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भारत में किडनी कौन कौन दान कर सकता है.

सवाल

भारत में किडनी कौन कौन दान कर सकता है?

जवाब

दूसरे अंगों की तरह किडनी दान करना भी संभव है. जीवित व्यक्ति एक किडनी दान कर सकता है, क्योंकि जीवित रहने के लिए इनसान को एक किडनी की आवश्यकता होती है. इसे लीविंग डोनेशन कहते हैं. जो लोग किडनी दान करना चाहते हैं उन की बहुत सावधानीपूर्वक जांच की जाती है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह व्यक्ति दान करने और किडनी निकालने के आवश्यक औपरेशन के लिए उपयुक्त है.

लीविंग डोनेशन निकट संबंधियों से आता है, क्योंकि उन का ब्लड ग्रुप और ऊतक समान होने की संभावना अधिक होती है.

जब किसी मृत व्यक्ति, जिसे ब्रेन डैथ घोषित किया गया हो, से किडनी प्राप्त की जाती है तो उसे डिजीज्ड कैडावर और्गन डोनेशन कहा जाता है.

 

अगर आप भी इस समस्या पर अपने सुझाव देना चाहते हैं, तो नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में जाकर कमेंट करें और अपनी राय हमारे पाठकों तक पहुंचाएं.

 

बच्चों के स्वास्थ्य पर भारी पड़ते स्कूली बस्ते

भले ही आप का बच्चा ठीकठाक खा लेता हो, अच्छी नींद लेता हो और अन्य बच्चों की तरह चहकता रहता हो, लेकिन रोजाना स्कूली बस्ते का बोझ सहते रहना उस की सेहत के लिए समस्याएं खड़ी कर सकता है. दरअसल, स्कूली बस्ते का स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है. हो सकता है कि आप का बच्चा अपनी पीठ पर असामान्य बोझ ढो रहा हो जिस से उसे कमरदर्द, रीढ़ की विकृति या गरदन के पास खिंचाव जैसी तकलीफें हो सकती हैं. स्कूली बच्चे और्थोपैडिक समस्याओं की चपेट में आ रहे हैं और डाक्टर पीठ या कमरदर्द से पीडि़तों के आयुवर्ग में जबरदस्त बदलाव के गवाह बन रहे हैं. स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों के कई ऐसे खतरे हैं जिन से आप के बच्चे का भी वास्ता पड़ सकता है.

कंधा : भारी या असामान्य स्कूली बस्ते का बोझ शारीरिक संरचना को असंतुलित कर सकता है. गरदन के आसपास की मांसपेशियों और स्नायुतंत्र पर लगातार बोझ व दबाव के कारण गंभीर खिंचाव उत्पन्न हो जाता है. इस मामले में यदि उचित देखभाल न की जाए तो विभिन्न प्रकार की और्थोपैडिक संबंधी समस्याएं बढ़ सकती हैं.

पीठ : यदि आप का बच्चा लगातार भारी स्कूली बस्ता ढो रहा होता है तो कोमल ऊतक (टिश्यू) नष्ट हो जाते हैं जिस कारण चोट या शारीरिक संरचना बिगड़ सकती है. नियमित रूप से 2 किलो से अधिक बोझ वाले बस्ते ढोने से मांसपेशियों में दर्द और रीढ़ संबंधी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं.

गरदन : स्कूली बस्ते जब भारी होते हैं तो गरदन स्वाभाविक रूप से बोझ के विपरीत दिशा में झुक जाती है. इस से बोझ वाले हिस्से की गरदन पर खिंचाव बढ़ जाता है और वजन के विपरीत दिशा में दबाव बढ़ जाता है.

पैर : भारी बस्ता ढोने के कारण आप के बच्चे की चाल बेढंगी हो जाती है और शारीरिक संरचना के प्रतिकूल दबाव बनने लगता है, जिस से उसे परेशानी हो सकती है.

क्या करें : बस्ते में कंधे के दोनों तरफ की पट्टियां होनी चाहिए और आप अपने बच्चे को हमेशा वजन का संतुलन बना कर चलने का निर्देश देते रहें. इस से बच्चे की गरदन, कंधे और पीठ पर वजन का बराबर मात्रा में संतुलन बना रहेगा. अगर बच्चे नियमित रूप से अपने वजन का 10 प्रतिशत से ज्यादा बोझ कंधे पर उठाएंगे तो उस के लिए नुकसानदेह है. बैग में वही चीजें ले जाएं जो जरूरी हों. ऐसे डिजाइन वाला बैग खरीदें जिस के शोल्डर स्ट्रैप्स पैड वाले हों. बच्चों को बचपन से ही व्यायाम करने की आदत डालें.

अजीबोगरीब साए

हर तरफ अजीबोगरीब साए हैं

कुछ अपने हैं, कुछ पराए हैं

सरहदों के उस पार भी हैं अपने कुछ

कुछ अपनों ने अपनों से ही धोखे खाए हैं

कुछ ने इमान को दीवारों में चुनवाए हैं

कुछ मौत के आगोश में समाए हैं

हर तरफ अजीबोगरीब साए हैं

कुछ अपने हैं, कुछ पराए हैं.

 

– डा. रश्मि गोयल

ऐसा भी होता है

मेरे पड़ोस में एक माताजी रहती हैं. वे करीब 80 साल की हैं. बहुत ही हंसमुख हैं. उन की हंसी की बातें व सकारात्मक सोच सभी को प्रसन्न कर देती हैं. बच्चे उन्हें बड़ी दादी कहते हैं. एक दिन मेरी मित्र ने एक वीडियो मेरे पास भेजा. मैं ने जब वीडियो देखा तो उस में जो कलाकार महिला थी, उस की सूरत माताजी से काफी मिलती हुई थी. पर बिना जाने मैं कैसे कहती कि यह वीडियो माताजी का है. सो, शाम को वह वीडियो ले कर मैं उन के घर गई.

मैं ने वह वीडियो उन के पोता व पोती को दिखाया तो वे देखते ही बोले, ‘अरे आंटी, यह वीडियो तो मेरी दादी का है.’ इतने में उन का बेटा भी आ गया. उस ने बताया कि उन की मां अपने समय की हास्यव्यंग्य कलाकार थीं. माताजी ने जब वह वीडियो देखा तो उन की आंखों में चमक आ गई. वे बोलीं कि बेटा, अब तो ये पुरानी बातें हैं पर आज वीडियो दिखा कर तुम ने मेरी पुरानी यादों को ताजा कर दिया.   

– उपमा मिश्रा, लखनऊ (उ.प्र.)

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शहर के चहलपहल वाले महत्त्वपूर्ण चौराहे पर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अपने आर्थिक सहयोग से पानी का एक  सार्वजनिक प्याऊ बनाया. प्याऊ पर गरमी के दिनों में खासी आवाजाही रहती. शहर में काफी समय से एक विक्षिप्त महिला अपनी 8-9 वर्ष की बच्ची को ले कर भिक्षावृत्ति कर अपना पेट पाल रही थी. कुछ बच्चे विक्षिप्त महिला को चमेली कह कर चिढ़ाया करते थे. मई का महीना था. एक दिन घूमती हुई वह महिला प्याऊ पर पानी पीने को रुक गई. उस के आगे एक व्यक्ति पानी पी रहा था. उस के बाद विक्षिप्त महिला ने अपनी लड़की को पानी पीने के लिए आगे किया. उस के बाद वह पानी पीने का प्रयास करने लगी तो उस के पीछे क्रम में लगे व्यक्ति ने उसे हटाने की चेष्टा करते हुए कहा, ‘‘चल हट, हमें पानी पीने दे.’’

उफनती हुई चमेली ने कहा, ‘‘क्यों हटूं? क्या मैं पानी नहीं पीऊं, तुम तो लोगों का खून पी रहे हो, और मैं पानी भी न पीऊं.’’ सफेद कपड़ों में वह व्यक्ति उस की बात सुन कर भौचक उस का मुंह देखता ही रह गया. चूंकि उस के बाद पानी के लिए मेरा क्रम था, पानी पीने के बाद मैं सोचने लगा कि कभीकभी नासमझ, पागल समझे जाने वाले कैसी संवेदनशील समझदारी की बात कर जाते हैं, जिस का मर्म के साथ यथार्थ भी होता है.

– एस सी कटारिया, रतलाम (म.प्र.)

समाचार

ईंधन की दुनिया में नया कदम
बायोगैस से खाना पकाएंगे 1 लाख परिवार

नई दिल्ली : खाना पकाने के लिए ईंधन हमेशा एक मुद्दा रहा है. तमाम तरह की लकडि़यों व गोबर के कंडों का ईंधन के तौर पर सदियों से इस्तेमाल होता आ रहा?है, मगर अब फिजा बदल चुकी?है.

पर्यावरण और प्रदूषण जैसे मसले हर बात में पाबंदी लगाते हैं. वैसे भी अब लकडि़यां काटना व जलाना गुनाह माना जाता?है और कच्चा कोयला व पक्का कोयला भी बहुत महंगे होते?हैं. बात घूमफिर कर प्रचलित एलपीजी गैस पर आती है, तो उस की ज्यादातर कमी बनी रहती है. ऐसे आलम में बायोगैस राहत देने वाली साबित हो सकती है. मौजूदा वित्त साल 2016-17 में 1 लाख हिंदुस्तानी परिवारों को खाना पकाने के लिए बायोगैस मुहैया कराने की सरकार की योजना है. इस कदम से 21,90,000 एलपीजी सिलेंडरों की बचत होगी. खाना पकाने के लिए 1 लाख परिवारों को बायोगैस मुहैया कराने का टारगेट ‘नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय’ (एमएनआरई) ने बनाया है. इस टारगेट को मुकम्मल करने का जिम्मा अलगअलग सूबों की सरकारों का होगा. बायोगैस बनाने की कवायद में करीब 22 लाख एलपीजी सिलेंडरों की बचत तो होगी ही, इस के साथ ही खेती के लिए प्रोसेस्ड खाद भी हासिल होगी और प्रोसेस्ड खाद का इस्तेमाल किए जाने की हालत में रासायनिक खाद के इस्तेमाल में कमी आएगी, जो खेती के लिहाज से बेहतर होगा.

मंत्रालय के अंदाजे के मुताबिक 1 लाख घरों में बायोगैस के इस्तेमाल होने से करीब 10,000 टन यूरिया खाद की बचत होगी यानी इस से यूरिया की किल्लत में भी कमी आएगी. एमएनआरई का मानना?है कि 1 लाख घरों में खाना पकाने के लिए बायोगैस का इस्तेमाल होने से पर्यावरण को 4.5 लाख टन कार्बनडाईआक्साइड और 2.5 लाख टन मीथेन की मिलावट से बचाया जा सकेगा. खाना बनाने के लिए बायोगैस के इस्तेमाल हेतु एमएनआरई नेशनल बायोगैस एंड मैन्योर मैनेजमेंट प्रोग्राम (एनबीएमएमपी) चला रहा?है. इस प्रोग्राम का मकसद तमाम घरों में खाना बनाने के लिए साफ ईंधन मुहैया कराने के साथसाथ बायोगैस के बाइप्रोडक्ट के तौर पर खेतों के लिए आर्गेनिक खाद मुहैया कराना?है. इस किस्म की आर्गेनिक खादों में नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम की अच्छीखासी मात्रा मौजूद होती है. यानी बायोगैस के साथ तैयार होने वाली आर्गेनिक खाद बहुत उम्दा होगी.

भारतीय गांवों के तमाम घरों में खाना पकाने के लिए बायोगैस मिलने से गांव की औरतों का तो कल्याण हो जाएगा. वहां की औरतों का अच्छाखासा वक्त चूल्हे के लिए लकडि़यां बीनते हुए बीतता है और सुबहशाम गोबर के कंडे यानी उपले बनाने में भी उन का काफी वक्त खर्च होता?है. बायोगैस की सुविधा हो जाने से औरतों को लकड़ीकंडे के झमेले से नजात मिल जाएगी. बायोगैस के सिलसिले में नीति आयोग की ओर से एकीकृत एनर्जी पालिसी के तहत लाहफलाइन एनर्जी की जरूरतों को पूरा करने की खातिर कई एप्लीकेशंस भी तैयार किए गए?हैं. माहिरों का कहना?है कि बायोगैस खासतौर पर खाना बनाने के काम तो आएगी ही, पर साथ ही साथ अन्य तमाम काम भी अंजाम देगी. बायोगैस को आने वाले वक्त में बिजली पैदा करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता?है, जो कि एक खास कामयाबी होगी.

इस के अलावा इसे गरमी मुहैया कराने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकेगा. खासतौर पर मोटरगाडि़यों को चलाने में इसे इस्तेमाल किए जाने की योजना एक नई क्रांति ला सकती है.                          

