पठानकोट में एअरबेस पर आतंकवादी हमला एक बार फिर यह साबित कर गया कि देश में कोई भी, कहीं भी सुरक्षित नहीं है और आतंकवादियों ने आत्मघाती हमलों का जो पाठ पढ़ लिया है उस का मुकाबला करना आसान नहीं. पाकिस्तान की सरकार और उस की सेना को कोसना आसान है पर यह बात साफ है कि अब हालात ऐसे हो गए हैं कि उन के काबू में नहीं रहे. उन के लिए अब इस जिन को बोतल में वापस डालना आसान नहीं.

दुनियाभर में जो आतंकवाद फैल रहा है वह जमीन या पैसे पर नियंत्रण पाने के लिए नहीं है, वह दिमाग पर कंट्रोल करने के लिए है और इस में सब से बड़ा हथियार भी दिमाग पर कंट्रोल है. धर्म के नाम पर निहत्थे, निर्दोषों को मारना और खुद मर जाने का पाठ पढ़ाना बहुत कठिन है. सेनाएं अपने सैनिकों को मरने के लिए तैयार करती हैं पर साथ ही यह भी बताती हैं कि उन को बचाने की पूरी तरह तैयारी कर ली गई है और मरेगा दुश्मन ही.

आतंकवादियों को पाठ पढ़ाया जाता है कि तुम्हें मारना ही है और धर्म की खातिर दुश्मन यानी विधर्मियों के ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना है. आतंकवादी जानता है कि आखिरकार वह मरेगा ही और उसे याद भी नहीं किया जाएगा. उस के मातापिता को न पैसा मिलेगा, न सम्मान. कोई जा कर बस यह कह देगा कि धर्म की खातिर उन के बेटे ने कुरबानी दे दी है. जब इतनी सी कीमत से काम चल जाए तो आतंकवाद पर काबू कैसे पाया जा सकेगा.

दुनियाभर की सरकारें आतंकवादियों के केंद्रों पर हमला कर रही हैं पर ये तो जंगली पौधे हैं जो हर जगह उग सकते हैं. धर्म के प्रचारक चप्पेचप्पे पर मौजूद हैं. और बचपन में ही मातापिता की मेहरबानी से युवा भारी संख्या में धर्म के नाम पर खुद को अर्पित कर देते हैं.

भारत में जो राधे मां, आसाराम बापू, रामरहीम जैसे सैकड़ों संत का बिल्ला लगाए घूम रहे हैं और जिन के आश्रमों व मठों में युवा, प्रौढ़ व वृद्ध कतारें लगाए दिखते हैं, असल में वे आतंकवाद के जहरीले पौधों की खेती करवाने वाले हैं. सरकारों की हिम्मत नहीं है कि वे इन पर कंट्रोल कर सकें.

इसलामाबाद को कोसना आसान है पर गुनाह तो दिल्ली, वाशिंगटन, लंदन, पेरिस, बीजिंग सब जगह हो रहा है. और सभी जगह की सरकारें धर्म की खेती करने वालों को छूट दे रही हैं.

मामला चाहे नरेंद्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे के बनारस की गंगा आरती का हो, पुतिन का चर्चों में जाना, आबूधाबी में विशाल मसजिद बनवाने का या पोप को कई देशों के प्रधानों से भी बढ़ कर स्थान पाने का, सब में एक बात समान है, सब उस जमीन को खादपानी दे रहे हैं जिस में आतंकवाद की जहरीली खेती होती है.

सभ्य समाज होहल्ला मचा रहा है पर धर्म की रक्षा में लगा रहता है. दोनों साथ नहीं चल सकते. हर धर्म ने आतंकवादी पैदा किए हैं या कर रहा है. और जब तक धर्म को आदर, सम्मान, पैसा व सेवक मिलेंगे, आतंकवादी पनपते व बढ़ते रहेंगे और पठानकोट जैसी क्रूर घटनाएं घटती रहेंगी.

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