Download App

न्याय यात्रा में केंद्र सरकार की नाकामियों अग्निवीर योजना, बेरोजगारी, जातीय जनगणना पर चोट करते राहुल गांधी

उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सेना में अग्निवीर योजना, बेराजगारी, अडानी, राम मंदिर और जातीय गणना पर मुखर हो कर बोलते दिखे. प्रदेश में इस यात्रा में पार्टी नेता प्रियंका गांधी को भी शामिल होना था लेकिन तबीयत ठीक न होने के कारण वे इस में शामिल नहीं हो सकीं. प्रदेश में दूसरे दिन यह यात्रा कुरौना, वाराणसी में दोपहर का भोजन कर के लोगों से बात करने के बाद वाराणसी की तरफ बढ़ेगी.

16 फरवरी को भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने देश के सब से अधिक लोकसभा सीटों वाले राज्य उत्तर प्रदेश में प्रवेश किया. यह बिहार से चंदौली के रास्ते उतर प्रदेश पहुंची जहां यात्रा का निर्धारित कार्यक्रम ‘तिरंगा सेरेमनी’ हुआ जिस में बिहार कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह ने उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय को तिरंगा सौंपा. इस अवसर पर राष्ट्रीय महासचिव व प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे, कांग्रेस विधान मंडल दल के नेता आराधना मिश्रा मोना और अन्य कई नेता उपस्थित रहे.

चंदौली पहुंच कर राहुल गांधी ने सैयद राजा शहीद स्मारक पर शहीदों को नमन किया. राहुल गांधी ने कहा, ‘एक विचारधारा भाई को भाई से लड़ाती है और आप की जेब से पैसा निकाल कर चुनिंदा अरबपतियों को दे देती है, दूसरी विचारधारा नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकान खोलती है और आप का हक आप को वापस लौटाती है.’

भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने लोगों से पूछा कि देश में फैली नफरत का क्या कारण है, इस पर जवाब मिला कि देश में फैल रही नफरत का कारण डर है और डर का कारण अन्याय है. आज देश के हर हिस्से में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर अन्याय हो रहा है. देश में किसानों व गरीबों की जमीनें छीन कर अरबपतियों को दी जा रही हैं. महंगाई और बेरोजगारी बढ़ती जा रही है.

मोदी सरकार की अग्निपथ योजना को युवाओं के साथ धोखा बताते हुए राहुल गांधी ने कहा कि अग्निवीर को न कैंटीन सुविधा मिलेगी, न पैंशन मिलेगी और न शहीद का दरजा मिलेगा. यह युवाओं के साथ धोखा है.

मोदी सरकार अग्निपथ योजना इसलिए लाई ताकि देश के रक्षा बजट से पैसा हमारे जवानों की रक्षा, उन की ट्रेनिंग और पैंशन में न जाए. रक्षा के सभी कौन्ट्रैक्ट अडानी की कंपनी के पास हैं. मोदी सरकार हिंदुस्तान के बजट का पूरा पैसा अडानी को देना चाहती है, इसलिए अग्निवीर योजना लाई गई.

राहुल गांधी ने आगे कहा कि मोदी सरकार चाहती है कि सब लोग ठेके के मजदूर बनें. युवाओं को सेना, रेलवे और पब्लिक सैक्टर में नौकरी नहीं मिल रही, क्योंकि मोदी सरकार चाहती है कि युवा ठेके पर ही काम करें. आज हिंदुस्तान में दोतीन अरबपतियों को पूरा फायदा मिल रहा है और युवाओं का ध्यान भटका कर उन का भविष्य छीना जा रहा है. केंद्र में ‘इंडिया’ की सरकार आने पर पूरे हिंदुस्तान में रिक्त पड़े सरकारी पदों पर भरती की जाएगी.

राहुल गांधी ने कहा कुछ ही दिनों पहले हम ने किसानों के लिए एमएसपी की लीगल गारंटी दी है. हम कानूनी गारंटी देंगे कि हिंदुस्तान के किसानों को सही एमएसपी दी जाए. उन्होंने कहा, “मैं आप से यह कहना चाहता हूं कि सामाजिक अन्याय हो रहा है, आर्थिक अन्याय हो रहा है, किसानों के खिलाफ अन्याय हो रहा है.”

राहुल गांधी ने जनता से सवाल किया कि नरेंद्र मोदी ने किसानों का कितना कर्जा माफ किया? जनता की भीड़ ने कहा, ‘जीरो. एक रुपया नहीं किया.’ राहुल गांधी ने दूसरा सवाल किया, ‘हिंदुस्तान के 20-25 अरबपतियों का कितना कर्जा माफ किया?’ जवाब आया. ‘16 लाख करोड़ रुपए.’

मीडिया पर तंज कसते राहुल बोले, ‘हम ने किसानों का कर्जा माफ किया, 72 हजार करोड़ रुपए हम ने माफ किए और उस टाइम सारे मीडिया ने कहा कि देखो, यूपीए की सरकार पैसा जाया कर रही है, किसानों को आलसी बना रही है. तो जब किसानों का कर्जा माफ होता है तो मीडिया कहती है कि किसानों को आलसी बनाया जा रहा है और जब नरेंद्र मोदी जी 15-20 लोगों का 16 लाख करोड़ रुपए कर्जा माफ करते हैं, तो फिर ये एक शब्द नहीं कहते. जनता की भीड़ ने कहा, ‘मोदी मीडिया, गोदी मीडिया एक शब्द नहीं कहता.’ जनता के यह कहने पर राहुल बोले, ‘तो इसी अन्याय के खिलाफ हम ने यह यात्रा निकाली है.’

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष गांधी ने कहा कि मीडिया में कभी किसान या मजदूर का चेहरा नहीं दिखाई देगा. राम मंदिर की प्राणप्रतिष्ठा कार्यक्रम में अडानी, अंबानी, अरबपति, फिल्मी सितारे दिखे लेकिन कोई गरीब, किसान, बेरोजगार, दुकानदार या मजदूर नहीं दिखा.

भागीदारी न्याय का मुद्दा उठाते हुए कांग्रेस नेता ने कहा कि देश में पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों की आबादी 73 प्रतिशत है. मगर इन वर्गों की कहीं भी भागीदारी नहीं है. इन वर्गों को कुछ नहीं मिल रहा है. यह अन्याय है. जाति जनगणना से पता चलेगा कि देश में कितने पिछड़े, दलित और आदिवासी हैं. किस वर्ग के पास कितना धन है. जाति जनगणना देश का एक्सरे है. इस से पता लग जाएगा कि सोने की चिड़िया का धन किस के हाथ में है. यह क्रांतिकारी कदम है. केंद्र में ‘इंडिया’ की सरकार आने पर पूरे देश में जाति जनगणना कराई जाएगी.

मेरी गर्लफ्रेंड इंटरकोर्स करने से मना करती है, मैं क्या करूं ?

सवाल

मैं 28 वर्षीय युवक हूं. मेरी गर्लफ्रैंड मुझे बहुत चाहती है. मैं और मेरी गर्लफ्रैंड अकसर मिलते रहते हैं, कभी पब्लिक प्लेस में तो कभी प्राइवेट प्लेस में. मैं उस के घर चला जाता हूं क्योंकि उस के पेरैंट्स वर्किंग हैं, घर पर कोई नहीं होता. वह इकलौती संतान है. जब भी मैं उस के घर जाता हूं, वह मुझे उत्तेजित कर देती है लेकिन इंटरकोर्स करने से मना कर देती है. मैं उसे समझाने की कोशिश करता हूं कि वह मेरे लिए खास है और मेरी जिंदगी में उस के अलावा न कोई है न होगा. इंटरकोर्स करने में कोई हर्ज नहीं लेकिन वह नहीं मानती. मैं तनाव में आ जाता हूं. मुझे बुरा भी लगता है. मैं क्या करूं?

जवाब

आप यह मानते हैं कि आप की गर्लफ्रैंड आप को पसंद करती है, बेहद प्यार करती है. यकीनन इस में संदेह नहीं वरना वह आप पर ऐतबार कर के आप को अपने घर आने न देती.

अकसर लड़कियां शादी से पहले पेनिट्रेटिव सैक्स पसंद नहीं करती हैं. हमारे समाज में वैजाइनल सैक्स को ले कर बहुत ज्यादा भ्रांतियां हैं, जिन में मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबाव भी शामिल हो जाता है. वैजाइना सैक्स उन के लिए सब से अंतिम चीज है, जो वे शादी के बाद करती हैं और वे इसे जबतब या बारबार नहीं करना चाहतीं.

पेनिट्रेटिव सैक्स से उस का इनकार इस वजह से भी हो सकता है कि उसे कुछ और समय चाहिए. हालांकि इस का मतलब यह नहीं हो सकता है कि वह आप को पसंद नहीं करती. इस का सिर्फ यह मतलब हो सकता है कि आप को उस की इच्छा का सम्मान करना चाहिए और उसे समय देना चाहिए.

समय के साथ प्यार बढ़ता है, एकदूसरे पर भरोसा बढ़ता है. वैसे, यदि आप दोनों लाइफ में सैटल हो गए हैं तो शादी करने का परफैक्ट टाइम है. शादी कर लीजिए आप की सारी ख्वाहिशें पूरी हो जाएंगी. तनाव में रहने की कोई वजह ही नहीं रहेगी.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

रिलेशनशिप में आने के बाद क्या आपको भी सता रहे हैं ये डर, तो अपनाएं ये टिप्स

रिलेशनशिप में आना हर किसी के जीवन में एक नए पड़ाव जैसा होता है जिसमे व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति के साथ अपने जीवन के सुख दुःख को साझा करता है जिसे वो पसंद करता है जिससे वो प्यार करता है.

जहां नए रिलेशनशिप में आना लड़का और लड़की दोनों के लिए नया और प्यारा एहसास होता है वहीं दूसरी ओर दोनों के मन में नए रिश्ते को लेकर कई तरह के डर भी पैदा होते हैं.

आज हम आपसे उन्ही बातों, उन्ही डर का जिक्र करेंगे जो एक व्यक्ति के मन में नए रिलेशनशिप में आने के बाद घर करती है.