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दूसरी हरित क्रांति बिहार से शुरू होगी

पटना : केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा है कि देश की दूसरी हरित क्रांति का केंद्र बिहार बनेगा. उन्होंने किसानों से अपील की है कि खेती में विज्ञान और तकनीक को अपनाए बगैर न खेती की तरक्की हो सकती है और न ही किसानों की आमदनी में इजाफा हो सकता है. बदलते समय में किसान अपने खेत के एक तिहाई हिस्से में खेती करें, एक तिहाई हिस्से में बागबानी करें और एक तिहाई हिस्से में अन्य अनाजों की खेती करें. इस से संकट की स्थिति में किसानों को?ज्यादा नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा.

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पटना शाखा के कैंपस में किसान उन्नति मंच के द्वारा आयोजित परिचर्चा में कृषि मंत्री ने कहा कि आज की तारीख में देश के विकास में कृषि की हिस्सेदारी केवल 18 फीसदी ही?है. इस की सब से बड़ी वजह यही है कि 60 फीसदी खेती लायक जमीनों तक सिंचाई के लिए पानी नहीं पहुंच पा रहा?है.

इसी के मद्देनजर प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना बनाई गई है. इस योजना के तहत ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलर सिस्टम से खेती करने को बढ़ावा दिया जा रहा?है.    

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योजना

प्रदेश सरकार की नई शीरा नीति

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सूबे की सरकार ने साल 2015-16 के लिए अपनी नई शीरा नीति जारी कर दी?है. इस नई नीति के तहत अब सभी चीनी मिलों को कुल शीरे का 25 फीसदी शीरा रिजर्व रखना होगा.

प्रमुख सचिव आबकारी किशन सिंह आटोरिया ने इस के आदेश जारी कर दिए. नई नीति में शीरे के बीच निकासी का अनुपात 1:3 का होगा. इस की गणना हर निकासी के बजाय पूरे महीने में की गई कुल निकासी पर की जाएगी. नई नीति में शीरे पर प्रशासनिक शुल्क की दर सूबे  के अंदर खपत के लिए 11 रुपए प्रति क्विंटल और सूबे के बाहर निर्यात  के लिए 15 रुपए प्रति क्विंटल तय की गई है.                  

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अजूबा
खेत से निकले चांदी के सिक्के

मथुरा : मुन्नी का नगला गांव में पिछले दिनों एक प्लाट में डाली गई मिट्टी में चांदी के सिक्के मिलने से पूरे इलाके में अफरातफरी मच गई. लोग ताबड़तोड़ तरीके से मिट्टी में सिक्के तलाशने में जुटे रहे. जिस के हाथ जितने सिक्के लगे, वह उन्हें ले भागा. उन सिक्कों में ज्यादा तादाद 1 रुपए के सिक्कों की थी. सिक्के निकलने की सूचना पा कर वहां पहुंचने वाली पुलिस ने फौरन खेत की खुदाई बंद करा दी. आगरा मंडल के सहायक क्षेत्रीय पुरातत्त्व अधिकारी राजीव द्विवेदी के मुताबिक फरह के गांव थिरावली में मिले सिक्के ब्रिटिशकाल के?हैं और चांदी से बनाए गए हैं. इन सिक्कों को राज्य पुरातत्त्व विभाग अपने कब्जे में लेगा.

फरह के गांव मुन्नी का नगला में उस वक्त बवाल सा मच गया, जब एक प्लाट में पड़ी मिट्टी में वहां खेल रहे बच्चों ने चांदी के सिक्के देखे. बच्चे मिट्टी में सिक्के खोजने में जुट गए और आननफानन में खबर गांव भर में फैल गई. प्लाट के मालिक ने बताया कि वहां मिट्टी भराने के लिए उस ने थिरावली गांव के किसी खेत से मिट्टी मंगाई?थी. यानी ये सिक्के उसी खेत की मिट्टी में गड़े थे.                    

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सहूलियत

सीएसए दूर करेगा बीजों की किल्लत

कानपुर : दलहनी फसलों की खेती करने के लिए किसान बीज के लिए खासे परेशान रहते?हैं. लेकिन अब दलहनी फसलों की नई वैरायटी के बीजों की किल्लत किसानों को नहीं होगी. चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) में 1000 क्विंटल की कूवत का सीड हब बनाया जा रहा?है. बीजों की खरीदारी के लिए भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान यानी आईआईपीआर 1 करोड़ रुपए का अनुदान देगा. बीज हब तैयार करने के लिए 50 लाख रुपए मंजूर किए गए?हैं.सीएसए के अलावा बांदा व फैजाबाद में बने कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के और चित्रकूट के कृषि विज्ञान केंद्र में भी सीड हब बनाए जाएंगे.

इन सभी सीड हबों में अरहर, मूंग, उड़द, चना व मटर समेत अन्य दलहनी फसलों को संरक्षित रखा जाएगा. देश भर में केंद्र सरकार की 150 सीड हब बनाए जाने की योजना?है. वर्तमान समय में दलहनी फसलों के लिए 57 सीड हब संचालित?हैं.

आईआईपीआर के निदेशक डा. एनपी सिंह ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम का मिजाज लगातार बदलता जा रहा?है. अब उन बीजों से उत्पादन बहुत कम होता है. जिन की प्रजातियां पुरानी हैं. इसी के चलते सीड हब में ऐसी वैराइटीयों को जगह नहीं दी जाएगी. 10 साल से कम की वैरायटी ही सीड हब में रखी जाएगी. मौजूदा समय में हर साल 20 लाख क्विंटल बीज की जरूरत होती?है. पुरानी वैरायटी के बीज तो मिल जाते हैं, लेकिन जरूरत के हिसाब से नई वैरायटी के बीज किसानों को नहीं मिल पाते.                                   

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खोज

तैयार होगी हाईब्रिड एलोवेरा

लखनऊ : दवाओं व सौंदर्य प्रसाधनों में इस्तेमाल होने वाले एलोवेरा पर मंदसौर में राष्ट्रीय स्तर की रिसर्च शुरू हुई है. यहां इस की हाईब्रिड किस्म तैयार की जाएगी. उद्यानिकी महाविद्यालय में शुरू इस अनुसंधान के लिए गुजरात व महाराष्ट्र से जनन द्रव्य आए हैं. इन पर रिसर्च कर के एलोवेरा की ऐसी वैरायटी विकसित की जाएगी, जिस का उत्पादन हर किसान हर किस्म की जलवायु में किसान खेतों में कर सकेंगे. यह रिसर्च देश में पहली बार शुरू हुई है. रिसर्च के लिए मंदसौर उद्यानिकी कालेज में 1 जनन द्रव्य मौजूद है, जबकि अकोला (महाराष्ट्र) से 1 और आनंद (गुजरात) में 4 जनन द्रव्य आ गए हैं. एलोवेरा में पाए जाने वाले कैमिकल बैलेंस की भी जांच की जाएगी. एलोवेरा में जल्दी खराब होने वाले गुण के चलते रिसर्च की जरूरत महसूस की गई. इस के चलते उपयोगी होने के बाद भी एलोवेरा के उत्पादन को ले कर किसान उत्साहित नहीं रहते. रिसर्च के दौरान एलोवेरा के कास्मेटिक व हर्बल फूड तत्त्वों पर छानबीन की जाएगी.

उद्यानिकी महाविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. जीएन पांडे का कहना?है अखिल भारतीय स्तर पर एलोवेरा पर रिसर्च पहली बार ही की जा रही?है. शुरुआती तौर पर एलोवेरा में मौजूद कंटेंट पर रिसर्च शुरू की गई है.                

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बचत

मौजूदा दौर की खास जरूरत छत पर सोलर बिजली लगाने से होगी बचत

नई दिल्ली : बिजली की गड़बड़ाई हुई हालत से सभी वाकिफ हैं. मुल्क के कुछ खास इलाकों या शहरों की बात छोड़ दें, तो हर जगह बिजली की किल्लत का रोना रहता?है. राजधनी दिल्ली तक के तमाम इलाके बिजली की कमी का शिकार हैं और उत्तर प्रदेश जैसे सूबों का हाल तो बहुत ही खराब है. हाट सिटी कहे जाने वाले गाजियाबाद जिले का भी अच्छाखासा हिस्सा बिजली की कमी से दुखी रहता?है. इस पर सितम यह?कि बिजली के बिल बड़ेबड़े यानी हजारों के आते?हैं.

ऐसे आलम में अपने घरों की छतों पर सोलर बिजली लगवा कर लोग काफी राहत पा सकते हैं. इस से न सिर्फ भरपूर बिजली मौजूद रहेगी, बल्कि मुख्य बिजली के बिल में भी काफी कमी आएगी. राजधानी दिल्ली में तो घरों की छतों पर सोलर प्लांट लगवाने पर 3 साल के लिए जेनरेशन आधारित इंसेंटिव भी दिए जा रहे?हैं. इस से सोलर प्लांट के दाम काफी घट जाते हैं. केंद्र सरकार के नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय की ओर से रूफटाप सोलर प्लांट लगवाने के लिए सब्सिडी भी दी जाती है.

सोलर प्लांट के जानकारों का कहना?है कि मकानों की छतों पर सोलर प्लांट लगवाने की लगात करीब 5 सालों में ही निकल आती?है, जबकि यह करीब 25 सालों तक काम करता रहता?है.

रूफटाप सोलर प्लांट लगाने का काम करने वाली नामी कंपनी जोल्ट एनर्जी लिमिटेड के सहसंस्थापक और सीईओ अभिषेक डबास के मुताबिक 3 किलोवाट का सोलर प्लांट लगवाने की लागत बगैर सब्सिडी के ढाई लाख रुपए आती है. इस प्लांट से हर दिन 12.15 यूनिट बिजली पैदा होती है यानी 1 साल में करीब 4500 यूनिट बिजली पैदा होती?है.

दिल्ली व हरियाणा सहित कई सूबों में हर महीने 800 यूनिट से ज्यादा बिजली खर्च करने वालों को करीब 9 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली के बिल का भुगतान करना पड़ता?है.

इस हिसाब से 1 साल में 4,500 यूनिट बिजली का मूल्य 40,500 रुपए होता?है. इस के अलावा दिल्ली में छतों पर सोलर प्लांट लगाने पर सरकार की ओर से 3 सालों के लिए 2 रुपए प्रति यूनिट की दर से इंसेंटिव दिए जाते हैं यानी 4500 यूनिट के लिए सरकार की ओर से 9000 रुपए के इंसेंटिव मिलेंगे. इस तरह 3 किलोवाट के सोलर प्लांट से साल भर में करीब 50000 रुपए की बचत होगी और आसानी से 5 सालों में सोलर प्लांट की ढाई लाख रुपए की लागत निकल आएगी.

इस प्रकार मकानों की छतों और खेतों पर सोलर प्लांट लगवा कर भरपूर बचत की जा सकती?है. खेतों पर सोलर पंप सहित तमाम मशीनें सौर्य ऊर्जा से चला कर बिजली का बिल घटाया जा सकता?है. वाकई सौर्य ऊर्जा ने हालात बेहतर बना दिए हैं. 

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तरक्की

20 कृषि विज्ञान केंद्र खुलेंगे

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में 20 नए कृषि विज्ञान केंद्र खोलने की सरकार की योजना?है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के महानिदेशक ने मुख्य सचिव से मुलाकात कर के प्रदेश सरकार को जमीन देने का आग्रह किया?है. साथ ही देश के पहले इंटरनेशनल राइस इंस्टीट्यूट और संडीला में दलहन इंस्टीट्यूट के लिए भी जमीन की मांग की गई?है.               

तोहफा

किसानो को प्रोत्साहन पुरस्कार

लखनऊ : प्रदेश सरकार ने किसानों को उपज का अधिकतम मूल्य दिलाने के लिए कृषि निर्यात प्रोत्साहन पुरस्कार योजना लागू की है. चावल दलहन, सब्जियों व फलों को देश से बाहर बेच कर विदेशी मुद्रा अर्जित करने को प्रोत्साहित किया जा रहा?है. पुरस्कार तय करने के लिए कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया?है. साथ ही पुरस्कार से संबंधित संस्तुति भेजने हेतु निदेशक मंडी परिषद की अध्यक्षता में एक विशेष समिति बनाई गई?है. इस के तहत हर श्रेणी के निर्यातकों को पहला पुरस्कार 51 हजार रुपए, दूसरा पुरस्कार 31 हजार रुपए और तीसरा पुरस्कार 21 हजार रुपए के अलावा शाल एवं प्रशस्ति पत्र दिया जाता है.

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मुहिम

नीरा से बनेगा लाजवाब गुड़शहद

पटना : बिहार में ताड़  के पेड़ से निकलने वाले नीरा से गुड़, शहद, कैंडी और कई तरह के उत्पाद बनाए जाएंगे. तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों की मदद से इस काम को अंजाम दिया जाएगा. विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 26 मई को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात कर नीरा से कई तरह के उत्पाद बनाने का प्रजेंटेशन दिया.

