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होली की मस्ती से दूर होते किशोर

होली का दिन आते ही पूरे शहर में होली की मस्ती भरा रंग चढ़ने लगता है लेकिन 14 साल के अरनव को यह त्योहार अच्छा नहीं लगता. जब सारे बच्चे गली में शोर मचाते, रंग डालते, रंगेपुते दिखते तो अरनव अपने खास दोस्तों को भी मुश्किल से पहचान पाता था. वह होली के दिन घर में एक कमरे में खुद को बंद कर लेता  होली की मस्ती में चूर अरनव की बहन भी जब उसे जबरदस्ती रंग लगाती तो उसे बहुत बुरा लगता था. बहन की खुशी के लिए वह अनमने मन से रंग लगवा जरूर लेता पर खुद उसे रंग लगाने की पहल न करता. जब घर और महल्ले में होली का हंगामा कम हो जाता तभी वह घर से बाहर निकलता. कुछ साल पहले तक अरनव जैसे बच्चों की संख्या कम थी. धीरेधीरे इस तरह के बच्चों की संख्या बढ़ रही है और होली के त्योहार से बच्चों का मोहभंग होता जा रहा है. आज बच्चे होली के त्योहार से खुद को दूर रखने की कोशिश करते हैं.

अगर उन्हें घरपरिवार और दोस्तों के दबाव में होली खेलनी भी पड़े तो तमाम तरह की बंदिशें रख कर वे होली खेलते हैं. पहले जैसी मौजमस्ती करती बच्चों की टोली अब होली पर नजर नहीं आती. इस की वजह यही लगती है कि उन में अब उत्साह कम हो गया है.

नशे ने खराब की होली की छवि

पहले होली मौजमस्ती का त्योहार माना जाता था लेकिन अब किशोरों का रुझान इस में कम होने लगा है. लखनऊ के लामार्टिनियर गर्ल्स कालेज की कक्षा 11 में पढ़ने वाली राजवी केसरवानी कहती है, ‘‘आज होली खेलने के तरीके और माने दोनों ही बदल गए हैं. सड़क पर नशा कर के होली खेलने वाले होली के त्योहार की छवि को खराब करने के लिए सब से अधिक जिम्मेदार हैं. वे नशे में गाड़ी चला कर दूसरे वाहनों के लिए खतरा पैदा कर देते हैं ऐसे में होली का नाम आते ही नशे में रंग खेलते लोगों की छवि सामने आने लगती है. इसलिए आज किशोरों में होली को ले कर पहले जैसा उत्साह नहीं रह गया है.’’

ऐग्जाम फीवर का डर

होली और किशोरों के बीच ऐग्जाम फीवर बड़ी भूमिका निभाता है. वैसे तो परीक्षा करीबकरीब होली के आसपास ही पड़ती है. लेकिन अगर बोर्ड के ऐग्जाम हों तो विद्यार्थी होली फैस्टिवल के बारे में सोचते ही नहीं हैं क्योंकि उन का सारा फोकस परीक्षाओं पर जो होता है. पहले परीक्षाओं का दबाव मन पर कम होता था जिस से बच्चे होली का खूब आनंद उठाते थे. अब पढ़ाई का बोझ बढ़ने से कक्षा 10 और 12 की परीक्षाएं और भी महत्त्वपूर्ण होने लगी हैं, जिस से परीक्षाओं के समय होली खेल कर बच्चे अपना समय बरबाद नहीं करना चाहते.

होली के समय मौसम में बदलाव हो रहा होता है. ऐसे में मातापिता को यह चिंता रहती है कि बच्चे कहीं बीमार न पड़ जाएं. अत: वे बच्चों को होली के रंग और पानी से दूर रखने की कोशिश करते हैं, जो बच्चों को होली के उत्साह से दूर ले जाता है. डाक्टर गिरीश मक्कड़ कहते हैं, ‘‘बच्चे खेलकूद के पुराने तौरतरीकों से दूर होते जा रहे हैं. होली से दूरी भी इसी बात को स्पष्ट करती है. खेलकूद से दूर रहने वाले बच्चे मौसम के बदलाव का जल्द शिकार हो जाते हैं. इसलिए कुछ जरूरी सावधानियों के साथ होली की मस्ती का आनंद लेना चाहिए.’’ फोटोग्राफी का शौक रखने वाले क्षितिज गुप्ता का कहना है, ‘‘मुझे रंगों का यह त्योहार बेहद पसंद है. स्कूल में बच्चों पर परीक्षा का दबाव होता है. इस के बाद भी वे इस त्योहार को अच्छे से मनाते हैं. यह सही है कि पहले जैसा उत्साह अब देखने को नहीं मिलता.

‘‘अब हम बच्चों पर तमाम तरह के दबाव होते हैं. साथ ही अब पहले वाला माहौल नहीं है कि सड़कों पर होली खेली जाए बल्कि अब तो घर में ही भाईबहनों के साथ होली खेल ली जाती है. अनजान जगह और लोगों के साथ होली खेलने से बचना चाहिए. इस से रंग में भंग डालने वाली घटनाओं को रोका जा सकता है.’’

डराता है जोकर जैसा चेहरा

होली रंगों का त्योहार है लेकिन समय के साथसाथ होली खेलने के तौरतरीके बदल रहे हैं. आज होली में लोग ऐसे रंगों का उपयोग करते हैं जो स्किन को खराब कर देते हैं. रंगों में ऐसी चीजों का प्रयोग भी होने लगा है जिन के कारण रंग कई दिनों तक छूटता ही नहीं. औयल पेंट का प्रयोग करने के अलावा लोग पक्के रंगों का प्रयोग अधिक करने लगे हैं. लखनऊ के लामार्ट्स स्कूल में कक्षा 5 में पढ़ने वाला आदित्य वर्मा कहता है, ‘‘मुझे होली पसंद है पर जब होली खेल रहे बच्चों के जोकर जैसे चेहरे देखता हूं तो मुझे डर लगता है. इस डर से ही मैं घर के बाहर होली खेलने नहीं जाता.’’

लामार्टिनियर कालेज में कक्षा 4 में पढ़ने वाले उद्धवराज सिंह चौहान को गरमी का मौसम सब से अच्छा लगता है. गरमी की शुरुआत होली से होती है इसलिए इस त्योहार को वह पसंद करता है. उद्धवराज कहता है, ‘‘होली में मुझे पानी से खेलना अच्छा लगता है. इस फैस्टिवल में जो फन और मस्ती होती है वह अन्य किसी त्योहार में नहीं होती. इस त्योहार के पकवानों में गुझिया मुझे बेहद पसंद है. रंग लगाने में जोरजबरदस्ती मुझे अच्छी नहीं लगती. कुछ लोग खराब रंगों का प्रयोग करते हैं, इस कारण इस त्योहार की बुराई की जाती है. रंग खेलने के लिए अच्छे किस्म के रंगों का प्रयोग करना चाहिए.’’

