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‘भारत माता की जय’ पर भागवत का यू-टर्न

भारत माता की जय बोलने को लेकर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं सहित अन्य संगठनों ने जिस तरह से देश में एक महौल बनाया उसका विरोध भी शुरू हो गया. औल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमिन यानि एआईएमआईएम के प्रमुख सांसद असुदुद्दीन ओवैसी ने कहा था कि कोई मेरी गरदन पर छुरा रख दे, तो भी मैं भारत माता की जय नहीं बोलूंगा. ओवैसी ने संविधान का हवाला देते हुए तर्क दिया कि संविधान में भी कहीं भारत माता की जय बोलने को नहीं कहा गया है. ओवैसी ने भारत माता की जय की जगह पर जय हिंद के नारे लगाने का समर्थन किया. पूरे देश में एक तरह की बहस छिड गई. जिसमें भारत माता की जय बोलने और न बोलने को लेकर विवाद हो गया. लखनऊ में किसान संघ के के नवनिर्मित भवन का लोकापर्ण करने आये राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने साफ कहा ‘भारत माता की जय को किसी पर थोपने की जरूरत नहीं है. हमें अपने आदर्शो से ऐसे भारत का निर्माण करना है कि लोग खुद भारत माता की जय बोलने लगे’. इसे संघ प्रमुख के यू-टर्न के रूप में देखा जा रहा है.

दरअसल संघ प्रमुख मोहन भागवत के यू-टर्न की अपनी कुछ खास वजहें हैं. सबसे बडी वजह जम्मू कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की सरकार का बनना है. जम्मू कश्मीर में भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार पहले बनी थी. उस समय के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद करीब 2 माह तक यह गठबंधन अधर में लटका रहा. पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर एकमत नहीं थी. 2 माह बाद यह गठबंधन वापस पटरी पर आ रहा था, इसी बीच भारत माता की जय के नारे का विवाद उठ खडा हुआ. संघ और भाजपा अब इस तरह की विवादित नारे को किनारे रखकर आगे बढना चाहते हैं. केरल, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों में ऐसे नारे नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसे में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भारत माता की जय के नारे पर सही समय पर यूटर्न लेना ही सही समझा.

संघ प्रमुख ने कहा कि ‘संघ का काम किसकी को जीतना या उस पर अपने विचारों को थोपना नहीं है. अटल बिहारी वाजपेई और रज्जू भैया जैसे संघ और भाजपा के नेताओं ने कभी अपने विचारों को थोपने का काम नहीं किया. इन लोगों ने संघ के विचारों को इस तरह से सामने रखा कि लोग खुद इससे जुडते गये. इस विचारधारा पर काम करने वाले बहुत सारे संगठन है, इनको संघ परिवार के रूप में देखा जाता है. बिहार में विधान सभा चुनाव के पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण के समर्थन में बयान देकर पार्टी के सामने असहज हालात पैदा कर दिये थे. बिहार चुनाव में हार के लिये इस बयान को काफी हद तक जिम्मेदार माना जाता है. ऐसे में केरल, पश्चिम बंगाल, असम और तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के पहले संघ प्रमुख कोई गलती दोहराना नहीं चाहते हैं. ऐसे में भारत माता की जय पर यूटर्न लेना ही सही कदम है.

भारत माता का मंदिर बनायेगी भाजपा

उज्जैन मे आगामी 22 अप्रेल से शुरू होने जा रहे सिंह्स्थ मेले मे इस बार भारत माता का मंदिर भी आकर्षण का केन्द्र रहेगा, जिसे कोई साधु संत नहीं, बल्कि भाजपा बनवा रही है. सिंह्स्थ मेला स्थल पर कोई साढ़े चार एकड़ ज़मीन पर मध्य प्रदेश भाजपा दीनदयाल शहर बसा रही है, जहाँ भारत माता का भव्य मंदिर बनाया जायेगा. इस मंदिर मे भारत माता की 51फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित की जायेगी. भारत माता मंदिर परिसर मे साधु संतों और महात्माओं के प्रवचन होंगे जिनके जरिये वे श्रद्धलुओं को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ायेंगे. पाठ भक्तो को भाव पूर्ण ढंग से समझ आये इसके लिये 108 कुन्डीय हवन भी समानांतर चलेगा, लोग चाहें तो दान दक्षिणा भी श्रद्धानुसार चढ़ा सकते हैं. उम्मीद की जानी चहिये कि इससे राष्ट्रीयता और धर्म को लेकर बढ़ रहा भ्रम का कोहरा छंट जायेगा और लोग धर्म को राष्ट्रीयता या फ़िर इस नई राष्ट्रीयता को धर्म मान लेने मे हिचकिचायेंगे नहीं.

भारत मंदिर बनाने का आइडिया दरअसल मे आरएसएस का है जो चाहती है कि सभी लोग भारत माता की जय निसंकोच बोलें. भाजपा ने इस मुहिम को शिविर नाम दिया है, जिसमे देश भर से छाँट कर बुलाये कोई 2 हजार कार्यकर्ता सामाजिक समरसता की जवाबदेही निभायेंगे. इतना ही नहीं चौबीसों घंटे लंगर भी शिविर मे चलेगा. श्रद्धालुओं के मनोरंजन के लिये सांस्कृतिक आयोजन भी होंगे. कुम्भ मे राजनीति कतई हैरत की वात नहीं है, लेकिन उज्जैन से कोशिश यह की जा रही है कि लोग संघ और भाजपा के विचारों को ह्रदय से आत्मसात कर लें जिसके तहत धर्म और राष्ट्रीयता की खाई पाट दी जायेगी.

अगर भारत माता बतौर देवी स्वीकार लीं गईं तो राम मंदिर का झंझट ख़त्म हो जायेगा और मुसलमान या सिख अगर इस पर एतराज जताये, जिसकी सम्भावनाये ज्यादा हैं, तो उन्हे देशद्रोही करार दिया जा सके और आम लोगों को बताया जा सके कि देखो हम तो भारत माता के नाम पर जो एक गैर धर्मिक देवी है लोगों को एक झंडा तले इक्कट्ठा करने की कोशिश कर रहे हैं पर ये लोग धर्म को बीच मे घसीटकर एक पवित्र विचार को दूषित कर रहे हैं. इसलिये अब यह आप लोग तय करें कि हकीकत मे सामप्रदयिक कौन है. संघ और भाजपा दोनो ही इस शिविर और मंदिर को लेकर खासे उत्साहित हैं, जो उनके धार्मिक एजेंडे का राष्ट्रीय संस्करण है.

डेटिंग एप चुनेगा आपके लिए लाइफ पार्टनर

जब किसी को कोई पसंद आता है तो उसकी दिल की धडकनें तेज़ होने लगती हैं और सिग्नल देती है कि यही बन सकता आपका लाइफ पार्टनर. लेकिन अब आया है एक ऐसा डेटिंग एप, जो आपकी दिल की धडकनों को सुनकर चुनेगा आपके लिए लाइफ पार्टनर .

‘वन्स’ नाम का यह डेटिंग एप एक ऐसा ही एप है, जो दिल की धड़कनें पढ़कर आपके लिए पार्टनर चुनता है ,यह एप बताएगा कि आपके लिए किसका दिल धड़क रहा है. अब तक यह डेटिंग एप दिन भर में आपको एक संभावित मैच बताता था लेकिन अब इस एप ने एक कदम आगे बढ़कर दिल की धड़कनों के हिसाब से मैच ढूंढना शुरू किया है. तेजी से 6 लाख यूजर्स तक पहुंचने वाले इस ऐप ने हाल में एक अपडेट जारी किया है. इसके जरिए यह फिटबिट और ऐंड्रॉयड वेअर जैसे फिटनस ट्रैकर्स से लिंक हो जाता है. इससे यह यूजर की दिल की धड़कनों को ट्रैक करता रहता है.

वन्स एप देखता है कि यूजर जिसकी प्रोफाइल देख रहा है, उसे देखकर दिल के धड़कने की रफ्तार में कोई बदलाव आया या नहीं. रिसर्च में यह बात साबित हो चुकी है कि जब अगर आप किसी के प्रति आकर्षित होते हैं तो आपकी दिल की धड़कनें बढ़ती हैं. यह एप इसी आधार पर काम करता है. वन्स नामक यह डेटिंग एप यूके, फ्रांस और स्पेन में आईओएस और एंड्रॉयड दोनों प्लैटफॉर्म्स के लिए उपलब्ध है और जल्द ही यह अमरीका में लॉन्च होने जा रहा है. उम्मीद है उसके बाद यह भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों में भी लॉन्च होगा.

अब ऐप करेगा आपका मोटापा कम

आप का वजन ज्यादा है और आप बिना जिम गए अपना वजन कम करना चाहती हैं लेकिन समय की कमी के कारण नहीं कर पा रही हैं तो आप के लिए एक अच्छी खबर है. अब बिना किसी परेशानी के आप आसानी से अपने मोबाइल फोन की मदद से अपना वजन कम कर सकती हैं.

आप यह सुन कर हैरान जरूर होंगी कि भला मोबाइल फोन से कैसे मोटापा कम किया जा सकता है. पर यह सच है, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने एक ऐसा मोबाइल ऐप तैयार किया है जो आप के मोटापे को कम करने में मदद करेगा.

मैसेसुचेट्स इंस्टीट्यूट औफ टैक्नोलौजी ने एक मोबाइल ऐप विकसित किया है जो आप की एक आवाज से चलेगा और आवाज से संकेत देने पर आप के मोटापे को भी कम करने में मदद करेगा.

इस के लिए बस आप को ऐप औन करने के बाद यह बताना होगा कि आप ने क्या क्या खाया है, इस के बाद ऐप आप को बताएगा कि आप ने कितनी कैलोरी कंज्यूम की है और अब आप को कितने घंटे के बाद कितनी कैलोरी लेना चाहिए.

इस ऐप में यह भी व्यवस्था है कि आप खाना खाने से पहले खाने का मैनू बताएंगे तो यह ऐप आप को बता देगा कि आप को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं और कितनी मात्रा में खाना चाहिए जैसे आप ने एप को बताया कि ब्रेकफास्ट में आप ने दो केला, एक गिलास संतरे का जूस और एक कटोरी लुआ ले रहे हैं तो इस पर सुझाव मांगने पर ऐप आप को बताएगा कि एक केला कम करें.

थोड़ा हम बदलें, थोड़ा आप

पल्ल्वी अपने बेटे चेतन के 12वीं कक्षा पास करने पर बहुत खुश थी, क्योंकि चेतन के अच्छे नंबर आए थे और उस का दाखिला भी मशहूर कालेज में हो गया था. लेकिन चेतन के कालेज शुरू होते ही मांबेटे के बीच दूरी बढ़ने लगी. चेतन कालेज और पढ़ाई में व्यस्त रहने लगा. जो खाली समय मिलता उस में दोस्तों से बातें करता या फिर टीवी देखता. घर में उस की मां भी हैं, वह इस बात को भूल सा गया.

पहले पल्लवी पूरा दिन चेतन के काम में व्यस्त रहती थी, मगर अब खाली बैठी रहती हैं. चेतन के घर में रहते हुए भी उन्हें अकेलापन महसूस होता. वे जब भी चेतन से बात करने उस के कमरे में जातीं तो चेतन हमेशा एक ही जवाब देता कि कि मम्मी, मैं अभी थोड़ा बिजी हूं. थोड़ी देर बाद आप से बात करता हूं.

चेतन की बातें सुन कर पल्लवी पुरानी बातें याद करने लगती कि कैसे सुबह उठ कर उस के लिए टिफिन तैयार करती थी, उस की यूनीफौर्म, नाश्ता सब कुछ समय से पहले ही तैयार रखती ताकि उसे स्कूल के लिए देर न हो. उस के स्कूल से आने से पहले ही जल्दीजल्दी उस का पसंदीदा खाना तैयार करती ताकि बेटे को गरमगरम खाना खिला सके. शाम को कैसे दोनों बातें करते थे, कैसे साथ खाना खाते थे. मगर समय के साथ सब कुछ बदल गया.

पेरैंट्स में बढ़ता अकेलापन

आज पल्लवी की तरह बहुत से पेरैंट्स अकेलेपन की स्थिति से गुजर रहे हैं. आज इंटरनैट, मोबाइल व सोशल मीडिया ने युवाओं की जीवनशैली को इतना व्यस्त बना दिया है कि उन के पास अपने पेरैंट्स के लिए समय ही नहीं रहा. वे अपने कैरियर व दोस्तों में इतने व्यस्त हो गए हैं कि उन्हें अपने पेरैंट्स के अकेलेपन से कोई वास्ता नहीं रहा. ऐसे में पेरैंट्स के जीवन में खालीपन आने लगता है.

जमशेदपुर की लालिका चौधरी कहती हैं, ‘‘मेरे पति और मेरे बेटे के बीच दूरी इतनी बढ़ गई है कि वे दोनों कईकई दिनों तक एकदूसरे से बात तक नहीं करते. आशुतोष जब छोटा था तब तो ठीक था, लेकिन जैसे ही कालेज जाने लगा बहुत बिजी रहने लगा. हमारे लिए उस के पास टाइम ही नहीं रहता. कालेज से आता तो अपने लैपटौप व फोन में ही व्यस्त रहता. शाम को दोस्तों के साथ घूमने निकल जाता. हम सोचते चलो कोई बात नहीं संडे को हमारे साथ समय बिताएगा, लेकिन संडे को वह काफी देर से सो कर उठता. हम कहीं बाहर चलने के लिए कहते तो मना कर देता. कभीकभी उस के इस व्यवहार पर मेरे पति को गुस्सा आ जाता और वे उसे डांट देते, जिस से घर का माहौल खराब हो जाता.’’

टैक्नोलौजी से बढ़ी दूरियां: आज हम फेस टू फेस बात करना पसंद नहीं करते, लेकिन हमारी फेसबुक पर टैग, पोस्ट व लाइक करने में पूरी रुचि होती है. भले ही टैक्नोलौजी हमें लोगों के पास ले आई हो, लेकिन उस ने हमें अपनों से दूर भी कर दिया है. हम अपने फोन में इतने व्यस्त रहते हैं कि पेरैंट्स से बात करने का समय ही नहीं मिलता. अब तो बच्चे मां से व्हाट्सऐप पर मैसेज कर के ही पूछते हैं कि मां खाना बन गया क्या? प्लीज बन जाए तो मेरे कमरे में ले आना या फिर व्हाट्सऐप पर मैसेज कर देना. मैं खुद ले आऊंगा. इस टैक्नोलौजी ने तो अब साथ बैठ कर खाना खाने की परंपरा को भी खत्म सा कर दिया है. अब बच्चे अपने कमरे में लैपटौप पर पिक्चर देखते हुए या फेसबुक पर गपशप करते हुए खाना खाना पसंद करते हैं. अगर उन्हें डांट कर अपने साथ खाना खिलाया जाए तो वे बेमन से खाते हैं. खाने की मेज पर एकदम शांत बैठे रहते हैं. उन्हें ऐसे बैठे देख कर पेरैंट्स सोचते हैं कि इस से तो अच्छा था कि अकेले ही खा लेते.

मां की बातें लगती हैं उबाऊ: जैसे ही बच्चे स्कूल से कालेज जाने लगते हैं उन्हें मां की बातें भी उबाऊ लगने लगती हैं. मां की चौइस अच्छी नहीं लगती है. मां अगर कह दें कि बेटा यह क्या पहन रखा है, वह शर्ट पहनो, जो हम ने तुम्हें बर्थडे पर दिलवाई थी तो तुरंत उलटा जवाब देते हैं कि मां, आप को फैशन की बिलकुल समझ नहीं है. वैसी शर्ट पहन कर भला कौन कालेज जाता है?

यह तो कुछ भी नहीं है, मां अगर घर से निकलते समय टिफिन पैक कर के दें तो तुरंत गुस्से में जवाब देते हैं कि अब मैं बड़ा हो गया हूं. हर वक्त मां को मौडर्न जमाने के बारे में बताते रहते हैं कि मां अब आप का जमाना नहीं रहा. यह मौडर्न जमाना है. आप के समय की चीजें पुरानी हो चुकी हैं. अब तो हाईटैक जमाना आ गया है. अब फोन व व्हाट्सऐप से ही पढ़ाई की जाती है. इसलिए आप अपने जमाने को अपने तक ही सीमित रखा करें.

जब अच्छे लगने लगते हैं हमउम्र: कई बार ऐसा भी देखा जाता है जब हमें कोई हमउम्र अच्छा लगने लगता है, तो हम हर समय उसी के साथ व्यस्त रहते हैं. अपने पेरैंट्स को भूल जाते हैं. घर आने पर भी फोन पर उसी से बातें करते हैं. उसी के बारे में सोचते रहते हैं.

दोस्तों के लिए टाइम है, पैरेंटस के लिए नहीं: दिन भर दोस्तों के साथ रहने के बावजूद घर आने पर भी पैरेंट्स से बात करने के बजाय दोस्तों के साथ ही फोन पर लगे रहते हैं. देर रात तक दोस्तों के साथ चैट करते हैं, सुबह लेट उठते हैं फिर फटाफट तैयार हो कर कालेज के लिए भाग जाते हैं. मां कुछ भी बोलें तो कहते हैं कि मां अभी टाइम नहीं है, शाम को बात करेंगे. पेरैंट्स के लिए उन की शाम कब आएगी यह वे ही जानें.

ऐसा बिलकुल नहीं है कि इस अकेलेपन के लिए केवल युवा ही जिम्मेदार हैं. कहीं न कहीं पेरैंट्स भी ऐसी छोटीछोटी गलतियां कर बैठते हैं, जिन की वजह से इन के बीच दूरी बढ़ती जाती है. हम आज बच्चों के करीब तभी रह सकते हैं जब हम थोड़ा उन की तरह व्यवहार करें, उन्हें समझें.

कभी तुलना न करें: अकसर मातापिता अपने बच्चों से कहते रहते हैं कि हम जब तुम्हारी उम्र के थे तो सारा काम अकेले ही करते थे. इस तरह की बातें न करें. आप को यह बात समझनी होगी कि आप का समय अलग था, आज का समय अलग है. इस तरह से तुलना करने की वजह से बच्चे आप से दूर होने लगते हैं. वे आप की बात नहीं सुनते. हर समय अपने में व्यस्त रहने लगते हैं. फिर उन के इस तरह के व्यवहार के कारण आप को अकेलापन महसूस होने लगता है.

प्रतिक्रिया से बिगड़ती है बात: बच्चों के कुछ गलत करने पर मातापिता तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं. उन्हें डांटने लगते हैं. आप जल्दबाजी में ऐसा बिलकुल न करें, प्यार से समझाएं. अगर आप उन के साथ सख्ती से पेश आएंगे, तो वे आप से दूर होने लगेंगे.

थोड़ी स्वतंत्रता दें: पेरैंट्स ऐसा सोचते हैं कि बच्चों को स्वतंत्रता दी तो वे बिगड़ जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. आप उन्हें जितना नियंत्रण में रखेंगे वे आप से उतना ही दूर होते जाएंगे.

खुद को भी बदलें: आज हर चीज तेजी से बदल रही है, इसलिए आप भी खुद को थोड़ा बदलने की कोशिश करें. आप के बच्चे आप को जिस चीज में सुधार लाने के लिए कहें, उस में थोड़ा बदलाव लाएं, बच्चों को अच्छा लगेगा. अकसर ऐसा होता है कि अगर घर में बच्चे के दोस्त आए हैं तो पेरैंट्स जिस ड्रैस में होते हैं, उसी में उन के सामने चले जाते हैं. ऐसा न करें. पेरैंट्स के इस तरह से आने से हो सकता है कि उन के बेटे के दोस्त बाद में उस का मजाक उड़ाएं और फिर इस वजह से आप का बेटा घर पर अपने दोस्तों को बुलाना ही बंद कर दें.

आप ने घर पर कैसी भी ड्रैस क्यों न पहनी हो. लेकिन बच्चे के दोस्त के सामने अच्छे कपड़ों में ही जाएं. कई बार बच्चे चाहते हैं कि आप भी उस के दोस्त की मां की तरह जींस पहनें. अगर आप मोटी हैं और आप के ऊपर वैस्टर्न कपड़े अच्छे नहीं लगते तो अपनी पर्सनैलिटी में सुधार लाएं. माना कि आप अपना मोटापा तुरंत कम नहीं कर सकतीं, लेकिन आप ऐसी ड्रैस तो पहन ही सकती हैं जिस में आप का बच्चा आप को अपने दोस्तों से मिलवाने में हिचकिचाए नहीं.

क्या हो बच्चों की भूमिका

अगर आप पढ़ाई के सिलसिले में दूसरे शहर में हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि आप के और आप के घर वालों के बीच दूरी न बढ़े. आप उन से दूर हैं तो क्या हुआ? आप उन से फोन से जुड़े रहें. उन के फोन का जवाब दें. कई युवाओं के साथ यह भी देखा गया है कि वे कैरियर की टैंशन में इतने परेशान रहते हैं कि पेरैंट्स से उन का लगाव कम होने लगता है. वे हर समय अपने कैरियर की चिंता करते रहते हैं. आप को यह बात समझनी जरूरी है कि कैरियर अपनी जगह है और घर वाले अपनी जगह. कुछ बच्चे जब छुट्टियों में घर आते हैं तो उस वक्त भी दोस्तों के साथ ही व्यस्त रहते हैं, लेकिन आप ऐसा न करें. आप ज्यादा से ज्यादा समय पेरैंट्स के साथ बिताएं, उन से बातें करें, उन के साथ शौपिंग पर जाएं, उन के लिए सरप्राइज प्लान करें.

अगर घर में अपने पेरैंट्स के साथ रहते हैं तो अपनी पढ़ाई, दोस्त व कालेज से थोड़ा समय निकाल कर अपने घर वालों के साथ बिताएं. कालेज में हैं तो एक बार फोन कर पेरैंट्स का हालचाल पूछ लें. अपने लैपटौप पर अकसर फिल्म देखते रहते हैं. किसी दिन पेरैंट्स को साथ ले कर उन की पसंदीदा फिल्म देखें. इस तरह पेरैंट्स और बच्चों के बीच दूरी नहीं बनेगी और रिश्तों में मिठास बनी रहेगी.  

एक्सरसाइज़ के दौरान दिल की सुनें

सेहत की बात हो तो सभी सबसे पहली सलाह एक्सरसाइज़ यानी कसरत की देते हैं  लेकिन क्या आप जानते हैं जिस तरह जरूरत से ज्यादा दवाइयां स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होती हैं, ठीक उसी तरह जरूरत से ज्यादा कसरत करना सेहत के लिए हानिकारक भी  हो सकता है.

ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के बेकर आईडीआई हार्ट एंड डायबिटिक इंस्टीट्यूट द्वारा हुए शोध के अनुसार ज्यादा कसरत करने से हृदय संबधी परेशानियां होती हैं, इस शोध में शोधकर्ताओं ने उन अध्ययनों की समीक्षा की जो कसरत और हृदय संबंधी परेशानियों के संबंध में किए गए हैं और पाया कि इसके पुख्ता सबूत हैं कि खूब सारा कसरत करने से कार्डियो संबंधी और हृदय संबंधी स्थायी परेशानियां पैदा हो जाती हैं.

माना कि स्वस्थ शरीर के लिए व्यायाम ज़रूरी है लेकिन सेहत के लिए घंटो जिम में पसीना बहाने से पहले  इतना अवश्य जान लें कि कहां रुकना है. व्यायाम के दौरान अकड़न, अधिक दर्द, नसें खिंचना, सूजन या बारबार चोटिल होना कुछ ऐसे लक्षण हैं, जहां अपने शरीर की सुन कर व्यायाम में बदलाव करने की जरूरत होती है.

1 रुपये में मिल रहा है डेल का लैपटॉप, आप भी लीजिए

डेल इंडिया ने भारतीय उपभोक्ताओं के लिए एक बेहद कमाल का ऑफर पेश किया है. इस ऑफर का नाम है 'बैक टू स्कूल'. जहां उपभोक्ता मात्र एक रुपए देकर नया लैपटॉप घर ले जा सकते हैं. यह ऑफर मई माह तक ही सीमित है.

आईटी कंपनी डेल ने अपना एक नया प्रोग्राम बैक टू स्कूल सीजन शुरू किया है. यह प्रोग्राम 22 मार्च से 31 मई तक जारी रहेगा. इस प्रोग्राम के चलते डेल यूज़र्स डेल इंस्पायरॉन डेस्कटॉप, या इंस्पायरॉन 3000 सीरीज का लैपटॉप खरीद सकते हैं वो भी केवल एक रुपए में. इसके बाद लैपटॉप की अतिरिक्त राशि इंस्टालमेंट में दी जा सकती है.

जो उपभोक्ता इंस्पायर डेस्कटॉप लैपटॉप की खरीद में 999 रुपए अतिरिक्त देंगे, उन्हें इसके साथ दो साल की वारंटी भी मिलेगी व बाटा का एक शॉपिंग वाउचर भी मिलेगा. जबकि इंस्पायरॉन 3000 सीरीज का लैपटॉप खरीदने पर 999 रुपए अतिरिक्त देने पर उपभोक्ताओं को दो साल कि वारंटी मिलेगी.

बैक टू स्कूल ऑफर ऑफर पूरे देश में वैलिड है. आप भारत में कहीं से भी इस स्कीम के अंतर्गत लैपटॉप खरीद सकते हैं.

‘नो बेड आफ रोजेस’ का निर्माण कर रहे हैं इरफान खान

बौलीवुड के साथ साथ हौलीवुड में भी सक्रिय अभिनेता इरफान खान को फिल्म निर्माण में मजा आने लगा है. इसी के चलते ईशान नायर निर्देशित फिल्म ‘‘काश’’ का निर्माण करने के बाद इरफान खान अब बतौर सह निर्माता दूसरी फिल्म भी बनाने जा रहे है. जी हां! अब इरफान खान अंतरराष्ट्रीय स्तर की अंग्रेजी व बांगला भाषा की द्विभाषी फिल्म ‘‘नो बेड आफ रोजेस’’ का सह निर्माण कर रहे हैं, जिसका लेखन व निर्देशन मशहूर बांगलादेशी फिल्मकार मुस्तफा सरवर फारूकी करने वाले हैं. बंगला भाषा में इस फिल्म का नाम ‘‘देबू’’ होगा. इन द्विभाषी फिल्मों का सह निर्माण करने के साथ साथ इरफान खान इस फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाले हैं. जबकि इस फिल्म के निर्माण से कोलकता की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘इस्काय मूवीज’’ और बांगलादेश की प्रोडक्शन कंपनी ‘‘जैज मल्टी मीडिया’’ भी जुड़ी हुई हैं.

फिल्म के लेखक व निर्देशक मुस्तफा सरवर फारूकी अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निर्देशक हैं. उनकी फिल्म ‘‘थर्ड पर्सन सिंगुलर नंबर’’ 2011 में बांगलादेश की आस्कर में भेजी गयी फिल्म थी.

आस्कर में 2011 में बांगलादेश की प्रतिनिधित्व वाली फिल्म ‘‘थर्ड पर्सन सिंगुलर नंबर’’ के अलावा 2014 की बांगलादेशी प्रतिनिधित्व वाली फिल्म ‘‘टेलीवीजन’’ मे मुख्य भूमिका निभा चुकी बंगलादेश की चर्चित अदाकारा नुसरत इमरोज तिषा अब फिल्म ‘‘नो बेड आफ रोजस’’ की नायिका होंगी. इसके अलावा हालीवुड फिल्म ‘‘एक्सः पास्ट इज प्रजेंट’’ की हीरोईन पर्नो मित्रा व ‘‘द क्ले बर्ड’’ की हीरोईन रोकेया प्रचय भी ‘‘नो बेड आफ रोजेस’’ में अभिनय करने वाली हैं.

उत्तर बंगाल, ढाका और बांगलादेश में फिल्मायी जाने वाली फिल्म ‘‘नो बेड आफ रोजेस’’ का जिक्र छिड़ने पर अभिनेता इरफान खान कहते हैं-‘‘यह फिल्म विश्व सिनेमा का परिदृश्य बदलने वाली फिल्म साबित होगी. इस फिल्म के निर्देशक मुस्तफा सरवर फारूकी का मैं पुराना प्रशंसक हूं. मैं तो इनकी पहली फिल्म ‘‘एंट स्टोरी’’ देखकर ही प्रशंसक बन गया था. उसके बाद भी वह कई उत्कृष्ट फिल्में बनाते आए हैं. मैं उनकी फिल्मों की कहानी व उनकी कथा कथन की शैली का मुरीद बन चुका हूं. उनकी फिल्मों में मानवीय पहलुओं को उजागर किया जाता है, जिसके चलते उनकी फिल्मों के किरदार मल्टीलेअर वाले होते हैं. इसी के चलते मैं उनके साथ जुड़ने के लिए उत्सुक हुआ.’’

देशभक्ति की राजनीति

लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के दौरान देश का जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के मामले को सिर पर चढ़ा लेना एक हद दर्जे की मूर्खता माना जाएगा. भारतीय जनता पार्टी के नेता अफजल गुरु की फांसी के मामले पर हुए विरोध को देशद्रोह का नाम दे कर हिंदू धर्म को थोपने की कोशिशों के विरोध को छिपाने का काम कर रहे हैं. देशभक्ति केवल कुछ की बपौती नहीं है. इस का एकाधिकार केवल उसी को नहीं दिया गया है जो पूजापाठ को देशभक्ति का पर्याय मानता है. हिंदू देवीदेवताओं के आगे सिर नवाना देश के लिए कोई बलिदान नहीं है. धर्म यहां के लोगों का निजी मामला है और इसे मानने, इस का प्रचार करने का लोगों का मौलिक अधिकार है.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र हैदराबाद विश्वविद्यालय में रोहित वेमुला की आत्महत्या पर उठे सवालों को बहुत गंभीरता से उछाल रहे थे और उन को सबक सिखाने के लिए अफजल गुरु के नाम पर हंगामा खड़ा कर के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय को कठघरे में खड़ा कर दिया गया और दलितों और पिछड़ों के साथ हो रहे भेदभाव को दबा दिया गया है. देशभक्ति धर्मभक्ति से कहीं अलग है. देश में प्रचलित किसी धर्म या सभी धर्मों का विरोध कर के भी देशभक्त बना रहा जा सकता है. असल में जो किसी धर्म को नहीं मानते, वे ही असल में देशभक्त होते हैं और वे ही अपनी आईडैंडिटी देश के रूप में देते हैं. जो धर्मभक्त हैं, वे हिंदू, मुसलिम, ईसाई या सिख पहले हैं, देश के वासी बाद में. धर्मभक्तों की निष्ठा बंटी होती है. उन के लिए जो उन का धर्म न माने वह देश में रह कर, देश का नागरिक हो कर भी पराया है और यही धर्मभक्त देशभक्त का लबादा ओढ़ कर अदालत में हाथापाई कर रहे हैं.

इतिहास में भी कभी धर्म के नाम पर राज नहीं चले. राजा जरूर किसी धर्म को मानते थे, पर हर राजा हर धर्म के लोगों को पलनेबसने देता था. इस का मुख्य कारण था कि जब हिंदू राजाओं का राज था, तो वैदिक पौराणिक धर्म को मानने वाले अत्यंत अल्पमत में थे. उन की जगह मुसलिम विदेशियों ने ली और वे भी अल्पमत में रहे. जो भारतवासी मुसलमान बने, वे शासकों के लिए पराए ही थे. अंगरेजों ने भी धर्म परिवर्तन न के बराबर कराया. जो ईसाई देश में दिखते हैं, वे कैथोलिक हैं, जबकि ब्रिटिश प्रोटैस्टैंट के हैं. प्रोटैस्टैंटों ने उस तरह हिंदू समाज के दबेकुचलों को ईसाई नहीं बनाया, जैसा मौलवियों या कैथोलिक पादरियों ने बनाया.

आज कोशिश की जा रही है कि पिछले दरवाजे से देश पर पौराणिक हिंदू प्रणाली थोप दी जाए, जिस में पंडों और दानदाताओं की चले. इस में देश का अंधविश्वासी समाज घिरा है, पर समझदार और बराबरी का हकदार हिस्सा इस आक्रमण को कितना सह पाएगा, यह देखने की बात है? पश्चिम एशिया का इसलामिक स्टेट गवाह है कि कुछ लोग बंदूक व ताकत के सहारे धर्म की आड़ में हर तरह का संहार कर सकते हैं. यहां अबू बकर अल बगदादी का खलीफापन और हिटलर का यहूदी विरोधी कट्टर ईसाई नाजी संप्रदाय दोहराना सफल नहीं होगा, पर देश उस ओर बढ़ रहा है.

अर्जुन कपूर ने बनाई पिता की फिल्मों से दूरी

अर्जुन कपूर उन फिल्मी संतानों में से हैं, जिन्हे कभी कहीं अपनी गलती नजर आती ही नहीं है और न ही वह  अपनी गलतियों को सुधारने में ही यकीन करते हैं. अर्जुन कपूर को नजदीक से जानने वाले सूत्रों की माने तो अर्जुन कपूर ‘‘अहम’ का शिकार हो चुके हैं. वह अपने आपको बौलीवुड का महान कलाकार मानते हैं. अर्जुन कपूर हमेशा खुद को महान साबित करते हुए नजर आते हैं. इसी आवेश में उन्होने लगभग डेढ़ साल पहले अपने पिता व फिल्म निर्माता से आग्रह करके एक दक्षिण भारतीय फिल्म का रीमेक ‘‘तेवर’’ के नाम से करवाया, जिसमें स्वयं अर्जुन कपूर ने मुख्य भूमिका भी निभायी थी. फिल्म ‘‘तेवर’’ के रिलीज से पहले बड़ी बड़ी डींगे हांकते हुए अर्जुन कपूर ने दावा किया था कि वह इस फिल्म के साथ हीरोइजम की परिभाषा बदलने वाले हैं.

मगर ‘‘तेवर’’ की बाक्स आफिस पर ऐसी दुर्गति हुई कि अर्जुन कपूर की आंखें खुली की खुली रह गयी. अब अर्जुन कपूर ‘तेवर’ की असफलता को इमोशनल मसला बताते हैं. वह कहते हैं-‘‘फिल्मों के फ्लाप होने पर मैं रूकता नहीं हूं. आगे बढ़ता रहता हूं. हर कलाकार के करियर में हिट और फ्लाप आती रहती हैं. ‘तेवर’ का असफल होना इमोशनल मामला रहा. क्योंकि इसका निर्माण मेरे पिता ने किया था. अब मैने आर बालकी की फिल्म ‘की एंड का’ की है, जो कि एक अप्रैल को रिलीज होगी. ’’

पर अर्जुन कपूर अभी भी हवा में उड़ रहे हैं. जब पिछले दिनों एक मुलाकात के दौरान हमने उनसे पूछा कि फिल्म ‘तेवर’ के रिलीज से पहले उन्होने हीरोईजम को एक नयी परिभाषा देने की बात कही थी. ‘तेवर’के फ्लाप होने से वह नहीं हो पाया? इस पर अर्जुन कपूर ने कहा-‘‘चिंता ना करें. मैं आगे यह करके दिखाउंगा. मैं कोशिश करने में यकीन करता हूं. मुझे यकीन है कि मैं एक दिन हीरोईजम के मायने बदलूंगा. कोई भी कलाकार फिल्म की सफलता या असफलता का दावा नहीं कर सकता. पर ‘तेवर’ करने में मैंने जो मेहनत की थी, वह सफल रही. क्योंकि जिन्हें वह फिल्म देखनी थी, उन्होंने वह फिल्म देख ली.’’

एक तरफ अर्जुन कपूर अभी भी हीरोईजम की परिभाषा  बदलने की बात कर रहे हैं, तो दूसरी तरफ उन्हे इस बात का अहसास हो गया है कि अब उन्हे अपने पिता की फिल्मों में अभिनय कर अपने पिता का पैसा नहीं डुबाना चाहिए. तभी तो सूत्रों की माने तो अर्जुन कपूर ने अपने पिता की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘‘सुल्ताना डाकू’’ में अभिनय करने से साफ साफ मना कर दिया है. सूत्रों की माने तो अर्जुन कपूर के चाचा व अभिनेता तथा ‘तेवर’ के सहनिर्माता संजय कपूर ने भी कुछ कहानियां चुनकर रखी थी, जिन्हे बिना सुने ही अर्जुन कपूर ने करने से साफ इंकार कर दिया. वह फिलहाल अपने होम प्रोडक्शन की फिल्में नहीं करना चाहते…

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म है कि यदि अर्जुन कपूर जमीन पर रहकर सोचे और थोड़ी सी समझदारी से काम लेकर अपनी कमियों को दूर करने की दिशा में प्रयास करें, तो उनका करियर सरपट दौड़ सकता है. अपनी फिल्म के असफल होने पर गर्व से यह तर्क देना कि हर कलाकार की फिल्में असफल होती हैं, कहीं से भी एक अच्छे प्रोफेशनल की पहचान नहीं कही जा सकती.

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