भारत में मोबाइल क्रांति में अहम भूमिका निभाने वाली मोबाइल कंपनी का ऐसा हश्र होगा, किस ने सोचा था. एक समय देश में मोबाइल का पर्याय रही नोकिया को जब माइक्रोसौफ्ट कंपनी ने अधिगृहीत किया तभी तय हो गया कि अब यह कंपनी किस्सेकहानियों में ही दोहराई जाएगी. ताबूत में आखिरी कील ठोकने का काम किया चेन्नई के समीप श्रीपेरंबुदूर में मौजूद नोकिया के दूसरे सब से बड़े संयंत्र को बंद करने के निर्णय ने. फिलहाल किसी समय दुनिया के सब से बड़े मोबाइल हैंडसैट ब्रैंड रहे नोकिया ने जब भारत में अपना उत्पादन संयंत्र करीब 9 साल तक चलाने के बाद अब बंद करने का फैसला कर लिया तब तक दुनिया इस बात से वाकिफ हो चुकी थी कि मोबाइल का कभी सब से बड़ा खिलाड़ी रहा नोकिया अब खत्म हो चुका है. सवाल है कि आखिर इतनी बड़ी मोबाइल कंपनी की ऐसी हालत हुई क्यों? कैसे इस कंपनी को उस से कमतर मोबाइल कंपनियों ने सिर्फ पछाड़ ही नहीं दिया, बल्कि बाजार से खदेड़ भी दिया. आइए जानते हैं :

नोकिया का अधिग्रहण

कई सालों से मोबाइल के बाजार में नोकिया की वैसी साख नहीं बची थी जिस के लिए वह जानी जाती थी. यही वजह थी बाजार में नोकिया की जगह सैमसंग, सोनी और आईफोन जैसी कंपनियों ने कब्जा जमा लिया. जब स्मार्टफोन की दौड़ में नोकिया पिछड़ने लगी तो उस ने सौफ्टवेयर दिग्गज कंपनी माइक्रोसौफ्ट के साथ एक करार किया इस करार के तहत तय हुआ कि नोकिया के एंड्रोएड फोन अब माइक्रोसौफ्ट के साथ काम करेंगे. यानी अब मोबाइल का हार्डवेयर नोकिया का होगा और सौफ्टवेयर माइक्रोसौफ्ट का. इसी करार के तहत नोकिया की लूमिया सीरीज ने काफी हद तक बाजार में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी. लेकिन कहते हैं न कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है, ठीक वैसे ही माइक्रोसौफ्ट ने अपनी मजबूत होती जगह का फायदा उठाया और नोकिया से अलग हो कर खुद के ब्रैंड को बेचने का फैसला किया. इसी सिलसिले में असहाय हो चुकी फिनलैंड की मोबाइल निर्माता कंपनी नोकिया का 25 अप्रैल को माइक्रोसौफ्ट ने 7.2 अरब डौलर में अधिग्रहण कर लिया.

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