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दिन दहाड़े

हमारे एक पड़ोसी भैया को बड़ा क्वार्टर मिला था. क्वार्टर की साफसफाई आदि करवाने के बाद वे वहां शिफ्ट करने वाले थे. एक सुबह वे पत्नी से यह कह कर गए कि औफिस जा रहा हूं, वहीं से व्यवस्था कर के ट्रक भेज दूंगा. 2 घंटे बाद उन के दरवाजे पर एक ट्रक आ कर रुका. उस में से उतरे आदमी ने उन की पत्नी के पास जा कर कहा, ‘‘साहब ने ट्रक भेजा है तथा सामान चढ़ाने को कहा है.’’ भाभी बेचारी ने फर्नीचर, टीवी, कूलर, कंप्यूटर आदि सब चढ़वा दिया और ट्रक वाला ले कर चला गया. बाद में भैया आए और बोले, ‘‘ट्रक की व्यवस्था हो गई है, आता ही होगा.’’ जब भाभीजी ने कहा कि वह तो सामान ले गया है. भैया के हाथपांव फूल गए कि सामान कौन ले गया. वह ट्रक वाल दिनदहाड़े उन के घर का सामान ले कर रफूचक्कर हो गया था.

पूनम यादव, दुर्ग (छग)

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हम लोग 2 साल पहले हरिद्वार गए थे. वहां 3 दिन रहने के बाद हमारी दिल्ली के लिए सुबह 8 बजे की ट्रेन से टिकटें रिजर्व थीं. जैसे ही ट्रेन आई और मेरे पतिदेव ऊपर चढ़े और मैं ट्रेन में चढ़ने वाली थी कि अचानक कई स्त्रियां ट्रेन से नीचे उतरने लगीं और 2-3 मेरे पीछे खड़ी हो गईं. मेरे दोनों हाथों में सामान था. वे स्त्रियां मुझे पीछे से जल्दी चढ़ने के लिए धक्का दे रही थीं. जब मैं ऊपर चढ़ी तो देखा मेरे हाथ से 2 तोले का कंगन काट लिया गया था. तब तक टे्रन भी चलने लगी. हम कुछ नहीं कर सकते थे. वे सब स्त्रियां नदारद थीं.

शोभा आहुजा

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बात पुरानी है. मैं और मेरी पड़ोसिन दोनों ही जौब करते थे. एकदूसरे को जानते तो थे पर मिलनाजुलना ज्यादा नहीं था. लेकिन उन की नौकरानी हमारे घर रोज ही आ जाती थी, कभी 2 आलू मांगने, कभी ब्रैड के 4 स्लाइस, तो कभी 2 अंडे. मुझे बहुत खीझ होती थी लेकिन पड़ोस का मामला था सो मैं मना नहीं कर पाती थी. एक दिन सुबह जब वह नौकरानी हमारे घर कुछ मांगने आई तो पड़ोसिन ने उसे देख लिया और वहीं से उसे आवाज दे कर कहा कि तुम वहां क्या कर रही हो? मैं ने कहा कि यह तो रोज ही कुछ न कुछ मांगने यहां आती है. यह सुन कर वे बहुत शर्मिंदा हुईं और कहने लगीं कि मैं तो रोज ही इसे पैसे देती हूं सामान लाने के लिए. तब मेरी समझ में आया कि पैसे वह अपनी जेब में रख कर, सामान हमारे घर से ले जाती थी.

कीर्ति सक्सेना, बेंगलुरु (कर्नाटक)

प्यार से तुम ने बुलाया नहीं

वफा उस की कागजी थी शायद

जरा सी आंच न सह सकी शायद

उस के आने का करते रहे इंतजार

कोई गलतफहमी जरूर थी शायद

ख्वाब न पूरे हो सके अपने

हमारी कोशिशों में थी कमी शायद

सांस बेशक उस की चलती रहती है

जीने की तमन्ना मगर खत्म हो चुकी शायद

तुम से मिलने हम आते जरूर लेकिन

प्यार से तुम ने बुलाया नहीं कभी शायद.

      – हरीश कुमार ‘अमित’

 

बच्चों के मुख से

बात उन दिनों की है जब मेरा छोटा बेटा विशाल पहली कक्षा में पढ़ता था. छमाही परीक्षा के बाद उसे रिपोर्टकार्ड मिला. रिपोर्टकार्ड पा कर वह बहुत उत्साहित था. घर में आने वाले हर व्यक्ति को दौड़दौड़ कर अपना रिपोर्टकार्ड दिखाने लगा. उसे गणित में सिर्फ 5 अंक मिले थे. मैं ने उसे समझाया कि बेटा, गणित में बहुत कम अंक मिले हैं, इसलिए तुम्हारा रिपोर्टकार्ड सब को दिखाने योग्य नहीं है. उस ने तुरंत उत्तर दिया कि अम्मा, 5 अंक छोटे बच्चे के लिए बहुत होते हैं. उस वक्त मेरी सहेली इंदू पास में बैठी हुई थी. उस का हंसी के मारे बुरा हाल हो गया.

सरला राव, जमशेदपुर (झारखंड)

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मेरी बहन का 5 वर्षीय पोता सुमंत बहुत नटखट व बातूनी है. एक दिन वह मुझ से कहने लगा कि मुझे मोटरसाइकिल चलानी आती है पर कोई मुझे चलाने नहीं देता. मैं ने उस से कहा कि अभी तुम छोटे हो, जब बड़े हो जाओगे, कालेज में पढ़ने जाओगे तब मोटरसाइकिल चलाना. वह तपाक से बोला, ‘‘बड़े हो कर तो मैं पापा बनूंगा, फिर चाचा बनूंगा और फिर दादा.’’ उस के इस जवाब पर हम सब खूब हंसे.

नीलिमा राणा, जबलपुर (म.प्र.)

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बात उन दिनों की है जब मेरी नातिन के.जी. में पढ़ती थी. एक दिन वह स्कूल से घर आई और कहने लगी, ‘मम्मी, मम्मी, मैडम रोजरोज छोटी एबीसी सिखाती हैं. पता नहीं, छोटा वन, टू कब सिखाएंगी.’ उस की यह बात सुन कर हम हंसे बिना न रह सके.

मधु वर्मा, यमुना नगर (हरियाणा)

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मेरा क्रिशु तब 4 साल का था. उसे सेवदालमोठ की भुजिया बहुत पसंद थी. मना करने पर भी वह खा लेता था. मैं कितना भी गुस्सा होती, वह मानता ही नहीं था. 
एक दिन मैं बाजार गई. वहां से आने पर मैं ने देखा, क्रिशु लेट कर भुजिया खा रहा है. मैं गुस्सा करने लगी. वह झट से उठ कर खड़ा हो गया और रोतेरोते बोला, ‘मां, मैं ने भुजिया नहीं खाई, भुजिया तो सांप खा रहा था, क्योंकि तुम्हीं बोलती हो न कि लेट कर खाने से खाना सांप के पेट में जाता है.’ उस की भोली मासूम बातें सुन कर हम सब काफी देर तक हंसते रहे.

सुधा वर्मा, धनबाद (झारखंड)

आरपार की बात करो

जब कभी इश्क
प्यार की बात करो
न कभी
जीत हार की बात करो

दो घड़ी ये
मिलन की हमारे लिए
कीमती हैं
दीदार की बात करो

डर गए तो
गए इस जमाने से हम
अब चलो
आरपार की बात करो

संग मिल के सनम
खाई थी जो कसम
वक्त है इकरार की
बात करो.

– विनीत

गुमनामी की मांद में बाल सितारे

निर्देशक कौशिक गांगुली सत्यजीत रे की वर्ष 1955 की रिलीज मशहूर फिल्म ‘पाथेर पांचाली’ में अपू का किरदार निभाने वाले बाल कलाकार सुबीर बनर्जी के जीवन पर फिल्म बनाने की योजना पर काम कर रहे हैं. दरअसल, सुबीर आज 69 साल के हैं और वे सिनेमा की दुनिया से पूरी तरह से कटे हैं. फिल्म में काम करने के बाद वे सरकारी दफ्तर में कर्मचारी बन गए और बाद में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली. उन्हें जीवनभर अपू नाम से बुलाया जाता रहा है. पाथेर पांचाली उन की एकमात्र फिल्म थी. आश्चर्य इस बात का है कि उन्हें इस फिल्म के बारे में कुछ भी याद नहीं है.

हाल ही टीवी और फिल्मों में कई बाल कलाकारों ने दर्शकों का ध्यान खींचा है. फिल्म ‘भूतनाथ’ में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने वाला बाल सितारा और धारावाहिक ‘उड़ान’ की नन्ही बाल कलाकार तो स्टार रुतबा भी हासिल कर चुके हैं. पर क्या आगे चल कर ये कलाकार इतने ही चर्चित रहेंगे या फिर ये भी सुबीर कुमार की तरह बाकी जीवन अज्ञातवास में गुजारेंगे? हिंदी सिनेमा में कई ऐसे बाल कलाकार आए जिन्होंने अपनी नन्ही सी उम्र में अभिनय का लोहा मनवाया. इन की अदाकारी कई बार बड़ेबड़े सितारों पर भारी पड़ी तो कई बार इन्होंने मुख्य भूमिकाओं में अपने अभिनय से सब को चौंकाया लेकिन बाद में गायब से हो गए.

