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मेरी शादी मेरे हिसाब से होगी: आलिया भट्ट

बौलीवुड की चुलबुली अदाकारा आलिया भट्ट धीरेधीरे शीर्ष अभिनेत्रियों की सूची में शामिल हो ही रही थीं कि इसी बीच उन की रिलीज हुई फिल्म ‘शानदार’ बौक्स औफिस पर औंधे मुंह जा गिरी. इस फिल्म में आलिया ने अपनी भूमिका को सीरियसली नहीं लिया. प्रमोशन के दौरान भी जो बातें उन से पूछी जातीं, उन्हें मजाक में टाल जातीं. इस से लगने लगा कि उन के इस व्यवहार की वजह उन की पहले की फिल्मों की सफलता है. कामयाबी उन के सिर चढ़ कर बोल रही है. एक इवेंट के दौरान आलिया भट्ट से मुलाकात होने पर उन के अफेयर और शादी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने बताया, ‘‘शादी करने की सही उम्र 32-33 वर्ष है और मैं इस उम्र से अभी काफी दूर हूं. मैं शादी में छोटी गैदरिंग चाहती हूं और वह ग्रीस में हो. मेरी शादी मेरे हिसाब से ही होगी. रही बात मेरे अफेयर की तो फिलहाल मेरा किसी से कोई अफेयर नहीं है.’’

आलिया ने बहुत कम उम्र में सफलता पाई है, जिसे ले कर वे बहुत खुश हैं. लेकिन इस बात से उन्हें डर भी लगता है. वे कहती हैं, ‘‘मैं ने स्कूल में हर रेस को जीता है. केवल एक रेस हारी थी. चौथी कक्षा में जब मैं ने रेस हारी, तो मैं बहुत रोई थी. टीचर से कहासुनी भी हो गई थी. मैं फेस्यर को सहन नहीं कर सकती. मैं जीत को महत्त्व देती हूं.’’

आलिया को कैरियर में तो कामयाबी मिली है पर दूसरे क्षेत्रों में नाकामयाबी हाथ लगी है. वे सीरियस हो कर कहती हैं, ‘‘मैं एक रोमांटिक लड़की हूं. बहुत इमोशनल और सैंसिटिव भी हूं. मुझे हर काम नंबर वन पर अच्छा लगता है. लव लाइफ में मैं ने बहुत असफलता फेस की है. मगर उस से मुझे शक्ति मिली. अगर गिरोगे नहीं तो उठोगे कैसे? इस सोच को मैं हमेशा अपने पास रखती हूं. मैं अभी अपने कैरियर पर फोकस्ड हूं. इस दौरान अगर कुछ गलत भी करती हूं, तो उसे हमेशा पीछे छोड़ कर आगे बढ़ जाना चाहती हूं. यह मेरी कमजोरी और शक्ति दोनों हैं.’’

आलिया हमेशा सोचसमझ कर फिल्में चुनती हैं पर कई बार उन का चुनाव गलत भी हो जाता है. फलस्वरूप तनाव होता है. तनाव को कम करने के लिए वे अपने परिवार का सहयोग लेती हैं. वे कहती हैं, ‘‘मेरे परिवार में मेरी मौम मेरी सपोर्ट सिस्टम हैं. खानापीना, पहनना सब कुछ उन का रहता है. वे साइलैंट सपोर्टर हैं. जब मैं तनाव में आती हूं तो उन्हें या अपनी बहन को एक मैसेज छोड़ देती हूं कि मैं तनावग्रस्त हूं. सभी चुप हो जाते हैं. कुछ नहीं पूछते. मेरी मां हर रात मेरे लिए काजूमिल्क बनाती हैं, जो मुझे रिलैक्स करता है. अगर आप फिल्मी परिवार से नहीं हैं तो आप इस तनाव को समझ नहीं सकते. फिल्म साइन करना और अभिनय करना ही केवल काम नहीं होता. सब कुछ देखना पड़ता है. प्रमोशन, दर्शकों की पसंदनापसंद सब कुछ जानना आवश्यक है और मैं यह सब खुद देखती हूं.’’

आलिया भट्ट अलग घर में रहने वाली हैं, जिसे उन्होंने अपनी कमाई से खरीदा है. परिवार से अलग रहने की बात पर वे कहती हैं, ‘‘मेरे मातापिता मेरे इस कदम को सराहते हैं कि मैं सैल्फ डिपैंड हूं. घर खरीदने की वजह अधिक जगह का होना है. मेरे कपड़े ओवरफ्लो हो रहे थे. घर पर तैयार नहीं हो पाती थी. मेरी बहन रात को सोती नहीं. वह नींद संबंधी विकार की शिकार है, इसलिए दिन में सोती है. मैं उसे डिस्टर्ब नहीं करती. मेरा घर मेरे पिता के घर से मात्र 100 गज की दूरी पर है. अभी मुझे चिता हो रही है कि मैं पूरे घर को कैसे संभालूंगी.’’

