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सस्ते में निबटे

चुनावी साल में पंजाब की राजनीति अजीब दौर से गुजर रही है, जहां आम आदमी पार्टी के बढ़ते प्रभाव से कांग्रेस, भाजपा, अकाली दल चिंतित हैं. भाजपा की एक बड़ी चिंता पूर्व क्रिकेटर व नेता नवजोत सिंह सिद्धू थे, इसलिए उन्हें राज्यसभा में नामांकित करा कर भाजपा ने उन से समझौता सा कर लिया है.

बीते दिनों सिद्धू की विधायक पत्नी ने इस्तीफा दे दिया था. इस पर खूब खंडनमंडन हुए लेकिन साबित हो गया कि बगैर सिद्धू के ठहाकों के, पंजाब में भाजपा की दाल नहीं गलने वाली. लिहाजा, रास्ता बीच का निकाला गया. इस के बाद भी भाजपा उन की तरफ से बेफिक्र नहीं हो सकती. वजह, सिद्धू का मूडी होना है यानी चुनाव तक उन्हें बोलने से रोकना किसी चुनौती से कम नहीं.

कारोबारियों की उम्मीद बना भारत

पिछले वित्तवर्ष के आखिर में भारत तेज विकास दर के साथ निवेश तथा कारोबार के लिए उपयुक्त माहौल बनाए रखने के कारण कारोबारी उम्मीद के नजरिए में दुनिया में पहले स्थान पर रहा. कारोबार के संबंध में अध्ययन रिपोर्ट पेश करने वाली कंपनी ग्रांट थार्नटन ने हाल में जारी अपनी अंतर्राष्ट्रीय कारोबारी रिपोर्ट में यह जानकारी दी है.

रिपोर्ट के अनुसार, इस अध्ययन में 36 शीर्ष देशों की ढाई हजार कंपनियों के प्रतिनिधियों से कारोबार के संबंध में पूछे गए सवालों के जवाब के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है. यह सर्वेक्षण इन 36 देशों की प्रमुख कंपनियों के प्रतिनिधियों से मिली सूचना पर आधारित है. इस में जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर तथा कंपनियों के हित में सरकार की हाल में की गई घोषणाओं को अहमियत दी गई है.

सब से बड़ी बात यह है कि सर्वेक्षण में अपने कारोबार के प्रति भारतीय कंपनियों के प्रतिनिधि ही सर्वाधिक आश्वस्त नजर आए हैं. इस के अलावा राजस्व अर्जन तथा रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में भी भारतीय कंपनियां ही सब से आगे रही हैं.

यह सर्वेक्षण देश में कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए अत्यधिक उत्साहजनक है. इस से निवेश बढ़ेगा तथा कारोबार को व्यापक फलक मिलेगा. सर्वेक्षण रिपोर्ट से उत्साहित कारोबारियों का मानना है कि कारोबार के लिए जो अनुकूल माहौल उपलब्ध कराया जा रहा है उसे देखते हुए अगली तिमाही में भी भारत बाजी मार सकता है. उन का कहना है कि यह उत्साहित करने वाला सर्वेक्षण है जिस में दुनिया के 3 दर्जन प्रमुख देशों में कारोबार के स्तर पर भारत शीर्ष स्थान पर है.

अफवाहों की ट्रैजिडी

सोशल मीडिया ने थोक में गैर पंजीकृत पत्रकार पैदा कर दिए हैं. इन फुरसतियों का एक पसंदीदा काम अफवाह फैलाना भी है जिस का लुत्फ ही अलग है, फिर भले ही इस से किसी की प्रतिष्ठा और भावनाएं जुड़ी हों. बीते दिनों ट्रैजिडी किंग के खिताब से नवाजे गए अभिनेता दिलीप कुमार, मुंबई के एक अस्पताल में भरती हुए तो सोशल मीडिया के इन खिलाडि़यों ने खबर बना दी कि दिलीप साहब नहीं रहे. कइयों ने तो बगैर सचाई की जांच किए उन्हें श्रद्धांजलि भी दे डाली.

इस से पहले कादर खान और शशिकपूर की मौत की अफवाहें भी उड़ाई गई थीं यानी मान यह लिया गया है कि किसी बीमार बुजुर्ग के अस्पताल जाने का एक ही मतलब होता है. दिक्कत तो यह है कि इन खबरचियों को कोई सजा आसानी से नहीं दी जा सकती जिन्हें हर काम को पहले कर दिखाने का आत्मसुख और श्रेय चाहिए रहता है.

पुरुष वेश्यावृत्ति का स्याह संसार

एक वक्त था जब वेश्यावृत्ति स्त्रियों से जुड़ा पेशा माना जाता था. चूंकि कमनीय देह की स्वामिनी सिर्फ स्त्रियां होती थीं और चंचलता, नजाकत, शोखी, यौन अपील जैसे कामुक विशेषण स्त्रियों की देह के साथ जुड़े होते थे, लिहाजा यह सर्वसम्मत राय थी कि देह का व्यापार सिर्फ स्त्रियां कर सकती हैं. उन के पास पुरुषों की यौनलिप्सा पूर्ण करने वाली मांसल देह है और बिकना उन्हें ही है जो स्थापित यौन बजार में बिकने योग्य हों.

देह व्यापार के स्थापित उद्योग में अब पुरुष भी अपने देहरूपी मौडल के डिसप्ले के लिए तैयार हैं. स्त्री देह व्यापार की इस मजबूत घेराबंदी में पुरुष ने भी सेंध लगानी शुरू कर दी है. अरसे से एकछत्र राज कर रही महिलाओं के इस बाजार में पुरुषों ने भी सेंध लगाना शुरू कर दिया है.

सवाल यह है कि क्या पुरुषों ने महिलाओं की इस सत्ता को हथिया लिया है? इस का अंदाजा हम पुरुष वेश्यावृत्ति के धंधे में दिनोंदिन पुरुषों की बढ़ती संख्या से लगा सकते हैं. बाजार मांग के अनुसार, पुरुष देह की नुमाइश लगातार जारी है. यह अंतर इतनी जल्दी नहीं आया है. इस एकाधिकार को सुंदर, सजीले और आकर्षक व्यक्तित्व वाले गठीले पुरुषों ने आसानी से नहीं तोड़ा.

दरअसल, उदारवादी और विकासवादी विचारधारा ने कभी न प्रदर्शित होने वाली सैक्स उत्कंठा को बाजार की जरूरत बना दिया. बदलते वक्त के साथ यौनइच्छा जैसी वर्जनात्मक भावनाएं भी खुल कर सामने आई हैं. समृद्धि, संपन्नता और संभ्रांतता ने इसे और ज्यादा व्यावसायिक बनाया है. सामाजिक वर्जनाओं के चलते दबा कर रखी जाने वाली स्त्रियों की कामेच्छा ने अब प्रत्यक्ष रूप से पुरुष वेश्यावृत्ति के व्यवसाय को विस्तारित किया है.

इतिहास के आईने में

इतिहास पर नजर डालें तो हिब्रू बाइबिल और न्यू टैस्टामैंट में मेल ब्रोथल यानी पुरुष वेश्यावृत्ति के प्रमाण मिल जाते हैं. यह बात और है कि न्यू टैस्टामैंट में ग्रीक, रोमन सभ्यता और हिब्रू बाइबिल में पुरुष वेश्यावृत्ति को एक पवित्र व आध्यात्मिक कार्य माना जाता था. इस को कहींकहीं ‘टैंपल प्रोस्टिट्यूशन’ की भी संज्ञा दिए जाने के प्रमाण मौजूद हैं. इस से इतर यदि हम समलैंगिकता की इनसाइक्लोपीडिया को देखें तो उस में स्पष्ट शब्दों में अंकित है कि प्राचीन ग्रीस पुरुष वेश्या सामान्यतया गुलाम होते थे. इस में प्राचीन रोम और प्राचीन ग्रीस में पुरुष वेश्यालय होने के बारे में भी बताया गया है.

संयुक्त राज्य अमेरिका में 17वीं शताब्दी के प्रारंभ में पुरुष वेश्यालयों की शुरुआत हो गई थी, ऐसा वहां उपलब्ध दस्तावेजों के आधार पर आंकलित किया जाता है. 19वीं सदी के अंत तक इस का विस्तार तेजी से हुआ.

इन दिनों सैक्स टूरिज्म शबाब पर है. देशविदेश में बढ़ती महिला हिप्पी पर्यटकों की आवाजाही ने इस फील्ड में मेल प्रोस्टिट्यूट की मांग को और ज्यादा बढ़ाया है. पर्यटन की अपार संभावनाओं के बीच सैक्स टूरिज्म ने पुरुष ‘जिगोलो’ को एक अच्छा प्लेटफौर्म उपलब्ध कराया है. पर्यटन के दौरान यात्रा को और ज्यादा रोमांचक व मजेदार बनाने के लिए महिला पर्यटकों द्वारा इन्हें ‘टैंपरेरी बौयफ्रैंड’ के तौर पर हायर किया जाता है जो उन की यौनइच्छा की पूर्ति के लिए न केवल सैक्स पार्टनर की तरह काम करते हैं बल्कि वे डायनिंग कंपेनियन, टुअर गाइड, डांसिंग पार्टनर आदि की भी भूमिका निभाते हैं. कभीकभी तो ये जिगोलो महिला पर्यटकों को ड्रग व नशीली दवाओं की आपूर्ति भी करते पाए जाते हैं.

इस के अलावा इन मेल प्रोस्टिट्यूटों की गे बाथ हाउस, एडल्ट बुकस्टोर और सैक्स क्लबों में भी खूब मांग है. इस से न केवल उन की आमदनी बढ़ती है बल्कि उन्हें विभिन्न प्रकार के ग्राहकों के संपर्क में भी आने का अवसर मिलता है.

जिगोलो को हायर करने वाली अधिकतर उम्रदराज या अधेड़ उम्र की महिलाएं होती हैं जिन्हें सैक्स के साथसाथ रोमांस की भी दरकार होती है. इन्हें मोटी रकम अदा की जाती है और हर प्रकार की सुखसुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं. इस से इस क्षेत्र में कदम बढ़ाने वाले पुरुषों की तादाद बढ़ गई है. इस धंधे में क्लाइंट टू क्लाइंट रिलेशन और कौंटैक्ट के जरिए नए ग्राहकों तक पहुंचा जाता है.

भारत में स्थिति

यूरोपीय देशों में तो मेल प्रोस्टिट्यूट का व्यवहार वर्ष 1889 से ही प्रचलन में है. जब यूनाइटेड किंगडम में मेल होमोसैक्सुएलिटी पर प्रतिबंध था और इसे गैरकानूनी माना जाता था तब भी वहां मेल ब्रोथल (पुरुष वेश्यालय) वजूद में थे. हालांकि पहला संपूर्ण गे ब्रोथल जनवरी 2010 में स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख शहर में खोला गया. वह आलीशान मेल ब्रोथल माना जाता है. इधर, भारत में पिछले कुछ वर्षों से मेल प्रोस्टिट्यूटों की संख्या में खासा इजाफा हुआ  है. इंटरनैट पर सक्रिय ऐसी ढेर सारी जिगोलो वैबसाइट्स हैं जिन से इस बात की तसदीक होती है कि भारत में यह प्रैक्टिस धीरेधीरे ट्रैंड पकड़ रही है.

महानगरों में खासकर इस तरह की कई साइट्स के जरिए ग्राहकों तक जिगोलो की सप्लाई की जाती है, जिस में ज्यादातर होम बेस्ड सर्विस की मांग अधिक होती है.

एक मेल जिगोलो ने स्वीकारा है कि महानगरों, विशेषकर दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में नैटवर्क काम करता है जिस में फीमेल क्लाइंट की जरूरत और डिमांड के आधार पर उन्हें 2 तरह की सुविधाएं ‘होम बेस्ड सर्विस’ (जिस में क्लाइंट के घर तक सीधे जिगोलो की सर्विस दी जाती है) और ‘आउटर सर्विस’ (जिस में क्लाइंट को सीधे जिगोलो द्वारा तय किए गए किसी स्थान पर या स्वयं क्लाइंट द्वारा चयनित किसी स्थान पर पहुंचना होता है) प्रदान की जाती हैं. बदले में फीमेल क्लाइंट से फीस के तौर पर मोटी रकम वसूली जाती है. इस तरह दिल्ली के कई पौश इलाकों में एजेंटों के जरिए या फिर पर्सन टू पर्सन कौंटैक्ट के जरिए क्लाइंटों तक जिगोलो की आपूर्ति की जाती है.

इन के ग्राहक

अकेलेपन की शिकार, अवसादग्रसित या फिर रोमांस व रोमांच की तलाश करने वाली महिलाएं विशेषतौर पर इन की ग्राहक होती हैं. पर्यटन के दौरान सुदूर इलाकों में नितांत अकेले यात्रा करने वाली महिला पर्यटकों को भी एक साथी के रूप में ‘जिगोलो’ की जरूरत पड़ती है. दूसरी ओर अलगअलग सैक्स पार्टनरों के साथ सैक्सुअल रोमांच की चाह रखने वाली महिलाएं भी मेल प्रोस्टिट्यूटों की नियमित ग्राहक होती हैं.

पेशे से जुड़ा है कलंक

चाहे यूरोपीय, पश्चिमी समाज हो या एशियाई, किसी में भी पुरुष जिगोलो को न तो सामाजिक स्वीकार्यता प्राप्त है और न ही मान्यता. इसे हमेशा से गैरकानूनी और अनैतिकता से जोड़ कर देखा जाता रहा है. संभ्रांत समाज में इस पेशे को टैबू माना जाता है और इन के क्लाइंट को हिकारत की नजर से देखा जाता है. जिगोलो की सेवा लेने वाले ज्यादातर क्लाइंट सामाजिक वर्जनाओं की वजह से अपनी पहचान छिपा कर रखते हैं क्योंकि पहचान सार्वजनिक होने से उन की सामाजिक प्रतिष्ठा खोने का डर बना रहता है. खुले रूप में यह प्रैक्टिस कहीं भी स्वीकार्य नहीं. क्लाइंट और जिगोलो के बीच उम्र व हैसियत तथा सामाजिक, आर्थिक स्टेटस में बड़ा अंतर होना भी क्लाइंट्स के लिए उपहास का कारण बनता है. इस के अपने सामाजिक व सांस्कृतिक खतरे हैं. इसलिए ज्यादातर एजेंसियां या एजेंट छिपे रूप में अवैध तरीके से ही अपने काम को अंजाम देते हैं.

मेल प्रोस्टिट्यूशन के खतरे

प्रोस्टिट्यूशन के सभी रूपों में क्लाइंट और सर्विस प्रोवाइडर (सेवाप्रदाता) के साथ कुछ न कुछ रिस्क फैक्टर्स अवश्य जुड़े होते हैं. इन खतरों को हम इस प्रकार देख सकते हैं :

क्लाइंट रिस्क : इस पेशे में क्लाइंटों के सिर पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है, चाहे वह सामाजिक, आर्थिक या कानूनी खतरा भले ही क्यों न हो. इस में सामाजिक खतरे का डर सब से ज्यादा होता है. अगर समाज, परिवार या कार्यस्थल पर किसी को भी क्लाइंट्स की सर्विस लेने की बात का पता चल जाता है तो ऐसी स्थिति में सोशल व फैमिली रिजैक्शन की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं. साथ ही, इस में पुरुष वेश्याओं द्वारा लूटे जाने, ब्लैकमेल किए जाने और चोट आदि पहुंचाए जाने के अन्य खतरे भी शामिल हैं. हालांकि शोध बताते हैं कि किसी स्थापित एजेंसी या किसी पुराने क्लाइंट द्वारा पहले से ही सेवा प्राप्त कर चुके किसी जिगोलो के सर्विस लेने में लूटे जाने या चोट पहुंचाए जाने के खतरे न के बराबर होते हैं.

प्रोस्टिट्यूट रिस्क : एक ओर जहां इस पेशे में ग्राहकों के ऊपर हमेशा खतरे मंडराते रहते हैं वहीं दूसरी ओर प्रोस्टिट्यूट्स भी इस से बचे नहीं हैं. उन्हें भी सामाजिक कलंक,सामाजिक विलगाव, समाज या परिवार द्वारा नकारा जाने आदि का खतरा झेलना पड़ता है. इस के अलावा वैधानिक/आपराधिक रिस्क, फिजिकल एब्यूज, स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां तथा यौन संक्रमित/यौनजनित बीमारियां, असुरक्षित आय की वजह से आर्थिक संकट तथा मानसिक व भावनात्मक खतरों से भी मेल प्रोस्टिट्यूट को दोचार होना पड़ता है. इस प्रकार उन्हें अनेक प्रकार के खतरों के बीच इस पेशे में हमेशा असुरक्षा की भावना घेरे रहती है.

चौंकाते तथ्य

इस काम में जहां एक ओर पैसा और ऐशोआराम है वहीं दूसरी ओर इस पेशे के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं. पुलिस के रिकौर्ड्स बताते हैं कि शौर्टकट तरीके से पैसा कमाने के चक्कर में कई युवा ठगी का भी शिकार हो रहे हैं. एक पुलिस थाने के इंचार्ज के अनुसार, ‘‘जिगोलो ठगी से जुड़े कई मामले दर्ज नहीं करवाए जाते. युवा शर्म और प्रतिष्ठा की वजह से ठगे जाने के बावजूद केस दर्ज करवाने के लिए आगे नहीं आते. हमारे पास फाइलों में ऐसे कई रिकौर्ड्स दर्ज हैं जिन से इस बात की तसदीक होती है कि कम समय में ज्यादा पैसे कमाने के चक्कर में दूरदराज से कैरियर संवारने महानगरों में आए युवा किस तरह ब्रोकर या कौल बौय बेस्ड एजेंसियों की धोखाधड़ी का शिकार हो रहे हैं.’’

फैजाबाद से अपना कैरियर संवारने दिल्ली आए अनुराग रहेजा आपबीती बताते हुए कहते हैं, ‘‘एक दिन नैटसर्फिंग करते हुए अचानक मेरी नजर जिगोलो साइट्स पर पड़ी. उस पर बड़े ही लुभावने तरीके से पैसे कमाने के तरीके बताए गए थे. उस में बाकायदा कौल बौय के एजेंटों के नाम और संपर्क संख्या भी दर्ज थी. एजेंट से संपर्क करने पर उस ने यह बताया कि साइट्स की मैंबरशिप लेने के लिए बताए गए अकाउंट में 5 हजार रुपए तत्काल जमा करवाने होंगे और अगले दिन बताए पते पर जा कर फौर्म भरना होगा.’’

अनुराग जब अगले दिन बताए पते पर एजेंट से मिलने गए तो एड्रैस ही गलत निकला. न तो एजेंट मिला और न कोई एजेंसी. इस तरह उन्हें अपने पैसों से हाथ धोना पड़ा. अनुराग ने हिम्मत नहीं हारी और जा कर स्थानीय पुलिस थाने में अपने साथ हुई धोखाधड़ी की रिपोर्ट दर्ज करवाई.

ऐसे कई और युवा हैं जो इस तरह की जालसाजी के शिकार हुए हैं पर सोशल स्टेटस खराब न हो, इस वजह से वे थाने में रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाते. पैसे कमाने का लालच उन्हें मकड़जाल में फंसा देता है.

यह तो तय है कि बाजार की आवश्यकता के अनुसार ‘सैक्स’ अब एक हौट ब्रैंड बन गया है. इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि इस में ग्राहक कौन है और उपभोक्ता कौन. यौनेच्छा की चाहत रखने वाले और कामसेवा देने वाले अब स्त्री और पुरुष दोनों ही वर्ग हैं. जिस की जितनी तलब और जितनी आर्थिक पहुंच है उसे उस हिसाब से सुविधाएं उपलब्ध हैं. इस पेशे में पुरुषों के प्रवेश और दिनप्रतिदिन बढ़ती उन की मांग ने यह साफ कर दिया है कि ‘सैक्स’ का संसार अपरिमित और अप्रतिबंधित है. बिना लिंगभेद किए यह सब के लिए, सब जगह सहज प्राप्य है. हर पेशे से कुछ दूरगामी नफा और नुकसान जुड़ा होता है, तो जाहिर है यह पेशा भी खतरों से अछूता नहीं. इस के भी कुछ निहित सामाजिक,आर्थिक खतरे हैं. पर जो भी हो, जब तक बाजार की आवश्यकता बनी रहेगी, जिगोलो वर्ल्ड का वजूद भी बना  रहेगा क्योंकि यौनेच्छाएं कभी मरती नहीं.    

मेल ब्रोथल की दुनिया में प्रचलित कुछ रोचक शब्द

मेल एस्कोर्ट या जिगोलो : महिला ग्राहकों को सेवा प्रदान करने वाले पुरुष वेश्याओं को अमूमन जिगोलो या मेल एस्कोर्ट कहा जाता है.

यूफेमिडम : ये वे पुरुष वेश्या होते हैं जो सामान्यतया अपने सैक्स व्यवसाय के तहत न्यूड डांसिंग, मौडलिंग, बौडी मसाज या अन्य दूसरी शुल्क आधारित सुविधाएं मुहैया करवाते हैं.

गे फौर पे : पुरुषों की इस श्रेणी में वैसे पुरुष आते हैं जो खुद को ‘गे’ तो नहीं मानते पर पैसों के लिए दूसरे मर्दों के साथ सैक्स करते हैं.

जौन या ट्रिक्स : इन्हें स्ट्रीट प्रोस्टिट्यूट भी कहा जाता है. आमतौर पर ऐसे पुरुष बार या स्ट्रीट से पुरुषवेश्या को पिक करते हैं.

फेयरिज : वैसे पुरुष जो स्थायी तौर पर किसी मेल ब्रोथल में अपनी सेवाएं देते हैं उन्हें फेयरिज कहा जाता है. ये बार में भी अपना धंधा चलाते हैं.

विभिन्न संस्कृतियों में विभिन्न संबोधन

जापान : जापान में इडोकाल के दौरान युवा पुरुष वेश्याओं को ‘कोगामा’ कहा जाता था. इन के ग्राहक अधिकतर प्रौढ़ पुरुष होते थे.

अफगानिस्तान : मध्य एशिया और अफगानिस्तान के दक्षिणी भागों में 12 से 16 वर्ष के पुरुष वेश्याओं को ‘बाच्चा’ कहा जाता था. ये वे किशोर होते थे जो अपने कामुक गीतों और नृत्यों से लोगों को लुभाते थे.

भारत : भारत में शारीरिक तौर पर पुरुष या इंटरसैक्स व्यक्ति को हिजड़ा माना जाता है. ये भी वेश्यावृत्ति के धंधे में सक्रिय माने जाते हैं. हालांकि ज्यादातर लोग इन्हें पुरुष शरीर में महिला के अस्तित्व को मानते हैं.

क्यूबा : क्यूबा में पुरुष वेश्याओं को ‘जिनतेरो’ कहा जाता है. शाब्दिक तौर पर ‘हौर्स जौकी’.

कैरेबियन द्वीप : कैरेबिया में पुरुष सैक्स वर्कर को ‘सैंकीपैंकी’ कहा जाता है.

मेगा शहरों का चौंकाता सच

जिगोलो सर्विस इस कदर फैल चुकी है कि इस का प्रभाव बड़े शहरों से छोटे शहरों में भी बहुतायत देखा जा रहा है. जैसलमेर और हैदराबाद ऐसे ही शहरों में शुमार हैं जहां पुरुषों की ज्यादा डिमांड है. चौंकाने वाली बात यह है कि राजस्थान में जैसलमेर के कैमल राइर्ड्स इस में सब से ज्यादा संलिप्त पाए गए हैं. वे अपनी सेवाएं विदेशी सैलानियों को देते हैं जो बड़ी तादाद में भारत भ्रमण को आते हैं. वहीं, हैदराबाद भी कम नहीं है. वहां लगभग 5 हजार जवान लड़कों ने अपने नाम व पते जिगोलो लिस्ट में संबंधित साइटों पर डाले हुए हैं. सैलिब्रिटी की शादियों में इन की डिमांड ज्यादा बढ़ जाती है. हैदराबाद में जिगोलो की लिस्ट में सब से ऊपर महाराष्ट्रियन, कैनेडियन, बंगाली और हैदराबादी शुमार हैं क्योंकि वहां के लड़के ज्यादा चुस्तदुरुस्त और सैक्स अपीलिंग वाले माने जाते हैं.

डरता नहीं है कौल ड्रौप का जिन्न

देश में मोबाइल फोन उपभोक्ताओं की संख्या एक अरब के पार पहुंच चुकी है और निरंतर इस संख्या में बढ़ोतरी हो रही है. सेवाप्रदाता कंपनियां इस का फायदा उठाने में जुटी हुई हैं. सभी कंपनियां ग्राहकों से हर रोज मोटी कमाई कर रही हैं. इस संबंध में खुद सरकार का दावा है कि 2009 से अब तक मोबाइल फोन के ग्राहकों के आधार में 61 फीसदी की वृद्धि हुई है.

मोबाइल कंपनियां हर साल मोबाइल कौल के जरिए उपभोक्ताओं से एक लाख करोड़ रुपए कमा रही हैं. दूरसंचार कंपनियों की रोजाना कमाई 250 करोड़ रुपए से ज्यादा है. लेकिन ये कंपनियां अपने ग्राहकों को सुविधाएं देने में ज्यादा खर्च नहीं कर रही हैं. मोबाइल फोन पर कौल ड्रौप सब से बड़ा संकट बना हुआ है. बड़े लोग उस संकट से ज्यादा परेशान हैं, इसलिए यह संकट सरकार के लिए नाक का सवाल बना हुआ है.

कौल ड्रौप का जिन्न सरकार के भरसक प्रयास के बावजूद भागने का नाम नहीं ले रहा है. इस की वजह है कि दूरसंचार कंपनियां अपनी सेवाओं में सुधार लाने के लिए तैयार नहीं हैं. भारतीय संचार नियामक प्राधिकरण यानी ट्राई ने इस संकट पर नियंत्रण के लिए कई कदम उठाए और जुर्माना भी लगाया लेकिन स्पैक्ट्रम की कमी का बहाना किया जा रहा है.

ग्राहकों को कौल ड्रौप पर मुआवजा देने के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई. अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ने का सब को हक है लेकिन सेवाओं में सुधार लाने का काम तो सेवाप्रदाता को सुविधाओं का स्तर बढ़ा कर करना ही होगा. इस से बचने के लिए न्यायालय का दरवाजा खटखटाना उचित तरीका नहीं है. आप ने अवैध तरीके से पैसा बनाया है तो जुर्माना भी भरना होगा.

सब से बड़ी बात यह है कि दूरसंचार कंपनियां सरकार के आदेशों को मानने को तैयार ही नहीं हैं. कौल ड्रौप के अतिरिक्त ये कंपनियां बिन मांगे कुछ सेवाएं दे कर उपभोक्ताओं को लूट रही हैं. कौलरट्यून सेवा मांगी नहीं जाती है, फिर भी उन्हें यह सेवा थोपी जा रही है. नैट बैलेंस का भी कोई पारदर्शी तरीका नहीं है.

सहारा और माल्या

इसे सहारा प्रमुख सुब्रत राय की प्रेरणा ही कहा जाएगा कि 9 हजार करोड़ रुपए डकार कर लंदन चला गया और लिकर किंग विजय माल्या सुप्रीम कोर्ट में यह डील पेश कर चुका है कि 9 हजार करोड़ नहीं, 6,868 करोड़ रुपए लौटाऊंगा. सुब्रत राय रुपयों के मोह में जेल में रहना पसंद कर रहा है. हर पेशी पर अदालत उस पर खीझती है कि पैसे लौटाओ तो जवाब मिलता है कि लौटा दूंगा पर पहले बाहर तो जाने दो. इस बेशर्मी के आगे हथियार डाल चुकी अदालत उस के वकील कपिल सिब्बल को भी फटकार लगा चुकी है.

अब विजय माल्या भी इसी राह चलते यह जताने की कोशिश कर रहा है कि उस के दिल में बेईमानी नहीं है, बेईमान तो वे बैंक हैं जो कर्ज को बढ़ाचढ़ा कर बता रहे हैं. दरअसल, पैसा हड़पने की इन दोनों की अपनी अलग स्टाइल थी पर थी तो बेईमानी ही जिस के बाबत अब परचून की दुकान की तरह अदालत में सौदेबाजी की जा रही है. कभी गिरफ्तार हो कर जेल गया, तो तय है माल्या भी सुब्रत की तरह अडि़यल टट्टू की तरह पेश आएगा.

अर्थव्यवस्था में अब खत्म होगा पश्चिम का वर्चस्व

पांच विकासशील देशों का समूह ‘ब्रिक्स’, बैंक के बाद अब क्रेडिट रेटिंग फर्म खोल सकता है. इसका उद्देश्य पश्चिमी देशों के फाइनैंस के क्षेत्र में एकाधिकार को खत्म करना होगा. 'क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फॉर इमर्जिंग मार्केट ' नाम से इसकी शुरूआत अक्टूबर में भारत में होने वाली ब्रिक्स समिट में होने की उम्मीद है. ब्रिक्स के एक अधिकारी के अनुसार ब्रिक्स देशों- भारत, रुस, ब्राजील, चीन और दक्षिण अफ्रीका के बीच इस विषय पर बातचीत पहले से चल रही है.

इसके अलावा समिट में भारत में एनडीबी इंस्टिट्यूट बनाने के प्रस्ताव पर भी बात होगी. यह इंस्टिट्यूट न्यू डेवलपमेंट बैंक( एनडीबी ) के लिए रिसर्च और प्रोजेक्ट ढ़ूढ़ने का काम करेगा. इस बैंक की शुरूआत 100 बिलियन डॉलर की पूंजी के साथ हुई है. रेटिंग के क्षेत्र में मूडीज, फिच और स्टैंडर्ड एंड पूअर्स का 90 प्रतिशत का मार्केट है.

वित्तीय रुप से उभरते हुए देशों का पश्चिमी रेटिंग एजेंसियों पर विकसित देशों की तरफ झुकाव का आरोप रहा है. चीन और रूस इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. साथ ही यह एजेंसी विकसित हो रहे देशों में विकास के कार्यों का मूल्यांकन भा करेगी.

अब ट्रेन में खाना ऑर्डर करें और पायें कैशबैक…!

आईआरसीटीसी (इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन) की ओर से ट्रेन में उपलब्ध कराई जा रही फूड फेसिलिटी में अब सभी यात्री 50% कैशबैक ले सकते हैं. दरअसल, आईआरसीटीसी ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को अट्रैक्ट करने के लिए अपनी सर्विस में इजाफा दे रहा है. यही वजह है कि इसके तहत यात्रियों को अब न्यूनतम 300 रुपए के भोजन का प्री पेड आर्डर देने पर 50%  कैशबैक की सुविधा मिलेगी. यह सुविधा तत्काल प्रभाव से लागू कर दी गई है.

ग्राहकों को कैश बैक सुविधा का लाभ लेने के लिए आईआरसीटीसी की वेबसाइट www.ecatering.irctc.co.in/eCatering या फूड ऑन ट्रैक मोबाइल एप के माध्यम से ही बुकिंग करनी होगी. इनके अलावा किसी भी विक्रेता या किसी अन्य एप और फोन नंबर पर भोजन बुक करने पर यह लाभ नहीं मिल पाएगा.

बता दें कि फूड डिलीवर होने की तारीख के बाद 50% पैसा उसी अकाउंट में जमा कर दिया जाएगा, जिसके जरिए फूड प्लेट को बुक किया गया था. कैश बैक की सुविधा के बारे में कोई भी जानकारी यात्री आईआरसीटीसी की वेबसाइट और टोल फ्री नंबर 1323 पर फोन कर प्राप्त कर सकते हैं.

क्या आप जानते हैं बैंकों की इन 4 सर्विसेस के बारे में?

बैंक हमारी सुविधा के लिए कई सर्विसेस देते हैं, पर अधिकतर सर्विसेस के बारे में हमें जानकारी नहीं होती. पिछले फाइनेंशियल ईयर में ही बैंकों ने चार नई सर्विसेस लागू की थी. इन सर्विसेस के जरिए आपके लिए बिल पेमेंट करना, टोल का पेमेंट करने से लेकर एक ही कार्ड से बस, मेट्रो आदि ट्रैवल करना आसान हो जाएगा. इसके साथ ही क्रेडिट कार्ड सेगमेंट में पहली बार भारत का अपना ‘रूपे क्रेडिट कार्ड’ भी लांच होगा. इन सब सर्विसेस के लिए नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ने तैयारी कर ली है.

भारत बिल पेमेंट सिस्टम

उपभोक्ता को अपने सभी तरह के यूटिलिटी बिल सिंगल प्वाइंट पर जमा करने की सुविधा मिलेगी. नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड ने इसके लिए भारत बिल पेमेंट सिस्टम को विकसित करने का प्रक्रिया पूरी कर ली है.

कैसे काम करेगा भारत बिल पेमेंट सिस्टम

नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के सूत्रों के अनुसार भारत बिल पेमेंट सिस्टम पर ऑनलाइन और ऑफलाइन कॉमन प्लेटफॉर्म की सुविधा मिलेगी. ऑफलाइन के तहत एजेंट नियुक्त किए जाएंगे. जो कि ब्रांच से जुडें होंगे. एजेंट सभी तरह के बिल का पेमेंट ले सकेंगे. जिनके जरिए संबंधित सर्विस प्रोवाइडर को उपभोक्ता का बिल जमा कर दिया जाएगा. बिल का भुगतान भारत पेमेंट ऑपरेशन यूनिट के जरिए होगा. जहां उपभोक्ता कैश, चेक के साथ ऑनलाइन पेमेंट भी कर सकेंगे. इसके अलावा भारत बिल पेमेंट सिस्टम के जरिए घर बैठे ऑनलाइन पेमेंट की भी सुविधा मिलेगी.

इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन

सूत्रों के अनुसार सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के प्रस्ताव पर नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन इलेक्ट्रॉनिक टोल कलेक्शन सिस्टम को विकसित करने जा रहा है. इसके तहत बैंकों के साथ मिलकर पूरे सिस्टम को विकसित किया जाएगा. जिसमें बैंक कार्ड इश्यू करेंगे. टोल पर कार्ड टच कर पेमेंट किया जा सकेगा. सड़क एवं परिवहन मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार केवल इलेक्ट्रॉनिक टोल सिस्टम पूरे देश में लागू होने से करीब 87 हजार करोड़ रुपए की सालाना बचत की जा सकती है. साथ टोल पर वेटिंग टाइम में 10 मिनट की कमी हो सकती है.

आएगा कॉमन मोबिलिटी कार्ड

इस तरह के कार्ड का उद्देश्य सभी तरह की ट्रांसपोर्ट सर्विसेस के लिए एक कॉमन कार्ड होगा. यानी एक कार्ड के जरिए बस, मेट्रो, लोकल ट्रेन आदि में सफर किया जा सकेगा. अलग-अलग ट्रांसपोर्ट के लिए अलग-अलग स्मार्ट की जरूरत नहीं होगी. सूत्रों के अनुसार एनपीसीआई नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड को मार्च 2017 के पहले लांच कर देगा.

…तो ये हैं ‘सुल्ता‍न’ की सल्तनत का वारिस

सलमान खान अब सुल्ता‍न मोड में आ चुके हैं और ईद तक वो सुल्ता‍न मोड में ही रहेंगे. यानि कि अब वो खुलकर पूरे बॉलीवुड के बारे में बात करेंगे. हाल ही में एक इवेंट में उनसे पूछा गया कि आज के एक्टर्स में उनका फेवरिट कौन है. तो सलमान खान ने बिना समय लिए तुरंत जवाब दिया – वरूण मुझे मेरे बीते दिनों की याद दिलाता है. मैं भी बिल्कुल ऐसा ही था. वैसे वरूण धवन ने कभी इंकार नहीं किया कि वो सलमान खान को कॉपी करते हैं. लेकिन अब सलमान ने भी इस बात पर मुहर लगा दी है.

और इस बात से वरूण धवन और सलमान खान दोनों के ही फैन्स काफी खुश होने वाले हैं. वैसे भी वरूण धवन धीरे-धीरे ही सही लेकिन सलमान खान जैसे स्टार्स की लीग में आगे बढ़ रहे हैं. 

हाल ही में उन्हें स्टार नेटवर्क ने एक करारी डील तक ऑफर कर दी जो उनके जेनेरेशन के किसी एक्टर को नहीं मिली है. यही कारण है कि वरूण धवन के फैन्स के पास खुश होने के सारे रीज़न हैं. हालांकि अगर बॉलीवुड फैन्स की मानें तो वरूण धवन परफेक्ट सलमान तो हैं लेकिन छोटे से ट्विस्ट के साथ.

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