मदर इंडिया के बिरजू के बारे में तो कहा जाता है कि मदर इंडिया के बाद उन्हें हौलीवुड की फिल्मों में काम मिल गया. लेकिन हौलीवुड की किन फिल्मों में काम किया और उन का कैरियरग्राफ कैसा रहा, कोई नहीं जानता. फिल्म ‘अग्निपथ’ में आंखों में बूट पौलिश को काजल की तरह लगा कर छोटे विजय का किरदार निभाने वाले बाल कलाकार का गुस्सा ऐंग्री यंगमैन अमिताभ बच्चन से कम नहीं था. याद होगा, इसी कलाकार ने आर के नारायण के उपन्यास पर आधारित धारावाहिक ‘मालगुड़ी डेज’ में स्वामी के किरदार में कितना मार्मिक अभिनय किया था.  सरकार ने बच्चों के लिए मनोरंजक फिल्म बनाने वाली एक संस्था बनाई है पर अब तक न तो बाल कलाकारों का कुछ हुआ है न ही बाल फिल्मों का. हाल ही में दिल्ली में बाल फिल्म फैस्टिवल का आयोजन हुआ. इस दौरान बाल कलाकारों की गायब होती जमात पर कोई बात नहीं हुई.

मास्टर सत्यजीत को दर्शकों ने मनोज कुमार के साथ फिल्म ‘शोर’ में देखा था. उस फिल्म में इस बाल कलाकार ने हैंडीकैप्ड के किरदार को बड़ी सहजता से निभाया था. कुछ और फिल्मों में दिखने के बाद उन्हें फिर नहीं देखा गया. मास्टर राजू भी अपने जमाने के चर्चित बाल कलाकार थे. उन्होंने गुलजार की फिल्म ‘परिचय’ के अलावा राजेश खन्ना के साथ ‘बावर्ची’, ‘अमर प्रेम’ और ‘दाग’ जैसी फिल्मों में काम किया. जावेद अख्तर की पूर्व पत्नी हनी ईरानी भी कभी बतौर बाल कलाकार फिल्मों में काम करती थीं पर बाद में उन्होंने स्क्रिप्ट राइटिंग में कैरियर आजमाया और खासा नाम कमाया. फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ में बहुत सारे बाल कलाकारों ने काम किया. उन्हीं में से एक अहमद खान भी थे. अहमद ने बड़े हो कर अभिनय के बजाय निर्देशन और कोरियोग्राफी में हाथ आजमाया. वे काफी सफल भी रहे. लता मंगेशकर भी चाइल्ड आर्टिस्ट रहीं. सत्यजीत पुरी ने ‘मेरे लाल’, ‘हरे रामा हरे कृष्णा’, ‘अनुराग’ जैसी फिल्मों में अभिनय किया था. बाद में मौका न मिलने पर वे लेखन के क्षेत्र से जुड़ गए. अभिनेत्री और कमल हासन की पूर्व पत्नी सारिका भी बतौर बाल कलाकार हिंदी फिल्मों की पसंद बनी रहीं. उन्होंने ‘आशीर्वाद’, ‘सत्यकाम’, ‘छोटी बहू’ और ‘हमराज’ में बेहतरीन काम किया. बाद में अभिनेत्री के तौर पर उन्हें आंशिक सफलता हासिल हुई. परजान दस्तूर भी एक ऐसा ही नाम है जो बाल कलाकार के तौर पर सब का चहेता रहा पर बतौर अभिनेता गुमनाम ही रहा. सिनेप्रेमी परजान को ‘कुछकुछ होता है’, ‘परजानिया’ और ‘मोहब्बतें’ जैसी फिल्मों में देख चुके हैं.

कुछ बाल कलाकारों ने फिल्मों में लंबी पारी भी खेली. मसलन, सचिन पिलगांवकर. फिल्म ‘नदिया के पार’ में मुख्य भूमिका निभा कर रातोंरात स्टार हुए. सचिन बतौर बाल कलाकार भी उतने ही सफल हुए जितने मुख्य अभिनेता के तौर पर. बतौर बाल कलाकार, उन्होंने ‘बालिका वधू’, ‘मेला’, ‘ब्रह्मचारी’ और ‘ज्वैल थीफ’ जैसी हिट फिल्मों में काम किया. सचिन की तरह अरुणा ईरानी का कैरियर भी काफी सफल रहा. फिल्म ‘कोई मिल गया’ और ‘जागो’ समेत कई सीरियलों में बाल कलाकार के रूप में काम कर चुकी हंसिका मोटवानी आज दक्षिण भारतीय फिल्मों में स्टार अभिनेत्री हैं. महेश भट्ट की फिल्मों में अहम किरदार निभाने वाले कुणाल खेमू को लोगों ने ‘जख्म’ फिल्म में अजय देवगन के बचपन का किरदार संजीदगी से निभाते देखा. आज वे भी सफल अभिनेता हैं.

मधुबाला और मीना कुमारी ने बाल कलाकार के रूप में काम किया था. श्रीदेवी इस मामले में सब से ज्यादा सफल रहीं. बाल कलाकार के तौर पर मात्र 4 साल की उम्र में काम करने के बाद बतौर अभिनेत्री आज भी सफल पारी खेल रही हैं. इसी क्रम में पद्मिनी कोल्हापुरे भी हैं. गौरतलब है कि रितिक रोशन, नीतू सिंह, आशा पारेख, बौबी देओल, आमिर खान, आलिया भट्ट, अभिषेक बच्चन, ऋषि कपूर जैसे कई बड़े नाम बाल कलाकार के तौर पर नजर आ चुके हैं और आज इन की गिनती बड़े स्टार्स में होती है. इस का एक पहलू कुछ लोग यह भी मानते हैं कि ज्यादातर मामलों में उन्हीं बाल कलाकारों को बड़े होने पर मौका मिला जो फिल्मी परिवारों से संबंध रखते थे. जिन के परिवार के सदस्य इंडस्ट्री का हिस्सा नहीं थे वे बाल कलाकार सुपरहिट होने के बावजूद कहीं गुमनामी के अंधेरे में खो गए.

फिल्म ‘ब्लैक’ में आयशा कपूर और फिल्म ‘तारे जमीं पर’ में दर्शील सफारी जैसे बाल कलाकारों का अभिनय कोई नहीं भूल सकता. इसी तरह फिल्म ‘भूतनाथ’ में बिग बी के साथ काम करने वाले बंकू यानी अमन सिद्दीकी का आत्मविश्वास देखते ही बनता है. ‘आई एम कलाम’, ‘नन्हे जैसलमेर’, ‘चिल्लर पार्टी’ में बाल कलाकारों की लंबी फौज अभिनय प्रतिभा के साथ लबरेज दिख रही है. उन का आगे चल कर कैसा कैरियर होगा, यह वक्त ही बताएगा. दरअसल सही मार्गदर्शन न मिलने के चलते वे सही दिशा नहीं पकड़ पाते. इस के अलावा कुछ बाल कलाकारों को यह गुमान हो जाता है कि वे स्टार हो गए हैं. कम उम्र का यह गुमान उन्हें गुमनाम कर देता है. इस के अलावा कई बाल कलाकार फिल्मों के ढांचे में बहुत दिनों तक खुद को फिट नहीं रख पाते. लिहाजा, वे बहुत जल्दी भुला दिए जाते हैं, जैसा फिल्म ‘स्लमडौग मिलेनियर’ के बाल कलाकारों के साथ हुआ है. वरिष्ठ फिल्म समीक्षक जय प्रकाश चौकसे के मुताबिक, ऐक्ंिटग बाल कलाकार की शिक्षा में बाधा बनती है. इस के विशिष्ट होने के भाव के कारण उन का बचपन अपनी स्वाभाविकता और मासूमियत खो देता है. ख्याति जैसे बेलगाम घोड़े की सवारी में गिर जाना स्वाभाविक है. शायद, इसी वजह से वह अपने मूल अभिनय से कट कर खास से आम बन जाता है.

बाल कलाकार तब और अब

श्वेता प्रसाद : विशाल भारद्वाज की फिल्म मकड़ी के लिए बतौर बाल कलाकार राष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली लड़की श्वेता प्रसाद वेश्यावृत्ति के आरोप में गिरफ्तार की गई थी. हालांकि बाद में उसे क्लीनचिट मिल गई.

बेबी गुड्डू उर्फ शाहिदा बेगम : 80 के दशक में ‘आखिर क्यों’, ‘समंदर’ और ‘घरपरिवार’ जैसी फिल्मों में नजर आई. अब दुने की एक एअरलाइंस कंपनी में काम करती हैं.

