आतंकवाद समाज और व्यवस्था की उपज है. एक ऐसी अमानवीय समाज व्यवस्था की उपज है, जिसमें शोषण और दमन है. इस शोषण की कोई सीमा नहीं है, और इस दमन की भी कोई सीमा नहीं है. जिसमें राज्य की सरकारें, सेना, सुरक्षा एजेन्सी और धीरे-धीरे इनके शीर्ष पर जा बैठी वैश्विक वित्तीय ताकतें हैं. इन्होंने ही राज्यों की सरकार को शोषण, दमन और आतंक का पर्याय बनाया. इन्होंने ही अल-कायदा से लेकर ‘इस्लामिक स्टेट’ को पैदा किया.

विश्व परिदृश्य में 15 जुलाई को दो घटनायें एक दिन लगभग एक साथ घटीं. एक यूरोप के फ्रांस में और दूसरा मध्य पूर्व एशिया के तुर्की में. एक में, अब तक अघोषित इस्लामिक स्टेट का आतंक है, और दूसरे में, अब तक अघोषित अमेरिकी साम्राज्य का आतंक है. फ्रांस पर आतंकी हमला हुआ, और तुर्की में सेना ने तख्तापलट की कोशिश की. एक आतंकी संगठन का आतंक है और दूसरा अमेरिकी साम्राज्य का आतंक. अपने से असहमत लोगों को और अपने से असहमत व्यवस्था को मार डालो. जबकि तुर्की अमेरिका समर्थक नाटो देश हैं, मगर गये महीने से वह रूस की ओर कदम बढ़ा रहा है.

तुर्की की सरकार ने रूस से अपने संबंध सुधारने के लिये रूसी बमवर्षक विमान को मार गिराने के लिये न सिर्फ लिखित क्षमा याचना की और क्षतिपूर्ति तथा मारे गये विमान चालक दल को मुआवजा देने की पेशकश की. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने तुर्की पर लगाये गये प्रतिबंधों को हटाने की डिक्री पर हस्ताक्षर किया. वैसे भी तुर्की की अर्थव्यवस्था रूस के सहयोग के बिना नहीं चल सकती. वह रूसी प्रतिबंधों को झेलने की स्थिति में नहीं है.

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