नीरा से गुड़ और शहद जैसे उत्पाद बनाने के लिए तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (टीएनएयू) और बिहार के?भागलपुर के सबौर कृषि विश्वविद्यालय के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर होंगे. टीएनएयू के पूर्व डीन (हौर्टिकल्चर) डा. वी पून्नूस्वामी ने मुख्यमंत्री को नीरा और ताड़ के कई उत्पादों और उस के बाजार के बारे में बताया.

मुख्यमंत्री ने नीरा के उद्योग से जुड़ी समूची प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने और इस से जुड़े हर पहलू पर सर्वे करने का निर्देश दिया है. राज्य में ताड़ के पेड़ों की गिनती और उन से मिलने वाले नीरा के आंकड़े तैयार किए जा रहे हैं. उस के बाद ही ताड़ के पेड़ों और नीरा से बनने वाले उत्पादों से संबंधित उद्योगों को विकसित करने की योजना बनेगी. 

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कामयाबी

हरियाणा में लागू फसलबीमा योजना

हरियाणा : हरियाणा सरकार ने राज्य में फसलबीमा योजना लागू करने की घोषणा कर दी है. प्रदेश के कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ द्वारा की गई घोषणा के बाद हरियाणा फसलबीमा योजना लागू होने वाला देश का पहला राज्य बन गया है. प्रदेश के सभी किसान 31 जुलाई तक अपनी फसल का बीमा करा सकेंगे और उन्हें बीमा राशि का अधिकतम 2 फीसदी प्रीमियम बीमा कंपनी को अदा करना होगा. धनखड़ ने यहां सेक्टर 16 स्थित सर्किट हाउस में पत्रकारों से रूबरू होते हुए कहा कि चुनाव से पहले सरकार ने हरियाणा प्रदेश के तमाम किसानों से बीमा योजना लागू करने का वादा किया था. सरकार ने वादे के अनुसार किसानों की भलाई के लिए बीमा योजना शुरू कर दी है. कृषि मंत्री ने बताया कि कृषि बीमा योजना के तहत प्रदेश को 3 हिस्सों में बांटा गया है. पहले हिस्से में हिसार, भिवानी, फरीदाबाद, कुरुक्षेत्र, पंचकूला व रेवाड़ आदि जिलों को रखा गया?है.

इन जिलों में फसल का बीमा मशहूर रिलायंस जनरल कंपनी द्वारा किया जाएगा. दूसरे हिस्से में हिसार, सोनीपत, जींद और गुड़गांव आदि जिलों को रखा गया है. इन जिलों में बीमा कार्य बजाज एलायंस कंपनी द्वारा किया जाएगा. इस प्रकार फसल बीमा योजना सब से पहले लागू कर के हरियाणा ने बाजी मार ली है. इस बात को ले कर किसानों में काफी जोश है.                       

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मुकाबला

महज 3 मिनट में 3 किलोग्राम आम खाए

नई दिल्ली : खानेपीने की प्रतियोगिताओं में अकसर इनसानों को जानवरों की तरह ताबड़तोड़ तरीके से खाना पड़ता?है. ऐसा ही एक नजारा पिछले दिनों देखने को मिला.

दिल्ली हाट जनकपुरी में आयोजित 3 दिवसीय दिल्ली ग्रीष्मोत्सव के दूसरे दिन फलों के सम्राट आम को खूब सुर्खियां हासिल हुईं. वहां आयोजित तमाम प्रतियोगिताओं में महिला वर्ग में हुई ‘आम खाओ प्रतियोगिता’ खास चर्चा का विषय रही. महिलाओं ने इस में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. प्रतियोगिता के तहत पूरे 3 किलोग्राम आम महज 3 मिनट मे चट करने यानी खाने थे. कई महिलाएं इस मुहिम में शिरकत कर के चर्चा का विषय बन गईं. नजाकत पसंद हसीनाओं को दरिंदे के अंदाज में ताबड़तोड़ तरीके से आम पर आम खाते देखना वाकई मजेदार नजारा था. आमतौर पर 1 आम को कोई भी हसीना बहुत नाजोअंदाज से सलीके से काफी देर में खा पाती?है, मगर वहां हालात चुनौती के जोश वाले थे.

कई महिलाओं ने कामयाबी हासिल की और तोहफे भी हासिल किए. इस बार आम और शर्बत उत्सव को मिला कर एक नए रूप में मेले में पेश किया गया था. आम की तमाम किस्मों को एक ही छत के नीचे देखना मजेदार था. आम व आम से बने उत्पादों की खरीदारी में लोगों ने खासी दिलचस्पी दिखाई और साबित कर दिया कि क्यों आम को फलों का राजा कहते?हैं. पीले हरे नारंगी रंगों के हसीन आमों से सजा यह मुकाबला वाकई लाजवाब था. 

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फायदा

किसानों को मिलेगा बड़ा तोहफा

लखनऊ : उत्तर प्रदेश सरकार ने किसानों और उन के परिवारों के लिए सर्वहितबीमा योजना लागू करने का निर्णय लिया है. 75 हजार रुपए से कम आय पर ही इस योजना का लाभ मिल सकेगा. योजना से ज्यादा से ज्यादा किसानों को लाभान्वित करने की जिम्मेदारी एडीएम (प्रशासन) को दी गई?है. इस के साथ ही दूसरे विभागों के अधिकारी भी योजना का लाभ दूसरे व्यवसाय में लगे लाभार्थियों तक पहुंचाने के लिए काम करेंगे.

एडीएम (प्रशासन) राजेश पांडेय ने बताया, ‘योजना के तहत परिवार के मुखिया को दुर्घटना पर बीमा का लाभ और उस के परिवार के सभी सदस्यों को दुर्घटना के बाद इलाज की सुविधा मिलेगी. इस योजना का लाभ उठाने वाले को बीमा प्रीमियम का भुगतान नहीं करना होगा.’ उन्होंने बताया कि योजना के संचालन के लिए राज्य स्तर पर संस्थागत वित्त विभाग, संस्थागत वित्त बीमा एवं बाह्य सहायतित परियोजना महानिदेशक नोडल एजेंसी होंगे, जो योजना को बाकायदा लागू करेंगे.

वहीं जिलाधिकारी योजना के संचालन के लिए उत्तरदायी और मिशन अधिकारी होंगे. अपर जिलाधिकारी वित्त एवं राजस्व इस योजना के नोडल अधिकारी होंगे. मुख्य विकास अधिकारी विकास संबंधित विभागों के मुखिया होंगे.

पांडेय ने बताया कि बीमा कंपनियों के चयन के बाद बीमा प्रीमियम का?भुगतान जिस तारीख को उन्हें किया जाएगा, उस तारीख से पौलिसी 1 साल के लिए मान्य होगी. इस के बाद इसे हर साल बढ़ाया जाएगा. यह योजना 3 सालों से अधिक की नहीं होगी. योजना के तहत 10 क्लस्टर बनाए गए?हैं, जिन्हें बीमा कंपनियों के बीच बांटा किया जाएगा. दावों को गलत आधारों पर नकारने और चिकित्सकों को बीमा कंपनी द्वारा समय पर भुगतान न करने पर संबंधित जिलाधिकारी की अध्यक्षता में गठित समिति का निर्णय बीमा कंपनी पर लागू होगा. यदि परिवार का मुखिया बीमा दावा संबंधित बीमा कंपनी को पेश करने में 3 महीने से अधिक समय लगता है, तो बीमा की अवधि की समाप्ति के 1 महीने बाद तक विलंब होने की स्थिति में 1 महीने तक विलंब को क्षमा करने का अधिकार जिलाधिकारी के पास होगा. पांडेय ने बातया कि कंपनी दावे का निबटारा अधिकतम 15 दिनों के अंदर परिवार के मुखिया के पक्ष में करेगी.  

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रफ्तार

कछुआ चाल से बनते नक्शे

पटना : बिहार में जमीन के नक्शों को डिजिटल बनाने का काम कछुआ की चाल से चल रहा?है. सभी गांवों के सेटेलाइट से राजस्व नक्शे तैयार करने की योजना के कार्यकाल को 2 साल आगे खिसका दिया गया?है. साल 2017-18 तक हवाई सर्वे के जरीए इस योजना को पूरा किया जाएगा. साल 2012 में शुरू की गई इस योजना को 2015-16 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया था.

भूमि एवं राजस्व विभाग के सूत्रों के मुताबिक विभागीय सुस्ती की वजह से कई जिलों में सेटेलाइट और जमीन सत्यापन के जरीए री सर्वे नक्शे तैयार नहीं हो सके हैं. बेगूसराय, लखीसराय, खगडि़या, वैशाली, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर, शिवहर, कटिहार, पूर्णियां, अररिया, किशनगंज और पूर्वी चंपारण के कुल 6443 गांवों की फोटोग्राफी कर ली गई?है, पर 4855 गांवों के ही मानचित्र मुहैया कराए गए हैं. जहानाबाद, गया, अरवल और औरंगाबाद जिलों में कुल 5750 गांवों में से 4557 की फोटोग्राफी हुई है, लेकिन एक का भी नक्शा विभाग को नहीं मिला है. पश्चिम चंपारण, बांका, नवादा, जमुई, पटना, नालंदा, बक्सर, सिवान, रोहतास, कैमूर, दरभंगा, मधुबनी, समस्तीपुर, गोपालगंज, छपरा, भागलपुर, शेखपुरा और मुंगेर जिलों में कुछ भी काम नहीं हुआ?है.

इस काम में केंद्र की 3 एजेंसियां बिहार सरकार की मदद कर रही?हैं. विभागीय मंत्री मदन मोहन झा ने बताया कि कुछ तकनीकी वजहों से डिजिटल नक्शे बनाने के काम में देरी हुई है, पर अगले 2 सालों में इसे हर हाल में पूरा कर लिया जाएगा. इस योजना की रफ्तार देख कर तो यही लगता है कि सरकार की नजर में भी इस का खास मकसद नहीं?है, वरना अपनी बनाई योजना में ढिलाई बरतना कहां की अक्लमंदी है.                  

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मुहिम

युवकयुवतियों ने किया पौधरोपण

मुरादनगर (गाजियाबाद) : मौजूदा दौर के युवकयुवती भी पर्यावरण व पौधरोपण के प्रति खासे जागरूक रहते?हैं. यह बात काफी अच्छी कही जा सकती है. पेड़ लगाओ पेड़ बचाओ मुहिम के तहत मोरटा गांव के युवाओं ने कई गांवों में पौधरोपण किया. इस के साथ ही युवाओं ने तमाम लोगों को पर्यावरण के मामले में जागरूक भी किया ‘आप की आवाज’ संस्था के मनु त्यागी ने बताया कि मोरटा गांव के युवाओं ने नुक्कड़ नाटक के जरीए भी पेड़पौधों की अहमियत के बारे में लोगों को जानकारी दी. युवाओं ने गांववालों से पालीथीन का इस्तेमाल न करने की अपील की. युवाओं द्वारा गढ़ी, मोरटा, शाहपुर व गुलधर में सैकड़ों पौधे लगाए गए. पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी गांव के ही जागरूक युवाओं को दी जाएगी. पौधों के बारे में नई पीढ़ी की जागरूकता वाकई आने वाले वक्त के लिए अच्छे संकेत हैं. अगर हर युवा पेड़ लगाने की ठान ले तो फिजा ही बदल जाए.      

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कामयाबी

अब पेड़ पर उगेंगे टमाटर

देहरादून : उत्तराखंड जैव प्रौद्योगिक परिषद पेरू, ब्राजील, कोलंबिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में पाए जाने वाले टमरेलो यानी सोलेनियम वेक्टम प्रजाति के?टमाटर की खेती करने जा रहा है. उत्तराखंड में जल्द ही ऐसा टमाटर पैदा होगा जो पोषण तत्त्वों से तो भरपूर होगा ही साथ ही यह पेड़ पर उगेगा. इस टमाटर के पेड़ से 15 सालों तक पैदावार ली जाएगी. ऊधमसिंहनगर के पंतनगर स्थित जैव प्रौद्योगिक परिषद में टमाटर की पौध तैयार की जा रही?है.

निदेशक एमके नौटियाल के अनुसार पूरी मात्रा में विटामिन और फायबर के साथ ही इस टमाटर की कई दूसरी विशेषताएं भी सब्जी उत्पादकों के भरपूर मुनाफे का कारण बनेंगी. यह टमाटर इनसान की इम्युनिटी भी बढ़ाएगा. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इन की कीमत 1400 रुपए प्रति किलोग्राम?है. टमरेलो एक कारगर दवा भी है. इस के फल से कब्ज दूर होता है, वहीं यह शुगर और कोलेस्स्ट्राल को कंट्रोल करने के भी काम आता है.

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फायदा

ज्यादा मुनाफा देते हैं औषधीय पौधे

पटना : बिहार में देशी इलाज को बढ़ावा देने के लिए औषधीय पौधों की खेती से हर किसान को जोड़ने की मुहिम शुरू की गई?है. इस के तहत जड़ीबूटियों की खेती के फायदों के बारे में किसानों को जागरूक किया जा रहा है. कम जोत में भी औषधीय पौधों की खेती काफी मुनाफा देती है. अलगअलग औषधीय पौधों की खेती के लिए हर जिले में बाकायदा मिट्टी की जांच की जाएगी. इस जांच से यह पता चलेगा कि किस इलाके में किसकिस औषधीय पौधों की खेती की जा सकती है.

पायलट प्रोजेक्ट के तहत सब से पहले पटना से इस योजना की शुरुआत की जाएगी. पटना और आसपास के इलाकों में यह योजना कामयाब हुई तो बाकी जिलों में भी इसे शुरू किया जाएगा. गौरतलब है कि औषधीय पौधों से होम्योपैथी, आयुर्वेदिक और यूनानी इलाज की तमाम तरह की कारगर और खास दवाएं बनाई जाती हैं. औषधीय पौधों से करीब 6500 तरह की दवाएं बन चुकी हैं. औषधीय पौधों को बाहर से मंगाना बहुत ज्यादा महंगा पड़ता है. विदेशों में भी इन की बहुत ज्यादा मांग है.

स्वास्थ्य विभाग के अफसर हिमांशु राय ने बताया कि औषधीय पौधों से देशी इलाज की सैकड़ों कारगर दवाएं बनाई जाती?हैं. इन की खेती को बढ़ावा देने से जहां किसानों का मुनाफा बढ़ेगा, वहीं राज्य में औषधीय पौधों का उत्पादन भी बढ़ेगा.                    

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खोज

मंगल ग्रह की सब्जियां मुफीद

एम्सटर्डम : आबोहवा और रहनसहन के लिहाज से वैज्ञानिकों द्वारा अकसर सौरमंडल के तमाम ग्रहों की पड़ताल की जाती?है और जबतब नई सचाई का पता चलता रहता?है. इसी कड़ी में मशहूर ग्रह मंगल पर उगने वाली वनस्पतियों पर भी गौर किया गया. इसी खोज में पता चला कि वहां उगाई जाने वाली सब्जियां इनसान की सेहत के लिहाज से मुफीद हैं. हालैंड की वेजेनिजेन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह की मिट्टी में 10 किस्मों की सब्जियां उगाईं. इन सब्जियों में मूली व टमाटर जैसी सब्जियां शामिल थीं. हालांकि मंगल ग्रह की धरती पर शीशा, आर्सेनिक और पारा सरीखे नुकसानदायक तत्त्व मौजूद रहते हैं. यानी अगर कभी लोगों ने मंगल पर आशियाना बनाया, तो कम से कम तरकारियों की किल्लत नहीं होगी. ठ्ठ

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मुकाबला

बाहर का काटन घरेलू से सस्ता

नई दिल्ली : जब घर में चीज महंगी मिले और बाहर सस्ते में मौजूद हो तो बाजार की हालत पर फर्क पड़ेगा ही. आजकल घरेलू बाजार में काटन की कीमत में हो रहे इजाफे से परेशान यार्न बनाने वाली मिलें अब विदेश से सस्ता काटन मंगा रही?हैं. बाहरी यानी आयातित काटन के दाम घरेलू काटन के मुकाबले 2000 रुपए प्रति कैंडी (एक कैंडी =355 किलोग्राम)  कम हैं. बाहरी काटन के दाम घरेलू बाजार में 41000 रुपए प्रति कैंडी हैं, जबकि हिंदुस्तानी काटन के दाम 43000 रुपए प्रति कैंडी हैं. कनफेडरेशन आफ इंडियन टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज के मुताबिक इस साल अंदाजे से ज्यादा काटन आयात हो सकता?है. पहले के अंदाजे के मुताबिक इस साल भारत में 352 लाख बेल्स काटन उत्पादन की उम्मीद थी, मगर ताजा हालात के मुताबिक अब यह उत्पादन घट कर 340 से 345 लाख बेल्स रह सकता?है. पिछले दिनों काटन के दाम में करीब 7000 रुपए प्रति कैंडी का इजाफा हुआ, नतीजतन बाहरी काटन की कीमत घरेलू से कम हो गई.  ठ्ठ

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सुविधा

गन्ना किसानों को मिलेगी ड्रिप सिंचाई सुविधा

लखीमपुर: प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में अब गन्ना किसानों को भी अनुदान पर ड्रिप सिंचाई की सुविधा मिल सकेगी. पहली बार इस योजना में गन्ना किसानों को भी शामिल किया गया?है. अभी तक बागबानी एवं कृषि फसलों के लिए ही ड्रिप योजना का लाभ किसान पा रहे थे. प्रदेश में भी अन्य प्रांतों की तरह गन्ना फसल में ड्रिप सिंचाई पद्धति को अपना कर पानी की बचत की जानी है. इस के तहत यह सुविधा अब गन्ना किसानों को ही दिए जाने पर खास ध्यान दिया जा रहा?है.

निदेशक उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण ने जारी शासनादेश की प्रति कृषि निदेशक उत्तर प्रदेश व गन्ना आयुक्त को भेजी है. मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश शासन की अध्यक्षता में गठित प्रदेश स्तरीय सैक्शन कमेटी साल 2016-17 की कार्य योजना पेश की गई थी, जिस में 4828.94 लाख रुपए का अनुमोदन प्रदान कर दिया गया. ड्रिप सिंचाई कार्यक्रम के तहत कम दूरी वाली फसलों में गन्ना फसल को भी शामिल किया गया है. ड्रिप सिंचाई के लिए इच्छुक गन्ना किसान कृषि विभाग के वेब पोर्टल पर अपना पंजीकरण करा लें.

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना में गन्ना फसल में ड्रिप सिंचाई की सुविधा विकसित करने के लिए निर्धारित इकाई की लागत 1 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर आएगी. डीपीएपी क्षेत्र के लघु सीमांत किसानों को 76 फीसदी एवं गैर लघु सीमांत किसानों को 62 फीसदी अनुदान मिलेगा. अनुदान की यह सुविधा गैर डीपीएपी क्षेत्र के लघु सीमांत किसानों को 67 फीसदी एवं गैर लघु सीमांत किसानों को 56 फीसदी मिलेगी.

किसानों को बिना आनलाइन पंजीकरण के अनुदान की सुविधा मिल पाना संभव नहीं है. इच्छुक किसान शीघ्र पंजीकरण करा कर न सिर्फ जल संरक्षण पाएंगे, बल्कि फसल का बेहतर उत्पादन भी कर सकेंगे. ड्रिप सिंचाई से पौधों को उन की जरूरत के मुताबिक पानी आसानी से मिल सकेगा है.                    

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आरोप

मआवजा हड़पने का इलजाम

 गाजियाबाद : मेरठ और दिल्ली के दर्मियान बनने वाले एक्सप्रेसवे के लिए जमीन मुहैया कराने के बाद भी किसानों को जमीन का पैसा अभी तक नहीं मिलना है. प्रशासन की तरफ से किसानों को मुआवजा जारी किया गया, मगर बिचौलियों ने छलफरेब कर के ज्वाइंट खाते खुलवा कर उन के करोड़ों रुपए हथिया लिए. इस फरेब से प्रभावित किसानों ने एडीएम एलए दफ्तर में तैनात एक कर्मचारी पर मिलीभगत का आरोप लगा कर मुख्यमंत्री से मामले की छानबीन कराने की गुजारिश की है.पिछले दिनों आरडीसी के एक रेस्तरां में प्रेसवार्ता के दौरान रसूलपुर, सिकरोऔर कुशलिया गांवों के कई किसानों ने रुपए हड़पे जाने की बात कही. सभी किसानों ने गाजियाबाद और हापुड़ जिलों में ऐसे तमाम मामलों की जांच करने की जोरदार तरीके से मांग की.  

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खुराक

40 रुपए में खाना

गुड़गांव : तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की ‘अम्मां कैंटीन’ से नसीहत ले कर गुड़गांव नगर निगम भी गुड़गांव के लोगों को 40 रुपए में खाना/नाश्ता मुहैया कराने जा रहा है. 3 श्रेणियों में 450 कैलोरी से ले कर 1000 कैलोरी तक का खाना मुहैया कराने के लिए ई टेंडर जारी किए गए?हैं. नार्थ इंडिया मील लांच होने के 1 साल के भीतर 1 लाख लोगों के लिए नगर निगम खाना मुहैया कराएगा. नगर निगम सेहतमंद खाना लोगों को मुहैया कराना चाहता?है. इस के लिए कोई भी ऐसी कंपनी, जिसे 2 साल का लोगों को खाना मुहैया कराने का तजरबा हो, टेंडर डाल सकती?है. नगर निगम बेगमपुर खटौला में डेढ़ एकड़ जमीन रसोई बनाने के लिए मुहैया कराएगा.

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दिक्कत

नए नियमों से किसान परेशान

पटना : फसलबीमा योजना के नए नियमों से किसानों की परेशानियां बढ़ सकती हैं. अब इस योजना में प्राइवेट बीमा कंपनियों की ही चलेगी. अब तक सरकारी कृषि बीमा कंपनी एआईसी ही पूरी तरह से कृषि बीमा का काम करती थी. अब सरकार ने कई नई प्राइवेट कंपनियों के लिए भी फसलबीमा  करने के लिए दरवाजे खोल दिए हैं.

गौरतलब?है कि अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू की गई फसलबीमा योजना को बंद कर के नए सिरे से योजना को लागू किया गया है. बिहार में नई प्रधानमंत्री फसलबीमा योजना के साथ यूनिफायड पैकेज बीमा भी लागू किया गयाहै. इस के तहत किसानों को फसलबीमा के साथसाथ व्यक्तिगत बीमा भी कराना पड़ेगा. कुल 7 तरह के बीमा के पैकेज में किसानों को 2 तरह के बीमा को चुनना होगा. इस में फसलबीमा सभी किसानों को कराना जरूरी है और उस के साथ व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा, कृषि पंप सेट बीमा, छात्र सुरक्षा बीमा, कृषि ट्रैक्टर बीमा, प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा, आग एवं संबंद्ध बीमा में से कोई बीमा कराना पड़ेगा.                                             

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मदद

कमेटी करेगी किसानों की मदद

मोदीनगर (गाजियाबाद) : गन्ने का बकाया भुगतान न मिलने से परेशान गन्ना किसानों के लिए जल्दी ही एक कमेटी का गठन किया जाएगा.

यह कमेटी किसानों के बच्चों की तालीम, उन की बेटियों की शादियों और बीमारियों के इलाज वगैरह के लिए किसानों को जरूरी रकम मुहैया कराएगी.

ये बातें क्षेत्रीय रालोद विधायक सुदेश शर्मा ने एक पत्रकार वार्ता के दौरान कहीं. उन्होंने कहा कि इस कमेटी के बनने से किसानों के बच्चों की तालीम अधूरी नहीं रहेगी और उन की बेटियों की शादियां भी नहीं रुकेंगी. इस के अलावा कोई गंभीर रोग होने पर किसानों और उन के परिवार वालों के लिए माकूल इलाज का बंदोबस्त किया जाएगा. किसानों के लिए सूबे की सरकार ने हाल ही में 2000 करोड़ रुपए जारी किए हैं. यह रकम सूबे की सरकार चीनी मिलों से वसूलेगी. सुदेश शर्मा ने यह?भी कहा कि नगर की कई कालोनियों के लोग पिछले कई सालों से मकानों के?ऊपर से गुजर रही एचटी लाइन को हटाने हटाने की मांग करते आ रहे थे. अब विद्युत विभाग ने फफराना बस्ती, गुरुनानकपुरा, ब्रह्मपुरी, किदवईनगर आदि महल्लों से गुजर रही विद्युत लाइन को उतारने का काम चालू कर दिया है. कुल मिला कर यह कमेटी किसानों के लिए कारगर साबित हो रही है. गन्ना किसानों की तर्ज पर अन्य किसानों के लिए भी ऐसी ही कमेटियां बनाए जाने की जरूरत?है. क्योंकि आमतौर पर मासूम किसानों का कोई सच्चा हितैषी नहीं होता?है. नेता लोग तो चुनाव के दौरान ही बरसाती मेढ़कों की तर्ज पर नजर आते हैं और चुनाव खत्म होते ही गायब हो जाते?हैं. उन के वादे पटाखों की तरह बुझ जाते हैं.

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तनाव

हाईटेंशन लाइन से किसानों को टेंशन

मुरादनगर (गाजियाबाद) : बिजली की हाईटेंशन लाइन से प्रभावित 17 गांवों के किसानों ने भदौली गांव में पंचायत कर के आंदोलन की शुरुआत कर दी है. पंचायत में जल्द ही जमीन का वाजिब मुआवजा तय न होने पर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी गई है. परेशान किसानों का कहना है कि मुआवजा तय होने के बाद ही लाइन का काम शुरू होने दिया जाएगा.

पंचायत विकास संघर्ष समिति के सहयोग से की गई. समिति के सचिव सलेक ने जानकारी दी कि भदौली गांव में हाईटेंशन लाइन और बिजली के टावर लगाने में 17 गांवों की खेती की जमीन प्रभावित हो रही है. किसानों ने इसी सिलसिले में मुआवजे की मांग की है. सलेक ने बताया कि इस से पहले किसानों का 10 लोगों का प्रतिनिधिमंडल मेरठ के मंडलायुक्त आलोक सिन्हा और प्रदेश के ऊर्जा मंत्री से मिल कर उन्हें अपनी दिक्कतों के बारे में जानकारी दे चुका है. रालोद के जिलाध्यक्ष और पूर्व ब्लाक प्रमुख अजयपाल चौधरी का कहना है कि किसानों को बगैर किसी पूर्व सूचना के किसी बात के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता.उन्होंने कहा कि मुआवजा तय किए बिना विद्युत विभाग खेती की जमीन पर हाईटेंशन लाइन और बिजली के टावर किसी हालत में नहीं लगा सकता है. हाईटेंशन लाइन का मसला वाकई इलाके के किसानों के लिए टेंशन का मुद्दा बन गया है.

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मुहिम

विकसित होंगी मधुमक्खी कालोनियां

सतना : किसानों की आमदनी बढ़ाने की जुगत में लगी सरकार अब प्रदेश में मधुमक्खीपालन को बढ़ावा देने की कवायद में जुट गई है. प्रदेश में पहली बार बागबानी मिशन के तहत किसानों को मधुमक्खीपालन के लिए सब्सिडी दी जाएगी. इस नई योजना के तहत उद्यानिकी विभाग जिले में 100 मधुमक्खी कालोनियां बनाएगा. पहले चरण में प्रशिक्षित किसानों को मौका दिया जाएगा. मधुमक्खी की 1 कालोनी तैयार करने के लिए 8 बक्से दिए जाएंगे. मधुमक्खी कालोनी विकसित करने, लकड़ी के बक्से और शहद निकालने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले उपकरण किट पर सरकार किसानों को 40 फीसदी सब्सिडी देगी. मधुमक्खीपालन की योजना जिले में पहली बार शुरू की जा रही है. उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मधुमक्खीपालन किसानों के लिए अतिरिक्त आय का साधन साबित होगा. किसान खेत की मेंड़ों पर भी मधुमक्खीपालन कर सकते हैं. इस योजना से बेरोजगार नौजवानों को रोजगार मिलेगा और खेतों से आय भी बढ़ेगी.

मधुप सहाय, भानु प्रकाश व बीरेंद्र बरियार

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सवाल किसानों के

सवाल : गोभी की खेती की जानकारी दें. गोभी के हाइब्रिड बीजों की जानकारी भी दें?

-कुशल शर्मा, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश

जवाब : फूलगोभी की खेती की नर्सरी जून से ले कर दिसंबर तक लगाई जा सकती?है. इस की कुछ हाईब्रिड प्रजातियां निम्न?हैं:

अगेती : समर किंग, पावस, समर स्पेशल, हाईब्रिड 212. मध्यम : पूसा हाइब्रिड 2, ईएस 67, विंटर किंग. पछेती?: एनएस 90, बसंती, लैटमैन, सनग्रोलेट, स्नोवाल.

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सवाल : सूरजमुखी की खेती के बारे में बताएं. सोयाबीन की तुलना में क्या सूरजमुखी की फसल जल्दी होती है?

-एसएमएस द्वारा

जवाब : सूरजमुखी एक उदासीन फसल है. साल में 2-3 बार इस की खेती की जा सकती?है. यह सोयाबीन के मुकाबले ज्यादा लाभ देती है. वैसे दोनों फसलें समान समय पर तैयार होती हैं.

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सवाल : मैं 24 फुट × 12 फुट × 15 फुट साइज का फार्म पौंड बनवाना चाह रहा हूं, जिस में बौरवेल का पानी जमा होगा. क्या इस में मछलीपालन हो सकता है?

-प्रह्लाद, एसएमएस द्वारा

जवाब : फार्म पौंड में आप मछलीपालन कर सकते?हैं. मछलीपालन के साथ बतखपालन, मुरगीपालन, सुअरपालन या बकरीपालन कर के ज्यादा लाभ कमाया जा सकता?है.

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सवाल : अरहर के साथ मक्का की इंटरक्रापिंग में कोई दिक्कत तो नहीं होती?

-एसएमएस द्वारा

जवाब : अरहर के साथ मक्का की अंतर फसल का कोई तालमेल नहीं होता?है. मक्का को सिंचाई की काफी जरूरत होती?है, जबकि अरहर को कम सिंचाई की जरूरत होती?है.

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सवाल : कड़कनाथ मुरगी के बारे में जानकारी दें?

-मुकेश, एसएमएस द्वारा

जवाब : कड़कनाथ मुरगी देशी नस्ल की होती?है. प्रजाति के लिहाज से इस की वृद्धिदर कम होती?है. इस का अंडा उत्पादन भी कम होता है. इन मुरगियों का रंग काला होता?है. इन का सालाना अंडा उत्पादन करीब 60-80 अंडे का?है.

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सवाल : खीरे की खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दें. क्या इस की खेती सारे साल की जाती है? इस की खासखास प्रजातियां कौनकौन सी हैं?

-विंधवासिनी, बस्ती, उत्तर प्रदेश

जवाब : खीरे की खेती साल भर की जा सकती है. आमतौर पर फरवरीमार्च और जूनजुलाई में खीरे की बोआई की जाती?है. इस के अलावा नदियों के किनारे नवंबर में और पहाड़ों पर अप्रैलमई में खीरे की बोआई की जाती है और पोलीहाउस में पूरे साल खीरे की खेती की जाती है. जापानीज लांगग्रीन, पूसा संयोग, हिमाणनी, शीतल, मालिनी व पूसा उदय खीरे की उन्नतशील प्रजातियां हैं. पोली हाउस के लिए क्यान व हिलटन प्रजातियां अच्छी रहती?हैं.

डा. अनंत कुमार, डा. प्रमोद मडके, डा. हंसराज सिंह

कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद

बड़े काम का धान रोपने का यंत्र

आमतौर पर धान की खेती करने के लिए धान पौध की रोपाई परंपरागत तरीकों से की जाती है. हाथ से रोपाई करने का काम बहुत थकाने वाला होता है. धान की रोपाई में कई घंटों तक झुक कर रोपाई करनी होती है, जिस से बहुत परेशानी होती है. दूसरी तरफ आजकल मजदूरों की भी काफी कमी है. इन सब परेशानियों से बचने के लिए अब ज्यादातर किसान धान की रोपाई हाथ की जगह मशीनों से कर रहे हैं. धान की रोपाई के लिए कई तरह के रोपाई यंत्र बाजार में मौजूद हैं. इन में हाथ से ले कर पैट्रोलडीजल से चलने वाले प्लांटर तक मौजूद हैं, जो 4, 6 और 8 कतारों में धान की रोपाई करते हैं. इन से रोपाई करने पर समय की बचत होती है और लागत भी कम आती है. रोपाई यंत्र एक निश्चित दूरी पर पौधों की रोपाई करता है, जिस से पैदावार अच्छी मिलती है.

धान रोपाई की सेल्फ प्रोपैल्ड मशीन (चीनी डिजाइन)

आज के समय में किसानों में यह यंत्र खास पसंद किया जा रहा है. यह 8 कतारों में धान की बोआई करता है. यह धान की पौध को उठा कर बोआई करता है. इस में 3 एचपी का डीजल इंजन लगा होता है. इस से कतार से कतार की दूरी 10-12 सेंटीमीटर रखी जा सकती है. साथ ही, मशीन के हैंडल को दाएंबाएं भी घुमाया जा सकता है व पौध रोपने के लिए यंत्र की गहराई को भी बढ़ायाघटाया जा सकता है. 1 दिन में यह 1 हेक्टेयर खेत में धान की रोपाई कर सकता है. इस की कीमत करीब 1,25,000 रुपए के आसपास है.

जापानी पैडी प्लांटर

इस जापानी पैडी प्लांटर से मात्र 1 लीटर पैट्रोल से महज डेढ़ घंटे में 1 एकड़ खेत में धान की रोपाई की जा सकेगी. इस मशीन की खासीयत यह है कि अकेला किसान ही इस मशीन को चला सकता है. मध्य प्रदेश सरकार ने पैडी प्लांटर मशीन के जरीए धान की रोपाई करने को बढ़ावा देने के लिए खास योजना भी बनाई है. मध्य प्रदेश के कृषि विभाग द्वारा इस मशीन का डेमो भी दिया जा रहा है. मध्य प्रदेश के कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार अभी पैडी प्लांटर की कीमत 2 लाख, 50 हजार रुपए है. सरकार किसानोें को 1 लाख, 44 हजार रुपए तक की अधिकतम सब्सिडी देगी. किसानों को महज 1 लाख, 06 हजार रुपए ही देने होंगे.

पैडी प्लांटर से संबंधित अधिक जानकारी के लिए कुबोटा स्वप्निल से उन के मोबाइल नंबर पर 08754569228 पर बात कर सकते हैं.

महेंद्रा एंड महेंद्रा का पैडी प्लांटर

कृषि यंत्रों को बनाने वाली इस कंपनी की भी धान रोपाई की स्वचालित मशीन मौजूद है. यह मशीन 1 घंटे में 1 एकड़ खेत में धान की रोपाई करती है, जिस में 2 लीटर पैट्रोल की खपत होती है. इस मशीन को चलाने के लिए 2 व्यक्तियों की जरूरत होती है.

आरसी एग्रो का पैडी प्लांटर

इस कंपनी में काम करने वाले आशीष गुप्ता ने बताया कि उन के पास इस धान रोपाई यंत्र के 2 मौडल मौजूद हैं. पहला मौडल 6 लाइनों में धान की रोपाई करता है. रोपाई करते समय पौधे से पौधे की दूरी घटाईबढ़ाई जा सकती है, जो अधिकतम 12 इंच तक कर सकते हैं. इस मौडल में 4 स्पीड गियर हैं. इस मशीन में 6.5 हार्सपावर का डीजल इंजन लगा होता है. मशीन से काम करने के लिए 3 लोगों की जरूरत होती है. एक मशीन को चलाता है और उस के सहयोगी रोपाई की देखभाल के लिए साथ रहते हैं. तीनों के लिए प्लांटर पर बैठने की जगह भी होती है. मशीन की कीमत 1 लाख, 60 हजार रुपए से ले कर 1 लाख, 80 हजार रुपए तक है.

दूसरा मौडल 8 लाइनों में रोपाई करता है. इस मौडल में भी पौधे से पौधे की दूरी घटाईबढ़ाई जा सकती है. इस मशीन की कीमत 1 लाख, 85 हजार रुपए है. मशीन में हाइड्रोलिक सिस्टम होने के कारण कीमत में उतारचढ़ाव होता है.

आरसी एग्रो कंपनी पारंपरिक खेती को आधुनिक खेती की ओर अग्रसर करने की दिशा में काम कर रही है. यह कंपनी किसानों के लिए कंबाइन हार्वेस्टर, हैंड हार्वेस्टर व बेलर (बंडल बनाने की मशीन) जैसे कृषि यंत्र बनाती है. अधिक जानकारी के लिए किसान कंपनी के फोन नंबरों 91-7714062177, 2582431 व मोबाइल नंबर 9425513061 पर बात कर सकते हैं या कंपनी के कर्मचारी आशीष गुप्ता से उन के मोबाइल नंबर 09827162692 पर संपर्क कर सकते हैं.

गरमी का कवच है प्याज

प्याज काटते वक्त अकसर आंखों में आंसू आ जाते हैं, मगर आंखें भर देने वाला प्याज गुणों से भी भरपूर होता है. इस में पाए जाने वाले औषधीय तत्त्व सेहत के लिहाज से लाजवाब होते हैं. गरमी के जालिम मौसम में कच्चे प्याज का असर किसी अमृत से कम नहीं होता. प्याज को सही मानों में गरमी का कवच कहा जा सकता है. यह हमारे शरीर को गरमी के मौसम में?ठंडक पहुंचाता है. इस की असरदार तासीर गरमी की तमाम तकलीफों को दूर करने की कूवत रखती?है, खासतौर पर मईजून की भयंकर लू के खिलाफ प्याज का कवच बेहद कारगर साबित होता?है. खाने में रोजाना कच्चा प्याज शामिल करने से लू लगने का खतरा जड़ से गायब हो जाता?है.

वैसे तो तमाम लोग सलाद में कच्चा प्याज शौक से खाते?हैं, पर कुछ लोग ऐसे भी होते?हैं, जिन्हें कच्चा प्याज खाने से परहेज होता है. दरअसल, ऐसे लोग चाह कर भी कच्चा प्याज नहीं खा पाते. कच्चा प्याज खाने से ऐसे लोगों का जी कच्चाकच्चा सा होने लगता?है. ऐसे नाजुक मिजाज लोग कच्चे प्याज की महक को झेल नहीं पाते. इस में दिक्कत वाली कोई बात नहीं है. ऐसे लोगों के लिए प्याज का लाभ उठाने का दूसरा रास्ता हाजिर है. साबुत प्याज को छिलके सहित थोड़ा सा बेक कर लें. इस के बाद उसे छील कर सलाद के रूप में खाएं. बेक किए गए प्याज का स्वाद काफी अच्छा लगता है.

वैसे प्याज की गंध से हैरानपरेशान होने वाले लोग ज्यादा नहीं होते, लिहाजा यह मसला बहुत कम सामने आता?है. आमतौर पर तो खूबियों से भरपूर प्याज को लोग बहुत ही शौक से खाते?हैं. एक गोपाल मामा थे. उन का लंच और डिनर देख कर लोग दंग रह जाते थे, क्योंकि दोनों वक्त वे 5-5 प्याज 2-2 टुकड़ों में कर के अपनी प्लेट में रखते?थे और दालचावल सब्जीरोटी के साथ सारा प्याज जायका लेले कर चट कर जाते थे. यकीनन गोपाल मामा की सेहत बहुत अच्छी थी और कभी किसी ने उन्हें बीमार पड़ते नहीं देखा. हकीकत तो यह है कि बगैर प्याज के लजीज नमकीन पकवानों की कल्पना भी नहीं की जाती. मटनचिकन व फिश से जुड़े तमाम पकवानों में भरपूर मात्रा में प्याज का इस्तेमाल किया जाता है. उम्दा किस्म की सभी सब्जियों में प्याज डाला जाता?है. हर तरह के सलाद में जरूरी तौर पर प्याज शामिल रहता?है. इसी तरह?भीगे मौसम में बनने वाले पकौड़ों में भी प्याज अव्वल नंबर पर पसंद किया जाता?है. जब प्याज 100 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है, तब भी प्याज के कायल उस के बगैर रह नहीं पाते और किसी नशेड़ची की तरह अपनी गाढ़ी कमाई महंगे प्याज पर लुटाते?हैं.

झुग्गीझोंपड़ी में रहने वाले लोग भी और चाहे कुछ न खाएं पर मोटीमोटी रोटियों के साथ प्याज खाने से नहीं चूकते. भले ही उन्हें कच्चे प्याज के औषधीय गुणों की जानकारी नहीं होती, पर वे उसे जानेअनजाने में खाते छक कर हैं. अलबत्ता जब प्याज बहुत महंगा हो जाता है, तब उन्हें उसे न खा पाने का बहुत ही ज्यादा मलाल रहता है.

औषधीय गुण

लहसुन की तरह ही प्याज में औषधीय गुण बेहिसाब होते?हैं. पुराने जमाने में प्याज का इस्तेमाल प्लेग और कालरा जैसी खतरनाक बीमारियों के इलाज में किया जाता था. यह इलाज खासा कारगर साबित होता था. इतिहास के मुताबिक रोमन सम्राट नेरो सर्दी के मौसम में?ठंड से बचाव के लिए प्याज का सेवन करते थे. प्याज की अहमियत से जुड़े ऐसे और भी वाकए इतिहास में दर्ज?हैं.

गांवों में आज?भी प्याज का तरहतरह से इस्तेमाल किया जाता है. गांव के लोग आमतौर पर डाक्टरी इलाज कम पसंद करते हैं, लिहाजा प्याज जैसी चीजें उन्हें काफी रास आती हैं. खांसी व सर्दीजुकाम जैसी तकलीफों में प्याज को काफी कारगर माना जाता है. वैद्य लोग लू व अस्थमा जैसी तकलीफों के इलाज में भी प्याज का बाकायदा इस्तेमाल करते हैं. गांवों में प्याज को लू के खिलाफ बेहद कारगर माना जाता है. लू से बचने के लिए गांव के लोग अपनी जेब में साबुत प्याज ले कर घर से बाहर निकलते हैं. अगर लू लग जाती?है, तो प्याज और पोदीने का अर्क बतौर दवा बेहद कारगर साबित होता?है.

वैज्ञानिकों के मुताबिक कच्चा प्याज खाना ज्यादा फायदेमंद होता है. भले ही इस का जायका कुछ तीखा होता है, पर इस का असर कमाल का होता है. कच्चे प्याज में आर्गेनिक सल्फर कंपाउंड और एक किस्म का तेल होता है. ये चीजें सेहत के लिहाज से फायदेमंद होती हैं. ये खूबियां पके प्याज में खत्म हो जाती?हैं.

न्यूट्रीशनिस्ट कविता देवगन के मुताबिक आंत की सेहत के लिए प्रोबायोटिक जरूरी?है. मगर प्रोबायोटिक को पचाने के लिए प्रीबायोटिक की जरूरत होती है और प्रीबायोटिक का काम करते?हैं प्याज, लहसुन, राई और जौ. इसीलिए प्याज की अहमियत और बढ़ जाती है. प्याज में क्रोमियम भी होता?है, जो ब्लडशुगर को नियमित करता है और डायबिटीज से हिफाजत करता?है. इस में पाया जाने वाला बायोटिन त्वचा, बाल, लीवर व नर्वस सिस्टम के लिए जरूरी होता?है. बायोटिन आंखों के लिए भी जरूरी?है. लिहाजा ज्यादा से ज्यादा कच्चा प्याज खाना चाहिए. अगर कच्चा प्याज खाना हो, तो उसे काटने के बाद फौरन खा लेना चाहिए, क्योंकि कुछ देर रखा रहने से उस का असर कम हो जाता है.

धान की वैज्ञानिक खेती

गलत तरीके से सिंचाई करने और रासायनिक उवर्रकों के अंधाधुंध इस्तेमाल की वजह से धान के खेतों से नाइट्रस आक्साइड और मीथेन गैसें निकलती हैं. ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देने में मीथेन का 15 फीसदी और नाइट्रस आक्साइड का 5 फीसदी योगदान होता है, जिसे निम्न विधि द्वारा कम किया जा सकता है:

* नाइट्रीफिकेशन व यूरियेज अवरोधक का इस्तेमाल कर के. धान की खेती में नाइट्रीफिकेशन व यूरियेज अवरोधकों से नाइट्रीफिकेशन/डीनाइट्रीफिकेशन प्रभावित होता है. इस के लिए नीमतेल, अमोनियम थायोसल्फेट, थायोयूरिया, नीमतेल लेपित यूरिया का इस्तेमाल करते हैं.

* एकीकृत पोषण प्रबंधन द्वारा टिकाऊ फसल उत्पादन के लिए एकीकृत पोषण प्रबंधन के तहत संतुलित खाद उर्वरकों का इस्तेमाल करना चाहिए.

* जैविक उर्वरकों का इस्तेमाल कर के.

* कम पानी में एरोबिक धान उगाने की विधि द्वारा.

प्रजाति का चयन

जल्दी पकने वाली : नरेंद्र 80, पंत धान 12.

मध्यम समय वाली : पंत 10, पंत 4, सरजू 52, पूसा 44.

खुशबू वाली : पूसा संकर धान

10, पूसा 1121 (सुगंधा 4) बासमती, पूसा 217, पूसा बासमती 1, पूसा 1509, पूसा बासमती 6, बल्लभ बासमती 21,22, बासमती सीएसआर 30.

संकर धान : पंत संकर 1, नरेंद्र संकर 2, प्रोएग्रो 6111, संकर धान 3, प्रोएग्रो 6201, प्रोएग्रो 6444.

बीज दर : धान की प्रजाति के मुताबिक बीज की दर तय की जाती है. सामान्य प्रजाति के लिए 30-35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, खुशबूदार प्रजाति के लिए 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर व संकर प्रजाति के लिए 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज की जरूरत पड़ती है.

बीज उपचार : 2 फीसदी साधारण नमक के घोल में बीज डालने पर पतले व हलके बीज पानी की ऊपरी सतह पर तैरने लगते हैं, जबकि स्वस्थ बीज नीचे बैठ जाते हैं. स्वस्थ बीजों को 2-3 बार साफ पानी से धोएं. 25 किलोग्राम बीजों के लिए 19 ग्राम एमईएमसी 3 फीसदी और 15 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन या 40 ग्राम प्लांटोमारलीन को 45 लीटर पानी में मिलाएं और इस घोल में बीजों को रात भर भिगोएं. जीवाणु झुलसा से बचाव के लिए 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बंडाजिम से प्रति किलोग्राम की दर से बीजों को उपचारित करने के बाद छाया में गीले बोरे में 24-36 घंटे तक रखें और जमाव होने के बाद पौधशाला में डालें. उर्वरक प्रबंधन : अच्छी पैदावार के लिए 50 फीसदी रासायनिक खाद, 25 फीसदी कंपोस्ट हरी खाद व 25 फीसदी जैव उर्वरक इस्तेमाल करना चाहिए. कंपोस्ट खाद खेत की आखिरी जुताई के समय डालें. रासायनिक खादों में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस, पोटाश व जिंक की पूरी मात्रा रोपाई के वक्त डालें.  बाकी नाइट्रोजन 2 बार में डालें. जैविक उर्वरक व हरी खाद का सही तरीके से इस्तेमाल करने पर नाइट्रोजन की मात्रा 50-55 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर कम कर देनी चाहिए.

रोपाई : जून में 25-30 दिनों की पौध की 20×15 सेंटीमीटर दूरी पर रोपाई करनी चाहिए. जुलाई के दूसरे पखवाड़े में पौध की 20×10 सेंटीमीटर दूरी पर रोपाई करनी चाहिए. पौधों को 2-3 सेंटीमीटर गहराई पर रोपें. एक जगह पर 2-3 पौधों की रोपाई करनी चाहिए.

खास बीमारियां

झोंका : पत्तियों पर नाव जैसे धब्बे बनते हैं, जो गाढ़े भूरे व किनारे पर सलेटी रंग के होते हैं.

रोकथाम : बोने से पहले बीजों को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम कार्बंडाजिम से प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. खड़ी फसल में कार्बंडाजिम या हिनोसान की 1.0 किलोेग्राम मात्रा 800-1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से 10-12 दिनों के अंतराल पर 2-3 बार छिड़कें या ट्राइसाइक्लाजोल की 600-700 ग्राम मात्रा 800-1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

शीथ झुलसा : तने के ऊपर लिपटी पत्ती किनारे से गहरी भूरी हो जाती है और बीच का भाग हलके रंग का हो जाता है.

रोकथाम : ट्रोपिकोनाजोल 25 ईसी की 500 मिलीलीटर मात्रा या कार्बंडाजिम की

1 किलोग्राम मात्रा का 800-1000 लीटर पानी में घोल बना कर 10 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें.

बकाने : पौधों में जिबे्रलिम अम्ल हारमोंस की मात्रा बढ़ने के लक्षण नजर आते हैं और पौधा लंबा हो जाता है.

रोकथाम : बाविस्टीन के 0.1 फीसदी घोल में 36 घंटे भिगो कर बीजों का उपचार करें.

एमीसान दवा की 50 ग्राम मात्रा 100 लीटर पानी में मिला कर 1 क्विंटल बीजों

को 24 घंटे तक भिगोएं. अंकुरण के बाद बोआई करें.

जीवाणु झुलसा : पत्तियां किनारे से एकदम सूखने लगती हैं. सूखे हुए किनारे टेढ़ेमेढ़े हो जाते हैं.

रोकथाम : खेत से पानी निकाल दें. नाइट्रोजन का इस्तेमाल बंद कर दें. खड़े खेत में 15 ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लीन व 800 ग्राम कापर आक्सीक्लोराइड को 800-1000 लीटर पानी में घोल बना कर 2-3 बार छिड़काव करें.

जीवाणु पत्ती अंगमारी : इस रोग के लक्षण पत्तियों के ऊपरी भाग से शुरू होते हैं. रोग के जीवाणु पौधों की जड़ों, तनों और पत्तियों में घुस कर नुकसान पहुंचाते हैं.

रोकथाम : रोगरोधी किस्मों का चयन करें. संतुलित उर्वरक इस्तेमाल करें. कापर आक्सीक्लोराइड का पर्णीय छिड़काव करें. 75 किलोग्राम एग्रीमाइसीन व 500 ग्राम ब्लाइटाक्स का 600-700 लीटर पानी में घोल बना कर 10-12 दिनों के अंतराल पर  2-3 बार छिड़काव करें.

टुगो : यह वायरस सावई, सांवा आदि घासों पर रहता है. यह वायरस रोगी पौधों से स्वस्थ पौधों पर हरे माहू के नरमादा व निम्फ द्वारा पहुंचता है. जब हरा फुदका रोगी पौधों की पत्तियां खाता है तो उस समय वायरस उस के मुंह से चिपक जाते हैं.

रोकथाम : बोआई से पहले 30-35 किलोग्राम कार्बोफ्यूरान 3 जी या 12-15 किलोग्राम फोरेट 10 जी प्रति हेक्टेयर की दर से ऊपरी 2-3 सेंटीमीटर मिट्टी में मिला दें. बोआई के 15-25 दिनों बाद एमिडाक्लोप्रिड की 0.5 मिलीलीटर मात्रा का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें.

नेमेटोड : पौधों पर इस के लक्षण साफ नहीं दिखाई पड़ते हैं. केवल पौधों की बढ़वार कम हो जाती है. रोगी जड़ों पर दूसरे कवक व जीवाणु का हमला बढ़ जाता है, जिस से जड़ें सड़ जाती हैं.

रोकथाम : पौधशाला में 3 ग्राम फ्यूराडान 3जी का प्रतिवर्ग मीटर की दर से इस्तेमाल करें. इस से नेमेटोड पौधों की जड़ों में नहीं घुस पाएंगे.

नीम की फलियों की 100-120 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें. फसलचक्र अपनाएं और गरमी की गहरी जुताई करें.

खैरा रोग : यह जस्ते की कमी की वजह से होता है. इस से पत्तियां पीली हो जाती हैं और उन पर कत्थई रंग के धब्बे पड़ जाते हैं.

रोकथाम : 5 किलोग्राम जिंक सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया व 2.5 किलोग्राम बुझे चूने को 800-1000 लीटर पानी में मिला कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

सफेदा रोग : यह रोग लौह तत्त्व की कमी की वजह से होता है.

रोकथाम : इस रोग के इलाज के लिए 5 किलोग्राम के 2 सल्फेट, 20 किलोग्राम यूरिया और 2.5 किलोग्राम बुझे चूने को 800-1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

प्रमुख कीट

तना छेदक : इस की सूडि़यां ही नुकसानदायक होती हैं. पूरी तरह विकसित सूंड़ी हलके पीले शरीर और नारंगी सिर वाली होती है.

रोकथाम : ट्राइकोग्रामा चीलोसिस के

5 कार्ड (20000 अंडे प्रति कार्ड) प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई के 30 दिनों बाद हर हफ्ते इस्तेमाल करें.

फ्रिप्रोनील 5 एसएल की 500 मिलीलीटर मात्रा या कोरोजन की 100 मिलीलीटर मात्रा 800-1000 लीटर पानी में घोल कर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

पत्ती लपेटक : इस कीट से बचाव के लिए इंडोसल्फान 35 ईसी / क्यूनालफास 1.25 लीटर / कारटाफ का इस्तेमाल करें.

गंधीबग : शिशु व प्रौढ़ दोनों बाली की दुग्धावस्था में रस चूसते हैं.

रोकथाम : खेत से खरपतवार निकाल दें. मैलाथियान 5 फीसदी/फनवेलटेट 0.4 फीसदी की 20-25 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें.

सैनिक कीट : इस की सूडि़यां हानिकारक होती हैं. ये दिन में दरारों में छिपी रहती हैं और रात में पत्तियां खाती हैं.

रोकथाम : इंडोसल्फान 4 डी/ क्यूनालफास 1.5 डी की 25-30 किलोग्राम मात्रा का प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.    

 

डा. हंसराज सिंह, डा. विपिन कुमार, डा. अनंत कुमार व डा. पीके मडके

(कृषि विज्ञान केंद्र, मुरादनगर, गाजियाबाद)

मूंगफली से खुशहाली आई

राजस्थान सूबे के जोधपुर जिले के फलौदी इलाके के किसान मांगीलाल10वीं तक पढ़ाई करने के बाद खेती के काम में जुट गए. 40 साल के मांगीलाल के पास 200 बीघे जमीन है. वे इस में मूंगफली, कपास, मूंग, मोठ, बाजरा, जीरा व मेथी की फसलें लेते हैं. सब से ज्यादा 60 बीघे खेत में मूंगफली की फसल की बोआई करते हैं. 10 साल पहले जब उन्होंने मूंगफली की खेती की शुरुआत की थी, तब उत्पादन कम मिलता था. मूंगफली में कीटरोग व कई दूसरी समस्याएं थीं. समस्याओं की जानकारी कर के उन्होंने अपने खेत में नवाचार अपनाए. नतीजतन अब मूंगफली सब से ज्यादा फायदेमंद फसल साबित हो रही है.

मांगीलाल ने पहले मूंगफली के अच्छे किस्म के बीज एचएनजी 10 व जीजी 20 उर्द्ध विस्तारी किस्मों की बोआई की. उन्होंने रोगी बीजों को निकाल कर स्वस्थ बीजों को बीटावेक्स से 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोआई की. इस उपचार से मूंगफली में कालर राट रोग पर काबू पाया. मांगीलाल के पास बीज उपचार करने का ड्रम है, इसलिए पड़ोसी किसान भी बीज उपचार के लिए उन के पास आते हैं. मांगीलाल उन को बीज उपचार की सेवा मुहैया कराते हैं. फलौदी लोहावट इलाके में सफेद लट का प्रकोप बढ़ रहा है. इस की रोकथाम के लिए मांगीलाल ने बीजों को क्लोरोपाइरीफास 5 मिलीलीटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार कर के राइजोबियम कल्चर की 600 ग्राम मात्रा से प्रति हेक्टेयर की दर से बीजों को उपचारित करने के बाद बोआई की. बोआई से पहले खेत में 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सम का इस्तेमाल किया व 1 ट्राली गोबर की खाद और 20 किलोग्राम सुपर फास्फेट प्रति बीघा की दर से डाला. कुछ खेतों में जड़गलन से घेरे पड़ने वाली बीमारी हो गई थी. इसे खत्म करने के लिए ट्राइकोडर्मा विरिडी की ढाई किलोग्राम मात्रा को 100 किलोग्राम गोबर की खाद में 15 दिनों तक रखने के बाद प्रति हेक्टेयर की दर से खेत में डाला.

मांगीलाल के 2 ट्यूबवैल हैं. पानी बचाने के लिए उन्होंने मूंगफली में फव्वारा सिंचाई लगाई हुई है. मांगीलाल की खेती देख कर पड़ोसी किसानों ने भी उन से फव्वारा सिंचाई लगवाई. वे निराई, गुड़ाई व खरपतवार हटाने का काम हाथ से करते हैं. मांगीलाल मूंगफली की खड़ी फसल में सफेद लट का प्रकोप होने पर क्लोरोपायरीफास 20 ईसी की 4 लीटर मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के साथ डाल कर उस की रोकथाम करते हैं. कुछ इलाकों में उन्होंने मेटाराइजम मित्र फफूंद बोआई से पहले खेत में मिलाई. वहां भी सफेद लट की रोकथाम हुई.

वे धीरेधीरे पूरे इलाके में जैविक उपचार से कीटों की रोकथाम करेंगे. खड़ी फसल में टिक्का रोग का प्रकोप होने पर वे फफूंदनाशी मैंकोजेब 0.2 फीसदी या कार्बंडाजिम 0.05 फीसदी के छिड़काव से रोकथाम कर लेते हैं.

बोआई से पहले मांगीलाल ने भूमि की जांच कराई. जिन खेतों में लोहे की कमी थी, वहां बोआई से पहले हरा कसीस यानी फेरस सल्फेट 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल किया, जिस से पीलिया रोग से बचाव हो गया.

मूंगफली की 80 फीसदी फलियां पकने और पत्तियां पीली पड़ने पर मांगीलाल खुदाई कर लेते हैं. पौधे उखाड़ने के बाद ढेर बना कर 7-10 दिनों तक धूप में सुखाते हैं. उस के बाद मूंगफली की फलियों को तोड़ कर अलग कर लेते हैं. पौधे निकालने के बाद भी कई फलियां जमीन में रह जाती हैं, उन्हें मूंगफली चुगाई की मशीन (चाल) से जमीन की छनाई कर के जमा कर लिया जाता है. इस मशीन से चुगाई करने के बाद मूंगफलियां जमीन के अंदर नहीं रहती हैं. यह मशीन 1 घंटे में 2 बीघे जमीन की छनाई कर के मूंगफलियां इकट्ठी कर लेती है. छनाई करने के बाद मूंगफलियों को थ्रेसर से साफ कर के बोरियों में भर दिया जाता है.

मांगीलाल बताते हैं कि जब  मूंगफली की फसल बाजार में आती है, तब भाव कम हो जाता है. इसलिए मांगीलाल जयपुर मंडी और गुजरात मंडी ले जा कर अच्छे भाव से मूंगफली बेचते हैं. मूंगफली का उत्पादन 5 से 6 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होता है. मांगीलाल के खेत में औसतन 5 क्विंटल प्रति बीघा मूंगफली पैदा होती है. उन्हें लगभग 25 हजार रुपए प्रति बीघा आमदनी हो जाती है. इस के साथ ही मूंगफली का चारा भी बहुत उपयोगी होता है. यह गायों व अन्य पशुओं का पौष्टिक चारा होता है.

मूंगफली का चारा भी लगभग 4 से 5 क्विंटल प्रति बीघा मिल जाता है, जिस से 500 रुपए प्रति क्विंटल की दर से अलग से आमदनी होती है. मूंगफली की फसल के बाद जमीन उपजाऊ होती है व दूसरी फसल अच्छी होती है.

मांगीलाल बताते हैं कि उन के पड़ोसी किसान भी नवाचार अपना कर मूंगफली की खेती को फायदेमंद बना रहे हैं. फलौदी लोहावट इलाके के तमाम लोग गांवों में मूंगफली की खेती को अपना कर अच्छी कमाई कर रहे हैं. मूंगफली से पूरे इलाके में खुशहाली आई है और किसानों की आमदनी बढ़ी है.

ज्यादा जानकारी के लिए किसान मांगीलाल के मोबाइल नंबर 9413522351 और लेखक के मोबाइल नंबर 9414921262 पर संपर्क कर सकते हैं.

वैज्ञानिक विधि से फल उद्यान लगाएं

फलों के बाग लगाना लोगों का शौक भी होता है और आमदनी का अच्छाखासा जरीया भी साबित होता है. मगर बगैर पूरी जानकारी के बाग लगाना मुनासिब नहीं होता. पूरी पड़ताल कर के वैज्ञानिक तरीके से बाग लगाने में ही ज्यादा भलाई है. उत्पादन और जनसंख्या के हिसाब से हमें केवल 48 ग्राम फल और 136 ग्राम सब्जियां ही प्रति व्यक्ति प्रतिदिन मिल रही?हैं. फलों का उत्पादन देश की जनता की जरूरत के हिसाब से नहीं हो पा रहा?है. उत्पादन बढ़ाने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा रकबे में बाग लगाए जाएं और उन स्थानों का सही इस्तेमाल किया जाए, जहां दूसरी खेती नहीं की जा सकती है.

फलों के बाग की योजना : ज्यादातर फलों के पेड़ लंबे समय के लिए होते?हैं. इसलिए बाग इस तरह लगाए जाएं ताकि उन से फायदा मिलता रहे, देखने में अच्छा लगे, देखभाल में कम खर्च हो, पेड़ स्वस्थ रहें और बाग में मौजूद साधनों का पूरा इस्तेमाल हो सके. उद्यान यानी बाग की योजना इस प्रकार की होनी चाहिए कि हर फल वाले पेड़ को फैलने के लिए सही जगह मिल सके व फालतू जगह नहीं रहे और हर पेड़ तक सभी सुविधाएं आसानी से पहुंच सकें.

फलों के उत्पादन के लिए सिंचाई का इंतजाम, मिट्टी व जलवायु वगैरह ठीक होने चाहिए. उद्यान यानी बाग में काम करने के लिए मजदूर व तकनीकी कर्मचारी भी होने चाहिए.

जमीन का चयन : फल उद्यानों यानी फलों के बगीचों के लिए गहरी, दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी रहती है. जमीन में अधिक गहराई तक कोई भी सख्त परत नहीं होनी चाहिए. जमीन में भरपूर मात्रा में खाद होनी चाहिए व जल निकासी का सही इंतजाम होना चाहिए. लवणीय व क्षारीय जमीन में बेर, आंवला, लसोड़ा, खजूर व बेलपत्र आदि फल लगाने चाहिए.

फलदार पौधों का चयन : राजस्थान की जलवायु में खासतौर से आम, पपीता, करौंदा, आंवला, नीबू, अनार, बेल, बेर व लसोड़ा आदि फलों की खेती आसानी से की जा सकती?है. जिन भागों में पाले का ज्यादा असर रहता?है, उन इलाकों में आम, पपीता व अंगूर के बाग नहीं लगाने चाहिए. अधिक गरमी व लू वाले इलाकों में लसोड़ा व बेर के पेड़ लगाने चाहिए. अधिक नमी वाले इलाकों में मौसमी, संतरा व किन्नू के पेड़ लगाने चाहिए.

वायुरोधी पेड़ लगाना : गरम व ठंडी हवाओं और अन्य कुदरती दुश्मनों से रक्षा करने के लिए खेत के चारों ओर देशी आम, जामुन, बेल, शहतूत, खिरनी, देशी आंवला, कैथा, शरीफा, करौंदा, इमली आदि फलों के पेड़ लगाने चाहिए. इन से कुछ आमदनी भी होगी व खेत गरम व सर्द हवाओं से भी बचा रहेगा. अगर बाग का इलाका कम हो तो केवल उत्तर व पश्चिम दिशा में 1 या 2 लाइनों में इन वृक्षों को लगा सकते?हैं. ध्यान रहे कि इन पेड़ों की जड़ें बाग में घुस कर पोषक तत्त्वों का इस्तेमाल करने लग जाती हैं, जिस का तनीजा यह होता है कि उद्यान की उपज में कमी आने लगती है. इस से बचने के लिए उद्यान व बाड़ के बीच में 3 साल में 1 बार 3 फुट गहरी खाई खोद कर जड़ों को काट देना चाहिए.

सिंचाई : बगीचा लगाने से पहले सिंचाई कैसे होगी, इस पर ध्यान देना जरूरी है. पानी की कमी वाले इलाकों में बूंदबूंद सिंचाई विधि का इस्तेमाल करना चाहिए, जिस से पानी व मेहनत दोनों की बचत होगी और पौधों को जरूरत के हिसाब से पानी मिलने के कारण पैदावार में बढ़ोतरी होगी. सिंचाई की नालियां पौधों की कतारों के बीच से निकाल कर दोनों ओर पौधों की जरूरत के हिसाब से थाले बना कर जरूरत के हिसाब से पानी दिया जाना चाहिए. पौधों की कतार में सीधे सिंचाई करने से पौधों में रोग फैलने की संभावना बढ़ जाती है और नाली का पहला पौधा काफी कमजोर हो जाता है. लवणीय व क्षारीय पानी सभी फलों के पेड़ों के लिए सही नहीं होता?है. इन इलाकों में आंवला, बेर, खजूर, कैर, लसोड़ा आदि फलों के पेड़ लगाने चाहिए. पानी के भराव वाले इलाकों में पानी निकास का सही इंतजाम होना चाहिए.

फल के पेड़ों का सही दूरी पर रेखांकन करना ?: उद्यान का रेखांकन करने के लिए सब से पहले खेत के किसी एक किनारे से जरूरी दूरी की आधी दूरी रखते हुए पहली लाइन का रेखांकन करते हैं. इस के बाद हर लाइन के लिए जरूरी दूरी रखते हुए पूरे खेत में दोनों किनारे से इसी विधि द्वारा रेखांकन कर लेते हैं व निशान लगी जगहों पर पौधे रोपते हैं. बगीचों को वर्गाकार विधि से ही लगाना चाहिए, क्योंकि यह सब से आसान तरीका है. इस में सभी प्रकार के काम आसानी से किए जा सकते हैं. पौधे लगाने से 1 महीने पहले (मईजून) गड्ढे खोद कर 20 से 25 दिनों तक गड्ढों को खुला छोड़ देना चाहिए, ताकि तेज धूप से कीटाणु खत्म हो जाएं. गड्ढे खोदते समय ऊपर की आधी उपजाऊ मिट्टी एक तरफ रख देनी चाहिए व आधी मिट्टी दूसरी तरफ डालनी चाहिए.

गड्ढों की भराई : गड्ढों की खुदाई के 1 महीने बाद गड्ढों को गोबर की सड़ी हुई खाद 20 से 25 किलोग्राम, सुपर फास्फेट 250 ग्राम, मिथाइल पैराथियान 4 फीसदी 50 ग्राम, नीम की खली 2 किलोग्राम, क्षारीय जमीन हो तो 250 ग्राम जिप्सम और गड्ढे की मिट्टी डाल कर भर देना चाहिए. मिश्रण में खेत की ऊपरी मिट्टी को मिलाना चाहिए. बरसात शुरू होने से पहले मिश्रण से गड्ढे को खेत की सतह से कुछ ऊंचाई तक दबा कर भर देना चाहिए व काफी मात्रा में पानी डाल देना चाहिए, ताकि गड्ढे की मिट्टी अच्छी तरह बैठ जाए. पौधों की रोपाई जहां तक मुमकिन हो 2 से 3 बार अच्छी बारिश होने के बाद ही करनी चाहिए.

रोपाई : सरकारी व अच्छी नर्सरी से खरीदे गए पौधों को तैयार गड्ढों में रोप देना चाहिए. रोपाई जुलाईअगस्त में शाम के समय करनी चाहिए. पौधे को रोपने से 2 घंटे पहले लिपटी हुई घास पिंड व पालिथीन थैली को?थोड़े समय के लिए पानी में रख कर उस में भरी हवा को बाहर निकालें जिस से पौधा लगाते समय पिंड की मिट्टी बिखरे नहीं. पौधा लगाने से पहले लिपटी हुई घास व पालीथीन थैली को मिट्टी के पिंड से हलके से हटा देना चाहिए व जड़ों को पूरी तरह बचा कर रखना चाहिए. पौधे पर लगे पैबंद वाले स्थान व शाखा के जुड़ाव वाले बिंदु को जमीन के तल से 25 सेंटीमीटर ऊपर रखना चाहिए. जरूरत हो तो पौधे को सहारा दें ताकि पौधा झुके नहीं. पौधा लगाने के बाद सिंचाई करें व जरूरत के हिसाब से पानी देते रहें. पैबंद के नीचे से निकलने वाली शाखाओं व रोग लगी शाखाओं को हटाते रहें. पौधा सूखने लगे तो उस में हलकी निराई कर के केंचुए की खाद में क्लोरोपाइफास नाम की दवा मिला कर दें व सिंचाई करें. छाछ व चाय का पानी भी छिड़का जा सकता?है. अगर पत्तियों पर किसी प्रकार का कीट दिखाई दे तो रोगोर नाम की दवा का छिड़काव करना चाहिए.

सिंचाई : शुरू के 2 महीने तक पौधों को पानी की ज्यादा जरूरत होती?है. इस समय 2-3 दिनों के अंतर पर पानी देना चाहिए. 2 सिंचाइयों के बीच का समय जगह, मौसम, जमीन, फलों की किस्म, फलन का समय व वहां की जलवायु आदि पर निर्भर करता?है.

* अगर बारिश के मौसम में बारिश होती रहे तो पानी देने की जरूरत नहीं होती?है.

* सर्दी के मौसम में 10 से 15 दिनों के अंतर पर सिंचाई करनी चाहिए.

* पाला पड़ने की संभावना हो तो फसलों में ज्यादा पानी देना चाहिए.

* गरमी के मौसम में 7 से 10 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए.

जलनिकास : बाग को उस की जरूरत से कम पानी देने से पेड़ों की बढ़वार कम होती है, जबकि जरूरत से अधिक पानी देने से भी नुकसान होता है.

पानी की अधिक मात्रा देने से जमीन पर पानी भर जाता?है और पेड़ों के खाद्य पदार्थ जमीन की निचली सतहों में चले जाते हैं. फलों में पानी की अधिक मात्रा होने के कारण मिठास कम हो जाती है व स्वाद खराब हो जाता?है. इसलिए ज्यादा पानी को तुरंत खेत से निकाल देना चाहिए. उद्यान क्षेत्र का जलस्तर 2 से 3 मीटर नीचे रहना चाहिए.

सधाई और कटाई : पौधों में शुरू से ही सधाई कर के जमीन से तकरीबन 5 से 6 फुट तक सीधा खड़ा करने के बाद चारों दिशाओं में फैलाना चाहिए. पौधे का बीच का हिस्सा हमेशा खुला रखना चाहिए. बाद में खराब शाखाओं को काट कर निकाल देना चाहिए.

* बेर के पौधे में गरमी के मौसम (मई) में जब पौधा पूरी तरह सोई हुई अवस्था में हो तब 1 साल पुरानी बढ़वार का अगला चौथाई भाग काट देना चाहिए.

* अंगूर के पौधों में 10 से 15 जनवरी के आसपास कटाई करनी चाहिए. इस में किस्म के अनुसार बीते  साल की बढ़वार में

4-12 कलिकाओं को छोड़ कर कटाई करनी चाहिए.

* आम, नीबू, अमरूद, चीकू, अनार, आंवला आदि के पेड़ों में कभी भी ज्यादा कटाई नहीं करनी चाहिए. जरूरत होने पर रोग लगी व सूखी शाखाओं को निकाल देना चाहिए.

* पपीते के पौधे में कांटछांट की जरूरत नहीं होती है.

कीटों व बीमारियों से रक्षा : पेड़ों को तमाम कीटों व बीमारियों नुकसान होता?है, इसलिए उन का समय पर सही इलाज करना जरूरी?है.

* कीटों की रोकथाम के लिए रोगोर, मैलाथियान, फास्फोमिडान, हैस्टाथियान वगैरह का छिड़काव 2.0-2.5 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में मिला कर 7 दिनों के अंतर पर

2 से 3 बार करना चाहिए.

* कवकों से लगने वाली बीमारियों को रोकने के लिए सल्फेक्स, डाइथेन एम

45, रिडोमिल, कुबेर, स्योर, साफ, एट्राक्लोर वगैरह कवकनाशी दवाओं की 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिला कर छिड़काव करना चाहिए.

* तना गलन रोकने के लिए कवकनाशी (कापर आक्सी क्लोराइड, डाइथेन एम 45) दवा जमीन में डालनी चाहिए.

* दीमक की रोकथाम के लिए

25-30 मिलीलीटर क्लोरोपाइफास को 10 लीटर पानी में मिला कर 15 दिनों के अंतर पर 3 बार जड़ के आसपास डालना चाहिए.

खराब मौसम से बचाव : खराब मौसम फलों के पेड़ों को नुकसान पहुंचाता है. कम तापमान से बचाने के लिए बगीचे में जगहजगह पर आग जला कर धुआं करना चाहिए. पाले से पहले सिंचाई कर के, वायुरोधी पट्टियां लगा कर और बाग में बड़े पंखे लगा कर पौधों का बचाव किया जा सकता है. अधिक गरमी से पेड़ों को बचाने के लिए वायुरोधी पट्टियां लगा कर पेड़ों के ऊपर हलका छप्पर लगाने के बाद सिंचाई कर के पेड़ों के मुख्य तनों पर सफेदी करनी चाहिए.

फालतू पेड़ों को निकालना : यदि फलों के पेड़ों को सही दूरी पर नहीं लगाया गया है, तो फालतू पेड़ों को उखाड़ कर सही फासले पर कर देना चाहिए. अगर फल पेड़ों के बीचबीच में कुछ पेड़ मर गए?हों, तो उन की जगह दूसरे पेड़ लगाने चाहिए, ताकि जमीन का पूरा इस्तेमाल हो सके.  

खास फलों की कुछ किस्में

फल    किस्में

आंवला  कृष्णा, कंचन, एनए 7, आनंद 1, बनारसी

अमरूद लखनऊ 49, अर्कामृदुला, इलाहाबादी सफेदा, रेडफ्लेस

नीबू    कागजी, बारहमासी, पंत लाइम, विक्रम, परमलिन

बेर     गोला, सेव, उमरान, मुंडीया

अनार  गणेश, अरक्ता, मृदुला सिंदूरी

आम   दशहरी, दशहरी 51, लंगड़ा, तोतापुरी, केशर, हापूस

पपीता  कुर्गहनीड्यू, पूसा मेजस्टी, पूसा नन्हा, हनीड्यू, पूसा डेलीसीयस, रेडलेडी

करौंदा  देशी

अंगूर   थामसन सीडलैंस, अर्काकश्णा, अर्काश्याम, ब्यूटी सीडलैस, परलेट

खजूर   हलावी, खरदावी, शामरान, बरही

खास फलों के पेड़ों की दूरी व गड्ढों का आकार

फसल  पौधों व कतारों के      गड्ढों का      प्रति हेक्टेयर

       बीच की दूरी (मीटर)    आकार (फुट)   पौधों की संख्या

आंवला  8×8   3×3×3 156

आम   10×10/8×8   3×3×3 100/156

नीबू/मौसमी     5-6×5-6     1.5×1.5×1.5 277

अमरूद 8×8   2.5×2.5×2.5 156

लसोड़ा  10×10 3×3×3 100

करौंदा  4×4   1.5×1.5×1.5 625

अंगूर   3×3   1.5×1.5×1.5 1111

पपीता  3×3   1.5×1.5×1.5 1111

पपीता  2×2   1.5×1.5×1.5 2500

अनार  4×4   1.5×1.5×1.5 625

बेर     6×6   3×3×3 277

– डा. राजू लाल भारद्वाज

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