मेरा धेवता शांतनु 4 साल का, होशियार, चंचल व हाजिरजवाब है. उस की मम्मी जब कभी कहीं मेरे साथ बाजार में खरीदारी कर रही होती, वह कहता, नानी को भी खरीद देना. मैं और मेरी बेटी हंस देते. वह कहता, बस, हंसती हो, नानी को कुछ देती नहीं हो. एक बार हम लोग कल्याण साड़ीज, मेरठ की दुकान में साडि़यां देख रहे थे. वह चुपचाप बैठा था. फिर अचानक खड़ा हो गया और जोर से बोला, दुकानदार अंकल, आप पहले हमारी नानी के लिए रेड कलर की चौड़ी और 10 किलोमीटर लंबी साड़ी दिखाइए. वहां बैठे सभी लोग उस की प्यारी चाहत ‘चौड़ी और 10 किलोमीटर’ सुन हंस पड़े. वह बिना समझे खुश था और हंस रहा था. दुकानदार हंसता हुआ बोला कि अब पहले आप की नानी वाली ही साड़ी दिखाऊंगा.      

मंजु रस्तोगी, मेरठ (उ.प्र.)

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डाक्टर की सलाह पर मैं ने ‘फिश औयल कैप्सूल’ खरीदे. जैसे ही पैकेट से कैप्सूल निकाला वह पलंग पर गिर गया. मुझे वहम हुआ और उसे ठंडे पानी की कटोरी में डाल दिया. मेरी 11 वर्षीया बेटी बहुत जिज्ञासू है. वह बहुत गौर से मुझे यह सब करते हुए देख रही थी. कुछ सोच कर वह हंस पड़ी और बोली, ‘‘मम्मी, यह फिश औयल कैप्सूल है, फिश नहीं, जो पानी में डाल देने से जी उठेगी.’’ उस की यह बात सुन कर मैं भी उस की हंसी में शामिल हो गई.

अर्चना, पटेल नगर (न.दि.)

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बच्चे कभीकभी बड़ों को कैसा मूर्ख बनाते हैं, इस का ज्वलंत उदाहरण दिखाया दीदी के 3 वर्षीय बेटे राजीव ने. राजीव को उस के दादा बहुत प्यार करते थे. जब दादा को 4-5 दिनों के लिए बाहर जाना था तब वे काफी चिंतित हो गए कि उन के जाने के बाद राजीव कैसे रहेगा. पर मजबूरी ऐसी थी कि उन को जाना ही था. 4-5 दिन राजीव ने घर के बाकी सदस्यों के साथ खूब मस्ती में बिताए. एक बार भी उस ने दादा का नाम नहीं लिया. परंतु मजा तो तब आया जब दादा के आते ही राजीव दौड़ कर दादा से लिपट गया और बोला, ‘‘दादा, आप कहां चले गए थे  हम दादादादा कह कर रो रहे थे.’’ यह सुन कर दादा गद्गद हो गए और उसे गोद में उठा कर चूमने व पुचकारने लगे. पर हम लोग उस की बालसुलभ चापलूसी और मौकापरस्ती पर हंसतेहंसते लोटपोट हो गए.

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