  1. गलत करने का डर: नए रिलेशनशिप में आने के बाद हर किसी के मन में यह ख्याल आता है कि वो जो कर रहे हैं वो सही है या गलत. नए रिलेशन में आने के बाद लोग कुछ दिनों तक ये नहीं समझ पाते की इस रिश्ते में वो खुश रह पायेंगे या इस रिश्ते से उन्हें कोई हानि नहीं होगी. ऐसे कई लोग होते हैं जिन्हें नए रिश्ते में आने के बाद इन बातों का डर सताता रहता है.
  2. जल्दबाजी का डर: नए रिलेशनशिप में आने के बाद कई लोगो के मन में यह डर सताता है कि कहीं उन्होंने रिश्ता बनाने में जल्दबाजी तो नहीं की है? क्या ये सही वक्त है? क्या मुझे थोड़ा समय लेना चाहिए था? नए रिलेशनशिप में आने के बाद कई लोगो के मन में इस तरह के ख्याल आते हैं. वो सोचते है की इतनी जल्दी बनाये गए रिश्ते का भविष्य सुरक्षित होगा या नहीं.
  3. सही साथी न चुन पाने का डर: ऐसा कई बार देखा गया है कि लोगो को रिलेशनशिप में आने के सालभर बाद ये पता चलता है कि मेरे द्वारा चुना गया लड़का या चुनी गयी लड़की मेरे लिए सही नहीं है और इस स्थिति में रिलेशनशिप टिक नहीं पाता. नए रिलेशनशिप में आये लोगो के मन में भी इस तरह के ख्याल आते हैं. कई बार लोगो को ये समझ नहीं आता की उनके द्वारा चुना गया साथी वाकई उनके लिए सही है या नहीं. इस बात का डर नए-नए रिलेशनशिप में आये लोगो के मन में ज्यादा होता है.
  4. साथी के रिश्ता तोड़ देने का डर: नए नए रिलेशनशिप में आने के बाद कई लोगों के मन में यह डर बैठा रहता है कि कहीं उसका पार्टनर उससे रिश्ता न तोड़ ले. ये डर उन लोगों के मामले में ज्यादा होता है जिनके अन्दर आत्मसम्मान और आत्मविश्वास की कमी होती है. ये डर उन लोगों के मन में भी ज्यादा होता हैं जिन्होंने झूठ बोलकर रिश्ता बनाया होता है.
  5. ये सचमच में प्यार है या बस वो मुझे पसंद करता/करती है: कई लोगों को नए रिलेशनशिप में आने के बाद इस ख्याल में डूबे रहते हैं कि उनका पार्टनर उसे सच में प्यार करता है या बस उसे पसंद करता है. ऐसे कई लोग होते हैं जो इस स्थिति में हमेशा अपने साथी के प्यार को हर पैमाने पर मापते हैं जिससे कई बार रिश्ते के टूटने की सम्भावना पैदा होती है.
  6. खुद की पहचान खोने का डर: कई लोगों के मन में रिलेशनशिप में आने के बाद ये डर सताता है कि कहीं नए रिश्ते के लिए खुद को बदलने के क्रम में अपनी पहचान ही न खो दें. बहुत से लोगों के मन में यह बात रहती है कि कहीं वो अपने साथी को इम्प्रेस करने या उसे प्रभावित करने में कहीं खुद की पहचान न खो दें.

बिटिया का पावर हाऊस : क्यों अमितजी को अपनी बहू पर फक्र महसूस होने लगा था ?

अमितजी की 2 संतान हैं, बेटा अंकित और बेटी गुनगुन. अंकित गुनगुन से 6-7 साल बड़ा है.

घर में सबकुछ हंसीखुशी चल रहा था मगर 5 साल पहले अमितजी की पत्नी सरलाजी की तबियत अचानक काफी खराब रहने लगी. जांच कराने पर पता चला कि उन्हें बड़ी आंत का कैंसर है जो काफी फैल चुका है. काफी इलाज कराने के बाद भी उन की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ.

जब उन्हें लगने लगा कि अब वे ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएंगी तो एक दिन अपने पति से बोलीं,”मैं अब ज्यादा दिन जीवित नहीं रहूंगी. गुनगुन अभी 15-16 वर्ष की है और घर संभालने के लिहाज से अभी बहुत छोटी है. मैं अपनी आंख बंद होने से पूर्व इस घर की जिम्मेदारी अपनी बहू को देना चाहती हूं. आप जल्दी से अंकित की शादी करा दीजिए.”

अमितजी ने उन्हें बहुत समझाया कि वे जल्द ठीक हो जाएंगी और जैसा वे अपने बारे में सोच रही हैं वैसा कुछ नहीं होगा. लेकिन शायद सरलाजी को यह आभास हो गया था कि अब उन की जिंदगी की घड़ियां गिनती की रह गई हैं, इसलिए वे पति से आग्रह करते हुए बोलीं, “ठीक है, यदि अच्छी हो जाऊंगी तो बहू के साथ मेरा बुढ़ापा अच्छे से कट जाएगा. लेकिन अंकित के लिए बहू ढूंढ़ने में कोई बुराई तो है नहीं, मुझे भी तसल्ली हो जाएगा कि मेरा घर अब सुरक्षित हाथों में है.”

अमितजी ने सुन रखा था कि व्यक्ति को अपने अंतिम समय का आभास हो ही जाता है. अत: बीमार पत्नी की इच्छा का सम्मान करते हुए उन्होंने अंकित के लिए बहू ढूंढ़ना शुरू कर दिया.

एक दिन अंकित का मित्र आभीर अपनी बहन अनन्या के साथ उन के घर आया. अंकित ने उन दोनों को अपनी मां से मिलवाया. जब तक अंकित और आभीर आपस में बातचीत में मशगूल रहे, अनन्या सरलाजी के पास ही बैठी रही. उस का उन के साथ बातचीत करने का अंदाज, उन के लिए उस की आंखों में लगाव देख कर अमितजी ने फैसला कर लिया कि अब उन्हें अंकित के लिये लड़की ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है.

उन्होंने सरलाजी से अपने मन की बात बताई, जिसे सुन कर सरलाजी के निस्तेज चेहरे पर एक चमक सी आ गई.

वे बोलीं, “आप ने तो मेरे मन की बात कह दी.”

अंकित को भी इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं थी. दोनों परिवारों की रजामंदी से अंकित और अनन्या की शादी तय हो गई.

शादी के बाद जब मायके से विदा हो कर अनन्या ससुराल आई तो सरलाजी उस के हाथ में गुनगुन का हाथ देते हुए बोलीं,”अनन्या, मैं मुंहदिखाई के रूप में तुम्हें अपनी बेटी सौंप रही हूं. मेरे जाने के बाद इस का ध्यान रखना.”

अनन्या भावुक हो कर बोली, “मम्मीजी, आप ऐसा मत बोलिए. आप का स्थान कोई नहीं ले सकता.”

“बेटा, सब को एक न एक दिन जाना ही है, लेकिन यदि तुम मुझे यह वचन दे सको कि मेरे जाने के बाद तुम गुनगुन का ध्यान रखोगी, तो मैं चैन से अंतिम सांस ले पाऊंगी.”

“मांजी, आप विश्वास रखिए. आज से गुनगुन मेरी ननद नहीं, मेरी छोटी बहन है.”

बेटे के विवाह के 1-2 महीने के अंदर ही बीमारी से लड़तेलड़ते सरलाजी की मृत्यु हो गई. अनन्या हालांकि उम्र में बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन उस ने अपनी सास को दिया हुआ वादा पूरे मन से निभाया. उस ने गुनगुन को कभी अपनी ननद नहीं बल्कि अपनी सगी बहन से बढ़ कर ही समझा.

बड़ी होती गुनगुन का वह वैसे ही ध्यान रखती जैसे एक बड़ी बहन अपनी छोटी बहन का रखती है.

वह अकसर गुनगुन से कहती, “गुनगुन, बड़ी भाभी, बड़ी बहन और मां में कोई भेद नहीं होता.”

गुनगुन के विवाह योग्य होने पर अंकित और अनन्या ने उस की शादी खूब धूमधाम से कर दी. विवाह में कन्यादान की रस्म का जब समय आया, तो अमितजी ने मंडप में उपस्थित सभी लोगों के सामने कहा,”कन्यादान की रस्म मेरे बेटेबहू ही करेंगे.”

विवाह के बाद विदा होते समय गुनगुन अनन्या से चिपक कर ऐसे रो रही थी जैसे वह अपनी मां से गले लग कर रो रही हो. ननदभाभी का ऐसा मधुर संबंध देख कर विदाई की बेला में उपस्थित सभी लोगों की आंखें खुशी से नम हो आईं.

गुनगुन शादी के बाद ससुराल चली गई. दूसरे शहर में ससुराल होने के कारण उस का मायके आना अब कम ही हो पाता था. उस का कमरा अब खाली रहता था लेकिन उस की साजसज्जा, साफसफाई अभी भी बिलकुल वैसी ही थी जैसे लगता हो कि वह अभी यहीं रह रही हो. अंकित के औफिस से लौटने के बाद अनन्या अपने और अंकित के लिए शाम की चाय गुनगुन के कमरे में ही ले आती ताकि उस कमरे में वीरानगी न पसरी रहे और उस की छत और दीवारें भी इंसानी सांसों से महकती रहे.

एक दिन पड़ोस में रहने वाले प्रेम बाबू अमितजी के घर आए. बातोंबातों में वे उन से बोले, “आप की बिटिया गुनगुन अब अपने घर चली गई है, उस का कमरा तो अब खाली ही रहता होगा. आप उसे किराए पर क्यों नहीं दे देते? कुछ पैसा भी आता रहेगा.”

यह बातचीत अभी हो ही रही थी कि उसी समय अनन्या वहां चाय देने आई. ननद गुनगुन से मातृतुल्य प्रेम करने वाली अनन्या को प्रेम बाबू की बात सुन कर बहुत दुख हुआ. वह उन से सम्मानपूर्वक किंतु दृढ़ता से बोलीं,”अंकल, क्या शादी के बाद वही घर बेटी का अपना घर नहीं रह जाता जहां उस ने चलना सीखा हो, बोलना सीखा हो और जहां तिनकातिनका मिल कर उस के व्यक्तित्व ने साकार रूप लिया हो.

“अकंल, बेटी पराया धन नहीं बल्कि ससुराल में मायके का सृजनात्मक विस्तार है. शादी का अर्थ यह नहीं है कि उस के विदा होते ही उस के कमरे का इंटीरियर बदल दिया जाए और उसे गैस्टरूम बना दिया जाए या चंद पैसों के लिए उसे किराए पर दे दिया जाए.”

“बहू, तुम जो कह रही हो, वह ठीक है. लेकिन व्यवहारिकता से मुंह मोड़ लेना कहां की समझदारी है?”