आलिया को आज भी अपना बचपन याद है जब उन्हें केवल क्व50 पौकेट मनी में महीना निकालना पड़ता था. फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ की सफलता के बाद जब उन्हें पहली पेमैंट मिली तो उस से उन्होंने अपने पिता के फार्महाउस में अपने नाम से स्विमिंग पूल बनवाया. वे युवा पीढ़ी से कहती हैं कि यह समय उस के आगे बढ़ने का है. लड़का हो या लड़की हर कोई अपनी प्रतिभा को जाने. उसे करना क्या है और फिर उसी हिसाब से आगे बढ़े तो यकीनन सफलता मिलेगी. केवल ग्लैमर वर्ल्ड को देख कर इस में कदम न रखें. अगर प्रतिभा है तभी प्रशिक्षण ले कर इस क्षेत्र में आएं.

आलिया की फैशन सैंस बहुत अच्छी है. उन्हें पता होता है कि कब क्या पहनना है. आलिया की आने वाली फिल्में ‘उड़ता पंजाब’ और ‘कपूर ऐंड संस’ हैं. उन का कोई ड्रीम प्रोजैक्ट नहीं है.

आग में घी

अब लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन भी चाहने लगी हैं कि जातिगत आरक्षण पर दोबारा सोचविचार हो. इस संवेदनशील मुद्दे पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत बोले थे तो बिहार में भाजपा की दुर्गति हुई. उसे देख भागवत ने इस मुद्दे को प्रणाम करते कह दिया था कि आरक्षण खत्म नहीं होगा.

फिर सुमित्रा महाजन क्यों बोलीं, वह भी उस सूरत में जब उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के चुनाव सिर पर हैं, हालांकि उन्होंने आड़ जातिगत भेदभाव की ली है कि यह क्यों अब तक कायम है. अब इस मासूमियत पर कौन फिदा न हो जाए, सच हर कोई जानता है कि जातिवाद कौन, कैसे और कितनी तादाद में फैलाता है. ऐसे में फिर बहस या पुनर्विचार की गुंजाइश ही कहां बचती है.

 

गरीबी तो हट चुकी

राहुल गांधी  को जब अपनेआप को सियासी तौर पर चार्ज करना होता है तो वे सीधे बुंदेलखंड पहुंच जाते हैं जहां गले लगाने के लिए गरीब आदमी इफरात में मिल जाते हैं. यूरोप में छुट्टियां मना कर लौटते ही बीते दिनों उन्होंने यही किया और पीएम नरेंद्र मोदी को ललकार दिया कि देखो, गरीबों की तरफ देखो.

इधर, नरेंद्र मोदी बहुत व्यस्त हैं. कभी वे विदेश जाते हैं तो कभी विदेशियों को यहां बुला लेते हैं. ऐसे में गरीबों को देखने की जिम्मेदारी उन्होंने विपक्षियों पर ही छोड़ दी है. गरीबी कभी बड़ा राजनीतिक मुद्दा हुआ करती थी अब नहीं है. इस की वजहें कुछ भी हों, चलन में नहीं रही. इसलिए आजम खान राहुल गांधी को पप्पू कहते हुए चौकलेट खाने का मशवरा देते हैं. जाहिर है राहुल को सही दिशा नहीं मिल रही, जिस पर चल कर वे अपनी राजनीति चमका पाएं.

आज जाना

नेह का प्रतिदान भी कितना कठिन है

आज जाना

विस्मृत पलों की सुरभि को

अनजान फूलों में बसाना

फिर नयी माला बनाना

क्या  कहीं इतना सरल है

आज जाना

मौन के वाचाल क्षण को

वाकपटुता से भुलाना

फिर नया इतिहास रचना

क्या कहीं इतना सरल है

आज जाना

 

– सुभाषिनी शर्मा

अलीगढ़ः समलैंगिकता पर सवाल

‘‘किसी भी इंसान के शयन कक्ष (बेडरूम) में पड़ोसी या किसी भी इंसान को झांकने की इजाजत किसने दी, के सवाल के साथ अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के मराठी भाषा के प्रोफेसर स्व.सिरास के अंतिम तीन माह की कहानी को यथार्थ परक तरीके से फिल्म ‘‘अलीगढ़’’ में पेश करने का काम फिल्मकार हंसल मेहता ने किया है. ‘‘बुसान’’ व ‘17वें मामी’ सहित कुछ अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में वाहवाही बटोर चुकी फिल्म ‘‘अलीगढ़’’ एक बेहतरीन संजीदा फिल्म है. यह फिल्म दर्शक को सोचने पर मजबूर भी कर सकती है. पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या यह फिल्म दर्शकों को सिनेमाघर के अंदर खींच पाएगी? तो इसका जवाब ‘न’ में ही आता है.

फिल्मकार हंसल मेहता ने जिस यथार्थपरक तरीके से इस फिल्म का निर्माण किया है, उससे फिल्म की गति न सिर्फ बहुत धीमी है, बल्कि कुछ दृश्य उबाउ भी हो गए हैं. कुल मिलाकर लोग ‘अलीगढ़’ को ‘फेस्टिवल फिल्म’ के रूप में ही याद करेंगे. परिणामतः फिल्मकार ने जिस अहम मुद्दे से प्रेरित होकर यह फिल्म बनायी है, वह आम लोगों तक नहीं पहुंच पाएगा.

दो घंटे की अवधि वाली फिल्म ‘अलीगढ़’ में कई मुद्दों के साथ ही 64 वर्षीय प्रोफेसर सिरास की सत्य कथा को बयां करने के बहाने ‘गे’ यानी कि ‘होमो सेक्सुआलिटी’ का अहम मुद्दा भी उठाया गया है, जिस पर इन दिनों सुप्रीम कोर्ट सुनवायी कर रहा है. वास्तव में दिल्ली उच्च न्यायालय का ‘होमोसेक्सुआलिटी’ को गैरआपराधिक घोषित करना और होमो सेक्सुआलिटी के आरोप में अलीगढ़ यूनिवर्सिर्टी द्वारा प्रोफेसर सिरास का निलंबन एक ही दिन हुआ था. इसी आधार पर सिरास ने अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के खिलाफ इलहाबाद हाईकोर्ट में मुकदमा जीत लिया था. पर इस जीत के दूसरे ही दिन रहस्यममय परिस्थिति में प्रोफेसर सिरास का देहांत हो गया था. इसके कुछ ही दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुनः होमो सेक्सुआलिटी को अपराध घोषित कर दिया था. फिल्म में नैतिकता की संवैधानिक सीमा तय करने के साथ इंसान के अकेलेपन का मुद्दा भी उठाया गया है.     

फिल्म की कहानी 64 वर्षीय प्रोफेसर सिरास (मनोज बाजपेयी) की है, जो कि अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में मराठी भाषा की शिक्षा देते है, जहां उर्दू भाषा का बोलबाला है. प्रोफेसर सिरास अच्छे कवि हैं. उनकी कविताओं की कई पुस्तकें बाजार में हैं. वह लता मंगेषकर के गाने सुनने के अलावा शराब पीने के शौकीन हैं. 35 साल की नौकरी करने के बाद उन्हे भाषा विभाग का चेअरमैन बना दिया जाता है. यह बात अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुछ प्रोफेसरों को पसंद नहीं आती है. यह प्रोफेसर, प्रोफेसर सिरास को धमकाते हैं. इस धमकी के महज एक सप्ताह बाद एक टीवी चैनल का रिपोर्टर व कैमरामैन रात में उस वक्त प्रोफेसर सिरास के बेडरूम में पहुंच जाता है, जब प्रोफेसर सिरास एक युवा रिक्शेवाले के साथ समलैंगिक क्रिया में मशगूल होते है. टीवी रिपोर्टर उनके दृश्यों को फिल्माने के अलावा प्रोफेसर सिरास व रिक्शेवाले की पिटाई करते हैं, तभी अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के पीआरओ तीन अन्य अफसरों के साथ वहां पहुंच जाते हैं. दूसरे दिन हर अखबार में यह खबर छप जाती है. और अलीगढ़ यूनिवर्सिटी आनन फानन में समलैंगिकता के आरोप में प्रोफेसर सिरास को उनके रिटायरमेंट से सिर्फ तीन माह पहले निलंबित कर देतीहै.

सात दिन के अंदर उनका घर भी खाली करवा लेती है. उसके बाद प्राफेसर सिरास की व्यथा शुरू होती है. इधर दिल्ली के ‘इंडिया पोस्ट’ के नए पत्रकार पीकू (राज कुमार राव) को यह सेक्स स्कैंडल की बजाय मानवीय कहानी नजर आती है और वह बड़े जद्दोजेहाद करके अपने वरिष्ठ की इजाजत लेकर अलीगढ़ पहुंचकर प्रोफेसर सिरास के अलावा अलीगढ़ यूनिवर्सिटी के कुछ लोगों से मिलकर जांच करना शुरू करता है और वह सवाल उठाता है कि कि प्रोफेसर सिरास के शयनकक्ष में घुसने की इजाजत चैनल की टीम को किसने दी थी? यदि यह बिना इजाजत घुसे थे, तो अलीगढ़ यूनिवर्सिटी ने इस कैमरा टीवी के दोनो पत्रकारों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की? उसके बाद प्रोफेसर सिरास अपने निलंबन के खिलाफ इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचते हैं. जहां समलैंगिकता और संविधान में प्रदत्त इंसान की आजादी को लेकर बहस होती है. इलाहाबाद हाईकोर्ट प्रोफेसर सिरास के पक्ष में फैसला देते हुए अलीगढ़ यूनिवर्सिटी को आदेश देता है कि प्रोफेसर सिरास को नौकरी पर बहाल करे. अदालत का आदेश यूनिवर्सिटी में पहुंचने से पहले ही घर के अंदर रहस्यमय परिस्थिति में प्रोफेसर सिरास की मौत हो जाती है.

यह महज एक फिल्म नही है. यह ‘गे’ अधिकारों की मांग के साथ साथ हक के लिए सतत संघर्ष की बात करती है. मानवीय अधिकारों के साथ साथ उम्मीदों की बात करती हैं. फिल्म में कई दृश्य ऐसे हैं, जहां दर्शक संवेदना और मानवता के धरातल पर प्रोफेसर सिरास के साथ खड़ा नजर आएगा. फिल्मकार हंसल मेहता अपनी चिरपरिचित अंदाज में ही नजर आते हैं. गंभीर कथा को बयां करने का हंसल मेहता का अपना अलग अंदाज है. मगर फिल्म को गति देने के लिए फिल्म के कई दृश्य हटाए जा सकते हैं.

फिल्म में मनोज बाजपेयी और राजकुमार राव दोनो ने बेहतरीन अभिनय किया है. फिल्म में तमाम सीन ऐसे हैं, जहां इन दोनो ने संवादों की बजाय अपनी आंखों के भावों से बहुत कुछ अभिव्यक्त किया है. मनोज बाजपेयी ने एक बार फिर लाइफटाइम परफार्मेंस दी है. उन्होने सिनेमा के परदे पर प्रोफेसर सिरास को केरीकेचर नहीं बनने दिया. फिल्म में प्रोफेसर सिरास के दुःख, दर्द, बेबसी, निराशा, उम्मीद, गुस्से, अकेलापन, अपमान को मनोज बाजपेयी ने परदे पर इस तरह से जिया है कि यह संवेदनाएं व इंसानी भावनाएं लोगो के दिलों को छू जाती हैं.

‘‘कर्मा पिक्चर्स’’ और ‘‘ईरोज इंटरनेशनल’’ के बैनर तले बनी फिल्म ‘‘अलीगढ़’’ के निर्माता हंसल मेहता, सुनील लुल्ला और संदीप सिंह, निर्देशक हंसल मेहता, एडीटर अपूर्वा असरानी, संगीतकार करण कुलकर्णी, कैमरामैन सत्यराय नागपाल हैं.

बौलीवुड डायरीजः सपनों की कहानी

फिल्म की कहानी के केंद्र में तीन पात्र हैं. एक है रोहित (सलीम दिवान), जो कि दिल्ली के मध्यमवर्गीय परिवार का युवक है और एक काल सेंटर में नौकरी करता है. दूसरा पात्र है दुर्ग, भिलाई निवासी 52 वर्षीय सरकारी नौकर विष्णु श्रीवास्तव (आषीष विद्यार्थी). और तीसरा पात्र कलकत्ता के मशहूर रेडलाइट एरिया सोनागाछी की वेश्या इमली (राइमा सेन). इन तीनों पात्रों में समानता यह है कि यह तीनों मुंबई के बौलीवुड में बतौर कलाकार स्थापित होने का सपना देख रहे हैं. फिल्म में इन तीनों पात्रों की कहानी समानांतर चलती रहती है.

रोहित को लगता है कि उसके अंदर बौलीवुड में सुपरस्टार बनने की असीम क्षमता है. वह बाथरूम के अंदर फिल्मों के कई दृश्यों की नकल करता रहता है. वह अक्सर मुंबई में फिल्मों से जुड़े लोगों से फोन पर संपर्क करता रहता है. एक बार स्टार हंट करने के लिए मुंबई से एक टीम दिल्ली पहुंचती है, तब रोहित अपनी अभिनय क्षमता का प्रदर्शन करने पहुंचता है. रोहित के अंदर सिनेमा का पैशन देखकर टैलेंट हंट टीम उसे तीन मौके देती है,पर अंत में यह टीम कह देती है कि उसके अंदर सिनेमा के प्रति पैशन है, पर उसके अंदर कला का अभाव है. इसलिए वह उसे मुंबई नहीं ले जा सकते. इससे रोहित का दिल टूट जाता है और वह पागल सा हो जाता है.

विष्णु श्रीवास्तव अपनी बेटी की शादी करने के बाद अपनी पत्नी लता (करूणा पांडे) को बताता है कि उसने नौकरी से स्वैच्छिक अवकाश ले लिया है और अब वह अपने अभिनय के शौक को पूरा करने के लिए मुंबई जाने वाले हैं. पहले उनकी पत्नी लता इसका विरोध करती हे. फिर वह विष्णु को मुंबई जाने की इजाजत दे देती हे. मुंबई के लिए रवाना होने से पहले विष्णु अपने सभी दोस्तों के लिए एक पार्टी आयोजित करता है. इसी पार्टी में वह बेहोश हो जाता है. अस्पताल में पता चलता है कि विष्णु को तीसरे स्टेज का पेट का कैंसर है. अब अपनी मौत को नजदीक देख धार्मिक गुरू सुंदर दास (राबिन दास) को बुलाकर उनसे कहता है कि वह कुछ ऐसा उपाय करे, जिससे मरने के बाद उनका जन्म बौलीवुड के किसी सुपर स्टार के घर में हो और वह बौलीवुड में आसानी से अपना सपना पूरा कर सके. गुरू सुंदर दास, विष्णु से कई तरह की पूजा,हवन व दान करवाते हैं और अंत में उससे कहते हैं कि वह बौलीवुड का सपना देखते हुए ही मौत को गले लगाएं.

उधर कलकत्ता के सोनागाछी की वेश्या ईमली को लगता है कि वह सुंदर है, अच्छा नृत्य कर लेती है. तो फिर वह बौलीवुड की सफल हीरोईन क्यों नहीं बन सकती. इसलिए वह सिर्फ मुंबई से आने वाले ग्राहकों को ही अपनी सेवाएं देती है. एक दिन मुंबई से बौलीवुड में सहायक निर्देशक के रूप में कार्यरत दमन (विनीत सिंह) उसके पास पहुंचता है. वह वेश्याओं की जिंदगी पर रिसर्च करना चाहता है. ईमली अपनी कहानी सुनाती है. ईमली की कहानी सुनते हुए ईमली के साथ कुछ दिन बिताकर दमन ‘ईमली’ नामक फिल्म की पटकथा लिखकर कहता है कि वह ईमली को ही इस फिल्म में हीरोईन लेगा. अब वह ईमली का फोटो सेशन कराना चाहता है. जिसके लिए डेढ़ लाख रूपए चाहिए, जो कि दमन के पास नहीं है. तब ईमली अपने वह जमा पूंजी दमन को देती है, जो कि उसने अपनी बेटी मिली की पढ़ाई के लिए रखे थे. दमन मुंबई चला जाता है और एक दन टीवी समाचार से ईमली को पता चलता है कि दमन ने बौलीवुड की दूसरी हीरोईन को लेकर फिल्म ‘ईमली’ शुरू कर दी. तब मजबूरन ईमली दुबई पहुंच जाती हैं.

‘‘गट्टू’’ जैसी फिल्म के लेखक के डी सत्यम की यह बतौर निर्देशक पहली फिल्म है, जिसका लेखन भी उन्होने ही किया है. फिल्म की कहानी में नयापन नहीं है. फिल्म के तीनों पात्रों की कहानियां गाहे बगाहे अक्सर सुनाई देती रहती हैं. निर्देशक ने अपनी फिल्म के तीनों पात्रों के बौलीवुड सपने पूरे न होते दिखाकर यह संकेत देने का प्रयास किया है कि लोगों को बौलीवुड के सपने नहीं देखने चाहिए. जबकि बौलीवुड में आने वाले कई लोग असफल तो कुछ सफल होते रहते हैं. लेकिन फिल्म में रोहित का जो पात्र है. वह भी एक यथार्थ सच है. इस फिल्म को देखने के बाद रोहित जैसे लोगों को तो बौलीवुड का सपना नहीं देखना चाहिए. निर्देशक के डी सत्यम बौलीवुड में कुछ बनने का सपना देखने वालों के मनोविज्ञान व उनकी मनःस्थिति को बहुत सही अंदाज में परदे पर उतारने में कामयाब रहे हैं. फिल्म का गीत संगीत भी बेहतर है. इसके लिए फिल्म के संगीतकार विपिन पटवा बधाई के पात्र हैं.

फिल्म ‘‘बौलीवुड डायरीज’’ का निर्माण फिल्म में रोहित का किरदार निभाने वाले अभिनेता सलीम दिवान के पिता डॉक्टर सत्तार दिवान ने किया है. यानी कि सलीम दिवान ही फिल्म के अपरोक्ष निर्माता हैं. डॉक्टर सत्तार दिवान की ‘‘राजस्थान औषधालय’’ नामक दवा कंपनी के अलावा कई दूसरी कंपनियां हैं. घर में पैसा हो तो अभिनय का शौक होना लाजमी है. रोहित के किरदार में बतौर अभिनेता सलीम दिवान कहीं से भी प्रभावित नहीं करते हैं. निर्देशक के डी सत्यम ने फिल्म के कई दृश्यों में रोहित की शर्ट उतरवाकर पता नहीं क्या साबित करने का प्रयास किया है. फिल्म में यदि राइमा सेन व आशीष विद्यार्थी न होते तो फिल्म का एक शो भी चलना मुश्किल हो जाता. आशीष विद्यार्थी ने बहुत ही संजीदा अभिनय किया है. राईमा सेन एक अच्छी अदाकारा हैं, इसमें कोई दो राय नहीं. यह एक अलग बात है कि उन्हें बौलीवुड में अपनी अभिनय क्षमता दिखाने के सही मौके नहीं मिल पाए हैं. इस फिल्म में उन्होंने बहुत खुबसूरत दिखने के साथ साथ ईमली के किरदार में जान डाली है.

डॉक्टर सत्तार दिवान निर्मित फिल्म ‘‘बौलीवुड डायरीज’’ के लेखक व निर्देशक के डी सत्यम, संगीतकार विपिन पटवा, गीतकार डॉक्टर सागर, कैमरामैन देव अग्रवाल हैं.

दिल्ली में 11 जून को होगा विजेंदर का पहला मुकाबला

भारत के स्टार मुक्केबाज विजेंदर सिंह का पहला पेशेवर खिताबी मुकाबला 11 जून को यहां इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में हो सकता है और इसे मंजूरी देने वाली संस्था विश्व मुक्केबाजी संगठन (डब्ल्यूबीओ) ने वादा किया है कि यह ऐतिहासिक होगा. पेशेवर मुक्केबाजी में विजेंदर ने अब तक केवल तीन मुकाबले लड़े हैं लेकिन तीनों में उन्होंने नॉकआउट में जीत दर्ज की. वह डब्ल्यूबीओ मिडिलवेट या सुपर मिडिलवेट खिताब के लिये लड़ेंगे. उनके प्रतिद्वंद्वी पर फैसला अगले कुछ सप्ताहों में किया जाएगा.

भारत में 'फाइट करना' विजेंदर के लिए बड़ी बात
विजेंदर के ब्रिटिश स्थित प्रमोटर्स फ्रांसिस वारेन ने कहा, ''यह उसके लिये अपने पहले खिताब के लिये लड़ने का सही समय है. असल में यह निश्चित तौर पर वित्तीय रूप से सही समय है क्योंकि हमारा मानना है कि उसके लिये भारत में लड़ना बहुत बड़ी बात होगी. जून के मुकाबले से पहले उसे ब्रिटेन में तीन फाइट करनी हैं. इनमें से पहली 12 मार्च को लिवरपूल, फिर दो अप्रैल और 30 अप्रैल को होगी. कुछ समय के विश्राम के बाद वह या तो डब्ल्यूबीओ मिडिलवेट या सुपर मिडिलवेट खिताब के लिए लड़ेगा.'' उन्होंने कहा, ''वह (विजेंदर) पिछले कुछ समय से घर से बाहर है और इसलिए यह उसके लिये अच्छा होगा कि वह अपने लोगों के साथ रहे और समय भी बहुत अच्छा है क्योंकि जुलाई अगस्त में ब्रिटेन में बहुत अधिक मुक्केबाजी नहीं होती है.

इसलिए भारत में आयोजित हो रहा यह मुकाबला
डब्ल्यूबीओ उपाध्यक्ष जान डुग्गन ने कहा कि उनकी संस्था ने भारत के मुक्केबाजी राष्ट्र के रूप में उबरने की संभावना को देखते हुए मुकाबले को मंजूरी देने का फैसला किया. उन्होंने कहा, ''विजेंदर सिंह मशहूर मुक्केबाज है जिसने एमेच्योर स्तर पर इतना कुछ हासिल किया. हमारा मानना है कि वह केवल क्षेत्रीय आधार पर नहीं बल्कि विश्व खिताब के लिये भी क्वालीफाई कर सकता है. 11 जून को शानदार मुकाबला होगा और मुझे पूरा विश्वास है कि यह ऐतिहासिक और रोमांचक होगा.'' मुकाबले का स्थल इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम होगा जिसका आज वारेन और डुग्गन ने दौरा किया. विजेंदर के भारतीय प्रमोटर आईओएस के प्रबंध निदेशक नीरव तोमर ने कहा, ''आईजी स्टेडियम से बेहतर कुछ नहीं हो सकता. हम 15 से 20 हजार दर्शकों की उम्मीद कर सकते हैं और यह मुकाबले के लिये आदर्श स्टेडियम होगा. यह इस तरह के बड़े मुकाबले के आयोजन के लिये पूरी तरह से तैयार है.''

 

 

फोर्ब्स की लिस्ट में विराट के साथ सानिया-सायना भी

टीम इंडिया के टेस्ट कप्तान विराट कोहली, टेनिस स्टार सानिया मिर्जा और बैडमिंटन की टॉप खिलाड़ियों  में शुमार सायना नेहवाल एशिया के 30 साल से कम होनहार युवा नेताओं और उद्यमियों की फोर्ब्स की पहली लिस्ट में शामिल 50 से अधिक भारतीयों में टॉप पर रहे.

फोर्ब्स की 30 अंडर-30 एशिया लिस्ट में भारत, इंडोनेशिया, चीन, हांगकांग, सिंगापुर, जापान, पाकिस्तान, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के उन 300 युवा उद्यमियों और नेतृत्वकर्ताओं को शामिल किया गया है जो महत्वपूर्ण तरीके से अपने क्षेत्रों में योगदान दे रहे हैं.

विराट के बारे में
इस लिस्ट में 56 भारतीयों को शामिल किया गया है जिनमें कोहली, सानिया, सायना और एक्ट्रेस श्रद्धा कपूर टॉप पर हैं. 2015 में एक करोड़ 13 लाख डॉलर की सर्वाधिक कमाई करने वाले भारतीय सिलेब्रिटी कोहली के बारे में फोर्ब्स ने कहा, 'भारत की क्रिकेट संस्कृति के टॉप पर बल्लेबाजी के शहजादे कोहली हैं, जिन्होंने अपने शानदार खेल से भारत को जनवरी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टी-20 सीरीज में एकतरफा जीत दिलाई थी.'

सानिया के बारे में
फोर्ब्स ने कहा कि 29 वर्षीय सानिया ने जब 2003 में 16 वर्ष की आयु में पेशेवर रूप से टेनिस खेलना शुरू किया था, वह तभी से सबसे सफल महिला भारतीय टेनिस खिलाड़ी रही हैं और देश में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले खिलाडि़यों में शामिल रही हैं. वह इस समय अपनी जोड़ीदार मार्टिना हिंगिस के साथ दुनिया की टॉप महिला युगल टेनिस खिलाड़ी हैं.

सायना के बारे
फोर्ब्स ने 25 वर्षीय सायना को आदर्श और भारतीय बैडमिंटन मल्लिका करार देते हुए कहा है कि वर्ल्ड नंबर वन महिला सिंगल खिलाड़ी दुनिया के उन 24 टॉप खिलाड़ियों में शामिल हैं जो इस अगस्त रियो खेलों के दौरान अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के एथलेटिक्स आयोग के चुनाव में खड़े हैं.

फोर्ब्स 30 अंडर-30 एशिया की लिस्ट में कुल 10 श्रेणियां हैं. इस सूची में उपभोक्ता तकनीक, उद्यम प्रौद्योगिकी, कला, स्वास्थ्य देखभाल एवं विज्ञान, मीडिया, सामाजिक उद्यमिता, वित्त, उद्योग और खुदरा समेत विभिन्न क्षेत्रों के प्रेरणादायी युवा नेताओं को शामिल किया गया है.

 

 

 

 

संन्यास की योजना पर फिर से विचार कर रहे हैं अफरीदी

पाकिस्तान के आक्रामक आलराउंडर शाहिद अफरीदी आईसीसी विश्व टी20 के बाद अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास के अपने फैसले पर पुनर्विचार कर रहे हैं क्योंकि उन पर परिवार के सदस्यों और मित्रों का ‘काफी दबाव’ है. अपने 36वें जन्मदिन के करीब पहुंचे अफरीदी बांग्लादेश में पांच देशों के एशिया कप टी20 में पाकिस्तान की टीम की अगुआई कर रहे हैं. उन्होंने घोषणा की थी कि वह भारत में होने वाले विश्व टी20 के बाद संन्यास ले लेंगे. विश्व टी20 भारत में आठ मार्च को शुरू होगा जबकि तीन अप्रैल तक चलेगा.

वर्ष 2010 में टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने वाले अफरीदी ने पिछले साल एकदिवसीय क्रिकेट से भी संन्यास ले लिया था. ‘ईएसपीएनक्रिकइंफो’ ने अफरीदी के हवाले से कहा, ‘फिलहाल मेरे उपर परिवार का काफी दबाव है, मित्रों और परिवार के बड़े लोगों का काफी दबाव है जो कह रहे हैं कि मेरे ट्वेंटी20 से संन्यास लेने की कोई जरूरत नहीं है. काफी दबाव है.’

उन्होंने कहा, ‘‘सच कहूं तो फिलहाल मेरा ध्यान सिर्फ विश्व कप पर है. यह मेरे लिए बहुत बड़ी चुनौती है.’’ पाकिस्तान एशिया कप में अपना पहला मैच शनिवार को पाकिस्तान के खिलाफ खेलेगा. अफरीदी 90 मैचों में 91 विकेट के साथ खेल के सबसे छोटे प्रारूप में दुनिया के सबसे सफल गेंदबाज हैं. अफरीदी ने कहा कि सभी तरह के अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास का उनका फैसला एशिया कप और विश्व टी20 में प्रदर्शन पर भी निर्भर करेगा.

 

देश की माटी पुकारे

कई सालों के बाद मुझे विदेश जाने का मौका मिला था. जाहिर है कि बाहर भी देशी आदतें दिलोदिमाग पर छाई हुई थीं. अपने देश की मिट्टी की बात ही निराली है और उस से ज्यादा निराले इस मिट्टी के लोग. हमारा तो कतराकतरा इस से बना हुआ है. देश की मिट्टी और यहां के लोगों को खूब याद किया. आप कहेंगे कि इस में खास बात क्या है. आदमी घरपरिवार, राज्य, गांवखेड़े, कसबेशहर, देश से दूर जाएगा, तो इन की याद तो आएगी ही. वैसे ही जैसे पत्नी से दूर जाओ, तो उस की याद आती ही है.

यह बात अलग है कि पतिपत्नी साथसाथ ज्यादा देर बिना खटपट के रह नहीं सकते हैं. उस समय तो ऐसा लगता है कि कुंआरे रह कर अलग ही रहते, तो अच्छा रहता. यह हम अपनी नहीं आप की बात कर रहे हैं. हमारी तो शादीशुदा जिंदगी बहुत सुखी है. वैसे, हर आम पति यही सोचता है, आप भी और मैं भी. अब परदेश में देश की याद कैसेकैसे आई, यह थोड़ा सुन लें, तो आप के परदेश जाने पर काम आएगा.

परदेश में 15 दिन बीत गए थे. हमें यूरोप में एक भी आदमी ऐसा नहीं मिला, जो सड़क पर कहीं खड़े हो कर देशी ढंग से हलका हो रहा हो. कहां अपने देश में हर गलीनुक्कड़ में ऐसे लोगों के चाहे जब दर्शन हो जाते थे और यहां एक अदद आदमी का टोटा पड़ा था. हम ने सोचा कि सच में भारत ऐसे ही ‘विश्व गुरु’ नहीं कहलाता है. ये देश भले ही अपने को धनी समझते हों, लेकिन कई मामलों में कितने दरिद्रनारायण हैं. यहां हमारे वहां जैसा एक भी आदमी नहीं है. यहां के रेलवे स्टेशन का खालीपन देख कर जी भर आया. आदमी नहीं दिख रहे थे. रेलें खाली चलती थीं. एक कंपार्टमैंट में मुश्किल से 4-5 लोग मिलते थे. वे भी ऐसे बैठते थे कि एकदूसरे से कोई मतलब नहीं. जैसे दुश्मन देशों के नागरिक हों.

यह देख कर हम तो अंदर से टूट से गए. अपने यहां तो मूंगफली, पौपकौर्न बेचने वाले, कागज के टुकड़ों, बीड़ीसिगरेट के ठूंठों, पानी की खाली बोतलों, गुस्से से भरे लोगों से ठसाठस भरी ट्रेन में धक्कामुक्की करते, लड़तेभिड़ते, फिर दूसरे पल आपस में प्यार करते, बतियाते, ठहाके लगाते, सरकार को कोसते लोग हर जगह मिलते हैं. हम ने देखा कि ट्रेन में टीटीई के पीछे एक भी आदमी नहीं भाग रहा था. सोचा कि यह टीटीई कैसे अपना व बच्चों का पेट पालता होगा. वैसे, हमारे पास टिकट था, लेकिन हम खुद को रोक नहीं पाए. हम ने अपने बटुए से सौ डौलर का एक नोट निकाल कर ऐसे हवा में लहराया कि उस की नजर पड़ जाए और वह आ कर अपना काम कर जाए, लेकिन वह तो उलटा नाराज हो गया.

हम ने किसी तरह अपनेआप को इस आफत से छुटकारा दिलाया. यहां की सड़कों पर घूमे तो मायूसी हुई. न चाट के ठेले, न पानसिगरेट के, न चाय के, न पापड़ बेचने वाला, न चना जोर गरम बाबू वाला कोई और. कोई भीड़भाड़ भी नहीं. हमारे यहां जब तक भीड़ का रैला न दिखे, किसी रैली में सड़क जाम में न फंसे, तब तक मजा ही नहीं आए. और तो और, ट्रैफिक सिगनल 2 मिनट का भी हो, तो कोई उसे तोड़ते हुए अपने यहां जैसा नहीं दिखा. पूरे 2 मिनट तक आराम से इंतजार करता. हम तो बड़े मायूस हुए.

यहां के लोग जानवर प्रेमी बिलकुल नहीं लगे. वजह, किसी सड़क पर कुत्ते, बकरियां, गायभैंस, बैल यहां तक कि सूअर भी नहीं मिले. जानवरों की इतनी अनदेखी हम ने नहीं देखी. हमारे लोग तो स्टेशन व बस स्टैंड पर बिना इन के रह ही नहीं सकते. ‘पीटा’ वाले पता नहीं, हमें अवार्ड देने में इतनी देर क्यों कर रहे हैं. असली ‘एनीमल लवर’ हम ही हैं. वहां के बाजार में मुर्दनी छाई सी लगी. कोई खास भीड़ नहीं. कोई खुला सामान नहीं. हर सामान डब्बाबंद. कुछ खरीदो या कुछ दाम कम करने की बात करो, तो अजीब सा मुंह बनाए सेल्समैन. मजा ही नहीं आया खरीदारी करने में. सर्दीखांसी होने पर हम एक मैडिकल स्टोर में दवा लेने गए, तो उस ने बिना डाक्टर की परची के दवा देने से इनकार कर दिया. हमें तुरंत अपने वतन की दुकानें याद आईं. चाहे जो दवा बिना परची के झट से ले लो और कैमिस्ट भी डाक्टर की कमी अपनी सलाह दे कर पूरी कर देता था. हम ने मन में फिर दोहराया कि हम यहां नहीं रह पाएंगे.

यहां के एक दफ्तर में हमें एक काम से जाना पड़ा, तो बड़ा अजीब सा लगा. यहां के साहब के कमरे के बाहर कोई चपरासी नहीं मिला, जो कान में पैन डाल कर मैल निकाल रहा हो या तंबाकू मलते पंजे बजा रहा हो. दफ्तरों में कहीं भी न कोई कागज दिखा, न फाइलों के अंबार, न टैग उलझे हुए, न धूल खाते बस्ते. न पान की पीक का निशान ही दिखा. हम ने सोचा, ‘बहुत बंदिशें लगा रखी हैं. यहां जरूर तनाव में खुदकुशी के मामले ज्यादा तादाद में होते होंगे. हमारे यहां तो कोई बंदिश नहीं है, जिस को जो आता है, वह करने से उसे रोका नहीं जाता. ‘पान की पीक थूकने की, हलका होने की, गालीगलौज करने की, नाककान में उंगली डालने की, बाल व खोपड़ी खुजलाने की, सरकार व महंगाई को कोसने की कोई मनाही नहीं है.’

हम 20 दिन में ही विदेश से ऊब गए. सड़क के न तो बीचोंबीच में और न ही किनारे कहीं धार्मिक स्थल दिखे और न बतियाने वाले लोग. हम ने तो मन भर जाने से टिकट कैंसिल कर हफ्ते भर पहले का टिकट बनवा लिया और अपनी माटी की ओर लौट चले. दिल्ली एयरपोर्ट से उतर कर हम ने अपने शहर की ट्रेन पकड़ने की सोची. दिल्ली स्टेशन पर पहुंचते ही भीड़ देख कर हमारा दिल बागबाग हो गया. रात में घर पहुंचे, तो और बागबाग हो गया. ट्रेन के चूहों ने सूटकेस में 2 जगह छेद कर अपनी भूख शांत कर ली थी. हमारा बटुआ भी किसी ने पार कर ‘वैलकम बैक’ की परची जेब में उस की जगह रख दी थी. हम अपने देश जो आ गए थे.

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