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गलती खुद की तो सजा दूसरे को क्यों

क्रिकेट खिलाड़ी महेंद्र सिंह धोनी काफी समय से आम्रपाली बिल्डर्स का ब्रैंड ऐंबैसेडर बना हुआ है. हाल ही में उस बिल्डर से नाराज ग्राहकों ने धोनी पर आक्रमण कर डाला कि उन्होंने तो धोनी के कारण उस बिल्डर से फ्लैट खरीदे थे पर उन्हें तो फ्लैट मिले नहीं, देर से मिले या फिर खस्ता हालत में मिले. उन्होंने कहा कि अगर धोनी ने विज्ञापनों में भरपूर प्रचार न किया होता तो वे फ्लैट न खरीदते या फिर और ज्यादा जांचपड़ताल करते. अब एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि सरकार कानून बनाए, जिस में गलत ऐंडोर्समैंट करने वाले सैलिब्रिटी को भी उत्तरदायी बनाया जाए और उस पर क्व50 लाख तक के जुर्माने और 5 साल तक की जेल का प्रावधान हो.

सरकार इस तरह का कानून बना सकती है, क्योंकि इस तरह के कानूनों से नौकरशाही के हाथ मजबूत होते हैं और वे शासन में रह रहे नेताओं के साथ मिल कर और ज्यादा धौंस जमा सकते हैं व रिश्वत भी वसूल सकते हैं. सैलिब्रिटीज इस तरह का ऐंडोर्समैंट सिर्फ पैसे के लिए करते हैं. फिल्मी ऐक्टरों व खिलाडि़यों से आप कुछ भी बिकवा सकते हैं, चड्ढी से ले कर रौल्स रौयस गाड़ी तक. 10-20 पैसे के सामान से ले कर अरबों तक का खर्च सैलिब्रिटियों के नाम पर करा जाता है. कई बड़ी कंपनियों ने उन्हें अपने बोर्ड औफ डायरैक्टर्स में रखा है ताकि इस से काम में आसानी हो.

आम जनता मूर्ख है, वह नीबूमिर्ची से सुरक्षा का विश्वास रखती है, गंडेतावीज से कैंसर का इलाज कराती है, मंदिर, मसजिद, दरगाह, गुरुद्वारे के फोटो लगवा कर मुनाफे की आशा करती है. फिर भगवानों के बराबर सितारों और खिलाडि़यों के ऐंडोर्समैंट को क्यों नहीं मानेगी.

यह कानून बने या न बने पर इतना तो पक्का है कि इस सुझाव के चलते ही सितारे और खिलाड़ी घबरा कर ऐंडोर्समैंट करते हुए सावधान हो जाएंगे. शैंपू, बूट पौलिश, बनियान बेचने में तो कोई कठिनाई नहीं है पर महंगे, विवादास्पद क्षेत्रों में नहीं आएंगे वरना तो ये सैलिब्रिटी आजकल जानलेवा पान मसाले व शराब का जम कर ऐंडोर्स कर रहे हैं. हर दूसरी फिल्म में हीरो ही नहीं हीरोइन भी शराब पीती नजर आती है. फिर भी यह प्रस्तावित कानून गलत है, क्योंकि यह व्यापार व व्यक्तिगत स्वतंत्रता के खिलाफ है. अगर धोनी कहता है कि उसे आम्रपाली ग्रुप का फ्लैट अच्छा लगता है तो यह उस की अपनी मरजी भी तो हो सकती है. इस पर उसे किसी ग्राहक से कंपनी के मामले में घसीटना गलत है. ग्राहकों को अपना सामान खुद देखभाल कर खरीदना चाहिए. हजारों चीजें बिना ऐंडोर्समैंट के बिकती हैं. वहां ग्राहक को कोई प्रभावित करता है? अगर ग्राहक गलत फैसला करता है तो वह भुगते, उसी सामान को इस्तेमाल करने वाला दूसरा क्यों भुगते?

सैलिब्रिटी चूंकि दिखता है, इसलिए उस के खिलाफ मामला दर्ज करने का हक पा लेना फालतू में सुर्खियां बन जाती हैं. हजारों लोग कानूनी प्रावधान का दुरुपयोग करने लगेंगे.

शहरी मतदाताओं को रिझाने में जुटी सपा

समाजवादी पार्टी ग्रामीण मतदातओं के साथ अब शहरी मतदाताओं को भी अपने साथ जोडने में जुटी है.1 मई से 10 मई के बीच पूरे प्रदेश में आयोजित ‘साइकिल संदेश यात्रा’ में पार्टी नेताओं ने समाजवादी सरकारी द्वारा किये गये कामों को जनता तक पहुचाने का काम किया गया.सपा के सभी छोटे बडे नेताआंें ने साइकिल यात्रा को सफल बनाने का काम किया.समाजवादी पार्टी ने 2017 के विधानसभा चुनावों के लिये अपने ज्यादातर प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर दी है.जिन प्रत्याशियों की मेहनत में पार्टी को कमी नजर आयेगी उनके टिकट बदले भी जा सकते है.ऐसे में सभी टिकट पा चुके प्रत्याशी और टिकट के दावेदार प्रत्याशियों ने मई की झुलसा देने वाली गरमी में साइकिल चला कर खूब पसीना बहाया.पार्टी ने सभी संगठनों को भी ‘साइकिल संदेश यात्रा’सफल बनाने का काम सौंप दिया था.‘साइकिल संदेश यात्रा’ के साथ सपा ने पूरे प्रदेश में चुनाव प्रचार अभियान की शुरूआत कर दी.

समाजवादी पार्टी के लिये सबसे अच्छी बात यह है कि उसका चुनाव चिन्ह साइकिल है. अखिलेश सरकार ने जहां शहरों में साइकिल ट्रैक का निर्माण कराया वही अब उसकी योजना आगरा से इटावा तक देश का पहला साइकिल हाइवे ट्रैक बनाने की है.आज शहरों में पार्किग और प्रदूषण की परेशानी के चलते साइकिल चलाने का बढावा दिया जा रहा है.शहरी लोगों में हेल्थ के नजरिये से भी साइकिल बेहतर उपाय है.ऐसे में अखिलेश सरकार ने साइकिल को शहरी लोगों की लाइफ स्टाइल से जोडने का काम किया है.पार्टी की दंबग और गंवई मतदाताओं वाली छवि को तोडने के लिये मुख्यमंत्री अखिलेश यादव शहरी पढेलिखे लोगों खासकर महिलाओं को पार्टी में जोडने में जुटे है. ‘साइकिल संदेश यात्रा’ में इन महिलाओं ने बढचढ कर हिस्सा लिया.यह बात और है कि तमाम महिलाओं ने बिना अदात के साइकिल चलाई तो कमर दर्द का शिकार हो गई.

राजधानी लखनऊ में समाजवादी पार्टी ने 2 विधानसभा सीट लखनऊ कैंट और लखनऊ पश्चिम विधानसभा सीट से क्रमशः अपर्णा यादव और डाक्टर श्वेता सिंह को टिकट दिया है.दोनो ही पाटी का प्रमुख चेहरा है.अपर्णा यादव मुलायम सिंह की छोटी बहु है और डाक्टर श्वेता सिंह समाजवादी महिलासभा की प्रदेष अध्यक्ष है. डाक्टर श्वेता सिंह कहती है ‘मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की छवि का लाभ होगा.शहरी मतदाताओं में पार्टी के प्रति रूझान बढ रहा है.प्रदेश में किसी भी विरोधी दल के साथ ऐसा साफ सुथरी छवि का मुख्यमंत्री पद का दावेदार नहीं है.पार्टी ने इस कार्यकाल में अपने चुनावी वादे पूरे किये है.शहरी क्षेत्रों के लिये लखनऊ मेट्रो के साथ प्रदेश के दूसरे बडे शहरों में मेट्रो रेल येाजना पर काम किया जा रहा है.आईटी सिटी और दूसरी योजनाओं से विकास की गति को तेजी से बढाया गया है.’     
         
                            
 

माँ बनना मेरे लिए गर्व की बात है- कैरोल ग्रासिअस (सुपर मॉडल )

ये सही है कि जब कोई महिला माँ बनने वाली होती है ,तो वह पल उसके जीवन का खास होता है. लेकिन इस रूडिवादी समाज में लोगो की सोच अलग है .माँ बनते ही महिला घर से बाहर निकलना तब बंद कर देती है जब उसका ‘बेबी बम्प’ दिखाई पड़ने लगता है ,वह ‘शाय’ फील करती है .लोग क्या कहेंगे ये सोचती है .इसी सोच को बदलने के लिए सुपर मॉडल कैरोल ग्रासिअस ने रैंप पर अभिनेत्री स्वेता साल्वे और १२ प्रेग्नेंट महिलाओ के साथ वाक किया इसका उद्देश्य महिलाओ मैं जागरूकता फ़ैलाने का है कि माँ बनकर आप अपने मातृत्व का आनंद ले न कि घर पर छुपे बैठे रहे.बायो आयल द्वारा आयोजित इस इवेंट मैं कैरोल ने बताया कि जब मुझे माँ बनने की बात पता चली तो मुझे और मेरे पति को ख़ुशी का ठिकाना नहीं था,क्योंकि शादी के बाद ही उन्होंने बच्चे का ज़िक्र किया था पर मैंने ही उन्हें तीन साल तक ‘वेट’ करवाया .माँ बनने के बाद से  मैं डाक्टर की सलाह के आधार पर हर काम कर रही हूँ.नौ महीने काटना आसान नहीं होता .यह हमारे जीवन का एक पार्ट है .इसे आनंद के साथ बिताना ठीक होता है ताकि आप एक स्वस्थ बेबी डेलिवर कर सके .

आप प्रेगनेंसी को कितना एन्जॉय कर रही है ?पूछे जाने पर कैरोल बताती है कि शुरू –शुरू मैं थोड़ी कठिनाई आती थी ,क्योंकि प्रेग्नेंट होने के बाद पहले की कुछ महीनो मैं हारमोंस में बदलाव की वजह से तबियत बिगड़ गई थी. बाद मैं ठीक हो गई थी ,लेकिन मैं बहुत उत्साही हूँ .अभी मेरा सेवेन एंड हाफ मंथ चल रहा है.मैं अब हैप्पी फेज से गुजर रही हूँ.तैयारियां मैंने बहुत सारी कर रखी है.बच्चे के लिए कपडे ख़रीदे है ,मेरी ‘इन- लॉस’ और भाई ने कई सामान दिए है .धीरे-धीरे मैं अपना कलेक्शन बना रही हूँ. वह आगे कहती है कि हर प्रेगनेंसी अलग होती है और इस दौरान माँ को आज़ादी होनी चाहिए कि वह अपने मन मुताबिक काम करे .लेकिन अगर कोई समस्या है तो डाक्टर की राय के अनुसार ही काम करे.क्योंकि अंत मैं आप एक नयी लाइफ को जन्म दे रही हो .’बेबी बम्प’ कोई छुपाने वाली बात नहीं है .ये आपकी प्राइड है ,मैंने कई महिलाओ को अंत तक काम करते देखा है और अच्छा लगता है .अब मेरी ये लास्ट फ्लाइट है अब मैं कही जाउंगी नहीं ,इसके अलावा मैं अच्छा डाइट लेती हूँ ताकि मैं और बेबी स्वस्थ हो . बच्चा हो जाने पर कुछ करुँगी ,पर मॉडलिंग नहीं .

आजकल अधिकतर महिलाये शादी कर लेती है पर माँ नहीं बनना चाहती ,आप क्या कहना चाहेंगी ?इस प्रश्न के जवाब मे कैरोल कहती है कि किसी भी उम्र में महिला को अपने बॉडी की देखभाल करनी पड़ती है ,बच्चा हो या न हो उम्र होने पर भी आपको अपने बॉडी की देखभाल जरुरी है ,नहीं तो आपको कई समस्या आयेगी.इसलिए बच्चा होने पर आपका शरीर और अधिक अच्छा होता है ,क्योंकि आपको मातृत्व सुख मिलता है . कैरोल इन दिनों थोड़ी कुकिंग , बागवानी ,टहलना ,टीवी देखना आदि कर अपना दिन बिता रही है और बेसब्री से बच्चे का इंतजार कर रही

                                                                    

 

हमेशा साथ निभाएगी बैटरी

गैजेट्स आज हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गए हैं. इस के बिना हम अपनी लाइफ को अधूरा फील करते हैं. क्योकि इस के माध्यम से हम अपने दोस्तों से जुड़े होने के साथसाथ ऐप्स का भी मजा ले पाते हैं. स्मार्टफोन्स, टैबलेट्स, लैपटौप वगैरा पर नैट व ऐप्स का ज्यादा मजा लेने के लिए हमें बैटरी की भी ज्यादा जरूरत पड़ती है, जिस के लिए हम मार्केट से ऐसे गैजेट्स खरीदने की इच्छा रखते हैं जिस की बैटरी लंबे समय तक चल पाए. भले ही हम इस के लिए हजारों रुपए तक खर्च कर डालते हैं लेकिन फिर भी लौंग टाइम तक चलने वाली बैटरी हमें नहीं मिल पाती. सब से ज्यादा झुंझलाहट तब आती है जब हम कहीं बाहर गए होते हैं और वहां हमारे गैजेट की बैटरी खत्म हो जाती है.

ऐसे में दुखी होने और यह सोचने के कि जब हम ने इस गैजेट को खरीदा था तब तो इस की बैटरी ठीकठाक चल जाती थी लेकिन जैसेजैसे यह पुराना होता जा रहा है इस की क्षमता भी घटती जा रही है कुछ नहीं रह जाती.

ऐसे में आप की दोस्त स्मार्ट बैटरी आ रही है जो हर दम आप का पक्के दोस्त की तरह साथ देगी यानी ऐसी बैटरी जो कभी खत्म नहीं होगी. सुन कर भले ही आप को अजीब लगे लेकिन यह सच है. क्योंकि यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया के वैज्ञानिकों ने प्रयोग की हुई बैटरी में गोल्ड नैनोवायर का प्रयोग कर बैटरी की उम्र कई लाख गुना बढ़ा दी है. असल में इस का श्रेय जाता है यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया से पीएचडी करने वाली मया ली थाई को. जिन्होंने अपने अथक प्रयास से वो चीज हासिल की जिसे बड़ेबड़े वैज्ञानिक भी हासिल नहीं कर पाए. उन्होंने बैटरी में नैनोवायर फिलामैंट लगाया. गोल्ड नैनोवायर को मैंगनीज डाइऔक्साइड में लगा कर उसे जेल इलैक्ट्रोलाइट जैसे प्लक्सीग्लास में रखा. इस दौरान उन्होंने पाया कि बैटरी की क्षमता को भी नुकसान नहीं पहुंचा और बैटरी की उम्र भी कई लाख गुना ज्यादा बढ़ गई. आप को बता दें कि अधिकांश स्मार्टफोन्स में स्टैंडर्ड लिथियम बैटरीज का यूज किया जाता है जिसे सिर्फ 300-500 बार ही चार्ज किया जा सकता है. क्योंकि लगातार चार्ज करने के कारण ये बैटरीज अपनी क्षमता खो देती हैं. लेकिन थाई के कोटिड नैनोवायर के जेल में इस्तेमाल करने से इस की चार्ज कैपिसिटी बढ़ गई यानी इसे 2 लाख से भी अधिक बार चार्ज किया जा सकता है. तो अब आप को बैटरी खत्म होने की टैंशन लेने की जरूरत नहीं है क्योंकि इस तकनीक से बनी रिचार्जेबल बैटरी जीवनभर चलेगी.

रिचा चड्ढा का डर

फिल्म ‘‘गैंग आफ वासेपुर’’से चर्चा में आयी अदाकारा रिचा चड्ढा ने उसके बाद से कई तरह के किरदार निभाए है.उन्होेने संजय लीला भंसाली की फिल्म‘‘गोलियां की रासलीलाः रामलीला’’में ग्लैमरस किरदार भी निभाया था. मगर लोगों के दिलो दिमाग में उनकी देहाती छवि ही अंकित है. लोगो ने उन्हे फिल्म ‘मसान’ में भी देहाती लुक में देखा, जिसके लिए रिचा को कई अवार्ड भी मिल गए. इन दिनों रिचा चड्ढा का फिल्म‘‘सरबजीत’’का देहाती लुक लोगों के सिर पर चढ़कर बोल रहा है. सभी को पता है कि 20 मई को रिलीज होेने वाली फिल्म‘‘सरबजीत’’में रिचा चड्ढा ने सरबजीत की पत्नी सुखप्रीत का किरदार निभाया है. यॅूं तो एक कलाकार के लिए यह अच्छी बात कही जाती है कि उसकी फिल्म के रिलीज से पहले ही उसकी छवि चर्चा में हो. लेकिन अपनी देहाती छवि की वजह से रिचा चड्ढा काफी परेशान हैं. क्योंकि उन्हे डर सता रहा  है कि उनकी इस देहाती छवि का खामियाजा उनकी 27 मई को रिलीज होने वाली दूसरी फिल्म ‘‘कैबरे’’को भुगतना पड़ सकता है जाए. जिसमें उन्होने अतिग्लैमरस डांसर का किरदार निभाया है.
जब हमने रिचा चड्ढा का ध्यान एक सप्ताह के अंतराल में रिलीज हो रही उनकी दो फिल्मों की तरफ दिलाया,तो रिचा चड्ढा ने कहा-‘‘मैं इस बात से उत्साहित हॅं. मैने ‘सरबजीत’और‘कैबरे’दोनो फिल्मों में एकदम विपरीत किरदार निभाए हैं. मगर मुझे लग रहा है कि कहीं ‘कैबरे’को नुकसान न हो जाए .मैं आपको एक मजेदार किस्सा बताती हूं. एक दिन मैं ऐसे ही तैयार हो कर बाहर निकली,तो मेरी इमारत में रहने वाले एक अंकलजी मुझसे मिले और मुझे मेरी आने वाली फिल्म‘‘कैबरे’’के लिए शुभकामनाएं देने के बाद कहा-‘‘दिखने में तुम्हारी जैसी लगने वाली एक लड़की की फिल्म ‘सरबजीत’,तुम्हारी फिल्म ‘कैबरे’से एक सप्ताह पहले रिलीज होने वाली है. एकदम देहाती लगती है. यह वही लड़की है,जिसने फिल्म‘गैंग आफ वासेपुर’ में बुढ़िया का किरदार निभाया था.’’मैंने उनसे पूछा कि वह अभिनेत्री कैसी है? इस पर अंकल ने कहा-‘‘बहुत अच्छा अभिनय करती है.’’दूसरे दिन वाॅकिंग करते समय उनकी पत्नी मिली,तो मैंने उनसे कहा कि अंकल को बता देना कि फिल्म ‘सरबजीत’में देहाती लड़की मैं ही हूं.’’यह एक अच्छी बात है.पर मैं चाहती हूं कि लोग ‘सरबजीत’देखने के बाद ‘कैबरे’ देखने आएं.
 

सनी लियोनी को मात देने पहुँची अष्ले इम्मा

ब्रिटिश मूल की माॅडल व पाॅर्न स्टार सनी लियोनी के लिए बॉलीवुड में खतरे की घंटी बज गयी है. इस खतरे की घंटी को बजाने का काम किया है ब्रिटिश मूल की मशहूर हाॅट माॅडल व अभिनेत्री अष्ले इम्मा ने. जी हाॅ! इंग्लैंड में हाॅट अभिनेत्री के रूप में अपनी एक पहचान बना चुकी अष्ले इम्मा अब बौलीवुड में दस्तक देने जा रही हैं. अष्ले इम्मा ने हाल ही में मुंबई में एक हिंदी म्यूजिक वीडियो ‘‘घाटी ट्रांस’के लिए मराठी भाषी फिल्मों व टीवी के चर्चित कलाकार पुष्कर जोग के साथ शुटिंग की है. संगीतकार सचिन गुप्ता के निर्देशन में जसप्रीत जाज और सोनू कक्कड़ की आवाज में रिकार्ड किए गए इस गीत के म्यूजिक वीडियो को मशहूर नृत्य निर्देशक रेमो डिसूजा के सहायक एंडी ने फिल्माया है. वैसे यह म्यूजिक वीडियो पुष्कर जोग की दिमागी उपज है. वह बताते हैं-‘‘मराठी में घाटी शब्द बहुत प्रचलित है. जिसे हमने हिंदी गाने में बड़ी खूबसूरती से उपयोग किया है.’’

उधर अष्ले इम्मा का भारत से वापस जाने का इरादा नहीं है. वह बौलीवुड में अपने अभिनय करियर की संभावनाओं को तलाषने में लगी हुई हैं. भारतीय फिल्मों की पहुॅच अब पूरे विष्व में हो गयी है. भारतीय हिंदी फिल्मों की सबसे बडी खासियत गीत संगीत व लार्जर देन लाइफ पात्र हैं. मुझे भी लार्जर देन लाइफ और ग्लैमरस गाने हमेश भाते रहे हैं. अब म्यूजिक वीडियो ‘‘घटी ट्रांस’’से मैने यहाॅं कदम रख दिया है. मुझे उम्मीद है कि इस म्यूजिक वीडियो के रिलीज होते ही मुझे बौलीवुड फिल्में मिलने लगेगी. मैं यहां किसी के लिए प्रतिस्पर्धी बनकर नहीं आयी हॅूं.’’

जब किसिंग सीन को लेकर भड़क उठी काजल अग्रवाल

दक्षिण भारत की तमिल व तेलगू में फिल्मों में अभिनय करते हुए वहाॅं की सुपर स्टार बन जाने वाली काजल अग्रवाल मूलतः पंजाबी और मंबई की रहने वाली है. वह अजय देवगन के साथ रोहित शेट्टी निर्देषित हिंदी फिल्म‘‘सिंघम’’के अलावा अक्षय कुमार के साथ हंदी फिल्म ‘‘स्पेशल 26’’भी कर चुकी हैं. लेकिन अभी तक उन्होने एक सीमा रेखा खींच रखी है. अब तक काजल अग्रवाल ने किसी भी फिल्म में किसिंग या इंटीमसी के सीन नहीं किए. वह खुद कहती हैं-‘‘मुझे हिंदी फिल्मों में बहुत से प्रयोग करने हैं. मैं हास्य, एक्षन,रोमांटिक सहित हर तरह के किरदार निभाना चाहूंगी. लेकिन मेरी अपनी कुछ सीमाएं हैं. इन सीमाओं को मैं कभी नहीं तोडूंगी. मैं ज्यादा एक्सपोजर या इंटीमसी के दृष्यों के सख्त खिलाफ हूं.’’

यही वजह है कि जब दीपक तिजोरी के निर्देशन में बन रही फिल्म‘‘दो लफ्जों की कहानी’’की मलेशिया में शुटिंग के दौरान एक सीन में अभिनेता रणदीप हुडा ने अचानक कैमरे के सामने काजल अग्रवाल को ‘किस’कर लिया, तो काजल अग्रवाल भड़क गयी. सूत्र बताते हं कि काजल अग्रवाल ने तुरंत शुटिंग रूकवायी और दीपक तिजोरी से कहा कि वह इस सीन को फिल्म से हमेषा के लिए हटा दें. सूत्र की माने तो उस वक्त दीपक तिजोरी ने काजल को कुछ आष्वासन देते हुए शुटिंग करने के लिए राजी कर लिया था. लेकिन अब यह किसिंग सीन काजल अग्रवाल व दीपक तिजोरी के लिए गले की फंस बना हुआ है. क्योंकि दीपक तिजोरी के अनुसार यह किसिंग सीन फिल्म की विषयवस्तु के लिए बहुत अहम है. जबकि काजल अग्रवाल इसे हटाने पर जोर दे रही है. अब देखना यह है कि अंतिम फैसला क्या होता है.

गुनाह बस इतना कि पहले प्रेम विवाह और फिर गर्भवती

शहरः कानपुर

स्थानः डफरिन अस्पताल का इमरजेंसी वार्ड.

वार्ड में दर्द से तड़पती एक गर्भवती महिला पहुँचती है.

डाक्टर महिला सेः तुम्हारे घर वाले कहां हैं?

गर्भवती महिलाः मैं बस चैकअप कराने आई हूं. घर वाले पीछे आ रहे हैं.

डाक्टरः तुम्हारी हालत बहुत खराब है. जान को भी खतरा है. अपने घर वालों को बुलाओ. उन की अनुपस्थिति में तुम्हें कैसे एडमिट किया जाए?

अपना फोन डॉक्टर की तरफ बढ़ाते हुए और फफक कर रोती हुई महिला: आप भी कोशिश कर लीजिए. मेरा तो कोई फोन ही नहीं उठा रहा है.

डाक्टर फोन कान से हटाते हुएः तुम्हारे पति और सासससुर का फोन बंद है और तुम्हारी मां ने अस्पताल आने से मना कर दिया है.

महिला मौन थी. उस के पास कोई जवाब नहीं था. डाक्टर के मन में बहुत से प्रश्न कौंध रहे थे, मगर अभी पूछने का यह सही वक्त नहीं था.

1 घंटे बाद…

महिला ने एक स्वस्थ्य बेटे को जन्म दिया. अस्पताल के डाक्टरों ने ही महिला के इलाज और शिशु की जरूरत की सभी चीजों का इंतजाम किया. इतना ही नहीं एक नर्स को भी महिला और शिशु की देखभाल के लिए लगा दिया. महिला के होश में आने पर अस्पताल के डाक्टरों ने जब उसे उस का बेटा उसे सौंपा, तो महिला की आँखें आंसुओं से भर गईं. उस ने वार्ड में मौजूद डाक्टरों को अपनी आप बीती सुनाई.

महिला ने बताया, “ मैंने और अतुल ने घर वालों की मरजी के खिलाफ प्रेम विवाह किया था. सोचा था शादी के बाद सब ठीक हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. फिर सोचा बच्चा होने पर सब ठीक हो जाएगा, लेकिन लगता है अभी भी किसी का दिल नहीं पसीजा. मेरे लिए न सही बच्चे को देखने के लिए ही आ जाते.”

महिला से डाक्टरों ने जब बच्चे के पिता के न आने की वजह पूछी, तो उस के पास फिर कोई जवाब नहीं था. बस इतना ही बोल सकी, “ मैंने फोन पर बताया था कि बहुत दर्द हो रहा है. वो बोले, तुम अस्पताल पहुंचो मैं वहीं आ रहा हूं. दर्द ज्यादा बढ़ा तो मैंने फिर उन्हें फोन किया लेकिन फोन बंद मिला. फिर मैंने अपने और अतुल के घरवालों को फोन किया. कोई भी मदद करने को तैयार नहीं था. पड़ोसी भी साथ अस्पताल चलने को तैयार नहीं हुए. मैं बस किसी तरह अस्पताल आ गई.”

महिला की आपबीती सुन कर डाक्टरों की आंखे भी नम पड़ गईं. सभी के मन में यही सवाल था की पति को तो ऐसा नहीं करना चाहिए था? वैसे यह कहानी सिर्फ इसी महिला की नहीं है. देश भर में महिलाओं को आज भी अपनी सुखसुविधाओं को हासिल करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. खासतौर पर गर्भावस्था के दौरान यह संघर्ष और भी बढ़ जाता है.

जो महिला शादी के बाद ससुराल को ही अपना घर और ससुराल के सदस्यों को अपना परिवार समझ लेती है, उसको अपनाने में ससुराल वालों को बहुत समय लग जाता है. भले ही महिला अपने ससुराल के सदस्यों के खानेपीने से ले कर घर की साफसफाई और सभी की इच्छाओं का ध्यान रखती हो लेकिन उस के गर्भधारण करने पर वह ससुराल वालों पर बोझ के समान हो जाती है. फिर चाहे प्रेम विवाह हुआ हो या अरेंज मैरिज, लड़की को गर्भावती होने पर बहुत से समझौते करने पड़ते हैं.

पहला समझौता तो यही होता है कि या तो वह खुद अपने सारे काम करे या फिर अपनी मां के पास मायके चली जाए. लड़के की मां यानी सास तो सब से पहले पीछे हट जाती है. बहु से सेवा कराने में तो सास कभी कोई कमी नहीं छोड़ती, लेकिन बात जब बहु की सेवा की आती है, तो अपने बूढ़े होने की दुहाई देने लगती है. इतना ही नहीं बेटा कहीं बीवी का गुलाम न बन जाए इसके लिए उसे भी पत्नी की सेवा न करने की हिदायत दी जाती है. जबकि गर्भावस्था के दौरान एक महिला को सब से अधिक अपने पति की जरूरत होती है.

मनोचिकित्सक प्रांजली मल्होत्रा कहती हैं, “रिश्तों की डोर मजबूत होने में समय तो लगता ही है, बहु को बेटी मानना भी सास ससुर के लिए थोड़ा मुश्किल होता है. लेकिन पति तो पत्नी का साथी होता है. ससुराल में पत्नी को सब से बेहतर तरीके से सिर्फ पति ही समझ सकता है. इस अवस्था के दौरान होने वाली शारीरिक परेशानियों को एक महिला जितना खुल कर अपने पति को बता सकती है उतना शायद अपनी मां को भी नहीं बता सकती.

पति की जिम्मेदारी तब और भी बढ़ जाती है जब प्रेम विवाह हुआ हो क्योंकि अपनी पत्नी के मूड और इच्छाओं को वह और भी अधिक समझ सकता है क्योंकि दोनों पहले से एक दूसरे को जानते होते हैं. लेकिन पति की दिक्कत होती है कि उस की मां कुछ कहती है और पत्नी कुछ और. दोनों के बीच पिसने से अच्छा उसे बीवी को मायके भेजना लगता है. लेकिन अपनी सुविधा के लिए पत्नी को अकेले छोड़ देने में कोई समझदारी नहीं है.”

पुरुष यह क्यों नहीं समझते कि एक बच्चे को जन्म देना एक महिला के लिए आसान नहीं होता. यह वह अवस्था होती है, जब खुद एक महिला का नया जन्म होता है. इस दौरान असहनीय दर्द और न जाहिर कर पाने वाली तकलीफों से वह गुजरती है. इन तकलीफों को आसान बनाने में एक पति ही अपनी पत्नी की मदद कर सकता है. इसके लिए पति को अपनी तरफ से कुछ प्रयास करने होते हैं, जो निम्नलिखित हैः

1. गर्भावस्था के शुरुआती कुछ महीनों में महिलाओं को कुछ ज्यादा ही तकलीफ रहती है. ऐसे में घर के काम करने का मन न होना स्वभाविक सी बात होती है. कई बार सास का कहना होता है कि बच्चे तो हमने भी पैदा किए हैं लेकिन तकलीफ होने का नाटक नहीं किया. सास की यह बात सुन कर बहु कई बार अपनी तकलीफों को छिपाने का प्रयास करती है. गाइनोकोलोजिस्ट डॉक्टर मीता वर्मा कहती हैं, “बेशक एक वक्त था जब महिलाएं गर्भावस्था में भी फुरती से काम करती थीं. लेकिन उस वक्त उन्हें शुद्ध खानपान मिला करता था.