“अंकल, रिश्तों में कैसी व्यवहारिकता? रिश्ते कंपनी की कोई डील नहीं है कि जब तक क्लाइंट से व्यापार होता रहे तब तक उस के साथ मधुर संबंध रखें और फिर संबंधों की इतिश्री कर ली जाए. व्यवहारिकता का तराजू तो अपनी सोच को सही साबित करने का उपक्रम मात्र है.”

तब प्रेम बाबू बोले,”लेकिन इस से बेटी को क्या मिलेगा?”

”अंकल, मायका हर लड़की का पावर हाउस होता है जहां से उसे अनवरत ऊर्जा मिलती है. वह केवल आश्वस्त होना चाहती है कि उस के मायके में उस का वजूद सुरक्षित है. वह मायके से किसी महंगे उपहार की आकांक्षा नहीं रखती और न ही मायके से विदा होने के बाद बेटियां वहां से चंद पैसे लेने आती हैं बल्कि वे हमें बेशकीमती शुभकामनाएं देने आती हैं, हमारी संकटों को टालने आती हैं, अपने भाईभाभी व परिवार को मुहब्बत भरी नजर से देखने आती हैं.

“ससुराल और गृहस्थी के आकाश में पतंग बन उड़ रही आप की बिटिया बस चाहती है कि विदा होने के बाद भी उस की डोर जमीन पर बने उस घरौंदे से जुड़ी रहें जिस में बचपन से ले कर युवावस्था तक के उस के अनेक सपने अभी भी तैर रहे हैं. इसलिए हम ने गुनगुन का कमरा जैसा था, वैसा ही बनाए रखा है. यह घर कल भी उन का था और हमेशा रहेगा.”

प्रेम बाबू बोले, “लेकिन कमरे से क्या फर्क पड़ता है? मायके आने पर उस की इज्जत तो होती ही है.”

अनन्या बोली, “अंकल, यही सोच का अंतर है. बात इज्जत की नहीं बल्कि प्यार और अपनेपन की है. लड़की के मायके से ससुराल के लिए विदा होते ही उस का अपने पहले घर पर से स्वाभाविक अधिकार खत्म सा हो जाता है. इसीलिए विवाह के पहले प्रतिदिन स्कूलकालेज से लौट कर अपना स्कूल बैग ले कर सीधे अपने कमरे में घुसने वाली वही लड़की जब विवाह के बाद ससुराल से मायके आती है, तो अपने उसी कमरे में अपना सूटकेस ले जाने में भी हिचकिचाती है, क्योंकि दीवारें और छत तो वही रहती हैं मगर वहां का मंजर अब बदल चुका होता है. लेकिन उसी घर का बेटा यदि दूसरे शहर में अपने बीबीबच्चों के साथ रह रहा हो, तो भी यह मानते हुए कि यह उस का अपना घर है उस का कमरा किसी और को नहीं दिया जाता. आखिर यह भेदभाव बेटी के साथ ही क्यों, जो कुछ दिन पहले तक घर की रौनक होती है?

“यदि संभव हो, तो बिटिया के लिए भी उस घर में वह कोना अवश्य सुरक्षित रखा जाना चाहिए, जहां नन्हीं परी के रूप में खिलखिलाने से ले कर एक नई दुनिया बसाने वाली एक नारी बनने तक उस ने अपनी कहानी अपने मापिता, भाईबहन के साथ मिल कर लिखा हो.”

हर लड़की की पीड़ा को स्वर देती हुई अनन्या की दर्द में डूबी बात को सुन कर राम बाबू को एकबारगी करंट सा लगा.

उन्हें पिछले दिनों अपने घर में घटित घटनाक्रम की याद आ गई, जब उन की बेटी अमोली अपने मायके आई थी.

वे बोले,”बहू, तुम ने मेरी आंखें खोल दीं. परसों मेरी बिटिया अमोली ससुराल से मायके आई थी. यहां आने के बाद उस का सामान उस के अपने ही घर के ड्राइंगरूम में काफी देर ऐसे पड़ा रहा, जैसे वह अमोली का नहीं बल्कि किसी अतिथि का सामान हो. ‘बेटा अपना, बेटी पराई’ जैसी बात को बचपन से अबतक सुनते आए हमारी मनोभूमि वैसी ही बन जाती है और इसी भाव ने अमोली को कब चुपके से घर की सदस्य से अपने ही घर में अतिथि बना दिया, उस मासूम को पता ही नहीं चला. पता नहीं क्यों, मैं ने उस का कमरा किसी और को क्यों दे दिया? यदि गुनगुन की तरह अमोली का कमरा भी उस के नाम सुरक्षित रहता तो वह भी पहले की भांति सीधे अपने कमरे में जाती जैसे कालेज ट्रिप से आने के बाद वह सीधे अपने कमरे में अपनी दुनिया में चली जाती थी,” यह बोलते हुए उन की आंखें भर आईं और गला अवरुद्ध हो गया. वे रुमाल से अपना चश्मा साफ करने लगे.

अनन्या तुरंत उन के लिए पानी का गिलास ले आई. पानी पी कर गला साफ करते हुए राम बाबू बोले, “बहू, उम्र में इतनी छोटी होने पर भी तुम ने मुझे जिंदगी का एक गहरा पाठ पढ़ा दिया. मैं तुम्हारा शुक्रिया कैसे अदा करूं…”

अनन्या बोली, “अंकल, यदि आप मुझे शुभकामनाएं स्वरूप कुछ देना चाहते हैं तो आप घर जा कर अमोली से कहिए कि तुम अपने कमरे को वैसे ही सजाओ, जैसे तुम पहले किया करती थी. मैं आज बचपन वाली अमोली से फिर से मिलना चाहता हूं. यही मेरे लिए आप का उपहार होगा.”

प्रेम बाबू बोले, “बेटा, जिस घर में तुम्हारे जैसी बहू हो, वहां बेटी या ननद को ही नहीं बल्कि हर किसी को रहना पसंद होगा और आज से अमोली का पावर हाऊस भी काम करने लगा है, वह उसे निरंतर ऊर्जा देता रहेगा.”

प्रेम बाबू की बात को सुन कर अमितजी और अनन्या मुसकरा पड़े. खुशियों के इन्द्रधनुष की रुपहली आभा अमितजी के घर से प्रेम बाबू के घर तक फैल चुकी थी.

फाइनैंसर : विदाई के वक्त अचानक पप्पू की तबीयत क्यों बिगड़ने लगी ?

शरद हमेशा सुबह ही टैक्सी ले कर निकल जाता था. इधर बच्चे बड़े होने लगे. उन की पढ़ाईलिखाई पर उस की एक बड़ी रकम खर्च होने लगी. उसे हमेशा यही फिक्र रहती थी कि बच्चे किसी भी तरह पढ़लिख लें.

शरद की टैक्सी धीरेधीरे पुरानी होने लगी थी. हर साल उस के रखरखाव पर 25 से 30 हजार रुपए खर्च हो जाते थे. शरद की बीवी बीमार थी. उस की किडनी में दिक्कत थी. वह इलाज कराने में हमेशा कोताई बरतती थी.

शरद जितना कमाता था उस से ज्यादा घर में खर्च हो जाता था, फिर भी वह संतुष्ट था. लेकिन इस बार उस की बेटी का कालेज में आखिरी साल था और एक बड़ी रकम बतौर फीस भरनी थी. बैंक पुरानी टैक्सी पर कर्ज देने से इनकार कर चुका था. शरद एक फाइनैंसर पप्पू सेठ के पास गया. पप्पू सेठ ने आसानी से उसे कर्ज दे दिया.

शरद अब और भी मेहनत करने लगा था और बराबर किस्त भरता था. कभीकभार जब समय पर किस्त नहीं पहुंचती थी, तब भी पप्पू सेठ कभी नाराज नहीं होते थे और मुसकरा कर ‘कोई बात नहीं’ कह देते थे. धीरेधीरे परेशानियों ने चारों तरफ से शरद को घेरना शुरू कर दिया. बेटी की पढ़ाई, पत्नी की बीमारी और कुछ प्राइवेट कंपनियों की टैक्सी आ जाने के चलते उस के धंधे पर बुरा असर पड़ने लगा और वह

4-5 हफ्तों तक किस्त नहीं दे पाया. पप्पू सेठ ने न चाहते हुए भी शरद की टैक्सी अपने पास रख ली. शरद ने यह बात अपने घर में किसी को नहीं बताई और हमेशा की तरह सुबह घर से जल्दी निकल कर किसी दूसरे की टैक्सी चलाने लगा. अब वह अकसर देर रात ही घर आता था.

वक्त पंख लगा कर बहुत तेजी से आगे जा रहा था. पप्पू सेठ की बेटी की शादी होने वाली थी. उन्होंने न सिर्फ रिश्तेदारदोस्तों, बल्कि उन लोगों को भी न्योता दिया था जिन्होंने उन से कर्ज लिया था.

विदाई के वक्त अचानक पप्पू सेठ की तबीयत बिगड़ने लगी. उन के सीने में तेज दर्द व माथे पर पसीना आने लगा जो हार्टअटैक के लक्षण थे. सारे मेहमान घबरा गए. पूरा माहौल गमगीन हो चुका था. तब पप्पू सेठ की बेटी की सहेली सरिता ने न केवल उन्हें संभाला, बल्कि एंबुलैंस का इंतजाम किया और फोन से अस्पताल को पूरी जानकारी भी दी.

जब एंबुलैंस अस्पताल पहुंची तो पहले से अस्पताल में डाक्टरों की एक पूरी टीम तैयार थी जो पप्पू सेठ को आईसीयू में ले गई. सब को यह जान कर हैरानी हुई कि उस डाक्टर टीम की हैड सरिता ही थी और चंद घंटों में ही पप्पू सेठ पहले से बेहतर हो चुके थे.

जब पप्पू सेठ पूरी तरह ठीक हो गए तब एक मौके पर उन के दोस्तरिश्तेदारों ने सरिता को सम्मानित करना चाहा.

यह सुन कर सरिता ने कहा, ‘‘अगर आप को सम्मानित करना ही है तो मेरे पिता को कीजिए जिन की जिंदगी में तमाम उतारचढ़ाव आने के बाद भी उन्होंने मुझे इस काबिल बनाया.’’

जिस दिन डाक्टर सरिता के पिता को सम्मान देने के लिए बुलाया गया तो उन्हें देख कर पप्पू सेठ अनायास ही अपनी सीट से खड़े हो गए और उन्होंने सरिता के पिता को गले लगा लिया.

डाक्टर सरिता के पिता कोई और नहीं, बल्कि टैक्सी ड्राइवर शरद ही थे. उस दिन से पप्पू सेठ और भी दयालु हो गए. उन्हें लगा कि शायद उन से अनजाने में कुछ गलती हुई होगी क्योंकि किसी की टैक्सी वापस लेने के बाद वे नहीं जान पाए कि उस परिवार पर क्या बीतती है.

