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बात ऐसे बनी

पाठकों के निजी अनुभव

रात के 10 बजे थे. पत्नी सो रही थी. बेटा अन्नू टैब पर गेम खेल रहा था. बेटी हिम्मी मोबाइल पर व्यस्त थी. अचानक अन्नू दौड़ता हुआ आया और बोला, ‘‘पापा, पापा, बाहर 2 बिल्लियां दौड़ रही हैं. अपनी बिल्ली शायद खतरे में है.’’ दरवाजा खोल कर देखा तो अन्नू बोलता है, ‘‘पापा, बिल्ले के मुंह में बिल्ली है.’’ मैं ने कहा, ‘‘बिल्ली नहीं, बिल्ली का बच्चा है.’’ बच्चा भी मर चुका था. बिल्ली के लिए और उस के बच्चे के लिए अफसोस करने के अलावा हम और कर भी क्या सकते थे. कुछ देर बाद छत पर बिल्ली जो गूंगूं की आवाज करती हुई घूम रही थी. शायद अपने बच्चे को ढूंढ़ रही थी. बच्चों ने उस के लिए दूध रखा. उस ने दूध की ओर देखा तक नहीं. लगभग 12 बजे बिल्ली, नीचे आई. बस, म्याऊंम्याऊं ही किए जा रही थी, शायद वह कुछ कहने की कोशिश कर रही थी.

हम ने छत पर एक कमरा बना रखा है. उस में फालतू सामान रखते हैं. वह कमरा बिल्ली के बच्चों के लिए सुरक्षित जगह थी. बिल्ली ने कहीं 3 बच्चे जन्मे थे. वह उन्हें एक बार हमारी छत पर घुमाने लाई थी. उसी कमरे में वे सब ठहर गए. बच्चों को जब पता चला, तो वे उन सब के लिए रोजाना दूध और मठरी ऊपर के कमरे में रख देते थे. बिल्ली 3-4 दिन बाद अपने बच्चों को ले गई थी. बिल्ली के बच्चे को आज देखा था पर बिल्ले के मुंह में.

और आज, बिल्ली दूध और मठरी की ओर देख भी नहीं रही थी. लगा कि शायद वह बिल्ले से डर गई है. अन्नू बोला, ‘‘पापा, ऊपर जा कर देख आओ, कहीं बिल्ला न हो.’’ मैं ने बिल्ली से कहा, ‘‘तू ऊपर चल, मैं आ रहा हूं.’’ आश्चर्य यह कि बिल्ली समझ गई, वह ऊपर चली गई. मैं उस के पीछेपीछे गया. वह कमरे में पहुंच कर रुक गई. हिम्मी ऊपर कमरे में दूध रख गई. मैं छत पर घूम कर कमरे में लौटा तो देखा कि बिल्ली और उस का बच्चा दोनों दूध पी रहे थे. सारा मामला समझ में आ गया कि उसे अपने बच्चे के लिए दूध चाहिए था. मतलब वह नीचे ही दूध पी लेती तो हम ऊपर दूध नहीं रखते जिस से उस का बच्चा भूखा रहा जाता. बच्चा इतना बड़ा नहीं था कि नीचे आ जाता. बिल्ली शायद यही कहना चाह रही थी कि वह अपने बच्चे को भी लाई है. हम लोग समझ नहीं पा रहे थे. यही तो है मां की ममता. बच्चा इंसान का हो या जानवर का, मां पहले अपने बच्चे के लिए सोचती है.

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कभी अश्क बहते

तो कहीं आंसू को पोंछते देखा

कभी देखा बहुत हंस रहे हैं सब

कहीं चुप कोने में किसी को रोते देखा

कहीं देखा अपनों के बीच भी

किसी को खोए हुए

तो कहीं गैरों के बीच भी

किसी को मुसकराते देखा

अंधेरों में सहम जाते हैं लोग

पर हम ने दिन के उजाले में भी

अच्छेअच्छों की

आंखों में खौफ देखा

किसी को चैन नहीं मिलता

सबकुछ पा कर भी

तो कहीं सब खो कर भी

कदमों को चलते देखा

कभी देखा पत्तों पे गिरी

ओस की बूंदों को

तो कभी फूल में छिपे

उस भंवरे को देखा

दिनरात राह तकती नजरों को देखा

मायूस उस मुसकान को देखा

जब पूछा तो कह गए वो

मैं ने हर दिन नई उम्मीद को देखा.

- राज बघेल

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