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बाढ़ के समय पशुओं की देखभाल

मवेशियों के मामले में भारत नंबर एक पर है. भारत में बहुत से पशुओं के जरीए दूध, मांस व अंडे वगैरह का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है. करोड़ों पशुपालक किसानों की जिंदगी पशुओं के बल पर चलती है. भौगोलिक वजहों से देश के कई इलाकों में किसानों को हर साल कुदरती आपदाओं का सामना करना पड़ता है, जिस से पशुधन उत्पादन में करोड़ों का नुकसान होता है. कुदरती आपदाओं में बाढ़, भूकंप, तूफान (सुनामी)और सूखा खास हैं. बाढ़ आजादी के बाद देश को कई बार बुरी तरह से तबाह कर चुकी है. देश में अलगअलग बारिश के कारण कई क्षेत्रों में सूखा पड़ जाता है और कई जगहों पर बाढ़ का पानी भर जाता है. बाढ़ की वजह से गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सुअर और इनसानों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे हालात में इनसान अपनी हिफाजत में लगा रहता है और अपने मवेशियों का खयाल नहीं करता, जिस से काफी नुकसान होता है, जबकि बाढ़ के वक्त अपने पशुओं का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए.

पशुओं की हिफाजत के लिए आकस्मिक दस्ता : बाढ़ के समय, पशुओं के नुकसान को कम करने के लिए अक्लमंद व फौरन फैसला लेने वाले लोगों का एक आकस्मिक दस्ता बनाना चाहिए, जोकि पशुकल्याण के लिए भलाई का काम कर सके. आकस्मिक दस्ते में पशुचिकित्सक, पशुपोषण विशेषज्ञ, लोकस्वास्थ्य विशेषज्ञ, माहिर स्वैच्छिक कार्यकर्ता और गैरसरकारी संगठनों के सक्रिय लोगों को शामिल करना चाहिए.

विशेषज्ञों के इस दस्ते को समयसमय पर स्थानीय प्रशासन को समस्या हल करने के तरीके सुझाने चाहिए, जिस से कि जानमाल का कम से कम नुकसान हो.

स्थानीय प्रशासन को बाढ़ आपदा के समय वाहनों, दवाओं, रोग के टीके व साफ पानी वगैरह का इंतजाम रखना चाहिए, जिस से कि बाढ़ के बाद पैदा होने वाली मुसीबतों को सुलझाया जा सके.

बाढ़ के बाद विशेषज्ञों के दल को निम्न बातों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:

*      खराब पानी का शुद्धिकरण.

*      खराब पशु आहार सामग्री का निबटान.

*      सही पशुआहार का इंतजाम.

*      मरे हुए पशुओं का निबटारा.

*      मच्छरमक्खी की रोकथाम.

*      बाढ़ के कारण होने वाले रोगों की रोकथाम.

*      टूटे बिजली के तारों को ठीक कराना.

*      मवेशियों के टूटे घरों की मरम्मत

*      सांप वगैरह से बचाव

पशुआहार की मांग का सही अंदाजा : सब से पहले बाढ़ वाले इलाके में बाढ़ की चपेट में आने वाले पशुओं की तादाद का अंदाजा लगाना जरूरी है, ताकि उन के आहार की मांग को ढंग से पूरा किया जा सके. पहले पशुओं को उन की प्रजातियों के हिसाब से अलग कर लेना चाहिए, फिर उन के शरीर और उत्पादन के हिसाब से उन के चारे व दाने की मांग का अंदाजा लगाना चाहिए, ताकि सभी पशुओं को सही आहार मिल सके. सेहत व हिफाजत के इंतजाम : अगर पशुओं के रहने की जगह भी बाढ़ से तबाह हो गई हो, तो संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के उपाय तेज गति से करने चाहिए. बाढ़ के दौरान कई दिनों तक पानी भरे रहने और पशुओं के उस में खड़े रहने की वजह से खुर का गलना, लंगड़ापन, सांस के रोग व मांसपेशी में तनाव वगैरह होने का खतरा बना रहता है.

ऐसे में इलाज में कोताही नहीं होनी चाहिए. बाढ़ के माहौल में किसी भी किस्म के कीटनाशक वगैरह को किसी महफूज जगह पर रखना चाहिए, ताकि ऐसी चीजें पानी में न मिल सकें वरना पानी जहरीला हो सकता है. बाढ़ की हालत में पशुओं को किसी ऊंची जगह पर बांध देना चाहिए. इस के अलावा दुधारू पशुओं से प्रतिदिन दूध निकालना चाहिए ताकि थनैला से बचा जा सके. पानी का इंतजाम : बाढ़ के समय साफ पानी की कमी पशुओं को गंदा पानी पीने पर मजबूर कर देती है, जिस से कि कई तरह के रोगों के फैलने की संभावना बढ़ जाती है. लिहाजा पशुओं के लिए साफ पानी का इंतजाम करना बेहद जरूरी है. दूषित पानी को कैल्शियम कार्बोनेट से उपचारित कर के पशुओं को पीने के लिए दिया जा सकता है.

पशुआहार व्यवस्थापन : बाढ़ के समय पशुओं को दिए जाने वाले गेहूं, मक्का व धान वगैरह की जांच करना जरूरी है, क्योंकि इन में फफूंदी का असर हो सकता है, जो कई प्रकार के रोगों को बुलावा दे सकता है. फफूंदी वाले अनाजों को फौरन नष्ट कर देना चाहिए. इन्हें पशुओं को कतई नहीं खिलाना चाहिए. इसी प्रकार भंडारित चारे में भी फफूंदी का असर होने का डर रहता है. लिहाजा उसे भी खिलाने से पहले जांच करा लेना जरूरी है. अगर चारे में कवक का असर हो तो उसे जला देना चाहिए.

चारागाहों में कईकई दिनों तक पानी भरा रहने से घासों के गलने व सड़ने का पूरा खतरा रहता है. ऐसे में पशुओं को चारागाहों में चरने के लिए नहीं भेजना चाहिए. आमतौर पर चारा देने वाले पेड़ बाढ़ से बचे रहते हैं, लिहाजा उन से मिलने वाले चारे को पशुओं को खिलाया जा सकता है. बाढ़ के समय पशुओं को उन की निम्नतम मांग के लिए हिसाब से खिलाना चाहिए. बाढ़ के दौरान व उस के बाद पशुआहार मंगाना : बाढ़ के कारण ज्यादातर पशुआहार गंदे पानी से खराब होने के कारण पशुओं को खिलाने लायक नहीं रहते हैं. ऐसी हालत में पास के राज्यों से जहां बाढ़ का कहर न हो, पशुआहार मंगा कर पशुओं को खिलाया जा सकता है. दाने ज्यादा जगह नहीं घेरते लिहाजा उन्हें दूसरे सूबों से मंगाना आसान होता है, जबकि भूसा ज्यादा जगह लेता है, लिहाजा उसे मंगाना महंगा पड़ता है.

भारत में अलगअलग जलवायु होने के कारण कई बार बाढ़ का आना आम बात है. बाढ़ आने पर पहले इनसानों को बचाया जाता है. इस के बाद पशुओं पर ध्यान जाता है. नतीजतन पशुओं का काफी नुकसान हो जाता है. ऐसे मौके पर मरने वाले पशुओं को जला कर निबटाना जरूरी होता है, वरना संक्रमण का खतरा हो सकता?है. बाढ़ के बाद फैलने वाले रोगों के संक्रमण से भी पशुओं को बचाने के पूरे इंतजाम करने चाहिए जिस से कि कम से कम नुकसान हो.

डा. प्रमोद मडके* व डा. रमेश चंद्रा**

* वैज्ञानिक (पशुपालन) कृषि विज्ञान केंद्र, गाजियाबाद

** वरिष्ठ वैज्ञानिक (पशुपालन) राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, करनाल

किसानों को चाहिए उम्दा, कारगर व सस्ती मशीनें

‘मशीनें काम को आसान बना देती?हैं, मशीनें आगाज को अंजाम बना देती?हैं. यदि सलीके से इन का इस्तेमाल करें तो मशीनें किसानों को धनवान बना देती हैं.’ आज के माहौल में ये लाइनें बेहद मौजूं लगती हैं, क्योंकि मशीनों से काम जल्दी, बेहतर व कई गुना ज्यादा होता है. यह बात अलग है कि ज्यादातर मशीनें महंगी होने की वजह से आम किसानों की पहुंच से बाहर हैं. वैसे सरकार खेती की मशीनों की खरीद पर कर्ज व छूट भी देती है, मगर इस के बावजूद ज्यादातर छोटे किसान मशीन खरीदने की कूवत नहीं रखते. ऐसे में खेती के लिए किफायती मशीनों की बहुत जरूरत है. अब गांवों के ज्यादातर मजदूर बेहतर रोजगार व ज्यादा कमाई के लिए शहरों की ओर निकल जाते?हैं, लिहाजा खेती के लिए अब आसानी से मजदूर मयस्सर नहीं होते. नतीजा यह है कि खेती के ज्यादातर काम अब मशीनों से करना एक मजबूरी हो गया है. कारगर मशीनों से काम करना अच्छा व आसान लगता है, क्योंकि उन से वक्त कम लगता है और मेहनत बचती है.

किफायती काम

हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो खुद बड़े वैज्ञानिक या इंजीनियर नहीं है, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने तजरबे व जुगत से कामयाब व किफायती मशीनें बनाई हैं. मसलन कर्नाटक में मुदिगिरी तालूका के डाराडहली गांव के एक पशु चिकित्सक डा. श्रीकृष्ण राजू ने बेहद सस्ता व छोटा गोबरगैस प्लांट बनाया है. बड़े गोबरगैस प्लांट में करीब 20-25 हजार रुपए खर्च होते?हैं. उस से गैस हासिल करने के लिए रोज बहुत सारा गोबर भी जरूरी होता है, जो सब के बस की बात नहीं है, क्योंकि आम किसानों के पास जानवर कम होते हैं. लेकिन यदि सिर्फ 1 बाल्टी गोबर भी रोज जमा हो जाए तो सिर्फ 3 हजार रुपए में भी एक मिनी गोबरगैस प्लांट लगाया जा सकता है. इस मिनी प्लांट की मदद से रोज 4-5 घंटे तक रसोईगैस व काफी गाद यानी खेती के लिए उम्दा खाद मुफ्त में मिल जाती है. इस से घर की ईंधनगैस व खेत में महंगी खाद का खर्च घटाया जा सकता है. यह प्लांट 11 फुट लंबी, 7 फुट चौड़ी व 250 मिलीमीटर मोटी प्लास्टिक शीट व 2 पीवीसी पाइपों की मदद से बनाया जा सकता है.

देशी मशीनें

खासतौर पर ग्रामीण इलाकों व खेती के तौरतरीके सुधारने के मकसद से केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महकमे ने एक बेहतर पहल की है. हनीबी नेटवर्क के साथ मिल कर सरकार ने खोजबीन में लगे उन देसी वैज्ञानिकों को बढ़ावा देने की स्कीम चला रखी?है, जो मशीनों के जरीए खेती के मसले हल करने के कामयाब तरीके निकाल सकते हैं. इस स्कीम के तहत साल 2015-16 में मानवचालित धानरोपाई मशीन, चायपत्ती तोड़क और बायोमास आधारित खाना पकाने का सब से उम्दा चूल्हा बनाने वालों को ढाई, 5 व 10 लाख रुपए के 9 इनाम दिए जाएंगे. इच्छुक किसान ‘राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान, सेटेलाइट कांपलेक्स, प्रेमचंदनगर रोड, अहमदाबाद, फोन 079-26732456 से जानकारी ले सकते हैं. किसान खुद अपने तजरबे व सूझबूझ से खेती में काम आने वाले नए औजार व मशीनें बना सकते हैं या पुराने औजारों व मशीनों में सुधार कर सकते हैं. देश के बहुत से इलाकों में हंसिया, खुरपी, फावड़े, हल व पाटे तक के डिजाइन सदियों पुराने हैं. यदि वे बेहतर, हलके व मजबूत हों तो उन से काम करने में आसानी होगी और उन में टूटफूट कम होगी.

सहूलियत मौजूद

खेती के उन्नत औजार व सुधरी मशीनें बनाने में लगा एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग का सब से बड़ा केंद्रीय संस्थान भोपाल में है और कटाई के बाद की तकनीक पर खोजबीन करने वाला संस्थान लुधियाना में है. इन के वैज्ञानिकों ने किसानों के काम लायक बहुत सी छोटीबड़ी मशीनें बनाई हैं. यह बात अलग?है कि उन की जानकारी ज्यादा किसानों को नहीं है. इसी तरह ग्रामीण इलाकों में काम आने वाली बहुत सी मशीनों को खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग भी बढ़ावा दे रहा है. अहमदाबाद के हनीबी नेटवर्क नामक संगठन ने खेती के कामों को बेहतर व आसान बनाने वाली मशीनों को जमा करने का काबिलेतारीफ काम किया है, लिहाजा किसानों को इस संस्था से जुड़ना चाहिए.

सहायक रोजगार

मटरचालित चारा काटने की मशीन, मोटरचालित चाक आदि से काम आसान हो जाते हैं. इस के अलावा खेती से ज्यादा कमाई करने के लिए उपज की प्रोसेसिंग करना भी जरूरी?है, लिहाजा मसाले व अनाज पीसने, दाल दलने, तेल निकालने, दूध की क्रीम निकालने, चिप्स बनाने, बिस्कुट बनाने, बड़ी व पापड़ बनाने, नमकीन तलने आदि की मशीनें काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं. किसान इन्हें खरीद कर गांव में ही लगा कर डीजल इंजन से चला सकते हैं. नई मशीनों से देश के बहुत से इलाकों में छोटेबड़े उद्योगधंधों की हालत लगातार सुधर रही है. यह बात अलग है कि ज्यादातर कारखाने नगरों के आसपास के औद्योगिक इलाकों में चल रहे हैं. उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश आदि कई राज्य खास जिलों में यूनिट लगाने पर करों में छूट व सस्ती जमीन देने जैसी सहूलियतें देते हैं, लिहाजा, कारोबारी दूरदूर से वहां खिंचे चले जाते?हैं. ऐसी सहूलियतें सभी राज्यों के किसानों को मिलनी चाहिए.

एग्रोप्रोसेसिंग किसानों की मालीबदहाली दूर करने का आसान व कारगर उपाय है, लेकिन इस के बावजूद खेती से जुड़े कामधंधों की पूरी पहुंच बहुत से गांवों तक नहीं हो सकी?है. यदि केंद्र व राज्यों की सरकारें किसानों को आसान कर्ज, छूट, ट्रेनिंग व सहूलियतें दें तो किसान गांव में अपनी जमीन पर उपज का प्रसंस्करण करने की इकाई लगा सकते?हैं.

जागरूकता जरूरी

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग बहुत तेजी से उभर रहा है. इस के लिए किसानों में जागरूकता जरूरी है. चौतरफा तरक्की होने से खानेपीने की नईनई चीजें बनाने की बहुत सी मशीनें व तकनीक देश में ही मिलने लगी है, लेकिन ज्यादातर किसानों को उन की जानकारी नहीं है. बहुत से किसान गांव में रह कर खेती से जुड़ा सहायक कामधंधा करना चाहते?हैं, लेकिन वे अपने सपने पूरे नहीं कर पाते. तमाम विदेशी कंपनियां मुनाफा कमा कर बाहर ले जा रही?हैं. किसानों व छोटे कारोबारियों को मशीनों व तकनीकों की जानकारी एक छत के नीचे आसानी से मिलनी चाहिए, ताकि वे खुद अपनी इकाई लगा सकें. इस काम में मदद करने व नई मशीनों आदि की जानकारी मुहैया कराने के लिए सरकार को बेहतर इंतजाम करना चाहिए. यह बात अलग है कि इस मुद्दे पर हमारे ओहदेदारों का खास ध्यान नहीं है. आजकल उद्योगों के लिए कर्ज देने वाली एजेंसियां तो कई हैं, लेकिन नई मशीनों के इस्तेमाल से खेती की उपज की कीमत बढ़ाने के बारे में किसानों को सही जानकारी देने का इंतजाम होना भी जरूरी?है, जिस से किसान अछूते व नए कामधंधों के मैदान में भी उतर सकें.

भारत लाया जाएगा गुलशन कुमार का फरार हत्यारा

म्युजिक बैरन के तौर पर जाने जाने वाले गुलशन कुमार का हत्यारा दाऊद मर्चेंट जल्द ही भारत लाया जाएगा. पिछले कुछ सालों से वह बांग्लादेश में था. अब बांग्लादेश उसे भारत लौटाने की प्रक्रिया शुरू करने जा रहा है. गौरतलब है कि 12 अगस्त 1997 में मुंबई के अंधेरी स्थित जीतेश्वर महादेव के मंदिर में पूजा के लिए गए गुलशन कुमार की हत्या कर दी गयी थी. आरोप लगा कि इस हत्या में नदीम-श्रावण संगीतकार जोड़ी के नदीम सैफ का हाथ है. गौरतलब है कि गुलशन कुमार नदीम-श्रवण संगीतकार जोड़ी के संरक्षक माने जाते थे.

गुलशन कुमार की हत्याकांड की जांच कर रही मुंबई पुलिस का मानना था कि कैसेट किंग गुलशन कुमार की हत्या के लिए नदीम ने दाऊद इब्राहिम की मदद ली थी. दाऊद के शार्प शूटर और उसके हाथी अब्दुल रशीद ने गुलशन कुमार पर मंदिर के बाहर गोली चला कर हत्या की थी. गौरतलब है कि गुलशन कुमार की हत्या में नदीम सैफ का नाम आने के बाद वह 2000 से लंदन में निर्वासित जीवन जीने लगा. हत्या का मामला चलाने के लिए भारत ने उसके प्रत्यार्पण के लिए बहुत हाथ-पांव मारा. लेकिन सफलता नहीं मिली, क्योंकि ब्रिटेन की हाई कोर्ट ने नदीम के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा था कि नदीम पर हत्या व हत्या के षडयंत्र में शामिल होने का आरोप नेक इरादे से नहीं लगाए गए हैं. इस तरह नदीम के प्रत्यापर्ण का मामला खारिज हो गया.

इधर मुंबई अदालत में भी पुलिस इस हत्या में नदीम के शामिल होने के आरोप को साबित करने में नाकाम रही. क्योंकि हत्या के समय नदीम लंदन में था. मुंबई की एक सत्र अदालत ने 2002 में गुलशन कुमार की हत्या में शामिल 19 संदिग्ध लोगों में केवल एक को दोषी पाया और वह दाऊद मर्चेंट था. जाहिर है नदीम पर मामला रद्द हो गया. हालांकि इस मामले में नदीम की गिरफ्तारी के वारंट को कभी वापस नहीं लिया गया. इधर दाऊद मार्चेंट पर हत्या का मुकदमा चला. पता चला कि इस हत्या में दाऊद इब्राहिम का हाथ था. गुलशन कुमार की कैसेट कंपनी टी सीरीज की सफलता को देखकर दाऊद इब्राहिम ने एक बड़े रकम की मांग की थ. वह रकम नहीं दिए जाने के कारण गुलशन कुमार की हत्या हुई. इस हत्या के लिए 2002 में दाऊद मर्चेंट को हत्या का दोषी माना और उसे आजीवन कैद की सजा सुनायी गयी थी. लेकिन 2009 में उसे उसके परिवार के किसी बीमार सदस्य को देखने के लिए 14 दिन के पेरौल पर इस शर्त पर छोड़ा गया कि वह हर रोज थाने में हाजिरी देगा. लगातार सात दिनों तक दाऊद मर्चेंट ने थाने में हाजिरी दी, लेकिन इसके बाद उसका कुछ पता नहीं चला. जांच के एक हफ्ता बाद खुफिया पुलिस को पता चला कि वह बांग्लादेश भाग गया है.

बहरहाल, बांग्लादेश में ब्राह्मणबेडिया इलाके से अवैध रूप से सीमा लांघने के जुर्म में 28 मई 2009 को वह गिरफ्तार कर लिया गया. उसके पास से बांग्लादेश पुलिस को बड़े पैमाने पर नकली भारतीय नोट भी पाए गए थे. बांग्लादेश अदालत में उसे सजा हुई. 2 दिसंबर 2014 को जमानत पर जैसे ही रिहा हुआ कि उसे फिर गिरफ्तार कर लिया. दरअसल, दाऊद मार्चेंट के आतंकी कनेक्शन की जांच करने के मकसद से बांग्लादेश कानून के तहत उसे वापस गिरफ्तार किया गया था. तबसे वह बांग्लादेश के गाजीपुर जिला के करीमपुर जेल में ही है.

लेकिन हाल ही में बांग्लादेश के गृहमंत्री असादुज्जमान खान कमाल ने घोषणा कि है कि बांग्लादेश सरकार ने वहां के जेलों में बंद तमाम ऐसे विदेशी कैदियों को उनसे संबंधित देशों को लौटा देने का फैसला किया है, जिनकी बांग्लादेश में सजा की अवधि पूरी हो गयी है. इसके लिए संबंधित दूतावास से बांग्लादेश का गृह मंत्रालय संपर्क कर रहा है. इस आधार पर शेख हसीना सरकार ने भारत को भी इत्तिला दी है कि दाऊद मर्चेंट को भी वह भारत को सौंपना चाहता है. इससे पहले असम के अलगाववादी संगठन के अनूप चेटिया को बांग्लादेश लौटा चुका है.

पाक के लिए गूगल ने पेश किया यूट्यूब का नया वर्जन

पाकिस्तान ने आखिरकार यूट्यूब पर लगाया हुआ बैन हटा दिया है. ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि गूगल ने खास पाकिस्तान के लिए यूट्यूब का एक अलग वर्जन लॉन्च किया है. यूट्यूब के इस संस्करण में पोस्ट किए जाने वाले वीडियो कन्टेंट को पाकिस्तान की सरकारी संस्थाएं फिल्टर कर पाएंगी.

पाकिस्तान में यूट्यूब पर यह प्रतिबंध इस्लाम का कथित अपमान करने वाला वीडियो पोस्ट होने के बाद सितम्बर 2012 को लगाया गया था.

पाकिस्तान के टेलिकॉम नियामक का कहना है कि यूट्यूब सेवा पेश करने वाली इंटरनेट कंपनी गूगल ने पाकिस्तान के लिए इसका विशेष वर्जन लॉन्च किया है, इसलिए अब यूट्यूब पर प्रतिबंध की कोई जरूरत नहीं है.

अब आसानी से बुक होगा ट्रेन का तत्काल टिकट

रेल यात्रियों के लिए अब अच्छी खबर है. यात्री अब आराम से तत्काल टिकट बुक करा पाएंगे. आईआरसीटीसी ने इसके लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं. जिसमें सॉफ्टवेयर से ऑटोमैटिक टिकट बुकिंग को रोकने के लिए निगम ने अपनी वेबसाइट को अपग्रेड किया है.

रेल मंत्रालय ने इस पहल के तहत वेबसाइट पर लॉग इन के बाद 35 सेकंड तक की वेटिंग अनिवार्य कर दी है. जिसका मतलब है कि लॉग इन करने के 35 सेकंड के बाद ही तत्काल टिकट की बुकिंग हो पाएगी. अब कोई भी आईआरसीटीसी की वेबसाइट पर लॉग इन कर तुरंत तत्काल टिकट नहीं बुक कर पाएगा.

आईआरसीटीसी के मुताबिक नए सिस्टम से पहले की तुलना में ज्यादा स्पीड से टिकट बुक कराए जा सकते हैं. अब हर मिनट 2000 की जगह 15000 टिकटों की बुकिंग हो सकती है.

रेलवे विभाग का कहना है कि नए सिक्युरिटी फीचर के आने के बाद आईआरसीटीसी की वेबसाइट से टिकटों की ब्लैक मार्केटिंग पर रोक लगेगी. 5 नए सर्वरों की मदद से वेबसाइट की मेमोरी 12 टैराबाइट बढ़ाई गई है. सर्वर कैपेसिटी बढ़ने से एक साथ 1 लाख 20 हजार लोग वेबसाइट पर लॉग इन कर सकते हैं.

नरेंद्र मोदी की भाजपा

दिल्ली और बिहार विधानसभाओं के चुनावों में शर्मनाक हार और पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश वअन्य कई राज्यों की पंचायतों के चुनावों में मिली हार के बाद भारतीय जनता पार्टी और उस के सिरमौर नरेंद्र मोदी अपना रवैया बदलेंगे और देश को भगवाई तिकोने झंडे के नीचे लाने की जगह उस विकास के लिए काम करेंगे जिस की हर सांस में वे चर्चा करते रहते हैं. भारतीय जनता पार्टी असल में उन महापंडितों की तरह है जो हर सांस में सर्व कल्याण भव: तो कहते हैं पर जिस के साथ गलत या बुरा या परेशानी हो रही हो, उसे सहायता देने की जगह उस से पिछले जन्म का फल मान कर सह लेने को कहते हैं और अगले जन्म में सुख पाने के लिए साधुसंतों की सेवा में लगे रहने का आदेश देते हैं.

नरेंद्र मोदी चाह कर भी इस तरह की भाषा से ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं. यह उन के राजनीतिक, वैचारिक डीएनए का हिस्सा है और चाहे हार हो या जीत वे इस से उबर नहीं सकते. 2002 में गुजरात के दंगों से 2004 में कांगे्रस एक बार फिर सत्ता में आ गई पर 2013 तक नरेंद्र मोदी को कोई अफसोस न रहा. उन्होंने मुसलमानों की मौतों की तुलना कुत्तों की मौतों से की, वैसी ही भाषा का इस्तेमाल उन के साथी मंत्री वी के सिंह और उन की पार्टी (भाजपा) के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कर रहे हैं. परेशानी यह होती है कि जब आप बहुत लंबे समय तक एक ही सोच, एक ही तरह के कामों, एक ही तरह के भाषणों के आदी हो जाते हैं तो आप को लगने लगता है कि यही सच है और अंतिम सच है. नरेंद्र मोदी विकास की बातें चाहे जितनी कर लें पर उस की मशीनरी वे कहां से जुटाएंगे.

उन के पास वे लोग कहां हैं जो लंबी छलांग के लिए योजनाएं बना सकें. विकास कोई छत पर रखा पानी का टैंक नहीं कि नल खोला और पानी भर गया. उस के लिए हजारों नीतियां बनानी होंगी, लाखों लोगों को काम करने का तौरतरीका बदलना होगा, सैकड़ों को नई जिम्मेदारियां देनी होंगी. शाहजहां ने जब शाहजहांनाबाद यानी दिल्ली बसाई तब 600 साल पहले यमुना से करनाल से दिल्ली तक ऊंचाई पर नहर बनवाई ताकि उस के बनवाए शहर में पानी आए. नरेंद्र मोदी की ऐसी वैसी नहर के दर्शन नहीं रहे.

कुछ 2-4 कानून बदलने से विकास नहीं आ जाता. भले ही आप हर रोज 8 घंटे की जगह 24 घंटे काम कर लें, विकास नहीं आएगा. यह तो करोड़ों की देन है और डेढ़ साल में हम अढ़ाई कोस भी नहीं चले हैं. हम तो गाय की पूंछ, संस्कृत, वंदेमातरम, योगा के पुरातन ढोल को बजा रहे हैं जिस का विकास से लेनादेना नहीं है. बिहार की ताजा हार नरेंद्र मोदी उसी तरह लेंगे जैसे राहुल गांधी 2012 के बाद कांग्रेस के गिरते ग्राफ को ले रहे थे. भ्रष्ट देश की मिट्टी पलीद कर दी तब उन्होंने. अब कट्टरवादी, अहंकारवादी लेप लग गया है. यह दिल्ली, बिहार की हारों से नहीं उतरेगा क्योंकि इस लेप के नीचे तो है ही कुछ नहीं. नरेंद्र मोदी और उन की पार्टी भगवाई करिश्मे से कहीं कुछ करवा जाए तो बात दूसरी, वरना इस देश में जो होगा वह जनता की अपनी मेहनत से होगा, मंचों या मंत्रों से नहीं.

आईब्रोज आपके चेहरे को देंगी एकदम नया लुक

चेहरे को आकर्षक बनाने में आईब्रोज की मुख्य भूमिका होती है. अगर आईब्रोज की सही तरीके से ग्रूमिंग न हो या उन का शेप सही न हो, तो चेहरे की सुंदरता कम हो जाती है. वैसे हर इनसान की आईब्रोज आमतौर पर उस के चेहरे की बनावट के अनुसार होती हैं. जैसे किसी की मोटी तो किसी की पतली आईब्रोज की शेप ठीक कराने के लिए अधिकतर महिलाएं पार्लर जाती हैं. पर वहां सही शेप न बनने पर सिर्फ चेहरा ही नहीं चेहरे के भाव भी बदल जाते हैं, इसलिए हमेशा अच्छे ब्यूटीपार्लर में ही जा कर आईब्रोज की ग्रूमिंग करानी चाहिए.

इस के बारे में ओरिफ्लेम की ब्यूटी ऐंड मेकअप ऐक्सपर्ट आकृति कोचर बताती हैं कि कोई भी मेकअप ट्रैंड फिल्मों से आता है. पहले हीरोइनें पतली आईब्रोज रखा करती थीं, इसलिए उस का ट्रैंड चला. अभी बुशी आईब्रोज का फैशन पिछले कुछ सालों से चल रहा है. मेकअप में आईब्रोज का सही आकार आप की उम्र को 5 साल तक कम कर सकता है और आईब्रोज को वैसे तो आर्क शेप में होनी चाहिए पर वह शेप भी हर महिला के चेहरे के अनुसार अलगअलग रखा जाता है. जैसे अभिनेत्री ऐश्वर्या राय बच्चन का चेहरा बहुत शार्प है, इसलिए उन पर पारंपरिक हाई आईब्रोज वाला आर्क शेप अच्छा लगता है, तो अभिनेत्री काजोल की आईब्रोज जुड़ी हुई हैं पर वे उन की आंखों की खूबसूरती बढ़ाती हैं. कुल मिला कर बात यही है कि चेहरे के अनुरूप सही तरीके से ग्रूमिंग की गई आईब्रोज हर किसी के फीचर को उभारती हैं और नया लुक देती हैं. फिर चाहे वे रानी मुखर्जी हों, कैटरीना या दीपिका. सब की आईब्रोज उन के चेहरे को सुंदर बनाती हैं.

आइए जानते हैं कि किस चेहरे पर कैसी आईब्रोज फबती हैं:

– ओवल चेहरे पर उभरी हुई आईब्रोज अच्छी लगती हैं. बौलीवुड अभिनेत्रियां आमतौर पर इसी तरह की आईब्रोज बनवाती हैं. ऐसी आईब्रोज का अंतिम हिस्सा कान की तरफ नीचे मुड़ना चाहिए.

– गोल चेहरा हो तो ऊंची आईब्रोज बनवाएं. बीच में ज्यादा उभार हो.

– वर्गाकार चेहरे पर भी आईब्रोज ऊंची रखनी चाहिए और उन का ऐंगल शार्प होना चाहिए.

– चौकोर चेहरे पर आईब्रोज चौड़ी रखें. इस के अलावा हलकी गोलाई ऐसे चेहरे पर अच्छी लगती है.

– हार्ट शेप चेहरा होने पर राउंड शेप में आईब्रोज बनवाएं. कर्व बेहद हलका दें. इस से चेहरे की खूबसूरती बढ़ेगी.

– आईब्रोज को अधिक नुकीला न बनवाएं. आईब्रोज हमेशा आंखों से थोड़ी लंबी होनी चाहिए. अगर नाक बड़ी और चौड़ी है, तो दोनों आईब्रोज के बीच अधिक दूरी नहीं रखनी चाहिए. दोनों आईब्रोज के बीच की दूरी दोनों आंखों के बीच की दूरी के बराबर होनी चाहिए.

– सही आईब्रोज से चेहरे पर चमक आती है. 30 से 40 साल तक की उम्र में आईब्रोज अच्छी रहती हैं, लेकिन 50-60 की उम्र में त्वचा ढीली हो जाती है तो आईब्रोज कम होने लगती हैं. ऐसे में ब्लैक या डार्क ब्राउन आईशैडो या आईब्रो पैंसिल का प्रयोग करना चाहिए.

आकृति आगे बताती हैं कि आईब्रो पैंसिल के स्ट्रोक, आईब्रोज के हेयर के हिसाब से धीरेधीरे करने चाहिए. सैंटर से हेयर ग्रो की तरफ हलके हाथों से ताकि आप का लुक नैचुरल लगे. कई बार आईब्रोज कम होने पर महिलाएं अधिक चिंतित होती हैं तो आर्टिफिशियल आईब्रोज लगवाने के लिए कौस्मैटिक सर्जन के पास जाती हैं. ऐसा करें, लेकिन अच्छे कौस्मैटिक सर्जन से ही आईब्रोज लगवाएं. इस के अलावा आईब्रोज पर टैटू भी किया जाता है, जो परमानैंट होता है. टैटू के द्वारा इस में कलर भर दिया जाता है, जो खराब नहीं होता. इस से अलग एक बात यह है कि कैस्टर औयल लगाने से आइब्रोज अच्छी निकलती हैं.

न करें ये गलतियां

कुछ कौमन गलतियां जो महिलाएं अकसर करती हैं, निम्न हैं:

– सही रंग की आईब्रोज न बनाना. आईब्रोज हेयर कलर के अनुरूप होनी चाहिए. अधिक गाढ़ा या हलका रंग ठीक नहीं होता.

– नैचुरल आर्क को बनाए न रखना.

– सही तरह से आईब्रो पैंसिल का प्रयोग न करना.

– आईब्रोज अधिक पतली कर लेना.

– दोनों आईब्रोज को समान रूप से न बनाना.

अपने लुक को कुछ इस तरह बनाएं स्टाइलिश

फिल्म ‘हम आप के हैं कौन’ में माधुरी दीक्षित द्वारा पहने गए डोरी वाले ब्लाउज को लोग आज भी याद करते हैं. उन का वह स्टाइल उस समय हर युवा लड़की के लिए फैशन बन गया था. वैसे भी नए फैशन और स्टाइल के प्रेरणास्रोत हमेशा बौलीवुड सैलिब्रिटीज रहे हैं. युवावर्ग हर दौर में उन का अनुसरण करता रहा है. लेकिन नए युग में स्क्रीन का फैशन ट्रैंड बिलकुल बदल गया है. अब डिफरैंट स्टाइल और बड़ीबड़ी डिजाइनर ड्रैसों का फैशन बौलीवुड में चल निकला है. ऐसे में आप का स्टाइल कैसा हो, इस बारे में बता रही हैं बुजारिया की फाउंडर फैशन डिजाइनर ममता ममता:

स्टाइल में दिखें कुछ ऐसे

फैशन और स्टाइल का यूथ में बड़ा क्रेज रहता है. फैशनेबल के साथ स्टाइलिश दिखने के लिए आप को हर मौसम के ट्रैंड के बारे में पता होना चाहिए. फैशन ऐसी चीज है, जो समय के साथ बदलती रहती है, लेकिन आप का स्टाइल आप का ऐटिट्यूड होता है, जिसे लोग हमेशा याद रखते हैं. आप ने कोई फैशनेबल ड्रैस पहनी है, उस से लोगों को मतलब नहीं होता. मतलब इस से होता है कि आप ने उसे किस स्टाइल में कैरी किया है, जो लोगों की नजरों में आए और आप एक फैशन आइकोन बन जाएं.

सैल्फ स्टाइल से करें कुछ क्रिएटिव

खुद को स्टाइलिश दिखाने के लिए आप सैल्फ स्टाइल बनाएं, अपना खुद का क्रिएट किया हुआ. इस में मिक्स ऐंड मैच का कोई भी कौंसैप्ट नहीं होता है. बस आप को वही कैरी करना होता है, जो आप पर फबे. इस में बस कुछ डिफरैंट चीजें मिला कर अपना एक ऐसा स्टाइल तैयार करना होता है जो अलग और बेहतर हो. बस इस बात का ध्यान रखें कि ड्रैस के कलर्स आप की पर्सनैलिटी से मैच करें.

कालेजगोइंग के लिए

– आप वनपीस लौंग ड्रैस के साथ डैनिम की छोटी फुलस्लीव्स जैकेट पहनें. इस के साथ डैंगलिंग इयररिंग्स व फिंगर रिंग पहनें तो लुक ज्यादा स्टाइलिश लगेगा.

– हैरम पैंट यानी धोती स्टाइल पैंट प्रिंटेड जैकेट के साथ पहनें.

– जींस को फोल्ड कर के कैपरी लुक दे सकती हैं. इस के साथ हाथों में फंकी कड़ों के साथ कानों में स्ट्रैप टौप पहनें.

– पैंट, जींस के साथ विंटर में डैनिम पोलोनैक जैकेट व स्वैटर स्टाइलिश पैटर्न वाला पहनें. इस के साथ ही सर्दी के मौसम में अपने लुक को स्टाइलिश दिखाने के लिए वूलन कैप लगाएं. मार्केट में चैक, स्ट्राइप्स आदि हर तरह की कैप्स मिल रही हैं. आप इन में से जो उपयुक्त लगे उसे चुन सकती हैं.

– लौंग साइड स्लिटेड ड्रैसेज लैगिंग के साथ पहनें और इस के साथ चंकी बैंगल्स और गले में छोटे पैंडेंट वाली चेन पहनें.

– स्टाइलिश दिखना चाहती हैं तो मौसम के अनुसार स्कर्ट का चुनाव करें. गरमियों में घुटनों तक लंबी स्कर्ट को अपना स्टाइल बनाएं. स्कर्ट फौर्मल हो या डेलीवियर इस के अनुसार ही टौप का चुनाव करें. ऐथनिक प्रिंट्स वाली स्कर्ट, ब्लैक या व्हाइट टौप, बांधनी दुपट्टा और कोल्हापुरी फुटवियर पहनें.

औफिसवियर स्टाइलिश ड्रैसेज: औफिस में स्टाइलिश दिखने के लिए कौटन स्कर्ट, पैंट, ट्राउजर के साथ प्लेन शर्ट व टौप, पोंचू व जैकेट पहनें. इन के अलावा वीनैक कौटन की लौंग शर्ट व लैगिंग के साथ कुरती पहनें. इस पर वुडन, प्लास्टिक की ऐक्सैसरीज कैरी करें. वुडन ऐक्सैसरीज हर ड्रैस पर अच्छी लगती हैं. साथ में फ्लैट फुटवियर पहनें.

फौर्मल या बिजनैस ओकेजन के लिए: इन दिनों वैस्टर्न आउटफिट्स में ट्यूलिप पैटर्न की ड्रैसेज काफी पसंद की जा रही हैं. डिफरैंट स्टाइल और पैटर्न फैब्रिक के अलावा बौडी शेप के अनुसार स्कर्ट की शेप भी डिफरैंट होती है. फैंसी टौप और ट्रैंडी ऐक्सैसरीज से इन ड्रैसेज में थोड़ा स्टाइल भी ऐड किया जा सकता है. इसी तरह इन स्कर्ट्स की डिजाइन भी काफी अलग है. कहीं स्ट्रेट फिटिंग के साथ ट्यूलिप टच दिया गया है, तो कहीं हलके घेरे के साथ पैटर्न ऐड किया है. ये लौंग और शौर्ट दोनों ही लैंथ में मौजूद हैं. डैनिम लौंग स्कर्ट के साथ रैड, व्हाइट या ब्लैक टौप अथवा शौर्ट स्कर्ट के साथ विंटर में स्टाकिंस पहनें. डैनिम लुक सदाबहार लुक है और यह सभी पर सूट भी करता है. इस के साथ फंकी ज्वैलरी या हलकी हील वाली बैली अथवा सैंडल आप के लुक को बैस्ट बनाते हैं.

स्कार्फ ऐंड स्टोल: स्कार्फ ऐंड स्टोल का अपना अलग ही फैशन स्टेटमैंट है. आप इन्हें अपने स्टाइल में गले में लपेटें, सिर में या चोटी में बांधें या गले में नौट लगा कर रखें. इन्हें अपनी ड्रैस के लुक के अनुसार कैरी करें. स्टोल और स्कार्फ दोनों आप की ड्रैस को और ज्यादा स्टाइलिश बना देंगे.

फंकी लुक के लिए ऐक्सैसरीज: फंकी लुक के लिए फंकी ऐक्सैसरीज जैसे वुडन, प्लास्टिक, मैटल की बोल्ड ज्वैलरी यूज करें. इस में डिफरैंट स्टाइल में कलरफुल ज्वैलरी भी उपलब्ध है. उसे भी पहन सकती हैं.

ऐलिगैंट लुक के लिए: अगर आप ऐलिगैंट लुक चाहती हैं, तो सिंपलसोबर ज्वैलरी पहनें. इस के लिए पर्ल की ज्वैलरी बहुत अच्छी होती है.

फौर्मल लुक: फौर्मल लुक के लिए ज्यादा ऐक्सैसरीज के बजाय आप अपने हेयरस्टाइल और सिर्फ इयररिंग्स पर फोकस करें. ज्यादा ज्वैलरी आप के लुक को दबा देगी.

पार्टी में दिखें स्टाइलिश: किसी भी पार्टी में अलग दिखने के लिए गौर्जियस फ्लोरलैंथ अनारकली सूट के साथ पोटली पर्स लें. इस से आप की पर्सनैलिटी को परफैक्ट लुक मिलेगा. पोटली पर्स को आप कलाई पर भी लटका सकती हैं. इस पर ऐथनिक ज्वैलरी और हील या फ्लैट फुटवियर पहनें. गौर्जियस गोल्ड लहंगे के साथ हाई कौलर ग्लिटरी शाइनी ब्लाउज पहनें. इस पर कानों में बड़े इयररिंग्स व हाथों में मोटे कड़े पहनें.

स्टाइलिश फुटवियर से बनाएं स्टाइल: आजकल फ्लैट स्लीपर्स में काफी स्टाइलिश वैराइटी मिलती है, जिस में जिकजैक, डोरी, नग आदि लगे होते हैं. हर कलर व डिजाइन में मौजूद इन फुटवियर्स में आधे इंच की हील कम वर्क में भी और अधिक वर्क में भी मिलती है.

किट्टी पार्टी में जाने के लिए आप किटन हील्स फुटवियर पहनें.मैरिज पार्टी में स्टाइलिश दिखने के लिए स्टोन व मोती जड़ा हाईहील वाला फुटवियर पहनें. इस के अलावा स्टिलैटो फुटवियर भी पहन सकती हैं.

 सनग्लासेज से बनाएं स्टाइल मस्त: लुक को स्टाइलिश दिखाने के लिए सनग्लासेज का प्रयोग करें पर उस का अपने फेस की शेप को देख कर ही चुनाव करें. बड़े फेस के लिए आप बड़े फे्रम वाले स्टाइलिश गौगल का प्रयोग करें लेकिन वह इतना भी बड़ा न हो जो आप के चेहरे को पूरा कवर कर ले. मार्केट में गोल फ्रेम, चौकोर फ्रेम, छोटेबड़े हर साइज और कलर के फ्रेम मौजूद हैं. आप अपनी स्किनटोन और फेस के आकार के हिसाब से फ्रेम चुन कर अपने स्टाइल को और बेहतर बना सकती हैं.

स्टाइलिश हैंड बैग से बनाएं स्टाइल डिफरैंट: बैग एक फैशन ऐक्सैसरी है. इसे स्टाइल स्टेटमैंट की तरह इस्तेमाल करें. अलगअलग अवसरों पर अलगअलग बैग कैरी कर के डिफरैंट व स्टाइलिश लुक पाया जा सकता है. आजकल बाजार में विभिन्न अवसरों जैसे मार्केटिंग, आउटिंग आदि के लिए कई तरह के बैग जैसे होबो बैग, ईवनिंग बैग, रिस्टलेट बैग, टोटे बैग, शोल्डर स्ट्रैप बैग, क्लच, बटुआ आदि आसानी से उपलब्ध हैं.

कालेजगोइंग गर्ल्स के लिए स्लिंग बैग काफी स्टाइलिश लगता है. अगर आप इसे साइड में न डाल कर क्रिसक्रौस कैरी करें तो ज्यादा स्टाइलिश लगेगा.

फैशन ट्रैंड में इन सब बातों का पूरा ध्यान रख कर आप भी किसी भी सैलिब्रिटी से कम स्टाइलिश नहीं दिखेंगी.

गंगासागर: मेला गुजर गया, बाकी है अभी गुबार

गंगासागर मेला औपचारिक रूप से समाप्त हो गया है. लेकिन अभी भी मेला स्थल पर मकर संक्रांति का सुरूर बाकी है. पुण्यार्थी और पर्यटकों के अलावा साधुओं का जमघट अभी भी लगा हुआ है. इस बीच खत्म हुआ मेला अपने पीछे गंदगी का बड़ा अंबार छोड़ गया है. हफ्ते भर चले इस मेले के कारण यहां जमी गंदगी बंगाल की खाड़ी और हुगली नदी के संगम के साथ इसके आसपास के पूरे इलाके के पर्यावरण के लिए खतरा बन गयी है. दूर-दूर तक मल और अन्य कचरे की बदबू से टिकना मुहाल हो गया है. यह हालत तब है जब इस साल गंगासागर मेले में अनुमान के ‍लिहाज से भीड़ कम जुटी है. अब जब गंगासागर की समाप्ति की सरकारी तौर पर घोषणा हो चुकी है, तब यहां साफ-सफाई का काम धीरे-सुस्ते ही चलेगा.

मेला प्रबंधन का जिम्मा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने कुछ कैबिनेट मंत्रियों को सौंपा था. पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी, युवा मामलों के मंत्री अरूप चौधुरी और बिजली मंत्री मनीश गुप्ता को सौंपा था. मेला समाप्ति की घोषणा के साथ ये तमाम मंत्री गंगासागर मेले से रवाना हो गए. पुलिस प्रशासन से लेकर विभाग के उच्चाधिकारी मेला स्थल को उसके अपने हाल में छोड़ कर कोलकाता लौट आए. भारत सेवाश्रम सहित सौ से अधिक स्वयंसेवी संगठन यहां प्रबंधन में जुटे थे. वे सब भी जा चुके हैं. गंगोत्री से लेकर गंगासागर तक की सफाई का जिम्मा उठानेवाले गायत्री परिवार के किसी नुमाइंदे का पता नहीं. 

फिलहाल मेला स्थल का जिम्मा डायमंड हार्बर नगरपालिका का है. छिटपुट तौर पर सफाई का काम नगरपालिका और दक्षिण 24 परगना जिला प्रशसान के साथ मिल कर शुरू किया है. लेकिन इतने बड़े मेला स्थल की साफ-सफाई के लिए उसके पास कार्यबल नहीं है. हालांकि राज्य जनस्वास्थ यांत्रिकी विभाग ने मेला शुरू होने से पहले ही टेंडर बुलाकर मेला स्थल में बिजली, पान और साफ-सफाई का जिम्मा एक कंपनी को दे दिया है.  

मेला शुरू होने से पहले अनुमान के अनुरूप प्रशासन ने अपनी तैयारियों के बड़े-बड़े दावे किए थे. इस साल मेले में लगभग 25 लाख लोगों के शामिल होने का अनुमान था. लेकिन प्रशासन के अनुसार महज 14 लाख लोगों ने संगम स्नान किया. सरकारी तौर पर गंगासागर मेले को निर्मल गंगासागर मेला नाम दिया गया था. लेकिन मेला खत्म होने के बाद इन दावों की कलई पूरी तरह से खुल गयी है. सिर्फ कहने के लिए गंगासागर मेले में साफ-सफाई का पूरा इंतजाम किया गया था. प्रशासन के अनुसार मेला स्थल से लेकर सागर तट तक 30 हजार अस्थायी शौचालय बनाए गए थे. आज इन शौचालयों में गंदगी पसरी पड़ी है.

बताया जा रहा है कि पहले ही इन शौचालयों में पानी की कमी थी. मेला के दौरान तीर्थयात्री प्लास्टिक की बोतलों में सागर का पानी लेकर शौच निपटने को मजबूर थे. और अब जब मेला खत्म हो गया है तो इन्हीं शौचालयों के टूटे दरवाजे से खुले शौच का नजारा आम हो रहा है. मेले के दौरान भी लोग शौचालय में न जाकर कहीं किसी आड़ में ही शौच की जरूरत को निपटा लेते थे.

यह हाल केवल गंगासागर का नहीं है, कोलकाता के बाबूघाट स्थित प्रिंसेप घाट, इडेन और विक्टोरिया मेमोरियल के आसपास से लेकर ब्रिगेड मैदान तक के विभिन्न इलाकों में जहां-तहां शौच से कोलकातावासी आजीज आ चुके हैं. हर साल यह स्थिति गंगासागर मेला शुरू होने से पहले ही बनने लगती है. गौरतलब है कि मेला में शामिल होने के लिए देश के विभिन्न कोने से लोग कोलकाता आते हैं. और आमतौर पर ज्यादातर तीर्थयात्री कोलकाता के विभिन्न मैदानी इलाके में अपना एकाध दिन गुजर-बसर करके गंगासागर के लिए रवाना होते हैं. इस दौरान इन इलाकों में ऐसी गंदगी फैलाती ही है.

लेकिन इस बार ऐसी गंदगी से निपटने के लिए कैब (सीएबी) यानि क्रिकेट एसोशिएशन औफ बंगाल ने विशेष अभियान चलाया था. कैब के ग्राउंड्स कमिटी के चेयरमैन देवव्रत दास का कहना है कि पूरे इलाके में अपने खर्च पर कैब ने सुरक्षा कर्मियों को गश्त पर लगवाया था. इस काम के लिए कैब को 60-70 हजार रु. तक खर्च करने पड़े. इसके अलावा इन इलाकों के थाना क्षेत्र से 20-25 पुलिस कंस्टेबलों को भी गश्त में लगाया गया था. खासतौर पर रात के समय. इसके बाद इडेन के इलाके में गंदगी में कुछ कम जरूर हुई. लेकिन विक्टोरिया, ब्रिगेड इलाके को तीर्थयात्रियों की गंदगी से बचाया नहीं जा सका.

धार्मिक स्थलों में गंदगी भारत की एक बड़ी समस्या है. वैसे ही 12 महीनों में जाने जितने पर्व-त्यौहार हैं, उस लिहाज से गंदगी भी अपार फैलाती है. स्वच्छ भारत अभियान में धार्मिक स्थलों की गंदगी को भी शामिल किया जाना चाहिए था. वैसे गंगा की सफाई को लेकर बड़ा नगाड़ा पीटा गया. पर यह मोटेतौर पर बनारस तक ही केंद्रित है. बताया जाता है कि गंगासागर में केंद्र की गंगा सफाई अभियान का कुछ नजर नहीं आया. इसीसे केंद्र की मंशा जाहिर होती है.

स्टार किड्स होने का एक समय तक मिलता फायदा

फिल्म इंडस्ट्री में न जाने कितने स्टार किड्स आए और पता ही नहीं चला कि कब चले गए. ऐसे कलाकार पहली फिल्म के रिलीज होने पर कुछ महीनों तक चर्चा का विषय बने रहते हैं पर उस के बाद उन्हें  सभी भूल जाते हैं.

सुनील शेट्टी की बेटी आथिया और आदित्य पंचोली के बेटे सूरज की जोड़ी को भी ऐसी ही तारीफें मिली हैं. ऋषि कपूर ने तो दोनों में भविष्य की सुपरस्टार जोड़ी को देख लिया है. लेकिन आथिया को तो कुछ फिल्मों का औफर मिला है पर सूरज के पास कुछ नहीं है. दोनों को सचेत हो जाना चाहिए, क्योंकि पहली फिल्म तो सलमान भाई के कारण मिल गई. अब हर फिल्म में सलमान जैसा स्टार्स लौंचर थोड़े ही होगा.

 

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