पप्पू सेठ अब अपना ज्यादातर समय जरूरतमंदों की मदद करने में लगाते हैं. उन्होंने अपने बेटे लकी, जो एक गैराज चलाता था, से कह दिया है, ‘‘हमारे पास मजबूरी में लोग आते हैं. उन का हर तरह से सहयोग करना.’’

शरद और पप्पू सेठ का परिवार एकदूसरे के घर पर आताजाता रहता है, क्योंकि डाक्टर सरिता को पप्पू सेठ अपनी बेटी की तरह स्नेह करते हैं.

एक साथी की तलाश : आखिर मधुप और बिरुवा का रिश्ता था क्या ?

story in hindi

डर : आखिर क्यों शादी से खुश नहीं था प्रभास ?

मेजर प्रभास अपने बड़े भाई वीर की शादी में घर आया था. घर में खुशी का माहौल था. वीर बैंगलुरु की एक कंपनी में इंजीनियर था. वीर का जहां रिश्ता हो रहा था उस परिवार में 3 लड़कियों में नेहा सब से बड़ी थी. नेहा के पिता नीलेश जल्दी से जल्दी नेहा की शादी कर के जिम्मेदारी से मुक्त होना चाहते थे. नेहा कुछ दिनों से पुणे में जौब कर रही थी, लेकिन अब शादी के बाद सबकुछ पीछे छूटने वाला था. उस के दोस्त, वे पार्टियां वह होस्टल…

प्रभास के आर्मी में होने से सभी लोग बहुत खुश थे. शादी के भीड़भाड़ वाले माहौल में भी लोग उस के चायपानी, खाने का विशेष ध्यान रख रहे थे. हलदी की रात सभी लोगों ने खूब डांस किया. शादी के दिन प्रभास रोज की तरह सुबह 4 बजे ही उठ गया. प्रभास ने पलट कर देखा तो वीर अपने पलंग से गायब था. उस ने पूरे घर मेें चक्कर लगाया. घूमफिर कर वापस पलंग पर आ कर बैठ गया. तभी उसे पलंग के कोने में रखा वीर का खत मिला, जिस में लिखा था, ‘प्रभास, मुझे माफ कर देना, अनन्या नाम की लड़की से मेरी पहले ही रजिस्टर मैरिज हो चुकी है. वह दूसरी जाति की है और मांपिताजी उसे कभी स्वीकार नहीं करेंगे. इसलिए मैं हमेशा के लिए घर छोड़ कर जा रहा हूं.’

खत पढ़ते ही प्रभास पिता के पास गया. घर के सभी लोग टैंशन में आ गए. सोच में पड़ गए कि लड़की वालों को क्या जवाब दें. अंत में घर के सभी बड़े लोगों ने मिल कर प्रभास को दूल्हा बनाने का निर्णय लिया. परिस्थिति के आगे प्रभास लाचार हो गया. लड़की वालों की सहमति से नेहा और प्रभास का विवाह धूमधाम से संपन्न हुआ. लेकिन प्रभास इस शादी से खुश नहीं था. छुट्टियां खत्म होने से पहले ही वह ड्यूटी पर जाने की तैयारी करने लगा. प्रभास की मां ने नेहा और प्रभास दोनों के बीच की दूरियां कम करने हेतु नेहा को भी साथ ले जाने की जिद पकड़ी.

मांपिताजी की किटकिट सुनने से बेहतर वह नेहा को साथ ले कर श्रीनगर निकल गया. वहां एक दोस्त की पत्नी डिलीवरी के लिए मायके गई थी तो उस का घर खाली था. दोनों वहीं कुछ दिनों तक रहे. रेलगाड़ी के पूरे सफर में प्रभास एक मिनट के लिए भी नेहा के पास नहीं बैठा और दरवाजे के पास जा कर खड़ा रहा. प्रभास का यह रूखा व्यवहार देख कर नेहा की आंखों में आंसू आने लगे.

नेहा को यह शादी नहीं करनी थी. लेकिन मजबूर थी क्योंकि 2 और भी बेटियां अभी मातापिता को ब्याहनी थीं. मन में विचार आया कि पुणे भाग जाए. नेहा अपनी जिंदगी के बारे में सोच रही थी कि तभी प्रभास आया.

‘‘चलो, श्रीनगर आ गया, बैग लो.’’

नेहा बैग ले कर प्रभास के पीछेपीछे चलने लगी. दोनों ने टैक्सी पकड़ी. रात के 12 बज रहे थे. कुछ दूर जाने पर एक दहशतगर्द टैक्सी के सामने आ कर खड़ा हो गया.

‘‘चलो, चलो, नीचे उतरो, नहीं तो सिर पर गोली मार दूंगा. उतरो, देख क्या रहे हो?’’

‘‘निकलो, जल्दी बाहर निकलो,’’ ड्राइवर घबराते हुए चिल्लाने लगा.

‘‘गाड़ी से दूर खड़े हो जाओ.’’ दहशतगर्द ने चिल्लाते हुए कहा.

तभी आर्मी वाले बंदूक ले कर वहां पहुंचे. नेहा और प्रभास एकदूसरे के साथ लेकिन दूरदूर खड़े थे. इस मौके का फायदा उठा कर दहशतगर्द ने नेहा को दबोच लिया और उस के सिर पर बंदूक तान दी, चिल्लाते हुए कहा, ‘‘खबरदार, अगर कोई आगे आया तो. इस लड़की की जान प्यारी है तो मुझे यहां से जाने दो.’’

‘‘मेजर रजत, बंदूक नीचे करो. उसे जाने दो. बादल, तू यहां से जा, लेकिन उस लड़की को छोड़ दे,’’ कैप्टन वसु ने कहा.

‘‘पहले दूर हटो.’’

कुछ ही पल में दहशतवादी बादल नेहा को ले कर फरार हो गया. प्रभास अब पछता रहा था. नेहा को कुछ हुआ तो मैं खुद को कभी माफ नहीं करूंगा. मैं बेवजह ही नेहा से ऐसा व्यवहार कर रहा था. गलती तो मेरे भाई ने की है और मैं गुस्सा नेहा पर निकाल रहा हूं. वह बिलकुल निराश हो गया था.

‘‘मेजर प्रभास, मैं आप की परिस्थिति समझ सकता हूं. हम हर रास्ते पर चैकिंग कर रहे हैं. नेहा जल्दी ही मिल जाएगी.’’

बादल नेहा को ले कर जंगल में पहुंच गया. उस के पैरों से खून निकल रहा था. उस ने नेहा को गाड़ी से बाहर निकाला. दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गए.

‘‘देखो, मुझे जाने दो प्लीज.’’

‘‘छोड़ दूंगा तुझे, कुछ देर चुप बैठ. मैं भागभाग के थक गया हूं. थोड़ा आराम करने दे मुझे.’’

नेहा शांति से बैठ गई. प्रभास के पास वापस जा कर मैं क्या करूंगी? उस के बजाय यह दहशतगर्द मुझे यहीं मार देगा तो अच्छा होगा, इस तरह के विचार उस के मन में उठ रहे थे. बादल एक घंटे बैठा रहा. बीचबीच में वह नेहा की तरफ देख रहा था. हवा से उड़ते नेहा के घुंघराले बाल, गहरी भूरी आंखें, खूबसूरत चेहरा बादल के मन को आकर्षित कर रहा था. बादल के कदम नेहा की तरफ बढ़ने लगे. नेहा अपने ही विचारों में खोई हुई थी.

थोड़ी देर में बादल नेहा के पास आया. उस के दोनों हाथ और मुंह बांध कर उसे जंगल से बाहर हाईवे पर ले गया. हाईवे के करीब जा कर नेहा को अपनी बांहों में ले कर कहा, ‘‘ये भेंट मुझे हमेशा याद रहेगी.’’

हाईवे पर एक फोरव्हीलर आते देख बादल ने नेहा को उस की तरफ ढकेला और एक ही पल में गायब हो गया. फोरव्हीलर में बैठे लोगों ने नेहा को आर्मी वालों को सौंप दिया.

‘‘कैसी हो तुम,’’ प्रभास ने प्यार से पूछा.

‘‘मेजर प्रभास, पहले आर्मी वाले नेहा से पूछताछ करेंगे. इस के बाद तुम पतिपत्नी एकदूसरे से मिलना.’’

आर्मी वाले पूछताछ के लिए नेहा को अंदर ले गए. बाहर खिड़की के पास प्रभास खड़ा रहा. प्रभास नेहा को एक मिनट के लिए भी छोड़ने को तैयार नहीं था.

‘‘बादल तुम्हें कहां ले कर गया था?’’

‘‘गाड़ी एक जंगल में रुकी थी.’’

‘‘ उस ने तुम्हें कोई तकलीफ दी?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तुम उस के साथ कम से कम एक घंटे थीं. वह कुछ बोल रहा था?’’

‘‘कुछ नहीं, बोल रहा था कि मैं भागभाग कर बहुत थक गया हूं.’’

‘‘और कुछ याद आ रहा है?’’

नेहा सिर नीचे कर के थोड़ी देर सोचने के बाद बोली, ‘‘नहीं.’’ लेकिन नेहा का यह जवाब मेजर रजत को झूठ लग रहा था. प्रभास नेहा को ले कर घर आया. पहले उस ने नेहा से मांफी मांगी और वादा किया कि अब इस के आगे कभी कोई गलती नहीं होगी.

शाम को दोस्तों के साथ प्रभास बाहर घूमने गया. नेहा घर में अकेली थी. बड़े दिनों बाद आज नेहा तनावमुक्त लग रही थी. वह निश्चित हो कर बैड पर लेटी हुई थी. तभी दरवाजे की घंटी बजी. खोला तो वहां एक बुके और एक चिट्ठी पड़ी थी. नेहा ने जल्दी से चिट्ठी खोली, उस में लिखा था, ‘ये भेंट तुम्हें हमेशा मेरी याद दिलाएगी.’ इतना पढ़ते ही नेहा ने तुरंत वह बुके और चिट्ठी दोनों रास्ते पर फेंक दिए और भाग कर घर में आई और दरवाजा बंद कर के रोने लगी. बड़ी मुश्किल से तो प्रभास और नेहा एकदूसरे के करीब आए थे कि यह दूसरी मुसीबत खड़ी हो गई.

