Download App

विज्ञान कोना

विज्ञान की रोचक व अनोखी दुनिया के दिलचस्प पहलू.

लौह तत्त्व और अल्जाइमर्स

वैसे तो लौह तत्त्व स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है क्योंकि यह उस तंत्र का हिस्सा है जो शरीर की कोशिकाओं को औक्सीजन पहुंचाता है. मगर हाल में किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि मस्तिष्क में बहुत अधिक लौह तत्त्व हो तो अल्जाइमर्स नामक रोग का खतरा बढ़ जाता है. आस्ट्रेलिया के मेलबोर्न विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने 7 वर्षों तक ऐसे 114 लोगों का अध्ययन किया जिन में स्मृति भ्रंश (याददाश्त कमजोर होने) के हलकेफुलके लक्षण नजर आने लगे थे. उन के मस्तिष्क में लौह का स्तर जानने के लिए उन के सेरेब्रो स्पाइनल लिक्विड (वह तरल पदार्थ जो मस्तिष्क और मेरुरज्जु में भरा होता है) में एक प्रोटीन फेरिटिन का मापन किया गया. फेरिटिन वह प्रोटीन है जो लौह तत्त्व से जुड़ता है. अध्ययन के शुरू में जिन व्यक्तियों के सेरेब्रो स्पाइनल लिक्विड में अधिक फेरिटिन था, उन में अल्जाइमर्स की शुरुआत भी पहले हुई थी.

शोधकर्ता दल ने यह भी पाया कि अल्जाइमर्स रोग का जोखिम पैदा करने में सर्वाधिक भूमिका ्नश्चशश्व४ नामक जीन की होती है और यह जीन अधिक लौह से संबंधित होता है. शोधकर्ताओं का मत है कि लौह एक अत्यंत क्रियाशील तत्त्व है और यह तंत्रिकाओं को तनावग्रस्त कर देता है. इस अध्ययन के आधार पर फौरन यह तो नहीं कहा जा सकता कि शरीर में लौह तत्त्व कम करने से अल्जाइमर्स का खतरा कम हो जाएगा मगर 24 साल पहले एक ऐसी दवा का परीक्षण किया गया था जो शरीर को थोड़े लौह से नजात दिलाती है. इस दवा से अल्जाइमर्स होने वाले संज्ञान की क्षति को आधे से कम करने में सफलता मिली थी मगर फिर अल्जाइमर्स की बीटा एमिलाइड आधारित परिकल्पना आ गई थी और वह दवा धरी रह गई थी. ताजा शोध के बाद शायद उस दवा पर एक बार फिर से ध्यान देने का वक्त आ गया है. वैसे लौह तत्त्व को कम करने का एक अच्छा तरीका है कि आप नियमित रूप से रक्तदान करें. मगर यह तरीका शायद बुजुर्गों के संदर्भ में काम नहीं आएगा क्योंकि अधिक रक्तदान से वे एनीमिया के शिकार हो सकते हैं. अलबत्ता, एक दवा है डीफेरिप्रोन जो मस्तिष्क में लौह की मात्रा को कम करती है जबकि शेष शरीर पर असर नहीं डालती.

*

शब्द से व्यक्ति की पहचान

एक ही शब्द के अर्थ अलगअलग व्यक्ति के लिए थोड़े अलगअलग होते हैं इसलिए जब कोई शब्दों को पढ़ता या पढ़ती है तो दिमाग में उत्पन्न तरंगों का पैटर्न भी अलगअलग होता है. स्पेन के बास्क सैंटर औन काग्नीशन, ब्रेन ऐंड लैंग्वेज के ब्लेयर आर्मस्ट्रौंग और उन के साथियों का मानना है कि दिमागी तरंगों के इस पैटर्न से व्यक्ति की पहचान की जा सकती है. उन के विचार से यह फिंगरपिं्रट, आंखों की पुतली के स्कैन के पैटर्न के अलावा एक और विधि साबित हो सकती है. आर्मस्ट्रौंग के दल ने 45 वौलंटियर्स को 75 संक्षिप्ताक्षर पढ़ने को कहा, जैसे एफबीआई, डीवीडी वगैरह. जब वौलंटियर्स उन शब्दों को उच्चारित करने में मशगूल थे तब शोधकर्ताओं ने उन के दिमाग में पैदा हो रहे संकेतों को रिकौर्ड कर के एककंप्यूटर में भेज दिया. कंप्यूटर ने इन संकेतों का विश्लेषण कर के हर वौलंटियर का एक मस्तिष्क तरंग खाका तैयार कर लिया.

इस के बाद इन वौलंटियर्स को वही शब्द एक बार फिर पढ़ने को कहा गया और कंप्यूटर द्वारा उन की पहचान करवाने की कोशिश की गई. कंप्यूटर ने 94 प्रतिशत मामलों में व्यक्ति की सही पहचान कर ली. वैसे तो व्यक्ति के दिमाग ने पैदा होने वाले विद्युतीय संकेतों के आधार पर व्यक्ति की पहचान के प्रयोग पहले भी हो चुके हैं. इन तकनीकों का एक फायदा यह है कि इन में पहचान के लिए पासवर्ड वगैरह से मुक्ति मिल जाती है और यह काम सतत ढंग से किया जा सकता है. समस्या यह है कि इस तरह की पहचान प्रणाली में व्यक्ति की खोपड़ी पर इलैक्ट्रोड वगैरह लगाने पड़ेंगे, ताकि मस्तिष्क की विद्युतीय तरंगों को पकड़ सकें. मजेदार बात यह है कि हर व्यक्ति शब्दों के अर्थ को थोड़ा अलगअलग संजो कर रखता है और यह बात उस के उच्चारण में झलकती है. इस से और कुछ नहीं, इतना पता तो चलता है कि मस्तिष्क में शब्दार्थ की हमारी स्मृति वाला हिस्सा कुछ विशेष ढंग से काम करता है और ये स्मृतियां लगभग स्थायी होती हैं.          

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...

ऐजर स्किन को बायबाय

अगर आप अधिक गुस्सैल, नींद न आने की समस्या जैसे मानसिक विकारों या खानपान संबंधी रोग या मादक द्रव्यों के सेवन से जुड़े हैं तो आप मानसिक बीमारी  यानी पोस्ट ट्रौमेटिक स्ट्रैस डिसऔर्डर-पीटीएसडी से पीडि़त हो सकते हैं. यह डिसऔर्डर आप को समय से पहले बूढ़ा भी बना सकता है. जी हां, सैन डिआगो स्थित यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया में हुए अध्ययन से यह बात सामने आई है कि अगर आप पीटीएसडी से ग्रस्त हैं तो जल्दी बूढ़े दिखने लगेंगे. यह शोध अपनी तरह का पहला शोध है. हालांकि निष्कर्ष में यह बात जाहिर नहीं होती कि समय से पहले बुढ़ापे के लिए डिसऔर्डर ही जिम्मेदार है.

*

मधुमेह में याददाश्त खोना

क्या आप जानते हैं कि डायबिटीज के मरीज का दिमाग सामान्य मनुष्य की तुलना में 5 साल पहले कमजोर हो जाता है. यह असर उन मरीजों पर ज्यादा होता है जिन्हें 50 साल की उम्र तक डायबिटीज होती है. उन के 70 साल के होने तक उन के दिमाग के जल्द कमजोर होने की पूरी संभावना होती है. हां, अगर नियमित खानपान, व्यायाम कर रहे हैं तो आप डायबिटीज की रोकथाम या उस पर कुछ हद तक नियंत्रण जरूर पा सकेंगे. वैज्ञानिकों के मुताबिक, दिमाग का कमजोर होना, डायबिटीज के साथ ही आता है. ऐसा डायबिटीज के दौरान ग्लूकोज के खराब नियंत्रण की स्थिति में भी होता है. डायबिटीज के मामलों में ग्लूकोज का उच्च स्तर होने से कोशिकाओं को नुकसान पहुंच सकता है और मरीज देखने की क्षमता खो सकता है. इसलिए बेहद जरूरी है कि डायबिटीज में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित रखा जाए ताकि आप की याददाश्त खोने न पाए. यह रिसर्च साइंस पत्रिका ‘एनल्स औफ इंटरनल मैडिसिन’ में प्रकाशित हुई है. वैज्ञानिकों ने 1987 से 2013 के बीच कुल 15 हजार वयस्कों की अवस्था पर यह रिसर्च की, तब ज्ञात हुआ कि डायबिटीज से पीडि़त लोगों में उम्र बढ़ने के साथ दिमाग 19 फीसदी ज्यादा प्रभावित हुआ. जबकि नियंत्रित डायबिटीज में इस तरह की संभावना कम पाई जाती है. 70 की उम्र में अच्छा दिमाग रखने के लिए 50 की उम्र से अच्छे खानपान और कसरत पर ध्यान देना जरूरी है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD48USD10
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
 

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD100USD79
 
सब्सक्राइब करें

सरिता सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं

  • सरिता मैगजीन का सारा कंटेंट
  • देश विदेश के राजनैतिक मुद्दे
  • 7000 से ज्यादा कहानियां
  • समाजिक समस्याओं पर चोट करते लेख
  • 24 प्रिंट मैगजीन
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...
अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें