अगर आविष्कार नहीं होते, तो दुनिया को बदलने में शायद कुछ सदियां और लगतीं. बिजली और बल्ब के आविष्कार के साथ दुनिया में जो औद्योगिक क्रांति सौ डेढ़ सौ साल पहले शुरू हुई थी, आज वह कंप्यूटर, इंटरनैट जैसी तकनीक के साथ ऐसी क्रांति में बदल गई, जिस से लोगों को हर साल नई तकनीकों का इंतजार रहने लगा है. स्मार्टफोन्स ही नहीं, हर साल कुछ ऐसी चीजें दुनिया में बनाई जाने लगी हैं, जिन से लगता है कि आने वाले समय में मनुष्य को कई ऐसी सुविधाएं हासिल हो जाएंगी जिन के बारे में पहले कभी सोचा तक नहीं गया था.

आगे क्या होने जा रहा है, इस की झलक पिछले 2-3 साल में हुए आविष्कारों से भी मिल जाती है. हाल के वर्षों में कई ऐसे तकनीकी आविष्कार पहली बार सामने आए, जिन्होंने दुनिया को अचंभित कर दिया. जैसे, चीन में एक तकनीकी विश्वविद्यालय के पीएचडी के छात्र चुआन वांग ने एक ऐसी इलैक्ट्रिक छतरी का आविष्कार किया जो अपनी ताकतवर हवा के जरिए बारिश की बूंदों को छाते से हटा देती है. इस से लगता है कि उस छतरी को पकड़े व्यक्ति ने बारिश से बचने का कोई अदृश्य इंतजाम कर रखा है. यह आविष्कार इसलिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सदियों से बारिश में गीली हो जाने वाली छतरी का आज तक ऐसा चमत्कारी विकल्प किसी को सूझा नहीं था.

इसी तरह ड्रोन के अविश्वसनीय कारनामे अब तो हमारे देश में भी देखने को मिल रहे हैं. महंगी शादियों में ड्रोन पर लगे कैमरे शादी की पूरी चहलपहल रिकौर्ड कर रहे हैं, तो कुछ फिल्मों में ड्रोन से आसमानी दृश्य फिल्माए जाने लगे हैं. ड्रोन से पिज्जा डिलीवरी और दिल्ली से ले कर अहमदाबाद तक ट्रैफिक आदि की निगरानी में उन की मदद ली जा रही है. क्या किसी ने सोचा था कि हमें तकनीक के ऐसे करिश्मे देखने को मिल पाएंगे. पर यह सब सच हुआ, इसीलिए यह लग रहा है कि इस साल भी कुछ नए तकनीकी आविष्कार हमारी आंखें आश्चर्य से भर देंगे.

लाईफाई का चमत्कार

इंटरनैट से जुड़े लोगों ने अभी तक वाईफाई तकनीक का ही सुख भोगा है, जिस में बिना किसी तार का इस्तेमाल किए एकसाथ कई स्मार्टफोन्स टैबलेट, लैपटौप आदि पर इंटरनैट चलाया जा सकता है. वाईफाई कनैक्शन पर मिलने वाली स्पीड ने इंटरनैट सर्फिंग में काफी इजाफा भी किया है, पर अब इस में एक नया चमत्कार जुड़ने जा रहा है. इस तकनीकी चमत्कार का नाम है लाइट फिडिलिटी यानी लाईफाई.

वैज्ञानिकों का दावा है कि वाईफाई की तुलना में लाईफाई से चलाया जाने वाला इंटरनैट वाईफाई से 200 गुना से भी ज्यादा तेज होगा. इसे इस से समझा जा सकता है कि लाईफाई की मदद से पलक झपकते ही यानी एक सैकंड में 18 फिल्में किसी भी गैजेट पर डाउनलोड की जा सकती हैं. अमेरिका के एस्टोनिया में किए गए एक प्रयोग के दौरान लाईफाई कनैक्शन से प्रति सैकंड 1 जीबी (गीगाबाइट) डाउनलोडिंग की स्पीड हासिल की गई जो पारंपरिक वाईफाई के मुकाबले 100 गुना ज्यादा तेज है.

वाईफाई और लाईफाई में असली फर्क तरंगों का है, जिस से उन के जरिए मिलने वाले डाटा और संकेतों की गति में अंतर आता है. वाईफाई में ट्रांसमिट किया जाने वाला डाटा रेडियो तरंगों के जरिए मिलता है, जबकि लाईफाई का आधार हैं प्रकाश तरंगें. रेडियो तरंगों की सीमाओं के चलते इंटरनैट से डाटा (शब्द, वीडियो आदि) भेजना दिनोदिन मुश्किल होता जा रहा है क्योंकि अब बहुत ज्यादा डाटा इस्तेमाल होने लगा है. इस कारण इंटरनैट के धीमे पड़ जाने का खतरा पैदा हो गया है. पर लाईफाई तकनीक इस का आसान समाधान हो सकती है, क्योंकि प्रकाश तरंगों का स्पैक्ट्रम रेडियो तरंगों के मुकाबले 10 हजार गुना ज्यादा होता है. हो सकता है कि लाईफाई को मूर्त रूप लेने में अभी कुछ और वक्त लगे, पर इतना तय है कि 2016 में इस कीठोस नींव रख ही दी जाएगी.

बाबू, समझो इशारे

कैसा हो अगर कमीज का कौलर छूने मात्र से आप का स्मार्टफोन चलने लगे या बैडरूम के परदे को हलके से छूने पर कमरे की लाइट्स को धीमा या तेज किया जा सके? अभी ये बातें किसी साइंस फिक्शन जैसा एहसास देती हैं, पर वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की कई टीमें ऐसे आविष्कार दुनिया में लाने पर काम कर रही हैं जो हमारे इशारों को समझ कर सौंपे गए काम निबटा सकेंगी. ऐसे एक ‘प्रोजैक्ट सोली’ पर गूगल में काम चल रहा है जहां मनुष्य की भावभंगिमाओं को पढ़ कर काम करने वाली सैंसर तकनीक को वास्तविकता में ढाला जा रहा है. प्रोजैक्ट सोली के तहत छोटे माइक्रोचिप्स से बना राडार सिस्टम आसपास के क्षेत्रों (2 से 3 फुट की रेंज) में इंसान की उंगलियों के संचालन को पढ़ व समझ लेता है और उन के अनुसार खुद से जुड़े गैजेट्स को काम करने का आदेश देता है. यह तकनीक कारों, खिलौनों, फर्नीचर, घडि़यों और कंप्यूटर गेम्स आदि में आसानी से फिट की जा सकती है.

अमेरिका में प्रोजैक्ट सोली से जुड़ कर कई तरह की चीजें तैयार हो रही हैं, जिन्हें इस साल में लोग बाजार में देख सकेंगे. जैसे धातु से बने धागों से बनी एक ऐसी स्मार्ट जींस इसी साल बाजार में आ जाने की उम्मीद है, जिसे पहनने वाले अपने कई गैजेट्स जींस के सहारे चला सकेंगे.

बिग डाटा से बड़ा क्या

कभी आप ने सोचा है कि फेसबुक, ट्विटर, माईस्पेस, यूट्यूब, जीमेल, गूगल आदि असंख्य वैबसाइट्स के जरिए पूरी दुनिया जो डाटा यानी शब्द, चित्र, संख्याएं, वीडियो आदि यहां से वहां भेज रही है, स्टोर कर रही है, उस का आखिर होता क्या है. इस डाटा को हालांकि एक संज्ञा, ‘बिग डाटा’ दी गई है, पर फिलहाल इस बिग डाटा का बहुत सा हिस्सा असल में व्यर्थ ही सर्वर में जमा होता रहता है और उस से काम की बातें जरा कम ही निकलती हैं.

इस साल एक बड़ी कोशिश बिग डाटा को काटछांट कर उस से दुनिया के लिए नायाब चीजें खोज निकालने की होने वाली है. यह कोशिश कैसे होगी, इस का जवाब जानने से पहले यह जानना उचित होगा कि पहले इस डाटा के भंडार का एक अनुमान लगाया जाए. 2010 में गूगल के कार्यकारी अध्यक्ष एरिक श्मिट ने बताया था कि प्रत्येक 2 दिन में दुनिया करीब 5 ऐक्साबाइट्स के बराबर डाटा पैदा करती है. 2014 आतेआते यह मात्रा दोगुनी हो गई यानी अब हर दिन में उस से भी कई गुना ज्यादा डाटा लोग अपने स्मार्टफोन और कंप्यूटरों के जरिए उत्पन्न कर रहे हैं, जितना 2010 में 2 दिन में जमा होता था.

पहले यह डाटा सिर्फ इंटरनैट के जरिए यहांवहां पहुंचता था, पर अब तो मोबाइल ऐप्स (फोन, टैबलेट आदि) के जरिए भी पैदा हो रहा है. अब कुछ प्रमुख कंप्यूटर कंपनियां जैसे आईबीएम और इंटेल सर्वर से हो कर गुजरने वाले इस डाटा को कुछ ऐसे ताकतवर कंप्यूटर्स में डाल कर संसादित करने वाली हैं, जो फिलहाल कुछ चुनिंदा उद्देश्यों से उन में से उपयोगी सूचनाएं छांट कर अलग कर सकेंगे. खासतौर से आईबीएम ने इस के लिए अपने सुपर कंप्यूटर, वाटसन को तैयार किया है और डाटा से संबंध रखने वाली इंडस्ट्री (जैसे औनलाइन शौपिंग वैबसाइट्स) के लिए विशेष कंप्यूटिंग डिवाइस तैयार की हैं, जो उन के काम की सूचनाएं डाटा के विशाल समुद्र में से खंगाल कर बाहर ला सकेंगी. मसलन, यदि किसी कंपनी को लगता है कि उसे विशेष प्रकार की व्यंजन विधियों की तलाश है और गूगल जैसे सर्च इंजन यह काम नहीं कर पा रहे हैं, तो वह इस के लिए आईबीएम से कह सकती है. तब आईबीएम वाटसन की मदद से ट्विटर से ले कर इंटरनैट तक के छिपे, खुले स्रोत की पड़ताल कर उपयोगी और एकदम सटीक जानकारियां बटोर कर उसे दे सकेगी.

नए मुकाम पर आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस

कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का सपना साइंस बिरादरी अरसे से देख रही है और कहा जा रहा है कि कई मामलों में यह असली बुद्धिमत्ता यानी इंसान के दिमाग को पछाड़ देगी. मुमकिन है कि इस साल हम इस बड़े सपने को अमल में आते हुए देखें, पर यह आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस है क्या? आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस के जन्मदाता कहलाने वाले प्रख्यात साइंटिस्ट जौन मैकार्थी के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस साइंस और इंजीनियरिंग का ऐसा मिश्रण है जिस का उद्देश्य इंटैलिजैंट मशीनें बनाना है. ऐसी मशीनों को कोई काम करने के लिए इंसान से आदेश लेने की जरूरत नहीं होती. असल में यह कृत्रिम तरीके से विकसित की गई बौद्धिक क्षमता है. यह कंप्यूटर और उस के प्रोग्राम को उन्हीं तर्कों के आधार पर चलाने का प्रयास है जिस के आधार पर मानव मस्तिष्क चलता है.

मोटे तौर पर आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का उद्देश्य यह है कि कंप्यूटर यह चीज खुद तय कर लें कि उन की अगली गतिविधि क्या होगी. इस के लिए कंप्यूटर को अलगअलग परिस्थितियों के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया चुनने के लिए तैयार किया जाता है.इस के पीछे यही कोशिश होती है कि कंप्यूटर मानव की सोचने की प्रक्रिया की नकल कर पाए. इस का उदाहरण है, शतरंज खेलने वाले कंप्यूटर. ये कंप्यूटर प्रोग्राम मानव मस्तिष्क की हर चाल की काट और अपनी अगली चाल सोचने के लिए तैयार किए  गए. अतीत में दुनिया देख चुकी है कि आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस की ताकत से लैस आईबीएम के सुपर कंप्यूटर डीप ब्लू ने किस तरह दुनिया के नंबर वन शतरंज खिलाड़ी गैरी कास्परोव को हरा दिया था.

पर अब दुनिया आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का कौन सा नया करिश्मा देखने जा रही है, इस के 2 या 3 चमत्कार होने की उम्मीद है. जैसे, कंपनी माइक्रोसौफ्ट आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस से लैस मशीन को स्काइप ट्रांसलेटर के साथ जोड़ कर एक प्रयोग करने जा रही है. इस प्रयोग के तहत यह मशीन किसी एक भाषा की बातचीत के लहजे और भाव को समझते हुए रियल टाइम में दूसरी भाषा में उसी लहजे और भाव के साथ पेश करेगी. यह मशीन न केवल संवाद के टोन (लहजे) को पकड़ सकेगी, बल्कि उसी दक्षता के साथ उसे दूसरी (अनुवादित) भाषा में सुनाएगी. आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का एक अन्य प्रयोग एक कंप्यूटर प्रोग्राम ईयुजीन गू्रट्समैन के साथ करने की योजना है जिस में यह दिमाग चकरा देने वाले करिश्मे कर सकता है. असल में यह कंप्यूटर अपनी बेमिसाल नकली बुद्धिमत्ता से ठीक उसी तरह इंसान को मूर्ख बनाने की कोशिश करेगा, जैसा कि अकसर ठग और जालसाज किया करते हैं. माना जा रहा है कि जिस दिन आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस से लैस कंप्यूटर इंसान को उल्लू बनाने में कामयाब हो गया, उस दिन बुद्धिमत्ता पर हमारी बादशाहत खत्म हो जाएगी और एक दिन दुनिया पर मशीनों का राज कायम हो जाएगा.

तीसरा प्रयोग गूगल के डेमिस हस्साबिस करने वाले हैं, जिस से आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस का भविष्य तय हो सकता है. वे असल में अपनी मशीनों से इंटैलिजैंस की पहेली को हल करने की कोशिश करने वाले हैं. उन की बेताबी यह पता लगाने की है कि क्या सिलीकौन जैसे तत्त्व और कंप्यूटर कोडों के बीच बुद्धिमत्ता पैदा की जा सकती है? अगर यह पहेली या समस्या सुलझ गई, तो समझिए कि यह साल अगले 20-40 वर्ष में साइंस की दिशा बदलने वाले साल के रूप में दर्ज हो जाएगा

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