बात उन दिनों की है जब मेरा छोटा बेटा विशाल पहली कक्षा में पढ़ता था. छमाही परीक्षा के बाद उसे रिपोर्टकार्ड मिला. रिपोर्टकार्ड पा कर वह बहुत उत्साहित था. घर में आने वाले हर व्यक्ति को दौड़दौड़ कर अपना रिपोर्टकार्ड दिखाने लगा. उसे गणित में सिर्फ 5 अंक मिले थे. मैं ने उसे समझाया कि बेटा, गणित में बहुत कम अंक मिले हैं, इसलिए तुम्हारा रिपोर्टकार्ड सब को दिखाने योग्य नहीं है. उस ने तुरंत उत्तर दिया कि अम्मा, 5 अंक छोटे बच्चे के लिए बहुत होते हैं. उस वक्त मेरी सहेली इंदू पास में बैठी हुई थी. उस का हंसी के मारे बुरा हाल हो गया.

सरला राव, जमशेदपुर (झारखंड)

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मेरी बहन का 5 वर्षीय पोता सुमंत बहुत नटखट व बातूनी है. एक दिन वह मुझ से कहने लगा कि मुझे मोटरसाइकिल चलानी आती है पर कोई मुझे चलाने नहीं देता. मैं ने उस से कहा कि अभी तुम छोटे हो, जब बड़े हो जाओगे, कालेज में पढ़ने जाओगे तब मोटरसाइकिल चलाना. वह तपाक से बोला, ‘‘बड़े हो कर तो मैं पापा बनूंगा, फिर चाचा बनूंगा और फिर दादा.’’ उस के इस जवाब पर हम सब खूब हंसे.

नीलिमा राणा, जबलपुर (म.प्र.)

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बात उन दिनों की है जब मेरी नातिन के.जी. में पढ़ती थी. एक दिन वह स्कूल से घर आई और कहने लगी, ‘मम्मी, मम्मी, मैडम रोजरोज छोटी एबीसी सिखाती हैं. पता नहीं, छोटा वन, टू कब सिखाएंगी.’ उस की यह बात सुन कर हम हंसे बिना न रह सके.

मधु वर्मा, यमुना नगर (हरियाणा)

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मेरा क्रिशु तब 4 साल का था. उसे सेवदालमोठ की भुजिया बहुत पसंद थी. मना करने पर भी वह खा लेता था. मैं कितना भी गुस्सा होती, वह मानता ही नहीं था. 
एक दिन मैं बाजार गई. वहां से आने पर मैं ने देखा, क्रिशु लेट कर भुजिया खा रहा है. मैं गुस्सा करने लगी. वह झट से उठ कर खड़ा हो गया और रोतेरोते बोला, ‘मां, मैं ने भुजिया नहीं खाई, भुजिया तो सांप खा रहा था, क्योंकि तुम्हीं बोलती हो न कि लेट कर खाने से खाना सांप के पेट में जाता है.’ उस की भोली मासूम बातें सुन कर हम सब काफी देर तक हंसते रहे.

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