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इन्हें भी आजमाइए

– सलवारकमीज के साथ मिलने वाले दुपट्टे अकसर सलावरकमीज के खराब हो जाने के बाद भी अच्छे रहते हैं. इन्हें आप घर में परदे बनाने के लिए इस्तेमाल कर सकती हैं क्योंकि ये कई रंगों और शेड्स में होते हैं.

– चावल पकाने के बाद उस का माड़ निकाल कर ठंडा होने पर उस से चेहरे की मसाज करें. 10 मिनट बाद चावल के पानी से ही चेहरा धो कर पोंछ लें. इस से त्वचा में कसावट आती है और पोर्स टाइट होते हैं.

– लहसुन को थोड़ा कूट लें और सोने से पहले इसे सिर पर वहां लगाएं जहां बाल झड़ रहे हों. इस के बाद औलिव औयल से मसाज करें और बालों को शावर कैप से ढक लें. अगले दिन अच्छे से धो लें. बालों का झड़ना रुकेगा.

– भोजन करते समय अगर आप को पानी पीने की आदत है तो उस की जगह दूध, मट्ठा व दही का सेवन करें. इस से आप का भोजन सही तरीके से पच सकेगा.

– टोस्ट की महक से किचन की बदबू दूर हो जाती है. बात आप को अजीब लग रही होगी लेकिन यह सही बात है. इस के लिए आप एक टोस्ट बना कर किचन में यों ही खुला छोड़ दें.

– मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द होने पर कपूर को नारियल के तेल में मिला कर मालिश कीजिए, आराम मिलेगा.

जनहित याचिका: महिलाओं पर जोक्स बंद हों

माननीय मुख्य न्यायाधीश महोदय,

सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय संघ

विषय : जनहित याचिका – हास्य का निशाना बनती महिलाएं

माननीय महोदय,

राष्ट्र की सजग और समर्पित नागरिक होने के नाते भारतीय संविधान की धारा 51 (ए) के अंतर्गत जनहित याचिका के माध्यम से मैं आप का ध्यान महिलाओं के साथ हो रहे भेदभाव की ओर दिलाना चाहती हूं. महोदय, क्या आप ने कभी गौर किया है कि हास्य की विभिन्न विधाओं, फिर चाहे वह चुटकुला हो, कार्टून हो, हास्य कविता हो या व्यंग्य, में ज्यादातर हम महिलाओं को ही निशाना क्यों बनाया जाता है आप कोई भी टीवी चैनल, समाचारपत्र या पत्रिका उठा कर देखिए, महिलाओं पर ही अधिक व्यंग्य और जोक्स सुननेपढ़ने को मिलते हैं. कभी हमारे फैशन, हमारी शारीरिक बनावट, हमारी चालढाल पर व्यंग्य किए जाते हैं तो कभी हमारे आईक्यू लेवल को व्यंग्य का निशाना बनाया जाता है. ‘कर दी महिलाओं वाली बात’ जैसे जुमले कह कर हमारी भावनाओं को आहत किया जाता है, हमारी छवि को खराब किया जाता है.

जोक्स के जरिए हम महिलाओं के साथ भेदभाव भी किया जाता है. जोक्स में जहां पुरुष को समझदार और बेचारा ठहराया जाता है वहीं महिलाओं को बेवकूफ व पतियों का शोषण करने वाली दर्शाया जाता है. इन जोक्स में हम महिलाओं की गपबाजी, सजनेसंवरने, शौपिंग ऐडिक्शन पर अटैक किया जाता है. बचपन से हम महिलाएं एक सिंगल लाइनर जोक सुनती आती हैं, ‘रेल का महिला डब्बा वह होता है जो इंजन से भी ज्यादा आवाज करता है.’ ‘हमें गर्व होना चाहिए हमारे देश की उन बहादुर महिलाओं पर जो भूखी तो रह सकती हैं पर चुप नहीं.’

दो महिलाओं को 15 साल की सजा मिली…

15 साल जेल में गुजारने के बाद जब दोनों रिहा हुईं तो उन्होंने मुसकराते हुए कहा- ‘चलो, अब बाकी बातें घर पहुंच कर करते हैं.’

महोदय, ये तो महिलाओं का टैलेंट होता है कि वे अपनी मन की बातें मन में नहीं रखतीं और हर किसी से खुल कर बात करती हैं. एक तरफ तो कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है दूसरी तरफ ऐसे जोक्स बनाए जाते हैं :

कोलंबस अगर मैरिड होता तो अमेरिका डिस्कवर नहीं कर पाता क्योंकि उस से किसी ने नहीं पूछा, ‘कहां जा रहे हो’, ‘क्यों जा रहे हो’, ‘किस के साथ जा रहे हो’, ‘मैं भी चलूंगी, वापस कब आओगे’, ‘घर में रह कर ही डिस्कवर कर लो’, ‘मेरी मां को ही साथ ले जाओ’, ‘मेरे लिए क्या लाओगे’, ‘वापसी में सब्जी लेते आना’, ‘पहुंच कर फोन करना’, ‘तुम ही क्यों हर बार डिस्कवर करते हो’, ‘कोई और क्यों नहीं कर सकता’, ‘खाना आ कर खाओगे या खा कर आओगे ’ वगैरहवगैरह.

महोदय हमारी भी भावनाएं आहत होती हैं. हमारी भी छवि खराब होती है. औरतें रसोई की बागडोर अपने हाथ में संभालती हैं. वहां भी उन के खानेपीने के शौक कुकिंग में उन के माहिर होने को ले कर जोक्स बनाए जाते हैं. नमूने पेश हैं :

पत्नी : खाने में क्या बनाऊं, इटैलियन, इंडियन, चायनीज या कौंटिनैंटल

पति : पहले तुम बना लो, नाम तो शक्ल देख कर रख लेंगे.

महोदय, ऐसे जोक्स पर रोक लगानी चाहिए और गाइडलाइन तय होनी चाहिए. हमारे फैशन, हमारी चालढाल, हमारे आईक्यू लेवल पर जोक नहीं बनने चाहिए. 

महोदय, हमारे साथ यह अन्याय क्यों  क्यों कोई हम महिलाओं के मानसम्मान, हमारी बिगड़ती छवि के लिए आवाज नहीं उठाता. जब दूसरे समुदायों को निशाना बनाया जाता है तो सभी जगहों से आवाजें उठती हैं लेकिन हमारे लिए कोई आवाज नहीं उठाता. उलटा, हम पर बने जोक्स को चटखारे लेले कर सुनाया जाता है. अपनी महिला बिरादरी के सम्मान की रक्षा के लिए मैं यह जनहित याचिका दायर कर रही हूं.

महोदय, जोक्स के माध्यम से यह भी दर्शाया जाता है कि पत्नियां अपने पतियों का शोषण करती हैं, उन्हें दुखी करती हैं. एक नमूना पेश है –

लड़की : शादी के बाद मैं तुम्हारे सारे दुख बांट लूंगी.

लड़का : पर मैं दुखी कहां हूं

लड़की : मैं शादी के बाद की बात कर रही हूं.

माननीय महोदय, आप ही बताएं, हम क्या पहनें, कैसे बोलें, हमारे फैशन पर हमारा मजाक क्यों बनाया जाए. अब आप इन जोक्स पर नजर डालिए :

एक महिला एक दुकान में भारतीय झंडा लेने गई. दुकानदार ने उसे तिरंगा दिया.

महिला ने उस से कहा, ‘और कलर दिखाइए ना.’

अगर लड़की मेकअप कर के, सजधज कर और किसी शादी, पार्टी या फंक्शन में जा रही हो तो समझ लें कि…

अगले दिन या तो फेसबुक पर उन की प्रोफाइल पिक बदलेगी या फिर रिलेशनशिप स्टेटस.

महोदय, दरअसल ये पुरुष हमारी खूबसूरती, हमारी फैशन सैंस से चिढ़ते हैं इसलिए वे जोक्स के माध्यम से हमारा मजाक बनाते हैं. कोई इन से पूछे-क्या इन्हें खूबसूरत स्मार्ट बीवी या गर्लफ्रैंड पसंद नहीं  वे जोक्स के माध्यम से हमारा मजाक क्यों बनाते हैं. इस के अलावा ये पुरुष भी तो फैशन या ब्यूटी के नजरिए से अपना मेकओवर कराते हैं. जब वे खुद ऐसा करते हैं तो उन्हें महिलाओं का मजाक बनाने की जुर्रत हरगिज नहीं करनी चाहिए.

मर्दों को क्या पता कि हमें फैशन के अनुसार खुद को अपडेट रखने के लिए और उस के अनुसार अपनी फिगर मेंटेन रखने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं. हमारी पसंद का फूड हमारे सामने होता है और डाइटिंग पर रहते हुए हमें अपने दिल पर पत्थर रख कर उस फूड के लिए न करना पड़ता है. उस समय हमारे दिल को जो पीड़ा पहुंचती है वह ये पुरुष क्या जानेंगे. जिस पतली कमर पर से पुरुषों की नजरें नहीं हटतीं उस के लिए हमें किना पसीना बहाना पड़ता है. कड़कड़ाती सर्दी में सैक्सी लुक के लिए कैसे हम डीप नैक ब्लाउज विदाउट स्वेटर और शाल कैरी करती हैं, यह हमारा दिल जानता है. हम तैयार होने में ज्यादा समय लेती हैं तभी तो परफैक्ट दिखती हैं. पुरुष भला क्या जानेंगे इस सब के पीछे छिपी हमारी मेहनत.

सो, निवेदन है कि हम महिलाओं के आत्मसम्मान हेतु जोक्स के बहाने हमारा मजाक बनाना बंद करने का फैसला सुनाइए

पूर्ण सम्मान के साथ-

महिलाओं पर बने जोक्स से पीडि़त एक महिला

‘औरतों को पीछे रख कर समाज आगे नहीं बढ़ सकता’

फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बना चुकी शबाना आजमी ने हर तरह के किरदार निभाए हैं. आज भी वे फिल्मों में सक्रिय हैं. अभिनय करने के साथसाथ वे सामाजिक कार्यों में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. एड्स के प्रति जागरूकता फैलाने में उन्होंने अहम भूमिका निभाई. 1997 में वे राज्यसभा की सदस्या मनोनीत की गईं, सांसद के रूप में उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता के साथ लिया. अत्यंत स्पष्टभाषी, दृढ़प्रतिज्ञ शबाना आजमी का नाम कभी फिल्म निर्देशक शेखर कपूर तो कभी अभिनेता शशि कपूर के साथ जोड़ा गया पर उन्होंने अंत में पटकथा लेखक, गीतकार जावेद अख्तर के साथ शादी की.

हालांकि जावेद अख्तर शादीशुदा थे लेकिन शबाना के प्यार में उन्होंने तलाक ले कर शादी की. आज भी शबाना जावेद को अपना सब से अच्छा दोस्त मानती हैं जिन्होंने शादी के बाद भी उन के हौसले को बढ़ाया और आगे बढ़ने में साथ दिया. जीवन के छठे दशक में प्रवेश करने के बाद आज भी शबाना आजमी ऊर्जा से भरपूर दिखती हैं. अपनेआप को ग्लैमरस अभिनेत्रियों की भीड़ से अलग रख कर उन्होंने प्रयोगात्मक और समानांतर फिल्मों में काम कर अपनी अलग पहचान बनाई. ‘अर्थ’, ‘निशांत’, ‘अंकुर’, ‘स्पर्श’, ‘मंडी’, ‘मासूम’ आदि ऐसी ही फिल्में हैं. इस के अलावा ‘फायर’ जैसी विवादास्पद फिल्म और ‘मकड़ी’ में चुड़ैल की भूमिका को भी शबाना ने बेधड़क हो कर निभाया.

हिंदी फिल्मों में ही नहीं उन्होंने कुछ विदेशी फिल्मों में भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. किसी किरदार को चुनते समय किस बात का ध्यान रखती हैं  इस बाबत शबाना आजमी कहती हैं, ‘‘किसी भी भूमिका को चुनते समय मैं उस से जुड़ी रियल लाइफ की किसी किरदार को ढूंढ़ती हूं ताकि मैं उसे फौलो कर सकूं, देख सकूं. जैसे हालिया रिलीज फिल्म ‘चाक ऐंड डस्टर’ में टीचर के किरदार के लिए मैं ने अपनी भाभी सुलभा आर्या की कौपी की है. वे जब थिएटर में पढ़ा कर आती थीं, कैसे कपड़े पहनती थीं, हावभाव कैसे होते थे, कैसे कौपी चैक करती थीं आदि सभी को देखती थी. वैसी हूबहू मैं ने नकल की है.

‘‘इस के अलावा भूमिका कैसी भी हो फिल्म पर उस का कितना प्रभाव है यह अवश्य देखती हूं. कई बार फिल्मों में दिखाया जाता है कि मैं खाना बना रही हूं जबकि रियल लाइफ में मैं इतना खाना नहीं बना सकती. ऐसे में मैं वर्कशौप के हिसाब से उस किचन में जा कर हर चीज को खुद रखती हूं ताकि शौट के वक्त पता चले कि घी, नमक, हलदी वगैरह कहां रखी है. पूरे किरदार के लिए ये तैयारियां करना मैं ने थिएटर से सीखा है जहां अभिनय रियलिस्टिक एप्रोच के साथ किया जाता है.’’

फिल्म ‘चाक ऐंड डस्टर’ बदलती शिक्षा प्रणाली पर कायम थी. ऐसे में वे शिक्षा के बारे में क्या सोचती हैं  इस सवाल पर शबाना बताती हैं, ‘‘आज के बच्चों पर शिक्षा का बोझ अधिक है. ‘फैक्ट्स’ को वे याद कर लेते हैं. मेरे हिसाब से बच्चों को चाहिएकि वे ‘फैक्ट्स’ के प्रयोगात्मक उपयोग को समझें. मैं ने बच्चों के पाठ्यक्रम में देखा है कि ‘मां कहां हैं’, ‘रसोईघर में’, ‘पिता कहां हैं’, ‘दफ्तर में’. पार्लियामैंट में मैं ने यह बात उठाई थी कि ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि ‘मां कहां हैं’, ‘दफ्तर में’, और ‘पिता कहां हैं’, ‘रसोई में’. मां और पिता दोनों ही रसोई में हों, ऐसा क्यों नहीं  आप ने 3 साल के बच्चे के लिए यह क्यों तय कर दिया कि मां हमेशा रसोईघर में ही हो. हम शिक्षा की बात करते हैं लेकिन उस की गुणवत्ता, मूल्य पर ध्यान नहीं देते.’’

फिल्म में शिक्षक की भूमिका सफलतापूर्वक निभाने वाली शबाना असल जिंदगी में किसे अपना गुरु मानती हैं  इस प्रश्न के उत्तर में वे बोलीं, ‘‘मुझे कई अध्यापकों ने शिक्षा दी है. वे सभी मेरे गुरु हैं. पर सही माने में मैं जिन्हें अपना गुरु मानती हूं वे हैं ऐक्ंिटग क्लास के गुरु रोशन तनेजा. वही एक इंसान हैं जिन के पैर मैं आज भी छूती हूं. उस जमाने में उन्होंने जो बातें मुझे सिखाई थीं वे आज भी मेरे जीवन में काम आ रही हैं.’’ बीते साल से सैंसर बोर्ड लगातार विवादों का माध्यम बनता रहा है. ऐसे में श्याम बेनेगल के सैंसर बोर्ड से जुड़ने पर फिल्मों के सैंसर पर क्या बदलाव आएगा, इस विषय पर अपनी राय शबाना कुछ यों रखती हैं : ‘‘श्याम बेनेगल एक सही व्यक्ति हैं, बदलाव अवश्य आएगा. क्योंकि वे किसी राजनीतिक या धार्मिक दल से प्रभावित नहीं हैं. फिल्मों के वे जानकार हैं. मैं ने उन से कहा है कि इस से पहले यूपीए सरकार के दौरान जस्टिस मुद्गल कमेटी ने जो सुझाव दिए थे उन्हें अच्छी तरह पढ़ लें, फिर निर्णय लें. इस से पहले मैं यह भी साफ कर देना चाहती हूं कि सैंसर बोर्ड को सैंसर कहना बंद करना चाहिए. सैंसर करना अर्थात उसे खत्म कर देना या काट देना होता है. यह बोर्ड काटता या खत्म नहीं करता बल्कि यह सर्टिफाई करता है कि फिल्म को किस कैटेगरी में रखा जाए.’’

‘जैंडर बायस्ट’ को कैसे देखती हैं और इसे कैसे सुधारा जा सकता है  इस सवाल पर वे कहती हैं, ‘‘भारत पुरुष प्रधान देश है. यह जन्म से ही दिखाई पड़ता है, जहां लड़कियों को बराबरी का मौका नहीं मिलता. पेट्रियाकल सोसायटी में औरतों को हमेशा पीछे धकेलने का मौका खोजा जाता है. औरतों को पीछे रख कर कोई भी समाज आगे नहीं बढ़ सकता.’’ देश के विकास मौडल को ले कर उन का मानना है, ‘‘देश में विकास के मौडल पर ही चर्चा होनी चाहिए. यहां केवल 2 मौडल्स हैं, एक कैपिटलिस्ट और एक सोशलिस्ट. कैपिटलिस्ट मौडल में मार्केट सब निर्णय लेती है. किसी भी सभ्य समाज में अगर आप मार्केट पर पूरी तवज्जुह देंगे तो विकास संभव है. यहां अपने देश को उन के हाथ में छोड़ा है जिन के पास पैसा है. जिन के पास पैसा नहीं है उन को जिंदगी जीने का भी अधिकार नहीं है. यह नहीं चल सकता, यहां अमीरगरीब का फासला अधिक है. यहां अब अल्टरनेटिव मौडल की तलाश करनी होगी. अगर आप ने एक बड़ा डैम बनाया तो उस से बिजली की समस्या तो दूर होगी लेकिन उस से कितने गांव, वहां के लोग पशु, पेड़, जमीन आदि सब खराब हो जाएंगे, इस पर चर्चा नहीं होती. ऐसे में विचार करें कि एक बड़े प्रोजैक्ट न बना कर छोटा डैम बनाएं, जिस में नुकसान कम हो या न के बराबर हो.’’

गंभीर मसलों से इतर बात करें तो शबाना हमेशा से अपने ड्रैस सैंस को ले कर सराही जाती हैं. इस बारे में वे बताती हैं, ‘‘मैं अपना ड्रैस खुद ही चुनती हूं. मम्मी से अधिक प्रेरित हूं. मम्मी को कपड़ों का बेहद शौक है. मुझे ऐसा लगता है कि महंगी और सस्ती ड्रैसेज को जोड़ कर कुछ नई बनाई जाए वही क्रिएटिविटी है. महंगे डिजाइनर या ब्रैंड के पीछे मैं नहीं भागती.’’ जावेद अख्तर ने पति के रूप में आप का किस तरह से साथ दिया  इस सवाल पर वे बेबाकी से कहती हैं, ‘‘उन्होंने हर तरह से सहयोग दिया. मैं उन्हें हमेशा प्रेरित करती हूं कि वे अच्छा लिखें और लिख कर वे सुनाते भी हैं. हम दोनों के बीच रोमांस से अधिक दोस्ती है.’’

आज कमर्शियल फिल्मों का जमाना है. ऐसे में समानांतर सिनेमा क्या खत्म हो चुका है  इस बात से इनकार करते हुए वे कहती हैं, ‘‘समानांतर फिल्में आज भी हैं पर उन का रूप बदल गया है. ‘मसान’, ‘किस्सा’, ‘एंग्री इंडियन गौडेस’ आदि समानांतर सिनेमा हैं. गांव के बारे में अगर फिल्म न हो तो यह मतलब नहीं कि समानांतर फिल्में नहीं हैं. यह खत्म नहीं हो सकता, उस के रूप बदल चुके हैं.’’ ‘अंकुर’ की शबाना से अब तक की शबाना में आए बदलाव को ले कर वे कहती हैं, ‘‘आज में और तब में दोनों में मेरा मेच्योरिटी लेवल बढ़ा है. पहले मैं किसी सही बात पर अड़ जाती थी पर आज किसी समस्या को हल करना सीख चुकी हूं. संवाद से ही यह काम संभव हो सकता है और मैं दूसरों की बातें सुनने में विश्वास रखती हूं.’’ फिल्मों में 40 साल की लंबी यात्रा और तमाम पुरस्कृत किरदारों के बावजूद शबाना आज भी डांस को अच्छे से न सीख पाने का मलाल रखती हैं.

बच्चों के मुख से

मेरा धेवता शांतनु 4 साल का, होशियार, चंचल व हाजिरजवाब है. उस की मम्मी जब कभी कहीं मेरे साथ बाजार में खरीदारी कर रही होती, वह कहता, नानी को भी खरीद देना. मैं और मेरी बेटी हंस देते. वह कहता, बस, हंसती हो, नानी को कुछ देती नहीं हो. एक बार हम लोग कल्याण साड़ीज, मेरठ की दुकान में साडि़यां देख रहे थे. वह चुपचाप बैठा था. फिर अचानक खड़ा हो गया और जोर से बोला, दुकानदार अंकल, आप पहले हमारी नानी के लिए रेड कलर की चौड़ी और 10 किलोमीटर लंबी साड़ी दिखाइए. वहां बैठे सभी लोग उस की प्यारी चाहत ‘चौड़ी और 10 किलोमीटर’ सुन हंस पड़े. वह बिना समझे खुश था और हंस रहा था. दुकानदार हंसता हुआ बोला कि अब पहले आप की नानी वाली ही साड़ी दिखाऊंगा.      

मंजु रस्तोगी, मेरठ (उ.प्र.)

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डाक्टर की सलाह पर मैं ने ‘फिश औयल कैप्सूल’ खरीदे. जैसे ही पैकेट से कैप्सूल निकाला वह पलंग पर गिर गया. मुझे वहम हुआ और उसे ठंडे पानी की कटोरी में डाल दिया. मेरी 11 वर्षीया बेटी बहुत जिज्ञासू है. वह बहुत गौर से मुझे यह सब करते हुए देख रही थी. कुछ सोच कर वह हंस पड़ी और बोली, ‘‘मम्मी, यह फिश औयल कैप्सूल है, फिश नहीं, जो पानी में डाल देने से जी उठेगी.’’ उस की यह बात सुन कर मैं भी उस की हंसी में शामिल हो गई.

अर्चना, पटेल नगर (न.दि.)

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बच्चे कभीकभी बड़ों को कैसा मूर्ख बनाते हैं, इस का ज्वलंत उदाहरण दिखाया दीदी के 3 वर्षीय बेटे राजीव ने. राजीव को उस के दादा बहुत प्यार करते थे. जब दादा को 4-5 दिनों के लिए बाहर जाना था तब वे काफी चिंतित हो गए कि उन के जाने के बाद राजीव कैसे रहेगा. पर मजबूरी ऐसी थी कि उन को जाना ही था. 4-5 दिन राजीव ने घर के बाकी सदस्यों के साथ खूब मस्ती में बिताए. एक बार भी उस ने दादा का नाम नहीं लिया. परंतु मजा तो तब आया जब दादा के आते ही राजीव दौड़ कर दादा से लिपट गया और बोला, ‘‘दादा, आप कहां चले गए थे  हम दादादादा कह कर रो रहे थे.’’ यह सुन कर दादा गद्गद हो गए और उसे गोद में उठा कर चूमने व पुचकारने लगे. पर हम लोग उस की बालसुलभ चापलूसी और मौकापरस्ती पर हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.

रेणुका श्रीवास्तव, लखनऊ (उ.प्र.)

समझदारी की बातें, जिन्हें न जान कर आप अपना व दूसरों का भला करेंगे

सफल क्रांतिकारी राजनेता होता है और असफल, अपराधी.

हमारे नेताजी सफल इसलिए हैं क्योंकि वे दक्षिणपंथियों की तरह सोचते हैं और वामपंथियों की तरह बातें करते हैं.

हमेशा ऐसे उम्मीदवार को वोट दीजिए जिस ने सब से कम वादे किए हों क्योंकि वह आप को सब से कम निराश करेगा.

राजनीति वह बेहतरीन कला है जिस के जरिए अमीरों और गरीबों को एकदूसरे से बचाने का वादा कर गरीबों से वोट लिए जाते हैं और अमीरों से चंदा.

सारी दुनिया में राजनेता एकजैसे ही होते हैं. वे वहां पुल बनाने का वादा करते हैं जहां नदी नहीं होती.

एक नेता अपनी नेतागीरी बचाने के लिए कुछ भी कर सकता है — यहां तक कि वह देशभक्त भी बन सकता है.

धन्यवाद दीजिए अपने चुनावी उम्मीदवारों को क्योंकि उन में से सिर्फ एक ही जीतेगा.

नेता खुद कभी अपने कहे पर यकीन नहीं करता इसलिए, तब उसे अचरज होता है जब लोग उस पर यकीन करते हैं.

यदि किसी नेता के दिमाग में कोई विचार आता है, तो वह गलत ही होगा.

वह राजनीतिज्ञ कहलाता है जो कभी पकड़ा नहीं गया.

टैक्स की मनमानी से बेहाल सराफा कारोबारी

करीब आधा माह बीत गया है, सराफा कारोबारी पूरे देश में हडताल पर चल रहे है. इनकी दुकाने बंद और कारोबार ठप्प पड गया है. शादी विवाह के इस सीजन में सोने चांदी के जेवरों की दुकाने बंद होने से आम जनता भी परेशान है. केन्द्र की सरकार इनकी बात सुनने और समस्या का समाधान निकालने को तैयार नहीं है. ऐसे में पूरे देश के सराफा कारोबारी देश की राजधनी दिल्ली तक अपना आन्दोलन लेकर पहुंच गये है. सराफा कारोबारियों को शिकायत है कि सभी सोने के जेवरों पर 1 प्रतिशत एक्साइज डयूटी लागू की गई है. सोने पर आयात शुल्क 2 प्रतिशत से बढाकर 4 प्रतिशत कर दिया गया है. हर खरीद पर आपको पैन कार्ड दिखाना होगा. हर खरीद को अपने इनकम टैक्स रिर्टन में दिखाना होगा. इसमें 2 लाख से अधिक कीमत का सोना और सोने के जेवर पर 1 प्रतिशत को अतिरिक्त टैक्स देना होगा. इस तरह से हर 10 ग्राम जेवर की खरीददारी पर 25 सौ रूपये टैक्स देना होगा. इसके अलावा ग्राहक जो पुराना देगा उस पर हर 10 ग्राम पर 12 सौ रूपये का टैक्स सरकार को देना होगा. जेवर की रिपोरिंग की इंट्री सराफा को करनी होगी. उस पर भी टैक्स देना होगा.

सराफा कारोबारियों का कहना है कि इस तरह के अतिरिक्त टैक्स से लाखों कारीगरों के बेरोजगार होने की आशंका है. अपनी बात न सुने जाने से सराफा कारोबारियों ने देश के प्रधनमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम एक पत्र लिखा है. इसमें लिखा है प्रिय मोदी जी, आपने सराफा कारोबारियों को परेशान और आत्महत्या करने के लिये मजबूर कर दिया है. या तो सराफा कारोबारी जाटों की तरह आंदोलन करे या मर जाये. आप कालाधन देश से निकालने के लिये जोर आजमाइश कर रहे है. हम बताते है कि कालाधन कैसे निकलेगा. 1- सबसे पहले सारे विधायकों और सांसदों के घर छापा डलवाये. इसमें भाजपा के विधायक और सांसद भी हो. वहां कालाधन मिलेगा. 2- मंदिरो में चढे सोने का आधा हिस्सा सरकार के पास जब्त करवाकर उसे बैंको में रखने के बजाय उससे विदेशी कर्ज चुकाये. 3- सभी नेताओ के विदेशी बैंको में खाते सीज कराये. जब भारत सरकार को रिजर्व में सोना रखने का अध्किार है तो आमलोगों को क्यो नहीं  जब जरूरत के समय बैंक में रखा पैसा काम नहीं आता तो यह जेवर ही काम आता है. जेटली जी आप भी अपना घर छानिये और देखिये कि आपने पलिसी ज्यादा ली है या सोना  

सराफा कारोबारी केन्द्र में सरकार चला रही भाजपा का पक्का वोटबैंक रहा है. अपनी ही सरकार के द्वारा छले जाने से वह न केवल नाराज है बल्कि जजबाती भी हो गया है. वह अपनी हर बात सरकार के बडे पदों पर बैठे लोगों तक पहुंचाने की हर जुगत में लगा है. शहरों में यह कारोबारी धरना प्रदर्शन, पुतला दहन जैसे तमाम कार्यक्रम कर चुके है. अब सराफा कारोबारियों को आम जनता का साथ भी मिलने लगा है. ऐसे में सरकार के लिये अपनी साख बचाना मुश्किल हो रहा है. सरकारी नौकरों के पीएफ मामले में यूटर्न मार चुकी सरकार यहां झुकने में शर्म महसूस कर रही है.

अब एटीएम से रोज़ पाइए 100 रुपये फ्री

दैनिक ज़रूरतों के लिए हम सभी को दिन में कई बार एटीएम जाना पड जाता है लेकिन आपके साथ भी ऐसा कई बार हो जाता होगा कि  जब एटीएम से पैसे निकालते समय आपके अकाउंट से पैसे तो कट जाते हैं, लेकिन मशीन से पैसे नहीं निकलते. ऎसी स्थिति में परेशान न हों और सही समय पर अपने बैंक से संपर्क करें. इतना ही नहीं ऎसी स्थिति में आप अपने बैंक से रोजाना 100 रुपये की पेनल्टी भी वसूल सकते हैं.

इसके लिए यह है तरीका

आरबीआई की गाइडलाइन के मुताबिक अगर ट्रांजेक्शन फेल होने की शिकायत मिलने के 7 वर्किड डेज के अंदर बैंक ग्राहक के अकाउंट में वापस क्रेडिट नहीं करता है तो पेमेंट एंड सेटलमेंट सिस्टम एक्ट 2007 के तहत बैंक को 100 रुपये प्रति दिन के हिसाब से ग्राहक को पेनल्टी देनी होती है.यह पेनल्टी पाने के लिए जरूरी है कि ट्रांजेक्शन फेल होने के 30 दिन के अंदर ही शिकायत करना जरूरी है. इसके बाद शिकायत करने पर बैंक मुआवजा देने के लिए बाध्य नहीं होगा.

पेनल्टी पाने के लिए स्टेप 1

ट्रांजेक्शन फेल होने पर अपने बैंक में एटीएम स्लिप या अकाउंट स्टेटमेंट के साथ शिकायत करें. एटीएम मशीन में ही संबंधित ब्रांच और मैनेजर का नाम व नंबर लिखा होता है.

पेनल्टी पाने के लिए स्टेप 2

शिकायत ट्रांजेक्शन फेल होने के 30 दिन के अंदर ही करें. बैंक को कार्ड की डिटेल, अकाउंट नंबर, एटीएम आईडी या लोकेशन और ट्रांजेक्शन की तारीख और समय जरूर दें. ध्यान रखें अपने कार्ड का या अन्य कोई भी पासवर्ड आप किसी के साथ शेयर न करें.

पेनल्टी पाने के लिए स्टेप 3

ब्रांच मैनेजर से बैंक की मोहर और साइन के साथ शिकायत की रिसीविंग कॉपी लेना न भूलें. इसकी कॉपी के जरिए आप पेनल्टी के 100 रुपये प्रति दिन पा सकेंगे.

पेनल्टी पाने के लिए स्टेप 4

शिकायत करने के बाद अगर 7 वर्किग डेज में आपके अकाउंट में पैसा न आए तो एनेक्जर5 फॉर्म भरकर मैनेजर को दें.

पेनल्टी पाने के लिए स्टेप 5

बैंक एनेक्जर5 फॉर्म भर कर जमा करने की तारीख से पेनल्टी गिनी जाएगी. आपके अकाउंट में आपकी राशि के साथ ही यह पेनल्टी जोड़ कर आपको दी जाएगी.

ऎसे गिनी जाएगी पेनल्टी की रकम

उदाहरण के लिए आपके अकाउंट से 20000 रुपये कटे, लेकिन मशीन से यह रकम नहीं निकली. अगर आपने 10 अप्रैल को एनेक्जर5 फॉर्म भर कर जमा किया है और आपका पैसा 20 अप्रैल को वापस आया है तो आपके खाते में 21000 रुपये आएंगे. इसमें 10 दिन के लिए 1000 रुपये की पेनल्टी शामिल होगी.

पेनल्टी की रकम न मिलने पर करें यह

अगर बैंक पेनल्टी का पैसा न दे तो आरबीआई के बैंकिंग ऑम्बड्समैन को ऑनलाइन शिकायत करें. इसके लिए www.secweb.rbi.org.in/BO/precompltindex.htm पर लॉग ऑन करें. फोन पर भी शिकायत की जा सकती है. ज्यादा जानकारी के लिए आरबीआई की वेवसाइट पर लॉग ऑन करें.

15 दिन जमीन के 15 फीट नीचे रहने का दावा

खूब ढोल मंजीरे बज रहे थे. बाबा का जयकारा लग रहा था. फूल-मालाओं की बरसात हो रही थी. हुमाद और अगरबत्ती की सुगंध वातावरण में फैल रही थी. गाजे-बाजे बज रहे थे. ललाट पर राख लगाए बाबा धीरे-धीरे भक्तों के बीच चल रहा था. बाबा को देख कर ऐसा लग रहा था मानों वह कोई बड़ी लड़ाई जीत कर लौटा हो. हकीकत में ऐसा नहीं था. बाबा 15 दिनों तक जमीन के अंदर समाधी लगाने के बाद बाहर निकला था और बाबा के अंध्भक्त बौराए हुए ‘बाबा की जय’ के नारे लगा रहे थे. बाबा मुस्कुरा रहा था. शायद वह अपने भक्तों की बेवकूफी और अपनी धूर्तता पर इतरा रहा था.

पिछले 28 फरवरी को बाबा जमीन के अंदर बने कमरे में समाधि लेने के नाम पर चला गया था. जमीन के 15 फीट नीचे बने 10 फीट लंबे और 10 फीट चौड़े कमरे में बाबा तपस्या करने गया. गड्ढे में बने कमरे के उपर बांस का चचरी डाल कर उसके उपर मोटा कपड़ा बिछा दिया गया और उसके बाद कपड़े पर मिट्टी भर दी गई. बाबा ने ऐलान किया था कि वह 15 दिनों के बाद वापस लौटेगा. इस दौरान वह न कुछ खाएगा और न ही कुछ पीएगा. बाबा के चेलों को दावा है कि आम तौर पर बाबा कुछ भी नहीं खाते है. रोज केवल एक गिलास दूध पीते हैं. समाधि में जाने के एक महीना पहले ही उन्होंने दूध पीना भी बंद कर दिया था. जितने दिन बाबा जमीन के भीतर रहा उतने दिन उसके चेले-चपाटे बाहर भजन-कीर्तन करके चंदा और दक्षिणा इक्ट्ठा करते रहे.

पटना के पिजीशियन डाक्टर दिवाकर तेजस्वी कहते हैं कि बगैर भोजन और पानी के तो कुछ दिन रहा जा सकता है पर हवा के बिना मिनट से ज्यादा समय तक जिंदगी नहीं रह सकती है. जमीन के अंदर बाबा को किसी न किसी रूप से पानी, हवा और रोशनी मिल रही होगी. बाबा को जमीन के अंदर जाते समय केवल उनके अंध्भक्तों ने ही देखा. उस समय प्रशासन और पुलिस का भी कोई आदमी वहां मौजूद नहीं था.

जमीन के अंदर 15 दिनों तक समाधि में बैठे प्रमोद बाबा आखिर 13 मार्च को जमीन के बाहर प्रगट हुए. मधेपुरा के चैसा प्रखंड के अरजपुर पश्चिमी पंचायत के भटगामा गांव के नजदीक जीरो माइल के पास पिछले 28 पफरवरी को बाबा समाधि के लिए जमीन के अंदर गए थे. बाबा के चमत्कार को देखने के लिए हजारों भक्त खड़े थे. नाथ बाबा मंदिर में 14 मार्च से शुरू हुए 5 दिनी विराट महाविष्णु यज्ञ को कामयाब बनाने के लिए बाबा ने जमीन के 15 फीट नीचे समाधि लगाया था.

15 दिनों के बाद वह भले-चंगे बाहर निकले तो लोगों ने बाबा की जयजयकार लगाना शुरू कर दिया. बाबा के बाहर निकलने का समय 2 बजकर 45 मिनट तय था, लेकिन वह 3 बज कर 30 मिनट पर बाहर निकले. भक्तों के बीच कुछ देर रहने के बाद बाबा नाथ बाबा मंदिर में चले गए. बाबा भले ही अपनी इस हरकत को समाधि का नाम दें, लेकिन असलियत यही है कि अपनी पब्लिसिटी और दान-दक्षिणा के नाम पर लाखों रूपए जुटाने के मकसद से ही बाबा ने यह ड्रामा रचा. उसे बिष्णु यज्ञ और श्रीराम महायज्ञ करने का ऐलान कर रखा था और उसके लिए उसे लाखों रूपए जुटाना था. 14 मार्च से 19 मार्च तक उसने यज्ञ का आयोजन कर रखा है. यज्ञ के दौरान पास के मैदान में बड़ा मेला भी लगाया गया है. मेला में झूला, जादू का खेल, खिलौनों की दूकानें, खाने के सामानों के स्टौल, गीत-संगीत का कार्यक्रम समेत तरह-तरह के तमाशे दिखाए जा रहे हैं. बाबा ने अपने अंधभक्तों को रिझाने और पटाने का मुकम्मल इंतजाम कर रखा है. पहले तो उसने अपने भक्तों से दान-दक्षिणा के नाम पर मोटी रकम वसूला और अब मेला के बहाने भी लाखों की कमाई का इंतजाम कर लिया है. अंध भक्तों की मेहनत की कमाई पर ऐश करने का कोई भी मौका इस ढ़ोंगी बाबा ने नहीं छोड़ा है.

प्रमोद मूल रूप से पूर्णियां जिला के रूपौली प्रखंड के बलुआ गांव का है. जब वह 9 साल का था तभी से उसके मन में मक्कारी जगी और बैठे-ठाले खाने-पीने और ऐश-मौज करने का सपना लिए बाबा बन कर लोगों को उल्लू बनाने बनने की राह पर चल पड़ा. उसका दावा है कि 9 साल की आयु में घर छोड़ने के बाद 28 सालों तक वह वृंदावन, मथुरा और काशी घूमता रहा. पिछले 12 सालों से उसने मौन व्रत धरण कर रखा है. वह खुद को बिष्णु के अवतार के रूप में घोषित कर रखा है.

मधेपुरा के एसपी विकास कुमार बताते हैं कि प्रमोद बाबा को जमीन के अंदर समाधि लेते प्रशासन की ओर से किसी ने नहीं देखा था. बाबा जब जमीन के भीतर समाधि लगाने की तैयारी कर रहा था तो पुलिस की टीम उसे रोकने के लिए पहुंची थी, पर वहां मौजूद भीड़ के विरोध की वजह से पुलिस बल को वापस लौटना पड़ गया था. 

अंधविश्वास का लखपति फंदा

समाज कहीं का कहीं पहुंच गया हो, पर उसकी सोच जस की तस है. लोग अब भी चमत्कार में यकीन रखते है. केवल यकीन ही नहीं रखते उस यकीन को सच में बदलने के लिये हत्या जैसे बडे अपराध को करने से भी नहीं चूकते है. उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ से 30 किलोमीटर दूर इटौंजा में रहने वाले सर्वेश को बिना मेहनत के पैसा कमाने की धुन सवार रहती थी. उसकी मुलाकात कुम्हरांवा गांव के रहने वाले संतोष वाजपेई से हुई. संतोष ने सर्वेश को बताया कि वेदप्रकाश वाजपेई एक तांत्रिक है. अगर किसी आदमी को मारकर रस्सी से लटका दिया जाये तो वह रस्सी का वह फंदा वेद प्रकाश 5 लाख में बिकवा देते हैं. सर्वेश को यह धंधा चोखा लगा जिसमें 100 रूपये की रस्सी 5 लाख में बिक जाती हो.

संतोष ने सर्वेश की मुलाकात वेद प्रकाश के साथी पप्पू से भी कराई जो बक्शी का तालाब इलाके में तकिया मस्जिद के पास रहता था. सर्वेश इंटौजा में लाई चना की दुकान करता था. वहीं रहने वाला हसरत अली उसकी बहन से छेडछाड करता था. सर्वेश ने योजना बनाई की वह हसरत अली को मार कर रस्सी से लटका देगा. इससे उसे पैसा भी मिल जायेगा और हसरत अली को उसके किये कि सजा भी मिल जायेगी. सर्वेश को दोहरा लाभ दिखा. आनन फानन में सर्वेश ने अपना साथ देने वालों की टोली तैयार कर ली. इसमें तेज प्रताप और मनीष प्रमुख थे. यह सभी पढे लिखे नहीं थे. सर्वेश ने अपने सभी साथियों को 50-50 हजार देने का वादा भी किया. अपना खुद का बैंक में खाता भी खुलवा लिया.

27 दिसम्बर को जिस दिन फंदा तैयार हुआ उस दिन हसरत नहीं मिला. तब इन लोगों ने 17 साल के अनुज शुक्ला को पकड लिया. अनुज को लेकर सर्वेश माल इलाके के बसहरी गांव गया वहां मनीष उसको साइकिल पर बैठाकर लोधैरा गांव ले गया. शराब पीने और पिलाने के बाद सूनसान जगह पर आम के पेड में रस्सी का फंदा लगाया. अनुज के हाथ पतली रस्सी से बांध दिया. रस्सी का फंदा अनुज के गले में डालकर खींच लिया. जब अनुज मर गया तो उसके गले से फंदा निकाल कर लोग भाग गये. सर्वेश फंदा लेकर पप्पू से मिला तो उसने कहा कि फंदा वही वाला है इसका टेस्ट होगा जिसकी फीस 1 हजार रूपये है. जब फंदा टेस्ट में पास हो जायेगा तो 5 लाख मिलेगे. सर्वेश के पास 1 हजार रूपये नहीं थे. ऐसे में उसने केवल 700 रूपये देकर फंदा टेस्ट कराने को कहा.

पुलिस ने अनुज की लाश मिलने पर उसको आत्महत्या माना. पोस्टमार्टम होने पर हत्या का मामला सामने आने पर जांच का काम शुरू हुआ. लखनऊ के एसएसपी राजेश पांडेय ने बताया कि सीसीटीवी पफुटेज में अनुज हत्या वाले दिन आरोपियों के साथ दिखा. पुलिस ने जब इन लोगों से पूछताछ की तो पूरी कहानी प्याज की पर्तो की तरह खुलकर सामने आ गई. एसएसपी ने एसओ माल विनय कुमार सहित पूरी टीम की प्रशंसा की. पुलिस ने सभी आरोपियों को पकड कर जेल भेज दिया.

होली की मस्ती से दूर होते किशोर

होली का दिन आते ही पूरे शहर में होली की मस्ती भरा रंग चढ़ने लगता है लेकिन 14 साल के अरनव को यह त्योहार अच्छा नहीं लगता. जब सारे बच्चे गली में शोर मचाते, रंग डालते, रंगेपुते दिखते तो अरनव अपने खास दोस्तों को भी मुश्किल से पहचान पाता था. वह होली के दिन घर में एक कमरे में खुद को बंद कर लेता  होली की मस्ती में चूर अरनव की बहन भी जब उसे जबरदस्ती रंग लगाती तो उसे बहुत बुरा लगता था. बहन की खुशी के लिए वह अनमने मन से रंग लगवा जरूर लेता पर खुद उसे रंग लगाने की पहल न करता. जब घर और महल्ले में होली का हंगामा कम हो जाता तभी वह घर से बाहर निकलता. कुछ साल पहले तक अरनव जैसे बच्चों की संख्या कम थी. धीरेधीरे इस तरह के बच्चों की संख्या बढ़ रही है और होली के त्योहार से बच्चों का मोहभंग होता जा रहा है. आज बच्चे होली के त्योहार से खुद को दूर रखने की कोशिश करते हैं.

अगर उन्हें घरपरिवार और दोस्तों के दबाव में होली खेलनी भी पड़े तो तमाम तरह की बंदिशें रख कर वे होली खेलते हैं. पहले जैसी मौजमस्ती करती बच्चों की टोली अब होली पर नजर नहीं आती. इस की वजह यही लगती है कि उन में अब उत्साह कम हो गया है.

नशे ने खराब की होली की छवि

पहले होली मौजमस्ती का त्योहार माना जाता था लेकिन अब किशोरों का रुझान इस में कम होने लगा है. लखनऊ के लामार्टिनियर गर्ल्स कालेज की कक्षा 11 में पढ़ने वाली राजवी केसरवानी कहती है, ‘‘आज होली खेलने के तरीके और माने दोनों ही बदल गए हैं. सड़क पर नशा कर के होली खेलने वाले होली के त्योहार की छवि को खराब करने के लिए सब से अधिक जिम्मेदार हैं. वे नशे में गाड़ी चला कर दूसरे वाहनों के लिए खतरा पैदा कर देते हैं ऐसे में होली का नाम आते ही नशे में रंग खेलते लोगों की छवि सामने आने लगती है. इसलिए आज किशोरों में होली को ले कर पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया है.’’

ऐग्जाम फीवर का डर

होली और किशोरों के बीच ऐग्जाम फीवर बड़ी भूमिका निभाता है. वैसे तो परीक्षा करीबकरीब होली के आसपास ही पड़ती है. लेकिन अगर बोर्ड के ऐग्जाम हों तो विद्यार्थी होली फैस्टिवल के बारे में सोचते ही नहीं हैं क्योंकि उन का सारा फोकस परीक्षाओं पर जो होता है. पहले परीक्षाओं का दबाव मन पर कम होता था जिस से बच्चे होली का खूब आनंद उठाते थे. अब पढ़ाई का बोझ बढ़ने से कक्षा 10 और 12 की परीक्षाएं और भी महत्त्वपूर्ण होने लगी हैं, जिस से परीक्षाओं के समय होली खेल कर बच्चे अपना समय बरबाद नहीं करना चाहते.

होली के समय मौसम में बदलाव हो रहा होता है. ऐसे में मातापिता को यह चिंता रहती है कि बच्चे कहीं बीमार न पड़ जाएं. अत: वे बच्चों को होली के रंग और पानी से दूर रखने की कोशिश करते हैं, जो बच्चों को होली के उत्साह से दूर ले जाता है. डाक्टर गिरीश मक्कड़ कहते हैं, ‘‘बच्चे खेलकूद के पुराने तौरतरीकों से दूर होते जा रहे हैं. होली से दूरी भी इसी बात को स्पष्ट करती है. खेलकूद से दूर रहने वाले बच्चे मौसम के बदलाव का जल्द शिकार हो जाते हैं. इसलिए कुछ जरूरी सावधानियों के साथ होली की मस्ती का आनंद लेना चाहिए.’’ फोटोग्राफी का शौक रखने वाले क्षितिज गुप्ता का कहना है, ‘‘मुझे रंगों का यह त्योहार बेहद पसंद है. स्कूल में बच्चों पर परीक्षा का दबाव होता है. इस के बाद भी वे इस त्योहार को अच्छे से मनाते हैं. यह सही है कि पहले जैसा उत्साह अब देखने को नहीं मिलता.

‘‘अब हम बच्चों पर तमाम तरह के दबाव होते हैं. साथ ही अब पहले वाला माहौल नहीं है कि सड़कों पर होली खेली जाए बल्कि अब तो घर में ही भाईबहनों के साथ होली खेल ली जाती है. अनजान जगह और लोगों के साथ होली खेलने से बचना चाहिए. इस से रंग में भंग डालने वाली घटनाओं को रोका जा सकता है.’’

डराता है जोकर जैसा चेहरा

होली रंगों का त्योहार है लेकिन समय के साथसाथ होली खेलने के तौरतरीके बदल रहे हैं. आज होली में लोग ऐसे रंगों का उपयोग करते हैं जो स्किन को खराब कर देते हैं. रंगों में ऐसी चीजों का प्रयोग भी होने लगा है जिन के कारण रंग कई दिनों तक छूटता ही नहीं. औयल पेंट का प्रयोग करने के अलावा लोग पक्के रंगों का प्रयोग अधिक करने लगे हैं. लखनऊ के लामार्ट्स स्कूल में कक्षा 5 में पढ़ने वाला आदित्य वर्मा कहता है, ‘‘मुझे होली पसंद है पर जब होली खेल रहे बच्चों के जोकर जैसे चेहरे देखता हूं तो मुझे डर लगता है. इस डर से ही मैं घर के बाहर होली खेलने नहीं जाता.’’

लामार्टिनियर कालेज में कक्षा 4 में पढ़ने वाले उद्धवराज सिंह चौहान को गरमी का मौसम सब से अच्छा लगता है. गरमी की शुरुआत होली से होती है इसलिए इस त्योहार को वह पसंद करता है. उद्धवराज कहता है, ‘‘होली में मुझे पानी से खेलना अच्छा लगता है. इस फैस्टिवल में जो फन और मस्ती होती है वह अन्य किसी त्योहार में नहीं होती. इस त्योहार के पकवानों में गुझिया मुझे बेहद पसंद है. रंग लगाने में जोरजबरदस्ती मुझे अच्छी नहीं लगती. कुछ लोग खराब रंगों का प्रयोग करते हैं, इस कारण इस त्योहार की बुराई की जाती है. रंग खेलने के लिए अच्छे किस्म के रंगों का प्रयोग करना चाहिए.’’

ईको फ्रैंडली होली की हो शुरुआत

‘‘होली का त्योहार पानी की बरबादी और पेड़पौधों की कटाई के कारण मुझे पसंद नहीं है. मेरा मानना है कि अब पानी और पेड़ों का जीवन बचाने के लिए ईको फ्रैंडली होली की पहल होनी चाहिए. ‘‘होली को जलाने के लिए प्रतीक के रूप में कम लकड़ी का प्रयोग करना चाहिए और रंग खेलते समय ऐसे रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो सूखे हों, जिन को छुड़ाना आसान हो. इस से इस त्योहार में होने वाले पर्यावरण के नुकसान को बचाया जा सकता है,’’ यह कहना है सिम्बायोसिस कालेज में बीबीए एलएलबी कर रहे शुभांकर कुमार का. वह कहता है, ‘‘समय के साथसाथ हर रीतिरिवाज में बदलाव हो रहे हैं तो इस में भी बदलाव होना चाहिए. इस से इस त्योहार को लोकप्रिय बनाने और दूसरे लोगों को इस से जोड़ने में मदद मिलेगी.’’

एमिटी स्कूल में बीए एलएलबी कर रहे तन्मय प्रदीप को होली का त्योहार पसंद नहीं है. वह कहता है, ‘‘होली पर लोग जिस तरह से पक्के रंगों का प्रयोग करने लगे हैं उस से कपड़े और स्किन दोनों खराब हो जाते हैं. कपड़ों को धोने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. कई बार होली खेले कपड़े दोबारा पहनने लायक ही नहीं रहते. ‘‘ऐसे में जरूरी है कि होली खेलने के तौरतरीकों में बदलाव हो. होली पर पर्यावरण बचाने की मुहिम चलनी चाहिए. लोगों को जागरूक कर इन बातों को समझाना पड़ेगा, जिस से इस त्योहार की बुराई को दूर किया जा सके. इस बात की सब से बड़ी जिम्मेदारी किशोर व युवावर्ग पर ही है.

होली बुराइयों को खत्म करने का त्योहार है, ऐसे में इस को खेलने में जो गड़बडि़यां होती हैं उन को दूर करना पड़ेगा. इस त्योहार में नशा कर के रंग खेलने और सड़क पर गाड़ी चलाने पर भी रोक लगनी चाहिए.’’ 

किसी और त्योहार में नहीं होली जैसा फन

होली की मस्ती किशोरों व युवाओं को पसंद भी आती है. लखनऊ के मिलेनियम स्कूल में कक्षा 12 में पढ़ने वाली शांभवी सिंह कहती है, ‘‘होली ऐसा त्योहार है जिस का सालभर इंतजार रहता है. रंग और पानी किशोरों को सब से पसंद आने वाली चीजें हैं. इस के अलावा होली में खाने के लिए तरहतरह के पकवान मिलते हैं. ऐसे में होली किशोरों को बेहद पसंद आती है 

‘‘परीक्षा और होली का साथ रहता है. इस के बाद भी टाइम निकाल कर होली के रंग में रंग जाने से मन अपने को रोक नहीं पाता. मेरी राय में होली जैसा फन अन्य किसी त्योहार में नहीं होता. कुछ बुराइयां इस त्योहार की मस्ती को खराब कर रही हैं. इन को दूर कर होली का मजा लिया जा सकता है.’’ जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल में पढ़ रही गौरी मिश्रा कहती है, ‘‘होली यदि सुरक्षित तरह से खेली जाए तो इस से अच्छा कोई त्योहार नहीं हो सकता. होली खेलने में दूसरों की भावनाओं पर ध्यान न देने के कारण कई बार लड़ाईझगड़े की नौबत आ जाती है, जिस से यह त्योहार बदनाम होता है. सही तरह से होली के त्योहार का आनंद लिया जाए तो इस से बेहतर कोई दूसरा त्योहार हो ही नहीं सकता.

‘‘दूसरे आज के किशोरों में हर त्योहार को औनलाइन मनाने का रिवाज चल पड़ा है. वे होली पर अपनों को औनलाइन बधाइयां देते हैं. भले ही हमारा लाइफस्टाइल चेंज हुआ हो लेकिन फिर भी हमारा त्योहारों के प्रति उत्साह कम नहीं होना चाहिए.’’

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