मास्टर मंजूनाथ : ‘मालगुड़ी डेज’ धारावाहिक और फिल्म ‘अग्निपथ’ में काम किया. अब एक सौफ्टवेयर कंपनी में सेवारत हैं.

शफीक सईद : मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बौंबे’ में राष्ट्रीय पुरस्कार जीता. बाद में जूनियर आर्टिस्ट का काम किया. इन दिनों बेंगलुरु में रिकशा चलाते हैं.

मास्टर अलंकार : ‘शोले’, ‘डौन’, ‘ड्रीम गर्ल’ जैसी कई सुपरहिट फिल्मों में काम किया. इन का यूएस में बिजनैस है.

परजान दस्तूर : फिल्म ‘कुछकुछ होता है’ के क्यूट सरदार और फिल्म ‘परजानिया’ में गंभीर भूमिका करने के बाद इन दिनों अभिनय छोड़ कर पढ़ाई में व्यस्त हैं.

अविनाश मुखर्जी : धारावाहिक ‘बालिका वधू’ से मिली पहचान. इन दिनों घर पर पढ़ाई कर रहे हैं.

सत्यजीत पुरी : बतौर बाल कलाकार फिल्म ‘मेरे लाल’, ‘हरि दर्शन’, ‘बिदाई’ के बाद युवावय में ‘अर्जुन’, ‘शोला और शबनम’ में काम के बावजूद नहीं मिली पहचान. इन दिनों निर्देशक बनने के लिए संघर्षरत.

मास्टर बिट्टू उर्फ विशाल देसाई : फिल्म ‘चुपकेचुपके’, ‘मिस्टर नटवरलाल’, ‘याराना’ में काम किया. निर्देशक बनने के लिए संघर्षरत.

सना सईद : फिल्म ‘कुछकुछ होता है’, ‘हर दिल जो प्यार करेगा’ और ‘बादल’ में काम किया. पिछले दिनों फिल्म ‘स्टूडेंट औफ द ईअर’ में भी काम किया. फिलहाल कोई काम नहीं है.

बेबी फरीदा : 60 के दशक में फिल्म ‘दोस्ती’, ‘राम और श्याम’, ‘जबजब फूल खिले’ और ‘काबुलीवाला’ में काम किया. कहते हैं उन्हें फिल्म ‘बौबी’ के लिए लीड रोल मिला था पर इनकार कर दिया. इन दिनों टीवी पर दादी के किरदार निभा रही हैं.

बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट, कौमेडी शो छोटे मियां से घरघर पौपुलर हुए मोहित बघेल भी टीवी से फिल्मों में आए. सलमान खान अभिनीत फिल्म ‘रेडी’ में अमर सिंह चौधरी के किरदार ने मोहित को सलमान का चहेता बना दिया. नतीजतन, मोहित उन के साथ फिल्म ‘जय हो’ में नजर आए. साथ ही जल्द ही ‘नो एंट्री’ के सीक्वल ‘नो एंट्री में एंट्री’ में भी वे कौमेडी करते नजर आएंगे. बाल कलाकारों के अचानक लाइमलाइट में आने और फिर गुमनाम हो जाने के सवाल पर मोहित का नजरिया कुछ और है. उन के मुताबिक, एक चाइल्ड आर्टिस्ट को अपनी कामयाबी को स्थिर रखना नहीं आता. ज्यादातर बाल कलाकार सफलता के नशे में सवार हो कर यह भूल जाते हैं कि वे बड़े भी हो रहे हैं और वयस्क होते ही बाल कलाकार की छवि से बाहर आ कर अभिनय करना होगा. यही वजह है कि जैसेजैसे वे बड़े होते हैं, लोकप्रियता से दूर होने लगते हैं. इस मामले में वे खुद सबक लेते हुए कहते हैं कि बाल कलाकार हमेशा बच्चा बन कर नहीं रह सकता. मैं भी इसीलिए फिल्म ‘युवा’ से अपनी बाल कलाकार छवि से मुक्त हो कर मुख्य अभिनेता बनने के सफर पर निकल चुका हूं. उम्मीद है उन्हें बतौर बाल कलाकार ही नहीं, बल्कि वयस्क अभिनेता के तौर पर भी कामयाबी व पहचान मिलेगी.

मजबूती के बाद शेयर बाजार में सुनामी

शेयर बाजार ने नए वर्ष 2015 का स्वागत मजबूती के साथ किया. बीते दिसंबर में विनिर्माण क्षेत्र का आंकड़ा सकारात्मक रहने से बाजार ने उत्साहजनक जवाब दिया और नए साल के दूसरे कारोबारी दिवस को बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी बीएसई का सूचकांक 4 सप्ताह के शीर्ष तक पहुंच गया. निरंतर नई ऊंचाई को छूते सूचकांक ने वर्ष 2014 के आखिर में 2009 के बाद पहली बार सर्वाधिक सालाना उपलब्धि दर्ज की. 5 साल में यह स्तर हासिल करने से निवेशकों का मनोबल बढ़ा है. सरकार भी विदेशी निवेश का प्रवाह बढ़ाने के लिए कदम उठा रही है.

नए साल की शुरुआती बढ़त के बाद पहले सप्ताह में ही सूचकांक को हलका झटका लगा और दूसरे दिन तो बाजार में सुनामी आ गई, सूचकांक 855 अंक ढह गया. 5 साल में 1 दिन की इस सब से बड़ी गिरावट के कारण निवेशकों के 2.75 लाख करोड़ रुपए डूब गए. नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी भी 252 अंक गिर गया. कच्चे तेल के दाम विश्व बाजार में 50 डौलर प्रति बैरल से नीचे आने को इस गिरावट की बड़ी वजह माना जा रहा है. शेयर बाजार में गिरावट का एक कारण यूनान का आंतरिक संकट भी बताया जा रहा है जिस के चलते यूरो के मुकाबले डौलर लगातार मजबूत हो रहा है. यूरो इस दौर में 9 साल के निचले स्तर पर है. विश्लेषक यूनान के संकट को आंतरिक राजनीतिक संकट मानते हैं जो जल्द ही हल हो जाएगा. उन्हें लगता है कि यह सब क्षणिक स्थिति है और निवेश के तेज होने व उपभोक्ताओं का खर्च बढ़ने से कंपनियों को फायदा होगा और इस आर्थिक साल के अंत तक बाजार 33 हजार अंक को पार कर जाएगा.

यों निहारो न कनखियों से

कुंआरी सुबह हो जाएगी
दोशीजा रात ढल जाएगी
रुख से हटा दो परदा

मेरी तकदीर बदल जाएगी
कातिल नाजो अदाएं
लजीली शोख कटारी चितवन
रेशमी आंचल लहरा दो

रुत बसंती दहल जाएगी
तू इंतजार में अपने
पलट कर हाल तो देख ले मेरा
डाल दे निगाहे करम

शबनमी चाहत पिघल जाएगी
बर्फ सी चमक
शोलों की खूबसूरत लपक है तुझ में
सामने देख कर

तबीयत हर एक की मचल जाएगी
दहकते सुर्ख लबो रुखसार
कसमसाती यौवन कलियां
छू लिया जो तुम्हें तो

मेरी उंगली ही जल जाएगी
नखशिख सोया है
मीठा मादक प्रणय संगीत तुझ में
तेरी चूडि़यों में, पायलों में

सरगम सी बिछल जाएगी
उनींदी पलकें, कजरारी आंखें
संगमरमरी गोरी बांहें
मौत भी आ गई हो

तो बहाने बना कर टल जाएगी
तू न चाहे तो तुझे पा कर भी
कोई कभी पा नहीं सकता
तू जो चाहे तो??

हंसी उल्फत जन्नत तक उछल जाएगी
ये तेरा ही नरम तसव्वुर है
या तेरी बेशुमार तमन्नाएं
तेरी यादों की नदिया

इक रोज मुझे निगल जाएगी
यों निहारो न कनखियों से
मेरी आरजू बहल जाएगी
संभाल नहीं पाओगी
तन से ओढ़नी फिसल जाएगी.

सुभाष चंद्र झा

पाठकों की समस्याए

मैं 40 वर्षीय महिला हूं, ऐसे पुरुष से प्यार करती हूं जो मेरी ही उम्र का है और विवाहित है. लेकिन एक ही घर में रहते हुए वह व उस की पत्नी अलगअलग रहते हैं. उस की 3 साल की बेटी है. मैं यह सब जानते हुए भी उस से प्यार कर बैठी. क्या मैं गलत कर रही हूं? अगर गलत है तो उपाय बताइए.

