कुछ वर्षों से वाहनों पर लालबत्ती का क्रेज बना हुआ है, या यों कहें कि एक फैशन बन गया है. लालबत्ती वाले वाहन में बैठा व्यक्ति अपनेआप को एक खास व्यक्ति मानता है. कई बार यह अहंकार का कारण भी बन जाता है. पिछले कुछ समय से लालबत्ती का जम कर दुरुपयोग होने लगा है. अधिकांश जनप्रतिनिधि व अधिकारी अपने वाहनों पर लालबत्ती लगाए हुए हैं, चाहे वे इस के पात्र हों या न हों. यहां तक कि अनेक जनप्रतिनिधियों व अधिकारियों ने तो अपने निजी वाहनों पर भी लालबत्ती लगाना प्रारंभ कर दिया. जिस उद्देश्य व अवधारणा को ले कर लालबत्ती का प्रावधान किया गया वह धूमिल होने लग गया. लोकतंत्र के लिए यह एक मजाक बन गया. ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ अर्थात अति सदैव बुरी होती है. मामला उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया.
‘अभयसिंह बनाम स्टेट औफ उत्तर प्रदेश’ (एआईआर 2014 एससी 427) के लालबत्ती पर एक ऐतिहासिक मामले में अदालत ने निर्णय सुनाया था. इस निर्णय में एक शब्द प्रयुक्त किया गया है–‘उच्चपदस्थ व्यक्ति’. संपूर्ण मामला इसी शब्द के इर्दगिर्द घूमता है. हमारे संविधान में कुछ व्यक्तियों को उच्चपदस्थ व्यक्ति माना गया है. उन्हें संवैधानिक दरजा प्रदान किया गया है. उन की सुरक्षा का जिम्मा केंद्रीय एवं राज्य सरकारों को सौंपा गया है. सुरक्षा की दृष्टि से लालबत्ती वाहन उच्चपदस्थ व्यक्ति के होने का संकेत देता है. जब लालबत्ती वाला वाहन मार्ग से गुजरता है तो सुरक्षाकर्मी सचेत व सावधान हो जाते हैं.
उच्चपदस्थ व्यक्ति
प्रश्न यह है कि उच्चपदस्थ व्यक्ति किसे माना जाए? केंद्रीय मोटरयान नियम 1989 के नियम 108 के उपनियम (1) में यह कहा गया है, ‘‘कोई भी मोटरयान अपने आगे के भाग में निम्नांकित के सिवा लालबत्ती का प्रयोग नहीं करेगा, जब तक कि उस में केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार द्वारा समयसमय पर निर्दिष्ट उच्चपदस्थ व्यक्ति न बैठा हो.’’ इस नियम के अंतर्गत केंद्रीय सरकार द्वारा एक अधिसूचना एसओ 52 (ई) दिनांक 11 जनवरी, 2002 को जारी की गई जिसे अधिसूचना एसओ 1070 (ई) दिनांक 28 जुलाई, 2005 द्वारा संशोधित किया गया. इस में राजकीय कार्य के दौरान वाहन पर चमकदार लालबत्ती का प्रयोग करने के प्रयोजनार्थ इन को उच्चपदस्थ व्यक्ति माना गया है :
राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, पूर्व राष्ट्रपति, उपप्रधानमंत्री, भारत का मुख्य न्यायाधीश, लोकसभा अध्यक्ष, संघ के कैबिनेट मंत्री, पूर्व प्रधानमंत्री, लोकसभा एवं राज्यसभा में विपक्ष के नेता और उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश.
इन के अलावा, निम्न व्यक्तियों को बिना चमकदार लालबत्ती का प्रयोग करने का पात्र माना गया है :
मुख्य निर्वाचन आयुक्त, भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, राज्यसभा का उपसभापति, लोकसभा का उपाध्यक्ष (डिप्टी स्पीकर), संघ के राज्यमंत्री, भारत का एटौर्नी जनरल, कैबिनेट सचिव, तीनों सेनाओं के प्रमुख, केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण का अध्यक्ष, अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष, संघ के उपमंत्री, तीनों सेनाओं के कार्यकारी प्रमुख, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति आयोग का अध्यक्ष और संघ लोकसेवा आयोग का अध्यक्ष. स्पष्ट है कि उपरोक्त उच्चपदस्थ व्यक्तियों के वाहनों पर ही लालबत्ती का प्रयोग किया जा सकता है, अन्य वाहनों पर नहीं. उन की रक्षा के लिए साथ चलने वाले वाहन नीली बत्ती का प्रयोग कर सकेंगे.
सब को सम्मान
निर्णय में न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी द्वारा यह भी कहा गया था, ‘‘हमारा संविधान व्यक्तिविभेद नहीं करता है. इस में सभी व्यक्तियों को सम्मान दिया गया है. उच्चपदस्थ व्यक्ति केवल उन्हें माना गया है जो संवैधानिक पद धारण करते हैं. उन के वाहनों पर लालबत्ती का प्रयोग किए जाने का भी यही कारण है.’’ लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों एवं लोकसेवकों का मुख्य कार्य जनता की सेवा करना है, आडंबर व प्रदर्शन करना नहीं. उन की पहचान उन के कार्यों से होती है, लालबत्ती के प्रयोग से नहीं. जनप्रतिनिधि व लोकसेवक लालबत्ती के मोह को छोड़ें. लालबत्ती की संस्कृति लोकतंत्र की नहीं है. अनावश्यक एवं अनधिकृत लालबत्ती का प्रयोग एक ओछी मानसिकता है.
जहां तक राज्यों के उच्चपदस्थ व्यक्तियों का प्रश्न है, निर्णय में यह कहा गया है कि राज्य सरकार अधिसूचना जारी कर लालबत्ती का प्रयोग करने के लिए अधिकृत उच्चपदस्थ व्यक्तियों को अधिसूचित कर सकती है. ऐसे व्यक्ति राज्यपाल, उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीश, विधानसभा स्पीकर, अध्यक्ष, कैबिनेट मंत्री आदि हो सकते हैं.
– डा. बसंतीलाल बाबेल
(लेखक पूर्व न्यायाधीश एवं राजस्थान सरकार शासन में उपसचिव, गृह [विधि] हैं.)