मेरे पापा ने न केवल हमारे लड़खड़ाते कदमों को सहारा दिया बल्कि जीवनपथ पर संस्कारों के साथ सफलतापूर्वक आगे बढ़ाना भी सिखाया. मेरे जीवन की यह पहली घटना थी. तब मैं 4 या 5 वर्ष का रहा होऊंगा. हमारी जड़ीबूटी व किराने की बहुत बड़ी दुकान थी जिस में मेरे पापा बैठा करते थे. दुकान के सामने ही एक चौकलेट, पिपरमैंट व किराने की दुकान थी. एक दिन मैं पापा के पास गया और चौकलेट खरीदने के लिए 10 पैसे मांगे. पापा ने पैसे दे दिए. मैं पैसे ले कर सामने वाले दुकानदार के पास गया. उस समय पारले की औरेंज गोली 10 पैसे में 2 आती थीं. चूंकि गोली का डब्बा बाहर की तरफ रखा रहता था और हम लोग रोज के ग्राहक थे तो दुकानदार ने पैसे ले कर कहा, डब्बे में से 2 गोलियां निकाल लो. मैं ने डब्बे में हाथ डाला और 3 गोलियां मुट्ठी में भर कर वापस अपने घर आ गया. मेरी खुशी का ठिकाना न था. मैं मन ही मन खुश हो रहा था कि किस तरह मैं ने दुकानदार को बेवकूफ बना दिया. मुझे लगा मैं ने बहुत बड़ा काम कर दिया है, सो पापा को जा कर अपने हाथ की सफाई के बारे में बताया. मुझे लगा, पापा शाबाशी देंगे. परंतु उन्होंने मुझे 1 गोली ले कर दुकानदार के पास वापस भेजा और मुझे समझाया कि जो काम तुम ने किया है वह गलत है, इसे चोरी कहते हैं. वह दिन था और आज का दिन है, कभी मैं ने ऐसी गलती नहीं की. पिता द्वारा दी गई सीख कि कभी चोरी नहीं करना और कभी उधार नहीं लेना, मेरे मनमानस में इतनी गहरी बैठ गई है कि आज मेरे पापा हमारे साथ नहीं हैं परंतु उन के संस्कार मेरे साथ उन के रूप में उपस्थित हैं.