एक विवाहित पुरुष से, वह भी जिस की एक बेटी भी है, प्यार करना एक बड़ा जोखिम लेना और खुद से खिलवाड़ करना है. आप का ऐसा करना उन पतिपत्नी के रिश्ते में मुश्किलें ही नहीं खड़ी करेगा बल्कि आप के हाथ भी कुछ नहीं लगेगा. पतिपत्नी के बीच अलगाव के कई कारण हो सकते हैं लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह पुरुष आप के लिए अपनी पत्नी और बेटी को छोड़ ही देगा. और अगर छोड़ भी दे तो उस स्थिति में आप उस परिवार के बिखरने का कारण बनेंगी. इसलिए इस स्थिति में आप एक अच्छे दोस्त की तरह उस पुरुष से मात्र दोस्ती रखिए, उस के वैवाहिक जीवन में दरार का कारण मत बनिए. आप यह मान कर चलिए कि आप जो कर रही हैं उस में भविष्य में कोई लाभ न मिलेगा.

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मैं 23 वर्षीय महिला हूं. विवाह को 3 वर्ष हो गए हैं. पति पुलिस विभाग में कौंस्टेबल हैं. मुझे पता चला है कि शादी से पहले मेरे पति किसी लड़की से प्यार करते थे जिस की अब शादी हो चुकी है और उस का एक बेटा भी है. मैं ने कई बार अपने पति को उस से बात करते भी सुना है. मैं अपने पति से बहुत प्यार करती हूं. मेरे पति दूसरे शहर में रहते हैं. मैं जब भी उन को अपने साथ ले जाने को कहती हूं, वे इनकार कर देते हैं. मुझे डर है कि उस लड़की का मेरे पति से अब भी रिश्ता है. मुझे अपने पति को उस लड़की से दूर करने के लिए क्या करना चाहिए?

शादी से पहले के संबंधों को आप अधिक तूल मत दीजिए, खासकर जब वह लड़की अब शादीशुदा है और उस का एक बेटा भी है. जहां तक उस लड़की के साथ आप के पति द्वारा बात करने की बात है, उसे सामान्य समझिए. हां, आप अपने पति से जिद कर अपने साथ ले जाने को कहिए. अपने साथ न ले जाने का कारण पूछिए. क्या पता आप को साथ न ले जाने का कोई सही कारण हो. मसलन, वहां रहने की सही सुविधा न होना आदि. पति का प्यार से दिल जीतिए और जब एक बार आप दोनों साथ रहने लगेंगे तो वे पुराने रिश्ते को भूल भी जाएंगे.

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मैं 35 वर्षीय विवाहित पुरुष हूं और 2 बच्चों का पिता हूं. पिछले 5 वर्षों से मेरा एक तलाकशुदा महिला से बहुत गहरा संबंध था. मेरा यह संबंध शादी से पहले स्कूल टाइम में भी था. मेरी समस्या यह है कि कुछ दिनों पहले उस महिला की दूसरी शादी हो गई है और उस ने पूरी तरह से मुझ से रिश्ता तोड़ लिया है. यहां तक कि फोन पर भी बात करना छोड़ दिया है. उस का यह बदला व्यवहार मैं बरदाश्त नहीं कर पा रहा हूं. मैं पूरी तरह से टूट चुका हूं और शराब भी पीने लगा हूं. मैं क्या करूं, कुछ समझ नहीं आ रहा.

पहली बात तो यह कि एक विवाहित और 2 बच्चों के पिता को ऐसा संबंध रखना शोभा नहीं देता. लेकिन आप के केस में अच्छी बात यह है कि उस महिला की दूसरी जगह शादी हो गई है और उस ने स्वयं ही आप से सारे संबंध तोड़ लिए हैं. उस महिला की जुदाई में नशा करना समझदारी का काम नहीं है. आप के लिए अच्छा यही है कि आप अपना ध्यान अपने घरपरिवार और बच्चों पर लगाएं. धीरेधीरे सब सामान्य हो जाएगा.

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मैं 28 वर्षीय महिला हूं, मेरा विवाह हुए 10 वर्ष हो चुके हैं. मेरे 3 बच्चे भी हैं. समस्या यह है कि पिछले 2 साल से  पति के तेवर कुछ बदलेबदले नजर आ रहे हैं. मैं ने उन के 2-3 अफेयर पकड़े हैं. आजकल वेअफीम भी खाने लगे हैं. और तो और, उन्होंने काम करना भी छोड़ दिया है. मैं बहुत परेशान हूं, क्या करूं? सलाह दीजिए.

आप के पति गलत संगत में पड़ चुके हैं जिस की वजह से उन्होंने घरपरिवार की जिम्मेदारी से अनदेखी कर ली है और कामकाज छोड़ कर घर पर बैठ गए हैं. उन का ऐसा रवैया अधिक दिन नहीं चल सकता क्योंकि घरपरिवार की जिम्मेदारी बिना पैसों के पूरी नहीं हो सकती. इस से पहले कि वे अपनी इस आदत के कारण किसी अपराध में संलग्न हो जाएं या किसी अन्य मुसीबत में पड़ जाएं, वे जब भी सामान्य हों उन से साफसाफ बात कीजिए. अगर वे सुधर जाते हैं तो ठीक है वरना कानूनी मदद ले सकती हैं, जिस में उन्हें आप को गुजाराभत्ता तो देना ही होगा.

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मैं 30 वर्षीय विवाहित महिला हूं. विवाह को 8 वर्ष हो गए हैं. सासससुर साथ में रहते हैं. मेरी सास मुझ से बहुत बुरा व्यवहार करती हैं. घर काफी बड़ा है, साफसफाई को ले कर हमेशा ताने मारती हैं. मेरे 3 बच्चे भी हैं. कुल मिला कर हम 7 लोग हैं. सास तानाशाही चलाती हैं. कामवाली लगाने नहीं देतीं. हम अलग भी नहीं हो सकते. कृपया मेरी समस्या का समाधान बताइए.

जहां तक साफसफाई का सवाल है बड़ेबुजुर्गों को यह समस्या रहती है. वे अपने समय से तुलना करते हैं कि हम ऐसा करते थे, हम इतना काम अकेले कर लेते थे. लेकिन शायद वे नहीं जानते तब बड़ेबड़े परिवार हुआ करते थे जहां मिलजुल कर काम हो जाते थे. लेकिन आप के केस में आप के 3 छोटे बच्चे भी हैं और आप अकेली हैं. इसलिए पति से बात कीजिए और मदद के लिए किसी कामवाली को लगवाने को कहिए. आप अलग होने की मत सोचिए क्योंकि इस से न केवल आर्थिक बोझ बढ़ेगा बल्कि छोटे बच्चों की देखभाल में बुजुर्गों की जो सलाह व सहारा मिल रहा है उस से आप वंचित भी हो जाएंगी.

महिला सुरक्षा और अंधा समाज

29 वर्षीय रति त्रिपाठी जम्मूतवी से इंदौर जाने वाली मालवा ऐक्सप्रैस में दिल्ली से एस-7 कोच में सवार हुई थी. पेशे से दिल्ली के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में काउंसलर रति उज्जैन जा रही थी. मालवा ऐक्सप्रैस तड़के 4 बजे ललितपुर रेलवे स्टेशन पहुंची तो लफंगे से दिखने वाले 2 युवक रति की बर्थ पर आ कर बैठ गए. रति ने एतराज जताया तो दोनों उठ कर चले गए. रति चादर ओढ़, बेफिक्र हो कर दोबारा सोने का उपक्रम करने लगी पर आरक्षित कोच के यात्रियों की यह परेशानी उस के जेहन में आई कि कैसा महकमा है रेलवे का, जिसे देखो मुंह उठाए घुसा चला आता है और बर्थ पर बैठ जाता है. दूसरे आम लोगों की तरह इस अव्यवस्था पर रति पूरी तरह मन ही मन भुनभुना भी नहीं पाई थी कि दोनों युवक फिर आ धमके. ट्रेन अब तक रफ्तार पकड़ चुकी थी. इस दफा दोनों ने बजाय बैठने के सिरहाने रखा रति का पर्स उठा लिया. रति ने हिम्मत दिखाते अपना पर्स वापस खींचा तो झूमाझटकी शुरू हो गई. इसी झूमाझटकी में इन मवालियों ने रति को धकियाते हुए उसे दरवाजे के बाहर फेंक दिया और उड़नछू हो गए.

रति जहां गिरी वह बीना के नजदीक करोंद रेलवे स्टेशन था. सुबहसुबह गांव वालों ने पटरियों के किनारे पड़ी इस युवती को देखा तो पुलिस को खबर की. पुलिस आई, रिपोर्ट दर्ज की और रति को इलाज के लिए बीना भेज दिया. बेहोश रति के सिर में गंभीर चोट थी और उस की नाक भी टूट गई थी. हालत गंभीर देख उसे बीना से सागर और फिर वहां से भोपाल रैफर कर दिया गया. रति की मां मिथ्या त्रिपाठी 20 नवंबर की दोपहर बेटी को लेने उज्जैन स्टेशन पहुंचीं तो वह कोच में नहीं मिली. इस पर स्वाभाविक रूप से वे घबरा उठीं और उतर रहे व एस-7 कोच में बैठे यात्रियों से पूछताछ की तो पता चला रति का झगड़ा और झूमाझटकी ललितपुर स्टेशन के बाद 2 लोगों से हुई थी. तुरंत मिथ्या ने पति व बेटे को मोबाइल फोन से खबर दी. कुछ देर बाद पता चला कि रति भोपाल में अस्पताल में भरती है तो सारे लोग भागेभागे भोपाल गए.

