी माथे पर पड़ी सिलवटों से जाहिर हो उठी थी. वह शायद समझ गई थी. बोली, ‘‘वैसे तो हमेशा लघुशंका और दीर्घशंका के लिए संकेत देता है. आज ठंड कुछ ज्यादा है न, इसलिए…अच्छा, तुम बैठो, मैं चाय बना कर लाती हूं.’’

पर मेरा ध्यान कहीं और था, इस पसोपेश में थी कि यह बालक है कौन? जहां तक मुझे याद था, आदित्य के घर से जब वह लौटी थी तो निसंतान ही थी.

सौदामिनी चाय बनाने चली गई तो मैं पास ही पड़ी आरामकुरसी पर आंखें मूंद कर लेट गई. हवा के झोंकों से यादों के किवाड़ धीरेधीरे खुलने लगे तो मन दद्दा की हवेली में भटकने लगा था…

बाबूजी के चचेरे भाई थे, दद्दा. लोग उन्हें राय साहब भवानी प्रसाद के नाम से पहचानते थे. शहर के बीचोंबीच संगमरमर से बनी उन की कोठी की शान निराली थी.

दद्दा ने बड़ा ही निराला स्वभाव पाया, तबीयत शौकीन और अंदाज रईसी वाले. हर काम अपने ही ढंग से करते, न किसी के काम में हस्तक्षेप करते, न ही किसी की टीकाटिप्पणी बरदाश्त करते.

जन्म लेते ही सौदामिनी के सिर से मां का साया उठ गया था. पिता करोड़ों की जायदाद के इकलौते वारिस थे, पर प्यार और अपनत्व का आदानप्रदान करने में गजब के कंजूस. भावनाएं और संवेदनाएं तो उन्हें छू तक नहीं पाई थीं. हर शाम शहर के रईस लोगों के बीच शतरंज की बाजी खेलने वाले दद्दा ने अपनी बेटी के लालनपालन में कहीं कोताही की हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता. हर समय उस पर कड़ी निगरानी रखते थे.

सौदामिनी जरा सा सिसकती, तो दद्दा चिल्लाते. उन की चीखपुकार सुन कर सेविकाएं दौड़ी चली आतीं और बिटिया बिना दुलारेपुचकारे सहम कर यों ही चुप हो जाती. ठोकर खा कर गिरती, तो दद्दा एक ही गति में निरंतर चिंघाड़ते रहते. सेविकाओं की पेशी होती, कोई इधर दौड़ती कोई उधर भागती, और कोई खिलौनों की अलमारी के सामने जा खड़ी हो जाती पर सौदामिनी तो तब तक पिता का रौद्र रूप देख कर ही दहशत के मारे चुप हो चुकी होती थी.

स्कूल या कालेज सौदामिनी कभी गई ही नहीं. इस का कारण था, राय साहब की रूढि़वादी सोच. घर से बाहर बेटियों को निकालने के वे सख्त विरोधी थे. वे सोचते, लड़कों के संग बतिया कर उन की बिटिया कहीं भाग गई तो? पास ही एक मिशनरी स्कूल था, वहीं की एक ईसाई टीचर को उन्होंने सौदामिनी की शिक्षा के लिए नियुक्त कर दिया था. ऐसे में उस की शिक्षा का दायरा हिंदी, अंगरेजी की वर्णमाला तक ही सिमट कर रह गया था.

बेटी के प्रति अपनी आचारसंहिता में नित नए विधानों की रचना करने वाले दद्दा. उस के हर काम, हर गतिविधि पर कड़ी निगरानी रखने लगे.

सौदामिनी हर समय व्याकुल रहती जीवन की उन सचाइयों से परिचित होने के लिए, जिन की चर्चा अकसर वह अपनी सहेलियों से सुन लिया करती थी.

कलकत्ता का राजभोग और मथुरा के पेड़े खाते समय उस का मन कच्चे अमरूद खाने के लिए तरसता. ऐसे में दोपहरी में हम दोनों दद्दा की नजरें चुरा कर पिछवाड़े की बगिया में जा पहुंचतीं. पेड़ पर चढ़ कर कच्चे अमरूद ढूंढ़ने का आनंद वैसा ही था जैसे किसी गोताखोर के लिए मोती ढूंढ़ने का.

एक दिन यह खबर, न जाने कैसे दद्दा के दीवानखाने जा पहुंची. और तब सौदामिनी की पेशी हुई.

पिता का तिरस्कारपूर्ण स्वर सुन कर बालहृदय छलनी हो गया. सहम कर अपना मुंह अपने नन्हेनन्हे हाथों से छिपा कर वह देर तक रोती रही.

सौदामिनी हर समय सहमीसिमटी रहती थी, न हंसती न बोलती. पिंजरे के तार चाहे सोने के हों या लोहे के, कैद तो आखिर कैद ही है.

धीरेधीरे उस का मनोबल गिरता चला गया. हाथपांव पसीने में भीगे रहते, जबान लड़खड़ाने लगी. रात को सोती तो चीखनेचिल्लाने लगती. कई हकीम, डाक्टर और वैद्यों का इलाज करवाया गया, पर सौदामिनी की दशा दिनपरदिन बिगड़ती ही चली गई.

एक दिन दद्दा के मुनीम अपने अनुज, डाक्टर मृदुल को सौदामिनी के इलाज के लिए ले आए. अचानक अपने सामने किसी नए डाक्टर को देख कर राय साहब असमंजस में पड़ गए. एक तो मुनीम का भाई, दूसरा अनुभवहीन. सोचा, जहां बड़ेबड़े डाक्टर कुछ नहीं कर पाए, यह नौसिखिया क्या कर लेगा? बस, यही सोच कर दद्दा चुप्पी साधे रहे.

पर सौदामिनी की ऐसी दशा अम्मा, बाबूजी से सहन नहीं हो पा रही थी. पहली बार अम्मा ने तब दद्दा के सामने मुंह खोला था और न जाने क्या सोच कर वे मान भी गए.

मृदुल की दवा से सौदामिनी की दशा दिनपरदिन सुधरने लगी. मृदुल जानते थे, उस का रोग शारीरिक कम, मानसिक अधिक है. दवा से ज्यादा उसे प्यार और अपनत्व की जरूरत है. उधर सौदामिनी को स्वास्थ्यलाभ मिला, इधर राय साहब के विश्वास की जड़ें मृदुल पर जमने लगीं. वह तेजस्वी व्यक्तित्व और विलक्षण बुद्धि का स्वामी था, सदा अपने आकर्षण में सब को बांधे रखता. घंटों सौदामिनी के पास बैठा रहता.

मृदुल की संवेदनाओं ने न जाने कब अपमान, उपेक्षा और तिरस्कार के वज्र खंड तले सहमीसिमटी सौदामिनी के हृदय की बसंती बयार को सुगंधित झोंके के समान छू कर उस के दिल में प्रेम का बीज अंकुरित कर दिया.

सौदामिनी मृदुल के साहचर्य के लिए हर समय तरसती. उधर मृदुल भी सौदामिनी के ठहाकों, मुसकराहटों और उलझनों से अनजाने ही जुड़ते चले गए.

शुरूशुरू में राय साहब को इस प्रेमप्रसंग की जरा भी जानकारी नहीं मिली. प्यार, स्नेह, आसक्ति जैसी नैसर्गिक भावनाएं उम्र के किसी भी सोपान पर, जीवन के किसी भी मोड़ पर स्वाभाविक रूप से जन्म ले सकती हैं. उन के नियम, विधान के संसार में ऐसा सोचना भी प्रतिबंधित सा था.

ऊंची मानमर्यादा और प्रतिष्ठा के स्वामी राय साहब लाखों का दहेज देने की सामर्थ्य रखते थे. मुनीम के भाई के साथ अपनी इकलौती बेटी को ब्याह कर समाज में अपनी प्रतिष्ठा पर उन्हें कालिख थोड़े ही पुतवानी थी.

मैं उस प्रेमकहानी को कभी नहीं भूली, जिस की एकएक ईंट, राय साहब ने अपने छल से गिरवा दी थी और रह गया था, एक खंडहर.

कुछ दिनों के लिए सौदामिनी को दद्दा ने उस के ननिहाल भिजवा दिया था. नाना की तबीयत बेहद खराब थी, इसलिए उन की सेवा के लिए कोई तो चाहिए ही था. पिता के बारे में सौदामिनी के मन में कोई दुर्भावना नहीं उपजी और न ही कोई राय बनी. जब तक लौटी, मुनीम और उन का अनुज पूरे दृश्यपटल से ओझल हो चुके थे. मृदुल यों बिना बताए क्यों चले गए, कहां चले गए? इस की जरा भी भनक न सौदामिनी को मिली, न ही हवेली वालों को.

छल, प्रवंचनाओं के छद्म भेदों से दूर सौदामिनी का मन मैला करना कोई बहुत कठिन काम नहीं था. जीवन के गूढ़ रहस्यों से अनभिज्ञ भोलीभाली बेटी के सामने दद्दा ने मृदुल के चरित्र का ऐसा घिनौना चित्रण प्रस्तुत किया कि उस का मन मृदुल के प्रति वितृष्णा से भर उठा.

प्रेम में चोट खाए हृदय का दुख समय के साथ ही मिटता जाएगा, यह सभी जानते थे. दद्दा भी जानते थे कि वक्त बड़े से बड़े जख्म भर देता है. समय बीतता गया. सौदामिनी के रिसते घाव भरने लगे.

विश्वास, अविश्वास के चक्रवात में उलझी सौदामिनी अब एक बार फिर प्रेम का घरौंदा बनाने के लिए सुनहरे स्वप्न संजोने लगी थी. इस घर से भावनात्मक रूप से वह जुड़ी ही कब थी, जो यहां मन रमता? करोड़पति पिता ने करोड़पति परिवारों की खोज शुरू कर दी थी. रिश्तों की कमी न थी. पर दद्दा को हर रिश्ते में कोई न कोई खामी नजर आती ही थी.

आखिर एक दिन बड़ी ही जद्दोजेहद के बाद उन्हें दीवान दुर्गा प्रसाद का इकलौता बेटा आदित्य अपनी सौदामिनी के लिए उपयुक्त लगा. आदित्य डाक्टर था, व्यक्तित्व का ही नहीं, कृतित्व का भी धनी था.

अतीत के सारे दुखद प्रसंगों को भूल कर सौदामिनी खुद को कल्पनाओं के मोहक संसार में पिरोने लगी थी.

दोनों ही पक्षों ने दिल खोल कर खर्चा किया था. दीवान साहब की प्रतिष्ठा का अंदाजा बरात में आए लोगों की भीड़ देख कर लगाया जा सकता था. जीवनपर्यंत सुखदुख का साथी बने रहने का संकल्प ले कर सौदामिनी ने ससुराल की देहरी पर कदम रखा था.

रात्रि की नीरवता चारों ओर पसरी हुई थी. सभी मेहमान अपनेअपने कमरों में सो चुके थे. कमरे के बाहर उस की सास तारिणी सामान को सुव्यविस्थत करने में जुटी हुई थीं. रात्रि का तीसरा पहर भी ढलने को था. लेकिन आदित्य का दूरदूर तक कहीं पता न था.

सुबह की पहली किरण के साथ आदित्य कमरे में लौटे तो सौदामिनी और भी सिमट गई.

वे बिना कोई भूमिका बांधे पास ही पड़ी कुरसी पर बैठ गए और बोले, ‘सौदामिनी, हमारे समाज में मातापिता बेटे के लिए पत्नी नहीं, अपने लिए कुलवधू ढूंढ़ते हैं, गृहलक्ष्मी ढूंढ़ते हैं,’ आदित्य के स्वर में ऐसा भाव था, जिस ने सौदामिनी के मन को छू लिया.

‘मैं किसी और को प्यार करता हूं. सूजी नाम है उस का…मेरे ही अस्पताल में नर्स है. तुम्हें बुरा तो लगेगा, पर मैं सच कह रहा हूं. मैं ने तो तुम्हें एक नजर देखा भी नहीं था. कई बार मैं ने इस विवाह का विरोध किया, पर मां न मानीं. सच पूछो तो उन्होंने भी तुम्हारी धनसंपदा को ही पसंद किया है, तुम्हें नहीं,’ इतना कह कर आदित्य दूसरे कमरे में चले गए थे और छोड़ गए थे सूनापन.

कल्पना का महल खंडित हो चुका था. सौदामिनी अपनी जगह से हिली, न डुली. उसे लगा, वह जमीन में धंसती चली जा रही है. ऐसे समय में कोई नवविवाहिता कह भी क्या सकती है. बस, आदित्य के अगले वाक्य की प्रतीक्षा करती रही. वे लौट आए थे, ‘इस घर में तुम्हें सारे अधिकार मिलेंगे, पर मेरे हृदय पर अधिकार सूजी का ही होगा. उसे भुलाना मेरे वश में नहीं,’ आदित्य की आंखों में भावुकता से अश्रुकण छलक आए.

सौदामिनी सोच रही थी, अगर उस के दिल पर उस का अधिकार नहीं तो इस घर में रह कर क्या करेगी? किलेनुमा उस हवेली में वह खुद को कैदी ही समझ रही थी.

कुछ ही देर में आदित्य की मां थाल में नए वस्त्र और आभूषण ले कर आईं, जिन्हें अपने शरीर पर धारण कर के उसे आगंतुकों से शुभकामनाएं लेनी थीं. सौदामिनी ने मां का लाड़प्यार कभी देखा नहीं था, सुना जरूर था कि मां का हृदय विशाल होता है, एक वटवृक्ष की तरह, जिस की छाया तले न जाने कितने पौधे पुष्पित, पल्लवित होते हैं. बस, यही सोच कर उन का हाथ पकड़ कर सौदामिनी सिसक उठी, ‘मांजी, सबकुछ जानते हुए भी, आप ने मेरा जीवन बरबाद क्यों किया? आप को उन की प्रेमिका से ही उन का विवाह करवाना चाहिए था.’

तारिणी ने अपना हाथ छुड़ाते हुए रुखाई से कहा, ‘बहू, रिश्ते जोड़ते समय खानदान, जात, वर्ग, परंपरा जैसी कई बातों को ध्यान में रखना पड़ता है.’

कांपते स्वर में उस ने इतना ही कहा, ‘चाहे इन सब बातों के लिए किसी दूसरी लड़की के जीवन की सारी खुशियां ही दांव पर क्यों न लग जाएं?’

‘ऐसा कुछ नहीं होता, बहू. पत्नी में सामर्थ्य हो तो साम, दाम, दंड, भेद जैसा कोई भी अस्त्र प्रयोग कर के अपने पति का मन जीत सकती है.’

सास ने कहा, ‘देखो सौदामिनी, तुम इस घर की बहू हो. इस घर की मानमर्यादा तुम्हें ही बना कर रखनी है. समाज में हमारा नाम है, इज्जत है. आदित्य और सूजी के संबंधों पर परदा पड़ा रहे, इसी में तुम्हारी भलाई है और हम सब की भी. किसी को इस विषय में कुछ भी पता नहीं चलना चाहिए. तुम्हारे ससुर दीवान साहब को भी पता नहीं चलना चाहिए. वे दिल के मरीज हैं. उन का ध्यान रख कर ही मैं ने तुम्हें इस घर की बहू बनाया है, वरना सूजी ही आती इस घर में. अगर उन्हें कुछ हो गया तो इस का उत्तरदायित्व तुम पर ही होगा.’

सभी का अपनाअपना मत था. कोई मजबूरी जतला रहा था, कोई धमकी दे रहा था. सौदामिनी को समाज के कठघरे में खड़ा करने वाले उस के तथाकथित संबंधी, उस की भावनाओं से सर्वथा अनभिज्ञ थे. राय साहब के साम्राज्य की इकलौती राजकुमारी का अस्तित्व ससुराल वालों ने कितनी बेरहमी से नकार दिया था.

नववधू अपमान का घूंट पी कर रह गई थी. न जाने क्यों, उस दिन मृदुल बहुत याद आए थे, ‘क्यों छोड़ कर चले गए उसे यों मझधार में? कम से कम एक बार मिल तो लेते, कुछ कहनेसुनने का मौका तो दिया होता.’

दीवान साहब नेक इंसान थे. एक बार सौदामिनी के जी में आया कि वह उन से सबकुछ कह दे, पर सहज नहीं लगा था. वह होंठ सीए रही थी.

कोई एक बरस बाद राय साहब ने अपनी लाड़ली बेटी को पीहर बुलवा भेजा था. रोजरोज बेटी को मायके बुलाने के पक्ष में वे कतई नहीं थे. आदित्य के साथ सजीधजी सौदामिनी मायके आई तो राय साहब कृतकृत्य हो उठे. रुके नहीं थे आदित्य, बस औपचारिकता निभाई और चले गए. राय साहब ने भी कुछ पूछने की जरूरत नहीं समझी थी. धनदौलत की तुला पर बेटी की खुशियों को तोलने वाले दद्दा ने उस के अंतस में झांकने का प्रयत्न ही कब किया था? जितने दिन सौदामिनी पीहर में रही, अम्मा, बाबूजी रोज उसे बुलवा भेजते थे. वह कभी कुछ नहीं कहती थी. बस, अपने खयालों में खोई रहती. आखिर एक दिन अम्मा ने बहुत कुरेदा तो वह पानी से भरे पात्र सी छलक उठी, ‘मेरी इच्छाअनिच्छा, भावनाओं, संवेदनाओं को जाने बिना, क्या मेरे जीवन में ठुकराया जाना ही लिखा है, चाची? एक ने ठुकराया तो दूसरे के आंगन में जा पहुंची. अब आदित्य ने ठुकराया है तो कहां जाऊं?’

अम्मा और बाबूजी ने विचारविमर्श कर के एक बार दद्दा को बेटी के जीवन का सही चित्र दिखलाना चाहा था. वस्तुस्थिति से पूरी तरह परिचित होने के बाद भी दद्दा न चौंके, न ही परेशान हुए. वैसे भी ब्याहता बिटिया को घर बिठा कर उन्हें समाज में अपनी बनीबनाई प्रतिष्ठा पर कालिख थोड़े ही पुतवानी थी. उन्होंने सौदामिनी को बहुत ही हलकेफुलके अंदाज में समझाया, ‘पुरुष तो स्वभाव से ही चंचल प्रकृति के होते हैं. हमारे जमाने में लोग मुजरों में जाया करते थे. अकसर रातें भी वहीं बिताते थे और घर की औरत को कानोंकान खबर नहीं होती थी. शुक्र कर बेटी, जो आदित्य ने अपने संबंध का सही चित्रण तेरे सामने किया है. अब यह तुझ पर निर्भर करता है कि तू किस तरह से उस को अपने पास लौटा कर लाती है.’

पिता द्वारा आदित्य का पक्ष लिया जाना उसे बुरा नहीं लगा था, बल्कि इस बात की तसल्ली दे गया था कि जैसे भी हो, उसे अपनी ससुराल में ही समझौता करना है.

समय धीरेधीरे सरकने लगा था. सौदामिनी को समय के साथ सबकुछ सहने की आदत सी पड़ने लगी थी. भीतर उठते विद्रोह का स्वर, कितना ही बवंडर मचाता, संस्कारों की मुहर उस के मौन को तोड़ने में बाधक सिद्ध होती.

इसी तरह 2 वर्ष बीत गए. सौदामिनी का हर संभव प्रयत्न व्यर्थ ही गया. आदित्य उस के पास लौट कर नहीं आए. स्नेह के पात्र की तरह आदमी घृणा के पात्र को एक नजर देखता अवश्य है, पर आदित्य के लिए उस की पत्नी मात्र एक मोम की गुडि़या थी, संवेदनाओं से कोसों दूर, हाड़मांस का एक पुतलाभर.

कभीकभी जीवन में इंसान को जब कोई विकल्प सामने नजर नहीं आता तो उस का सब्र सारी सीमाएं तोड़ कर ज्वालामुखी के लावे के समान बह निकलता है. ऐसा ही एक दिन सौदामिनी के साथ भी हुआ था. घर से बाहर जा रहे आदित्य का मार्ग रोक कर वह खड़ी हुई, ‘किस कुसूर की सजा आप मुझे दे रहे हैं? आखिर कब तक यों ही मुंह मोड़ कर मुझ से दूर भागते रहेंगे?’

‘सजा कुसूरवार को दी जाती है सौदामिनी, तुम ने तो कुसूर किया ही नहीं, तो फिर मैं तुम्हें कैसे सजा दे सकता हूं? मैं ने सुहागरात को ही तुम से स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि हमारा विवाह मात्र एक समझौता है. तुम चाहो तो यहां रहो, न चाहो तो कहीं भी जा सकती हो. मेरी ओर से तुम पूर्णरूप से स्वतंत्र हो.’

उस रात आदित्य का स्वर धीमा था, पर इतना धीमा भी नहीं था कि हवेली की दीवारों को न भेद सके. एक कमरे से दूसरे कमरे का फासला ही कितना था. दीवान साहब के कानों में आदित्य का एकएक शब्द पिघले सीसे के समान उतरता गया. अपना ही खून इतना बेगैरत हो सकता है? क्या उन की बहू परित्यक्ता का सा जीवन बिताती आई है? इस की तो उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी.

उन्होंने पत्नी को बुला कर कई प्रश्न किए, पर कोई भी उत्तर संतोषजनक नहीं लगा था. तारिणी पूर्णरूप से बेटे की ही पक्षधर बनी रही थीं. दीवान साहब ने सौदामिनी को पीहर लौट जाने का सुझाव दिया था. वह वहां भी नहीं गई.

तब जीवन की हर समस्या की ओर व्यावहारिक दृष्टिकोण रखने वाले दीवान साहब ने बहू को आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया. दबी, सहमी सौदामिनी के लिए यह प्रस्ताव अप्रत्याशित सा ही था. बस, यही सोचसोच कर कांपती रही थी कि बरसों पहले छोड़ी गई किताब और कलम पकड़ने में कहीं हाथ कांपे तो क्या करेगी?

पर दृढ़निश्चयी दीवान साहब के आगे उस की एक भी न चली. उधर तारिणी ने सुना, तो घर में हड़कंप मच गया. पूरी हवेली की व्यवस्था ही चरमरा कर रह गई थी. इतने बरसों बाद बहू को पोथी का ज्ञान करवाना क्या उचित था? पर पति के सामने उन की आवाज घुट कर रह गई.

सौदामिनी की मेहनत, लगन और निष्ठा रंग लाई. उस का मनोबल बढ़ा, व्यक्तित्व में निखार आया. अब लोग उस की तरफ खिंचे चले आते थे, आदित्य का स्थान अब गौण हो चला था.

पत्नी के इस परिवर्तन पर आदित्य परेशान हो उठा था. वैसे भी पुरुष, नारी को अपने ऊपर या अपने समकक्ष कब देखना चाहता है. यदि चाहेअनचाहे पत्नी या उस के संबंधियों के प्रयास से ऐसा हो भी जाता है तो पुरुष की हीनभावना उसे उग्र बना देती है. ऐसा ही यहां भी हुआ था जो थोड़ाबहुत मान पति के अधीनस्थ हो कर उसे मिल रहा था, वह भी छिनता चला गया. पर सौदामिनी रुकी नहीं, आगे ही बढ़ती गई.

अमेरिका में उस के पत्र मुझे नियमित रूप से मिलते रहे थे. मन में राहत सी महसूस होती.

उधर दीवान साहब की दशा दिनपरदिन गिरती चली गई. बहू का दुख घुन के समान उन के शरीर को खाता जा रहा था. हर समय वे खुद को सौदामिनी का दोषी समझते. उस का जीवन उन्हें मझधार में फंसी हुई उस नाव के समान लगता, जिस का कोई किनारा ही न हो. भारीभरकम शरीर जर्जरावस्था में पहुंचता गया, जबान तालू से चिपकती गई. एक दिन देखते ही देखते उन के प्राणपखेरू उड़ गए और सौदामिनी अकेली रह गई.

उस दिन उसे लगा, वह रिक्त हो गई है. ऐसा कोई था भी तो नहीं, जो उस के दुख को समझ पाता. जिस कंधे का सहारा ले कर वह आंसुओं के चंद कतरे बहा सकती थी, वह भी तो स्पंदनहीन पड़ा था.

पिता की मृत्यु के बाद आदित्य पूर्णरूप से आजाद हो गया था. तेरहवीं की रस्म के बाद ही सूजी को घर में ला कर वह मुक्ति पर्व मनाने लगा था. सूजी उस के दिल की स्वामिनी तो थी ही, पूरे घर की स्वामिनी भी बन बैठी. घर की पूर्ण व्यवस्था पर उस का ही वर्चस्व था.

संवेदनशील सौदामिनी विस्मित हो पति का रवैया निहारती रह गई.

आदित्य का व्यवहार धीरेधीरे उसे परेशान नहीं, संतुलित करता गया. उस में निर्णय लेने की शक्ति आ गई थी.

अपने आखिरी पत्र में उस ने मुझे लिखा था…

‘सारे रस्मोंरिवाजों के बंधनों को तोड़ कर एक दिन मैं आजाद हो जाऊंगी. नासूर बन गए जुड़ाव की लहूलुहान पीड़ा से तो मुक्ति का सुख ज्यादा आनंददायक होगा. लगता है, वह समय आ गया है. अगर जिंदा रही तो जरूर मिलूंगी.

तुम्हारी सौदामिनी.’

उस के बाद वह कहां गई, मैं नहीं जानती थी. दद्दा को भी मैं ने कई पत्र लिखे थे, पर उन्होंने तो शायद दीवान साहब की मृत्यु के बाद बेटी की सुध ही नहीं ली थी. बेटी को अपनी चौखट से विदा कर के ही उन के कर्तव्य की इतिश्री हो गई थी.

सामने मेज पर रखी चाय बर्फ के समान ठंडी हो चुकी थी. गुमसुम सी बैठी सौदामिनी से मैं ने प्रश्न किया, ‘‘दीवान साहब के घर से निकल कर तुम कहां गईं, कहां रहीं?’’

सौदामिनी गंभीर हो उठी थी. उस के माथे पर सिलवटें सी पड़ गईं. ऐसा लगा, उस के सीने में जो अपमान जमा है, एक बार फिर पिघलने लगा है.

‘‘तनु, अतीत को कुरेद कर, वर्तमान को गंधाने से क्या लाभ? उन धुंधली यादों को अपने जीवन की पुस्तक से मैं फाड़ चुकी हूं.’’

‘‘जानती हूं, लेकिन फिर भी, जो हमारे अपने होते हैं और जिन्हें हम बेहद प्यार करते हैं, उन से कुछ पूछने का हक तो होता है न हमें. क्या यह अधिकार भी मुझे नहीं दोगी?’’

आत्मीयता के चंद शब्द सुन कर उस की आंखें भीग गईं. अवरुद्ध स्वर, कितनी मुश्किल से कंठ से बाहर निकला होगा, इस का अंदाजा मैं ने लगा लिया था.

‘‘जिस समय आदित्य की चौखट लांघ कर बाहर निकली थी, विश्वासअविश्वास के चक्रवात में उलझी मैं ऐसे दोराहे पर खड़ी थी, जहां से एक सीधीसपाट सड़क मायके की देहरी पर खत्म होती थी. पर वहां कौन था मेरा? सो, लौटने का सवाल ही नहीं उठता था.

‘‘आत्महत्या करने का प्रयास भी कई बार किया था, पर नाकाम रही थी. अगर जीवन के प्रति जिजीविषा बनी हुई हो तो मृत्युवरण भी कैसे हो सकता है? इतने बरसों बाद अपनी सूनी आंखों में मोहभंग का इतिहास समेटे जब मैं घर से निकली थी तो मेरे पास कुछ भी नहीं था, सिवा सोने की 4 चूडि़यों के. उन्हें मैं ने कब सुनार के पास बेचा, और कब ट्रेन में चढ़ कर यहां माउंट आबू पहुंच गई, याद ही नहीं. यहांवहां भटकती रही.

‘‘ऐसी ही एक शाम मैं गश खा कर गिर पड़ी. पर जब आंख खुली तो अपने सामने श्वेत वस्त्रधारी, एक महिला को खड़े पाया. उस के चेहरे पर पांडित्य के लक्षण थे. उस के हाथ में ढेर सारी दवाइयां थीं. मिसरी पगे स्वर में उस ने पूछा, ‘कहां जाना है, बहन? चलो, मैं तुम्हें छोड़ आती हूं.’

‘‘किसी अजनबी के सामने अपना परिचय देने में डर लग रहा था. वैसे भी अपने गंतव्य के विषय में जब खुद मुझे ही कुछ नहीं मालूम था तो उसे क्या बताती. उस के चेहरे पर ममता और दया के भाव परिलक्षित हो उठे थे. मेरे आंसुओं को वह धीरेधीरे पोंछती रही. उस ने मुझे अपने साथ चलने को कहा और यहां इस आश्रम में ले आई.

‘‘कई दिनों से बंद पड़े एक कमरे को उस ने भली प्रकार से साफ करवाया, रोजमर्रा की जरूरी चीजों को मेरे लिए जुटा कर वह मेरे पास ही बैठ गई. कुछ देर बाद उस ने मेरे अतीत को फिर से कुरेदा तो मैं ने हिचकियों के बीच सचाई उसे बता दी.

‘‘उस का नाम श्यामली था. एक दिन वह बोली, ‘यों कब तक अंधेरे में मुंह छिपा कर बैठी रहोगी, सौदामिनी. जब जीवन का हर द्वार बंद हो जाए तो जी कर भी क्या करेगा इंसान?

‘‘‘जीवन एक अमूल्य निधि है, इसे गंवाना कहां की अक्लमंदी है? केवल भावनाओं और संवेदनाओं के सहारे जीवन नहीं जीया जा सकता. जीविकोपार्जन के लिए कुछ न कुछ साधन जुटाने पड़ते हैं.’

‘‘श्यामली इसी आश्रम की संचालिका थी. बरसों पहले उस ने और उस के डाक्टर पति ने इस आश्रम को स्थापित किया था. वह मुझे इसी आश्रम में बने एक स्कूल में ले गई. इधरउधर छिटकी, बिखरी कलियों को समेट कर एक कक्षा में बिठा कर पढ़ाना शुरू किया तो लगा, पूर्ण मातृत्व को प्राप्त कर लिया है. घर के बाहर कुछ सब्जियां वगैरा उगा ली थीं. समय भी बीत जाता, खर्च में भी बचत हो जाती.

‘‘दिन तो अच्छा बीत जाता था. शाम को अकेली बैठती तो गहरी उदासी के बादल चारों ओर घिर आते थे. श्यामली अकसर मुझे अपने घर बुलाती, पर कहीं जाने का मन ही नहीं करता था.

‘‘कई आघातों के बाद जीवन ने एक स्वाभाविक गति पकड़ ली थी. सहज होने में कितना भी समय क्यों न लगा हो, जीवन मंथर गति से चलने लगा था. अतीत की यादें परछाईं की तरह मिटने लगी थीं. उसी वातावरण में रमती गई, तो जीवन रास आने लगा.

‘‘इधर एक हफ्ते से श्यामली मुझ से मिली नहीं थी. मैं अचरज में थी कि वह इतने दिनों तक अनुपस्थित कैसे रह सकती है. कभी उस के घर गई नहीं थी. इसलिए कदम उठ ही नहीं रहे थे. पर जब मन न माना तो मैं उसी ओर चल दी.

‘‘दरवाजा श्यामली ने ही खोला था. मुझे देख कर उस के चेहरे पर स्मित हास्य के चिह्न मुखर हो उठे थे. उसे देख कर मुझे अपने अंदर कुछ सरकता सा महसूस हुआ. पहले से वह बेहद कमजोर लग रही थी.

‘‘उस ने आगे बढ़ कर मेरे कंधे पर हाथ रखा और अंदर ले गई. पालने में एक बालक लेटा हुआ था. मानसिक रूप से उस का पूर्ण विकास अवरुद्ध हो गया है, ऐसा मुझे महसूस हुआ था. पूरे घर में शांति थी.

‘‘‘पिछले कुछ दिनों से मेरे पति की तबीयत अचानक खराब हो गई. आजकल रोज अस्पताल जाना पड़ता है,’ उस ने बताया.

‘‘क्या कहते हैं, डाक्टर?’

‘‘‘उन्हें कैंसर है,’ उस का स्वर धीमा था.

‘‘कुछ देर बाद उस के पति के कराहने का स्वर सुनाई दिया, तो वह अंदर चली गई. साथ ही, मुझे भी अपने पीछे आने को कहा.

‘‘दुर्बल शरीर, खिचड़ी से बेतरतीब बाल, लंबी दाढ़ी…पर मैं उसे एक पल में पहचान गई थी. सामने मृदुल मृत्युशय्या पर लेटा था. सैलाब के क्षणों में जैसे समूची धरती उलटपलट जाती है, वैसे ही मेरे अंतस में भयावह हाहाकार जाग उठा था. वक्त ने कैसा क्रूर मजाक किया था, मेरे साथ? अतीत के जिस प्रसंग को मैं भूल चुकी थी, वर्तमान बन कर मेरे सामने खड़ा था. वितृष्णा, विरक्ति, घृणा जैसे भाव मेरे चेहरे पर मुखरित हो उठे थे. उस की पीड़ा देख कर मेरे चेहरे पर संतोष का भाव उभर आया.

‘‘‘अगर तुम यहां मृदुल के पास कुछ समय बैठो, तो मैं आश्रम का निरीक्षण कर आऊं?’ श्यामली ने मुझे वर्तमान में धकेला था.

‘‘‘हांहां, तुम निश्चिन्त हो कर जाओ, मैं यहीं पर हूं.’

‘‘श्यामली के जाने के बाद वातावरण असहज हो उठा था. मैं अपनेआप में सिमटती जा रही थी. मृदुल की मुंदी हुई आंखें हौलेहौले खुलने लगी थीं. उस के हावभाव में बेहद ठंडापन था. झील जैसी शांत शीतल छाया बिखेरती निगाहें उठा कर उस ने मुझे देखा और अपने पास रखी कुरसी पर बैठने को कहा. फिर हौले से बोला, ‘तुम यहां, इस शहर में?’

‘‘‘और अगर यही प्रश्न मैं तुम से करूं तो? मृदुल, क्या सपनों के राजकुमार यों ही जिंदगी में आते हैं? अगर श्यामली से ही ब्याह करना था तो मुझ से प्रेम ही क्यों किया था? मुझे तो अकेले जीने की आदत थी.’ रुलाई को बमुश्किल संयत करते हुए मैं ने पूछा तो उस ने अपनी कांपती मुट्ठी में मेरी दोनों हथेलियों को कस कर पकड़ लिया.

‘‘उस के स्पर्श में दया, ममता और अपनत्व के भाव थे. वह हौले से बोला, ‘क्या दोषारोपण के सारे अधिकार तुम्हारे ही पास हैं? मुझे लगता है तुम ने उतना ही सुना और समझा है, जितना शायद तुम ने सुनना और समझना चाहा है. अपने इर्दगिर्द की सारी सीमाएं तोड़ दो और फिर देखो, क्या कोई फरेब दिखता है, तुम्हें?’

‘‘मैं उसे एकटक निहारती रही. अपना सिर पीछे दीवार से टिका कर उस ने आंखें बंद कर लीं. उन बंद आंखों के पीछे बहुतकुछ था, जो अनकहा था.

‘‘आखिर मृदुल ने खुद ही मौन बींधा, ‘तुम्हारे पिता राय साहब बड़े आदमी थे. वहां का रुख तक वे अपने अनुसार मोड़ने में सिद्धहस्त थे. यह मुझ से ज्यादा शायद तुम समझती होगी. जिन दिनों मैं तुम्हारे पास आया करता था, मेरे भैया की तबीयत अचानक खराब हो गई थी. डाक्टर ने दिल का औपरेशन करने का सुझाव दिया था. देखा जाए तो भारत में न डाक्टरों की कमी है, न ही अस्पतालों की, पर तुम्हारे पिता ने उस समय मुझे भैया को ले कर अमेरिका में औपरेशन करने का सुझाव दिया था.

‘‘‘तुम तो जानती हो, मेरी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, पर राय साहब ने आननफानन सारी तैयारी करवा कर 2 टिकट मेरे हाथ में पकड़वा दिए थे. उस समय मेरा मन उन के प्रति श्रद्धा से नतमस्तक हो उठा था.

‘‘‘तुम सोच रही होगी, मैं तुम से मिलने क्यों नहीं आया? मैं तुम्हारे घर गया था, पर तब तक तुम ननिहाल जा चुकी थीं. कुछ ही दिन बीते तो अमेरिका में तुम्हारे ब्याह की खबर सुनी थी. तुम्हारे पिता के प्रति मन घृणा से भर उठा था. शतरंज की बिसात पर 2 युवा प्रेमियों को मुहरों की तरह प्रयोग कर के कितनी कुशलता से उन्होंने बाजी जीत ली थी. फिर तुम ने भी तो सच को समझने का प्रयास ही नहीं किया.’

‘‘छोटे बालक की तरह वह सिसकता रहा. अतीत की धूमिल यादें, एक बार फिर मानसपटल पर साकार हो उठी थीं. झूठी मानमर्यादा और सामाजिक प्रतिष्ठा की दुहाई देने वाले मेरे पिता को, 2 युवा प्रेमियों को अलग करने से क्या मिला? मृदुल को तो फिर भी गृहस्थी और पत्नी का सुख मिला था. लुटती तो मैं ही रही थी. कितनी देर तक पीड़ा के तिनके हृदयपटल से बुहारने का प्रयास करती रही थी, पर बरसों से जमी पीड़ा को पिघलने में समय तो लगता ही है.

‘‘घर पहुंच कर सुख को मैं कोसने लगी कि मृदुल से क्यों मिली. मृगतृष्णा ही सही, आश्वस्त तो थी कि उस ने मुझे छला है. धोखा दिया है. अब तो घृणा का स्थान दया ने ले लिया था. उस से मिलने को मन हर समय आतुर रहता. उस के सान्निध्य में, कुंआरे सपने साकार होने लगते. यह जानते हुए भी कि मैं अंधेरी गुफा की ओर बढ़ रही हूं, खुद को रोक पाने में अक्षम थी.

‘‘एक दिन मेरे अंतस से पुरजोर आवाज उभरी, ‘यह क्या कर  रही है तू? जिस महिला ने तुझे जीवनदान दिया, जीने की दिशा सुझाई, उसी का सुखचैन लूट रही है. मृदुल तेरा पूर्व प्रेमी सही, अब श्यामली का पति है. फिर तू भी तो आदित्य की ब्याहता पत्नी है. श्यामली के जीवन में विष घोल रही है?’

‘‘मन ने धिक्कारा, तो पैरों में खुदबखुद बेडि़यां पड़ गईं. श्यामली से भी मैं दूर भागने लगी थी. अपने ही काम में व्यस्त रहती. मन उचटता तो गूंगेबहरे, विक्षिप्त बच्चों के पास जा पहुंचती. इस से राहत सी महसूस होती थी. श्यामली संदेशा भिजवाती भी, तो बड़ी ही सफाई से टाल जाती.

‘‘एक रात श्यामली के घर से करुण क्रंदन सुनाई दिया था. मन हाहाकार कर उठा. दौड़ती हुई मैं श्यामली के पास जा पहुंची, लोगों की भीड़ जमा थी.

‘‘पाषाण प्रतिमा बनी श्यामली पति के सिरहाने गुमसुम सी बैठी थी. पास ही, उस का बेटा लेटा हुआ था. सच, पुरुष का साया मात्र उठ जाने से औरत कितनी असहाय हो उठती है. मुझे जिंदगी ने छला था तो उसे मौत ने.

‘‘उस दिन के बाद मैं प्रतिदिन श्यामली के पास जाती. घंटों उस के पास बैठी रहती. उस की खामोश आंखों में मृदुल की छवि समाई हुई थी.

‘‘पति की मौत का दुख घुन की तरह उस के शरीर को बींधता रहा था. उस की तबीयत दिनपरदिन बिगड़ने लगी थी. वह अकसर कहती, ‘मृदुल बहुत नेक इंसान थे. जीवन के इस महासागर में, उन्हें बहुत कम समय व्यतीत करना है, यह शायद वे जानते थे. उन्होंने कभी किसी को चोट नहीं पहुंचाई, कभी किसी को दुख नहीं दिया. पर अब मुझे जीवन की तल्खियों से जूझने के लिए अकेला क्यों छोड़ गए?’

‘‘जब निविड़ अंधकार में प्रकाश की कोई किरण दिखाई नहीं देती, तब आदमी जिंदगी की डोर झटक कर तोड़ देने को मजबूर हो जाता होगा. श्यामली का जीवन भी ऐसा ही अंधकारपूर्ण हो गया होगा, तभी तो एक दिन चुपके से उस ने प्राण त्याग दिए थे और जा पहुंची थी अपने मृदुल के पास.

‘‘मृदुल की मृत्यु के बाद मैं उसी के घर में उस के साथ रहने लगी थी. हर समय उस का बेटा मेरे ही पास रहता. हर समय उस के मुख पर एक ही प्रश्न रहता कि उस के बाद उस के बेटे का क्या होगा? मैं उसे धीरज बंधाती, उस का मनोबल बढ़ाती, पर वह भीतर ही भीतर घुटती रहती.

‘‘‘जीने का मोह ही नहीं रहा,’ उस ने एक दिन बुझीबुझी आंखों से कहा था, ‘एक बात कहूं? मेरी मृत्यु के बाद इस आश्रम और मेरे बेटे मानव का दायित्व तुम्हारे कंधों पर होगा,’ उसे मेरी हां का इंतजार था, ‘हमारा रुपयापैसा, जमापूजीं तुम्हारी हुई सौदामिनी…’

‘‘मैं चुप थी. क्या इतना बड़ा उत्तरदायित्व मैं संभाल सकूंगी? मन इसी ऊहापोह में था.

‘‘फिर थोड़ा रुक कर वह बोली, ‘मृत्युवरण से कुछ समय पूर्व ही मृदुल ने अपने और तुम्हारे संबंधों के बारे में मुझे सबकुछ बता दिया था. यह भी कहा था कि अगर मुझे कुछ हो जाए तो मानव का दायित्व मैं तुम्हें सौंप दूं. उन की अंतिम इच्छा क्या पूरी नहीं करोगी? एक बार हां कह दो, तो चैन से इस संसार से विदा ले लूं.’

‘‘मन कृतकृत्य हो उठा था. साथ ही, मृदुल का मेरे प्रति अटूट विश्वास इस अवधारणा से मुक्त कर गया था कि सप्तपदी और विवाह का अनुष्ठान तो मात्र एक मुहर है जो 2 इंसानों को जोड़ता है. असल तो है, मन से मन का मिलन.

‘‘मानव का उत्तरदायित्व लेने से हिचकिचाहट तो हुई थी. एक बार फिर समाज और इस के लोग मेरे सामने आ गए थे. मन कांपा था, लोग अफवाहें फैलाएंगे. फिकरे कसेंगे, पर एक झटके से मन पर नियंत्रण भी पा लिया था. सोचा, जिस समाज ने हमेशा घाव ही दिए, उस की चिंता कर के इस बच्चे का जीवन क्यों बरबाद करूं? मृदुल के विश्वास को क्यों धोखा दूं?’’

आसमान पर चांद का टुकड़ा कब खिड़की की राह कमरे में दाखिल हो गया, हम दोनों को पता ही नहीं चला. मैं उठ कर बाहर आई, तो चांद मुसकरा रहा था.

USA : ग्रेट अमेरिका या गटर अमेरिका

USA : एक बड़े देश के नेता का दंभी और गुस्सैल होना स्वाभाविक है पर एक छोटे देश के नेता का आत्मसम्मानी और बड़े देश के सामने याचक की तरह खड़े होने पर भी अपना और अपने देश के सम्मान को न बेचना अद्भुत है. यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदोमिर जेलेंस्की ने डोनाल्ड ट्रंप और जेडी वेंस के सामने कैमरों के बीच खरीखरी कह कर दर्शा दिया कि यूक्रेन की हिम्मत रूस के व्लादिमीर पुतिन और अमेरिका के खब्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से ज्यादा है.

यह ठीक है कि अमेरिकी हथियारों के बिना यूक्रेन 2 साल तक रूस को रोक न पाता पर यह भी नहीं भूलना चाहिए कि अगर यूक्रेन की जनता जान जोखिम में डाल कर पुतिन के सामने न खड़ी होती तो आज पुतिन पूरे यूरोप ही नहीं, दुनिया के बहुत से देशों में दखलंदाजी कर रहे होते.

यूक्रेन को हथियार दे कर यूरोप और अमेरिका ने दया नहीं की है, उन्होंने अपनी खुद की रक्षा की है. डोनाल्ड ट्रंप की विदेश नीति एकदम बेहूदा है कि अमेरिका को यूरोप से कुछ लेनादेना नहीं है. अमेरिका को यह नहीं भूलना चाहिए कि रूसी और चीनी आज इतने ताकतवर हैं कि वे मिल कर अमेरिका का मुकाबला कर सकते हैं और चाह कर भी अमेरिका उन से जीत नहीं सकता.

अमेरिका वियतनाम में हारा, कोरिया में हारा, अफगानिस्तान में हारा, इराक और लीबिया में हारा. इन जगह अमेरिकी फौजी सामान के साथ सैनिक भी थे पर जनता नहीं. यूक्रेन में अमेरिकी सेना नहीं है, सिर्फ हथियार हैं और उस पर अमेरिकी राष्ट्रपति की अकड़ एक सिरफिरे नेता की बेवकूफी ही है. इस की बहुत बड़ी कीमत अमेरिकी जनता अगले दशकों में चुकाएगी जब रूस व यूरोप अमेरिका से लेनदेन बंद कर देंगे.

अमेरिका आज अमीर हो रहा है क्योंकि वह अपनी विशाल तकनीकी जानकारी और मार्केट के दोहरे वार को इस्तेमाल कर के बहुत से देशों को रूसी-चीनी खेमों में भटकने से रोक पा रहा था. डोनाल्ड ट्रंप ने एक दोस्त देश, जो अपने देशवासियों की हजारों जानें यूरोप की शांति के लिए गंवा चुका हो व भिखारी सा दिखने लगा हो, को खो दिया है.

अमेरिका अब फिलहाल किसी भी देश के लिए भरोसे लायक नहीं रह गया है. अमेरिकी कंपनियों के मालिकों, जो ज्यादातर ट्रंप भक्त हैं, से व्यापार करना भी खतरे से खाली नहीं है. ट्रंप हर नियम व कानून से अपने को ऊपर मानने हैं क्योंकि उन्होंने नाजियों जैसी ‘भगवा’ भीड़ जमा कर ली है जो अमेरिका को ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ बनाने का नारा-वादा कर रही है पर असल में वह अमेरिका को ‘मेक अमेरिका गटर एरिया’ बना रही है.

भारत के जो युवा अमेरिका में जा कर बसना या पढ़ने के सपने देख रहे थे उन्हें तुरंत इन सपनों को बुरा सपना मान कर भूल जाना चाहिए. कम से कम 4 साल के लिए तो अमेरिका ‘ग्रेट गटर’ ही रहेगा जब तक खब्ती का कार्यकाल चलेगा.

Rahul Gandhi : धर्म नहीं कर्म

Rahul Gandhi : कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष व सांसद राहुल गांधी ने गुजरात में अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं को खूब खरीखरी सुनाई. उन्होंने साफसाफ कहा कि उन में से आधे भारतीय जनता पार्टी से मिले हुए हैं और यही वजह है कि विपक्ष 40 फीसदी वोट पा कर भी कमजोर और बिखरा हुआ है. उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे तथाकथित कांग्रेसियों को निकाल बाहर किया जाएगा.

वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने अपनी पार्टी की कमजोरी तो पकड़ ली लेकिन वे यह साफ नहीं कर पाए कि कांग्रेस ऐसा कौन सा करिश्मा करेगी जो भारतीय जनता पार्टी नहीं कर सकती.

हर व्यापार की तरह पौलिटिक्स के बिजनैस में भी एक पार्टी दूसरी पार्टी के एजेंडे की चोरी करती है और दिल्ली विधानसभा चुनावों में यह एकदम स्पष्ट हुआ जब अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की मुफ्त बिजली, बस यात्रा, कैश सहायता, मुफ्त सा इलाज जैसी नीतियों को भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने दोहरानी शुरू कर दीं.

नतीजा यह हुआ कि जिस पार्टी के पास ज्यादा कमिटेड वर्कर थे वह जीत गई. आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन को मुगलकालीन विरोधियों को सताने की नीति की तरह भाजपा की केंद्र सरकार ने जेल में डाल दिया, बिना सुबूत के, केवल एक अभियुक्त के बयान के आधार पर जिसे उस ने ईडी को 7वीं-8वीं जिरह में तब दिया था जब उसे केंद्र सरकार की जांच एजेंसियों की तरफ से कोई छूट मिलने वाली थी. अपने नेताओं के जेल में डाल दिए जाने से आप के कार्यकर्ता कमिटेड नहीं रह पाए, जिस का फायदा भाजपा को मिला.

गुजरात में कांग्रेस के पास कुछ अलग करने की बात कहने के लिए है क्या? गुजरात ही नहीं, अन्य राज्यों में जनता से कांग्रेस ऐसा कौन सा वादा कर सकती है जो भाजपा नहीं कर सकती? केवल संविधान की किताब लहरा कर भगवे झंडे की लहर का मुकाबला नहीं किया जा सकता.

गुजरात हो या कोई और राज्य, कांग्रेस को साफ कहना होगा कि वह सिर्फ मंदिरों की पार्टी नहीं है, वह जनता की पार्टी है. भाजपा मंदिर नहीं छोड़ सकती. कांग्रेस को जनता को समझना होगा कि मंदिर ही सामाजिक भेदभाव की जड़ हैं. उन्हीं से वे जहरीली हवाएं निकलती हैं जो न केवल धर्म के नाम पर बंटवारा करती हैं बल्कि जातियों के नाम पर भी बंटवारा करती हैं.

राहुल को देश के मतदाताओं को यह भी समझना होगा कि संविधान आदमी और औरत में कोई भेद नहीं करता जबकि मंदिर, मसजिद, चर्च आदि सभी अपने धर्म में, अपनी ही जाति में औरतों को जन्म से कमजोर और पुरुष के पैर की जूती मानते हैं. भाजपा मंदिरों को चलाती है और वह जातिवादी बंटवारे को बढ़ाने/फैलाने के साथ सवर्ण औरतों को कमजोर करना चाहती है.

कांग्रेसी सरकारों ने, कट्टरपंथी हिंदुओं के बयानों के मुताबिक, मुसलिमों को सिर पर चढ़ा रखा था और मोदी, योगी की सरकारों ने उन्हें सही ठिकाने पर लगाया है. कांग्रेस को खुलेआम कहना होगा कि वह हर कमजोर के साथ है और मंदिर, मसजिद, चर्च की धौंस के खिलाफ है.

जब तक कांग्रेस में यह हिम्मत नहीं आएगी, उस में वे लोग आते रहेंगे जो टोपी तो कांग्रेसी पहनेंगे पर दिल से धर्म की भेदभाव की साजिशों के पक्षधर हैं.

धर्म चाहे लोगों को 2,000 से ज्यादा वर्षों से पूरी तरह नियंत्रित कर रहा हो लेकिन अब नई वैज्ञानिक शिक्षा ने उन्हें धर्मजंजाल से निकलने का अवसर दिया है. पिछले 100 सालों में धर्म का प्रभाव कम हुआ था. लेकिन अब रूस में व्लादिमीर पुतिन, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप और भारत में नरेंद्र मोदी के आने पर इन 3 बड़े देशों में धर्म को नई जान मिली है. पंडेपुजारी, पादरी एक बार फिर मजबूत हुए हैं, वे सत्ता में आ गए हैं. इसलामिक देशों में तो कभी भी वैज्ञानिक सोच आई ही नहीं थी. वहां न सिर्फ औरतें बल्कि आदमी भी धर्म और धर्म को चलाने वाले शासकों के गुलाम रहे हैं.

कोई भी समाज धर्म के साए में प्रगति नहीं कर सकता, कांग्रेस के राहुल गांधी शायद यह समझते हों क्योंकि उन का परिवार मिश्रित धर्मों से आया. उन की दादी ने पारसी से शादी की तो पिता ने ईसाई से. राहुल गांधी हिंदू हैं हालांकि भाजपा के कुप्रचार के चलते उन्हें अपने को हिंदू होना जताने के लिए देशवासियों के सामने खुलेतौर पर मंदिरों के चक्कर लगाने पड़े. अब वे लगातार कर्म कर रहे हैं और कर्म करते रहने की बात कह भी रहे हैं. आज वे उस स्थिति में हैं कि जब वे भारतवासियों को धर्म के दलदल से निकाल सकते हैं.

भारतीय जनता पार्टी ने ही नहीं बल्कि लगभग सभी दूसरे दलों ने भी कुंभ के कीचड़ में डुबकी लगा कर साबित कर दिया है कि उन की नीति धर्म की चालबाजी, चतुराई, कथित चमत्कारी, चिड़चिड़ी और सदियों से चली आ रही सड़ीगली मान्यताओं पर टिकी है, संविधान के नैतिक, तार्किक, व्यावहारिक या वैज्ञानिक आधार पर नहीं.

गुजरात एक नमूना हो सकता है हालांकि वहां कोई नैतिकता की खेती कभी हुई, ऐसा लगता नहीं. दक्षिण के तमिलनाडु के अलावा अंधविश्वास का सार्वजनिक विरोध कहीं नहीं हो पाया.

Love Story : न्यूयार्क की एक शाम

Love Story : न्यूयार्क से न्यूजर्सी लगभग डेढ़ घंटे का रास्ता था. सड़क मार्ग 6 लेन का था. भारत की साइबर सिटी बेंगलुरु के समान न्यूजर्सी भी एक तरह साइबर सिटी था. न्यूयार्क काफी महंगा शहर होने के साथसाथ घनी आबादी वाला भी हो गया था. मकानों का किराया काफी ज्यादा था. साथ ही मकान मिलना भी मुश्किल था. इसलिए ज्यादातर नौकरीपेशा आसपास स्थित उपनगरों में रहते थे. सुबह काम पर आते और शाम को वापस लौट जाते थे.

अमेरिका में 100-200 किलोमीटर का रोजाना सफर सामान्य समझा जाता था. मल्टीलेन सड़कों का जाल बिछा होने से कार, जीप और अन्य हलके वाहनों की अधिकतम गति 120 किलोमीटर तक चली जाती थी जिस से 100 किलोमीटर की दूरी 1 घंटे में तय हो जाती थी.

शैलेश और उस की पत्नी गीता काम तो न्यूयार्क में करते थे मगर रिहाइश न्यूजर्सी में थी. शैलेश एक डिपार्र्टमेंटल स्टोर में सेल्समैन था. गीता एक कंपनी में लेखाकार थी. दोनों शाम को अपनीअपनी ड्यूटी समाप्त होने पर कार द्वारा न्यूजर्सी लौट जाते थे.

अमेरिका आते समय दोनों ने आमदनी के बारे में ज्यादा सोचा था, खर्च के बारे में कम. कमाई अगर डौलर में होनी थी तो खर्च भी डौलर में होना था. डौलर कमाओगे तो डौलर ही खर्च करोगे.

भारत में छोटेमोटे कामों के लिए मजदूरी जहां काफी कम थी वहां अमेरिका में काफी ज्यादा थी.

ब्यूटी सैलून या हेयर ड्रेसर के पास जाने पर किसी की आधी तनख्वाह चली जाती थी. धोबी और मोची नहीं मिलते थे. कपड़े या तो खुद धोने पड़ते थे या फिर लांड्री से धुलवाने पड़ते थे. मगर धुलाई का खर्च इतना ज्यादा था कि ज्यादातर लोग कपड़ों को धुलवाने की जगह उन्हें फेंक कर नया खरीदने को तरजीह देते.

आम स्तर के लोगों की आमदनी का एक बड़ा हिस्सा किस्त चुकाने में निकल जाता था. इसलिए ज्यादातर एशियाई या भारतीय दोहरी शिफ्ट में काम कर अपना खर्च पूरा कर पाते थे.

मगर डबल या दोहरी शिफ्ट करने के बाद काम से लौटने पर शाम रात में बदल जाती थी और फिर लंबी दूरी का सफर कर न्यूजर्सी या अन्य उपनगरों में लौटना, वह भी रात के समय, खतरे से खाली नहीं था क्योंकि अमेरिका जहां सब से विकसित देश है वहीं लूटपाट, राहजनी में भी अव्वल है.

शैलेश व गीता की हरसंभव कोशिश यही रहती कि वे सूरज ढलने से पहले ही ड्यूटी से फारिग हो न्यूजर्सी के लिए चल दें मगर कभीकभी न चाहते हुए भी देर हो जाती थी.

कभी डिपार्टमेंटल स्टोर में ग्राहकों की भीड़ बढ़ जाती थी, कभी गीता को ज्यादा खाताबही का काम करना पड़ता था. कभी एक जल्दी फारिग हो जाता तो दूसरे का ओवरटाइम लगा होता था, इसलिए दोनों को ही देर हो जाती थी.

आधी रात को घर लौटने पर भला खाना कौन पकाए? इसलिए सभी डब्बा- बंद खाना ले कर चलते थे. बर्गर, हैमबर्गर, सैंडविच, अन्य सामान्य खानेपीने की चीजें सामान्य थीं. कार या वाहन में सफर में चलतेचलते ही खापी लेते थे.

हाइवे का सफर काफी लंबा होने की वजह से गति का काफी तेज होना आम था. इस से दुर्घटनाएं भी काफी होती थीं. किसी का एक्सीडेंट होने या वाहन खराब हो जाने पर आगेपीछे के वाहन चालकों से मदद की उम्मीद करना फुजूल था.

इतने विकसित देश में मानवीय स्तर पर निर्भयता हद से ज्यादा थी. ‘हमें क्या लेना’ की मानसिकता से भरे सभी एक नजर डाल आगे बढ़ जाते थे.

आज शाम आसमान पर बादल छाए थे. देश का मौसम पहले ही ठंडा था. उस पर बारिश ने ठंडक और बढ़ा दी थी. 2 घंटे का ओवरटाइम करने के बाद जब पतिपत्नी कार पर सवार हुए तो शाम का धुंधलका रात के गहरे अंधेरे में बदलने लगा था. समय कोई ज्यादा नहीं हुआ था. मगर भीगे मौसम और घने बादलों ने अंधेरा और बढ़ा दिया था.

एक शराब की दुकान से ह्विस्की की 4 बोतलें और एक स्नैक स्टोर से डब्बाबंद खाने के डब्बे और हैमबर्गर के पैकेट खरीदने के बाद कार न्यूजर्सी के लिए चल दी.

ठंडे देश में शराब के सेवन की नशे से ज्यादा जरूरत थी. इस को गलत भी नहीं समझा जाता.

न्यूजर्सी जाने के लिए लंबा चक्कर काट कर फिर फ्लाईओवर पार कर के हाइवे पर पहुंचने के लिए तकरीबन 4 किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना पड़ता था.

कई उत्साही वाहन चालक लंबा चक्कर काटने से बचने के लिए इन कम ऊंचाई वाले स्थानों से अपना वाहन चढ़ा कर सड़क पार कर मुख्य सड़क पर आ मिलते थे.

रोजाना एक ही रास्ते से चलने वालों को इन छोटे शार्टकटों की और सड़क पर आने वाले स्पीड ब्रेकरों के बारे में जानकारी होती थी और इधरउधर नजर मार कर कि कहीं बीट पुलिस की जीप या मोटरसाइकिल तो आसपास नहीं, इन शार्टकटों को पार कर कभी मुख्य सड़क से छोटी सड़क पर, कभी छोटी सड़क से मुख्य सड़क पर आ मिलते थे.

शैलेश और गीता को भी छोटी सड़क से बड़ी सड़क को मिलाने वाले इन शार्टकट रास्तों की पहचान थी. वे अनेक बार आगेपीछे, दाएंबाएं नजर मार कर कि कोई बीट पुलिस आसपास नहीं, एक झटके में मुख्य सड़क पर पहुंच न्यूजर्सी का रास्ता पकड़ लेते थे.

आज तो वैसे भी घना अंधेरा था. अंधेरे और बरसात के ठंडे मौसम में भला कौन सा पुलिस वाला चौकसी से हाइवे की निगरानी कर रहा होगा? शैलेश ने एक नजर दाएंबाएं फिर आगेपीछे डाली, कहीं बीट पुलिस नजर नहीं आई तो उस ने अपने जानेपहचाने ‘शार्टकट’ से कार छोटी सड़क से मुख्य सड़क पर चढ़ा दी और फिर इत्मीनान से न्यूजर्सी की तरफ दौड़ा दी.

लगभग 7 किलोमीटर आगे आ कर कार की गति धीमी करते हुए शैलेश ने कहा, ‘‘आज ठंड है, थोड़ी थकावट भी है, एक पैग डाल दो.’’

सफर के दौरान खानापीना या सिर्फ पीना आम बात थी. एक डिस्पोजेबल गिलास में ह्विस्की में सोडा मिला कर गीता ने उसे थमा दिया. कार को धीमी गति से चलाता एक हाथ में स्टियरिंग थामे शैलेश ह्विस्की पीने लगा. शराब पीने के बाद उस ने कार की रफ्तार तेज कर दी.

तभी उसे अपने पीछे बीट पुलिस का सायरन सुनाई पड़ा. बैक मिरर में सफेदपीले रंग की मोटरसाइकिल पर गोल टोप पहने पुलिस वाले दिखाई पड़े.

वे दोनों घबरा गए. शैलेश ने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी, पीछा करने वालों ने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी. शैलेश और भी घबरा गया. उस ने रफ्तार और तेज कर दी. पीछे वालों ने भी अपनी स्पीड और बढ़ा दी. चंद मिनटों तक यह सब चलता रहा.

शैलेश समझ गया कि पुलिस से पीछा छुड़ाना उस के लिए आसान नहीं है. सो उस ने अपनी गाड़ी की रफ्तार कम कर दी.

‘‘अब क्या होगा? एक तो हम ने गलत तरीके से हाइवे पार किया, ऊपर से अब आप ने शराब भी पी ली है,’’ गीता ने घबराए स्वर में कहा.

‘‘शांति रखो, शायद कोई और बात हो.’’

तभी मोटरसाइकिल गुजरती हुई कार को क्रास कर गई. थोड़ा आगे जा कर पुलिस वाले उतर पड़े. उन्होंने रुकने का इशारा किया.

‘‘मिस्टर, आप ने हमें देख कर कार की स्पीड क्यों बढ़ाई?’’ कार के समीप आ कर पुलिस वाले ने कहा.

‘‘मैं ने आप को देख कर नहीं, अपने तौर पर ही स्पीड बढ़ाई थी.’’

‘‘आप कहां जा रहे हो?’’

‘‘न्यूजर्सी.’’

‘‘गाड़ी में क्या है?’’

‘‘कुछ नहीं, थोड़ा खानेपीने का सामान है.’’

‘‘दिखाओ,’’ पुलिसकर्मी ने कार की तलाशी ली. स्कौच की बोतलें देख उस की आंखों में चमक आ गई.

‘‘मिस्टर, आप शराब पी कर गाड़ी चला रहे थे. ऐसा करना अपराध है. आप को अपना सांस टेस्ट देना होगा,’’ कहते हुए उस ने शैलेश को बाहर आने का इशारा किया.

सांस में अलकोहल जांचने से शैलेश के शराब पीने की पुष्टि हो गई.

‘‘मिस्टर, आप का चालान करना होगा. शराब पी कर गाड़ी चलाना और ‘रैश ड्राइव’ करना अपराध है. इस जुर्म में आप को 1 हजार डौलर तक जुर्माना और शायद सजा भी हो सकती है.’’

कहते हुए उस ने अपनी जेब से चालान बुक निकाल ली. शैलेश के साथसाथ गीता का चेहरा भी उतर गया. 3-4 किलोमीटर का रास्ता बचाने के चक्कर में वे गलत तरीके से हाइवे पर आए थे और गलतफहमी में कार दौड़ा इस चक्कर में खुद को फंसा लिया था.

‘1 हजार डौलर जुर्माना और शायद सजा भी. जुर्माने की भारी रकम जहां उन का सारा बजट बिगाड़ देगी वहीं सजा कैसे भुगतेंगे?’ यह सोच कर गीता कार से बाहर निकल आई. उस ने विनय भरे स्वर में कहा, ‘‘देखिए सर, सर्दी काफी ज्यादा है इसलिए मेरे पति ने थोड़ी पी ली थी, वैसे ये ड्राइव करते वक्त नहीं पीते.’’

