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बैंक अब बस एक क्लिक दूर

अब बैंक नए ग्राहकों से फोटो नहीं मांगते बल्कि सेल्फी से ही काम चल जाता है. फेसबुक और ट्विटर की मदद से भी अब कई तरह के बैंकिंग ट्रांजेक्शन किये जा सकते हैं.

फेडरल बैंक ने एक ऐप लॉन्च किया है जिसे डाउनलोड करके बस सेल्फी लीजिए, अपने आधार कार्ड को स्कैन कीजिये और सेविंग अकाउंट तुरंत खुल जाएगा. फॉर्म भरने का चक्कर ही खत्म.

फेसबुक पर यदि आपकी प्रोफाइल है तो आईसीआईसीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक और दूसरे बैंक भी आपको पैसे ट्रांसफर करने की इजाजत देते हैं.

आपके दोस्तों को पैसे ट्रांसफर करने हैं तो इससे बढ़िया क्या होगा कि वो आपके फेसबुक फ्रेंड लिस्ट में हों और उनके बारे में बहुत ज्यादा जानकारी बैंक को पता ना करनी पड़े.

एक कूपन कोड अपने अकाउंट से जेनरेट कीजिये और अपने दोस्त को भेज दीजिए. उसके अकाउंट में तुरंत पैसे पहुंच जाएंगे. हां, इसके लिए स्मार्टफोन या टेबलेट पर बैंक के ऐप की जरूरत होगी.

ट्विटर का इस्तेमाल भी इसी तरह पैसों के लेन-देन के लिए किया जा सकता है.

ट्विटर के जरिये पैसे लेने और देने के लिए टू फैक्टर ट्रांक्जैक्शन काम आता है. इसमें सर्विस इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के मोबाइल पर एक कोड भेजा जाता है. इस कोड को वेबसाइट पर इस्तेमाल करना पड़ता है. उस कोड के बिना ट्रांक्जैक्शन पूरा नहीं होता है.

ट्विटर इस्तेमाल करने वाले को उसके अकाउंट पर एक डायरेक्ट मैसेज भी भेजा जाता है ताकि उसे ट्रांक्जैक्शन के बारे में पूरी जानकारी हो.

करीब साल भर पुरानी इस रिपोर्ट के अनुसार, देश में करीब 12 करोड़ लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं. इसमें से 10 करोड़ इसका इस्तेमाल अपने स्मार्टफोन पर करते हैं.

पिछले एक साल में ये संख्या और तेजी से बढ़ी है क्योंकि सस्ते स्मार्टफोन बाजार में तेजी से बिक रहे हैं. देश में अब फेसबुक के 15 करोड़ से भी ज्यादा इस्तेमाल करने वाले हैं.

ये सभी जानते हैं कि युवाओं में फेसबुक काफी पसंद किया जाता है और वो काफी समय स्मार्टफोन के साथ बिताते हैं.

ICICI बैंक का दावा है कि जब से सोशल मीडिया के जरिए पेमेंट की सुविधा शुरू की गई है, एक भी धोखाधड़ी का मामला सामने नहीं आया है.

कंपनियां फेसबुक और ट्विटर पर इसीलिए भरोसा कर सकती हैं क्योंकि इन पर आपके बारे में जानकारी होती है और अक्सर आपकी तस्वीरें भी होती हैं जो इस बात की पुष्टि करती हैं कि वो अकाउंट आपका ही है. इससे बैंक को आपके बारे में जानकारी इकठ्ठा करने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है.

बैंकों के लिए सोशल मीडिया इस्तेमाल करने का फायदा ये है कि वो ग्राहकों की बातों पर नजर रख सकते हैं. सोशल मीडिया पर कई ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं जिससे लोगों की शिकायतों और जरूरतों को समझने में मदद मिलती है.

मेकअप करने में लड़कियों से आगे हैं लड़के

अब मेकअप और कौस्मैटिक प्रौडक्ट्स इस्तेमाल करना सिर्फ युवतियों की बपौती नहीं रहा बल्कि युवक भी इन का बढ़चढ़ कर इस्तेमाल करने लगे हैं. एक सर्वे के अनुसार मेकअप पर युवतियों से ज्यादा खर्च युवकों का होता है. खूबसूरत दिखने की चाह का यह नया ट्रेंड सैल्फियों और मार्केट में बनाए पुरुष प्रौडक्ट्स के कारण है. यहां तक कि पिछले 5 सालों में युवकों के इस्तेमाल वाले प्रोडक्ट्स की बिक्री 42% बढ़ी है.

अब युवक यह नहीं चाहते कि वे अगर जौब प्लेस या फिर किसी पार्टी फंक्शन में जाए तो सिर्फ वहां युवतियों की ही तारीफ हो, बल्कि वे चाहते हैं कि वहां उपस्थित लोग उन की ग्रूमिंग के कारण यह कहने पर मजबूर हो उठे कि कितना हैंडसम है यार, क्या लगता है, स्टाइल तो देखो, हेयरकट तो मस्त है यार, यार फेस तो देखो कितना ग्लो कर रहा है. इसी तरह के और भी कई कौंप्लीमैंट्स मिलने की चाह रखने लगे हैं और इस के लिए अगर उन्हें हर हफ्ते या 15 दिन में सैलूंस का भी रुख करना पड़ता है तो वे इस में भी पीछे नहीं रहते. बस उन्हें तो सिर्फ लुक में बैस्ट दिखना होता है.

क्या करते हैं ग्रूमिंग के लिए

फेशियल कराने में भी पीछे नहीं

युवतियों की तरह युवक भी 20-25 दिन में फेस क्लींजिंग या फिर फेशियल करवाते हैं ताकि डैड स्किन रिमूव हो सके. ऐसा वे घर पर नहीं बल्कि सैलूंस में जा कर करते हैं ताकि फेस को प्रोपर मसाज मिल सके.

इस दौरान अगर ब्यूटी ऐक्सपर्ट ने कह दिया कि सर, आप की स्किन को और ज्यादा केयर की जरूरत है और इस के लिए आप को वीकली सिअिंग की जरूरत है तोव े इस के लिए भी झट से राजी हो जाते हैं चाहे उन्हें कितनी भी कीमत अदा करनी पड़े. क्योंकि उन्हें हर हाल में खूबसूरत जो दिखना है.

लेटैस्ट हेयरस्टाइल का फैशन करते हैं कैरी

लुक को चेंज करने में हेयरस्टाइल का अहम रोल होता है और इसमें पुरुष पीछे भी नहीं रहते. वे सैलून में अपने फेस को सूट करने वाला हेयरकट करवाते हैं फिर उस हेयरकट के लंबे दिनों तक चलने या फिर जैसा कट आज हुआ है वैसा ही कई दिनों तक दिखे इस के लिए हेयर जेल का इस्तेमाल करते हैं, जिन की कीमत 400 रुपए से शुरू हाती है. जब एक हेयरकट से बोर हो जाते हैं तो दूसरा कट करवा लेते हैं जो फ्रैंड्स या ग्रुप में छाने के लिए काफी होता है.

फेस पर एक पिंपल भी पसंद नहीं

अभी तक यही सुना जाता था कि अगर किसी लड़की के फेस पर एक भी पिंपल आ जाए तो वह बेचैन हो जाती है. इस के लिए पिंपल्स के लिए बने ब्यूटी प्रौडक्ट्स तो खरीदती ही हैं साथ ही पार्लर्स के भी चक्करर लगाती हैं. अब यही हाल युवकों का है. उन्हें अपने फेस पर एक भी पिंपल पसंद नहीं इस के लिए वे घरेलू नुसखे तो अपनाते ही हैं साथ ही ऐसे फेसवौश का भी इस्तेमाल करते हैं जो फेस को पिंपल्स से भी प्रोटैक्ट कर सके. उन की इसी डिमांड को देखते हुए अब पुरुषों की स्किन के हिसाब से भी फेसवौश बनने लगे हैं.

मैनिक्योर व पैडीक्योर पर भी जोर

युवक सिर्फ फेस को ही नीट नहीं दिखाते बल्कि हाथपैरों की भी बराबर केयर करते हैं. इस के लिए वे सैलूंस का ही रुख करते हैं क्योंकि वे घर में मैनिक्योर व पैडीक्योर कराने के झमेले में नहीं पड़ना चाहते. उन्हें तो बस सब से पौजिटिव रिमार्क चाहिए होते हैं तभी तो वे बौडी पार्ट्स की प्रोपर केयर करने की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं.

झुर्रियां भी नहीं भाती

चेहरे पर झुर्रियां दिखाई न दे और हर उम्र में जवांजवां ही दिखे इस के लिए वे झुर्रियों को दूर रखने वाले इंजैक्शंस लगवाते हैं ताकि कोई भी उन की उम्र का अंदाजा न लगा सके.

वैक्सिंग

हाथपैरों व बौडी पर ओवर हेयर्स उन्हें गवारा नहीं इस के लिए वे फुल बौडी वैक्स करवाते हैं और साथ ही युवतियों की तरह ऐसी वैक्स को प्रैफर करते हैं जिस से ग्रोथ लेट आए. यानी यह कहना गलत नहीं होगा कि वे अब मेकअप के मामले में महिलाओं से एक कदम आगे निकल रहे हैं.

क्यों बढ़ा इस तरह का चलन

प्रतिस्पर्धा ने बढ़ाया क्रेज

अब युवकों में प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है. अब वे नहीं चाहते कि उन के लुक की वजह से कोई उन्हें इग्नोर करे या फिर जौब औपुचोरिनिटी उन के हाथ से जाए. क्योंकि आजकल जौब में काबिलीयत के साथसाथ लुक भी बहुत माने रखता है इसलिए वे खुद को परफैक्ट रखने के लिए अपना लुक भी गौर्जिस रखना चाहते हैं और उन की इसी चाह ने उनहें मेकअप कराने की ओर उत्साहित किया है, जिस के कारण वे बेहतरीन ब्यूटी प्रौडक्ट्स खरीदते हैं.

बदलता लाइफ स्टाइल व ज्यादा कमाई

आज यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि हमारा लाइफ स्टाइल टोटली बदल गया है और इस का एक कारण देखादेखी तो है ही साथ ही ज्यादा कमाई भी है, जिस के कारण युवक अब खुद की बौडी केयर पर भी पैसे खर्च करने लगे हैं. अब वे डेली घर पर दाढ़ी बनाने से ज्यादा सैलून में जा कर दाढ़ी बनवाना पसंद करते हैं, ताकि फेस अच्छे से क्लीन हो सके और इस के लिए वे एक दिन का 100-200 रुपए भी खर्च करने से गुरेज नहीं करते.

ब्यूटी प्रोडक्ट्स ने बढ़ाई मांग

पहले देखा जाता था कि घर में युवती व युवक एक ही ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर लेते थे. चाहे वह प्रोडक्ट युवती की स्किन के लिए ही क्यों न बना हो लेकिन अब समय बदलने के साथसाथ युवकों की सोच भी बदली है.

अब वे मार्केट में अपने लिए बने प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करते हैं साथ ही ब्रैंड्स को भी खासा महत्त्व देते हैं ताकि उन की स्किन को कोई नुकसान न पहुंचे. उन की इसी डिमांड के कारण ब्यूटी प्रोडक्ट्स की बिक्री काफी बढ़ी है.

गोरा दिखना भी एक कारण

चाहे युवकों का ब्यूटी प्रोडक्ट लौंच हो या फिर युवतियों का, उस में इस बात पर ज्यादा फोकस किया जाता है कि फलां क्रीम आप को रातोंरात चमकतादमकता बना देगी, सांवली स्किन भी गोरा रूप पाएगी, इस को सुन कर सांवले युवक खुद को गोरा रूप देने के लिए इन प्रोडक्ट्स को खरीद लेते हैं और अगर उन को रिजल्ट अच्छा मिलता है फिर तो उन का इन प्रोडक्ट्स के प्रति विश्वास बढ़ जाता है.

यहां तक कि अब वे बौडी के हर पार्ट के टोन के हिसाब से क्रीम इस्तेमाल करते हैं यानी अगर हाथों को अलग क्रीम की जरूरत है तो वे हाथ व फेस के लिए अलग ही क्रीम्स इस्तेमाल करते हैं.

गर्लफ्रैंड या कलीग पर इंप्रैशन झाड़ना

गर्लफ्रैंड पर इंप्रैशन झाड़ने के लिए वे ऐसे ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं जो उन के फेस पर ग्लो ले आए. भले ही यह ग्लो कुछ घंटों के लिए हो लेकिन गर्लफ्रैंड तो इंप्रैस हुए बिना नहीं रह पाती और आखिर आप की तरह वह भी पूछ बैठती है कि क्या करते हो जो फेस इतना ग्लो मारता है. यही बात सुनने के लिए तो युवक इन प्रोडक्ट्स की ओर भागते हैं.

कौंफिडैंस बढ़ता है

जब हम खूबसूरत दिखते हैं या फिर कोई नया चेंज किया होता है तो हमारा कौंफिडैंस तो बढ़ता ही है और अगर किसी ने तारीफ कर दी फिर तो हम खुद को हीरो समझने लगते हैं. इसी तारीफ को पाने के लिए युवक ब्यूटी प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करने लगे हैं.

इस प्रकार यह कहना गलत नहीं होगा कि युवतियों की तुलना में युवक ज्यादा ब्यूटी प्रोडक्ट्स व खुद को संवारने पर ध्यान देने लगे हैं.

बेगम को शौहर से ज्यादा उन की क्लीन शेव से प्यार

युवक अब खुद को लुक वाइज बैस्ट दिखाने के लिए कपड़ों के साथसाथ मेकअप पर भी ध्यान देने लगे हैं तभी तो पुरुषों के लिए बने ब्यूटी प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ी है.

इस के पीछे एक कारण यह भी है कि युवतियां अब अपने पार्टनर को बिलकुल हीरो की इमेज में देखना चाहती हैं. इस का जीता जागता उदाहरण है मेरठ के इमाम अर्शद बदरुद्दीन के सामने उन की बेगम द्वारा रखी यह शर्त कि अगर उन्होंने अपनी दाढ़ी नहीं कटरवाई तो वह आत्महत्या कर लेगी, क्योंकि बेगम को शाहरुख और सलमान की क्लीन शेव भाती है.

शायद बेगम सोच रही होंगी कि जब वे अपने शौहर के साथ चले या फिर अपने स्मार्टफोन से फोटो खींच कर डीपी सैट करे तो सब उन के शौहर को सलमान या शाहरुख समझ कर ‘हाउ, कितने हैंडसम हैं तेरे शौहर’ जैसे कौंप्लिमैंट्स मिलें न कि यह कि बेगम कहां तुम और कहां तुम्हारे लल्लू राम. इसलिए वह उन की दाढ़ी कटवाने की बात पर अड़ी बैठी है.

अपनी दाढ़ी व बेगम से रिश्ते को खतरे में देख कर बेचारे शौहर ने कलैक्टर को पत्र लिख डाला है जिस पर जल्द ही हल निकलने की उम्मीद है.

‘हैप्पी भाग जाएगी’ में सन्नी देओल के गाने पर थिरकेंगे जिमी

फिल्म ‘हैप्पी भाग जाएगी’  में अभिनेता जिमी शेरगिल म्युनिसिपल कॉर्पोरेटर बग्गा पाजी  के किरदार में नज़र आएंगे.  जिमी, सनी देओल के लोकप्रिय गाने ‘यारा ओ यारा’ पर  परफॉर्म करते  हुए  नज़र आएंगे. सूत्रों के मुताबिक यह डांस परफॉरमेंस इस फिल्म का हाइलाइट और सबसे इंटरेस्टिंग पॉइंट होगा.

बग्गा इस फिल्म में अमृतसर के सबसे भयावह म्युनिसिपल वार्ड के म्युनिसिपल कॉर्पोरेटर हैं, जो अक्सर  सर उठाये, आंखों पर  स्पोर्टिंग एविएटर शेड्स लगाए, ढीली सोने की चैन पहने, हलके लाल रंग की  एनफील्ड  बुलेट पर शहर की संकरी गलियों में घूमते हुए नज़र आएंगे. संक्षेप में यह कह सकते हैं की बग्गा से शो है, न की बग्गा शो से.

मुद्दसर अज़ीज़ द्वारा निर्देशित इस फिल्म में डायना पेंटी, अभय देओल, अली फैसल और जिमी शेरगिल अहम भूमिका में नज़र आएंगे और आनंद एल राय और कृषिका लुल्ला इस फिल्म को प्रोड्यूस कर रहे हैं. यह फिल्म 19 अगस्त को सिनेमाघरों में प्रदर्शित की जाएगी.

 

VIDEO: पुलिस वाली ने शेयर किया अश्लील वीडियो, नौकरी गई तो बन गई स्ट्रिपर

पुलिस अफसर ना रहकर अब हैं स्‍ट्रिपर..आप सोच रहें होंगे की ऐसे कैसे. दरअसल मॉस्‍को के पुलिस डिपार्टमेंट में बतौर अफसर काम कर रहीं 26 साल की क्रिस्‍टीना ने हाल ही में अपना एक हॉट डांस वीडियो फेसबुक पर अपलोड कर दिया था. उनके इस एक डांस ने उनकी जिंदगी ऐसी बदली, जैसी उन्‍होंने सपनों में भी नहीं सोची थी.

पुलिस की नौकरी से निकाले जाने के बाद क्रिस्‍टीना गोल्‍डन गर्ल्‍स की स्‍ट्रिपचेन से जुड़ गई और वहां पर बतौर स्‍ट्रिपर काम कर रहीं हैं. क्रिस्‍टीना का कहना है कि वो अपनी इस नई नौकरी से बेहद खुश हैं और उनको इस काम के लिए अच्‍छा खासा पेमेंट भी मिल रहा है. बता दें कि बतौर स्‍ट्रिपर क्रिस्‍टीना को लगभग 70 हजार रुपये मिल रहें हैं.

यह हॉट डांस वीडियो फेसबुक पर डाले जाने के बाद जमकर शेयर हुआ और मॉस्‍को पुलिस के वरिष्‍ठ अधिकारियों तक पहुंच गया. वीडियो में क्रिस्‍टीना को सेक्‍सी हरकतें करते देखकर अधिकारियों के होश उड़ गए. पुलिस डिपार्टमेंट ने क्रिस्‍टीना की इस हरकत को गलत करार देते हुए उसे तत्‍काल नौकरी से बर्खास्‍त कर दिया. नौकरी से निकाले जाने पर क्रिस्‍टीना बेहद हैरान थी. उन्‍होंने डिपार्टमेंट की ऐसी हरकत पर प्रशासन के खिलाफ कोर्ट में केस दायर किया है.

क्या है पूरा मामला

26 साल की क्रिस्‍टीना मॉस्‍को मेट्रो पुलिस डिपार्टमेंट में अफसर थी. हाल ही में उन्होंने अपने प्राइवेट फेसबुक ग्रुप पर अपने दोस्तों के लिए काफी हॉट और इरॉटिक डांस किया. इसके बाद उसने एक बड़ी गलती कर दी कि इस वीडियो को अपने मेन फेसबुक पेज पर शेयर कर दिया. इसके बाद क्रिस्‍टीना का यह हॉट वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया और जैसे ही उसके सीनियर अधिकारियों ने यह वीडियो देखा, उनके होश उड़ गए. पुलिस डिपार्टमेंट ने क्रिस्‍टीना की इस हरकत को गलत करार देते हुए उसे तत्‍काल नौकरी से बर्खास्‍त कर दिया.

नौकरी से निकाले जाने पर क्रिस्टीना ने कहा, ‘मुझे इसलिए निकाला गया है क्योंकि उन्हें लगता है कि मैंने अनुशासन तोड़ा है. हालांकि मैंने वीडियो प्राइवेट ग्रुप में ही भेजा था. जिसमें सिर्फ पुलिसवाले ही थे.’ अपने आप को नौकरी से निकालने जाने पर क्रिस्टीना ने कहा कि उनकी कोई गलती नहीं थी और ना ही डांस अश्लील था. उनका कहना है कि उन्होंने मस्ती के मूड में वह डांस शेयर किया था. इसके साथ ही क्रिस्टीना ने इस बात को भी नकार दिया है कि उन्होंने नशे में वह डांस पोस्ट किया.

वैसे जिस वीडियो के कारण इतना बवाल हुआ, वो वीडियो आप देखना नहीं चाहेंगे. नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें और देखें वो हॉट वीडियो…

http://www.sarita.in/web-exclusive/russian-police-officer-is-fired-after-she-posts-a-video-of-herself-performing-dance-on

हमारी बेडि़यां

मैं झारखंड राज्य के एक गांव में रहती हूं. यह संथाल जाति बाहुल्य क्षेत्र है. आजादी के इतने सालों बाद भी यहां पुरानी रूढि़वादिता बरकरार है. यहां रूढि़वादी कुरीति यह है कि जब किसी व्यक्ति को सांप काट लेता है तब उसे अस्पताल या डाक्टर के पास नहीं ले जाते बल्कि मंडा नामक स्थान में ले जाते हैं जहां पर शेषनाग मंदिर है. इस मंदिर के पुरोहित पीडि़त व्यक्ति को जल पिलाते हैं जिस से सर्पदंश का जहर उतर जाता है.

एक दिन सुगना मूर्मू नामक संथाल के 10 वर्षीय बेटे को सांप ने डंस लिया तो साक्षर लोगों ने सलाह दी कि डाक्टर के पास ले चलो. मगर सुगना नहीं माना और बेटे को टैंपो में बैठा कर मंडा की तरफ चल पड़ा. गांव से मंडा की दूरी लगभग

8 किलोमीटर है, सो जहर पूरे शरीर में फैल गया और बच्चे ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया.

प्रेमशीला गुप्ता, देवघर (झारखंड)

*

हमारी सोसाइटी में सालभर से एक पंडित धार्मिक विधि संपन्न कराने के लिए समयसमय पर घर में आताजाता था. कुछ ही दिनों में उस ने सोसाइटी में पूजापाठ में अपनी प्रतिष्ठा बना ली. कभी किसी कार्य का मुहूर्त निकालना हो, किसी के घर का गृहप्रवेश हो या कभी लड़केलड़की की शादी की कुंडली बनवानी हो, उसी पंडित को बुलाया जाता. उस का मोबाइल नंबर सभी के पास उपलब्ध था. यदि कोई पूजाविधि नहीं भी हो, तो भी वह पंडित दानदक्षिणा मांगने के लिए ही लोगों के घर पहुंच जाता था. एक दिन वह पंडित दक्षिणा मांगने के लिए पड़ोसी के घर गया. महिला घर में अकेली थी. कुछ ही देर में महिला पंडित के लिए नाश्ता बनाने को रसोई में चली गई. उस समय पंडित की नजर टेबल पर पड़े पर्स और सोफे पर पड़े मोबाइल पर पड़ी. उस के मन में लालच ने जन्म लिया, मोबाइल और पर्स अपनी पोटली में डाल कर नौदो ग्यारह हो गया.

कुछ ही देर में महिला नाश्ता ले कर कमरे में आई, तब पंडित को न देख कर उसे क्षणिक विस्मय हुआ. लेकिन कुछ ही देर में टेबल पर रखा पर्स व सोफे पर रखा मोबाइल न देख कर उसे पंडित के प्रति आशंका हुई. उस ने पासपड़ोस के घरों में पंडित को ढूंढ़ने का प्रयास भी किया. पड़ोसिन के मोबाइल से उस ने स्वयं के और पंडित के नंबर पर फोन लगाए, लेकिन दोनों मोबाइल का स्विच औफ था.

धर्मभीरू महिलाएं धार्मिक भावना में बह कर पंडितरूपी बहरूपियों को घर में बुला कर उन का आदरसत्कार करती हैं, नतीजतन, उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है.

श्रीराम, नागपुर (महा.)

गुलामी से आजादी

हमारी सरकार देश के कुलांचे भरते कदमों पर बहुत हल्ला मचा रही है. उस का श्रेय किस को जाता है, यह छोड़ दें क्योंकि आज जो देश में हो रहा है उस की जड़ें तो 1991 के सुधार हैं और बीच में केवल 5 साल भाजपा गठबंधन को मिले थे. 2 सालों में देश में ऐसी तरक्की नहीं हुई है कि उस पर सिर उठाया जा सके. पर यह संतोष की बात है कि जहां दूसरे देशों की वृद्धि 1 फीसदी से 5 फीसदी तक है, हम कहते हैं कि हमारी 7.6 फीसदी है जबकि हमारे अपने रिजर्व बैंक औफ इंडिया के गवर्नर रघुराम राजन इसे संदेह की दृष्टि से देखते हैं.

पर उस से ज्यादा गंभीर बात यह है कि 2016 के ग्लोबल स्लेवरी इंडैक्स का अंदाजा है कि दुनिया में 4.5 करोड़ लोग गुलाम हैं या गुलामों की जिंदगी जी रहे हैं जिन में से ?अकेले भारत में 2 करोड़ हैं. भारत के 2 करोड़ का आंकड़ा भी सही नहीं है क्योंकि हमारी सामाजिक व्यवस्था ऐसी है कि स्वतंत्र दिखने वाले भी छूआछूत, रोटीबोटी, गरीबी, भुखमरी, बीमारी, परंपराओं के कारण वास्तव में इस तरह गुलाम हैं कि वे कहीं भाग नहीं सकते.

शारीरिक गुलामी के खिलाफ अमेरिका ने लंबी जंग लड़ी. सिविल वार से ले कर ओबामा तक अमेरिका अश्वेतों को ले कर खुद से लड़ता रहा. आज भी वहां कालों के साथ दुर्व्यवहार होता है. उन्हें नशे, अपराध, गरीबी के कारण दुत्कारा जाता है और अमेरिकी जेलों में काले ही भरे हैं और अमेरिका में ही सब से ज्यादा कैदी हैं.

भारत की दलितों, यानी पिछड़ों व गरीबों की खुली कैदें असल में सामाजिक रोग हैं. दलित जातियों के लोग पीढि़यों से गुलामों की तरह ऊंची जातियों की सेवा करते आ रहे हैं. 1950 के संविधान ने उन्हें बराबरी की जगह दी पर केवल बैलट बौक्स से. वे गुलामी के बंधन से नहीं निकल पाए. उन्हें किसी तरह की सामाजिक बराबरी का अवसर नहीं मिला. वे अपने खुद के बनाए जालों में फंसने लगे.

ये गुलाम भारत के अमीर वर्ग को कोई विशेष लाभ पहुंचा रहे हों, ऐसा नहीं. असलियत में यही गुलामी हमारी कमजोरी है, हमें आगे बढ़ने से रोकती है. जो गुलाम हैं वे पढ़ते नहीं, नई तकनीक नहीं समझते, उन की उत्पादकता कम है. हमारा देश गंदा है क्योंकि हम ने इन गुलामों को गंद में रहने की आदत डाल रखी है और ये हमारे चारों ओर गंदगी फैलाते रहते हैं. हमारा पढ़ालिखा वर्ग अपनी योग्यता का पूरा लाभ नहीं उठा पाता क्योंकि उसे इन्हीं शून्य योग्य गुलामों से काम कराना पड़ता है, जबकि आज का युग विशेषज्ञों का हो गया है. ये 2 करोड़ लोग (या 20 करोड़, इस का आंकड़ा हमेशा अस्पष्ट रहेगा) अगर गुलाम न हो कर स्वतंत्र, कर्मठ, मेहनती, योग्य हों तो ही भारत पश्चिमी देशों सा बन सकता है. गुलामी की गंदी गंध गुलाम को बीमार करती ही है, यह सारे समाज को सड़ा भी देती है. अमेरिका ने सिविल वार में अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में जो युद्ध लड़ा उसी के कारण वह महान बना. यूरोप तभी उन्नत हुआ जब मार्टिन लूथर की पोपशाही की धार्मिक गुलामी से मुक्त हुआ.

सैक्स शिक्षा की भूलभुलैया

भारत में सैक्स शिक्षा हो कि न हो, इस पर लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है. वैसे भी सैक्स का बाजार हमेशा गरम रहता है. पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का तो देश के लगभग हर घर में समावेश हो ही गया है. लेकिन जब स्कूलों में सैक्स शिक्षा की बात उठती है तो आज भी देश के अधिकांश लोग इस का विरोध करने लगते हैं. भारत के 6 राज्यों, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, बिहार, तमिलनाडु और झारखंड में कराए गए सर्वे में बहुत सी ऐसी बातें सामने आई हैं जो भारतीय संस्कृति को बहुत ही तेजी से बदलने का संकेत देती हैं. मसलन, शादी से पहले सैक्स तो लड़कों में आम है ही, पर सर्वे की सब से चौंकाने वाली बात यह है कि 15 साल की उम्र तक विवाह से पूर्व सैक्स संबंध बनाने में लड़कियों ने लड़कों को पीछे छोड़ दिया है.

सर्वे के अनुसार, 15 प्रतिशत लड़कों और 4 प्रतिशत लड़कियों ने कुबूल किया कि उन्होंने शादी के पहले सैक्स का अनुभव ले लिया है. इस से भी ज्यादा चौंकाने वाली बात यह रही कि इन में से 24 प्रतिशत लड़कियों ने माना कि उन्होंने 15 साल की उम्र से पहले ही सैक्स का अनुभव ले लिया है, जबकि लड़कों का प्रतिशत सिर्फ 9 रहा, जिन्होंने यह माना कि उन्होंने सैक्स का अनुभव 15 साल से पहले लिया. अब यह मानना पड़ेगा कि भारत की युवा संस्कृति में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है. कच्ची उम्र में प्रेम व यौन संबंध को भले ही कुछ लोग नकार दें लेकिन सर्वे का नतीजा बता रहा है कि भारत में नाबालिग लड़के, लड़कियों में सैक्स तेजी से बढ़ रहा है. वे अपनी मरजी से इस का अनुभव ले रहे हैं. जिस का असर यौन अपराध में बढ़ोतरी के रूप में देखा जा रहा है.

दुख की बात यह है कि आज भी परिवार के लोग आपस में यौन संबंधी बातें करने में बच्चों से कतराते हैं. उन से वे सैक्स संबंधी बातें करने में झिझकते हैं. बच्चों को इन बातों से दूर रखा जाता है और यही कारण है कि बच्चे जानकारी के अभाव में या तो स्वयं ही गलत कदम उठा लेते हैं या फिर यौन दुराचार के शिकार हो जाते हैं. दरअसल, उन के मन में यह जिज्ञासा बनी रहती है कि आखिर यह है क्या चीज, जो हम से छिपाई जा रही है.

क्यों जरूरी है यौन शिक्षा

बच्चों की बढ़ती उम्र के साथसाथ न सिर्फ हार्मोंस में बदलाव आता है, बल्कि शरीर में कई परिवर्तन भी आते हैं जिस की वजह से किशोरों में सैक्स के प्रति आकर्षण बढ़ता है. फिर ये छिप कर इस के बारे में जानने का प्रयास करने लगते हैं. नतीजा यह होता है कि वे गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं और बाद में उन्हें पछताना पड़ता है. सैक्स के बारे में सही जानकारी न मिलने के कारण वे एड्स के भी शिकार हो जाते हैं. ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि स्कूली स्तर पर ही उन्हें सैक्स शिक्षा दी जाए जिस से बच्चे बाल यौन शोषण से बच सकें.

आज के बदलते माहौल में बच्चों को यौन शिक्षा की सही जानकारी दी जानी जरूरी हो गई है. इस से वे अपने शरीर के अंगों व उन के कार्यों के बारे में जान सकेंगे. खासतौर से 14-15 साल की उम्र में उन के शरीर में बहुत सारे बदलाव आते हैं जिन्हें वे समझ नहीं पाते. बच्चे या बच्चियों को तो यह पता ही नहीं चलता कि आखिर उन के शरीर में यह हो क्या रहा है. वे इस के बारे में किस से पूछें, यह भी उन्हें पता नहीं होता. ऐसी स्थिति में वे छिप कर सैक्स की गंदी किताबों को पढ़ते हैं और उन से मिले अधकचरे ज्ञान को वे अपने जीवन में उतारने की कोशिश करते हैं. जिस के कारण वे सैक्स संबंधी विभिन्न बीमारियों के शिकार हो जाते हैं.

जागरूकता की आवश्यकता

अगर आप अपने बच्चों को सही उम्र में सही तरीके से यौन शिक्षा देते हैं तो आप के बच्चे यौन दुराचार का शिकार होने से बच जाएंगे. यौन शिक्षा के द्वारा बच्चों में सैक्स की समझ विकसित होती है. फिर जब वे इस दौर से गुजरते हैं तो ये बातें उन के काम आती हैं. जब आप किशोरावस्था में सैक्स शिक्षा देंगे तो उन में इस के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और उत्सुकता कम होगी. इस से उन में सैक्स के प्रति देर से सक्रिय होने की संभावना बढ़ जाती है. फिर उन में कच्ची उम्र में सैक्स करने का खतरा कम हो जाता है.

जब भी आप किसी चीज को बच्चों से छिपाने की कोशिश करेंगे तो वे उसे जरूर जानने की कोशिश करेंगे. इसलिए अच्छा रास्ता यही है कि उन्हें सैक्स के बारे में बचपन से ही हलकी जानकारी देनी शुरू कर दी जाए. जिस से उन में छिप कर इस काम को करने की आदत न पनपे. आप बच्चों के सवालों को टालने की कोशिश न करें. अगर आप उन की जिज्ञासा को शांत नहीं करेंगे तो वे इस की जानकारी कहीं और से लेने की कोशिश करेंगे. ऐसे में वे अपने ही लोगों से यौन शोषण का शिकार हो जाते हैं. ऐसा भी हो सकता है कि उन्हें दूसरों के द्वारा गलत व अधूरी जानकारी मिले, जो उन के लिए नुकसानदेह हो. आज के आधुनिक दौर में घरघर टीवी व इंटरनैट हैं. वे बिना सोचेसमझे हर तरह के ज्ञान सब को परोसते रहते हैं. वे यह नहीं देखते कि उन्हें देखने वालों में बच्चे भी होते हैं. इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी होती है कि हम अपने बच्चों पर ध्यान रखें कि वे क्या देख रहे हैं, इस का उन पर क्या प्रभाव पड़ेगा. अगर आप के मना करने पर भी वे नहीं मानते तो उसे उन्हें देखने दें. लेकिन बाद में उस के बारे में अच्छी जानकारी उन्हें खुद दे दें. जिस से उन सब बातों का उन पर बुरा प्रभाव न पड़े. ऐसे में जरूरी है कि उन्हें यौन शिक्षा उन के स्कूल और मातापिता दोनों द्वारा दी जाए. वैसे भी हर परिवार और स्कूलटीचर का दायित्व होता है कि वे बच्चों को सही जानकारी दें. अगर उन्हें किसी बात को ले कर कोई गलतफहमी है तो वे उसे सुधारें.

आप के बच्चे बड़े हो गए हैं तो उन्हें यौन शिक्षा देते समय एड्स व अन्य यौन रोगों के बारे में भी जानकारी दें. ऐसी बीमारियों से कैसे बचा जाए, इस के बारे में भी बताएं. इस में कोई संकोच न करें. किशोरों की नादानी के कारण ही कई लड़कियां शादी से पहले गर्भवती हो जाती हैं. ऐसी समस्याओं से बचने के लिए मातापिता को उन पर कड़ी नजर रखनी चाहिए कि वे कहां जाते हैं, उन के कैसे दोस्त हैं, मोबाइल पर किस से बातें करते हैं, स्कूल या कोचिंग के बाद वे समय से घर आते हैं या नहीं आदि. कभीकभी बच्चे बड़े हो जाते हैं तो मातापिता भी लापरवाह हो जाते हैं. वे सोचते हैं कि हमारे बच्चे तो बड़े हो गए हैं, सहीगलत अब समझने लगे हैं. दरअसल, उन का ऐसा सोचना गलत है. बच्चे जब बड़े हो जाते हैं तभी तो उन पर ज्यादा निगरानी रखने की जरूरत पड़ती है.

खुल कर करें बातें

यौन समस्याओं से बचने के लिए जरूरी है कि बच्चों को इस की पर्याप्त जानकारी दी जाए. किशोरावस्था में कदम रख रहे बच्चों के लिए यौन शिक्षा उन्हें उन के स्वास्थ्य के प्रति जागरूक बनाती है. दरअसल, इस उम्र में बच्चों को यह समझाने की जरूरत होती है कि सैक्स से पहले सावधानी बहुत जरूरी है. इसलिए सैक्स के बारे में बच्चों से खुल कर बातें करें. हमारे समाज में सैक्स के बारे में खुल कर बातें करना अच्छा नहीं माना जाता है. ऐसे माहौल में पलेबढ़े मातापिता भी अपने बच्चों से इस विषय पर बातचीत करने से कतराते हैं. लेकिन अब जमाना बदल गया है.

यौन संबंधी जानकारी के लिए सब से पहले सहज वातावरण बनाने की जरूरत होती है. इस बारे में किए गए अध्ययन से पता चला है कि जिन बच्चों के अभिभावक उन से खुल कर बातचीत करते हैं और उन की बातें ध्यानपूर्वक सुनते हैं, वे बच्चे ही सैक्स संबंधी बातें अपने अभिभावकों से कर पाते हैं. ऐसे बच्चे किशोरावस्था में यौन खतरों से भी बचे रहते हैं. कोई उन की नादानी का फायदा नहीं उठा पाता.

शारीरिक परिवर्तनों पर चर्चा

आप को सैक्स के संबंध में बातचीत करने में असुविधा महसूस होती हो तो यही काम चिकित्सक या विश्वसनीय दोस्तों द्वारा कराया जा सकता है. चिकित्सक अच्छी तरह इस बारे में बच्चों को बता देंगे. अगर आप सैक्स की जानकारी देने में संकोच कर रहे हैं तो इसे बच्चों से न छिपाएं. उन्हें आप बताएं कि मेरे मातापिता ने मुझ से कभी सैक्स के बारे में बातचीत नहीं की, इसीलिए मैं भी तुम से इस बारे में बात नहीं कर पा रहा. लेकिन हम चाहते हैं कि हम लोग इस बारे में बातें करें. तुम भी कोई बात मुझ से न छिपाओ. अगर किसी भी प्रकार की जिज्ञासा तुम्हारे अंदर हो तो बेझिझक मुझ से चर्चा करो.

बच्चों से जितनी कम उम्र में इस संबंध में बातचीत की जाए, वह अच्छा होगा. उन्हें इस की जानकारी अत्यंत सहज और अधिक से अधिक दी जानी चाहिए. छोटे बच्चे को जब बातचीत के माध्यम से शरीर के अन्य अंगों नाक, कान, आंख आदि की जानकारी दी जाती है तो उसी वक्त साथसाथ उस के गुप्तांगों के बारे में भी जानकारी दे दी जानी चाहिए. शरीर के सभी अंगों के वास्तविक नाम बच्चों को जरूर बताएं. बढ़ती उम्र के साथ उन के शरीर में आने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों से भी उन को अवगत कराएं. बच्चों को उन की उम्र के अनुसार जानकारी मुहैया करानी चाहिए. बच्चे उम्र के साथ होने वाले शारीरिक परिवर्तनों से घबराएं नहीं, इस के लिए बढ़ती उम्र के साथ लड़के और लड़की में आने वाले अलगअलग शारीरिक परिवर्तनों व कारणों को उन्हें बताना चाहिए. शरीर में मौजूद हार्मोंस के कारण ही लड़के और लड़की में अलगअलग शारीरिक परिवर्तन होते हैं. इस की जानकारी बच्चों को जरूर दे देनी चाहिए. इस से बच्चे, उम्र के साथ होने वाले शारीरिक परिवर्तनों से डरेंगे नहीं और न ही विचलित होंगे.

11 से 12 वर्ष के बच्चों के साथ की जाने वाली बातचीत में अवांछित गर्भ और उस से बचाव जैसे मसलों को शामिल करना चाहिए. मसलन, मासिकधर्म के बारे में उन को बताया जा सकता है और उस से संबंधित सावधानियों के बारे में जानकारी दी जा सकती है. कई बार ऐसा होता है कि अभिभावक विपरीत सैक्स अर्थात पिता बेटी से तथा मां बेटे से यौन शिक्षा संबंधी बातचीत करने में संकोच करते हैं. यह ठीक नहीं है. बच्चों के सामने झिझक न आने दें. ऐसा कोई नियम नहीं है कि पिता ही बेटे से या मां ही बेटी से यौन शिक्षा की बात करे. जो बच्चा जिस के अधिक करीब हो, वही उस से इस के बारे में बात करे. यदि आप बच्चे को यह समझाने में सफल हो जाते हैं कि घर में सैक्स समेत किसी भी प्रकार के प्रश्न पूछने पर उस पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है, तो समझिए आप के बच्चे सैक्स संबंधित बीमारियों से सुरक्षित रहेंगे

मेरे पति का हाल ही में किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है. नई किडनी कितने समय तक चलती है.

सवाल

मेरे पति का हाल ही में किडनी ट्रांसप्लांट हुआ है. मैं यह जानना चाहती हूं कि नई किडनी कितने समय तक चलती है?

जवाब

किडनी कितनी चलेगी, यह इस पर निर्भर करता है कि वह किस डोनर से आई है, किडनी का ब्लड ग्रुप और टिशू कितने बेहतर तरीके से मैच होते हैं? जिस व्यक्ति ने किडनी प्राप्त की है उस की उम्र कितनी है और उस का स्वास्थ्य कैसा है?

80-90% लोगों की 1 साल तक.

70-80% लोगों की प्रत्यारोपण के 5 साल तक.

50% लोगों की 10 वर्ष तक.

 

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भारत में किडनी कौन कौन दान कर सकता है.

सवाल

भारत में किडनी कौन कौन दान कर सकता है?

जवाब

दूसरे अंगों की तरह किडनी दान करना भी संभव है. जीवित व्यक्ति एक किडनी दान कर सकता है, क्योंकि जीवित रहने के लिए इनसान को एक किडनी की आवश्यकता होती है. इसे लीविंग डोनेशन कहते हैं. जो लोग किडनी दान करना चाहते हैं उन की बहुत सावधानीपूर्वक जांच की जाती है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वह व्यक्ति दान करने और किडनी निकालने के आवश्यक औपरेशन के लिए उपयुक्त है.

लीविंग डोनेशन निकट संबंधियों से आता है, क्योंकि उन का ब्लड ग्रुप और ऊतक समान होने की संभावना अधिक होती है.

जब किसी मृत व्यक्ति, जिसे ब्रेन डैथ घोषित किया गया हो, से किडनी प्राप्त की जाती है तो उसे डिजीज्ड कैडावर और्गन डोनेशन कहा जाता है.

 

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