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अर्जुन कपूर ने बनाई पिता की फिल्मों से दूरी

अर्जुन कपूर उन फिल्मी संतानों में से हैं, जिन्हे कभी कहीं अपनी गलती नजर आती ही नहीं है और न ही वह  अपनी गलतियों को सुधारने में ही यकीन करते हैं. अर्जुन कपूर को नजदीक से जानने वाले सूत्रों की माने तो अर्जुन कपूर ‘‘अहम’ का शिकार हो चुके हैं. वह अपने आपको बौलीवुड का महान कलाकार मानते हैं. अर्जुन कपूर हमेशा खुद को महान साबित करते हुए नजर आते हैं. इसी आवेश में उन्होने लगभग डेढ़ साल पहले अपने पिता व फिल्म निर्माता से आग्रह करके एक दक्षिण भारतीय फिल्म का रीमेक ‘‘तेवर’’ के नाम से करवाया, जिसमें स्वयं अर्जुन कपूर ने मुख्य भूमिका भी निभायी थी. फिल्म ‘‘तेवर’’ के रिलीज से पहले बड़ी बड़ी डींगे हांकते हुए अर्जुन कपूर ने दावा किया था कि वह इस फिल्म के साथ हीरोइजम की परिभाषा बदलने वाले हैं.

मगर ‘‘तेवर’’ की बाक्स आफिस पर ऐसी दुर्गति हुई कि अर्जुन कपूर की आंखें खुली की खुली रह गयी. अब अर्जुन कपूर ‘तेवर’ की असफलता को इमोशनल मसला बताते हैं. वह कहते हैं-‘‘फिल्मों के फ्लाप होने पर मैं रूकता नहीं हूं. आगे बढ़ता रहता हूं. हर कलाकार के करियर में हिट और फ्लाप आती रहती हैं. ‘तेवर’ का असफल होना इमोशनल मामला रहा. क्योंकि इसका निर्माण मेरे पिता ने किया था. अब मैने आर बालकी की फिल्म ‘की एंड का’ की है, जो कि एक अप्रैल को रिलीज होगी. ’’

पर अर्जुन कपूर अभी भी हवा में उड़ रहे हैं. जब पिछले दिनों एक मुलाकात के दौरान हमने उनसे पूछा कि फिल्म ‘तेवर’ के रिलीज से पहले उन्होने हीरोईजम को एक नयी परिभाषा देने की बात कही थी. ‘तेवर’के फ्लाप होने से वह नहीं हो पाया? इस पर अर्जुन कपूर ने कहा-‘‘चिंता ना करें. मैं आगे यह करके दिखाउंगा. मैं कोशिश करने में यकीन करता हूं. मुझे यकीन है कि मैं एक दिन हीरोईजम के मायने बदलूंगा. कोई भी कलाकार फिल्म की सफलता या असफलता का दावा नहीं कर सकता. पर ‘तेवर’ करने में मैंने जो मेहनत की थी, वह सफल रही. क्योंकि जिन्हें वह फिल्म देखनी थी, उन्होंने वह फिल्म देख ली.’’

एक तरफ अर्जुन कपूर अभी भी हीरोईजम की परिभाषा  बदलने की बात कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ उन्हे इस बात का अहसास हो गया है कि अब उन्हे अपने पिता की फिल्मों में अभिनय कर अपने पिता का पैसा नहीं डुबाना चाहिए. तभी तो सूत्रों की माने तो अर्जुन कपूर ने अपने पिता की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘‘सुल्ताना डाकू’’ में अभिनय करने से साफ साफ मना कर दिया है. सूत्रों की माने तो अर्जुन कपूर के चाचा व अभिनेता तथा ‘तेवर’ के सहनिर्माता संजय कपूर ने भी कुछ कहानियां चुनकर रखी थी, जिन्हे बिना सुने ही अर्जुन कपूर ने करने से साफ इंकार कर दिया. वह फिलहाल अपने होम प्रोडक्शन की फिल्में नहीं करना चाहते…

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म है कि यदि अर्जुन कपूर जमीन पर रहकर सोचे और थोड़ी सी समझदारी से काम लेकर अपनी कमियों को दूर करने की दिशा में प्रयास करें, तो उनका करियर सरपट दौड़ सकता है. अपनी फिल्म के असफल होने पर गर्व से यह तर्क देना कि हर कलाकार की फिल्में असफल होती हैं, कहीं से भी एक अच्छे प्रोफेशनल की पहचान नहीं कही जा सकती.

रोनित राय भी चले हौलीवुड

इन दिनों बौलीवुड कलाकारों के बीच हौलीवुड फिल्मों से जुड़ने का चस्का बढ़ता ही जा रहा है. जिसे देखो वही हौलीवुड फिल्मों में अभिनय कर रहा है. तो फिर भला बीस वर्षों से बौलीवुड में सक्रिय अभिनेता रोनित राय कैसे पीछे रह जाते. वह भी अब हौलीवुड जा रहे हैं. जी हां! रोनित राय के साथ ही राधिका आप्टे और नीरज काबी को फिल्मकार रोहित करण बत्रा ने हौलीवुड फिल्म ‘‘द फील्ड’’ में अभिनय करने के लिए चुना है. रोनित राय के लिए यह दूसरा मौका होगा, जब वह विदेशी धरती पर जाकर शूटिंग करेंगे. इससे पहले वह दीपा मेहता की फिल्म ‘‘मिडनाइट्स चिल्ड्रेन’’ के लिए विदेश में शूटिंग कर चुके हैं. सूत्रों के अनुसार अपराध से जुड़े परिवार की कहानी वाली फिल्म ‘‘द फील्ड’’ की शूटिंग अप्रैल माह में शुरू होगी.

हौलीवुड फिल्म ‘‘द फील्ड’’ करने की बात स्वीकार करते हुए रोनित राय कहते हैं-‘‘मैं हौलीवुड की माफिया थ्रिलर फिल्म ‘द फील्ड’ में अभिनय करने जा रहा. इसमें भारतीय कलाकारों के अलावा अमरीकन व ब्रिटिश कलाकार भी अभिनय कर रहे हैं. यह फिल्म अपराध जगत से संबंध रखने वाले परिवार की कहानी है, जिसमें मैं बड़े भाई का किरदार निभाने वाला हूं. यह पीरियड फिल्म है. यह मेरी पहली हौलीवुड फिल्म है. इस फिल्म की पटकथा पर निर्देशक रोहित बत्रा कई वर्षों से काम कर रहे थे. राधिका आप्टे के साथ भी यह मेरी पहली फिल्म होगी. मैं उसकी अभिनय प्रतिभा का प्रशंसक हूं. मैने उसकी कुछ फिल्में देखी हैं.’’

बौलीवुड के मिथ को तोड़ने में असफल करीना कपूर खान

बौलीवुड में तमाम अभिनेत्रियां इस मिथ को तोड़ने का असफल प्रयास कर रही हैं कि शादी के बाद हीरोईन का करियर खत्म हो जाता है. विद्या बालन, ऐश्वर्या राय बच्चन, करीना कपूर खान, माधुरी दीक्षित, शिल्पा शेट्टी, करिश्मा कपूर जैसी अभिनेत्रियां तमाम प्रयासों के बावजूद अपने अभिनय की गाड़ी को गति नहीं दे पा रही हैं. बौलीवुड के इस मिथ को न तोड़ पाने के पीछे कहीं न कहीं यह अभिनेत्रियां स्वयं जिम्मेदार नजर आती हैं. क्योंकि शादी के बाद हर अभिनेत्री की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. उन्हें जिंदगी के कई दूसरे कामों के लिए भी वक्त देना पड़ता है, जिसका असर फिल्म के प्रमोशन के साथ ही उनके करियर पर भी पड़ता है.

सैफ अली खान से विवाह करने के बाद से ‘‘बजरंगी भाईजान’’ को छोड़ दें, तो करीना कपूर एक भी सफल फिल्म नहीं दे पायी हैं. यूं भी ‘‘बजरंगी भाईजान’ तो सलमान खान की फिल्म कही जाती है. फिलहाल करीना कपूर की सारी उम्मीदें एक अप्रैल को रिलीज हो रही निर्देशक आर बालकी की फिल्म ‘‘की एंड का’’ पर टिकी हुई हैं. लेकिन करीना कपूर के अति नजदीकी सूत्रों की माने तो ‘‘की एंड का’’ की बाक्स आफिस सफलता को लेकर करीना कपूर के मन में संशय है. इसी के चलते वह उस जोश के साथ इस फिल्म को प्रमोट नहीं कर रही हैं, जिस जोश के साथ अमूमन वह अपनी फिल्मों को प्रमोट करती रही हैं. ‘‘की एंड का’’ में करीना कपूर ने आम हीरोईन से हटकर किरदार निभाया है. सूत्रों की माने तो उन्हे खुद समझ में नहीं आ रहा है कि भारतीय दर्शक फिल्म ‘की एंड का’ के उनके किरदार के संग रिलेट कर पाएगा या नहीं. सूत्रों की माने तो इसी वजह से ‘की एंड का’ के प्रमोशन के लिए जहां भी करीना कपूर को अर्जुन कपूर के साथ नाच गाना या अन्य गतिविधियां करनी थी, वहां तो वह जाती रही. लेकिन पत्रकारों से रूबरू बात करने व मिलने के लिए उनके पास समय का अभाव रहा.

करीना ने कुछ पत्रकारों से ‘ग्रुप इंटरव्यू’ यानी कि ‘‘लगभग प्रेस काफ्रेंस जैसी स्थिति’’ में ही बात की. ज्ञातब्य है कि ‘ग्रुप इंटरव्यू’ में कलाकार के लिए बात करना आसान होता है. ‘ग्रुप इंटरव्यू’ के दौरान कलाकार बड़ी खूबसूरती से अनचाहे सवालों के जवाब देने से बचने के लिए तुरंत दूसरे पत्रकार के सवाल की तरफ रूख कर देता है. सूत्रों की माने तो ‘ग्रुप इंटरव्यू’ में भी करीना कपूर अनमने मन से पत्रकारों के सवालों का जवाब देती रहीं. मगर ग्रुप इंटरव्यू में पहुंचे हर पत्रकार के साथ अलग अलग तस्वीरे खिंचवाने के लिए उन्होने काफी समय दिया. ‘‘ग्रुप इंटरव्यू’’ के लिए भी करीना कपूर फिल्म के रिलीज के दिन से महज एक सप्ताह पहले समय निकाल पायी. शायद उन्हे याद नहीं होगा कि कई दैनिक अखबारों में फिल्म के संस्करण दस दिन पहले ही बन जाते हैं.यानी कि इन अखबारों में करीना कपूर के इंटरव्यू छपने से रहे. इतना ही नहीं साप्ताहिक और पाक्षिक या मासिक पत्रिकाओं में तो उनके या उनकी फिल्म ‘की एंड का’ के बारे में छपना संभव ही नहीं है. इससे किसका फायदा व किसका नुकसान हुआ, यह करीना कपूर सहित हर कलाकार बड़ी आसानी से समझ सकता है. पर अमूमन देखने में आ रहा है कि कलाकार इस तरह की गलती करता है. बाद में वह फिल्म के असफल होने का सारा ठीकरा पीआर कंपनी पर डाल देता है.

हमें अच्छी तरह से याद है कि सोनम कपूर ने  फिल्म ‘‘बेवकूफियां’’ की असफलता का सारा दोष इस फिल्म की पीआर कंपनी पर मढ़ा था. तो वहीं फिल्म ‘‘द शौकीन’’ की असफलता के लिए  इसके निर्देशक अभिषेक शर्मा ने फिल्म के पीआर और मार्केटिंग को दोष दिया.

खैर, हम बात कर रहे हैं करीना कपूर की. शादी के बाद से करीना कपूर के पास ज्यादा फिल्में नहीं हैं. फिल्म ‘‘की एंड का’’ के बाद उनकी फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ रिलीज होगी. इसके अलावा उनके पास एक भी फिल्म नहीं है. इस पर करीना कपूर कहती हैं-‘‘यह मेरा सोचा समझा निर्णय है. अब मैं कुछ यादगार काम करना चाहती हूं. मैं साल में चार फिल्में करने की बनिस्बत एक या दो बेहतरीन फिल्में करना चाहती हूं. इसलिए किसी फिल्म के लिए हां कहने मं वक्त लग रहा है. मैं पिछले छह माह में कई नई फिल्मों के आफर ठुकरा चुकी हूं. इनकी पटकथाएं पढ़ने के बाद यह फिल्में मुझे उत्साह जनक नहीं लगी. नई पटकथाएं पढ़ने का सिलसिला लगातार जारी है. जैसे ही कोई बेहतरीन पटकथा सामने आएगी, मैं वह फिल्म कर लूंगी.’’

अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ में वह शाहिद कपूर, आलिया भट्ट और पंजाबी अभिनेता दिलजीत के संग नजर आने वाली हैं. ड्रग्स से संबंधित बीमारी के इर्द गिर्द रची गयी कहानी पर आधारित डार्क फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ में करीना कपूर ने एक नेकदिल डाक्टर का किरदार निभाया है. वैसे करीना कपूर इससे पहले ‘क्योंकि’ ,‘कमबख्त इष्क’, एजेंट विनोद’ में भी डाक्टर के किरदार निभा चुकी हैं.

फिल्म ‘‘उड़ता पंजाब’’ का जिक्र छिड़ने पर करीना कपूर कहती हैं-‘‘यह एक रोमांचक डार्क फिल्म है. जिसके लिए निर्देशक ने पूरे चार साल तक शोधकार्य किया. इसमें मैं डाक्टर बनी हूं. यह एक साधारण, नेक दिल इंसान का किरदार है. पर किरदार बहुत अलग है और फिल्म अच्छी है.’’

पत्रलेखा का नया सेक्सी अवतार

करियर की पहली फिल्म ‘‘सिटी लाइट्स’’ में साड़ी पहने एक राजस्थानी गृहिणी का किरदार निभाने के बाद अब अभिनेत्री पत्रलेखा विक्रम भट्ट निर्देशित फिल्म ‘‘लव गेम्स’’ में अत्याधुनिक अति सेक्सी अवतार में नजर आने वाली हैं. अपने करियर की पहली फिल्म ‘‘सिटी लाइट्स’’ में अपने निजी जिंदगी के प्रेमी व अभिनेता राज कुमार राव के संग साड़ी पहने एक राजस्थानी गृहिणी की भूमिका में भी जिस तरह से गर्मागर्म इंटीमसी के सीन पत्रलेखा ने दिए थे, वह आज तक दर्शक भूला नही है. तो अब जबकि वह सेक्सी अवतार में परदे पर कितना सेक्स व गर्मागर्म इंटीमसी के सीन में नजर आ सकती हैं, इसकी कल्पना की जा सकती है.

फिल्म में अमीरजादा व बिगड़ैल सैम (गौरव अरोड़ा) हमेशा सेक्स व ड्रग्स में डूबा रहता है. रमोना सिकंद (पत्रलेखा), ऐसे सैम को अपनी सेक्सी व मदमस्त अदाओं के साथ न सिर्फ सिडुस्ट करती है, बल्कि उसे अपने प्रेम जाल व सेक्सी हवस से मुक्त नहीं होने देना चाहती हैं. क्या इतने सेक्सी सीन को करना पत्रलेखा के लिए आसान रहा होगा? पत्रलेखा मानती हैं कि यह फिल्म और इसका किरदार उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती रही. पर एक कलाकार होने के नाते उन्होने किरदार के साथ न्याय करने की पूरी कोशिश की है.

वह कहती हैं-‘‘फिल्म ‘लव गेम्स’ के हीरो गौरव अरोड़ा मेरे पुराने परिचित हैं, इसके बावजूद इस फिल्म के बोल्ड दृश्यों को करना मेरे लिए सहज नहीं था. मैं उनके साथ इंटीमसी के बोल्ड सीन करने में हिचक रही थी. पर सेट पर फिल्म के निर्देशक विक्रम भट्ट ने मुझे समझाया, तब कहीं बड़ी सावधानी से मैं इस तरह के दृश्यों को अंजाम दे पायी. गौरव भी मुझसे बार बार यही कहते रहे है कि यह तो महज फिल्म है. देखिए, फिल्म में मेरा किरदार रमोना सिकंद अति खतरनाक सेक्स पैडलर है. पैसे की भूखी है. उसे अपने किसी भी कृत्य को लेकर कोई अफसोस नहीं है.’’

टालमटोल छोड़ें, अमीर बनें

मेहनत हर व्यक्ति अपने तरीके से करता है लेकिन हर व्यक्ति सफल नहीं हो पाता. ठीक उसी तरह मेहनत करने वाला हर व्यक्ति अमीर नहीं बन पाता. इस के लिए उस की आदतें जिम्मेदार होती हैं, जिस में काम को टालना प्रमुख है.

थौमस सी कार्ले नाम के लेखक ने 5 साल में 177 करोड़पतियों पर अध्ययन के आधार पर निषकर्ष निकाला कि जो व्यक्ति अपनी काबीलियत के दम पर अमीर बनता है वह व्यक्ति कार्यों को टालने में विश्वास नहीं रखता, न ही वह जल्दी किसी काम से इरीटेट होता है बल्कि हर कार्य को चैलेंज की तरह ऐक्सैप्ट कर के उस में सफल होने की कोशिश करता है. उस की पौजिटिव पर्सनैलिटी औरों में भी उत्साह का संचार करती है.

अब आप सोच रहे होंगे कि वो कभी भी किसी कार्य को नहीं टालते होंगे तो ऐसा नहीं है. लेकिन अगर उन्होंने आज किसी कारण से कार्य को टाल दिया है तो अगले दिन वह उस कार्य के लिए जीजान लगा देते हैं, लेकिन जिन लोगों के लिए टालने का मतलब हमेशा के लिए उस कार्य को टालना होता है वह व्यक्ति जीवन में कभी मुकाम हासिल नहीं कर पाते और इस से कंपनी, बिजनैस और संबंधों पर भी प्रभाव पड़ता है.

जबकि अपने दम पर सफल होने वाला व्यक्ति अपना एक शैड्यूल बना कर चलता है फिर उसी के अनुसार अपने कार्य को निबटाता चलता है. वह अपने आसपास व अपने ग्रुप में भी ऐसे ही लोग पसंद करता है जिन का काम का स्टाइल उस से मिलताजुलता हो और वे काम की इंपौर्टेंस जानते हो. वह दूसरों से भी नई चीजें सीखने में पीछे नहीं रहता.दूसरी बात हर व्यक्ति की कमाई एकजैसी नहीं होती लेकिन अगर आप अमीर बनना चाहते हैं तो अपने लीविंग स्टाइल में चेंजिस लाएं जैसे अगर कमाई ज्यादा नहीं है तो खर्च कम कीजिए और अगर खर्च ज्यादा है तो उस के हिसाब से कमाई कीजिए, इस से आप खुद ही सुधार देखेंगे.कहने का तात्पर्य यह है कि अमीर बनने के लिए टालमटोल छोड़ने के साथसाथ कंप्लीट नींद लेना व फास्टफूड व स्मोकिंग की हैबिट से दूर रहना बहुत जरूरी है.

बृजनाथी सिंह हत्याकांड: सिपाही बना बाहुबली

5 फरवरी, 2016 को बिहार में फतुहा के कच्ची दरगाह इलाके में सैंट्रल बैंक औफ इंडिया के पास अपराधियों ने एके-47 राइफल से ताबड़तोड़ गोलियां बरसा कर लोक जनशक्ति पार्टी के नेता और मुखिया रह चुके 60 साला बृजनाथी सिंह को मौत की नींद सुला दिया. इस हत्याकांड में बृजनाथी सिंह की बीवी वीरा देवी और भतीजा रोशन कुमार बालबाल बच गए. वीरा देवी ने अपने कोट की जेब में मोबाइल फोन का पावर बैंक रखा हुआ था, जिस से गोली उन के सीने में नहीं लग सकी. अपराधियों के भागने के बाद ड्राइवर गाड़ी को पटना के अगमकुआं इलाके के चिरायू अस्पताल तक ले गया, पर तब तक बृजनाथी सिंह की मौत हो चुकी थी.

बृजनाथी सिंह मूल रूप से राघोपुर के फतेहपुर इलाके के रहने वाले थे और वहां से अपने अगमकुआं वाले घर की ओर जा रहे थे. वे गाड़ी के आगे वाली सीट पर बैठे थे और औरतें व बच्चे पीछे की सीट पर बैठे थे. जैसे ही गाड़ी पीला पुल को पार कर कच्ची दरगाह इलाके में सैंट्रल बैंक के पास पहुंची, तो अपराधी बैंक की इमारत से बाहर निकले और गाड़ी पर ताबड़तोड़ गोलियां चलाने लगे. हत्या के इस मामले में बृजनाथी सिंह के बेटे राकेश के बयान के आधार पर राघोपुर के ही मुन्ना सिंह, सुनील राय, भोला सिंह, सुबोध राय, ललन सिंह समेत 7 लोगों के खिलाफ फतुहा थाने में एफआईआर दर्ज की गई.

बृजनाथी सिंह का भी पुराना आपराधिक रिकौर्ड रहा है. 90 के दशक में वे बिहार पुलिस में सिपाही की नौकरी करते थे. जब वे सुपौल में तैनात थे, तो एक दिन अफसर से छुट्टी मांगने गए, पर अफसर ने उन्हें छुट्टी नहीं दी. इस से बृजनाथी सिंह का पारा गरम हो गया और उन्होंने अफसर पर गोलियां चला दी थीं. इस के बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. कुछ साल बाद राघोपुर के एक जमीन के झगड़े में हुई रामजी सिंह की हत्या के मामले में भी उन पर आरोप लगा था. बृजनाथी सिंह के नौकरी छोड़ने के बाद उन पर रंगदारी के कई मामले दर्ज हुए. इस के बाद वे?ठेकेदारी का काम करने लगे और कुछ समय में ही?ठेकेदारी के काम में पूरे वैशाली जिले में उन का डंका बजने लगा. ठेकेदारी के काम में भी वे कई विवादों में फंसे और राघोपुर से वैशाली तक उन का खौफ था.

साल 1995 में राघोपुर के एक जमीन मामले में बृजनाथी सिंह ने दूसरे पक्ष के हवलदार की गोली मार कर हत्या कर दी थी. इस के अलावा साल 2004 में बिदुपुर पैट्रोल पंप लूट में भी उन्हें आरोपी बनाया गया था. साल 1997 में राघोपुर में ही 24 बीघा जमीन के प्लाट के झगड़े में विरोधी गुट के लोगों पर जम कर गोलाबारी करने का केस भी उन के सिर पर था. साल 2006 में उन्होंने पंचायत चुनाव में हाथ आजमाया और फतेहपुर पंचायत के मुखिया चुन लिए गए. मुखिया बनने के बाद बृजनाथी सिंह लोक जनशक्ति पार्टी से जुड़ गए और अपराध से दूर होने लगे. साल 2015 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने बेटे राकेश रोशन को समाजवादी पार्टी के टिकट पर राघोपुर सीट से तेजस्वी यादव के खिलाफ मैदान में उतारा था.

लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, राजनाथ सिंह, जीतनराम मांझी से उन के नजदीकी रिश्ते थे. इस हत्याकांड की तहकीकात के लिए पटना के ग्रामीण एसपी ललन मोहन प्रसाद की अगुआई में एक जांच टीम बनाई गई. पुलिस का मानना है कि राजनीतिक दबदबे के साथ बालू की ठेकेदारी पर कब्जा जमाने को ले कर बृजनाथी सिंह की हत्या की गई है. पुलिस को ड्राइवर बैजू कुमार झा पर भी शक?है, क्योंकि वारदात के समय वह गाड़ी से कूद कर भाग गया था. दियारा इलाके का आतंक कहे जाने वाले रामजनम राय भी पुलिस के रडार पर हैं. वे और उन के दर्जनभर गुरगे कुछ दिनों पहले ही जमानत पर छूट कर जेल से बाहर निकले थे.

फतुह का गंगा तट वाला इलाका अपराधियों के लिए सेफ जोन माना जाता?है. कई अपराधों को अंजाम देने के बाद अपराधी दियारा में छिपते रहे हैं और अकसर पुलिस सीमा विवाद में फंस कर रह जाती है. दियारा इलाका पटना और वैशाली जिले की सीमा पर पड़ता है. किसी अपराध के होने पर पहले दोनों जिलों की पुलिस सीमा विवाद सुलझाती है, उस के बाद ही आगे की कार्यवाही शुरू हो पाती है. इतनी खानापूरी होने के बीच अपराधियों को फरार होने या छिपने का भरपूर मौका मिल जाता है. पुलिस सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, बिहार और झारखंड के जंगलों में साइलैंसर जैनरेटरों की मदद से बड़े पैमाने पर गैरकानूनी हथियार बनाए जाते हैं. पिछले साल पुलिस ने छापामारी कर मुंगेर में कई मिनी गन फैक्टरियों को तबाह कर दिया था. इस के बाद वे फिर से काम करने लगी हैं. अपराधी और नक्सली इन हथियारों के बड़े खरीदार होते हैं.

खुफिया महकमे ने कई दफा सरकार को रिपोर्ट दी है कि बाढ़, बख्तियारपुर और मोकामा के टाल इलाके में अपराधियों के पास एके-47 राइफल जैसे घातक हथियार पहुंच चुके हैं. इस के बाद भी पुलिस हैडक्वार्टर ने उस की बरामदगी और अपराधियों पर नकेल कसने की दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया है. पुलिस सूत्रों के मुताबिक, कुछ अपराधी गिरोह भाड़े पर भी एके-47 राइफल मुहैया कराने का धंधा कर रहे हैं. कई सुपारी किलर भाड़े पर ये राइफलें ले कर हत्याकांड को अंजाम देने लगे हैं. बृजनाथी सिंह की हत्या के पीछे राघोपुर में राजनीतिक दबदबा बनाए रखने की कोशिश का अंजाम भी है. हत्या में नामजद मुलजिम सुबोध राय की बीवी और बृजनाथी सिंह के छोटे भाई की बीवी ने राघोपुर ब्लौक प्रमुख का चुनाव लड़ा था. चुनाव में बृजनाथी सिंह के छोटे भाई की बीवी को जीत मिली थी. उसी समय से दोनों तरफ से तनातनी चल रही थी. साल 2000 में विधानसभा चुनाव के दौरान बृजनाथी सिंह ने अपनी बीवी वीरा देवी को राघोपुर से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में उतार कर राजनीति में कदम रखा था. उस चुनाव में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को जीत मिली थी. लालू प्रसाद यादव को उसी चुनाव में सोनपुर सीट से भी जीत मिली थी, इसलिए उन्हें राघोपुर सीट छोड़नी पड़ी थी.

उसी साल हुए उपचुनाव में वीरा देवी जनता दल (यू) का टिकट ले कर मैदान में उतरीं और राजद की ओर से राबड़ी देवी मैदान में थीं. उस चुनाव में राबड़ी देवी जीत गई थीं, पर वीरा देवी को?भी 49 हजार वोट मिले?थे. इस के बाद साल 2001 में हुए पंचायत चुनाव में बृजनाथी सिंह को फतेहपुर पंचायत का मुखिया चुना गया. बाद में फतेहपुर पंचायत के रिजर्व हो जाने के बाद वे लोजपा से जुड़ गए और जिला व राज्य की राजनीति में पैठ बनाने लगे. रामविलास पासवान के लिए जम कर काम करने के बाद पिछले विधानसभा चुनाव में बृजनाथी सिंह अपने इंजीनियर बेटे राकेश रोशन को लोजपा के टिकट पर राघोपुर से चुनाव मैदान में उतारने का मन बना चुके थे, पर राघोपुर सीट के भाजपा के कोटे में चले जाने की वजह से उन की इच्छा पूरी नहीं हो सकी. इस के बाद उन्होंने सपा के टिकट पर राकेश रोशन को मैदान में उतारा था, पर वे राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव से हार गए. राघोपुर में गंगा नदी के किनारे तकरीबन 2 सौ बीघा जमीन है, जिस में से सौ बीघा जमीन पर बृजनाथी सिंह का कब्जा था, बाकी 50-50 बीघा जमीन पर सुबोध और मुन्ना ने अपना झंडा गाड़ रखा था.

बृजनाथी सिंह अपने कब्जे वाली जमीन पर खेती करते थे, जिसे देख कर सुबोध और मुन्ना की छाती पर सांप लोटता था. इस जमीन पर कब्जे को ले कर कई बार गोलियां चल चुकी थीं. बृजनाथी सिंह के खिलाफ राघोपुर थाने में 21 मामले दर्ज हैं, जिन में से 3 हत्या के मामले हैं. राज्य सरकार के ड्रीम प्रोजैक्ट कच्ची दरगाह से बिदुपुर इलाके के बीच गंगा नदी पर बन रहे पुल पर कई अपराधी गुटों की नजरें थीं. पुल बनाने का काम कोरिया की एक कंपनी को मिला हुआ था और कौंट्रैक्ट हासिल करने के लिए अपराधी गिरोहों और दबंगों के बीच होड़ मची हुई थी. इस में बृजनाथी सिंह का दावा काफी मजबूत था.

31 जनवरी, 2016 को राघोपुर के मोहनपुर रैफरल अस्पताल के पास पुल बनाने का काम चालू हुआ था. पुलिस ने जांच में पाया कि कोरियाई कंपनी और बृजनाथी सिंह के बीच सामान की सप्लाई का करार पक्का हो चुका था, इस से बाकी दबंग ठेकेदार नाराज थे. हत्या का आरोपी मुन्ना सिंह बालू ठेकेदार है. सुबोध और उस के सगे भाई सुनील का अपराध का पुराना और लंबा इतिहास रहा?है. सुनील के बड़े भाई सुबोध की बीवी अनीता सिंह राघोपुर ब्लौक प्रमुख रह चुकी हैं. बृजनाथी सिंह ने अपनी ताकत का इस्तेमाल कर उन्हें हरा कर अपने भाई अमरनाथ सिंह की बीवी मुन्नी देवी को ब्लौक प्रमुख की कुरसी पर बैठाया था.

पिछले 16 सालों से बृजनाथी सिंह राघोपुर की राजनीति की धुरी बने हुए थे. उन के विरोधियों की लंबी लिस्ट है और उन के बढ़ते राजनीतिक रसूख से उस में लगातार इजाफा होता जा रहा था. पुलिस को शक है कि बृजनाथी सिंह का बौडीगार्ड संजय कुमार सिंह हमलावरों से मिला हुआ था, इसलिए उस ने पिस्तौल रहने के बाद भी हमला करने वालों पर गोलियां नहीं चलाईं. संजय जहानाबाद का रहने वाला है और उसे हर महीने 20 हजार रुपए तनख्वाह मिलती थी. गोलीबारी के समय वह गाड़ी के पीछे वाली सीट पर बैठा हुआ था, इस के बाद भी उस ने जवाबी फायरिंग नहीं की. बृजनाथी सिंह की बीवी वीरा देवी और भतीजा गोलू ने पुलिस को बताया कि हत्यारों ने जब फायरिंग शुरू की, तो संजय गाड़ी से कूद कर भाग गया था. वीरा देवी ने पुलिस और कोर्ट को दिए बयान में कहा कि मौका ए वारदात पर सुनील राय, सुबोध राय, बबलू सिंह और मुन्ना सिंह मौजूद थे.

सुबोध राय के कच्ची दरगाह वाले घर से एके-47 राइफल और 17 कारतूस बरामद किए हैं. राइफल को मोडिफाई कर के एके-47 राइफल की तरह शक्ल देने की कोशिश की गई थी, जबकि वह देशी राइफल ही है. बृजनाथी सिंह रामविलास पासवान की पार्टी लोजपा से जुड़े हुए थे और पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने उन के पक्ष में जम कर प्रचार किया था. लोजपा के अध्यक्ष चिराग पासवान कहते हैं कि बृजनाथी सिंह की हत्या की सीबीआई जांच कराने से ही हत्यारों को पकड़ा जा सकेगा. 

एसिड अटैक: जिस्म के साथ सपने भी जलते हैं

27 जनवरी, 2016 की सुबह. बिहार के अररिया जिले के नरपतगंज थाने की फतेहपुर पंचायत में सड़क बनने को ले कर दबंगों और महादलितों के बीच झगड़ा शुरू हुआ, जो देखतेदेखते तीखी बहस, गालीगलौज और फिर मारपीट में बदल गया. महादलितों का कहना था कि वे पिछले कई सालों से बस्ती में रह रहे हैं, इसलिए उन के टोले तक पक्की सड़क बननी चाहिए. वहीं दबंग अपनी जमीन से हो कर पक्की सड़क नहीं बनने देना चाहते थे. महादलितों की जिद पर अड़ने से दबंगों का गुस्सा इस कदर बढ़ा कि उन्होंने महादलित औरतों के ऊपर तेजाब फेंक डाला.

इस एसिड अटैक से कई औरतों समेत बहुत से लोग बुरी तरह जख्मी हो गए. गीता देवी, दुलारी देवी, बुदनी देवी, मीरा देवी समेत दर्जनभर लोगों के जिस्म तेजाब से जल गए और उन्हें आननफानन अस्पताल में भरती कराना पड़ा.

पुलिस ने इस मामले के आरोपी सुरेंद्र ठाकुर, अमित ठाकुर, अमरजीत ठाकुर और सुमित को गिरफ्तार कर कानूनी खानापूरी तो कर ली, लेकिन तेजाब से जख्मी हुई औरतों के जिस्म के साथ जो उन के सपने भी जल गए, उन की भरपाई कैसे होगी और कौन करेगा?

बिहार के मनेर ब्लौक के छितनावां गांव की 2 बहनों चंचल और सोनम की हालत और उन के चेहरे को देख कर अच्छेअच्छों का कलेजा कांप सकता है. 21 अक्तूबर, 2012 की काली रात ने चंचल और उस की बहन सोनम की जिंदगी में घुप अंधेरा भर दिया था. समूचा इलाका दशहरे के मेले से जगमगा रहा था. दोनों बहनें भी मेला घूम कर छत पर आराम से सो रही थीं. आधी रात को जब गांव में पूरी तरह सन्नाटा पसरा हुआ था, तो चंचल को छत पर कुछ आवाजें सुनाई दीं. उस की नींद खुल गई. उस ने देखा कि 3 लड़के उस की छत पर खडे़ थे. अंधेरे में जब तक चंचल उन्हें पहचानने की कोशिश करती, तब तक लड़के उस के करीब आ चुके थे. सभी के हाथ में तेजाब से भरी बोतल थी. जब तक चंचल कुछ समझ पाती, बदमाशों ने उस के ऊपर तेजाब डाल दिया.

दर्द से बिलबिलाती चंचल की आवाज सुन कर सोनम की नींद भी खुल गई. बदमाशों ने उस के ऊपर भी तेजाब उलट दिया. इस के बाद वे तीनों बदमाश छत से कूद कर भाग गए. जातेजाते वे धमकी दे गए कि अगर पुलिस को कुछ बताया, तो समूचे घर में आग लगा दी जाएगी. इन दोनों बहनों का कुसूर इतना ही था कि इन्होंने छेड़खानी करने वाले लफंगों को जम कर लताड़ लगाई थी. चंचल कहती है कि जब भी वह कंप्यूटर की कोचिंग के लिए घर से निकलती थी, तो रास्ते में अनिल राय, राजकुमार और घनश्याम नाम के 3 लड़के उस के साथ छेड़खानी करते थे. शुरूशुरू में तो वह चुपचाप सब सहती रही, पर इस से उन बदमाशों का हौसला बढ़ गया. वे उस का दुपट्टा तक खींचने लगे और गंदे इशारे करने लगे.

एक दिन चंचल ने गुस्से में आ कर बदमाशों को फटकार लगा दी.  इस के बाद बौखलाए बदमाश 21 अक्तूबर, 2012 की रात को उस के घर की छत पर चढ़ आए और चंचल और उस की बहन सोनम के जिस्म पर तेजाब डाल दिया  चंचल के पिता शैलेश पासवान राजमिस्त्री का काम कर के भी अपनी दोनों बेटियों को बड़ा अफसर बनाने का सपना देखा करते थे और उन की दोनों बेटियां भी पिता के सपनों को हकीकत में बदलने के लिए दिनरात  मेहनत के साथ पढ़ाई किया करती थीं.

चंचल कंप्यूटर इंजीनियर बनना चाहती थी और इंजीनियरिंग कालेज में दाखिले की तैयारी के लिए कोचिंग कर रही थी. वह अपने गांव से 20 किलोमीटर दूर दानापुर में कोचिंग क्लास करने जाया करती थी.चंचल की मां सुनैना कहती हैं कि गांव के लफंगों और दबंगों ने उन की बेटियों की जिंदगी तबाह कर दी है.  आरोपी के साथी और परिवार वाले आज भी चंचल के परिवार को तंग करने से बाज नहीं आ रहे हैं. मुख्य आरोपी अनिल कुमार जेल में है और बाकी दोनों आरोपी जमानत पर छूटे हुए हैं. चंचल के घर पर अकसर पत्थर फेंके जाते हैं. लोग उस के घर के पास मजमा लगा कर गालीगलौज करते हैं, धमकी देते हैं और केस वापस लेने का दबाव भी बनाया जाता है.

पुलिस, प्रशासन और सरकार दलित जाति की तरक्की और हिफाजत की बात तो खूब करती है, लेकिन मनेर के छितनावां गांव के एसिड अटैक से पीडि़त शैलेश पासवान और उन की बेटियों के दर्द को कम करने वाला कोई नजर नहीं आता है  चंचल और उस की बहन सोनम के इलाज पर अब तक 8 लाख रुपए  की रकम खर्च हो गई है. ऐक्टर जौन अब्राहम समेत कई एनजीओ की मदद से इलाज की रकम जुटाई गई है, लेकिन सरकार की ओर से कभी कोई पहल नहीं की जा सकी है.

बड़ी अदालत ने दी बड़ी राहत

सुप्रीम कोर्ट ने 7 दिसंबर को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आदेश दिया कि एसिड अटैक से पीडि़तों को विकलांगों की लिस्ट में शामिल किया जाए. ऐसा होने के बाद एसिड अटैक पीडि़तों को सरकारी नौकरी में 3 फीसदी रिजर्वेशन समेत कई तरह की सरकारी योजनाओं का भी फायदा मिल सकेगा. बिहार के मनेर एसिड अटैक मामले में एक एनजीओ परिवर्तन केंद्र की याचिका पर सुनवाई करते हुए एसिड अटैक पीडि़तों को विकलांगों का दर्जा देने का आदेश जारी किया गया है. कोर्ट ने बिहार सरकार को पीडि़ता को 10 लाख रुपए का मुआवजा देने और सर्जरी समेत हर तरह के इलाज का खर्च उठाने को भी कहा है. इस के अलावा कोर्ट ने पीडि़ता की बहन को 3 लाख रुपए देने का भी आदेश दिया है.

 

सपा के चुनावी बिगुल में महिलाओं की दमदारी

बहुत सारे राजनीतिक दल अब तब महिला नेताओं को केवल शो पीस ही समझते रहे है. हाल के कुछ सालों में जिस तरह से महिला वोटर जागरूक हो रहे है. ऐसे में राजनीतिक दलों ने महिला वोटर को रिझाने के लिये महिला नेताओं को चुनावी मैदान में उतारना शुरू कर दिया है. समाजवादी पार्टी ने जिस तरह से महिला आरक्षण का विरोध किया था, उससे पार्टी पर महिला विरोधी होने का ठप्पा लग गया था. बिहार चुनाव में सबसे अधिक वोट से जो सीटे जीती गई, वह भी महिला बाहुल्य सीटें थी. इससे महिला वोटर की राजनीतिक जागरूकता का अंदाजा लग जाता है. उत्तर प्रदेश की समाजवादी पार्टी सरकार ने विधनसभा चुनाव 2017 के लिये 142 उम्मीदवारों के नाम घोषित किये, तो महिलाओं की हिस्सेदारी 10 प्रतिशत थी. यह सभी वह सीटे हैं, जिन पर समाजवादी पार्टी पिछला चुनाव हारी थी.

समाजवादी पार्टी को पता है कि लोग सरकार से खफा हैं. ऐसे में संगठन के बडे पदों पर बैठे लोगों को चुनाव मैदान में उतार कर उसने अपनी आक्रामक रणनीति को दिखा दिया है. जिन महिलाओं को पहली सूची में टिकट दिया गया है उनमें अरूणा तोमर, अंवेश कुमार, उमा किरन, चिंता यादव, रीबू श्रीवास्तव, सुनीता चैहान, बिमला राकेश, हेमलता दिवाकर, अनीता यादव, मनीषा दीपक, ज्योति लोधी और रीता बहादुर सिंह प्रमुख है. समाजवादी महिला सभा की प्रदेश अध्यक्ष डाक्टर श्वेता सिंह को राजधनी लखनऊ की पूर्वी विधानसभा सीट से टिकट दिया है. श्वेता सिंह उत्तर प्रदेश महिला आयोग की सदस्य है. उनकी छवि साफसुथरी और युवा नेताओं की है. राजधनी लखनऊ के लिये यह पहला नाम है. श्वेता सिंह पीएचडी और एमबीए की पढाई कर चुकी है.

लखनऊ पूर्वी से प्रत्याशी बनाई गई श्वेता सिंह कहती है ‘समाजवादी सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को लेकर बहुत सारे काम किये है. इससे महिलाओं में सरकार के प्रति अच्छी छवि बनी है. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की युवा और विकासवादी छवि से पार्टी को लाभ होगा. आईटी सिटी, मेट्रो, समाजवादी पेंशन जैसी योजनाओं से लोगों लाभ हो रहा है. हम सरकार के अच्छे काम से विरोधी दलों का मुकाबला करेगे.

अमेरिका: चुनावी ‘नंगई’ चालू आहे

भारत में तो हर चुनाव गाली गलौज, व्यक्तिगत हमलों के बिना पूरा नहीं होता. नतीजतन चुनावी सभाओं में मुद्दे कम गालियाँ ज्यादा उछलती हैं. लेकिन अमेरिका को हम सभ्य समझने की भूल करते रहे हैं, पर हालिया चुनावी कैपेनों से यह गलतफहमी दूर हो गयी है. जिस तरह अमेरिकी राष्ट्रपति पद के शीर्ष दावेदार पत्नियों की नग्न तस्वीरों को चुनावी समर जीतने का हथियार बनाने जैसी हरकतों पर उतर आये हैं. उसे देखकर तो यही लगता है कि इस देश में भी सियासी मर्यादा जैसी कोई चीज नहीं है.

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीति का गंदा खेल शुरू हो गया है. डोनाल्ड ट्रंप मुस्लिम विरोधी बयानों के लिए पहले से ही चर्चित हैं. लेकिन अब चुनावी प्रतिस्पर्धा ने नंगई भरा मोड़ ले लिया है. रिपब्लिकन पार्टी में उम्मीदवारी हासिल करने की रेस में आगे चल रहे दोनों उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप और टेड क्रूज सोशल मीडिया में भिड गए हैं. और आधार बनी है ट्रंप की पत्नी की न्यूड पिक्स.

दरअसल ट्रम्प की पत्नी मेलेनिया नॉस ट्रंप ने साल 2000 जीक्यू फोटोशूट के लिए न्यूड पोज दिया था. इस तस्वीर को ट्रंप विरोधियों ने वायरल कर यह कहकर कटाक्ष किया कि मिलिए मेलेनिया ट्रंप से, आपकी फर्स्ट लेडी. ऐसे में आप टेड क्रूज का समर्थन कर सकते हैं. अब ऐसे में जब टेड क्रूज के समर्थकों ने डोनल्‍ड ट्रंप की पत्‍नी मेलेनिया की अश्‍लील फोटो का इस्‍तेमाल चुनाव कैंपेन में किया है, तो ट्रामो कहाँ चुप रहने वाले थे.

वह भी भड़क गए और सरेआम ट्विटर पर क्रूज की पत्नी की तस्वीर साझा करते हुए धमकाया कि टेड, सावधान रहो, नहीं तो मैं तुम्हारी पत्नी की सारी गोपनीय बातें सार्वजनिक कर दूंगा. जवाब में क्रूज और उनकी पत्नी ने ट्रंप को भी आड़े हाथों लिया. गौरतलब है कि क्रूज की पत्नी गोल्डमैन सेक्स की एक्जीक्यूटिव हैं. इस तरह तमाम सियासी सीमाएं लाँघ कर चुनावी बहस आर्थिक, सामाजिक और आतंकवाद जैसे मसलों से हटकर नग्न तस्वीरों पर आकर अटक गयी. इसे पहले भी चुनावी माहौल में ट्रंप और उनकी बेटी की एक ग्लैमरस तस्वीर पर विवाद हुआ था.

दुनिया के इतने बड़े लोकतंत्र और विश्वशक्ति के तौर पर स्थापित इस मुल्क में राजनीतिक बयानबाजी इतनी अभद्र कभी नहीं हुई. जो पर्सनली एकदूसरे की पत्नियों की न्यूड पिक्स या चरित्र पर कीचड़ उठाकर चुनाव जीतने का इरादा रखते हैं वो अमेरिका की बागडोर संभालने लायक हैं या नहीं, ये तो वहां की जनता फैसला लेगी. लेकिन इससे अमेरिका की दुनिया भर में छवि जरूर धूमिल हो रही है.

एक्स्ट्रा शॉट: बिहार चुनाव के दौरान जब रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान ने लालू यादव के बेटों पर हमला किया था, तो उसके जवाब में तेजस्वी ने कहा कि चिराग पासवान बताएं के चुनावी हलफनामे में उनके पिता रामविलास पासवान ने किस पत्नी का नाम लिख रखा है.

मुलायम ने बहू को दी कांटो भरी राह

देश के सबसे बडे राजनीतिक परिवार के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपनी छोटी बहू अपर्णा यादव को लखनऊ की कैंट विधनसभा सीट से 2017 के विधनसभा चुनाव लड़ने का टिकट दिया है. इस सीट को सपा ने कभी नहीं जीता है. यहां से कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी विधायक हैं. यहां से 7 बार कांग्रेस और 5 बार भाजपा ने चुनाव जीता है. कैंट विधानसभा क्षेत्र में उत्तराखंड के रहने वाले पहाडी वोट सबसे अधिक हैं. अपर्णा उत्तराखंड की रहने वाली हैं. उत्तराखंड फैक्टर हमेशा काम नहीं करता. रीता बहुगुणा जोशी ने विधायक रहते लोकसभा का चुनाव भी लडा था, जिसमें वह केवल हारी ही नहीं, कैंट विधानसभा से भी वह जीतने लायक वोट हासिल नहीं कर सकी थी. ऐसे में अपर्णा की जीत कांटो भरा ताज ही है. अगर सपा अपर्णा यादव को पार्टी जनाधर वाले क्षेत्रों से चुनाव मैदान में उतारती तो उनके लिये विधानसभा पहुंचना सरल होता. अपने परिवार के लोगों के लिये पहले मुलायम सिंह यादव इस तरह की सुरक्षित सीटों का चुनाव करते रहे हैं.

अपर्णा यादव मुलायम की दूसरी पत्नी साधना के बेटे प्रतीक की पत्नी हैं. मुलायम देश के पहले ऐसे नेता हैं जिनके बेटे अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री हैं. 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव केन्द्र सरकार में रक्षा मंत्री रह चुके हैं. उत्तर प्रदेश की विधानसभा और विधान परिषद में वो नेता रहे चुके हैं. 6 बार वह लोकसभा सदस्य रह चुके हैं. इस समय वह आजमगढ से सांसद हैं. मुलायम के साथ उनके परिवार के 6 सदस्य संसद सदस्य हैं. मुलायम सिंह के साथ उनकी बहू डिंपल यादव, भतीजा धर्मेंद्र यादव, पौत्र तेजप्रताप यादव, भतीजा अक्षय यादव लोकसभा में सदस्य है. भाई राम गोपाल यादव राज्यसभा में सदस्य है.

दिल्ली के अलावा उत्तर प्रदेश की राजनीति में भी मुलायम परिवार का जलवा ब्लाक प्रमुख से लेकर विधानसभा तक फैला है. भाई शिवपाल यादव विधायक और प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं. शिवपाल का बेटा आदित्य यादव दर्जा प्राप्त मंत्री है. शिवपाल की पत्नी सरला यादव जिला सहकारी बैंक इटावा की निदेशक है. अरविंद यादव एमएलसी है. अभिषेक यादव इटावा में जिला पंचायत अध्यक्ष है. संध्या यादव मैनपुरी जिला पंचायत अध्यक्ष है. वंदना यादव हमीरपुर जिला पंचायत अध्यक्ष है. सांसद तेज प्रताप यादव की मां मृदुला यादव सैफई की ब्लाक प्रमुख है. अजंट सिंह यादव और बिल्लू यादव ब्लाक प्रमुख, प्रेमलता यादव और मीनाक्षी यादव जिला पंचायत सदस्य है. पिछले लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव आजमगढ और मैनपुरी दोनो जगहो से सांसद चुने गये थे. बाद में मैनपुरी सीट मुलायम से छोड दी. वहां उपचुनाव में अपने पौत्र तेजप्रताप यादव को टिकट दिया, वह सांसद चुने गये. मुलायम के बेटे प्रतीक यादव को चुनाव लडाने की मांग उठ रही थी. मुलायम ने प्रतीक की जगह उसकी पत्नी अपर्णा को विधानसभा चुनाव लडने के लिये लखनऊ की कैंट विधनसभा से टिकट दे दिया है. 

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