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153 डॉट बॉल का अनोखा रिकॉर्ड

कुसाल मेंडिस की चमत्कारी बल्लेबाजी के बाद रंगना हेराथ की शानदार गेंदबाजी के दम पर श्रीलंका ने ऑस्ट्रेलिया को पहले टेस्ट में 106 रन से हरा दिया. अपनी जमीन पर ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ श्रीलंका की ये दूसरी जीत है.

लेकिन इस मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों ने लगातार 25.3 ओवर बिना कोई रन बनाए एक वर्ल्ड रिकॉर्ड खड़ा कर दिया. जी हां क्रिकेट इतिहास में यह एक रिकॉर्ड है कि मेहमान टीम ने 25.3 ओवर बिना किसी रन के निकाल दिए.

क्रिकेट इतिहास में इससे पहले इतने ओवर एक साथ कभी मेडन नहीं फेंके गए. पारी के 63वें ओवर में 4 रन बटोरने के बाद 64वें ओवर से 88.3 तक एक भी रन नहीं बन सका.

ऑस्ट्रेलिया के पारी में लायन के आउट होने के बाद मैदान पर आए स्टीव ओ कैफी ने पीटर नेविल के साथ मिलकर 64वें ओवर से 85.5 ओवर तक बल्लेबाजी की जिसके बाद वो आउट हो गए. इस साझेदारी में इस दौरान एक भी रन नहीं बना.

इसके बाद स्टीव भी हेरात का शिकार बन गए. इस दौरान भी कोई रन नहीं जुड़ा. इस तरह ऑस्ट्रेलिया की पारी में कुल 25.3 ओवर खाली निकले.

इसके अलावा पांचवें दिन जब ऑस्ट्रेलिया मैच बचाने के लिए संघर्ष कर रही थी और श्रीलंका अपने दूसरी जीत की ओर बढ़ रही थी तब ऑस्ट्रेलिया के पीटर नेविल और चोटिल ओ-किफ ने हार और जीत के बीच बल्लेबाजी का एक और अलग विश्व रिकॉर्ड बना दिया.

नौवें विकेट के लिए यू तो दोनों ने सिर्फ चार रनों की साझेदारी की लेकिन इसके लिए उन्होंने इतनी गेंद खेली कि नया रिकॉर्ड बन गया. दोनों ने पहले रन के लिए रिकॉर्ड 154 गेंद खेली. इसके बाद इनकी साझेदारी जब हेराथ ने तोड़ी तब तक दोनों ने 178 गेंदें खेल ली थी. यानि कि 29.4 ओवर में दोनों ने 0.13 के रन औसत से रन बनाए जो कि टेस्ट क्रिकेट का नया विश्व रिकॉर्ड है.

इससे पहले 2015 में साउथ अफ्रीका के हाशिम अमला और एबी डिविलियर्स ने भारत के खिलाफ 253 गेंदों पर 0.64 के औसत से 27 रन बनाए थे.

अब ये क्या कह दिया संजय दत्त ने

पिछले कई माह से चर्चाएं गर्म थी कि संजय दत्त की जिंदगी पर आधारित फिल्म का निर्माण राजकुमार हिरानी कर रहे हैं. चर्चाएं गर्म रही हैं कि अपनी इस बायोपिक फिल्म में संजय दत्त का किरदार निभाने वाले अभिनेता रणबीर कपूर को संजय दत्त ने खुद ही ट्रेनिंग दी है. मगर अब अपने जन्मदिन पर संजय दत्त ने इस बात से साफ इंकार किया है.

संजय दत्त ने मीडिया से बात करते हुए कहा-‘‘मैंने अब तक रणबीर कपूर को अभिनय की कोई टिप्स या ट्रेनिंग नहीं दी है. मैं रणबीर कपूर को कोई ट्रेनिंग देने वाला भी नही हूं. फिल्म को लेकर सब कुछ सही ढंग से करने के लिए राजकुमार हिरानी स्वयं सक्षम हैं.’’

संजय दत्त के इस बयान के आने के बाद बौलीवुड में खबरें गर्म है कि क्या संजय दत्त उम्मीद खो चुके हैं कि उनकी बायोपिक फिल्म बन सकेगी?

संजय के करियर को संवारने की नई कवायद

1993 के बम ब्लास्ट के बाद आर्म्स एक्ट के तहत सजा काटने के बाद फरवरी माह में जेल से वापस आए संजय दत्त का करियर जिस हिसाब से उन्होंने योजना बनायी थी, उस हिसाब से शुरू नहीं हो पाया. इसमें कई लेाग उनकी किस्मत को दोष दे रहे हैं. यहां तक कि सिद्धार्थ आनंद, संजय दत्त के साथ फिल्म ‘‘बदला’’ बनाने की जो योजना बनायी थी, वह बंद कर दी गयी. जबकि संजय दत्त ने इस फिल्म के लिए ट्रेनिंग भी ली थी. पर अंततः सिद्धार्थ आनंद यह फिल्म शुरू नही कर पाए और अब सिद्धार्थ आनंद ने हृतिक रोशन के साथ दूसरी फिल्म पर काम करना शुरू कर दिया है. इस घटनाक्रम के बाद संजय दत्त की समझ में नही आ रहा था कि क्या किया जाए.

सूत्रों की माने तो अपने जन्मदिन के बाद संजय दत्त ने नई कवायद शुरू कर दी है. सूत्रों की माने तो अब संजय दत्त ने एक अन्य पीआर की मदद लेकर यह खेल ‘शुरू किया है. अब मीडिया में खबर फैलायी जा रही है कि फिल्म ‘‘बदला’’ का बजट ज्यादा था, इसलिए बंद हो गयी. पर इससे संजय दत्त की ईमेज सुधरने की बजाय बिगड़ रही है. जिस पीआर ने इस तरह की खबर फैलाने की सलाह दी, उसने गलत राह ही पकड़ायी है. क्योंकि यदि यह मान लें कि फिल्म का बजट ज्यादा होने के कारण बंद की गयी, तो इसके मायने यही हैं कि अब संजय दत्त इतने लोकप्रिय नहीं रहे कि उनकी फिल्में बाक्स आफिस पर धन बटोर सके. यानी कि निर्माताओं का उन पर विश्वास नहीं रहा. बौलीवुड का एक तबका मानता है कि संजय दत्त को नए सिरे से दर्शकों के बीच अपनी पैठ बनाने और निर्माताओं का विश्वास हासिल करने की जरुरत है, जिस पर वह जितनी जल्दी ध्यान देंगे, उतना बेहतर होगा.

किसकी फिल्म देखने मुंबई पहुंची नरेंद्र मोदी की पत्नी

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्नी जसोदाबेन के लिए आज भी रिश्ते पहली अहमियत रखते हैं. इसी के चलते जब गुजराती फिल्मों के मशहूर अभिनेता राजदीप ने अपनी पहली हिंदी फिल्म ‘‘यह कैसी है आशिकी’’ के मुंबई में आयोजित ‘प्रेस शो’ में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया, तो जसोदाबेन अहमदाबाद से मुंबई पहुंची. जसोदाबेन ने पत्रकारों के साथ बैठकर फिल्म देखने के बाद राजदीप को आशीर्वाद देते हुए फिल्म की सफलता की कामना की.

30 जुलाई को मुंबई में ‘‘फन रिपब्लिक’’ के प्रिव्यू थिएटर में फिल्म देखने के बाद जब हमारी जसोदाबेन से बात हुई, तो जसोदाबेन ने ‘‘सरिता’’ पत्रिका से कहा- ‘‘राजदीप मेरे भाई की तरह हैं. मैंने उनकी गुजराती भाषा की ‘देश जोयो दादा प्रदेश जोयो’, ‘उंची मोड़ी नो उंचा मोल’ सहित कई सुपरहिट फिल्में देखी हैं. वह सिनेमा के क्षेत्र में 25 वर्षों से अच्छा काम करते आ रहे हैं. मैं उनकी इस फिल्म की सफलता के लिए आशीवार्द देने आयी हूं. मैने आप लोगों के साथ फिल्म देखी. अच्छी कहानी है.’’

जी एन भाई व वंदना बी.रावल निर्मित तथा सुभाष जे शाह निर्देशित फिल्म ‘‘यह कैसी है आशिकी’’ के हीरो राजदीप ने ही इस फिल्म की कथा व पटकथा लिखी है. राजदीप का असली नाम जमीर खान है. उनका फिल्मी नाम राजदीप है. वह पिछले 25 वर्षों से बतौर हीरो गुजराती फिल्मों में सफलता के झंडे गाड़ते आ रहे हैं. ‘यह कैसी है आशिकी’ उनकी पहली हिंदी फिल्म है. जसोदा बेन के साथ अपने संबंधों की बात करते हुए राजदीप ने कहा- ‘‘जसोदा बेन को मैं वर्षों से बहन की तरह मानता आया हूं. इसीलिए आज वह मेरे करियर के नए पड़ाव पर मुझे आशीर्वाद देने आयी हैं.’’

रहस्य, रोमांच, मर्डर मिस्ट्री, हारर से भरपूर संगीतमय प्रेम कहानी वाली फिल्म ‘‘यह कैसी है आशिकी’’ की कहानी एक पचास साल से अधिक उम्र के अमीर इंसान कुमार की है, जो कि अपनी बेटी प्रिया की उम्र की ही लड़की कामिनी से दूसरा विवाह कर लेते हैं. कामिनी ने महज कुमार की दौलत देखकर विवाह किया है. वह एक नहीं दो दो युवकों के साथ रंगरेलियां मनाती रहती है. इसमें सवाल उठाया गया है कि बीस साल की उम्र की लड़कियां किसी अधेड़ उम्र के अमीर इंसान से प्यार व शादी क्यों करती हैं? ऐसी शादी होने के बाद लड़की व उस अमीर इंसान का क्या होता है? क्या यह वास्तव में प्यार है या सौदा? इस फिल्म के गीतकार अमिताभ रंजन व माहिल पधवी हैं. संवाद लंखक सुरेष जोशी तथा फिल्म को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं- सुखबीर लांबा, अतुल सोनी, सिप्रा गौर, वंदना रावल, स्वाती मुखर्जी, गोकुल बारैया, राजू भरूची व अन्य.

रेलकर्मी भी बनेंगे ‘फैशनेबल’

भारतीय रेलवे को नया रंग-रूप और कलेवर देने के इरादे से जानी मानी फैशन डिजाइनर रितु बेरी ने रेलवे कर्मचारियों की यूनिफॉर्म बदलने के लिए चार तरह की कलर स्कीम की थीम रेल मंत्री को सुझाई हैं.

सोशल मीडिया पर प्रतियोगिता के जरिए थीम चुनने का आइडिया

रितु बेरी ने प्रभु के साथ हुई इस बैठक में अपनी सुझाई चार थीम्स में एक थीम चुनने के लिए सोशल मीडिया पर कंप्टीशन आयोजित करने का सुझाव दिया. रेलमंत्री ने इस बात पर अपनी रजामंदी दे दी है. जल्द ही इस बारे में एक सोशल मीडिया कैंपेन शुरू किया जाएगा. यानी बेरी की थीम्स में एक को चुनने का अधिकार आम आदमी के पास होगा.

ड्रेस भारतीय मौसम के लिहाज से बनाई जाएगी

रितु बेरी ने रेल मंत्री को बताया कि कर्मचारियों की यूनिफॉर्म भारतीय मौसम के अनुकूल होंगी और आरामदायक होंगी. रेलमंत्री ने बेरी के सुझावों को जल्द से जल्द अमल में लाने और नई पोशाकें तैयार करने के काम को पूरा करने के लिए आनन फानन में चेयरमैन रेलवे बोर्ड की अध्यक्षता में एक कमिटी भी गठित कर दी.

रेलवे में तमाम कर्मचारियों के लिए ड्रेस कोड है. आइए हम आपको बताते हैं कि किन-किन कर्मचारियों की ड्रेस को रितु बेरी बदलने जा रही हैं. ये कर्मचारी हैं-

1. स्टेशन मास्टर

2. टीटीई

3. टिकट बुकिंग स्टाफ

4. रेलवे गार्ड

5. इंजन ड्राइवर

6. रेलगाड़ी में सफर करने वाला स्टाफ

7. स्टेशन पर काम करने वाला स्टाफ

8. भारतीय रेलवे के सभी अफसर

कुलियों की भी बदली जाएगी ड्रेस

इन सभी कर्मचारियों के अलावा भारतीय रेलवे की पहचान बन चुकी कुलियों की लाल रंग की पोशाक भी बदली जाएगी. मोदी सरकार कुलियों की इस ड्रेस को अंग्रेजों की गुलामी की देन मानती है. कुलियों को एक बेहतरीन और आजाद भारत की पहचान वाली ड्रेस देने पर भी रितु बेरी विचार कर रही हैं. कुल मिलाकर भारतीय रेलवे को अलग कलेवर देने के लिए प्रभु ने कमर कस ली है. ये पूरी कवायद इसी साल पूरी कर लिए जाने की कोशिश है.

इन जगहों पर भूलकर भी न रखें फोन

स्मार्टफोन हमारे डेली लाइफ का हिस्सा बन गया है. यह डिवाइस हर समय हमारे साथ होता है. हम खाना खाना भले ही भूल जाएं लेकिन वॉट्सऐप चेक करना नहीं भूलते. हर जगह हम इसे अपने साथ लिए घूमते हैं. लेकिन कुछ जगहें ऐसी हैं जहां फोन को ले जाना या रखना उसकी सुरक्षा के लिहाज से सही नहीं है. हम आपको बता रहे हैं कुछ ऐसी जगहें जहां फोन रखना खतरे से खाली नहीं है.

1. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के पास

ऐसे होगा नुकसान

अपने फोन को कभी भी दूसरे इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के करीब न रखें. इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस से निकलने वाली रेडिएशन आपके स्मार्टफोन के मैग्नेटिक और सेंसर को डैमेज कर सकती है. स्मार्टफोन में बिल्ट-इन ऐप्स के लिए मैग्नेटिक सेंसर का इस्तेमाल किया जाता है. साथ ही फोन में सिग्नल ब्लॉक होने और कनेक्टिविटी जैसी समस्याएं आने गलती हैं.

2. डायरेक्ट सन लाइट

ऐसे होगा नुकसान

ओवरहीटिंग से स्मार्टफोन के मदरबोर्ड से लेकर बैटरी तक के डैमेज का खतरा होता है.ओवरहीटिंग सिर्फ ज्यादा देर फोन के प्लगइन रहने या ज्यादा यूज करने से ही नहीं बल्कि धूप में या डायरेक्ट सनलाइट में फोन रखने या यूज करने से भी होती है. अपने स्मार्टफोन को डायरेक्ट सनलाइट एक्सपोजर से बचाएं. एक्सेसिव हीट फोन की बैटरी को डैमेज कर सकती है. कई बार अचानक ही फोन का मदरबोर्ड क्रैश हो जाता है और डिवाइस काम करना बंद कर देता है इसका कारण भी ओवरहीटिंग ही है. इसके अलावा सन रेज फोन की स्क्रीन भी डैमेज करती हैं.

3. मैग्नेट के पास

ऐसे होगा नुकसान

Androidcentral forums की एक रिपोर्ट के मुताबिक मैग्नेट या इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस के पास स्मार्टफोन रखने से फोन की NFC चिप को नुकसान पहुंचता है. साथ ही सिग्नल प्रॉबलम की बजह से इंटरनेट कनेक्शन में भी दिक्कतें आती हैं. मैग्नेटिक और इलेक्ट्रॉनिक डिवाइसेस फोन के मदरबोर्ड को भी नुकसान पहुंचाती हैं.

4. कार के ग्लव कंपार्टमेंट में

ऐसे होगा नुकसान

अगर आपने ध्यान दिया हो तो आपको पता होगा कि कार का ग्लव कंपार्टमेंट पूरी तरह से पैक होता है. ये कार का ऐसा हिस्सा है जो काफी गर्म होता है और इसमें हवा ना के बराबर पास होती है. ऐसे में इस जगह अपने फोन को रखना खतरे से खाली नहीं है. लगातार यहां फोन रखने से फोन के इंटर्नल पार्ट्स डैमेज होते हैं.

5. गैस और स्टोव के पास

ऐसे होगा नुकसान

मोबाइल फोन सिस्टम को सेल्युलर टेलिफोन सिस्टम भी कहते हैं. सेल फोन्स 2.5GHz की रेंज में इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएश यूज करते हैं. स्मार्टफोन से लाइट स्पार्क होने के केसेस काफी कम सुनने में आते हैं, लेकिन किचन में या गैस के पास फोन रखने से स्पार्क होने और आग लगने का खतरा हमेशा बना रहता है.

6. बाथरूम में साथ न ले जाएं स्मार्टफोन

ऐसे होगा नुकसान

एक रिसर्च के मुताबिक घर में सबसे ज्यादा बैक्टेरिया बाथरूम और टॉयलेट सीट पर होते हैं. ऐसे में फोन पर बैक्टेरिया चिपक सकते हैं. आप बाथरूम से बाहर आने पर हाथ-पैर तो साफ कर सकते हैं लेकिन अपने फोन को साफ करने के लिए इसे धो नहीं सकते. ऐसे में बेहतर है कि फोन को बाथरूम में न लेकर जाएं. इससे आपकी हेल्थ पर असर हो सकता है.

7. फ्रिज से दूर रखें फोन

ऐसे होगा नुकसान

कुछ लोगों का मानना है कि फोन को ओवरहीटिंग से बचाने के लिए इसे कुछ देर के लिए फ्रिज में रखना चाहिए. लेकिन ये बिलकुल गलत है. फोन के लिए ज्यादा ठंडा या ज्यादा गर्म दोनों ही खतरनाक हैं. फ्रिज में फोन रखने से बैटरी फूलने और डैमेज होने का खतरा रहता है.

तो 2030 तक भारत बन जाएगा विकसित देश

केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि भारत को यह देखने की जरूरत है कि विकसित देश बनने का लक्ष्य 2030 तक हासिल हो जाए. पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने वर्ष 2020 का जो लक्ष्य रखा था, देश उसे पाने में असफल रहा है. जेटली ने कलाम पर पहले स्मारक व्याख्यान के दौरान कहा, 'कलाम का भारत को वर्ष 2020 तक विकसित देश बनाने की जो परिकल्पना थी उसे पाने में हमलोग नाकाम रहे हैं. इस तारीख को और आगे बढ़ाने की जरूरत है.'

उन्होंने कहा, '2020 की जगह हम इसे आगे बढ़ाकर 2030 करते हैं. भारत को उस रास्ते का अनुसरण करना है. इसके लिए प्राइवेट सेक्टर से निवेश की जरूरत होगी और वैश्विक स्तर पर भी. बड़े संसाधन एवं बैंकिंग क्षेत्र की भी जरूरत पड़ेगी.' उन्होंने कहा कि सरकार हमेशा निवेश करेगी, लेकिन निजी क्षेत्र से निवेश तभी आएगा जब भारत निवेश के लिए सबसे अच्छा स्थान बनेगा. इसके लिए भारत को व्यापार के लिए आसान माहौल बनाना और भ्रष्टाचार पर काबू पाने की जरूरत होगी.

जेटली ने कहा कि हमने भले ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए दरवाजे खोल दिए हों लेकिन भूमि और निर्माण की जरूरतों में मामले में भारत 190 देशों में अब भी 183वें स्थान पर है. इस बदलाव को राज्य स्तर पर लाने की जरूरत है नहीं तो प्रतिकूल माहौल बना है जिससे राजस्व का नुकसान हुआ है. करों के बारे में उन्होंने कहा कि अप्रत्यक्ष करों को दुनिया की तुलना में सबसे अच्छा होना होगा. जल्द ही आने जा रहे वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) पर जोर देते हुए जेटली ने कहा, 'एक देश एक टैक्स' का पूरा विचार राहत और किसी भी तरह के भ्रष्टाचार से मुक्ति देता है.

साम्राज्यवादी सरकारों का आतंक

आतंकवाद समाज और व्यवस्था की उपज है. एक ऐसी अमानवीय समाज व्यवस्था की उपज है, जिसमें शोषण और दमन है. इस शोषण की कोई सीमा नहीं है, और इस दमन की भी कोई सीमा नहीं है. जिसमें राज्य की सरकारें, सेना, सुरक्षा एजेन्सी और धीरे-धीरे इनके शीर्ष पर जा बैठी वैश्विक वित्तीय ताकतें हैं. इन्होंने ही राज्यों की सरकार को शोषण, दमन और आतंक का पर्याय बनाया. इन्होंने ही अल-कायदा से लेकर ‘इस्लामिक स्टेट’ को पैदा किया.

विश्व परिदृश्य में 15 जुलाई को दो घटनायें एक दिन लगभग एक साथ घटीं. एक यूरोप के फ्रांस में और दूसरा मध्य पूर्व एशिया के तुर्की में. एक में, अब तक अघोषित इस्लामिक स्टेट का आतंक है, और दूसरे में, अब तक अघोषित अमेरिकी साम्राज्य का आतंक है. फ्रांस पर आतंकी हमला हुआ, और तुर्की में सेना ने तख्तापलट की कोशिश की. एक आतंकी संगठन का आतंक है और दूसरा अमेरिकी साम्राज्य का आतंक. अपने से असहमत लोगों को और अपने से असहमत व्यवस्था को मार डालो. जबकि तुर्की अमेरिका समर्थक नाटो देश हैं, मगर गये महीने से वह रूस की ओर कदम बढ़ा रहा है.

तुर्की की सरकार ने रूस से अपने संबंध सुधारने के लिये रूसी बमवर्षक विमान को मार गिराने के लिये न सिर्फ लिखित क्षमा याचना की और क्षतिपूर्ति तथा मारे गये विमान चालक दल को मुआवजा देने की पेशकश की. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने तुर्की पर लगाये गये प्रतिबंधों को हटाने की डिक्री पर हस्ताक्षर किया. वैसे भी तुर्की की अर्थव्यवस्था रूस के सहयोग के बिना नहीं चल सकती. वह रूसी प्रतिबंधों को झेलने की स्थिति में नहीं है.

तुर्की की आम जनता एरडोगन सरकार और वर्तमान में राष्ट्रपति एरडोगन और प्रधानमंत्री बिनाली यिल्दिरिम की सरकार के नीतियों का विरोध करती रही है. सीरिया के विरूद्ध अमेरिकी पक्ष में खड़ा होना, आतंकियों को अपनी सीमा से सीरिया में भेजना, उसे मंजूर नहीं है. इसके बाद भी वह सैनिक तख्तापलट के खिलाफ है. उसने जनविरोधी ही सही, लेकिन लोकतंत्र की सरकार का समर्थन किया. तख्तापलट के खिलाफ वह सड़कों पर उतर आयी. उसने बमवर्षकों-टैंकों, गोलियों और फौजी जूतों का संगठित विरोध किया. तख्तापलट करने वाली सेना के पांव उखड़ गये. दावे-प्रतिदावे के बीच यह बात बिल्कुल साफ है, कि तुर्की की आम जनता सैनिक सरकार के पक्ष में नहीं है. संघर्ष जारी है. माना यह भी जा सकता है, कि तख्तापलट एक चेतावनी है, कि तुर्की की सरकार संभल कर चले. उसे अमेरिकी खेमे से बाहर जाने या अपना स्वतंत्र अस्तित्व बनाने की इजाजत नहीं है.

इस आशंका को भी खारिज नहीं किया जा सकता, कि जन विरोधी एरडोगन सरकार अपने विरोधियों को कुचलने के लिये भी नाकाम तख्तापलट की इस कार्यवाही का नाटक करा सकती है. आज यूरोपीय मीडिया जिसे एरडोगन समर्थक करार दे रही है, वास्तव में वह सरकार समर्थक से ज्यादा तुर्की में लोकतंत्र समर्थक और सैनिक सरकार के विरोधी लोग हैं.

दोनों ही स्थितियां ऐसी हैं, जिसमें अमेरिकी सम्बद्धता तय है. मिस्त्र की आम जनता पर जिस तरह लोकतंत्र के नाम पर सैनिक तानाशाही थोपी गयी, तुर्की में भी कुछ ऐसा ही धोखा दिया जा सकता है. लोकतंत्र समर्थक हजारों कम्युनिस्टों की हत्या अंकारा सरकार पहले ही कर चुकी है. यह तख्तापलट जन समर्थन हासिल करने और दमन के नये दौर की शुरूआत भी हो सकती है.

साम्राज्यवादी ताकतें एक बार जिस देश में घुस जायें, चाहे अपने सेना के साथ, या वित्तीय ताकतों के साथ, उन्हें देश से बाहर निकालना आसान नहीं होता. तुर्की में वह दोनों ही तरीके से घुसी हुई हैं. चंद साल पहले उसने अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के कर्ज से स्वयं को मुक्त किया. उस समय से ही तख्तापलट की आशंकायें अंकारा सरकार जताती रही है. जन असंतोष और जन प्रदर्शनों का दौर तुर्की में कभी थमा नहीं. जिसका लाभ साम्राज्यवादी ताकतें उठाना चाहती हैं. जबकि प्रदर्शनों एवं जन आन्दोलनों पर लोकतांत्रिक-वामपंथी ताकतों की पकड़ है. तुर्की में सैनिक शासन का मतलब लोकतंत्र और वामपंथ को कुचलना और उसे वित्तीय ताकतों की गिरफ्त में लाने की कोशिश है.

अमेरिकी साम्राज्यवाद सरकारों के आतंक का पर्याय है. जन विरोधी सरकार ही उसका मकसद है. जिसकी स्थापना के लिये वह तीसरी दुनिया -खास कर एशिया और अफ्रीका- के देशों में आतंकवादियों का संगठित उपयोग करती रही है. जिसमें यूरोपीय संघ भी बराबर का साझेदार है. फ्रांस की हिस्सेदारी भी बड़ी है. आज जिस शरणार्थी संकट का सामना यूरोपीय देश कर रहे हैं, वह उन्हीं की कारस्तानी है. उन्होंने ही इराक और लीबिया को तबाह किया और उन्हीं की वजह से सीरिया का संकट हैं जिसमें ‘इस्लामिक स्टेट आॅफ इराक एण्ड सीरिया‘ उनका सहयोगी आतंकी संगठन रहा है. अल्-नुसरा फ्रंट घोषित तौर पर अल्-कायदा से जुड़ा है.

जार्ज बुश के ‘अल-कायदा’ के बाद बराक ओबामा का ‘इस्लामिक स्टेट’ सुर्खियों में है. जिसे फ्रांस पर हुए आतंकी हमले के लिये जिम्मेदार ठहराया जा रहा है. फ्रांस के राष्ट्रपति ओलांदे ने जिसे आतंकी हमला करार दिया और हमले की निंदा अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने की.

क्या बात है! क्या कमाल है! इसे आप अच्छी जुगलबंदी भी कह सकते हैं. दुनिया भर में आतंकी और दक्षिणपंथी ताकतों की पूछ बढ़ गयी है. उन्होंने साम्राज्यवादी ताकतों का समर्थन हासिल कर लिया है. जिनके जरिये राज्य-सरकार के आतंक को बढ़ाया जा रहा है.

पटना पाइरेट्स दूसरी बार बना चैंपियन

अपने जबरदस्त रक्षात्मक और आक्रामक खेल की बदौलत पटना पाइरेट्स टीम ने गाचीबावली इंडोर स्टेडियम में बॉलीवुड स्टार अभिषेक बच्चन के मालिकाना हक वाली जयपुर पिंक पैंथर्स को मात देकर लगातार दूसरी बार स्टार स्पोर्ट्स प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) खिताब अपने नाम किया.

इससे पहले बीते साल सीजन-3 में पटना ने यू-मुम्बा को हराकर पहली बार इस खिताब पर कब्जा जमाया था. प्लेऑफ मुकाबले में पुनेरी पल्टन ने जीत हासिल करते हुए तीसरा स्थान हासिल किया और हार का सामना करने वाली तेलुगू टाइटंस की टीम को चौथा स्थान हासिल हुआ.

पटना ने रोमांच से भरपूर फाइनल में जयपुर को 37-29 के अंतर से हराया. पहले हाफ में जयपुर की रक्षात्मक रणनीति पर भारी पड़ी पटना ने 19-16 से बढ़त बनाई. पहले चरण के खेल की समाप्ति से पांच मिनट पहले धर्मराज चेरालाथन की टीम ने प्रतिद्वंद्वी टीम को ऑल आउट किया.

टीम के लिए हादी ओस्तोराक ने सबसे अधिक पांच टैकल अंक हासिल किए. हालांकि,  मुकाबले के पहले हाफ के 20 मिनट पूरे होने से एक मिनट पहले दोनों टीमें 16-16 से बराबरी पर थी लेकिन आक्रामक खेल की बदौलत पटना ने फिर बढ़त हासिल की. टीम के लिए इस खेल में रेडरों ने मुख्य भूमिका निभाई.

दूसरे हाफ में भी पटना को जयपुर पर भारी पड़ते देखा गया. मुकाबले की समाप्ति में सात मिनट शेष रहने पर जसवीर की टीम एक बार फिर प्रतिद्वंद्वी टीम के हाथों धराशाई होकर ऑल आउट हो गई. इस समय पर धर्मराज की टीम विरोधी टीम से 28-23 से आगे थी.

धर्मराज की टीम ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और जयपुर पर भारी पड़ते हुए उसे 37-29 हराकर खिताब पर कब्जा जमाया.

पटना के लिए इस मुकाबले में प्रदीप नरवाल ने सबसे अधिक 16 अंक हासिल किए. वहीं, हादी ओस्तोराक ने पांच अंक जुटाए. धर्मराज और कुलदीप सिंह ने 3-3 अंक हासिल किए.

इस मुकाबले में जयपुर के लिए कप्तान जसवीर सिंह ने पटना से अकेले लोहा लेते हुए 13, राजेश नरवाल ने सात और अमित हुड्डा ने तीन अंक हासिल किए. हालांकि, कप्तान का यह मानना है कि उन्होंने अपना 100 प्रतिशत नहीं दिया और कहीं तो उनसे चूक हुई जिसके कारण उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

नरवाल को टूर्नामेंट का मोस्ट वैल्यूबल खिलाड़ी चुना गया. इसके लिए उ्नन्हें 10 लाख रुपये का पुरस्कार मिला. पटना की टीम को एक करोड़ रुपये मिले जबकि जयपुर को 50 लाख रुपये का पुरस्कार मिला. पुणे को 30 लाख जबकि चौथे स्थान पर आने वाली हैदराबाद टीम को 20 लाख रुपये मिले.

इकॉनोमी में ग्रोथ, पर नौकरियां कहां?

देश की दिग्गज आईटी कंपनी इन्फोसिस के को-फाउंडर के. गोपालकृष्णन ने रविवार को कहा कि भारतीय इकॉनमी तेजी से ग्रोथ हो रही है, लेकिन हम उसके मुताबिक नौकरियों का सृजन करने में सफल नहीं हो सके हैं. आईआईटी खड़गपुर में छात्रों को संबोधित करते हुए गोपालकृष्णन ने कहा कि खासतौर पर 2008 में आए आर्थिक संकट के बाद से दुनिया में आर्थिक विषमता तेजी से बढ़ी है.

गोपालकृष्णन ने कहा, 'हालांकि भारत दुनिया के हालातों से बहुत ज्यादा प्रभावित नहीं हुआ है और इकॉनमी ने मजबूत ग्रोथ की है. लेकिन इस स्थिति को हम ज्यादा नौकरियों में तब्दील नहीं कर सके हैं.' इस स्थिति को 'कठिन' बताते हुए गोपालकृष्णन ने कहा कि हमें इसके समाधान की ओर बढ़ना होगा. इन्फोसिस के को-फाउंडर ने युवा इंजिनियरों को इस सेक्टर के साइड-इफेक्ट्स से भी बचने की सलाह दी.

ड्राइवरलेस वाहनों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि यदि इनका इस्तेमाल पूरे सुरक्षा मानकों के किया गया तो यह बड़े नुकसान की वजह बन सकते हैं. गोपालकृष्णन ने कहा, 'यह महत्वपूर्ण है कि वैज्ञानिक और इंजिनियर किसी भी तकनीक के नकारात्मक पहलुओं का भी अध्ययन करें. किसी भी तकनीक को बड़े पैमाने पर लागू करने से पहले ऐसा किया जाना चाहिए.'

इन्फोसिस के फाउंडर ने कहा कि हम चौथी औद्योगिक क्रांति के मुहाने पर हैं. उन्होंने कहा कि आने वाले 30 से 35 सालों में उभरती हुई तकनीकें दुनिया में एक बार फिर से बड़ा बदलाव लाएंगी.

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