इस बात पर बवंडर मचा पर उस से कुछ हासिल नहीं हुआ और जो हुआ वह बेहद चौंका देने वाला है. चौंका देने वाली बात यह नहीं है कि 2 गुंडों ने चलती ट्रेन से एक युवती को बाहर फेंक दिया. चौंका देने वाली बात यह है कि जब रति अपने व अपने पर्स के बचाव के लिए गुंडों से जूझ रही थी तब उस के आसपास के मुसाफिर चैन की नींद सो रहे थे. इन सो रहे यात्रियों में से कुछ ने उसी नींद में ही इस वारदात का ट्वीट किया था. बड़ी मशक्कत के बाद आरोपी पुलिस की गिरफ्त में आया.

स्लीपर कोच की बनावट ऐसी होती है कि कोई जोर से छींके तो भी सहयात्रियों को दिक्कत होती है. फिर रति तो 2 गुंडों से उलझ रही थी. जाहिर है यह सब शांतिपूर्वक नहीं हो रहा था, इस में शोर भी मचा था और रति ने चिल्ला कर मदद के लिए गुहार भी लगाई थी. रेलवे के नियमकानूनों के मुताबिक कंडक्टर को कोच में मौजूद होना चाहिए था पर वह नहीं था. यह कडंक्टर अकसर नहीं मिलता. रात को टिकट देखने के बाद वह दूसरे कंडक्टरों की तरह एसी कोच में जा कर सो गया था. मुसाफिरों की हिफाजत के लिए चलती ट्रेन में ड्यूटी बजाने वाले रेलवे पुलिस के जवान नदारद थे. लिहाजा, हादसा तो होना ही था.

उदासीनता या डर

मुद्दे की बातें कई हैं पर उन में सब से अहम है रति के सहयात्रियों का सोते रहना. वे लोग दरअसल सो नहीं रहे थे बल्कि सोेने का नाटक कर रहे थे. यही आज का हमारा समाज और उस की उदासीनता है कि 2 गुंडे एक लड़की से झूमाझटकी कर रहे हैं तो उसे बचाओ मत, किसी लफड़े में मत पड़ो, लिहाफ ओढ़े सोते रहो और सुबह अपने गंतव्य पर उतर कर घर जाओ. और फिर चौराहों पर, दफ्तर में, घर में व यारदोस्तों के बीच जहां भी मौका मिले चटखारे लेले कर देश की कानून व्यवस्था, असुरक्षित माहौल और पुलिस को पानी पीपी कर कोसो. साथ ही, खुद को बहस के जरिए बुद्धिजीवी व जागरूक नागरिक साबित करो. यह वीरों की भूमि और बहादुरों का देश है जहां के मर्द एक लुटती युवती को देख दुबक जाते हैं और इस बुजदिली के पीछे उन की अपनी दलीलें हैं कि कौन बेवजह फसाद में पड़े. पहले गुंडों से पंगा ले कर जान जोखिम में डालो, फिर पुलिसअदालत के चक्कर में पड़ कर वक्त और पैसा जाया करो और हमें इस से मिलना क्या है.

मर्दों के दबदबे वाले हमारे समाज में ‘वाकई कोई मर्द है’ कहने में हिचक महसूस होती है. नामर्द कई हैं, यह कहना कतई शर्म की या घटिया बात नहीं. बातों के बताशों में बहादुरी जताने वाले लोग इतने संवेदनशील और कायर क्यों हैं कि एक लड़की की हिफाजत भी नहीं कर सकते? अगर उस दिन 2 लोग भी अपनी बुजदिली छोड़ कर गुंडों के मुकाबले में रति की मदद करते तो गुंडे दुमदबा कर भागते नजर आते. जरूरत इस बात की महसूस होने लगी है कि इन और ऐसे लोगों को भी सहअभियुक्त बनाया जाए, सहअभियुक्त उस कंडक्टर और उन रेलवे पुलिसकर्मियों को भी बनाया जाना चाहिए जिन की ड्यूटी थी. सच, कड़वा सच यह है कि पुरुष चाहते हैं कि औरत इसी तरह लुटतीपिटती रहे और बेइज्जत होती रहे. हम ने उस की हिफाजत का ठेका नहीं ले रखा है. उलटे यह सब करने की गुंडों को शह व छूट दे रखी है. शुक्र इस बात का है कि ऐसी वारदातों के वक्त सभ्य समाज के ये शरीफजादे गुंडों का साथ नहीं देते, यह उन का एहसान है, सामाजिक सरोकारों और नैतिक जिम्मेदारियों की तो बात करना बेमानी है.

अहम सवाल अब पुरुष मानसिकता का है जो औरत को ‘सामान’, ‘आइटम’, ‘पटाखा’, ‘फुलझड़ी’ और ललितपुर के गुंडों की भाषा में कहें तो ‘माल’ समझता व कहता है. अकेली लड़की को देख वे उस पर हमला करते हैं तो उन्हें मालूम रहता है कि कोई कुछ नहीं बोलेगा. इस वारदात ने साबित कर दिया है कि दबंग वे लोग नहीं हैं जो कान में ईयरफोन लगाए दीनदुनिया से बेखबर गीतसंगीत सुनते रहते हैं, फेसबुक और वाट्सऐप पर चैट करते रहते हैं. लंबीलंबी बातें, बहसें नैतिकता और आदर्शों की करते हैं. असल दबंग वे हैं जो सरेआम एक लड़की का पर्स लूट कर उसे मरने के लिए फेंक देते हैं और फिर हाथ झाड़ कर चलते बनते हैं.

कैब और बलात्कार

29 वर्षीय रीतिका (बदला नाम) गुड़गांव की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में एग्जीक्यूटिव है. जाहिर है नए जमाने की उन करोड़ों युवतियों में से एक है जो अपने बलबूते पर नौकरी करते सम्मान और स्वाभिमान से जिंदगी गुजार रही हैं. शुक्रवार, 5 दिसंबर यानी वारदात के दिन रीतिका ने शाम 7 बजे अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद एक रैस्टोरैंट में दोस्तों के साथ डिनर लिया. उस के एक दोस्त ने उसे अपने वाहन पर बसंत विहार छोड़ा जहां से उसे अपने घर इंद्रलोक जाना था. लेटेस्ट गैजेट्स की आदी रीतिका को बेहतर यही लगा कि कैब (टैक्सी) कर ली जाए. लिहाजा, उस ने मोबाइल ऐप के जरिए अमेरिकी कंपनी उबेर की कैब बुक करा ली. कैब आई और उस के शिवकुमार यादव नाम के ड्राइवर ने इज्जत से दरवाजा खोला. दिनभर की थकीहारी रीतिका डिनर के बाद की सुस्ती का शिकार हो गई. लिहाजा, कैब में उसे झपकी आ गई. पीछे की सीट पर अकेली खूबसूरत लड़की को देख शिवकुमार का मन डोल गया और उस ने टैक्सी का रास्ता बदल दिया. रीतिका की नींद खुली तो कैब सुनसान में खड़ी थी. उस ने दरवाजा खोलने की कोशिश की तो वह नहीं खुला. शिवकुमार ने गेट लौक कर दिए थे. रीतिका ड्राइवर का इरादा भांपते चिल्लाई तो शिवकुमार ने उस की पिटाई कर दी और धमकी दी कि अगर शोर मचाया तो पेट में सरिया घुसा दूंगा. अब बचाव के लिए कुछ नहीं बचा था, इसलिए बाज के पंजे में फंसी चिडि़या की तरह फंसी रीतिका गिड़गिड़ाई कि प्लीज, मुझे छोड़ दो, मैं तुम्हारे हाथपैर जोड़ती हूं.

लेकिन अपनी पर आमादा हो आया शिवकुमार पसीजा नहीं. उस ने रीतिका का बलात्कार टैक्सी में ही किया और समझदारी कह लें या चालाकी कि रीतिका को घर के बताए पते के नजदीक उतार दिया. रीतिका ने बलात्कार सहने के बाद भी होश नहीं खोया था. इस के बाद खुद को संभालते रीतिका ने 100 नंबर डायल किया. पीसीआर वैन आई और रीतिका को थाने ले गई. महिला पुलिसकर्मियों ने उस से पूछताछ की और एक सरकारी अस्पताल में जा कर उस की मैडिकल जांच कराई. इसी बीच, रीतिका ने फोन कर अपने मम्मीपापा को भी बुला लिया. विदेश में भी एक कंपनी में नौकरी कर चुकी रीतिका अपने मांबाप की इकलौती संतान है. वह कुछ महीनों पहले ही दिल्ली शिफ्ट हुई थी और खुश थी कि अब मम्मीपापा के पास रहेगी. उस के पापा ने निर्भया कांड के प्रदर्शन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. अपनी ही बेटी को इस हालत में देखा तो हफ्तेभर उस के साथ बैठे आंसू बहाते रहे.

बलात्कार, बवाल और पुलिस

सुबह होतेहोते दुष्कर्मों के लिए कुख्यात हो चुकी दिल्ली में खासा बवाल मच गया कि लो, एक और लड़की की इज्जत लुट गई, वह भी टैक्सी में  बलात्कार के बाद रीतिका को रातभर पुलिस की पूछताछ और मैडिकल जांच से गुजरना पड़ा था. सालों पुरानी इन कानूनी खानापूर्तियों से पीडि़ता को जरूर समझ आता है कि दरअसल बलात्कार क्या होता है और क्यों पीडि़ताएं रिपोर्ट नहीं लिखवातीं. मैडिकल जांच किस बेरहमी और अमानवीय तरीके से की जाती है, यह बात भी किसी सुबूत की मुहताज नहीं. शिवकुमार 40 घंटे बाद मथुरा से गिरफ्तार कर लिया गया. यह पुलिस की मुस्तैदी नहीं बल्कि मजबूरी हो चली थी क्योंकि इस बलात्कार पर निर्भया मामले जैसी हायहाय मचने लगी थी. बाद में पता चला कि शिवकुमार आदतन अपराधी है और पहले भी बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार हो कर जेल जा चुका है. इस के बाद भी पुलिस ने उसे चरित्र प्रमाणपत्र दे दिया था जो इस मामले में बलात्कार करने का लाइसैंस साबित हुआ. दिल्ली में सामाजिक संगठनों और आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया लेकिन पहले सा यानी निर्भया कांड जैसा समर्थन उसे नहीं मिला.

इधर, हंगामा देख झल्लाए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक वाजिब बात यह भी कही कि क्या रेल में दुष्कर्म हो तो रेल और जहाज में हो जाए तो जहाज बंद कर दें. गडकरी बलात्कार बंद या कम करने के बाबत कुछ नहीं बोले, जिस की कि जरूरत व अहमियत थी. जल्द ही मामला अमेरिका की उबेर कंपनी के इर्दगिर्द आ कर सिमट गया कि 2,480 अरब रुपए वाली 52 देशों में कारोबार करने वाली इस कंपनी पर नीदरलैंड, स्पेन और कई अन्य देशों में भी रोक लगी है. बात दुष्कर्म की न हो कर कैब और कैब टैक्सियों की होने लगी कि रेडियो कैब शहर आधारित टैक्सी सेवा है, इस का खास नंबर होता है. निगरानी के लिए सारी कैब जीपीएस सिस्टम से जुड़ी रहती हैं और सवारी भुगतान ड्राइवर को करती है. वेब आधारित कंपनी स्मार्ट फोन के जरिए ग्राहक को सेवाएं देती है जिस का भुगतान डैबिट या क्रैडिट कार्ड के जरिए किया जाता है जो सीधे कंपनी के खाते में पहुंचता है, वगैरह.

उपेक्षा और प्रताड़ना

गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने भी कुछ कहा, जिस का सार यह था कि सभी कैब टैक्सियों पर रोक लगेगी और इस के लिए राज्यों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं. पुलिस ने शिवकुमार यादव के साथसाथ उबेर टैक्सी सर्विस के खिलाफ भी धोखाधड़ी का मामला दर्ज कर लिया. आरोप यह लगाया कि यह कंपनी सुरक्षित सफर और वैरिफाइड ड्राइवर्स का दावा मात्र करती है, जबकि ऐसा नहीं है. कंपनी के जीएम राजन भाटिया को दिल्ली महिला आयोग ने तलब किया तो उन की गिरफ्तारी की सुगबुगाहट भी शुरू हो गई. चर्चा संसद में भी हुई पर पीडि़ताओं, महिला सुरक्षा पर नहीं बल्कि इस बात पर कि सभी राज्य वैब टैक्सियों पर रोक लगाएं, रजिस्ट्रेशन के बाद यह पाबंदी हटा ली जाएगी. गृहमंत्री के इस बयान के उलट नितिन गडकरी का कहना यह था कि पाबंदी लगाने से लोगों को परेशानी होगी. खामी लाइसैंस सिस्टम में है. 30 फीसदी लाइसैंस फर्जी हैं, उसे सुधारने की जरूरत है. रति और रीतिका जैसी पीडि़ताएं इस बौद्धिक, प्रशासनिक और संसदीय बहस में कहीं नहीं थीं गोया कि लाइसैंसधारी ड्राइवर बलात्कार करें, तभी इस बारे में सरकार सोचेगी.

सोचने की बातें ये हैं कि पीडि़ताओं को क्यों गैरजरूरी लंबी पुलिस और अदालती कार्यवाही से हो कर गुजरना पड़े जबकि उन की कोई गलती ही नहीं, सिवा इस के कि वे औरत हैं. पुलिस थानों में यह नहीं देखा जाता कि पीडि़ता पर क्या गुजरी है, बलात्कार, हिंसक लूट और छेड़खानी में ज्यादा फर्क नहीं है. इन सभी की शिकार महिलाओं को रिपोर्ट लिखाने के लिए घंटों बैठना पड़ता है जो उन की मानसिक यंत्रणा को बढ़ाने वाली बात है. मैडिकल जांच की एक गैरजरूरी बात है. इस का कानूनी महत्त्व बताना या गिनाना कानूनी तकनीक नहीं, बल्कि कानूनी तकलीफ की बात है, जिस का फायदा अकसर आरोपी को ही मिलता है. बात यहीं खत्म नहीं हो जाती. सामाजिक उपेक्षा और प्रताड़ना झेल रही पीडि़ता को कई बार आपबीती, कहानी की शक्ल में दोहराना पड़ती है. बलात्कार पीडि़ता की तो मानो शामत आ जाती है. अपराधी का खौफ तो उस के सिर मंडराता ही रहता है पर वकीलों की बहस उसे सोचने को मजबूर करती है कि अगर यही इंसाफ का तरीका है तो बलात्कार के बाद खामोशी से घर आ कर सो जाना बेहतर था.

मर्द बदलें अपनी सोच

बी आर चोपड़ा की फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ में इस तकलीफ को बेहद बारीकी से दिखाया गया था. माहौल आज भी वही है. वकील बना कोई श्रीराम लागू जो सवाल पूछता है, उन पर कानूनी रोक आज भी नहीं है. सरकारें हल्ला खूब मचाती रही हैं कि ऐसा नहीं है और है तो खत्म किया जाएगा. शिवकुमार का वकील रीतिका से पूछेगा कि इतनी छोटी जगह में बलात्कार कैसे किया गया था. आप ने बचाव के लिए हाथपैर चलाए होते तो टैक्सी के कांच टूटने चाहिए थे. वह अपने मुवक्किल के इस कथन को सच साबित करने की कोशिश करेगा कि यह संबंध सहमति से बना था. रीतिका के हक में इकलौती बात यही है कि अगर बलात्कार नहीं हुआ था तो उस ने रिपोर्ट क्यों लिखाई. दो कौड़ी के टैक्सी ड्राइवर से उस के क्या स्वार्थ हो सकते थे जिस की महीनेभर की पगार उस की एक दिन की तनख्वाह के बराबर होती है. यह या कोई टैक्सी ड्राइवर इतना प्रतिष्ठित भी नहीं होता कि उसे धूमिल किया जा सके. दिनभर थाने और अदालत में पीडि़ता को बैठाना उसे दिमागी तौर पर तोड़ने वाली बात ही है. आधा तो अपराधी उन्हें पहले ही तोड़ चुका होता है. रीतिका कांड पर बयानबाजी भी खूब हुई. ‘बलात्कारी को फांसी हो’ की मांग फिर दोहराई गई पर यह मांग करने वाले नहीं जानते कि बलात्कार बंद कैसे होंगे.

फिल्मकारों का फोकस

इस कांड पर जो सलीके वाली बातें कही गईं उन में एक अभिनेत्री सोनम कपूर ने कही कि भारत में मूलतया मर्दों की परवरिश ही गलत ढंग से होती है. दिल्ली कैब रेप कांड को सोनम ने पुरुषों की कुत्सित मानसिकता को गलत दोषी नहीं ठहराया. बकौल सोनम, आज भी लड़कों को बड़े लाड़प्यार से पाला जाता है लेकिन उन्हें यह नहीं सिखाया जाता कि औरतों की इज्जत कैसे करनी चाहिए. लड़का कुछ भी गलत हरकत करे तो मांबाप उस का बचाव करते यही कहते हैं कि हमारा लाड़ला तो ऐसा कर ही नहीं सकता. सोनम की नजर में लड़कियों पर कई पाबंदियां लगाई जाती हैं. मसलन, देर रात तक घर के बाहर मत रहो, पार्टियों में मत जाओ, जींस मत पहनो वगैरह. ये पाबंदियां समस्याओं का हल नहीं हैं. बलात्कार के लिए औरत को नसीहत न देने की वकालत करने वाली सोनम मर्दों की सोच बदलने पर जोर देती हैं. दूसरी उल्लेखनीय बात अभिनेता अक्षय कुमार ने अपना खुद का उदाहरण देते कही कि ऐसे हादसों से मुझे डर लगता है. मैं अपनी बेटी को ले कर प्रोटैक्टिव हूं लेकिन उस की सुरक्षा और खुशियों को ले कर हमेशा डर बना रहता है. एक पिता होने के नाते उस की हिफाजत मेरी जिम्मेदारी है लेकिन मैं चाहता हूं कि सरकार भी उस की रक्षा करे, सड़कों को सुरक्षित बनाना उस का काम है.

अक्षय के मुताबिक, हम टैक्स इसलिए भरते हैं कि बिना किसी डर के घर के बाहर निकल सकें. बलात्कार करने वालों को तत्कालीन सजा के तौर पर उन्हें नपुंसक बना देना चाहिए क्योंकि बलात्कारी बारबार अपराध करते हैं और मुझे नहीं लगता कि जेल में ज्यादा से ज्यादा सजा भी उन्हें इस तरह के जुर्म करने से रोक सकती है. इन दोनों फिल्मकारों की बातों का फोकस समाज, बच्चों की परवरिश के तौरतरीकों और कानून के इर्दगिर्द है लेकिन एक बड़ा सच यह भी है कि पुरुष प्रधान समाज अभी भी औरत को पांव की जूती समझता है. वह असंगठित होते हुए भी महिला अत्याचारों के मामले में संगठित है. बीते 2 दशकों में तेजी से लड़कियां नौकरियों में आई हैं, उन की आर्थिक निर्भरता पुरुषों पर कम हो चली है लेकिन सामाजिक निर्भरता बनी रहे इसलिए उन के प्रति छेड़छाड़, हिंसा और बलात्कार के मामले बढ़ रहे हैं. यह पुरुष का सामाजिक अहं है जो अपराधों के जरिए व्यक्त होता है. चौंका देने वाली बात यह है कि अधिकांश पुरुष अपराधी एक अलग वर्ग के हैं.

जैसे भी हो औरत को दबाए रखो, यह सोच मूलतया धर्म से समाज और परिवारों में आई है. औरत अभी भी ताड़न की अधिकारी है. यह ताड़नाप्रताड़ना अब चोला बदल रही है. कसबों से ले कर महानगरों तक में युवतियां काम करते हुए अपने स्वाभिमान और आत्मसम्मान को कायम रख रही हैं. यह बात पुरुषों को रास नहीं आ रही है इसलिए औरतों की हिफाजत के सवाल पर हर बार बवाल मचने पर उन्हें ही दोष देने के अलावा बात कैब, वैब और लाइसैंस में उलझ जाती है. सामाजिक माहौल, पुलिस और कानून प्रक्रिया में सुधार की बात करने की हिम्मत कोई नहीं जुटा पाता.

मोबाइल की दुनिया का टाइटेनिक नोकिया डूब गया

भारत में मोबाइल क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाली मोबाइल कंपनी का ऐसा हश्र होगा, किस ने सोचा था. एक समय देश में मोबाइल का पर्याय रही नोकिया को जब माइक्रोसौफ्ट कंपनी ने अधिगृहीत किया तभी तय हो गया कि अब यह कंपनी किस्सेकहानियों में ही दोहराई जाएगी. ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया चेन्नई के समीप श्रीपेरंबुदूर में मौजूद नोकिया के दूसरे सब से बड़े संयंत्र को बंद करने के निर्णय ने. फिलहाल किसी समय दुनिया के सब से बड़े मोबाइल हैंडसैट ब्रैंड रहे नोकिया ने जब भारत में अपना उत्पादन संयंत्र करीब 9 साल तक चलाने के बाद अब बंद करने का फैसला कर लिया तब तक दुनिया इस बात से वाकिफ हो चुकी थी कि मोबाइल का कभी सब से बड़ा खिलाड़ी रहा नोकिया अब खत्म हो चुका है. सवाल है कि आखिर इतनी बड़ी मोबाइल कंपनी की ऐसी हालत हुई क्यों? कैसे इस कंपनी को उस से कमतर मोबाइल कंपनियों ने सिर्फ पछाड़ ही नहीं दिया, बल्कि बाजार से खदेड़ भी दिया. आइए जानते हैं :

नोकिया का अधिग्रहण

कई सालों से मोबाइल के बाजार में नोकिया की वैसी साख नहीं बची थी जिस के लिए वह जानी जाती थी. यही वजह थी बाजार में नोकिया की जगह सैमसंग, सोनी और आईफोन जैसी कंपनियों ने कब्जा जमा लिया. जब स्मार्टफोन की दौड़ में नोकिया पिछड़ने लगी तो उस ने सौफ्टवेयर दिग्गज कंपनी माइक्रोसौफ्ट के साथ एक करार किया इस करार के तहत तय हुआ कि नोकिया के एंड्रोएड फोन अब माइक्रोसौफ्ट के साथ काम करेंगे. यानी अब मोबाइल का हार्डवेयर नोकिया का होगा और सौफ्टवेयर माइक्रोसौफ्ट का. इसी करार के तहत नोकिया की लूमिया सीरीज ने काफी हद तक बाजार में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी. लेकिन कहते हैं न कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, ठीक वैसे ही माइक्रोसौफ्ट ने अपनी मजबूत होती जगह का फायदा उठाया और नोकिया से अलग हो कर खुद के ब्रैंड को बेचने का फैसला किया. इसी सिलसिले में असहाय हो चुकी फिनलैंड की मोबाइल निर्माता कंपनी नोकिया का 25 अप्रैल को माइक्रोसौफ्ट ने 7.2 अरब डौलर में अधिग्रहण कर लिया.

भारत में असर

नोकिया के अधिग्रहण के होते ही कंपनी ने चेन्नई स्थित संयंत्र को बंद करने का फैसला लिया. इस फैसले के मद्देनजर 6,600 कर्मचारियों ने कंपनी के प्रस्ताव पर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली, जबकि 1,600 कर्मचारियों का भविष्य अभी भी अधर में है. हालांकि अभी कई पेंच हैं, मसलन, कंपनी की तरफ से कहा जा रहा है कि 6,600 कर्मियों ने खुद से इस्तीफा दे दिया या फिर सेवानिवृत्ति ले ली, जबकि कर्मचारियों का कहना है कि तमाम कर्मचारियों को जबरन इस्तीफा देने पर मजबूर किया गया. दरअसल, इस संयंत्र के बंद होने के पीछे मुख्य वजह माइक्रोसौफ्ट द्वारा इस संयंत्र के साथ ट्रांजिशनल सेवा करार यानी टीएसए रद्द होना था. इस बाबत नोकिया इंडिया के अधिकारी का बयान गौरतलब है, ‘‘जैसी कि पहले घोषणा की जा चुकी है कि चेन्नई स्थित अपने संयंत्र को हम 1 नवंबर से बंद करने जा रहे हैं, क्योंकि हमारी पैतृक कंपनी माइक्रोसौफ्ट ने मोबाइल खरीद समझौते को रद्द कर दिया है.’’

माइक्रोसौफ्ट ने नोकिया के उपकरण और सेवा कारोबार का अधिग्रहण किया है. इस के तहत यह संयंत्र उसे मिलना था. लेकिन आयकर विभाग ने जब इस पर 21 हजार करोड़ रुपए का नोटिस थमा दिया तो संयंत्र को सौदे से बाहर कर दिया गया. बाद में तमिलनाडु सरकार ने भी इस संयंत्र के लिए नोकिया को 2,400 करोड़ रुपए का बिक्री कर का नोटिस दिया है. दोनों मामले अभी अदालत में लंबित हैं. मामला भले ही लटक गया हो लेकिन इतना साफ है कि सैकड़ों कर्मचारी बेरोजगारी के शिकार हो चुके हैं. नोकिया द्वारा श्रीपेरंबुदूर के पास स्थित संयंत्र में अपना परिचालन स्थगित करने की घोषणा के बाद कंपनी के कर्मचारियों का संगठन कानूनी कार्यवाही करने पर विचार कर रहा है. नोकिया को खरीदते ही माइक्रोसौफ्ट ने अपने ब्रैंड के मोबाइल की रीब्रैंडिंग शुरू कर दी है. इस रीब्रैंडिंग के तहत माइक्रोसौफ्ट के साथ अब तक नोकिया के जितने भी मोबाइल, खासतौर से लूमिया सीरीज, बाजार में बिक रहे हैं, धीरेधीरे उन से नोकिया के लोगो को हटाया जाएगा. इस रीब्रैंडिंग के तहत माइक्रोसौफ्ट का पहला लूमिया स्मार्टफोन बिना नोकिया ब्रैंडिंग के बाजार में आ चुका है. कंपनी की कोशिश है कि जल्दी ही नोकिया ब्रैंड के स्मार्टफोन्स भारतीय बाजार में माइक्रोसौफ्ट के नाम से मिलने लगें. इस के लिए माइक्रोसौफ्ट ने विश्वभर में रीब्रैंडिंग ऐक्सरसाइज शुरू कर दी है. सब से पहले फ्रांस में ब्रैंड बदला जाएगा. वहां फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया अकाउंट्स पर ‘माइक्रोसौफ्ट लूमिया’ नोकिया की जगह लेगा. फिर यही तरीका बाकी देशों में भी अपनाया जाएगा. दरअसल, माइक्रोसौफ्ट चाहता है कि जल्द से जल्द उपभोक्ता लूमिया सीरीज को नोकिया का ब्रैंड समझने के बजाय माइक्रोसौफ्ट का ब्रैंड समझने लगें. चूंकि माइक्रोसौफ्ट भारत के कंप्यूटर बाजार में पहले से ही जमा है, ऐसे में मोबाइल की दुनिया में पहचान बनाने में उसे ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, यह बात वह अच्छी तरह से समझता है. बाद में माइक्रोसौफ्ट अपने ब्रैंड की नई मोबाइल सीरीज भी लांच करेगा. जाहिर है तब तक लोग नोकिया को पूरी तरह से भूल चुके होंगे.

अर्श से फर्श तक का सफर

दिल्ली के करन अरोड़ा मोबाइल के बहुत शौकीन हैं. बाजार में मोबाइल का कोई भी नया मौडल आ जाए, उन के शौक से नहीं बचता. फिर चाहे वह आईफोन का नया संस्करण आईफोन 6 हो या सैमसंग का नोट 4. लेकिन जब उन के चहेते फोन के बारे में पूछा जाता है तो वे अपने सालों पुराने या कहें अपने पहले फोन नोकिया 1100 का नाम लेते हैं. इस फोन से उन की कई यादें जुड़ी हैं. करन जैसे सैकड़ों उपभोक्ता होंगे जिन का पहला मोबाइल नोकिया का रहा होगा. यह वह दौर था जब भारत में मोबाइल का मतलब नोकिया होता था. उस दौर में सैमसंग, सोनी, पैनासोनिक, मोटोरोला और एलजी जैसे मोबाइल ब्रैंड भी थे लेकिन तब उन्हें नोकिया के मुकाबले कमतर ब्रैंड समझा जाता था. किस ने सोचा था, ये ही कमतर  ब्रैंड नोकिया को पीछे छोड़ देंगे. एक जमाने में जहां नोकिया का बोलबाला था, वह जगह अब सैमसंग और आईफोन ले रहे हैं.

दुनियाभर में मोबाइल के आंकड़े जुटाने वाली इंटरनैशनल डाटा कौर्पोरेशन यानी आईडीसी के अनुसार, वर्ष 2005 में भारत में 32 प्रतिशत लोगों के पास नोकिया के फोन थे जबकि मोटोरोला का 17.7 प्रतिशत पर कब्जा था. सैमसंग 12.5 प्रतिशत और एलजी 6.7 प्रतिशत पर लोगों के पास थे. यह आंकड़ा अब बिलकुल बदल चुका है.आज अधिकतर लोगों के पास स्मार्टफोन हैं. आईडीसी के आंकड़ों की मानें तो इस समय स्मार्टफोन बाजार में सैमसंग का दबदबा है और 38.8 प्रतिशत लोगों के पास सैमसंग के फोन हैं. दूसरे नंबर पर भारत में एप्पल है जिस का मार्केट शेयर 15.5 प्रतिशत है. स्मार्टफोन बाजार में नोकिया पिछड़ कर 7.3 प्रतिशत पर जा चुका था. खैर, अब तो वह खत्म ही हो गया.

क्यों डूबा नोकिया

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के अनुसार वर्ष 2000 में भारत में करीब 19 लाख मोबाइल कनैक्शन थे जबकि आज करीब 92 करोड़ मोबाइल कनैक्शन हैं. भारत में मोबाइल दरें भी दुनिया में सब से कम हो गई हैं. ये तमाम आंकड़े साबित करते हैं कि भारत में मोबाइल का बाजार अभी मंदा नहीं पड़ा. तो फिर सोचने वाली बात तो यह है कि इतना ज्यादा बिकने वाला नोकिया आखिर डूब क्यों गया. एक्सपर्ट तो नोकिया की खराब कारोबारी योजना को इस के पतन का जिम्मेदार बता सकते हैं लेकिन नोकिया का पतन उसी समय शुरू हो गया था जब स्मार्टफोन बाजार में उतरे. स्मार्टफोन बाजार में सब से मजबूत पकड़ एंड्रोएड ने बनाई है.

गूगल का एंड्रोएड सब से तेजी से उभरता औपरेटिंग सिस्टम बना. इस प्लेटफौर्म पर देखते ही देखते सोनी से ले कर सैमसंग और मोटोरोला ने अपने नए मौडल उतार दिए लेकिन नोकिया, एंड्रोएड और स्मार्टफोन के सुनहरे भविष्य को भांप नहीं पाया और खुद को पुराने जावा के ही प्लेटफौर्म तक सीमित रखा. उधर, सस्ते होते स्मार्ट फोन और आकर्षक डेटा पैकेज उपलब्ध होने की वजह से भी स्मार्टफोन की बिक्री को मदद मिली. नीलसन इनफौर्मेट के सर्वे के अनुसार, भारतीय अपने स्मार्टफोन के साथ बिताए समय का एकचौथाई से भी कम भाग यानी करीब 18 प्रतिशत समय कौल और एसएमएस पर लगाते हैं. वहीं, 24 प्रतिशत समय ब्राउजिंग और 21 प्रतिशत ऐप्स के प्रयोग में खर्च करते हैं. एंड्रोएड की लत ऐसी लगी कि सैमसंग, सोनी और मोटोरोला के साथसाथ माइक्रोमैक्स, स्पाइस, इंटैक्स समेत कई मोबाइल ब्रैंड्स भारतीय बाजारों में धड़ल्ले से बिकने लगे. नहीं बिका तो नोकिया का फोन.

खैर, नोकिया को अब तक यह बात समझ आ चुकी थी कि बिना एंड्रोएड के मोबाइल की दुनिया में टिकना आसान नहीं है, इसीलिए उस ने आननफानन माइक्रोसौफ्ट के साथ मिल कर एंड्रोएड की लूमिया सीरीज शुरू की थी और काफी हद तक वापसी भी कर रही थी लेकिन शायद तब तक देर हो चुकी थी और हश्र सब के सामने है. कहते हैं बदलाव प्रकृति का नियम है और जो समय के साथ नहीं बदलता उस का अस्तित्व खतरे में पड़ते देर नहीं लगती. खासतौर पर, जब तकनीक की दुनिया की बात हो तो हर परिवर्तन क्रांति ले कर आता है. नोकिया खुद को समय के साथ बदल नहीं पाई और पिछड़ गई. उम्मीद है कि माइक्रोसौफ्ट नोकिया वाली गलती नहीं दोहराएगी, क्योंकि माइक्रोसौफ्ट नोकिया से गुजर कर ही मोबाइल की दुनिया में उतर रही है.

मोबाइल और दिलचस्प तथ्य

नोकिया 9000 कम्युनिकेटर पहला स्मार्टफोन था जो 1996 में आया, जिस में उस समय के मोबाइल फोन के मुकाबले अधिक सुविधाएं थीं. इस ने स्मार्टफोन की अवधारणा को विकसित किया.

केवल 15 सालों में देश की 63.5 फीसदी जनता के पास मोबाइल आ गए थे.

आज एस्टोनिया में पूर्ण पार्किंग शुल्क मोबाइल के द्वारा नियंत्रित किया जाता है और इस क्रिया में से अपराध खत्म हो चुका है.

15 साल पहले जब पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु और पूर्व केंद्रीय संचार मंत्री सुखराम ने पहली बार भारत में मोबाइल फोन के जरिए बातचीत की थी तो किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि भारत में मोबाइल फोन उपयोगकर्ताओं की संख्या 635.51 मिलियन तक पहुंच जाएगी.

मिमिक बैंकों और क्रैडिट कार्ड के लिए प्रथम व्यावसायिक भुगतान प्रणाली मोबाइल औपरेटरों, ग्लोब और स्मार्ट, के साथ फिलीपींस में 1999 में शुरू हुई थी.

आज मोबाइल भुगतान, मोबाइल बैंकिंग, मोबाइल क्रैडिट कार्ड से मोबाइल व्यापार तक, एशिया, अफ्रीका और चुने हुए यूरोपीय बाजारों में बहुत ही व्यापक रूप से प्रयोग किए जाते हैं.

मोबाइल फोन पर प्रकट हुई पहली डाटा सेवा 1993 में व्यक्ति को लिखित संदेश के रूप में शुरू हुई.

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