भारत होता तो शायद शैलेश पुलिस वालों से लेदे कर मामला निबटा लेता. मगर यह अमेरिका था, यहां ‘रिश्वत’ और वह भी पुलिस को, कभी सुना भी नहीं था.

अब क्या करें? पुलिसकर्मी चालान बुक के फार्म में कार्बन चढ़ा रहा था. तभी दूसरा पुलिस वाला उस के समीप आया. दोनों एक तरफ जा खुसरपुसर करने लगे.

‘‘देखो मिस्टर, आज सर्दी ज्यादा है, रात भी गहरा रही है. आप का पहला अपराध है, हम वार्निंग दे कर छोड़ रहे हैं.’’

शैलेश और गीता के चेहरे खिल उठे. वे वापस जाने को हुए.

‘‘ठहरो, कार में रखी शराब की 2 बोतलें हमें दे दो, क्या पता आप फिर पीने लगो.’’

सुन कर शैलेश चौंक पड़ा. फिर वह मुसकरा पड़ा. उस ने चुपचाप 2 बोतल स्कौच और एक हैमबर्गर का पैकेट उन को थमा दिया. वे दोनों पुलिस वाले मोटरसाइकिल दौड़ाते वापस चल दिए.

कार में बैठ कर गीता ने कुछ समझते, कुछ न समझते हुए शैलेश की तरफ देखा. शैलेश ने कार स्टार्ट कर आगे बढ़ाई और एक बांह पत्नी के कंधे पर रखते हुए कहा, ‘‘डार्लिंग, पुलिस वाला पुलिस वाला ही होता है, चाहे दिल्ली का हो या न्यूयार्क का.’’

इस पर पति के साथ गीता भी खिलखिला कर हंस पड़ी.

Romantic Story : गुलाब यों ही खिले रहें – रिया और शिखा का क्या रिश्ता था?

Romantic Story : शादी की शहनाइयां बज रही थीं. सभी मंडप के बाहर खड़े बरात का इंतजार कर रहे थे. शिखा अपने दोनों बच्चों को सजेधजे और मस्ती करते देख कर बहुत खुश हो रही थी और शादी के मजे लेते हुए उन पर नजर रखे हुए थी. तभी उस की नजर रिया पर पड़ी जो एक कोने में गुमसुम सी अपनी मां के साथ चिपकी खड़ी थी. रिया और शिखा दूर के रिश्ते की चचेरी बहनें थीं. दोनों बचपन से ही अकसर शादीब्याह जैसे पारिवारिक कार्यक्रमों में मिलती थीं. रिया को देख शिखा ने वहीं से आवाज लगाई, ‘‘रिया…रिया…’’

शायद रिया अपनेआप में ही खोई हुई थी. उसे शिखा की आवाज सुनाई भी न दी. शिखा स्वयं ही उस के पास पहुंची और चहक कर बोली, ‘‘कैसी है रिया ’’

रिया ने जैसे ही शिखा को देखा, मुसकरा कर बोली, ‘‘ठीक हूं, तू कैसी है ’’

‘‘बिलकुल ठीक हूं, कितने साल हुए न हम दोनों को मिले, शादी क्या हुई बस, ससुराल के ही हो कर रह गए.’’

शिखा ने कहा, ‘‘आओ, मैं तुम्हें अपने बच्चे से मिलवाती हूं.’’ रिया उन्हें देख कर बस मुसकरा दी. शिखा को लगा रिया कुछ बदलीबदली है. पहले तो वह चिडि़या सी फुदकती और चहकती रहती थी, अब इसे क्या हो गया  मायके में है, फिर भी गम की घटाएं चेहरे पर क्यों जब वह सभी रिश्तेदारों से मिली तो उसे मालूम हुआ कि रिया की उस के पति से तलाक की बात चल रही है. वह सोचने लगी, ‘ऐसा क्या हो गया, शादी को इतने वर्ष हो गए और अब तलाक ’ उस से रहा न गया इसलिए मौका ढूंढ़ने लगी कि कब रिया अकेले में मिले और कब वह इस बारे में बात करे. शिखा ने देखा कि शादी में फेरों के समय रिया अपने कमरे में गई है तो वह भी उस के पीछेपीछे चली गई. शिखा ने कुछ औपचारिक बातें कर कहा, ‘‘मेरी प्यारी बहना, बदलीबदली सी क्यों लगती है  कोई बात है तो मुझे बता.’’

पहले तो रिया नानुकर करती रही, लेकिन जब शिखा ने उसे बचपन में साथ बिताए पलों की याद दिलाई तो उस की रुलाई फूट पड़ी. उसे रोते देख शिखा ने पूछा, ‘‘क्या बात है, पति से तलाक क्यों ले रही है, तुझे परेशान करता है क्या ’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं, वे तो बहुत नेक इंसान हैं.,’’ रिया ने जवाब दिया.

‘‘तो फिर क्या बात है रिया, तलाक क्यों ’’ शिखा ने पूछा.

रिया के नयनों की शांत धारा सिसकियों में बदल गई, ‘‘कमी मुझ में है, मैं ही अपने पति को वैवाहिक सुख नहीं दे पाती.’’ मुझे पति के पास जाना भी अच्छा नहीं लगता. मुझे उन से कोई शिकायत नहीं, लेकिन मेरा अतीत मेरा पीछा ही नहीं छोड़ता.’’

‘‘कौन सा अतीत ’’

आज रिया सबकुछ बता देना चाहती थी, वह राज, जो बरसों से घुन की मानिंद उसे अंदर से खोखला कर रहा था. जब उस ने अपनी मां को बताया था तो उन्होंने भी उसे कितना डांटा था. उस की आधीअधूरी सी बात सुन कर शिखा कुछ समझ न पाई और बोली, ‘‘रिया, मैं तुम्हारी मदद करूंगी, मुझे सचसच बताओ, क्या बात है’’ रिया उस के गले लग खूब रोई और बोली, ‘‘वे हमारे दूर के रिश्ते के दादा हैं न गांव वाले, किसी शादी में हमारे शहर आए थे और एक दिन हमारे घर भी रुके थे. मां को उस दिन डाक्टर के पास जाना था. मां को लगा कि दादा हैं इसलिए मुझे भाई के भरोसे घर में छोड़ गईं. जब भैया खेलने गए तो दादा मुझे छत पर ले गए और…’’ कह कर वह रोने लगी. उस की बात सुन कर शिखा की आंखों में मानो खून उतर आया. उस के मुंह से अनायास ही निकला, ‘‘राक्षस, वहशी, दरिंदा और न जाने कितनी युवतियों को उस ने अपना शिकार  बनाया होगा. तुम्हें मालूम है वह बुड्ढा तो मर चुका है. उस ने सिर्फ तुम्हें ही नहीं मुझे भी अपना शिकार बनाया था. मैं एक शादी में गई थी. वह भी वहां आया हुआ था. मेरी मां मुझे शादी के फेरों के समय कमरे में अकेली छोड़ गई थीं. सभी लोग फेरों की रस्म में व्यस्त थे. उस ने मौका देख मेरे साथ बलात्कार किया. मात्र 15 वर्ष की थी मैं उस वक्त, जब मेरे चीखने की आवाज सुनाई दी तो मेरी मां दौड़ कर आईं और पिताजी ने उन दादाजी को खूब भलाबुरा कहा, लेकिन रिश्तेदारों और समाज में बदनामी के डर से यह बात छिपाई गईं.’’

‘‘वही तो,’’ रिया कहने लगी, ‘‘मेरी मां ने तो उलटा मुझे ही डांटा और कहा कि यह तो बड़ा अनर्थ हो गया. बिन ब्याहे ही यह संबंध. न जाने अब कोई मुझ से विवाह करेगा भी या नहीं.

‘‘जैसे कुसूर मेरा ही हो, मैं क्या करती. उस समय सिर्फ 15 वर्ष की थी, इस लिए समझती भी नहीं थी कि बलात्कार क्या होता है, लेकिन शादी के बाद जब भी मेरे पति नजदीक आए तो मुझे बारबार वही हादसा याद आया और मैं उन से दूर जा खड़ी हुई. जब वे मेरे नजदीक आते हैं तो मुझे लगता है एक और बलात्कार होने वाला है.’’

शिखा ने पूछा, ‘‘तो फिर वे तुम से जबरदस्ती तो नहीं करते ’’

‘‘नहीं, कभी नहीं,’’ रिया बोली.

‘‘तब तो तुम्हारे पति सच में बहुत नेक इंसान हैं.’’

‘‘मैं नहीं चाहती कि मेरे कारण वे दुख की जिंदगी जिएं इसलिए मैं ने ही उन से तलाक मांगा है. मैं तो उन्हें वैवाहिक सुख नहीं दे पाती पर उन्हें तो आजाद करूं इस बंधन से.’’

‘‘ओह, तो यह बात है. मतलब तुम मन ही मन उन्हें पसंद तो करती हो ’’

‘‘हां,’’ रिया बोली, ‘‘मुझे अच्छे लगते हैं वे, किंतु मैं मजबूर हूं.’’

‘‘तुम ने मुझे अपना सब से बड़ा राज बताया है, तो क्या तुम मुझे एक मौका नहीं दोगी कि मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं. देखो रिया, मेरे साथ भी यह हादसा हुआ लेकिन मांपिताजी ने मुझे समझा दिया कि मेरी कोई गलती नहीं, पर तुम्हें तो उलटा तुम्हारी मां ने ही कुसूरवार ठहरा दिया. शायद इसलिए तुम अपनेआप को गुनाहगार समझती हो,’’ शिखा बोली.

‘‘तुम कहो तो मैं तुम्हारे पति से बात करूं इस बारे में ’’

‘‘नहींनहीं, तुम ऐसा कभी न करना,’’ रिया ने कहा.

‘‘अच्छा नहीं करूंगी, लेकिन अभी हम 3-4 दिन तो हैं यहां शादी में, तो चलो, मैं तुम्हें काउंसलर के पास ले चलती हूं.’’

‘‘वह, क्यों ’’ रिया ने पूछा

‘‘तुम मेरा विश्वास करती हो न, तो सवाल मत पूछो. बस, सुबह तैयार रहना.’’

अगले दिन शिखा सुबह ही रिया को एक जानेमाने काउंसलर के पास ले गई. काउंसलर ने बड़े प्यार से रिया से सारी बात पूछी. एक बार तो रिया झिझकी, लेकिन शिखा के कहने पर उस ने सारी बात काउंसलर को बता दी. यह सुन कर काउंसलर ने रिया के कंधे पर हाथ रख कर कहा, ‘‘देखो बेटी, तुम बहुत अच्छी हो, जो तुम ने अपनी मां की बात मान कर यह राज छिपाए रखा, लेकिन इस में तुम्हारी कोई गलती नहीं. तुम अपनेआप को दोषी क्यों समझती हो  क्या हो गया अगर किसी ने जोरजबरदस्ती से तुम से संबंध बना भी लिए तो ’’

रिया बोली, ‘‘मां ने कहा, मैं अपवित्र हो गई, अब मुझे अपनेआप से ही घिन आती है. इसलिए मुझे अपने पति के नजदीक आना भी अच्छा नहीं लगता.’’ काउंसलर ने समझाते हुए कहा, ‘‘लेकिन इस में अपवित्र जैसी तो कोईर् बात ही नहीं और इस काम में कुछ गलत भी नहीं. यह तो हमारे समाज के नियम हैं कि ये संबंध हम विवाह बाद ही बनाते हैं. ‘‘लेकिन समाज में बलात्कार के लिए तो कोई कठोर नियम व सजा नहीं. इसलिए पुरुष इस का फायदा उठा लेते हैं और दोषी लड़कियों को माना जाता है. बेचारी अनखिली कली सी लड़कियां फूल बनने से पहले ही मुरझा जाती हैं. अब तुम मेरी बात मानो और यह बात बिलकुल दिमाग से निकाल दो कि तुम्हारा कोई दोष है और तुम अपवित्र हो. चलो, अब मुसकराओ.’’

रिया मुसकरा उठी. शिखा उसे अपने साथ घर लाई और बोली, ‘‘अब तलाक की बात दिमाग से निकाल दो और अपने पति के पास जाने की पहल तुम खुद करो, इतने वर्ष बहुत सताया तुम ने अपने पति को. अब चलो, प्रायश्चित्त भी तुम ही करो.’ रिया विवाह संपन्न होते ही ससुराल चली गई. उस ने अपने पति के पास जाने की पहल की और साथ ही साथ काउंसलर ने भी उस का फोन पर मार्गदर्शन किया. उस के व्यवहार में बदलाव देख उस के पति भी आश्चर्यचकित रह गए. उन्होंने रिया को एक दिन अपनी बांहों में भर कर पूछा, ‘‘क्या बात है रिया, आजकल तुम्हारा चेहरा गुलाब सा खिला रहता है ’’

वह जवाब में सिर्फ मुसकरा दी और बोली, ‘‘अब मैं सदा के लिए तुम्हारे साथ खिली रहना चाहती हूं, मैं तुम से तलाक नहीं चाहती.’’

उस के पति ने कहा, ‘‘थैंक्स रिया, लेकिन यह मैजिक कैसे ’’

वह बोली, ‘‘थैंक्स शिखा को कहो. अभी फोन मिलाती हूं उसे,’’ कह कर उस ने शिखा का फोन मिला दिया. उधर से शिखा ने रिया के पति से कहा, ‘‘थैंक्स की बात नहीं. बस, यह ध्यान रखना कि गुलाब यों ही खिले रहें. ’’

Social Story : गिरिजा ग्वालिन – बलवंत सिंह को गिरिजा ने कैसे धमकाया ?

Social Story : गिरिजा ग्वालिन हर रोज जैसलमेर से सुबहसवेरे 25 लिटर दूध पीतल के घड़े में अपने सिर पर रख कर 3-4 किलोमीटर दूर तक सड़क से निकलती थी. रास्ते में दूध बेचते हुए लाठी गांव पहुंच कर फिल्मी अंदाज में आवाज लगाती, ‘मेरा नाम है गिरिजा ग्वालिन, मैं आई दूध बेचने जैसलमेर से…’

गिरिजा 25 साल की भरेपूरे बदन की औरत थी. उस का गोरा रंग, लाललाल होंठ, गुलाबी गाल, उभरी छाती, मटकते कूल्हे, अदा भरी निगाहें सब को अपनी ओर खींच लेती थीं. गिरिजा के सिर पर ओढ़नी होती थी, जिस के दोनों सिरे वह अपनी चोली में खोंस देती थी. कमर से घुटनों तक छींटदार घाघरा उस पर खूब फबता था. खुले गोरेगोरे घुटनों के नीचे के पैर हर एक को देखने को मजबूर कर देते थे. इस तरह गिरिजा अपना दूध बेचती रहती थी और जो रुपए आते थे, उन्हें अपनी चोली में खोंसती रहती थी. जब चोली में रुपए नहीं समाते थे, तो वह उन्हें और दबा कर भर देती थी. इस तरह कुछ रुपए चोली के बाहर तक ऊपर दिखाई दे जाते थे.

गिरिजा अपना सारा दूध बेच कर जैसलमेर लौट जाती थी. लाठी गांव के लठैत अपना लट्ठ लिए धमकाते, जबरन पैसे छीनते व जवान लड़कियोंऔरतों को छेड़ने से भी नहीं चूकते थे. जब गिरिजा दूध बेचने आती, तो ये लोग भी उस के आगेपीछे मंडराते थे, पर भीड़भाड़ व गिरिजा का कसरती बदन देख कर हिम्मत नहीं कर पाते थे.

एक दिन जब गिरिजा सारा दूध बेच कर अकेले खड़ी थी, तो कुछ मनचलों ने मौका देखा. उन के ग्रुप में बलवंत सिंह भी था.

उस के दोस्तों में से एक ने बलवंत सिंह से कहा ‘‘देख, आज मौका है. गिरिजा की चोली के ऊपर रुपए झांक रहे हैं. तुझे पुकार रहे हैं. रुपए भी छीन ले और उस की छाती को भी सहला आ.’’

बलवंत सिंह ने कहा, ‘‘बात तो तुम पते की कह रहे हो.’’ गिरिजा उन की कानाफूसी ताड़ गई और सचेत हो गई.

बलवंत सिंह ने गिरिजा की पीठ पर अपना एक हाथ रखा और उस की बगल के सहारे चोली तक डालने के लिए आगे बढ़ाया. यह देख कर गिरिजा ने उस का हाथ अपनी बगल में ही दबा दिया, जिस से वह चोली तक नहीं पहुंच सका.

गिरिजा ने कहा, ‘‘रे बलवंत, पीठ पीछे से हाथ डालता है? हिम्मत होती, तो सामने से आ कर मेरी चोली को टटोलने की कोशिश करता. तू तो बुजदिल निकला रे. ‘‘अब सुन, तेरा हाथ मेरी बगल में दबा हुआ है. तू उसे छुड़ाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दे. अगर तू अपना हाथ छुड़ाने में कामयाब हो जाएगा, तो मेरी चोली में सारे रुपए तेरे हो जाएंगे और मैं तुझे मुफ्त में जैसलमेर सैर कराने ले जाऊंगी.

‘‘पर याद रखना कि तेरे साथी बीच में आए, तो उन की भी खैर नहीं.

‘‘अब तू ताकत लगा कर अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश कर.

‘‘पर अगर तू हाथ छुड़ाने में नाकाम रहा, तो यह दूध का घड़ा है न, इसे पानी से भर कर तुझे अपने सिर पर रख कर पूरे गांव का चक्कर लगाना पड़ेगा.

जब वहां यह जोरआजमाइश हो रही थी, तो काफी भीड़ इकट्ठा हो गई. लोग तमाशा देख कर कहते थे कि अब क्या होगा. इधर बलवंत सिंह अपना हाथ छुड़ाने के लिए पूरा जोर लगा रहा था, उधर गिरिजा का शिकंजा उतना ही कसता जा रहा था.

आखिर में बलवंत सिंह थकने लगा. उस के हाथ में तेज दर्द होने लगा. वह कराहने लगा. उस का हाथ टूटने की कगार पर आ गया.

तब लोगों ने कहा कि गिरिजा, अब उस पर रहम कर और इस का हाथ अपनी पकड़ से छुड़ा दे.

गिरिजा ने फिर फिल्मी अंदाज में बलवंत सिंह से कहा, ‘‘बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए? तेरा हाथ तोड़ दिया जाए या छोड़ दिया जाए?’’

बलवंत सिंह बोला, ‘‘मैं तेरा बेटा हूं. मैं हारा, माफी मांगता हूं. मैं ने गलती कर दी. मुझे माफ कर दे. मेरा हाथ छोड़ दे, वरना टूट जाएगा. मेरा दिमाग खराब था, जो मैं ने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाला.’’

तब गिरिजा ने कहा, ‘‘मैं अब तुझे अपनी गिरफ्त से तभी छोड़ूंगी, जब तू और ये तेरे यारदोस्त मुझे और इन सारे गांव वालों को वचन देंगे कि आगे से गुंडागर्दी नहीं करेंगे.’’

बलवंत सिंह ने सब लोगों के सामने जब वादा किया, तो गिरिजा ने उस का हाथ अपनी पकड़ से छोड़ दिया.

बलवंत सिंह हाथ सहलाता हुआ नीची निगाहें करते हुए वहां से इस तरह गायब हुआ, जैसे गधे के सिर से सींग.

गांव वालों ने गिरिजा की हिम्मत की तारीफ की और नारा लगाया, ‘गिरजा ग्वालिन जिंदाबाद…’

इस के बाद गांव वालों ने गिरिजा ग्वालिन को सम्मान के साथ जैसलमेर जाने को कहा और वह वहां से मुसकराते हुए चल दी.

Hindi Story : सैल्फी – निशि को हर वक्त अपनी बेटी की चिंता क्यों रहती थी?

Hindi Story : निशिपत्रिका के पेज पलटे जा रही थी, परंतु कनखियों से बेटी कुहू को देखे जा रही थीं. आधे घंटे से कुहू अपने फोन पर कुछ कर रही थी. देखतेदेखते निशि अपना धैर्य खो बैठीं तो डांटते हुए बोलीं, ‘‘कुहू, क्यों अपना भविष्य अंधकारमय कर रही हो? हर समय फोन से खेलती रहती हो… आखिर तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? यदि नंबर अच्छे नहीं आए तो किसी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिलेगा,’’ और उन्होंने उस के हाथ से फोन छीन लिया.

‘‘मम्मा, देखो भी मैं ने फेसबुक पर अपनी सैल्फी पोस्ट की थी. 100 लाइक्स थोड़ी सी देर में ही मिल गए और कौमैंट तो देखिए, मजा आ गया. कोई हौट, लिख रहा है, तो कोई सैक्सी… यह तो कमाल हो गया,’’ कह कुहू प्यार से मां से लिपट गई.

‘‘कुहू छोड़ो भी मुझे… तुम तो पागल कर के छोड़ोगी… फेसबुक पर अपना फोटो क्यों डाला?’’

‘‘तो क्या हुआ? मेरी सारी फ्रैंड्स डालती हैं, तो मेरा भी मन हो आया.’’

‘‘अच्छा, अब बहुत हो गया. उसे तुरंत डिलीट कर दो.’’

‘‘मम्मा, आप पहले कमैंट्स तो पढ़ो, मजा आ जाएगा.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब अक्ल आएगी,’’ निशि सिर पर हाथ रख कर बैठ गईं.

तभी निधि की सास सुषमाजी कमरे में घुसती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ निशि, क्यों बेटी को डांट रही हो? क्या किया इस ने?’’

‘‘मम्मीजी, आप इसे समझाती क्यों नहीं. इस ने फेसबुक पर अपना फोटो डाला है. 18 साल की हो चुकी है, लेकिन बातें हर समय बच्चों वाली करती है… आजकल समय बहुत खराब है.’’

‘‘निशि, मैं तुम्हें बारबार समझाती हूं… पर तुम कुछ ज्यादा ही इसे ले कर परेशान रहती हो.’’

‘‘क्या करूं मम्मीजी, टीवी, पत्रपत्रिकाएं सभी लड़कियों के साथ होने वाले अत्याचारों से भरे होते हैं. अब तो हद हो गई है… रास्ते में चलती लड़कियों को कार वाले खींच कर ले जाते हैं… अपनी दिल्ली अब लड़कियों के लिए कतई सुरक्षित नहीं रह गई है. जब से दामिनी वाला हादसा हुआ है मेरा तो दिल हर समय डर से कांपता रहता है.

‘‘कल शाम को मेरी सहेली पूजा आई थी. कह रही थी कि उस का मैनेजर उसे रोज शाम को काम के बहाने रोक लेता था और फिर कभी कौफी, तो कभी डिनर के लिए चलने को कहता. फिर एक दिन तो उस ने उस का हाथ भी पकड़ लिया. बस उसी दिन से इस्तीफा दे कर वह घर बैठ गई. अब दूसरी नौकरी ढूंढ़ रही है.

‘‘मम्मीजी, हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे होते जा रहे हैं… 2-3 दिन पहले मुंबई से ईशा का फोन आया था कि जूनियर लोगों की प्रोमोशन होती जा रही है, परंतु उस की प्रोमोशन रुकी हुई है, क्योंकि वह लड़की है… लड़के अपने बौस की विदेशी दारू से सेवा करते हैं… लड़की हो तो उन की डिमांड को समझो… मम्मीजी, मुझे अपनी कुहू को देख कर बहुत डर लगता है.’’

‘‘निशि, जो डरा सो मरा. इसलिए बहादुरी से जीवन जीओ… सब की लड़कियां बड़ी होती हैं और लड़के भी बड़े होते हैं. उसे अपने पास बैठा कर अच्छेबुरे की पहचान करना सिखाओ.

‘‘यदि उस ने फेसबुक पर फोटो पोस्ट कर दिया तो इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. आजकल सभी बच्चे ये सब करते रहते हैं.’’

छोटे शहर और साधारण परिवार से संबंध रखने वाली निशि अपनी सुंदरता के कारण नेताजी के लड़के साथ ब्याह कर दिल्ली जैसे महानगर में आ गई थीं. नेताजी कपड़ों की तरह पार्टियां बदलते रहते और उन का बेटा रंगीनमिजाज नीरज सुरा और साकी दोनों ही बदलता रहता. इन सब कारणों से वह अपनी बेटी के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं.

‘‘मम्मीजी, कुहू कुछ समझने को ही तैयार नहीं… अपने कमरे में शीशे के सामने मेकअप करेगी, म्यूजिक चैनल पर डांस देखदेख कर वैसे ही डांस करती है.’’

‘‘निशि, तुम समझदार बनो… यह तो उस की उम्र है. इस समय मस्ती नहीं करेगी तो कब करेगी? तुम अपना भूल गई… तुम भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ फिल्मी पत्रिकाएं और फैशन की बातें छिपछिप कर करती रही होंगी.’’

‘‘मम्मीजी, आप सही कह रही हैं, मैं भी एक बार स्कूल कट कर पिक्चर देखने गई थी…’’

‘‘नीरज कह रहे हैं कि यह को-एड कालेज में ही पढ़ेगी. आप क्यों नहीं मना करती हैं? यह इतनी सुंदर है और साथ ही भोली और नाजुक भी है. कैसे लड़कों की निगाहों को झेल पाएगी?’’

‘‘माई डियर मम्मा, लो गरमगरम चाय पीओ. मैं ने बनाई है. आप खुश रहा करो… तब आप बहुत प्यारी लगती हो. आप की बेटी किसी भी लफड़े में नहीं पड़ेगी, इतना तो आप पक्का समझो.’’ कह कुहू अंदर चली गई.

‘‘निशि, मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकती हूं कि तुम नीरज के रोजरोज के नएनए स्कैंडल से परेशान रहती हो, परंतु बेटी सब से अच्छा उपाय है कि तुम अपनी बेटी पर विश्वास करो. मैं ने भी तुम्हारे पापाजी की राजनीति में रहने के कारण बड़ी विषम परिस्थितियों को झेला है.’’

तभी निशि की बचपन की सहेली स्नेहा आ गई. बोली, ‘‘क्या बात है, चाय पर सासबहू में क्या चर्चा हो रही है?’’

सुषमाजी उठती हुई बोलीं, ‘‘मेरी तो मीटिंग है, इसलिए मैं चलती हूं… अपनी सहेली को समझा कर जाना.’’

‘‘कुहू, स्नेहा के लिए 1 कप चाय बना दो.’’

‘‘नो मम्मा. मेरा आज का चाय बनाने का कोटा फिनिश हो गया… अब मैं स्नेहा आंटी से बातें करूंगी.’’

स्नेहा एक कंपनी में मार्केटिंग हैड है, इसलिए निशि हमेशा उसे अपना आदर्श मानती हैं और अपने दिल का बोझ उस के सामने हलका कर लिया करती हैं.

स्नेहा ने कुहू को प्यार से गले लगाते हुए कहा, ‘‘माई स्वीटी, लुकिंग वैरी नाइस.’’

‘‘थैंक्यू आंटी. मम्मा ने तो मुझे परेशान कर रखा है.’’

‘‘क्या हुआ? निशि बड़ी परेशान दिख रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं… यह बड़ी हो रही है… इसे वही समझाने की कोशिश करती रहती हूं, पर इस ने तो मानो न समझने का प्रण कर रखा है.’’

‘‘दिन भर टीवी पर रेप की खबरें देखदेख कर जी दहल जाता है. जराजरा सी बात पर मुंह पर ऐसिड फेंक देते हैं.’’

‘‘निशि, सड़क पर ऐक्सीडैंट हो जाते हैं, यह सोच कर न तो गाडि़यां चलनी बंद होती हैं और न ही इनसानों का चलना. हर समय परेशान रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता… कुहू को अपनी सुरक्षा के लिए जूडोकराटे क्लास जौइन कराओ.’’

‘‘आंटी, मम्मा तो चाहती हैं कि मैं रातदिन किताबों के सामने से न हटूं… बताइए क्या यह संभव है? बालकनी में खड़ी हो कर बाल सुलझाने लगूं तो लंबा लैक्चर दे डालेंगी. यदि किसी दिन ट्यूशन से आने में 5 मिनट की भी देरी हो जाए तो हंगामा कर देंगी… आंटी, मेरी सारी फ्रैंड्स के बौयफ्रैंड हैं. सब साथ मूवी देखने जाते हैं, कैफे जाते हैं… खूब मस्ती करते हैं. लेकिन मैं कहीं नहीं जा सकती… सब मेरा मजाक उड़ाते हैं कि मम्माज डौटर.’’

निशि किसी काम से अंदर गई हुई थीं.

‘‘आंटी, मुझे तो खुद ही लड़कों से दोस्ती ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन हर समय टोकाटाकी से मैं परेशान हो जाती हूं,’’ कुहू की आंखें भर आई थीं.

तभी निशि कमरे में आ गईं. वे कुहू को डांटते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी शिकायतें पूरी हो गई हों तो जाओ… तुरंत पढ़ने बैठ जाओ.’’

‘‘मम्मा, प्लीज ठहरिए. मुझे आंटी से बात कर लेने दीजिए. मैं 15 मिनट बाद जा कर पढ़ने बैठ जाऊंगी.’’

स्नेहा प्यार से कुहू के सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘कुहू, अपने कालेज फ्रैंड़स के बारे में बताओ?’’

कुहू ने चुपके से निशि की ओर इशारा किया तो स्नेहा बोलीं, ‘‘निशि चाय पीने का मन है… चाय बना लाओ.’’

मजबूरन निशि को वहां से जाना पड़ा.

निशि के जाते ही कुहू बोली, ‘‘आंटी, मम्मा मुझ पर शक करती हैं… मेरे फोन के मैसेज छिपछिप कर चैक करती हैं… मेरा लैपटौप खंगालती रहती हैं.’’

‘‘यह तो गलत बात है. अपनी बेटी पर शक नहीं करना चाहिए.’’

‘‘आंटी, एक मजे की बात बताऊं? मैं ने अपना फोटो पोस्ट किया तो मुझे 50 फ्रैंड रिक्वैस्ट आईं… मैं ने भी मस्ती के लिए एक को क्लिक कर चैटिंग करने लगी… उस ने लिखा था कि तुम बहुत सुंदर हो… मुझ से दोस्ती करोगी? मैं ने जवाब में लिखा कि मैं तो बहुत भद्दीमोटी और काली हूं… आई एम टोटली अगली गर्ल… इसलिए मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है. इस पर उस ने लिखा कि फिर भी मैं तुम से दोस्ती करूंगा, क्योंकि तुम लड़की तो हो ही… मस्ती के लिए लड़की चाहिए… गोरीकाली कोई भी चलेगी… बताओ कल शाम 5 बजे कहां मिलोगी?

‘‘आंटी, मुझे बहुत गुस्सा आया. अत: मैं ने लिख दिया कि मस्ती के लिए गंदे नाले में डूब मरो.

‘‘आंटी, मैं मम्मा से कहती हूं, पुरातनपंथी बातें छोड़ कर मेरी तरह मौडर्न बनो. मुझ से मेरी कालेज की बातें सुना करो, पर वे मुझे डांट देती हैं.’’

‘‘तुम्हारे पापा के स्कैंडल्स की वजह से वे परेशान रहती हैं.’’

‘‘हां, मैं समझती हूं… इसीलिए तो मैं उन्हें और भी हंसाना और खुश रखना चाहती हूं.’’

छोटी सी लड़की के दिमाग में इतना कुछ भरा हुआ है, सोच कर स्नेहा को बहुत अच्छा लग रहा था.

‘‘आंटी, परसों मेरा बर्थडे था… मम्मीपापा रात को डिनर के लिए बाहर ले जा रहे थे… मैं ने जींस के साथ शौर्ट टौप पहना… बस मम्मा ने डांटना शुरू कर दिया कि टौप बहुत छोटा है… तेरा पेट दिखाई दे रहा है. फिर पापा ही बोले कि ठीक है निशि, बच्ची है हर बात में टोका न करो.’’

निशि ने कुहू की बात सुन ली थी. आगे क्यों नहीं बताया कि मौल में किसी लड़के ने कुहनी मारी… फिर पापा से लड़ाई होने लगी… वह तो मौल के गार्ड के बीचबचाव से मामला शांत हो गया… मेरा तो मूड ही खराब हो गया था.

‘‘आप मम्मा को समझाइए कि अब मैं बड़ी हो गई हूं. चौकलेट मुझे पसंद है, इसलिए खाती हूं. जैसे ही मैं ड्रैसअप होती हूं, मुझे देखते ही डांटना शुरू कर देती हैं कि फिर तुम ने इस टौप को पहन लिया… कानों में ये क्या लटका लिए… किस के साथ जा रही हो? कहां जा रही हो? कब आओगी…? मेरी सारी फ्रैंड्स मेरा मजाक उड़ाती हैं.

‘‘भैया सारे घर में तौलिया पहन कर घूमता रहेगा… कोई कुछ नहीं बोलेगा. सारी बंदिशें मेरे लिए ही. स्लीवलैस टौप नहीं पहनोगी, शौर्ट्स नहीं पहनोगी, लिपस्टिक क्यों लगा ली? किस का फोन था? किस का मैसेज था? किस के संग बैठ कर पढ़ोगी… जैसे उन के हजार प्रश्नों से मैं तंग हो चुकी हूं. प्लीज आंटी मम्मा को समझाइए.’’

निशि के कमरे में घुसते ही कुहू पल भर में वहां से उड़नछू हो गई थी पर आंखोंआंखों से स्नेहा से रिक्वैस्ट कर गई थी.

‘‘निशि तुम ने चाय बहुत अच्छी बनाई है… क्या बात है, तुम्हारे चेहरे पर परेशानी और चिंता झलक रही है?’’

‘‘स्नेहा, मैं कुहू के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. नीरज को तो जानती ही हो, उन की अपनी दुनिया है, इसलिए हर पल मैं किसी अनिष्ट की आशंका से डरती रहती हूं.’’

‘‘ऐसा भी क्या है? अच्छीभली है तुम्हारी बेटी… पढ़ने में होशियार है… समझदार है… सुंदर है. तुम्हारे पास पैसा भी है. फिर किस बात का डर तुम्हें सताता रहता है?’’

‘‘मेरे घर का माहौल तो तुम जानती ही हो. पापाजी नेता हैं. सैकड़ों लोग आतेजाते रहते हैं… उन के कुछ दोस्त अकसर आते हैं, जिन्हें कुहू दादू कहती है… यह उन के पास बैठ कर बातें करती है, ठहाके लगाती है तो मेरा खून खौल उठता है… घर में पीनेपिलाने वाली पार्टियां होती रहती हैं… बापबेटा दोनों साथ बैठ कर पीते हैं. मैं अपने मन का डर आखिर किस से कहूं? अगले साल इसे अच्छे कालेज में दाखिला मिल जाए, तो होस्टल भेज दूंगी… मगर होस्टल का नाम सुनते ही मुझ से चिपक कर सिसकने लगती है.

‘‘जब टीवी या पेपर में रेप या ऐसिड अटैक की घटना सुनती हूं तो डर से कांपने लगती हूं. ऐसा मन करता है इसे अपने पल्लू में छिपा लूं. लेकिन ऐसा संभव नहीं है… इसे पढ़नालिखना है, भविष्य में आगे बढ़ना है, अपने पैरों पर खड़े होना है…’’

‘‘निशि, जब तुम ये सब समझती हो तो क्यों परेशान रहती हो?’’

‘‘जैसे ही मैं इसे डांटती हूं तो तुरंत मुझे जवाब देती है कि मम्मा आप बैकवर्ड हो… आप से अच्छी तो दादी हैं… वे मौडर्न हैं… आप मुझ से न जाने क्या चाहती हैं? ऐसा मन करता है कि एक दिन इस की पिटाई कर दूं.’’ एक ओर मासूम कुहू की बातें तो दूसरी ओर निशि के दिल का डर, सब कुछ मन में गड्डमड्ड होने लगा था. दोनों अपनीअपनी जगह सही थीं. फिर स्नेहा निशि का हाथ अपने हाथ में ले कर बोलीं, ‘‘निशि, मैं तुम्हारे डर को महसूस कर रही हूं… हर मां इस दौर से गुजरती है. मेरी भी बेटी बड़ी हो रही है. जब वह ड्राइवर के साथ गाड़ी में स्कूल जाती है, तो मुझे भी मन में बुरेबुरे खयाल आते हैं, लेकिन स्कूल भेजना बंद तो नहीं हो जाएगा? कुहू उम्र के ऐसे दौर में है जब सब कुछ इंद्रधनुष की तरह आकर्षक और सतरंगा दिखाई पड़ता है.

‘‘आजकल के बच्चे हम लोगों से ज्यादा होशियार और समझदार हैं… सब से पहली बात यह कि अपनी बेटी पर विश्वास करो. अपने मन से शक का कीड़ा निकाल फेंको.

‘‘तुम दिन भर घर में रहती हो. नीरज की अपनी दुनिया है. इन सब कारणों से तुम्हारे मन में नकारात्मक विचारों ने अपना घर बना लिया है… तुम्हें इस से उबरना पड़ेगा… तुम घर से बाहर निकलो. अनेक हौबी क्लासेज है… अपनी रुचि की क्लास जौइन कर लो… तुम्हें पहले घर सजाने का बड़ा शौक था… तुम इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन करो. इस समय तुम खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत को चरितार्थ कर रही हो.

‘‘जब तुम रोज घर से निकलोगी. 10-20 लोगों से मिलोगी, उन की समस्याओं और बातों को सुनोगी तो तुम्हें समझ में आएगा कि दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है. अपने को व्यस्त रखोगी तो दिन भर कुहू के लिए होने वाली चिंता अपनेआप कम हो जाएगी.

‘‘तुम कुहू की सहेली बनने का प्रयास करो. वह 21वीं शताब्दी की लड़की है. वह अपने भविष्य के लिए पूरी तरह जागरूक है.

‘‘मेरी वह निशि कहां खो गई है, जो बड़ीबड़ी बहसों में सब को हरा कर प्रथम आती थी? यदि मेरी बात कुछ समझ में आई हो तो दोनों मांबेटी मिल कर फेसबुक के कौमैंट्स पर ठहाके लगा कर देखो, कितना मजा आता है. अच्छा निशि, बातों में समय का पता ही नहीं लगा… चलती हूं… किसी दिन मेरे घर आना.’’

पीछेपीछे कुहू भागती हुई आई… शायद वह हम दोनों की बातें सुन रही थी. उस की आंखों की मासूम चमक देख अच्छा लग रहा था. वह मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में फुसफुसाई, ‘‘थैंक्स आंटी.’’

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें