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मैनपुरी के किसानों को 4 गुना मुआवजा

उत्तर प्रदेश सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पिछले दिनों मैनपुरी का पक्षी विहार देखने अचानक जा पहुंचे. उसी दौरान उन्होंने कहा कि ग्रीन फील्ड एक्सप्रेसवे बनने से सब से ज्यादा विकास मैनपुरी और कन्नौज जिलों का होगा. मुख्यमंत्री ने कहा कि एक्सप्रेसवे और ‘समान पक्षी विहार’ के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन का किसानों को 4 गुना मुआवजा दिया जाएगा. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव स्थानीय सांसद तेज प्रताप सिंह यादव के साथ बगैर किसी सूचना के ‘समान पक्षी विहार’ देखने जा पहुंचे थे, उन के इस तरह यकायक आने से शासन में एकबारगी खलबली सी मच गई. मुख्यमंत्री ने पक्षी विहार पहुंचने के बाद वहां मौजूद ग्रामीणों से सहज तरीके से बातचीत की. उन्होंने बेहद तसल्ली से गांव वालों की दिक्कतों का जायजा लिया. ग्रामीणों ने सहज तरीके से अपनी समस्याओं का खुलासा किया और मुख्यमंत्री ने उन्हें समस्याओं से निबटने के तरीके बताए.

मुख्यमंत्री के मैनपुरी आने की जानकारी मिलते ही हाथों में बैनर थाम कर नारे लगाते हुए काफी तादाद में किसान भी पक्षी विहार पहुंच गए. तमाम किसानों ने एक सुर से ‘समान पक्षी विहार’ के लिए अधिग्रहीत की गई जमीन का वाजिब मुआवजा दिलाने की मांग की अखिलेश यादव ने किसानों से दोस्ताना तरीके से बात करते हुए उन्हें यकीन दिलाया कि आगामी बजट में खास प्रावधान कर के किसानों को उन की जमीनों का वाजिब मुआवजा दिलाया जाएगा. अखिलेश यादव ने माहिर नेता की तरह मीठीमीठी बातें करते हुए कहा कि देश भर में सब से ज्यादा बिजली उत्पादन करने की दिशा में उन की सरकार तेजी से कदम बढ़ा रही है. मुख्यमंत्री ने किसानों के जख्मों को सहलाने के अंदाज में कहा कि सूबे में भयंकर बरसात व ओलों की बारिश की वजह से तमाम किसानों की फसलें बुरी तरह तबाह हो गई थीं. इन आपदाओं में सब से ज्यादा तबाही बुंदेलखंड इलाके में हुई. मौसमी मार से तबाह किसानों को संभालने का भरोसा दिला कर मुख्यमंत्री ने मैनपुरी की फिजा में अपना रंग जमा दिया. इस बात में अब शक की कोई गुंजाइश नहीं है कि अखिलेश यादव भी अब एकदम परफैक्ट व माहिर नेता बन चुके हैं. 

आरक्षण: खिलाफत का बदरंग आईना

सरकारी नौकरियों, स्कूलों व कालेजों में दाखिलों में सामाजिक पिछड़ों और दलितों व आदिवासियों को मिले आरक्षण को ढीला करने की कोशिशें लगातार चलती रहती हैं. अदालतों ने कुछ हद तक तो इस आरक्षण को जरूरी माना है, पर उस ने भी बहुत से अगरमगर लगा दिए हैं, जिस से सरकार में जमे, सत्ता पर कुंडली मारे बैठे ऊंची जातियों के लोग आरक्षण को एक हद तक रोक सके हैं. सरकारी नौकरियों में मलाईदार और ताकतवर ओहदों पर ऊंची जातियों के ही लोग हैं. अगर कोई मंत्री पिछड़ी या दलित जाति का आ जाए, तो भी वह

5-7 को तो अच्छे पद दिला सकता है, पर बाद में उसे ऊंची जातियों के उन अफसरों पर भरोसा करना पड़ता है, जो अच्छी रिपोर्टें लिख सकें, अच्छी तरह अंगरेजी में बोल सकें और सभाओं व सम्मेलनों में अपनी बात कह सकें. इसीलिए जब अदालतें कहती हैं कि मलाईदार पदों को या पदोन्नतियों को आरक्षण की जरूरत नहीं है, तो पिछड़ों व दलितों के नुमाइंदे चुप हो जाते हैं. बड़ी बात यह है कि सही नजर की कमी के कारण पिछड़ों के नेता भी जानते नहीं कि वे कैसे अपने समाज का भला करें. बड़ी बात यह भी है कि वे खुद मानते हैं कि पिछड़ापन तो पिछले जन्म के पापों का फल है. इसीलिए सारे पिछड़े व दलित नेता जरा सा पैसा हाथ में आते ही पंडेपुजारियों को जम कर दान देने में लग जाते हैं. पिछड़ों के नेताओं ने पिछड़ों को सही ट्रेनिंग देने के बजाय पूजापाठ का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया है.

पिछड़ों के नेता अपनी क्रीमी पोजीशन को उन देवीदेवताओं का परताप मानने लगे हैं, जिन के पास वे हर माह 2 माह में चक्कर लगा आते हैं. जो दलित या पिछडे़ पीछे रह गए, वे इन नेताओं या आरक्षण पाए अफसरों के हिसाब से पूजापाठ में कमजोर हैं. पिछड़े और दलित यह बखूबी जानते हैं कि ऊंचे पूजापाठ का झुनझुना उन्हें दे कर खुश भर कर रहे हैं और उन्हें ऊंचे देवीदेवताओं के नौकर या नाजायज संतान पूजने को दे रहे हैं या आर्यों के पहले के देवीदेवताओं को किवदंतियों से निकाल कर दे रहे हैं, जो हिंदू व्यवस्था में दोयम दर्जे के भगवान हैं. पर आरक्षण पाए नेता और अफसर इस तरह कुंठित और कमजोर मन के हैं कि वे ठाकुरों और पंडों के लठैतों की तरह उसी से खुश हो रहे हैं.

पिछड़ों और दलितों में इस देश की उन्नति का राज छिपा है. दुनियाभर में जब तकनीक कम थी, तब इन की तकनीक के सहारे ही भारत सोने की चिडि़या कहलाया था. आज उन की पुरानी तकनीक बेकार हो गई है और उन की रीटूलिंग में आरक्षण व मनरेगा काम आ सकता था, पर उसे केवल प्रसाद कह कर बांट दिया गया. पिछड़े दलित वह तकनीक भी भूल गए, जो उन्हें 200 साल पहले मालूम थी. आज आरक्षण का फायदा तभी है, जब पिछड़े और दलित उस से नई तकनीक समझें, यह क्रीमी लेयर–मलाई परत–को ज्यादा आसानी से समझ आएगी. यह न मायावती समझ रही हैं, न लालू प्रसाद यादव, न नीतीश कुमार, न एम. करुणानिधि. सब मान कर चल रहे हैं कि कुशलता तो पद मिलने पर आ ही जाएगी. जिन पिछड़ों व दलितों ने कुछ सीख भी लिया है, वे भी दूसरे पिछड़ों व दलितों को न सिखा कर अगड़ों को लिखापढ़ा कर पैसा बना रहे हैं. पिछड़ों व दलितों के लिए काम कर रही सेवाभावी संस्थाओं को कैलाश सत्यार्थी जैसे अगड़े चला रहे हैं. जरूरत मलाईदार परत को खत्म करने की नहीं, पिछड़ों व दलितों द्वारा उस परत की पूरी जमात के लिए लाभ उठाने की है.

बिहार में खोखली साबित हुईं ग्राम कचहरियां

नीतीश कुमार ने इंसाफ के साथ तरक्की के नारे के बूते भले ही एक बार फिर बिहार की कमान थाम ली हो, पर गांवों में इंसाफ, ग्राम कचहरी, सरपंच और पंच तमाशा बन कर रह गए हैं. पंचायती राज के तहत बनाई गई ग्राम कचहरी का मकसद गांव वालों को गांव में ही इंसाफ दिलाना था, लेकिन पूरे 5 साल ग्राम कचहरियां ही इंसाफ के पेंच में फंसी रह गईं. सरपंचों और पंचों को हक और पद तो मिला, लेकिन वे दफ्तर, मेज, कुरसी और कलमकागज के लिए तरसते रह गए.

जिन सरपंचों ने अपने घरों पर ही कचहरी लगानी शुरू की, तो उन्हें लोकल पुलिस और प्रशासन ने ही काम नहीं करने दिया और उलटे उन्हें ही कई मुकदमों में फंसा डाला. ग्राम कचहरियों के सफेद हाथी बनने और सरपंचों को काम करने का मौका नहीं मिलने के बाद यह हालत है कि इस बार के पंचायत चुनाव में कोई भी सरपंच और पंच का चुनाव लड़ने को तैयार नहीं है. ग्राम कचहरी को सही तरीके से चलाने और उन्हें तमाम सुविधाएं मुहैया कराने के लिए सरपंचों ने सरकार से कई बार गुहार लगाई, विधानसभा और मुख्यमंत्री का घेराव तक किया, पर आम जनता को इंसाफ देने और दिलाने की रट लगाने वाली सरकार इस मसले की अनदेखी करती रही.

इंसाफ के इंतजार में पंचायतों के 5 साल का कार्यकाल खत्म हो गया और ग्राम कचहरियां फाइलों से बाहर नहीं निकल सकीं. ‘अखिल भारतीय सरपंच संघ’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश बाबा कहते हैं कि सरपंचों को हकों का झुनझुना तो थमा दिया गया, पर उन्हें अपने हक के इस्तेमाल के लिए जगह और माहौल ही मुहैया नहीं कराया गया. ग्राम कचहरियां कागजों पर ही चलती रह गईं और छोटेमोटे झगड़ों के लिए लोग जिला अदालतों में जाने को मजबूर रहे. इस से गांव वालों का समय और पैसा काफी खर्च हुआ और जिला अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी बढ़ा. ग्राम कचहरियों को 10 हजार रुपए तक की चोरी और जमीन के झगड़े को देखने का हक मिला हुआ है. अपनी ताकत का इस्तेमाल करने की ललक से कुछ सरपंचों ने जब अपने घर पर ही कचहरी लगानी शुरू की, तो पुलिस शांति भंग होने को ले कर सरपंचों के खिलाफ ही धारा 107 के तहत मामला दर्ज कर देती है.

सरपंच भोला सिंह कहते हैं कि कुछ सरपंचों ने जब गांव वालों को इंसाफ दिलाने की कोशिश की, तो पुलिस ने उन्हें ही मुकदमे में फंसा डाला. इस से बाकी सरपंचों के हौसले भी पस्त हो गए.इतना ही नहीं, जिन लोगों के खिलाफ सरपंचों ने फैसला सुनाया था, उन्हें बहका कर पुलिस ने सरपंचों के खिलाफ ही केस दर्ज करवा दिया. पुलिस की ज्यादती के खिलाफ पंचायती राज महकमे में कई शिकायतें पहुंचीं, पर उन पर कोई खास कार्यवाही नहीं की जा सकी. सरपंचों को थानों का भी सहयोग नहीं मिल सका.

पिडोफिलिया: एक विकृति

 

 

इंसान जितना सभ्य होता जा रहा है, उसमें तरह-तरह के विकार भी पैदा हो रहे हैं. आज ऐसा ही एक विकार आए दिन देखने में आ रहा है और वह है पिडोफिलिया. दरअसल, यौन संभोग के लिए लड़कियों का इस्तेमाल करनेवालों को मनोविज्ञान की भाषा में पिडोफिल कहते हैं और जिन लोगों में इस तरह की प्रवृत्ति काम करती है वे पिडोफिलिया के मरीज माने जाते हैं. लगभग हर रोज देश के किसी-न-किसी कोने में मासूम बच्चों के साथ यौन उत्पड़न, बलात्कार जैसी घटनाओं की खबर सुर्खियां बन रही है.

पिडोफिल केवल यौन उत्पीड़न तक सीमित नहीं होते. ये अपने शिकार को जान से मार डालने जैसे नृशंस काम करने में भी आनंद उठाते हैं. ऐसी विकृति के लोग डेढ़ साल के बच्चे से लेकर किशोर उभ्र के शिशुओं और बच्चों का इस्तेमाल अपने मानसिक विकार को चरितार्थ करने में करते हैं.

नोएडा का निठारी कांड पिडोफिया की एक बड़ी मिसाल है. मधुर भंडारकर की फिल्म ‘पेज-3’ में भी इस यौन विकृति तथा अपराध को फिल्माया जा चुका है. इस फिल्म में बड़े-बड़े सफेदपोश अपने बंगले और फाइव स्टार होटलों में किस तरह मासूम बच्चों के साथ विकृत यौन लालसा को पूरा करते हैं.

मजेदार बात यह है कि इस मनोविकार से ग्रस्त लोगों का एक समूह पूरी दुनिया में इस कोशिश में लगा हुआ है कि इसे मनोविकार न मान कर इसे ‘लैंगिक रूझान’ कहने और मनवाने की जीजान से कोशिश में लगे हुए हैं.

