फिल्म ‘‘नीरजा’’ में प्लेन हाईजैकर खलिल की क्रूरता, चेहरे पर गुस्सा और पागलपन का अंदाज ऐसा रहा कि हर कोई खलिल से नफरत करने लगा है. तभी तो नीरजा भानोट के भाई अखिल भानोट ने फिल्म ‘‘नीरजा’’ देखकर कहा कि फिल्म देखते समय उन्हे लग रहा था कि वह खलिल को पकड़कर गोली मार दें. ऐसे खूंखार व सायको आतंकवादी खलिल का किरदार निभाकर रातों रात स्टार बन जाने वाले अभिनेता जिम सर्भ की यह पहली प्रदर्शित फिल्म है. मूलतः पारसी जिम सर्भ लंबे समय से थिएटर से जुड़े हुए हैं. जिम सर्भ ने ‘‘नीरजा’’ से पहले ‘‘अजीब आशिक’’ और ‘‘यशोधरा’’ फिल्मों में अभिनय किया थ. मगर आम्र्सटर्डम इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में धूम मचाने के बावजूद ‘‘अजीब आशिक’’ रिलीज नहीं हो पायी. जबकि ‘‘यशोधरा’’ अधूरी पड़ी हुई है.

मगर ‘‘नीरजा’’ ने उन्हे रातों रात स्टार बना दिया है. अब विपुल शाह, अक्षय कुमार सहित कई दिग्गज फिल्मकार अपनी फिल्मों से जिम सर्भ को जोड़ना चाहते हैं. तो वहीं जिम सर्भ ने कोंकणा सेन शर्मा निर्देशित फिल्म ‘‘डेथ इन द गंज’’ की भी शूटिंग पूरी कर ली है. अब नौ मार्च से जिम सर्भ एक बहुत बड़े बैनर की फिल्म की शूटिंग शुरू करने वाले हैं, जिसको लेकर फिलहाल वह चुप रहना चाहते हैं.

आज जिम सर्भ को एक कलाकार के तौर पर पहचान मिल गयी है, तो उन्हें लग रहा है कि उन्होने भारत वापसी कर अच्छा कदम उठाया है. जी हां! मूलतः मुंबई निवासी जिम सर्भ स्कूली पढ़ाई ‘‘अमरीकन स्कूल आफ बाम्बे’’ से करने के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए अटलांटा चले गए थे. वहां पर उन्होने पढ़ाई करने के साथ साथ काफी थिएटर किया. यहां तक कि उन्हें अवार्ड भी मिला. पर एक दिन उन्हे अहसास हुआ कि वह अपनी पहचान खोते जा रहे हैं और वह वापस मुंबई लौट आए.

इस बारे में खुद जिम सर्भ कहते हैं-‘‘अटलांटा में कालेज से बाहर निकलने के बाद मैंने पहला नाटक ‘आइस ब्लेंड’ किया था. इस पहले नाटक के लिए ही मुझे सपोर्टिंग एक्टर का अटलांटा अवार्ड भी मिल गया था. पर कुछ समय बाद मुझे महसूस होने लगा कि वहां पर लोग अभिनय कर रहे थे पर अपनी मानवता को एक्स्प्लोर करने का अवसर नहीं मिल रहा था. कुछ नाटकों में अभिनय करने के बाद मैने महसूस किया कि वहां पर किसी को भी कला की परवाह नहीं है. उनकी इच्छा हमेशा दर्षकों के सामने रहने की ही होती थी. कुछ भी नानसेंस करते रहो. हर दिन वही एकरसता जैसा काम करना. बार बार खुद को दोहराना. यही सब हो रहा था. सभी एक दूसरे की तारीफ करने में मशगूल रहते थे. कहीं कुछ नयापन नहीं होता था.

मुझे लगा कि यह सब क्या हो रहा है. हम स्टेज पर जाकर अभिनय करते थे. लोग ताली बजा देते थे. फिर हम घर चले जाते थे. यह हर दिन का एक रूटीन सा बना हुआ था. हर दिन वही रूटीन काम करना मुझे पसंद नहीं था. जबकि मैं खुद को एक्स्प्लोर करना चाहता था. खुद की प्रतिभा का विकास करना चाहता था. तो एक दिन मुझे लगा कि मेरे लिए अटलांटा में कोई जगह नहीं है. मेरी सही जगह तो भारत में है. मैं यहां क्या कर रहा हूं. मैने सोचा कि यदि दूसरे कुछ नया करना नहीं चाहते, तो क्या हुआ. मैं कुछ नया और खास करता हूं. फिर मैं मुंबई वापस आया. मुंबई वापस आने के बाद थिएटर से जुड़ गया. फिल्में की. अब फिल्म ‘‘नीरजा’’ ने मुझे कलाकार के तौर पर पहचान बना दिला दी है.’’

लोग कह रहे हैं कि सिनेमा बदल गया. मगर जिम सर्भ को ऐसा नहीं लगता. जिम सर्भ अभिनीत पहली फिल्म ‘‘अजीब आशिक’’ आज तक रिलीज नहीं हो पायी. इस बारे में जिम सर्भ कहते हैं-‘‘फिल्म ‘नीरजा’ की सफलता ने मुझे शोहरत दिला दी है. इसके बावजूद मेरी पहली फिल्म ‘अजीब आशिसक’ रिलीज नहीं हो सकती. यह इतनी अधिक प्रयोगात्मक फिल्म है कि इसका रिलीज होना मुश्किल है. हर कोई चिल्ला रहा है कि सिनेमा बदल गया. मगर मेरे दोस्त ने फिल्म ‘कोर्ट’ बनायी. फिल्म आलोचकों ने इस फिल्म की काफी तारीफ की. इसे कई अवार्ड मिल गए. बड़ी मुश्किल से रिलीज हुई, तो थिएटर में दर्शक नहीं पहुंचा. ‘अजीब आशिक’ तो ‘कोर्ट’ से भी कई गुना ज्यादा प्रयोगात्मक फिल्म है. मुझे नहीं लगता कि ‘अजीब आशिक’ कभी भी रिलीज हो पाएगी. यह बहुत ही रोचक फिल्म है. यह नान कमर्शियल फिल्म है. इसमें नान जेंडर लोगों की बात करने के साथ ही मुंबई की राजनीति की बात की गयी है. इस फिल्म में ‘राजनीति की पहचान’ के प्रतीक के तौर पर मुंबई को लिया गया है. ये आम्स्टर्डम के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखायी जा चुकी है. मैंने खुद इस फिल्म का रश प्रिंट ही देखा था. उसके बाद जब यह फिल्म पूरी तरह से बन गयी, तब देख नहीं पाया.’’

जिम सर्भ अब फिल्म ‘‘नीरजा’’ से एकदम विपरीत प्यारा और मीठा सा किरदार फिल्म ‘‘डेथ इन द गंज’’ में निभा रहे हैं. उनकी तमन्ना कुछ अलग तरह के किरदार निभाने की है. वह कहते हैं-‘‘कॉम्पलीकेटेड किरदार निभाना मुझे पसंद है. मेरी नजर में कलाकार के लिए वह किरदार ज्यादा उत्तम होते हैं, जिनके दिमाग में क्या चल रहा है. यह भांपना लोगों के लिए मुश्किल हो. सिर्फ हीरो या विलेन के किरदार नही निभाना है. किरदार रोचक होना चाहिए.’’

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