मवेशियों के मामले में भारत नंबर एक पर है. भारत में बहुत से पशुओं के जरीए दूध, मांस व अंडे वगैरह का बड़े पैमाने पर उत्पादन किया जाता है. करोड़ों पशुपालक किसानों की जिंदगी पशुओं के बल पर चलती है. भौगोलिक वजहों से देश के कई इलाकों में किसानों को हर साल कुदरती आपदाओं का सामना करना पड़ता है, जिस से पशुधन उत्पादन में करोड़ों का नुकसान होता है. कुदरती आपदाओं में बाढ़, भूकंप, तूफान (सुनामी)और सूखा खास हैं. बाढ़ आजादी के बाद देश को कई बार बुरी तरह से तबाह कर चुकी है. देश में अलगअलग बारिश के कारण कई क्षेत्रों में सूखा पड़ जाता है और कई जगहों पर बाढ़ का पानी भर जाता है. बाढ़ की वजह से गाय, भैंस, बकरी, भेड़, सुअर और इनसानों को कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. ऐसे हालात में इनसान अपनी हिफाजत में लगा रहता है और अपने मवेशियों का खयाल नहीं करता, जिस से काफी नुकसान होता है, जबकि बाढ़ के वक्त अपने पशुओं का भी पूरा ध्यान रखना चाहिए.

पशुओं की हिफाजत के लिए आकस्मिक दस्ता : बाढ़ के समय, पशुओं के नुकसान को कम करने के लिए अक्लमंद व फौरन फैसला लेने वाले लोगों का एक आकस्मिक दस्ता बनाना चाहिए, जोकि पशुकल्याण के लिए भलाई का काम कर सके. आकस्मिक दस्ते में पशुचिकित्सक, पशुपोषण विशेषज्ञ, लोकस्वास्थ्य विशेषज्ञ, माहिर स्वैच्छिक कार्यकर्ता और गैरसरकारी संगठनों के सक्रिय लोगों को शामिल करना चाहिए.

विशेषज्ञों के इस दस्ते को समयसमय पर स्थानीय प्रशासन को समस्या हल करने के तरीके सुझाने चाहिए, जिस से कि जानमाल का कम से कम नुकसान हो.

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