प्रभास रात 8 बजे घर आया. लेकिन नेहा के पास प्रभास से बादल के बारे में बात करने की हिम्मत नहीं थी. दूसरे दिन दोनों शौपिंग करने मौल गए. नेहा ने कुछ ड्रैस खरीदीं और ट्रायल के लिए जैसे ही चैंजिंग रूम में गई, बादल ने अपने हाथों से उस का मुंह दबा दिया. नेहा के शांत होने पर उस ने अपना हाथ हटाया.

‘‘देखो, मेरा पीछा मत करो. तुम क्यों मुझे परेशान कर रहे हो?’’

‘‘तुम्हारी आवाज तुम से भी ज्यादा सुंदर है.’’

‘‘तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता है,’’ नेहा ने झटके से दरवाजा खोला.

‘‘हम ऐसे ही रोज मिल सकते हैं. तुम्हारे पति को कुछ पता नहीं चलेगा.’’

‘‘क्यों मिलूं, मैं नहीं मिलना चाहती,’’ नेहा जल्दी से भागी और प्रभास के पास जा कर खड़ी हो गई.

थोड़ी देर में आर्मी वालों की तरफ से खबर मिली कि बादल मौल में आया था. मौल में सीसीटीवी में वह नेहा के साथ दिखाई दे रहा है. प्रभास यह खबर सुन कर हैरान हो गया. प्रभास आर्मीवालों के साथ घर पहुंचा.

‘‘तुम बादल को कैसे पहचानती हो?’’

‘‘मैं उसे नहीं पहचानती हूं. वह मेरे पीछे पड़ा हुआ है.’’

‘‘शायद वह तुम्हारे प्यार में पड़ गया है. देखो नेहा, आज के बाद तुम बादल को पकड़ने में हमारी मदद करोगी,’’ कैप्टन वसु ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं कोशिश करूंगी.’’

योजनानुसार, प्रभास और नेहा कुछ दिनों के लिए एक हिल स्टेशन पर गए. हफ्ता बीत गया, लेकिन बादल नहीं आया. अंत में वे घर आ गए. प्रभास रोज की तरह शाम को घूमने गया. नेहा के मन में बादल के ही विचार घूम रहे थे. तभी बादल खिड़की से कूद कर अंदर आया.

‘‘तुम मेरे बारे में ही सोच रही हो न.’’

‘‘हां, लेकिन तुम इतने दिनों से कहां गायब थे?’’ बादल को घर में रोकने के लिए नेहा उस से मीठीमीठी बातें करने लगी.

‘‘देखा, अब तुम भी मुझ से मिले बिना नहीं रह सकती हो. इसी को प्यार कहते हैं.’’

‘‘हां, हम कल फिर से मिलेंगे.’’

‘‘कल पास वाले मौल के थिएटर में मिलेंगे, अभी मैं जा रहा हूं, नहीं तो तुम्हारा पति आ जाएगा.’’

बादल गया और 5 मिनट में ही प्रभास आ गया.

‘‘वह आया था,’’ नेहा बोली.

‘‘कौन? बादल?’’

‘‘हां, कल मौल के पास थिएटर में बुलाया है उस ने.’’

‘‘बहुत अच्छा. कल तुम थिएटर अकेले जाओगी.’’

‘‘क्या…?’’

‘‘घबराओ मत. आर्मीवाले सादी ड्रैस में तुम्हारे आसपास ही रहेंगे. मैं यदि तुम्हारे साथ रहूंगा, तो वह कल भी पकड़ में नहीं आ पाएगा.’’

दूसरे दिन सुबह नेहा थिएटर जाने के लिए निकली. तय समय

पर नेहा वहां पहुंच गई. थोड़ी ही देर में बादल वहां मोटरसाइकिल से आया. थोड़ी ही देर में आर्मी वालों ने उसे दबोच लिया. उसे भागने का मौका नहीं मिल पाया. आर्मी वालों को देख कर बादल गुस्सा होने लगा.

‘‘धोखा दिया तुम ने, नेहा, यह ठीक नहीं किया. तुम्हें यह बहुत महंगा पड़ेगा.’’

‘‘अरे, तुम हमारे भारतमाता को धोखा दे रहे हो, इसलिए तुम्हारे साथ विश्वासघात करने का मुझे कोई दुख नहीं है.’’

थोड़ी देर में प्रभास वहां पहुंचा. उसे देखते ही नेहा रोने लगी.

‘‘बसबस, अब रोने के दिन खत्म हो गए. जल्दी ही हम कुछ दिनों के लिए गांव जाएंगे.’’

प्रभास के शब्दों से नेहा को साहस मिला और उस के जीवन में खुशियों की शुरुआत हो गई. लेकिन कभीकभी बादल की आंखें और उस की आवाज के बारे में सोच कर वह आज भी डर जाती है.

बेवफा : सरिता ने दीपक से शादी के लिए इंकार क्यों किया था ?

दीपक और सरिता की शादी होना लगभग तय ही था कि सरिता ने अचानक किसी और से शादी कर ली. 20 साल बाद जब दीपक की बहन रागिनी को इस के पीछे की सचाई का पता चला तो उस के पैरों तले जमीन खिसक गई. क्या पता चला था उसे…‘‘मेरीतबीयत ठीक नहीं है रितु, मैं घर जा रही हूं. जाते समय चाबी पहुंचा देना…’’

यह आवाज तो जैसे जानीपहचानी है. एक बार तो मेरे मन में आया कि आंखों से गीली रुई हटा कर उसे देखूं. मगर तब तक दूर जाती सैंडलों की आहट से मैं समझ गईर् कि बोलने वाली जा चुकी है. उस की आवाज अभी भी मेरे कानों में गूंज रही थी, इसलिए मैं अपनी उत्सुकता दबा नहीं पाई.

‘‘यही तो हैं इस ब्यूटीपार्लर की मालकिन सरिता राजवंश… ऊपर ही अपने पति के साथ रहती हैं. रुपएपैसों की कोई कमी नहीं है. बस खालीपन से बचने के लिए यह पार्लर चलाती हैं,’’ जितना पूछा उस से कहीं ज्यादा बता दिया रितु ने.

नाम सुनते ही मेरा रोमरोम जैसे झनझना उठा. चेहरे पर फेस पैक लगा था वरना अब तक न जाने कितने रंग आते और जाते. पिछले ही हफ्ते मेरे पति का तबादला यहां हुआ था. मैं घर में सामान अरेंज करतेकरते काफी थक गई थी. चेहरे की थकान मिटाने के लिए यहां फेशियल कराने आई थी. आश्चर्य कि यह पार्लर मेरी सब से प्यारी सहेली सरिता का था. विश्वास नहीं होता… मैडिकल की तैयारी करने वाली सरिता एक मामूली सा पार्लर चला रही है. लेकिन उस ने मुझे पहचाना क्यों नहीं या पहचान गई इसलिए यहां से चली गई? और भी न जाने कितने सवाल जिन के जवाब मैं पिछले 20 सालों से खोज रही हूं.

वे स्कूलकालेज के दिन… मैं, दीपक भैया और सरिता सब एकसाथ एक ही स्कूल में पढ़ते थे. हम पड़ोसी थे. दीपक भैया मुझ से 2 साल बड़े थे, लेकिन पता नहीं क्यों मां ने हम दोनों का नामांकन एक ही क्लास में करवाया था. दोनों परिवारों की एकजैसी हैसियत के कारण ही शायद हमारी दोस्ती बहुत निभती थी. सरिता के पिताजी एक दफ्तर में क्लर्क थे और मेरी मां एक स्कूल में अध्यापिका. मैं छोटी थी तभी पापा चल बसे थे. दीपक भैया और सरिता की बचपन की दोस्ती धीरेधीरे प्यार का रूप लेने लगी थी. दोनों के जवां दिलों में प्यार का अंकुर फूटने लगा था. मुझे आज भी याद है, रविवार की वह शाम जब दोनों परिवारों के सभी सदस्य मिल कर ‘कुछकुछ होता है’ फिल्म देखने गए थे. दीपक भैया ने गुजारिश की और मैं ने अपनी सीट उन से बदल ली ताकि वे सरिता की हथेलियों को अपने हाथों में ले कर इस संगीतमय और रोमांटिक वातावरण में अपने प्यार का इजहार कर सकें.

फिल्म खत्म होने के बाद सरिता की आंखों की चमक देख कर ही मैं समझ गई थी कि मेरी प्यारी सखी अब हमेशा के लिए मेरे घर में आने वाली है.

पापा की मौत के बाद मैं ने अपने जिस भाईर् को एक पिता की तरह गंभीरतापूर्वक जिम्मेदारियों को निभाते हुए देखा था आज उस के मन में अपनी जिंदगी के प्रति उत्साह एवं आत्मविश्वास देख कर मेरा मन सरिता के प्रति अंदर से झुक जाता था. शायद सरिता के निश्छल प्यार की ही ताकत थी कि पहली बार में ही भैया ने एमबीबीएस की परीक्षा पास कर ली. उस दिन सरिता इतनी खुश थी कि उसे अपने फेल होने का भी कोई गम नहीं था.

सबकुछ इतना अच्छा चल रहा था फिर अचानक एक दिन जब हम दोनों भाईबहन मौसी के घर गए हुए थे और 1 हफ्ते बाद लौटे तो पता चला कि सरिता ने दिल्ली के किसी अमीर आदमी से शादी कर ली है. उस के मम्मीपापा ने भी साफसाफ कुछ बताने से इनकार कर दिया.

फिर तो जैसे दीपक भैया के सारे सपने रेत के घरौंदे की तरह सागर में एकसार हो गए. जिन लहरों से कभी उन्होंने बेपनाह मुहब्बत की थी उन्हीं लहरों ने आज उन्हें गम के सागर में डुबो दिया. उस समय कितनी मुश्किल से मैं ने खुद और भैया को संभाला था यह मैं ही जानती हूं.

‘‘सैवन हंड्रेड हुए मैम,’’ रितु की आवाज सुन कर मैं अतीत से वर्तमान में आ गई. 1 घंटे का फेशियल कब पूरा हो गया पता ही नहीं चला. मैं ने पर्स से रुपए निकाल कर उसे दिए और फिर बाहर आ गई. मैं ने देखा कि बगल में ही ऊपर जाने वाली सीढि़यां थीं.

‘तो सरिता यहीं रहती है,’ सोच मेरे कदम स्वत: ही ऊपर की ओर बढ़ने लगे. सीढि़यों के खत्म होते ही दाहिनी ओर एक दरवाजा था. मैं ने कौलबैल बजाई. मेरे लिए 1-1 पल असहनीय हो रहा था. मैं अपने सारे सवालों के जवाब जानने के लिए उतावली हो रही थी. 20 वर्ष तो बीत गए, मगर ये 20 सैकंड नहीं कट रहे थे. अब तक मैं 4 बार बैल बजा चुकी थी. पुन: बैल बजाने के लिए हाथ उठाया ही था कि दरवाजा खुल गया. मेरे सामने एक अपाहिज, किंतु शानदार व्यक्तित्व का स्वामी व्हील चेयर पर बैठा था.

उस के चेहरे पर आत्मविश्वास की चमक साफ झलक रही थी. मुझे देख कर एक क्षण के लिए वह अवाक रह गया. मगर अगले ही पल उस ने मुसकराते हुए मुझे अंदर आने को कहा. ऐसा लगा जैसे किसी पुराने मित्र ने मुझे पहचान लिया हो. मगर मेरी आंखें तो कुछ और ही खोज रही थीं.

‘‘सरिता तो अभी घर पर नहीं है. आप रागिनीजी हैं न?’’

उस व्यक्ति के मुंह से अपना नाम सुन कर मैं जैसे आसमान से गिरी… आवाज गले में ही अटक कर रह गई.

‘‘मेरा नाम सुमित है. मांजी और दीपक कैसे हैं? आप का इस शहर में कैसे आना हुआ? आप की शादी तो मुंबई में होने वाली थी न?’’

सवाल तो मैं पूछने आई थी, मगर मुझे नहीं मालूम था कि मुझे ऐसे सवाल सुनने पड़ेंगे… तो क्या सरिता ने अपने पति को सबकुछ बता दिया है?

‘‘आप इतना सबकुछ मेरे बारे में…’’ मेरे हलक से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी और फिर मैं बिना कुछ और कहे वहीं सोफे पर धम्म से बैठ गई.

तभी सामने दिखी वह तसवीर, जो हम ने अपने फेयरवैल वाले दिन खिंचवाई थी. मैं दीपक

भैया और सरिता… एक क्षण में मैं समझ गई कि मैं इस घर के लिए अपरिचित नहीं हूं. मगर यह नहीं समझ में आया कि ‘प्यार दोस्ती है,’ कहने वाली सरिता ने अपने प्यार और दोस्ती दोनों के साथ विश्वासघात क्यों किया? वादे को क्यों तोड़ा उस ने?

‘‘अभी 1 घंटा पहले ही सरिता ने आ कर मुझे बताया कि तुम उस के पार्लर में आई हो… वह समझ गईर् थी कि तुम यहां आओगी जरूर. तभी वह यहां से चली गई है.’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं. आखिर वह कौन सा मुंह ले कर मेरा सामना कर पाएगी,’’ मेरे मन की कड़वाहट शब्दों में स्पष्ट घुल गई थी.

‘‘सरिता ने जैसा बताया था आप बिलकुल वैसी ही हैं. इतने वर्षों में न तो आप बदलीं और न ही आप की सहेली,’’ सुमित ने कहा तो मैं ने अपनी नजरें उस पर टिका दीं. आखिर कौन सी खूबी है इस में जिस के लिए सरिता ने दीपक भैया के प्यार को ठुकरा दिया?

‘‘सरिता तो आज भी 20 साल पुरानी उन्हीं गलियों में भटक रही है, जहां दीपक की यादें बसती हैं. हर दिन, हर पल वह उन्हीं यादों के सहारे जीती है. दुनिया के लिए तो वह मेरी सरिता है, मगर सही माने में वह आज भी दीपक की ही सरिता है.

‘‘मैं एक दुर्घटना में अपाहिज हो गया था. तब एक केयर टेकर के लिए दिया गया मेरा इश्तिहार पढ़ कर सरिता मेरे पास आई और मुझ से शादी करने की विनती करने लगी. अंधा क्या चाहे दो आंखें… बस मैं ने हां कर दी… सच कहूं तो सरिता जैसी केयरटेकर पा कर मैं धन्य हो गया… मेरे जीवन की खुशियां उस की ही देन हैं.’’

‘‘हमारे घर की खुशियों में आग लगा कर उस ने आप के जीवन में रोशन की है… चमक तो होगी ही,’’ पता नहीं क्यों मैं सीधेसीधे सरिता को बेवफा नहीं कह पा रही थी.

‘‘आप थोड़ा रुकिए मैं अभी आप की गलतफहमी दूर किए देता हूं,’’ कह कर सुमित अंदर से एक डायरी ले आए.

‘‘यह डायरी तो सरिता की है. भैया ने ही उसे उस के जन्मदिन पर उपहारस्वरूप दी थी,’’ कह मैं ने जैसे ही डायरी खोली मेरी नजर एक पत्र पर पड़ी. उस की लिखावट बिलकुल मेरी मां की लिखावट से मिलती थी. अरे, यह तो सचमुच मेरी मां का ही लिखा पत्र है जो उन्होंने सरिता के लिए लिखा था आज से 20 साल पहले-

‘‘सरिता बेटी,

‘‘मैं जानती हूं कि तुम दीपक से बेहद प्यार करती हो और रागिनी तुम्हारी प्यारी सहेली है. मेरी बहन ने दीपक की शादी के लिए एक लड़की देखी है. उस के मातापिता दीपक को बहुत अधिक दहेज दे रहे हैं. तुम तो जानती हो कि दीपक की डाक्टरी की पढ़ाई में मेरे सारे जेवर बिक गए हैं. ऐसे में रागिनी की शादी और दीपक के अच्छे भविष्य के लिए मुझे उस लड़की को ही घर की बहू बनाना पड़ेगा. दीपक तो मेरी बात मानेगा नहीं. ऐसे में उस का भविष्य और रागिनी की जिंदगी अब तुम्हारे हाथों में है. मैं जिंदगी भर तुम्हारा एहसान मानूंगी.

‘‘तुम्हारी मजबूर आंटी.’’

पत्र पढ़ते ही मैं सुबक उठी… ‘‘यह तुम ने क्या कर दिया सरिता? हमारी खुशियों के लिए अपनी जिंदगी में आग लगा ली? आखिर क्यों सरिता? क्या कोई दूसरा रास्ता नहीं था? आज तुम से पूछे बिना मैं यहां से नहीं जाऊंगी. इतने वर्षों तक मैं और दीपक भैया तुम्हें बेवफा समझ कर तुम से नफरत करते रहे और तुम…’’

‘‘दीपक की नफरत ही तो उस के जीने का साधन है. एक ही क्षेत्र में रह कर शायद कहीं किसी मोड़ पर दीपक से मुलाकात न हो जाए, इसीलिए उस ने वह रास्ता ही छोड़ दिया. सरिता कभी नहीं चाहती थी कि तुम लोग उस की हकीकत जानो. इसलिए अगर तुम सच में सरिता को खुश देखना चाहती हो तो उस से बिना मिले ही चली जाओ वरना वह चैन से जी नहीं पाएगी…’’ सुमित ने कहा.

मुझे सुमित की बात सही लगी. मैं एक बार फिर दीपक भैया के प्रति सरिता के प्यार को देख कर नतमस्तक हो गई. सरिता ने तो प्यार और दोस्ती दोनों शब्दों को सार्थक कर दिया था. बस हम ही उसे नहीं समझ पाए.

मधु बना विष : रश्मि के ससुराल में किस बात को लेकर बहस छिड़ गई थी ?

बचपन में होश संभालने के बाद पंकज ने बूआ के मुंह से यही सुना था कि ‘यह तुम्हारी मम्मी की तसवीर है. पहले वह तसवीर पंकज के पिता शिवानंद के कमरे में टंगी थी क्योंकि इस के साथ उन की कुछ यादें जुड़ी थीं. कभी चित्र की नायिका ने शिवानंद से कहा भी था, ‘अब तो मैं सशरीर यहां रहती हूं. तब मेरा इतना बड़ा चित्र क्यों लगा रखा है? अब तो मैं वधू भी नहीं रही, एक बच्चे की मां बन चुकी हूं.’

शिवानंद ने तब हंसते हुए कहा था, ‘क्या करूं मेरी आंखों में तुम्हारा वही रूप समाया हुआ है.’

‘हमेशा पहले जैसा तो नहीं रहेगा,’ रश्मि बोली, ‘अब तो रूप बदल गया है.’ ‘नहीं, रश्मि. हम बूढे़ हो जाएंगे तब भी तुम ऐसी ही याद आती रहोगी,’ शिवानंद भावुक हो कर बोले, ‘पहली झलक यही तो देखी थी.’

यह सच था कि विवाह से पहले शिवानंद और रश्मि ने एक दूसरे को देखा नहीं था. रश्मि को परिवार के दूसरे लोगों ने देखा और पसंद किया. तब जयमाला की रस्म होती नहीं थी. विवाह के समय सबकुछ इतना दबादबा हुआ था कि चाह कर भी शिवानंद पत्नी को देख नहीं सके. विवाह कर घर लौटे तो अपने कमरे में टंगे चित्र में पत्नी को पहली बार देखा तो देखते ही रह गए. इस चित्र को उन के छोटे भाई सदानंद  ने खींचा था और बड़ा करा कर भाई के कमरे में लगा दिया था.

रश्मि के कई बार टोकने पर भी वह चित्र उन के शयनकक्ष में लगा ही रहा. 2 साल में रश्मि ने एक सुंदर से बच्चे को जन्म दिया, जिस का नाम पंकज रखा गया. पंकज भरेपूरे परिवार का दुलारा था. उस के दिन सुख से बीत रहे थे कि रश्मि में पुन: मातृत्व के लक्षण उभरे. घर में बेटा या बेटी को ले कर एक नई बहस छिड़ गई. दादी कहती कि एक बेटा और हो जाए तो पंकज को भाई मिल जाएगा. दोनों भाई उसी तरह साथ रहेंगे जैसे मेरे शिवानंदसदानंद रहे. बूआ पूछती, ‘मां, क्या बहन भाई के सुखदुख की साथी नहीं होती?’

इस तरह के हासपरिहास में 4 महीने बीत गए कि अचानक एक दिन रश्मि अपनी ही साड़ी में उलझ कर सीढि़यों से लुढ़कती हुई नीचे आ गिरी. बच्चा पेट में ही मर गया. रश्मि की चोट गहरी थी. उसे भी बचाया नहीं जा सका.

रश्मि का वधूवेश में लिया चित्र पहले जहां टंगा रहता था उस की मृत्यु के बाद भी वही टंगा रहा. नन्हा पंकज पूछता तो बूआ बहलाते हुए कहतीं, ‘मम्मी, अभी फोटो में से निकल कर आसमान में घूमने गई हैं.’

‘कैसे, प्लेन में बैठ कर?’

‘हां, बेटा.’

‘बूआ, मम्मी, घूम कर कब आएगी?’

‘बस, एकदो दिन में आ जाएगी.’

शिवानंद के विरोध पर उन का विवाह टल गया था. उस दौरान बेटी प्रभा भी शादी कर के अपनी ससुराल चली गई. मां को गृहस्थी संभालना पहाड़ लग रहा था क्योंकि बहू और बेटी के रहते हुए उन में निश्ंिचतता की आदत पड़ गई थी. मां मजबूरी में घर तो संभाल रही थी पर बेटे व पोते की तकलीफ जब देखी नहीं गई तो उन्होंने शिवानंद पर फिर से शादी कर लेने का दबाव यह सोच कर बनाया कि पत्नी आने के बाद पंकज की देखभाल हो जाएगी और शिवानंद का मन भी लग जाएगा.

शिवानंद भी थोड़ा टालमटोल के बाद फिर से विवाह के लिए तैयार हो गए.

शिवानंद की वकालत अच्छी चल रही थी. अपना बड़ा सा मकान था. पिता भी शहर के जानेमाने वकीलों में से थे. उन के विवाह के 4 वर्ष छोड़ दिए जाएं तो सब तरह से वे सुयोग्य वर थे. एक बेटा था तो उसे भी देखने वाले बहुत लोग थे.

शिवानंद की फिर से विवाह की तैयारी होने लगी. चढ़ावे के लिए नई साडि़यां और गहने आए, रश्मि के गहने भी थे जिन्हें नई बहू को देने में किसी को आपत्ति नहीं हो सकती थी.

प्रभा ने यह कहते हुए कि रश्मि भाभी के कुछ गहने चढ़ावे पर नहीं जाएंगे, अलग रख दिए.

‘तुम्हारा मन है तो बाकी मुंहदिखाई में दे देंगे,’ मां ने दुलार में कहा, ‘मांग टीका और नथ तो अभी चढ़ावे के समय जाने दो.’

‘नहीं मां, इन्हें भी अलग ही रहने दो.’ बेटी प्रभा बोली, ‘सब कुछ मुझे पंकज के विवाह में देना है.’

दुलार भरी हंसी से मां ने कहा, ‘पंकज की बहू के लिए पुराने गहने. अरे पगली, तब तक कितना नया चलन हो जाएगा.’

प्रभा मचलते हुए तब बोली थी, ‘अम्मां, यह सब अलग ही रख लें… वह लहंगाचुनरी भी, सभी कुछ मेरे कहने से.’

लाडली बेटी की बात अम्मां ने मान ली और बहू शिखा के लिए सबकुछ नया सामान चढ़ावे में भेजा गया.

अम्मां ने टोका अवश्य था कि बेटी, नई बहू क्या पंकज को उस का हिस्सा नहीं देगी. आखिर उस का हिस्सा तो रहेगा ही.

‘उस के अपने भी तो होंगे, अम्मां. यह सब अलग जमा कर दें.’

मां के मन में विवाद उठा, ‘लड़की अपने लिए तो कुछ नहीं कह रही है पर भतीजे के लिए ममता का यह रूप भी किसी को अच्छा नहीं लग रहा था.’

विवाह हुआ. शयनकक्ष सजा. कुछ याद करते हुए मां ने आदेश दिया और उस दिन रश्मि का वधूवेश में सालों से टंगा चित्र वहां से हट कर पीछे के एक कमरे में लगा दिया गया. प्रभा ने देखा तो वह विचलित हो उठी और वहां से हटा कर तसवीर को पूजा के कमरे में लगाने लगी.

पंकज ने तोतली आवाज में पूछा था, ‘बूआ का कर रही हो. मम्मी ऊपर से आएंगी तो रास्ता भूल जाएंगी न.’

‘मम्मी आ गई हैं,’ यह कहते हुए प्रभा ने पंकज को नववधू शिखा की गोद में बैठाया तो वह यह कहते हुए गोद से उतर गया, ‘नहीं, यह मेरी मम्मी नहीं हैं.’

शूल सा लगा शिखा को सौतेले बेटे का कथन. पंकज अपना हाथ छुड़ा कर  उस कमरे में चला गया जहां पहले उस की मां की तसवीर टंगी थी. पर वहां चित्र नहीं था. ‘अरे, मेरी मम्मी कहां गई,’ करुण स्वर चीत्कार कर उठा.

‘देखो पंकज, यह हैं मम्मी. तुम भूल गए. वह अब यहां आ गई हैं. सब उन की पूजा करेंगे न.’

प्रभा को लगा कि नई मां ला कर पंकज के साथ अन्याय किया गया है. पंकज के प्रति उस की अगाध ममता

ही थी जो उस ने रश्मि भाभी के  गहने शिखा भाभी को न देने की जिद की थी.

शिखा ने 2 पुत्रों और 1 पुत्री को जन्म दिया था. पंकज भी जैसेजैसे समझदार हुआ उस ने मां को मां का सम्मान ही दिया और भाईबहन को अपना माना. मन में कोई विद्वेष नहीं था, पर पूजाघर में जब भी पंकज जाता मां की तसवीर को बेहद श्रद्धा से देखता.

बीतते समय के साथ पंकज इंजीनियर बना तो विवाह के लिए रिश्ते भी आने लगे. उस की राय मांगी गई तो प्रोफेसर  की बेटी निधि उसे पसंद आई. प्रोफेसर ने शिवानंद को सपरिवार घर आने का निमंत्रण दिया. प्रभा उसी दिन ससुराल से आई थी. बोली, मैं भी भाभी के साथ लड़की देखने चलूंगी.

‘‘बूआ,’’ पंकज बोला, ‘‘मुझे कुछ जरूरी काम को पूरा करने के लिए अभी बाहर जाना है. आप और मां लड़की देखने चली जाएं. आप की पसंद मेरी पसंद होगी.’’

लड़की देखने की औपचारिकता पूरी करने के बाद एक माह के अंदर शादी हो गई और निधि दुलहन बन कर पंकज के घर आ गई. अब प्रभा ने रश्मि का चित्र पूजा घर से हटा कर पंकज के कमरे में लगा दिया.

आज सुहागरात है, यह सोच कर प्रभा ने अपनी पसंद के कपड़े निधि को पहनाए. फिर वे सभी गहने जो कभी रश्मि ने शादी के मौके पर पहने थे और जिसे आज के दिन के लिए प्रभा ने मां के पास रखवा दिए थे. निधि को गहने पहना कर देखा तो देखती रह गई. उसे लगा जैसे चित्र में से निकल कर रश्मि आ गई है. अनुकृति ही नहीं असल में है वही.

शयनकक्ष में सुहाग सेज पर प्रतीक्षा में बैठी निधि को देख कर पंकज विक्षिप्त हो उठा, ‘‘मम्मीमम्मी, तुम आ गईं.’’

पंकज के कहे शब्दों को सुन कर दरवाजे पर खड़ी भाभी और बहनें विस्मय से चीख पड़ीं. प्रभा बूआ, देखिए न पंकज को क्या हो गया है? उधर उस के सामने खड़ी निधि विस्मय, अकुलाहट, अचकचाहट से उसे देखती रह गई.

‘‘पंकज क्या है, क्या कह रहे हो? वह निधि है, तुम्हारी पत्नी,’’ बूआ बोली, ‘‘मम्मी कहां से आ गईं? पागल हो गए हो?’’

‘‘आ गई है न बूआ, देखिए न…’’

विस्मय, आश्चर्य, अनहोनी के डर से कांपती प्रभा बूआ अपने को अपराधिनी मानती हुई पंकज को घसीट कर निधि के पास कर आई और निधि का हाथ उस के हाथ में देते हुए बोली, ‘‘पंकज यह तुम्हारी पत्नी है.’’

‘‘नहीं,’’ बूआ का हाथ झटक कर निधि बोली, ‘‘इन्होंने मुझे मम्मी कहा है. मैं दूसरे संबंध की कल्पना नहीं कर सकती. मैं इन की पत्नी नहीं हो सकती,’’ कह कर वह दूसरे कमरे में चली गई.

परिवार के बडे़बूढ़ों के साथ दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी निधि को समझाया कि वैदिक मंत्रों के बीच तुम ने सात फेरे लिए हैं, तो कहे के रिश्ते का क्या मूल्य है. बेटी, उसे नाटक समझ कर भूल जाओ.

इस बीच निधि मायके गई तो फिर ससुराल आने का नाम ही नहीं लेती थी. तब घरवालों ने ऊंचनीच समझा कर उसे किसी तरह ससुराल भेज दिया.

पंकज का भ्रम टूट जाए, इस के लिए सब तरह के उपाय किए गए. मनोचिकित्सक से परामर्श भी लिया गया. रश्मि का चित्र पंकज के कमरे से हटा कर अलमारी में बंद कर दिया गया था. रश्मि के पहने गहने और कपडे़ अलग रख दिए गए, इस के बाद सालों बीत जाने पर भी निधि के मन में पंकज के प्रति प्रणय के अंकुर न फूटे. उस के नाम से ही उसे अरुचि हो गई थी. मन बहल जाए इसलिए पिता ने बेटी को पीएच.डी. करने की प्रेरणा दी ताकि अध्ययन में व्यस्त हो कर वह अपने अतीत को भूल जाए.

उधर पंकज को भी एकदो बार अवसर दिया गया कि स्थिति में सुधार हो किंतु वह न सुधर सका. उस की ऐसी मनोदशा देख पिता शिवानंद ने उस का निधि से संबंधविच्छेद करवा दिया. कुछ सालों बाद निधि का अपने सहयोगी से प्रेमविवाह हो गया.

पंकज के मन पर जो गहरा आघात लगा था वह वर्षों के इलाज से थोड़ा बहुत सुधरा, किंतु कभीकभी वह दिमाग का संतुलन खो बैठता था. सरकारी नौकरी थी, चल रही थी, पर कभी भी उस के छूटने की आशंका बनी रहती थी. उस के पुनर्विवाह के लिए संबंध आते रहे किंतु पिता शिवानंद ने कहा कि जब तक वह पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाता वह किसी की लड़की का जीवन बरबाद नहीं करेंगे.

प्रभा बूआ अपने सौम्य, सुंदर, सुयोग्य भतीजे को पागलपन के कगार पर लाने के लिए खुद को दोषी मानती हैं. आंसू बहाती हैैं और कहती हैं, ‘‘मैं ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरे लाड़ की ऐसी परिणति होगी.’’