पिडोफिल की खासियत

इस बारे में मनोचिकित्सक श्रलेखा विश्वास कहती हैं कि पिडोफिल व्यक्तित्व के लोगों में ज्यादातर मन ही मन अपने प्रति बहुत ऊंची धारणा बना लेते हैं. अपने बारे में अच्छी-अच्छी बातों का प्रचार करने में ये लोग बहुत माहिर होते हैं. इसलिए ऐसे लोग अक्सर बड़ी बेबाकी से झूठ बोलते हैं. अपनी पोल खुल जाने पर ये लोग अपने बचाव में कहते हैं कि बच्चे को नुकसान पहुंचाने का उसका मकसद नहीं था. अपने सफाई में वे यह भी कहते हैं कि प्यार-दुलार के दौरान सामयिक तौर पर उनसे ऐसा कुछ हो गया.

श्रीलेखा कहती हैं कि ऐसे लोगों की बातों पर भरोसा नहीं करना चाहिए. ये लोग प्यार-दुलार करने के बहाने अक्सर बच्चों के प्राइवेट पार्ट्स का स्पर्श करते हैं. इसके जरिए पहले ये ‘स्टिमूल’ करते हैं, फिर ‘सिड्यूश’ करते हैं. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि कुछ समय के बाद बच्चा उनके स्टिमूल’ करने के बाद इसे एंजॉय’ भी करने गलता है. जबकि इसके लिए बच्चों को दोष नहीं दिया जा सकता. लेकिन पिडोफिल व्यक्ति कभी-कभी अपनी विकृति को छिपाने या फिर नियोजित तरीके से अपराध पर पर्दा डालने के लिए सारा दोष बच्चों के सिर मढ़ देने से बाज नहीं आते.

मनोविज्ञान कहता है कि पिडोफिलिया भले ही विकृत यौनाचार है. लेकिन यह भी सच है कि एक पिडोफिल किसी भी मायने में दिमागी तौर पर कमतर नहीं होता, बल्कि उसका दिमाग नकारात्मक स्थिति में कुछ ज्यादा ही चलता है. यही कारण है कि बच्चे शुरू में पिडोफिल के आचरण को समझ नहीं पाते. खासतौर पर तब जब पिडोफिल उनका पारिवारिक सदस्य हो या फिर उनके करीबी या परिचित लोगों में से एक हो. चूंकि पिडोफिल व्यक्ति बच्चों के साथ एक मित्र या केयरिंग पर्सन के रूप में पेश आता है, इसलिए छोटी उम्र के बच्चे समझ नहीं पाते कि उनके साथ कुछ गलत हो रहा है. लेकिन आठ-दस का बच्चा अगर कुछ-कुछ समझता भी है तो अपनी समझ को लेकर ही वह कंफ्यूज होता है कि जो वह समझ रहा है, वह सही है या नहीं. अपनी बात किसीसे कह नहीं पाता.

राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं की चिंता

विश्व स्वास्थ्य संगठन ‘हू’, सेव दि चाइल्ड जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं समयस-मय पर इस समस्या पर अपनी चिंता जाहिर कर चुकी हैं. हाल ही में ‘हू’ ने स्वीकार भी किया है कि दुनिया के असंख्य बच्चे आए दिन लापता रहे हैं. इन लापता बच्चों में ज्यादातर विकृत यन लालसा के शिकार भी हो रहे हैं.

हू ने तो स्पष्ट रूप से कहा भी है कि यह बड़ी हैरानी की बात है कि यौन-उत्पीड़न के शिकार न सिर्फ गरीब, फुटपाथ वासी बच्चे हो रहे हैं, बिल्क उच्चर्गीय और मध्यवर्गीय परिवारों में भी बच्चे यौन उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं. ‘हू’ के अनुसार हर क्षण पूरी दुनिया में दस फीसदी बच्चे यौन उत्पीड़न के शिकार हो रहे हैं.

वहीं मानवाधिकार आयोग के आंकड़े कहते हैं कि हर 23 मिनट में एक बच्चे का अपहरण होता है. अपहृत बच्चों में ज्यादातर का किसी-न-किसी रूप में यौन शोषण होता है. कुछ मामलों में तो अपहरण यौन उत्पीड़न और विकृत यौन लालसा को पूरा करने के लिए होता है. फिर तस्करी के जरिए बच्चों को खाड़ के देशों में बेच दिया जाता है.

पिडोफिलिया की सामाजिक मान्यता

समाजशस्त्रियों का मानना है कि पिडोफिलिया इंसान की आदिम प्रवृत्तियों में से एक है. हालांकि इसे आदिम प्रवृत्ति का एक विकृत रूप ही माना गया है. किसी भी समाज में ही पिडोफिल व्यक्ति हो सकता है, लेकिन दुनिया की आबादी में इनकी संख्या बहुत अधिक नहीं है. हालांकि विश्व के हर देश, हर समाज में इस यौन विकृति का अस्तित्व है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता. सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से इसे ‘कलचर बाउंड सिंड्रोम’ के रूप में जाना जाता है.

दुनिया में बहुत सारे देश हैं, जहां 12 साल की बच्चियों को यौनाचार के उपयुक्त माना जाता है. खासतौर पर कुछ इस्लामिक देशों में. कहते हैं कि इंग्लैंड में भी कभी दस साल की उम्र को विवाह के लिए उपयुक्त माना जाता था. इसके अलावा कुछ जनजातियां आज भी विश्व के अलग-अलग कोने में हैं जहां बाल विवाह सांस्कृतिक परंपरा का हिस्सा है. इसीलिए उन्हें सामाजिक मान्यता प्राप्त है.

पिडोफिल का बाजार

पूरी दुनिया में पिडोफिल मानसिक विकार वाले लोगों की बड़ी जमात सक्रिय है. यौन शोषण, यौनउत्पीड़न और संभोग के अलावा इस मानसिकता के लोग बच्चों की नंगी तस्वरों में भी अपने लिए सुख ढूंढ़ लेते हैं. ऐसे लोगों की नजर तीसरी दुनिया के बच्चों पर है. भारत में पिडोफिल का बहुत बड़ा बाजार है. अक्सर मुंबई, दिल्ली, बंगलुरू और कोलकाता में विदेशी पर्यटकों द्वारा बच्चों का यौन शोषण करने की घटना अखबारों में पढ़ने को मिलती है. हालांकि पूरी दुनिया में हर पल, हर क्षण चोरी-छिपे या खुले आम बच्चों को यौन उत्पीड़न का शिकार बनाया जा रहा है. यहां तक कि बच्चों के साथ संभोग के सीडी तक बाजार में उपलब्ध हैं. जाहिर है इसके खरीदार पिडोफिल ही होते हैं. इसके अलावा वेबसाइटों पर इसका बाजार है. विभिन्न महानगरों के अलावा छोटे-बड़े शहरों में बाकायदा इसका अलग बाजार है, जो चाइल्ड पर्नोग्राफी के रूप में जाना जाता है.

वाल्डीमीर नाबोकोव के विवादित उपन्यास ‘लोलिता’ में एक वयस्क आदमी के साथ 12 साल की लड़की के यौन संबंध को फोकस किया गया था. बाद में फिल्म भी बन. पिडोफिल मनोविकार को केंद्र में रखकर ‘दि वुडमैन’ नाम की एक और फिल्म भी बनी थी. इस फिल्म में एक व्यक्ति लंबे समय तक बच्चों का यौन-उत्पीड़न करता है. उसे 12 साल की सजा हो जाती है. उसके सभी उसका साथ छोड़ देते हैं.

बच्चों के व्यवहार को समझें

बहरहाल, श्रीलेखा कहती हैं कि बच्चों के व्यवहार में माता-पिता को हमेशा नजर रखनी चाहिए. हमारे देश में एक बड़ा खराब चलन है कि बच्चों की बातों या उनकी शिकायत को तरजीह नहीं दी जाती है. माता को ऐसा नहीं करना चाहिए.

(क्रमश: अगले भाग में यौन उत्पीड़न शिकार बच्चों की पहचान…)

फ्लोरल है ऐवरग्रीन

मौसम कोई भी हो लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो कभी नहीं बदलतीं. हर साल कुछ नए बदलावों के साथ ये दोबारा ट्रैंड में आ ही जाती हैं, जिस का असर रीयल लाइफ से ले कर रील लाइफ तक में देखने को मिलता है. फिर चाहे वह आउटफिट की डिजाइन हो, स्टफ हो या फिर प्रिंट.

प्रिंट की बात करें तो इन दिनों एक बार फिर से फ्लोरल प्रिंट का जादू सिर चढ़ कर बोल रहा है. 2014 में संपन्न हुए फेमिना मिस इंडिया 14 के फैशन शो में इस प्रिंट का जलवा खूब देखने को मिला. असल में इस प्रिंट के हौट व बोल्ड होने की वजह से सैलिब्रिटीज भी इसे पहनने का मोह नहीं छोड़ पाते हैं. ऐसे में फिर भला आप क्यों पीछे रहें. आइए, जानते हैं इस बारे में फैशन डिजाइनर पूनम बजाज से कि आखिर क्या खास है फ्लोरल में :

कलर

फ्लोरल प्रिंट ही वह प्रिंट है जो हर मौसम व हर उम्र में अच्छा लगता है. बस, इस के लिए आप को कलर कौंबिनेशन को ध्यान में रखना होगा. जैसे यदि आप इसे विंटर में पहनना चाह रही हैं तो मल्टी कलर पहन सकती हैं परंतु यदि आप इसे समर में कैरी करना चाहती हैं तो इस का बेस व्हाइट, औफ व्हाइट या ब्लैक रखें. साथ ही मल्टी कलर से दूर रहें. इन दिनों व्हाइट बेस के साथ पिंक, येलो व नियोन कलर फैशन में हैं.

फ्लोरल में भी कई औप्शन

यदि आप सोच रही हैं कि फ्लोरल का मतलब सिर्फ प्रिंट से है, तो गलत सोच रही हैं. आजकल इस में कई सारे औप्शंस आ गए हैंजो ड्रैसेज को और भी ग्लैमरस व रिच लुक देते हैं. जैसे कि फ्लोरल एंब्रौयडरी, फ्लोरल मोटिफ व आर्टिफिशियल फ्लावर आदि. आजकल पार्टी वियर के लिए फ्लोरल एंब्रौयडरी व फ्लोरल मोटिफ फैशन में हैं. इतना ही नहीं आप चाहें तो थोड़ी सी क्रिएटिविटी दिखा कर खुद अपनी फ्लोरल ड्रैस डिजाइन कर सकती हैं, जैसे कि एक सिंपल पार्टी वियर साटन के गाउन पर सोल्डरके वन साइड साटन के रिबन से बने फ्लावर को ब्रौच की तरह लगा लें. आप की ड्रैस पार्टी में चारचांद लगा देगी.

फैंसी ड्रैसेज पर सीक्वैंस एंब्रौयडरी भी ट्राई की जा सकती है. हालांकि मौडर्न फ्लोरल भी आजकल ट्रैंड में है. इस में बेस में डिफरैंट कलर के साथ व्हाइट फ्लावर्स दिए जाते हैं.

ऐक्सैसरीज में भी ढेरों औप्शंस

फ्लोरल प्रिंट्स का जादू सिर्फ आउटफिट्स तक ही सीमित नहीं है बल्कि यह प्रिंट फुटवियर से ले कर बैग्स, बैल्ट्स, हेयर ऐक्सैसरीज तक खूब देखे जा रहे हैं. हेयर ऐक्सैसरीज में जहां यह हेयर बैंड्स से ले कर क्लचर्स, हेयर पिन तक में उपलब्ध हैं वहीं फुटवियर में सैंडिल से ले कर बेलीज व हील पर भी फ्लावर वाले डिजाइन ट्रैंड में हैं.                           

ध्यान रखने योग्य बातें

फ्लोरल प्रिंट को पहनते समय एक नजर अपनी बौडी पर डालें. अगर आप की हाइट कम व बनावट मोटी है तो आप बड़े फ्लावर्स पहनने से बचें. इस की जगह छोटे फ्लावर वाले प्रिंट्स को महत्त्व दें. यदि आप की हाइट लंबी और आप पतली हैं तो फिर आप पर बड़े व सिंगल साइज वाले फ्लावर प्रिंट्स खूब अच्छे लगेंगे. ब्यूटी ऐक्सपर्ट पूजा गोयल के मुताबिक इस आउटफिट के साथ नैचुरल व सिंपल लुक ही अच्छा लगता है, क्योंकि बोल्ड व हैवी मेकअप आप की ड्रैस को फीका कर देगा. हां, यदि पार्टी है तो आप ब्राइट मेकअप कर सकती हैं लेकिन ध्यान रखें कि आप की आउटफिट भी उसी हिसाब से बोल्ड व ब्राइट होनी चाहिए.

पार्किंग में बढ़ता माफियाराज

देश भर के अन्य शहरों की तरह हैदराबाद भी पार्किंग माफिया का शिकार है, जहां 2-4 गुंडे टाइप लोग जमा हो कर एक पार्किंग की जगह बना कर सड़क या पटरी को घेर कर पैसे वसूलने शुरू कर देते हैं. जो जगह पब्लिक के लिए हमेशा से फ्री रही हो, वहां अचानक पैसे लेने शुरू कर दिए जाएं तो शुरूशुरू में अजीब लगता है. कुछ लोग लड़ते हैं पर धीरेधीरे आदत हो जाती है और निठल्लों को मोटा पैसा बनाने का अवसर मिल जाता है.

हैदराबाद ट्रैफिक पुलिस ने 400 ऐसी जगहों पर फ्री पार्किंग के बोर्ड लगा कर उन्हें दबंगों से मुक्त कराया है. ट्रैफिक पुलिस अफसर ए.वी. रंगनाथ का कहना है कि पहले उन्होंने इधरउधर मुफ्त पार्किंग के चक्कर में खड़ी गाडि़यों का चालान करना शुरू करा था पर उस से बात नहीं बनी, क्योंकि उस से तो दबंग और शेर हो गए और उन्होंने और जगहों पर कब्जा करना शुरू कर दिया. अब जब से फ्री पार्किंग के बोर्ड लगने शुरू हुए हैं, स्थिति सुधरी है. दिल्ली में कौरपोरेशन ने मौलों और अस्पतालों में फ्री पार्किंग करवाई है, क्योंकि यह उन के नक्शे के अनुसार फ्री जगह थी.

देश भर में पार्किंग की जगह की किल्लत हो रही है, क्योंकि लोग अपने वाहन को ठीक दुकान या दफ्तर के सामने खड़ा करना चाहते हैं. हमारा आलस्यपन इतना है कि 100 कदम चलना भी हमारी जेवरों से लदीं स्मार्ट ड्रैस वाली महिलाओं को भारी लगता है. हर ऐसी जगह जहां बहुत लोग आते हों, पार्किंग आफत खड़ी कर देती है पर पार्किंग शुल्क लगाना कोई लाभदायक नहीं, क्योंकि उस में गुंडागर्दी ज्यादा होती है. 10 के 40 रुपए लिए जाते हैं.

शहरों में असल में सभी व्यस्त जगहों पर सड़कों को बंद कर के पैदल चलने वालों के लिए बना दिया जाना चाहिए ताकि दफ्तरों के कौंप्लैक्सों में लोगों को ठीक वैसे ही पैदल चलना पड़े जैसे मौलों में चलना होता है. गाड़ी दूर खड़ी करना अनिवार्य हो. हां, वहां शेड वाले रास्ते बनाए जा सकते हैं ताकि धूप और बारिश से बचाव हो सके. शहरों को भीड़ व प्रदूषण से बचाने के लिए पार्किंग महंगी करने की जगह, कहीं दूर बनवानी चाहिए ताकि लोगों को पैदल चलने की आदत पड़े. हर व्यस्त बाजार से मील 2 मील पर ऐसी जगह होती है जहां गाड़ी खड़ी की जा सकती है.

संसद का खाना हुआ महंगा

संसद की कैंटीन का खाना अकसर चर्चा का विषय बनता रहता है. कभी उस के पकवानों की चर्चा की जाती है, तो कभी चीजों के दाम मुद्दा बनते हैं. अब संसद का खाना महंगा होने जा रहा है. रियायती दरों पर खाना परोसे जाने संबंधी विवादों की वजह से ही दामों में इजाफा किया जा रहा है. नए शिड्यूल के मुताबिक 18 रुपए में मिलने वाली शाकाहारी थाली अब 12 रुपए के इजाफे के साथ 30 रुपए में मिलेगी. इसी तरह 33 रुपए में मिलने वाली थाली अब 27 रुपए के इजाफे के साथ 60 रुपए की हो जाएगी.

थ्री कोर्स मील की कीमत 61 रुपए से बढ़ कर 90 रुपए हो जाएगी और पहले 29 रुपए में मिलने वाली चिकन करी 40 रुपए की हो जाएगी. नए साल में होने वाली यह बढ़ोतरी सांसदों, लोकसभा अधिकारियों, राज्यसभा अधिकारियों, सुरक्षा अधिकारियों और मीडिया कर्मियों के साथसाथ संसद के विजिटरों पर भी लागू होगी. इस मामले में लोकसभा सचिवालय की ओर से कहा गया कि कीमतों में यह बदलाव लोकसभा अध्यक्ष के आदेश से किया गया है. संसद की कैंटीन के दामों में यह इजाफा 6 साल बाद किया गया है. आदेश के मुताबिक बीचबीच में कैंटीन की चीजों के दामों की समीक्षा की जाएगी.

सचिवालय की ओर से जारी बयान में कहा गया कि संसद की कैंटीन में रियायती दरों पर मिलने वाले खाने का मुद्दा मीडिया में चर्चा का विषय बना रहता है. इसी वजह से लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने संसद की फूड कमेटी को इस मामले में ध्यान देने के आदेश दिए थे. कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद कैंटीन को ‘न लाभ, न हानि’ के आधार पर चलाने का फैसला लिया गया.

चीनी के उत्पादन में इजाफा

चीनी का चकल्लस तो साल भर चलता ही रहता है. किसान भुगतान की मांग करते हैं और चीनी मिलें टालू मिक्सचर मिलाती रहती हैं. ऐसे में सरकार भी हाथापांव मारती नजर आती है. इन सब गतिविधियों के बीच अच्छी बात यह कही जा सकती है कि चीनी के कुल उत्पादन में गिरावट होने के अंदाजे के बावजूद चालू सीजन में उत्पादन में इजाफा जारी है. इंडियन शुगरमिल्स एसोसिएशन (इस्मा) के मुताबिक 31 दिसंबर 2015 तक चीनी के उत्पादन में साल 2014 के 31 दिसंबर तक हुए उत्पादन के मुकाबले 6.5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. पिछले अक्तूबर, नवंबर व दिसंबर के दौरान चीनी का उत्पादन 75 लाख टन हुआ, जबकि इस साल गन्ने की पेराई ने वाली मिलों की कुल तादाद बीते साल के मुकाबले बेहद कम रही है. इस्मा का अंदाजा है कि इस साल चीनी का उत्पादन 2.7 करोड़ टन तक पहुंच सकता है. गौरतलब है कि पिछले साल चीनी का उत्पादन 2.8 करोड़ टन हुआ था.

इस्मा के आंकड़ों के मुताबिक 31 दिसंबर 2015 तक देश भर में कुल 470 चीनी मिलों में पेराई शुरू हो चुकी थी, जबकि 31 दिसंबर 2014 तक 490 चीनीमिलों में पेराई बाकायदा शुरू हो चुकी थी. बहरहाल, फिलहाल तो चीनीमिलों का काम बिल्कुल चौकस ही कहा जा सकता है.

दिलकश सलोनी, सनी लियोनी

फिल्म ‘एक पहेली-लीला’ से आप ने इमेज बदलने की कोशिश की थी, पर अब फिल्म ‘मस्तीजादे’ में आप एक बार फिर अपनी पुरानी इमेज में ही नजर आईं. इस की क्या वजह रही?

मैं ने कभी यह नहीं कहा कि मैं अपनी इमेज बदलना चाहती हूं. फिल्म ‘एक पहेली-लीला’ के वक्त भी मैं ने ऐसा कोई दावा नहीं किया था. उस फिल्म में मुझे जिस तरह का किरदार निभाने का मौका मिला, उसे मैं ने उसी रूप में परदे पर निभाया.

मैं हर फिल्म में कुछ अलग तरह का किरदार निभाना चाहती हूं. मेरा मानना है कि दर्शक भी मुझे अलगअलग तरह के किरदारों में देखना चाहते हैं. दूसरी बात यह कि दर्शकों ने मुझे फिल्म ‘मस्तीजादे’ में लैला और लिली के डबल रोल में देखा है. लैला और लिली दोनों एकदूसरे से अलग हैं. मेरे लिए लिली का किरदार निभाना आसान था, पर लैला का किरदार निभाना थोड़ा मुश्किल था. सच कहूं, तो मुझे सैक्सी किरदार निभाने में परेशानी होती है.

तो क्या आप अपनी सैक्सी इमेज को तोड़ना चाहती हैं?

अपनी इमेज को ले कर मैं ने कभी कुछ नहीं सोचा. मैं जो कुछ हूं, उस को ले कर मुझे कोई पछतावा नहीं है. मैं कुछ एडल्ट फिल्में कर रही हूं, पर इन फिल्मों की कहानियां काफी रोचक हैं. मैं फिल्मों में वह सबकुछ करना चाहती हूं, जो मेरे लिए आसान हो.

आप अपने सैक्सी लुक को बरकरार रखने के लिए क्या करती हैं?

जिस दिन शूटिंग नहीं होती है, उस दिन मैं जिम में 2 घंटे बिताती हूं. जिस दिन शूटिंग होती है, उस दिन जिम में सिर्फ 30 मिनट ही बिताती हूं. मेरी राय में हर औरत को हर दिन थोड़ीबहुत कसरत करनी चाहिए. मैं बौक्सिंग करती हूं. साइकिल चलाती हूं. मुझे पता है कि ज्यादा चौकलेट खाना नुकसान पहुंचाता है, लेकिन चौकलेट मेरी कमजोरी है, तो उसे मैं खा ही लेती हूं.

आप की बेइंतिहा खूबसूरती का राज?

मैं कौस्मैटिक्स का इस्तेमाल करने से बचती हूं. मिठाई और जंक फूड का सेवन भी नहीं करती हूं.

अब हौलीवुड फिल्में भी भारत में भारतीय भाषाओं में डब हो कर रिलीज हो रही हैं. आप इस का क्या असर देखती हैं?

इस की वजह से दर्शकों को अलगअलग तरह का सिनेमा देखने का मौका मिल रहा है. मेरा मानना है कि सिनेमा की कोई भाषा नहीं होती. दर्शक हर भाषा का सिनेमा देखते हैं, फिर चाहे वह हिंदी में हो या अंगरेजी या तमिल या तेलुगु भाषा में हो.

ऐसी क्या वजह है कि आज भी बौलीवुड के कई बड़े कलाकार आप के साथ काम नहीं करना चाहते हैं?

यह मेरे लिए चिंता वाली बात नहीं है. मैं वक्त पर यकीन करती हूं. एक न एक दिन यह वक्त जरूर बदलेगा. कई अच्छे कलाकार काम के प्रति मेरी गंभीरता को समझ रहे हैं और वे मेरे साथ आगे काम करना चाहेंगे.

आजकल सोशल मीडिया का जमाना है, लेकिन इस पर तरहतरह के कमैंट आते हैं. जब आप के बारे में सोशल मीडिया पर गलत कमैंट आते हैं, तब आप क्या करती हैं?

अगर बुरे कमैंट आते हैं, तो मैं उन्हें ब्लौक कर देती हूं.

अपनी शादीशुदा जिंदगी को ले कर आप क्या सोचती हैं?

हमारी शादी को 8 साल हो चुके हैं. पति डैनियल हर सुखदुख के मेरे साथी हैं. जिस वक्त मैं अपनी मां को खोने की वजह से निराश और डिप्रैशन में थी, उस वक्त मुझे डेनियल मिले थे. हम ने 3 साल डेटिंग की, फिर शादी की.

आगे आप और कौनकौन सी नई फिल्में कर रही हैं?

मार्च महीने में पत्रकार से फिल्म डायरैक्टर बने राजीव चौधरी की फिल्म ‘बेईमान लव’ रिलीज होगी, जिस में रोमांस और धोखा सबकुछ है. इस में एक बार फिर दर्शक मुझे रजनीश दुग्गल के साथ देखेंगे. इस फिल्म में मेरे कई हौट सीन हैं.

पीला गुलाब

‘यार, हौट लड़कियां देखते ही मुझे कुछ होने लगता है.’

मेरे पतिदेव थे. फोन पर शायद अपने किसी दोस्त से बातें कर रहे थे. जैसे ही उन्होंने फोन रखा, मैं ने अपनी नाराजगी जताई, ‘‘अब आप शादीशुदा हैं. कुछ तो शर्म कीजए.’’

‘‘यार, यह तो मर्द के ‘जिंस’ में होता है. तुम इस को कैसे बदल दोगी? फिर मैं तो केवल खूबसूरती की तारीफ ही करता हूं. पर डार्लिंग, प्यार तो मैं तुम्हीं से करता हूं,’’ यह कहते हुए उन्होंने मुझे चूम लिया और मैं कमजोर पड़ गई.

एक महीना पहले ही हमारी शादी हुई थी, लेकिन लड़कियों के मामले में इन की ऐसी बातें मुझे बिलकुल अच्छी नहीं लगती थीं. पर ये थे कि ऐसी बातों से बाज ही नहीं आते. हर खूबसूरत लड़की के प्रति ये खिंच जाते हैं. इन की आंखों में जैसे वासना की भूख जाग जाती है.

यहां तक कि हर रोज सुबह के अखबार में छपी हीरोइनों की रंगीन, अधनंगी तसवीरों पर ये अपनी भूखी निगाहें टिका लेते और शुरू हो जाते, ‘क्या ‘हौट फिगर’ है?’, ‘क्या ‘ऐसैट्स’ हैं?’ यार, आजकल लड़कियां ऐसे बदनउघाड़ू कपड़े पहनती हैं, इतना ज्यादा ऐक्सपोज करती हैं कि आदमी बेकाबू हो जाए.’

कभी ये कहते, ‘मुझे तो हरी मिर्च जैसी लड़कियां पसंद हैं. काटो तो मुंह ‘सीसी’ करने लगे.’ कभीकभी ये बोलते, ‘जिस लड़की में सैक्स अपील नहीं, वह ‘बहनजी’ टाइप है. मुझे तो नमकीन लड़कियां पसंद हैं…’

राह चलती लड़कियां देख कर ये कहते, ‘क्या मस्त चीज है.’

कभी किसी लड़की को ‘पटाखा’ कहते, तो कभी किसी को फुलझड़ी. आंखों ही आंखों में लड़कियों को नापतेतोलते रहते. इन की इन्हीं हरकतों की वजह से मैं कई बार गुस्से से भर कर इन्हें झिड़क देती.

मैं यहां तक कह देती, ‘सुधर जाओ, नहीं तो तलाक दे दूंगी.’

इस पर इन का एक ही जवाब होता, ‘डार्लिंग, मैं तो मजाक कर रहा था. तुम भी कितना शक करती हो. थोड़ी तो मुझे खुली हवा में सांस लेने दो, नहीं तो दम घुट जाएगा मेरा.’

एक बार हम कार से डिफैंस कौलोनी के फ्लाईओवर के पास से गुजर रहे थे. वहां एक खूबसूरत लड़की को देख पतिदेव शुरू हो गए, ‘‘दिल्ली की सड़कों पर, जगहजगह मेरे मजार हैं. क्योंकि मैं जहां खूबसूरत लड़कियां देखता हूं, वहीं मर जाता हूं.’’

मेरी तनी भौंहें देखे बिना ही इन्होंने आगे कहा, ‘‘कई साल पहले भी मैं जब यहां से गुजर रहा था, तो एक कमाल की लड़की देखी थी. यह जगह इसीलिए आज तक याद है.’’

मैं ने नाराजगी जताई, तो ये कार का गियर बदल कर मुझ से प्यारमुहब्बत का इजहार करने लगे और मेरा गुस्सा एक बार फिर कमजोर पड़ गया.

लेकिन, हर लड़की पर फिदा हो जाने की इन की आदत से मुझे कोफ्त होने लगी थी. पर हद तो तब पार होने लगी, जब एक बार मैं ने इन्हें हमारी जवान पड़ोसन से फ्लर्ट करते देख लिया. जब मैं ने इन्हें डांटा, तो इन्होंने फिर वही मानमनौव्वल और प्यारमुहब्बत का इजहार कर के मुझे मनाना चाहा, पर मेरा मन इन के प्रति रोजाना खट्टा होता जा रहा था.

धीरेधीरे हालात मेरे लिए सहन नहीं हो रहे थे. हालांकि हमारी शादी को अभी डेढ़दो महीने ही हुए थे, लेकिन पिछले 10-15 दिनों से इन्होंने मेरी देह को छुआ भी नहीं था. पर मेरी शादीशुदा सहेलियां बतातीं कि शादी के शुरू के महीने तक तो मियांबीवी तकरीबन हर रोज ही… मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर बात क्या थी. इन की अनदेखी मेरा दिल तोड़ रही थी. मैं तिलमिलाती रहती थी.

एक बार आधी रात में मेरी नींद टूट गई, तो इन्हें देख कर मुझे धक्का लगा. ये आईपैड पर पौर्न साइट्स खोल कर बैठे थे और…

‘‘जब मैं यहां मौजूद हूं, तो तुम यह सब क्यों कर रहे हो? क्या मुझ में कोई कमी है? क्या मैं ने तुम्हें कभी ‘न’ कहा है?’’ मैं ने दुखी हो कर पूछा.

‘‘सौरी डार्लिंग, ऐसी बात नहीं है. क्या है कि मैं तुम्हें नींद में डिस्टर्ब नहीं करना चाहता था. एक टैलीविजन प्रोग्राम देख कर बेकाबू हो गया, तो भीतर से इच्छा होने लगी.’’

‘‘अगर मैं भी तुम्हारी तरह इंटरनैट पर पौर्न साइट्स देख कर यह सब करूं, तो तुम्हें कैसा लगेगा?’’

‘‘अरे यार, तुम तो छोटी सी बात का बतंगड़ बना रही हो,’’ ये बोले.

‘‘लेकिन, क्या यह बात इतनी छोटी सी थी?’’

कभीकभी मैं आईने के सामने खड़ी हो कर अपनी देह को हर कोण से देखती. आखिर क्या कमी थी मुझ में कि ये इधरउधर मुंह मारते फिरते थे?

क्या मैं खूबसूरत नहीं थी? मैं अपने सोने से बदन को देखती. अपने हर कटाव और उभार को निहारती. ये तीखे नैननक्श. यह छरहरी काया. ये उठे हुए उभार. केले के नए पत्ते सी यह चिकनी पीठ. डांसरों जैसी यह पतली काया. भंवर जैसी नाभि. इन सब के बावजूद मेरी यह जिंदगी किसी सूखे फव्वारे सी क्यों होती जा रही थी. एक रविवार को मैं घर का सामान खरीदने बाजार गई. तबीयत कुछ ठीक नहीं लग रही थी, इसलिए मैं जरा जल्दी घर लौट आई. घर का बाहरी दरवाजा खुला हुआ था. ड्राइंगरूम में घुसी तो सन्न रह गई. इन्होंने मेरी एक सहेली को अपनी गोद में बैठाया हुआ था.

मुझे देखते ही ये घबरा कर ‘सौरीसौरी’ करने लगे. मेरी आंखें गुस्से और बेइज्जती के आंसुओं से जलने लगीं. मैं चीखना चाहती थी, चिल्लाना चाहती थी. पति नाम के इस प्राणी का मुंह नोच लेना चाहती थी. इसे थप्पड़ मारना चाहती थी. मैं कड़कती बिजली बन कर इस पर गिर जाना चाहती थी. मैं गहराता समुद्र बन कर इसे डुबो देना चाहती थी. मैं धधकती आग बन कर इसे जला देना चाहती थी. मैं हिचकियां लेले कर रोना चाहती थी. मैं पति नाम के इस जीव से बदला लेना चाहती थी. मुझे याद आया, अमेरिका के राष्ट्रपति रह चुके बिल क्लिंटन भी अपनी पत्नी हिलेरी क्लिंटन को धोखा दे कर मोनिका लेविंस्की के साथ मौजमस्ती करते रहे थे, गुलछर्रे उड़ाते रहे थे. क्या सभी मर्द एकजैसे बेवफा होते हैं? क्या पत्नियां छले जाने के लिए ही बनी हैं. मैं सोचती.

रील से निकल आया उलझा धागा बन गई थी मेरी जिंदगी. पति की ओछी हरकतों ने मेरे मन को छलनी कर दिया था. हालांकि इन्होंने इस घटना के लिए माफी भी मांगी थी, फिर मेरे भीतर सब्र का बांध टूट चुका था. मैं इन से बदला लेना चाहती थी और ऐसे समय में राज मेरी जिंदगी में आया. राज पड़ोस में किराएदार था. 6 फुट का गोराचिट्टा नौजवान. जब वह अपनी बांहें मोड़ता था, तो उस के बाजू में मछलियां बनती थीं. नहा कर जब मैं छत पर बाल सुखाने जाती, तो वह मुझे ऐसी निगाहों से ताकता कि मेरे भीतर गुदगुदी होने लगती. धीरेधीरे हमारी बातचीत होने लगी. बातों ही बातों में पता चला कि राज प्रोफैशनल फोटोग्राफर था.

‘‘आप का चेहरा बड़ा फोटोजैनिक है. मौडलिंग क्यों नहीं करती हैं आप?’’ राज मुझे देख कर मुसकराता हुआ कहता.

शुरूशुरू में तो मुझे यह सब अटपटा लगता था, लेकिन देखते ही देखते मैं ने खुद को इस नदी की धारा में बह जाने दिया. पति जब दफ्तर चले जाते, तो मैं राज के साथ उस के स्टूडियो चली जाती. वहां राज ने मेरा पोर्टफोलियो भी बनाया. उस ने बताया कि अच्छी मौडलिंग असाइनमैंट्स लेने के लिए अच्छा पोर्टफोलियो जरूरी था. लेकिन मेरी दिलचस्पी शायद कहीं और ही थी.

‘‘बहुत अच्छे आते हैं आप के फोटोग्राफ्स,’’ उस ने कहा था और मेरे कानों में यह प्यारा सा फिल्मी गीत बजने लगा था :

‘अभी मुझ में कहीं, बाकी थोड़ी सी है जिंदगी…’

मैं कब राज को चाहने लगी, मुझे पता ही नहीं चला. मुझ में उस की बांहों में सो जाने की इच्छा जाग गई. जब मैं उस के करीब होती, तो उस की देहगंध मुझे मदहोश करने लगती. मेरा मन बेकाबू होने लगता. मेरे भीतर हसरतें मचलने लगी थीं. ऐसी हालत में जब उस ने मुझे न्यूड मौडलिंग का औफर दिया, तो मैं ने बिना झिझके हां कह दिया. उस दिन मैं नहाधो कर तैयार हुई. मैं ने खुशबूदार इत्र लगाया. फेसियल, मैनिक्योर, पैडिक्योर, ब्लीचिंग वगैरह मैं एक दिन पहले ही एक अच्छे ब्यूटीपार्लर से करवा चुकी थी. मैं ने अपने सब से सुंदर पर्ल ईयररिंग्स और डायमंड नैकलैस पहना. कलाई में महंगी घड़ी पहनी और सजधज कर मैं राज के स्टूडियो पहुंच गई.

उस दिन राज बला का हैंडसम लग रहा था. गुलाबी कमीज और काली पैंट में वह मानो कहर ढा रहा था.

‘‘हे, यू आर लुकिंग गे्रट,’’ मेरा हाथ अपने हाथों में ले कर वह बोला. यह सुन कर मेरे भीतर मानो सैकड़ों सूरजमुखी खिल उठे.

फोटो सैशन अच्छा रहा. राज के सामने टौपलेस होने में मुझे कोई संकोच नहीं हुआ. मेरी देह को वह एक कलाकार सा निहार रहा था. किंतु मुझे तो कुछ और की ही चाहत थी. फोटो सैशन खत्म होते ही मैं उस की ओर ऐसी खिंची चली गई, जैसे लोहा चुंबक से चिपकता है. मेरा दिल तेजी से धड़क रहा था. मैं ने उस का हाथ पकड़ लिया.

‘‘नहीं नेहा, यह ठीक नहीं. मैं ने तुम्हें कभी उस निगाह से देखा ही नहीं. हमारा रिलेशन प्रोफैशनल है,’’ राज का एकएक शब्द मेरे तनमन पर चाबुक सा पड़ा.

‘…पर मुझे लगा, तुम भी मुझे चाहते हो…’ मैं बुदबुदाई.

‘‘नेहा, मुझे गलत मत समझो. तुम बहुत खूबसूरत हो. पर तुम्हारा मन भी उतना ही खूबसूरत है, लेकिन मेरे लिए तुम केवल एक खूबसूरत मौडल हो. मैं किसी और रिश्ते के लिए तैयार नहीं और फिर पहले से ही मेरी एक गर्लफ्रैंड है, जिस से मैं जल्दी ही शादी करने वाला हूं,’’ राज कह रहा था.

तो क्या वह सिर्फ एकतरफा खिंचाव था या पति से बदला लेने की इच्छा का नतीजा था?

कपड़े पहन कर मैं चलने लगी, तो राज ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया. उस ने स्टूडियो में रखे गुलदान में से एक पीला गुलाब निकाल लिया था. वह पीला गुलाब मेरे बालों में लगाते हुए बोला, ‘‘नेहा, पीला गुलाब दोस्ती का प्रतीक होता है. हम अच्छे दोस्त बन कर रह सकते हैं.’’

राज की यह बात सुन कर मैं सिहर उठी थी. वह पीला गुलाब बालों में लगाए मैं वापस लौट आई अपनी पुरानी दुनिया में…

उस रात कई महीनों के बाद जब पतिदेव ने मुझे प्यार से चूमा और सुधरने का वादा किया, तो मैं पिघल कर उन के आगोश में समा गई. खिड़की के बाहर रात का आकाश न जाने कैसेकैसे रंग बदल रहा था. ठंडी हवा के झोंके खिड़की में से भीतर कमरे में आ रहे थे. मेरी पूरी देह एक मीठे जोश से भरने लगी. पतिदेव प्यार से मेरा अंगअंग चूम रहे थे. मैं जैसे बहती हुई पहाड़ी नदी बन गई थी. एक मीठी गुदगुदी मुझ में सुख भर रही थी. फिर… केवल खुमारी थी. और उन की छाती के बालों में उंगलियां फेरते हुए मैं कह रही थी, ‘‘मुझे कभी धोखा मत देना.’’ कमरे के कोने में एक मकड़ी अपना टूटा हुआ जाला फिर से बुन रही थी.

इस घटना को बीते कई साल हो गए हैं. इस घटना के कुछ महीने बाद राज भी पड़ोस के किराए का मकान छोड़ कर कहीं और चला गया. मैं राज से उस दिन के बाद फिर कभी नहीं मिली. लेकिन अब भी मैं जब कहीं पीला गुलाब देखती हूं, तो सिहर उठती हूं. एक बार हिम्मत कर के पीला गुलाब अपने जूड़े में लगाना चाहा था, तो मेरे हाथ बुरी तरह कांपने लगे थे.

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