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मुझे बौलीवुड ने अभी भी नहीं अपनाया: अदिति

ओमप्रकाश मेहरा की फिल्म ‘दिल्ली 6’ से अपना बौलीवुड डैब्यू करने वाली अदिति राव हैदरी यहां 6 साल पूरे करने के बाद भी यह कहती हैं कि मुझे इंडस्ट्री में अपनापन नहीं लगता, क्योंकि मुझे बौलीवुड ने अभी भी नहीं अपनाया.

अदिति यहां खुद को बाहरी व्यक्ति जैसा महसूस करती हैं, क्योंकि जब वे सोशल मीडिया पर कमैंट करती हैं तो उन के समर्थन में कोई भी आगे नहीं आता. अदिति ने फरहान और अमिताभ बच्चन जैसे कलाकारों के साथ फिल्म ‘वजीर’ में अच्छा काम किया है.

योजनाएं, जो जीवन को बेहतर बनाएं

जीवन की अनिश्चिंतताओं एवं तनाव के बीच हमारी योजनाएं ही हमारे जीवन को सरल, सफल और सुखद बनाने की राह दिखाती हैं. हर व्यक्ति का हर दिन किसी न किसी योजना के तहत ही बीतता है. अचानक घटने वाली घटनाओं को भी यदि प्लानिंग के तहत संभाला जाए तो ही सफलता मिलती है. ऐसे में आने वाले सालों में अपनी प्राथमिकताओं को योजनाबद्ध करना जरूरी है खासकर महिलाओं के लिए प्लानिंग के लिए कई फायदे हैं. लेकिन उन्हें यह तय करना होगा कि जीवन के वे कौन से क्षेत्र हैं जहां उन्हें प्लानिंग की सब से ज्यादा आवश्यकता है. आइए हम इस में आप की मदद करते हैं:

फार्मूला फिट रहने का

हाल ही में हैल्थ और्गेनाइजेशन मैट्रोपोलिस हैल्थकेयर लिमिटेड द्वारा देश के 4 महानगरों दिल्ली, कोलकाता, बैंगलुरु और मुंबई में रहने वाली महिलाओं के बीच किए गए सर्वेक्षण से पता चलता है कि युवा महिलाओं में यूटरस, माउथ कैंसर, डायबिटीज, थायराइड और यूटीआई की बीमारी तेजी से बढ़ रही है. इस बाबत डाक्टर मीता वर्मा, मूलचंद अस्पताल, दिल्ली, बताती हैं कि प्रिजर्वेटिव फूड, नौनऔर्गेनाइज्ड फूड आजकल चलन में है. कार्यालय से थकीहारी आई महिला में जब खाना बनाने की हिम्मत नहीं होती, तो वह इस तरह के भोजन का सहारा लेती है. लेकिन इस से उस का कोलैस्ट्रौल लैवल बढ़ जाता है और वह हारमोनल डिसबैलेंस की शिकार हो जाती है. ऐसा यंग गर्ल्स में ज्यादा देखा जाता है खासकर उन में जो अपने परिवार से दूर रहती हैं, क्योंकि घर पर खाना बनाने का उन में आलस्य ज्यादा होता है. मगर सोचिए थोड़े से आलस्य की वजह से आप एक बड़ी बीमारी का शिकार हो सकती हैं, इसलिए इस वर्ष प्रण करें कि चाहे कुछ भी हो खाना घर का बना ही खाएंगी.

डाक्टर मीता महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े और कई टिप्स देती हैं, जो उन्हें एकदम फिट ऐंड फाइन बना देंगे:

– सर्वाइकल कैंसर भारत में महिलाओं को होने वाली दूसरी सब से बड़ी बीमारी है. मगर अब इस से बचने के लिए वैक्सीन उपलब्ध हैं. यदि आप अनमैरिड हैं तो यह वैक्सीन जरूर लें.

– कामकाजी महिलाओं के लिए सब से जरूरी है वैजाइनल केयर. उन्हें कार्यालय में जौइंट टौयलेट इस्तेमाल करना पड़ता है. ऐसे में यूटीआई का खतरा रहता है, इसलिए वैजाइनल केयर के लिए आदत डालें कि टौयलेट जाने पर हर बार प्यूबिक ऐरिया और वैजाइना को किसी वैजाइनल वाश से साफ करें और वैजाइना को गीला न रखें.

– हमेशा वाटर कंटैंट अच्छा लें. असौर्टेड ड्रिंक्स लेना कम कर दें. साफ पानी का ही सेवन करें. विटामिन सी युक्त पेयपदार्थ लें. इस से इम्यूनिटी भी अच्छी होगी. शरीर को आयरन की भरपूर मात्रा मिले, इस के लिए गुड़ व चने का रोजाना सेवन करें.

फाइनैंशियल प्लानिंग

एचडीएफसी लाइफ द्वारा 2 वर्ष पूर्व किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार महिलाएं जिंदगी के विभिन्न मामलों में यह तय नहीं कर पाती हैं कि उन के लिए क्या उचित रहेगा खासतौर पर जब बात वित्तीय उत्पादों की आती है तो उन्हें इस की बहुत ही कम जानकारी होती है. जबकि हर वर्किंग और नौनवर्किंग महिला में बचत की भावना प्राकृतिक रूप से होती है. लेकिन बचत करने का तरीका सब को पता नहीं होता.

फाइनैंस स्पैशलिस्ट अरविंद सेन के अनुसार संपत्ति का निर्माण करने और वित्तीय रूप से आत्मनिर्भरता के लिए योजना का होना जरूरी है. यदि आप सोचती हैं कि रातोंरात फाइनैंशियली मजबूत हो जाएंगी या फिर एकमुश्त धनराशि बचा कर अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार लेंगी तो यह गलत सोच है. आर्थिक मजबूती के लिए समय लगता है, इसलिए एक निश्चित योजना के तहत समय पर बचत करने में ही समझदारी है. अरविंद बताते हैं कि कई महिलाओं के लिए निवेश एक भारीभरकम शब्द है. निवेश के नाम पर उन्हें अधिक पूंजी और जोखिम का डर सताने लगता है. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है. पुरुषों की तरह ही महिलाएं भी अलगअलग उत्पादों में धन निवेश कर अच्छा मुनाफा कमा सकती हैं.

महिलाओं के लिए सब से बेहतर और सेफ निवेश का रास्ता बताते हुए अरविंद कहते हैं कि आजकल इन्फ्रास्ट्रक्चर बौंड्स लेना फायदे का सौदा है, क्योंकि ये प्रौफिटेबल बौंड्स होते हैं. कंपनी को मुनाफा हो या नुकसान ग्राहक को एक निश्चित दर से जमा राशि पर ब्याज दिया जाता है. अच्छी बात यह है कि यह शौर्ट टर्म इनवैस्टमैंट है, इसलिए कम से कम 5 साल के लिए आप का पैसा सुरक्षित हो जाता है.

2 से 3 होने का प्लान

शादी के बाद हर पतिपत्नी की ख्वाहिश होती है कि उन के एक संतान हो. लेकिन समाज के बदलते ढांचे और मानसिकता ने संतान के सुख को भी नहीं बख्शा. अब लोग शादी भी समय पर नहीं करते. शादी हो भी जाए तो बच्चे की जिम्मेदारी उठाने से हिचकते हैं. महिलाएं भी खुद को गर्भ के दौरान होने वाली तकलीफों को झेलने के लिए मैंटली तैयार नहीं कर पातीं. कुछ तो कैरियर के आगे फैमिली प्लानिंग को वेस्ट औफ टाइम समझती हैं. लेकिन डाक्टर मीता के अनुसार आज की जैनरेशन की सब से बड़ी गलती सही वक्त पर सही काम न करना है. शरीर की कुछ आवश्यकताएं होती हैं, जो शादी से जुड़ी होती हैं. इस के अतिरिक्त हमारे शरीर में हमेशा एक जैसी क्षमता नहीं रहती, इसलिए गर्भधारण समय रहते कर लेना चाहिए. हां, इस के लिए सही प्लानिंग की जरूरत होती है. फैमिली  प्लानिंग के कुछ जरूरी टिप्स:

– यदि आप के एक भी संतान नहीं है और आप की उम्र 30 के ऊपर हो चुकी है, तो बेबी प्लानिंग के बारे में एक बार जरूर सोचें, क्योंकि 30 की उम्र से पहले गर्भधारण सेफ प्रैगनैंसी कहलाता है और इस के बाद की प्रैगनैंसी में कौंप्लिकेशन होते हैं और

कई बार तो संतान पाने के लिए अप्राकृतिक तरीके तक अपनाने पड़ते हैं. – यदि 1 बच्चा है और दूसरी संतान कुछ वक्त बाद चाहती हैं तो डाक्टर की सलाह पर गर्भनिरोधक गोलियां लें. कुछ महिलाएं अपनी मरजी से पिल्स लेनी शुरू कर देती हैं, लेकिन इस से माहवारी का अनियमित होना और चक्कर आने शुरू हो जाते हैं. – 6 माह में एक बार यूटरस माउथ का चैकअप जरूर करवाएं. इस से सर्वाइकल कैंसर होने की संभावना को रोका जा सकता है.

एक रिसर्च के अनुसार विकसित देशों में ऐबनौर्मल डिलिवरी के केस बढ़ते जा रहे हैं, क्योंकि लोग यह तो तय कर लेते हैं कि बच्चा किस साल चाहिए, लेकिन वह सेहतमंद हो इस की प्लानिंग भी सही तरीके से होनी चाहिए. डाक्टर मीता बताती हैं कि बेबी प्लान करने के 2-3 महीने पहले से फौलिक ऐसिड लेना शुरू करें. कोई भी ऐंटीबायोटिक लेने से पहले डाक्टर की सलाह जरूर लें. यह बच्चे के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है.

ब्यूटी मेकओवर प्लानिंग

हर महिला खूबसूरत दिखना चाहती है और इस के लिए तरहतरह के प्रयत्न भी करती है. लेकिन खूबसूरती पाना उतना आसान नहीं कि चुटकी बजाते ही काया पलट हो जाए. यदि ऐसा होता भी है तो ऐसी खूबसूरती को आर्टिफिशियल की श्रेणी में रखा जाता है. ब्यूटीशियन रेनू महेश्वरी कहती हैं कि खूबसूरती को भी एक प्लानिंग के तहत पाया जा सकता है, क्योंकि खूबसूरती का आशय सिर्फ चेहरे की सुंदरता से नहीं होता, बल्कि केश, दांतों और त्वचा की खूबसूरती भी बहुत महत्त्व रखती है.

प्राकृतिक तरीकों और तकनीक के तालमेल से वाकई काया पलट की जा सकती है. आइए जानते हैं कैसे:

– आप के दांतों में गैप है और इस से आप की खूबसूरती प्रभावित होती है. 4 साल भर बाद आप की शादी होने की संभावना है तो यह समय ब्रसेस लगवाने के लिए पर्याप्त है, क्योंकि ब्रसेस लगवाने और हटवाने में 2-3 साल का वक्त लगता है. ऐसे मेंइस साल आप अपने मेकओवर के लिए पहला कदम अपने दांतों पर ब्रसेस लगवा कर उठा सकती हैं.

– लंबे घने केश महिलाओं का गहना होते हैं, लेकिन अगर आप के केश न तो लंबे हैं और न ही घने, तो परेशान न हों, क्योंकि आप हेयर ट्रीटमैंट ले सकती हैं. ब्यूटी के क्षेत्र में बहुत से प्राकृतिक हेयर ट्रीटमैंट आ गए हैं, जो केशों को संवारने में फायदेमंद हैं. इस के अलावा यदि केशों की लैंथ बढ़ाना चाह रही हैं तो 4 वर्ष का समय इस के लिए भरपूर है.

– ब्रैस्ट का आकार ज्यादा हो या कम, बहुत सारी दवाएं बाजार में मनचाहा ब्रैस्ट साइज पाने के लिए उपलब्ध हैं. लेकिन इन के साइडइफैक्ट भी हैं, इसलिए वक्त निकालें और व्यायाम की मदद से ब्रैस्ट को सही आकार दें. इस में वक्त जरूर लगता है, लेकिन इस का कोई साइडइफैक्ट नहीं है.

कैरियर प्लानिंग

प्लानिंग की कड़ी में महिलाओं के लिए एक और बेहद महत्त्वपूर्ण क्षेत्र उन का कैरियर भी आता है. आधुनिकता ने महिलाओं की सोच को काफी प्रभावित किया है. अब कैरियर को भी वे परिवार की तरह ही प्राथमिकता देने लगी हैं. मगर इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि परिवार की जिम्मेदारियों के साथ सफल कैरियर पाने की राह उन के लिए आसान नहीं होती. लेकिन सही वक्त पर लिए गए सही निर्णय काफी हद तक परिवार और कार्यक्षेत्र में कुशल भूमिका निभाने में मदद करते हैं.

– यदि आप की शादी नईनई हुई है तो जाहिर है नए परिवार को समझने में कुछ वक्त लगेगा और उन्हें आप को समझने में. ऐसे में कई बार लड़कियां जौब यह सोच कर छोड़ देती हैं कि एक बार परिवार में सैटल होने के बाद फिर से नौकरी तलाश लेंगी. यह गलत निर्णय है. ऐसा करने पर लगीलगाई नौकरी छोड़ कर घर बैठने का अफसोस तो आप को होगा ही, साथ ही घरेलू माहौल में एक बार रम जाने पर आप का दोबारा नौकरी से मन भी उचट जाएगा.

– महिलाओं के साथ बड़ी समस्या यह होती है कि बेबी प्लान करते ही कैरियर चौपट हो जाता है. लेकिन इस के पीछे न तो बच्चा, न परिवार और न ही कोई और वजह होती, बल्कि महिला खुद इस की वजह होती है. सभी संस्थानों में मैटरनिटी लीव मिलती है. इस लीव के दौरान मां की सेहत भी ठीक हो जाती है और बच्चे की जिम्मेदारी उठाने का अनुभव भी हो जाता है. लेकिन इस दौरान बच्चे और औफिस के लिए समय कैसे निकालना है, यह आप को तय करना होता है. इन योजनाओं के अलावा यदि आप बिजनैस की तरफ रुख करना चाहती हैं या फिर घरेलू महिला से बिजनैसवूमन बनना चाहती हैं तो खुद को आजमाने में कोई बुराई नहीं है. बशर्ते आप को जिस भी उत्पाद का बिजनैस करना हो उस की अच्छी जानकारी हो.

सनी लियोनी लेकर आ रही हैं ‘वन नाइट स्टैंड’

इस बार गरमी का मौसम कुछ ज्यादा ही हौट होगा. वैसे तो गरमी रहेगी ही, सिनेमाघरों के अंदर भी आप के पसीने छूटने वाले हैं, क्योंकि हौट बेबे सनी लियोनी ‘मस्तीजादे’ के बाद अपनी दूसरी फिल्म ‘वन नाइट स्टैंड’ लाने वाली हैं.

अब फिल्म में सनी हैं तो यह निश्चित है कि इस में सैक्स का डबल तड़का जरूर होगा. निर्देशक जैसमीन डिसूजा की इस फिल्म में बीते दिनों की अदाकारा रति अग्निहोत्री के बेटे तनुज विरवानी भी हैं. अब देखना यह है कि पुरानी फिल्मों की तरह सनी की यह फिल्म भी केवल बोल्डनैस के लिए जानी जाएगी या कुछ ऐक्टिंग भी दर्शकों को देखने को मिलेगी.

काजोल फ्रैंडली होने में समय लेतीं हैं: कृति सैनोन

फिल्म ‘हीरोपंती’ से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाली 25 वर्षीय अभिनेत्री कृति सैनोन ने मौडलिंग से कैरियर की शुरुआत की थी. लेकिन बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था, जिसे पूरा करने में साथ दिया उन के मातापिता ने. ‘हीरोपंती’ फिल्म कृति के जीवन का टर्निंग पौइंट थी. इस फिल्म में उन के काम की बहुत तारीफ हुई और कई अवार्ड मिले.

बेहद नम्र और हंसमुख स्वभाव की कृति से बात करना रोचक रहा. पेश हैं, कुछ खास अंश:

फिल्मों में कैसे आना हुआ?
मैं दिल्ली की हूं. मेरे पिता राहुल सैनोन चार्टर्ड अकाउंटैंट हैं. मां गीता सैनोन दिल्ली विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफैसर हैं. मेरी 1 छोटी बहन नूपुर सैनोन है, जो अभी पढ़ रही है. पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं ने मौडलिंग शुरू की. उसी दौरान मुझे दक्षिण की फिल्म में काम करने का मौका मिला. लेकिन हिंदी फिल्मों में काम करने की चाह बनी हुई थी. साउथ फिल्म में काम करते हुए ही मुझे हिंदी फिल्म ‘हीरोपंती’ का औफर मिला.

साजिद नाडियाडवाला के साथ आप का 3 फिल्मों का कौंटै्रक्ट था. ऐसे में दिलवालेफिल्म में काम करने की वजह क्या थी?
मेरा दोनों फिल्मों में काम करने का अनुभव अद्भुत था. निर्णय बहुत जल्दी लिया गया. ‘हीरोपंती’ के दौरान मैं जिस दिन औडिशन के लिए गई उसी दिन फिल्म साइन की. यहां भी निर्देशक रोहित शेट्टी के यहां से फोन आया. मैं उन के औफिस गई. स्क्रिप्ट सुनने के बाद ही मुझे कहानी अच्छी लगी, तो मैं ने हां कह दी और फिर अगले ही दिन से शूटिंग शुरू हो गई. यह बहुत जल्दी हुआ. मुझे कुछ सोचने का मौका ही नहीं मिला. लेकिन जो भी हो रहा था वह सही हो रहा था. साजिद मुझे बच्चे की तरह ट्रीट करते हैं. उन के और मेरे बीच कोई फौर्मैलिटी नहीं. उन्होंने जब ‘दिलवाले’ की बात सुनी तो खुद ही बधाई दे डाली. अपने कैरियर की दूसरी ही फिल्म में इतने बड़े सितारों के साथ काम करना मेरे लिए गर्व की बात थी.

नए कलाकार के रूप में दूसरी फिल्म का मिलना काफी देर बाद रहा. क्या इस का प्रभाव आप के कैरियर पर नहीं पड़ेगा?
‘हीरोपंती’ के बाद कई फिल्मों के औफर आए, लेकिन मुझे काम करना है, इस जल्दबाजी में मैं ने कोई निर्णय नहीं लिया. फिल्म की कहानी मेरे लिए बहुत माने रखती है यानी उस में काम करते हुए मुझे ग्रो करने का मौका मिले. ‘दिलवाले’ भी वैसी ही थी. आगे भी मैं सोचसमझ कर ही काम करूंगी.

परिवार का कितना सहयोग रहता है?
मुझे हमेशा परिवार वाले सहयोग देते हैं. जब मैं ने अभिनय की इच्छा जताई थी, तो उन्होंने मुझे पहले पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी. मैं ने वैसा ही किया.

शाहरुख और काजोल के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
बहुत अच्छा रहा. बड़े कलाकारों के साथ काम करने का मौका मिला. शूट से पहले मैं कई बार शाहरुख से मिल चुकी थी. जब गोवा में शूटिंग चल रही थी तो शाहरुख हमेशा मजाक करते रहते थे. वे अपने कैरियर और फिल्म सैट के बारे में बताते रहते थे. इस से मुझे उन का व्यवहार बड़ा फ्रैंडली लगा, जिस से मेरा काम करना और आसान हो गया. काजोल से मैं पहले कभी नहीं मिली थी. जब मेरा पहला सीन उन के साथ था तो मैं बहुत डरी हुई थी. मुझे याद है मैं अपने संवाद तक भूल गई थी. बहुत नर्वस हो गई थी. काजोल किसी के साथ फ्रैंडली होने में समय लेती हैं. वे रिजर्व रहती हैं. लेकिन धीरेधीरे बातचीत होने से मेरा डर दूर हो गया.

आप का ब्यूटी सीक्रेट क्या है?
सही डाइट, फिटनैस आजकल हर किसी के लिए आवश्यक है. इस के लिए नियमित थोड़ा व्यायाम, दिन में 4-5 बार थोड़ाथोड़ा खाते रहना जरूरी है. वह जमाना गया जब लोग सुबह ही 5-6 परांठे खा लेते थे और फिर पूरा दिन नहीं खाते थे. अब वक्त स्वास्थ्यवर्धक खाना खाने का है. दिन में फल, सूप, कौर्नफ्लैक्स लेती हूं. रात 9 बजे के बाद हैवी खाना नहीं खाती. इस के अलावा मैडिटेशन, पिलेट्स क्रंचेस आदि करती हूं. रोज 3-4 लिटर पानी पीती हूं, सप्ताह में 4 बार बाल धोती हूं. हर 2 महीने बाद ट्रिमिंग कराती हूं, सप्ताह में 1 बार मसाज और हेयर औयलिंग कराती हूं. इस के अलावा 8 घंटे की नींद अवश्य लेती हूं.

इस क्षेत्र में आने वाले युवाओं को क्या संदेश देना चाहती हैं?
मैं कहना चाहती हूं कि वे महत्त्वाकांक्षी बनें पर अगर वह पूरी न हो तो निराश न हों, क्योंकि हताशा से इनसान गलतियां करता है. किसी भी क्षेत्र में जाने से पहले अपनी शिक्षा जरूर पूरी करें ताकि किसी भी परिवेश में तालमेल बैठा सकें.               

बंगाल चुनाव: तृणमूल के किले में सेंध टेढ़ी खीर

प. बंगाल विधानसभा चुनाव की हर स्तर पर तैयारियां शुरू हो गयी है. हालांकि चुनाव की तारीख की अभी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन माना जा रहा है अप्रैल के मध्य तक चुनाव शुरू हो जाएगा. अब देखना ही है कि कितने चरणों में चुनाव होंगे. चुनाव के लिए गठबंधन की सुगबुगाहट शुरू हो गयी है. इसी के साथ तृणमूल कांग्रेस, वामपंथी पार्टियों समेत कांग्रेस और भाजपा की उम्मीदवारी के लिए चयन लॉबिंग शुरू हो गयी है. इस बीच राज्य चुनाव आयोग की भी तैयारियां जोरों पर है. मतदाता सूची में नए मतदाताओं का नाम शामिल करने से लेकर मतदाता पहचानपत्र में संशोधन का काम चल रहा है. वहीं राज्य के दौरान पर आए मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने चुनाव के दौरान गड़बड़ी की आशंका के मद्देनजर राज्य में बड़े पैमाने पर केंद्रीय बल क तैनाती का आश्वासन दिया है.

आयोग निष्पक्ष चुनाव के लिए कटिबद्ध

पिछले चुनाव की तुलना में इस बार के चुनाव में निष्पक्ष और बेखौफ मतदान के लिए मतदाताओं को चुनाव आयोग कुछ विशेष सुविधा मुहैया करा रहा है. किसी इलाके में गड़बड़ी या राजनीतिक पार्टी के नेताओं या कार्यकर्त्ताओं द्वारा के धमकाने-डराने के कारण मतदाता मतदान केंद्र तक नहीं जा पा रहा है तो आयोग पुलिस की गाड़ी भेज कर मतदाता को मतदान केंद्र तक पहुंचाने तक का जिम्मा आयोग उठा रहा है.

इसके अलावा राज्य चुनाव आयोग ने पिछले दिनों समाधान नाम से एक मोबाइल एप्प लांच किया है. इस एप्प के जरिए मतदाताओं को अपने पहचानपत्र से लेकर मतदान केंद्र संबंधित तमाम जानकारी मतदाता आसानी से हासिल कर सकता है. यहां तक कि इस एप्प में मतदान के दिन किसी मतदान केंद्र में किस भी तरह की गड़बड़ी की सूचना चुनाव आयोग को भेजने तक की सुविधा मुहैया करायी गयी है. मतदाता चुनाव आयोग में सीधे अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है. इस एप्प को लांच करते हुए चुनाव आयोग ने भरोसा जताया है कि किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज कराने पर हर हाल में शिकायतकर्ता का परिचय गुप्त रखा जाएगा.

लेकिन राजनीतिक दल चुनाव आयोग के पोर्टल के जरिए शिकायत दर्ज करा सकते हैं. राजनीतिक दल के शिकायत पर 24 घंटे के भीतर और मतदाताओं की शिकायत की 48 घंटे के भतर जांच का काम पूरा किया जाएगा. शिकायतकर्ता अपनी शिकायत के मद्देनजर आयोग द्वारा की गयी कार्रवाई के बारे में पोर्टल जान सकता है.

गौरतलब है कि अपनी तरह का यह पहला एप्प है, जिसे चुनाव आयोग में इस बार पहली बार लांच किया है. इस एप्प के जरिए ैर कोई व्यक्तिगत तौर पर चुनाव पर्यावेक्षण का काम कर सकता है. अप्रैल में प. बंगाल के साथ पांच अन्य राज्य में भी चुनाव होनेवाले हैं. और एनरौयड फोन के इस एप्प क सुविधा पांचों राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिलने जा रहा है.

तृणमूल ने कसी कमर

चुनाव के मद्देनजर तृणमूल कांग्रेस की ओर से पहली जनवरी से तैयारियां शुरू हो गयी हैं. इस बार के चुनाव के मद्देनजर पार्टी की ओर से अलग-अलग हरेक सीट के लिए सम्मेलन बुलाया जा रहा है, इसे विधानसभा सीट आधारित सम्मेलन का नाम दिया गया है. इस सम्मेलन में हरेक सीट के सांसद, विधायक से लेकर स्थानीय निकाय के प्रतिनिधियों, यहां तक कि ग्राम्य पंचायत के प्रधना को भी सम्मेलन में उपस्थित होना अनिवार्य है. हरेक स्तर पर समस्याओं की पड़ताल और समाधान की चर्चा इस सम्मेलन में हो रही है. गौरतलब है कि प. बंगाल में विधानसभा में 294 सीटें हैं. इसके अलावा हरेक जिले के पार्टी प्रमुखों और पार्टी के कार्यकर्त्ताओं के साथ पार्टी आला कमान ममता बनर्जी अलग से बैठक कर रही हैं. जाहिर है ममता बनर्जी इस बार चुनाव की नतीजा पिछली बार की तुलना में कहीं बेहतर देखना चाहती हैं और इसीलिए तमाम सीटों की समस्या और उसके समाधान की विस्तार से चर्चा ही इस तरह के सम्मेलन या बैठक का मकसद नहीं है. असली मकसद अलग-अलग स्तर के जनप्रतिनिधियों को मतदाताओं का जनसंपर्क कराना है. ममता बनर्जी अपने नेताओं और कार्यकत्ताओं को जनसंपर्क बढ़ाने के लिए हैी विशेष जोर दे रही हैं.

तृणमूल कांग्रेस के चाणक्य पूर्व अध्यक्ष मुकुल राय का महत्व एक बार फिर से बढ़ गया है. गौरतलब है कि शारदा कांड में मुकल राय से सीबीआई की पूछताछ के बाद ममता बनर्जी की मुकुल राय के साथ एक दूरी बन गयी थी. पार्टी में भी मुकुल राय का कद छोटा कर दिया गया था. इसके बाद जुबान जंग का भी दौर शुरू हुआ. फिर मुकुल राय की एक अलग पार्टी बनाने की भी चर्चा सुनने में आयी. लेकिन अंतत: एक बार फिर से मुकुल राय का पार्टी में महत्व बढ़ गया है. चुनाव की तैयारी और जीत के लिए रणनीति बनाने का जिम्मा मुकुल राय को ही पूरी से ममता बनर्जी ने सौंप दिया है.

लेकिन शुरूआती तौर पर मुकुल राय के जिम्मे दक्षिण बंगाल के नदिया, बर्दवान, वीरभूम, मालदह और उत्तर 24 परगना जिले हैं. माना जा रहा है कि अगले चरण में मुकुल राय की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाएगी. हो सकता है उत्तर बंगाल का कई मत्वपूर्ण जिले का दायित्व भी उनके कंधों पर डाल दिया जाएगा. इसके अलावा हरेक सीट के लिए उम्मीदवारों के चयन से लेकर कांग्रेस, वामपंथी पार्टियों और भाजपा विरोधी छोटी पाटियों के साथ चुनावी समझौते के लिए बातचीत करने का भी जिम्मा मुकुल राय को ही दिया गया है.

कौन किसके आमने-सामने!

इस बार के चुनाव में यह देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि कौन-कौन-सी पार्टी एक-दूसरे के आमने-समाने खड़े होकर चुनाव लड़ रही है. विधानसभा में कहने को तो माकपा विपक्ष में है. लेकिन सच तो यह है कि पिछले पांच सालों में  राज्य का विधानसभा एक तरह से विरोधी शून्य है. जहां तक राज्य में कांग्रेस का सवाल है तो जाने कबसे वह माइक्रोस्कोपिक हो गयी है. वाममोर्चा का भी फिलहाल कोई भविष्य सुधरने नहीं जा रहा है. 34 साल के शासन में वाममोर्चा ने जितना नाम कमाया था, उसका कहीं अधिक गवां चुका है.

रही बात भाजपा की तो कुछ समय पहले तक यही लग रहा था कि हो सकता है तृणमूल कांग्रेस के तगड़े विपक्ष रूप में भाजपा खड़ी हो जाए. वैसे यह धारणा लोकसभा चुनाव  के दौरान बन थी. लेकिन नतीजे में कुछ खास निकल कर नहीं आया. लोकसभा चुनाव के समय नरेंद्र मोदी के अच्छे दिन के नारे में भाजपा का वोट महज 17 प्रतिशत बढ गया. जहां तक सीटों का सवाल है तो कुल जमा दो सीटें ही हासिल हुई. इससे पहले राज्य के कुछ पौकेट में भाजपा का नामलेवा था. लेकिन तब भी सांसद केवल एक ही था. 2014 में मोदी लहर के बीच केवल मौजूदा लोकसभा में एक और सीट भाजपा के हाथ लगी. गौरतलब है कि 2011 विधानसभा चुनाव में भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी. हां, उपचुनाव में एक सीट मिल गयी. 2006 विधानसभा चुनाव में भी भाजपा को एक भी सीट नहीं मिली थी.

बहरहाल, इतने पर ही केवल प्रदेश भाजपा ही नहीं, केंद्रीय भाजपा भी इतराने लगी. इन्हें लगने लगा कि भाजपा के पैरों को बंगाल में जमीन मिलने ही वाली है. लेकिन हाल के अन्य कुछ राज्यों के विभिन्न चुनावों में मोदी लहर को लगे धक्के के बाद भाजपा में खुद ही सुगबुगाहट होने लगी है कि प. बंगाल विधानसभा चुनाव में पार्टी का कुछ विशेष नहीं बन पाएगा. शायद इसीलिए भाजपा अल्पसंख्यकों का मुद्दा बना कर मालदह का शोर मचा रही है. मामला जितना बड़ा है नहीं, उसे चुनाव की सरगर्मियों के बीच उतना बड़ा बनाया जा रहा है.

दरअसल, यह मामला अफीम की अवैध खेती और बांग्लादेश के रास्ते नकली नोट का जितना है, उतना है और यह पूरे साल भर चलता है. ठीक चुनाव के समय में इतना शोर क्यों? जाहिर है भाजपा इस मुगलते में है कि इससे कुछ चुनावी फायदा मिल जाएगा. राज्य में जिस तरह जमीन का एक कतरा पाने के लिए जितना हाथ-पांव मार रही है, वह इस तरह के मुद्दे को हवा देगी ही. अब अगर राष्ट्रीय न्यूज चैनल की बात की जाए तो चुनाव के समय में बंगाल उनके लिए शुष्क है. कोई मुद्दा है नहीं चर्चा के लिए, क्योंकि मैदान बिल्कुल खाली है. जहां तक ममता बनर्जी का सवाल है तो वह अल्पसंख्यकों की राजनीति चला रही है, इसमें कोई दो राय नहीं. इससे पहले यही काम वाममोर्चा कर रही थी. अब बंगाल का अल्पसंख्यकों को तृणमूल कांग्रेस ने एक हद तक हाईजैक कर लिया है. उसे में मुद्दे जबरन बनाए जा रहे हैं. और न्यूज चैनलों को मालदह जैसी घटना को हवा देने के सिवाल कुछ करते नहीं बन रहा है.

गठबंधन के लिए तोड़-जोड़

जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है कि बंगाल का चुनाव मैदान लगभग खाली है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस इस बार भी चुनाव में छायी रहेगी. बंगाल में भाजपा को फैक्टर नहीं नहीं है इसीलिए बिहार के दिखाए रास्ते पर चल कर महागठबंधन की जरूरत नहीं है. यहां तृणमूल को हराने के लिए विपक्षी पार्टियों में आपसी गठबंधन की चर्चा शुरू हो गयी है. इसके लिए वे तोड़जोड़ भी कर रही हैं. सीताराम येचुरी कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में अपना विचार जाहिर कर चुके हैं. राज्य के माकपा नेता गौतम देव मान ही चुके हैं कि तृणमूल को हटाना वाममोर्चा के फिलहाल वश की बात नहीं. लेकिन अगर बंगाल में वाममोर्चा और कांग्रेस के बीच गठबंधन होता है तो वाममोर्चा को केरल को परेशानी होगी. गौरतलब है कि केरल में भी चुनाव है और वहां कांग्रेस और वाममोर्चा दोनों एक-दूसरे के आमने-सामने हैं.

लेकिन प्रदेश कांग्रेस के ज्यादातर नेता तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन के पक्ष में है. ताकि उनकी कुछ सीटों में इजाफा हो जाए. वहीं दूसरे खामे का मानना है कि तृणमूल कांग्रेस लगातार कांग्रेस को मरघट में पहुंचा रहा है. तृणमूल कार्यकर्त्ताओं के प्रताप के आगे कांग्रेस कार्यकर्त्ताओं को कुछ सुझता नहीं है. लेकिन कांग्रेस आलाकमान की चिंता दूसरी है. उसक नजर 2019 में लोकसभा चुनाव पर है. कांग्रेस आलाकमान चाहती है कि अगले लोकसभा चुनाव में अगर कांग्रेस सरकार बनने के करीब पहुंच जाए तब तृणमूल के बजाए वामपंथियों का समर्थन प्राप्त करना कहीं अधिक सहज होगा. भाजपा बहुत हुआ तो हर राजनीतिक पार्टी का वोट काटेगी. लेकिन सरकार बनाने में इसकी कोई भूमिका नहीं होगी, इतना तय है. कुल मिलाकर तृणमूल कांग्रेस के किले में सेंध लगाना तमाम राजनीतिक पार्टियों के लिए डेढ़ी खीर है.

नए कलाकारों में वह बात नहीं: सुप्रिया पाठक

सुप्रिया की मां दीना पाठक और उन की बड़ी बहन रत्ना पाठक दोनों अभिनय की दुनिया में सक्रिय थीं, लेकिन सुप्रिया ने अभिनय में आने की कभी नहीं सोची थी. वे तो एक डांस टीचर बनना चाहती थीं. पर मां के कहने पर उन्होंने एक नाटक में हिस्सा लिया और अपने अभिनय के लिए वाहवाही पाई. इस के बाद तो उन के अभिनय का सफर शुरू हुआ, जो फिल्म ‘कलयुग’ (1981) से ले कर आज तक यानी फिल्म ‘किस किस को प्यार करूं’ (2015) तक लगातार जारी रहा है. फिल्म ‘बाजार’ की दबीसहमी लड़की जो कंधे झुका कर चलती है, से ले कर फिल्म ‘विजेता’ की दबंग लड़की, जो पुरुषों के इस समाज में बराबरी से चलती है, तक के हर किरदार को बड़ी ही बेबाकी से फिल्मों में जीने वाली और बौलीवुड से ले कर छोटे परदे तक में अपनी अदाकारी का जलवा दिखा चुकीं सुप्रिया पाठक ने एक शो के दौरान अपनी अभिनय यात्रा और जिंदगी के कुछ खास लमहों को हमारे साथ बांटा. यहां पेश हैं, उस के कुछ खास अंश:

काफी लंबे समय के बाद आप छोटे परदे पर आई हैं. दूर रहने का कोई कारण?
यह सच है कि मैं काफी लंबे समय के बाद छोटे परदे पर आई हूं, पर इस के पीछे कोई खास कारण नहीं है. मैं मानती हूं कि डेली सोप यानी रोज आने वाले धारावाहिक को बिना वजह लंबा नहीं खींचना चाहिए. कई शो ऐसे भी हैं जो 7-8 सालों से लगातार चल रहे हैं. मुझे लगता है कि यह उन दर्शकों और कलाकारों के साथ अन्याय है जो इस शो का हिस्सा बने हैं. एक ही कैरेक्टर के रोल में 6-7 साल तक लगातार काम करने से कोई भी कलाकार अपनी वास्तविकता खोने लगता है और दर्शक ऊबने लगते हैं. मुझे उन शोज के लिए जिन को मैं कर रही थी, ऐसा लगने लगा कि ये ज्यादा खींचे जा रहे हैं, इसलिए उन से दूर हो गई. रही बात छोटे परदे की तो मैं उस से दूर नहीं रह सकती क्योंकि वही एक ऐसा माध्यम है जिस के द्वारा मैं अपनी बात कह सकती हूं. यह बहुत से लोगों को आप से जोड़ता है और इस में अपनी प्रतिभा दिखाने के लिए फिल्मों की तुलना में अधिक स्पेस होता है.

आजकल के शो इतने लंबे समय तक क्यों खींचे जाते हैं ?
मैं तो खुद हैरान हूं यह सुन कर कि ‘बालिका वधू’ शो आज भी चल रहा है, इस के लिए उन दर्शकों के धैर्य को तो दाद देनी पड़ेगी जो इसे लगातार इतना प्यार दे रहे हैं. ऐसे शोज के निर्माता कहानी में थोड़ा फेरबदल कर के और कलाकार रिप्लेस कर के अपना शो लंबा खींचते रहते हैं क्योंकि उन्हें विज्ञापन मिलते रहते हैं. लेकिन उन्हें दर्शकों का भी तो ध्यान रखना चाहिए.

अगर आप के सामने छोटा परदा और बड़ा परदा दोनों के एकसाथ औफर आएं तो किसे प्राथमिकता देंगी?
चाहे फिल्म हो या टीवी शो मैं सिर्फ यह देखती हूं कि मेरा रोल कैसा है क्योंकि आज मैं उस मुकाम पर हूं जहां मेरे लिए छोटा या बड़ा परदा अहमियत नहीं रखता. अगर किसी टीवी शो की कहानी और किरदार मुझे पसंद आया तो मैं उस के लिए फिल्म छोड़ सकती हूं.

आज के नए कलाकारों में क्या लंबी रेस के घोड़े बनने जैसी बात पाती हैं?
आजकल जो भी लड़केलड़कियां इस लाइन में आ रहे हैं, वे निश्चित रूप से हार्डवर्किंग हैं, पर उन में काम के प्रति पैशन का अभाव है. उन्हें देख कर लगता है कि वे केवल स्टार बनने को आए हैं. उन का कैरियर शो के चलने पर निर्भर करता है. अगर शो चल गया तो वे स्टार बन जाते हैं और अगर नहीं चला तो दोबारा स्ट्रगल करते हैं. इन कलाकारों में काम के प्रति पैशन सिर्फ शो चलने तक ही रहता है. वे जल्दी से जल्दी पैसा कमाना चाहते हैं और इस के लिए छोटा परदा बड़ा अच्छा माध्यम है क्योंकि हमारे यहां टैलीवीजन को मनीमेकिंग मशीन माना जाता है. इन सभी कलाकारों में केवल एक शो हिट होने के बाद स्टार जैसा ऐटिट्यूड आ जाता है जो इन के भविष्य के लिए सही नहीं होता. ऐसा फिल्मों में नहीं है क्योंकि वहां हर शुक्रवार एक कलाकार जन्म लेता है एक कलाकार मरता है.

आप का कोई सपना बाकी है अभी ?
बहुत से सपने बाकी हैं अभी. कई कलाकारों के साथ काम करना है, तो मैं अभी यह भी सोचती हूं कि मेरा बैस्ट वर्क बाकी है. साथ ही कुछ ऐसा करने की दिली इच्छा है जिस से लोग मुझे याद रखें. वैसे मेरा सपना है कि मैं अपनी बेटी सना के साथ काम करूं. उस ने अभी हाल में ही में फिल्म ‘शानदार’ में शाहिद और पंकज के साथ काम किया है.

पहले की सुप्रिया में और आज की सुप्रिया में क्या फर्क आया है?
बहुत फर्क आया है. आज मैं पहले की अपेक्षा अधिक आत्मविश्वास से भरी हुई हूं और यह बदलाव पंकज से मिलने के बाद आया है. उस के पहले तो मैं ऐसी सुप्रिया पाठक थी जो हर बात से घबराती थी और जो कठिन लगे उस से दूर हो जाती थी. पर अब सब सरल लगता है. और एक बात जो पहले भी थी और आज भी है वह है ऐक्टिंग के प्रति मेरा पैशन. उस में आज भी कोई फर्क नहीं आया है. यही पैशन मैं अपनी बेटी में देखती हूं. मुझे अपनी मां की वे सभी बातें जो वे मुझ से कहती थीं बड़ी बुरी लगती थी. पर मां बनने के बाद वही सब बातें जब मैं अपनी बेटी से कहती हूं तो सोचती हूं कि मां सही कहा करती थीं.

परिवार का माहौल कैसा रहता है ?
आज भी हम सब यानी मैं, पंकज और दोनों बच्चे साथ में अगर मुंबई में हुए तो  दोपहर का और शाम का खाना साथ मिल कर खाते हैं. हमारे यहां मेरे बेटे को छोड़ कर सभी फिल्मों में सक्रिय हैं, तो अपनेअपने किरदारों के बारे में सभी एकदूसरे से डिस्कसन जरूर करते हैं. पर निर्णय सब का अपना होता है. पूरी फैमिली में कभी किसी ने अपनी बात एकदूसरे पर थोपी नहीं है.               

आरोप भी लगा
सुप्रिया पर जयपुर में फिल्म ‘जीना इसी का नाम’ की शूटिंग के दौरान संवेदनहीनता का आरोप लग चुका है. फिल्म का एक दृश्य जयपुर शहर के एमबी हौस्पिटल के ट्रामा वार्ड में फिल्माया गया. लेकिन रील लाइफ की शूटिंग की वजह से उस वक्त रियल लाइफ परेशान होती रही. दरअसल, हौस्पिटल में जब सुप्रिया पाठक शूटिंग करने पहुंचीं, तो लोकेशन को घेर कर खड़े बाउंसर ने नर्सिंग स्टाफ को एक कमरे में बंद कर दिया, जिस कारण अस्पताल के बाहर मरीज स्ट्रेचर पर तड़पते रहे. उन्होंने मरीजों और बीमार लोगों को भी अंदर जाने से काफी देर तक रोके रखा.

फिल्म रिव्यू: जुगनी – अवांछित सेक्स संबंध की कहानी

जुगनी यानी कि महिला जुग्नू. गांवों में रात के अंधेरे में रोशनी बिखेरने वाले छोटे जीव को जुग्नू कहा जाता है. तो दूसरी तरफ यह एक पंजाबी शब्द भी है. पर जब गीत संगीत या कविता का मामला हो तो यह स्प्रिच्युल कविता का प्रतिनिधित्व करता है. मगर फिल्म निर्देशक शेफाली भूषण की फिल्म ‘‘जुगनी’’ इन दोनों अर्थों में बेमानी साबित होती है. निर्देशक शेफाली भूषण के अनुसार फिल्म ‘जुगनी’ एक संगीतमय रोमांटिक फिल्म है. मगर फिल्म में न तो संगीत है और न ही प्रेम कहानी है. एक घिसी पिटी कहानी पर एक भटकी हुई फिल्म है.

फिल्म ‘‘जुगनी’’ एक उभरती महिला संगीतकार विभावरी उर्फ विव्स (सुगंधा गर्ग) को अच्छे संगीत की तलाश है. विभावरी मुंबई में अपने एक मित्र सिद्धार्थ उर्फ सिड (समीर शर्मा) के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती है. दोनो ने फ्लैट कर्ज पर ले रखा है, जिसकी ईएमआई दोनों मिलकर भरते हैं. सिड के साथ सेक्स संबंध स्थापित करने के लिए विभावरी हमेशा कोई न कोई बहाना बनाकर मना कर देती है. विभावरी पंजाब की लोकप्रिय मगर देश के लिए अनजान पंजाबी जुगनी गायिका बीबी स्वरूप (साधना सिंह) की तलाश  पंजाब के एक गांव ले जाती है. जहां विभावरी की मुलाकात बीबी स्वरूप के साथ साथ उनके बेटे मस्ताना (सिद्धांत बहल) से भी होती है. मस्ताना पंजाब में स्थानीय स्तर पर अपनी मां और अपने तबला बजाने वाले दोस्त जीता (चंदन गिल) के साथ मिलकर संगीत के कार्यक्रम देता रहता है. इसके अलावा जीता की बहन प्रीतो (अनिरूताझा) के संग उसकी प्रेम कहानी भी चल रही है. मुंबई से संगीत की तलाश में आयी विभावरी को मस्ताना अपने गांव के किनारे के एक मकान में न सिर्फ रहने के लिए जगह देता है, बल्कि उसे अपने गीत सुनाकर प्रभावित करने का प्रयास करता है. मस्ताना और बीबी स्वरूप से जुगनी गीत और बुल्ले शाह को सुनकर विभावरी, मस्ताना और उसकी मां की आवाज में कई गाने रिकार्ड करती है. मस्ताना का विभावरी के संग ज्यादा समय बिताना प्रीतो को पसंद नहीं.

एक दिन मस्ताना, विभावरी को लेकर अपने गांव से कुछ दूर एक दरगाह पर ले जाता है. वहां भक्ति संगीत भी विभावरी को प्रभावित करता है. दोनों रात में वहीं पर एक मकान में रूकते है. रात में मस्ताना न सिर्फ खाना बनाता है, बल्कि गुलाबो नामक शराब पीता है. विभावरी भी गुलाबो पीती है .रात में नशे के हालात में दोनों के बीच सेक्स संबंध स्थापित हो जाते हैं. विभावरी इसे बहुत सामान्य सी बात मानती है. गाने रिकार्ड करने के बाद विभावरी वापस मुंबई लौटती है.

सिड से उसकी कहा सुनी होती है. विभावरी एक फिल्म में मस्ताना द्वारा स्वरबद्ध गीत को समाहित करती है. इस बीच मस्ताना मुंबई आता है और विभावरी उसे अपने घर में ही रखती है. कई संगीतकारों व फिल्मकारों से मस्ताना की मुलाकात कराती है. पर सिद्धार्थ और मस्ताना के बीच ऐसी बात होती है कि मस्ताना वापस अपने गांव चला जाता है. फिल्म के रिलीज के बाद विभावरी को सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का पुरस्कार मिलता है. फिर विभावरी,सिद्धार्थ का घर छोड़कर अलग रहने चली जाती है. दूसरी तरफ मस्ताना को एक फिल्म निर्माता मुंबई बुलाता है.मस्ताना फोन पर विभावरी को फोन पर यह बताता है. विभावरी खुशी जाहिर करती है और कहती है कि वह एक फिल्म में संगीत देने के लिए हिमाचल प्रदेश जा रही है.

फिल्म अच्छे संगीत की खोज पर है,पर इस फिल्म का संगीत पक्ष भी कमजोर है. सिद्धार्थ और विभावरी, मस्ताना और प्रीतो या मस्ताना और विभावरी की प्रेम कहानी भी उभर कर नही आती है. पटकथा व निर्देशन दोनो बहुत कमजोर है. एक तरफ निर्देशक अच्छे संगीत व पवित्रता व गांव से प्रतिभाओं को खोजने की बात करती है, तो दूसरी तरफ सेक्स संबंध को बहुत आसान सा बताती है. जबकि शहर से दूर गांवों में आज भी सेक्स बहुत बड़ा हौव्वा बना हुआ है. कुछ माह पहले तक रघु राम की पत्नी रही सुगंधा गर्ग ने फिल्म में विभावरी का किरदार निभाया है, पर उनके अभिनय में कोई जान नही है. सिद्धांत बहल और अनुरीता झा भी निराश करती हैं. दर्शक जेब से पैसे डालकर फिल्म देखे, इसकी एक भी वजह नही है.

… तो इसलिए रोमांचित हैं तुलसी कुमार

टी सीरीज के मालिक भूषण कुमार की बहन और मशहूर गायक तुलसी कुमार इन दिनों काफी रोमांच का अनुभव कर रही हैं. उनके रोमांचितहोने की मुख्य वजह यह है कि वह एक बार फिर अभिनेत्री श्रद्धा कपूर को अपनी आवाज देने जा रही हैं. यानी कि तुलसी कुमार द्वारा स्वरबद्ध गीत पर फिल्म ‘‘बागी’’ में श्रद्धा कपूर नृत्य करते और अपने होंठ हिलाते हुए नजर आने वाली हैं.

वैसे श्रद्धा कपूर के लिए आवाज देने का तुलसी कुमार के लिए यह पहला मौका नहीं है. तुलसी कुमार इससे पहले 2013 में रिलीज हो चुकी फिल्म ‘‘आशिकी 2’’ के गीत ‘‘हम मर जाएंगे’’ को गाया था, जिस पर फिल्मी परदे पर श्रद्धा कपूर थिरकते हुए नजर आयी थीं. मगर इस बार तुलसी कुमार के रोमांचित होने की वजह यह है कि तुलसी कुमार को लगता है कि उनकी आवाज श्रद्धा कपूर पर फिट बैठती है और उनकी आवाज श्रद्धा कपूर की पहचान बनती जा रही है.

खुद तुलसी कुमार बताती हैं-‘‘मैं फिल्म ‘बागी’ के गीत को श्रद्धा कपूर के लिए अपनी आवाज देकर रोमांचित हूं.मेरे द्वारा स्वरबद्ध इस गीत पर श्रद्धा कपूर व टाइगर श्राफ रोमांस करेंगे. मुझे आज भी याद है फिल्म ‘आशिकी 2’ के संगीत के रिलीज होने के बाद बहुत अच्छी  प्रतिक्रियाएं मिल रही थी. उसी वक्त लोगों ने ‘हम मर जाएंगे’ गीत को सुनकर कहा था कि श्रद्धा कपूर पर मेरी आवाज एकदम फिट बैठती है. लोगों ने मुझसे कहा था कि मेरी आवाज श्रद्धा कपूर के भोले भाले चेहरे पर एकदम सटीक बैठती है.’’

विद्या बालन ने टेके घुटने, अब लेंगी सिर्फ दो करोड़ रुपये

2012 में प्रदर्शित सुजाय घोष निर्देशित नायिका प्रधान फिल्म ‘‘कहानी’’ को मिली अपार सफलता के बाद विद्या बालन हवा में उड़ने लगी थी. सूत्रों की माने तो विद्या बालन ने फिल्म ‘‘कहानी’’ के लिए एक करोड़ रूपए पारिश्रमिक राशि ली थी. उसके बाद वह सुजाय घोष के साथ तीन फिल्में करेन वाली थीं. मगर ‘कहानी’ को मिली सफलता के बाद विद्या बालन ने सुजाय घोष से पारिश्रमिक राशि के रूप में प्रति फिल्म पांच करोड़ रूपए की मांग कर दी.

इसी बात पर सुजाय घोष और विद्या बालन के बीच अनबन हो गयी थी. सुजाय घोष ने कंगना रनौट और ऐश्वर्या राय बच्चन सहित कई कुछ दूसरी अभिनेत्रियों के साथ ‘‘दुर्गारानी सिंह’’ बनाने का असफल प्रयास किया. उधर विद्या बालन ने शादी कर ली. तथा ‘कहानी’ के बाद विद्या बालन ने ‘घनचक्कर’, ‘‘षादी के साइड इफेक्ट्स’, ‘बाबी जासूस’’, ‘हमारी अधूरी कहानी’ सहित जिन फिल्मों में भी अभिनय किया, वह सभी फिल्में बाक्स आफिस पर मुंह के बल गिरती चली गयी. आज हालात यह हैं कि विद्या बालन के पास एक भी फिल्म नही है. सूत्र दावा कर रहे हैं कि अपने करियर को समाप्त होते देख विद्या बालन ने न सिर्फफिल्म निर्देशक सुजाय घोष के साथ समझौता किया है, बल्कि अब अपनी पारिश्रमिक राशि को पांच करोड़ रूपए से घटाकर दो करोड़ रूपए कर दिया है. विद्या बालन फिल्म के लाभ में 25 प्रतिशत की हिस्सेदार भी होंगी. सूत्रों के अनुसार सुजाय घोष ने भी विद्या बालन के संग अपने सारे गिले शिकवे भूल कर अब अपनी फिल्म ‘‘दुर्गारानी सिंह’’ को विद्या बालन के साथ बनाने का निर्णय ले लिया है.

रितेश के लिए “क्या कूल हैं हम-3” की स्पेशल स्क्रीनिंग

क्या कूल हैं हम-3 22 जनवरी को रिलीज होने के लिए तैयार है. फिल्म का प्रोमोशन भी तगड़े तरीके से जारी है. फिल्म में रितेश देशमुख तो नहीं हैं पर वो क्या कूल हैं हम टीम का काफी अहम हिस्सा हैं. सूत्रों की मानें तो क्या कूल हैं हम के मेकर्स रितेश देशमुख के लिए फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखने की योजना बना रहे हैं. 

आप को बता दें कि क्या कूल हैं हम के पहले के दोनों पार्ट में रितेश ने शानदार भूमिका निभाई थी. क्या कूल हैं हम फ्रेंजाइजी के लिए रितेश लकी चार्म रहे हैं. वो रितेश को हमेशा से ही अपने साथ रखे हुए हैं. फिल्म के तीसरे कड़ी में रितेश के रोल को जबरजस्ती नहीं डाला गया है. स्क्रिप्ट जैसी बनी उसके हिसाब से फिल्म फ्लोर पर आई. मेकर्स चाहते तो डाल सकते थे पर उनकी और रितेश की बांडिंग बुहत ज्यादा स्ट्रांग हैं. फिल्म में होने न होने को लेकर रितेश और मेकर्स भी संतुष्ट हैं. ऑन स्क्रीन तो नहीं लेकिन बिहाइंड द स्क्रीन रितेश के पास क्या कूल हैं हम के तीसरे डोज की जिम्मेदारी है. सिनेमाघरों में आने से पहले रितेश के लिए स्पेशल स्क्रीनिंग यानी रितेश की टीम के लिए वैल्यू और सीनसियरिटी को बताता है.

टीम के सूत्रों से मिली जानकरी के अनुसार क्या कूल हैं के तीसरे सीजन की शूटिंग के दौरान टीम ने रितेश देशमुख को काफी मिस किया. लेकिन जैसे ही उनको पता चला कि बिहाइंड द सीन में रितेश हैं ही तो सभी की बांछे खिल गई.

खैर फिल्म को फ्लोर में आने सप्ताहभर का समय बचा हुआ है. क्या कूल हैं हम-3 की प्रमोशन एक्टिविटी धुंआधार चल रही है. ट्वीटर से लेकर अन्य सोशल मीडिया में क्या कूल हैं हम-3 हिट, ट्वीट, रिट्वीट और शेयर हो रहा है. 26 जनवरी वाले वीक में रिलीज हो रही इस फिल्म ने अभी से कई शो हाउसफुल हो चुके हैं.

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