आज के वक्त में कितने ही पैसे खर्च कर लिए जाएं लेकिन पहले के समय जैसी शुद्धता नहीं लाई जा सकती है. इसलिए बहु की तुलना खुद से करना बेवकूफी है. वर्तमान समय में अच्छा खानपान न मिलने से पहले ही महिलाओं का शरीर कमजोर होता है ऊपर से गर्भधारण करने पर उन के शरीर में वह क्षमता नहीं रह जाती कि वह फुरती के साथ काम कर सकें.

यहां पति का फर्ज है कि इस दौरान पत्नी को आराम करने दें। यदि घर के बुजुर्ग बहु के हर वक्त आराम करन पर आपत्ति जताते हैं, तो पति को पत्नी के साथ घर के काम निबटाने में मदद करनी चाहिए. साथ ही पत्नी को अच्छे से अच्छा और डाक्टर द्वारा बताया आहार खिलाना चाहिए.

2. पति यदि अपनी पत्नी के साथ हर परिस्थिति में साथ खड़ा रहे, तो उस का आत्मविश्वास बना रहता है. हो सकता है कि आप की पत्नी के गर्भधारण करते ही आपकी मां ने उसे मायके जाने का हुकुम सुना दिया हो. मगर इस अवस्था में आपकी पत्नी मायके क्यों जाए? बस इसलिए क्योंकि आपकी मां आपकी पत्नी की गर्भावस्था के दौरान होने वाली इच्छाओं या काम में थोड़ी बहुत मदद करने के लिए तैयार नहीं है. यहां आप को गंभीर होना होगा. आप को साफ बोलना होगा कि आपकी पत्नी आपकी संतान को जन्म देने जा रही है और उसकी देखरेख आपकी नजरों के आगे ही होनी चाहिए.

दरअसल, पति से दूर इस अवस्था में महिलाएं अवसाद की शिकार हो जाती हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें इस अवस्था में पति ने अकेला छोड़ दिया. आप को अपनी पत्नी को अवसाद में जाने से बचाना होगा. मनोचिकित्सक प्रांजली मल्होत्रा की माने तो, “भारत में फैमिली काउंसिलिंग का रिवाज नहीं है. हालाकि इस के बड़े फायदे हैं, बेबी प्लानिंग में लड़की और लड़के के पेरैंट्स को भी शामिल करना चाहिए. इस से उन्हें आगे आने वाली जिम्मेदारियों को निभाना बोझ नहीं लगेगा. सब कुछ तय कर के ही बेबी प्लान करना चाहिए.”

3. कई बार पैसे बचाने के चक्कर में घर के बड़ेबुजुर्ग रूटीन चेकअप के लिए डाक्टर के पास बहू को ले जाने के लिए तैयार नहीं होते. उनका मानना होता है कि जब तकलीफ हो तब ही डाक्टर के पास जाया जाए. लेकिन ऐसा अपनी पत्नी के साथ न होने दें. गाइनोकोलॉजिस्ट डा. मीता वर्मा कहती हैं, “गर्भावस्था के शुरुआती 3 महीने रुटीन चैकअप बहुत महत्वपूर्ण होता है. यह वह वक्त होता है जब बच्चे के और्गेंस बन रहे होते हैं. इस दौरान डॉक्टर की सही सलाह की बहुत जरूरत होती है.” पति को बल्कि खुद पत्नी को रूटीन चेकअप के लिए ले जाना चाहिए न कि अपनी मां या बहन के साथ पत्नी को भेजना चाहिए. इस से पत्नी को आप के केयरिंग नेचर का अंदाजा होगा और वह खुद को सुरक्षित महसूस करेगी.

4. गर्भवती महिलाओं को धर्म और अंधविश्वास के नाम पर कई बेतुकी नसीहतें दी जाती हैं. उन का विरोध करें. अमूमन, हिंदू परिवार में महिलाएं गर्भवती महिला को उस का पेट का बढ़ता आकार और गुप्त अंग दिखाने के लिए बाध्य करती हैं. यह सब देख कर गर्भवती महिला को बताया जाता है कि उसे लड़का होग या लड़की. चाहे भविष्यवाणी करने वाले की बात गलत ही क्यों न हो लेकिन इस तरह से गर्भवती महिला लोगों की उम्मीदों से घिर जाती है. यदि भविष्यवाणी में पता चलता है कि लड़की होने वाली है, तो लोग एक नकली मुस्कराहट के साथ कहते हैं कि लड़का हो जाता तो पहली बार में ही निपट जाती. कुछ तो यह तक कह देते हैं कि, चलो सालभर में लड़के के लिए प्रयास कर लेना. पति चाहे तो पत्नी को इन सब से बचा सकता है.

5.बीवी कामकाजी है. प्रैगनैंट होने से पूर्व नौकरी भी करती थी. लेकिन गर्भावस्था के कारण उसे नौकरी छोड़नी पड़ जाती है. जाहिर है, घर का और बीवी का खर्चा भी अब पति को ही उठाना पड़ता है. मनोचिकित्सक प्रांजली मल्होत्रा कहती हैं, “इस के लिए बात-बात पर बीवी को सुनाए नहीं. उसे इस बात का एहसास न कराएं कि आप उसे पालपोस रहे हैं. क्योंकि इस अवस्था में पत्नी को लाने में आप भी जिम्मेदार हैं और वह आप की ही संतान को जन्म देने वाली हैं. इसलिए उस की हर जरूरत को पूरा करना आपकी ही जिम्मेदारी है.”

6. इस दौरान महिलाओं को अकेलापन सताने लगता है. हो सकता है कि आपकी पत्नी आपको दिनभर में कई बार फोन करे. इस अवस्था में आप अपनी पत्नी के फोन कॉल को कभी नजरअंदाज न करें. क्या पता उन्हें कुछ बहुत जरूरी बताना हो. खुद भी बीच बीच में कॉल करते रहें. इस से गर्भवती महिला का अकेलापन दूर होता है और मनोबल बढ़ता है.

ध्यान रखें, लव मैरिज हो या अरेंज मैरिज रिश्ते में साथी के लिए स्नेह को कभी कम नहीं होने दें. खासतौर पर गर्भावस्था के दौरान जब पत्नी के स्वास्थ्य में उतारचढ़ाव आ रहे हों, तब पति की भूमिका और भी बड़ी हो जाती है ऐसे वक्त में पति न केवल पत्नी का जीवनसाथी होता है बल्कि उसे उसके मातापिता की भूमिका भी निभानी पड़ती है और इन भूमिकाओं को जिम्मदोरी के साथ निभाने से पति को कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए.

रणवीर और सलमान होंगे आमने सामने

धूम सीरीज की अगली फिल्म 'धूम रीलोडेड: द चेज़ कंन्टीन्यूज़’ में इस बार एक युवा एक्टर लीड रोल निभाने वाले हैं. ये भी खबर मिली है कि अभिषेक बच्चन और उदय चोपड़ा जो पिछली तीनों फिल्मों में थे इसमें नहीं होंगे.

एक सूत्र के मुताबिक, आदित्य चोपड़ा (निर्माता) चाहते हैं कि धूम-4 युवाओं के लिए हो. और इसमें युवाओं के डैशिंग आइकन के तौर पर रणवीर सिंह प्राथमिकता में हैं. वे इन दिनों यशराज फिल्म्स के चहेते भी बने हुए हैं.

सलमान खान से नेगेटिव रोल निभाने के लिए बात चल रही है. ये दोनों तय हुए तो पहली बार किसी फिल्म में साथ काम कर रहे होंगे. सलमान ने अन्य युवा एक्टर्स के साथ भी यूं काम नहीं किया है चाहे टाइगर श्रॉफ हों, अर्जुन कपूर, सिद्धार्थ मल्होत्रा या वरुण धवन.

रणवीर अभी आदित्य चोपड़ा के निर्देशन में बन रही फिल्म की शूटिंग पैरिस में कर रहे हैं. कथित तौर पर उन्होंने धूम-4 के लिए हां कर दी है. सूत्रों का कहना है कि इस फिल्म की शूटिंग 2017 के आरंभिक महीनों में चालू हो जानी है. इसे नई विदेशी लोकेशंस पर शूट किया जाएगा. 'धूम-3’ की तरह चौथी फिल्म भी विजय कृष्ण आचार्य शूट कर सकते हैं.

 

निष्क्रिय ईपीएफ खाता धारकों हेतु खुशखबरी

देश के निष्क्रिय पड़े ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि योजना) खातों में तकरीबन 43,000 करोड़ रुपये जमा है. श्रम व रोजगार राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने बताया कि 2015-16 में ईपीएफओ ने 118.66 लाख ईपीएफ क्लेमों का निपटारा किया है. इनमें 98% मामलों का निपटारा 20 दिन के अंतराल में किया गया है.

सवाल जवाब के दौरान उन्होंने यूएन नंबर के बारे में विस्तृत रूप से बताया है. उन्होंने कहा कि निष्क्रिय और लावारिस खातों पर भ्रम की स्थिति को खत्म करने के लिए सरकार ने एक कर्मचारी का एक ईपीएफ एकाउंट कार्यक्रम बनाया है. ईपीएफओ ने पोर्टेबिलटी और पहले के सभी खातों को एक ही खाते में समाहित करने के लिए यूनिवर्सल एकाउंट नंबर जारी किए हैं.

2015-16 में 118.66 लाख दावों का निपटारा ईपीएफओ द्वारा किया गया, जबकि 2014-15 में यह आंकड़ा 130.21 लाख और 2013-14 में 123.36 लाख था. उन्होंने कहा कि 2015-16 में 1.18 लाख दावे निपटान के लिए लंबित बचे हैं.

दत्तात्रेय ने कहा कि असंगठित क्षेत्र में सरकार निर्माण श्रमिकों को प्राथमिकता दे रही है. उन्हें यूएएन दिए जाएंगे जिससे वे लाभ हासिल कर सकते हैं. इसके अलावा ऑटो रिक्शा ओर रिक्शा चालकों के लिए दिल्ली और हैदराबाद में एक पायलेट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है. उन्होंने बताया कि प्राथमिकता की सूची में दूसरे स्थान पर आंगनवाड़ी, मिड-डे भोजन योजना और आशा वर्कर हैं.

 

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