ईको फ्रैंडली होली की हो शुरुआत

‘‘होली का त्योहार पानी की बरबादी और पेड़पौधों की कटाई के कारण मुझे पसंद नहीं है. मेरा मानना है कि अब पानी और पेड़ों का जीवन बचाने के लिए ईको फ्रैंडली होली की पहल होनी चाहिए. ‘‘होली को जलाने के लिए प्रतीक के रूप में कम लकड़ी का प्रयोग करना चाहिए और रंग खेलते समय ऐसे रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए जो सूखे हों, जिन को छुड़ाना आसान हो. इस से इस त्योहार में होने वाले पर्यावरण के नुकसान को बचाया जा सकता है,’’ यह कहना है सिम्बायोसिस कालेज में बीबीए एलएलबी कर रहे शुभांकर कुमार का. वह कहता है, ‘‘समय के साथसाथ हर रीतिरिवाज में बदलाव हो रहे हैं तो इस में भी बदलाव होना चाहिए. इस से इस त्योहार को लोकप्रिय बनाने और दूसरे लोगों को इस से जोड़ने में मदद मिलेगी.’’

एमिटी स्कूल में बीए एलएलबी कर रहे तन्मय प्रदीप को होली का त्योहार पसंद नहीं है. वह कहता है, ‘‘होली पर लोग जिस तरह से पक्के रंगों का प्रयोग करने लगे हैं उस से कपड़े और स्किन दोनों खराब हो जाते हैं. कपड़ों को धोने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. कई बार होली खेले कपड़े दोबारा पहनने लायक ही नहीं रहते. ‘‘ऐसे में जरूरी है कि होली खेलने के तौरतरीकों में बदलाव हो. होली पर पर्यावरण बचाने की मुहिम चलनी चाहिए. लोगों को जागरूक कर इन बातों को समझाना पड़ेगा, जिस से इस त्योहार की बुराई को दूर किया जा सके. इस बात की सब से बड़ी जिम्मेदारी किशोर व युवावर्ग पर ही है.

होली बुराइयों को खत्म करने का त्योहार है, ऐसे में इस को खेलने में जो गड़बडि़यां होती हैं उन को दूर करना पड़ेगा. इस त्योहार में नशा कर के रंग खेलने और सड़क पर गाड़ी चलाने पर भी रोक लगनी चाहिए.’’ 

किसी और त्योहार में नहीं होली जैसा फन

होली की मस्ती किशोरों व युवाओं को पसंद भी आती है. लखनऊ के मिलेनियम स्कूल में कक्षा 12 में पढ़ने वाली शांभवी सिंह कहती है, ‘‘होली ऐसा त्योहार है जिस का सालभर इंतजार रहता है. रंग और पानी किशोरों को सब से पसंद आने वाली चीजें हैं. इस के अलावा होली में खाने के लिए तरहतरह के पकवान मिलते हैं. ऐसे में होली किशोरों को बेहद पसंद आती है 

‘‘परीक्षा और होली का साथ रहता है. इस के बाद भी टाइम निकाल कर होली के रंग में रंग जाने से मन अपने को रोक नहीं पाता. मेरी राय में होली जैसा फन अन्य किसी त्योहार में नहीं होता. कुछ बुराइयां इस त्योहार की मस्ती को खराब कर रही हैं. इन को दूर कर होली का मजा लिया जा सकता है.’’ जीडी गोयनका पब्लिक स्कूल में पढ़ रही गौरी मिश्रा कहती है, ‘‘होली यदि सुरक्षित तरह से खेली जाए तो इस से अच्छा कोई त्योहार नहीं हो सकता. होली खेलने में दूसरों की भावनाओं पर ध्यान न देने के कारण कई बार लड़ाईझगड़े की नौबत आ जाती है, जिस से यह त्योहार बदनाम होता है. सही तरह से होली के त्योहार का आनंद लिया जाए तो इस से बेहतर कोई दूसरा त्योहार हो ही नहीं सकता.

‘‘दूसरे आज के किशोरों में हर त्योहार को औनलाइन मनाने का रिवाज चल पड़ा है. वे होली पर अपनों को औनलाइन बधाइयां देते हैं. भले ही हमारा लाइफस्टाइल चेंज हुआ हो लेकिन फिर भी हमारा त्योहारों के प्रति उत्साह कम नहीं होना चाहिए.’’

लंदन में होगा बॉक्सर विजेंदर सिंह का अगला मुकाबला

विजेंदर सिंह अपनी अगली फ़ाइट के लिए लंदन रवाना हो गए हैं. विजेंदर का अगला मैच 2 अप्रैल को हैरो लिज़र सेंटर में होगा. विजेंदर की फ़ाइट किस बॉक्सर के साथ होगी इसका ऐलान नहीं हुआ है. विजेंदर ने हंगरी के एलेक्जेंडर होरवार्थ को चित कर अपनी चौथी फ़ाइट आसानी से जीत ली. हैरो में 30 साल के विजेंदर इस बार 6 राउंड का मैच खेलेंगे.

विजेंदर ने कहा, 'लंदन, मैं आ रहा हूं. मैं हैरो में लड़ने के लिए ज़्यादा इंतज़ार नहीं कर सकता और लंदन में मौजूद दर्शकों को दिखाना चाहता हूं कि मैं क्या हूं. मैंने मैनचेस्टर, डबलिन और लिवरपुल में फ़ाइट किया और अब लंदन आ रहा हूं.'

ओलिंपिक कांस्य पदक विजेता ने ये भी कहा, 'मैंने अपनी अगला फ़ाइट के लिए तैयारी शुरू कर दी है और इस बार भी नॉक-आउट से जीतूंगा. जो भी विरोधी मेरे सामने लंदन में आएगा वो मुश्किल में पड़ेगा.'

विजेंदर ने अपने फ़ैन्स से कहा, 'मेरे लंदन आने से पहले ही बातें शुरू हो गई हैं और अपने देश में पहले प्रो-फाइट के लिए मुझे लंदन में जीतना ज़रूरी है.'

टर्निंग विकेट पर खेलने के लिए तैयार रहे भारत: गावस्कर

पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर का मानना है कि वर्ल्ड टी20 के पहले मैच में न्यूजीलैंड ने भारत को उसी की ‘दवा’ से चित कर दिया और मेजबान टीम अगर विरोधी टीमों के लिये टर्निंग विकेट बनाना चाहती है तो उसे खुद भी उन पर खेलने के लिए तैयार रहना चाहिए.

कीवी टीम ने टर्निंग ट्रैक पर दी मात
गौरतलब है कि न्यूजीलैंड ने भारत को टर्निंग विकेट पर 47 रन से हराया. उस मैच में कीवी स्पिनरों ने 10 में से नौ विकेट लिए. गावस्कर ने कहा, ‘यदि आप टर्निंग विकेट दूसरों के लिए बनाना चाहते हैं तो खुद भी उन पर खेलना आना चाहिए. हमें स्वीकार करना होगा कि भारत को उम्दा स्पिन गेंदबाजी के सामने दिक्कत आई है. यदि वे जीत जाते तो पिच पर कोई बात ही नहीं होती.’

नागपुर की पिच को मिल चुकी है वॉर्निंग
आपको बता दें कि नागपुर पिच को आईसीसी ने पिछले साल नवंबर में आधिकारिक चेतावनी दी थी जब भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच टेस्ट मैच ढाई दिन में खत्म हो गया था. गावस्कर ने कहा कि पहला मैच हारने के बाद भारत ने अपने लिये राह बड़ी कठिन कर ली है जिसे अगले मैच में पाकिस्तान से खेलना है. भारत के लिए एक और हार के मायने टूर्नामेंट से बाहर होना होगा.

पाकिस्तान को हर हाल में हराना होगा
गावस्कर ने कहा, ‘आप चाहे जीतें या हारे, पाकिस्तान को हर हालत में हराना होगा. यदि आप हारते हैं तो टूर्नामेंट से बाहर हो जाएंगे. न्यूजीलैंड के खिलाफ भारतीय टीम जूझती नजर आई और पाकिस्तान के खिलाफ और मुश्किलें पेश आएंगी.’

अति आत्मविश्वास की शिकार थी टीम इंडिया
उन्होंने कहा कि भारतीय टीम अति आत्मविश्वास की शिकार थी. गावस्कर ने यह भी कहा कि टीम संयोजन को लेकर न्यूजीलैंड टीम की तारीफ करनी होगी. उन्होंने कहा, ‘भारत अति आत्मविश्वास के कारण हारा लेकिन न्यूजीलैंड को भी जीत का श्रेय जाता है जिसने तीन स्पिनरों को उतारा.’

 

हे राम ! तुम्हारा शिष्य तो असहिष्णु निकला

सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने वाले भजभज मंडली की असहिष्णुता भरी गुंडई की खूब आलोचना हो रही है. वाकया उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का है, जहां धर्म के रथ पर सवार हो कर वोट मांगने वाले भजभजी मंडलियों ने अपने भगवान के रथ को खींचने वाले घोड़े की टांग तोड़ डाली. घोड़े का कुसूर इतना भर था कि उस ने एक भाजपाई को लात मार दी. फिर क्या था, गुस्से से आगबबूला मसूरी के भाजपा विधायक गणेश जोशी ने आव देखा न ताव, घोड़े की टांग पर ताबड़ेतोड़ डंडे मार कर उस का पैर तोड़ डाला. जोशी का गुस्सा तब तक शांत नहीं हुआ जब तक घोड़े की टांग न टूट गई और वह बीच सड़क पर गिर न गया.

हर तरफ हो रही आलोचना

दरअसल, राज्य में भाजपा ने विरोधस्वरूप विधानसभा का घेराव किया था. वहां कई पुलिस वाले भी मौजूद थे. भाजपाईयों की नारेबाजी, गुंडागर्दी में किसी ने घोड़े को छेड़े दिया. घोड़े ने खुद के बचाव में लात क्या चला दी, उस की शामत आ गई. राज्य के सीएम हरीश रावत ने भी इस की जम कर आलोचना की है.

यह कैसी दबंगई

यों भी इस देश में नेताओं की दबंगई सदन की कार्यवाही में देश दुनिया के लोग बराबर ही देखते हैं. माइक तोड़ेने से लेकर कुरसियां फेंकने व आपस में जूतम पैजात करते इन्हें मजा आता है और ये समझते हैं कि इस से ये सुर्खियों में रहेंगे. मगर एक निर्दोष व बेजबान की टांग तोड़े कर मार देने वाली यह शायद पहली ही घटना होगी.

क्या कानूनी डंडा चलेगा अब

यों विरोध जताना और अपनी मांग रखना हर किसी का मौलिक अधिकार है, पर यह अधिकार कानून ने किसी को नहीं दिया है कि कोई तालिबानी जुल्म करे. अब कानून का डंडा नेताजी पर चलेगा. जानवरों की हितों की रक्षा करने वाली संस्था भी नेताजी के पीछे पड़ेगे. पर होगा कुछ नहीं यह तय है. भला नेताओं का कभी कुछ बिगाड़ पाया है किसी ने?

संघ ने विचार नहीं, पोशाक बदली

1925 में जब राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ यानि आरएसएस की स्थापना हुई थी तब उसकी पोशाक पूरी तरह से खाकी की हुआ करती थी. इसको संघ के प्रथम सरसंघचालक केशव बलीराम हेडगेवार ने डिजाइन किया था. 1939 तक यह पोशाक संघ में शामिल थी. 1940 में खाकी कमीज की जगह सफेद शर्ट को ड्रेस का हिस्सा बनाया गया. 1973 में सेनाओं की तरह पहने जाने वाले लंबे बूट को हटाकर चमडे के जूते लाये गये. 2010 में चमडे की बेल्ट को पोशाक में हिस्सा दिया गया. पहले कैनवस की बेल्ट लगाई जाती थी. 2016 में हाफ पैंट को संघ ने बिदा करके भूरे रंग की फुल पैंट को पोशाक का हिस्सा बना दिया. संघ के सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने इसकी वजह युवा सोच को बताया.

युवाओं को संघ से जोडने के लिये संघ ने अपनी पुरानी हाफ पैंट वाली पहचान को छोड दिया. आज का युवा उदार मानसिकता का है उसकी मानसिकता को देखते हुये संघ अपने विचारों में बदलाव करता तो शायद ज्यादा तादाद में युवा संघ के साथ जुडते. संघ ने अपने प्रचार प्रसार के लिये अब शाखाओं के साथसाथ वेबसाइट भी शुरू की है. 4 साल पहले शुरू की गई इस बेवसाइट में हर माह 8 हजार युवा जुडते है. संघ की 91 फीसदी शाखायें ऐसी है जिनमें 40 साल से कम उम्र के युवा सबसे अधिक है. संघ की हाफ पैंट को लेकर बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबडी देवी ने कुछ समय पहले कटाक्ष करते कहा था यह कैसा संगठन है जिसमें बूढे लोगों को हाफ पैंट पहनना पडता है  क्या उनको सार्वजनिक जगहो पर जाने से शर्म महसूस नहीं होती. संघ में पोशाक बदलने की कवायदा लंबे समय से चल रही थी. ऐसे में राबडी देवी की बात का असर नहीं लगता पर संघ की पोशाक बदलने पर विरोधी दलो की राजनीतिक टिप्पाणी आपेक्षित थी. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिगविजय सिंह ने कहा ‘संघ को पोशाक नहीं विचारधारा बदलनी चाहिये.’

संघ के पोशाक बदलने से यह साफ हो गया कि समय के साथ चलने के लिये बदलाव जरूरी होता है. देश और समाज के वह हालात अब नहीं है जो 1925 में थे. आज देश और समाज की दूसरी जरूरते है. संघ को देश और समाज की जरूरतों के हिसाब से अपनी सोच और विचारधारा में बदलाव लाना चाहिये. जिससे समाज तरक्की की राह पर आगे बढे. संघ ने जिस पैंट को अपनी पोशाक में शामिल किया है वह पश्चिम के पहनावा का ही हिस्सा है. पैंट कभी भी सनातन हिन्दू समाज की पोशाक का हिस्सा नहीं थी. जब जाति और धर्म के नाम पर देश में अलगाववादी सोच जन्म लेती है तो देश को कमजोर करने वालों को सहायता मिलती है. ऐसे हालातों से बच कर देश की तरक्की के लिये काम करना ही आज की जरूरत है. ऐसे में जरूरी है कि पोशाक के साथ सोच भी बदले.  

VIDEO: ‘शाहिद भाई इंडिया को बता दो, छक्का मारते कैसे हैं’

वर्ल्‍ड कप टी20 का आगाज हो चुका है. इसके साथ ही पिछले साल वर्ल्‍ड कप के दौरान धूम मचाने वाला 'मौका मौका' विज्ञापन भी एक बार फिर आ गया है. पाकिस्‍तान और भारत के बीच होनेवाले मैच को लेकर बनाए गए इस विज्ञापन में पाकिस्‍तानी फैन पाक क्रिकेटर शाहिद अफरीदी से जीत के लिए भावुक अपील करता हुआ दिख रहा है.

गौर हो कि दोनों टीमें (भारत और पाकिस्तान) 19 मार्च को कोलकाता के ईडन गार्डन्‍स में भिडेंगी. वर्ल्‍ड टी20 में अभी तक भारत और पाकिस्‍तान का चार बार आमना- सामना हुआ है और चारों बार भारत को ही जीत मिली है. यह मुकाबला बेहद दिलचस्प होनेवाला है जिसपर दोनों देशों के लाखों क्रिकेट प्रशंसकों की निगाहें रहेंगी.

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क्या हो पत्नी का सरनेम

एशिया महाद्वीप के देश जापान में महिला अधिकारों की हार हुई. तकनीकी रूप से संपन्न देश जापान में 5 महिलाओं ने कोर्ट में याचिका दायर कर अपने नाम के साथ पति का उपनाम न लगाने को ले कर अर्जी दी थी. मगर इस में कोर्ट ने महिलाओं के खिलाफ फैसला सुनाया. इस से अब यह तय हो गया है कि महिलाओं को अपने नाम के साथ पति का उपनाम लगाना आवश्यक है. यह उस देश के संविधान का फैसला है, जिस देश में शिक्षासंपन्न लोग हैं, जो तकनीक में बहुत आगे हैं और जहां बुजुर्गों की संख्या युवाओं के मुकाबले ज्यादा तेजी से बढ़ रही है. ऐसे देश में तो महिलाओं के प्रति ज्यादा उदारता की बात सामने आनी चाहिए थी. लेकिन उसी देश में इस फैसले के बाद महिलाओं के लिए संघर्ष और ज्यादा बढ़ गया है.

जापानी अदालत के मुताबिक यह कानून संविधान का उल्लंघन नहीं करता. इस के अलावा एक अन्य कानून भी है, जो महिलाओं को तलाक के 6 माह के भीतर विवाह करने को असंवैधानिक करार देता है. ये दोनों ही कानून 19वीं सदी के हैं जिन्हें अब भी बदला नहीं जा सका है. उसी देश में महिलाओं को आज भी यह अधिकार नहीं है कि वे पति के नाम से अलग अपने वजूद को उभार सकें.

पति का उपनाम ही क्यों

ऐसे में यह सवाल हर औरत के मन में उठना स्वाभाविक है कि उस के लिए पति के उपनाम को अपने नाम के साथ लगाना कहां तक जायज है? आज के नए युग में यह जरूर है कि कुछ नामचीन महिलाएं अपने उपनाम के साथ पति का भी उपनाम लगा लेती हैं लेकिन सवाल फिर वही है कि आधुनिक समाज में भी पत्नी ही पति का उपनाम क्यों लगाए?

वह लड़की जो शादी से पहले पिता के उपनाम के साथ अपनी शिक्षा पूरी करती है और अपनी पहचान बनाती है, विवाह होते ही एकदम उस की पहचान बदल जाती है. उस के नाम के साथ पति का उपनाम जोड़ दिया जाता है. बिना यह पूछे कि उसे अपने नाम के साथ पति का उपनाम लगाना भी है या नहीं. लेकिन जब यही उपनाम उस पर थोपा जाता है तब वहां महिला की अपनी रजामंदी का सवाल ही कहां रहता है? अर्धांगिनी कह कर घर लाई जाने वाली महिला को आधा अधिकार भी कब दिया गया? मायके से ससुराल आते ही उस का नाम कब बदल जाता है, उसे यह एहसास ही कब होता है. और वह एक नए नाम से पुकारी जाने लगती है, मानो एक रात में एक रिश्ते ने उस की बरसों की पहचान छीन ली हो.

सभी देशों का रवैया एक जैसा

इस से भी ज्यादा तकलीफ तब होती है जब पति से पत्नी का रिश्ता टूटता है. पति बच्चों, घर हर चीज के साथ पत्नी से अपना नाम भी छीन लेता है और पत्नी बरसों एक घर बनाने के बाद एकाएक अपनी पहचान ढूंढ़ने लगती है कि आखिर उस का वजूद क्या है? शादी से पहले पिता का नाम उस की पहचान था, जो खून का रिश्ता होने के कारण सारी उम्र नहीं टूटना चाहिए था. जैसे उस के भाइयों का नाम उस के पिता के नाम के साथ अटूट है, वैसा ही उस के साथ होना चाहिए. लेकिन चूंकि वह लड़की है, इसलिए उस की पहचान उस के पति से है और वही पति जब उस से रिश्ता तोड़ ले तब वह अपनी पहचान कहां खोजे? फिर से पिता का नाम अपने नाम से जोड़ ले या पति के उपनाम को ही नाम के साथ रहने दे? एक विकल्प और भी है. वह अपने नाम को अकेला छोड़ दे. असल में लड़ाई इसी अकेले नाम को रखने की है. यही लड़ाई जापान की महिलाओं ने लड़ी. मगर वे हार गईं.

विश्व के हर मुल्क में महिलाओं के लिए एक जैसे ही कानून हैं. फिर चाहे जापान हो, बौद्ध शिक्षाओं वाला चाइना हो, इसलामिक देश हो, ईसाई मुल्क या फिर सनातन समाज. धर्ममजहब के सांचे में भले ही ये देश एक न हों, लेकिन महिलाओं पर लादे जाने वाले अधिकारों के मामले में सभी देशों का रवैया एक जैसा ही रहा है. फिर चाहे औरत शिक्षित हो या अशिक्षित, गरीब हो या अमीर सब पर पुरुष अधिकार लागू होते हैं.

सवाल सिर्फ वजूद का नहीं

महाराष्ट्र के ठाकरे परिवार की बड़ी बहू स्मिता ठाकरे के लिए भी ऐसे ही हालात बने थे जब उन्होंने अपने पति जयदेव ठाकरे से तलाक के बाद अलग रहने का फैसला किया था. तब ठाकरे परिवार से एक बयान आया था कि उन्हें अलग रहना है तो रहें, लेकिन ठाकरे उपनाम यहीं छोड़ जाएं. वहीं मुंबई हाई कोर्ट ने जनवरी, 2015 में अपने एक फैसले में कहा था कि तलाक के बाद भी महिलाएं अपने पति के उपनाम का इस्तेमाल करने के लिए स्वतंत्र हैं. पति इस पर तभी रोक लगा सकता है जब उस के उपनाम का पत्नी आपराधिक गतिविधियों में इस्तेमाल कर रही हो. सवाल सिर्फ वजूद का नहीं है. एक व्यवस्था जो शादी से पहले कायम होती है, उस में एकाएक बदलाव होने से परेशानियां खड़ी होती हैं. जैसे शादी से पहले सारे शैक्षिक दस्तावेज, पहचान प्रमाणपत्र, पासपोर्ट, राशनकार्ड पर नाम सब पिता के उपनाम से होते हैं, लेकिन शादी के बाद या तो इन में बदलाव कराया जाता है जोकि बहुत परेशानी का काम है या फिर पत्नी का व्यावहारिक नाम और दस्तावेजों में नाम दोनों अलगअलग पहचान के होते हैं.

हालांकि इस बात से संतोष किया जा सकता है कि महिलाएं अपने इस अधिकार को ले कर जागरूक हुई हैं और भले ही जापान का संविधान उन के पति के नाम से अलग पहचान न दे रहा हो, लेकिन वहां महिलाओं का संघर्ष अब भी जारी है. 2007 में कैलिफोर्निया का एक विधेयक भी बतौर उदाहरण याद किया जा सकता है. इस विधेयक के तहत कोई पुरुष चाहे तो अपनी पत्नी का उपनाम अपने नाम के साथ लगाने को स्वतंत्र है. इस विधेयक का निर्णय एक युगल द्वारा पेश याचिका के बाद लिया गया. उस याचिका में पति ने पत्नी के उपनाम को अपने नाम के साथ लगाने की इच्छा प्रकट की थी.इतिहास में महिलाओं को अधिकार मिले तो हैं, लेकिन इन के लिए उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी है. शायद इसी सामाजिक व्यवस्था को देख कर ‘द सैकंड सैक्स’ की फ्रैंच लेखिका सीमोन द बस ने कहा था कि स्त्री होती नहीं बना दी जाती है.

सीखें सिलाई, बनाएं एक नई पहचान

गांव हो या शहर पढ़ाई लिखाई के बावजूद कई महिलाएं किसी प्रोफैशनल कोर्स के अभाव में जिंदगी भर चौके चूल्हे तक ही सीमित रह जाती हैं. जिस से उन्हें तमाम तरह की दिक्कतों से जूझना पड़ता है. इन्हीं मुसीबतों की एक कड़ी रोजगार से जुड़ी हुई है. जिस का प्रमुख कारण रोजगार के अवसरों पर पुरुषों का वर्चस्व भी रहा है.

लेकिन महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए  रोजगार के भरपूर अवसर हैं. इन में से एक है सिलाई का काम. सिलाई एक कला है. हर महिला में यह कला थोड़ी बहुत होती ही है. बस, जरूरत होती है इसे निखारने की और यह काम आसान कर देती है सिंगर स्विंग मशीन.

सिलाई एक ऐसी कला है जिसे महिलाएं अपने घर पर रह कर भी कर सकती हैं. इस से अच्छी आमदनी के साथसाथ घरपरिवार की देखभाल और उन का साथ भी लगातार बना रहता है. यही कारण है कि महिलाओं में सिलाई सीखने की लगन सब से अधिक देखी गई है. भारत में रोजगार के क्षेत्र में महिलाएं सर्वाधिक सिलाई के काम से जुड़ी हुई हैं.

इस कार्य में महिलाओं की कई एनजीओ भी मदद कर रहे हैं. जिन महिलाओं को सिलाई नहीं आती या थोड़ी बहुत आती है उन्हें सिलाई का  काम सिखा कर रोजगार दिलाने के प्रयास किए जा रहे हैं. इसी मुहिम में सिंगर स्विंग मशीन का नाम भी जुड़ गया है. महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिंगर स्विंग मशीन ने दिल्ली एनसीआर और अन्य राज्यों के कई स्कूलों में अपनी मशीनें लगाई हैं और 3 से 6 माह की अवधि का सिलाई कोर्स आरंभ किया है. यह कोर्स महिलाओं की सिलाई की कला को तो निखारता ही साथ ही उन्हें प्रोफैशनल सर्टिफिकेट भी उपलब्ध कराता है, जिस से की वे भविष्य में इस कला के जरिए रोजगार हासिल कर सकें. साथ ही स्वाभिमान और आत्मनिर्भरता का जीवन जी सकें. इस के अतिरिक्त सिंगर स्विंग मशीन कोर्स करने वाली छात्राओं को कोर्स के पूरा होने पर विशेष छूट पर सिलाई मशीने खरीदने का अवसर भी देती है ताकि छात्राएं जल्द से जल्द अपना काम शुरू कर सकें और अपने पैरों पर खड़ी हो सकें. सिंगर स्विंग मशीन ने कुछ एनजीओ को भी अपने इस कार्य में शामिल किया है. जहां ट्रैंड सिलाई टीचरों द्वारा महिलाओं को सिलाई का काम सिखाया जाता है. इस कोर्र्स को चला रहे एक सैंटर में पंजीकृत छात्रा की माने तो, ‘‘मुझे इस सैंटर में आ कर सिलाई सीखना बहुत पसंद है. यहां बिताए पल मेरे दिन के सब से खुशनुमा पल होते हैं, क्योंकि सिलाई के अलावा मैं ने यहां कुछ अच्छे दोस्त भी बनाए हैं जिन से सिलाई के अलावा भी मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है. मैं यहां हर रोज आना चाहती हूं.’’

यह कोर्स महिलाओं को न केवल आत्मनिर्भर बनाएगा, बल्कि उन्हें आत्मसम्मान की जिंदगी और आत्मविश्वास के साथ जीना भी सिखाएगा

याद्दाश्त बढ़ाने के ये हैं कारगर उपाय

अमूमन किशोर यह कहते मिलते हैं कि वे कितना भी याद कर लें कुछ याद ही नहीं होता, लेकिन विडंबना यह है कि यही किशोर अगर फिल्म देख कर आएं तो फिल्म के संवाद, गाने और दृश्य तक को हूबहू सुनाने में उन्हें मुश्किल नहीं होती आखिर उन्हें पढ़ाई ही क्यों नहीं याद होती? इस का एक तो सीधा सा कारण है सटीक पढ़ने का तरीका न होना और दूसरा याद्दाश्त कमजोर होना. अगर इन दोनों को दुरुस्त कर लिया जाए तो याद्दाश्त आश्चर्यजनक रूप से बढ़ सकती है.

याद्दाश्त का कमजोर होना एक व्यापक और गंभीर समस्या है. विद्यार्थियों को अपना पाठ अधिक दिन तक याद नहीं रहता है जिस से वे काफी परेशान रहते हैं. कुछ लोग अपनी वस्तुएं कहीं रख कर भूल जाते हैं तो कई लोग अपने मित्रों व पड़ोसियों इत्यादि को पहचानने में भी धोखा खा जाते हैं. यों तो मस्तिष्कीय क्षमताएं प्रकृति प्रदत्त होती हैं लेकिन फिर भी सतत प्रयासों द्वारा इन में आश्चर्यजनक वृद्धि की जा सकती है. याद्दाश्त का सीधा संबंध मस्तिष्क से है. इसलिए प्राय: हम उन चीजों को नहीं भूलते हैं जिन से हमारा सीधा संबंध होता है. लेकिन वे सारे कार्य, जिन्हें हम भारस्वरूप समझ कर करते हैं, मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ने में समर्थ नहीं होते और हम उन्हें शीघ्र ही भूल जाते हैं.

फ्रांस के प्रधानमंत्री लियान मेंब्रेज विलक्षण याद्दाश्त के धनी थे. वे संसद में दिए गए विपक्षी नेताओं के भाषण तथा पिछले 10 वर्ष के संपूर्ण बजट को आंकड़ों सहित सुना सकते थे. यही नहीं सालोमन वेनियामिनोव नामक रूसी पत्रकार वर्षों पहले सरसरी तौर पर पढ़ी गई रेलवे समयसारिणी को बिना किसी असुविधा के दोहरा सकते थे. सच पूछिए तो ऐसी याद्दाश्त के धनी लोग विरले ही होते हैं.

जानिए, याद्दाश्त बढ़ाने के कुछ महत्त्वपूर्ण और कारगर उपाय :

बारबार दोहराएं

याद्दाश्त बढ़ाने तथा भूलने की क्रिया कम करने में याद की जाने वाली सामग्री की अधिकाधिक पुनरावृत्ति उपयोगी सिद्ध होती है. यदि कोई पाठ्यवस्तु केवल 3 या 4 बार पढ़ने से ही याद हो जाती है तो उस सामग्री को ग्रहण करने की शक्ति अपेक्षाकृत अधिक समय तक बनी रहती है. लेकिन यहां यह बता देना उपयुक्त होगा कि एक सीमा से अधिक बार याद करने से ग्रहण करने की शक्ति पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है. निष्क्रिय पुनरावृत्ति के स्थान पर सक्रिय एवं सार्थक पुनरावृत्ति अधिक प्रभावशाली होती है.

धीरेधीरे याद करें

यदि याद की जाने वाली विषय सामग्री लंबी हो, तब उसे कई प्रयासों में धीरेधीरे ही याद करना चाहिए. परंतु यदि सामग्री छोटी हो, तो उसे एक ही बार में याद करना अधिक फायदेमंद होता है. शायद बहुत कम लोगों को यह पता है कि याद करने के बाद विश्राम करने से याद्दाश्त काफी सुदृढ़ होती है. अत: याद करने वाली सामग्री रात्रि में विशेषकर सोने से कुछ समय पूर्व पढ़ी जाए तो अच्छा होता है. कुछ विख्यात मनोवैज्ञानिकों ने भी अपने प्रयोगों द्वारा इस बात की पुष्टि की है.

उपयोगी तथ्यों पर ध्यान दें व टुकड़ों में याद करें

उपयोगी तथ्यों को सावधानीपूर्वक पढ़ना, समझना, दोहराना और आवश्यक होने पर नोट करना याद्दाश्त की वृद्धि में सहायक सिद्ध होते हैं. विषय के संक्षिप्तीकरण का तरीका भी तथ्यों को आसानी से याद रखने में सहायक होता है. पूरे विषय को संपूर्ण रूप से याद रखने के स्थान पर उसे छोटेछोटे शीर्षकों व उपशीर्षकों में बांट कर स्मरण करना आसान होता है. विद्यार्थियों को इस बात की भी जानकारी होनी चाहिए कि याद की जाने वाली सामग्री को भविष्य में पुन: स्मरण करना होगा. इस प्रकार सामग्री के प्रति मानसिक झुकाव उत्पन्न होता है जो निसंदेह बहुत फायदेमंद साबित होता है.

स्वास्थ्य दुरुस्त तो याद्दाश्त दुरुस्त

याद्दाश्त को ठीक रखने तथा उस में वृद्धि करने के लिए शरीर को स्वस्थ रखना भी अत्यंत आवश्यक है. नियमित रूप से व्यायाम करना व प्रात:कालीन भ्रमण करना न केवल चुस्तदुरुस्त रखता है बल्कि इस से याद्दाश्त में आश्चर्यजनक वृद्धि भी होती है. संतुलित आहार लेना, अधिक गरम और तेज मसालेदार खाद्य पदार्थों का सेवन न करना, सात्विक वातावरण में रहना इत्यादि तथ्य भी याद्दाश्त के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.                                

   इन बातों का भी रखें ध्यान याद्दाश्त बढ़ाने के लिए निम्न बातों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है :

–       याद करने के पश्चात खाली समय में महत्त्वपूर्ण तथ्यों को मन में दोहरा लेना चाहिए तथा बाद में भूले बिंदुओं का पुन: स्मरण करना चाहिए.

–       विद्यार्थियों को अपने विषय के अध्ययन में पूरी अभिरुचि व एकाग्रता के साथ ही जुटना चाहिए.

–       दूषित विचारों से बचना चाहिए.

–       समयसमय पर पूर्व कंठस्थ सामग्री का भी अध्ययन करना चाहिए.

–       स्मरण के बाद कुछ देर तक विश्राम अवश्य करना चाहिए.

–       याद की जाने वाली सामग्री की अधिक से अधिक पुनरावृत्ति की जानी चाहिए.

आज तक कोई ऐसी चमत्कारिक औषधि नहीं बनी है जिसे खा कर विलक्षण याद्दाश्त प्राप्त की जा सके. वास्तविकता यह है कि यदि व्यक्ति में आत्मविश्वास तथा सच्ची लगन हो तो विलक्षण याद्दाश्त प्राप्त करना बिलकुल असंभव नहीं

आमतौर पर भूलने के 3 मुख्य कारण होते हैं :

1. किसी बात को स्मरण रखने की पूर्व इच्छा का अभाव होना.

2. प्रस्तुत विषय को पूरे मनोयोग से समझने का प्रयास न करना.

3. प्रसंग में अरुचि तथा उपेक्षा का भाव होना तथा उस के महत्त्व को स्वीकार न करना.

परीक्षा में अधिक अंक हासिल करने के नुसखे

आज का दौर प्रतियोगिता का दौर है. 10वीं के बाद अपना मनपसंद विषय लेने की बात हो या 12वीं के बाद कालेज में ऐडमिशन की या फिर इंजीनियरिंग आदि के लिए प्रतियोगिता परीक्षा की, अच्छे अंक और प्रतियोगिता में अच्छी रैंक लाना लाजिमी हो गया है. ऐसे में विद्यार्थियों को परीक्षा के विषयों की तैयारी के साथसाथ यह भी समझना चाहिए कि परीक्षा में उत्तर देने का तरीका क्या हो? अकसर छात्र सोचते हैं कि हम तो खूब पढ़ते हैं, लंबेलंबे उत्तर रटते हैं फिर भी हमारे नंबर अच्छे नहीं आते. दरअसल, अच्छे नंबर लाने के लिए रटने की नहीं बल्कि समझ कर प्रश्नों के उत्तर देने की आवश्यकता होती है.

विद्यार्थी अकसर यहीं गलती कर जाते हैं. परीक्षा में जो पूछा जाता है उस का सटीक उत्तर नहीं देते बल्कि विस्तार से देने के लिए अनापशनाप लिख देते हैं. उन्हें लगता है अगर हम ने 2 ही पंक्तियों में उत्तर दे दिया तो शायद परीक्षक पूरे अंक नहीं देगा और वे 2 पंक्तियों के उत्तर को भी घुमाफिरा कर बड़ा कर देते हैं. आखिर कैसे दें परीक्षा में प्रश्नों के उत्तर कि मेहनत का सकारात्मक परिणाम देखने को मिले. जानिए कुछ नुसखे जिन्हें अपना कर आप परीक्षा में अधिकतम अंक हासिल कर सकते हैं.

विस्तृत के बजाय सटीक उत्तर लिखें

विद्यार्थियों को स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि यदि उत्तर 2 पंक्तियों में ही समाप्त हो रहा है तो उस का विस्तार बेकार है. ऐसा कर के छात्र कम अंक प्राप्त करेंगे जबकि 2 पंक्तियों का उत्तर लिखने वाले अन्य छात्र अधिक अंक प्राप्त कर सकते हैं. उदाहरण के लिए यदि प्रश्नपत्र में प्रजातंत्र पर अब्राहम लिंकन की परिभाषा पूछी जाए, तब उस का सटीक उत्तर, ‘प्रजातंत्र वह शासन तंत्र है जो जनता का, जनता के लिए, जनता के द्वारा शासन है,’ होगा. हो सकता है कि आप ने अब्राहम लिंकन की ही परिभाषा लिखने के बाद उसे और अधिक स्पष्ट करने के लिए कुछ और पंक्तियां जोड़ दीं लेकिन अगर आप ने केवल लिंकन की उक्त परिभाषा ही लिख दी तो भी आप का उत्तर पूर्ण होगा और परीक्षक को पूरे नंबर देने पड़ेंगे.

अधिकांश विद्यार्थियों की धारणा है कि उत्तरपुस्तिका में कुछ न कुछ लिख देने पर परीक्षक नंबर देगा ही, इसलिए वे उत्तर नहीं आने पर भी मन से उत्तर बना कर लिख देते हैं. परंतु यह धारणा गलत है. परीक्षक को गुमराह करने पर हो सकता है कि वह लंबे उत्तर वाले प्रश्नों की दोचार पंक्तियां पढ़ कर, पूछे गए प्रश्न से असंबद्धता होने के कारण काट दे जबकि अंत में उसी प्रश्न का उत्तर लिखा हो. यह ध्यान रखें कि उन्हीं उत्तरों पर अधिक नंबर दिए जाते हैं जो सटीक और सारगर्भित हों. प्रश्नों के ऐसे उत्तर पढ़ कर परीक्षक प्रभावित होता है कि विद्यार्थी को विषय का सही ज्ञान है. यह आकलन परीक्षक को प्रभावित करता है. फिर सटीक सारगर्भित उत्तर पढ़ने में कम समय लगता है और ऐसे उत्तरों पर शीघ्रता से पूरे नंबर दिए जाते हैं जबकि प्रश्नों के विस्तार से लिखे उत्तर पढ़ने में समय अधिक लगता है व उत्तर का विस्तार उत्तर की संबद्धता पर भी प्रश्नचिह्न लगा देता है.

इसलिए जहां तक हो, उत्तर सटीक लिखें और पुनरावृत्ति तथा विस्तार से बचें. पुनरावृत्ति अच्छा प्रभाव नहीं डालती है. बेकार का विस्तार जहां एक ओर परीक्षार्थी का समय बरबाद करता है, वहीं परीक्षक भी झुंझला जाता है. अत: जो भी लिखें, सटीक लिखें.

स्पष्ट व सुंदर लिखावट में लिखें उत्तर

लिखावट अस्पष्ट और उत्तर सटीक लिखने की आदत न होने पर इस का अभ्यास करना अधिक अंक प्राप्ति में सहायक होता है. परीक्षार्थी को चाहिए कि वह अपनी लिखावट सुंदर बनाने का प्रयास करे.

प्रश्नों को समझें और उत्तर दें

अमूमन विद्यार्थी प्रश्नों को समझे बिना ही उत्तर देने शुरू कर देते हैं. ऐसे में जो पूछा गया है वह छूट जाता है और बिना पूछी बात उत्तर में आ जाती है. अत: ध्यान रखें कि प्रश्नों के अनुसार उत्तर दें और पेपर की तैयारी करते समय छोटी से छोटी बात को भी माइंड में बैठा लें, क्योंकि हो सकता है कि परीक्षक उसी छोटी बात को प्रश्न के रूप में पेश कर दे. वह ऐसे प्रश्नों को भी प्राथमिकता के आधार पर प्रश्नपत्र में सम्मिलित करता है जिन से परीक्षार्थी की संपूर्ण पढ़ाई का मूल्यांकन हो. कभीकभी साधारण से लगने वाले प्रश्न भी पूछे जाते हैं. ये प्रश्न ऐसे होते हैं जो अन्य प्रश्नों का प्रतिनिधित्व करते हैं. किसी बड़े प्रश्न के प्रति प्रश्न पूरक प्रश्न होते हैं.

भूगोल में पृथ्वी की गतियों वाले अध्याय से अनेक प्रश्न हो सकते हैं. पृथ्वी की पत्तियां कौनकौन सी हैं? पृथ्वी अपने अक्ष पर कितनी झुकी है? परीक्षक इस के आधार पर प्रति प्रश्न बना कर पूछ सकता है. मौसम में परिवर्तन किस कारण होता है? उपरोक्त प्रश्नों में दूसरा प्रश्न, मौसम परिवर्तन का कारण, पृथ्वी के अपने अक्ष पर झुके होने से संबद्ध है. यदि परीक्षार्थी ने पृथ्वी के अक्ष पर झुके होने का कारण व उस पर से होने वाले परिणाम का सूक्ष्म अध्ययन किया है तो वह इस प्रश्न का उत्तर आसानी से दे सकता है.

परीक्षा के स्वरूप को समझें

परीक्षा में पूछे जाने वाले प्रश्नों की संख्या और उन के विभाजन का स्वरूप मालूम कर, उसी के अनुरूप सूक्ष्म तैयारी करें. पहले ज्ञात कर लें कि परीक्षा में कितने प्रश्न पूछे जाते हैं, उन में से कितने लघु उत्तरीय आते हैं, वस्तुनिष्ठ और रिक्त स्थान का स्वरूप कैसा होता है व किस तरह के लघु उत्तरीय और निबंधात्मक प्रश्न पूछे जाते हैं, इस के अनुरूप अपना संतुलित और नियमित अभ्यास करें.

हर विषय का संतुलित अध्ययन करें

विद्यार्थियों को चाहिए हर विषय को उस के अनुसार समझ कर, याद कर के व उस की मुख्य बातें जान कर अध्ययन करें.

गणित : गणित और भौतिकी की तैयारी करते वक्त सूत्र रूप, विधि, स्वरूप आदि को ठीक तरह से समझ कर उन का सही उपयोग करना सीखें. गणित के सूत्र सवाल को हल करने में प्रयुक्त होते हैं. त्रिकोणमिति के सवाल सूत्रों के बिना सिद्ध ही नहीं होते हैं. सूत्र का उपयोग तभी बेहतर किया जा सकता है जब उस का स्वरूप हमें अच्छी तरह याद हो. इस के लिए सूत्र की उत्पति को अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि कैसे और किस तरह से वह सूत्र उत्पन्न हुआ है? सवाल को विधि के अनुसार ही हल करना चाहिए. रमेश की आदत है कि जब सवाल नहीं आता है तो वह मनमाने ढंग से सवाल हल कर के जैसेतैसे उत्तर निकाल लेता है. यह तरीका गलत है. गणित की तरह वाणिज्य, लेखा कर्म, अर्थशास्त्र की अपनी विधि होती है. विधि के अनुसार ही अनुसरण करना चाहिए.

भूगोल : भूगोल पढ़ते वक्त उसे समझ कर पढ़ें, बीचबीच में आने वाले जिज्ञासु स्थल को अच्छी तरह समझ कर उन के लघु उत्तरीय प्रश्न बना लें.  इस से भूगोल को समझने में सहूलत रहती है.

इतिहास : इतिहास में आंकड़े और नाम बहुत होते हैं. ऐसे स्थानों के आंकड़े कंठस्थ करने के साथसाथ छोटेछोटे प्रश्न बना लेने चाहिए. वैसे इतिहास में लंबे प्रश्न होते हैं मगर सूझबूझ से उन्हें छोटेछोटे प्रश्नों में बदल कर के याद किया जा सकता है.

अंगरेजी : अंगरेजी एक सरल विषय हे, बशर्ते आप को अंगरेजी के शब्दार्थ अच्छी तरह याद हों. इस की तैयारी करने से पहले आप जिस किसी प्रश्न, निबंध, वाक्य, पंक्ति को याद करना चाहें, उसे पहले शब्दकोश की सहायता से शब्दश: हिंदी में बदल लें. प्रत्येक शब्द का हिंदी अर्थ आप को याद हो जाना चाहिए. इस से आप को अंगरेजी व्याकरण समझने में व याद करने में कठिनाई नहीं होगी. अधिकांश छात्र अंगरेजी को रटने की कोशिश करते हैं. फलत: वे अंगरेजी को कठिन विषय मान लेते हैं.

अंगरेजी का हिंदी से संबंध जोड़ कर, उस के अर्थ को समझ कर याद किया जाए तो अंगरेजी याद करना सरल होता है.

हिंदी : हिंदी की तैयारी करते समय इस बात का ध्यान रखें कि हम क्या पढ़ रहे हैं व किस विषय के बारे में पूछा जा रहा है? तथ्यों आदि को याद कर लें. वैसे अधिकांश विद्यार्थियों का हिंदी में कम अंक प्राप्त करने का सब से बड़ा कारण, हिंदी को सरलतम समझना व उस की उपेक्षा करना है. इस कारण बहुत से विद्यार्थी ठीक तरह से हिंदी नहीं लिख पाते हैं.

विज्ञान : विज्ञान विषय के विद्यार्थियों को प्रयोग कार्य पर विशेष ध्यान देना चाहिए. रसायनशास्त्र विषय की अपनी विशिष्ट विधि होती है. इस विषय को समझ कर याद करने से सूत्र, समीकरण, विधि, सचित्र परिचय आदि को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है. वैसे रसायनशास्त्र में प्रयोगशाला में एवं कारखानों में तरहतरह की वस्तुओं के उत्पा न और उन के भौतिक व रासायनिक गुण, उपयोग, प्राप्ति स्थान आदि का वर्णन विशेष रूप से होता है. अत: इस विषय के प्रश्न भी तरहतरह  के तत्त्वों, यौगिकों आदि के उत्पादन की विधियों, नामांकित चित्रों, भौतिक, रासायनिक गुणों के उपयोग पर केंद्रित होते हैं. अधिकांश विद्यार्थी नामांकित चित्र नहीं बनाते हैं जबकि रसायनशास्त्र व जीवविज्ञान में अधिकांश नामांकित चित्र पूछे जाते हैं जिन पर ज्यादातर विद्यार्थी ध्यान नहीं देते हैं. इस प्रकार अगर विद्यार्थी विषय अनुसार तैयारी करें व प्रश्न में पूछे गए स्वरूप को समझ कर उस के अनुसार प्रश्न का उत्तर लिखें तो परीक्षा में अधिकतम अंक लाने में सफल रहेंगे. विद्यार्थी परीक्षा में उत्तरपुस्तिका में लापरवाही से लिखते हैं, यह आम बात है. हाशिया ठीक से नहीं छोड़ते हैं. निर्देशों का पालन करना चाहिए या नहीं, इस की वे परवा ही नहीं करते हैं.

इस के अलावा भी परीक्षा में कम अंक प्राप्त होने के अनेक कारण होते हैेें जो इस प्रकार से हैं :

–   पूछे गए प्रश्नों का सही उत्तर न देना.

–   सवाल को विधि अनुसार हल न करना.

–   प्रश्न का आशय समझे बिना ही उत्तर देना.

–   विषय का अस्पष्ट ज्ञान होने के कारण सही उत्तर न दे पाना.

–   उत्तर सही ढंग से व्यक्त न करना.

–   जितना पूछा गया हो, उसे बेतरतीब लिखना.

–   सटीक व संक्षेप में न लिखना.

–  लिखावट अस्पष्ट होना, जिसे समझने व पढ़ने में कठिनाई का सामना करना पड़े.

–  प्रश्न में पूछी गई बात का उचित उत्तर व चित्र बना कर उसे सही से चिह्नित भी करें.

उपरोक्त बातों को ध्यान में रख कर परीक्षा की तैयारी करने व उत्तर लिखने से अधिकतम अंक प्राप्त किए जा सकते हैं.

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