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जब उन की आदतें न हों पसंद

बंटी और रोशनी कुछ समय पहले ही दोस्त बने थे. हर मुलाकात के दौरान रोशनी को बंटी का व्यक्तित्व और साथ बहुत भला लगता. हर मुलाकात में बंटी वैलडै्रस्ड दिखता, जिस से रोशनी बहुत प्रभावित होती. धीरेधीरे दोनों का प्रेम परवान चढ़ा और फिर उन के बीच शारीरिक संबंध भी बन गए. बंटी हमेशा रोशनी से स्त्रीपुरुष समानता की बातें करता. अंतत: रोशनी ने बंटी से शादी करने का फैसला कर लिया.

शादी हुए साल भर भी नहीं बीता था कि रोशनी के सामने बंटी की कई बुरी आदतें उजागर होने लगीं. उसे पता चला कि बंटी तो रोज नहाता भी नहीं है और जब नहाता है, तो नहाने के बाद गीले तौलिए को कभी दीवान पर तो कभी सोफे पर फेंक देता है. रात को सोते समय ब्रश भी नहीं करता है. रोशनी को बंटी से ज्यादा फोन करने की भी शिकायत रहने लगी. अब बंटी की स्त्रीपुरुष समानता की बातें भी हवा हो गईं. शादी के तीसरे ही साल दोनों अलग हो गए.

जब भी लव मैरिज की बात होती है तो उस के समर्थन में सब से बड़ा और ठोस तर्क यही दिया जाता है कि इस में दोनों पक्ष यानी लड़कालड़की एकदूसरे को अच्छी तरह जान लेते हैं. लेकिन क्या हकीकत में ऐसा हो पाता है? वास्तव में दूर रह कर यानी अलगअलग रह कर किया जाने वाला प्रेम बनावटी, अधूरा और भ्रमित करने वाला हो सकता है. ऐसा प्रेम करना किसी भी युवा के लिए काफी आसान होता है, क्योंकि इस में उसे अपने व्यक्तित्व का हर पक्ष नहीं दिखाना पड़ता. वह बड़ी आसानी से अपनी बुरी आदतें छिपा सकता है. इस प्रकार के प्रेम में ज्यादातर मुलाकातें पहले से तय होती हैं और घर से बाहर होती हैं, इसलिए दोनों ही पक्षों के पास तैयारी करने और दूसरे को प्रभावित करने का काफी समय होता है.

असली परीक्षा साथ रह कर

घर से बाहर प्रेमीप्रेमिका को एकदूसरे की अच्छी बातें ही नजर आती हैं. विभिन्न समस्याओं के अभाव में कुछ तो नजरिया भी सकारात्मक होता है, तो सामने वाला भी अपना सकारात्मक पक्ष ही पेश करता है. प्रेमी सैंट, पाउडर लगा कर इस तरह घर से निकलता है कि प्रेमिका को पता ही नहीं चल पाता कि वह आज 2 दिन बाद नहाया है. प्रेमिका को यह भी नहीं पता चलता कि उस का प्रेमी अपने अंडरगारमैंट्स रोज बदलता भी है या नहीं. और पिछली मुलाकात में उस के प्रेमी ने जो शानदार ड्रैस पहनी थी वह उसी की थी या किसी दोस्त से मांग कर पहनी थी.

कुल मिला कर लव मैरिज हो या अरेंज्ड मैरिज, किसी भी जोड़े की असली परीक्षा तो साथ रह कर ही होती है. इस लिहाज से विवाह के स्थायित्व की गारंटी को ले कर लव मैरिज या अरेंज्ड मैरिज में ज्यादा अंतर नहीं है, क्योंकि दोनों ही मामलों में साथी का असली रूप तो साथ रह कर ही पता चलता है. दोनों ही तरह की शादियों में यह दावा नहीं किया जा सकता कि जीवनसाथी कैसा निकलेगा?

सामंजस्य भी जरूरी

हम यहां इस बहस में नहीं पड़ रहे कि दोनों तरह की शादियों में कौन सी शादी सही है, लेकिन इतना जरूर कह रहे हैं कि शादी से पहले किया गया प्रेम शादी के बाद किए जाने वाले प्रेम से आसान होता है. शादी के बाद जोड़े को एकदूसरे के बारे में सब पता चल जाता है. एकदूसरे की असलियत खुल जाती है. अच्छीबुरी सब आदतें पता चल जाती हैं. जिंदगी की छोटीबड़ी समस्याएं भी साथ चलने लगती हैं. इस के बाद भी यदि उन में प्रेम बना रहता है तो हम उसे असली प्रेम कह सकते हैं. बेशक कुछ लोग इसे समझौता भी कहते हैं, मगर हर रिश्ते का यह अनिवार्य सच है कि कुछ समझौते किए बिना कोई भी, किसी के भी साथ, लंबे समय तक या जिंदगी भर नहीं रह सकता.

अंत में घर के अंदर और बाहर के इसी प्रेम के बारे में चुनौती सी देतीं ये लाइनें भी गौर करने लायक हैं:

घर से बाहर तो प्रेमी सब बन लेते हैं,
घर से बाहर तो प्यार सब कर लेते हैं,
करो घर में, घरवाली से तो जानें.
दाल खाते वक्त कंकड़ जो मुंह में आ जाए,
या रोटी में बाल लंबा तुम्हें दिख जाए,
तब आई लव यू बोलो तो जानें.

सुषमा ‘दीदी’ के हाथ में डोर

मध्य प्रदेश में भाजपा प्रदेशाध्यक्ष के पद पर दोबारा मौजूदा अध्यक्ष नंदकुमार सिंह चौहान का चुनाव हुआ, तो सभी ने राहत की सांस ली. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी इस कोशिश में कामयाब रहे कि चुनाव की नौबत ही न आए. अगर ऐसा होता, तो तय है कि भाजपा की फूट भी उजागर हो जाती.अध्यक्ष बनने के बाद नंदकुमार सिंह चौहान और शिवराज सिंह चौहान दोनों ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से आशीर्वाद लेते हुए यह दिखाने की कोशिश की कि ‘दीदी’ की रजामंदी भी इस चुनाव में थी. अब इन दोनों की नजर मैहर विधानसभा चुनाव सीट के उपचुनाव पर है. शिवराज सिंह चौहान के पीछे दिल्ली में कौन है, इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने के लिए अब लोगों को कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. दीदी हैं न.

किसानों से ठगी और सरकार को चूना, जानिए कैसे

जयपुर समेत राजस्थान के 12 जिलों में मौसम आधारित फसल बीमा योजना लागू है, जिस के तहत बीमा कंपनी सरकार व किसानों से प्रीमियम ले कर अपना खजाना भर रही है, लेकिन रिस्क कवर देने के नाम पर कंपनी सरकार व किसानों से ठगी कर रही है. दिलचस्प बात तो यह है कि बीमा कंपनी किसानों से ज्यादा सरकार से फायदा उठा रही है. वजह साफ है, सरकार पहले तो बीमा कंपनी को प्रीमियम की आधी राशि देती है और फिर फसल खराब होने पर अरबों रुपए किसानों को मुआवजे के रूप में देती है, जबकि फसल खराब होने पर बीमा कंपनी द्वारा किसानों को क्लेम देना चाहिए.

देखने में आया है कि बीमा कंपनी किसानों को कभीकभार फसल खराब होने का मुआवजा तो देती है, लेकिन यह मुआवजा ऊंट के मुंह में जीरा जितना ही होता है. गौरतलब है कि बीमा कंपनी किसानों को क्लेम दे तो सरकारी खजाने से किसानों को अरबों रुपए मुआवजा देने की नौबत ही न आए. बावजूद इस के मौसम आधारित फसल बीमा योजना की शर्तें भी इतनी जटिल हैं कि यह मामला हर किसी की समझ में नहीं आता और बीमा कंपनी कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से हर साल अरबों रुपए का प्रीमियम चट कर जाती है. यानी हर हालत में बीमा कंपनी रिस्क कवर देने में फिसड्डी है और सरकार को इस की भरपाई करनी पड़ती है. इस में यह भी मजे की बात है कि किसानों को फसल बीमा दिलाने में सरकार के नुमाइंदों की ओर से भी कुछ खास नहीं किया जा रहा है.

यह है हकीकत

रबी या खरीफ फसल में ज्यादा बारिश होने, ओले पड़ने या अकाल पड़ने पर सरकार किसानों को सरकारी खजाने से अरबों रुपए का मुआवजा देती है, जबकि प्राकृतिक आपदा या अकाल की स्थिति में फसल बीमा योजना के तहत किसानों को बीमा क्लेम दिया जाना चाहिए. बीमा क्लेम मिलने के बाद किसानों को किसी मदद या अनुदान की जरूरत ही नहीं रहेगी. ऐसे में महज उन किसानों को ही अनुदान देना होगा, जिन्होंने केसीसी के तहत कर्ज नहीं लिया हुआ है. हालांकि ऐसे किसानों की तादाद अब बहुत कम रह गई है.

इन का होता है बीमा

किसान क्रेडिट कार्ड यानी केसीसी के तहत बैंकों से कर्ज लेने वाले किसानों का खुद ही अनिवार्य फसल बीमा हो जाता है. बीमा प्रीमियम की आधी राशि किसान के खाते से काटी जाती है, जबकि आधी राशि सरकार देती है. यह फसल के अनुसार कमज्यादा हो सकती है. केसीसी के तहत कर्ज लेने वाले किसानों को आमतौर पर बैंक वाले इस बारे में नहीं बताते, जिस के कारण किसान कभी क्लेम की बात भी नहीं करते. वैसे किसान चाहें तो अपनी मर्जी से भी फसल बीमा करा सकते हैं.

दिखावा बने बीमामापन मौसमयंत्र

मौसम आधारित बीमा योजना में बीमा कंपनी कई जगहों पर  आटोमैटिक यानी अपनेआप चलने वाले मौसमयंत्र लगवाती है, जिन की रिपोर्ट के आधार पर क्लेम तय होता है. जयपुर में कुल 637 ग्राम पंचायतें हैं, लेकिन आटोमैटिक मौसमयंत्र महज 35 ही हैं. आज जहां 1 किलोमीटर दायरे में भी बारिश व अकाल का कहर हो सकता है, वहीं यह बीमा कंपनी 40 से 50 किलोमीटर की दूरी का मौसम एक ही यंत्र से रिकार्ड करती है, जो कभी भी सटीक नहीं हो सकता है.

जिंदगी बदलने आ रही हैं नई तकनीकें

अगर आविष्कार नहीं होते, तो दुनिया को बदलने में शायद कुछ सदियां और लगतीं. बिजली और बल्ब के आविष्कार के साथ दुनिया में जो औद्योगिक क्रांति सौ डेढ़ सौ साल पहले शुरू हुई थी, आज वह कंप्यूटर, इंटरनैट जैसी तकनीक के साथ ऐसी क्रांति में बदल गई, जिस से लोगों को हर साल नई तकनीकों का इंतजार रहने लगा है. स्मार्टफोन्स ही नहीं, हर साल कुछ ऐसी चीजें दुनिया में बनाई जाने लगी हैं, जिन से लगता है कि आने वाले समय में मनुष्य को कई ऐसी सुविधाएं हासिल हो जाएंगी जिन के बारे में पहले कभी सोचा तक नहीं गया था.

आगे क्या होने जा रहा है, इस की झलक पिछले 2-3 साल में हुए आविष्कारों से भी मिल जाती है. हाल के वर्षों में कई ऐसे तकनीकी आविष्कार पहली बार सामने आए, जिन्होंने दुनिया को अचंभित कर दिया. जैसे, चीन में एक तकनीकी विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र चुआन वांग ने एक ऐसी इलैक्ट्रिक छतरी का आविष्कार किया जो अपनी ताकतवर हवा के जरिए बारिश की बूंदों को छाते से हटा देती है. इस से लगता है कि उस छतरी को पकड़े व्यक्ति ने बारिश से बचने का कोई अदृश्य इंतजाम कर रखा है. यह आविष्कार इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सदियों से बारिश में गीली हो जाने वाली छतरी का आज तक ऐसा चमत्कारी विकल्प किसी को सूझा नहीं था.

इसी तरह ड्रोन के अविश्वसनीय कारनामे अब तो हमारे देश में भी देखने को मिल रहे हैं. महंगी शादियों में ड्रोन पर लगे कैमरे शादी की पूरी चहलपहल रिकौर्ड कर रहे हैं, तो कुछ फिल्मों में ड्रोन से आसमानी दृश्य फिल्माए जाने लगे हैं. ड्रोन से पिज्जा डिलीवरी और दिल्ली से ले कर अहमदाबाद तक ट्रैफिक आदि की निगरानी में उन की मदद ली जा रही है. क्या किसी ने सोचा था कि हमें तकनीक के ऐसे करिश्मे देखने को मिल पाएंगे. पर यह सब सच हुआ, इसीलिए यह लग रहा है कि इस साल भी कुछ नए तकनीकी आविष्कार हमारी आंखें आश्चर्य से भर देंगे.

लाईफाई का चमत्कार

इंटरनैट से जुड़े लोगों ने अभी तक वाईफाई तकनीक का ही सुख भोगा है, जिस में बिना किसी तार का इस्तेमाल किए एकसाथ कई स्मार्टफोन्स टैबलेट, लैपटौप आदि पर इंटरनैट चलाया जा सकता है. वाईफाई कनैक्शन पर मिलने वाली स्पीड ने इंटरनैट सर्फिंग में काफी इजाफा भी किया है, पर अब इस में एक नया चमत्कार जुड़ने जा रहा है. इस तकनीकी चमत्कार का नाम है लाइट फिडिलिटी यानी लाईफाई.

वैज्ञानिकों का दावा है कि वाईफाई की तुलना में लाईफाई से चलाया जाने वाला इंटरनैट वाईफाई से 200 गुना से भी ज्यादा तेज होगा. इसे इस से समझा जा सकता है कि लाईफाई की मदद से पलक झपकते ही यानी एक सैकंड में 18 फिल्में किसी भी गैजेट पर डाउनलोड की जा सकती हैं. अमेरिका के एस्टोनिया में किए गए एक प्रयोग के दौरान लाईफाई कनैक्शन से प्रति सैकंड 1 जीबी (गीगाबाइट) डाउनलोडिंग की स्पीड हासिल की गई जो पारंपरिक वाईफाई के मुकाबले 100 गुना ज्यादा तेज है.

वाईफाई और लाईफाई में असली फर्क तरंगों का है, जिस से उन के जरिए मिलने वाले डाटा और संकेतों की गति में अंतर आता है. वाईफाई में ट्रांसमिट किया जाने वाला डाटा रेडियो तरंगों के जरिए मिलता है, जबकि लाईफाई का आधार हैं प्रकाश तरंगें. रेडियो तरंगों की सीमाओं के चलते इंटरनैट से डाटा (शब्द, वीडियो आदि) भेजना दिनोदिन मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि अब बहुत ज्यादा डाटा इस्तेमाल होने लगा है. इस कारण इंटरनैट के धीमे पड़ जाने का खतरा पैदा हो गया है. पर लाईफाई तकनीक इस का आसान समाधान हो सकती है, क्योंकि प्रकाश तरंगों का स्पैक्ट्रम रेडियो तरंगों के मुकाबले 10 हजार गुना ज्यादा होता है. हो सकता है कि लाईफाई को मूर्त रूप लेने में अभी कुछ और वक्त लगे, पर इतना तय है कि 2016 में इस कीठोस नींव रख ही दी जाएगी.

बाबू, समझो इशारे

कैसा हो अगर कमीज का कौलर छूने मात्र से आप का स्मार्टफोन चलने लगे या बैडरूम के परदे को हलके से छूने पर कमरे की लाइट्स को धीमा या तेज किया जा सके? अभी ये बातें किसी साइंस फिक्शन जैसा एहसास देती हैं, पर वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की कई टीमें ऐसे आविष्कार दुनिया में लाने पर काम कर रही हैं जो हमारे इशारों को समझ कर सौंपे गए काम निबटा सकेंगी. ऐसे एक ‘प्रोजैक्ट सोली’ पर गूगल में काम चल रहा है जहां मनुष्य की भावभंगिमाओं को पढ़ कर काम करने वाली सैंसर तकनीक को वास्तविकता में ढाला जा रहा है. प्रोजैक्ट सोली के तहत छोटे माइक्रोचिप्स से बना राडार सिस्टम आसपास के क्षेत्रों (2 से 3 फुट की रेंज) में इंसान की उंगलियों के संचालन को पढ़ व समझ लेता है और उन के अनुसार खुद से जुड़े गैजेट्स को काम करने का आदेश देता है. यह तकनीक कारों, खिलौनों, फर्नीचर, घडि़यों और कंप्यूटर गेम्स आदि में आसानी से फिट की जा सकती है.

अमेरिका में प्रोजैक्ट सोली से जुड़ कर कई तरह की चीजें तैयार हो रही हैं, जिन्हें इस साल में लोग बाजार में देख सकेंगे. जैसे धातु से बने धागों से बनी एक ऐसी स्मार्ट जींस इसी साल बाजार में आ जाने की उम्मीद है, जिसे पहनने वाले अपने कई गैजेट्स जींस के सहारे चला सकेंगे.

बिग डाटा से बड़ा क्या

कभी आप ने सोचा है कि फेसबुक, ट्विटर, माईस्पेस, यूट्यूब, जीमेल, गूगल आदि असंख्य वैबसाइट्स के जरिए पूरी दुनिया जो डाटा यानी शब्द, चित्र, संख्याएं, वीडियो आदि यहां से वहां भेज रही है, स्टोर कर रही है, उस का आखिर होता क्या है. इस डाटा को हालांकि एक संज्ञा, ‘बिग डाटा’ दी गई है, पर फिलहाल इस बिग डाटा का बहुत सा हिस्सा असल में व्यर्थ ही सर्वर में जमा होता रहता है और उस से काम की बातें जरा कम ही निकलती हैं.

इस साल एक बड़ी कोशिश बिग डाटा को काटछांट कर उस से दुनिया के लिए नायाब चीजें खोज निकालने की होने वाली है. यह कोशिश कैसे होगी, इस का जवाब जानने से पहले यह जानना उचित होगा कि पहले इस डाटा के भंडार का एक अनुमान लगाया जाए. 2010 में गूगल के कार्यकारी अध्यक्ष एरिक श्मिट ने बताया था कि प्रत्येक 2 दिन में दुनिया करीब 5 ऐक्साबाइट्स के बराबर डाटा पैदा करती है. 2014 आतेआते यह मात्रा दोगुनी हो गई यानी अब हर दिन में उस से भी कई गुना ज्यादा डाटा लोग अपने स्मार्टफोन और कंप्यूटरों के जरिए उत्पन्न कर रहे हैं, जितना 2010 में 2 दिन में जमा होता था.

पहले यह डाटा सिर्फ इंटरनैट के जरिए यहांवहां पहुंचता था, पर अब तो मोबाइल ऐप्स (फोन, टैबलेट आदि) के जरिए भी पैदा हो रहा है. अब कुछ प्रमुख कंप्यूटर कंपनियां जैसे आईबीएम और इंटेल सर्वर से हो कर गुजरने वाले इस डाटा को कुछ ऐसे ताकतवर कंप्यूटर्स में डाल कर संसादित करने वाली हैं, जो फिलहाल कुछ चुनिंदा उद्देश्यों से उन में से उपयोगी सूचनाएं छांट कर अलग कर सकेंगे. खासतौर से आईबीएम ने इस के लिए अपने सुपर कंप्यूटर, वाटसन को तैयार किया है और डाटा से संबंध रखने वाली इंडस्ट्री (जैसे औनलाइन शौपिंग वैबसाइट्स) के लिए विशेष कंप्यूटिंग डिवाइस तैयार की हैं, जो उन के काम की सूचनाएं डाटा के विशाल समुद्र में से खंगाल कर बाहर ला सकेंगी. मसलन, यदि किसी कंपनी को लगता है कि उसे विशेष प्रकार की व्यंजन विधियों की तलाश है और गूगल जैसे सर्च इंजन यह काम नहीं कर पा रहे हैं, तो वह इस के लिए आईबीएम से कह सकती है. तब आईबीएम वाटसन की मदद से ट्विटर से ले कर इंटरनैट तक के छिपे, खुले स्रोत की पड़ताल कर उपयोगी और एकदम सटीक जानकारियां बटोर कर उसे दे सकेगी.

नए मुकाम पर आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस

कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का सपना साइंस बिरादरी अरसे से देख रही है और कहा जा रहा है कि कई मामलों में यह असली बुद्धिमत्ता यानी इंसान के दिमाग को पछाड़ देगी. मुमकिन है कि इस साल हम इस बड़े सपने को अमल में आते हुए देखें, पर यह आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस है क्या? आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के जन्मदाता कहलाने वाले प्रख्यात साइंटिस्ट जौन मैकार्थी के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस साइंस और इंजीनियरिंग का ऐसा मिश्रण है जिस का उद्देश्य इंटैलिजैंट मशीनें बनाना है. ऐसी मशीनों को कोई काम करने के लिए इंसान से आदेश लेने की जरूरत नहीं होती. असल में यह कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता है. यह कंप्यूटर और उस के प्रोग्राम को उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास है जिस के आधार पर मानव मस्तिष्क चलता है.

मोटे तौर पर आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का उद्देश्य यह है कि कंप्यूटर यह चीज खुद तय कर लें कि उन की अगली गतिविधि क्या होगी. इस के लिए कंप्यूटर को अलगअलग परिस्थितियों के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया चुनने के लिए तैयार किया जाता है.इस के पीछे यही कोशिश होती है कि कंप्यूटर मानव की सोचने की प्रक्रिया की नकल कर पाए. इस का उदाहरण है, शतरंज खेलने वाले कंप्यूटर. ये कंप्यूटर प्रोग्राम मानव मस्तिष्क की हर चाल की काट और अपनी अगली चाल सोचने के लिए तैयार किए  गए. अतीत में दुनिया देख चुकी है कि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की ताकत से लैस आईबीएम के सुपर कंप्यूटर डीप ब्लू ने किस तरह दुनिया के नंबर वन शतरंज खिलाड़ी गैरी कास्परोव को हरा दिया था.

पर अब दुनिया आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का कौन सा नया करिश्मा देखने जा रही है, इस के 2 या 3 चमत्कार होने की उम्मीद है. जैसे, कंपनी माइक्रोसौफ्ट आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस से लैस मशीन को स्काइप ट्रांसलेटर के साथ जोड़ कर एक प्रयोग करने जा रही है. इस प्रयोग के तहत यह मशीन किसी एक भाषा की बातचीत के लहजे और भाव को समझते हुए रियल टाइम में दूसरी भाषा में उसी लहजे और भाव के साथ पेश करेगी. यह मशीन न केवल संवाद के टोन (लहजे) को पकड़ सकेगी, बल्कि उसी दक्षता के साथ उसे दूसरी (अनुवादित) भाषा में सुनाएगी. आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का एक अन्य प्रयोग एक कंप्यूटर प्रोग्राम ईयुजीन गू्रट्समैन के साथ करने की योजना है जिस में यह दिमाग चकरा देने वाले करिश्मे कर सकता है. असल में यह कंप्यूटर अपनी बेमिसाल नकली बुद्धिमत्ता से ठीक उसी तरह इंसान को मूर्ख बनाने की कोशिश करेगा, जैसा कि अकसर ठग और जालसाज किया करते हैं. माना जा रहा है कि जिस दिन आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस से लैस कंप्यूटर इंसान को उल्लू बनाने में कामयाब हो गया, उस दिन बुद्धिमत्ता पर हमारी बादशाहत खत्म हो जाएगी और एक दिन दुनिया पर मशीनों का राज कायम हो जाएगा.

तीसरा प्रयोग गूगल के डेमिस हस्साबिस करने वाले हैं, जिस से आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का भविष्य तय हो सकता है. वे असल में अपनी मशीनों से इंटैलिजैंस की पहेली को हल करने की कोशिश करने वाले हैं. उन की बेताबी यह पता लगाने की है कि क्या सिलीकौन जैसे तत्त्व और कंप्यूटर कोडों के बीच बुद्धिमत्ता पैदा की जा सकती है? अगर यह पहेली या समस्या सुलझ गई, तो समझिए कि यह साल अगले 20-40 वर्ष में साइंस की दिशा बदलने वाले साल के रूप में दर्ज हो जाएगा

क्या आपने पढ़ी 2016 की 5 अहम भविष्यवाणियां

2016 में तकनीक के क्षेत्र में क्याक्या परितर्वन हो सकते हैं, इसे ले कर कई महारथी कंपनियां भी अपनेअपने दावं खेल रही हैं. जैसे, इस बारे में कुछ अंदाजा, कंप्यूटर कंपनी आईबीएम ने भी लगाया है. आईबीएम के अनुसार, 2016 में 5 ऐसे क्रांतिकारी आविष्कार सामने आएंगे जो हमारी जिंदगी बदल सकते हैं, ये हैं :

खुद बनाएंगे बिजली

दुनिया के हर मुल्क में बिजली की खपत सिर्फ आबादी की वजह से नहीं बढ़ रही है, बल्कि बिजली से चलने वाले उपकरणों पर बढ़ती हमारी निर्भरता के कारण भी बिजली के इस्तेमाल में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है. उत्पादन लागत बढ़ने की वजह से बिजली महंगी भी होती जा रही है. यही वजह है कि अब वैज्ञानिक और उद्योगपति उन तकनीकों के बारे में विचार करने लगे हैं, जिन से लोग अपने घर में ही बिजली बना सकें. सौर ऊर्जा इन में से एक है, पर बादल छाए रहने या फिर बारिश वाले दिनों में बिजली के लिए सूरज पर निर्भर नहीं रहा जा सकता.

इस का एक उपाय भारत में एक अरबपति उद्योगपति मनोज भार्गव ने सुझाया है. उन की कंपनी ने 15-20 हजार रुपए की कीमत वाली ऐसी साइकिल तैयार करवाई है, जिसे हर दिन एक घंटे चला कर एक छोटा परिवार अपनी कुछ जरूरतों के लिए खुद बिजली बना सकता है. हालांकि वैज्ञानिक इस से भी बड़ा करिश्मा करने की सोच रहे हैं. जैसे साइकिल के अलावा रोज पहने जाने वाले जूतों और घर में पाइप से हो कर आने वाले पानी में ऐसी तकनीक लगा दी जाए कि उन से बिजली बनने लगे. आईबीएम के अनुसार इस साल ऐसी तकनीकें लोगों के सामने आएंगी.

पासवर्ड से छुटकारा

कंप्यूटर, मोबाइल, क्रैडिट कार्ड, औनलाइन शौपिंग की वैबसाइट और न जाने कितनी जगहों पर हमें रोजाना तरहतरह के पासवर्ड  का इस्तेमाल करना पड़ता है. कई बार पासवर्ड भूल जाने या हैक कर लिए जाने की समस्या का भी सामना करना पड़ता है. अब साइंटिस्ट पासवर्ड से हमेशा के लिए छुटकारा दिलाने वाली तकनीक लोगों को मुहैया कराने की सोच रहे हैं. इस तकनीक के तहत हमारा चेहरा, आंखें (पुतलियां), उंगलियों की छाप को पढ़ने वाले इंतजाम हर जगह लग जाएंगे जिस से पासवर्ड के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी, यह तकनीक काफी सुरक्षित भी होगी, क्योंकि इस में पासवर्ड भूल जाने, चोरी हो जाने या गलत हाथों में इस्तेमाल होने के खतरे भी नहीं रहेंगे.

पढ़ेंगे दिमाग

इंसान के दिमाग को हूबहू पढ़ लेना विज्ञान के लिए एक सपना रहा है. अभी की तकनीकें हमारे दिमाग को पढ़ कर खुद काम नहीं कर सकतीं. उन्हें बोल कर या छू कर कोई आदेश देना पड़ता है. पर आईबीएम के अनुसार इस साल साइंटिस्ट ऐसीतकनीक का खुलासा कर सकते हैं, जिन की सहायता से स्मार्टफोन या कंप्यूटर आदि गैजेट्स हमारा दिमाग पढ़ कर कोई काम करने लगेंगे. यानी हमें किसी व्यक्ति को फोन करने के बारे में सिर्फ दिमाग में सोचना होगा और स्मार्टफोन खुद ही उस व्यक्ति का नंबर लगा देगा. है न कमाल?

डिजिटल डिवाइड

अमीरगरीब और स्त्रीपुरुष के बीच डिजिटल डिवाइड की समस्या पूरी दुनिया में है. महिलाएं तकनीक के क्षेत्र में पीछे हैं और गरीबों को अमीरों की तरह इंटरनैट या स्मार्टफोन हासिल नहीं हैं. आईबीएम के अनुसार, अब यह नजारा बदलने वाला है. इन दोनों ही मोरचों पर तकनीक महिलाओं और गरीबों की मदद करने वाली है ताकि उन्हें दुनिया में बराबरी का एहसास हो सके.

जंक ईमेल से निजात

इंटरनैट इस्तेमाल करने वाले अकसर अपने इनबौक्स में आने वाली अवांछित ईमेल (जंक मेल) से परेशान रहते हैं. कुछ लोगों के इनबौक्स में तो रोजाना सैकड़ों जंक मेल आ जाती हैं. पर अब जल्द ही ईमेल सेवा देने वाली कंपनियां ऐसे प्रबंध करने वाली हैं जिन से लोगों को जंक मेल से ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ेगा. उन्हें सिर्फ वे ईमेल दिखाई देंगी, जो वे देखना

बेंगलूरू कांड: हाईटेक सिटी में कबिलाई संस्कृति

कहते है कि शिक्षा सभ्यता को जन्म देती है. भारतीय लोगों में अपनी संस्कृति की तारीफ करने की प्रवृत्ति कुछ ज्यादा ही देखी जाती है. देश में समय समय पर ऐसी तमाम घटनायें होती है जिनमें हमारी इस संस्कृति की पोल खुलकर सामने आ जाती है. देश की सबसे हाईटेक सिटी बेंगलुरू में तंजानिया की लडकी के साथ जो हुआ वह कबीलों की संस्कृति की याद दिलाने के लिये काफी है. 31 जनवरी की शाम 7 बजे एक सडक दुर्घटना में 35 साल की महिला की मौत के बाद गुस्साई भीड ने कार में सवार अफ्रीकी मूल के युवकों को पकड लिया. इनके साथ 2 लडकियां भी थी. गुस्साई भीड ने यह भी समझने की कोशिश नहीं की कि घटना में उन युवतियों का क्या रोल है ?

भीड ने लडकी को 20 मिनट तक सडक पर दौडा कर पीटा, उसके कपडे फाड दिये. जब उस लडकी ही हालत देखकर एक युवक उसे अपनी शर्ट देने लगा तो भीड ने उस युवक को कपडे नहीं देने दिया और उसकी पिटाई भी कर दी. इससे शर्मनाक बात यह है कि बेंगलुरू पुलिस ने सही एक्शन लेने के बजाये घटना पर लीपापोती करने लगी. पुलिस ने लडकी के कपडे फाडने और उससे बदसलूकी को न मानते हुये मारपीट की साधारण घटना बताया. जब मामले ने तूल पकडा तब केन्द्र सरकार ने कडा रूख अपनाया.

कर्नाटक में कांग्रेस के नेता सिद्वरमैया मुख्यमंत्री हैं. कांग्रेस हाईकमान के मामले में हस्तक्षेप करने के बाद मुख्यमंत्री सिद्वरमैया हरकत में आये, जिसके बाद हमला करने वाले 5 लोगों को पकडा गया. मुख्यमंत्री ने पुलिस की गलती को भी संज्ञान में लिया.

घटना का दूसरा पक्ष हमारी संस्कृति पर बदनुमा दाग सा है. इस घटना में शामिल लोगों को पुलिस पकड लेगी उनको सजा भी मिल जायेगी. भारतीय संस्कृति पर इस घटना ने जो दाग लगाया है उसका साफ होना बहुत मुश्किल है. घटना के बाद तंजानिया की उस युवती ने बयान दिया कि अब उसे हर भारतीय को देख कर डर लगता है. आधुनिक से दिखने वाले समाज में भी औरतों और महिलाओं को अनैतिक समझा जाता है. जरा सा मौका हाथ लगते ही उनके शरीर पर हमला करने से परहेज नहीं किया जाता है. भीड में शामिल हर चेहरा यह सोचता है कि कानून उसकी पहचान नहीं कर पायेगा और उसको सजा नहीं हो पायेगी. ऐसे में वह कबिलाई संस्कृति पर उतर आता है. जहां महिला के शरीर पर हमला कर अपनी हवस पूरी करने की कोशिश होती है.

अगर मौका अलग संस्कृति के लोगों के साथ हो तो मामला और भी अध्कि संगीन हो जाता है. एक हमारे देश की सभ्यता पर सवाल खडा होता है, दूसरी तरफ देश में काम कर रही वैधनिक संस्थायें कानून की रक्षा करने के बजाय मामले को दबाने में उतर आती है. किसी घटना को हम सबक के रूप में नहीं लेते. यही वजह है कि एक के बाद दूसरी घटना हमें शर्मसार करती है. जरूरत है कि हम राजनीति से उपर उठ कर कानून के राज की बात करे तभी इस तरह की घटनाओं से मुक्ति मिल सकेगी. सभ्य संस्कृति की दुहाई भर देने से ऐसे मामले रूकने वाले नहीं है.

बौलीवुड में मावरा होकाने की एंट्री

बालीवुड में मावरा होकाने की पहली फिल्म है ‘सनम तेरी कसम’. लेकिन मावरा भारतीय दर्शकों के लिए बिल्कुल नया चेहरा नहीं है. जिंदगी चैनल के कई पाक सीरियलों में वह दिख चुकी है. उनकी कुछ चुनिंदा सीरियल हैं – ‘कितनी गिरहें बाकी है’, ‘गुलों में रंग’, हल्की-सी खलिस’ और ‘यहां प्यार नहीं है’. इन सीरियलों में मावरा अपनी एक्टिंग के हुनर की छाप छोड़ चुकी हैं. अपने किरदार को वे बखूबी निभाती हैं.

23 साल की मावरा होकाने, दरअसल, मावरा हुसैन है. लेकिन अपने आपको दूसरों से जरा हट कर पेश करने के मकसद से हुसैन के अक्षरों को उलट-पलट कर होकाने बना लिया है मावरा ने. दरअसल अंग्रेजी में हुसैन के डबल ‘एस’ को ‘सी’ लिख कर होकाने बना लिया. और यह काम मावरा ने टीवी में लोकप्रियता हासिल करने के बाद नहीं किया, बल्कि जब वे सातवीं क्लास में पढ़ती थी, तभी से अपना नाम उसने इसी तरह लिखने की शुरूआत की.

मावरा की देखा-देखी उसकी बड़ी बहन उर्वा ने भी हुसैन से होकाने को अपना लिया है. गौरतलब है कि मावरा की बहन उर्वा होकाने भी पाक सीरियल की जानीमानी एक्ट्रेस हैं. भारत में उर्वा की पहचान मिली सीरियल ‘कही अनकही’ से हुई. दोनों बहनों ने पाकिस्तान में वीजे और मौडलिंग में बहुत नाम कमाया है.

मावरा अपनी लोकप्रियता पर जरा भी नहीं इतरारी. वह कहती है कि मैं अपनी लाइफ से बहुत खुश हूं. अपना काम लगन से करती हूं. साथ में अपने किरदार को बखूबी जीने की कोशिश करती हूं. मावरा आज भी अपने स्कूली जीवन की मस्ती को बहुत मिस करती है. किताबें पढ़ना और म्युजिक सुनना मावरा की होबी है. म्युजिक के लिए तो वह एकदम से क्रेजी हो जाती है. इसीलिए पेशेवर जीवन की शुरूआत उसने वीजे के रूप में की.

हालांकि मावरा के नाम एक विवाद भी जुड़ चुका है. सैफ-कटरीना की ‘फैंटम’ को लेकर मावरा के ट्वीट को लेकर बड़ा विवाद खड़ा हुआ था. दरअसल, मावरा ने लिखा कि फैंटम आतंकवाद पर बन फिल्म है. आंतकी का कोई देश नहीं होता। आतंकी केवल आतंकी होता है. मावरा के इस ट्वीट को भारत में अच्छी तरह नहीं लिया गया. भारत में सोशल मीडिया में मावरा को टारगेट बनाया गया. 

मावरा के आइ‍डल एक्टर है हौलीवुड के ब्राड पिट। हालांकि सलमान खान भी उसके पसंदीदा हीरो हैं. लेकिन पाक एकट्रेस में सबा कमर की बड़ी फैन हैं. ‘थकन’ सीरियल फेम सबा पाक फिल्म और टीवी सीरियल दोनों की जानी-मानी एक्ट्रेस हैं. मावरा ने सबा के साथ जिंदगी चैनल में टेलीकास्ट ‘यहां प्यार नहीं है’ सीरियल में स्क्रीन शेयर कर चुकी हैं. ‘सनम तेरी कसम’ से बौलीवुड में मावरा ने कदम तो रख दिया है, लेकिन उसे स्कैंडल, फेक न्यूज से बड़ा डर लगता है. फैंटम विवाद का नतीजा वह भुगत चुकी है. इसीलिए वह इन बातों से बचना चाहती है. सनम तेरी कसम की शूटिंग के दौरान ही बौलीवुड ने मावरा को और दो अनाम फिल्मों के लिए साइन किया है. फिलहाल देखना यह है कि सनम तेरी कसम बौक्स औफिस पर क्या गुल खिलाती है!

 

ऐसा होगा ‘सरबजीत’ में रणदीप हुडा का लुक

सरबजीत सिंह की जिंदगी पर राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता फिल्मकार उमंग कुमार एक फिल्म ‘सरबजीत’ निर्देशित कर रहे हैं, जिसमें सरबजीत का किरदार रणदीप हुडा निभा रहे हैं. रणदीप हुडा अपनी तरफ से इस किरदार के साथ न्याय करने के लिए कोई कसर बाकी नहीं रख रहे हैं. इस फिल्म के अपने किरदार के लुक के लिए खुद रणदीप हुडा ने मेहनत की है. उन्होने न सिर्फ दाढ़ी व बाल बढ़ाएं हैं. बल्कि किरदार की मांग के अनुरूप अपना वजन भी घटाया है.

सूत्र बताते हैं कि 23 साल तक पाकिस्तान की जेल में बंद रहे निर्दोष भारतीय सरबजीत के लुक में खुद को ढालने के लिए रणदीप ने अपनी तरफ से प्रयास करके कई फोटो जुटाए. पर वह अपने लुक के लिए सारा श्रेय निर्देशक उमंग कुमार को देते हैं. रणदीप हुडा कहते हैं-‘‘मैं तो निर्देशक का कलाकार हूं. मैं निर्देशक के विजन को समझकर खुद को किरदार में ढालता हूं.’’ जबकि निर्देशक उमंग कुमार कहते हैं-‘‘मैंने सरबजीत के किरदार के लिए रणदीप हुडा को इसलिए चुना, क्योंकि मुझे यकीन था कि वह इस किरदार के साथ न्याय कर सकते हैं. रणदीप उन कलाकारों में से हैं, जो कि अपने काम के प्रति हमेशा समर्पित रहते हैं..’’

 

फोन पर अनचाहे एड करें परेशान, तो ऐसे करें बंद

आप अपने स्मार्टफोन पर न्यूज़ पढ़ने किसी न्यूज़ वेबसाइट पर जाएं या फेसबुक, ट्विटर औऱ लिंक्डइन जैसी किसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर या फिर गेम्स डाउनलोड करने की सुविधा देने वाली मोबाइल वेबसाइट्स पर, आप हर जगह खुद को विज्ञापनों से घिरा पाएंगे. अगर आप एंड्रॉइड स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं, तो आपको हैरानी होगी कि आपकी ऑनलाइन सर्च करने की आदतों के हिसाब से ही गूगल आपको मोबाइल पर विज्ञापन दिखाता है.

कुकीज़ की वजह से आपको दिखते हैं अनचाहे विज्ञापन

दरअसल होता यह है कि अगर आप एक एड पर क्लिक कर दें, तो आप उस एड के वेबपेज पर पहुंच जाते हैं और आपके डिवाइस के ब्राउज़र पर एड देने वाली कंपनी के कुकीज़ आ जाते हैं. इसके बाद आप गूगल पर सर्च करके जो भी मोबाइल साइट्स खोलते हैं, वहां आपको पहले खोला गया विज्ञापन नज़र आ जाता है.

क्या स्मार्टफोन पर आने वाले अनचाहे विज्ञापनों से बचना है संभव?

ऐसे विज्ञापन जहां आपको आपकी ज़रूरत के प्रॉडक्ट्स औऱ सर्विसेज़ के बारे में बताते हैं, वहीं हर क्लिक पर एक नया एड आ जाने से आपकी सर्चिंग में बाधा भी पैदा करते हैं. लेकिन क्या स्मार्टफोन में मोबाइल साइट्स पर आने वाले विज्ञापनों से बचना संभव है? जी हां, यह संभव है. हम आपको बताते हैं कि ऐसा आप कैसे कर सकते हैं.

तीन स्टेप्स में बचें अनचाहे विज्ञापनों से

अपने एंड्राइड स्मार्टफ़ोन में गूगल सेटिंग्स पर जाएं और एड्स पर क्लिक कर दें. अब ‘ऑप्ट आउट ऑफ़ इंटरेस्ट बेस्ड एड्स’  की सेटिंग्स बदल दें. इसके बाद आपको अपने एंड्रॉइड स्मार्टफोन पर विज्ञापन नहीं दिखाई देंगे.

गूगल साइट्स में साइन्ड-इन होने पर इंटरेस्ट पर आधारित विज्ञापनों को कैसे बंद करें:

1. सबसे पहले www.google.com/settings/ads/authenticated पर जाएं

2. अब “Ads based on your interests” पर क्लिक करके ऑफ कर दें

3. अब जो डायलॉग बॉक्स खुलेगा, वहां स्विच-ऑफ लिंक पर क्लिक करके अपने सेलेक्शन की पुष्टि कर दें

गूगल के अलावा अन्य वेबसाइट्स पर सर्च के दौरान आने वाले विज्ञापनों को कैसे करें बंद:

1. सबसे पहले www.google.com/settings/ads/anonymous के एड्स सेटिंग्स पर जाएं

2. इसके बाद “Ads based on your interests” पर क्लिक करें औऱ स्विच ऑफ सेलेक्स कर लें

3. अब एक डायलॉग बॉक्स खुलेगा, जिस पर स्विच ऑफ लिंक पर क्लिक करके अपने सेलेक्शन को कन्फर्म कर दें.

अब आपको गूगल सर्च के दौरान आने वाले अनचाहे विज्ञापनों से मुक्ति मिल जाएगी.

इस तरह रघुराम राजन ने खोली कंपनियों की पोल

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने एक बार फि‍र मल्‍टीनेशनल कंपनियों पर हमला बोला है. उन्‍होंने कहा कि मल्‍टीनेशनल कंपनियां हमेशा अधिक टैक्‍स वसूलने का आरोप लगाती हैं, इसलिए उन्‍होंने इन कंपनियों से ज्‍यादा टैक्‍स का झूठा रोना बंद करने के लिए कहा है. उन्‍होंने कहा कि मल्‍टीनेशनल कंपनियां दुनियाभर में टैक्स बचाने और टैक्स चोरी करने के नए-नए हथकंडे अपनाती हैं. इसलिए यहां सरकार और एमएनसी के बीच लगातार लड़ाई चलती रहती है.

पिछले हफ्ते मुंबई में एक कार्यक्रम में बोलते हुए राजन ने कहा कि दुनियाभर की ज्यादातर मल्टीनेशनल कंपनियां अमेरिका के पास स्थित केमन आईलैंड का जिस तरह इस्तेमाल करती हैं उससे तो यह लगता है कि सभी कंपनियों का मैन्यूफैक्चरिंग फॉर्मूला (इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी) इस कुछ किलोमीटर वर्ग फुट में सिमटे द्वीप पर जन्म लेता है.

उन्‍होंने कहा कि जब कुछ मल्टीनेशनल कंपनियां लोकतांत्रिक ढांचे में सरकार के प्रमुख उद्देश्य को विफल करने का बीड़ा उठा लें तो जरूरी हो जाता है कि इससे निपटने के लिए कोई नया रास्ता अपनाया जाए. बड़ी कंपनियों जैसे गूगल और एप्‍पल समेत कई कंपनियों द्वारा टैक्‍स चोरी करने की वजह से दुनियाभर में इसकी रोकथाम के लिए नए कानून बनाए गए हैं. अमेरिका ने टैक्‍स बेनेफि‍ट के लिए दूसरे क्षेत्र की कंपनियों के साथ विलय करने पर रोक लगाने के लिए कानून बनाया है. वहीं यूरोप के कई देशों, चीन और जापान में इस संबंध में कठोर कदम उठाए जा रहे हैं.

मल्‍टीनेशनल कंपनियों की आलोचना इसलिए भी उल्‍लेखनीय है क्‍योंकि कुछ कंपनियों ने भारत द्वारा पिछली तारीख से टैक्‍स लगाने पर आपत्ति जताई थी. वोडाफोन और केयर्न ने भारत में पिछले तारीख से टैक्‍स लगाने और टैक्‍स डिपार्टमेंट द्वारा किए गए टैक्‍स डिमांड को चुनौती दी है और इस मामले को अंतरराष्‍ट्रीय अदालत में ले गई हैं.

राजन ने कहा कि सरकार और आरबीआई जैसे संस्‍थानों पर प्राइवेट बिजनेस को प्रमोट करने का दबाव है ताकि लोगों को ज्‍यादा से ज्‍यारा जॉब हासिल हो सके. उन्‍होंने कहा कि हमें करोड़ों जॉब पैदा करने हैं. इसकी जरूरत इसलिए है, क्‍योंकि अच्‍छी जॉब समावेश का सबसे अच्‍छा तरीका है. राजनीतिक और रेग्‍युलेटरी सिस्‍टम पर इन जॉब को पैदा करने का दबाव है. उन्‍होंने कहा कि जॉब के नए और ज्‍यादा अवसर पैदा करने के लिए सरकार ग्रोथ को बढ़ाने और बिजनेस आसान बनाने की दिशा में काम कर 

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