सांस लेने में हो रही है परेशानी, तो करें नेबुलाइजर का इस्तेमाल

Nebulizer Machine Benefits : श्यामली की मां को बहुत तेज बुखार था. खांसी भी बहुत ज़्यादा उठ रही थी. खांसतेखांसते वे बेदम हुई जा रही थीं. श्यामली जब कालेज से लौटी तो मां की ऐसी हालत देख कर घबरा गई. उस ने जल्दी से रिकशा बुलाया और मां को ले कर पास के अस्पताल पहुंची. ओपीडी में डाक्टर ने श्यामली की मां का चैकअप किया और उन को तुरंत भरती करने का परचा लिख दिया. जनरल वार्ड में श्यामली की मां को भरती किया गया. कुछ देर में नर्स ने श्यामली को कुछ दवाएं लाने के लिए नीचे फार्मेसी में भेजा. श्यामली जब दवाएं ले कर लौटी तो उस ने देखा कि उस की मां के चेहरे पर प्लास्टिक का बड़ा सा मास्क लगा है, जिस में से धुआं सा निकल रहा था और उस की एक मशीन बगल में रखे स्टूल पर चल रही थी.

श्यामली मां के मुंह पर लगी मशीन देख कर रोने लगी. वह रोतेरोते वार्ड से बाहर आई और अपने मामा को फ़ोन कर के उन से कहा कि मां को औक्सीजन लग गई है. उन की हालत बहुत खराब है. पता नहीं ज़िंदा बचेंगी या नहीं. आप तुरंत आ जाइए.

श्यामली के मामाजी दूसरे शहर में रहते थे. श्यामली की बात सुन कर घबरा गए और तुरंत बैग में एक जोड़ी कपड़ा डाल कर बस से निकल पड़े. श्यामली अपनी मां के साथ अकेली थी. उस के पिता का कुछ साल पूर्व निधन हो गया था. पिता की जगह मां को नौकरी मिल गई थी, मगर इधर एक हफ्ते से खांसीबुखार की वजह से वे औफिस नहीं जा रही थीं. श्यामली अभी कालेज में पढ़ रही थी.

मामाजी से बात कर के जब श्यामली वापस मां के पास पहुंची तो उस ने देखा कि नर्स उन के मुंह पर चढ़ा मास्क हटा रही थी. मशीन भी उस ने बंद कर दी थी. वह श्यामली की मां से पूछ रही थी कि अब सांस लेने में कठिनाई तो नहीं हो रही है. मां ने कहा- नहीं.

श्यामली ने नर्स से पूछा- आप ने औक्सीजन क्यों लगाई थी? नर्स ने हंस कर कहा- औक्सीजन नहीं, नेबुलाइजर दिया था ताकि फेफड़े ढीले हों और खांसी में आराम आए.

श्यामली को अपनी बेवकूफी और नादानी पर शर्म आ गई. हाय, मामाजी तो बस स्टेशन के लिए निकल पड़े होंगे, यह सोच कर वह परेशान हो गई. दरअसल श्यामली ही नहीं, हम में से बहुत सारे लोग डाक्टरी में इस्तेमाल होने वाले अनेक उपकरणों के बारे में नहीं जानते हैं. बहुत सारे उपकरण अब अस्पतालों में आमतौर पर इस्तेमाल होने लगे हैं, इन में से एक उपकरण है नेबुलाइजर.

बदलते मौसम का सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है और जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर होती है, उन पर इस का असर बहुत जल्दी देखने को मिलता है. वे आसानी से वायरल संक्रमणों का शिकार बन जाते हैं और सर्दी-जुकाम उन के फेफड़ों सहित पूरे श्वसन तंत्र को जकड़ लेता है. इस से सांस लेने में भी कठिनाई होने लगती है. सर्दी-जुकाम सुनने में जितना आम लगता है, इस का असर इतना आम नहीं होता है. इस से पीड़ित होना काफी कष्टदायक होता है, इस में बंद नाक, गले में दर्द, लगातार छींक, सिरदर्द, मुंह का कड़वा स्वाद, आंखों में जलन और पानी आना न जाने कितनी अलगअलग तरह की समस्याएं होती हैं. इस की वजह से रेस्पिरेटरी सिस्टम बुरी तरह से प्रभावित हो जाता है. ऐसे में स्टीम लेना सब से आसान और प्रभावी उपाय माना जाता है और स्टीम लेने के लिए नेबुलाइजर का इस्तेमाल करना अब बहुत आम हो गया है. अस्पतालों में तो भरती मरीजों को सुबहशाम नेबुलाइज किया जाता है, ताकि उन को शीघ्र आराम मिल जाए.

नेबुलाइजर के इस्तेमाल से ठीक तरह से सांस लेने में मदद मिलती है. नेबुलाइजर में इस्तेमाल की जाने वाली दवा आसानी से शरीर में पहुंच जाती है और तुरंत अपना असर दिखाने लगती है, जिस की वजह से मरीज को तुरंत आराम मिलता है. नेबुलाइजर का इस्तेमाल सर्दी-जुकाम, संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और सीओपीडी जैसी पुरानी बीमारी में जल्दी आराम प्रदान करने के लिए किया जाता है. सर्दी और फ्लू होने के कारण फेफड़े संक्रमित हो जाते हैं, जिस से अस्थमा के लक्षण और अस्थमा के दौरे का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. अस्थमा के कारण श्वसन रोगों के विकसित होने की संभावना अधिक हो जाती है. नेबुलाइजर के इस्तेमाल से अस्थमा और फ्लू के इलाज में काफी आराम मिलता है और इस से सूजन भी कम होती है.

नेबुलाइजर के इस्तेमाल के फायदे

नेबुलाइजर सांस की परेशानी में मरीज को सीधे फेफड़े में दवा देने के लिए सब से सरल, फायदेमंद और सुरक्षित तरीका माना जाता है. नेबुलाइजर के इस्तेमाल से दवा शरीर के उस भाग में तुरंत जाती है जहां उस की सब से ज्यादा जरूरत होती है, यानी फेफड़ों में. परंपरागत तरीके से दवा को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट से हो कर मनुष्य के रक्तप्रवाह में जाने में काफी समय लग जाता है, और फिर आराम मिलने में भी देर होती है. इस के विपरीत नेबुलाइजर दवाओं को सीधे श्वसन तंत्र में पहुंचाता है और मरीज को तुरंत आराम देता है. नेबुलाइजर का उपयोग करने से सांस की समस्याओं को विकसित होने से रोकने के साथसाथ सांस की गंभीर आपातकालीन स्थितियों का इलाज करने में भी मदद मिलती है. मुंह के माध्यम से ली जाने वाली दवाओं की तुलना में, नेबुलाइजर से लेने पर दुष्प्रभावों की संभावना भी काफी हद तक कम हो जाती है.

कैसे काम करता है नेबुलाइजर ?

चिकित्सा उद्योग में नेब्युलाइज़र एक ऐसा उपकरण है जिस का उपयोग दवा को फेफड़ों में एक धूम के रूप में पहुंचाने के लिए किया जाता है. नेबुलाइजर एक एयरकंप्रेशर है. यह माउथपीस के ज़रिए दबाव वाली हवा का लगातार प्रवाह देता है. नेबुलाइजर तरल दवा को धुंध में बदल देता है. इस धुंध को सांस में ले कर दवा को शरीर में पहुंचाया जाता है. शरीर दवा को शीघ्र सोख लेता है. नेबुलाइजर की मदद से सांस लेना आसान हो जाता है. नेबुलाइजेशन श्वसन देखभाल का एक रूप है. यह एक चिकित्सा प्रक्रिया है. अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, लंग्स या सांसों से जुड़ी अन्य परेशानियों व इंफैक्शन की स्थिति में नेबुलाइजर मशीन काफी काम आती है. नेबुलाइजर फेफड़ों तक दवा पहुंचने में 5-10 मिनट लगाता है. नेबुलाइजर का इस्तेमाल हमेशा चेयर पर सीधे बैठ कर किया जाता है ताकि दवा सीधे फेफड़ों तक पहुंच सके.

डाक्टर अकसर अस्थमा, सीओपीडी या अन्य श्वसन संबंधी रोग से ग्रस्त लोगों को ब्रोंकोडाईलेटर्स लिखते हैं. इस में नेबुलाइजर द्वारा स्टेराइल से लाइन सोल्यूशन रोगी के फेफड़ों तक पहुंचाया जाता है. यह वायुमार्ग को तुरंत खोलने और बलगम को पतला करने में मदद करता है. इस से बलगम ढीला हो कर फेफड़ों से आसानी से बाहर निकल जाता है. ये स्टेरौयड श्लेष्म झिल्ली में सूजन को भी शांत करते हैं और शरीर को ठीक होने की दिशा में प्रेरित करते हैं.

घबराहट होने की स्थिति में, सांस फूलने पर, अस्थमा में, सर्दी व जुकाम के संक्रमण में, सीने में जकड़न होने पर, सिस्टिक फाइब्रोसिस या ब्रोन्किइक्टेसिस की समस्या में, कफ व बलगम के निर्माण को रोकने के लिए, संक्रमण के इलाज में एंटीबायोटिक का सेवन करने के लिए, छोटे बच्चों और शिशुओं को आसान तरीके से बिना किसी परेशानी के दवा देने के लिए नेबुलाइजर का इस्तेमाल किया जाता है.

नेबुलाइजर की कीमत

आमतौर पर पोर्टेबल नेबुलाइजर, होम नेबुलाइजर की तुलना में थोड़े महंगे होते हैं. इसे खरीदने से पहले डाक्टर की सलाह जरूर लेनी चाहिए. नेबुलाइजर की कीमत लगभग 500 से 10,000 रुपए के बीच होती है.

नेबुलाइजर का इस्तेमाल कैसे करें ?

नेबुलाइजर के इस्तेमाल से पहले अपने हाथों को साबुन और गरम पानी से अच्छे से धो लें, क्योंकि हाथों में बहुत सारे बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो आसानी से शरीर के अंदर प्रवेश कर सकते हैं. इस के बाद नली को कंप्रेशर के साथ जोड़ें. अब इस में दवा डालें. फिर इस में अपने माउथपीस या मास्क और होज़ को मैडिसिन कप से जोड़ें. इस के बाद अपना मास्‍क लगाएं या अपने माउथपीस को अपने होंठों के चारों ओर मजबूती से अपने मुंह में रखें. अब अपने नेबुलाइजर को चालू करें और अपने मुंह से तब तक सांस लें जब तक कि सारी दवा खत्म न हो जाए. दवा खत्म हो जाने के बाद नेबुलाइजर को बंद कर दें और दवा व माउथपीस को अच्छे से धो लें और इसे कुछ देर हवा में सूखने के लिए छोड़ दें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें