Download App

लोकतंत्र का मजाक बनती सरकारी लालबत्ती

कुछ वर्षों से वाहनों पर लालबत्ती का क्रेज बना हुआ है, या यों कहें कि एक फैशन बन गया है. लालबत्ती वाले वाहन में बैठा व्यक्ति अपनेआप को एक खास व्यक्ति मानता है. कई बार यह अहंकार का कारण भी बन जाता है. पिछले कुछ समय से लालबत्ती का जम कर दुरुपयोग होने लगा है. अधिकांश जनप्रतिनिधि व अधिकारी अपने वाहनों पर लालबत्ती लगाए हुए हैं, चाहे वे इस के पात्र हों या न हों. यहां तक कि अनेक जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों ने तो अपने निजी वाहनों पर भी लालबत्ती लगाना प्रारंभ कर दिया. जिस उद्देश्य व अवधारणा को ले कर लालबत्ती का प्रावधान किया गया वह धूमिल होने लग गया. लोकतंत्र के लिए यह एक मजाक बन गया. ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ अर्थात अति सदैव बुरी होती है. मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया.

‘अभयसिंह बनाम स्टेट औफ उत्तर प्रदेश’ (एआईआर 2014 एससी 427) के लालबत्ती पर एक ऐतिहासिक मामले में अदालत ने निर्णय सुनाया था. इस निर्णय में एक शब्द प्रयुक्त किया गया है–‘उच्चपदस्थ व्यक्ति’. संपूर्ण मामला इसी शब्द के इर्दगिर्द घूमता है. हमारे संविधान में कुछ व्यक्तियों को उच्चपदस्थ व्यक्ति माना गया है. उन्हें संवैधानिक दरजा प्रदान किया गया है. उन की सुरक्षा का जिम्मा केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को सौंपा गया है. सुरक्षा की दृष्टि से लालबत्ती वाहन उच्चपदस्थ व्यक्ति के होने का संकेत देता है. जब लालबत्ती वाला वाहन मार्ग से गुजरता है तो सुरक्षाकर्मी सचेत व सावधान हो जाते हैं.

उच्चपदस्थ व्यक्ति

प्रश्न यह है कि उच्चपदस्थ व्यक्ति किसे माना जाए? केंद्रीय मोटरयान नियम 1989 के नियम 108 के उपनियम (1) में यह कहा गया है, ‘‘कोई भी मोटरयान अपने आगे के भाग में निम्नांकित के सिवा लालबत्ती का प्रयोग नहीं करेगा, जब तक कि उस में केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा समयसमय पर निर्दिष्ट उच्चपदस्थ व्यक्ति न बैठा हो.’’ इस नियम के अंतर्गत केंद्रीय सरकार द्वारा एक अधिसूचना एसओ 52 (ई) दिनांक 11 जनवरी, 2002 को जारी की गई जिसे अधिसूचना एसओ 1070 (ई) दिनांक 28 जुलाई, 2005 द्वारा संशोधित किया गया. इस में राजकीय कार्य के दौरान वाहन पर चमकदार लालबत्ती का प्रयोग करने के प्रयोजनार्थ इन को उच्चपदस्थ व्यक्ति माना गया है :

राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, उपप्रधानमंत्री, भारत का मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष, संघ के कैबिनेट मंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री, लोकसभा एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश.

इन के अलावा, निम्न व्यक्तियों को बिना चमकदार लालबत्ती का प्रयोग करने का पात्र माना गया है :

मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, राज्यसभा का उपसभापति, लोकसभा का उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर), संघ के राज्यमंत्री, भारत का एटौर्नी जनरल, कैबिनेट सचिव, तीनों सेनाओं के प्रमुख, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण का अध्यक्ष, अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष, संघ के उपमंत्री, तीनों सेनाओं के कार्यकारी प्रमुख, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष और संघ लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष. स्पष्ट है कि उपरोक्त उच्चपदस्थ व्यक्तियों के वाहनों पर ही लालबत्ती का प्रयोग किया जा सकता है, अन्य वाहनों पर नहीं. उन की रक्षा के लिए साथ चलने वाले वाहन नीली बत्ती का प्रयोग कर सकेंगे.

सब को सम्मान

निर्णय में न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी द्वारा यह भी कहा गया था, ‘‘हमारा संविधान व्यक्तिविभेद नहीं करता है. इस में सभी व्यक्तियों को सम्मान दिया गया है. उच्चपदस्थ व्यक्ति केवल उन्हें माना गया है जो संवैधानिक पद धारण करते हैं. उन के वाहनों पर लालबत्ती का प्रयोग किए जाने का भी यही कारण है.’’ लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों एवं लोकसेवकों का मुख्य कार्य जनता की सेवा करना है, आडंबर व प्रदर्शन करना नहीं. उन की पहचान उन के कार्यों से होती है, लालबत्ती के प्रयोग से नहीं. जनप्रतिनिधि व लोकसेवक लालबत्ती के मोह को छोड़ें. लालबत्ती की संस्कृति लोकतंत्र की नहीं है. अनावश्यक एवं अनधिकृत लालबत्ती का प्रयोग एक ओछी मानसिकता है.

जहां तक राज्यों के उच्चपदस्थ व्यक्तियों का प्रश्न है, निर्णय में यह कहा गया है कि राज्य सरकार अधिसूचना जारी कर लालबत्ती का प्रयोग करने के लिए अधिकृत उच्चपदस्थ व्यक्तियों को अधिसूचित कर सकती है. ऐसे व्यक्ति राज्यपाल, उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश, विधानसभा स्पीकर, अध्यक्ष, कैबिनेट मंत्री आदि हो सकते हैं.    

– डा. बसंतीलाल बाबेल 
(लेखक पूर्व न्यायाधीश एवं राजस्थान सरकार शासन में उपसचिव, गृह [विधि] हैं.)

बात ऐसे बनी

रात के 10 बजे थे. पत्नी सो रही थी. बेटा अन्नू टैब पर गेम खेल रहा था. बेटी हिम्मी मोबाइल पर व्यस्त थी. अचानक अन्नू दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘पापा, पापा, बाहर 2 बिल्लियां दौड़ रही हैं. अपनी बिल्ली शायद खतरे में है.’’ दरवाजा खोल कर देखा तो अन्नू बोलता है, ‘‘पापा, बिल्ले के मुंह में बिल्ली है.’’ मैं ने कहा, ‘‘बिल्ली नहीं, बिल्ली का बच्चा है.’’ बच्चा भी मर चुका था. बिल्ली के लिए और उस के बच्चे के लिए अफसोस करने के अलावा हम और कर भी क्या सकते थे. कुछ देर बाद छत पर बिल्ली जो गूंगूं की आवाज करती हुई घूम रही थी. शायद अपने बच्चे को ढूंढ़ रही थी. बच्चों ने उस के लिए दूध रखा. उस ने दूध की ओर देखा तक नहीं. लगभग 12 बजे बिल्ली, नीचे आई. बस, म्याऊंम्याऊं ही किए जा रही थी, शायद वह कुछ कहने की कोशिश कर रही थी.

हम ने छत पर एक कमरा बना रखा है. उस में फालतू सामान रखते हैं. वह कमरा बिल्ली के बच्चों के लिए सुरक्षित जगह थी. बिल्ली ने कहीं 3 बच्चे जन्मे थे. वह उन्हें एक बार हमारी छत पर घुमाने लाई थी. उसी कमरे में वे सब ठहर गए. बच्चों को जब पता चला, तो वे उन सब के लिए रोजाना दूध और मठरी ऊपर के कमरे में रख देते थे. बिल्ली 3-4 दिन बाद अपने बच्चों को ले गई थी. बिल्ली के बच्चे को आज देखा था पर बिल्ले के मुंह में.

और आज, बिल्ली दूध और मठरी की ओर देख भी नहीं रही थी. लगा कि शायद वह बिल्ले से डर गई है. अन्नू बोला, ‘‘पापा, ऊपर जा कर देख आओ, कहीं बिल्ला न हो.’’ मैं ने बिल्ली से कहा, ‘‘तू ऊपर चल, मैं आ रहा हूं.’’ आश्चर्य यह कि बिल्ली समझ गई, वह ऊपर चली गई. मैं उस के पीछेपीछे गया. वह कमरे में पहुंच कर रुक गई. हिम्मी ऊपर कमरे में दूध रख गई. मैं छत पर घूम कर कमरे में लौटा तो देखा कि बिल्ली और उस का बच्चा दोनों दूध पी रहे थे. सारा मामला समझ में आ गया कि उसे अपने बच्चे के लिए दूध चाहिए था. मतलब वह नीचे ही दूध पी लेती तो हम ऊपर दूध नहीं रखते जिस से उस का बच्चा भूखा रहा जाता. बच्चा इतना बड़ा नहीं था कि नीचे आ जाता. बिल्ली शायद यही कहना चाह रही थी कि वह अपने बच्चे को भी लाई है. हम लोग समझ नहीं पा रहे थे. यही तो है मां की ममता. बच्चा इंसान का हो या जानवर का, मां पहले अपने बच्चे के लिए सोचती है.

अभय कृष्ण गुप्ता, हनुमानगढ़ (राज.)

विज्ञान कोना

ऐजर स्किन को बायबाय

अगर आप अधिक गुस्सैल, नींद न आने की समस्या जैसे मानसिक विकारों या खानपान संबंधी रोग या मादक द्रव्यों के सेवन से जुड़े हैं तो आप मानसिक बीमारी  यानी पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रैस डिसऔर्डर-पीटीएसडी से पीडि़त हो सकते हैं. यह डिसऔर्डर आप को समय से पहले बूढ़ा भी बना सकता है. जी हां, सैन डिआगो स्थित यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया में हुए अध्ययन से यह बात सामने आई है कि अगर आप पीटीएसडी से ग्रस्त हैं तो जल्दी बूढ़े दिखने लगेंगे. यह शोध अपनी तरह का पहला शोध है. हालांकि निष्कर्ष में यह बात जाहिर नहीं होती कि समय से पहले बुढ़ापे के लिए डिसऔर्डर ही जिम्मेदार है.

*

मधुमेह में याददाश्त खोना

क्या आप जानते हैं कि डायबिटीज के मरीज का दिमाग सामान्य मनुष्य की तुलना में 5 साल पहले कमजोर हो जाता है. यह असर उन मरीजों पर ज्यादा होता है जिन्हें 50 साल की उम्र तक डायबिटीज होती है. उन के 70 साल के होने तक उन के दिमाग के जल्द कमजोर होने की पूरी संभावना होती है. हां, अगर नियमित खानपान, व्यायाम कर रहे हैं तो आप डायबिटीज की रोकथाम या उस पर कुछ हद तक नियंत्रण जरूर पा सकेंगे. वैज्ञानिकों के मुताबिक, दिमाग का कमजोर होना, डायबिटीज के साथ ही आता है. ऐसा डायबिटीज के दौरान ग्लूकोज के खराब नियंत्रण की स्थिति में भी होता है. डायबिटीज के मामलों में ग्लूकोज का उच्च स्तर होने से कोशिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है और मरीज देखने की क्षमता खो सकता है. इसलिए बेहद जरूरी है कि डायबिटीज में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित रखा जाए ताकि आप की याददाश्त खोने न पाए. यह रिसर्च साइंस पत्रिका ‘एनल्स औफ इंटरनल मैडिसिन’ में प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों ने 1987 से 2013 के बीच कुल 15 हजार वयस्कों की अवस्था पर यह रिसर्च की, तब ज्ञात हुआ कि डायबिटीज से पीडि़त लोगों में उम्र बढ़ने के साथ दिमाग 19 फीसदी ज्यादा प्रभावित हुआ. जबकि नियंत्रित डायबिटीज में इस तरह की संभावना कम पाई जाती है. 70 की उम्र में अच्छा दिमाग रखने के लिए 50 की उम्र से अच्छे खानपान और कसरत पर ध्यान देना जरूरी है.

*

आर्टिफिशियल स्वीटनर का सच

क्या आप भी रैस्टोरैंट या घर पर चीनी की जगह आर्टिफिशियल स्वीटनर का इस्तेमाल करते हैं? अगर ऐसा है तो सावधान हो जाएं क्योंकि वैज्ञानिकों का दावा है कि यही मिठास आप को डायबिटीज की बीमारी दे सकती है. बाजार में मिलने वाले डाइट सोडा हों या शुगर फ्री मिठाइयां, इन सभी चीजों में आर्टिफिशियल स्वीटनर यानी नौन कैलोरिक आर्टिफिशियल स्वीटनर (एनएएस) डाली जाती है. यह पाउडर व गोली दोनों फौर्म में बाजारों में उपलब्ध है. कुछ लोग सोचते हैं कि हम चीनी से बचने के लिए इस स्वीटनर का इस्तेमाल कर होने वाले नुकसान से बच जाएंगे, पर ऐसा नहीं है. साइंस की नेचर पत्रिका में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, रिसर्चर्स का कहना था कि जब उन्होंने लैबोरेटरी में चूहे और कुछ इंसानों पर जांच की तो इस के नुकसान पाए गए. एनएएस आंतों में रहने वाले बैक्टीरिया की क्रियाशीलता को प्रभावित करता है. वैज्ञानिकों ने आगे बताया कि कृत्रिम मिठास यानी एनएएस 3 तरह की होती है. एसपारटेम, सूक्रालोज और सैकरीन. जब चूहों को यह स्वीटनर दिया गया तो उन के शरीर में ग्लूकोज के लिए इंटालरैस पाया गया जबकि जिन चूहों को सामान्य पानी या पानी में चीनी घोल कर पिलाया गया उन पर कोई फर्क नहीं पड़ा.

अब दोनों ही तरह के चूहों के मल को उन रोडेंट्स को खिलाया गया, जिन की खुद की आंतों में बैक्टीरिया नहीं होते. इस के बाद कृत्रिम मिठास की गोलियां खाने वाले चूहों के मल को लेने वाले जीवों में ब्लड ग्लूकोज का स्तर तेजी से बढ़ता गया. इसी तरह का टैस्ट मनुष्य पर भी किया गया और रिजल्ट वही आया कि  उन के ब्लडशुगर का स्तर बढ़ चुका था.     

कम न होगी मुहब्बत

कसम जिंदगी की यह मेरी चाहत

तेरी मुहब्बत से कम न होगी

तेरी चाहत की रंगीन दुनिया

मेरी इबादत भी कम न होगी

लिखी है दिल पर गमों की दस्तक

खुशी की आहट से कम न होगी

बहुत हैं रोए बहुत हैं तड़पे

कहानी अब ये बयां न होगी

आंखों में नींदें न नीदों में सपने

देखें कि कब तक सुबह न होगी

मिले न मुझ को मैं जिस को ढूंढूं

मेरी तलाशें कभी कम न होंगी

खुशी की महफिल से हम को उठ कर

गमों की महफिल सजानी होगी

सुबह न होगी अब जिंदगी में

रातों को करवटें बदलनी होंगी

मैं सो रही हूं यादों में तेरी

नीदों में मेरी खलिश न होगी.

– रीता अत्रीय

सफर अनजाना

 मैं अपने पति के साथ मुजफ्फरपुर से पटना जा रही थी. रास्ते में एक दुकान पर हम ने चायनाश्ता किया. लगभग 20-25 किलोमीटर जाने के बाद पति को याद आया कि उन का बैग, जिस में पैसे और अन्य महत्त्वपूर्ण कागज थे, उसी चाय की दुकान पर छूट गया. हम तुरंत वापस लौटे. रास्ते भर हम परेशान रहे. दुकान पर पहुंचते ही पति ने दुकान के मालिक से बैग के विषय में पूछा. मालिक ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘घबराइए नहीं, आप का बैग यहीं है.’’ फिर उन्होेंने एक 18-20 साल के लड़के को बुलाया और कहा, ‘‘यह मेरी दुकान का आदमी है. इसे ही आप का बैग मिला, तो इस ने आ कर मुझे दे दिया.’’

पति ने उस का धन्यवाद करते हुए कहा, ‘‘इस बैग में मेरे सारे जरूरी कागज और पैसे थे. नहीं मिलता तो बहुत मुसीबत हो जाती.’’ उस लड़के ने कहा, ‘‘सर, आज तक इस दुकान से किसी का सामान गायब नहीं हुआ है. आप के सामान को अगर मैं ले लेता तो मैं अपनी नजरों से ही गिर जाता. मैं जितना कमाता हूं उस में बहुत खुश हूं. अपने साथसाथ मुझे अपने मालिक की प्रतिष्ठा को भी बचाए रखना था. मैं ऐसा कोई काम नहीं करता हूं जिस से मेरे मालिक की प्रतिष्ठा पर आंच आए. ये मेरे अन्नदाता हैं.’’ पति ने उसे कुछ पैसे देने चाहे तो उस ने नहीं लिए और कहा, ‘‘सर, आप का सामान आप को मिल गया, मेरे लिए यही बहुत है.’’ हम ने उन दोनों का फिर से शुक्रिया अदा किया और वहां से चल दिए. रास्ते भर यही सोचते रहे कि आज की दुनिया में भी ऐसे लोग हैं जो पैसों से ज्यादा इंसानियत को महत्त्व देते हैं.

मधु श्रीवास्तव, मुजफ्फरपुर (बिहार)

*

मैं कोलकाता के लेकटाउन में रहने के लिए कुछ ही दिन पहले आई थी. मेरे पति अचानक बीमार पड़े और उन्हें अस्पताल में भरती करना पड़ा. मुझे खाना पहुंचाने के लिए अस्पताल जाना था, सो, बस में सवार हो गई. मुझे उल्टाडांगा स्टेशन पर उतरना था पर वह आ ही नहीं रहा था. बहुत देर हो गई तो मैं ने कंडक्टर से संपर्क किया. उस ने बंगाली भाषा में कहा, ‘‘आप दूसरी बस में बैठ गई हैं.’’ उस ने मुझे केस्टोपुर स्टेशन पर उतार दिया. रात होने को आ गई थी. पति भूखे थे. अनजानी जगह, मुझे बहुत डर लग रहा था  मैं ने एक बंगाली भाई से पूछा, ‘‘दादा, यहां से साल्टलेक जाने का कोई रास्ता है क्या?’’ वह आदमी बहुत भला था. उस ने मुझे हाथ पकड़ कर एक बड़ा नाला पार कराया. फिर साथ चल कर मुझे फुटब्रिज दिखाया और कहा, ‘‘दीदी, यहां से आप औटो पकड़ कर अस्पताल चली जाइए.’’ मैं रात को 8 बजे अस्पताल पहुंची. उस बंगाली भाई का मन ही मन धन्यवाद कर रही थी. 

निर्मला जैन, कोलकाता (प.बं.) 

ऐसा भी होता है

कालोनी की पानी की टंकी के ऊपर मधुमक्खियों ने बड़ेबड़े छत्ते बना रखे थे. एक रविवार को सुबहसुबह कालोनी के सभी घरों के दरवाजों की घंटियां बज उठीं. सामने खड़े कुछ आदमियों, जो देखने में ग्रामीण दिख रहे थे, ने बताया कि वे लोग गांव से आए हैं और मधुमक्खियों के छत्ते तोड़ने का उन का पेशा है. हम सब से उन्होंने अनुरोध किया कि पानी की टंकी के छत्ते तोड़ने का ठेका उन्हें मिला है. कृपया हम अपने घर की खिड़कियां और दरवाजे बंद कर लें और एक घंटे तक बाहर न निकलें. चूंकि मधुमक्खियां चारों तरफ उड़तीं और किसी को भी काट लेतीं, इसलिए हम सब ने फौरन दरवाजेखिड़कियां बंद कर लीं और बच्चों को सख्त हिदायत दी कि कोई भी बाहर न निकले. एक घंटे बाद वही लोग बाल्टियां लिए हुए फिर से दरवाजों की घंटियां बजाते चले आए, सब को बोलते हुए कि हम ने ताजाताजा शहद निकाला है, ले लीजिए. कई लोगों ने जल्दीजल्दी खरीद भी लिया. जब वे लोग चले गए और हम सब घरों से बाहर निकले तो देखा कि टंकी पर मधुमक्खियों के छत्ते ज्यों के त्यों लगे हुए थे. कोई भी छत्ता तोड़ा नहीं गया था. असल में वे लोग शकर की चाशनी बेच कर पूरी कालोनी को बुद्धू बना कर चले गए थे. चूंकि कोई भी घर के बाहर निकला नहीं था तो किसी को पता भी नहीं चला था कि छत्ते टूटे भी हैं या नहीं.

अनीता सक्सेना, भोपाल (म.प्र.)

*

एक दिन मैं कुछ सामान लाने दुकान पर गई. वापसी में रास्ते के किनारे एक आटो खड़ा था. उस के पास एक बुजुर्ग सरदारजी खड़े थे. वे उस आटो के ड्राइवर थे. मैं ने उन्हें झुक कर नमस्ते किया और आगे बढ़ गई. थोड़ी दूर जाने के बाद एक आटो मेरे नजदीक आ कर रुका और उस आटो के ड्राइवर ने कहा कि वे सरदारजी आप को बुला रहे हैं. मुझे लगा मेरा कुछ गिरा होगा तो मैं वहां गई. सरदारजी पास वाले ठेले से चाय ले कर पी रहे थे. मेरे जाने से वे मुझे भी चाय पीने को कह रहे थे. मैं ने कहा, ‘‘मैं अभी पी कर आ रही हूं, शुक्रिया.’’ तो भी वे पीने के लिए कह रहे थे. मैं ने मना कर दिया और फिर नमस्कार कह कर आगे चल पड़ी. मैं सोच रही थी कि ऐसे भी इंसान मिलते हैं.

एन सरकार, कालकाजी (न.दि.)

मेरे पापा

मेरे पापा ने न केवल हमारे लड़खड़ाते कदमों को सहारा दिया बल्कि जीवनपथ पर संस्कारों के साथ सफलतापूर्वक आगे बढ़ाना भी सिखाया. मेरे जीवन की यह पहली घटना थी. तब मैं 4 या 5 वर्ष का रहा होऊंगा. हमारी जड़ीबूटी व किराने की बहुत बड़ी दुकान थी जिस में मेरे पापा बैठा करते थे. दुकान के सामने ही एक चौकलेट, पिपरमैंट व किराने की दुकान थी. एक दिन मैं पापा के पास गया और चौकलेट खरीदने के लिए 10 पैसे मांगे. पापा ने पैसे दे दिए. मैं पैसे ले कर सामने वाले दुकानदार के पास गया. उस समय पारले की औरेंज गोली 10 पैसे में 2 आती थीं. चूंकि गोली का डब्बा बाहर की तरफ रखा रहता था और हम लोग रोज के ग्राहक थे तो दुकानदार ने पैसे ले कर कहा, डब्बे  में से 2 गोलियां निकाल लो. मैं ने डब्बे में हाथ डाला और 3 गोलियां मुट्ठी में भर कर वापस अपने घर आ गया. मेरी खुशी का ठिकाना न था. मैं मन ही मन खुश हो रहा था कि किस तरह मैं ने दुकानदार को बेवकूफ बना दिया. मुझे लगा मैं ने बहुत बड़ा काम कर दिया है, सो पापा को जा कर अपने हाथ की सफाई के बारे में बताया. मुझे लगा, पापा शाबाशी देंगे. परंतु उन्होंने मुझे 1 गोली ले कर दुकानदार के पास वापस भेजा और मुझे समझाया कि जो काम तुम ने किया है वह गलत है, इसे चोरी कहते हैं. वह दिन था और आज का दिन है, कभी मैं ने ऐसी गलती नहीं की. पिता द्वारा दी गई सीख कि कभी चोरी नहीं करना और कभी उधार नहीं लेना, मेरे मनमानस में इतनी गहरी बैठ गई है कि आज मेरे पापा हमारे साथ नहीं हैं परंतु उन के संस्कार मेरे साथ उन के रूप में उपस्थित हैं.

आशीष जयकिशन चितलांग्या, राजनादगांव (छ.ग.)

*

मेरे आदर्श, मेरी जिंदगी में प्रथम स्थान रखने वाले मेरे पापा ने मुझे जितना प्यार दिया और दे रहे हैं, वह अपनेआप में अद्भुत है. उन की हर अमूल्य सीख मैं अपने संस्कारों की गठरी में बांधती गई. दुनिया के दांवपेंचों, झंझावातों, सहीगलत से जूझते हुए भी खुशमिजाज बने रहने का पाठ सिखाने वाले मेरे पापा ने हमेशा हम से यही कहा, ‘‘ठगना बुरी बात है, ठगाना नहीं.’’ मम्मी की बीमारी में उन के धैर्य, विश्वास और साहस की ढाल ही थी, जिस ने मम्मी को नियति के हर वार से उबारा और मुझे भी टूटने से बचाया. सच कहूं तो चंद शब्दों में पापा के व्यक्तित्व को समेटना मेरे लिए बहुत मुश्किल है. बस, यही कह सकती हूं कि नाम तो हर पिता देता है अपनी संतान को लेकिन मेरे पापा, आप ने मुझे मेरी पहचान भी दी.   

मीनू झा, बेगूसराय (बिहार) 

इन्हें भी आजमाइए

असरदार क्लीनर बनाना है तो घर पर नीबू के जितने भी छिलके मिलें, उन्हें संभाल कर एक जार में भर लें. ऊपर से सिरका डालें और 2 हफ्ते के लिए रख दें. इस एसिडिक मिश्रण का प्रयोग किसी भी प्रकार की गंदगी को साफ करने के लिए कर सकते हैं.

नाशपाती में विटामिन ए और सी के अलावा मैग्नीशियम और कैल्शियम भी होता है. इसलिए इसे 5 से 6 महीने के बच्चे को दें. इस के छोटेछोटे पीस कर हलका सा उबाल लें. बाद में पीस कर बच्चे को खिलाएं.

पपीते का गूदा मसल कर चेहरे पर 15-20 मिनट लगा रहने दें. त्वचा की अशुद्धियां तो दूर होंगी ही, चेहरे पर निखार भी आएगा. बेहतर परिणाम पाने के लिए इस में 1 चम्मच शहद भी मिला सकती हैं.

बाथरूम से बदबू हटाने का आसान तरीका है रूम फै्रशनर. बाथरूम के लिए यूकेलिप्टस या एक्वा वाला फ्रैशनर प्रयोग करें. हलका सा फ्रैशनर छिड़क दें. थोड़ी देर में बदबू चली जाएगी.

पानी और सिरके के घोल में कपड़े को डुबो कर रख दें. एक घंटे के बाद कपड़े को निकाल कर ब्रश से रगड़ दें. कपड़े पर से दाग खत्म हो जाएंगे.

अच्छी नींद लाने के लिए बैडरूम में चमेली का पौधा रखें. इस के फूलों की महक से अच्छी नींद आती है.

राजनीति कर्म-वाचा

मन समर्पित दिल समर्पित

पर नहीं समर्पित ‘तन’

पर-

कुरसी हथियाने को ‘जान’ समर्पित

उत्तराखंड से झारखंड

दबाव रहता है

अनुशासन का पाठ पढ़

फिर भी तेवर तीखे

‘लार’ टपकती रहती है

तो हो समर्पित

किस के लिए

मन तत्पर अर्पित-

मात्र सत्ता के लिए

हार गए पकड़े गए

निकाले गए तो भी

कहेंगे-

सबकुछ दल के नेता

के लिए

प्राणप्रिय दल के लिए.

– अविनाश दत्तात्रय कस्तुरे

बहुत कुछ देखा

कभी अश्क बहते

तो कहीं आंसू को पोंछते देखा

कभी देखा बहुत हंस रहे हैं सब

कहीं चुप कोने में किसी को रोते देखा

कहीं देखा अपनों के बीच भी

किसी को खोए हुए

तो कहीं गैरों के बीच भी

किसी को मुसकराते देखा

अंधेरों में सहम जाते हैं लोग

पर हम ने दिन के उजाले में भी

अच्छेअच्छों की

आंखों में खौफ देखा

किसी को चैन नहीं मिलता

सबकुछ पा कर भी

तो कहीं सब खो कर भी

कदमों को चलते देखा

कभी देखा पत्तों पे गिरी

ओस की बूंदों को

तो कभी फूल में छिपे

उस भंवरे को देखा

दिनरात राह तकती नजरों को देखा

मायूस उस मुसकान को देखा

जब पूछा तो कह गए वो

मैं ने हर दिन नई उम्मीद को देखा.

– राज बघेल

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें